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प्रासेचनक
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प्रास्यदेश प्रासेचनक-वि० (सं० प्रा+सिच्-+ अनट पास्तीक-संज्ञा, पु. ( सं० ) जनमेजय के +क) प्रिय दर्शन, जिसे देखने से तृप्ति सर्प-यज्ञ में तक्षक के प्राण बचाने वाले न हो, अतिप्रिय।
एक ऋषि, एक सर्प, जरत्काय मुनि का प्रासेब-संज्ञा, पु० (फा० ) भूत-प्रेत की | पुत्र, इनकी मातासर्पराज बासुकी की बहिन, बाधा।
जरत्कारी थीं, इसी से इन्होंने अपने मातुल वि० श्रासेबी-भूत-प्रेत-बाधा-युक्त। तथा भाई तक्षक आदि को सर्पसत्र से आसोज -- संज्ञा, पु० दे० (सं० अश्वयुज ) बचाया था। अाश्विन मास, कार या कुंवार (दे०) प्रास्तीन-संज्ञा, स्त्री० ( फा० ) बाँह को का महीन।
ढाँकने वाला पहिनने के कपड़े का भाग, " आसोजा का मेह ज्यों, बहुत करे। बाँही, बाँह । उपकार "-कबीर०
मु०-पास्तीन का साँप-मित्र होकर प्रासौं -क्रि० वि० दे० (सं० इह-। संवत् ) शग्रता करने वाला, विश्वासघाती। इस वर्ष, इस साल।
प्रास्तान में साँप पालना-शत्रु को प्रासौ-संज्ञा, पु० दे० (सं० आसव ) अपने पास मित्र-रूप में रखना, धोखा खाना। पासव, मदिरा।
आस्था--संज्ञा, स्त्री. (सं० ) पूज्य, बुद्धि, भास्कंदित-वि० (सं० पा+स्कंद + क्त) श्चद्धा, सभा, बैठक, आलंवन, अपेक्षा, घोड़ों की गति विशेष, घोड़ों की पांचवी श्रादर। गति, तिरस्कृत ।
श्रास्थान-संज्ञा, पु. (सं० ) बैठने की प्रास्कत-संज्ञा, स्त्री० (दे० ) आलस्य, | जगह, बैठक, सभा, दरबार, स्थान ।। शिथिलता, सुस्ती, ढीलापन ।
प्रास्पद-संज्ञा, पु० (सं० ) स्थान, कार्य, वि० श्रास्कती-आलसी, सुस्त, ढीला। कृत्य, अल्ल (दे० ) कुल, जाति, प्रतिष्ठा प्रास्तर-संज्ञा, पु० (सं० श्रा+ स्तृ+ " पास्पद प्रतिष्ठायाम्" पा०-वंश, गोत्र । अनट ) हाथी की झूल, उत्तम, श्रासन | वि० योग्य, उपयुक्त, युक्त-जैसे लज्जास्पद । शय्या, ( दे.) अस्तर, भितल्ला। प्रास्फालन-संज्ञा, पु० (सं० पा + स्फाल्--- आस्तिक-वि० (सं० ) वेद, ईश्वर और अनट ) गर्व, घमंड, अहंकार, फैलाव । परलोकादि पर विश्वास करने वाला, प्रास्फालित-वि० (सं० श्रा-+स्फाल्-|-क्त) ईश्वर के अस्तित्व को मानने वाला, ताड़ित, गर्वित, कम्पित, फैलाया हुश्रा । ईश्वर-सत्ता वादी।
श्रास्फोट-संज्ञा, पु० (सं० श्रा+स्फोट ) प्रास्तिकता-संज्ञा, स्त्री० (सं०) वेद, ईश्वर फटना, प्रफुल्लन, विकास, प्रकास ।
और परलोक पर विश्वास, ईश्वर-सत्ता का | प्रास्कोटन-संज्ञा, पु० (सं० आ+स्फुट् धारणा।
अनट ) प्रफुल्लित होना, फटना, खिलना, प्रास्तिकवाद - संज्ञा, पु. (सं० ) ईश्वर | विकसना, विकास, प्रकाश, ताल ठोकना । की सत्ता को सिद्ध करने वाला सिद्धान्त, वि० आस्फोटित-विकसित। वेद, ईश्वरादि पर विश्वास करने वालों | प्रास्माकीन-वि० ( सं० आस्मक+ईन) का मत।
हमारे पक्ष का, हमारा, हमारी ओर का । वि० श्रास्तिकवादी-आस्तिकवाद के प्रास्य-संज्ञा, पु० (सं० ) मुख, चेहरा। सिद्धान्त का अनुयायी।
प्रास्यदेश-संज्ञा, पु० (सं० यौ०) मुख (विलोम नास्तिक, नास्तिकता...)। का विवर, मुंह का स्थान ।
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