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कबल
४०४ " कबरी भारनि रचै पानि अवली गुंजन | चलाया हुआ मत । वि० कबीरपंथीकी"-दीन ।
कबीर के मतानुयायी। कबल-मव्य० ( म० कब्ल ) पेश्तर, प्रथम | कबीला-संज्ञा, स्त्रो० (अ.) स्त्री परिवार, पहिले।
जोरू,-" भाई बंधु अरु कुटॅब कबीला कबा-( कबाय )-संज्ञा, पु. (भ० ) एक | प्रकार का लंबा ढीला पहिनाव।
कबुलाना-कबुलवाना-स० कि० (हि. कबाड़--संज्ञा० पु० दे० (सं० कर्पट ) बे कबूलना का प्रे० रूप ) क़बूल या स्वीकार काम वस्तु, अंगड़-खंगड़, व्यर्थ का तुच्छ | कराना। व्यापार, रद्दी चीज़, कूड़ा। वि० कबाड़ी, | कबूतर-संज्ञा, पु. ( फा० मिलाओ, सं० संज्ञा, पु०-कबाड़ खाना । संज्ञा, पु० । कपोत ) मुंड में रहने वाला परेवा जाति कबाड़ा कूड़ा, व्यर्थ की बात, बखेड़ा। का पक्षी । स्त्री. कबूतरी। संज्ञा, पु० कबाड़िया-संज्ञा, पु. ( हि० ) टूटी फूटी, . फ़ा० कबूतरखाना-पालतू कबूतरों का रद्दी चीजें बेचने वाला, तुच्छ व्यवसाय करने | दरबा । वि० (फ़ा० ) कबूतरबाज़ - वाला, झगड़ालू । कबाड़ी।
कबूतर पालने का शौकीन । कबाब-संज्ञा पु. (अ.) सीखों पर भूना कबूल-संज्ञा, पु. ( म०) स्वीकार, मंजूर । हुधा मांस ।
कबूलना-स० क्रि० (प्र. कबूल+ना० कबाबचीनी-संज्ञा स्त्री. (अ. कबाब -- प्रत्य० ) स्वीकार या मंजूर करना, सब बात चीनी हि०) मिर्च की जाति की एक लिपटने कह देना। वाली झाड़ी जिसके मिर्च जैसे फल खाने कबूलियत-संज्ञा, स्त्री० (अ.) पट्टा देने में कुछ कटु और शीतल लगते हैं, शीतल वालों को पट्टा लेने वाले के द्वारा लिखा चीनी । इस झाड़ी के फल।
गया स्वीकृत पत्र । कबाबी-वि० (अ० कबाब ) कबाब बेचने कबूली-संज्ञा, स्त्री० (फा० ) चने की दाल वाला, मांसाहारी।
की खिचड़ी। कबार-संज्ञा पु० (हि. कबाड़ ) व्यापार, काज--संज्ञा, पु. (म०) ग्रहण, पकड़, व्यवसाय, रोज़गार । कबारू ( दे.)। मलावरोध । झंझट ।
क जा-संज्ञा, पु. ( अ.) मूठ, दस्ता, कबारना-स० क्रि० (दे०) उखाड़ना। | किवाड़ या संदूक में जड़े जाने वाले लोहे कबाला-संज्ञा, पु० (अ.) वह दस्तावेज़ या पीतल के दो चौखूटे टुकड़े, पकड़, जिसके द्वारा कोई जायदाद किसी दूसरे के दखल, वश, अधिकार। अधिकार में चली जाती है।
मु०-कब्जे पर हाथ डालना-तलवार कबाहत ( कबाहट )-संज्ञा, स्त्री० (अ.) खींचने के लिये मूठ पर हाथ रखना। बुराई, ख़राबी, अड़चन, झंझट ।
क-जादार ( काबिज़ )---संज्ञा, पु. (फ़ा०) कवित्त-संज्ञा, पु० (दे० ) मनहरण छंद । कब्ज़ा रखने वाला, दखीलकार असामी । कबीर-संज्ञा, पु. ( अ. कबीर श्रेष्ठ ) एक वि० --जिसमें कब्जा लगा हो । भा० संज्ञा, संत भक्त कवि जिन्होंने कबीर पंथ चलाया | सी०-कम्जादारी । है, होली में गाया जाने वाला एक प्रकार कब्जियत-संज्ञा, स्रो० (फ़ा०) मलावरोध । का गीत । वि० ( म०) श्रेष्ट । | कन्य-संज्ञा, पु० (सं०) पितृश्राद्ध, पितृदान । कबीरपंथ---संज्ञा, पु० (हि.) कबीर का कब-संज्ञा, स्त्रो० (प्र.) मुसलमानों या
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