________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
उपवेशन ३३६
उपस्थ गान्धर्ववेद ( सामवेद ) स्थापत्यवेद | पुस्तक का अंतिमाध्याय या भाग जिसमें (अथर्वणवेद ) इनके प्राचार्य एवं प्रचारक उनके उद्देश्य या परिणाम का संक्षेप में क्रमशः ब्रह्मा, (इन्द्र, धन्वन्तरि) भरतमुनि, कथन किया गया हो, सारांश । विश्वामित्र, और विश्वकर्मा हैं। उपस—संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० उप+वास = उपवेशन—संज्ञा, पु. ( सं० ) बैठना, महक ) दुर्गध, बदबू ।। स्थित होना, जमना, आसीन होना । वि० उपसत्ति----संज्ञा, स्त्री० (सं० उप-+ सद् + क्ति) उपवेशनीय।
उपासना, सेवा, सविनय गुरु समीप गमन । उपवेशित--वि० (सं०) बैठा हुश्रा, अासीन। उपसना-अ. क्रि० दे० ( सं० उप+ उपवेशी-वि० (सं०) बैठने या स्थित वास= महक ) दुगंधित होना, सड़ना, होने वाला।
बदबू करना। उपवेश्य-वि० (सं० ) बैठाने के योग्य, उपसर्ग-संज्ञा, पु० (सं० उप+सृज्-+-धञ्) श्रासीनोचित ।
वह शब्द या अव्यय जो किसी शब्द के पूर्व उपशम-संज्ञा, पु० (सं० ) वासनाओं को लगाया जाता है और उसमें किसी अर्थ की दबाना, इन्द्रिय-निग्रह, निवृत्ति, शांति, । विशेषता पैदा करता है जैसे, अनु, अव, निवारण का उपाय, इलाज, ब्रह्मा, प्रतीकार। उप, उत्, निर्, प्र, सम् श्रादि। रोग-भेद, उपशमन --- संज्ञा, पु० (सं० ) शांत रखना, उत्पात, उपद्रव, अशकुन, दैवी आपत्ति । शमन, दमन, दबाना, उपाय से दूर करना, उपसर्जन—संज्ञा, पु० (सं० उप+-सृज् + निवारण । वि० उपशमनीय-निवारणीय, __ अनट् ) ढालना, उपद्रव, गौणवस्तु, त्याग । शमनीय । वि० उपशाम्य-उपशमन वि० उपसर्जजीय।। करने योग्य । वि० उपगमित-निवारित, उपसर्जित--वि० (सं० ) त्यागा हुश्रा, शांत, शमन किया।
__ ढाला हुआ। उपशय-संज्ञा, पु० (सं० उप-+शी+अल् ) | उपसर्पण----संज्ञा, पु० (सं० उप-+सृप । निदान-पंचक के अन्तर्गत रोगज्ञापक अनट ) उपासना अवगमन, अनुवृत्ति । वि. अनुमान ।
उपसर्पणीय । वि० उपसर्पित-कृतानुउपशल्य-संज्ञा, पु० (सं० उप-1 शाल् +य) वृत्ति. उपासित। . ग्रामान्त, ग्राम की सीमा, भाला। । उपसागर-संज्ञा, पु० (सं० ) छोटा समुद्र, उपशिष्य-संज्ञा, पु. ( सं० ) शिष्य का समुद्र का एक भाग, खाड़ी। शिष्य । स्त्री. उपशिष्या।
| उपसाना-स० क्रि० दे० (हि० उपसना) उपश्रुत--वि० (सं० उप --- श्रु+क्त ) प्रति· | बासी करना, सड़ाना ।
श्रुति, अंगीकृत, स्वीकृत, वागदत्त, प्रतिज्ञात। | उपसुन्द---संज्ञा, पु० (सं० ) सुन्द नामक उपसंपादक-संज्ञा, पु० (सं० ) किसी दैत्य का छोटा भाई । कार्य में मुख्य कर्ता का सहायक या उसकी उपसेचन--संज्ञा, पु. ( सं० ) पानी से अनुपस्थिति में उसका काम करने वाला सींचना, या भिगोना, पानी छिड़कना, गीली व्यक्ति, सहायक, सहकारी, सम्पादक । चीज़, रसा, शोरबा। वि० उपसेचनीय, उपसंहार--संज्ञा, पु. ( सं० उप+सं+ उपसेचित । ह+घञ् ) हरण, परिहार, समाप्ति, वातमा, उपस्त्री-संज्ञा, स्त्री० (सं०) उपपत्नी, रखेली। निराकरण, शेष, नाश, निष्कर्ष, मीमांसा, उपस्थ-संज्ञा, पु० (सं० उप- स्था-ड्) अाक्रम, संग्रह, संक्षेप, व्यतीत, किसी नीचे या मध्य का भाग, पेड़, पुरुष-चिन्ह,
For Private and Personal Use Only