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उहित
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उद्धरना उदित-दि० (दे०) उदित (सं० ), उद्दोत-संज्ञा, पु० (सं० ) प्रकाश, उदय, उद्यत, उद्धत ।
वृद्धि । वि० प्रकाशित, उदित, प्रकटित । उहिम-संज्ञा, पु. ( दे०) उद्यम (सं.)। 'पुर पैठत श्री राम के, भया मित्र उदोत" प्रयत्न, पुरुषार्थ । " श्री को उद्दिम के बिना, -रामा०। कोऊ पावत नाहिं' -वृंद।
उद्दोतिताई-संज्ञा, स्त्री० (दे०) प्रकाश, उद्दिष्ट-वि० (सं०) दिखलाया हुश्रा, __... मिथुन तड़ितवन नीत उद्दोतिताई " इंगित किया हुआ, लचा, अभिप्रेत, --अ० अ०। सम्मत, मनस्थ । संज्ञा, पु०-कोई दिया हुआ उद्ध-कि० वि० (दे०) ऊर्ध्व (सं.) छद मात्रा-प्रस्तार का कौन सा भेद है यह ऊपर “ कलजुग जलधि अपार उद्घ अधरम्भ बतलाने की एक क्रिया विशेष ( पिंग० )। उ ममय"-भू०। उदोपक–वि. ( स० ) उत्तेजित करने
उद्धत - वि० (10) उग्र, प्रचंड, अक्खड़, वाला, उभाड़ने वाला, प्रकाशकता । स्री.
प्रगल्भ उजड्डु, निडर, धृष्ट दुरन्त, अभिउदापिका।
मानो संज्ञा, पु. ( सं० ) चार मात्रायों उद्दीपन-संज्ञा, पु. (सं० ) उत्तेजित करने
का एक छंद। की क्रिया, उभाड़ना. बढ़ाना, जगाना, उद्धना-अ० कि० (दे० ) ऊपर उठना, बटाना, प्रकाशन, उद्दीपन या उत्तजित फैल जाना। करने वाला पदार्थ, रतों को उद्दी या उत्ते- | उद्धतपन-संज्ञा, पु. (सं० उद्धत+पनजित करने वाले विभाव. जैसे- ऋतु पवन, हि. प्रत्य० ) उजड्डुपन, उप्रता, प्रचंडता। चंद्रिका, सौरभ, वाटिका ( काव्य०)। उद्धरण संज्ञा, पु० (सं० ) ऊपर उठना, वि० उद्दीपनीय-उत्तेजनीय।। मुक्त होने की क्रिया, बुरी अवस्था से अच्छी उद्दीपित-वि० (सं० ) उत्तजित, उभाड़ा अवस्था या दशा में श्राना, त्राण, फँसे हुआ।
हुए को निकालना, पढ़े हुए पिछले पाठ को उदीप्त-वि० (सं० ) उत्तेजित, बढ़ाया हुआ, अभ्यासार्थ फिर से पढ़ना या दोहराना जागा हुग्रा।
किली लेख या किताब के किसी अंश को उदीय-वि० (सं०) उद्दीपनीय, उत्तेजनीय। किसी दूसरे लेख या पुस्तक में ज्यों का स्यों उश---ज्ञा, पु. ( सं० ) अभिलाषा, रखना या दोहरा देना, अविकल रूप से
साह, मंशा हेतु, कारण, अभिप्राय, अन्वे- नक़ल कर देना। पण, अनुसंधान, नाम निर्देश पूर्वक-वन्तु उद्धरणो --संज्ञा, स्त्री० (सं० ऊद्धरण+ई निरूपण, इष्ट, मतलब, प्रयोजन, प्रतिज्ञा -हि. प्रत्य० ) पड़े हुए पाठ को अभ्यासार्य (न्याय०)।
बार बार पढ़ना । श्रावृत्ति, दोहराना। उद्देशिन--वि० (सं.) अन्वेषित, अभि- उद्धरणीय - वि० ( सं० ) उल्लेखनीय, लषित ।..
- दोहराने योग्य। उद्देश्य-वि० ( पं० ) लक्ष्य, इष्ट, प्रयोजन, । उद्धरना -- स० कि० (दे०.) (सं० उद्धरण ) इरादा ! संज्ञा, पु० (सं० ) वह वस्तु जिसके उद्धार करना, उबारना, अलग करना, विषय में कुछ कहा जाय, अभिनेतार्थ, वह काटना। " तब कोपि राबव सत्रु को सिर घस्तु जिप पर ध्यान रख कर कुछ कहा जाय बाण तीपण उद्धर्यो "- राम । अ० कि. या किया जाय, विशेष्य, विधेय का उलटा बचना, छूटना. मुक्त होना, “बूझियत ( काव्य०) मतलब, तात्पर्य, मंशा, इरादा। बात वह कौन विधि उद्धरे".-के० । ....
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