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कोक शास्त्र
कोटिशः
कोक शास्त्र - संज्ञा, पु० (सं० ) को ककृत कोचकी -संज्ञा, पु० ( ? ) ललाई लिए काम या रति-शास्त्र ।
हुए भूरा रंग । कोचवान - संज्ञा, पु० दे० ( अं० कोचमैन ) घोड़ा गाड़ी हाँकने वाला | संज्ञा, स्त्री० कोचवानी - कोचवान का काम । कोचा - संज्ञा, पु० ( हि० कोंचना ) तलवार,
कोका - संज्ञा, पु० (०) दक्षिणी अमेरिका का एक वृक्ष, जिसकी सूखी पत्तियाँ चाय या कहवे सी होती हैं | संज्ञा, पु० स्त्री० ( तु० ) धाय की संतान, दूध-भाई या बहिन | संज्ञा, स्त्री० (सं० ) कोकाबेली नामक एक फूल, कुई । starबेरी-कोकाबेली --- संज्ञा, स्त्री० (सं० कोकनद + बेल = हि० ) नीली कुमुदनी । कोकाह - संज्ञा पु० (सं० ) सफ़ेद घोड़ा । कोकिल - कोकिला - संज्ञा, पु० स्त्री० (सं०) कोयल, नीलम की एक छाया, छप्पय का १६ वाँ भेद, कोयल । कोकिलावास - संज्ञा, पु० यौ० (सं० )
आम्रवृक्ष |
कोकी - संज्ञा, स्त्री० (सं०) चक्रवाकी, चकई । कोकीन कोकेन -संज्ञा, स्त्री० ( अं० ) -कोका नामक वृक्ष की पत्तियों से तैयार की हुई एक मादक औषधि या विष जिसे लगाने से शरीर सन्न (शून्य) हो जाता है । कोको -संज्ञा, स्त्री० (भनु० ) कौधा, लड़कों को बहकाने का शब्द । यौ० कोकोजेमएक प्रकार का वनस्पती घी । कोख - संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० कुक्षि ) उदर, जठर, पेट के दोनों बग़ल का स्थान, गर्भाशय ।
मु० -- कोख उजड़ जाना - संतान मर नाना, गर्भ गिर जाना । कोख बंद होना - बंध्या होना । कोख या कोख माँग से ठंढी या भरी-पूरी रहना - संतान और पति का सुख देखते रहना ( आशीष । कोगी - संज्ञा, पु० (दे० ) कुत्ते का सा एक शिकारी जंगली पशु जो झुंड में रहता है, सोनहा ( प्रान्ती० ) । कोच - संज्ञा, पु० ( ० ) एक चौपहिया बढ़िया घोड़ा गाड़ी, गद्देदार पलंग, बेंच या कुरसी । यौ० कोचवत - गाड़ीवान के बैठने का ऊँचा स्थान ।
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कटार आदि का हलका घाव, लगती हुई बात, ताना । कोजागर - संज्ञा, पु० (सं० ) आश्विनमा स की पूर्णिमा, शरद पूनो, उत्सव ) ।
जागरण का
कोट कोट्ट (प्रा० ) - संज्ञा, पु० (सं० ) दुर्ग, गढ़, किला, शहर - पनाह, प्राचीर, महल । संज्ञा, पु० (सं० कोटि ) समूह, यूथ | संज्ञा, पु० ( अं० ) अँग्रेज़ी ढंग का एक पहनावा । कोटपाल - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) किलेदार, दुर्ग - रक्षक | कोटवार (दे० ) । कोटर - संज्ञा, पु० (सं० ) पेड़ का खोखला, दुर्ग के आस-पास रक्षार्थ लगाया गया कृत्रिम वन (दे० ), कोठर । कोटवारण - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) कोट के रक्षार्थ चारदीवारी |
कोटवी - संज्ञा, स्त्री० ( सं० ) नग्न या विवस्त्रास्त्री |
कोटि - संज्ञा, स्त्री० (सं० ) धनुष का सिरा,
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की नोक या धार, वर्ग, श्रेणी, वादविवाद का पूर्व पक्ष, उत्कृष्टता, समूह । जथा (दे० ), ३० अंश के चाप के दो भागों में से एक, त्रिभुज या चतुर्भुज की भूमि और कर्ण से भिन्न रेखा, अर्धचंद्र का सिरा । वि० (सं० ) सौलाख करोड़ । " कोटि कोटि मुनि जतन कराहीं " रामा० । कोटिक - वि० (सं० कोटि +क) करोड़,
गणित " कोऊ कोटिक संग्रहै" तु० । कोटिर - संज्ञा, पु० (सं० ) जटा, किरीट, मुकुट कोटिशः - क्रि० वि० (सं० ) अनेक भाँति, बहुत प्रकार से । वि० अनेकानेक, बहुत अधिक |
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