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कहल
कहीं, कहुँ, कहूँ, कतों या तिनके के पास रखें तो उसे चुंबक सा वि० दे० (सं० कथम् ) कैसे, सर्व० व. पकड़ लेता है।
(सं० कः ) क्या, क्यों। वि० कौन । “ मैं कहल -संज्ञा पु० (दे० ) उमस, ताप, संकर कर कहा न माना "-रामा० । कष्ट (कहर)।
“ मन मानै नहीं तो कहा करिये "कहलना-अ० कि.० (हि० कहल ) गरमी संज्ञा, स्त्री० कथा । " बचन परगट करन
या ऊमस से व्याकुल होना, दहलना ।। लागे प्रेम-कहा चलाय"-भ्र० । यौ० कहलवाला कहलाना - स० क्रि० (हि. कहा-सुनी-संज्ञा, स्त्री० यौ० (हि. कहना का प्रे० रूप ) दूपरे को कहने के लिये कहना + सुनना ) वाद-विवाद, झगड़ा, प्रेरित करना, संदेशा भेजना, बुलवाना, कहा-सुना--संज्ञा, पु० (हि. ) भूल-चूक, जतलाना।
अनुचित कथन और व्यवहार, जैसे कहाकहलाना-अ० कि० (हि. कहल ) ऊमस सुना मुश्राफ करना । कहा-कही-संज्ञा, से व्याकुल, शिथिल । "कहलाने एकत बसत स्त्री० वाद-विवाद, झगड़ा। अहि, मयूर, मृग, वाघ"-वि०। कहाना-स० क्रि० (दे०) कहलाना । कहवां-कहाँ कि० वि० (दे०) कहाँ, कह कहानी-संज्ञा स्त्री० दे० (सं० कथानिका ) (दे०) किस स्थान पर।
कथा, किस्सा, भाख्यायिका, झूठी या गढ़ी कहवा-संज्ञा, पु. ( अ० ) एक पेड़ के बीज बात । यौ०-राम-कहानी-लम्बाजिन्हें चाय की तरह पीते हैं।
चौड़ा वृत्तान्त । कहवाना-स० कि० ( दे० ) कहाना (हि. कहार- संज्ञा, पु. ( सं० कं =जल + हार ) कहना का ० रूप) कहलाना ।
पानी भरने, डोली उठाने का काम करने कहवैया कहैया-वि० दे० (हि० कहना+ वाली एक जाति, धीवर, कहारा (दे०)। वैया-प्रत्य० ) कहने वाला।
कहारा - संज्ञा, पु. (दे०) दौरी या कहां-क्रि० वि० हि० ( वैदिक सं० कुहः ) | टोकरी, कहार। किस जगह, कुत्र, कह कहवाँ (दे०)। कहाल संज्ञा, पु० (दे० ) एक बाजा। मुहा०-कहां का-असाधारण, बड़ा कहावत-संज्ञा स्त्री० (हि. कहना) चमत्कृत भारी, कहीं का नहीं, नहीं है, न जाने किस ढंग से संक्षेप में अनुभवजन्य बात-सूच जगह का, कहाँ का कहां-बहुत दूर वाक्य, मसल, उक्ति । अभीष्ट स्थान, वस्तु या बात से अतिरिक्त | कहिया-क्रि० वि० दे० (सं० कुहः ) किस अन्य, कहाँ की बात-यह बात ठीक नहीं | दिन, कब । अनुपयुक्त है। कहाँ यह कहाँ वह-इनमें कहीं, कहुँ, कहूँ, कतों-क्रि० वि० (हि. बड़ा अंतर है। "कहँ कुंभज कहँ सिंधु अपारा" | कहाँ ) किसी अनिश्चित स्थान में । --रामा० । कहाँ तक (लौं ) किस जगह मुहा०-कहीं और-किसी दूसरी जगह, या कब तक, कह लगि (दे० ) " कहाँ अन्यत्र, बड़ा भारी, कहीं का । कहीं का न लौं कहीं मैं कथा रावन, जजाति की"-- रहना या होना--दो पक्षों में से किसी " कह लगि सहिय रहिय मन मारे " पक्ष के योग्य न रहना। किसी काम का न रामा० । कहाँ से-क्यों, व्यर्थ, नाहक । । रहना । कहीं न कहीं-किसी स्थान पर कहा* --संज्ञा, पु० हि० (सं० कथन ) कथन, । अवश्य । ( प्रश्न रूप और निषेधार्थक) बात, श्राज्ञा, उपदेश, स्त्री. कही ( विलो. नहीं, कभी नहीं, यदि, (आशंका और -अनकहा ) सा. क्रि० सा० भू० । क्रि० | इच्छा-पूर्वक) बहुत अधिक । भा० श० को०-१५
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