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काकर-काजल
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काठ GARMENDRATONKARAMMAWATIONSamum
मैं करिहौं तोरा-" रामा०,..." सो बिन अंश अलग करना, कम करना, वध करना, काज गँवायो-" वि०।
युद्ध में मारना, ब्योंतना, समय नष्ट करना, मुहा०—काज ( के काज )-के हेतु, रास्ता तय करना, अनुचित प्राप्ति करना, निमित्त, के लिये । काजू (दे०)। संज्ञा पु० किसी लिखावट को क़लम से काट देना, दे० (अ० कायजा ) बटन फँसाने का छेद
छंकना, लकीर से कुछ दूर तक जाने वाले या घर।
कामों को तैयार करना, ( सड़क काटना) काजर काजल-संज्ञा, पु० दे० (सं०
लकीरों से विभाग किये जाने वाले काम कज्जलो) दीपक के धुएँ की जमी हई कालिख
करना ( क्यारी काटना) बिना शेष बचे जो आँखों में लगाई जाती है, अंजन ।
एक संख्या का भाग दूसरी में लगाना, मुहा०—काजल धुलाना, इलना, देना, सारना, लगाना--(आँखों में ) काजल
कैद भोगना, विषैले जंतु का डंक मारना या लगाना । काजल पारना --दीपक के धुएँ
डसना, तीषण वस्तु का शरीर में लगकर को किसी बरतन पर जमाना। काजल
जलन और छरछराहट होना, एक रेखा की कोठरी--- कलंक लगने का स्थान
का दूसरी के ऊपर ४ कोण बनाते हुए या काम । संज्ञा, स्त्री० (दे० ) काजरी
निकल जाना, खंडन करना । किसी मत ( काजली ) (सं० कजली) वह गाय जिसके
का) अप्रमाणित करना, बोलते हुए (किसी आँखों के चारों ओर काला घेरा हो,
को) रोककर बीच में बोलना, दुखद लगना। काली गाय । कजरी (दे०)
मु०-काटने दौड़ना-चिड़चिड़ाना, काजी-संज्ञा, पु० (प्र. ) धर्म-कर्म, रीति
खीझना । डरावना ( बुरा ) लगना । काटे नीति एवं न्याय की व्यवस्था करने वाला
खाना-चुरा, भयानक और सूना (उजाड़) ( मुसल०)। काजो वि० (दे० काम
लगना, चित्त को दुखित करना। काज करने वाला, यो० काम-काजी।
काटू-संज्ञा, पु० (हि० काटना ) काटने
वाला, डरावना, कटहा, लकड़हारा । काजू-संज्ञा, पु० दे० ( कांक० --- काज्जु )
काठ-संज्ञा, पु० दे० (सं० काष्ठ ) पेड़ का एक पेड़ जिसके फलों की गिरी को भून कर खाते हैं, इस पेड़ के फलों की गुठली की
__ स्थूल अंग जो पृथक हो गया हो, लकड़ी,
इंधन, लक्कड़, शहतीर, लकड़ी की बेनी, मींगी या गिरी । चौ० काजू भोजू
कलंदरा, काठू (दे०)। यौ० काठ का वि० दे० (हि -काज - भोग) दिखावटी और
उल-जड़, वज्र मूर्ख। काठ होनाजो टिकाऊ न हो । संज्ञा, पु० (सं०) काज । संज्ञा या चेतना से रहित होना, स्तब्ध या काट-संज्ञा, स्त्री० (हि. काटना ) काटने सूख कर कड़ा होना, काठ की हाँडीकी क्रिया या भाव । यो० काट-छांट- एक बार से अधिक न चलने वाली धोखे मार-काट, कतरन या काटने से बचा हुआ, की दिखावटी वस्तु-" जैसे हाँड़ी काठ कमी-वेशी, घटाव-बढ़ाव । मार-काट- की, चढ़े न दूजी बार "-वृद. "जिमि न तलवार की लड़ाई । काटने का ग, कटाव, नवै पुनि उकठा काठू । ' रामा० । घाव, कपट, चालबाज़ी कुश्ती के पेंच का मु०-- काठ मारना, या काठ में पांव तोड़ । संज्ञा, स्त्री० ---मैल, मुरचा। यौ० दना ( डालना)-अपराधी को काठ की काट-कूट-काटना-छाँटना ।
बेड़ी पहिनाना, जान बूझ कर बंधन में काटना-स० क्रि० दे० (सं० कर्तन) शस्त्रादि पड़ना । काठ की पुतली होना-(कठ से खंड करना, छिन्न-भिन्न करना, कतरना, पुतली बनना ) अशक्त होना । काठपीसना, घाव करना, किसी वस्तु का कोई चबाना-दुख से निर्वाह करना।
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