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कीनना
कीनना ईख़रीदना, मोल लेना । कीना-संज्ञा, पु० ( फ़ा० ) द्वेष, बैर । ( हि० करना) सा० भू० (कीन्हा) किया । कीनिया - वि० ( [फा० कांना ) द्वेषी, कपटी |
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(स० क्रि० दे० (सं० क्रीणन) कीर्ति संज्ञा, स्त्री० (सं० ) सक्रिया,
कीमा - संज्ञा, पु० ( ० ) बहुत छोटे छोटे टुकड़ों में कटा गोश्त ।
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कोप- संज्ञा, स्त्री० दे० ( अ० कीफ़ ) द्रवपदार्थ को ठीक तरह से तंग मुंह के बरतन में डालते समय लगाई जाने वाली घोंगी, goat |
यश
कीबो- स० क्रि० प्रान्ती० ( हि० करना ) | कीर्ति शेष संज्ञा, पु० (सं० ) मरण, करना । स्त्री० कोबी ।
कीमत- संज्ञा, स्त्री० ( ० ) दाम, मूल्य । वि० कोमती ( अ० ) बहुमूल्य, अनमोल, अमूल्य ।
की समाप्ति । कीर्तिस्तम्भ - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) किसी की कीर्ति को स्मरण कराने के लिये बनाया गया स्तंभ या खंभा, कीर्ति को स्थायी करने वाला कार्य या वस्तु |
कीर्तित - वि० (सं०) कथित, प्रसिद्ध, उक्त ।
कीलना
पुण्य, ख्याति, बड़ाई, यश, नेकनामी, राधा की माता, प्रसाद, आर्या छंद के भेदों में से एक, एक दशातरी वृत्त । वि० कीर्तिकर यशस्कर, ख्याति देने वाला । यौ० कोर्तिपताका- संज्ञा, पु० (सं० ) यश - चिह्न | वि० कीर्ति-प्रिय कीर्तिकामी- यश चाहने वाला ।
कीर्तिमान कीर्तिवान - वि० ( सं० ) यशस्वी, विख्यात |
क्रिया, रसायन ।
कीमियागर - संज्ञा, पु० ( फा० ) रसायनिक परिवर्तन में दक्ष, रसायन बनाने वाला | संज्ञा, स्त्री० कीमियागीरी । कोमुख्त संज्ञा, पु० (
० ) हरे रंग
दानेदार घोड़े या गधे का चमड़ा । कीर - संज्ञा, पु० (सं० ) शुक, सुग्गा, तोता, सुप्रा (दे० ) व्याव, बहेलिया, काश्मीर देश, काश्मीरी व्यक्ति । कीरति कीरत - संज्ञा स्त्री० दे० ( सं० कीर्ति ) यश, बड़ाई, नामवरी, प्रशंसा, कीती (दे० ) कित्ति 1 " कीरति श्रति कमनीय ". -र: मा० । कीर्तन -संज्ञा, पु० (सं० ) कथन, यश या गुण-कथन, कृष्ण-लीला सम्बन्धी भजन या कथा श्रादि ।
कीर्तनिया - संज्ञा, पु० दे० (सं० कीर्तन + इया -- प्रत्य० ) कीर्तन या कृष्ण-लीला सम्बन्धी भजन, कथा कहने वाला, कथक, गाने वाला ।
कोमिया -संज्ञा, स्त्री० (का० ) रसायनिक कील संज्ञा, स्त्री० (सं० ) लोहे या काठ
श्रादि की खूँटी, मेख, काँटा, योनि में अटक जाने वाला मूढ गर्भ नाक का एक छोटा आभूषण ( स्त्रियों का ) लौंग, मुहासे या फुड़िया की मांस- कील, जाँते के बीच का खूँटा, कुम्हार के चाक की खूँटी । स्तंभन मंत्र, तृण, परेग । चौकील काँटा - साज-सामान, औज़ार । कोलक - संज्ञा पु० (सं० ) कील, खूँटी, एक देवता ( तंत्र ) किसी मंत्र की शक्ति या उसके प्रभाव का नाशक मंत्र, ६० वर्षो में से एक, केतु विशेष, रोक, किवाड़ की कील, एक स्तोत्र | कोलन-संज्ञा, पु० (सं० ) बंधन, रोक, रुकावट, मंत्र के कीलने का काम । कीलना - स० क्रि० दे० ( सं० कीलन ) कील लगाना, कील ठोंक कर तोपादि का मुँह बन्द करना, किसी मंत्र या युक्ति के प्रभाव को नष्ट करना, साँप को ऐसा मुग्ध करना कि वह काट न सके, श्राधीन या वशीभूत करना, स्तंभित करना ।
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