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कंटकपुष्प ३७७
कंठी कंटकपुष्प---संज्ञा, पु० (सं०) गुलाब, कंठ में होना--कुछ कम याद होना। केवड़ा।
संज्ञा, पु०-स्वर, श्रावाज़, शब्द, तोते, पंडुक कंटकफल-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) पनस, आदि के गले की रेखा, हँसली, किनारा, कटहर, सिंघाड़ा।
तट, तीर, कंठा। कंटकभुक्-संज्ञा पु० (सं० ) ऊँट, उष्ट्र । कंठगत-वि. (सं० ) गले में आया या कंटकलता--- संज्ञा, स्त्री० (सं० ) खीरा । अटका हुआ। कंटको-वि० ( सं० ) काँटेदार । संज्ञा, स्त्री० मु०-(प्रागा ) कंठगत होना-मृत्य का (सं० ) भटकटैय्या।
निकट होना, प्राण निकलने पर होना।। कंटर-संज्ञा, पु० दे० ( अं० डिकेटर ) शीशे कंठतालव्य-( वि० सं० ) कंठ-तालु से की सुराही, शीशी, जिपमें शराब या इत्र उच्चरित होने वाले वर्ण, जैसे-ए, ऐ। आदि रखते हैं।
कंठपाशक-संज्ञा, पु० (सं० ) गले की कंटाइन-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० कात्यायिनी) ___ फाँसी, हाथी के गले की रस्सी। चुडैल, डाइन, कर्कशा।
कंठमाला-संज्ञा, स्त्री. (सं० ) गले में कंटाप-संज्ञा, स्त्री० (हि. काँटा ) एक
लगातार छोटी छोटी फुसियों के निकलने कँटीला वृक्ष जिसकी लकड़ी से यज्ञ-पात्र
__ का एक रोग। बनते हैं।
कंठभूषा-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) हार, कंठाकंटार -वि० (दे०) कँटीला, खुरदरा । संज्ञा, ___ भरण ।
स्रो० कंटारिका-भटकटैय्या। कंठला-संज्ञा, पु० (दे०) कठुला, जो कटिया-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. काँटो) बच्चों के गले में डाला जाता है। काँटी, छोटी कील, मछली मारने की छोटी
कंठसिरी-संज्ञा, स्त्री दे० ( सं० कंठश्री ) अँकुसी, कुएँ से चीज़ निकालने का कँटियों
। कंठी, गले का एक गहना। का गुच्छा, स्त्रियों के सिर का एक गहना।
"कल हंसनि कंठनि कंठसिरी"-रामा० कँटोला-वि० (हि. काँटा + ईला --- प्रत्य० ) काँटेदार, " अब अलि रही
कंठस्थ-वि. ( सं० ) कंठगत, ज़बानी, गुलाब की, अपत कटीली डार । वि० ।
कंठाग्र, मुखाग्र, “ कठस्था या भवेद् विद्या स्रो० कँटीली काँटेवाली, चुभने वाली,
सा प्रकाश्यासदाबुधः । बाँकी, अाँख।
कंठा--संज्ञा, पु. (हि. कंठ ) तोते श्रादि कंटोप--संज्ञा, पु० (हि० कान+तोपना) |
पक्षियों के गलों की रंगीन रेखायें, हँसली, सिर और कान ढकने वाली एक प्रकार की
सुवर्ण का एक गले का गहना जिसमें बड़े २ टोपी, टोप, टोपा।
दाने रहते हैं, कुर्ते या अँगरखे का अर्धकंठ-संज्ञा, पु० (सं० ) गला, टेटुया,
चंद्राकार गला । “कंजरमनि कंठाकलित, भोजन जाने और श्रावाज़ निकालने की
उर तुलसी, की माल । कंठगत नलियाँ, घाँटी।
कंठान- वि० (सं० ) कंठस्थ, ज़बानी । मु०-कंठ फूटना-वर्णा के स्पष्टोच्चारण | कंठी-- संज्ञा, स्त्री० ( हि० कंठा का अल्पा० ) का प्रारंभ होना, घाँटी फूटना, युवावस्था | छोटी गुरियों का कंठा, वैष्णवों के पहिनने का आगमन तथा तत्समय स्वर-परिवर्तन की तुलसी श्रादि की मनियों की छोटी होना । कंठ करना ( में रखना )- ज़बानी माला। संज्ञा, पु. कंठीधारी-भक्त, याद करना। कंठ होना-याद होना। बैरागी । यौ० कंठी-माला। भा० श० को०-४८
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