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अश्वत्थ
अष्टक अश्वत्थ-संज्ञा, पु० (सं० ) पीपल का अश्वारूढ़---संज्ञा, यौ० पु. (सं० ) घोड़े वृक्ष।
पर सवार, घुड़चड़ा। अश्वत्थामा-संज्ञा, पु० (सं० ) द्रोणाचार्य | अश्वारोहण-संज्ञा, यौ० पु० (सं० ) घोड़े के पुत्र, पृथ्वी पर आते ही इन्होंने उच्चैःश्रवा की सवारी। नामक घोड़े के समान शब्द किया था, अश्वारोही-वि० यौ० (सं० ) घोड़े का अतएव आकाशवाणी हुई कि इसने जन्म सवार, घुड़ सवार, घोड़े पर चढ़ा हुआ। लेते ही ऐसा शब्द किया है इससे अश्व. अश्वसेन-संज्ञा पु. ( सं० ) तक्षक का स्थामा नामा से यह संसार में प्रसिद्ध होगा, पुत्र, नाग-विशेष, सनत्कुमार, ब्रह्मा जी पांडव-पक्षीय मालवराज इंद्रवर्मा का । हाथी - इसी के मारे जाने पर द्रोणाचार्य ने अश्विनी-संज्ञा, स्त्री. ( सं० ) घोड़ी. धोखे में आकर अस्त्र-शस्त्र रख दिये और २७ ननत्रों में से पहिला नक्षत्र, इसमें योग-द्वारा प्राण विसर्जित किये, तभी | ३ तारे हैं, मेष राशि के सिर पर इसका पृष्टद्युम्न ने उनको मारा।
स्थान है, दन प्रजापति की कन्या और अश्वपति-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) घोड़े चन्द्रमा की स्त्री, इस नक्षत्र का आकार घोड़े का स्वामी, सवार, रिसलदार, भरत के मामा के मुख-सदृश है। कैकय देश के राजकुमारों की उपाधि ।
अश्विनी कुमार--संज्ञा, पु० यो० (सं.) प्रश्वपाल-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) साईस, त्वष्टा की पुत्री प्रभा नामक स्त्री से उत्पन्न घोड़ों का नौकर।
सूर्य के दो पुत्र जो देवताओं के वैद्य माने अश्वमेध-संज्ञा, पु. यौ० (सं० ) एक जाते हैं, अश्व रूपी सूर्य के औरस तथा प्रकार का वह बड़ा यज्ञ जो चक्रवर्ती राजा अश्वरूप धारिणी संज्ञा के गर्भ से इन दोनों करते थे और जिसमें घोड़े के मस्तक पर जय- __की उत्पत्ति हुई थी ( हरिवंश )। पत्र बाँध कर उसे भूमंडल में स्वेच्छा से | अश्वेत-वि० (सं० ) जो श्वेत या सफ़ेद घूमने के लिये छोड़ते थे, जो उसे पकड़ता | न हो, काला, श्याम । था, उससे युद्ध कर उसे हरा कर घोड़े को अश्शी -अस्सी -(दे०) संज्ञा, पु० (सं० ले जाते और उसे मार कर उसकी चर्वी से अशीति ) संख्या विशेष ८० सत्तर और दस ।
अषाढ -संज्ञा, पु० (दे० ) वर्षा ऋतु का अश्ववार-संज्ञा, पु० (सं० ) असवार । प्रथम मास, आषाढ़ (सं०) व्रतपलाश-दंड, (दे०) सवार, अश्वारोही, घुड़सवार । पूर्वाषाढ़ नक्षत्र इस मास की पूर्णिमा को प्रश्वशाल--संज्ञा, यौ० स्त्री० (सं० ) घोड़ों होता है और उसी दिन चंद्रमा भी उसी के के रहने का स्थान, अस्तबल, तबेला।। साथ रहता है। घुड़साल (दे०)।
"आषाढस्य प्रथम दिवसे "-मेघः । अश्ववैद्य-संज्ञा, यौ० पु. ( सं० ) अषाढ़ी-संज्ञा, स्त्री. (सं० ) पापाढ़ की घोड़ों की चिकित्सा करने वाला वैद्य,
पूर्णिमा का दिवस जो त्यौहार की तरह अश्वचिकित्सक।
माना जाता है। अश्वशिक्षक-संज्ञा, यौ० पु. ( सं० )| अष्ट-वि० (सं० ) पाठ, संख्या ८ । सवार, चाबुक।
अष्टक-संज्ञा, पु० (सं०) आठ वस्तुओं अश्व-सेवक-संज्ञा, यौ० पु. ( सं० ) का संग्रह, आठ की पूर्ति, वह स्तोत्र या साईस, घोड़ों का नौकर ।
काव्य जिसमें पाठ श्लोक या छंद हों।
हवन करते थे।
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