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उनाना ३२६
उन्मादक उनाना-स० क्रि० दे० (सं० उन्नमन ) उन्नायक-वि० (सं० ) ऊंचा करने वाला, झुकाना, लगाना, प्रवृत्त करन', सुनना, उन्नत करने वाला, बढ़ाने वाला। स्त्री० धाज्ञा मानना । अ० कि० श्राज्ञा पालन उन्नायिका। करना।
उन्नासी-वि० दे० (सं० ऊनाशीति ) सत्तर उनारना-स० कि. (दे०) उकसाना, और नौ, एक कम अस्सी। संज्ञा, पु० सत्तर खसकाना, बढ़ाना, "ज्योति कढ़ावत दसा और नौ की संख्या, ७६ । उनारि"-के।
उन्निद्र-वि० (सं० ) निद्रा रहित-जैसेउनासी-वि० दे० (सं० एकोनाशीति ) एक उन्निद्र रोग. जिसे नींद न आई हो, कम अस्ती । संज्ञा, स्त्री० (दे०) उन्नासी की विकसित, खिला हुआ। संख्या ७६ ।
उन्नीस-वि० (सं० एकोनविंशति ) एक कम उनींदा--वि० दे० (सं० उन्निद्र ) उँचाया बीत, दस और नौ। संज्ञा, पु०-दस और नौ हुआ, अलसाया हुआ, नींद से भरा हुआ । की संख्या १६, उनइस, (दे०)। सज्ञा, पु. (दे०) उनींद-(सं० उनिद्र) मु०-उन्नीस ( उनइस ) विस्वाअर्धनिद्रा, नींद-भरा : लरिका समित
अधिकतर, अधिकाँश में, बहुत कर के। उनींद-बस, सयन करावहु जाइ"- रामा०,
उन्नोस होना-मात्रा में कुछ कम होना, नैन उनोंदे भे रंगराते "-सूर० ।
थोड़ा घटना, गुण में घटकर होना, ( दो उन्नइस-वि० (हि. उन्नीस) उनइस (दे०)
वस्तुओं की तुलना में )। उन्नीप।
उन्नीस-बीस होना-एक का दूसरी से उन्नत-वि० (सं० उत् + नम् --क्त) ऊंचा,
कुछ अच्छा या अधिक होना, दो वस्तुओं ऊपर उठा हुआ, बढ़ा हुआ, समृद्ध, श्रेष्ठ,
में कुछ थोड़ा अन्तर होना। उच्च, उत्तुंग । यौ०-उन्नतनाभि - वि०.
उन्मत्त-वि० (सं० उत् + मद् + क्त ) मतऊँची नाभिवाला।
वाला, मदांध, जो श्रापे में न हो, बेसुध, उन्नतानत-वि० यौ० (सं०) उच्च नीचस्थान, पागल, बावला, उन्मादी, बौराह । संज्ञा, स्त्री.
उन्मत्तता। ऊबड़-खाबड़।
उन्मतता--संज्ञा, स्त्री. (सं० ) पागलपन, उन्नति-संज्ञा, स्त्री० (सं० उत् + नम्+क्ति)
प्रमत्तता। ऊंचाई, चढ़ाव, वृद्धि, समृद्धि, उच्चता, बढ़ती, उन्मद-वि० ( सं० उत् + मद् +अल ) तरक्की, उदय, गरुड़भार्या ।
उन्माद-युक्त, प्रमादी, सिड़ी, उन्मत्त । उन्नतोदर-संज्ञा, पु. यो० (सं०) चाप उन्मना-वि० (सं० उत् + मनस् ) चिंतित, या वृत्त के खंड के ऊपर का तल, ऊपर को | | व्याकुल, चंचल, अनमना, उन्मन । संज्ञा, उठा हुआ, वृत्त-खंड वाली वस्तु । स्त्री०-उन्मनता-अनमनापन । " ...उन्मना उन्नाब-संज्ञा, पु० (अ.) हकीमी दवाओं
राधिका थी -प्रि० प्र०।। में डाला जाने वाला एक प्रकार का बेर। उन्माद -- संज्ञा, पु० (सं० ) वह रोग जिसमें बनाबी-वि० (अ० उन्नाव ) उन्नाब के रंग मन और बुद्धि का कार्य-क्रम बिगड़ जाता का, कालापन लिये हुए लाल ।
है, पागलपन, विक्षिप्तता, चित्त-विभ्रम, ३३ नमित-वि० ( सं० उत् + नम् -।-क्त ) संचारी भावों में से एक जिसमें वियोगादि उत्तोलित, ऊपर उठाया गया, ऊर्वीकृत । के कारण चित्त ठिकाने नहीं रहता। अयन - वि० (सं० ) ऊर्ध्व प्रयाण, उत्तोलन, उन्मादक-वि० (सं० ) पागल करने वाला, उपर ले जाना।
नशीला। मा० श० को-४२
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