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प्रष्टकमल १९१
अष्टवर्ग अष्टकमल-संज्ञा, पु. यौ० (सं० ) मूला- अष्टधातु-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) आठ धार से ललाट तक के पाठ चक्र विशेष जो धातुएं, सोना, चाँदी, ताँबा, राँगा, जस्ता, देह में रहते हैं ( हठ योग)।
सीसा, लोहा, पारा। प्रष्टकर्ण-संज्ञा, पु. यौ० (सं० ) आठ अष्टपदी-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं० ) आठ कान वाला, ब्रह्मा, प्रजापति, विधि, पदों या चरणों का एक छंद या गीत, विरंचि, बिधाता।
मकड़ी। अष्टका-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) अष्टमी, अष्टमी
अष्टपाद-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) शरभ, के दिन का कृत्य, अष्टका याग, अगहन,
शारदूल, लूता, मकड़ी। पूस, माव, तथा, फागुन मासों की अष्टमी
अष्टप्रकृति-संज्ञा, स्त्री० या० (सं० ) राज्य ( कृष्णपक्ष ) इन तिथियों में पितृश्राद्ध करने
के आठ प्रमुख कार्यकर्ता या कर्मचारी-सुमंत्र से पितरों की विशेष तृप्ति होती है।
पंडित, मंत्री, प्रधान, सचिव, अमात्य,
प्राविवाक, और प्रतिनिधि ।। अष्टकुल-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) सपों के
अष्टप्रहर-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) आठ पाठ कुल, शेष, बासुकी, कंबल, कर्को
पहर। टक, पद्म, महापद्म, शंख, और कुलिक
(दे० ) पाठयाम, रात दिन के पाठ भाग । (पुराण)।
अष्टभुजा-- संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं० ) अष्टवाहु अष्टकृष्ण - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) श्रीकृष्ण
वाली देवी, दुर्गा, देवी, पार्वती। की आठ मूर्तियाँ या दर्शन, श्रीनाथ, नवनीत
संज्ञा, स्त्री० अष्टभुजी (दे० )। प्रिया, मथुरानाथ, विठ्ठलनाथ, द्वारकानाथ,
अष्टभुजक्षेत्र--संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) वह गोकुलनाथ, गोकुलचन्द्र और मदनमोहन
क्षेत्र जिसमें आठ किनारे और कोण हों। ( वल्लभीय संप्र०)।
अष्टम-वि० पु० (सं० ) पाठवाँ । प्रष्टछाप-संज्ञा, पु० (सं० प्रष्ट +छाप ---
अष्टमंगल-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) पाठ हि.) वल्लभ स्वामी और विट्ठलनाथ के मांगलिक द्रव्य या पदार्थ, सिंह, वृष, नाग, चार चार शिष्य, कवि, जिन्होंने कृष्णकाव्य कलश, पंखा, वैजयंती, भेरी, और दीपक । की ब्रजभाषा में बड़ी सुन्दर रचनायें अष्टमी-संज्ञा, स्त्री० (सं०) शुक्ल या कृष्णा की हैं । सूरदास, कृष्णदास, परमानंददास, पक्ष की आठवीं तिथि, जब चंद्रमा की कुंभनदास ये चार वल्लभ-शिष्य हैं और
आठवीं कला की क्रिया हो।। नन्ददास, चतुर्भजदास, गोविंदस्वामी, छीत अष्टमृति-संज्ञा, पु० यौ० (सं) शिव, शिव स्वामी, ये विट्ठल-शिष्य हैं।
की पाठ मूर्तियां-सर्व, भव, रुद्र, उग्र, भीम, प्रधद्रव्य-संज्ञा, पु. चौ० (सं० ) हवन के पशुपति, ईशान, और महादेव । काम में आने वाले पाठ सुगंधित पदार्थ- | अष्टयाम-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) पाठ अश्वत्थ, गूलर, पाकर, वट, तिल, सरसों, पहर, रात-दिन । पायस और घी, या अष्टगंध-धूप के पाठ अष्टयाग-संज्ञा, पु. यो० (सं० ) पाठ पदार्थ-सुगंधवाला, गूगुल, चंदन, कपूर, | प्रकार के यज्ञ, अायज्ञ। भगर, देवदारु, जटामापी, घी।
अष्टवर्ग-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) पाठ अष्टधाती- वि० (सं० अष्टधातु ) आठ | औषधियों का समाहार, जीवक, ऋषभक, धातुओं से बना हुआ, दृढ़, मज़बूत, | मेदा, महामेदा, काकोली, तीर काकोली, उत्पाती, उपद्रवी, वर्णसंकर।
ऋद्धि और वृद्धि । ज्योतिष का एक गोचर,
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