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कच्छपी ३८४
कजली रोग, विश्वामित्र सुत, तुन का वृक्ष । काछ) पीछे खोंसी जाने वाली धोती की कच्छू कछुवा (दे०)।
लाँग, ऐसी धोती पहिनने का स्त्रियों का कच्छपी-संज्ञा, स्त्री. ( सं० ) कछुवी, ढङ्ग, कछनी । स्त्री. अल्पा० कछौटीसरस्वती की वीणा।
कछनी, लँगोटी । “ पग पैंजनी बाजति, कच्छा-संज्ञा, पु० (सं० कच्छ ) दो पतवारों पीरी कछौटी"-रस० । की बड़ी नाव जिसके छोर चिपटे और बड़े कज--संज्ञा, पु. ( फ़ा ) टेढ़ापन, कसर, होते हैं, नावों का बेड़ा। संज्ञा, पु० दे० (सं० दोष, ऐब। कता) दर्जा । स्त्री० कच्छो--कच्छदेशोत्पन्न, कजक-संज्ञा, पु० ( दे० ) हाथी का
अंकुश। घोड़े की जाति । कछना-सं० कि ( दे० ) पहिनना, धारण
*कजरा--संज्ञा, पु० दे० (हि. काजल )
काजर-(दे०) काजल, कज्जल, काली करना। कछनी-संज्ञा, स्त्री० (हि. काछना) घुटने
अाँखवाला बैल। ..." आँखिन मैं कजरा के ऊपर चढ़ा कर पहनी हुई धोती, छोटी
करि राख्यौ" मति--संज्ञा, स्त्री०-कजरी धोती, काछने की वस्तु । ( दे. ) काछनी
-काली गाय, बरसाती गीत विशेष । - " मोर मुकुट कटि काछनी ..वि• घुटने
वि० -- काली । यौ० -- कजराबन-घना
अंधकार-पूर्ण कालाबन कजरीबन दे०)। तक का धाँधरा ।" कछरा-संज्ञा, पु० (दे० ) चौड़े मुँह का |
*कजराई---संज्ञा, स्त्री० (दे०) कालापन,
कालिमा । मिट्टी का बरतन ।
कजरारा-(स्त्री० कजरारी)-वि० (हि. कचलम्पट–वि० ( दे० ) अजितेन्द्रिय,
काजर --भार ---प्रत्य० ) काजल वाला, लुच्चा, व्यभिचारी।
काजल लगा हुआ, अंजन अँजाये, काजल कछवाहा-संज्ञा, पु० दे० (सं० कच्छ )
सा काला, स्याह । कजरी (कजली) संज्ञा, राजपूतों की एक जाति, जो रामात्मज कुश
स्त्री० (दे० ) एक त्यौहार जो बरसात में के वंशज हैं।
होता है, उस समय में गाये जाने वाला कछान (कछाना)—संज्ञा, पु० दे० (हि.
एक गीत, कालिख, स्याही, काली गाय । काछना ) घुटने के ऊपर चढ़ाकर धोती
संज्ञा, पु० (दे० ) एक तरह का धानपहिनना।
बासमती आदि। कछार-संज्ञा, पु० दे० ( सं० कच्छ ) | कजरौटा-( कजलौटा )- संज्ञा० पु. सागर या नदी के तट की तर और नीची |
(दे०) काजल की दंडीदार डिबिया । भूमि, खादर।
" कजरौटा बरु होइ, लुकाठन श्राजै नैना" कछारना-स० कि० दे० (हि. कचरना ) |
-गि०। धोना, छाँटना, पछारना।
कजलाना-अ० कि. (दे०) काजल कछु (कछुक) कछू---वि० (७०) कुछ पाड़ना, आग बुझाना। स० कि० काजल (हि०) कछूक (दे० ) थोड़ा । " कछु दिन लगाना, आँजना। भोजन बारि-बतासा"-रामा। कजली-संज्ञा, स्त्री० (हि. काजल ) घोटे कछुवा (कछुवा)--संज्ञा, पु० दे० (सं० । हुए पारे और गंधक की बुकनी, रस फूंकने कच्छप ) ढाल की सी कड़ी खोपड़ी वाला में धातु का वह अंश जो आँच से ऊपर चढ़ एक जल-जन्तु, कूर्म, कमठ ।
कर पात्र में लग जाता है, गन्ने की एक कछोटा-कछोटा-संज्ञा, पु० दे० (हि० | जाति, आँखों के किनारों पर काले घेरे
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