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कपड़छान ४०१
कपि कपड़छान (कपड़छन)-संज्ञा, पु० (हि. | कपाल-संज्ञा, पु० (सं० क+पाल्+अल्) कपड़ा+छानना ) पिसी हुई बुकनी या चूर्ण | ललाट, भाल, माथा, मस्तक, अदृष्ट, भाग्य, को कपड़े से छानना।
खोपड़ी घड़े आदि के नीचे या ऊपर का कपडद्वार-संज्ञा, पु० यौ० ( हि० कपड़ा+ भाग, खपड़ा (खपर) मिट्टी का भिक्षाद्वार ) वस्त्रागार, तोशाखाना ।
पात्र, खप्पर, यज्ञों में देवतादि के लिये कपड़धूलि-संज्ञा, स्त्री. (हि. कपड़ा--- पुरोडाश पकाने का बर्तन । (दे० ) धूलि ) एक प्रकार का बारीक रेशमी कपार—" फोरइ जोग कपार अभागा"कपड़ा, करेब ।
यौ० कपाल क्रिया-संज्ञा, स्त्री० (सं०) कपड़ मिट्टी-संज्ञा, स्त्री० ( हि० ) धातु या मृतक संस्कार के अंतर्गत जलते शव की
औषधि फेंकने के सपुट पर मिटी ( गीली) खोपड़ी को बाँस आदि से फोड़ने की क्रिया। के साथ कपड़ा लपेटने की क्रिया कपरौटी, कपालक-वि० (दे०) कपालिक (सं०)। गिल हिकमत ।
कपाल-मोरन-संज्ञा, पु० (सं०) एक तीर्थ । कपड़विण-संज्ञा, पु० (दे०) दरजी,रफूगर। कपालभृत-संज्ञा, पु० (सं०) महेश्वर, शिव । कपड़ा-कपरा-संज्ञा, 'पु० दे० ( सं० कर्पट) कपालिका-- संज्ञा, स्त्री. ( सं० कपाल+
रूई, रेशम, ऊन या सन के तागों से इक+पा ) खोपड़ी। संज्ञा, स्त्री० (सं० बुना गया वस्त्र, पट ।..." रंगाये जोगी कापालिका ) काली, रण चंड़ी, दंत रोग। कपरा "-कबीर । -कपड़ों से | कपालिनी-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) दुर्गा, होना-रजस्वला ( मासिक धर्म से ) कपाल धारिणी देवी। होना । संज्ञा, पु० सिला हुआ पहिनाव, | कपाली-संज्ञा, पु. (सं.) शिव, भैरव, पोशाक, परिधान । यौ० कपड़ा लत्ता- ठीकरा लेकर भीख माँगने वाला, कपरिया, पहिनने श्रोदने के वस्त्रादि।।
एक वर्ण संकर जाति, द्वार के ऊपर का कपरौटी-( कपड़ौटी)-संज्ञा, स्त्री० (दे०) काठ। स्त्री कपालिनी। वि० कपालीय---- कपड़ मिट्टी।
भाग्यव कपरिया--संज्ञा, पु० (सं० ) एक नीच जाति। कपास-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० कर्पास ) एक कपदे-कपदक-संज्ञा, पु० (सं० ) जटाजूट
पौधा जिसके डेढ से रूई निकलती है, (शिवका ), कौड़ी।
कपासू (दे० ) " साधु चरित सुभ सरिस कपर्दिका-संहा, स्त्री. ( सं० ) कौड़ी | कपासू"-रामा० । वराटिका।
कपासी-वि० (दे०) कपास के फूल के कपर्दिनी-संज्ञा, स्त्री० (सं०) दुर्गा, शिवा। रंग का, हलके पीले रंग का। संज्ञा, पु. कपर्दी- संज्ञा, पु. (सं० कपर्दिन् ) शिव, हलका पीला रंग ।
शंकर, ११ रुद्रों में से एक। ... "कपर्दी कपिंजल--संज्ञा, पु० (सं० ) चातक, पपीहा, . कैलाशं करिवर प्रभौनं कुलिशभृत् "..- गौरापक्षी, भरदूल, तीतर, एक मुनि, कपाट---संज्ञा, पु. (सं० ) किवाड़, पट, कादम्बरी के नायक का एक सखा । वि. द्वार । यौ० कपाट-वद्ध संज्ञा, पु० (सं० ) (सं० ) पीले रंग का। एक प्रकार का चित्र काव्य जिसके अक्षरों को कपि-संज्ञा, पु. (सं० कप् + इ ) बंदर, विशेष रूप से लिखने पर किवाड़ों का चित्र मर्कट, हाथी, कंजा, करंज, सूर्य, सुगंधित बन जाता है।
शिलारस नामक औषधि, एक यंत्र, कपार-संज्ञा, पु० (दे० ) कपाल (सं०) कपिखेल (दे०)। भा० श० को०-५१
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