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उपमाता
उपराज
उपमाता--संज्ञा, पु० (सं० उपमातृ ) उपमा उपर--वि० (सं० ) ऊर्ध्व, ऊँचा। देने वाला । संज्ञा, स्त्री० (सं० उप-माता) उपरक्त-वि० (सं०) विपन्न, पीड़ा-ग्रस्त । दूध पिलाने वाली दाई, धाय, धात्री। संज्ञा, पु० (सं० ) राहु-ग्रस्त चंद्र या सूर्य । उपमान--संज्ञा, पु० (सं०) वह वस्तु जिससे उपरत—वि० (सं० ) विरक्त, उदासीन, किसी दूसरी वस्तु को उपमा दी जाय, मरा हुश्रा, शान्त, विरत, हटा हुआ। जिसके समान या सदृश कोई वस्तु कही। उपरति-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) विषय से जाय, प्रतिमूर्ति, चार प्रकार के प्रमाणों में विराग, विरति, त्याग, उदासीनता, उदासी, से एक ( न्या० ) किसी प्रसिद्ध पदार्थ के मृत्यु, मौत, निवृत्ति, परित्याग। साधर्म्य से साध्य का साधन, ३ मात्राओं उपरत्न-संज्ञा, पु. ( सं० ) कम दाम के का एक छंद।
रत्न, घटिया रत्न, जैसे सीप, मरकत, मणि । उपमाना-स० क्रि० (दे०) उपमा देना, उपरना---संज्ञा, पु० दे० (हि. ऊपर + समानता दिखाना, “चारु कुंडल सुभग ना–प्रत्य० ) दुपट्टा, चद्दर, उत्तरीय । अ० स्रौननि को सकै उपमाइ"-सू० । क्रि० (दे० ) ( सं० उत्पटन ) उखड़ना। उपमिति-वि० (सं० ) तुल्यकृत, उपमा उपरफट-उपरफट्ट ----वि० दे० ( सं० दिया हुआ, सम्भावित, जि पकी उपमा दी उपरि + स्पुट ) ऊपरी, बालाई, नियमित के गई हो, उत्प्रेक्षिप्त ।
अतिरिक्त, बे ठिकाने का, बाहिरी, व्यर्थ का । उपमिति---संज्ञा, स्त्री० (सं० ) उपमा या । " मेरी बांह छोड़ि दे राधा करति उपरफट सादृश्य से होने वाला ज्ञान, सादृश्य ज्ञान । बातें"—सूबे० । उपमेय-वि० (सं० ) जिसकी उपमा दी उपरवार—संज्ञा, पु. ( दे० ) नदी के
जाय, वर्ण्य, वर्णनीय, उपमा के योग्य । किनारे के ऊपर की भूमि, बाँगर ज़मीन । उपमेयोपमा—संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं० ) वह उपरस-संज्ञा, पु. ( सं० ) पारे के समान अर्थालंकार जिसमें उपमेय की उपमा उपमान गुण करने वाले पदार्थ, जैसे गंधक (वैद्यक)। से और उपमान की उपमेय से दी जाती है। उपरहित-संज्ञा, पु० दे०) पुरोहित उपयना*—अ० कि० दे० (सं० उत्प्रयाण) (सं० ) " प्रभु उपरहित-कर्म अति मंदा"
चला जाना, न रह जाना, उड़ जाना। --रामा० । संज्ञा, स्त्री० (दे०) उपरउपयम–संज्ञा, पु० (सं० ) विवाह, संयम ।। हिती--पुरोहिती, पुरोहित का कर्म । उपयुक्त-वि० (सं० ) योग्य, उचित, उपरांत-क्रि० वि० (सं० ) अनंतर, बाद वाजिब, मुनासिब ।
की, पश्चात्, पीछे, परे। उपयुक्तता—संज्ञा, स्त्री० (सं० ) यथार्थता, उपराग-संज्ञा, पु० (सं० ) रंग, किसी ठीक होने या उतरने का भाव, औचित्य । वस्तु पर उसके पास की वस्तु का आभास, उपयोग-संज्ञा, पु० (सं० ) काम, व्यवहार, विषय में अनुरक्ति, वासना, चंद्र या सूर्यप्रयोग, इस्तेमाल, योग्यता, फ़ायदा, लाभ, ग्रहण, परिवाद, यंत्रणा, निदा, राहु-ग्रहण । प्रयोजन, आवश्यकता।
" बिनु घर वह उपराग गह्यौ"--भ्र० । उपयोगिता----संज्ञा, स्त्री० (सं० ) काम में उपराचढ़ी-संज्ञा, स्त्री० (दे० ऊपर+
आने की योग्यता या क्षमता, लाभकारिता। चढ़ना ) चढ़ा ऊपरी, प्रतिद्वंडिता, स्पर्धा । उपयोगी–वि० (सं० उपयागिन् ) काम में उपराज---संज्ञा, पु० ( सं० ) राज-प्रतिपाने वाला, प्रयोजनीय, लाभकारी, अनु- निधि, वाइसराय, गवर्नर जनरल । संज्ञा, कूल, फायदे मंद, मुत्राफिक, मसरफ़ का। । स्त्री० ( दे०) उपज, पैदावार ।
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