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कसैय्या
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कहरुबा कसैय्या*--संज्ञा, पु० (हि० कसना ) बाँधने कथन, (सं०) उक्ति, बात, कहावत, कविता।
वाला, परखने या कसौटी पर कसने वाला । | कहना-स० क्रि० दे० (सं० कथन ) बोलना, कसैला-वि० (हि. कसाव + ऐला-प्रत्य ) । व्यक्त या प्रगट करना,वर्णन करना, उच्चारण कषाय स्वाद-युक्त । स्त्री० कसैली।
करना। कसोरा- संज्ञा, पु० (हि. काँसा+ओरा- मुहा०-कह-बदकर-दृढ़ संकल्प या प्रत्य०) मिट्टी का प्याला, कटोरा ।
प्रतिज्ञा करके, जता कर, दावे से, ललकार कसौंदा-संज्ञा, पु० (दे०) एक जंगली फल । | कर । कहना-सुनना ---- पातचीत करना, कसौटी संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० कषवटी । वाद-विवाद कर तय करना, कहने कोप्रा० कसवटी ) सोने-चाँदी को रगड़ कर नाम मात्र को, भविष्य में स्मरण को। के जाँचने का एक काला पत्थर, परीक्षा, कहने की बात--जो वास्तव में न हो। जाँच, परख । “सोने को रंग कसौटी कहते-सुनते-बातचीत या व्यवहार में । लगै, पै कसौटी को रंग लगै नहिं सोने"। प्रगट करना, खोलना, सूचना या ख़बर -पद्मा।
देना, नाम रखना, कविता करना, पुकारना, कस्तुरा-संज्ञा, पु० (दे० ) शंख-युक्त एक समझाना-बुझाना । मुहा० कहना-सुनना कीड़ा, मछली, कस्तूरा ।
समझाना, बहस करना । संज्ञा, पु० कथन, कस्तूर-संज्ञा,पु० (सं० कस्तूरी) कस्तूरी-मृग।।
आज्ञा, अनुरोध । कस्तूरा--संज्ञा, पु० (सं०) कस्तूरी मृग, कहनाउत ( कहनावत ) संज्ञा स्त्री० दे० लोमड़ी का सा एक पशु (दे० ) मोती ( कहना+आवत--प्रत्य० ) बात, कथन, वाला सीप, एक बलकारक औषधि, जो | कहावत, कहनावति (दे०) लोकोक्ति। पोर्ट ब्लेयर की चट्टानों के खुरचने से | "कहनावति जो लोक की, सो लोकोक्ति निकलती है।
प्रमान ''-भू० । कस्तूरिका-कस्तूरी-संज्ञा स्त्री० (सं०) कहनत --संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. कहना + एक प्रसिद्ध सुगंधित द्रव्य जो एक प्रकार के ___ ऊत-- प्रत्य०) कहावत, मसल, कहानी । मृग की नाभि से निकलता है, मृग-मद, | कहर-संज्ञा पु० (अ.) आपत्ति, श्राफ़त । मुश्क (फा )। वि० कस्तूरिया (हि. वि० (अ. कहहार) अपार, घोर, भयंकर, कस्तूरी ) कस्तूरी वाला, कस्तूरी-युक्त, मुश्की, कठिन । मुहा०-कहर करना-अनोखा कस्तूरी के रंग का संज्ञा, पु० (हि.) कस्तू- काम या अत्याचार करना “ कहर जूह द्वै रीमृग-जो ठंढे पहाड़ी स्थानों में होता है। पहर भो'...छत्र०, " रूप कहर दरियाव कहँ-प्रत्य० दे० (सं० कक्ष ) कर्म और | में "-रतन। संप्रदान का चिन्ह, को, के लिये । क्रि० वि० कहरना-अ० क्रि० (दे०) कराहना,कहरना। (दे०) कहाँ, “ सुठि सुहाग तुम कह कहरत भट घायल तट गिरे-रामा० । दिन दूना' कहँ गे नृप किसोर-मनचीता" कहरवा-संज्ञा, पु० दे० (हि० कहार) पाँच रामा।
मात्राओं का एक ताल, कहरवा चाल का कहगिल-संज्ञा, स्त्री० (फा०—काह = घास नाच और दादरा।
-+-गिल - मिट्टी) मिट्टी का गारा । क़हरी–वि. (अ. कह) श्राफत या आपत्ति कहत-संज्ञा पु० ( अ०) दुर्भिक्ष, अकाल । लाने वाला। यौ० कहतसाली।
कहरुबा-संज्ञा, पु० (फा ) एक प्रकार का कहन-कहनि--संज्ञा स्त्री० (हि. कहना), गोंद जिसे कपड़े श्रादि पर रगड़ कर घास
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