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कुंभक
घट, कलश, हाथी के सिर के दोनों ओर वाले उभड़े भाग, ज्योतिष में दशवीं राशि, दो द्रोण या ६४ सेर का एक प्राचीन मान, प्राणायाम के ३ भागों में से एक (कुंभक) प्रति १२ वें वर्ष में पड़ने वाला एक पर्व, प्रह्लाद-सुत एक दैत्य, गुरुगुल, वेश्यापति, मेवाड़ के एक राजा ( १४१६ ई० ) । कुंभक - संज्ञा, पु० (सं० ) प्राणायाम का एक अंग जिसमें सांस की वायु को भीतर ही रोक रखते हैं । कुंभकर्ण – संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) रावण का भाई ।
कुंभकार – संज्ञा, पु० (सं० ) मिट्टी के बर्तन बनाने वाला, कुम्हार, मुर्गा । स्त्री० कुंभकारी - कुम्हारिन, कुलथी, मैनसिल । कुंभज - कुंभजात -- संज्ञा, पु० ( सं० ) घड़े से उत्पन्न पुरुष, अगस्त्य मुनि, वशिष्ठ, द्रोणाचार्य । " कहँ कुंभज कहँ सिंधु
अपारा
"" -रामा० । कुंभसंभव - संज्ञा, पु० (सं०) अगस्त्य ऋषि । कुंभवीर्य -संज्ञा, पु० (सं० ) रीठा । कुंभा - संज्ञा, पु० (सं० ) छोटा घड़ा, एक राजा, वेश्या ।
कुंभिका-संज्ञा, खो० (सं० ) कुंभी, जलकुंभी, वेश्या, कायफल, आँख की फुंसी, हजनी, बिलनी, परवल का पेड़, शूक रोग । कुँभिलाना - प्र० क्रि० (दे० ) कुम्हलाना । कुंभिनी- -संज्ञा, स्त्री० (दे०) पृथ्वी, जमालगोटा ।
कुंभी - संज्ञा, पु० (सं० ) हाथी, मगर गुग्गुल, एक विषैला कीड़ा, बच्चों को कुंश देने वाला एक राक्षस | संज्ञा, स्त्री० (सं०) छोटा घड़ा, कायफल का पेड़, दंती वृक्ष, दाँती (दे० ), जलकुंभी या जलाशयों की एक वनस्पति, कुंभीपाक नरक । यौ० कुंभीपुर - हस्तिनापुर | कुंभीधान्य - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) घड़ा या मटका भर अन्न जिसे कोई व्यक्ति या
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कुकु
परिवार ६ दिन या १ ( श्रन्यमत से ) साल में खा सके (स्मृति) | संज्ञा, पु० (सं० ) कुंभीधान्यक - कुंभीधान्य रखने वाला । कुंभीनस - संज्ञा, पु० (सं०) क्रूर सर्प, एक विषैला कीड़ा, रावण । स्त्री० कुंभीनसा । कुंभीपाक - संज्ञा, पु० (सं०) एक नरक ( पुरा० ) नाक से काला रक्त गिरने वाला सन्निपात ।
कुंभीर - संज्ञा, पु० (सं० ) नक्र या नाक नामक एक जल-जन्तु, एक प्रकार का कीड़ा। कुंभीकरुणा – संज्ञा, स्त्री० (सं० ) औषधि विशेष, निसोत ।
कुँवर - कुँवरेटा - संज्ञा, पु० दे० (सं० कुमार) लड़का, पुत्र, बेटा, राज पुत्र, बच्चा । स्त्री० कुँवरेटी - (दे० ) ।
कुवरि कुवँरी - संज्ञा स्त्री० (दे० ) कुमारी, पुत्री, राजकन्या । " रहि जनु कुवँरि चित्रश्रवरेखी " रामा० ।
कुवाँरा - वि० दे० (सं० कुमार ) बिना व्याहा, युवक, कुमार । स्त्री० कुवाँरी( सं० कुमारी ) । " ताते अबलगि रही कुवाँरी ". कुँह-कुँह * - संज्ञा, पु० दे० (सं० कुंकुम ) कुंकुम, केसर ।
रामा० ।
कु- उप० (सं० ) संज्ञा शब्दों के पूर्व लगकर उनके अर्थों में बुरा, नीच, कुत्सित आदि का भाव बढ़ाता है, जैसे कुमार्ग | संज्ञा, पु० (सं) पाप, अधर्म, निन्दा | संज्ञा, स्त्री० (सं० ) पृथ्वी ।
कुआँ कुवाँ - संज्ञा, पु० दे० (सं० कूप प्रा० कूब ) पानी के लिये पृथ्वी में खोदा हुआ गहरा गड्ढा, कूप, इँदारा । मुहा०- ( किसी के लिए ) कुआँ खोदना - नाश करने या हानि पहुँचाने का प्रयत्न करना | कुवाँ खोदना -जीविकार्य श्रम करना । कुएँ में गिरनाविपत्ति में पड़ना । कुएँ में बाँस पड़ना ( डालना ) - बहुत खोज होना (करना) ।
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