Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१८ उ० ६ सू० २ परमाणौ वर्णादिनिरूपणम्
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एगर से सिय दुरसे' स्यात् एकरसः द्विपदेशिकः स्कन्धः, स्यात् द्विरसः द्विपदेशिकः स्कन्धः 'सिय दुफा से ' स्यात् द्विस्पर्शः स्कन्धः, एक स्पर्शवान् स्कन्धस्तु कदाचिदपि न स्यात् यतः स्कन्धोत्पाद के एकस्मिन् परमाणौ कारणभूते अविरुद्धस्पर्शद्वसत्वेन कार्येपि स्पर्शद्वयस्यैव संभवः, 'कारणगुणाः कार्यगुणान् आरभन्ते' इति नियमात् । अत्रापि एकपदेशिकस्यैव शीतस्निग्धत्वादिभावेन त एव चत्वारो विकल्पा भवन्ति । 'सिय तिफासे' स्यात् त्रिस्पर्शः स्कन्धः, इह चत्वारो विकल्पा भवन्ति तथाहि प्रदेशद्वयस्यापि शीतभावे एकस्य च तत्र स्निग्धभावात् द्वितीयऔर कदाचित् दो गंध गुणवाला भी होता है । 'सिय एगर से सियदूरसे' कदाचित् वह एकरसवाला होता है । और कदाचित् दो रसोंवाला भी होता है । 'सियदुफासे' कदाचित् वह दो स्पर्शवाला होता है एक स्पर्शवाला पुद्गल कभी भी नहीं होता है। क्योंकि स्कन्धोत्पादक एक परमाणु में अविरुद्धस्पर्शद्वय की सत्ता होती है । अतः कारणभूत परमाणुद्रय से जायमान स्कन्ध में भी स्पर्शद्वय का ही संभव है । क्योंकि 'कारणगुणाः कार्यगुणान् आरभन्ते' ऐसा नियम है । जिस प्रकार से एक परमाणु में शीतस्निग्ध आदि के सद्भाव से चार विकल्प पहिले प्रकट किये गये हैं वे ही चार विकल्प यहां पर भी होते हैं । 'सिय तिफासे' कदाचित् वह तीन स्पर्शे वाला होता है यहां चार विकल्प होते हैं- जैसे दोनों प्रदेशों में शीतस्पर्श भी हो सकता है। ferrer भी हो सकता है। और रूक्षस्पर्श भी हो सकता है। इस प्रकार दोनों प्रदेशों में शीतस्पर्श के साथ एक परमाणु के स्निग्धभाव
पथ हाय छे. “सिय एगरसे खिय दूरसे" हाथित् ते येऊ रसवाणी याशु होय छे भने उहायित मे रसोवाणी पाय होय छे. सिय दुफ से" हाथ ते એ સ્પર્શવાળા હાય છે. એક સ્પવાળા સ્કંધ કાઇપણ સમયે થતું નથી. કેમ કેક'ધને ઉત્પન્ન કરનાર એક પરમાણુમાં વિરૂદ્ધ નહી તેના બે સ્પર્ધાની સત્તા હોય છે. તેથી કારણરૂપ એ પરમાણુથી થવાવાળા સ્કંધમાં પણ બે સ્પના ०४ सलव छे. प्रेम है- "कारणगुणाः कार्यगुणान् आरभन्ते" अरथुगु अर्थ:ગુણાને પ્રાપ્ત કરે છે એ પ્રમાણે નિયમ છે.
જે રીતે એક પરમાણુમાં શીત, સ્નિગ્ધ વિગેરેના સદ્ભાવથી પહેલા यार विरुदप अतावेस छे. ते यार वो अडियां पशु थाय छे. “सिय ति फासे” हाथित् ते त्रषु स्पर्शवाणी होय छे. मडियां यार विश्येो मने છે.-જેવી રીતે બન્ને પ્રદેશેામાં શીતપશ પણ થઈ શકે છે, સ્નિગ્ધ પશ
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩