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कंजविहारी
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संख्या, एक नाग, पर्वत, देश, व्यवन ऋषि के उपदेशक, एक शुक, हस्त नक्षत्र, पीपल । यौ० कुंजर-मणि - हाथी के मस्तक से निकलने वाली मणि । " कुंजर मणि कंठा कलित तुल० । वि० - श्रेष्ठ | " कपि - कुंजरि हि बोलि ले आये " - रामा० । कुंजबिहारी -संज्ञा, पु० यौ० ( सं० ) श्रीकृष्ण । कुंजल - संज्ञा, पु० (दे० ) काँजी, कुंजर । कुंजिका - ( कुंचिका ) - संज्ञा, ( सं० ) कुंजी, काला जीरा ।
कुंज - संज्ञा, पु० (दे० ) पुरवा, कुल्हड़ | कुंजी - संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० कुंचिका ) चाभी, ताली । मु० - ( किसी की ) कुंजी हाथ में होना- किसी का वश में होना । कुंजो घुमाना ( किसी की ) - उसके साथ युक्ति से काम करना, वह पुस्तक जिससे किसी पुस्तक का अर्थ खुले, टीका ।
कुंठ - वि० (सं० ) जो चोखा या तीक्ष्ण न हो, गुठला, कुंद, मूर्ख |
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कुंठित - वि० (सं० ) जिसकी धार तीक्ष्ण न हो, गुठला, गोठिल ( दे० ) कुंद, मंद, बेकाम, निकम्मा । " कुंठित है गो कुठार अनैसो " - रामा० ।
कुंड - संज्ञा, पु० (सं० कुंड + प्रल् ) चौड़े मुँह का गहरा बर्तन, कुंडा, अन्न नापने का एक प्राचीन मान, छोटा तालाब, श्रग्नि होत्रादि करने का एक गड्ढा या धातु का पात्र, बटलोई, थाली, पूला, लोहे का टोप, कुंड (दे० ) । हौदा, खड्डु, पति रहते, उपपति से उत्पन्न पुत्र, जारज, यज्ञ गर्त । कुँडरा - संज्ञा, पु० दे० (सं० कुंड ) कुंडा,
मटका ।
कुंडल -संज्ञा, पु० (सं० ) सोने या चाँदी का मंडलाकार, कान का एक भूषण, बाली, मुरकी, गोरखपंथी, कनफटों के कानों का एक गोल गहना, कड़ा, रस्सी का गोल
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कंडिन
कुंदा, मोट या चरसे के मुँह का लोहे का गोल मँडरा, मेखला, लम्बी लचीली वस्तु की कई गोल फेरों में सिमटने की स्थिति फेंटा, मंडल, चंद्र या सूर्य के चारों ओर बदली या कुहरे में दीख पड़ने वाला मंडल, दो मात्रा और एक वर्ण का एक मात्रिक गण (पिं०), २२ मात्राओं का एक छंद, नाभि । कुंडलाकार - वि० यौ० (सं० ) वर्तुलाकार, गोल, मंडलाकार ।
कुंडलिका -संज्ञा, स्त्री० (सं० ) मंडलाकार रेखा, कुंडलिया । कुंडलिनी - - संज्ञा, स्त्री० (सं०) सुषुम्ना नाड़ी के मूल में मूलाधार के निकट की एक कल्पित वस्तु (तंत्र०), इमरती, जलेबी । कुंडलिया - संज्ञा, स्त्री० ( सं० कुंडलिका ) एक दोहे और एक रोले के संयोग से बना एक मात्रिक छंद, इसके श्रादि और अंत में एक ही शब्द या वर्ण-समूह रहते हैं धौर दोहे के अंतिम पद की श्रावृत्ति रोले के प्रथम पद की आदि में रहती है ।
कुंडली - संज्ञा, त्री० (सं० ) जलेबी, कुंडलिनी गुडि ( गिलोय) कचनार, सर्प के बैठने की मुद्रा, गंडुरी, जन्म-काल के ग्रहों की स्थिति बताने वाला एक बारह घरों का चक्र | संज्ञा, पु० (सं० कुंडलिन् ) साँप, बरुण, मोर, विष्णु । यौ० जन्मकुंडली - जन्मांकचक्र | वि० कुंडलीकृत - साँप, मयूर, कुंडलधारी, वरुण, विष्णु, चित्तलमृग ।
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कुंडा - संज्ञा, पु० दे० (सं० कुंड ) चौड़े मुँह का गहरा बड़ा बरतन, बड़ा मटका, कोंढा, कछरा | संज्ञा, पु० (सं० कुंडल ) दरवाज़े की चौखट में लगा हुथा, कोंढा जिसमें किवाड़े बंद करके साँकर फँसाई जाती और ताला लगाया जाता है ।
कुंडिन - - संज्ञा, पु० (सं०) एक मुनि, विदर्भ नगर, जो दो भागों में विभक्त था उत्तरीय
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