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श्रात्मानंद
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पाथर्षण न्द्रियान्तर्विकारापुखदुःखेच्छाद्वेषप्रयत्नारचा संज्ञा, पु० रिश्तेदार, सम्बन्धी। त्मनो लिंगानिवैशे०)।
प्रात्मीयता--- संज्ञा, स्त्री० (सं० ) अपनायत (“ अात्मा देहे तो जीवे स्वभावे स्नेह-सम्बन्ध, मैत्री, अंतरंगता, अपनापन, परमात्मनि ” ) धर्म, यत्न, बुद्धि, पुत्र, मैत्री, बंधुता, प्रणय-भाव, सद्भाव ।। अर्क, अग्नि, वायु।
| प्रात्मोत्कर्ष- संज्ञा, पु० यौ ० (सं०) अपनी मु०--श्रात्मा ठंढी ( शीतल ) करना श्रेष्ठता, अपनी प्रभता, अपनी बड़ाई, या होना-तुष्टि करना या होना, तृप्ति अपनी उन्नति, या वृद्धि । करना या होना, प्रसन्न करना या होना, प्रात्मोत्सर्ग-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) दूसरे पेट भरना, भूख मिटाना या मिटना। की भलाई के लिये अपने हिताहिता का श्रात्मा का असीसना--हृदय से प्रसन्न ध्यान छोड़ना।। होकर मंगल-कामना करना, हार्दिक प्रात्मोद्धार-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) अपनी श्राशीष देना।
आत्मा को संसार के दुःख से छुड़ाना, या आत्मानंद - संज्ञा, पु० यै ० (सं० ) आत्मा ब्रह्म में मिलाना, मोक्ष, अपना छुटकारा । का ज्ञान, आत्मा में लीन होने का अलौकिक । वि० आत्मोद्धारक। सुख।
आत्मोद्भव -संज्ञा, पु. यौ० ( सं० ) आत्माभिमान-- संज्ञा, पु. यो० (सं०) श्रात्मा से उत्पन्न, पुत्र, लड़का, तनय । अपनी मान-मर्यादा का ध्यान, अपने ऊपर आत्मोत्पन्न । गर्व, अपने मान-सम्मान का विचार, अपनी सी० प्रात्मोद्भवा-कन्या, आत्मजा । सत्ता का ज्ञान।
प्रात्मन्निति--- संज्ञा, स्त्री० यौ० ( सं० ) वि० श्रात्माभिमानी।।
। अपनी बढ़ती, अपनी वृद्धि। स्त्री०-प्रात्माभिमानिनी।
यात्मोन्नत-वि० (सं० ) जिसकी आत्मा प्रात्माभिमत-वि० (सं० ) आत्मसम्मत. उन्नत हो, अपनी उन्नति को प्राप्त । अपने मत का अनुयायी, अपनी आत्मा आत्यंतिक-वि० (सं०) श्रातिशय्य, विस्तार, के विचार का वशवर्ती।
प्रचुर, अधिक, बहुतायत से होने वाला। श्रात्माराम-संज्ञा, पु० (सं० ) आत्म- स्त्री० श्रात्यंतिकी। ज्ञान से तृप्त योगी, जीव, ब्रह्म, तोता. आत्रेय-वि० (सं० अत्रि ) अत्रि-सम्बन्धी, सुग्गा (प्यार का शब्द )।
अत्रि गोत्रवाला। प्रात्मावलंबी-संज्ञा, पु. यो० (सं.) संज्ञा, पु. ( सं० ) अत्रि के पुत्र दत्त, सब काम अपने ही बल पर करने वाला, दुर्वासा, चन्द्रमा, पात्रेयी नदी के तट का अपने ही ऊपर आधारित रहने वाला, देश जो दीनाजपुर जिले में है। शरीर प्रात्माश्रित ।
गत रस या धातु । संज्ञा, पु० (सं० ) प्रात्मावलंन । अ.त्रेयी-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) वेदान्त-विद्यास्त्री० श्रात्मा घलंधिनी।
स्नाता एक तपस्विनी, एक नदी विशेष । संज्ञा, पु. अात्मावलंबन ।
प्राथना-अ० कि० दे० (सं० अस्ति) अात्मिक-- वि० (सं० ) श्रात्मा-सम्बन्धी होना, श्राछना। अपना, मानसिक ।
पाथर्षण-संज्ञा, पु० (सं०) अथर्ववेद का प्रात्मीय - वि० (सं० ) अपना, निज का, जानने वाला ब्राह्मण, अथर्व वेदज्ञ, अथर्ववेदस्वकीय, अंतरंग, स्वजन, धात्मजन। विहित कर्म।
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