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कालीजीरी ४५३
काश्त (गिरा)-वाणी-जिसकी अशुभ बातें | ( काव्य-कौशल ( कविता की रचना-कला सत्य हो जायें।
और उसमें दक्षता। काव्यत्व-संज्ञा, पु० कालीजोरी- संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० । (सं०) काव्य का लक्षण या स्वरूप। काव्यकणज़ीर ) एक पेड़ की बोंड़ी के बीज जो शास्त्र-काव्य-रचना से सम्बन्ध रखनेदवा के काम में थाते हैं।
वाले नियमों या विधानों का सिद्धान्त कालीदह--संज्ञा, पु. (दे०) काली नाग ग्रंथ । “काव्य-शास्त्र-विनोदेन" - भतृ ।
के रहने का कालिन्दी-कुण्ड (वृन्दावन )। | काव्यलिंग-संज्ञा, पु० (सं.) एक अर्थाकालीन ---वि० ( सं० ) काल-सम्बन्धी, लंकार जिसमें किसी कही हुई बात का जैसे समकालीन, भूतकालीन ।
कारण वाक्य या पद के अर्थ-द्वारा प्रगट कालीन-संज्ञा, पु. (अ.) मोटे तागों किया जाता है। से बुना हुआ बेल-बूटेदार मोटा और काव्यार्थापत्ति-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) भारी बिछावन, गलीचा।
अर्थापत्ति नामक अलंकार। कालीमिर्च-संज्ञा, स्त्री० (हि. ) गोल काव्या-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) पूतना, वृद्धि । मिर्च।
काश-संज्ञा, पु० (सं०) एक घास, काँस, काली शीतला-संज्ञा, स्त्री० चौ. (हि.) | खाँसी, खोखी, (दे०)। एक प्रकार का एक प्रकार की चेचक जिसमें काले दाने | चूहा, एक मुनि । संज्ञा, स्त्री. (सं०) निकलते हैं।
काशनी-भारंगी नामक औषधि । कालेश्वर-संज्ञा, पु. यो. ( सं० ) | काशि-संज्ञा, पु० (सं०) सूर्य, काशी महादेव, महाकाल ।
नगरी । यौ० संज्ञा, पु. ( सं० ) कालोछ–संज्ञा, स्त्री० ( हि० काला+औंछ | काशिराज--काशी नरेश, दिवोदास, -प्रत्य० ) कालिख , स्याही।
धन्वन्तरि। काल्पनिक--संज्ञा, पु. (सं० ) कल्पना काशिका-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) काशीपुरी, से उत्पन्न, कल्पित, कल्पना करने वाला। जयादित्य और वामन-रचित पाणिनीय वि० मनगढन्त, मिथ्या, कृत्रिम ।
व्याकरण पर वृत्ति ग्रंथ, वि० स्त्री० (सं०) कावा-संज्ञा, पु० ( फा० ) घोड़े को वृत्ता- प्रकाश करने वाली, प्रदीप्ति, प्रदीपिका। . कार चक्कर देने की क्रिया।
काशी-संज्ञा, स्त्री. (सं० ) वाराणसी, मुहा०-कावा काटना-वृत्त में दौड़ना, शिवपुरी, वि० (सं.) काशरोगी, तेजोमय, चक्कर खाना, आँख बचा कर दूसरी ओर | यौ० काशीनाथ (पति)-शिव । कासी निकल जाना । कावा देना-चक्कर देना । " " काटतिकावा गं० २० | काशीकरवट--संज्ञा, पु० दे० (सं० काशी. ......"
कर-पत्र ) काशी का एक तीर्थ-स्थान जहाँ काव्य-संज्ञा, पु० (सं० ) रमणीयार्थ प्रति प्राचीन काल में लोग आरे से अपने को पादक, अलंकृत, रसात्मक विचित्रता या चिराया करते थे। चमत्कार, चातुर्य से पूर्ण वाक्य या रचना | काशी-फल-संज्ञा, पु० दे० (सं० काशफल) जो अलौकिक आनन्द दे सके, कविता, कुम्हड़ा।। काव्य का ग्रन्थ, रोला छन्द का एक भेद। काश्त-संज्ञा, स्त्री० (फा० ) खेती, कृषि, यौ०-काव्यचौर-दूसरे की कविता चुरा ज़मींदार को वार्षिक लगान देकर उसकी कर अपनी कहने वाला। काव्य-कला- | जमीन पर कृषि करने का स्वत्व ।
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