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ऋचा
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ऋषभ ऋचा—संज्ञा, स्त्री. (सं० ) पद्यात्मक वेद- यौ० संज्ञा, पु. (सं०) मृतदेय यज्ञ मंत्र, कांडिका, स्तोत्र।
विशेष, छोटा। ऋच्छरा—संज्ञा, स्त्री० ( दे० ) वेश्या। अति-संज्ञा, स्त्री० ( सं० । निन्दा, स्पर्धा, ऋजोष-संज्ञा, स्त्री. (सं० ) सोमलता, गति, मंगल । कोक, लोहे का तसला।
ऋत--संज्ञा, स्त्री० ( सं० ) प्राकृतिक दशाओं जु----वि० ( सं० ) सीधा, सरल, सुगम, के अनुसार वर्ष के दो दो मास वाले छः सहज, सज्जन, प्रसन्न, अनुकूल ।
विभाग - बसंत ग्रीष्म वर्षा, शरद, हेमंत, ऋजुता-संज्ञा, पु. ( सं० ) सरलता, शिशिर । रजोदर्शनोपरान्त स्त्रियों की गर्भसीधापन, सिधाई (दे० ) सज्जनता, धारण-योग्यता का समय । गौ० ऋत सुगमता । यौ० ऋजुकाय संज्ञा, पु० (सं०) एर्ण--संज्ञा, पु. ( सं० ) एक अयोध्याकश्यप मुनि । वि० सीधी देह ।। नरेश। ऋतुराज–संज्ञा, पु० (सं० वसन्त । जुभुज-संज्ञा, पु० (सं० ) सीधी रेखा। ऋतुचर्या---संज्ञा, स्त्री० (सं० ) ऋतुओं के (+क्षेत्र )-संज्ञा, पु० (सं० ) सीधी अनुकूल आहार-व्यवहार की व्यवस्था । रेखाओं से घिरा हा क्षेत्र ।
ऋतुमती---वि० स्त्री. ( सं० ) रजस्वला, शा--संज्ञा, पु. (सं० ) कुछ काल के पुष्पवती, मासिकधर्म-युक्ता. जिन स्त्री के लिये किसी से कुछ धन लेना, उधार, कर्ज, रजोदर्शन के बाद १६ दिन न बीते हों ऋन, रिन (दे०)।
और जो गर्भधारण के योग्य हो, ऋतुवती। मु०--ऋण उतरना--कर्ज़ अदा होना। ऋतुस्नान-संज्ञा, पु. (सं० ) स्त्रियों का ऋगा चढ़ना --- ज़िम्मे रुपये निकलना, रजोदर्शन से चौथे दिन का स्नान । वि० व्याज से कर्ज़ बढ़ना. नियत समय से ऋण स्त्री. (सं०) ऋतुस्नात...--रजोदर्शनानन्तर मुक्ति में देर होना । मा टना ! कृत स्नान । ( पटाना )--कर्ज़ चुकना या चुकाना। ऋविज-संज्ञा. पु० (सं० ) यज्ञकर्ता, यज्ञ यो० ऋण-पत्र--तमस्सुक पत्र । ऋगण- में वरण किया हुआ, ये १६ हैं, ४-मुख्य मुक्त-वि० (सं० ) उऋण, ऋण-रहित । हैं, १-होता, २ अध्वर्यु, ३ उद्गाता ४ ब्रह्मा, (+पत्र )---फारिग़ख़ती । ऋणमार--- पुरोहित, याजक । खो० अार्विजी। वि० (सं० } जो कर्ज लेकर उसे न दे। ऋद्ध...वि० सं०) सम्पन्न समृद्ध, धनाट्य ।
णमार्गण-संज्ञा, पु० ( सं० ) जमानत, | ऋद्धि-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) एक औषधि ज़मानतदार, प्रतिभु, जामिन। ऋणापन- ( कंद ) समृद्धि, बढ़ती, विभव, पार्वती, यन—संज्ञा, पु. ( सं० ) ऋण-शोधन, आर्याछन्द का एक भेद। यौ० ऋद्धिकर्ज़ चुकाना।
सिद्धि-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) समृद्धि और मृणार्ण--संज्ञा, पु. यो० (सं० ) कर्ज़ सफलता जो गणेश जी की दासियाँ हैं । चुकाने को लिया हुआ कर्ज़।
निया-संज्ञा, 'पु० (दे०) ऋणी, कर्जदार । ऋणो-वि० (सं० ऋणिन्) ऋण लेने वाला, ऋभु-संज्ञा, पु. ( सं० ) एक गण-देवता । कर्जदार । ऋणिक, ऋगिया (दे०) भुत-संज्ञा, पु० (सं० ) इंद्र, वज्र, देनदार, अनुगृहीत, कृतज्ञ।
स्वर्ग । स्त्री० मुला-इन्द्राणी, शची। ऋत-संज्ञा, पु० ( सं० ) सत्य, उच्चवृत्ति से ऋषभ---संज्ञा, पु० (सं० ) बैल, श्रेष्ठता निवाह, जल, मोक्ष। वि० दीप्त, पूजित। वाचक शब्द राम-सेना का एक कपि, बैल यौ० संज्ञा, पु० (सं० ) ऋतधामा-विष्णु, । के आकार का एक दक्षिणी पर्वत, सात
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