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ऋषि
एक स्वरों में से दूसरा (संगी० ) एक जड़ी ऋषिक----संज्ञा, पु० (सं० ) दक्षिण का एक (हिमालय की)। वि० श्रेष्ट।
देश (वाल्मी०) ऋष्टिक । यौ० ऋषभ देव-नाभिनृप-पुत्र, विष्णु के अपोक-संज्ञा, पु० ( सं०) ऋषि-पुत्र । एक अवतार । ऋपमध्वज-संज्ञा, पु० ऋष्य-संज्ञा, बु. ( सं० ) मृग विशेष, (सं० ) शिव, महादेव। स्त्री० ऋषभी- चितकबरा मृग। यौ० ऋष्यकेतु-संज्ञा, पुरुष के से गुणों वाली स्त्री।
पु. (सं० ) अनिरुद्ध । ऋष्यप्रोक्ताऋषि-संज्ञा, पु. ( सं० ) वेदमंत्र प्रकाशक, संज्ञा, स्त्री० सं० ) सतावर । मंत्रद्रष्टा, आध्यात्मिक और भौतिकतत्वों ऋष्यमूक-संज्ञा. पु. ( सं०) दक्षिण का का साक्षात्कार करने वाला, तपस्वी। यो० । एक पर्वत । रोखमूख (दे०)। । ऋपिमित्र--संज्ञा, पु० (सं० ) विश्वामित्र मृत्यग-संज्ञा, पु. (सं०) विभांडक (राम०) । ऋषिमृणा-~ऋषियों के प्रति ऋषि के पुत्र श्रृंगी ऋषि जिन्हें लोमपादकर्तव्य, जो वेद के पठन-पाठन से पूर्ण होता नृप की कन्या शान्ता व्याही थी, इन्हीं के है । ऋपिकुल्या---संज्ञा, स्त्री० (सं० ) एक पुत्रेष्टीयज्ञ कराने से रामादि का जन्म नदी।
हुआ था।
ए--हिन्दी-संस्कृत की वर्णमाला का ११ वाँ एकत-वि० दे० (सं० एकान्त ) एकान्त, अक्षर जो संयुक्त स्वर ( अ-इ) है, और । निराला, अकेला।। कंठतालव्य है । संज्ञा पु० (सं० ) विष्णु। एक-वि० (सं.) इकाइयों में सबसे छोटी अव्य० (सं०) सम्बोधन-सूचक शब्द। सव० और प्रथम संख्या, अद्वितीय, अनुपम, कोई, (दे०) (सं० एप) यह । संज्ञा, स्त्री० (सं० ) अनिश्चित, एक ही प्रकार का, समान, तुल्य, अनसूया, आमंत्रण, अनुकम्पा ।
अकेला, रीति । एच-पंच----संज्ञा, पु० (फा० पंच ) उलझन, मु०---एक अंक (आँक) ध्रुव ( एक ही) धुमाव, टेढी चाल, घात ।
बात पक्की या निश्चित बात, एक बार । एंजिन-संज्ञा, पु० (अ.) इंजन । " एकहि आँक इहै मन माँही"-रामा० । एडा-बंडा--वि० ( हि० बेड़ा । डा --- एक (रीति) न आना-ढंग न आना । अनु० ) उल्टा-सीधा, टेढ़ा-मेढ़ा।
एक आँख से देखना--समान भाव या एंडो-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० एरंड) अंडी दृष्टि रखना। एक आँख न आनाके पत्ते खाने वाला एक रेशम का कीड़ा, तनिक भी न सुहाना । एक-आध-थोड़ा, इसका रेशम, अंडी, मूंगा। संज्ञा, स्त्री० कम, इक्का-दुक्का । एक-एक--प्रत्येक, सब, (दे०) एड़ी, पैर के तलवे का अंतिम भाग।
अलग अलग, पृथक-पृथक् । एक-एक ऍडुआ-संज्ञा, पु० (०) गडुरी, सिर पर करके --धीरे-धीरे, क्रमशः, एक के बाद बोझ के लिये कपड़े की गद्दी।
एक । एक कलम-बिल्कुल, सब । एकंग---वि० दे० (सं० एक | अंग ) एकांग, ( अपनी और किसी की जान ) एक
अकेला, एक ओर का, एक तरफ़ा । एकांगा करना-मारना और मर जाना, दोनों ( दे०)। स्त्री. एकांगी-अकेली, एक की दशा समान करना । एकटकओर की।
अनिमेष, नज़र या दृष्टि गड़ाकर, लगातार
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