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प्रात्मलीन
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प्रात्मा प्रात्मलीन-वि० यौ० (सं० ) श्रात्म-दर्शन प्रात्म शांति-संज्ञा, स्त्री० (सं०) अपने याब्रह्म-दर्शन में लगा हुआ, अपने में जो प्रात्मा की शांति, मुक्ति। लीन हो।
अात्म-शुद्धि-संज्ञा, पु० यौ० ( सं० ) प्रात्म पंचक-संज्ञा, प. यौ० (सं०) कृपण, अपनो शुद्धि, अपने मन या अपनी आत्मा पापो, नास्तिक, अपने को श्राप ही धोखा को शुद्ध और स्वच्छ करना। देने या उगने वाला।
प्रात्म सात्-वि० (सं० ) अपने आधीन, संज्ञा, पु० स्त्री० (सं०) प्रात्म-पंचना।। स्वहस्तगत । आत्मवत्-वि० या० (सं०) अपने सदृश, आत्म सात् करना-क्रि० सं० ( हिं० ) आत्म समान।
हज़म कर जाना, हड़प जाना । " अात्मवत् सर्व भूतेषु "।
प्रात्म-संभव-संज्ञा, पु. ( सं० ) पुत्र, अात्मवश-वि• यौ० ( सं० ) स्वाधीन, लड़का, तनय, प्रारमज । स्ववश, स्वप्रधान, जिसने अपने को श्राप ही | स्त्री० प्रात्म-सम्भवा-कन्या, पुत्री, वश किया हो।
आत्मजा। आत्मवित्-वि० (सं० ) अपनी आत्मा | प्रात्म-संयम-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) को जानने वाला, आत्मज्ञानी।
अपने मन को रोकना, अपनी इच्छात्रों प्रात्म-विश्वास-संज्ञा, पु. यौ० (सं० ) या चित्त की वृत्तियों को वश में करना। अपने पर विश्वास ।
वि० श्रात्म संयमी-योगी, अपनी चित्तश्रात्म विजय-संज्ञा, स्त्री०या० (सं०) अपनी वृत्तियों को निरोधित करने वाला। प्रात्मा या अपने मन पर विजय प्राप्त करना । मात्म हन्ता-संज्ञा, पु० (सं० ) श्रात्मवि.--'प्रात्म विजयी।
घाती, अपने को प्रापही मारने वाला। श्रात्म-विद्या-संज्ञा, स्त्री० यौ० ( सं० ) आत्म हत्या-संज्ञा, स्त्री० यौ० ( सं०)
आत्मा और परमात्मा का ज्ञान कराने वाली अपने को श्रापही मार डालना, .खुदकुशी, विद्या, ब्रह्मविद्या, अध्यात्मविद्या, मिस्मरिज़म । आत्मघात, स्ववध । श्रात्मविस्मृति --संज्ञा, स्त्री. यो० (६०) अात्महा-संज्ञा, पु० (सं० ) अपने को अपने को आप हो भूल जाना, अपना | श्रापही मारने वाला, आत्महत्या करने ध्यान न रहना।
वाला, अात्मघाती। ज्य-सज्ञा, पु० यो० (सं० ) अपने आत्म हिंसा-संज्ञ', स्त्री. ( सं० ) श्रात्मको आप बेचना, ( जैसे हरिश्चन्द्र ने हत्या, श्रात्मघात । किया था)।
वि. अात्महिंसक-श्रात्मघाती । आत्म विक्रयी-दि. या० (सं०) अपने को श्रात्मा-संज्ञा, स्त्री० (सं०) मन या अंतः आप बेचने वाला।
करण से परे उसके व्यापारों का ज्ञान करने प्रात्मविक्रेता संज्ञा, पु० यो० (सं० ) जो वाली एक विशेष सत्ता, द्रष्टा, रूह,
अपने को श्राप ही बेच कर दास बना हो। जीव, जीवात्मा चैतन्य, ज्ञानाधिकरण श्रात्म श्लाघा-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं० ) ( " ज्ञानाधिकरणमात्मा ") देह, धृति, अपनी तारीफ़ श्राप करने वाला, श्रात्मगर्व । स्वभाव, परमात्मा, मन, हृदय, दिल, चित्त । आत्मश्लाघो-वि० (सं० ) अपनी इसके लनण हैं--प्राण, अपान, निमेष, प्रशंसा श्राप करनेवाला, श्रात्मप्रशंसक, उन्मेष, जीवन, मनोगत इन्द्रियान्तर-विकार आत्माभिमानी।
( " प्राणापान-निमेषोन्मेष-जीवन-मनोगते
प्रार
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