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श्रादिक २४६
प्रादेशी श्रादिक - अव्य० (सं० ) आदि, वगैरह । । श्रादित्य-मंडल – संज्ञा, पु० यौ० (सं०) आदिकवि-संज्ञा, पु० (सं०) वाल्मीकि- सूर्यमंडल, सूर्यलोक। मुनि, जिन्होंने सब से प्रथम छंदोबद्ध काव्य श्रादित्यसूनु-संज्ञा, पु० यो० (सं०) को जन्म दिया था, क्रौंच-युग्म में से एक सुग्रीव, यम, शनैश्चर, सावर्णि मनु, को निषाद-झारा पाहत और दूसरे को दुखी वैवस्वत मनु, कर्ण । देख निपाद को शाप देते हुए इनकी छंदो- प्रादितेय-वि० (सं०) अदिति के पुत्र, मयी वाणी प्रकाशित हुई तब इन्होंने उसी देवगण ।। छंद में “ रामायण " की रचना की, अत- प्रादि पुरुष-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) एव ये ही श्रादि कवि माने जाते हैं। परमेश्वर. ब्रह्म ।। श्रादिकारण--संज्ञा, पु० यो० (सं०) आदिपुरुष (सं० )-रघु० । मूल या प्रथम कारण, पूर्व निमित्त, श्रादि । श्रादिम वि. (सं० ) पहले का, पहला, का हेतु, निदान, सृष्टि का मूल जि पसे श्राद्य, प्राथमिक, प्रथमोत्पन्न । ही सब संसार की उत्पत्ति, हुई है - ब्रह्म, आदिल - वि० (फा० ) न्यायी, न्यायवान, ईश्वर, प्रकृति, हरि।
इंसाफ करने वाला। प्रादिदध-संज्ञा, पु० (सं० ) नारायण, प्रादिविपुला--संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं० ) विष्णु ।
भार्याछंद का एक भेद।। आदि बराह-संज्ञा, पु० (सं०) विष्णु का प्रादिष्ट-वि. (सं० आ+ दिश् + क्त) बराहावतार।
श्रादेशित, प्राज्ञप्त, अनुमत, कथित, प्राप्तो. प्रादिराज-संज्ञा, पु. (सं० ) सर्व प्रथम पदेश । राजा पृथुराज।
श्रादी-वि० ( अ ) अभ्यस्त । पादिशूर-संज्ञा, पु० (सं० ) सेनवंशीय । वि० दे० (सं० आदि ) आदि, नितांत, सर्व प्रथम राजा बीरसेन जिसने पुटि यज्ञ बिलकुल क्रि० वि० इत्यादि । के लिये कन्नौज से पाँच वेदज्ञ ब्राह्मण "मातु न जानति बालक आदी"-प० । बुलाये थे। क्योंकि बोद्ध धर्म के प्रचुर __" संज्ञा, स्त्री० (दे० ) अदरक, अद्रक"। प्रचार से बंगाल, में वेदज्ञ ब्रामण न रह श्रादून-वि० (सं० अ + दृ + क्त ) गये थे ) इन्हीं कान्यकुब्ज ब्राह्मणों से सम्मानित, पूजित, अर्चित, जिसका आदर मुख्योपाध्याय ( मुकर्जी) बंद्योपाध्याय | किया गया हो।
(वनर्जी) आदि ब्राह्मण हुये हैं। प्रादेय-वि० (सं० ) लेने के योग्य । 'प्रादि * - संज्ञा, पु० (दे० ) आदित्य प्रादेश-संज्ञा. पु. (सं० ) श्राज्ञा, उपदेश,
(सं०) सूर्य, अदिति के पुत्र, देवता, प्रणाम, नमस्कार, ( साधु ) ज्योतिषशास्त्र इन्द्र, बामन, मदार ।
में ग्रहों का फल, एक अक्षर का दूसरे के आदित्य-संज्ञा, पु० (सं० ) अदिति के स्थान पर आना (व्याक०) अक्षर. पुत्र, देवता, सूर्य, इन्द्र, वामन, वसु, । परिवत न, प्रकृति और प्रत्यय को मिलाने विरवोदेवा, बारह मात्राओं का एक छंद वाले कार्य। विशेष, मदार या अकौना।।
प्रादम-संज्ञा, पु० दे० (सं० आदेश) श्रादित्यवार-संज्ञा, पु. यो. (सं० ) आदेश, अाज्ञा ।। रविवार, एतवार, सूर्य का दिन, सप्ताह का प्रादेशी-संज्ञा, पु. (सं०) धाज्ञापक, अंतिम दिन।
गणक, दैवज्ञ, प्राज्ञाकारक । भा० श० को०-३१
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