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उदातकर ३२३
उद्दालक उदोतकर-वि० (सं० ) प्रकाश करने उद्घाट-संज्ञा, पु. ( सं० ) राज्य की ओर वाला, चमकने वाला।
से माल को देख कर ( जाँच कर के ) चुंगी उदोतो-वि० (सं० उद्योत ) प्रकाश करने लेने की चौकी, चंगीघर। वाला, स्त्री० उदातिनो।
उद्घाटन--संज्ञा, पु. (सं०) खोलना, उदै-सज्ञा, पु. ( दे० ) उदय (सं०) उधारना, प्रकाशित करना, प्रगट करना, निकलना, प्रकट होना, "... . पिय भाजी रस्सी-युक्त घड़ा ( कुएँ से पानी निकालने
देखि उदौ पावत के माज को"-भू०। के लिये )। उद्गत-वि० (सं० ) ऊर्ध्वगत, उदित, उद्घाटक-वि० (सं० ) प्रकाशक, खोलनेउत्थित, बर्धित ।
वाला। उदगम-संज्ञा, पु० (सं०) उदय, आविर्भाव, उदघाटित--वि० (सं० ) प्रकाशित, प्रगट उत्पत्ति-स्थान उद्भव-स्थान निकास, किती किया हुआ, खोला हुश्रा । नदी के निकलने का स्थान, प्रगट होने की उदघाटनीय-वि० (सं० ) प्रकाशनीय, जगह प्रारम्भ, आदि।।
प्रकट करने योग्य । उद्गमन-संज्ञा, पु० (सं०) ऊपर जाना, उद्घात-संज्ञा, पु० (सं० ) ठोकर, धक्का, ऊर्ध्वगमन ।
श्राघात, प्रारंभ, उपक्रम । उद्गाता-संज्ञा, पु० (सं० ) यज्ञ के चार उद्घातक-वि० ( सं० ) धक्का मारने प्रधान ऋत्विजों में से एक जो सामवेद के वाला, ठोकर लगाने वाला प्रारंभ करने मंत्रों का गान करता है, सामवेदज्ञ, वाला। संज्ञा, पु० नाटक में प्रस्तावना का सामवेत्ता।
एक भेद जिसमें सूत्रधार और नटी आदि उद्गाथा-संज्ञा, स्त्री. (सं०) आर्या छंद
की कोई बात सुन कर उसका और अर्थ का एक भेद, इसमें विषम पदों में तो १२
लगाता हुश्रा कोई पात्र प्रवेश करता है या और सम पदों में १८ मात्रायें होती हैं और
नेपथ्य से कुछ कहता है। विषम गणों में जगण नहीं रहता।
उदंड - वि० (सं० ) जिसे दंड आदि का उद्गार-संज्ञा, पु० (सं० ) उबाल उफान,
कुछ भी भय न हो, अक्खड़, निडर निर्भीक, बमन, कै, कफ डकार थूक, बाढ़, श्राधिक्य,
प्रचंड, उद्धत उजडु । संज्ञा, स्त्री० (सं.) घोर शब्द, गर्जन, किसी के विरुद्ध बहुत
उहंडता-निर्भीकता। दिनों से मन में रक्खी हुई बात का एक
उइंत-वि० (सं०) वृहत, दतुला, बड़बारगी निकालना, मन की बातों को प्रगट करना, गर्जन।
दंता, निकला हुआ दांत । उद्गारित-वि० ( सं० ) वमन किया
उद्देश---संज्ञा. पु० (सं० ) मसा, मशक, हुआ प्रकटित, निकाला हुआ।
डांस, मच्छर। उद्गारी-वि० (सं०) उगलने वाला, ! उद्दाम-वि० (सं० ) बंधन-रहित निरंकुश, बाहर निकालने वाला प्रकट करने वाला, उग्र, उदंड, स्वतंत्र, गंभीर, महान, प्रबल, गर्जन करने वाला।
बेकहा । संज्ञा, पु० (सं० ) वरुण, दंडकवृत्त उदगीत-संज्ञा, स्त्री० (सं.) आर्या छंद का का एक भेद । एक भेद । वि० (सं० ) उच्च स्वर से उद्दालक--संज्ञा, पु० (सं० ) प्राचीन धार्य गाया हुआ।
ऋषि इनका प्रकृत नाम थारुणि है, इनके उदगीथ-संज्ञा, पु० (सं०) सामवेद का गुरु आयोद्धौम्य ने इनका यह नाम रक्खा भंग विशेष, प्रणव, भोंकार. सामवेद । था, इनके पुत्र श्वेतकेनु थे, व्रत विशेष ।
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