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कला
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कलापिनी रसासव योग-पासवादि बनाना, २५ | धतक्रीड़ा-ई. अाकर्ष क्रीडा-पांसे सूचीवान कला-सुईकारी, सिलाई ।। का खेल । ६१ बाल क्रीड़नक-गुड़ियों २६ सूची-क्रीड़ा-एक सूत से अनेक का खेल । १२ वैनयिको-प्रश्वादि को वस्तुये बनाना, २७ वीणाडमरुवाद्य- गति सिखाना । ६३ व्यायामिकी२८ प्रहेलिका -२६ प्रतिमाला-(अंता- वैजयिकी-व्यायाम कला । ६४ शिल्प तरी विवाद) ३० कुर्वाचक या कूट योग कला । संज्ञा, स्त्री. शिव, नौका, ज्योति, -दृष्टिकूट रचना या उलझाना ३१ | बहाना । वाचन-राग से पठन, ३२ नाटका- कलाई.-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० कलाची) ख्यायिका दर्शन -३३ समस्या पूर्ति मणिबंध, गट्टा, प्रकोष्ट । संज्ञा, स्त्री. (सं. -( काव्य कला )-(त्रिपद. मूक आदि कलाप ) सूत का लच्छा, कुकरी, कलावा, समस्यायें बनाना), ३४ पट्टिकावान
दाल । विकल्प-पलंग-कुरसी आदि बिनना,कलाकंद-संज्ञा, पु. ( फा० ) खोए और ३५ तक्ष कर्म-तक्षण या बढ़ई की | मिश्री की बरती। कला, ३. वास्तु या निर्माण कला- कलाकर-संज्ञा, पु. ( सं० ) चन्द्रमा, राजगिरी, ३७ रूप्परत्न-परीक्षा-३८ वृक्ष विशेष । धातुवाद-कीमिया गीरो (धातु-शोधन, कला-कौशल -- संज्ञा, पु. यौ० (सं० ) मिश्रणादि ) ३६ मणि रागाकरज्ञान- किसी कला में निपुणता, दस्तकारी, हीरादि की खान जानना, ४० वृक्षायुर्वेद कारीगरी, शिल्प। योग-वृक्षरोपणादि कला, ४१ सजीव. | कलाद-संज्ञा, पु० (सं०) सुनार । संज्ञा,* धत- (मेषादि शिक्षण ) पशुओं को पु० दे० (सं० कलाप) कलादा--हाथी की सिखाना । १२ शुक-सारिका-प्रलापन- गर्दन परमहावत का स्थान, किलावा (दे०)। ४३ उत्सादन-देह दाबना। ४४ अक्षर कलाधर संज्ञा, पु० (सं०) चंद्रमा, शिव, मुष्टिका कथन-गुप्त बातों के संकेत । कलायों का ज्ञाता, दंडक छंद का एक भेद। ४५ म्लेच्छित विकल्प-सांकेतिक शब्दों कलापूर्ण। का ज्ञान । ४६ देश-भाषा-विज्ञान- कलाना-अ० कि० (दे०) भूनना, अकोरना। अन्य देश की भाषायें जानना। ४७ पुष्प कलानिधि-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) चंद्रमा . शकटिका-फूलगाडी रचना । ४८ कलानाथ। निमित्त-ज्ञान-प्राकृतिक बातों या | कलाप--संज्ञा, पु. (सं० कला-+-पा+ड्) पशुओं आदि की चेष्टा, वाणी से भावी समूह, ढेर, भुंड, मोर की पूंछ, पूला, मुठ्ठा, शुभाशुभ कथन । ४६ यंत्र-मंत्रिका- तरकश, बाण, कमरबन्द, पेटी, करधनी, गमन वृष्टि, युद्ध आदि के सजीव निर्जीव चंद्रमा, व्यापार, वेदकी शाखा, एक रागिनी, यंत्र रचना । ५० धारणमात्रिका- अर्ध चंद्राकार अस्त्र, भूषण, कातंत्र व्यास्मृति वर्वन कला। ५१ संपाद्य-अश्रुत करण । बात कहना । ५२ मानसी-मन की बातें | कलापक-संज्ञा, पु० (सं० ) समूह, पूला, बताना । ५३ काव्य क्रिया-५४ अभि- हाथी के गले का रस्सा, चार श्लोकों का धान कोष-शब्दार्थ निरूपण । ५५ (जिनका धन्वय साथ हो) समूह, मयूर । ईद कला-१६ क्रिया कल्प-५७ | कलापिनी-संज्ञा, स्त्री. (सं० ) रात्रि, छलित-ठगना-५८ वस्त्रगोपन-५६ | मोरनी।
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