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कर्मण्य
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कर्म-हीन कर्मण्य-वि० (सं०) खूब काम करने (मुख्य ) होकर कर्ता के रूप में पाया हो, वाला, उद्योगी । संज्ञा, स्त्री० (सं० ) कर्म- | __ कम की प्रधानता-सूचक क्रिया । ण्यता-कार्य-कुशलता, कार्य-तत्परता। कर्मवाद-संज्ञा, पु० (सं०) कर्म को ही कर्मधारय (समास)--संज्ञा, पु० (सं० ) सर्व प्रधान मानने वाला सिद्धान्त, मीमांसा, विशेष्य-विशेषण का समान अधिकरण कर्मयोग । संज्ञा, पु० (सं० कर्मवादिन् ) सूचक एक समास-भेद ।
कर्मवादी-कर्म को प्रधान मानने वाला कर्मनाशा-संज्ञा, स्त्री. (सं० ) एक नदी मीमांसक, कर्मकांडी।
जो चौसा के पास गंगा से मिली है। कर्मवान् -- वि० (सं०) कर्मनिष्ठ, कर्मवीर। कर्मनिष्ट-वि० ( सं०) संध्या-अग्निहोत्रादि कर्म-विपाक-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) पूर्व करने वाला, क्रियावान ।
जन्म कृत शुभाशुभ कर्मों का भला-बुरा कर्मनिपुणता-कर्मनिपुनाई–(दे० ) संज्ञा, | फल, ज्योतिष का एक ग्रंथ । स्त्री० ( सं० ) कार्य-कुशलता। कर्मशील-संज्ञा, पु० (सं० ) फल की कर्म-पथ --- संज्ञा, पु. यौ० (सं०) वेद की अभिलाषा छोड़ कर स्वभावतः ही काम या रीति, कर्म-मार्ग।
कर्तव्य करने वाला, कर्मवान्, यत्नवान, कर्मप्रधान-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) जहाँ उद्योगी, परिश्रमी । संज्ञा, स्त्री० कर्मकर्म की प्रधानता हो । (व्या० ) कर्मः | शीलता । वाच्य क्रिया।
कर्म-शूर-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) वि०कर्म-फल-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) कर्म का साहस और दृढ़ता से कर्म करने वाला, विपाक, करनी का फल ।
उद्योगी, कार्य कुशल, कर्मवीर । कर्म-भोग-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) कर्म- कर्म-सचिव-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) कर्मफल, सुख-दुखादि करणी के फल, पूर्व जन्म ___ कर्तव्य की मंत्रणा देने वाला। कृत कर्मों का परिणाम ।
कर्म-संन्यास- संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) कर्म कर्ममास-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) सावनमास। का त्याग, कर्म-फल-त्याग । वि०-कर्मकर्म-मूल-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) कर्म का संन्यासी--निष्काम कर्म करने वाला। कारण, कुश।
कर्मसमाधि-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं.) कर्म-युग-संज्ञा, पु० यौ० ( सं० ) कलियुग, | कर्मों का नितान्त त्याग या विरक्ति । शेषयुग।
कर्मसाक्षी-वि. (सं० ) कर्म का देखने कर्मयोग- संज्ञा, पु० (सं०) सिद्धि और वाला, जिसके सामने कोई काम हुआ हो । असिद्धि में समान भाव रख कर कर्तव्य-कर्म संज्ञा, पु०-प्राणियों के कर्मों को देखने वाले का साधन, शुद्ध चित्त से शास्त्र-विहित देवता जो कर्मों की साक्षी देते हैं -सूर्य, कर्म । वि० कर्मयोगी।
चंद्र, अग्नि, यम, काल, पृथ्वी जल, वायु, कर्मरंग - संज्ञा, पु. (सं० ) कमरख, फल श्राकाश, आत्मा। विशेष ।
कर्म-साधन-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) कर्म के कर्म-रेख-संज्ञा, स्त्री. यो० (सं० ) कर्म की उपाय, उद्योग, कार्य-संपादन । रेखा ( सामु०) भाग्य-विधान, तकदीर ।। कर्म-हीन-वि० (सं०) जिससे शुभ कर्म "कर्म-रेख नहिं मिटति-मिटाये।" न बन पड़े, प्रभागा। संज्ञा, स्त्री० कर्मकर्मवाच्य-कर्मवाचक-(क्रिया) संज्ञा, हीनता । " कर्म हीन नर पावत नाहीं।" स्त्री० (सं० ) वह क्रिया जिसमें कर्म प्रधान -रामा० ।
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