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भाषागवन
श्रावेग भाघागवन *-संज्ञा, पु० (दे० ) श्रावा- प्रावाहन-संज्ञा, पु० सं० ) मंत्र-द्वारा गमन, पानाजाना, प्रावागौन (दे०)।। किसी देवता के बुलाने का कार्य, निमन्त्रित श्रावाज-संज्ञा, स्त्री० (फा० मिलाओ सं० करना, बुलाना, आह्वान, षोडशोपचार अावाद्य ) शब्द, ध्वनि, नाद, बोली, वाणी, पूजा का एक अंग । वि० आचाहनीय । स्वर, शोर ।
प्राविद्ध वि० (सं० ) लिदा हुश्रा, भेदा मु०--प्राधाज़ उठाना--विरोध करना, | विरुद्ध कहना।
संज्ञा, पु० तलवार के ३२ हाथों में से एक । प्रावाजा कसना-(दे०) व्यंग बात आविर्भाव-संज्ञा, पु० (सं० ) प्रकाश, कहना, ललकारना, चुनौती देना। प्राकट्य, उत्पत्ति आवेश, संचार । श्राघाज बैठना-कफ़ के कारण स्वर का आविर्भूत-वि० (सं०) प्रकाशित, प्रकटित, स्पष्ट न निकलना, गला बैठना।
उरपन्न, उद्भूत, प्रादुर्भूत । आवाज़ भारी होना-कफ़ के कारण अाविष्का -वि० ( सं० ) आविष्कार कंठ-स्वर का विकृत हो जाना।
करने वाला। श्राघाज़ लगाना (देना)-बुलाना, ज़ोर प्राविष्कार-संज्ञा, पु० (सं० ) प्राकाट्य, से पुकारना।
प्रकाश, कोई ऐसी वस्तु तैय्यार करना आवाज़ा-संज्ञा, पु०( फा० ) बोली, टोली, जिसके बनाने की विधि पहिले किसी को न ताना, व्यंग।
ज्ञात रही हो, ईजाद, किसी बात का पहिलेमु० ---अावाजा करना--ताना मारना। पहल पता लगाना । यौ० प्रावाजा-ताजा-व्यंग, ताना।। आविष्कारक-वि० ( सं० ) आविष्कर्ता, आवाजाही (श्राव-जाई) --संज्ञा, स्त्री० __ आविष्कार करने वाला, ईजाद करने वाला। दे० (हि० पाना + जाना ) आना-जाना, अाविष्कृत-वि० (सं० आविस् + कृ+क्त) श्रामद-रफ्त, जन्म-मरण ।
प्रकाशित, प्रगटित, पता लगाया या खोजा मु०--आवाजाही लगाना-बारबार, । हुश्रा, ईजाद किया हुआ, जाना हुआ। आनाजाना, आवाजानी-(दे०)। प्राविष्क्रिया--संज्ञा, स्त्री. (सं० ) श्रा" मिट गई आवाजानी"---ध० द०। विष्कार, गवेषणा, अन्वेषण । प्राचारगी-संज्ञा, स्त्री० (फा० ) श्रावारा प्राविष्ट-वि. (सं० श्रा-+-विश+क्त) पन, शुहदापन, लुच्चापन, धुमक्कड़ी, श्रावा- आवेश-युक्त, मनोयोगी, लीन, किसी की रागरदी (दे०)।
धुन में लगना। प्राधारजा-संज्ञा, पु० ( फा० ) जमा-खर्च श्रावृत-वि० (सं० ) छिपा हुश्रा, ढका की किताब, अवारजा (दे०) रोकड़ बही। हुआ, लपेटा या घिरा हुआ, वेष्टित, प्राधारा-वि० (फा०) व्यर्थ इधर-उधर | आच्छादित। फिरने वाला, निकम्मा, बेठौर-ठिकाने का, श्रावृत्ति-संज्ञा स्त्री. ( सं० मा+वृत उठल्लू, बदमाश, लुच्चा-गुन्डा (दे०)। +क्त) बारबार किसी बात का अभ्यास, आवारा गर्द-वि० ( फा० ) व्यर्थ इधर- पढ़ना, उद्धरणी, बारबार किसी वस्तु उधर घूमने वाला, उठल्लू, निकम्मा, गुन्डा। का श्राना। संज्ञा, स्त्री० श्रावारागर्दी-आवारगी। श्रावेग-संहा, पु० (सं०) चित्त की प्रवल प्रावास-संज्ञा, पु. (सं० ) रहने की वृत्ति, मन की झोंक, जोर, जोश, रस के जगह, निवास-स्थान, मकान, घर, धाम । । संचारी भावों में से एक, पाकस्मात इष्ट या
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