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उपद्रवी
उपनीत दंगा-फसाद, झगड़ा बखेड़ा, किसी प्रधान, कर उसके धर्म को उपसंहार के रूप से रोग के बीच में होने वाले अन्य प्रकार के साध्यपर घटित करना (तर्क०) व्याप्ति विकार, विद्रोह, अत्याचार, अन्धेर । विशिष्ट हेतु में पक्षगत धर्मों का प्रतिपादक उपद्रवी-वि० (सं० उपद्रविन् ) उपद्रव या वाक्य ।
ऊधम मचाने वाला, नटखट, उत्पाती। उपनयन-संज्ञा, पु० (सं० उप + नी+ अनट्) उपद्वीप-संज्ञा, पु. (सं० ) छोटा द्वीप, द्विजों ( ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य ) या त्रिवर्ग जलमध्यवर्ती स्थान ।
का यज्ञ-सूत्र के धारण करने का संस्कार, उपधरना*-अ. क्रि० दे० (सं० उपधरण) । उपवीत संस्कार, यज्ञोपवीत, जनेऊ, वरुणा
अंगीकार करना, अपनाना, सहारा देना । उपधर्म-संज्ञा, पु० (सं० ) पाखंड, पाव, उपनागरिका-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) शब्दानास्तिकता।
लंकार गत, वृत्त्यनुप्रास का एक भेद जिसमें उपधा--संज्ञा, स्त्री. (सं० ) छल, कपट,
श्रुतिमधुर वर्गों की आवृत्ति की जाती है, किसी शब्द के अंतिमाक्षर के पूर्व का अक्षर मंजुल एवं मृदुमधुर वर्गों की संगठन-रीति, ( व्या० ) उपाधि । " अलोऽन्त्यात्पूर्व एक प्रकार की रचना-रीति । उपधा"---अष्टा० ।
उपनाना-स० कि. (दे०) पैदा करना, उपधातु-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) अप्रधानधातु, उत्पन्न करना। लोहे-ताँबे श्रादि धातुओं के योग से बनी उपनाम-संज्ञा, पु० (सं० ) दूसरा नाम, हुई या खान से निकली हुई, जैसे काँसा, प्रचलित नाम, पदवी, उपाधि, तखल्लुस, सोनामक्खी, तूतिया, शरीर के अन्दर पद्धति । रस से बना पसीना, चर्बी आदि। उपनायक - संज्ञा, पु. (सं०) नाटकों में उपधान-संज्ञा, पु. ( सं० उप+धा+
प्रधान नायक का मित्र या सहकारी। अनट ) ऊपर रखना या ठहराना, सहारे की उपनिधि-संज्ञा, स्त्री. ( सं० ) धरोहर, चीज़, तकिया, गेडुअा, विशेषता, उसीसा, __ थाती, न्यस्त वस्तु, स्थापित द्रव्य, अमानत । सिरहना, अाधार ।
उपनिविष्ट-वि० (सं० ) दूसरे स्थान से उपधायक-वि० (सं० उप + धा+गाक) पाकर बसा हुआ। जन्मदाता, स्थापनकर्ता।
उपनिवेश-संज्ञा, पु० (सं०) एक स्थान उपाधि-संज्ञा, स्त्री० (दे० ) कपट, छल, से दूसरे स्थान पर जा बसना, अन्य स्थान से शरारत, उत्पात, उपद्रव... .." अोली आये हुए लोगों की बस्ती, कालोनी (०)। संगति कूर की, आठौ पहर उपाधि "- उपनिषद--संज्ञा, स्त्री. ( सं० उप + नि+ कबी० । संज्ञा, स्त्रो० (सं० उप +धा + कि) षद् । विप) पाप बैठना, ब्रह्म विद्या की प्राप्ति उपनाम, नाम के पीछे जोड़े जाने वाले के लिये गुरु के समीप बैठना, वेद की शब्द, योग्यता एवं सम्मान-सूचक शब्द। शाखाओं के ब्राह्मणों के वे अंतिम भाग उपनना*--अ० कि० (सं० ) उत्पन्न होना, जिनमें श्रात्मा, परमात्मा श्रादि का निरूपण
पैदा होना, आगि जो उपनी अोहि किया गया है, निर्जन स्थान, ब्रह्मविद्या, समुन्दा "- प० ।
वेद-रहस्य, तत्वज्ञान, वेदान्त-विषय । उपनय-संज्ञा, पु० (सं० उप + नी+ अल) उपनिषध-संज्ञा, स्त्री० (सं०) उपनिषद । समीप ले जाना, बालक को गुरु के पास ले | उपनीत—वि० पु. (सं०) लाया हुआ, जाना, उपनयन-संस्कार, एक उदाहरण दे जिसका उपनयन संस्कार हो गया हो,
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