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उदेपान ३२०
उदर उदपान-संज्ञा, पु. (सं० ) कुएं के समीप | उदय-संज्ञा, पु. ( सं० ) ऊपर आना, का गड्ढा, कमंडलु, कूल । “ कर उदपान निकलना, प्रगट होना, (विशेषतः ग्रहों के काँध मृगछाला"...प०।
लिये पाता है)। उदवर्तन-संज्ञा, पु. (सं०) किसी वस्तु मु०-उदय से अस्त तक (उदय-अस्त
को शरीर में लगाना, लेप करना, उबटना, | लौं) पृथ्वी के एक छोर से दूसरे छोर तक, व्यवहार, बटना। " सखी-हेत उदवर्तन सम्पूर्ण भूमंडल में, “अर्ब खर्ब लौं द्रव्य है, लावै"---ध्रुव०।
उदय अस्त लौं राज "-तु० । संज्ञा, पु० उदबस*-वि० (सं० उद्वासन ) उजाड़, वृद्धि, उन्नति, बढ़ती, उद्गम स्थान, उदया
सूना, एक स्थान पर न रहने वाला, खाना- चल, प्राची, उत्पत्ति, दीप्ति, मंगल, उपज । बदोश, स्थान-च्युत, किसी जगह से अलग | उदयकाल-संज्ञा, पु. यौ० ( सं० ) प्रभात, किया हुआ।
प्रातःकाल, सर्प विशेष ।। उदबासना-स० कि० दे० (सं० उद्वासन ) उदयगिरि-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) पूर्व तंग करके स्थान से हटाना, रहने में विघ्न ! की ओर एक कल्पित पर्वत जिस पर सूर्य डालना, भगा देना, उजाड़ना । “ ऊधौ। प्रथम उदित होते हैं. उदयगढ़, "उदित अब लाइकै बिसास उदवासै हम" ऊ. उदयगिरि मंच पर"- रामा० ।। श० । वि० उदबासित-हटाया या भगाया उदयाचल-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) उदयाद्रि, हुआ, संज्ञा, पु० (दे० ) उदबासन- सूर्य के निकलने का पूर्व दिकवी पर्वत हटाने का काम ।
( पुरा० ) "उदयाचल की पोरहिं सों उदबेग-संज्ञा, पु० दे० ( सं० उद्वेग)। जनु देत सिखावन --हरि०। घबराहट, भय, क्लेश, सूचना, पता । “मुनि उदयातिथि–संज्ञा, स्त्री० यौ० ( सं० ) उदबेग न पावह कोई" -- रामा०। सूर्योदय काल में होने वाली तिथि, ( इस उदभट-वि० दे० (सं० उद्भट ) प्रबल,
तिथि में ही स्नान, ध्यान एवं अध्ययनादि श्रेष्ठ, “ भूषन भनत भौंसला के भट कार्य होना चाहिये )। उदभट · भू० ।
उदयन--संज्ञा, पु. (सं० ) प्रकाश होना, उदभव-संज्ञा, पु० दे० ( सं उद्भव ) उत्पत्ति, ऊर्ध्वगमन, अगस्त मुनि, वत्सराज, शतानीक बढती, उन्नति ।
के पुत्र, इन की राजधानी प्रयाग के पास उदभौत-संज्ञा, पु० ( दे० ) आश्चर्य की कौशाम्बी थी, वासवदत्ता इनकी रानी थीं। वस्तु, अद्भुत बात, घटना।
विख्यात दार्शनिक उदयनाचार्य ( १२वीं उदमदना*-अ० क्रि० दे० (सं० उद्+ मद) शताब्दी के मध्य में ) जो मिथिला में पैदा पागल होना, श्रापे को भूल जाना, उन्मत्त हुये थे, बौद्धमत का खंडन इन्होंने किया होना, उमदना (दे०)।
है, इन का ग्रंथ 'कुसुमांजलि, है, वाचस्पति उदमाद*-संज्ञा, पु० (दे०) उन्माद(सं०) मिश्र के कई ग्रंथों पर इनकी टीकायें हैं, पागलपन, उन्मत्तता । वि० (दे० ) पागल, इनकी कन्या प्रसिद्ध पंडिता लीलावती थी। उन्मत्त। वि० उदमादो ... मतवाला, पागल। उदयना - अ. क्रि० दे० ( सं० उदय ) उदमान--वि० (दे०) मतवाला, उन्मत्त उदय होना, " पाइ लगन बुध केतु तौ पागल ।
उदयोहू भो अस्त".-मुद्रा०।। उदमानना-अ० कि० (दे.) मतवाला उदर-संज्ञा, पु० (सं०) पेट, जठर, किसी वस्तु होना, उन्मत्त होना।
के मध्य का भाग, मध्य, पेटा, भीतरी हिस्सा।
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