Book Title: Abhidhan Chintamani
Author(s): Hemchandracharya, Nemichandra Siddhant Chakravarti, Hargovind Shastri
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कलिकालसर्वज-श्रीहेमचन्द्राचार्यविरचितः अभिधानचिन्तामणिः सटिप्पण 'मणिप्रभा' हिन्दीव्याख्याविमर्शोपेतः Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्रीः॥ विद्याभवन संस्कृत ग्रन्थमाता कलिकालसर्वज्ञ-श्रीहेमचन्द्राचार्यविरचितः अभिधानचिन्तामणिः सटिप्पण 'मणिप्रभा' हिन्दीव्याख्याविमर्शोपेतः व्याख्याकारःसाहित्य-व्याकरणाचार्य-साहित्यरत्न-रिसर्चस्कॉलर-मिश्रोपाहप० श्रीहरगोविन्दशास्त्री 'भारा'स्थ-राजकीय-संस्कृतोच्चविद्यालय-साहित्याध्यापकः ___ प्रस्तावनालेखकः डॉ० नेमिचन्द्रशास्त्री . एम. ए. (हि० प्रा० सं० ), पी-एच० डी० (अध्यक्ष, संस्कृत एवं प्राकृत विभाग, एच० डी० जैन कालेज, पारा ) चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी-१ Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशक चौखम्बा विद्याभवन ( भारतीय संस्कृति एवं साहित्य के प्रकाशक तथा वितरक ) चौक ( बनारस स्टेट बैंक भवन के पीछे ) पो० बा० नं० १०६९, वाराणसी २२१००१ दूरभाष : ३२०४०४ सर्वाधिकार सुरक्षित द्वितीय संस्करण १९९६ मूल्य २०.-... अन्य प्राप्तिस्थान चौखम्बा सुरभारती प्रकाशन के० ३७/११७, गोपालमन्दिर लेन पो० बा० नं० ११२९, वाराणसी २२१००१ दूरभाष : ३३३४३१ चौखम्बा संस्कृत प्रतिष्ठान ३८ यू. ए., बंगलो रोड, जवाहरनगर पो० बा० नं० २११३ दिल्ली ११०००७ दूरभाष : २३६३९१ मुद्रक फूल प्रिन्टर्स - वाराणसी Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ THE : VIDYABHAWAN SANSKRIT SERIES 109 ABHIDHĀNA CHINTAMANI OF S'RI HEMACHANDRĀCHARYA Edited with an Introduction Dr. NEMICHANDRA S'ASTRI M. A., Ph. D. AND The Maniprabha Hindi Commentary and Notes BY S'RI HARAGOVINDA SĀSTRĪ (Sabityacharya, Vyakararacharya, Sahityaratna and Sahityadhyapaka, ... Government Sanskrit High School, Arrah. ) CHOWKHAMBA VIDYABHAWAN VARANASI Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ CHOWKHAMBA VIDYABHAWAN (Orlonial Publishers & Distributors) CHOWK ( Behind The Beoares State Bank Building) Post Box No. 1069 VARANASI 221 001 Edition 1996 Also can be had'or CHAUKHAMBA SURBHARATI PRAKASHAN K. 37/117, Gopal Mandir Lane Post Box No. 1129 VARANASI 221001 Telephone : 333431 CHAUKHAMBA SANSKRIT PRATISHTHAN 38 U. A., Bungalow Road, Jawabarnagar Post Box No. 2113 DELHI 116001 Telephone : 236391 Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषय-प्रवेश विषय १ प्रस्तावना २ प्रामुख ३ सांकेतिक चिह्न ४ शब्द-सूची के संकेत ५ चक्रसूची ६ प्रथम देवाधिदेवकाण्ड ( श्लो० १-८६) ... ७ द्वितीय देवकाण्ड ( श्लो०१-२५०) .. ८ तृतीय मर्त्यकाण्डं ( श्लो०१-५६८) ... E चतुर्थ तिर्यकाण्ड ( श्लो०१-४२३ ) .. ..: . [चतुर्थ काण्ड में पृथिवीकायिक एकेन्द्रियजीववर्णन . (श्लो०१-१३४ ), अप्कायिक एकेन्द्रियजीववर्णन ( श्लो० - १३५-१६२), तेजःकायिक एकेन्द्रियजीववर्णन (श्लो० १६३१७१), वायुकायिक एकेन्द्रियजीववर्णन (श्लो० १७२-१७५), वनस्पतिकायिक एकेन्द्रियजीववर्णन (श्लो० १७६-२६७), द्वीन्द्रियजीववर्णन (श्लो० २६८-२७१३ ), त्रीन्द्रियजीववर्णन (श्लो० २७२ चतुर्थ चरण–२७५), चतुरिन्द्रियजीववर्णन (श्लो० २७६-२८१३ ), स्थलचर पञ्चेन्द्रियजीववर्णन ( श्लो० २८२ उत्तराई-२८१), खचर पञ्चेन्द्रियजीववर्णन (श्लो० २८२-४०८३ ), जलचर पञ्चेन्द्रियजीव- वर्णन (श्लो० ४०६ उत्तराई-४२०३ ) तथा सर्वोत्पत्तिजीवविभागवर्णन (श्लो० ४२१ उत्तराई-४२३ )।] Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२७ ३२ १० पञ्चम नारककाण्ड (श्लो०१-७) ... ११ षष्ठ सामान्यकाण्ड (श्लो०-१-१७८) .... [षष्ठकाण्ड में सामान्य शब्दवर्णन (श्लो०१-१६०३) अव्ययशब्दवर्णन (श्लो० १६१ उत्तराई–१७८)।] १२ परिशिष्ट ? १३ परिशिष्ट २ १४ मूलस्थ शब्द-सूची १५ शेषस्थ शब्द-सूची १६ विमर्श-टिप्पण्यादिस्थ शब्द-सूची Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना किसी भी भाषा की समृद्धि की सूचना उसके शब्दसमूह से मिलती है। भाषा ही क्या, किसी देश या राष्ट्र का सांस्कृतिक विकास भी उसकी शब्दराशि से ही आँका जा सकता है । जिस प्रकार किसी देश की आर्थिक सम्पत्ति या अर्थको उसकी भौतिकता का मापक होता है, उसी प्रकार किसी राष्ट्र का शब्दकोष उसकी बौद्धिक एवं मानसिक प्रगति का परिचायक होता है । अर्थार्जन का कारण है, । इसी प्रकार भाषा के वह भी मृत है और अर्थशास्त्र का सिद्धान्त है कि जो पूंजी कहीं छिपी रहती है या जो अर्थार्जन का हेतु नहीं है। इस प्रकार की पूंजी मृत है, अनुपयोगी है; किन्तु जिसे विधिपूर्वक व्यवसाय में लगाया जाता है, जो ऐसी पूंजी को ही सार्थक और जीवन्त कहा जाता है संसार में जो शब्दराशि इधर-उधर बिखरी पड़ी रहती है, है वह प्रयोगाभाव में भूगर्भ में छिपी हुई अर्थ-सम्पत्ति के समान निरुपयोगी । अतः इधर-उधर बिखरी हुई शब्द-सम्पत्ति को व्यवस्थित रूप देकर उसके सामर्थ्य का उपयोग कराना आवश्यक होता है । कोशकार वैज्ञानिक प्रणाली से समाज में यत्र-तत्र व्याप्त शब्दराशि को संकलित या व्यवस्थित कर कोशनिर्माण का कार्य करता है और निरुपयोगी एवं मृतशब्दावली को उपयोगी एवं जीवन्त बना देता है । यही कारण है कि प्राचीन समय से ही कोश साहित्य का प्रणयन होता आ रहा है। संस्कृत भाषा महती शब्द-सम्पत्ति से युक्त है, उसका शब्दकोश कभी न होनेवाली निधि के समान अक्षय अनन्त है । इसका भाण्डार सहस्राब्दियों से समृद्ध होता आ रहा है । अतएव शब्द के वाच्यार्थ, भावार्थ एवं तात्पर्यार्थ की प्रक्रिया के अभाव में शब्द का अर्थबोध संभव नहीं । शब्द तो भावों को ढोने का एक वाहन है। जब तक संकेत ग्रहण न हो, तब तक उसकी कोई उपयोगिता ही नहीं । एक ही शब्द संकेत भेद से भिन्न-भिन्न अर्थों का वाचक होता है । भर्तृहरि का मत है कि प्रत्येक व्यक्ति अपनी-अपनी नियत वासना के Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८ ) . . अनुसार ही अर्थ का स्वरूप निर्धारित करता है। वस्तुतः कोई एक निश्चित अर्थ शब्द का है ही नहीं । यथा प्रतिनियतवासनावशेनैव प्रतिनियताकारोऽर्थः, तत्त्वतस्तु कश्चिदपि नियतो नाभिधीयते-वाक्य० २, १३६ अतएव स्पष्ट है कि वक्ता अपनी बुद्धि के अनुरूप अर्थ में शब्द का प्रयोग करता है, किन्तु भिन्न-भिन्न श्रोता अपनी-अपनी बुद्धि के अनुसार शब्द का पृथक-पृथक् अर्थ ग्रहण करते हैं। ऐसी अवस्था में अर्थबोध के लिए संकेतग्रहण अत्यावश्यक है। संकेत-ग्रहण के अभाव में अर्थबोध की कोई भी व्यवस्था संभव नहीं है। आचार्यों ने संकेत-ग्रहण के उपायों का वर्णन करते हुए कहा है शक्तिग्रहं व्याकरणोपमानकोशाप्तवाक्याद् व्यवहारतश्च । वाक्यस्य शेषाद् विवृतेर्वदन्ति सान्निध्यतः सिद्धपदस्य वृद्धाः ।। अर्थात्-व्याकरण, उपमान, कोश, आप्तवाक्य, व्यवहार, वाक्यशेष, विवरण और प्रसिद्ध शब्द के सान्निध्य से संकेत-ग्रहण होता है। इनमें व्याकरण यौगिक शब्दों का व्युत्पत्ति द्वारा संकेत-ग्रहण कराने की क्षमता रखता है, पर रूढ़ और योगरूढ़ शब्दों का संकेत-ग्रहण व्याकरण द्वारा संभव नहीं। अतः कोश ही एक ऐसा उपाय है, जो सिद्ध, असिद्ध, यौगिक, रूढ़ या योगरूढ़ आदि सभी प्रकार के शब्दों का संकेत-ग्रहण करा सकता है। ___ कोशज्ञान शब्दों के संकेत को समझने के लिए अत्यावश्यक है। साहित्य में शब्द और शब्दों के उचित प्रयोगों की जानकारी के अभाव में रसास्वादन का होना संभव नहीं है। अतएव शब्दों के अभिधेय बोध के लिए कोश व्याकरण से भी अधिक उपयोगी है। कोश द्वारा अवगत वास्तविक वाच्यार्थ से ही लक्ष्य एवं व्यंग्यार्थ का अवबोध होता है। शब्दकोषों की परम्परा 'संस्कृत भाषा में कोशग्रन्थ लिखने की परम्परा बहुत प्राचीन है । वैदिक युग में ही कोशविषय पर ग्रन्थ लिखे जाने लगे थे। वेद-मन्त्रों के द्रष्टा ऋषिमहर्षि कोशकार भी थे । प्राचीन कोश ग्रन्थों के उद्धरणों को देखने से अवगत होता है कि प्राचीन कोश परवर्ती कोशों की अपेक्षा सर्वथा भिन्न थे। पुरातन समय में व्याकरण और कोश का विषय लगभग एक ही श्रेणी का था, दोनों ही शब्दशास्त्र के अंग थे। Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ _ विलुप्त कोशग्रन्थों में भागुरिकृत केश का नाम सर्वप्रथम आता है। अमरकोश की टीका सर्वस्व' में भागुरिकृत प्राचीन कोश के उद्धरण उपलब्ध होते हैं। सायणाचार्य की धातुवृत्ति में भागुरि के कोश का पूरा श्लोक उद्धृत है। पुरुषोत्तमदेव की 'भाषावृत्ति, सृष्टिधर की भाषावृत्ति टीका तथा प्रभावृत्ति' से अवगत होता है कि भागुरि के उस कोशमन्थ. का नाम 'त्रिकाण्ड' था । इनका एक 'भागुरि व्याकरण' नामक व्याकरण ग्रन्थ भी था। ये पाणिनि के पूर्ववर्ती हैं। भानुजिदीक्षित ने अपनो अमरकोश की टीका में आचार्य आपिशल का एक वचन उद्धृत किया है, जिसके अवलोकन से यह विश्वास होता है कि उन्होंने भी कोई कोशग्रन्थ अवश्य लिखा था। उणादि सूत्र के वृत्तिकार उज्ज्वलदत्त द्वारा उद्धत एक वचन से उक्त तथ्य की पुष्टि भी होती है । आपि. शल वैयाकरण भी थे तथा इनका स्थितिकाल पाणिनि से पूर्व है। केशव ने 'नानार्थार्णव संक्षेप' में शाकटायन के कोश विषयक वचन उद्धृत किये हैं, जिनसे इनके कोशकार होने की संभावना है। व्याडिकृत किसी विलुप्त कोश के उद्धरण भी अभिधान चिन्तामणि आदि कोशग्रन्थों की विभिन्न टीकाओं में मिलते हैं । श्री कीथ ने अपने संस्कृत साहित्य के इतिहास में लिखा है कि कात्यायन एक नाममाला के कर्ता, वाचस्पति शब्दार्णव के रचयिता और विक्रमादित्य संसारावर्त के लेखक थे। ___उपलब्ध संस्कृत कोश ग्रन्थों में सबसे प्राचीन और ख्यातिप्राप्त अमरसिंह का अमरकोश है । यह अमरसिंह बौद्ध धर्मावलम्बी थे। कुछ विद्वान् इन्हें जैन भी मानते हैं। इनकी गणना विक्रमादित्य के नवरत्नों में की गयी है । अतः इनका समय चौथी शताब्दी है । मैक्समूलर ने इनका समय ईस्वी छठी शती से पहले ही स्वीकार किया है। इनका कथन है कि अमरकोश का चीनीभाषा में एक अनुवाद छठी शताब्दी के पहले ही हो चुका था। डॉ. हार्नले ने इसका रचनाकाल ६२५-९४८ ई. के बीच माना है। कहा जाता है कि ये महायान सम्प्रदाय से सुपरिचित थे; अतः इनका समय सातवीं शती के उपरान्त होना चाहिए। १ सर्वानन्दविरचित टीका सर्वस्व भाग १ पृ० १९३ २ धातुवृत्ति भू धातु पृ० ३० ३ भाषावृत्ति ४।४।१४३ ४ गुरुपद हालदारः-व्याकरणदर्शनेर इतिहास पृ० ४९९ ५ अमरटीका शश६६ पृ०६८ Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १० ) अमरकोश का दूसरा नाम 'नामलिङ्गानुशासन' भी है। यह कोश बड़ी वैज्ञानिक विधि से संकलित किया गया है। इसमें समानार्थक शब्दों का संग्रह है और विषय की दृष्टि से इसका विन्यास तीन काण्डों में किया गया है । तृतीयकाण्ड में परिशिष्ट रूप में विशेष्यनिधन, संकीर्ण, नानार्थक शब्दों, अव्ययों एवं लिङ्गों को दिया गया है। इसकी अनेक टीकाओं में ग्यारहवीं शताब्दी में लिखी गयी क्षीरस्वामी की टीका बहुत प्रसिद्ध है । इसके परिशिष्ट के रूप में संकलित पुरुषोत्तमदेव का त्रिकाण्डशेष है, जिसमें उन्होंने विरल शब्दों का संकलन किया है । इन्होंने हारावली नाम का एक स्वतन्त्र कीशग्रन्थ भी लिखा है, इसमें ऐसे नवीन शब्दों पर प्रकाश डाला गया है, जिनका उल्लेख पूर्ववर्ती ग्रन्थों में नहीं हुआ है। इस कोश में समानार्थक और नानार्थक दोनों ही प्रकार के शब्द संगृहीत हैं । इस कोश के अधिकांश शब्द बौद्धग्रन्थों से लिये गये हैं । कवि और वैयाकरण के रूप में ख्यातिप्राप्त हलायुध ने 'अभिधानरत्नमाला' नामक कोशग्रन्थ ई० सन् ९५० के लगभग लिखा है । इस कोश में ८८७ श्लोक हैं | पर्यायवाची समानार्थक शब्दों का संग्रह इसमें भी है । ग्यारहवीं शताब्दी में विशिष्टाद्वैतवादी दाक्षिणात्य आचार्य यादव प्रकाश ने वैज्ञानिक ढंग का 'वैजयन्ती' कोश लिखा है । इसमें शब्दों को अक्षर, लिङ्ग FT प्रारम्भिक वर्णों के क्रम से रखा गया है । नवमी शती के महाकवि धनञ्जय के तीन कोश ग्रन्थ उपलब्ध हैंनाममाला, अनेकार्थ नाममाला और अनेकार्थ निघण्टु । नाममाला के अन्तिम पथ से इनकी विद्वत्ता के सम्बन्ध में सुन्दर प्रकाश पड़ता है : ब्रह्माणं समुपेत्य वेदनिनदव्याजात्तुषाराचलस्थानस्थावरमीश्वरं सुरनदीव्याजात्तथा केशवम् । अप्यम्भोनिधिशायिनं जलनिधिर्ध्वानोपदेशादहो फूत्कुर्वन्ति धनंजयस्य च भिया शब्दाः समुत्पीडिताः ॥ धनञ्जय के भय से पीडित होकर शब्द ब्रह्माजी के पास जाकर वेदों के निनाद के छल से, हिमालय पर्वत के स्थान में रहनेवाले महादेव को प्राप्त होकर उनके प्रति स्वर्गगङ्गा की ध्वनि के मिष से एवं समुद्र में शयन करने वाले विष्णु के प्रति समुद्र की गर्जना के छल से जाकर पुकारते हैं, यह नितान्त आश्चर्य की बात है। इसमें सन्देह नहीं कि महाकवि धनञ्जय का शब्दों के ऊपर पूरा अधिकार है । Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११ ) नाममाला छात्रोपयोगी सरल और सुन्दर शैली में लिखा गया कोश है। इसमें व्यावहारिक समानार्थक शब्द संगृहीत किये गये हैं। कोशकार ने २०० श्लोकों में ही संस्कृत भाषा की आवश्यक शब्दावली का चयन कर गागर में सागर भर देने को कहावत चरितार्थ की है। शब्द से शब्दान्तर बनाने की प्रक्रिया इस कोशग्रन्थ की निराली है। अमरकोश, वैजयन्ती प्रभृति किसी भी कोशकार ने इस पद्धति को नहीं अपनाया है। यथा-पृथ्वी के नामों के आगे धर शब्द या धर के पर्यायवाची शब्द जोड़ देने से पर्वत के नाम, पति शब्द या पति के समानार्थक स्वामिन् आदि शब्द जोड़ देने से राजा के नाम एवं रुह शब्द जोड़ देने से वृक्ष के नाम हो जाते हैं। इस पद्धति से सबसे बड़ा लाभ यह है कि एक प्रकार के पर्यायवाची शब्दों की जानकारी से दूसरे प्रकार के पर्यायवाची शब्दों की जानकारी सहज में हो जाती है । इस कोश में कुल १७०० शब्दों के अर्थ दिये गये हैं। इस पर १५ वीं शती के अमरकीर्ति का भाष्य भी उपलब्ध है। अनेकार्थ नाममाला में ४६ पद्य हैं। इसमें एक शब्द के अनेक अर्थों का प्रतिपादन किया गया है। अघ, अज, अंजन, अथ, अदि, अनन्त, अन्त, अर्थ, इति, कदली, कम्बु, चेतन, कीलाल, कोटि, क्षीर प्रभृति सौ शब्दों के नाना अर्थों का संकलन किया गया है। . ___ अनेकार्थ निघण्टु में २६८ शब्दों के विभिन्न अर्थ संग्रहीत हैं। इसमें एकएक शब्द के तीन-तीन, चार-चार अर्थ बताये गये हैं। ___ कोश साहित्य की समृद्धि की दृष्टि से बारहवीं शताब्दी महत्वपूर्ण है। इस शती में केशवस्वामी ने 'नानार्णवसंक्षेप' एवं 'शब्दकल्पद्रुम' की रचना की है। नानार्थार्णव कोश में एक शब्द के अनेक अर्थ दिये गये हैं और शब्दकल्पद्रुम में शब्दों की व्युत्पत्तियाँ भी निहित हैं। महेश्वर ने विश्वप्रकाश नामक कोशग्रन्थ की रचना की है। इनका समय ई० ११११ के लगभग माना गया है। अभयपाल ने 'नानाथरत्नमाला' नामक एक नानार्थक कोश लिखा है। इस शताब्दी में आचार्य हेमचन्द्र ने अभिधान चिन्तामणि, अनेकार्थसंग्रह, निघण्टुशेष एवं देशी नाममाला कोशों की रचना की है। इस शताब्दी में भैरवकवि ने अनेकार्थ कोश का भी निर्माण किया है। इस ग्रन्थ पर उनकी स्वयं की टीका भी है, जिसमें अमर, शाश्वत, हलायुध और धन्वन्तरि का उपयोग किया गया है। Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२) चौदहवीं शताब्दी में मेदिनिकर ने अनेकार्थ शब्दकोश की रचना की है। इस शब्दकोश का प्रमाण अनेक संस्कृत टीकाकारों ने 'इति मेदिनी' के रूप में उपस्थित किया है। हरिहर के मन्त्री इसगपद दण्डाधिनाथ ने नानाथरत्नमाला कोश लिखा है। इसी शताब्दी में श्रीधरसेन ने विश्वलोचन कोश की रचना की है । इस कोश का दूसरा नाम मुक्तावली कोश भी है। कोश की प्रशस्ति के अनुसार इनके गुरु का नाम मुनिसेन था। इस कोश में २४५३ श्लोक हैं । स्वर वर्ण और ककार आदि के वर्णक्रम से शब्दों का संकलन किया गया है। संस्कृत में अनेक नानार्थक कोशों के रहने पर भी इतना बड़ा और इतने अधिक अर्थों को बतलाने वाला दूसरा कोष नहीं है। सत्रहवीं शती में केशव दैवज्ञ ने कल्पद्रुम और अप्पय दीक्षित ने 'नामसंग्रहमाला' नामक कोश ग्रन्थ लिखे हैं। ज्योतिष के फलित तथा गणित दोनों विषयों के शब्दों को लेकर वेदांगराय ने 'पारंसी प्रकाश' नाम का कोश लिखा है। इनके अतिरिक्त महिप का 'अनेकार्थतिलक', श्रीमल्लभट्ट का 'आख्यातचन्द्रिका', महादेव वेदान्ती का 'अनादिकोश', सौरभी का 'एकार्थ नाममालायक्षरनाममाला कोश', राघव कवि का 'कोशावतंस', भोज का 'नाममाला कोश', शाहजी का 'शब्दरत्नसमुच्चय', कर्णपूर का 'संस्कृत-पारसीकप्रकाश' एवं शिवदत्त का 'विश्वकोश' अच्छे कोशग्रन्थ हैं। अभिधानचिन्तामणि के रचयिता आचार्य हेमचन्द्र ___ यह पहले ही लिखा गया है कि संस्कृत कोश-साहित्य के रचयिता हेमचन्द्र बारहवीं शताब्दी के लब्धप्रतिष्ठ विद्वान् हैं। वे असाधारण प्रतिभासम्पन्न व्यक्ति थे। इनका विशाल व्यक्तित्व वट वृक्ष के समान प्रसरणशील था। इन्होंने अपने पाण्डित्य की प्रखरकिरणों से साहित्य, संस्कृति और इतिहास के विभिन्न क्षेत्रों को आलोकित किया है। बारहवीं शती में गुजरात की सांस्कृतिक, राजनीतिक, सामाजिक आदि सभी परम्पराओं को इन्होंने एक नवीन दृष्टिकोण प्रदान किया है। गुजरात की प्रत्येक गतिविधि की भव्यता में उनका विशाल हृदय स्पन्दित है । ए० बी० लठे ने लिखा है-"हेमचन्द्राचार्य ने अमुक जाति या समुदाय के लिए अपना जीवन व्यतीत नहीं किया; उनकी कई कृतियाँ तो भारतीय साहित्य में महत्व का स्थान रखती हैं । वे केवल पुरातन पद्धति के अनुयायी नहीं थे। उनके जीवन के साथ तत्कालीन गुजरात का इतिहास गुंथा हुआ है। यद्यपि हेमचन्द्र विश्वजनीन और सार्व Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देशिक उपलब्धि हैं, तो भी उनका निवास सबसे अधिक गुजरात में हुआ। इसलिए उनके व्यक्तित्व का भी सर्वाधिक लाभ गुजरात को ही प्राप्त हुआ है। उन्होंने अपने ओजस्वी और सर्वाङ्गपूर्ण व्यक्तित्व से गुजरात को सँवारासजाया है और युग-युग तक जीवित रहने की जीवन्त शक्ति भरी है। सारे सोलकी वंश को अपनी लेखनी का अमृत पिला-पिलाकर अमर बताया है। गुर्जर इतिहास में इन्हें अद्वितीय स्थान प्राप्त है।" आचार्य का जन्म एवं बाल्यकाल ___ आचार्य हेमचन्द्र का जन्म विक्रम संवत् ११४५ कार्तिकी पूर्णिमा को गुजरात के अन्तर्गत धन्धुका नामक गाँव में हुआ था। यह गाँव वर्तमान में भाधर नदी के दाहिने तट पर अहमदाबाद से उत्तर-पश्चिम में ६२ मील की दूरी पर स्थित है। इनके पिता शैवधर्मानुयायी मोढ़कुल के वणिक थे। इनका नाम चाचदेव या चाचिगदेव था। चाचिगदेव की पत्नी का नाम पाहिनी (पाहिणी ) था। एक रात को पाहिनी ने सुन्दर स्पप्न देखा। उस समय वहाँ चन्द्रगच्छ के आचार्य देवचन्द्र सूरि पधारे हुए थे। पाहिनी देवी ने अपने स्वप्न का फल उनसे पूछा। आचार्य देवचन्द्र सूरि ने उत्तर दिया-'तुम्हें एक अलौकिक प्रतिभाशाली पुत्ररत्न की प्राप्ति होगी। यह पुत्र ज्ञान, दर्शन और चारित्र से युक्त होगा तथा साहित्य एवं समाज के कल्याण में संलग्न रहेगा।' स्वप्न के इस फल को सुनकर माता बहुत प्रसन्न हुई। ___ समय पाकर पुत्र का जन्म हुआ। इनकी कुलदेवी चामुण्डा और कुलयक्ष 'गोनस' था, अतः माता-पिता ने देवता के प्रीत्यर्थ उक्त दोनों देवताओं के आद्य अक्षर लेकर बालक का नाम चाङ्गदेव रखा। लाड़-प्यार से चाङ्गदेव का पालन-पोषण होने लगा। शिशु नाङ्गदेव बहुत होनहार था। पालने में ही उसकी भवितव्यता के शुभ लक्षण प्रकट होने लगे थे। ... एक बार आचार्य देवचन्द्र अणहिलपत्तन से प्रस्थान कर भव्य जनों के प्रबोध-हेतु धन्धुका गाँव में पधारे। उनकी पीयूषमयी वाणी का पान करने के लिए श्रोताओं और दर्शनार्थियों की अपार भीड़ एकत्र थी। पाहिनी भी चांग. देव को लेकर गुरुवंदना के लिए गयी। सहज रूप और शुभ लक्षणों से युक्त चांगदेव को देखकर आचार्य देवचन्द्र उस पर मुग्ध हो गये और पाहिनी से उन्होंने कहा-"बहिन ! इस चिन्तामणि को तुम मुझे अर्पित करो। इसके द्वारा समाज और साहित्य का बड़ा कल्याण होगा। यह यशस्वी आचार्य पद १ आचार्य भिक्षुस्मृति ग्रन्थ, द्वितीय खण्ड पृ० ७३ Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४ ) को प्राप्त करेगा।" आचार्य की उक्त वाणी को सुनकर पाहिनी देवी भ्याकुल हो गयी। माता की ममता ने उसके हृदय को मथ डाला, अतः वह गद्गद कंठ से बोली-'प्रभो! यह तो मेरा प्राणाधार है। इस कलेजे के टुकड़े के बिना मेरा जीवित रहना संभव नहीं। दूसरी बात यह भी है कि पुत्र के ऊपर माता-पिता दोनों का अधिकार होता है, अतएव इसके पिता की आज्ञा भी अपेक्षित है। इस समय इसके पिता ग्रामान्तर को गये हैं। उनकी अनुमति के बिना मैं अकेली इस पुत्र को देने में असमर्थ हूँ।' कहा जाता है कि पाहिनी जैन कुल की थी और चाचदेव शैव । अतः पाहिनी को यह आशा भी थी कि उसका पति जैनाचार्य को पुत्र देना शायद ही पसन्द करेगा। - आचार्य देवचन्द्र ने चांगदेव की प्रतिभा की भूरि-भूरि प्रशंसा की तथा उसके द्वारा सम्पन्न होनेवाले कार्यों का भव्य रूप उपस्थित किया, जिससे उपस्थित सभी समाज प्रसन्न हुआ । अनेक व्यक्तियों ने साहित्य और शासन की प्रभावना के हेतु उस पुत्र को आचार्य देवचन्द्र सूरि को समर्पित कर देने का अनुरोध किया। पाहिनी ने उस अनुरोध को स्वीकार किया और उसने साहसपूर्वक उस शिशु को आचार्य को सौंप दिया। आचार्य इस भविष्णु बालक को प्राप्त कर अत्यन्त प्रसन्न हुए और उन्होंने बालक से पूछा-'वत्स ! तू हमारा शिष्य बनेगा ?' चांगदेव ने निर्भयतापूर्वक उत्तर दिया-'जी हाँ, अवश्य बनूँगा।' इस उत्तर से आचार्य बहुत प्रसन्न हुए। उनके मन में यह आशंका लगी हुई थी कि चाचिग यात्रा से वापस लौटने पर कहीं इसे छीन न ले। अतः वे उसे अपने साथ लेकर कर्णावती पहुंचे और वहाँ उदयन मन्त्री के यहाँ उसे रख दिया। उदयन उस समय जैनधर्म का सबसे बड़ा प्रभावशाली व्यक्ति था। अतः उसके संरक्षण में चांगदेव को रखकर आचार्य देवचन्द्र चिन्तामुक्त हुए। चाचिग जब ग्रामान्तर से लौटा तो पुत्रसम्बन्धी समाचार को सुनकर बहुत दुःखी हुआ और पुत्र को वापस लाने के लिए तत्काल ही कर्णावती को चल दिया। पुत्र के अपहार से वह बहुत दुःखी था, अतः देवचन्द्राचार्य की पूरी भक्ति भी न कर सका। ज्ञानराशि आचार्य तत्काल उसके मन की बात समझ गये, अतः उसका मोह दूर करने के लिए अमृतमयी वाणी में उपदेश दिया। इसी बीच आचार्य ने उदयन मन्त्री को भी अपने पास बुला लिया। मन्त्रिवर ने बड़ी चतुराई के साथ चाचिग से वार्तालाप किया और धर्म के बड़े भाई होने के नाते श्रद्धापूर्वक उसे अपने घर ले गया और बड़े सस्कार से भोजन कराया। तदनन्तर उसकी गोद में चांगदेव को बैठाकर पञ्चाङ्ग सहित Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीन दशाले और तीन लाख रुपये भेंट किये। इस सम्मान को पाकर चाचिग द्रवीभूत हो गया और स्नेह-विह्वल हो बोला-'आप तो तीन लाख रुपये देते हुए उदारता के छल से कृपणता प्रकट कर रहे हैं। मेरा यह पुत्र अमूल्य है, परन्तु साथ ही मैं -देखता हूँ कि आपका सम्मान उसकी अपेक्षा कहीं अधिक मूल्यवान् है। अतः इस बालक के मूल्य में अपना सम्मान हो बनाये रखिये । आपके द्रव्य का तो मैं शिव-निर्माल्य के समान स्पर्श भी नहीं कर सकता हूँ। चाचिग के उक्त कथन को सुनकर उदयन मन्त्री बोला-आपके पुत्र का अभ्युदय मुझे सौंपने से नहीं होगा। आप इसे गुरुदेव को समर्पण करें, तो यह गुरुपद प्राप्त कर बालेन्दु के समान त्रिभुवन-पूज्य होगा। आप पुत्रहितैषी हैं, पर सोचिये कि साहित्य और संस्कृति के अभ्युत्थान के लिए इस प्रकार के प्रतिभाशाली व्यक्तियों को कितनी आवश्यकता है ? मन्त्री के इस कथन को सुनकर चाचिग ने कहा-'आपका वचन प्रमाण है, मैंने अपना पुत्र गुरुजी को सौंपा। अब उनकी जैसी इच्छा हो, इसका निर्माण करें। शिशु की शिक्षा का प्रबन्ध स्तम्भतीर्थ ( खम्भात) में सिद्धराज के मन्त्री उदयन के घर पर ही किया गया। दीक्षा-ग्रहण एवं शिक्षा .. "हेमचन्द्र की प्रव्रज्या के सम्बन्ध में मत-भिन्नता है। प्रभावकचरित में पाँच वर्ष की अवस्था में उनका दीक्षित होना लिखा है। जिनमण्डनकृत 'कुमारपालप्रबन्ध' में विक्रम संवत् ११६४ में दीक्षित होने का उल्लेख प्राप्त होता है। प्रबन्धचिन्तामणि, पुरातनप्रबन्धसंग्रह, प्रबन्धकोश एवं कुमारपालप्रतिबोध आदि ग्रन्थों से आठ वर्ष की अवस्था में दीक्षित होना सिद्ध होता है। हमारा अनुमान है कि चांगदेव-हेमचन्द्र की दीक्षा आठ वर्ष की अवस्था में ही सम्पन्न हुई होगी। प्रव्रज्या ग्रहण करने के उपरान्त चांगदेव का नाम सोमचन्द्र रखा गया। सोमचन्द्र की प्रतिभा अत्यन्त प्रखर, सूक्ष्म और प्रसरणशील थी। थोड़े ही समय में इन्होंने तर्क, व्याकरण, काव्य, अलङ्कार, छन्द, आगम आदि ग्रन्थों का बहुत गहरा अध्ययन किया। इनके पाण्डित्य का लोहा सभी विद्वान् स्वीकार करते थे। . १ सोमचन्द्रस्ततश्चन्द्रोज्ज्वलप्रशाबलादसौ । तर्कलक्षणसाहित्यविद्याः पर्यच्छिनद् द्रुतम् ॥ -प्रभावकचरितम्-हेमचन्द्र सूरि प्रबन्ध श्लो० ३७ Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६ ) प्रभावकचरित से यह भी ज्ञात होता है कि सोमचन्द्र ने अपने गुरु देवचन्द्र के साथ देश-देशान्तरों में परिभ्रमण कर शास्त्रीय एवं व्यावहारिक ज्ञान की वृद्धि की थी। हमें इनका नागपुर में धनद नामक सेठ के यहाँ तथा देवेन्द्र सूरि और मलयगिरि के साथ गौड देश के खिल्लर ग्राम में निवास करने का उल्लेख मिलता है। यह भी बताया जाता है कि हेमचन्द्र ने ब्राह्मी देवीजो विद्या की अधिष्ठात्री मानी गयी है-की साधना के निमित्त कश्मीर की एक यात्रा आरम्भ की। वे इस साधना द्वारा अपने समस्त प्रतिद्वन्द्वियों को पराजित करना चाहते थे। मार्ग में जब ताम्रलिप्ति होते हुए रेवन्तगिरि पहुँचे तो नेमिनाथ स्वामी की इस पुण्य भूमि में इन्होंने योगविद्या की साधना आरम्भ की । इस साधना के अवसर पर ही सरस्वती उनके सम्मुख उपस्थित हुई और कहने लगी-'वत्स ! तुम्हारी समस्त मनःकामनाएँ पूर्ण होंगी। समस्त प्रतिवादियों को पराजित करने की क्षमता तुम्हें प्राप्त होगी।' इस वाणी को सुनकर हेमचन्द्र बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने अपनी आगे की यात्रा स्थगित कर दी और वापस लौट आये। सूरिपद-प्राप्ति सोमचन्द्र की अद्भुत प्रतिभा एवं पाण्डित्य का प्रभाव सभी पर था । अतः वि० सं० १९६६ में २१ वर्ष की अवस्था में ही उन्हें सूरिपद से विभूषित कर दिया गया। अब हेमचन्द्र सोमचन्द्र नहीं रहे, बल्कि आचार्य हेमचन्द्र बन गये। आचार्य हेम और सिद्धराज जयसिंह __ आचार्य हेमचन्द्र ने बिना किसी भेदभाव के जनजागरण और जीवनोस्थान के कार्यों में अपने को समर्पित कर दिया था। प्रत्येक अवसर पर वे नयी सूझ-बूझ से काम लेते थे और सदा के लिए अपनी तलस्पर्शी मेधा का एक चमत्कारिक प्रभाव छोड़ देते थे। संभवतः चेतना की इस विलक्षणता ने ही महापराक्रमी गुर्जरेश्वर जयसिंह सिद्धराज को आकृष्ट किया था। आचार्य हेमचन्द्र का सिद्धराज के साथ प्रथम परिचय कब हुआ, इसका प्रामाणिक रूप से तो कोई भी विवरण प्राप्त नहीं होता है, पर अनुमान ऐसा है कि मालक-विजय के अनन्तर विक्रम संवत् ११९१-११९२ में आशीर्वाद देने के लिए आचार्य हेम सिद्धराज की राजसभा में पधारे थे। सिद्धराज मालव के १ विशेष के लिए देखें-Life of Hemchandra, IIch. तथा काव्यानुशासन की अंग्रेजी प्रस्तावना P.P. CCLXVI-CCLXIX. Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७ ) अनुकरण पर गुजरात में हर प्रकार की उन्नति करने का इच्छुक था । उस समय मालव में राजा भोज का सरस्वतीप्रेम प्रसिद्ध था । भोजराज संस्कृत का स्वयं प्रकाण्ड पण्डित था । विद्वानों को राजाश्रय देकर शैक्षणिक और सांस्कृतिक विकास के लिए अहर्निश प्रयास करता रहता था । इस कार्य में उसे हेमचन्द्र से अपूर्व सहयोग मिला । हैमी प्रतिभा का स्पर्श पा गुजरात की सांस्कृतिक एवं साहित्यिक चेतना उत्तरोत्तर विकसित होने लगी । सिद्धराज के आदेश से हेमचन्द्र ने सिद्धहैम नाम का एक नया व्याकरण ग्रन्थ लिखा, यह ग्रन्थ गुजरात का व्याकरण कहलाता है । इस मन्थ को तैयार करने के लिए कश्मीर से व्याकरण के आठ ग्रन्थ मंगवाये गये थे' । आचार्य हेमचन्द्र और सिद्धराज समवयस्क थे। सिद्धराज का जन्म हेमचन्द्र से दो वर्ष पूर्व हुआ था। दोनों में घनिष्ठ मित्रता थी । सिद्धराज राष्ट्रीय नेता, शासक, संरक्षक के रूप में सम्माननीय थे तो हेमचन्द्र धार्मिक, चारित्रिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से प्राणदायी थे । आचार्य हेमचन्द्र और कुमारपाल हेमचन्द्र का कुमारपाल के साथ गुरु-शिष्य का सम्बन्ध था । उन्होंने सात वर्ष पहले ही कुमारपाल को राज्य प्राप्त होने की भविष्यवाणी की थी । एक बार जब राजकीय पुरुष उसे पकड़ने आये तो हेमचन्द्र ने उसे ताड़पत्रों मैं छिपा दिया था और उसके प्राणों की रक्षा की थी। कहा जाता है कि सिद्धराज को कोई पुत्र नहीं था; इससे उनके पश्चात् गढ़ी का झगड़ा खड़ा हुआ और अन्त में कुमारपाल नामक व्यक्ति वि० सं० ११९४ में मार्गशीर्ष कृष्ण १४ को राज्याभिषिक्त हुआ । सिद्धराज जयसिंह कुमारपाल को मारने के प्रयत्न में था, पर वह किसी प्रकार बच गया । राजा बनने के समय कुमारपाल की अवस्था ५० वर्ष की थी। अतः उसने अपने अनुभव और पुरुषार्थ द्वारा १ देखें - पुरातत्त्व (पुस्तक चतुर्थं ) - गुजरात नुं प्रधान व्याकरण पृ० ६१ । गौरीशंकर ओझा ने अपने राजपूताने के इतिहास भाग १ पृ० १९६ पर लिखा है कि 'जयसिंह ने यशोवर्मा को वि० सं० ११९२ - ११९५ के मध्य हराया था । उज्जयिनी के शिलालेख से ज्ञात होता है कि मालवा वि० सं० ११९५ ज्येष्ठ वदी १४ को सिद्धराज जयसिंह के अधीन था ।' इस उल्लेख के आधार पर 'सिद्ध हैम' व्याकरण की रचना सं० १९९० के लगभग हुई होगी । बुद्धि प्रकाश, मार्च १९३५ के अंक में प्रकाशित २ -- नागरीप्रचारिणी पत्रिका भाग ६ पृ० ४४३-४६८ (कुमारपाल को कुल में हीन समझने के कारण ही सिद्धराज उसे मारना चाहता था । ) २ अ० चि० भू० Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८ ) . . राज्य की सुदृढ़ व्यवस्था की। यद्यपि यह सिद्धराज के समान विद्वान् और विद्यारसिक नहीं था, तो भी राज्यव्यवस्था के पश्चात् धर्म और विद्या से प्रेम करने लगा था। हेमचन्द्र के प्रति कुमारपाल राजा होने के पहले से ही श्रद्धावनत था, पर अब राजा होने पर उसका सम्बन्ध उनके साथ घनीभूत होने लगा। डा. बुल्हर ने कुमारपाल और हेमचन्द्र के सम्बन्ध का विवेचन करते हुए लिखा है कि हेमचन्द्र कुमारपाल से तब मिले, जब राज्य की समृद्धि और विस्तार हो गया था। डा० बुल्हर की इस मान्यता की आलोचना काम्यानुशासन की भूमिका में डा० रसिकलाल पारिख ने की है और उन्होंने उक्त कथन को विवादास्पद सिद्ध किया है। जिनमण्डन ने कुमारपालप्रबन्ध में दोनों के मिलने की घटना पर प्रकाश डालते हुए लिखा है कि एक बार कुमारपाल जयसिंह से मिलने गया था। मुनि हेमचन्द्र को उसने सिंहासन पर बैठे देखा । वह अत्यधिक आकृष्ट हुभा और उनके भाषण-कक्ष में जाकर भाषण सुनने लगा। उसने पूछा-'मनुष्य का सबसे बड़ा गुण क्या है ?' हेमचन्द्र ने कहा-'दूसरों की स्त्रियों में माँ-बहन की भावना रखना सबसे बड़ा गुण है।' यदि यह घटना ऐतिहासिक है तो अवश्य ही वि० सं० ११६९ के आसपास घटी होगी; क्योंकि उस समय कुमारपाल को अपने प्राणों का भय नहीं था। आचार्य हेमचन्द्र ने कुमारपाल के चारित्रिक पक्ष को बहुत परिष्कृत किया था। ऐश्वर्य के विलासमय और उत्तेजक वातावरण में रहते हुए भी उसे राजर्षि एवं परमाहत बना दिया था। मांस, मदिरा आदि सप्त व्यसनों से उसे मुक्ति दिलायी थी। कुमारपाल ने अपने अधीन १८ राज्यों में 'अमारि'-अहिंसा की घोषणा की थी। इसमें सन्देह नहीं कि कुमारपाल की राजकीय सफलता, सामाजिक नवसुधार की योजना, साहित्य एवं कला के संरक्षण-संवर्धन के संकल्प के पीछे आचार्य हेमचन्द्र का व्यक्तित्व, उनकी प्रेरणा एवं उनका वरद हस्त था। १ See Note 53 in Dr. Bulher's Life of Hemchandra P.P. 83-84 २ कुमारपाल प्रबन्ध पृ० १८-२२ see the Life of Hemchandra, Hemchandra's own account of Kumarpal's conversion pp. 32-40 देखें--कुमारपाल प्रतिबोध पृ० ३ श्लो० ३००-४०० Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६ ) कलात्मक निर्माण के प्रेरक आचार्य हेमचन्द्र की प्रेरणा से पश्चिम तथा पश्चिमोत्तर भारत में अनेक मन्दिरों एवं विहारों का निर्माण हुआ । संसारप्रसिद्ध ऐतिहासिक सोमनाथ के मन्दिर का पुनर्निर्माण आचार्य हेमचन्द्र की प्रेरणा से हुआ था । प्रबन्धचिन्तामणि के रचयिता मेरुतुंग ने इस घटना का उल्लेख किया है । पञ्चकुल के मन्दिर के सम्पन्न हो जाने पर आचार्य हेमचन्द्र और कुमारपाल दोनों ही देवदर्शन करने गये थे | आचार्य हेमचन्द्र के प्रभाव एवं प्रेरणा से गुजरात तथा राजस्थान में बने मन्दिर एवं विहार कला के उत्कृष्ट नमूने हैं । शिष्यवर्ग आचार्य हेमचन्द्र जैसे प्रतिभाशाली व्यक्तित्व सम्पन्न और उत्तमोत्तम गुणों के धारक थे, वैसा ही उनका शिष्य-समूह भी था । रामचन्द्र सूरि, बालचन्द्र सूरि, गुणचन्द्र सूरि, महेन्द्र सूरि, वर्धमान गणी, देवचन्द्र, उदयचन्द्र, एवं यश-अन्द्र उनके प्रख्यात शिष्य थे। इन्होंने हेमचन्द्र की कृतियों पर टीकाएँ तथा वृत्तियाँ लिखी हैं, साथ ही इनके स्वतन्त्र ग्रन्थ भी उपलब्ध हैं । रामचन्द्र सूरि इन सभी शिष्यों में अग्रणी थे । उनमें कवि की प्रखर प्रतिभा एवं साधुस्व अलौकिक तेज था । कुमारविहारशतक के रचयिता ये ही हैं। इन्हें 'प्रबन्धशत - कर्ता' कहा जाता है। रामचन्द्र और गुणचन्द्र सूरि ने मिलकर 'नाव्यदर्पण' की रचना की है । महेन्द्र सूरि ने अभिधानचिन्तामणि, अनेकार्थनाममाला, देशीनाममाला और निघण्टु पर टीकाएँ लिखी हैं । देवचन्द्र सूरि ने 'चन्द्रलेखा - विजयप्रकरण' और बालचन्द्र गणि ने 'स्नातस्या' नामक काव्य की रचना की है। साहित्य हेमचन्द्र की साहित्य साधना बहुत विशाल एवं व्यापक है । जीवन को संस्कृत, संवर्द्धित और संचालित करनेवाले जितने पहलू होते हैं, उन सभी को उन्होंने अपनी लेखनी का विषय बनाया है । व्याकरण, छन्द, अलङ्कार, कोश एवं काव्य विषयक इनकी रचनाएँ बेजोड़ हैं। इनके ग्रन्थ रोचक, मर्मस्पर्शी एवं सजीव हैं । पश्चिम के विद्वान् इनके साहित्य पर इतने मुग्ध हैं कि इन्होंने इन्हें ज्ञान का महासागर कहा है । इनकी प्रत्येक रचना में नया दृष्टिकोण और नयी शैली वर्तमान है। श्री सोमप्रभ सूरि ने इनकी सर्वाङ्गीण प्रतिभा की प्रशंसा करते हुए लिखा है Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २० ) क्लृप्तं व्याकरणं नवं विरचितं छन्दो नवं द्वथाश्रयालंकारौ प्रथितौ नवौ, प्रकटितं श्रीयोगशास्त्रं नवम् । तर्कः संजनितो नवो, जिनवरादीनां चरित्रं नवं बद्धं येन न केन केन विधिना मोहः कृतः दूरतः॥ इससे स्पष्ट है कि हेम ने व्याकरण, छन्द, याश्रय काव्य, अलङ्कार, योगशास्त्र, स्तवन काव्य, चरित कान्य प्रभृति विषय के ग्रन्थों की रचना की है। व्याकरण व्याकरण के क्षेत्र में सिद्धहेमशब्दानुशासन, सिद्धहेमलिङ्गानुशासन एवं धातुपारायण ग्रन्थ उपलब्ध हैं। इनके व्याकरण ग्रन्थ की प्रशंसा करते हुए प्रबन्धचिन्तामणि में लिखा है भ्रातः संवृणु पाणिनिप्रलपितं कातन्त्रकन्था वृथा, . मा कार्षीः कटु शाकटायनवचः क्षुद्रेण चान्द्रेण किम् .. किं कण्ठाभरणादिभिर्वठरयत्यात्मानमन्यैरपि, श्रूयन्ते यदि तावदर्थमधुरा श्रीसिद्धहेमोक्तयः ।। हैम व्याकरण (१) मूलपाठ, (२) धातुपाठ, (३) गणपाठ, (४) उणादिप्रत्यय एवं (५) लिङ्गानुशासन इन पाँचों अंगों से परिपूर्ण है। सिद्धहेमशब्दानुशासन राजा सिद्धराज जयसिंह की प्रेरणा से लिखा गया है। इस ग्रन्थ में आठ अध्याय और ३५६६ सूत्र हैं। आठवाँ अध्याय प्राकृत व्याकरण है, इसमें १११९ सूत्र हैं। ___ आचार्य हेम ने इस व्याकरण ग्रन्थ पर छः हजार श्लोक प्रमाण लघुवृत्ति और अठारह हजार श्लोक प्रमाण बृहद्वृत्ति लिखी है। बृहद्वृत्ति सात अध्यायों पर ही प्राप्त होती है, आठवें अध्याय पर नहीं है। द्वथाश्रय काव्य द्वयाश्रय नाम से ही स्पष्ट है कि उसमें दो तथ्यों को सन्निबद्ध किया गया है। इसमें चालुक्यवंश के चरित के साथ व्याकरण के सूत्रों के उदाहरण प्रस्तुत किये गये हैं। इसमें सन्देह नहीं कि हेमचन्द्र ने एक सर्वगुण-सम्पन्न महाकाव्य में सूत्रों का सन्दर्भ लेकर अपनी विशिष्ट प्रतिभा का परिचय दिया है। इस महाकाव्य में २० सर्ग और २८८८ श्लोक हैं। सृष्टिवर्णन, ऋतुवर्णन, रसवर्णन आदि सभी महाकाव्य के गुण वर्तमान हैं। Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २१ ) प्राकृत द्वयाश्रय काव्य में कुमारपाल के चरित के साथ प्राकृत व्याकरण के सूत्रों के उदाहरण प्रस्तुत किये गये हैं। इस काव्य में कुमारपाल की धर्मनिष्ठा, नीति, परोपकारी आचरण, सांस्कृतिक चेतना, उदारता, नागर जनों के साथ सम्बन्ध, जैनधर्म में दीक्षित होना एवं दिनचर्या आदि सभी विषयों का विस्तारपूर्वक रोचक वर्णन है । इसमें आठ सर्ग और ७४७ गाथाएँ हैं। त्रिपष्टिशलाका-पुरुष-चरित इस ग्रन्थ में २४ तीर्थकर, १२ चक्रवर्ती, ९ बलदेव, ९ वासुदेव और ९ इतिवासुदेव, इस प्रकार त्रेसठ पुरुषों का चरित अंकित है। यह ग्रन्थ बत्तीस हजार श्लोक प्रमाण है। इसका रचनाकाल वि० सं० १२२६-१२२९ के बीच का है। इसमें ईश्वर, परलोक, आत्मा, कर्म, धर्म, सृष्टि आदि विषयों पर विशद विवेचन किया गया है । दार्शनिक मान्यताओं का भी विशद विवेचन विद्यमान है। इतिहास, कथा एवं पौराणिक तथ्यों का यथेष्ट समावेश किया गया है। काव्यानुशासन आचार्य हेम ने मम्मट, आनन्दवर्द्धन, अभिनवगुप्त, रुद्रट, दण्डी, धनञ्जय आदि के काव्यशास्त्रीय ग्रन्थों का अध्ययन कर इस ग्रन्थ की रचना की है। इस ग्रन्थ पर हेमचन्द्र ने अलङ्कार चूड़ामणि नाम से एक लघुवृत्ति और विवेक नाम की एक विस्तृत टीका लिखी है। इसमें मम्मट की अपेक्षा काव्य के प्रयोजन, हेतु, अर्थालङ्कार, गुण, दोष, ध्वनि आदि सिद्धान्तों पर गहन अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। छन्दोनुशासन इसमें संस्कृत, प्राकृत एवं अपभ्रंश साहित्य के छन्दों का विवेचन किया है। मूल ग्रन्थ सूत्रों में है । आचार्य हेम ने इसकी वृत्ति भी लिखी है। इन्होंने छन्दों के उदाहरण अपनी मौलिक रचनाओं से उपस्थित किये हैं। न्याय इनके द्वारा रचित प्रमाण-मीमांसा नामक ग्रन्थ प्रमाण-प्रमेय की साङ्गोपाङ्ग जानकारी प्रदान करने में पूर्ण क्षम है। अनेकान्तवाद, प्रमाण, पारमार्थिक प्रत्यक्ष की तात्त्विकता, इन्द्रियज्ञान का व्यापारक्रम, परोक्ष के प्रकार, अनुमानावयवों की प्रायोगिक व्यवस्था, निग्रहस्थान, जय-पराजय-व्यवस्था, सर्वज्ञस्व का समर्थन आदि मूल मुद्दों पर विचार किया गया है। Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २२ ) योगशास्त्र कुमारपाल के अनुरोध से आचार्य हेम ने योगशास्त्र की रचना की है। इसमें बारह प्रकाश और १०१३ श्लोक हैं। गृहस्थ जीवन में आत्मसाधना करने की प्रक्रिया का निरूपण किया गया है। इसमें योग की परिभाषा, व्यायाम, रेचक, कुम्भक और पूरक आदि प्राणायामों तथा आसनों का निरूपण किया है। इसके अध्ययन एवं अभ्यास से आध्यात्मिक प्रगति की प्रेरणा मिलती है। व्यक्ति की अन्तर्मुखी प्रवृत्तियों के उद्घाटन का पूर्ण प्रयास किया गया है। इस ग्रन्थ की शैली पतञ्जलि के योगशास्त्र के अनुसार ही है; पर विषय और वर्णनक्रम दोनों में मौलिकता और भिन्नता है। '' स्तोत्र द्वात्रिंशिकाओं के रचयिता के रूप में आचार्य हेम प्रसिद्ध हैं। वीतराग और महावीर स्तोत्र भी इनके सुन्दर माने जाते हैं। भक्ति की दृष्टि से इन स्तोत्रों का जितना महत्व है, उससे कहीं अधिक काव्य की दृष्टि से। कोशग्रन्थ प्राचार्य हेम के चार कोशग्रन्थ उपलब्ध हैं अभिधानचिन्तामणि, अनेकार्थसंग्रह, निघण्टु और देशीनाममाला। . ___ अनेकार्थसंग्रह में सात काण्ड और १९४० श्लोक हैं। इसमें एक ही शब्द के अनेक अर्थ दिये गये हैं। निघण्टु में छः काण्ड और ३९६ श्लोक हैं। इसमें सभी वनस्पतियों के नाम दिये गये हैं। इसके वृष, गुल्म, लता, शाक, तृण और धान्य ये छः काण्ड हैं। वैद्यक शास्त्र के लिए इस कोश की अत्यधिक उपयोगिता है। देशीनाममाला में ३९७८ देशी शब्दों का संकलन किया गया है। इस कोश के आधार पर आधुनिक भाषाओं के शब्दों की साङ्गोपाङ्ग आत्मकहानी लिखी जा सकती है। इस कोश में उदाहरण के रूप में आयी हुई गाथाएँ साहित्यिक दृष्टि से अमूल्य हैं। सांस्कृतिक विकास की दृष्टि से भी इस कोश का बहुत बड़ा मूल्य है। इसमें संकलित शब्दों से बारहवीं शती की अनेक सांस्कृतिक परम्पराओं को अवगत किया जा सकता है। अभिधानचिन्तामणि संस्कृत के पर्यायवाची शब्दों की जानकारी के लिए इस कोश का महत्व अमरकोश की अपेक्षा भी अधिक है। इसमें समानार्थक शब्दों का संग्रह किया Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २३ ) गया है । इस पद्यमय कोश में कुल छः काण्ड हैं। प्रथम देवाधिदेव नाम के काण्ड में ८६ पद्य हैं, द्वितीय देवकाण्ड में २५० पद्य, तृतीय मयंकांड में ५९८ पद्य, चतुर्थ भूमिकाण्ड में ४२३ पद्य, पञ्चम नारककाण्ड में ७ पद्य एवं षष्ठ सामान्य काण्ड में १७८ पद्य हैं। इस प्रकार इस कोश में कुल १५४२ पद्य हैं । हेमचन्द्र ने आरम्भ में ही रूढ, यौगिक और मिश्र शब्दों के पर्यायवाची शब्द लिखने की प्रतिज्ञा इस तरह की है व्युत्पत्तिरहिताः शब्दा रूढा आखण्डलादयः । योगोऽन्वयः स तु गुणक्रियासम्बन्धसम्भवः॥ गुणतो नीलकण्ठाद्याः क्रियातः स्रष्ट्रसन्निभाः । स्वस्वामित्वादिसम्बन्धस्तत्राहुर्नाम तद्वताम् ।। (अ० चि० १।२-३) व्युत्पत्ति से रहित-प्रकृति तथा प्रत्यय के विभाग करने से भी अन्वर्थहीन शब्दों को रूढ कहते हैं; जैसे आखण्डल आदि । यद्यपि कुछ आचार्य रूढ शब्दों की भी व्युत्पत्ति मानते हैं, पर उस व्युत्पत्ति का प्रयोजन केवल वर्णानुपूर्वी का विज्ञान कराना ही है, अन्वर्थ प्रतीति नहीं। अतः अभिधानचिन्तामणि में संग्रहीत शब्दों में प्रथम प्रकार के शब्द रूढ़ हैं। हेम के द्वारा संग्रहीत दूसरे प्रकार के शब्द यौगिक हैं। शब्दों के परस्पर अनुगम को अन्वय या योग कहते हैं और यह योग गुण, क्रिया तथा अन्य सम्बन्धों से उत्पन्न होता है। गुण के सम्बन्ध के कारण नीलकण्ठ, शितिकण्ठ, कालकण्ठ आदि शब्द ग्रहण किये गये हैं। क्रिया के सम्बन्ध से उत्पन्न होनेवाले शब्द स्रष्टा, धाता प्रभृति हैं। अन्य सम्बन्धों में प्रधान रूप से स्वस्वामित्व, जन्य-जनक, धार्य-धारक, भोज्य-भोजक, पति-कलत्र, सख्य, वाह्य-वाहक, ज्ञातेय, आश्रय-आश्रयी एवं वध्य-वधक भाव सम्बन्ध ग्रहण किया गया है। स्ववाचक शब्दों में स्वामिवाचक शब्द या प्रत्यय जोड़ देने से स्व-स्वामिवाचक शब्द बन जाते हैं । स्वामिवाचक प्रत्ययों में मतुप, इन्, अण, अक आदि प्रत्यय एवं शब्दों में पाल, भुज, धन और नेतृ शब्द परिगणित हैं। यथा-भू+ मतुप् = भूमान्, धन + इन् = धनी, शिव + अण = शैवः, दण्ड + इ = दाण्डिकः । इसी प्रकार भू+पालः = भूपालः, भू+ पतिः = भूपतिः आदि । हेम ने उक्त प्रकार के सभी सम्बन्धों से निष्पन्न शब्दों को कोश में स्थान दिया है। __ हेम ने मूल श्लोकों में जिन शब्दों का संग्रह किया है, उनके अतिरिक्त 'शेषाश्च'-कहकर कुछ अन्य शब्दों को-जो मूल श्लोकों में नहीं आ सके हैंस्थान दिया है । इसके पश्चात् स्वोपज्ञ वृत्ति में भी छूटे हुए शब्दों को समेटने का Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २४ ) प्रयास किया है । इस प्रकार इस कोश में उस समय तक प्रचलित और साहित्य में व्यवहृत शब्दों को स्थान दिया गया है। यही कारण है कि यह कोश संस्कृत साहित्य में सर्वश्रेष्ठ है । विशेषताएँ अभिधानचिन्तामणि कोश अनेक दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है । जिज्ञासुओं के लिए इसमें पर्यायवाची शब्दों का संकलनमात्र ही नहीं है, अपितु इसमें भाषा-सम्बन्धी बहुत ही महत्त्वपूर्ण सामग्री संकलित है । समाज और संस्कृति के विकास के साथ भाषा के अङ्ग और उपांगों में भी विकास होता है और भावाभिव्यञ्जना के लिए नये-नये शब्दों की आवश्यकता पड़ती है । कोश साहित्य का सबसे बड़ा कार्य यही होता है कि वह नवीन और प्राचीन सभी प्रकार के शब्दसमूह का रक्षण और पोषण प्रस्तुत करता है । हमने इस कोश में अधिक से अधिक शब्दों को स्थान तो दिया ही है; पर साथ हीं नवीन और प्राचीन शब्दों का समन्वय भी उपस्थित किया है । अतः गुप्तकाल में भुक्ति (प्रान्त), विषय जिला ), युक्त (जिले का सर्वोच्च अधिकारी ), विषयपति ( जिलाधीश ), शौल्किक ( चुङ्गी विभाग का अध्यक्ष ), गौल्मिक ( जंगल विभाग का अध्यक्ष ), बलाधिकृत ( सेनाध्यक्ष ), महाबलाधिकृत ( फील्ड मार्शल ) एवं अक्षपटलाधिपति ( रेकार्डकीपर) आदि नये शब्द ग्रहण किये गये हैं । अभिधानचिन्तामणि कोश की निम्नलिखित विशेषताएँ दर्शनीय हैं ( I इतिहास की दृष्टि से इस कोश का बड़ा महत्व है । आचार्य हेम ने इस ग्रन्थ की 'स्वोपज्ञवृत्ति' नामक टीका में अपने पूर्ववर्ती जिन ५६ ग्रन्थकारों तथा ३१ ग्रन्थों का उल्लेख किया है, उनके नाम स्वोपज्ञवृत्ति ( भावनगर से प्रकाशित संस्करण ) की पृष्ठ एवं पंक्तियों की संख्याओं के साथ यहाँ लिखा जाता है । उनमें ५६ ग्रन्थकारों के नाम तथा कोष्ठ में क्रमशः पृष्ठों तथा पंक्तियों की संख्याएँ हैं । यथा - अमर ( ५५ - १७ तथा २१; ५६ - २५, ० ) । अमरादि ( २७६ - २१, २९९-१४ ) । अलङ्कारकृत् ( ११२-१३ ) । ... ४४० - १६ ) । कौटल्य आगमविद् ( ७०-१४ ) । उत्पल ( ७४ - १४ ) । काव्य ( ५६ - १०, ६१ - ८,"")। कामन्दकि ( ५५० ४ ) । कालिदास ( ४१३ - २, ( ७०–४, २९६–२, '' ) । कौशिक ( १६६ - १३, ( ३५०-९, ४६१–१७ ) । गौड ( ३६- २९, ( ३९४ - ५ ) । चान्द्र ( ५२८ - २५ ) । दतिल ... १७० - २८ ) । तीरस्वामी ५३-३, ० ) । चाणक्य १२१ - २२, ५६३-३ )। ( Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २५ ) दुर्ग (५७-२८, १७४-२७,... )। द्रमिल (१५१-७, २०९-२७)। धनपाल (१-५, ७६-२१,')। धन्वन्तरि (१६६-२८, २५९-७)। नन्दी (५२-२३)। नारद (३५७-१८)। नरुक्त (१६४-1८, १८६-६,... )। पदार्थविद् (२०८-२२)। पालकाप्य (४९५-२७)। पौराणिक (३७३-६)। प्राच्य (२८-२६, ५७-२८,")। बुद्धिसागर (२४५-२५)। बौद्ध (१०१-१७)। भट्टतोत ( २४-१७) । भट्टि (५९३-२३)। भरत (११७९, १२४-२३,")। भागुरि (६६-१४, ६८-२७,...)। भाष्यकार (६६-२३, ३४८-१३, ३८९-२६)। भोज (१५७-१७, १८८-२६,")। मनु (६३-११, १९५-१३,... )। माघ ( ९२-१७)। मुनि (१७१-८, २५४-२०,"")। याज्ञवल्क्य (३३६-२, ४८३-२०)। याज्ञिक (१०३-९)। लौकिक (३७८-२३, ४३३-३)। लिङ्गानुशासनकृत् (५३६-२४)। वाग्भट (१६७-१)। वाचस्पति (१-६, २९-४,... )। वासुकि (१-५)। विश्वदत्त (४९-८)। वैजयन्तीकार (१३१-२३, १३३-१९,' )। वैद्य (१६६-२८, २५३-२३,... )। व्याडि (१-५, ३४-२२ और २५,... )। शाब्दिक (४३-७, १०२-७,... )। शाश्वत (६४-७, १०२-७,... )। श्रीहर्ष (१९८-७), श्रुतिज्ञ ( ३३२-२७)। सभ्य (१३४-१, २५८-१२)। स्मार्त (२०९-१०, ३४६-२, ३५४-१०)। हलायुध (१४४-१५ और १६) तथा हृद्य ( ४५३।२७)। . अब पृष्ठ-पंक्ति-संख्याओं के साथ ३१ ग्रन्थों के नाम दिये जाते हैं-अमरकोश (८-५)। अमरटीका (४५-१३, ५५-१,...)। अमरमाला (४४०-३२)। अमरशेष (१५३-२०, ४५६-१५)। अर्थशास्त्र ( २९७-२५, ३१६-२७)। आगमः ( २१८-१६)। चान्द्र (१५८-२६)। जैनसमय (८०- ६)। टीका (५७४-२४)। तर्क (५५०-५)। त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (१३-९, ८०-७)। द्वयाश्रयमहाकाव्य (६१०-१८ और २५)। धनुर्वेद (३०९-१७, ३१०-८, ३११-७)। धातुपारायण (१-११, ६०९-५)। नाव्यशास्त्र (१७-६, १२२-१३, २४३-१७)। निघण्टु (४८४-३०)। पुराण (५६-२१, ७०-१५,..")। प्रमाणमीमांसा (५५५-२१)। भारत (३३८-१३, ३९०-२७)। महाभारत (८१-२३)। माला (६८-२७, २१८-२५,")। योगशास्त्र (४४५-७)। लिङ्गानुशासन (८-४, १९३-१३, ६०९-११)। वामनपुराण (४६-२९, ८२-८,...)। विष्णुपुराण (६९-१९, ९३-१)। वेद (३५-२२)। वैजयन्ती (५७-३, १०९-१८,")। Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. (२६ ) शाकटायन (२-१)। श्रुति (२८-२५, ३०-१८,... ) । संहिता (९३-४, ९६-६) तथा स्मृति (३५-२७, ३६-७,... )। __भागुरि तथा व्याडि के सम्बन्ध में इस कोश से बड़ी जानकारी प्राप्त हो जाती है । जहां शब्दों के अर्थ में मतभेद उपस्थित होता है, वहाँ आचार्य हेम अन्य ग्रन्थ तथा ग्रन्थकारों के वचन उद्धृत कर उस मतभेद का स्पष्टीकरण करते हैं । उदाहरण के लिए गूंगे के नामों को उपस्थित किया जा सकता है। इन्होंने मूक तथा अवाक-ये दो नाम गूंगे के लिखे हैं। 'शेषश्च' में मूक के लिए 'जड तथा कड' पर्याय भी बतलाये हैं। इसी प्रसङ्ग में मतभिन्नता बतलाते हुए “कलमूकस्त्ववाश्रुतिः। इति हलायुधः। अनेडोऽपि अवर्करोऽपि मूकः अनेडमूकः, 'अन्धो बनेडमूकः स्यात्' इति हलायुधः 'अनेडमूकस्तु जडः । इति वैजयन्ती, 'शठो ह्यनेडमूकः स्यात्' इति भागुरिः'।" अर्थात् हलायुध के मत में अन्धे को 'अनेडमूक' कहा है, वैजयन्तीकार ने जड को 'अनेडमूक' कहा है और भागुरि ने शठ को अनेडमूक बतलाया है । इस प्रकार 'अनेडमूक' शब्द अनेकार्थक है। हेम ने गूंगे-बहरे के लिए 'अनेडमूक' शब्द को व्यवहृत किया है। इनके मत में 'एडमूक, अनेंडमूक और अवाश्रुति'-ये तीन पर्याय गूंगेबहरे के लिए आये हैं। ___इस प्रकार इतिहास और तुलना की दृष्टि से इंस कोश का बहुत अधिक मूल्य है। भाषा की जानकारी विभिन्न दृष्टियों से प्राप्त कराने में आये हुए विभिन्न ग्रन्थ और ग्रन्थकारों के वचन पूर्णतः क्षम हैं। ___ इस कोश की दूसरी विशेषता यह है कि आचार्य हेम ने भी धनंजय के समान शब्दयोग से अनेक पर्यायवाची शब्दों के बनाने का विधान किया है, किन्तु इस विधान में (कविरूदया ज्ञेयोदाहरणावली) के अनुसार उन्हीं शब्दों को ग्रहण किया है, जो कवि-सम्प्रदाय द्वारा प्रचलित और प्रयुक्त हैं। जैसे पतिवाचक शब्दों से कान्ता, प्रियतमा, वधू, प्रणयिनी एवं निभा शब्दों को या इनके समान अन्य शब्दों को जोड़ देने से पत्नी के नाम और कलत्रवाचक शब्दों में वर, रमण, प्रणयी एवं प्रिय शब्दों को या इनके समान अन्य शब्दों को जोड़ देने से पतिवाचक शब्द बन जाते हैं। गौरी के पर्यायवाची बनाने के लिए शिव शब्द मे उक्त शब्द जोड़ने पर शिवकान्ता, शिवप्रियतमा, शिववधू एवं शिवप्रणयिनी आदि शब्द बनते हैं। निभा का समानार्थक परिग्रह भी है, किन्तु जिस प्रकार शिवकान्ता शब्द ग्रहण किया जाता है, उस १. अमि० चिन्ता० काण्ड ३ श्लोक १२ की स्वोपनवृत्ति। . Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २७ ) प्रकार शिवपरिग्रह नहीं। यतः कवि-सम्प्रदाय में यह शब्द ग्रहण नहीं किया गया है। ___कलत्रवाची गौरी शब्द में वर, रमण, प्रभृति शब्द जोड़ने से गौरीवर, गौरीरमण, गौरीश आदि शिववाचक शब्द बनते हैं। जिस प्रकार गौरीवर शब्द शिव का वाचक है, उसी प्रकार गंगावर शब्द नहीं । यद्यपि कान्तावाची गङ्गा शब्द में वर शब्द जोड़कर पतिवाचक शब्द बन जाते हैं, तो भी कविसम्प्रदाय में इस शब्द की प्रसिद्धि नहीं होने से यह शिव के अर्थ में ग्राह्य नहीं है। हेमचन्द्र ने अपनी स्वोपज्ञवृत्ति में इन समस्त विशेषताओं को बतलाया है । अतः स्पष्ट है कि "कविरूढ्या ज्ञेयोदाहरणावली" सिद्धान्त वाक्य बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। इससे कई सुन्दर निष्कर्ष निकलते हैं। आचार्य हेम की नयी सूझ-बूझ का भी पता चल जाता है। अतएव शिव के पर्याय कपाली के समानार्थक कपालपाल, कपालधन, कपालभुक्, कपालनेता एवं कपालपति जैसे अप्रयुक्त और अमान्य शब्दों के ग्रहण से भी रक्षा हो जाती है । व्याकरण द्वारा उक्त शब्दों की सिद्धि सर्वथा संभव है, पर कवियों की मान्यता के विपरीत होने से उक्त शब्दों को कपाली के स्थान पर ग्रहण नहीं किया जा सकता है। भाषाविज्ञान की दृष्टि से यह कोश बड़ा मूल्यवान् है। आचार्य हेम ने इसमें जिन शब्दों का संकलन किया है, उनपर प्राकृत, अपभ्रंश एवं अन्य देशी भाषाओं के शब्दों का पूर्णतः प्रभाव लक्षित होता है। अनेक शब्द तो आधुनिक भारतीय भाषाओं में दिखलायी पड़ते हैं। कुछ ऐसे शब्द भी हैं, जो भाषाविज्ञान के समीकरण, विषमीकरण आदि सिद्धान्तों से प्रभावित हैं। उदाहरण के लिए यहाँ कुछ शब्दों को उद्धृत किया जाता है..(१) पोलिका (३६२)-गुजराती में पोणी, व्रजभाषा में पोनी, भोजपुरी में पिउनी तथा हिन्दी में भी पिउनी। ... (२) मोदको लडकश्च (शेष ३६४)-हिन्दी में लड्डू, गुजराती में लाडु, राजस्थानी में लाडू। (३) चोटी (३३३३९)-हिन्दो में चोटी, गुजराती में चोणी, राजस्थानी में चोड़ी या चुणिका। (४) समौ कन्दुकगेन्दुको (३।३५३)-हिन्दी में गेन्द, ब्रजभाषा में गेंद या गिंद। (५) हेरिको गूढपुरुषः (३।३९७) ब्रजभाषा में हेर या हेरना-. देखना, गुजराती में हेर। Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २८ ) (६) तरवारि (३।४४६)-ब्रजभाषा में तरवार, राजस्थानी में तलवार तथा गुजराती में तरवार । (७) जंगलो निर्जलः (१९)-ब्रजभाषा में जङ्गल, हिन्दी में जङ्गल । (८) सुरुङ्गा तु सन्धिला स्याद् गूढमार्गो भुवोऽन्तरे (४५१)-ब्रज. भाषा, हिन्दी तथा गुजराती तीनों भाषाओं में सुरंग । (९) निश्रेणी त्वधिरोहणी (४१७९)-ब्रजभाषा में नसेनी, गुजराती में नीसरणी। (१०) चालनी तितउ (४८४ )-व्रजभाषा, राजस्थानी और गुजराती में चालनी, हिन्दी में चलनी या छलनी। (११) पेटा स्यान्मञ्जूषा (४८१) राजस्थानी में पेटी, गुजराती में पेटी, पेटो तथा ब्रजभाषा में पिटारी, पेटो। इस कोश की चौथी विशेषता यह है कि इसमें अनेक ऐसे शब्द आये हैं, जो अन्य कोशों में नहीं मिलते। अमरकोश में सुन्दर के पर्यायवाचीसुन्दरम्, रुचिरम्, चारु, सुषमम, साधु, शोभनम्, कान्तम्, मनोरमम्, रुच्यम्, मनोज्ञम्, मंजु, और मंजुलम् ये बारह शब्द आये हैं। हेम ने इसी सुन्दरम् के पर्यायवाची चारुः, हारिः, रुचिरम्,मनोहरम, वल्गुः, कान्तम्, अभिरामम्, बन्धुरम्, वामम्, रुच्यम्, शुषमम्, शोभनम्, मंजुलम्, मंजुः, मनोरमम्, साधुः, रम्यम्, मनोरमम, पेशलम्, हृद्यम्, काम्यम्, कमनीयम्, सौम्यम्, मधुरम् और प्रियम् ये २६ शब्द बतलाये हैं । इतना ही नहीं, हेम ने अपनी वृत्ति में 'लडह' देशी शब्द को भी सौन्दर्यवाची ग्रहण किया है। इस प्रकार आचार्य हेम ने एक ही शब्द के अनेक पर्यायवाची शब्दों को ग्रहण कर अपने इस कोश को खूब समृद्ध बनाया हैं । सैकड़ों ऐसे नवीन शब्द आये हैं, जिनका अन्यत्र पाया जाना संभव नहीं । यहाँ उदाहरण के रूप में कुछ शब्दों को उपस्थित किया जाता है जिसके वर्ण या पद लुप्त हों-जिसका पूरा-पूरा उच्चारण नहीं किया गया हो, उस वचन का नाम प्रस्तम् और थूकसहित वचन का नाम अम्बूकृतम् आया है । शुभवाणी का नाम कल्या; हर्ष-क्रीड़ा से युक्त वचन के नाम चर्चरी, चर्मरी एवं निन्दापूर्वक उपालम्भयुक्त वचन का नाम परिभाषण आया है। जले हुए भात के लिए भिस्सटा और दग्धिका नाम आये हैं। गेहूँ के आटे के लिए समिता ( ३।६६) और जौ के आटे के लिए चिक्कस (३।६६) नाम आये हैं। नाक की विभिन्न बनावट वाले व्यक्तियों के विभिन्न नामों का उल्लेख भी १.३ कांड अ० चि० ६० श्लो. Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २६ ) शब्द-संकलन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। चिपटी नाकवाले के नतनासिक, अवजाट, अवटीट और अवभ्रट; नुकीली नाकवाले के लिए खरणस; छोटी नाकवाले के लिए ‘नःचुद्र, खुर के समान बड़ी नाकवाले के लिए खुरणस एवं ऊंची नाकवाले के लिए उन्नस शब्द संकलित किये गये हैं। • पति-पुत्र से हीन स्त्री के लिए निर्वीरा (३।१९४); जिस स्त्री के दाढ़ी या मूंछ के बाल हों, उसको नरमालिनी ( ३।१९५); बड़ी शाली के लिए कुली (३।२१८), और छोटी शाली के लिए हाली, यन्त्रगी और केलिकुंचिका (३।२१९) नाम आये हैं। छोटी शाली के नामों को देखने से अवगत होता है कि उस समय में छोटी शाली के साथ हंसी-मजाक करने की प्रथा थी । साथ ही पत्नी की सयु के पश्चात् छोटी शाली से विवाह भी किया जाता था। इसी कारण इसे केलिकुञ्चिका कहा गया है । दाहिनी और बायीं आँखों के लिए पृथक-पृथक शब्द इसी कोश में आये हैं। दाहिनी आँख का नाम भानवीय और बायीं आँख का नाम सौम्य (३।२४०) कहा गया है। इसी प्रकार जीभ की मैल को कुलुकम् और दाँत की मैल को पिप्पिका ( ३।२९६) कहा गया है। मृगचर्म के पंखे का नाम धविअम् और कपड़े के पंखे का नाम वालावर्तम् (३॥३५१-५२) आया है। नाव के बीचवाले डण्डों का नाम पोलिन्दा; ऊपर वाले भाग का नाम मङ्ग एवं नाव के भीतर जमे हुए पानी को बाहर फेंकनेवाले चमड़े के पात्र का नाम सेकपात्र या सेचन (३२५४२) बताया है। ये शब्द अपने भीतर सांस्कृतिक इतिहास भी समेटे हुए हैं । छप्पर छाने के लिए लगायी गयी लकड़ी का नाम गोपानसी (४७५); जिसमें बांधकर मथानी घुमायी जाती है, उस खम्भे का नाम विष्कम्भ (१८९); सिक्का आदि रूप में परिणत सोना-चाँदी, ताँबा आदि सब धातुओं का नाम रूप्यम्; मिश्रित सोना-चाँदी का नाम धनगोलक (४११२-११३); कुँआ के ऊपर रस्सी बाँधने के लिए काष्ठ आदि की बनी हुई चरखी का नाम तन्त्रिका (४१५७); घर के पास वाले बगीचे का नाम निष्कुट; गाँव या नगर के बाहर वाले बगीचे का नाम पौरक (४।१७८); क्रीड़ा के लिए बनाये गये बगीचे का नाम आक्रीड या उद्यान (१९७८); राजाओं के अन्तःपुर के योग्य घिरे हुए बगीचे का नाम प्रमदवन (१७९); धनिकों के बगीचे का नाम पुष्पवाटी या वृक्षवाटी (४।१७९) एवं छोटे बगीचे का नाम क्षुद्राराम या प्रसीदिका (४११७९) आया है। इसी प्रकार १. अ० चि० ३ कांड ११५ श्लोक Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३० ) मशाले, अंग-प्रत्यंग के नाम, मालाएँ, सेना के विभिन्न भाग, वृक्ष, लता, पशु, पक्षी एवं धान्य आदि के अनेक नवीन नाम आये हैं । सांस्कृतिक दृष्टि से इस कोश का अत्यधिक मूल्य है। इसमें व्याकरण की विशिष्ट परिभाषा बतलाते हुए लिखा है प्रकृतिप्रत्ययोपाधिनिपातादिविभागशः । यदान्वाख्यानकरणं शास्त्रं व्याकरणं विदुः ॥ - २।१६४ की स्वोपज्ञवृत्ति अर्थात् - प्रकृति-प्रत्यय के विभाग द्वारा पदों का अन्वाख्यान करना व्याकरण है | व्याकरण द्वारा शब्दों की व्युत्पत्ति स्पष्ट की जाती है । व्याकरण के - सूत्र संज्ञा, परिभाषा, विधि, निषेध, नियम, अतिदेश एवं अधिकार इन सात भागों में विभक्त हैं । प्रत्येक सूत्र के पदच्छेद, विभक्ति, समास, अर्थ, उदाहरण और सिद्धि ये छः अङ्ग होते हैं । इसी प्रकार वार्तिक ( २।१७० ), टीका, पञ्जिका ( २।१७० ), निबन्ध, संग्रह, परिशिष्ट ( २।१७१ ), कारिका, कलिन्दिका, निघण्टु ( २।१७२ ), इतिहास, प्रहेलिका, किंवदन्ती, वार्ता ( २।१७३ ), आदि की व्याख्याएँ और परिभाषाएँ प्रस्तुत की गयी हैं । इन परिभाषाओं से साहित्य के अनेक सिद्धान्तों पर प्रकाश पड़ता है । प्राचीन भारत में प्रसाधन के कितने प्रकार प्रचलित थे, यह इस कोश से भलीभाँति जाना जा सकता है। शरीर को संस्कृत करने को परिकर्म ( ३।२९९ ), उबटन लगाने को उत्सादन ( ३।२९९ ), कस्तूरी- कुंकुम का लेप लगाने को अङ्गराग, चन्दन, अगर, कस्तूरी और कुंकुम के मिश्रण को चतुःसमम्; कर्पूर, अगर, कंकोल, कस्तूरी और चन्दनद्रव को मिश्रित कर बनाये गये लेप-विशेष को यज्ञकर्दम एवं शरीर-संस्कारार्थ लगाये जानेवाले लेप का नाम वर्ति या गात्रानुलेपनी कहा गया है । मस्तक पर धारण की जानेवाली फूल की माला का नाम माल्यम्; बालों के बीच में स्थापित फूल की माला का नाम गर्भका; चोटी में लटकनेवाली फूलों को माला का नाम प्रभ्रष्टकम्, सामने लटकती हुई पुष्पमाला का नाम ललामकम्, छाती पर तिर्धी लटकती हुई पुष्पमाला का नाम वैकक्षम, कण्ठ से छाती पर सीधे लटकती हुई फूलों की माला का नाम प्रालम्बम्, शिर पर लपेटी हुई माला का नाम आपीड, कान पर लटकती हुई माला का नाम अवतंस एवं स्त्रियों के जूड़े में लगी हुई Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३१ ) माला का नाम वालपाश्या आया है। इसी प्रकार कान, कण्ठ, गर्दन, हाथ, पैर, कमर आदि विभिन्न अङ्गों में धारण किये जानेवाले आभूषणों के अनेक नाम आये हैं। इन नामों से अवगत होता है कि आभूषण धारण करने की प्रथा प्राचीन समय में कितनी अधिक थी। मोती की सौ, एक हजार आठ, एक सौ आठ, पाँच सौ चौअन, चौअन, बत्तीस, सोलह, आठ, चार, दो, पाँच एवं चौसठ आदि विभिन्न प्रकार की लड़ियों की माला के विभिन्न नाम आये हैं। वस्त्रों में विभिन्न अङ्गों पर धारण किये जानेवाले रेशमी, सूती एवं ऊनी कपड़ों के अनेक नाम आये हैं । संस्कृति और सभ्यता की दृष्टि से यह प्रकरण बहुत ही महत्वपूर्ण है। विभिन्न वस्तुओं के व्यापारियों के नाम तथा व्यापार योग्य अनेक वस्तुओं के नाम भी इस कोश में संग्रहीत हैं। प्राचीन समय में मद्य-शराब बनाने की अनेक विधियों प्रचलित थीं। इस कोश में शहद मिलाकर तैयार किये गये मद्य को मध्वासव, गुड़ से बने मद्य को मैरेय, चावल उबाल कर तैयार किये गये मद्य को नग्नहू कहा गया है । ___ गायों के नानों में बकेना गाय का नाम वकयणी, थोड़े दिन की ब्यायी गाय का नाम धेनु, अनेक बार ब्यायी गाय का नाम परेष्टु, एक बार ब्यायी गाय का नाम गृष्टि, गर्भग्रहणार्थ वृषभ के साथ संभोग की इच्छा करनेवाली गाय का नाम काल्या, सरलता से दूध देनेवाली गाय का नाम सुव्रता, बड़ी कठिनाई से दूही जानेवाली गाय का नाम करटा, बहुत दूध देनेवाली गाय का नाम वज़ुला, एक द्रोण-आधा मन दूध देनेवाली गाय का नाम द्रोणदुग्धा, मोटे स्तनों वाली गाय का नाम पीनोनी, बन्धक रखी हुई गाय का नाम धेनुष्या, उत्तम गाय का नाम नैचिकी, बचपन में गर्भधारण की हुई गाय का नाम पलिक्नी, प्रत्येक वर्ष में ब्यानेवाली गाय का नाम समांसमीना, सीधी गाय का नाम सुकरा, एवं स्नेह से वत्स को चाहनेवाली गाय का नाम वत्सला आया है। गायों के इन नामों को देखने से स्पष्ट अवगत होता है कि उस समय गोसम्पत्ति बहुत महत्त्वपूर्ण मानी जाती थी। विभिन्न प्रकार के घोड़े के नामों से भी ज्ञात होता है कि प्राचीन भारत में कितने प्रकार के घोड़े काम में लाये जाते थे। सुशिक्षित घोड़े को साधुवाही, १ देखें-कांड ३ श्लोक ३१४-३२१ २ देखें-काण्ड ३ श्लो० ३२२-३४० ३ देखें-का० ३ श्लो० ५६४-५६९ ४ देखें-का० ४ श्लो० ३३३-३३७ Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३२ ) - दुष्ट शिक्षित घोड़े को शूकल, कोड़ा मारने योग्य घोड़े को कश्य, छाती तथा मुख पर बालों की भौंरीवाले घोड़े को श्रीवृक्षकी; हृदय, पीठ, मुख तथा दोनों पार्श्व भागों में श्वेत चिह्नवाले घोड़े को पञ्चभद्र, श्वेत घोड़े को कर्क, पिंगल वर्ण घोड़े को खोङ्गाह, दूध के समान रंगवाले घोड़े को सेराह, पीले घोड़े को हरिय, काले घोड़े को खुङ्गाह, लाल घोड़े को क्रियाह, नीले घोड़े को नीलक, गधे के रङ्गवाले घोड़े को सुरूहक, पाटल वर्ण के घोड़े को वोरुखान, कुछ पीले वर्णवाले तथा काले घुटनेवाले को कुलाह, पीले तथा लाल वर्णवाले को उकनाह, कोकनद के समान वर्णवाले को शोण, सब्ज वर्ण के घोड़े को हरिक, कांच के समान श्वेत वर्ण के घोड़े को पङ्गुल, चितकबरे घोड़े को हलाह और अश्वमेध के घोड़े को ययु कहा गया है। इतना ही नहीं घोड़े की विभिन्न चालों के विभिन्न नाम आये हैं। स्पष्ट है कि घोड़ों को अनेक प्रकार की चाले सिखलायी जाती थीं। . ___ अभिधानचिन्तामणि की. स्वोपज्ञवृत्ति में अनेक प्राचीन आचार्यों के प्रमाण वचन तो उद्धत हैं ही, पर साथ ही अनेक शब्दोंकी ऐसी व्युत्पत्तियाँ भी उपस्थित की गयी हैं, जिनसे उन शब्दों की आत्मकथा लिखी जा सकती है। शब्दों में अर्थ परिवर्तन किस प्रकार होता रहा है तथा अर्थविकास की दिशा कौन सी रही है, यह भी वृत्ति से स्पष्ट है। वृत्ति में व्याकरण के सूत्र उद्धत कर शब्दों का साधुत्व भी बतलायां गया है । यथा भाष्यते भाषा (क्तटो गुरोर्व्यअनात् इत्यः, ५।३।१०६)। -२११५ वण्यते वाणी ('कमिवमि-' उणा०६१८) इति णिः । ड्यां वाणी । -२०१५ श्रूयते श्रुतिः (श्रवादिभ्यः ५।३।९२) इति तिः। -२११६२ सुष्टु आ समन्तात् अधीयते स्वाध्यायः (इडोऽपदाने तु टिवा ५।३।१९) इति घञ्। -११६३ अवति विघ्नाद् ओम् अव्ययम (अवेर्मः-उणा० ९३३ ) इति मः, ओमेक ओङ्कारः-(वर्णव्ययात् स्वरूपेकारः ७।२।१५६) इति कारः -२१६४ प्रस्तूयते प्रस्तावः-(प्रात् स्तुद्रुस्तोः ५।३।६७ ) इति घञ् .-२।१६८ न श्रियं लाति-अश्लीलम्-न श्रीरस्यास्तीति वा, सिध्मादित्वात् ले ऋफिडादित्वात् रस्य लः। - -२११८० १ देखें-का० ४ श्लो० ३०१-३०९ Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समुखं लपनं संलापः, सम्मुखं कथनं संकथा (भीषिभूषि-५।३।१०९) इत्यङ्। -२०१८९ मन्यते अनया मतिः अर्थनिश्चयः, बुध्यते अनया बुद्धिः, ध्यायति दधाति वा धीः ('दिद्युत्-' ५।२।४३ ) इति क्विबन्तो निपात्यते । धृष्णोत्यनया धिषणा (धषिवहेरिश्वोपान्त्यस्य; उणा० १८९) इत्यणः । -२१२२२ तत्वानुगामिनी मतिः, पण्यते स्तूयते पण्डा ( पञ्चमाडः, उणा० १६८) इति डः। -२१२२४ नियतं द्वान्तीन्द्रियाणि अस्यां निद्रा, प्रमीलन्तीन्द्रियाण्यस्यां प्रमीला -२१२२७ पण्डते जानाति इति पण्डितः, पण्डा बुद्धिः संजाता अस्येति वा तारकादित्वादितः पण्डितः। छयति छिनत्ति मूर्खदुष्टचित्तानि इति छेकः (निष्कतुरुष्क-उणा० २६) इति कान्तो निपात्यते । विशेषेण मूर्खचित्तं दहति इति विदग्धः -३७ वाति गच्छति नरं वामा ('अकर्तरि-' उणा० ३३८) इति मः, यद्वा वामा विपरीतलक्षणया; शृङ्गारिखेदनाद्वा । -३।१६८ विगतो धवो भर्ता अस्याः विधवा -३।१९४ दधते बलिष्ठतां दधि.....", ('पदिपठि-' उणा० ६०७) इति इः।-३७० उपर्युक्त उदाहरणों से स्पष्ट है कि शब्दों की व्युत्पत्तियाँ कितनी सार्थक प्रस्तुत की गयी हैं। अतः स्वोपज्ञवृत्ति भाषा के अध्ययन के लिए बहुत आवश्यक है। शब्दों की निरुक्ति के साथ उनकी साधनिका भी अपना विशेष महत्व रखती है। प्रस्तुत हिन्दी संस्करण यह हिन्दी संस्करण भावनगर संस्करण के आधार पर प्रस्तुत किया गया है। इसमें मूल श्लोकों के अनुवाद के साथ स्वोपज्ञवृत्ति में आये हुए शब्दों का भी हिन्दी अनुवाद दिया गया है। अनुवादक और सम्पादक श्रीमान् पं० हरगोविन्द शास्त्री, व्याकरण-साहित्याचार्य हैं। आपने शब्दों की प्रातिपदिक अवस्था का भी निर्देश किया है। आवश्यकतानुसार विशेष शब्दों का लिङ्गादि निर्णय, विमर्श द्वारा गूढ़ स्थलों का स्पष्टीकरण, स्थल-स्थल पर टिप्पणी देकर विषय की सम्पुष्टि एवं शेषस्थ तथा स्वोपज्ञवृत्ति पर आधृत शब्दों के अतिरिक्त यौगिक और अन्यान्य शब्दों का अनुवाद में समावेश कर दिया है। सभी प्रकार के शब्दों की अकारादि क्रमानुसार अनुक्रमणिका एवं विषय-सूची आदि ३ अ० चि० भू० Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३४ ) के रहने से ग्रन्थ और अधिक उपयोगी बन गया है। इस प्रकार राष्ट्रभाषा हिन्दी के भाण्डार की इस कोश द्वारा प्रचुर समृद्धि हुई है । श्री पं० हरगोविन्दजी शास्त्री अनुभवी एवं सुयोग्य विद्वान् हैं। अब तक आपने अमरकोष, नेषधचरित, शिशुपालबध, मनुस्मृति एवं रघुवंश आदि ग्रन्थों का हिन्दी अनुवाद किया है। आपकी प्रतिभा का स्पर्श पा यह अनुपम ग्रन्थ सर्व साधारण के लिए सुपाठय बना है। मैं उनके इस अथोर परिश्रम के लिए उन्हें साधुवाद देता हूँ और आशा करता हूँ कि आपके द्वारा माँ भारती का भाण्डार अहर्निश वृद्धिङ्गत होता रहेगा । इस ग्रन्थ के प्रकाशक लब्धप्रतिष्ठ श्री जयकृष्णदास हरिदास गुप्त, अध्यक्षचौखम्बा संस्कृत सीरीज तथा चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी हैं। अब तक इस संस्था द्वारा लगभग एक सहस्र संस्कृत ग्रन्थों का प्रकाशन हो चुका है 1 इस उपयोगी कृति के प्रकाशन के लिए मैं उन्हें भी साधुवाद देता हूँ । साथ ही मेरा इतना विनम्र अनुरोध है कि अगले संस्करण में स्वोपज्ञवृत्ति को अविकल रूप से स्थान देना चाहिए । इस वृत्ति का अनेक दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण स्थान है। विद्वानों और जिज्ञासुओं के लिए वृत्ति में ऐसी प्रचुर सामग्री है, जिसका उपयोग शोध के विभिन्न क्षेत्रों में किया जा सकता है । इस संस्करण को शिक्षण संस्थाओं, पुस्तकालयों, छात्रों एवं अध्यापकों के बीच पर्याप्त आदर प्राप्त होगा । विजया दशमी २०२० वि० सं० } - नेमिचन्द्र शास्त्री Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आमुख "एकः शब्दः सम्यग्ज्ञातः सुप्रयुक्तः स्वर्गे लोके च कामधुग्भवति ।" इस वचनके अनुसार सम्यक् प्रकारसे ज्ञात एवं प्रयुक्त शब्द उभयलोकमें मनोवांछित फल देनेवाला होता है, क्योंकि विश्वके हस्तामलकवत् प्रत्यक्षद्रष्टा हमारे प्राचार्योंने 'शब्द'को साक्षात् ब्रह्म कहा है और प्राणियोंने शब्द अथवा अनाहत नादरूपमें ही ब्रह्मका साक्षात्कार किया है, अतएव शब्दके सम्यग्ज्ञान और अनुभवकी महत्ता सुतरां सिद्ध हो जाती है। शब्दप्रयोगके विना अपने मनोगत. अभिप्रायको दूसरे व्यक्तिसे कोई भी मनुष्य व्यक्त नहीं कर सकता और वैसे व्यक, व्युत्पन्न एवं सार्थक शब्दके प्रयोगकी क्षमता एकमात्र मानवमें ही है, पशु-पक्षी आदि अन्य प्राणियों में नहीं । यद्यपि आचार्यों ने "शक्तिग्रहं व्याकरणोपमानकोषाप्तवाक्याद्वयवहारतश्च । वाक्यस्य शेषाद्विवृतेर्वदन्ति सान्निध्यतः सिद्धपदस्य वृद्धाः॥" इस वचनके द्वारा व्याकरण, उपमान, कोष, आप्तवाक्य, व्यवहार आदिको व्युत्पन्न शब्दका शक्तिग्राहक बतलाया है; तो भी उनमें व्याकरण एवं कोष ही मुख्य हैं। इनमें भी व्याकरणके प्रकृति-प्रत्यय-विश्लेषणद्वारा प्रायः यौगिक शब्दोंका ही शक्तिग्राहक होनेसे सर्वविध (रूढ, यौगिक तथा योगरूढ ) शब्दोंका पूर्णतया अबाध ज्ञान कोश-द्वारा ही हो सकता है । भगवान्-पतञ्जलिने कहा है "एवं हि श्रूयते-बृहस्पतिरिन्द्राय दिव्यं वर्षसहस्रं प्रतिपदोक्तानां शब्दानां शब्दपारायणं प्रोवाच, नान्तं जगाम | बृहस्पतिश्च प्रवक्ता, इन्द्रश्चाध्येता, दिव्यं वर्षसहस्रमध्ययनकाल; न चान्तं जगाम, किं पुनरद्यत्वे । यः सर्वया चिरं जीवति, वर्षशतं जीवति ।" (महाभाष्य, पस्पशाह्निक) इस तथ्य की पुष्टि अनुभूतिस्वरूपाचार्य के निम्नोक्त पद्य से भी होती है "इन्द्रादयोऽपि यस्यान्तं न ययुः शब्दवारिधः । प्रक्रियान्तस्य कृत्स्नस्य क्षमो वक्तं नरः कथम् ॥" Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अमरगुरु बृहस्पति-जैसे गुरु तथा अमरराज इन्द्र-जैसे शिष्य, दिव्य सहस्र वर्ष (३६०००० मानव वर्ष ) आयु होनेपर भी जिस शब्द-सागरके पारगामी न हो सके, उस शब्द-सागरका पारङ्गत होना अधिक-से-अधिक १०० वर्ष परिमित. आयुवाले वर्तमानकालिक मानवके लिए किस प्रकार सम्भव है ? हाँ, पूर्वकालमें योगबल-द्वारा सम्यग्ज्ञान-सम्पन्न, साक्षात् मन्त्रद्रष्टा महामहिम महषिगण उक्त शब्द. सागरके -पारगामी अवश्य होते थे, किन्तु परिवर्तनशील संसारमें कालचक्रके चलते उक्त योगबलके साथ ही साक्षात्-मन्त्रद्रष्टत्व शक्तिका भी हास होने लगा। फलतः वैसे साक्षात् मन्त्रद्रष्टा महर्षियोंका सर्वथा अभाव होनेसे भगवान् कश्यप मुनिने वैदिक मन्त्रार्थज्ञानके लिए सर्वप्रथम 'निघण्टु' नामक कोपकी रचना की। परन्तु कालचक्रके अबाध गतिसे उसी प्रकार चलते रहनेसे योगबलका और भी अधिक ह्रास हुआ और उक्त 'निघण्टु'के भी समझनेवालोंका अभाव देखकर. 'यास्क' मुनिने 'निरुक्त' नामक कोषकी रचना की। जिस प्रकार अग्नि-निर्गत ज्वालाको अग्नि ही माना जाता है, उसी प्रकार वेदनिर्गत उक्त कोषद्वयको भी वेद ही माना गया है। लौकिक कोषोंकी परम्परा ज्ञान-हासक कालचक्रके अबाध रूपसे चलते रहनेसे लौकिक शब्दोंके भी ज्ञाताओंका हास हो जानेपर आचार्योंने लौकिक कोषोंका निर्माण किया। इनमें सर्वप्रथम किस लौकिक कोषका किस प्राचार्यने निर्माण किया, इसका वास्तविक ज्ञान आजतक अन्धकारमें ही पड़ा है, क्योंकि १२ वीं शताब्दीमें रचित 'शब्दकल्पद्रुम' नामक कोषमें २६ कोषकारोंके नाम उपलब्ध होते हैं। प्रायः सौ वर्षोंसे दुर्लभ एवं सार्वजनीन संस्कृत ग्रन्थोंके मुद्रण-प्रकाशन-द्वारा अमरवाणी-साहित्यकी सेवामें सतत संलग्न रहनेसे भारतमें ही नहीं, अपितु विदेशीतकमें ख्यातिप्राप्त 'चौखम्बा संस्कृत सीरीज, वाराणासी' ने चिरकालसे दुष्प्राप्य उक्त शब्दकल्पद्रुम तथा वाचस्पत्यम् नामक महान् ग्रन्थरनोंका प्रकाशन, गतवर्ष ही किया है । 'शब्दकल्पद्रुम' में मिलनेवाले कात्यायन, साहसाङ्क, उत्पलिनी आदि कोषग्रन्थ यद्यपि वर्तमानकालमें सर्वथा अनुपलभ्य हैं, तथापि उनके परम्परोपलब्ध वचन परवती टीकाकारोंके आजतक उपजीव्य हो रहे हैं । विशेष जिज्ञासुओंको इस ग्रन्थकी विस्तृत प्रस्तावनासे कोषग्रन्थोंकी परम्पराका ज्ञान करना चाहिए। Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३७ ) अमरकोष तथा अभिधानचिन्तामणि वर्तमान काल में उपलब्ध होनेवाले संस्कृत कोषग्रन्थोंमें अमरकोषके ही सर्वाधिक जनप्रिय होनेसे उसीके साथ तुलनात्मक विवेचनकर प्रस्तुत ग्रन्थकी महत्ता बतलायी जाती है। इस अभिधानचिन्तामणिकी कुल श्लोकसंख्या १५४२ है, जो प्रायः अमरकोषकी श्लोकसंख्याके बराबर ही है। फिर भी अमरकोषमें कहे गये नाम और उनके पर्यायोंकी अपेक्षा प्रकृत ग्रन्थमें उन्हीं नामोंके पर्याय अत्यधिक संख्या-कहीं-कहीं तो दुगुनीतकमें दिये गये हैं। दिग्दर्शनार्थ कुछ उदाहरण यहाँ दिये जाते हैं । यथाक्रमाङ्क नाम अ० को० की पर्यायसंख्या अ० चि० की पर्यायसंख्या १ सूर्य २ किरण ?? ३ चन्द्र . . २० .. ४ शिव ४८ ५ गोरी a. - me w 3 __ ब्रह्मा 22 w9. . ॐ ॐ ७ विष्णु ८. अग्नि उपरिलिखित नामोंके पर्यायोंमें यदि अभिघानचिन्तामणिकी स्वोपज्ञ वृत्तिमें कथित पर्यायसंख्या जोड़ दी जाय तो उक्त संख्या कहीं-कहीं अमरकोषसे तिगुनी-चौगुनीतक पहुँच जायेगी। - इसी प्रकार अमरकोषमें अवर्णित चक्रवर्तियों, अर्धचक्रवर्तियों, उत्सपिणी तथा अवसर्पिणी कालके तीर्थङ्करों एवं उनके माता, पिता, वर्ण, चिह्न और वंश आदिका भी साङ्गोपाङ्ग वर्णन प्रस्तुत ग्रन्थमें किया गया है। ___ इसके अतिरिक्त जब कि अमरकोषमें अत्यल्प-संख्यक नदियों, पर्वतों, नगर-शाखानगरों, भोज्य पदार्थों के पर्यायोंका वर्णन किया गया है; वहाँ अभिधानचिन्तामणिमें लगभग एक दर्जन नदियों; उदयाचल, अस्ताचल, हिमालय, विन्ध्य आदि डेढ़ दर्जन पर्वतों; गया, काशी आदि सप्तपुरियोंके साथ कान्यकुब्ज, मिथिला, निषधा, विदर्भ आदि लगभग डेढ़ दर्जन देशों, वाल्मीकि, व्यास, याज्ञवल्क्य आदि ग्रन्थकार महर्षियों, अश्विन्यादि सत्ताइस नक्षत्रों और साङ्गोपाङ्ग गृहावयवोंके साथ बर्तनों; सेव, घेवर, लड्डू आदि Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध भोज्य पदार्थों तथा हाट-बाजार आदि-आदि अनेक नामोंके पर्याय दिये हैं। प्रस्तुत ग्रन्थकी महत्त्वपूर्ण विशिष्टता यह है कि ग्रन्थकारोक्त शैलीके अनुसार कविरूढिप्रसिद्ध शतशः यौगिक पर्यायोंकी रचना करके पर्याप्त संख्यामें पर्याय बनाये जा सकते हैं; किन्तु अमरकोषमें उक्त या अन्य किसी भी शैलीसे पर्याय-निर्माणकी चर्चातक नहीं की गयी है। उपरिनिर्दिष्ट विवेचनसे यह स्पष्ट हो जाता है कि अमरकोषादि ग्रन्थोंकी अपेक्षा प्रस्तुत 'अभिधानचिन्तामणि' ही श्रेष्ठतम संस्कृत कोष है । अतएव यह कथन ध्रुव सत्य है कि प्राचार्य हेमचन्द्र सूरिने इस ग्रन्थकी रचना कर संस्कृत-साहित्यके शब्द-भाण्डारकी प्रचुर परिमाणमें वृद्धिकी है। काशीनरेश हि. हा. स्वर्गीय श्रीप्रभुनारायणसिंहके राजपण्डित मेरे सम्बन्धी स्व०प० द्वारकाधीश मिश्रजीके भ्रातृज स्व०५० रूपनारायण मिश्र (बच्चा पण्डित ) जीसे कुछ अन्य पुस्तकोंके साथ हस्तलिखित अभिधानचिन्तामणिकी एक प्रति तथा मैथिल विद्याकर मिश्र' प्रणीत हेमचन्द्र सूची प्राप्त हुई। उसे आद्यन्त अध्ययन करनेके बाद मैंने अमरकोषकी संक्षिप्त माहेश्वरी व्याख्याके ढङ्गपर एक व्याख्या लिखी, किन्तु उक्त व्याख्यासे पूर्णतः सन्तोष नहीं होनेसे मैं उक्त ग्रन्थकी विस्तृत संस्कृत व्याख्याकी खोजमें लगा, 'चौखम्बा संस्कृत सीरीज' ( वाराणसी ) के व्यवस्थापक श्रीमान् बाबू कृष्णदासजी गुप्तसे पता चलनेपर भावनगरमें मुद्रित स्वोपज्ञवृत्ति सहित प्रति मँगवाई और उसी वृत्तिके आधारपर इस 'मणिप्रभा' नामकी टीकाको राष्ट्रभाषामें पुनः तैयार किया। साथ ही इस ग्रन्थकी स्वोपज्ञवृत्तिमें लगभग डेढ़ सहस्रसे अधिक पर्यायोंके निर्देशक 'शेष'स्थ श्लोकोंको भी यथास्थान सन्निविष्ट कर दिया, उक्त वृत्तिमें आये हुए मुलग्रन्थोक्त पर्यायोंके अतिरिक्त यौगिक पर्यायोंके साथ ही अन्याचार्यसम्मत अन्यान्य बहुत-से पर्याय शब्दोंका भी समावेश कर दिया एवं क्लिष्ट विषयोंको विमर्श और टिप्पणीके द्वारा अधिक सुस्पष्ट एवं सुबोध्य बना दिया । ___ १ "समाप्तेयं हेमचन्द्र-सूची मैथिलश्रीविद्याकरमिश्रप्रणीता ।” हेमचन्द्र-सूचीके अन्तमें ऐसी 'पुष्पिका' लिखी हुई है। र उक्त सूचीमें "जिनस्य २५ अर्हदादि २४ श्लो०, वृत्ताहतामेकैकं २४ ऋषभेति २६ श्लो०" इत्यादि रूपमें किस अभिधान ( नाम ) के किस शब्दसे आरम्भ कर कितने पर्याय हैं, यह काण्ड तथा श्लोकसंख्याके साथ लिखा गया है। Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३६ ) कोई भी पर्याय पाठकोंको सुविधाके साथ शीघ्र मिल जाय, इसके लिए ग्रन्थान्तमें त्रिविध ( मूलग्रन्थस्थ, शेषस्थ तथा मणिप्रभा-विमर्श-टिप्पणीस्थ ) शब्दोंकी अकारादि क्रमसे सूची भी दे दी गयी है। मूलग्रन्थमें विस्तारके साथ कहे गये प्राशयोंके संक्षेपमें एक जगह ही ज्ञात होनेके लिए आवश्यकतानुसार यथास्थान चक्र भी दिये गये हैं। इस प्रकार प्रकृत ग्रन्थको सब प्रकारसे सुबोध्य एवं सरल बनाने के लिए भरपूर प्रयत्न किया गया है। आभारप्रदर्शन इस ग्रन्थकी विस्तृत एवं खोजपूर्ण प्रस्तावना लिखनेकी जो महती कृपा मेरे चिरमित्र, अनेक ग्रन्थोंके लेखक डॉ० नेमिचन्द्रजी शास्त्री ( ज्यौ० प्राचार्य, एम० ए० (संस्कृत, प्राकृत और हिन्दी ), पी० एच० डी०, अध्यक्ष संस्कृत प्राकृत विभाग हरदास जैन कॉलेज आरा ) ने की है; तदर्थ उन्हें मैं कोटिशः धन्यवादपूर्वक शुभाशीः प्रदान करता हूँ कि वे सपरिवार सानन्द, सुखी, एवं चिरजीवी होकर उत्तरोत्तर उन्नति करते हुए इसी प्रकार संस्कृत साहित्यकी सेवामें संलग्न रहें। साथ ही जिन विद्वानों एवं मित्रोंने इस ग्रन्थकी रचनामें जो साहाय्य किया है, उन सबका भी आभार मानता हुआ उन्हें भूरिशः धन्यवाद देता हूँ। पूर्ण निष्ठाके साथ संस्कृत साहित्यके सेवार्थ दुर्लभ तथा दुर्बोध्य ग्रन्थोंको ख्यातिप्राप्त विद्वानोंके सहयोगसे सुलभ एवं सुबोध्य बनाकर प्रकाशन करनेवाले 'चौखम्बा संस्कृत सीरीज, तथा चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी' के व्यवस्थापक महोदयने वर्तमानमें शताधिक ग्रन्थोंका मुद्रण कार्य चलते रहनेसे अत्यधिक व्यस्त रहनेपर भी चिरकालसे दुर्लभ इस ग्रन्थके प्रकाशनद्वारा इसे सर्वसुलभ बनाकर संस्कृत साहित्यकी सेवामें जो एक कड़ी और जोड़ दी है; तदर्थ उनका बहुत-बहुत आभार मानता हुआ उन्हें शुभाशीःप्रदानपूर्वक भूरिशः धन्यवाद देता हूँ। अन्तमें माननीय विद्वानों, अध्यापकों तथा स्नेहास्पद छात्रोंसे मेरा विनम्र निवेदन है कि मेरे द्वारा अनूदित अमरकोष, नैषधचरित, शिशुपालवघ, रघुवंश तथा मनुस्मृति आदि ग्रन्थोंको अद्यावधि अपनाकर संस्कृतसाहित्य-सेवार्थ मुझे जिस प्रकार उन्होंने उत्साहित किया है, उसी प्रकार इसे भी अपनाकर आगे भी उत्साहित करनेकी असीम अनुकम्पा करते रहेंगे। Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४०) मुझे दूरस्थ रहने, शीशेके टाइपोंके सूक्ष्मतम होने तथा लेखनसंशोधनादिमें मानव-सुलभ दोष रह जाना असम्भव नहीं होनेसे नवमुद्रित इस ग्रन्थमें त्रुटिका सर्वथा अभाव कहनेका साहस तो नहीं ही किया जा सकता, अतएव इस ग्रन्थमें यदि कहीं कोई त्रुटि दृष्टिगोचर हो तो उसके लिए कृपालु पाठकोंसे करबद्ध प्रार्थनाके साथ क्षमायाचना करता हुआ आशा करता हूँ कि वे गच्छतः स्खलनं कापि भवत्येव प्रमादतः। . हसन्ति दुजेनास्तत्र समादधति सज्जनाः॥ इस सूक्तिको ध्यानमें रखकर मुझे अवश्यमेव क्षमा-प्रदान करनेकी सहज अनुकम्पा करेंगे । इति शम् ।। विजयादशमी, वि० सं० २०२० विवुध-सेवक :हरगोविन्द मिश्र, शास्त्री. Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साङ्केतिक चिह्न तथा शब्द के विवरण (क) मूल के सङ्केत मूल श्लोकों के पहले या मध्य में आये हुए अङ्क नीचे लिखी गयी 'मणिप्रभा' ब्याख्या के प्रतीक हैं। एवं श्लोकान्त में आये हुए अङ्क श्लोकों के क्रमसूचक हैं। (ख ) टीका तथा टिप्पणी के संकेत. ( ) इस कोष्टक के अन्तर्गत -, = ये दो चिह्न मूल शब्दों के प्रातिपदिकावस्था के रूप को सूचित करते हैं । प्रथमोदाहरण-"लक्ष्म (-चमन् )" इससे ज्ञात होता है कि प्रातिपदिकावस्था में 'लचमन्' शब्द तथा प्रथमा विभक्ति के एकवचन में 'लक्ष्म'ये रूप होते हैं। द्वितीयोदाहरण-"योः ( = द्यो), द्यौः (= दिव)" यहां यह ज्ञात होता है कि प्रथम शब्द के प्रातिपदिकावस्था का स्वरूप 'द्यो' तथा द्वितीय शब्द के प्रातिपदिकावस्था का स्वरूप दिव' होता है और उक्त दोनों शब्दों के प्रथमा विभक्ति के एकवचन का स्वरूप 'यौः' होता है। . ( ) इस कोष्टान्तर्गत शब्द के पूर्व में दिया गया + चिह्न मूल ग्रन्थ के बाहरी शब्द को सूचित करता है। यथा-व्रीडा (+व्रीडः), शाकुलः (+ शौकला),....."से सूचित होता है कि मूल ग्रन्थ में 'व्रीडा' और 'शाकुल' शब्द हैं; किन्तु अन्यत्र 'वीड' तथा 'शौष्कल' शब्द भी उपलब्ध होते हैं । () इस कोष्ठ के अन्तर्गत दिये गये “यौ०, ए०व०, द्विव०, ब०व०, नि०, पु०, स्त्री०, न० या नपु०, त्रि०, अन्य०, शे० और उदा०"-ये सङ्केत क्रमशः यौगिक, एकवचन, द्विवचन, बहुवचन, नित्य, पुंल्लिङ्ग, स्त्रीलिङ्ग, नपुंसकलिङ्ग, त्रिलिङ्ग, अव्यय, शेष अर्थात् बाकी, और उदाहरण" इन अर्थों को सूचित करते हैं। पृ०-पृष्ठ पं०-पंक्ति स्वो०-स्वोपज्ञवृत्ति अभि० चिन्ता-अभिधानचिन्तामणि ......"-इत्यादि Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 jilbil ( ४२ ) . देखने का प्रकार -जिस शब्द के साथ जो सकेत है, उसी शब्द के साथ उस सङ्केत का सम्बन्ध है । २-संख्यासहित शब्द का पहलेवाले उतने ही शब्दों के साथ सम्बन्ध है । ३-कहीं-कहीं एक ही शब्द में एकाधिक संकेत भी हैं, उनका सम्बन्ध उसी क्रम से है। क्रमशः उदा०-१. “तारका (त्रि) और तारा (स्त्री पु)" यहां 'तारका' शब्द को विलिङ्ग तथा 'तारा' शब्द को स्त्रीलिङ्ग तथा पुंल्लिङ्ग जानना चाहिए । २. तथा ३.: "कल्यम्, प्रत्युषः, उषः (२-षस), काल्यम (+ प्रातः,-तर, प्रगे, प्राले, पूर्वेघुः-घुस्। ४ अव्य०)। यहांपर '-२-षस' का सम्बन्ध उसके पूर्ववर्ती 'प्रत्युषः, उषः' इन दो शब्दों के साथ होने से इनके प्रातिपदिकावस्था का रूप क्रमशः 'प्रत्युषस' और 'उषस्' होता है। इसी प्रकार मूलस्थ 'काल्यम्'. अर्थात् 'काल्य' शब्द के अतिरिक्त अन्य स्थानों में प्रातः' आदि शब्द भी 'प्रभात' अर्थ के वाचक हैं, इनमें 'प्रातः' शब्द के प्रातिपदिकावस्था का रूप 'प्रातर' है तथा 'प्रातर' से ४ शब्द (प्रातर, प्रगे, पाल, पूर्वेयुस्) अव्यय हैं, ऐसा जानना चाहिए। () इस कोष्ठक के अन्तर्गत किसी चिह्न से रहित शब्द या शब्द-समूह पूर्ववर्ती शब्द के आशय को स्पष्ट करते हैं, यथा--"सहोक्त (साथ में कहे गये ), तीनों सन्ध्याकाल (प्रातः सन्ध्या, मध्याह्न सन्ध्या तथा सायं सन्ध्या)" ........। यहां 'सहोक्त' शब्द का आशय 'साथ में कहे गये और तीनों सन्ध्याकाल का आशय 'प्रातः सन्ध्या'..." है। "शेषश्च ......” इससे 'स्वोपज्ञवृत्ति' में आये हुए शेष शब्दों के बोधक मूल श्लोकों को लिखा गया है। Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्द-सूची के संकेत (क) शब्द-सूची के प्रत्येक पृष्ठ के धाम तथा दक्षिण पार्श्व में क्रमशः उस पृष्ठ के आदि तथा अन्तवाले शब्द [ ] इस कोष्ठ के अन्तर्गत लिखित हैं, इससे शब्द खोजनेवालों को शब्दोपलब्धि में विशेष सुविधा होगी। (ख) प्रत्येक शब्द-सूची में कहीं भी प्रथम या द्वितीय अक्षर तक ही अकारादिक्रम न रखकर प्रत्येक शब्द में आदि से अन्त तक अकारादि क्रम रखने का पूर्णतया ध्यान रखा गया है। (ग) मूलस्थ शब्द-सूची--पहले मूल में कथित शब्दों के प्रातिपदिकावस्था के रूप तथा बाद में काण्डों तथा श्लोकों की संख्याएँ दी गयी हैं। यथा-'अ' शब्द ६ष्ट काण्ड के १७५ वें श्लोक में उपलब्ध होगा । इसी प्रकार सर्वत्र समझना चाहिए। (घ) शेषस्थ शब्द-सूची-पहले 'शेष' में आनेवाले शब्दों के प्राति- . पदिकावस्था का रूप तथा बाद में पृष्ठ एवं पंक्ति (मलस्थ श्लोकों की पंक्तियों को छोड़कर 'मणिप्रभा'. व्याख्या से पंक्तिगणना करनी चाहिए) की संख्या दी गयी है। विशेष-जिस शब्द के अंत में 'परि० १' के बाद में संख्या है, 'वह शब्द 'परिशिष्ट १ में लिखित क्रमसंख्या में उपलब्ध होगा, ऐसा समझना चाहिए । यथा-'अक्षज' शब्द ६२ वें पृष्ठ के 'मणिप्रभा' व्याख्या की २१ वीं पंक्ति में मिलेगा। तथा 'अर्शोन्न' शब्द परिशिष्ट १ के क्रमाङ्क ९ में उपलब्ध होगा। यही क्रम सर्वत्र है। । (ङ) 'मणिप्रभा' व्याख्या, विमर्श तथा टिप्पणी के शब्दों की सूची-इसमें भी शब्दों के प्रातिपदिकावस्था के रूप के बाद पृष्ठ तथा पंक्तियों की संख्या (पूर्ववत् मूलश्लोकों की पंक्तियों की संख्या छोड़कर यहाँ भी 'मणिप्रभा' व्याख्या से ही पंक्ति-गणना करनी चाहिए ) दी गयी है। यथा'अंशुपति' शब्द ८ वें पृष्ठ की 'मणिप्रभा' ब्याख्या के ९वीं पंक्ति में मिलेगा। इसी प्रकार आगे भी जानना चाहिए। Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चक्र-सूची १. वर्तमान अवसर्पिणी काल में होनेवाले तीर्थकरों के नाम___वंसादि का बोधक चक्र २. भारत के बारह चक्रवर्तियों का बोधक चक्र ३. अर्द्धचक्रियों एवं उनके अग्रजों, पिताओं और शत्रुओंका बोधक .. १७२ ४. 'पत्ति' आदि से लेकर 'अक्षौहिणी' तक सेना-विशेष के गादि- . संख्या का बोधक चक्र . .. १८५ ५. त्रिविध मानों का बोधक चक्र ६. वर्णसङ्करों के माता-पिताओं की जाति का-बोधक चक्र - ~ Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || श्रीः ।। अभिधानचिन्तामणिः 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः . अथ देवाधिदेवकाण्डः ॥१॥ १ प्रणिपत्यार्हतः सिद्धसाङ्गशब्दानुशासनः । रूढयौगिकमिश्राणां नाम्नां मालां तनोम्यहम् ।।१।। २ व्युत्पत्तिरहिताः शब्दा रूढा आखण्डलादयः। ३ योगोऽन्वयः स तु गुण क्रियासम्बन्धसम्भवः ॥२॥ . शेषक्षीरसमुद्रकौस्तुभमणीन् विष्णुर्मरालं विधिः कैलासाद्रिशशाङ्कजनतनयानन्द्यादिकान् शङ्करः ।। यच्छुक्लत्वगुणस्य गौरववशीभूता इवाशिश्रियु स्ता विश्वव्यवहारकारणमयीं श्रीशारदां संश्रये ॥ १ ॥ आचार्य हेमचन्द्रकृताभिधानचिन्तामणेरमलाम् । विबुधो हरगोविन्दस्तनुते 'मणिप्रभा' व्याख्याम् ।। २ ।।। . १. अङ्गों (लिङ्ग-धातुपारायणादि ) सहित व्याकरण शास्त्रका ज्ञाता मैं (हेमचन्द्राचार्य ) 'अर्हत्' देवोंको प्रणामकर रूढ, यौगिक तथा मिश्र अर्थात् योगरूढ शब्दोंकी माला-"अभिधानचिन्तामणि"नामक ग्रन्थ बनाता हूँ ।। ____२. ( पहले क्रमप्राप्त रूढ शब्दोंकी व्याख्या करते हैं-) व्युत्पत्तिसे रहित अर्थात् प्रकृति तथा प्रत्ययके विभाग करनेसे भी अन्वर्थहीन, शब्दोंको 'रूढ' . कहते हैं; यथा-आखण्डल:, श्रादिसे-मण्डपः,...""का संग्रह है। . विमर्श :-"नाम च धातुजम्” इस शाकटायनोक्त वचनके अनुसार यद्यपि 'रूढ' शब्दोंकी भी व्युत्पत्ति होती है, तथापि उस व्युत्पत्तिका प्रयोजन केवल वर्णानुपूर्वीका विज्ञान ही है, अन्वर्थ-प्रतीतिमें कारण नहीं है, अत एव 'रुद्ध' शब्द व्युत्पत्तिहीन ही हैं। ३. ( अब यहाँसे १।१८ तक यौगिक' शब्दोंकी व्याख्या करते हैं-) शन्दोंके परस्पर अर्थानुगमको अन्वय या 'योग कहते हैं, वह योग 'गुण, क्रिया तथा सम्बन्ध' से उत्पन्न होता है। Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अमिधानचिन्तामणिः १ गुणतो नीलकण्ठाद्याः क्रियातः स्रष्टसन्निभाः। २ स्वस्वामित्वादिसम्बन्धस्तत्राहुर्नाम तद्वताम् ॥ ३ ॥ __ स्वात्पालधनभुग्नेतृपतिमत्वर्थकादयः । ३ भूपालो भूधनो भूभुग भूनेता भूपतिस्तथा ॥४॥ . भूमाँश्चेति ४ कविरूढया ज्ञेयोदाहरणावली। विमर्श :-'गुण से नीला, पीला इत्यादिको; २ 'क्रिया से 'करोति' इत्यादि को और ३ ‘सम्बन्ध से आगे तृतीय श्लोकमें कहे जानेवाले 'स्वस्वामित्वादि'को समझना चाहिए। १. ( अब गुण-क्रिया तथा सम्बन्धसे उत्पन्न योगसे सिद्ध 'यौगिक' शब्दोंका उदाहरण कहते हैं-)१ 'गुणसे'-नीलकण्ठः, इत्यादि ('आदि' शन्दसे 'शितिकण्ठः, कालकण्ठः,....' का संग्रह है ), २ 'क्रिया से स्रष्टा, इत्यादि ('श्रादि से 'धाता,".....'का संग्रह है)। .. विमर्श :-सङ्ख्या भी 'गुण' ही मानी गयी है, अत: 'त्रिलोचनः चतुर्मुखः, पञ्चबाणः, षण्मुखः, अष्टश्रवाः, दशग्रीवः,"......' शब्दोंको भी यौगिक ही समझना चाहिए । २. (अब ३ सम्बन्धसे उत्पन्न यौगिक शब्दोंको कहते हैं :-) स्वत्व तथा स्वामित्व आदिके सम्बन्धमें 'स्व' (श्रात्मीय )से परे रहनेपर पाल, धन, भुक, नेतृ, पति शब्द तथा मत्वर्थक आदि 'स्वामि'के वाचक होते हैं । ('स्वामित्व' श्रादिमें 'श्रादिः शब्दसे पञ्चमादि श्लोकोंमें वक्ष्यमाण जन्यजनक, धार्य-धारक, भोज्य-भोजक, पति-कलत्र, सखि, वाह्य-वाहक, ज्ञातेय, श्राभय-आश्रयी, वध्य-वधक,-भाव सम्बन्धोंको जानना चाहिए। इनके उदाहरण भी यथास्थान वहीं षष्ठ श्लोकसे जानना चाहिए। ३. (अब 'स्व' शब्दसे परे क्रमश: 'पाल' आदिका उदाहरण कहते हैं-) भूपालः, भूधनः, भूभुक् (-भुज ), भूनेता (-नेतृ ), भूपतिः, भूमान् (-मत् ), ये 'स्व' शब्दसे परे 'पाल' आदि शब्द अपने स्वामीके वाचक हैं, अतः 'भूपाल:, भृधन:,......' शब्दोंका "भूका स्वामी" अर्थात् राजा अर्थ होता है। विमर्श-मत्वर्थक श्रादि में-'आदि' शब्दसे मतुप , इन् , अण , इक इत्यादि प्रत्यय तथा 'प:' इत्यादिका ग्रहण है। क्रमश: उदा०-भूमान (-मत्); धनी, मानी:( २-निन् ); तापसः, साहस्रः; दण्डिकः, व्रीहिकः... ""; भूपः, धनदः,""""""॥ ४. 'कविरूढि'से ( कवियोंने जिन शन्दोंका प्रयोग शास्त्रोंमें किया हो ), उन्हीं शब्दोंका प्रयोग करना चाहिए । उनके अप्रयुक्त शब्दोंका नहीं, . अत एव-कपाली शब्द में 'स्व-स्वामिभावसम्बन्ध' रहनेपर भी कविप्रयुक्त Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः १ जन्यात्कृत्कर्तृमृस्रष्ट्र विधातृकरसूसमाः ॥५॥ २ जनकाद्योनिजरुहजन्मभूसूत्यणादयः .३ धार्याद् ध्वजास्त्रपाण्यङ्कमौलिभूषणभृग्निभाः ॥६॥ मतुवर्थक 'इन् प्रत्ययान्त 'कपाली' (-लिन् ) शब्दका ही प्रयोग करना चाहिए, कवियोमे.. अप्रयुक्त 'कपालपाल:, कपालधनः, कपालाभुक, कपालनेता, कपालपतिः' इत्यादि शब्दोंका प्रयोग नहीं करना चाहिए। ___ १. जन्य अर्थात् कार्यसे परे 'कृत् , कर्तृ, सृट स्रष्ट, विधात, कर, सू' इत्यादि शब्द जनक अर्थात् कारणके पर्यायवाचक होते हैं । (क्रमशः उदा०-विश्वकृत् , विश्वकर्ता (-क), विश्वसृट् (-सृज् ), विश्वस्रष्टा (-स्रष्ट), विश्वविधाता (-धात), विश्वकरः, विश्वस:,...'शब्द विश्वके कर्ता 'ब्रह्मा के पर्याय हैं । 'श्रादि' अर्थवाले 'सम' शब्दसे-'विश्वकारकः, विश्वजनक:,........'शब्द भी 'ब्रह्मा के पर्याय हैं। यहाँ भी कविसाढे'से ही प्रयोग होनेके कारण 'चित्रकृत् का प्रयोग तो होता है, परन्तु 'चित्रसू:' का प्रयोग नहीं होता )। २. जनक अर्थात् कारणवाचक' शब्दोंसे परे 'योनिः, जः, रुहः, क्मन्, भू तथा सूतिः' शब्द और 'अण' श्रादि ( 'आदि' शब्दसे "ण्य, फ,........." का संग्रह होता है ) प्रत्यय रहनेपर वे शब्द 'कार्योंके पर्यायवाचक होते हैं। (क्रमशः उदा०-'श्रात्मयोनिः, श्रात्मजः, श्रात्मरुहः, आत्मजन्मा (न्मन्), श्रात्मभूः, अात्मसूतिः' शब्द 'ब्रह्मा के पर्याय हैं । 'अण' आदि प्रत्ययके परे रहनेसे बननेवाले पर्यायोंका उदा०-भार्गवः, औपगवः, ... दैत्यः, बार्हस्पत्यः, श्रादित्य;"..."; वात्सायनः, गाग्यायणः,"""")। यहाँ भी 'कविरूढि'के अनुसार ही प्रयोग होनेके कारण 'ब्रह्मा के पर्यायमें "आत्मयोनि' शब्दका तो प्रयोग होता है, किन्तु 'श्रात्मजनकः, श्रात्मकारकः, .... शन्दोंका प्रयोग नहीं होता)॥ ३. 'धार्य' अर्थात् 'धारण करने योग्य'के वाचक 'वृष' आदि शब्दसे परे "ध्वज, अब, पाणि, अङ्क, मौलि, भूषण, भृत् ,के 'निभ' ( सदृश) शब्द और शाली, शेखर शब्द, मत्वर्थक प्रत्यय, तथा माली, भत और धर" शन्द 'धारक' अर्थात् ( 'वृष' आदि धार्यको धारण करनेवाले शिव (श्रादि) के पर्यायवाचक होते हैं । ( क्रमशः उदा०-वृषध्वजः, शूलास्त्रः, पिनाकपाणिः, वृषाङ्कः, चन्द्रमौलिः, शशिभूषणः, शूलभृत्" इत्यादि; तथा "पिनाकभर्ता (-भत ) शशिशेखरः, शूली (-लिन् ), पिनाकशाली (-लिन् ), पिनाकभर्ता (-त) पिनाकधरः" शब्द 'वृष' (बैल ) आदिको धारण करनेवाले 'शिवजी के पर्याय होते हैं। यहां भी 'कविरूढि' के अनुसार ही प्रयोग होने के .. Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - अभिधानचिन्तामणिः शालिशेखरमत्वर्थमालिभर्तृधरा अपि । १ भोज्याद्भगन्धो व्रतलिटपायिपाशाशनादयः ॥ ७॥ २ पत्युः कान्ताप्रियतमावधूप्रणयिनीनिभाः । कारण 'शिवजी के पर्यायोंमें 'वृषध्वज के समान 'शूलध,जःका, 'शूलास्त्रः'के समान 'चन्द्राङ्कः'का, 'पिनाकपाणि: के समान 'अहिपाणि:'का. 'वृषाङ्कः'के समान 'चन्द्राङ्कः'का, 'चन्द्रमौलि. के समान 'गङ्गामौलका, 'शशिभूषण:'के समान 'शूलभूषण:का, 'शूलशाली के समान 'चन्द्रशानी'का, 'चन्द्रशेखरः'के समान 'गङ्गाशेखरः का, 'शूली'के समान · 'शूलवान्का, 'पिनाकमाली'के समान 'सर्पमाली'का, पिनाकर्ता के समान 'चन्द्रमा का और 'गङ्गाधरः' के समान 'चन्द्रधरः का प्रयोग नहीं होता है। विमर्श:-'समान' अर्थमं प्रयुक्त निभ' शब्दसे उनके दुल्य वेतन, आयुध, लक्ष्म, शिरस, आभरण,..."शब्द यदि 'धार्यवाचक शब्दके बादमें रहें तो वे धारक के पर्यायवाचक हो जाते हैं। क्रमशः उदा०-वृषकेतन:, शूलायुधः, वृषलदमा (-क्ष्मन् ), चन्द्रशिराः (-रस ), चन्द्राभरण:....)॥ . १. भोज्य अर्थात् खाने योग्य वस्तुके वाचक शन्दके बादमें 'भुज', अन्धः, व्रत, लिट , पायी, प, अाश, अशन' आदि शब्द रहें तो वे उन भोज्य वस्तुओंके भोक्ताओं ( भोजन करनेवालों )के पर्याय होते हैं । (क्रमशः उदा०-अमृतभुजः (-भुज ), अमृतान्धसः ( -न्धसं ), अमृतव्रताः, अमृतलिहः (-लिट ), अमृतपायिनः (-यिन् ), अमृतपाः, अमृताशाः, अमृताशनाः, आदि शब्द देवोंके भोज्य (. खाने योग्य वस्तु ) अमृतके बादमें 'भुज् ,......' आदि शब्द होनेसे देवोंके पर्यायवाचक होते हैं, क्योंकि 'अमृत' देवोंकी भोज्य वस्तु है, ऐसी रूढि है। विमर्श-'यादि' शब्दसे उन ( भुज... ) के समानार्थक भोजन आदि शब्दोका ग्रहण है, अतः 'अमृतभोजनाः,....' शब्द भी देवोंके पर्यायवाचक होते हैं । यहाँ भी कवि-रूढिसे प्रसिद्ध शब्दोंका ही ग्रहणं होनेसे जिस प्रकार 'अभृतभुजः, अमृताशनाः' यादि शब्द देवोंके पर्यायवाचक * होते हैं; उसी प्रकार 'अमृतवल्माः ' आदि शब्द 'देवों के पर्यायवाचक नहीं होते ।। २. 'पति'वाचक शब्दके बादमें 'कान्ता, प्रियतमा, वधू, प्रयायिनी' के निभ अर्थात् सदृश ( कान्तादिके सदृश-रमणी, वल्लभा, प्रिया आदि ) शब्द रहें तो वे शब्द उसकी भार्याके पर्यायवाचक होते हैं। (क्रमशः उदा०-शिवकान्ता, शिवप्रियतमा, शिववधूः, शिवप्रणयिनी ( तथा सदृशार्थक 'निभ' शब्दसे ग्राह्यके उदा०-'शिवरमणी, शिववल्लभा, शिवप्रिया,"") Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः १ कलत्राद्वररमणप्रणयीशप्रियादयः ॥८॥ २ सख्युः सखिसमा ३ बाह्याद्गामियानासनादयः । शब्द 'शिव'के बादमें उनकी रमणी ग्रादि शब्दके होनेसे शिवजीकी भार्या पार्वतीके पर्यायवाचक होते हैं। क्योंकि 'पार्वती' शिवजीकी भार्या है, यह रूद्धि है। विमर्श-यहाँ भी कवि-रूढिसे प्रसिद्ध शब्दोंका ही ग्रहण होनेसे जिस प्रकार 'शिवकान्ता, शिववल्लभा' अादि शब्द पार्वतीके पर्यायवाचक हैं, उसी प्रकार 'शिवपरिग्रहः' आदि शब्द भी पार्वतीके पर्यायवाचक नहीं है ।। १. कलत्र अर्थात् स्त्रीवाचक शब्दके बादमें 'वर, रमण, प्रणयी, ईश, प्रिय' आदि शब्द रहें तो वे उनके पतिके पर्यायवाचक होते हैं । (क्रमशः उक-गौरीवर:, गौरीरमणः, गौरीप्रणची ( -यिन् , गौरीशः,"शब्द गौरीके पति शिवजीके पर्यायवाचक है; क्योंकि शिवजी पार्वती के पति हैं, ऐसी रूहि है। विमर्श-'आदि' शब्दसे तत्समानार्थक-('वर, रमण' आदि शब्दोंके समान अर्थवाले 'पति, भर्ता, वल्लभ' आदि शब्दोंका ग्रहण होनेसे 'गोरीपतिः, गौरीमती ( -तृ ), गौरीवल्लभः' अादि शब्द भी गौरीके पति शिवजीके पर्याय हैं। यहाँ भी कवि-रूढिसे प्रसिद्ध शब्दोंका ही ग्रहण होनेसे जिस प्रकार “गोरीवर' आदि शब्द शिवजीके पर्यायवाचक होते हैं, उसी प्रकार 'गङ्गावरः' आदि शब्द शिवजीके पर्यायवाचक नहीं होते ॥ .. २. सखि अर्थात् मित्रके वाचक शब्दके बादमें 'सखि' और उसके ( सखि शब्दके ) समान 'सुहृद्' आदि शब्द रहें तो वे उसके मित्रके • पर्यायवाचक होते हैं । (क्रमशः उदा०-श्रीकण्ठसखः, मधुसखः, वायुसखः, अग्निसख:, आदि शब्द क्रमशः 'कुबेर, कामदेव, अग्नि, और वायु'के पर्यायवाचक हैं; क्योंकि 'श्रीकण्ठ (शिवजी), मधु (वसन्त), वायु और अग्नि' के क्रमशः "कुबेर, कामदेव, अग्नि और वायु' मित्र हैं, ऐसी रूढि है। विमर्श-समानार्थक 'सम' शब्दसे 'सखि'के समान अर्थवाले 'सुहृद्' आदि शब्दका ग्रहण होनेसे 'कामसुहृद् , काममित्रम्' आदि शब्द भी कामके मित्र 'वसन्त'के पर्याय हो जाते हैं । यहाँ भी कविरूढिसे प्रसिद्ध शब्दोंका हो. ग्रहण होनेके कारण जिस प्रकार 'श्रीकण्ठसखः' शब्द शिवजीके मित्र "कुबेर'का पर्यायवाचक है, उसी प्रकार 'धनदसखः' शब्द धनद ( कुबेर )के मित्र शिवजीका पर्यायवाचक नहीं होता ।। ३. 'वाह्य' अर्थात् वाहन ( सवारी)-वाचक शब्दके बाद 'गामी, Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणिः १ जातेः स्वमृदुहित्रात्मजाग्रजावरजादयः २ आश्रयात् सद्मपर्यायशयवासिसदादयः ॥६॥ । यान, आसन' आदि शब्द रहें तो वे उन वाह्य (वाहन )वालेके पर्यायवाचक होते हैं । ( क्रमशः उदा०-वृषगामी (- मिन् ), वृषयानः, वृषासनः' श्रादि शब्द 'वृष' अर्थात् बेल वाहनवाले शिवजीके पर्याय हैं । क्योंकि वृषभ (बैल) शिवजीका वाहन है, ऐसी रूढि है । विमर्श-'यादि' शब्दसे 'वाहन, रथ' आदि शब्दका ग्रहण होनेसे 'गरुडवाहनः, पत्ररथः......'आदि शब्द विष्णु के पर्यायवाचक हैं। यहां भी कवि-रूढिसे प्रसिद्ध शब्दोंका ही ग्रहण होनेसे जिस प्रकार 'कुबेर के वाहनभूत 'नर' शब्दके बादमें 'वाहन' शब्द रहनेपर 'नरवाहनः' शब्दका अर्थ कुबेर होता है, उसी प्रकार 'नर' शब्दके बादमें वाहन के पर्यायभूत ‘गामिन् , यान' शब्द जोड़कर बने हुए 'नरगामी, नरयानः' शब्द भी कुंबेरके पर्यायवाचक नहीं होते हैं । १. 'जाति' अर्थात् स्वजन (भाई, बहन, पुत्री, पुत्र आदि)के वाचक शब्दके बादमें 'स्वसा, दुहिता, आत्मज, अग्रज, अवरज' आदि शब्द रहें तो वे स्वजनवालोंके पर्यायवाचक होते हैं । (क्रमशः उदा०-यमस्वसा (-स), हिमवद्दुहिता (-४), 'चन्द्रात्मजः, गदाग्रजः, इन्द्रावरजः' आदि शब्दोंमें प्रथम तीन शब्द क्रमश: 'यमुना, पार्वती, बुध' के तथा अन्तिम दो शब्द कृष्णजी (विष्णु भगवान् ) के पर्यायवाचक हैं; क्योंकि यमुना यमराजको स्वसा (वहन ), पार्वती हिमवान् (हिमालय पर्वत )की दुहिता (पुत्री), बुध चन्द्रमाके आत्मज (पुत्र ), कृष्णजी (विष्णु भगवान् ) 'गद'के अग्रज ( बड़े भाई ) तथा 'इन्द्र'के अवरज ( छोटे भाई ) हैं, ऐसी रूढि है । विमर्श-'आदि' शब्दसे 'सोदर, अनुज' आदि शब्दका ग्रहण होता है; अत एव 'कालिन्दीसोदरः' शब्दका अर्थ 'यमराज' और 'रामानुजः' शब्दका अर्थ 'लक्ष्मण' होता है, एवं अन्यत्र भी समझना चाहिए । यहाँ भी कविरूढिके अनुसार प्रसिद्ध शब्दोंका ही ग्रहण होनेके कारण जिस प्रकार 'यमुना'को 'यम' ( यमराज ) की बहन होनेसे 'यमस्वसा (-स)' शब्द 'यमुना' का पर्याय होता है, उसी प्रकार शनिकी बहन होनेपर भी 'शनिस्वसा' शब्द यमुनाका पर्याय नहीं होता। २. आश्रय अर्थात् निवासस्थान-वाचक शब्दोंके बादमें 'समन्' ( गृह ). के पर्यायवाचक ( सदन, श्रोक, वसति, आश्रय,........... ) शब्द तथा 'शय, वासी, सत् (-द् ),.........'शब्द रहें तो वे उन ( श्राश्रयवालों )के पर्यायवाचक Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः १ वध्याद्भिवेषिजिद्घातिध्रगरिध्वंसिशासनाः ॥१०॥ अप्यन्तकारिदमनदर्पच्छिन्मथनादयः । २ विवक्षितो हि, सम्बन्ध एकतोऽपि पदात्ततः॥ ११ ॥ होते हैं । ( क्रमशः उदा०-'युसद्मानः (घुसदनाः, दिवौकसः', युवसतयः, दिवाश्रयाः',............ ), द्यशयाः, युवासिनः (-सिन् ), द्यसदः (-द् )' आदि शब्द देवोंके पर्यायवाचक हैं, क्योंकि देवोका आश्रय ( निवासस्थान ) दिव और दिव अर्थात् स्वर्ग है, ऐसी रूढि है।। विमर्श-यहाँ भी कवियोंकी रूढिसे प्रसिद्ध शब्दोंका ही ग्रहण होनेसे जिस प्रकार देवोंका पर्यायवाचक 'घुसद्मानः (-द्मन् )' शब्द है, उसी प्रकार मनुष्योंके श्राश्रय ( वासस्थान ) 'भूमि' शब्द के बादमें 'समन्' आदि शब्द रखनेसे बना हुअा 'भूमिसद्मा' आदि शब्द मनुष्यों के पर्याय नहीं होते ॥ १. "वध्य'वाचक शब्दके बादमें “भिद्, द्वेषी, जित् , घाती, ध्रुक , अरि, ध्वंसी, शासन, अन्तकारी, दमन, दर्पच्छिद् , मथन" आदि ( 'आदि शब्दसे-“दारी, निहन्ता, केतु, हा, सूदन, अन्तक, जयी,........." शब्दोंका संग्रह है ) शब्द रहें तो वे विधक' अर्थात् मारनेवालेके पर्याय हो जाते हैं । क्रमशः उदा०--पुरभित् (-भिद् ), पुरद्वेषी (- षिन् ), पुरजित्, पुरघाती (-तिन् ), पुरध्रक (-दुह ), पुरारिः, पुरध्वंसी (-सिन् ), पुरशासनः, पुरान्तकारी (-रिन् ), पुरदमनः, पुरंदपाच्छत् (-द् ), पुरमथनः, आदि ( आदि शब्दसे संगृहीतके क्रमशः उदा०-पुरहारी (-रिन् ), पुरनिहन्ता (-४), पुरकेतुः, पुरहा (-हन् ), पुरसूदनः, पुरान्तकः, पुरजयी (-यिन् ), ....."). 'पुर'के मारनेवाले 'शिवजी' के पर्यायवाचक हैं। .. विमर्श-वध्य' शब्दसे वधके योग्य का भी संग्रह है, अर्थात् जिसका वध नहीं हुआ हो, किन्तु वह वध्यके योग्य है या उसको पराजितकर दयादि के कारण छोड़ दिया गया है, उसके बादमें भी उक्त 'भिद् ,...", शब्दोंके रहनेपर वे शब्द वधक अर्थात् विजेताके पर्यायवाचक हो जाते हैं । यथा-"कालि. यभिद् , कालियदमनः, कालियारिः, कालियशासन:,.....” शब्द 'कालिय'. को पराजित करनेवाले विष्णुके पर्याय होते हैं। यहां भी 'कविरुढिके अनुसार ही प्रयोग होनेसे 'कालियदमन' शब्दके समान विष्णुके पर्यायमें कालियघाती (-तिन् ) शब्दका प्रयोग नहीं किया जाता है ।। २. सम्बन्ध विवक्षाके अधीन हुअा करता है, अत एव एक भी 'वृष' १-२ अत्र शब्दद्वयेऽदन्तो 'दिव' शब्दो बोध्यः, अन्येषु तु 'दिव' शब्दो दन्त्यौष्ठान्त इति । .. Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणिः . प्राकप्रदर्शितसम्बन्धिशब्दा योज्या यथोचितम् । १ दृश्यते खलु वाह्यत्वे - वृषस्य वृषवाहनः ॥ १२ ।। स्वत्वे पुनर्वृषपतिर्धार्यत्वे वृषलाञ्छनः। अंशोर्धायत्वेऽशुमाली स्वत्वेऽशुपतिरंशुमान् ॥ १३ ॥ वध्यत्वेऽहेरहिरिपुर्भोज्यत्वे चाहिभुक्शिखी । २ चिरैय॑क्तैर्भवेद्वयक्तेर्जातिशब्दोऽपि वाचकः ॥ १४ ।। तथा ह्यगस्तिपूता दिग्दक्षिणाशा निगद्यते । ३ अयुग्विषमशब्दौ त्रिपञ्चसप्तादिवाचकौ ॥ १५ ॥ आदि सम्बधि-पदसे सम्बन्धान्तर ( दूसरे संबंध )के निमित्तक शब्दोंका भी यथोचित प्रयोग होता है। १. (पूर्वोक्त सिद्धान्तोंको ही उदाहरणोंके द्वारा स्पष्ट करते हैं-) 'वाह्य-वाहक-संबंध'की विवक्षामें जिस प्रकार 'वृषवाहनः' शब्द 'शिवजी'का पर्याय होता है, उसी प्रकार-स्वस्वामिभावसम्बन्ध'को विवक्षामें 'वृषपतिः' शब्द, 'धार्य-धारकभावसम्बन्ध'की धिवक्षामें 'वृषलाञ्छनः' शब्द भी शिवजीके पर्याय हो जाते हैं, और 'धार्य-धारक भावसम्बन्ध'की विवक्षामें जिस प्रकार 'अंशुमाली' (-लिन् ) शब्द 'सूर्य'का पर्याय होता है, उसी प्रकार 'स्व-स्वामिभावसम्बन्ध'की विवक्षामें 'अंशुपतिः, अंशुमान् (-मंत् )' शब्द भी 'सूर्य'के पर्याय हो जाते हैं । एवं 'वध्यवधकभावसम्बन्ध'की विवक्षामें जिस प्रकार 'अहिरिपु' शब्द 'मोर'का पर्याय होता है, उसी प्रकार 'भोज्य-भोजकमावसम्बन्ध'की विवक्षामें 'अहिभुक' (-भुज ) शब्द भी 'मोरका पर्याय हो जाता है । ( इसी प्रकार अन्यत्र भी और उदाहरणोंको समझना चाहिए )॥ २. सन्देहहीन चिह्नों (विशेषणों )के द्वारा, जातिवाचक भी शब्द व्यक्तिका वाचक हो जाता है । यथा-अगस्त्य मुनिके द्वारा पवित्र की गयी दिशा अगस्त्यपूता दिक अर्थात् दक्षिण दिशा कहलाती है । ( यहाँपर असस्त्य मुनिने अपने नित्य निवाससे दक्षिण दिशाको पवित्र किया है, यह चिह्न सन्देहहीन है, अत एव उनसे ( अगस्त्य मुनिसे ) चिह्नित 'दिक' यह जाति शब्द दक्षिण दिशारूप विशिष्ट दिशा ( व्यक्ति )के अर्थमें प्रयुक्त होता है। इसी प्रकार उत्तर दिशाको 'सप्तर्षियों से पवित्र होनेके कारण 'सप्तर्षिपूता दिक' उत्तर दिशारूप व्यक्ति (विशिष्ट दिशा )के अर्थमें प्रयुक्त होता है । 'चन्द्रमा'का 'अत्रि ऋषिके नेत्रसे उत्पन्न होनेके कारण 'अत्रिनेत्रोत्पन्नं ज्योतिः'से 'चन्द्रमा का बोध होता है। ३. 'तीन, पाँच, सात, आदि ('आदिः शब्दसे—'नव, एकादश,...'का संग्रह है ) असमान (विषम, फूट ) संख्याके वाचक 'अयुक' Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः त्रिनेत्रपञ्चेपुसप्तपलाशादिषु योजयेत् । .१ गुणशब्दो विरोध्यर्थं नबादिग्तिरोत्तरः ॥ १६ ॥ अभिधत्ते, यथा कृष्णः स्यादसितः सितेतरः। २ वार्ष्यादिषु पदे पूर्षे वडवाग्न्यादिषूत्तरे ॥ १७ ॥ द्वयेऽपि भूभृदायेषु पर्यायपरिवर्तनम् । . (-ज) और 'विषम' शब्दोंको 'त्रिनेत्रः, पञ्चेषुः, सप्तपलाशः' आदि पदोंमें जोड़ना चाहिए । अत एव–त्रिनेत्रः, अयुङनेत्रः, विषमनेत्रः' शब्द 'शिवजी'के; पञ्चेषुः, अयुगिषुः, विषमेषुः शब्द पांच बाणवाले 'कामदेव'के और 'सप्तपलाशः, अयुकपलाशः, विषमपलाशः' शब्द सात पत्तोवाले "सप्तपर्ण' (सतना, छितौना) के पर्याय होते हैं । 'सप्तादि' तथा 'पलाशादि' दोनों स्थलों में 'आदि' शब्द होनेसे—'नवशक्तिः, अयुकशक्तिः, विषमशक्तिः' शब्द नव शक्तियोंवाले “शिवजी'के और. व्यक्षः, अयुगक्षः, विषमाक्षः, ""शब्द तीन नेत्रोंवाले 'शिवजी'के; पञ्चबाण:, अयुग्बाणः, विषमबाण: शब्द पांच बाणोंवाले 'कामदेब'के तथा सप्तच्छदः, अयुकछदः, विषमच्छदः, सप्तपर्ण: शब्द सात पत्तोंवाले 'सप्तपर्ण के पर्याय बनते हैं । इसी प्रकार अन्यान्य पर्यायोंका भी प्रयोग करना चाहिए )॥ १. नआदि' अर्थात् 'नत्र पूर्वक' तथा 'इतरोत्तर ( 'इतर' शब्द जिसके बादमें रहे वह ) शब्द स्वविरोधीके अर्थको कहता है । क्रमशः उदा०–'असितः, सितेतरः शब्द 'सित' अर्थात् 'श्वेत'के विरीधी 'काले' अर्थमें प्रयुक्त हैं । इसी प्रकार-'अकृशः, कृशेतरः' शब्द 'कृश' अर्थात् 'दुर्बल' के विरोधी 'स्थूल' अर्थात् 'मोटा' अर्थमें प्रयुक्त होते हैं । ... .२. 'वाधिः' आदि शब्दोंमें 'पूर्वपद' ('वार' अर्थात् जल )में, 'वडवाग्नि' श्रादि शब्दोंमें 'उत्तरपद' (अग्नि' ) में तथा 'भूभृत्' आदि शब्दोंमें 'उभयपद' (पूर्व 'भू' तथा उत्तर 'भृत्'-दोनों ही ) में पर्यायका परिवर्तन होता है । (क्रमशः उदा.---"वाधिः, जलधिः, नीरधि, तोयधिः, पयोधि:,......." में 'वार' अर्थात् 'जल'वाचक पूर्व पदोंका परिवर्तन करनेसे उक्त शब्द 'समुद्र'के पर्याय बन जाते हैं । ('आदि' शब्दसे -जलदः, तोयदः, नीरदः, पयोद:", जलधरः, तोयधरः, नीरधरः, पयोधरः,.......शब्द 'जल'वाचक पूर्वपदके परिवर्तित होनेसे 'मेघ'के पर्याय बनते हैं )। 'वडवाग्निः , वडवानल:, वडवावह्निः,.......) इत्यादिमें 'अग्नि'वाचक उत्तरपदका परिवर्तन.करनेसे उक्त शब्द वडवाग्नि'के पर्याय बनते हैं । ( 'आदि' शब्दसे 'सरोजम्, सरोरुहम्,"...." में 'उत्तरपद'का परिवर्तन करने से उक्त शब्द 'कमल'के पर्याय बनते हैं )। एवम्-"भूभृत् , उर्वीभृत् , महीभृत् ,............” में पूर्वपदका परिवर्तन Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणिः १ एवं परावृत्तिसहा योगात्स्युरिति यौगिकाः ।। १८ ।। २ मिश्राः पुनः परावृत्त्यसहा गोर्वाणसन्निभाः। प्रवक्ष्यन्तेऽत्र २७ लिङ्गतु ज्ञेयं लिङ्गानुशासनात् ॥ १६ ।। ३ देवाधिदेवाः प्रथमे काण्डे, देवा द्वितीयके। करनेसे और "भूभृत् , भूधरः,....' में उत्तर पदका परिवर्तन करनेसे उक्त शब्द 'पर्वत'के पर्याय बन जाते हैं । ('श्राद्य' शब्दसे-"सुरराजः, देवराजः, अमरराजः,"........."इत्यादिमें पूर्वपदके परिवर्तनसे और "सुरपतिः, सुरेशः, सुरराजः, सुरेन्द्रः,"........."में उत्तरपदके परिवर्तनसे उक्त शब्द 'इन्द्र'के पर्याय बन जाते हैं । १. ( 'यौगिक' शब्दोंका उपसंहार करते हुए कहते हैं-) इस प्रकार अर्थात् कहींपर पूर्वपदके, कहींपर उत्तर पदके और कहींपर उभय पदों ( दोनों पदों) के परिवर्तनको सहनेवाले “वार्षिः, वडवाग्निः, भूभृत् , भूधरः,......." शब्द 'यौगिक' (प्रकृति-प्रत्ययके योगसे बने हुए ) कहे जाते हैं ।। २. (शर से प्रारम्भकर यहांतक यौगिक' शब्दोंका निर्देश करने के उपरान्त अब क्रमप्राप्त तृतीय 'मिश्र' अर्थात् 'योगरूढ' शब्दोंका निर्देश करते हैं-) गर्वाण:' आदि शब्द (पूर्व पदमें या उत्तर पदमें ) पर्याय-परिवर्तनका सहन नहीं करनेसे अर्थात् पूर्व या उत्तर पदमें परिवर्तन करनेपर अभीष्टार्थका बोधक नहीं होनेसे 'मिश्र अर्थात् 'योगरूढ' शब्दं यहाँ (इस अभिधानचिन्तामणि'नामक ग्रन्थमें ) कहे जायेंगे। (गीर्वाणसन्निभाः' पद में 'आदि' अर्थवाले 'सन्निभ' शब्दके प्रयोगसे--'दशरथः, कृतान्तः,......." इत्यादि मिश्र' शब्दोंका संग्रह होता है)। ___३. इस ग्रन्थमें कहे जानेवाले पर्यायोंके लिङ्गों (पुंलिङ्ग, स्त्रीलिङ्ग और नपुसंकलिङ्ग ) का ज्ञान लिङ्गानुशासन से करना चाहिए। ( अत एव 'अमरकोष' इत्यादि ग्रंथों के समान इस 'अभिधानचिन्तामणि' ग्रंथमें लिङ्गोंका निर्णय नहीं किया गया है ( कुछ सन्दिग्ध और अनेक लिङ्गवाले पर्यायोंका निर्णय स्वोपज्ञ वृत्तिमें किया गया है । यथा-गणरात्रः पुंक्लीबलिङ्गः (२।५७), तमित्रम् स्त्रीक्लीबलिङ्गः ( २५६, तिथिः पुंस्त्रीलिङ्गः (२०६१),.......') ___४. जीवोंकी ५ गतियाँ हैं-१ मुक्तगति, २ देवगति, ३ मनुष्यगति, ४ तिर्यग्गति और ५ नारकगति । अतः इन भेदोंसे जीव भी ५ प्रकारके होते हैं१ मुक्त, २ देव, ३ मनुष्य, ४ तिर्यञ्च और ५ नारक । पहले, कहे जाने वाले "रूढ, यौगिक तथा मिश्र” शब्दोंके विभागोंको कहकर अब प्रथमादि ६ काण्डोंमें वक्ष्यमाण 'मुक्त' आदि जीवोंके क्रमको कहते हैं-) १ म काण्डमेंगणधर श्रादि अङ्गोंके सहित देवाधिदेव ( वर्तमान, भूत तथा भविष्यत् अर्हन्तों Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'मणिप्रभा' व्याख्योपेतः नरास्तृतीये, तिर्यञ्चस्तुर्य एकेन्द्रियादयः ॥ २० ॥ एकेन्द्रियाः पृथिव्यतेजोवायुमहीरुहः । कृमिपीलकलुताद्याः स्युर्द्वित्रिचतुरिन्द्रियाः || २१ ।। पञ्चेन्द्रियाश्चेभके किमत्स्याद्याः स्थलखाम्बुगाः । पञ्चेन्द्रिया एव देवा नरा नैरयिका अपि ॥ २२ ॥ नारकाः पञ्चमे साङ्गाः षष्ठे साधारणाः स्फुटम् । प्रस्तोष्यन्तेऽव्ययाश्चात्र १ त्वन्ताथादी न पूर्वगौ ॥ २३ ॥ अर्हन् जिनः पारगतस्त्रिकालवित् 32 २ तथा उनके वाचक शब्दों ) को, २ य काण्ड में - श्रङ्गों ( भेदोपभेदों ) के सहित देवोंको, ३ य काण्डमें— अङ्गों के सहित मनुष्योंको, ४र्थ काण्डमें-- श्रृङ्गोंके सहित तिर्यञ्चोंको, इनमें एक इन्द्रियवालों पृथ्वीकायिक ( शुद्ध पृथ्वी, शर्करा ( कक्कड़ ), बालू ( रेत ),), जलकायिक (हिम अर्थात् बर्फ आदि), तेज:कायिक ( अङ्गार आदि), वायुकायिक ( उत्कलिका आदि ) तथा वनस्पतिकायिक ( शेवाल आदि) जीवोंको; दो ( स्पर्शन ( चमड़ा) तथा रसना), इन्द्रियोंवाले कृमि आदि जीवोंको; तीन ( स्पर्शन, रसना तथा नाक ), इन्द्रियों 'वाले पिपीलिका ( चींटी ) आदि जीवोंको, चार ( स्पर्शन, रसना, नाक तथा नेत्र) इन्द्रियोंवाले लूता - ( मकड़ी ) आदि जीवों को और पाँच ( स्पर्शन, रसना, नाक, नेत्र तथा कान ) इन्द्रियोंवाले स्थलचर अर्थात् सूखी भूमिमें चलनेवाले हाथी, मनुष्य, गौ आदि; खेचर अर्थात् श्राकाशमें चलनेवाले मोर, कबूतर, गीध, चील आदि और जलचर अर्थात् पानीमें चलनेवाले मछली, मगर, घड़ियाल, सूँ श्रादि जीवोंको तथा उक्त पांच इन्द्रियोंवाले ही देवों, मनुष्यों तथा नारकीय ( नरकवासी ) जोवोंको; एवं ५म काण्डमें - अङ्गोंके सहित नारकीय ' जीवोंको और ६ष्ठ काण्ड में - साधारण तथा अव्यय शब्दों को कहूँगा || १. 'स्वन्त' ( जिसके अन्त में 'तु' शब्द है वह ) शब्द तथा 'अादि ' ( जिसके पूर्व में 'थ' शब्द है वह ) शब्द अपने से पहलेवाले शब्द के साथ सम्बद्ध नहीं होता है । ( क्रमशः उदा० - १ म 'स्वन्त' जैसे – ' स्यादनन्तजिदनन्तः सुविधस्तु पुष्पदन्त:' ( १२६ ) यहाँपर ' सुविध' शब्दके बादमें 'तु' शब्दका प्रयोग होने से 'सुविध' शब्द आगेवाले 'पुष्पदन्त' शब्दका ही पर्याय होता है, पूर्ववाले 'अनन्त' शब्दका नहीं । २ य 'अथादि' जैसे— 'मुक्तिर्मोक्षो - ऽषवर्गोऽथ मुमुक्षुः श्रमणो यति:' ( १७५ ) यहाँपर 'मुमुक्षु' शब्द के आदिमें 'थ' शब्दका प्रयोग होने से 'मुमुक्षु' शब्द आगेवाले 'श्रमण' शब्दका ही पर्याय होता है, पूर्ववाले 'पवर्ग' शब्दका नहीं ) | २. 'जिनेन्द्र भगवान्' के २५ नाम हैं - अर्हन् ( - तू ), जिन:, पारगतः, Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणिः कर्मा परमेष्वीश्वरः । शम्भुः स्वयम्भूर्भगवान् जगत्प्रभुस्तीर्थङ्करस्तीर्थकरो जिनेश्वरः ।। २४ ।। स्याद्वाद्यभयद सार्वाः सर्वज्ञः सर्वदर्शिकेवलिनौ । देवाधिदेववोधिदपुरुषोत्तमवीतरागाप्ताः १ एतस्यामवसर्पिण्यामृपभोऽजितशम्भवौ अभिनन्दनः सुमतिस्ततः पद्मप्रभाभिः ॥ २६ ॥ सुपार्श्वन्द्रप्रभव सुविधा शीतलः । श्रेयांसो वासुपूज्यश्च विमलोऽनन्ततीर्थकृत् ॥ २७ ॥ ॥ २५ ॥ 1 धर्मः शान्तिः कुन्थुर नमिर्नेमिः पार्श्व मल्लिच मुनिसुव्रतः । चतुर्विंशतिरर्हताम् ॥ २८ ॥ २ ऋपभो वृपभः ३श्रेयान् श्रेयांसः ४स्यादनन्तजिद्नन्तः । ५ सुविधिस्तु पुष्पदन्तो ६ मुनिसुव्रतसुव्रतौ तुल्यौ ॥ २६ ॥ ७ अरिने मिस्तु नेभिरश्वरम तीर्थकृत् । महावीरो वर्धमानो देवार्थो ज्ञातनन्दनः ॥ ३० ॥ त्रिकाल वित् (-दु ), क्षीणाष्टकर्मा ( - र्मन्), परमेष्ठी ( - ष्ठिन् ), अधीश्वरः, शम्भु:, स्वयम्भूः, भगवान् (वत्), जगत्प्रभुः, तीर्थङ्करः, तीर्थंकरः, जिनेश्वरः, स्याद्वादी (-दिन् । + अनेकान्तवादी - दिन ), अभयदः, सार्वः, सर्वज्ञः, सर्वदर्शी ( - शिन् ), केवली ( -लिन् ), देवाधिदेव: वोधिद:, ( + बोधद: ), पुरुषोत्तमः, वीतरागः, आप्तः ॥ १. वर्तमान अवसर्पिणी ( दश सागर कोड़ाकोंड़ी परिमित समय - विशेष ) में २४ तीर्थङ्कर हुए हैं, उनका क्रमशः वक्ष्यमाण १ - १ नाम है - ऋषभः, अजितः, शम्भव: ( + सम्भवः), अभिनन्दनः, सुमतिः, पद्मप्रभः सुपार्श्वः, चन्द्रप्रभः, सुविधिः, शीतलः, श्रेयांस:, ( + श्रेयांश:), वासुपूज्यः, विमलः, अनन्तः, धर्मः, शान्तिः, कुन्थुः, अरः, मल्लिः, मुनिसुव्रतः, नमिः (+निमि: ), नेमि: ( + नेमी - मिन् ), पार्श्व: ( + पार्श्वनाथ: ), वीरः ॥ १२ " २. 'ऋषभदेव' के २ नाम हैं - ऋषभः, वृषभः ॥ ३. 'श्रेयांसनाथ' के २ नाम है - श्रेयान् ( - यस् ), श्रेयांसः । ४. 'अनन्तजित् ' के २ नाम हैं - अनन्तजित् श्रनन्तः ॥ ५. 'पुष्पदन्त' के २ नाम हैं - सुविधिः, पुष्पदन्तः ॥ ६. 'मुनिसुव्रत' के २ नाम हैं—मुनिसुव्रतः, सुब्रतः ॥ ७. 'नेमिनाथ' के २ नाम हैं -अरिष्टनेमिः, नेमि: ( + नेमी, - मिन् ) ॥ ८. 'महावीर स्वामी के ६ नाम हैं - वीरः, चरमतीर्थकृत्, महावीरः, वर्द्धमानः, देवार्यः, ज्ञातनन्दनः ।। Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'मणिप्रमा व्याख्योपेतः १ गणां नवास्यर्षिसङ्घा २ एकादश गणाधिपाः । इन्द्रभूतिरग्निभूतिर्वायुभूतिश्च गोतमाः ॥३१॥ , व्यक्तः सुधर्मा मण्डितमौर्यपुत्रावकम्पितः । अचलभ्राता मेतार्यः प्रभासश्च पृथक्कुलाः ।। ३२॥ ३ केवली चरमो जम्बूस्वाम्य४थ प्रभवप्रभुः।। शय्यम्भवो यशोभद्रः सम्भूतविजयस्ततः ॥ ३३ ॥ भद्रबाहुः ५स्थूलभद्रः ऋतकेवलिनो हि षट् । १. इस महावीर स्वामीके नव ऋषियोंके समूह 'गण' हैं । विमर्शः--यद्यपि महावीरके ११ गणधर थे, तथापि केवल नव ही गणधरोंके विभिन्न 'वाचन' हुए । 'अकम्पित' तथा 'अचलभ्राता' के और मेतार्य' तथा 'प्रभास के चूके परस्पर . समान ही 'वाचन' हुए थे, अत एव यहाँ महावीर स्वामीके नव ही. गणोंका कहना असङ्गत नहीं होता। यही बात 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित'के-. __"श्रीवीरनाथस्य गणधरेष्वेकादशस्वपि । ' द्वयोर्द्वयोर्वाचनयोः साम्यादासन् गणा नव ॥" कथनसे भी पुष्ट होती है । . २. गणाधिप ( गणधर, गणेश्वर ) ११ हैं, उनका क्रमश: पृथक-पृथक १-१ नाम है-१ इन्द्रभूतिः, २ अग्निभूतिः, ३ वायुभूतिः, ४ व्यक्तः, ५ सुधर्मा (-मन् ), ६ मण्डितः, ७ मौर्यपुत्रः, ८ अकम्पितः, ६ अचलभ्राता (-४),. १० मेतार्यः और ११ प्रभासः । इनके कुल पृथक्-पृथक् हैं । विमर्श:-प्रथम तीन (इन्द्रभूति, अग्निभूति और वायुभूति ) तथा अष्टम 'अकम्पित' गणधर गोतम' (+गौतम ) वंशमें उत्पन्न हैं, ४र्थ व्यक्त गणधर 'भारद्वाज' गोत्रोत्पन्न है, ५म 'सुधर्मा' (-मन् । + सुधर्म-म ) गणधर "अग्निवैश्य' गोत्रमें उत्पन्न है, ६ष्ठ 'मण्डित' तथा ७म 'मौर्यपुत्र' गणधर क्रमशः 'वसिष्ठ' तथा 'कश्यप' गोत्रमें उत्पन्न हुए हैं, हम 'अचलभ्राता' गणधर 'हारित' गोत्रोत्पन्न हैं और १०म 'मेतार्य' तथा ११श 'प्रभास' गणधर 'कौण्डिन्य गोत्रोत्पन्न हैं । ३. इस अवसर्पिणी कालमें अन्यकी उत्पत्ति असम्भव है, अत: 'जम्बूस्वामी' (-मिन् ) अन्तिम 'केवली' (-लिन् ) है ।। ४. 'श्रुतकेवलियों का क्रमशः १-१ नाम है, १ प्रभवप्रभुः, (+ प्रभवः). २ शय्यम्भवः, ३ यशोभद्रः, ४ सम्भूतविजयः, ५ भद्रबाहुः और ६ स्थूलभद्रः । Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणिः १ महागिरिसुसह्याद्या वज्रान्ता शपूर्विणः ॥ ३४॥ २ इक्ष्वाकुकुलसम्भूताः स्याद् द्वाविंशतिरर्हताम् । मुनिसुव्रतनेमी तु हरिवंशसमुद्भवौ ॥ ३५ ।। ३ नाभिश्च जितशत्रश्च जितारिरथ संवरः। मेघो धरः प्रतिष्ठश्च महासेननरेश्वरः ॥ ३६॥ सुग्रीवश्व दृढरथो विष्णुश्च वसुपूज्यराट । कृतवर्मा सिंहसेनो भानुश्च विश्वसेनराट ।। ३७ ॥ सूरः सुदर्शनः कुम्भः सुमित्रो विजयस्तथा। समुद्रविजयश्चाश्वसेनः सिद्धार्थ एव च ॥३८॥ मरदेवा विजया सेना सिद्धार्था च मङ्गला।। ततः सुसीमा पृथ्वी लक्ष्मणा रामा ततः परम् ॥ ३६॥ नन्दा विष्णुर्जया श्यामा सुयशाः सुव्रताऽचिरा। श्रीदेवी प्रभावती च पद्मा वप्रा शिवा तथा ॥ ४०॥ वामा त्रिशला क्रमतः पितरो मातारोऽर्हताम् । ४ स्याद्गोमुखो महायस्त्रिमुखो यक्षनायकः ॥ ४१ ॥ ये ६ 'श्रुतकेवली' (-लिन् ) कहे जाते हैं । . १. महागिरिः, सुहस्ती (-स्तिन् ) आदिसे 'वज्रः' अर्थात् 'वज्रस्वामी' तक दशपूर्वी (-विन् ) अर्थात् 'दशपूर्वधर' हैं । ( इनके बाद 'दशपूर्वधरो'का होना असम्भव है )॥ २. पूर्व ( १ । २६-२८ )में कहे गये २४ तीर्थङ्करोंमें-से ('मुनिसुव्रत तथा नेमि' को छोड़कर ) २२ तीर्थङ्कर 'इक्ष्वाकु' वशमें और 'मुनिसुव्रत तथा नेमि'ये दो तीर्थङ्कर 'हरिवंश में उत्पन्न हैं ।। . ___३. पूर्वोक्त (१।२६-२८) 'ऋषभ' श्रादि २४ तीर्थङ्करों के पिताश्रोंका क्रमशः १-१ नाम है-नाभिः, जितशत्रुः, जितारिः, संवरः, मेघः, धरः, प्रतिष्ठः, महासेनः, सुग्रीवः, दृढरथः, विष्णुः, वसुपूज्यः, कृतवर्मा (-मन् ), सिंहसेनः, भानुः, विश्वसेनः, सूरः, सुदर्शनः, कुम्भः, सुमित्रः, विजयः, समुद्रविजयः, अश्वसेनः, सिद्धार्थः । तथा क्रमशः उक्त २४ तीर्थङ्करोंकी माताओंका १-१ नाम है-मरुदेवा ! +मरुदेवी), विजया, सेना, सिद्धार्था, मङ्गला, सुसीमा, पृथ्वी, लक्ष्मणा, रामा, नन्दा, विष्णुः (+ विश्ना ), जया, श्यामा, सुयशाः (-शस ), सुव्रता, अचिरा, श्रीः, देवी, प्रभावती, पद्मा, वप्रा ( विप्रा ), शिवा, वामा, त्रिशला ॥ ४. पूर्वोक्त (१।२६-२८) 'ऋषभ' श्रादि २४ तीर्थङ्करोंके उपासक यक्षोंका क्रमशः १-१ नाम है- गोमुखः, महायक्षः त्रिमुखः, यक्षनायकः, तुम्बुरुः, Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'मणिप्रभा व्याख्योपेतः तुम्बुरुः कुसुमश्चापि मातङ्गो विजयोऽजितः । ब्रह्मा यनेट कुमारः षण्मुखपाताल किन्नराः ॥ ४२ ॥ गरुडो गन्धर्वो यक्षेट कुबेरो वरुणोऽपि च । भृकुटिगोमेधः पावो मातङ्गोऽहंदुपासकाः ॥ ४३ ॥ १ चक्रेश्वर्यजितबला दुरितारिश्च कालिका। महाकाली श्यामा शान्ता भृकुटिश्च सुतारका ॥४४॥ अशोका मानवी चण्डा विदिता चाङ्कशा तथा । कन्दर्पा निर्वाणी बला धारिणी धरणप्रिया ॥ ४५ ।। नरदत्ताऽथ गान्धार्यम्बिका पद्मावती तथा। सिद्धायिका चेति जैन्यः क्रमाच्छासनदेवताः ॥ ४६॥ २ वृपो गजोऽश्वः प्लवगः क्रौञ्चोऽब्जं स्वस्तिकः शशी। मकरः श्रीवत्सः खड़गो महिषः शूकरस्तथा ।। ४७ ।। श्येनो वज्र मृगश्छागों नन्द्यावर्तो घटोऽपि च । कूर्मो नीलोत्पलं शङ्खः फणी सिंहोऽहतां ध्वजाः ॥ ४८ ।। ३ रक्तौ च पद्मप्रभवासुपूज्यौ । शुक्लौ तु चन्द्रप्रभपुष्पदन्तौ । कुसुमः, मातङ्गः, विजयः, अजितः, ब्रह्मा (-हान् ), यक्षेट (-क्षेश ), कुमार:, षण्मुखः, पातालः, किन्नरः, गरुडः, गन्धर्वः, यक्षेट (-क्षेश ), कुबेरः, वरुणः, भृकुटिः, गोमेध:, पार्श्वः, मातङ्गः ।। . १. पूर्वोक्त ( १ । २६ - २८) 'ऋषभ' आदि २४ तीर्थङ्करोंकी शासनदेवताओं (जिन-शासनकी अधिष्ठात्री देवियों ) का क्रमशः १-१ नामहैचक्रेश्वरी (+ अप्रतिचक्रा ), अजितबला: + अजिता ), दुरितारिः, कालिका, महाकाली, श्यामा (+ अच्युतदेवी ), शान्ता, भृकुटि:, सुतारका (+ सुतारा), अशोका, मानवी, चण्डा, विदिता, अङ्कुशा (+अङ्कुशी ) कन्दर्पा, निर्वाणी, बला, धारिणी, धरणप्रिया (+वैरोट्या , नरदत्ता, गान्धारी, अम्बिका (+कुष्माण्डी ), पद्मावती, सिद्धाथिका ।। २. पूर्वोक्त (१ । २६ – २८)'ऋषभ' आदि २४ तीर्थङ्करोंके दक्षिणाङ्गमें स्थित चिह्नोंका क्रमशः १-१ नाम है-वृषः, गजः, अश्वः, प्लवगः, क्रौञ्चः, अजम्, स्वस्तिकः, शशी (-शिन् ), मकरः, श्रीवत्स: खडगी (-डिगन् ), महिषः, शूकरः, श्येनः, वज्रम्, मृगः, छागः, नन्द्यावतः, घट:. कूर्मः, नीलोत्पलम् , शङ्खः, फणी (-णिन् ), सिंहः।। ३. पद्मप्रभ तथा वासुपूज्य तीर्थङ्करोंका वर्ण 'लाल', चन्द्रप्रभ तथा पुष्पदन्त ( सुविधि ) तीर्थङ्करोंका वर्ण 'शुक्ल', नेमि तथा मुनिसुव्रत तीर्थङ्करोंका - Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ अभिधानचिन्तामरिणः 1 कृष्णौ पुनर्नेमिमुनी, विनीलौ श्रीमल्लिपारख, कनकविपोऽन्ये ॥ ४६ १ उत्सर्पिण्यामतीतायां चतुर्विंशतिरर्हताम् केवलज्ञानी निर्वाणी सागरोऽय महायशाः ॥ ५० ॥ विमलः सर्वानुभूतिः श्रीधरो दत्ततीर्थकृत् । दामोदरः सुतेजाश्च स्वाम्यथो मुनिसुव्रतः ॥ ५१ ॥ सुमतिः शिवगतिश्चैवास्तागोऽथ निमीश्वरः । अनिलो यशोधराख्यः कृतार्थोऽथ जिनेश्वरः ॥ ५२ ॥ शुद्धमतिः शिवकरः स्यन्दनञ्चाथ सम्प्रतिः । २ भाविन्यां तु पद्मनाभः शूरदेवः सुपार्श्वकः ॥ ५३ सर्वानुभूतिर्देवश्रतोदयौ । स्वयम्प्रभश्च पेढालः पोलिचापि शतकीर्तिश्च सुव्रतः ॥ ५४ ॥ मो निष्कषाय निष्पुलाकोऽथ निर्ममः । चित्रगुप्तः समाधिश्च संवरश्च यशोधरः ॥ ५५ ॥ विजयो मल्लदेवौ चानन्तवीर्यश्च ३ एवं सर्वावसर्पिण्युत्सर्पिणीषु भद्रकृत् । जिनोत्तमाः ॥ ५.६ ॥ वर्ण कृष्ण ( काला ), मल्लिनाथ तथा पार्श्वनाथ तीर्थङ्करोंका वर्ण 'विनील' और शेष १६ तीर्थङ्करो का वर्ण 'सुवर्णकी कान्तिके समान पीला' होता है | विमर्श - परिशिष्ट में चक्रसंख्या १ देखें | १. गत उत्सर्पिणी काल ( दशसागर परिमित, कोड़ाकोड़ी वर्षोंका समय -- विशेष ) में २४ तीर्थङ्कर हुए हैं, उनका क्रमश: १-१ नाम है -- केवलज्ञानी (-निन् ), निर्वाणी ( - णिन् ), सागरः, महायशा: ( - शस्), विमल:, सर्वानुभूतिः, श्रीधरः, दत्तः, दामोदरः, सुतेजा: ( -जस् ), स्वामी ( - मिन् ), मुनिसुव्रतः, सुमतिः, शिवगतिः, श्रस्तागः, निमि: ( + निमीश्वर: ), अनिल:, यशोधरः; कृतार्थः, जिनेश्वरः, शुद्धमतिः, शिवकरः, स्यन्दनः, सम्प्रतिः ॥ २. भावी ( आगे-आगे आनेवाले ) उत्सर्पिणीकालमें भी २४ तीर्थङ्कर होनेवाले हैं, उनका क्रमशः १ - १ नाम है - पद्मनाभः शूरदेव:, सुपार्श्वः (+ सुपार्श्वकः ), स्वयंप्रभः, सर्वानुभूतिः, देवश्रुतः, उदयः, पेढालः, पोट्टिल:, शतकीर्तिः, सुव्रतः, श्रममः, निष्कषायः, निष्पुलाकः, निर्ममः, चित्रगुप्तः, समाधिः, संत्ररः, यशोधरः, विजयः, मल्लः, देव:, अनन्तवीर्यः, भद्रकृत् ( + भद्रः ) ॥ ३. ( उपसंहार करते हैं— ) इस प्रकार सब ( वर्तमान, भूत तथा भावी ) श्रवसर्पिणी तथा उत्सर्पिणी कालमें २४ - २४ तीर्थचर होते हैं || . Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमांक | तीर्थङ्करनामानि १ ऋषभः २ अजितः ३ शम्भवः ४ ५. ६ ७ २ अ० चि० १० ८ ६ सुविधि: शीतल: श्रेयांसः ११ १२ १३ १४ १५ १६ १७ १८ १६ २० २१ २२ अभिनन्दनः सुमति: पद्मप्रभः सुपार्श्व: २३ २४ चन्द्रप्रभः वासुपूज्यः विमल: अनन्त ( जित्) धर्मः शान्ति: कुन्थुः अर: मल्लि चक्रसङ्ख्या १. वर्तमानावसर्पिणी भवतीर्थङ्कराणां नामवंशादेर्बोधक चक्रम ( ११२६ – ४६ वंशनामानि । पितृनामानि | मातृनामानि उपासकनामानि | शासन देवतानाम इदवाकुः मुनिसुव्रतः नमिः नेमि: पार्श्वः (महा) र "" " دو " " 39 "" " "" " "" "" "" " " "" "" "" हरिवंश: इक्ष्वाकुः हरिवंश: इक्ष्वाकुः " नाभिः जितशत्रुः जितारिः शंवरः मेघ: घर: प्रतिष्ठः महासेनः सुग्रीवः दृढरथः विष्णुः वसुपूज्यः कृतवर्मा सिंहसेन: भानुः विश्वसेनः सूर: सुदर्शनः कुम्भ: सुमित्र: विजयः समुद्रविजयः अश्वसेनः सिद्धार्थः मरुदेवा (-वी) विजया सेना सिद्धार्था मङ्गला सुसीमा पृथ्वी लक्ष्मणा रामा नन्दा विष्णुपुः जया श्यामा सुयशाः सुव्रता अचिरा श्रीः देवी प्रभावती पद्मा वप्रा शिवा वामा त्रिशला गोमुखः महायक्षः त्रिमुखः यक्षनायकः तुम्बुरुः कुसुमः मातङ्गः विजय: अजित: चक्रेश्वरी अमितबला दुरितारि: कालिका महांकाली श्यामा शान्ता भृकुटि: वरुणः भृकुटि: गोमेधः पाश्वः गानक: सुतारका अशोका ब्रह्मा यक्षेट् ( यक्षेशः) मानवी कुमरे: षण्मुखः पाताल: किन्नर : चण्डा विदिता अंकुशा कन्दर्पा निर्वाणा गरुड: गन्धर्वः बला यक्षेट् ( यक्षेश:) धारिणी कुबेर: धरणप्रिया नरदत्ता गान्धारी अंबिका पद्मावती सिद्धारिका ) १६ पृष्ठे चिह्ननामानि वृष: (वृषभः) गजः अश्वः प्लवगः क्रौञ्चः ब्जम् स्वस्तिक: शशी मकर: श्रीवत्सः खङ्गी महिषः शूकरः श्येनः वज्रम् मृगः छाग: नन्द्यावर्त : घट: कूर्मः नीलोत्पलम् ' शङ्खः फणी (सर्पः) सिंह: वर्णनामान सुवर्णवर्णः 99 " 39 रक्तवर्ण: सुवर्णवर्णः शुक्लवर्णः 57 सुवर्णवर्णः " रक्तवणः सुवर्णवर्णः "" "" " " "" विनील: कृष्णवर्णः "c सुवर्णवर्णः विनील: सुवर्ण: 'मणिप्रभा' व्याख्योपेतः Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणिः १ तेषां च देहोऽद्भतरूपगन्धो निरामयः स्वेदमलोज्झितश्च । श्वासोऽब्जगन्धो रुधिरामिषन्तु गोक्षीरवाराधवलं पवित्रम् ।। ५७ ॥ आहारनीहारविधिस्त्वदृश्यश्चत्वार एतेऽतिशयाः सहोत्थाः। क्षेत्रे स्थितिर्योजनमात्रकेऽपि नृदेवतिर्यग्जनकोटिकोटेः ॥५८ ।। वाणी नृतिर्यक्सुरलोकभाषासंवादिनी योजनगामिनी च । भामण्डलं चारु च मौलिपृष्ठे विडम्बिताहर्पतिमण्डलश्रीः ॥५६॥ साग्रे च गव्यूतिशतद्वये रुजावैरेतयो मार्यतिवृष्टयवृष्टयः । दुभिक्षमन्यस्वकचक्रतो भयं स्यान्नैत एकादश कर्मघातजाः ।। ६०॥ १. उन तीनों कालोंमें होनेवाले २४-२४ तीर्थङ्करोंके जन्मके साथ ही होनेवाले ४ अतिशय होते हैं; उनमें से प्रथम अतिशय यह है कि-उन तीर्थङ्करोंके शरीरका रूप तथा गन्ध अद्भत होता है, उनके शरीरमें रोग, पसीना, तथा मेल नहीं होती। द्वितीय अतिशय यह है कि उन तीर्थङ्करोका श्वास कमलके समान सुरभि होता है । तृतीय अतिशय यह है कि-उम तीर्थङ्करोंका रक्त गौके दूधकी धारके समान श्वेत होता है तथा मांस अपक्क मांसके समान गंधवाला नहीं होता है । और चतुर्थ अतिशय यह है कि उन तीर्थङ्करों का भोजन और मलमूत्रत्याग सामान्य चर्मचतुसे नहीं देखा जा सकता, ( किन्तु अवधिलोचनवाले पुरुषसे ही देखा जा सकता है )॥ २. पूर्वोक्त ( १।२६-२८) तीर्थङ्करोंके ज्ञानावरणीय कर्मके क्षय होनेसे उत्पन्न ११ अतिशय होते हैं । १म अतिशय-केवल एक योजनमात्र स्थान ( समवसरण-भूमि ) में कोटि-कोटि मनुष्यों, देवों तथा तीर्यञ्चोंकी स्थिति हो जाती है । २य अतिशय-उनकी वाणी (अर्द्धमागधी भाषा ) मनुष्यों तिर्यञ्चों तथा देवोंकी भाषामें परिवर्तित हो जाती है अर्थात् तीर्थङ्कर अर्द्धमागधीरूप एक ही भाषामें उपदेश देते हैं, किन्तु वह मनुष्य तिर्यञ्च तथा देवलोगोंकी भाषामें बदल जाती है, अत एव एक ही भाषाको वे तीनों अपनी-अपनी भाषामें ग्रहण करते हैं तथा वह तीर्थङ्करोक्त वाणी एक योजनतक सुनायी पड़ती है । ३ य अतिशय-तीर्थङ्करोंके शिरके पिछले भागमें सूर्यमण्डलकी शोभाके समान तेजःपूर्ण और सुन्दर भामण्डल ( प्रभासमूह ) होता है । क्रमशः ४-११ श अतिशय-साग्र दो सौ गव्यूति अर्थात् एक सौ पच्चीस योजनतक र आदि रोग, परस्पर विरोध, ईतियां ( धान्यादिको नष्ट करनेवाले चूहा तथा पशु-पक्षी आदिके उपद्रवविशेष, मारो ( किसी उपद्रवसे सामूहिक मृत्यु ), अत्यधिक वृष्टि, वृष्टिका सर्वथा अभाव (सूखा), दुर्भिक्ष और अपने या दूसरे राष्ट्रसे भय नहीं होते हैं । Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः १ खे धर्मचक्रं चमराः सपादपीठं मृगेन्द्रासनमुज्ज्वलञ्च । छत्रत्रयं रत्नमयध्वजोऽह्रिन्यासे च चामीकरपङ्कजानि ॥६१ ॥ वप्रत्रयं चारु चतुर्मुखाङ्गता चैत्यद्रमोऽधोवदनाश्च कण्टकाः। द्रमानतिदुन्दुभिनाद उच्चकैर्वातोऽनुकूलः शकुनाः प्रदक्षिणाः ॥६२॥ गन्धाम्बुवर्षं बहुवर्णपुष्पवृष्टिः कचश्मश्रनखाप्रवृद्धिः । चतुर्विधाऽमर्त्य निकायकोटिर्जघन्यभावादपि पार्श्वदेशे ॥६३ ॥ ऋतूनामिन्द्रियार्थानामनुकूलत्वमित्यमी एकोनविंशतिर्दैव्याश्चतुस्त्रिंशच्च मीलिताः ॥६४ ।। २ संस्कारवत्त्वमौदात्यमुपचारपरीतता मेघगम्भीरघोषत्वं प्रतिनादविधायिता ॥६५॥ १. उन तीर्थङ्करोंके देवकृत १६ अतिशय होते हैं--क्रमशः १-५ म अतिशय-आकाशमें धर्म-प्रकाशक चक्र होता है, आकाशमें चामर (चुंवर ) होते हैं, आकाशमें पादपीठ (पैर रखने के लिए श्रासन) के सहित स्फटिकमय उज्ज्वल सिंहासन होता है, आकाशमें तीन छत्र होते हैं, और अाकाशमें ही रत्नमय ध्वज ( झण्डा ) होता है । ६ष्ठ अतिशय-पैर रखने के लिए सुवर्णरचित कमल होते हैं । ७म अतिशय-समवसरण में रत्न, सुवण तथा चाँदीके बने सुन्दर तीन वप्र (चहारदीवारियां) होते हैं । ८ म अतिशय-चार मुखोंवाले गात्र होते हैं । ६ म अतिशय-चैत्यनामक 'अशोक' वृक्ष होता है । १० म अतिशय.. काँटोंका मुख नीचेकी ओर होता है । ११ श अतिशय-पेड़ ( फल-फूलकी अधिकतासे ) अत्यन्त झुके हुए रहते हैं । १२ श अतिशय-दुन्दुभिका शब्द लोकमें फैलनेवाला उच्च स्वरसे युक्त होता है । १३ श अतिशय-सुखप्रद अनुकूलं वायु बहती है।। १४ श अतिशय-पक्षिगण प्रदक्षिण क्रमसे (दहने भाग होकर ) उड़ते हैं । १५ श अतिशय-सुगन्धित जलकी वृष्टि होती है । १६ श अतिशय-घुटनेतक ऊँची पांच रंगवाले फूलोंकी वृष्टि होती है । १७ श अतिशय-पाल, रोएँ, दाढ़ी, मूंछ और नख नहीं बढ़ते हैं । १८ श अतिशय-- समीपमें कमसे कम एक काटि भवनपति आदि चतुर्विध ( १ भवनपति या भवनवासी, २ व्यन्तर, ३ ज्योतिष्क और ४ वैमानिक ) देवोंका निवास रहता है । १६ तम अतिशय-रूप रस गन्ध स्पर्श और शब्दसे वसन्त आदि ऋतु सर्वदा अनुकूल रहते हैं। इस प्रकार देवकृत ये १६ अतिशय, सहज ४ अतिशय और ज्ञानावरणीय कर्मक्षयजन्य ११ अतिशय (१६+४+ ११=३४) कुल मिलाकर ३४ अतिशय उन तीर्थङ्करोंके होते हैं । २. उन तीर्थङ्करोंकी वाणीके वक्ष्यमाण ३५ अतिशय होते हैं-१ संस्कारसे युक्त, २ उच्च स्वरयुक्त, ३ अग्राम्य, ४ मेघके तुल्य गम्भीर ध्वनिवाला, ५ प्रति Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणिः दक्षिणत्वमुपनीतरागत्वं च महार्थता । अव्याहतत्वं शिष्टत्वं संशयानामसम्भवः ॥६६॥ निराकृतान्योत्तरत्वं हृदयङ्गमताऽपि च । मिथः साकक्षता प्रस्तावौचित्यं तत्त्वनिष्ठता ॥६७ ॥ अप्रकीर्णप्रसृतत्वमस्वश्लाघाऽन्यनिन्दता । आभिजात्यमतिस्निग्धमधुरत्वं प्रशस्यता ॥६८ ।। अमर्मवेधितौदायं धर्मार्थप्रतिबद्धता । । कारकाद्यविपर्यासो विभ्रमादिवियुक्तता .. ॥ ६६ ।।.. चित्रकृत्त्वमद्भतत्वं तथाऽनतिविलम्बिता ।। अनेकजातिवैचित्र्यमारोपितविशेषता ॥ ७० ॥ सत्त्वप्रधानता वणेपदवाक्यविविक्तता । .. अव्युच्छितिरखेदित्वं पञ्चविशच्च वाग्गुणाः ॥ ७१ ।। १ अन्तराया दानलाभवीयभोगोपभोगगाः । ध्वनिसे युक्त, ६ सरल, ७ मालव कैशिकी आदि ग्रामरागसे युक्त, ८ अधिक अर्थवाला, ६ पूर्वापर वाक्योंके विरोधाभाववाला,१० शिष्ट ( अभिमत सिद्धान्तका सूचक तथा वक्ताकी शिष्टताका सूचक), ११ सन्देहहीन, १२ दूसरोंके उत्तरोंका स्वयं निराकरण करनेवाला, १३ हृदयग्राह्य, १४ पदों तथा वाक्योंकी परस्परापेक्षाओंसे युक्त, १५ प्रस्तावनाके अनुकूल, १६ विवक्षित वस्तुस्वरूपके अनुकूल, १७ असम्बद्ध अधिकार तथा अतिविस्तारसे हीन, १८ आत्मप्रशंसा तथा परनिन्दासे हीन, १६ वक्ता या वक्तव्यकी भूमिकाके अनुकूल, २० घृत गुड़के तुल्य अत्यन्त स्निग्ध तथा मधुर, २१ प्रशंसित, २२ दूसरेका मर्मवेध नहीं करनेवाला, २३ उदार ( वक्तव्य अर्थसे पूर्ण ), २४ धर्मार्थयुक्त, २५ कारक-काल-वचन-लिङ्ग आदिके विपर्ययरूप दोषसे रहित, २६ वक्ताके भ्रान्ति आदि मानसिक दोषोंसे हीन, २७ उत्तरोत्तर कौतूहल-( उत्कण्ठा-)वर्द्धक, २८ अद्भुत, २६ अधिकविलम्बित्व दोषसे हीन, ३० वर्णनीय वस्तुके स्वरूपवर्णनके संश्रयसे विचित्र, ३१ अन्य वचनोंसे विशिष्ट, ३२ सत्त्वप्रधान ( साहसयुक्त), ३३ वर्ण, पद तथा वाक्योंके पृथक्त्वसे युक्त , ३४ विवक्षितार्थकी सम्यक् सिद्धि होनेतक निरन्तर वचनोंकी प्रमेयतायुक्त और ३५ अायासका अनुत्पादक -ऐसे तीर्थङ्करोंके वचन होते हैं, अत एव इन गुणोंसे युक्त होना तीर्थङ्करोंके वचनोंके अतिशय (गुण ) हैं । इनमें प्रथम सात शब्दकी अपेक्षासे और शेष २८ अर्थकी अपेक्षासे उन तीर्थङ्करोंके वचनोंके अतिशय ( गुण ) होते हैं, ऐसा जानना चाहिये ॥ . १. उन 'ऋषभ' आदि तीर्थङ्करों में ये १८ दोष नहीं होते हैं-१ दानगत अन्तराय, २ लाभगत अन्तराय, ३ वीर्यगत अन्तराय, ४ माला आदिका Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'मणिप्रभा' व्याख्योपेतः । हासो र त्यती भीतिर्जुगुप्सा शोक एव च 1162 11 काम मिध्यात्वमज्ञानं निद्रा चाविरतिस्तथा राग द्वेषच नो दोषास्तेषामष्टादशाप्यमी १ महानन्दोऽमृतं सिद्धिः कैवल्यम पुनर्भवः ॥ ७३ ॥ 1 1 शिवं निःश्रेयसं श्रेयो निर्वाणं ब्रह्म निर्वृतिः ॥ ७४ ॥ महोदयः सर्वदुःखक्षयो निर्याणमक्षरम् मुक्तिर्मोक्षो ऽपवर्गोऽथ मुमुक्षुः श्रमणो यतिः । ७५ ॥ वायो यती साधुरनगार ऋषिर्मुनिः 1 1 निर्ग्रन्थ भिक्षु३रस्य स्वं तपोयोगशमादयः ॥ ७६ ॥ ४ मोक्षोपायो योगो ज्ञानश्रद्धानचरणात्मकः ५ अभाषणं पुनर्मौनं ६ गुरुर्धर्मोपदेशकः ७ अनुयोगकृदाचार्यः 1100 11 २१ भोगगत अन्तराय, ५ स्त्री आदिका उपभोगगत अन्तराय, ६ हास, ७किसी पदार्थ में प्रीति, ८ किसी पदार्थमें द्वेष, ६ भय, १० घृणा, ११ शोक, १२ काम (सुरत), १३ मिथ्यात्व ( दर्शनमोह, १४ ज्ञान, १५ निद्रा, १६ अविरति, १७ राग ( सुखज्ञाताके सुख - स्मृतिपूर्वक सुख या उसके साधनरूप इष्ट विषय में लोभ ), और १८ द्वेष (-दुःखज्ञाता के दुःख- स्मृतिपूर्वक दुःख या उसके साघनरूप अभिमत विषय में क्रोध ) ॥ १. 'मोक्ष' के १८ नाम हैं- महानन्दः, अमृतम्, सिद्धि:, कैवल्यम्, अपुनर्भवः, शिवम्, निःश्रेयसम्, श्रेय: ( - यस् ), निर्वाणम्, ब्रह्म ( झन्, पुन), निर्वृतिः, महोदयः, सर्वदुः खक्षयः, निर्याणम्, अक्षरम्, मुक्तिः, मोक्षः, अपवर्गः ॥ शेषश्चात्र – निर्वाणे स्यात् शीतीभावः । शान्तिनैश्चिन्त्यमन्तिकः । २. 'मुमुक्षु' ( मुक्ति चाहनेवाला, मुनि) के ११ नाम हैं – मुमुक्षुः, श्रमणः (+श्रवणः ), यतिः, वाचंयमः, यती ( - तिन् ), साधुः, अनगारः, ऋषिः, मुनिः (पुत्री), निर्ग्रन्थः, भिक्षुः ॥ ..33 ३. इस 'मुमुक्षु' का धन ' तप, योग, शम, आदि ( " आदि' शब्दसे 'क्षमा, ' का संग्रह है) हैं, अत एव मुनिके यौगिक नाम - तपोधनः, योगी (- गिन् ), शमभृत्, क्षान्तिमान् (-मत् ), होते हैं । ४. यथास्थिति तत्त्वका ज्ञान, श्रद्धान चरित्र- ये तीनों मोक्षके उपाय हैं | ( सम्यक् तत्त्वमें रुचि ), और ५. 'मौन, चुप रहना' के २ नाम हैं - अभाषणम्, मौनम् ( पुन ) ॥ ६. 'धर्मके उपदेशक' का १ नाम है - गुरु: ( + धर्मोपदेशक: ) । ७. 'अनुयोग ( व्याख्या) करनेवाले' का १ नाम है -आचार्यः ॥ Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ . अभिधानचिन्तामणिः -१ उपाध्यायस्तु पाठकः । २ अनूचानःप्रवचने साङ्गेऽधीती गणिश्च सः ॥७॥ ३ शिष्यो विनेयोऽन्तेवासी ४ शैक्षः प्राथमकल्पिकः।। ५ सतीर्थ्यास्त्वेकगुरवो ६ विवेकः पृथगात्मता ॥७६ ॥ ७ एकब्रह्मव्रताचारा मिथः स्युर्ब्रह्मचारिणः । ८ स्यात्पारम्पयेमाम्नायः सम्प्रदायो गुरुक्रमः ॥८०॥ ६ व्रतादनं परिव्रज्या तपस्या नियमस्थितिः । . १० अहिंसासूनृतास्तेयब्रह्माकिञ्चनताः यमाः . ॥१॥ ११ नियमाः शोचसन्ताषौ स्वाध्यायतपसी अपि । देवताप्रणिधानश्च १२ करणं पुनरासनम् ॥२॥ १३ प्राणायामः प्राणयमः श्वासप्रश्वासरोधनम् । १. 'उपाध्याय ( पढ़ानेवाले ) के २ नाम है-उपाध्यायः, पाठकः ।। २. 'आचारादि अङ्गयुक्त प्रवचन (आगम ) को पढ़े हुए'के २ नाम हैं-अनूचानः, गणिः ।। ३. 'शिष्य, छात्र के ३ नाम है-शिष्यः, विनेयः, अन्तेवासी (-सिन् )। ४. 'प्रथम कल्पको पढ़नेवाले'के २ नाम हैं-शैक्षः, प्राथमकल्पिकः ।। ५. 'एक गुरुके पास पढ़नेवालों के २ नाम हैं-सतीर्थ्याः, एकगुरवः ॥ ६. 'विवेक'के २ नाम है-विवेकः, पृथगात्मता ॥ ७. एक समान शास्त्र पढ़नेवाले, व्रत करनेवाले और आचार रखनेवाले परस्परमें एक दूसरे के प्रति ) 'सब्रह्मचारी' (-रिन ) कहे जाते हैं ।। ८. 'सम्प्रदाय के ४ नाम हैं--पारम्पर्यम् , आम्नायः, सम्प्रदायः, गुरुक्रमः॥ ६. 'व्रत ग्रहण करने के ४ नाम हैं-व्रतादानम्, परिव्रज्या (+प्रव्रज्या), तपस्या, नियमस्थितिः ॥ . १०. अहिंसा, सूनृतम् ( प्रिय तथा सत्य वचन ), अस्तेयः (विना दिये किसीको कोई वस्तु नहीं लेना ), ब्रह्मचर्यम् ( अष्टविध मैथुनका त्याग ), अकिञ्चनता ( परिग्रहका त्याग )-इन पांचोंको 'यमाः' (अर्थात् 'यम') कहते हैं । ११. शौचम् ( शारीरिक तथा मानसिक शुद्धि ), सन्तोषः, स्वाध्यायः (अध्ययन, या प्रणवमंत्रका जप), तपः (-स । चान्द्रायणादि व्रतोंका पालन), देवताप्रणिधानम् ( देवोंका ध्यान )-इन पांचोंको 'नियमाः' (अर्थात् 'नियम' ) कहते हैं॥ १२. 'आसन' (सिद्धासन, पद्मासन आदि) के २ नाम हैं-करणम् , आसनम् ॥ १३. : 'प्राणायाम' श्वास लेने अर्थात् नाकसे बाहरी वायुको भीतर Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः १ प्रत्याहार स्त्विन्द्रियाणां विषयेभ्यः समाहृतिः ॥ ८३ ॥ २ धारणा तु क्वचिद्धेये चित्तस्य स्थिरबन्धनम् । ३ ध्यानं तु विषये तस्मिन्नेकप्रत्यय सन्ततिः ४ समाधिस्तु तदेवार्थमात्राभासनरूपकम् ॥ ८४ ॥ I 11 54. 11. ५ एवं योगो यमाद्यङ्गैरष्टभिः सम्मतोऽष्टधा ६ श्वःश्रेयसं शुभशिवे कल्याणं श्वोवसीयसं श्रेयः । क्षेमं भावुकभविककुशलमङ्गलभद्र मद्रशस्तानि ॥ ८६ ॥ इत्याचार्य्यहेमचन्द्रविरचितायाम् "अभिधानचिन्तामणिनाममालायां” प्रथम 'देवाधिदेवकाण्डः समाप्तः ॥ १ ॥ २३ खींचने और प्रश्वास ( उसे रोकने के बाद पुनः उस कोष्ठस्थ वायुको बाहर छोड़ने ) के २ नाम हैं - प्राणायामः, प्राणयमः ॥ १. नेत्रादि इन्द्रियोंको रूप आदि विषयोंसे हटाने का १ नाम हैप्रत्याहारः ॥ २. "ध्यान करने योग्य देव आदिमें चित्तको स्थिर करने' का १ नाम - धारणा !! ३. ' ध्यान करने योग्य देवादिमें ध्येय के श्रालम्बनके समान प्रवाह का १ नाम है - ध्यानम् ॥ ४. 'अर्थमात्र आभासरूप ध्यान' का १ नाम है - समाधिः ॥ ५.. यम आदि श्राठ श्रृङ्गों ( १ यम, २ नियम, ३ आसन, ४ प्राणायाम, ५ प्रत्याहार, ६ धारणा, ७ ध्यान और ८ समाधि ) से 'योग' ८ प्रकारका होता है। ६. 'शुभ, कल्याण' के १४ नाम है - श्वःश्रेयसम्, शुभम्, शिवम्, कल्याणम्, श्वोवसीयसम्, श्रेय: ( - यस् ), क्षेमम् (पुन), भावुकम्, भविकम्, कुशलम्, मङ्गलम् भद्रम् (+भन्द्रम् ), मद्रम्, शस्तम् ( + प्रशस्तम् ) ॥ शेषश्चात्र - भद्रे भव्यं काम्यं सुकृतसूनृते । इस प्रकार साहित्य - व्याकरणाचार्यादिपदभूषित मिश्रोपाह श्री ' हरगोविन्द शास्त्रि'विरचित 'मणिप्रभा' व्याख्यामें 'प्रथम 'देवाधिदेवकाण्ड' समाप्त हुआ || १ || Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अथ देवकाण्डः ॥ २ ॥ १ स्वर्गत्रिविष्टपं द्यौदिवौ भुविस्तविषताविषौ नाकः । गौस्त्रिदिवमूर्ध्वलोकः सुरालय २ स्तत्स दस्त्वमराः देवाः सुपर्वसुरनिर्जरदेवतर्भु' - बहिर्मुखानिमिषदैवतना कि लेखाः । वृन्दारकाः सुमनसस्त्रिदशा अमर्त्याः 11 8 11 स्वाहास्वधाक्रतुसुधाभुज आदितेयाः ॥ २ ॥ गीर्वाणा मरुतोऽस्वप्ना विबुवा दानवारयः । १. 'स्वर्ग' के १२ नाम हैं - स्वर्ग:, त्रिविष्टपम् ( न ), द्यौः (= द्यो ); द्यौ: ( = दिव् ), भुवि: ( ३ स्त्री ), तविषः, ताविषः, नाक: ( पुन ), गौ: (गो, पु स्त्री ), त्रिदिवम् ( पु न ), ऊर्ध्वलोकः, सुरालयः ( शे० पु ) ।। शेषश्चात्र - फलोदयो मेरुपृष्ठं वासवावाससैरिकौ । दिदिविर्दीदिविद्युश्च दिवञ्च स्वर्गवाचकाः ॥ • २. ‘देवों' के २७ नाम हैं-- स्वर्गसदः ( - दू । यौ० - घुसद्मान:, -द्मन्, """""), अमराः, देवाः, सुपर्वाणः ( र्वन् ), सुराः, निर्जराः, देवताः (स्त्री', भवः (भु: ), बर्हिर्मुखाः, अनिमिषाः, दैवतानि (पुन), नाकिनः (-किन् । यौ०स्वर्गिणः,-गिन्, त्रिदिवाधीशा:, ~~~~~~), लेख्नाः, वृन्दारकाः, सुमनसः (नस् ), त्रिदशा:, अमर्त्याः, स्वाहाभुजः, स्वधाभुजः, क्रतुभुजः, सुधाभुजः ( ४ -भुज् । यौ ० - स्वाहाशनाः, स्वधाशनाः, यज्ञाशनाः, अमृतान्धसः —-धस्,""''~~~), आदितेया: ( यौ० - श्रादित्याः, अदितिजा:, .~~~~~), गीर्वाणाः, मरुतः (स्त्), अस्वप्नाः, विबुधाः, दानवारयः ( - रि । यौ० - दनुजद्विषः, -द्विष्; | शे० पु ) ॥ शेषाश्चात्र - निलिम्पाः कामरूपाश्च साध्याः शोभाश्चिरायुषः । पूजिता मर्त्यमहिता सुवाला वायुभाः सुराः ॥ तथा - द्वादशार्का: वसवोऽष्टौ विश्वेदेवास्त्रयोदश । षट्त्रिंशत्तुषिताश्चैव षष्टिराभास्वरा - अपि ॥ त्रिंशदधिके माहाराजिकाश्च शते उभे । रुद्रा एकादशैकोनपञ्चाशद्वायवोऽपरे 11 चतुर्दश तु वैकुण्ठाः सुशर्माणः पुनर्दश । साध्याश्च द्वादशेत्याद्या विज्ञेया 'गणदेवता:' || Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५ 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः १ तेषां यानं विमानो२ऽन्धः पीयूषममृतं सुधा ॥ ३ ॥ ३ असुरा नागास्तडितः सुपर्णका वह्नयोऽनिलाः स्तनिताः। ' उदधिद्वीपदिशो दश भवनाधीशाः कुमारान्ताः ॥४॥ ४ स्युः पिशाचा भूता यक्षा राक्षसाः किन्नरा अपि । किम्पुरुषा महोरगा गन्धर्वा व्यन्तरा अमी ॥५॥ ५ ज्योतिष्काः पञ्च चन्द्रार्कग्रहनक्षत्रतारकाः ।। ६ वैमानिकाः पुनः कल्पभवा द्वादश ते त्वमी ॥६॥ सौधर्मेशानसनत्कुमारमाहेन्द्रब्रह्मलान्तकजाः । १. 'उन देवोंके यान' ( विमान, सवारी ) का १ नाम है—विमानः (पु न । + व्योमयानम् । उन देवोंका यान विमान है, ऐसा सम्बन्ध होनेसे यौ० द्वारा-"वमानयानाः, वैमानिकाः, विमानिकाः,....." नाम भी 'देवों के होते हैं )। २. 'अमृत' ( देवोंके भोज्य पदार्थ ) के ३ नाम हैं-पीयूषम् (+ पेयूषम्), अमृतम् (२ न ), सुधा (स्त्री। + समुद्रनवनीतम् । यौ०-देवान्धः-न्धस , देवान्नम् , देवभोज्यम् , देवाहारः,....")। ३. ( जैन-सिद्धान्तके अनुसार “१ भवनपति ( या भवनवासी), २ व्यन्तर, ३ ज्योतिष्क और ४ वैमानिक" भेदसे देवोंके ४ भेद होते हैं; उनमें से क्रमप्राप्त 'भवनपति' देवोंके नामको पहले कहते हैं-) ये 'भवनपति' (या-भवनवासी') देव १० होते हैं-असुरकुमाराः, नागकुमाराः, तडित्कुमाराः, सुपर्णकुमाराः, वह्निकुमाराः, अनिलकुमाराः, स्तनितकुमारा:, उदधिकुमाराः, द्वीपकुमाराः, दिक्कुमाराः ॥ - विमर्श-ये देव कुमारके समान देखने में सुन्दर, मृदु, मधुर एवं ललित गतिवाले, शृङ्गार सुन्दर रूप एवं विकारवाले और कुमारके समान ही उद्धत वेष भाषा भूषण शास्त्र श्रावरण यान तथा वाहनवाले, तीव्र रागवाले एवं क्रीडारायण होते हैं, अत एव ये 'कुमार' कहे जाते हैं ।। . ४ . ( अब क्रमप्राप्त द्वितीय 'व्यन्तर' देवोंको कहते हैं-) ये 'व्यन्तर' देव ८ होते हैं--पिशाचाः, भूताः, यक्षाः, राक्षसाः, किन्नराः, किम्पुरुषाः, महोरगाः, गन्धर्वाः ॥ __५. (अब क्रमप्राप्त तृतीय 'ज्योतिष्क' देवोंको कहते हैं-) ये 'ज्योतिष्क' देव ५ होते हैं -चन्द्रः, अर्कः, ग्रहाः, नक्षत्राणि, तारकाः ।। ... ६.(अब सबसे अन्तमें क्रमप्राप्त चतुर्थ 'वैमानिक' देवोंको कहते हैं-). इन वैमानिक' देवोंके २ भेद हैं-१ कल्पभव और २ कल्पातीत । उनमें से प्रथम 'कल्पभव' वैमानिक देव १२ होते हैं-सौधर्मजाः, ऐशानजाः, सनत्कु Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणिः शुक्रसहस्त्रारानतप्राणतजा प्रारणाच्युतजाः ॥७॥ कल्पातीता नव अवेयकाः पञ्च त्वनुत्तराः । १ निकायभेदादेवं स्युर्देवाः किल चतुर्विधाः ॥८॥ २ आदित्यः सवितार्यमा खरसहस्रोष्णांशुरंशू रवि मार्तण्डस्तरणिर्गभस्तिररुणो भानुर्नभोऽहमणिः । सूर्योऽकेः किरणो भगो ग्रहपुषः पूषा पतङ्गः खगो मारजाः, माहेन्द्रजाः, ब्रह्मजाः, लान्तकजाः, महाशुक्रजाः; सहस्रारजाः, आन. तजाः, प्राणतजाः, श्रारणजाः, अच्युतजाः । द्वितीय 'कल्पातीत' वैमानिक देव १४ होते हैं, उनमें से ६ 'लोकपुरुष'के ग्रैवेयफ अर्थात् कण्ठभूषण हैं तथा ५ अनुत्तर हैं ॥ विमर्श-कल्पातीत अवेयक देव ३ हैं, तथा प्रत्येकके .३-३ भेद होनेसे वे समष्टिरूपमें ६ हो जाते हैं, और 'विजयः, वैजयन्तः, जयन्तः, अपराजितः, सर्वार्थसिद्धः (+सर्वार्थसिद्धिः )-ये ५ 'अनुत्तर कल्पातीत' वैमानिक देव हैं, इस प्रकार ( ३४३ =8+५ = १४) 'कल्पातीत' वैमानिक देवके १४ भेद हो जाते हैं। १. इस प्रकार निवास-स्थानके भेदसे देवोंके ४ भेद होते हैं । विमर्श - इनमें से प्रथम 'भवनपति' देव एक लाख अस्सी हजार योजन परिमित रत्नप्रभामें एक-एक हजार योजन छोड़कर जन्म-ग्रहण करते हैं।' द्वितीय 'व्यन्तर' देव उस ( रत्नप्रभा) के ऊपर छोड़े गये एक हजार योजनके ऊपर तथा नीचे ( दोनों ओर ) एक-एक सौ योजन छोड़कर बीचवाले आठ सौ योजनमें जन्म-ग्रहण करते हैं। तृतीय ज्योतिष्क' देव समतल भू-भाग से सात सौ नब्बे योजन ऊपर चढ़कर एक सौ दस योजन पिण्डवाले तथा लोकान्तसे कुछ कम आकाशदेशमें जन्म-ग्रहण करते हैं और चतुर्थ 'वैमानिक' देव डेढ़ रज्जु चढ़कर सर्वार्थसिद्धि विमानके अन्त सौधर्मादि कल्पोंमें जन्म-ग्रहण' करते हैं। अपने-अपने नियत स्थानोंमें उत्पन्न भवनपत्यादि देव 'लवण-समुद्र, मन्दर पर्वत, वर्षधर पर्वत एवं जङ्गलों में निवास तो करते हैं, किन्तु पूर्वोक्त नियत स्थानोंके अतिरिक्त स्थानों में इनकी उत्पत्ति नहीं होती, अत एव यहाँ मूल (१८)में निवासार्थ या सहाथमें 'निकाय' शब्दका प्रयोग किया गया है ।। २. 'सूर्य'के ७२ नाम हैं-आदित्यः, सविता (-४), अर्यमा (-मन् ), खरांशुः, सहस्रांशुः, उष्णांशुः ( यौ०-खररश्मिः, सहस्ररश्मिः, शीतेतररश्मिः,..."), अंशुः, रविः, मार्तण्डः, तरणिः ( पु स्त्री ), गभस्तिः, अरुणः, भानुः, नभोमणिः, अहर्मणिः (यौ०-व्योमरत्नम्, दिनरत्नम् , द्युमणिः, दिनमणिः,.."), सूर्यः, अर्कः, किरणः, भगः, ग्रहपुषः, पूषा (-षन् ), Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७. 'मणिप्रभा'ब्याख्योपेतः मार्तण्डो यमुनाकृतान्तजनकः प्रद्योतनस्तापनः ॥६॥ ब्रनो हंसश्चित्रभानुर्विवस्वान् सूरस्त्वष्टा द्वादशात्मा च हेलिः। . मित्रो ध्वान्तारातिरब्जांशुहस्तश्चक्राब्जाहर्बान्धवः सप्तसप्तिः ॥ १० ॥ दिवादिनाहार्दिवसप्रभाविभाभासः करः स्यान्मिहिरो विरोचनः। ग्रहाब्जिनीगोद्यपतिर्विकर्तनो हरिः शुचीनौ गगनाद्ध्वजाध्वगौ॥ ११ ॥ हरिदश्वो जगत्कर्मसाक्षी भास्वान् विभावसुः । त्रयीतनुर्जगच्चक्षुस्तपनोऽरुणसारथिः ॥ १२ ॥ पतङ्गः, खगः, मार्ताण्डः, यमुनाजनकः, कृतान्तजनकः ( यौ०-कालिन्दीसूः, यमसूः,..."), प्रद्योतनः, तापनः, बध्नः, हंसः, चित्रभानुः, विवस्वान् (-स्वत् ), सूरः (+ शूरः ), त्वष्टा (-ष्ट ), द्वादशात्मा (-त्मन् ), हेलिः, मित्रः, ध्वान्तारातिः ( यौ०-तिमिरारि:,......"), अब्जहस्त:, अंशुहस्त: ( यौ०-पद्मपाणिः, गभस्तिपाणि:,......"), चक्रबान्धवः, अब्जबान्धवः, अहर्बान्धवः ( यौ०चक्रवाकबन्धुः, पद्मबन्धुः, दिनबन्धु:,......"), सप्तसप्तिः (यौ०-सप्ताश्वः, विषमाश्वः, ...."") दिवाकरः, दिनकरः, अहस्करः, दिवसकरः, प्रभाकरः, विभाकरः, भास्करः ( यौ०-वासरकृत् , दिनप्रणीः, दिनकृत्,..."), मिहिर: (+ मिहरः, महिरः ), विरोचनः, ग्रहपतिः, अब्जिनीपतिः, गोपतिः, द्यपतिः ( यौ०-ग्रहेशः, पद्मिनीशः, त्विषामीशः, दिनेशः,......"), विकर्तनः, हरिः, शुचिः, इनः, गगनध्वजः, गगनाध्वगः (यौ०-नभःकेतनः, नभःपान्थः,....."), हरिदश्वः, जगत्साक्षी, कर्मसाक्षी ( २ -क्षिन् ), भास्वान् (-स्वत् , यौ० --अंशुमान्-मत् , अंशुमाली -लिन् ; ...""), विभावसुः, त्रयीतनुः, जगच्चक्षुः (-तुस् ), तपनः, अरुणसारथिः ।। . विमर्श :-ऋतुभेदसे प्रत्येक मासमें सूर्य-किरणें घटती-बढ़ती हैं, अत एव. 'पूषति वर्द्धत'इस विग्रहसे सूर्यका नाम 'पूषा' होता है । 'व्याडि'के मतमें सूर्य-रश्मियोंकी संख्यामें वक्ष्यमाण विभिन्नता होती है । यथा-चैत्रमें १२००, वैशाखमें १३००, ज्येष्ठमें १४००, अाषाढमें १५०० श्रावण तथा भाद्रपदमें १४००-१४००, अाश्विनमें १६००, कार्तिकमें ११००, अगहनमें १०५०, पौष में १०००, माघमें ११०० और फाल्गुनमें १०५० सूर्यकी किरणें होती है * ॥ * यथाऽऽह व्याडि: - "ऋतुभेदात्पुनस्तस्यातिरिच्यन्तेऽपि रश्मयः । शतानि द्वादश मधौ त्रयोदशैव माधवे ॥ चतुर्दश पुनयेष्ठे नभोनभस्ययोस्तथा . । पञ्चदशैव त्वाषाढे षोडशैव तथाऽऽश्विने ॥ कार्तिकके त्वेकादश शतान्येवं तपस्यपि ।। मार्गे तु दश सार्दानि शतान्येवं च फाल्गुने । पोष एव परं मासि सहसं किरणा रवः ॥" इति ॥ Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणिः १ रोचिरुस्त्ररुचिशोचिरंशुगो ज्योतिरर्चिरूपधृत्य भीशवः प्रग्रहः शुचिमरीचिदीप्तयो धाम केतुघृणिरश्मिपृश्नयः पादीधितिकरद्युतिद्युतो रुग्विरोक किरणत्विषित्विषः भाः प्रभावसुगभस्तिभानवो भा मयूख महसी छविर्विभा २ प्रकाशस्तेज उद्योत आलोको वर्च आतपः । मरीचिका मृगतृष्णा ४ मण्डलं तूपसूर्यकम् परिधिः परिवेषश्च ५ सूरसूतस्तु काश्यपिः अनूरुविनतासूनुररुणो -३ गरुडाग्रजः शेषश्चात्र – सूर्ये वाजीलोकबन्धुर्भानेमिर्भानु केसर: 1 - सहस्राङ्को दिवापुष्टः कालभृद्रात्रिनाशनः ॥ पपी: सदागतिः पीतुः सांवत्सररथः कपि: 1 शानः पुष्करो ब्रह्मा बहुरूपश्च कर्णसूः || वेदोदयः खतिलकः प्रत्यूषाण्डं सुरावृतः । लोकप्रकाशन: पीथो जगद्दीपोऽम्बुतस्करः || ॥ १३ ॥ 1. ।। १४ ।। ।। १५ ।। 1 ॥ १६ ॥ १. 'किरण' के ३६ नाम हैं - रोचि : ( -चिस ), उस्रः, रुचि: ( स्त्री ), शोचिः (-चिस्, न ), अंशु: (पु), गौ: (गो, पु स्त्री ), ज्योति: (–तिस् , न), चि: ( - चिस्, स्त्री न ), उपधृतिः, अभीशु: ( + अभीषुः । २ पु ), प्रग्रहः, शुचि:, मरीचि : ( स्त्री पु ), दीप्ति: (स्त्री), धाम ( - मन्), केतु:, घृणि: ( + वृष्णिः, धृष्णि: ), रश्मिः, पृश्नि: ( पु स्त्री । + पृष्णिः, वृष्णिः ), पादः, दीधिति: (स्त्री), कर, द्युति: (स्त्री), द्युत्, रुक् (च्), विरोकः, किरणः, स्विषिः ( स्त्री ), स्विट् (-ब् ), भा: (-स्) पु स्त्री ), प्रभा, वसुः, गभस्तिः, भानु: (३ पु ), भा (भा, स्त्री ), मयूख:, मह: (−स्, न ), छवि: ( स्त्री ), विभा ॥ २. 'धूप, घाम' के नाम हैं- प्रकाशः, तेजः (-जस् ), उद्योत:, श्रालोकः, वर्चः (-स्), आतपः ( + द्योतः ) ॥ ३. 'मृगतृष्णा' के २ नाम हैं-मरीचिका, मृगतृष्णा ॥ ४. 'मण्डल' ( सूर्यकी चारों ओर दिखलायी पड़नेवाले गोलाकार तेज:समूह ) के ४ नाम हैं - मण्डलम् (त्र), उपसूर्य कम् (न), परिधि (पु), "परिवेषः (+परिवेषः ) ॥ ५. 'सूर्य के सारथि, अरुण के ६ नाम है – सूरसूतः ( यौ० - रविसारथि: ), काश्यपि, नूरुः, विनतासूनुः ( यौ० - वैनतेयः, ), -गरुडाग्रज: ।। Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः २६. १ रेवन्तस्त्वर्करेतोजः प्लवगो हयवाहनः ।। २ अष्टादश माठराद्याः सवितुः पारिपाश्विकाः ॥१७ ।। ३ चन्द्रमाः कुमुदबान्धवो दशश्वेतवाज्यमृतसूस्तिथिप्रणीः । कौमुदीकुमुदिनीभदक्षजारोहिणीद्विजनिशौषधीपतिः ॥१८॥ जैवातकोऽब्जश्च कलाशशैणच्छायाभृदिन्दुविधुरत्रिग्जः।। राजा निशो रत्नकरौ च चन्द्रः सोमोऽमृतश्वेतहिमद्यतिग्लौंः ॥१६॥ शेषश्चात्र-अरुणे विपुलस्कन्धो महासारथिराश्मनः । १. 'रेवन्त' ( वर्तमान १४ मनुत्रोंमें-से पञ्चम मनु ) के ४ नाम हैंरेवन्तः (+रैवतः ), अर्करेतोजः, प्लवगः, हयवाहनः ।। २. 'सूर्यके पारिपार्श्विक' ( पार्श्ववर्ती ) 'माठरः' इत्यादि १८ हैं ।। विमर्श-सूर्य के १८ पार्श्ववतियोंके ये नाम हैं- "माठरः, पिङ्गलः, दण्डः,. राजश्रोथौ, खरद्वारिको, कल्माषपक्षिणौ (-क्षिन), जातृकार:, कुतापकौ, पिङ्गगजौ, दण्डिपुरुषौ, किशोरको"। ( इन्द्रादि देव ही दूसरे दूसरे नामोंसे सूर्यके पाववर्ती बनकर रहते हैं )॥ .. ३. 'चन्द्र'के ३२ नाम हैं-चन्द्रमाः (-मस ), कुमुदबान्धवः ( यौ० कैरवबन्धुः, कुमुदसुहृत् -हृद् ,.......),. दशवाजी (+दशाश्वः ), श्वेतवाजी • (+श्वेताश्वः । २-जिन् ), अमृतसूः ( यौ०-सुधासू:,....), तिथिप्रणी:, कौमुदीपतिः, कुमुदिनीपतिः, भपतिः, दक्षजापतिः, रोहिणीपतिः, द्विजपतिः, निशापतिः, औषधीपतिः ( यौ०-ज्योत्स्नेशः, कुमुद्वतीशः, नक्षत्रेशः, दाक्षायरणीशः, रोहिणीशः, द्विजेशः, निशेशः, औषधीशः,"....""), जैवातृकः, अब्जः, (.+ समुद्रनवनीतम् ), कलाभृत् , शशभृत् , एणभृत् , छायाभृत् ( यौ०कलानिधिः, शशधरः, मृगलाञ्छनः, छायाङ्कः, शशाङ्कः, मृगाङ्कः, कलाधरः,......""), इन्दुः, विधुः, अत्रिदृग्जः ( यौ०–अत्रिनेत्रप्रसूतः,....."), राजा (-जन्), निशारत्नम् , निशाकरः (यौ०-निशामणिः, रजनीकरः,...."), चन्द्रः, सोमः, अमृतद्यतिः, श्वेतद्युतिः, हिमद्युतिः (यौ०-सुधांशुः, सितांशुः, शीतांशुः,...'), ग्लौः ।। विमर्शः-चन्द्रमाके दश घोड़े होनेसे उसे 'दशवाजी' कहते हैं, उन दश घोड़ोंके ये नाम हैं-यजुः (-जुष ), चन्द्रमनाः (-नस ), वृषः, सप्तधातुः, हयः, वाजी (-जिन् ), हंसः, व्योममृगः, नरः और अर्वा (-वन् )। इनमें से कहीं-कहीं 'चन्द्रमनाः'के स्थानमें 'त्रिघनाः' तथा 'सप्तधातुः'के स्थानमें 'सहरुण्यः नाम भी आते हैं । Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानाचन्तामणिः • १ षोडशोंऽशः कला २ चिह्न लक्षणं लक्ष्म लाञ्छनम् । अङ्कः कलङ्कोऽभिज्ञानं ३ चन्द्रिका चन्द्रगोलिका ॥२०॥ चन्द्रातपः कौमुदी च ज्योत्स्ना ४ बिम्बं तु मण्डलम् । . ५ नक्षत्रं तारका ताराज्योतिषी भमुडु ग्रहः ॥२१॥ धिष्ण्यमृक्ष६मथाश्विन्यश्वकिनी दस्रदेवता अश्वयुबालिनी चाथ ७ भरणी यमदेवता ॥२२॥ . ८ कृत्तिकाबहुलाश्चाग्निदेवा ह ब्राह्मी तु रोहिणी । १० मृगशीर्ष मृगशिरो मार्गश्चान्द्रमसं मृगः ॥ २३ ॥ .११ इल्वलास्तु मृगशिरःशिरःस्थाः पञ्च तारकाः । शेषश्चात्र-चन्द्रस्तु मास्तपोराजौ शुभांशुः श्वेतवाहनः । जर्णः सुप्रो राजराजो यजतः कृत्तिकाभवः ॥ यक्षराडौषधीगर्भस्तपसः शयतो बुधः । स्यन्दः खसिन्धुः सिन्धूत्थः श्रविष्ठारमणस्तथा ॥ आकाशचमस: पीतु: क्लेदुः पर्वरिचिक्लिदौ । परिज्वा युवनो नेमिचंन्दिरः . स्नेहुरेकभूः ।। १. 'चन्द्र'के सोलहवें भागका 'कला' यह १ नाम है ।। २. 'चन्द्रकलङ्क, या चिह्नमात्र'के ७ नाम हैं-चिह्नम् , लक्षणम् , लक्ष्म (-क्ष्मन् ), लाञ्छनम् , अङ्कः, कलङ्कः, अभिज्ञानम् ।। ३. 'चांदनी'के ५ नाम हैं - चन्द्रिका, चन्द्रगोलिका, चन्द्रातपः, कौमुदी, ज्योत्स्ना (+चन्द्रिमा )॥ . ४. 'मण्डल'के २ नाम हैं-बिम्बम् (पु न ), मण्डलम् ।। ५. 'नक्षत्र, तारा'के ६ नाम हैं-नक्षत्रम् , तारका (त्रि), तारा ( स्त्री पु), ज्योतिः (-तिस ), भम् , उडु (स्त्री न ), ग्रहः, धिष्ण्यम् , ऋक्षम् ।। ६. 'अश्विनी नक्षत्र'के ५ नाम हैं-अश्विनी, अश्वकिनी, दस्रदेवता, अश्वयुक (-युज स्त्री), बालिनी ॥ ७. 'भरणी नक्षत्र के २ नाम हैं-भरणी, यमदेवता ।। ८. 'कृत्तिका नक्षत्र'के ३ नाम हैं- कृत्तिकाः, बहुलाः (२ स्त्री० नि० ब० ब०), अग्निदेवाः ॥ ६. 'रोहिणी नक्षत्र'के २ नाम हैं-ब्राह्मी, रोहिणी॥ १०. 'मृगशिरा नक्षत्र'के ५ नाम है-मृगशीर्षम्, मृगशिरः (-रस , पुन ), -मार्गः, चान्द्रमसम् , मृगः ।। ११. मृगशिरा नक्षत्र'के ऊपर भागमें स्थित ५ ताराओंका 'इल्वलाः' (स्त्री । + इन्वकाः ) यह १ नाम है । Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मणिप्रभा'व्याख्योपेतः १ आर्द्रा तु कालिनी रौद्री २ पुनर्वसू तु यामको ॥ २४ ॥ आदित्यौ च ३ पुष्यस्तिष्यः सिद्धयश्च गुरुदैवतः । ४ सार्यश्लेषा ५ मघाः पित्र्याः ६ फल्गुनी योनिदेवता ॥२५॥ ७ सा तूत्तरार्यमदेवा ८ हस्तः सवितृदेवतः । ६ त्वाष्ट्री चित्रा१०ऽऽनिली स्वाति११विशाखेन्द्राग्निदेवता ॥२६ ।। राधा१२ऽनुराधा तु मैत्री १३ ज्येष्ठेन्द्री १४ मूल आश्रपः। १५ पूर्वाषाढापी १६ सोत्तरा स्याद्वैश्वी १७ श्रवणः पुनः ॥२७॥ हरिदेवः१८श्रविष्ठा तु धनिष्ठा वसुदेवता । १६ वारुणी तु शतभिष२०गजाहिर्बुध्नदेवताः ॥२८॥ १. 'आर्द्रा नक्षत्र'के ३ नाम हैं-श्रा , कालिनी, रौद्री ।। २. 'पुनर्वसु नक्षत्र'के ३ नाम हैं-पुनर्वसू (पु), यामको, श्रादित्यौ . ( ३ नि० द्वि व० )॥ ३. 'पुष्य नक्षत्र' के ४ नाम हैं--पुष्यः, तिष्यः, सिद्धयः, गुरुदैवतः ।। ४. 'अश्लेषा नक्षत्र'के २ नाम हैं—साी, अश्लेषा (पु स्त्री) । ५. 'मघा नक्षत्र'के २ नाम है-मघाः, पित्र्याः ।। ६. 'पूर्वफल्गुनी नक्षत्र'के २ नाम हैं-पूर्वफल्गुनी ( द्विव० ब० व० । +ए० व० ) योनिदेवता ।। . ७. 'उत्तरफल्गुनी नक्षत्र'के २ नाम हैं-उत्तरफल्गुनी (नि० द्विव० • ब०व०), अर्यमदेवा ।। । 1. 'हस्त नक्षत्र के २ नाम हैं-हस्तः ( पु स्त्री ), सवितृदेवतः ।। ... 'चित्रा नक्षत्र'के २ नाम हैं—त्वाष्ट्री, चित्रा ॥ . १०. 'स्वाति नक्षत्र के २ नाम हैं-श्रानिली, स्वातिः (पु स्त्री)। . ११. 'विशाखा नक्षत्र के ३ नाम हैं-विशाखा, इन्द्राग्निदेवता, राधा । १२. 'अनुराधा नक्षत्र'के २ नाम हैं-अनुराधा (+अनूराधा ), मैत्री॥ ... १३. 'ज्येष्ठा नक्षत्र के २ नाम हैं - ज्येष्ठा, ऐन्द्री॥ १४. 'मूल नक्षत्र के २ नाम हैं-मूल: (पु न ), आश्रपः ।। १५. 'पूर्वाषाढा नक्षत्र' के २ नाम हैं-पूर्वाषाढा, श्रापी । १६. 'उत्तराषाढा नक्षत्र'के २ नाम हैं --उत्तराषाढा, वैश्वी । १७. 'श्रवण नक्षत्र के २ नाम हैं-श्रवण: ( पु स्त्री), हरिदेवः ।। १८. 'धनिष्ठा नक्षत्र'के ३ नाम हैं-श्रविष्ठा, धनिष्ठा, वसुदेवता ।। १६. 'शषभिषा नक्षत्र के २ नाम है-वारुणी, शतभिषक (-ज , स्त्री)॥ २०. 'पूर्वभाद्रपदा नक्षत्र'के २ नाम हैं-अजदेवताः, पूर्वभाद्रपदाः ( २ स्त्री)। 'उत्तरभाद्रपदा नक्षत्र के २ नाम हैं-अहिबुध्नदेवताः Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणि: पूर्वोत्तरा भाद्रपदा द्वटयः प्रोष्ठापदाश्च ताः । १ रेवती तु पौष्णं २ दाक्षायण्यः सर्वाः शशिप्रियाः ॥ २६ ॥ (+अहिबध्नदेवताः ), उत्तरभाद्रपदाः ( २ स्त्री )। उक्त दोनों नक्षत्रोंका १-१ नाम और भी है-प्रोष्ठपदाः ( स्त्री ब० व० )। १. रेवती नक्षत्र' के २ नाम हैं-रेवती ( स्त्री ), पौष्णम् (न)॥ विमर्श:-इन 'अश्विनी' आदि २७ नक्षत्रोंके लिङ्ग तथा वचन अन्य शास्त्रानुसार इस प्रकार हैं-अश्विनीसे रोहिणीतक ४ नक्षत्र स्त्रीलिङ्ग, तथा बहुवचन, 'मृगशिर' स्त्रीलिङ्ग नपुंसक तथा एकवचन, 'पार्द्रा' स्त्रीलिङ्ग तथा एकवचन, 'पुनर्वसु, पुष्य' पुंल्लिङ्ग तथा एकवचन, 'अश्लेषा, मघा' स्त्रीलिङ्ग तथा बहुवचन, 'पूर्वफल्गुनी, उत्तरफल्गुनी' स्त्रीलिङ्ग तथा द्विवचन, 'हस्त' पंल्लिङ्ग स्त्रीलिङ्ग तथा एकवचन, चित्रा' स्त्रीलिङ्ग तथा एकवचन, 'स्वाति' स्त्रीलिङ्ग पुंल्लिङ्ग तथा एकवचन, 'विशाखा, अनुराधा' स्त्रीलिङ्ग तथा बहुवचन, 'ज्येष्ठा' स्त्रीलिङ्ग तथा एकवचन, 'मूल' पुंल्लिङ्ग नपुंसक तथा एकवचन, पूर्वाषाढा, उत्तराषाढा' स्त्रीलिङ्ग तथा बहुवचन, 'श्रवण' पुल्लिङ्ग स्त्रीलिंग तथा एकवचन, 'धनिष्ठा, शतभिषज' स्त्रीलिङ्ग तथा बहुवचन, 'पूर्वभाद्रपदा तथा उत्तरभाद्रपदा' स्त्रीलिङ्ग तथा द्विवचन, और 'रेवती' स्त्रीलिङ्ग तथा एकवचन है । 'मुकुट'ने जो-“अश्विनी, भरणी, रोहिणी आदि ३, पुष्य, आश्लेषा, हस्त आदि ३, अनुराधा आदि ८ और रेवती-ये १६ नक्षत्र एकवचन; पुनर्वसु, पूर्वफल्गुनी, उत्तरफल्गुनी, विशाखा, पूर्वभाद्रपदा, उत्तरभाद्रपदा-ये ६ नक्षत्र द्विवचन और कृत्रिका तथा मघा--ये २ नक्षत्र बहुवचन हैं" ऐसा कहा है, वह आर्षोक्तिविरुद्ध होनेसे चिन्त्य है । २. 'अश्विनी' से 'रेवती' तक समष्टि २७ रूपमें नक्षत्रोंके २ नाम है-दाक्षायण्यः, शशिप्रियाः (२ स्त्री । यहाँ बहुवचन नक्षत्रोंकी बहुलतासे है, उक्त दोनों शब्द नि० बहुवचन नहीं हैं )। विमर्श-यद्यपि "अष्टाविंशतिराख्यातास्तारका मुनिसत्तमः" इस वचन के अनुसार २८ नक्षत्रगणनाकी पूर्तिके लिए 'अभिजित्' नक्षत्रका भी सन्निवेश करना उचित था, तथापि "अभिजिद्भोगमेतद्वै वैश्वदेवान्त्यपादमखिलं , तत् । आद्याश्चतस्रो नाड्यो हरिभस्यतस्य रोहिणीविद्धम् ॥” इस वचनके अनुसार 'अश्विनी आदि नक्षत्रोंके समान 'अभिजित्' नक्षत्रका स्वतन्त्र मान नहीं होनेके कारण मुख्य २७ नक्षत्रोंका कथन त्रुटिपूर्ण नहीं समझना चाहिए । Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवकाण्ड: २] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः १ राशीनामुदयो लग्नं २ मेषप्रभृतयस्तु ते । ३ आरो वक्रो लोहिताङ्गो मङ्गलोऽङ्गारकः कुजः ॥ ३० ॥ , आषाढाभूनवाचिंश्च ४ बुधः सौम्यः प्रहषुलः । ज्ञः पन्चार्चिः श्रविष्ठाभूः श्यामाङ्गो रोहिणीसुतः ॥ ३१ ।। ५ बृहस्पतिः सुराचार्यो जीवश्चित्रशिखण्डिजः। . वाचस्पतिर्द्वादशाचिर्धिषणः फल्गुनीभवः ॥३२॥ गीर्वृहत्योः पतिरुतथ्यानुजाङ्गिरसौ गुरुः । ६ शुक्रो मघाभवः काव्य उशना भार्गवः कविः॥३३॥ षोडशाचिर्दैत्यगुरुधिष्ण्यः ७ शनैश्चरः शनिः । छायासुतोऽसितः सौरिः सप्ता! रेवतीभवः ॥ ३४ ॥ १. 'राशियोंके उदय'का १ नाम है-लग्नम् ( पु न )॥ २. 'वे राशियां' मेष इत्यादि १२ हैं। . विमर्श--'मेषः, वृषः, मिथुनम्, कर्कः, सिंहः, कन्या, तुला, वृश्चिकः, धनुः (-स ), मकरः, कुम्भः, मीन:'-ये १२ 'राशियाँ' हैं, इन्हींको 'लग्न' कहते हैं । ३. 'मङ्गल ग्रह के ८ नाम हैं-आरः, वक्र:, लोहिताङ्गः, मङ्गलः, अङ्गारकः, कुजः ( यौ०-भौमः, माहेयः, धरणीसुतः, महीसुतः,....."), आषाढाभूः, नवार्चिः (-चिस )॥ . ___४.. 'बुध ग्रह के ८ नाम है-बुधः, सौम्यः (यौ०-चन्द्रात्मजः, चान्द्रमसायनिः,......"), प्रहषुलः, ज्ञः, पञ्चाचिः (-र्चिस् ), श्रविष्ठाभूः, श्यामाङ्गः, रोहिणीसुतः (यौ०-रौहिणेयः,...") ॥ ५. बृहस्पति ग्रह'के १३ नाम हैं-बृहस्पतिः, सुराचार्यः ( यौ- देवगुरु:,..."), जीवः, चित्रशिखण्डिजः ( यौ०-सप्तर्षिजः,..), वाचस्पतिः (+ वाक्पतिः, वागीशः, ), द्वादशाचिः (-चिंस ), धिषणः, फल्गुनीभवः (+ फाल्गुनीभवः ), गी:पतिः, बृहतीपतिः, उतथ्यानुजः, आङ्गिरस:, गुरुः ॥ शेषश्चात्र-गीष्पतिस्तु महामतिः । प्रख्याः प्रचक्षा वाग्वाग्मी गौरो दीदिविगीरथौ ॥ ६. 'शुक्र ग्रह, शुक्राचार्य'के ६ नाम हैं--शुक्रः, मघाभवः, काव्यः, उशनाः (-नस् ), भार्गवः, कविः, षोडशाचिः (-चिंस ), दैत्यगुरुः ( यौ०असुराचार्यः,......), धिष्ण्यः ॥ . शेषश्चात्र-शुक्र भृगुः ।। ७. 'शनि ग्रह'के १० नाम हैं-शनैश्चरः, शनिः, छायासुतः, असित:, ३ अ. चि० Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणिः मन्दः क्रोडो नीलवासाः १ स्वर्भाणुस्तु विधुन्तुदः । तमो राहुः सँहिकेयो भरणीभूरस्थाहिकः ॥ ३५ ॥ अश्लेषाभूः शिखी केतुश्र्ध व उत्तानपादजः । ४ अगस्त्योऽगस्तिः पीताब्धिर्वातापिद्विड्घटोद्भवः ।। ३६ ॥ मैत्रावरुणिराग्नय और्वशेयाग्निमारुतौ । ५ लोपामुद्रा तु तद्भायर्या कौषीतको वरप्रदा ॥ ३७ ॥ ६ मरीचिप्रमुखाः सप्तर्षयश्चित्रशिखण्डिनः । ७ पुष्पदन्तौ पुष्पवन्तावेकोक्त्या शशिभास्करौ ॥ ३८॥ . सोरिः, (+ सौरः, शौरिः, सूरः ), सप्तार्चिः (-र्चिस् ), रेवतीभवः, मन्दः, कोड:, नीलवासाः (-सस् )। शेषश्चात्र-शनौ पङ्गः श्रुतकर्मा महाग्रहः । - श्रुतश्रवोऽनुज: कालो ब्रह्मण्यश्च यमः स्थिरः ॥ करात्मा च । १. 'राहु ग्रह के ६ नाम हैं-स्वर्भाणुः (+स्वर्भानुः ), विधुन्तुदः, तमः ( -मस, पु न । + तमः,-म, पु.), राहुः ( + अभ्रपिशाचः, ग्रहकल्लोलः ), सैंहिकेयः, भरणीभूः ॥ शेषश्चात्र-अथ राहौ स्यादुपराग उपप्लवः । २. 'केतु ग्रह के ४ नाम हैं-आहिकः, अश्लेषाभूः, शिखी (-खिन् ), केतुः ॥ शेषश्चात्र--केतावर्ध्वकचः। . ___३. 'ध्रुव तारा'के २ नाम हैं-ध्रुवः, उत्तानपादजः (यौ०--औत्तानपादिः, श्रौत्तानपादः,...")॥ . शेषश्चात्र-ज्योतीरथग्रहाभयौ ध्रुवे । ४. 'अगस्त्य मुनि'के हैं नाम हैं-अगस्त्यः, अगस्तिः, पीतान्धिः, वातापिद्विट (-द्विष ), घटोद्भवः (+कुम्भजः ), मेत्रावरुणिः, आग्नेयः, और्वशेयः, आग्निमारुतः॥ ५. 'अगस्त्य मुनिकी पत्नी के ३ नाम है-लोपामुद्रा, कौषीतकी, वरप्रदा ॥ ६. 'मरीचि' आदि सप्तर्षियोंके २ नाम है-सप्तर्षयः, चित्रशिखण्डिनः (-ण्डिन् )। . विमर्श:--मरीचिः, अत्रिः, अङ्गिराः (-रस् ), पुलस्त्यः, पुलहः, ऋतुः, वसिष्ठः (+वशिष्ठः)-ये 'सप्तर्षि' हैं । ७. 'एक साथ कहे गये सूर्य तथा चन्द्र'के २ नाम हैं-पुष्पदन्तौ, : पुष्पवन्तौ (-वत् । २ नि द्विव० )॥ Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवकाण्डः २ ] 'मणिप्रभा' व्याख्योपेतः उपराग १ राहुप्रासोऽर्केद्रोह २ उपलिङ्ग त्वरिष्टं स्यादुपसर्ग जन्यमीतिरुत्पातो ३ वह्नय त्पात ४ स्यात्कालः समयो दिष्टानेहसौ ५. कालो उपप्लवः । उपद्रवः ॥ ३६ ॥ उपाहितः । सर्वमूपकः ॥ ४० ॥ द्विविधोऽवसर्पिण्युत्सर्पिण | विभेदतः । सागरकोटिकोटीनां विंशत्या स समाप्यते ॥। ४१ ।। ६ अवसर्पिण्यां पडरा उत्सर्पिण्यां त एव विपरीताः । द्वादशभिररैर्विवर्तते कालचक्रमिदम् ॥ ४२ ॥ एवं ३५ १. 'सूर्यग्रहण तथा चन्द्रग्रहण के ३ नाम हैं- राहुग्रासः, उपरागः, उपप्लवः ॥ २. 'उपद्रव' के ७ नाम हैं— उपलिङ्गम्, अरिष्टम्, उपसर्गः, उपद्रवः, जन्यम् (पुन), ईति: ( स्त्री ), उत्पातः ॥ ३. 'अग्निजन्य उपद्रव ' ( मता० 'धूमकेतु' नामक उपद्रव ) के २ नाम है - वह्नय स्पातः, उपाहितः ॥ ४. 'समय' के ५ नाम हैं - काल:, समयः ( पुन ), दिष्टः, नेहा: (- हस् ), सर्वमूषकः ।। ५. 'काल' के २ भेद हैं - अवसर्पिणी, उत्सर्पिणी । वह काल ( समय ) ate सागर कोड़ाकोड़ी व्यतीत होनेपर समाप्त होता है । विमर्श - प्रथम 'अवसर्पिणी' नामक कालमें भाव क्रमशः घटते जाते हैं और द्वितीय 'उत्सर्पिणी' नामक कालमें भाव क्रमशः बढ़ते जाते हैं। एक कोटि ( करोड़ ) को एक पोटिसे गुणित करनेपर एक कोटि-कोटि एक कोड़ाकोड़ी अर्थात् दश नील ) होता है । ऐसे बीस सागर कोटिकोटि ( कोड़ाकोड़ी ) समय में वह द्विविध काल पूरा होता है ॥ ६. प्रथम 'अवसर्पिणी' नामक काल ( २ । ४३ में वक्ष्यमाण 'एकान्तसुषमा' इत्यादि) में ६ 'अर' होते हैं और द्वितीय 'उत्सर्पिणी' नामक कालमें वे ही ६'' विपरीत क्रमसे होते हैं, इस प्रकार यह कालचक्र १२ असे घूमा - ( चला ) करता है । 'विमर्श - प्रथम 'अवसर्पिणी' नामक कालमें १ एकान्तसुषमा अर्थात् सुषमसुषमा, २ सुषमा, ३ सुषमदुःषमा, ४ दुःषमसुषमा, ५ दुःषमा, और ६ एकान्तदुःषमा अर्थात् दुःषमदुःषमा' - ये ६ 'अर' होते हैं, तथा द्वितीय 'उत्सर्पिणी' नामक कालमें वे ही छहों श्रर विपरीत क्रमसे अर्थात् १ एकान्तदु:षमा अर्थात् दुःषमदुःषमा, २ दु:षमा, ३ दुःषमसुषमा, ४ सुषमदुःषमा, ५ सुषमा और ६ एकान्तसुषमा अर्थात् सुषमसुषमा, होते हैं, और इन्हीं १२ अरोंके द्वारा यह उभयविध कालचक्र चलता रहता है । इन अरोका मान आगे ( २ ! ४३-४५ में ) कहा गया है ॥ Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणिः १ तत्रैकान्तसुषमाऽरश्चतस्रः कोटिकोटयः । ___ सागराणां २ सुषमा तु तिस्त्रस्तत्कोटिकोटयः ॥ ४३ ।। ३ सुषमदुःषमा ते द्वे ४ दुःषमसुषमा पुनः। सैका सहस्रर्वर्षाणां द्विचत्वारिंशतोनिता ॥४४॥ ५ अथ दुःषमैकविंशतिरब्दसहस्राणि ६तावती तु स्यात् । ___ एकान्तदुःषमाऽपि ७ ह्येतत्सङ्ख्याः परेऽपि विपरीताः ॥ ४५ ॥ ८ प्रथमेऽरत्रये माविद्वयं कपल्यजीविताः । . त्रिद्वय कगव्यूतोच्छ्रायास्त्रिद्वय कदिनभोजनाः . ॥४६॥ कल्पद्रफलसन्तुष्टाः१. उनमें से 'एकान्तसुषमा' अर्थात् 'सुषमसुषमा' नामक 'अर'का प्रमाण चार सागर कोड़ाकोड़ी है ।। २. 'सुषमा' नामक 'अर'का प्रमाण तीन सागर कोडाकोड़ी है.॥ . ३. 'सुषमदुःषमा' नामक 'श्रर'का प्रमाण दो सागर कोडाकोड़ी है ।। ४. 'दुःषमसुषमा' नामक 'अर'का प्रमाण बयालिस सहस्र (४२०००). कम एक सागर कोडाकोड़ी है ।। . ५. 'दु:षमा' नामक 'अर'का प्रमाण इक्कीस सहस्र ( २१०००)वर्षे है।। ६. 'एकान्तदुःषमा' अर्थात् 'दु:षमदुःषमा', नामक 'अर'का प्रमाण उतना ( २१००० वर्ष ) ही है ॥ ७. 'उत्सर्पिणी' नामक कालके भी ये ६ 'अर' · विपरीत क्रमसे ( २१४२ के 'विमर्श में वर्णित क्रमसे ) इतने ही इतने ('अवसर्पिणी कालके अरोंके 'प्रमाण'के बराबर ही) प्रमाणवाले होते हैं । इस प्रकार ('अवसर्पिणी' तथा 'उत्सर्पिणी'के भेदसे ) दोनों तरहके कालका प्रमाण २० सागर कोडाकोड़ी होता है। ८. प्रथम तीन ('एकान्तसुषमा-सुषमसुषमा, सुषमा और दुःषमसुषमा') अरोंमें मनुष्योंकी आयु क्रमश: तीन, दो और एक पल्यकी होती है, वे (मनुष्य) क्रमशः तीन, दो और एक गव्यूत ऊँचे होते हैं, तीन, दो और एक दिनपर भोजन करते हैं और कल्पवृक्षके फलोंको खाते हैं। विमर्श--'एकान्तसुषमा' (सुषमसुषमा ) नामक अरमें मनुष्योंकी आयु तीन पल्य तथा ऊँचाई तीन गव्यूत होती है और वे तीन दिनपर अर्थात् चौथे दिन भोजन करते हैं । 'सुषमा' नामक अरमें मनुष्योंकी आयु दो पल्य तथा ऊँचाई दो गव्यूत होती है और वे दो दिन पर अर्थात् तीसरे दिन भोजन करते हैं । 'दुःषमसुषमा' नामक अरमें मनुष्योंकी आयु एक पल्य तथा ऊँचाई एक गव्यूत होती है और वे एक दिन पर अर्थात् दूसरे दिन भोजन करते हैं । इन तीनों अरोंमें होनेवाले मनुष्य कल्पवृक्षके फलोंको खाते हैं। __ जैनसम्प्रदायके अनुसार प्रमाणके दो भेद हैं-१ लौकिक तथा २ लोकोत्तर । १मलौकिक प्रमाणके ६ भेद हैं-१ मान, २ उन्मान, ३ अवमान, ४ गणना, ५ प्रतिमान और ६ तत्प्रमाण । २य लोकोत्तर प्रमाणके ४ भेद हैं-१ द्रव्यप्रमाण, २ क्षेत्रप्रमाण, ३ कालप्रमाण और ४ भावप्रमाण । Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवकाण्ड: २] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः इनमें से १म द्रव्यप्रमाणके २ भेद हैं -१ संख्याप्रमाण और २ उपमाप्रमाण । संख्याप्रमाणके ३ भेद हैं-१ संख्येय, २ असंख्येय और ३ अनन्त । संख्येयप्रमाणके भी ३ भेद हैं-१ जघन्य, २ अजघन्योत्कृष्ट और ३ उत्कृष्ट । असंख्येयके ३ भेद हैं-१ परीतासंख्येय, २ युक्तासंख्येय और ३ अनन्तासंख्येय । इन तीनों (परीतासंख्येय, युक्तासंख्येय और अनन्तासंख्येय )में प्रत्येकके ३-३ भेद हैं-१ जघन्य, २ उत्कृष्ट और ३ मध्यम ( इस प्रकार असंख्येयके ६ भेद होते हैं )। इसी प्रकार अनन्तके भी ३ भेद हैं१परीतानन्त, २ युक्तानन्त और ३ अनन्तानन्त । इन तीनों (परीतानन्त, युक्ता. नन्त और अनन्तानन्त ) में प्रत्येकके ३-३ भेद हैं-१ जघन्य, २ उत्कृष्ट और ३ मध्यम (इस प्रकार अनन्तप्रमाणके भी ह भेद हो जाते हैं )। उपमाप्रमाण (द्रव्यप्रमाणके २य भेद ) के ८ भेद हैं-१ पल्य, २ सागर, ३ सूची, ४ प्रतर, ५ घनाङ्गल, ६ जगच्छे णी, ७ लोक और ८ प्रतर लोक । इनमें १म पल्यप्रमाणके ३ भेद हैं-१ व्यवहारपल्य, २ उद्धारपल्य और ३ अद्धापल्य ( इसका विशद विवेचन आगे किया जायेगा)। क्षेत्रप्रमाण ( लोकोत्तरप्रमाणके ४ भेदोंमें से २य प्रमाण )के २ भेद हैं-१ अवगाह क्षेत्र और २ विभागनिष्पन्न क्षेत्र । उनमें से १म अवगाह क्षेत्र एक दो तीन चार संख्येय असंख्येय और अनन्त प्रदेशवाले पुद्गल द्रव्यको अवकाश देनेवाले श्राकाशप्रदेशोंकी दृष्टिसे अनेक प्रकारका है। २ य विभागनिष्पन्न क्षेत्र भी .असंख्यात आकाशश्रेणी, क्षेत्रप्रमाणांगुलका एक असंख्यात भाग, असंख्यात प्रमाणांगुलके असंख्यात भाग, एक क्षेत्र प्रमाणांगुलके भेदसे अनेक प्रकारका होता है । कालप्रमाण के भी अनेक भेद हैं, यथा-काल, आवली, निश्वासउच्छवास, प्राण, स्तोक, लव, मुहूर्त, अहोरात्र ( दिन-रात ), पक्ष, मास, ऋतु, अयन, वर्षे, (८४ लाख वर्षका) पूर्वाङ्ग, (८४ लाख पूर्वाङ्गका) पूर्व; इसी प्रकार उत्तरोत्तर 'नयुतांग नयुत, कुमुदांग कुमुद, पद्मांग पद्म, नलिनांग नलिन, महालतांग महालता' आदि काल-वर्षों की गणना गणनीय (गिवने योग्य ) होनेसे 'संख्येय' कही जाती है । इसके अागे पल्योपम, सागरोपम श्रादि काल असंख्येय हैं । उनके अनन्त काल हैं, जो अतीत एवं अंतगत रूप हैं तथा वे सर्वज्ञके ही प्रत्यक्षगम्य हैं । भावप्रमाण पञ्चविध ज्ञानको कहा जाता है। . ___ अब 'पल्य' प्रमाणको स्पष्ट करनेके प्रसङ्गमें पहले 'योजन' प्रमाणको स्पष्ट किया जाता है-अनन्तानन्त परमाणु = १ उत्संज्ञासंज्ञा, ८ उत्संज्ञासंज्ञा = १ संज्ञासंज्ञा, ८ संज्ञासंज्ञा = १ त्रुटिरेणु, ८ त्रुटिरेणु = १ प्रसरेणु, ८ त्रसरेणु = १ रथरेणु, ८ रथरेणु = १ देवकुरु = उत्तर देवकुरुके मनुष्यका वालाग्र, उक्त ८ वालाग्र = हैरण्यवत और हैमक्त क्षेत्रके मनुष्यका वालाग्र, Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणिः उक्त ८ वालाग्र = भरत ऐरावत और विदेह क्षेत्रके मनुष्यका वालाग्र, उक्त ८ वालाग्र = १ लीख, ८ लीख = १ जू, ८ जू = १ यवमध्य, ८ यवमध्य = १ उत्सेधांगुल, ५०० उत्सेधांगुल = १ प्रमाणांगुल (अवसर्पिणी कालके प्रथम चक्रवर्तीका आत्मांगुल), ६ अंगुल = १ पाद, २ पाद = १ बित्ता, २ बित्ता = १ हाथ, २ हाथ = १ किष्कु, २ किष्कु = १ दण्ड, २००० दण्ड = १ गव्यूत और ४ गव्यूत = १ योजनका प्रमाण है। 'पल्य' प्रमाणके ३ भेद हैं-१ व्यवहार पल्य, २ उद्धार पल्य और ३ अद्धा पल्य । इनमें से १म व्यवहार पल्य आगेवाले पल्योंके व्यवहारमें कारण होता है, उससे दूसरे किसीका परिच्छेद नहीं होता । २य उद्धार पल्यके लोमच्छेदोंसे द्वीप समुद्रोंकी गणना की जाती है और ३य अद्धा पल्यसे स्थितिका परिच्छेद किया जाता है। उस पल्यका प्रमाण इस प्रकार है-उपर्युक्त 'प्रमाणांगुल'से परिमित १-१ योजन लम्बे-चौड़े और गहरे तीन गौ (गढों) को सात दिन तककी आयुवाले भेड़के बच्चोंके रोगोंके अतिसूक्ष्म (पुनः अखण्डनीय ) टुकड़ोंसे दबा-दबाकर भर देनेके बाद एक-एक सौ वर्ष व्यतीत होनेपर एक-एक टुकड़ेको निकालते रहनेपर जितने समयमें वह खाली हो जाय उस समयविशेषको १ व्यवहार पल्य कहा जाता है। उन्हीं रोमच्छेदोंको यदि असंख्यात करोड़ वर्षों से छिन्न कर दिया जाय और प्रत्येक समयमें एक-एक रोमच्छेदको निकालनेपर वह गत जितने समयमें खाली होगा, वह समयविशेष 'उद्धार पल्य' कहलाता है ........। उद्धार पल्योंके रोमच्छेदोंको सौ वर्षों के समयसे छेदकर अर्थात् सौ-सौ वर्षमें एक-एक रोमच्छेद निकालते रहनेपर जितने समयमें वह गत खाली हो जाय वह समय-विशेष 'श्रद्धा पल्य' कहलाता है। दस कोड़ाकोड़ी (१ करोड़४१ करोड़ = १० नील ) 'श्रद्धा पल्यो'का १ 'अद्धासागर' परिमित समय होता है। १० 'श्रद्धा सागर' परिमित समय 'अवसर्पिणी'का और उतना ही समय 'उत्सर्पिणी'का होता है । विशेष प्रमाणोंके जिज्ञासुओंको "नृस्थिती परावरे त्रिपल्योपमान्तमुहूर्ते" (तत्त्वार्थसूत्र ३।३८) की व्याख्या सर्वार्थसिद्धि और तत्त्वार्थराजवार्तिक ग्रन्थोंको देखना चाहिए। १-१ योजन लम्बा, चौड़ा तथा गहरा गढा खोदकर एक दिनसे सात दिन तककी आयुवाले भेड़के बच्चोंके रोओं ( वालों ) के असङ्खय टुकड़े करके-जिसमें उनका पुनः टुकड़ा नहीं किया जा सके-उन रोओं ( वालों ) के टुकड़ोंसे उक्त खोदे गये गढेको लोहेकी गाड़ीसे दबा-दबाकर भर दिया जाय । फिर एक-एफ सौ वर्ष बीतनेपर उन खण्डित रोओंके १-२ टुकड़ेको निकालते रहनेसे वह गढा जितने वर्षों में बिलकुल खाली हो जाय, उतने समयको 'पल्य' कहते हैं। Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवकाण्डः २] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः . -१चतुर्थे त्वरके नराः। पूर्वकोट्यायुषः पञ्चधनुःशतसमुच्छ्रयाः॥४७॥ २. पश्चमे तु वर्षशतायुषः सप्तकरोच्छ्रयाः। षष्ठे पुनः षोडशाब्दायुषो हस्तसमुच्छ्रयाः॥४८॥ एकान्तदुःखप्रचिता ३उत्सपिण्यामपीदृशाः। । पश्चानुपूर्व्या विज्ञेया अरेषु किल षट्स्वपि ॥ ४६ ॥ ग्रन्थकारकी 'स्वोपजवृत्ति' तथा अग्रिम वचन ( ३ । ५५१ )के अनुसार 'गव्यूत'का मान एक कोश है, किन्तु पाठान्तरमें 'गव्यूतिः' शब्द होनेसे तथा आगे ( ३ । ५५२में ) गव्यूत' तथा 'गव्यूति'-इन दोनों शब्दोंके परस्पर पर्यायवाची होनेसे; तथा दिगम्बरजैन सम्प्रदाय एवं अन्यान्य कोषग्रन्थोंमें भी 'गव्यूति' शब्दका प्रयोग दो कोश-परिमित मार्ग-विशेषमें होनेसे यहाँ भी 'गव्यूत' शब्दका दो कोश मानना ही युक्तिसंगत प्रतीत होता है । तत्त्वार्थराजवार्तिकके अनुसार दो सहस्र दण्ड अर्थात् आठ हजार (८०००) हाथका एक गव्यूत होता है । १. चौथे ( 'दुःषमसुषमा' नामक ) अरमें मनुष्योंकी आयु पूर्वकोटि तथा ऊँचाई पांच सौ धनुष होती है । विमर्श :-८४ लाख वर्षों का १ पूर्वांग और ८४ लाख पूर्वांगोंका अर्थात् सत्तर लाख छप्पन हजार करोड़ वर्षोंका १ पूर्व होता है, उसी प्रमाण से १ करोड़ पूर्वपरिमित अायु चतुर्थ अर (दुःषमसुषमा ) के मनुष्योंकी होती है। उन मनुष्यों की ऊँचाई ५००धनुष अर्थात् २००० हाथ होती है, क्योंकि १ धनुष ४ हाथ का होता है। ॥ - २: पञ्चम ('दुःषमा' नामक ) अरमें मनुष्योंकी आयु सौ वर्ष तथा ऊँचाई सात हाथ होती है और षष्ठ ('एकान्तदुःषमा' अर्थात् 'दुःषम दुःषमा' नामक ) अरमें मनुष्योंकी आयु सोलह वर्ष तथा ऊँचाई एक हाथ होती है । इस अरमें प्राणी बहुत दुःखी रहते हैं । ३. 'उत्सर्पिणी' कालमें भी इन ६ अरों के विपरीतक्रमसे मनुष्योंकी श्रायु, ऊँचाई तथा भोजनादि जानना चाहिये ॥ * ........तत्र षडङगुलः पादः, द्वादशाङ्गुलो वितस्तिः, द्विवितस्तिहस्तः, द्विहस्तः किकुः, द्विकिष्कुर्दण्डः, द्वे दण्डसहस्र 'गव्यूतम्' । चतुर्गव्यूतं योजनम् । (तत्त्वा० रा. वा० (३ । ३८ सूत्रस्य ) टीका पृ० २०८)। • तथा च बृहस्पति:-'धनुर्हस्तचतुष्टयम् ।' इति । Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४० -- - - - अभिधानचिन्तामणिः १ अष्टादश निमेषाः स्युः काष्ठा २काष्ठाद्वयं लवः । ३ कला तैः पञ्चदशभिटर्लेशस्तद्वितयेन च ॥५०॥ ५ क्षणस्तैः पञ्चदशभिः ६क्षणैः पभिस्तु नाडिका । . - सा धारिका घटिका च ७मुहूर्तस्तद्वयेन च ॥५१॥ ८ त्रिंशता तैरहोरात्रस्तत्रा:हर्दिवसो दिनम् । दिवं द्यर्वासरो घनः १०प्रभातं स्यादहर्मुखम् ॥५२॥ व्यष्टं विभातं प्रत्यूषं कल्यप्रत्युषसी उपः । काल्यं ११ मध्याह्नस्तु दिवामध्यं मध्यन्दिनं च सः ॥ ५३ ।। १२ दिनावसानमुत्सूरो विकालसबली अपि । सायम्१. ( नेत्रके पलक गिरनेका १ नाम है 'निमेषः', वह विपल या 3 सेकेण्डका होता है ) १८ निमेषकी १ 'काष्ठा' ( विपल-ई सेकेण्ड ) होती है। २. २ काष्ठाका १ 'लवः' विपल = 4 सेकेण्ड ) होता है। ३. १५ लवकी १ 'कला' (२० विपल = ८ सेकेण्ड ) होती है । ४. २ कलाका १ 'लेशः' (४० विपल = १६ सेकेण्ड ) होता है ।। ५. १५ लेशका १ 'क्षण:' (१० पल = ४ मिनट ) होता है। ६.६ 'क्षण'की १ नाडिका (१ घटी = २४ मिनट) होती है, इस 'नाडिका'के ३ नाम हैं-नाडिका (+नाडी), धारिका, घटिका (घटी)॥ ७. २ नाडिकाका १ 'मुहूर्तः' (४८ मिनट ) होता है । ८. ३० मुहूर्तका १ 'अहोरात्रः' (पु न ), अर्थात् 'दिन-रातः होता है । ६. उसमें 'दिन'के ७ नाम हैं-अहः (-हन् ), दिवसः, दिनम् (२ पु न), दिवम् , युः (पु), वासरः (पु न), घसः (+ दिवा, अव्य.)॥ १०. 'प्रभात' ( सबेरा-सूर्योदयसे कुछ पूर्वका समय )के ६ नाम हैंप्रभातम् , अहमुखम् , व्युष्टम् , विभातम् , प्रत्यूषम् (पु न), कल्यम् , प्रत्युषः, उषः (२-षस् ), काल्यम् (+प्रातः, तर , प्रगे, प्राहे, पूर्वेद्यु:-द्यस , ४ अव्य०, गोस:)॥ ‘शेषश्चात्र-व्युष्ट निशात्ययगोसौं । ११. 'मध्याह' (दोपहरी ) के ३ नाम हैं-मध्याहः, दिवामध्यम् , मध्यन्दिनम् ॥ १२. 'सायङ्काल' (दिनान्त ) के ५ नाम हैं-दिवावसानम् (न । + दिनान्तः ), उत्सूरः, विकाल:, सबलिः (पु), सायम् (न ।+ सायः, पु!+ सायम्, अव्य०)॥ Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवकाण्ड : २ ] 'मणिप्रभा' व्याख्योपेतः – १ सन्ध्या तु पितृसूर स्त्रिसन्ध्यं तूपवैणवम् ॥ ५४ ॥ ३ श्राद्धकालस्तु कुतपोऽष्टमो भागो दिनस्य यः 1 1 ४ निशा निशीथिनी रात्रिः शर्वरी क्षणदा क्षपा ॥ ५५ ॥ त्रियामा यामिनी भौती तमी तमा विभावरी रजनी वसतिः श्यामा वासतेयी तमस्विनी ॥ ५६ ॥ उषा दोषेन्दुकान्ता५ऽथ तमिस्रा दर्शयामिनीं । ६ ज्योत्स्नी तु पूर्णिमारात्रि णरात्रो निशागणः ॥ ५७ ॥ = पक्षिणी पक्षतुल्याभ्यामहोभ्यां वेष्टिता निशा । गर्भकं रजनीद्वन्द्वं १० प्रदोषो यामिनीमुखम् ॥ ५८ ॥ ४१ १. 'सन्ध्या' के २ नाम हैं - सन्ध्या, पितृसूः ॥ २. 'सहोक्त ( साथमें कहे गये ) तीनों सन्ध्याकाल' ( प्रातः सन्ध्या, मध्याह्न सन्ध्या तथा सायं सन्ध्या ) के २ नाम है — त्रिसन्ध्यम्, उपवैणवम् ॥ ३. 'श्राद्धके समय' ( दिन के आठवें भाग ) के २ नाम हैं - श्राद्धकालः, कुतप: (पुन) ।। ४. ' रात' के २० नाम हैं - निशा, निशीथिनी, रात्रि : ( + रात्री ), शर्वरी, क्षणदा, क्षपा, त्रियामा, यामिनी ( यौ० - यामवती ), भौती, तमी, तमा, विभावरी, रजनी, वसतिः, श्यामा, वासतेयी, तमस्विनी, उषा, दोषा ( + २ अव्य० भी ), इन्दुकान्ता (नक्तम्, अव्य०, तुङ्गी ) ॥ शेषश्चात्र - निशि चक्रभेदिनी । निषद्वरी निशिथ्या निट् घोरा वासरकन्यका । शताक्षी राक्षसी याम्या पूताचिस्तामसी तमिः ॥ शार्वरी क्षणिनी नक्ता पैशाची वासुरा उशाः । ५. 'अँधेरी रात या श्रमावस्थाकी रात के दर्शयामिनी ॥ २ नाम हैं - तमिस्रा, २ नाम हैं— ज्योत्स्नी, ६. 'उजेली रात या पूर्णिमाको रात के पूर्णिमा रात्रिः ॥ ७. 'निशा - समूह' के २ नाम हैं—गणरात्रः, निशागणः ॥ ८. 'दो पक्षोंकी मध्यवाली रात' (पूर्णिमा तथा कृष्णपक्ष की प्रतिपत् तिथियों और अमावस्या तथा शुक्लपक्षकी प्रतिपत् तिथियों के बीचवाली रात ) का १ नाम है - पक्षिणी । ( इसी प्रकार उक्त दोनों तिथियों के मध्यवाले दिनका १ नाम है - पक्षी क्षिन् ) ।। ६. 'दो रात्रियोंके समुदाय' के २ नाम हैं - गर्भकम्, रजनीद्वन्द्वम् ॥ . १०. 'प्रदोषकाल' ( रात्रि के प्रारम्भ काल ) के २ नाम हैं -- प्रदोष:, यामिनीमुखम् (+ रजनीमुखम्, निशामुखम् ) ॥ Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणिः १ यामः प्रहरो २निशीथस्त्वर्द्धरात्रो महानिशा । ३ उच्चन्द्रस्त्वपररात्रस्तिमित्रं तिमिरं तमः ॥१६॥ ___ध्वान्तं भूच्छायान्धकारं तमसं समवान्धतः । ५ तुल्यनक्तन्दिने काले विषुवद्विषुवन्च तत् ॥६०॥ ६ पञ्चादशाहोरात्रः स्यात्पक्षः ७स बहुलोऽसितः ।। ८ तिथिः पुनः कर्मवाटी प्रतिपल्पक्षतिः समे ॥ ६१ ॥ शेषश्चात्र-दिनात्यये प्रदोषः स्यात् । १. 'पहर' ( ३ घंटेका समय )के २ नाम है--यामः, प्रहरः।। ... २. 'आधीरात' के ३ नाम हैं-निशीथः, अर्धरात्रः, महानिशा (+निःसम्पातः)॥ ३. 'रातके अन्तिम भाग'के २ नाम है--उच्चन्द्रः, अपररात्र:- (.+ पश्चिमरात्रः)॥ ४. 'अन्धकार'के ६ नाम हैं-तमिस्रम् (पु स्त्री), तिमिरम् (पुन ), तमः (-मस), ध्वान्तम् (पु न ), भूच्छाया (+भूच्छायम् ), अन्धकारम् (पुन), सन्तमसम् , अवतमसम् , अन्धलमसम् (+अन्धातमसम् ) ॥ शेषश्चात्र-ध्वान्ते वृत्रो रजोबलम् । रात्रिरागो नीलपङ्को दिनाएडं दिनकेसरः । खपरागो निशावर्म वियभृतिदिगम्बरः ।। विमर्श-'अमरसिंह'ने 'नामलिङ्गानुशासन'में 'ध्वान्ते गाढेऽन्धतमसं क्षीणेऽवतमसं तमः॥ विष्वक सन्तमसम्,......." (श६३-४ ) उक्ति द्वारा अत्यधिक अन्धकारका नाम-'अन्धतमसम्', थोड़े (क्षीण ) अन्धकारका नाम-'अवतमसम्' और चारों ओर फैले हुए अन्धकारका नाम -'सन्तमसम्' कहा है ॥ ५. 'जिस समय रात-दिन बराबर हों, उस समय के २ नाम हैंविषुवत् (पुं न ), विषुवम् ।। विमर्श-उक्त समय सूर्य की मेष तथा तुला-संक्रान्तिके प्रारम्भमें होता है । ६. १५ अहोरात्र ( दिन-रात )का १ 'पक्षः' (मास ) होता है ।। ७. वह पक्ष २ प्रकारका होता है-'बहुल:, असितः' । अर्थात् शुक्लपक्ष और कृष्णपक्ष ॥ ८. 'तिथि'के २ नाम हैं-तिथिः (पु स्त्री), कर्मवारी ॥ ६. 'प्रतिपद्' ( परिवा) तिथिके २ नाम हैं-प्रतिपत् (-पद् ), पक्षतिः (२ स्त्री)॥ Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवकाण्ड: २] मणिप्रभा'व्याख्योपेतः १ पञ्चदश्यौ यज्ञकालौ पक्षान्तौ पर्वणी अपि । २ तत्पर्वमूलं भूतेष्टापञ्चदश्योर्यदन्तरम् ॥ ६२ ॥ ३ स पर्व सन्धिः प्रतिपत्पश्चदश्योर्यदन्तरम् । ४ पूर्णिमा पौर्णमासी पसा राका पूर्णे निशाकरे ।। ६३ ।। ६ कलाहीने त्वनुमतिमार्गशीर्ष्याग्रहायणी । ८ अमाऽमावस्यमावस्या दर्शः सूर्येन्दुसङ्गमः ॥ ६४ ।। अमावास्याऽमावासी च सा नष्टेन्दुः कुहुः कुहूः। १० दृष्टेन्दुस्तु सिनीवाली ११ भूतेष्टा तु चतुर्दशी ॥ ६५ ॥ १२ पक्षौ मासो १३वत्सरादिर्मार्गशीर्षः सहः सहाः । आग्रहायणिकश्च-- १. 'पूर्णिमा तथा अमावस्या तिथियों के ४ नाम हैं-पञ्चदश्यौ, यज्ञकालौ, पक्षान्ती, पर्वणी (-र्वन् । ४ नि द्विव )। ___२. 'पूर्णिमा तथा शुक्लपक्षकी चतुर्दशी और अमावस्या तथा कृष्णपक्षकी चतुर्दशी तिथियोंके मध्यकाल'का १ नाम है-'पर्वमूलम् । ३. 'पूर्णिमा तथा कृष्णपक्षकी प्रतिपदा तिथियों और अमावस्या तथा शुक्ल पक्षकी प्रतिपदा तिथियोंके सन्धिकाल' (मध्य भाग)का १ नाम है-- पर्व (-वन् ।+पर्वसन्धिः )॥ ४. 'पूर्णिमा तिथि'के २ नाम हैं--पूर्णिमा, पौर्णमासी ॥ .: ५. 'पूर्ण चन्द्रवाली पूर्णिमा तिथिका १ नाम है-राका ।। ६. 'कलासे हीन पूर्णिमा तिथि'का १ नाम है-अनुमतिः ।। ७, 'अगहनकी पूर्णिमा तिथि के २ नाम हैं-मार्गशीर्षी, आग्रहायणी।। ८. 'अमावस्या तिथि'के ७ नाम हैं-अमा, अमावसी, अमावस्या, दर्शः, सूर्येन्दुसङ्गमः, अमावास्या, अमावासी॥ ६. 'जिसमें चन्द्रका बिलकुल दर्शन नहीं हो, उस अमावस्या तिथि'के २ नाम हैं-कुहुः (स्त्री), कुहूः ।। १०. जिसमें चन्द्रका दर्शन हो, उस अमावस्या तिथि'का १ नाम हैसिनीवाली ॥ ११. 'चतुर्दशी तिथि के २ नाम हैं-भूतेष्टा, चतुर्दशी ॥ १२. २ पक्षका १ 'मासः' अर्थात् 'महीना' होता है । शेषश्चात्र-मासे वर्षांशको भवेत् । वर्षकोशो दिनमलः ॥ . १३. 'अगहन मास'के ५ नाम हैं-वत्सरादिः, मार्गशीर्षः (यौ०-मार्गः); सहः, सहाः (-हस , पु ), आग्रहायणिकः ॥ Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ श्रभिधानचिन्तामणिः - १ अथ पौषस्तैषः सहस्यवत् ॥ ६६ ॥ २ माघस्तपाः ३ फाल्गुनस्तु फाल्गुनिकस्तपस्यवत् । ४ चैत्रो मधुश्चैत्रिकश्च ५ वैशाखे राधमाधवौ ॥ ६७ ॥ ६ ज्येष्ठस्तु शुक्रोऽथाषाढः शुचिः स्यादच्छ्रावणो नभाः । श्रावणिकोऽथ नभस्यः प्रौष्ठभाद्रपरः पदः ॥ ६५ ॥ भाद्रश्वा १० प्याश्विने त्वाश्वयुजेषा ११वथ कार्तिकः । कार्तिकको बाहुलोज १२ द्वौ द्वौ मार्गादिकावृतुः ॥ ६६ ॥ १. 'पौष मास' के ३ नाम हैं- पौषः, तैषः सहस्यः ॥ २. 'माघ मास' के २ नाम हैं -- माघः, तपा: ( - पस्, पु ) ॥ ३. 'फाल्गुन मास' के ३ नाम हैं- फाल्गुनः फाल्गुनिकः, शेषश्चात्र - फल्गुनालस्तु फाल्गुने । तपस्यः ४. 'चैत्र मास के ३ नाम हैं - चैत्र:, मधुः (पु), चैत्रिकः ॥ शेषश्चात्र — चैत्रे मोहनिक: कामसखश्च फाल्गुनानुजः ॥ ५. 'वैशाख मास' के ३ नाम हैं - वैशाख:, राधः, माधवः ॥ शेषश्चात्र — वैशाखे तूच्छरः । ६. 'ज्येष्ठ मास' के २ नाम हैं - ज्येष्ठः, शुक्रः ( पुन ) ॥ शेषश्चात्र - ज्येष्ठमासे तु खरकोमलः । ज्येष्ठामूलीय इति च । ७. 'श्राषाढ़ मास' के २ नाम हैं- आषाढ, शुचिः ( पु ) ॥ ८. 'श्रावण मास' के ३. नाम हैं - श्रावणः, नभाः (-भस्, पु ), 'भावणिकः ।। ६. 'भाद्रपद ( भादों ) मास' के ४ नाम है - नभस्य:, प्रौष्ठपदः, भाद्र`पदः, भाद्रः ॥ १०. 'आश्विन ( कार ) मास के ३ नाम हैं--आश्विनः, आश्वयुजः, इषः ॥ ११. ‘कार्तिक मास' के ४ नाम हैं -- कार्तिकः, कार्तिकिकः, बाहुलः, ऊर्जः ॥ शेषश्चा - कार्तिके सैरिकौमुदौ । १२. ‘मार्ग ( अगहन )' आदि २-२ मासका १-१ 'ऋतु' होता है, यह 'ऋतु' पुंल्लिङ्ग है | विमर्श - 'ऋतु' ६ होते हैं, उनके क्रमशः ये नाम हैं - हेमन्तः, शिशिरः, वसन्तः, ग्रीष्मः, वर्षाः और शरद् ॥ Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'मणिप्रभा' व्याख्योपेतः १ हेमन्तः प्रसलो रौद्रोऽथ शेषशिशिरौ समौ । ३ वसन्त इष्यः सुरभिः पुष्पकालो बलाङ्गकः ॥ ७० ॥ ४ उष्ण उष्णागमो ग्रीष्मो निदाघस्तप ऊष्मकः । ५ वर्षास्तपात्ययः प्रावृट् मेघात्कालागमौ क्षरी ॥ ७१ ॥ ६ शरद् घनात्ययो७यनं शिशिराद्यैस्त्रिभिस्त्रिभिः । अयने द्वे गतिरुदग्दक्षिणार्कस्य वत्सरः ॥ ७२ ॥ देवकाण्ड: २ ] ४५. १. 'हेमन्त ऋतु' के ३ नाम हैं — हेमन्तः, प्रसल, रौद्रः ( यह ऋतु अगहन तथा पौष मास में होता है ) | शेषश्चात्र - हिमागमस्तु हेमन्ते । २. 'शिशिर ऋतु' के २ नाम हैं - शेषः, शिशिर : ( पु न ) | ( यह ऋतु माघ तथा फाल्गुन मासमें होता है ) ।। ३. 'वसन्त ऋतु' के ५ नाम हैं -- वसन्तः, इष्यः ( २ पु न ), सुरभिः ( पु ), पुष्पकालः, बलाङ्गकः । ( यह ऋतु चैत्र तथा वैशाख मासमें होता है ) । शेषश्चात्र – वसन्ते पिकबान्धवः । पुष्पसाधारणश्चापि । ४. 'ग्रीष्म (गर्मी) ऋतु' के ६ नाम हैं -- उष्णः, उष्णागमः, ग्रीष्मः, • निदाघः, तपः, ऊष्मकः ( + ऊष्मः) । (यह ऋतु ज्येष्ठ तथा श्राषाढ़ मास में होता है। शेषश्चात्र -- ग्रीष्मे तूष्मायंणो मतः । .: श्राखोर पद्मौ / ५. 'वर्षा ऋतु' के ६ नाम हैं--वर्षाः (नि० ब० व० स्त्री ), तपात्ययः, प्रावृट् (–वृष्, स्त्री ), मेघकाल:, मेघागम:, क्षरी (-रिन्) । ( यह ऋतु श्रावण तथा भाद्रपद मास में होता है ) ॥ ६. 'शरद् ऋतु' के २ नाम हैं -- शरद् (स्त्री), घनात्ययः ॥ ७. शिशिर आदि ३-३ ऋतुत्रों का 'अयन' होता है । ( 'अयनम्'नपुं - है ) । विमर्श - शिशिर, वसन्त तथा ग्रीष्म तीन ऋतुओं ( माघसे श्राषाढ़तक ६ मासों) का ‘उत्तरायण' और वर्षा, शरद् तथा हेमन्त तीन ऋतुओं (श्रावणसे पौषतक ६ मासों ) का 'दक्षिणायन' होता है । ८. 'सूर्य की उत्तर तथा दक्षिण दिशाकी ओर गति से दो अयन होते हैं— 'उत्तरायणम्' 'दक्षिणायनम्' । इन दोनों श्रयनोंका ( ६ ऋतुओं का, अथवा १२ माका ) 'वत्सरः' अर्थात् १ वर्ष होता है | Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणिः १ स सम्पर्यनूद्भयो वर्ष हायनोऽब्द समाः शरत् । २ भवेत्पत्रं त्वहोरात्रं मासेना३ब्देन दैवतम् ॥ ७३ ॥ ४ दैवे युगसहस्रे द्वे ब्राह्मं - १. 'वर्ष, सालके ६ नाम हैं-संवत्सरः, परिवत्सरः, अनुवत्सरः, उद्वत्सरः, वर्षम्, हायनः, अन्दम् ( ३ पु न ), समाः ( स्त्री ब० व०), शरत् (-रद्, स्त्री)। २. मनुष्यों के एक मासका ‘पैत्रम् अहोरात्रम्' (पितरोंकी १ दिन-रात ) होता है । विमर्श-मनुष्योंके कृष्णपक्ष तथा शुक्लपक्षमें पितरोंका क्रमश: दिन और रात होता है । वास्तविक दृष्टि से यह क्रम उस स्थितिमें है, जब आधी रातसे दिनका परिवर्तन .माना जाता है, सूर्योदयसे दिनारम्भ माननेपर मनुष्यों के कृष्णपक्षको अष्टमी तिथिके उत्तरार्द्धसे शुक्लपक्षकी अष्टमी तिथिकै पूर्वार्द्धतक पितरोंका दिन तथा मनुष्योंके शुक्ल पक्षकी अष्टमी तिथिके उत्तरार्द्धसे कृष्णपक्षकी अष्टमी तिथिके पूर्वार्द्धतक पितरोंकी रात होती है, इस प्रकार मनुष्योंकी अमावस्या तथा पूर्णिमा तिथियोंके अन्तमें पितरोंका क्रमशः मध्याह्न तथा श्राधीरात होती है । ३. मनुष्योंके एक वर्षका 'दैवतम् अहोरात्रम्' ( देवताओंकी १ दिन-रात ) होता है। विमर्श-मनुष्योंका उत्तरायण (सूर्यकी मकरसंक्रान्तिसे मिथुनसंक्रान्तितक ) देवोंका दिन और मनुष्योंका दक्षिणायन (सूर्यकी कर्कसंक्रान्ति से धनुसंक्रान्तितक ) देवोंकी रात होती है । वास्तविकमें यह क्रम भी उसी स्थितिमें है, जब आधीरातके बादसे दिनका प्रारम्भ माना जाता है, सूर्योदयसे दिनका प्रारम्भ माननेपर तो मनुष्यों के उत्तरायणके उत्तरार्द्धसे दक्षिणायनके पूर्वार्द्धतक (सूर्यकी मेषसंक्रान्तिके प्रारम्भसे कन्यासंक्रान्तिके अन्ततक) देवोंका दिन और मनुष्योंके दक्षिणायन के उत्तरार्द्धसे उत्तरायणके पूर्वार्द्धतक ( सूर्यकी तुलासंक्रान्तिके प्रारम्भसे मीनसंक्रान्तिके अन्ततक) देवोंकी रात होती है। इस प्रकार मनुष्यों के उत्तरायण तथा दक्षिणायन ( सूर्यकी मिथुन तथा धनुसंक्रान्ति )के अन्तिम दिनों में देवोंका क्रमशः मध्याह्न तथा आधीरात होती है। ४. देवोंके दो हजार युगका 'ब्राझम् अहोरात्रम्' (ब्रह्माका दिन-रात ) होता है। विमर्श-मनुष्योंके ३६०वर्ष देवोंके ३६० दिन अर्थात् १ दिव्य वर्ष होते हैं। तथा १२००० दिव्य वर्ष (मनुष्योंके ४३२०००० तैंतालिस लाख Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ xo देवकाण्ड: २] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः -१ कल्पौ तु ते नृणाम् ।। २ मन्वन्तरं तु दिव्यानां युगानामेकसप्ततिः ।। ७४ ।। . ३ कल्पो युगान्तः कल्पान्तः संहारः प्रलयः क्षयः । संवत्तः , परिवर्तश्च सससुप्तिजिहानकः ।। ७५ ।। ४ तत्कालस्तु तदात्वं स्या५त्तज्जं सान्दृष्टिकं फलम । . ६ आयतिस्तूत्तरः काल ७ उदर्कस्तद्भवं फलम् ।। ७६ ॥ ८ व्योमान्तरिक्षं गगनं घनाश्रयो विहाय आकाशमनन्तपुष्करे । अभ्रंसुराभ्रोडुमरुत्पथोऽम्बरं खंद्योदिवौ विष्णुपदं वियन्नभः॥ ७७॥ बीस हजार वर्ष = १ चतुर्युग ( सत्ययुग, त्रेता, द्वापर तथा कलियुग) = दिव्य ( देवोंका) १ युग होता है। उक्त दो हजार दिव्य युगकी ब्रह्माकी दिन-रात होती है अर्थात् एक हजार दिव्य युगका ब्रह्माका दिन तथा एक हजार दिव्ययुगकी ब्रह्माकी रात होती है। इस प्रकार मनुष्योंके ८६४००००००० आठ अरब चौंसठ करोड़ वर्षोंकी ब्रह्माकी 'दिन-रात' होती है अर्थात् मनुष्योंके ४३२००००००० चार अरब बत्तीस करोड़ वर्षोंका 'ब्रह्माका दिन' तथा उतने ही मानव वर्षों की 'ब्रह्माकी रात' होती है। १. वे ही दो हजार देव वर्ष या ब्रह्माकी दिन-रात मनुष्योंका कल्पद्वय ( दो कल्प ) अर्थात् 'स्थिति तथा प्रलयकाल होता है । इसमें ब्रह्माका दिन मनुष्योंका स्थितिकाल और ब्रह्माकी रात मनुष्योंका प्रलयकाल होती है । २. देवोंके ७१ युगोंका ( मनुष्योंके ३०६७२०००० तीस करोड़ सरसठ लाख बीस हजार वर्षोंका ) एक 'मन्वन्तर' ( १४ मनुओंमें से प्रत्येक मनुका स्थिति-काल.) होता है। विशेष जिज्ञासुओंको 'अमरकोष'की मत्कृत 'मणिप्रभा' नामकी हिन्दी टीका तथा टिप्पणी देखनी चहिए ॥ . ३. 'कल्प, प्रलय'के १० नाम हैं-कल्पः, युगान्तः, कल्पान्तः, संहारः, प्रलयः, क्षयः, संवर्तः, परिवतः, समसुप्तिः, जिहानकः । ... ' ४. 'उस समयके भाव' अर्थात् उस समयवालेके २ नाम हैं-तत्कालः, तदास्वम् ।। ५. 'तत्काल ( उस समय )में होनेवाले फल' अर्थात् तात्कालिक फलका १ नाम है-सान्दृष्टिकम् ॥ ६. 'उत्तर काल' (भविष्यमें आनेवाला समय) का १ नाम है-आयतिः। . ७. 'उत्तरकालमें होनेवाले फल' (भावी परिणाम )का १ नाम है उदर्कः ॥ ८. 'आकाश'के २० नाम है-व्योम (-मन् ), अन्तरिक्षम् (+अन्त-रीक्षम् ), गगनम् , घनाश्रयः, विहायः (-यस् ), अाकाशम् (२ पु न ), Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ अभिधानचिन्तामणिः १ नभ्राट् तडित्वान्मुदिरोघनाघनोऽभ्रं धूमयोनिस्तनयित्नुमेघाः । जीमूतपर्जन्यबलाहका घनो धाराधरो वाहदमुग्धरा जलात् ।। ७८ ।।. २ कादम्बिनी मेघमाला ३दुर्दिनं मेघजं तमः । ४ आसारो वेगवान् वर्षो पूवातास्तं वारि शीकरः ॥ ७६ ।। ६ घृष्टयां वर्षण वर्षे ७तद्विघ्ने ग्राहप्रहाववात् । ८ घनोपलस्तु करकः काष्ठाऽऽशा दिग्हरित् ककुप् ॥८॥ अनन्तम् , पुष्करम् , अभ्रम् , सुरपथः, अभ्रपथः, उडुपयः, मरुत्पथः, ( यौ०देववर्म, मेघवम, नक्षत्रवम, वायुवम, ...."४-तर्मन् ,....'), अम्बरम, खम् , द्यौः (=द्यो ), द्यौः( =दिव ), विष्णुपदम् , वियत् , नभः (-भस् । + विहायसा, भुवः, २ अव्य, महाविलम् )॥ शेषश्चात्र-नक्षत्रवर्त्मनि पुनर्गहनेमिनभोऽटवी। छायापथश्च । १. 'मेघ, बादल के १७ नाम हैं-नभ्राट (-भ्राज ), तडित्वान् (-स्वत्), मुदिरः, धनाधनः, अभ्रम् (न), धूमयोनिः, स्तनयित्नुः, मेघः, जीमूतः, पर्जन्यः, बलाहकः, घनः, धाराधरः, जलवाहः, जलदः, जलमुक् (-मुच् ), जलधरः: (शे० पु)॥ शेषश्चात्र--मेघे तु व्योमधूमो नभोध्वजः। । गडयिनुर्गदयित्नुमिसिर्वारिवाहनः ।। खतमालोऽपि । २. 'मेघ-समूह'का १ नाम है-कादम्बिनी ('+कालिका)॥ ३. 'मेघकृत अन्धकार'का १ नाम है-दुर्दिनम् ॥ ४. 'वेगसे पानी बरसने'का १ नाम है-अासारः ॥ शेषाश्चात्र-अथासारे धारासम्पात इत्यपि । ५. 'हवासे उड़ाये गये जलकण'का एक नाम है-शीकरः ।। ६. 'वर्षा, पानी बरसने के ३ नाम हैं-वृष्टिः, वर्षणम् , वर्षम् (पु न)॥ ७. 'सूखा पड़ना, पानी नहीं बरसने के २ नाम हैं- अवग्राहः, अवग्रहः ॥ ८. 'ओला, बनौरी'के २ नाम हैं-घनोपल:, करक: (त्रि )॥ शेषश्चात्र-करकेऽम्बुघनो मेघकफो मेघास्थिमिञ्जिका । बीजोदकं तोयडिम्भो वर्षाबीजमिरावरम् ॥ ६. 'पूर्वादि दिशा'के ५ नाम है-काष्ठा, अाशा, दिक (-श), हरित्, ककुप (-कुम् । सब स्त्री)॥ Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ देवकाण्डः २] मणिप्रभा'व्याख्योपेतः . १पूर्वा प्राची २दक्षिणाऽपाची ३प्रतीची तु पश्चिमा । अपराऽथोत्तरोदीची ५विदिक स्वपदिशं प्रदिक ॥ ८१ ॥ ६दिश्यं दिग्भववस्तु ७न्यपागपाचीन मुदगुदीचीनम् । प्राक्प्राचीनं च समे १०प्रत्यक्तु स्यात्प्रतीचीनम् ।। २ ॥ ११तिर्यग्दिशां तु पतय इन्द्राग्नियमनैऋताः। । वरुणो वायुकुबेरावीशानश्च यथाक्रमम् ॥८३ ॥ १२ऐरावतः पुण्डरीको वामनः कुमुदोऽजनः । पुष्पदन्तः सार्वभौमः सुप्रतीकञ्च दिग्गजाः ॥ ४॥ १. 'पूर्व दिशा'के २ नाम हैं--- पूर्वा, प्राची ।। २. 'दक्षिण दिशा'के २ नाम हैं-दक्षिणा, अपाची (+अवाची)।। ३. 'पश्चिम दिशा'के ३ नाम हैं-प्रतीची, पश्चिमा, अपरा ।। शेषश्चात्र-यथाऽपरेतरा पूर्वाऽपरा पूर्वेतरा तथा । ४. 'उत्तर दिशा'के २ नाम हैं - उत्तरा, उदीची ॥ शेषश्चात्र यथोत्तरेतरापाची तथाऽपाचीतरोत्तरा। ५. 'कोण' (पूर्वादि किन्हीं दो दिशाओंके बीचवाली दिशा )के ३ नाम हैं-विदिक (-दिश ), अपदिशम्, प्रदिक् (-दिश् )॥ ..: ६. 'दिशामें होनेवाली वस्तु'का एक नाम है-दिश्यम् ॥ ७. 'दक्षिण दिशावाला' या 'दक्षिण दिशामें उत्पन्न'के २ नाम हैंअपाक (-पाच.), अपाचीनम् ।। ८. 'उत्तर दिशावाला' या 'उत्तर दिशामें उत्पन्न के २ नाम हैं-उदक (-दञ्च ), उदीचीनम् ॥ ६. 'पूर्व दिशावाला' या 'पूर्व दिशामें उत्पन्न के २ नाम है-प्राक् (-उच्), प्राचीनम् ॥ १०. पश्चिम दिशावाला' या 'पश्चिम दिशामें उत्पन्न'के २ नाम हैप्रत्यक (-त्यञ्च ), प्रतीचीनम् ॥ ११. 'आठों दिशाओं' ( चार कोणों तथा चार पूर्व आदि दिशाओं )के ये इन्द्र आदि क्रमश: पति ( स्वामी ) है-इन्द्रः, अग्निः, यमः, नैऋतः, वरुणः, वायुः, कुबेरः, ईशानः । विमर्शः-पूर्व दिशाके स्वामी 'इन्द्र', अग्निकोण ( पूर्व तथा दक्षिण दिशाओं की बीचवाली दिशा ) का स्वामी 'अग्नि', दक्षिण दिशाका स्वामी यम,........... ॥ १२. ४ कोणों सहित पूर्व आदि आठों दिशाओंके ये 'ऐरावत' आदि गज ४ अ० चि० Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणिः १इन्द्रो हरिदुश्च वनोऽच्युताग्रजो बनी विडोजा मघवान् पुरन्दरः। प्राचीनवर्हिः पुस्मृतवासयौ सङ्क्रन्दनाखण्डलमेघवाहनाः ।। ५॥ सुत्रामवास्तोष्पतिवाल्मिशका वृपा शुनासीरसहस्रनेत्रौ। : पर्जन्यहर्यश्वऋभुक्षिवाहुदन्तंयवृद्धश्रवसस्तुरापाट् . ॥८६॥ सुरर्पमस्तपस्तक्षो. जिष्णुर्वरशतक्रतुः। . कौशिकः पूर्व दिग्देवाप्सरःस्वर्गशचीपतिः ॥ ७॥ पृतनापाडुग्रधन्वा मरुत्वान्भववाऽस्यतु। द्विपः पाकोऽद्रयो वृत्रः पुलोमा नमुचिबलः॥ ८11: दिग्गज है-ऐरावतः, पुण्डरीकः, वामनः, कुमुदः, अञ्जनः, पुष्पदन्तः, सार्वभौमः, सुप्रतीकः ।। विमर्श-पूर्वका दिग्गज 'ऐरावत', 'अग्नि' कोणका दिमाज पुण्डरीक', दक्षिण दिशाका दिग्गज 'वामन',............ || परन्तु अंचार्य भागुरिने"ऐरावत, पुण्डरीक, कुमुद, अऊन, वामन,....." ऐसा, और 'मालाकार'ने-“ऐरावत, सुप्रतीक..." ऐसा पूर्वादिके दिग्गजोंका क्रम माना है । १. (पहले (२८३) पूर्व श्रादि ८ दिशाओंके स्वामी (दिक्पालों ) के नाम कह चुके हैं, उन 'इन्द्र' आदि आठ दिक्पालोंमें-से 'अग्नि तथा वायु'को तिर्यक् काण्ड ( ४।६३-१६६ तथा १७२-१७३ ) में कहेंगे, शेष इन्द्रादि ६ दिक्यालोंके नामादि यथाक्रम कहते हैं-)। 'इन्द्र'के '४२ नाम हैं-इन्द्रः, हारः, दुश्च्यवनः, अच्युताग्रजः, वज़ी (-जिन् ), विडोवाः (-बस्), नघवान् (-बत् ), पुरन्दरः, प्राचीनबर्हिः (-हिस्'), पुरुहूतः, वासवः, संक्रन्दनः, श्राखण्डलः, मेघवाहनः, मुत्रापा (-मन् ।+सूत्रामा, मन्), वास्तोष्पतिः, दल्मिः , शक्रः, वृषा (षन ), शुनासारः (+मुनासीरः.), सासनेत्रः, पर्जन्यः, हर्यश्वः, ऋभुक्षा (-क्षन), पाहुदन्तेयः, बद्धश्रवाः (-वस्), दुरापाट (-४), सुरर्षभः, तपाततः, जिष्णुः, वरकतुः, शतक्रतुः, कौशिकः, पूर्वदिक्पतिः, देवपतिः, अप्सर:पतिः, स्वर्गपांतः, शचीपतिः ( यौ० क्रमशः-प्राचीशः, पूर्वदिगीशः; सुरेशः, सुरस्त्रीशः, नाकशः; शचीशः, पौलोमीशः,), पृतनाषाट (-बाह ), उग्रधन्या (-१२ ), महत्वान् (-रवत् ), मघवा (-वन् )। शेषश्चात्र-इन्द्रं तु खदिरो नेरा प्रयस्त्रिंशपतिर्जयः। गौरावन्कन्दी बन्दीको वराणो देवदुन्दुभिः ।। __णालातश्व हरिमान् यामनेमिरसन्महाः ।.. . शपीविमिहिरो यज्रदक्षिणो वयुनोऽपि च ॥ ८१. 'इन्द्र के शत्रुओं का १-१ नाम है-पाकः, अद्रयः, सूत्रः, पुलोमा Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवकाण्ड: २] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः जन्भः प्रिया शचीन्द्राणी पौलोमी जयवाहिनी । रतनयस्तु जयन्तः स्याज्जयदत्तो जयश्च सः ।। ८ ।। सुता जयन्ती तविपी ताविध्युच्चैःश्रवा हयः। ५मातलिः सारथिदेवनन्दी द्वाःस्थो आजः पुनः ॥ १०॥ ऐरावणोऽभ्रमातङ्गश्चतुर्दन्तोऽर्कसोदरः । ऐरावतो हस्तिमल्लः श्वेतगजोऽभ्रमुप्रियः ।।१।। वैजयन्तौ तु प्रासादध्वजौ पुर्यमरावती । (-मन् ), नमुचिः, बलः, जम्भः । ( वध्याद्भिदुद्वेषिजिद्घाति.......११०-११ वचनके अनुसार- पाकद्विट , अद्रिविट , वृत्रद्विट , पुलोमविट् , नमुचिद्विट , बलहिट , जम्भद्विट ,....” तथा यौ०-"पाकशासनः, अद्रिशासनः, वृत्रशासनः,..." नाम भी 'इन्द्र'के हैं )॥ . १. 'इन्द्राणी' (इन्द्रकी प्रिया )के ४ नाम हैं-शची, इन्द्राणी, पौलोमी, जयवाहिनी ॥ शेषश्चात्र-स्यात् पौलोम्यां तु शकाणी चारुधारा शतावरी । ___ महेन्द्राणी परिपूर्णसहस्रचन्द्रवस्यपि ।। २. 'इन्द्रके पुत्र'के ३ नाम हैं-जयन्तः, जयदत्तः, जयः ।। .: शेषश्चात्र-जयन्ते यागसन्तानः। ३. 'इन्द्रकी पुत्री'के ३ नाम हैं-जयन्ती, तविषी, ताविषी ।। ४. 'इन्द्रके घोड़े'का १ नाम है-उच्चेःश्रवाः (-वस )। . शेषश्वात्र-वृषणश्वो हरेहये। ५. 'इन्द्र के सारथिका १ नाम है-मातलिः ॥ शेषश्चात्र-मातलौ हयंकषः स्यात् । .. ६. 'इन्द्र के द्वारपाल'का १ नाम है-देवनन्दी (-न्दिन् )। ७. 'इन्द्र के हथी' (ऐरावत. पूर्व दिशाका दिग्गज )के ८ नाम हैऐराघणः, अभ्रमातङ्गः, चतुर्दन्तः, अर्कसोदरः, ऐरावतः (पु न ), हस्तिमल्लः, श्वेतगजः, अभ्रमुप्रियः ।। शेषश्चात्र-ऐरावणे मदाम्बरः । सदादानो भद्ररेणुः ॥ ८. इन्द्र के महल तथा ध्वजा'का १ नाम है-वैजयन्तौ ।। ( दोकी अपेक्षासे द्विवचन कहा गया है, अत: 'वैजयन्तः' ए० २० भी होता है)। ६. 'इन्द्रपुरी'का १ नाम है-अमरावती ॥ शेषश्चात्र-पुरे त्वैन्द्रे सुदर्शनम् । Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ अभिधानचिन्तामणिः १सरो नन्दीसरः २पर्षत् सुधर्मा ३नन्दनं वनम् ॥ ६२ ॥ ४ वृक्षाः कल्पः पारिजातो मन्दारो हरिचन्दनः । सन्तानश्च धनुर्देवायुधं ६तदृजु रोहितम् ॥ ६३ ॥ ७दीर्घज्जैरावतं वज्रं त्वनिर्ह्रादिनी स्वरुः । शतकोटिः पविः शम्बोः दम्भोलिभिदुरं भिदुः ॥ ६४ ॥ व्याधामः कुलिशोऽ (स्यार्चिरतिभीः १०स्फूर्जथुर्ध्वनिः । ११ स्वर्वैद्यावश्विनी पुत्रावश्विनौ वढवासुतौ ॥ ६५ ॥ नासिक्यावर्कौ दौ नासत्याब्धिजौ यमौ । १२ विश्वकर्मा पुनस्त्वष्टा विश्वकृद् देववर्द्धकिः ॥ ६६ ॥ १३स्वःस्वर्गिवध्वोऽप्सरसः स्वर्वेश्या उर्वशीमुखाः। १. 'इन्द्रके तडाग'का १ नाम है - नन्दीसर : ( - रस् ) !! २. 'इन्द्रकी सभा' का १ नाम है – सुधर्मा ॥ ३. 'इन्द्रके वन' ( उद्यान ) का १ नाम है - उन्दनम् ॥ ४. 'इन्द्रके वृक्षों' ( देव वृक्षों ) का क्रमशः पारिजातः, मन्दारः, हरिचन्दनः, सन्तानः । कहलाते हैं ) | १ - १ नाम है - कल्पः, ये ही पाँचों 'देववृक्ष' ५. 'इन्द्रधनुष' का १ नाम है - देवायुधम् ॥ ६. 'सीधे इन्द्र-धनुष' का १ नाम है - रोहितम् ( + ऋजुरोहितम् ) ।। ७. 'इन्द्रके बड़े तथा सीधे धनुष' का १ नाम है - ऐरावतम् ( पुन ) | ८. 'वज्र' ( इन्द्रके हथियार ) के १२ नाम हैं - वज्रम् (पुन), अशनि: ( पु स्त्री), ह्रादिनी, स्वरु: ( पु ), शतकोटि : ( पु । + शतारः; शतधार: ), पविः ( पु ), शंबः, दम्भोलि (पु), भिदुरम् भिदु: ( पु ), व्याधामः, कुलिश: (पुन) | , ६. 'वज्रकी ज्वाला' का १ नाम है – अतिभी: ( स्त्री ) ॥ १०. ' वज्र की ध्वनि' का १ नाम है - स्फूर्जथु: ( पु ) ॥ 0 ११. 'अश्विनीकुमार' के १० नाम हैं— स्वर्वैद्यौ, अश्विनीपुत्रौ ( यौ० आश्विनेयौ,་་~~~), अश्विनौ, वडवासुतौ, नासिक्यौ, अर्कजौ, दखौ, नासत्यौ, अब्धिजौ, यमौ ( सर्वदा युग्म रहने से सब शब्द नि.द्वि. व. हैं ) ।। शेषश्चात्र - नासिक्ययोस्तु नासत्यदत्रौ प्रवरवाहनौ । गदान्तकौ यज्ञवहौ । १२. 'विश्वकर्मा' के ४ नाम है – विश्वकर्मा (-न्), स्वष्टा (-ष्ट ), विश्वत्, देववर्धकिः ॥ १३. ‘अप्सराओं’के ४ नाम हैं - स्वर्वध्वः, स्वर्गिवध्वः, ( यौ०—स्वर्गस्त्रियः, Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवकाण्डः २ ] 'मणिप्रभा' व्याख्योपेतः १हाहादयस्तु गन्धर्वा गान्धर्वा देवगायनाः || ६७ ॥ २ यमः कृतान्तः पितृदक्षिणाशाप्रेतात्पतिर्दण्डधरोऽर्कसूनुः । कीनाशमृत्यू समवर्तिकालौ शीण हिर्यन्तकधर्मराजाः ।। ६८ ।। यमराजः श्राद्धदेवः शमनो महिषध्वजः । कालिन्दीसोदरश्चापि ३धूमोर्णा तस्य वल्लभा ॥ ६६ ॥ ४पुरी पुनः संयमनी ५प्रतीहारस्तु वैध्यतः । ६दासौ चण्डमहाण्डौ ७ चित्रगुप्तस्तु लेखकः ॥ १०० ॥ सुरस्त्रियः,་་"""), अप्सरसः ( - रस्, ब. व. स्त्री । + अप्सरा : ), स्वर्वेश्याः, (+ देवगणिकाः ) । वे 'अप्सराएँ' 'उर्वशी' आदि ( 'आदि'से— प्रभावती, ··) 11 विमर्श - - उन 'अप्सराओं' के नाम ये हैं- प्रभावती, वेदिवती, सुलोचना, उर्वशी, रम्भा, चित्रलेखा, महाचित्ता, काकलिका, वसा, मरीचिसूचिका, विद्युत्पर्णा, तिलोत्तमा, अद्रिका, लक्षणा, क्षेमा, दिव्या, रामा, मनोरमा, हेमा, सुगन्धा, सुवपुः (–पुस् ), सुबाहुः, सुव्रता, सिता, शारद्वती, पुण्डरीका, सुरसा, सूनृता, सुवाता, कामला, हंसपादी, पर्णिनी, पुञ्जिकास्थला, ऋतुस्थला, घृताची, विश्वाची ॥ १. 'गन्धर्वो' ( देवोंके गायकों-गान करनेवालों ) के ३ नाम हैंगन्धर्वाः, गान्धर्वाः, देवगायनाः ( बहुत्वकी अपेक्षासे बहुवचन है, अतः इन नाम के एकवचन भी होते हैं ) । वे 'गन्धर्व' 'हाहा' श्रादि ( 'आदि' शब्द से - "हूहू:, तुम्बुरुः, वृषणास्त्रः, विश्वावसुः, वसुरुचिः, " । हूहाहाहूः । .पु + अव्यय ) ।। ..." ५.३ २. ‘यमराज' के २० नाम हैं - यमः कृतान्तः, पितृपतिः, दक्षिणाशापतिः, प्रेतषतिः, दण्डधरः, श्रर्कसूनुः, कीनाशः, मृत्युः, समवर्ती (-र्तिन् ), कालः, शीर्णोहिः, हरिः, अन्तकः, धर्मराजः, यमराज: ( + यमराट्, – रान् ), श्राद्धंदेवः, शमनः, महिषध्वजः (+महिषवाहनः ), + यमुनाभ्राता, (– तृ,་་)॥ , कालिन्दीसोदरः शेषश्चात्र - यमे तु यमुनाग्रजः । महासत्यः पुराणान्तः कालकूटः । ३. ‘यमराजकी स्त्री'का १ नाम हैं - धूमोर्णा ॥ ४. ' यमपुरी' का १ नाम है - संयमनी । ५. 'यमराजके द्वारपाल'का १ नाम है - वैध्यतः ।! ६. ' यमराजके दोनों दासों' का १-१ नाम है- चण्डः, महाचण्ड: ॥ ७. ‘यमराज के लेखक'का १ नाम है - चित्रगुप्तः ॥ Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणिः १स्याद्राक्षसः पुण्यजनो नृचक्षा यात्वाशरः कौणपयातुधानौ । रात्रिश्चरो रात्रिचरः पलादः कीनाशरक्षोनिकसात्मजाश्च ।।१०१।। क्रव्यात्कबुरनैऋतावसक्पो २वरुणस्त्वर्णवमन्दिरः प्रचेताः। जलयादःपतिपाशिमेघनादा जलकान्तारः स्यात्परञ्जनश्च ।।१०२॥ ३श्रीदः सितोदरकुहेशसखाः पिशाचकीच्छावसुस्त्रिशिरऐलविलैकपिङ्गाः। पौलस्त्यवैश्रवणरत्नकराः कुबेरयक्षौ नृधर्मधनदौ नरवाहनश्च ॥१०३।। कैलासौका यक्षधननिधिकिम्पुरुषेश्वराः । ४विमानं पुष्पकं ५चैत्ररथं वनं १. 'राक्षस'के १. नाम है-राक्षस:, पुण्यजनः, नृचक्षा (स), यातु (न+पु), आशरः, कौणपः, यातुधानः, रात्रिञ्चरः, रात्रिचरः, पलादः, कीनाशः, रक्षः (-क्षस , न), निकसात्मजः (+नेकसेयः,+निकषात्मजः; नेकषेयः), अव्यात् (-व्याद् + अव्यादः ), कर्बुरः, नेऋतः, असूपः (अलपः, अभपः)। शेषश्चात्र-अथ राक्षसे । पलप्रियः खसापुत्रः कर्वरो नरविष्वणः । अशिरो हनुषः शकुर्विथुरो जललोहितः ॥ उद्धरः स्तब्धसंभारो रजग्रीवः प्रवाहिकः । सन्ध्याबलो रात्रिबलस्त्रिशिराः समिती दः ।। २. 'वरुण'के ६ नाम है-वरुणः, अर्णवमन्दिरः, प्रचेताः (-तस ), जलपतिः, यादःपतिः (यौ०-अप नाथः, यादोनाथः,........"), पाशी (-शिन् । यौ०-पाशपाणिः ), . मेघनादः, जलकान्तारः, परञ्जनः ।। शेषश्चात्र-वरुणे तु प्रतीचीशो दुन्दुभ्युद्दामसंवृताः । ३. 'कुबेर' के २२ नाम हैं-श्रीद:, सितोदरः, कुहः, ईशसंख:, पिशाचकी (-किन् ), इच्छावसुः, त्रिशिराः (-रस ), ऐलविल: (+ ऐडविल: ), एकपिङ्गः, पौलस्त्यः, वैश्रवणः, रत्नकरः, कुबेरः, यक्ष:, नृधर्मा (-मन् । + मनुष्यधर्मा,मन् ), धनदः, नरवाहनः, कैलासौकाः (-कस ), यक्षेश्वरः, धनेश्वरः, निधीश्वरः, किंपुरुषेश्वरः (यो. --गुह्यकेशः, वित्तेशः, निधानेशः, किन्नरेशः,...", राजराजः)॥ शेषश्चात्र-धनदे निधनाक्षः स्यान्महासत्त्वः प्रमोदितः । रत्नगर्भ उत्तराशाऽधिपतिः सत्यसङ्गरः ॥ । धनकेलि: सुप्रसन्नः परिविद्धः। ४. 'कुबेरके विमान'का १ नाम है-पुष्पकम् ।। ५. 'कुबेरके वन' ( उद्यान, फुलवाड़ी)का १ नाम है-चैत्ररथम् ।। Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवकाण्ड: २ ] 'मणिप्रभा' व्याख्योपेतः -२ पुरी प्रभा ।। १०४ ॥ अलका वस्वोकसारा २सुतोऽस्य नलकूबरः । वित्तं रिक्थं स्वापतेयं राः सारं विभवो वसु ॥ १०५ ॥ द्युम्नं द्रव्यं पृक्थमृथं स्वमृणं द्रविणं धनम् । हिरण्यार्थी निधानं तु कुनाभिः शेवधिर्निधिः ॥ १०६ ॥ ५. महापद्मश्च पद्मश्च शङ्खो मकरकच्छपौ । मुकुन्दकुन्दनीलाश्च चर्चाश्च निधयो नव ॥ १०७ ॥ ६यक्षः पुण्यजनो राजा गुह्यको वटवास्यपि । ७ किन्नरस्तु किम्पुरुपस्तुरङ्गवदनो मयुः ॥ १०८ ॥ शम्भुः शर्वः स्थाणुरीशान ईशो रुद्रोड्डीशौ वामदेवो वृषाङ्कुः । कण्ठेकालः शङ्करो नीलकण्ठः श्रीकण्ठोयौ धूर्जटिर्भीमभग ॥ १०६ ॥ १. 'कुबेर की पुरी' के ३ नाम हैं- प्रभा, अलका, वस्वोकसारा ॥ शेषश्चात्र - अलका पुनः । वसुप्रभा वसुसारा । २. 'कुबेर के पुत्र का १ नाम है - नलकूबरः ।। स्त्री पु ), सारम् (न | + पु ), पृक्थम् ऋक्थम्, स्वम् ( पु न ), हिरण्यम् अर्थः ॥ ३. 'धन' के १७ नाम हैं - वित्तम्, रिक्थम्, स्वापतेयम्, रा: (रै, विभवः, वसु ( न ), द्युम्नम्, द्रव्यम्, ऋणम्, द्रविणम् धनम् ( पु न ), , , ४. 'निधान' ( उत्तम खजाना ) के ४ नाम हैं - निधानम्, (पु), शेवधि: (पुं । + पुन ), निधि: ( पु ) || B कुनाभिः ५. महापद्म:, पद्म: ( पु । + पुन ), शङ्खः, मकरः, कच्छपः, मुकुन्दः, कुन्दः, नीलः, चर्चाः,—ये ६ 'निधियां' हैं । 'निधिः' शब्द पुंल्लिङ्ग है | विमर्श - जैन सिद्धान्त के अनुसार ६ निधियों के ये नाम हैं - नैसर्पः, . पाण्डुकः, पिङ्गलः, सर्वरत्नकः, महापद्मः कालः, महाकालः, माणवः, शङ्खः । उन्हीं के नामवाले उनके अधिष्ठाता देव हैं, 'पल्य' परिमाण श्रायुवाले नागकुमार वहाँ के निवासी हैं ॥ ६. 'यक्ष' के ५ नाम हैं- यक्षः, पुण्यजनः, राजा ( - जन्), गुह्यक:, वटवासी (-सिन् ) । ७. 'किन्नर' के ४ नाम हैं - किन्नरः, किम्पुरुषः, तुरङ्गवदनः, मयुः ॥ ८. 'शिवजी' के ७७ नाम हैं - शम्भुः शर्वः, स्थाणुः, ईशानः, ईश:, रुद्र:, उड्डीशः, वामदेव:, वृषाङ्कः, कण्ठे कालः, शङ्करः, नीलकण्ठः, Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६ अभिधानचिन्तामणिः मृत्युञ्जयः पञ्चमुखोऽष्टमूर्तिः श्मशानवेश्मा गिरिशो गिरीशः । पण्ढः कपर्दीश्वर ऊर्ध्वलिङ्ग एकत्रिदृग्भालहगेकपादः ॥ ११० ॥ मृडोsहासी घनवाहनोहिर्बुध्नो विरूपाक्षविषान्तकौ च । महाव्रती वह्निहिरण्यरेताः शिवोऽस्थिधन्वा पुरुपास्थिमाली ॥ १११ ॥ स्याद्वयोमकेशः शिपिविष्टभैरवौ दिक्कृत्तिवासा भवनीललोहितौ । सर्वज्ञनाट्यप्रियखण्डपर्शवो महापरा देवनटेश्वरा हरः ।। ११२ ॥ पशुप्रमथभूतोमापतिः पिङ्गजटेक्षणः। पिनाकशूलखट्वाङ्गगङ्गाऽहीन्दुकपालभृत् ॥ ११३ ॥ गजपूषपुरानङ्गकालान्धकमखासुहृत् 1 श्रीकण्ठः, उग्र:, धूर्जटिः, भीमः, भर्गः, मृत्युञ्जयः, पञ्चमुखः, अष्टमूर्तिः, श्मशानवेश्मा (-श्मन् ), गिरिश:, गिरीशः, षण्टः, कपर्दी (-दिन ), ईश्वरः, ऊर्ध्वलिङ्गः, एकदृक्, त्रिकू, भालदृक् ( ३- दृश् ), एकपात् (पाद), मृड:, अट्टहासी ( - सिन्), घनवाहनः, अहिर्बुध्नः, विरूपाक्षः, विषान्तकः, महाव्रती ( - तिन् ), वह्निरेताः, हिरण्यरेताः (२ - तस् ), शिवः, अस्थिधन्वा (वन् ), पुरुषास्थिमाली (-लिन् ), व्योमकेशः, शिपिविष्टः, भैरवः, दिग्वासाः (दिग म्बर: ), कृत्तिवासाः (२ - सस ), भवः, नीललोहितः, सर्वशः, नाट्यप्रियः, खण्डपशु:, महादेव:, महानटः, महेश्वरः, हरः, पशुपतिः, प्रमथपतिः, भूतपतिः, उमापतिः, पिङ्गजट:, पिङ्गेक्षणः, पिनाकभृत्, शूलभृत् 'खट्वाङ्गभृत्, गङ्गाभृत्, अहिभृत्, इन्दुभृत्, कपालभृत्, गजासुहृत् पूषासुहृत्, पुरा सुहृत्, अनङ्गासुहृत्, कालासुहृत्, अन्धकासुहृत्, मखा सुहृत्, ( ७ - हृद् । यौ० - गजासुरद्वेषी (-षिन् ), पूषदन्तहरः, त्रिपुरान्तकः, कामध्वंसी (-सिन् ), यमजित्, अन्धकारिः, दक्षाध्वरध्वंसकः, गजारिः, गजान्तकृत्, गजान्तकः, गजरिपुः, ' ) ॥ शेषश्चाश - शङ्करे नन्दिवर्धनः । बहुरूपः सुप्रसादो मिहिराणोऽपराजितः || कङ्कटको गुह्यगुरुर्भ नेत्रान्तकः खरुः । परिणाहो दशबाहुः सुभगोऽनेकलोचनः ॥ गोपालो वरवृद्धोऽहिपर्यङ्कः पांसुचन्दनः । कूटकृन्मन्दरमणिर्नवशक्तिर्महाम्बकः कोणवादी शैलधन्वा विशालाक्षो ऽक्षतस्वनः । उन्मत्तवेषः शत्ररः सिताङ्गो धर्मवाहनः ॥ महाकान्त वह्निनेत्रः स्त्रीदेहार्धो नृवेष्टनः । महानादो नराधारो भूरिरेकादशोत्तमः ॥ Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवफाण्ड: २] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः श्कपर्दोऽस्य जटाजूटः २खट्वाङ्गस्तु सुखंसुणः ॥ ११४ ।। ३पिनाकं स्यादाजगवमजकावञ्च तद्धनुः । ब्राह्मयाद्या मातरः सप्त५प्रमथाः पार्षदा गणाः ॥ ११५ ॥ ६लघिमा वशितेशित्वं प्राकाम्यं महिमाऽणिमा । यत्रकामावसायित्वं प्राप्तिरैश्वर्यमष्टधा ॥११६ ।। जोटी जोटीङ्गोऽर्धकूट: समिरो धूम्रयोगिनौ। उलन्दो जयतः कालो जटाधरदशाव्ययौ । सन्ध्यानाटी रेरिहाणः शङ्क श्च कपिलाञ्जनः । जगद्रोणिरर्धकालो दिशां प्रियतमोऽतलः ।। जगत्स्रष्टा कटाटङ्कः कटप्रहीरहृत्कराः । १. 'शिवजीके जटासमूह'के २ नाम हैं-कपर्दः, जटाजूटः ॥ २. 'शिवजीके खट्वाङ्ग'के २ नाम हैं-खटवाङ्गः (पु ।+न), सुखंसुणः ।। ___३. 'शिवजीके धनुष'के ३ नाम है-पिनाकम् (पु न ), आजगवम्, अजकावम् (+अजगवम् , अजगावम् )॥ ४. शिवजीके परिफर 'ब्राह्मी' आदि सात माताएं हैं । _ विमर्श-उन सात माताश्रोंके ये नाम हैं-ब्रह्माणी, सिद्धी, माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, चामुण्डा.। ५. 'शिवजीके गणश्के ३ नाम हैं-प्रमथाः, पार्षदाः (+पारिषदाः), गणाः ॥ ६. 'पाठं ऐश्वयों (सिद्धियों )का क्रमशः १-१ नाम है-लघिमा (-मन् ), वशिता, ईशित्वम्, प्राकाम्यम्, महिमा, अणिमा (२ मन् ), 'यत्रकामावसायित्वम्, प्राप्तिः ।। विमर्श-इन आठ ऐश्वयोंके ये कार्य हैं- 'लघिमा' में भारी भी रुईके समान हलका होकर आकाशमें उड़ता है । 'वशिता में पृथ्वी आदि पंचभूत (पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश ), भौतिक पदार्थ गौ, घट आदि उसके वशीभूत हो जाते हैं और वह ( वशिता सिद्धिको पाया हुआ व्यक्ति ) उनका वश्य नहीं होता, अतः उनके कारण पृथ्वी आदिके परमाणु के वशमें होनेसे उनके कार्य भी वशमें हो जाते हैं तब उन्हें जिस रूपसे वह रखता है, उसी रूप में वे ( भौतिक कार्य ) रहते हैं । 'ईशित्व में भूत एवं भौतिक पदार्थोकी मूल प्रकृतिके वशमें हो जानेसे उनकी उत्पत्ति, नाश तथा स्थितिका स्वामी होता है । 'प्राकाम्य में इच्छाका विघात नहीं होता, अतः उक्त सिद्धि को पाया हुआ Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणिः गौरी काली पार्वती मातृमाताऽपर्णा रुद्राण्यम्बिकाय-म्बकोमा । दुर्गा चण्डी सिंहयाना मृडानीकात्यायन्यौ दक्षजाऽऽर्या कुमारी ॥११७॥ शिवा सती महादेवी शर्वाणी सर्वमङ्गला । भवानी कृष्णमैनाकस्वसा मेनाद्रिजेश्वरा ॥ ११८ ॥ निशुम्भशुम्भमहिषमथनी भूतनायिका । व्यक्ति पृथ्वीपर भी उसी प्रकार डूबता उतराता (तैरता ) है जिस प्रकार पानीमें । 'महिमा में छोटा भी व्यक्ति पर्वत-नगर-आकाशादिके समान अत्यधिक बड़ा हो सकता है । 'अणिमा' में बहुत बड़ा भी व्यक्ति कीट, मच्छर, परमाणु आदिके समान सूक्ष्मसे सूक्ष्म हो सकता है। यत्रकामावसायित्व' में इच्छानुसार कार्य होता है अतः उक्त सिद्धि पाया हुआ व्यक्ति विषको भी अमृतकार्यमें संकल्प कर खिलाकर किसी को जिलाता है। 'प्राप्ति में समस्त कार्य उसके समीपवर्ती हो. रहते हैं, अतः वह भूमिपर बैठा हुआ ही अँगूठेसे आकाशस्थ चन्द्रको छू सकता है । १. 'पार्वती'के ३२ नाम हैं-गौरी, काली, पार्वती, मातृमाता (-मातृ), अपर्णा, रुद्राणी, अम्बिका, त्र्यम्बका, • उमा, दुर्गा, चण्डी, सिंहयानां ( यौ०-सिंहवाहना,....), मृडानी, कात्यायनी, दक्षजा ( यौ०दाक्षायणी ), आर्या, कुमारी, शिवा (+शिवी ), सती, महादेवी, शर्वाणी, सर्वमङ्गला, भवानी, कृष्णस्वसा, मनाकस्सा (२-स्वस), मेनाजा, अद्रिचा, ईश्वरा (+ ईश्वरी ), निशुम्भमथनी, शुम्भमथनी, महिषमथनी, भूतनायिका ।। शेषश्चात्र-गौतमी कौशिकी कृष्णा तामसी बाभ्रवी जया । . कालरात्रिमहामाया भ्रामरी यादवी वरा । बर्हिध्वजा शूलधरा परमव्रसदा ब्रह्मचारिणी ॥ अमोघा विन्ध्यनिलया षष्ठी कान्तारवासिनी । । जाङ्गली बदरीवासा वरदा कृष्णपिङ्गला ।। दृषद्वतीन्द्रभगिनी प्रगल्भा रेवती तथा । महाविद्या सिनीवाली रक्तदन्त्येकपाटला ॥ एकपर्णा बहुभुजा नन्दपुत्री महाजया। भद्रकाली महाकाली योगिनी गणनायिका ।। हासा भीमा प्रकूष्माण्डी गदिनी वारुणी हिमा । अनन्ता विजया क्षमा मानस्तोका कुहावती ।। चारणा च पितृगणा स्कन्दमाता घनाञ्जनी । गान्धर्वी कबुरा गार्गी सावित्री ब्रह्मचारिणी ॥ कोटिभीमन्दरावासा केशी मलयवासिनी। Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवकाण्ड: २ ] 'मणिप्रभा' व्याख्योपेतः १ तस्याः सिंहो मनस्तालः २सख्यौ तु विजया जया ॥ ११६ ॥ ३ चामुण्डा चर्चिका चर्ममुण्डा मार्जारकणिका । कर्णमोटी महागन्धा भैरवी च कपालिनी ॥ १२० ॥ ४ हेरम्बो गणविघ्नेशः पशुपाणिर्विनायकः । द्वौमातुरो 'गजास्यैकदन्तौ लम्बोदराखुगौ ॥ १२१ ।। ५.स्कन्दः स्वामी महासेनः सेनानीः शिखिवाहनः । मा ब्रह्मचारी गङ्गोमाकृत्तिकासुतः || १२२ ।। ५६ कालायनी विशालाक्षी किराती गोकुलोद्भवा ॥ एकानसी नारायणी शैला शाकम्भरीश्वरी । प्रकीर्णकेशी कुण्डा च नीलवस्त्रोमचारिणी || श्रष्टादशभुजा पौत्री शिवदूती यमस्वसा । सुनन्दा विकचा लम्बा जयन्ती नकुला कुला || विलङ्का नन्दिनी नन्दा नन्दयन्ती निरञ्जना | कालञ्जरी शतमुखी विकराला करालिका || विरजा: पुरला नारी बहुपुत्री कुलेश्वरी ! · कैटभी कालदमनी दर्दुरा कुलदेवता || रौद्री कुन्दा महारौद्री कालङ्गमा महानिशा । बलदेवस्वसा पुत्री हीरी क्षेमङ्करी प्रभा ॥ मारी हैमवती चापि गोला' शिखरवासिनी । १. 'पार्वतीके वाहन सिंह'का १ नाम है - मनस्तालः ॥ २. 'पार्वतीकी सखियों' का १-१ नाम है विजया, जया ॥ ३. 'चामुण्डा देवी' के ८ नाम हैं- चामुण्डा, चचिका, चर्ममुण्डा, मार्जारकर्णिका, कर्णमोटी, महागन्धा, भैरवी, कपालिनी । शेषश्चात्र – चामुण्डायां महाचण्डी चण्डमुण्डाSपि । --- ४. 'गणेश' के ८ नाम हैं - हेरम्बः, गणेशः, विघ्नेश: ( यौ० प्रमथाधिपः, विघ्नराज:,), पशुपाणि: ( यौ० ० - पशुधरः, "), विनायकः, द्वैमातुरः, गजास्य: ( + गजाननः, गजवदनः, दरः, श्राखग: ( यौ० - मूषिकरथः, मूषिकवाहनः, शेषश्चात्र – अथाखुगे । ), एकदन्तः, लम्बो ) ॥ पृश्निगर्भः पृश्निशृङ्गो द्विशरीरस्त्रिधातुकः । हस्तिमल्लो विषाणान्तः । ५. 'कार्तिकेय' के २१ नाम हैं - स्कन्दः, स्वामी ( - मिनू ), महासेनः, सेनानीः, शिखिवाहन : ( यौ० - मयूररथः, ), षाण्मातुरः, ब्रह्मचारी Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८० अभिधानचिन्तामणिः द्वादशाक्षो महातेजाः कुमारः परमुखो गुहः। विशाखः शक्तिभृत् क्रौञ्चतारकारिः शराग्निभूः ।। १२३ ॥ १भृङ्गी भृङ्गिरिटिगिरीटि ड्यस्थिविग्रहः । २कूष्माण्डके केलिकिलो ३नन्दीशे तण्डुनन्दिनौ ।। १२४ ॥ (-रिन् ), गङ्गासुतः, उमासुतः, कृत्तिकासुतः ( यौ०- गाङ्गेयः, पार्वतीनन्दनः, बाहुलेयः, कार्तिकेयः,....), द्वादशाक्षः, महातेजाः (-जस् ), कुमारः, षण्मुखः, गुहः, विशाखः, शक्तिभृत् ( यौ०-शक्तिपाणि:,..."), क्रौञ्चारिः, तारकारिः (यौ.- क्रौञ्चदारणः, तारकान्तकः,......), शरभूः, · अग्निभूः ( यौ०-शरजन्मा, अग्निजन्मा, २-न्मन् ,....::)॥ शेषश्चात्र-स्कन्दे तु करवीरकः। सिद्धसेनो वैजयन्तो बालचर्यो दिगम्बरः ।। - १. 'भृङ्गी'के ५ नाम हैं-भृङ्गी (-ङ्गिन् ), भृङ्गिरिटिः, भृङ्गिरीटि:, नाडीविग्रहः, अस्थिविग्रहः ॥ शेषश्चात्र-भृङ्गी तु चर्मी। ' २. 'कूष्माण्डक' ( शिवजीके गणमें रहनेवाले पिशाच-विशेष )के २ नाम हैं-कूष्माण्डकः, केलिफिलः ।। ३. 'नन्दी'के ३ नाम हैं-नन्दीशः, तण्डुः, नन्दी (-न्दिन् ) । विमर्श-पूर्वोक्त ( २।१२४ ) भृङ्गी .आदि शिवजीके 'गण-विशेष' हैं; इनके अतिरिक्त उनके और भी गण हैं, जिनके नाम ये हैं-महाकाल:, बाणः, लूनबाहुः, वृषाणकः, वीरभद्रः, धीराजः, हेरुकः, कृतालकः, चण्ड:, महाचएडः, कुशाण्डी (-एडन् ), कङ्कणप्रियः, मज्जनः, उन्मज्जनः, छागः, छागमेषः, महाघसः, महाकपालः, आलानः, सन्तापनः, विलापनः, महाकपोलः, ऐलोजः, शङ्खकर्णः, खरः, तपः, उल्कामाली (-लिन ), महाजम्भः, श्वेतपादः, खरोण्डकः, गोपालः, ग्रामणीमालुः, घण्टाकर्णः, करन्धमः, कपाली (-लिन् ), जम्भकः, लिम्पः, स्थूलः, अकर्णः, विकर्णकः, लम्बकर्णः, महाशीर्षः, हस्तिकर्णः, प्रमर्दनः, ज्वालाजिह्वः, धमधमः, संहातः, क्षेमकः, पुलः, भीषक:, ग्राहकः, सिस्नः, धीरुण्डः, मकराननः, पिशिताशी (-शिन् ), महाकुण्डः, नखारिः, अहिलोचनः, कूणकुच्छः, महाजानुः, कोष्ठकोटि:, शिवङ्करः, वेताल:, लोमवेतालः, तामसः, सुमहाफपिः, उत्तङ्गः, गृध्रजम्बूकः, कण्डानकः, कलानकः, चर्मग्रीवः, जलोन्मादः, ज्वालावक्त्रः, विहुण्डनः, हृदयः, वर्तुल:, पाण्डुः, भुण्डि :,.....॥ Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवकाण्ड : २ ] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः ६१ १द्रहिणो विरिञ्चिदु घणो विरिवः परमेष्ठ्यजोऽष्टश्रवरणः स्वयम्भूः । कमनः कविः सात्त्विकवेद् गर्भो स्थविरः शतानन्द पितामहौ कः || १२५ ॥ धाता विधाता विधवेधसौ ध्रुवः पुराणगो हंसगविश्वरेतसौ । प्रजापतिर्ब्रह्मचतुर्मुखौ भवान्तकृज्जगत्कत्तृ ' सरोरुहासनौ ॥ १२६ ॥ शम्भुः शतधृतिः स्रष्टा सुरज्येष्ठो विरिञ्चिनः । हिरण्यगर्भो लोकेशो नाभिपद्मात्मभूरपि ॥ १२७ ॥ २ विष्णुर्जिष्णुजनार्दनौ हरिहपीकेशाच्युताः केशवा दाशाह : पुरुषोत्तमोऽब्धिशयनोपेन्द्रावजेन्द्रानुजौ । विष्वक्सेननरायणौ जलशयो नारायणः श्रीपतिदैत्यारिच. पुराणयज्ञपुरुप्रस्तादर्यध्वजोऽधोक्षजः ॥ १२८ ॥ गोविन्दषड्बिन्दुमुकुन्दकृष्णा वैकुण्ठपद्म शयपद्मनाभाः । वृषाकपिर्माधववासुदेव विश्वम्भरः श्रीधर विश्वरूपौ ॥ १२६ ॥ . १. 'ब्रह्मा' के ४० नाम हैं - द्रुहिण : विरिञ्चिः, द्रुघणः, विरिञ्चः, परमेष्ठी ( - ष्ठिन् ), ग्रज:, अष्टश्रवणः, स्वयम्भूः, कमनः कविः, सात्त्विकः, वेदगर्भः, स्थविर:, शतानन्दः, पितामहः कः, धाता, विधाता ( २ - धातृ ), विधि:, वेधा : ( - धस् ), ध्रुवः, पुराणगः, हंसग: ( यौ० - श्वेतपत्ररथः, हंसवाहनः ), विश्वरेताः (-तस् ), प्रजापतिः, ब्रह्मा ( - हान्, पुन ), चतुर्मुख:, भवान्तकृत्, जगत्कर्ता (-तृ' । यौ० – विश्वसृट् - ज् ), सरोरुहासन: ( यौ० - कमलासनः, पद्मासनः ---), शम्भुः शतधृतिः, स्रष्टा (ष्ट ), सुरज्येष्ठः, विरिञ्चिबः, हिरण्यगर्भः, लोकेशः, नाभिभूः, पद्मभूः, आत्मभूः ( यौ० नाभिजन्मा, कमलजन्मा, -२ न्मन्, आत्मयोनिः,...............)॥ शेषश्चात्र — ब्रह्मा तु क्षेत्रज्ञः पुरुषः सनत् । अज:, 31 २. ' विष्णु भगवान्' के ७५ नाम हैं - विष्णुः, जिष्णुः, जनार्दनः, हरिः, हृषीकेशः, अच्युतः, केशव:, दाशार्हः, पुरुषोत्तमः, अब्धिशयनः, उपेन्द्रः, इन्द्रानुजः ( यौ० – वासवावरजः,' ----), विष्वक्सेनः, नरायणः, जलशय: ( + जलेशय: ), नारायणः, श्रीपतिः ( यौ०—–लक्ष्मीपतिः, लक्ष्मीनाथ:, "), दैत्यारिः, पुराणपुरुषः, यज्ञपुरुषः, तार्यध्वज: ( यौ०गरुडाङ्कः, गरुडध्वजः,་~~), अधोक्षजः, गोविन्दः, षडूबिन्दु:, मुकुन्दः, कृष्ण:, वैकुण्ठः, पद्मेशयः, पद्मनाभः, वृषाकपिः, माधवः, वासुदेवः, विश्वम्भरः, श्रीधरः, विश्वरूपः, दामोदरः, सौरिः सनातनः, विधुः, पीताम्बरः, मार्ज:, जिनः, कुमोदकः, त्रिविक्रमः, जहुः, चतुर्भुजः, पुनर्वसुः, शतावर्तः, गदाग्रजः, स्वभूः, मुञ्जकेशी ( - शिन् ), वनमाली ( -लिन् ), पुण्डरीकाक्षः, बभ्रुः, शशविन्दु:, वेधाः (-धस् ), पृश्निशृङ्गः, धरणीधरः ( यौ०—महीधरः, `` ं), Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणिः दामोदरः शौरिसनातनौ विधुः पीताम्बरो मार्जजिनौ कुमोदकः। .. त्रिविक्रमो जहुँचतुर्भुजी पुनर्वसुः शतावर्तगदाग्रजौ स्वभूः ॥१३०॥ मुञ्जकेशिवनमालिपुण्डरीकाक्षबभ्रशशबिन्दुवेधसः । पृश्निशृङ्गधरणीधरात्मभूपाण्डवायनसुवर्ण बिन्दवः ॥१३१ ।। श्रीवत्सो देवकीसुनुगोपेन्द्रो विष्टरश्रवाः । सोमसिन्धुर्जगन्नाथो गोवर्धनधरोऽपि च ॥ १३२ ॥ श्रात्मभूः, पाण्डवायनः, मुवर्णबिन्दुः, श्रीवत्सः, देवकीसूनु: (+देवकीनन्दनः,...), गोपेन्द्रः, विष्टरश्रवाः (-इस ), सोमसिन्धुः, जगन्नाथः, गोवर्धनधरः, यदुनाथः, गदाभृत् , शाङ्गभृत् , चक्रभृत् , श्रीवत्सभृत् , शङ्खभृत् (यौ०-गदाधरः, शाङ्गी (-ङ्गिन् ), चक्रपाणिः; श्रीवत्साङ्कः, शङ्खपाणि:,..)॥ शेषश्चात्रनारायणो तीर्थपादः पुण्यश्लोको बलिन्दमः। उरुक्रमोरुगायौ च तमोघ्नः श्रवणोऽपि च ॥ उदारथिलतापर्णः सुभद्रः पांशुजालिकः । चतुव्यूहो नवव्यूहो नवशक्तिः . षडङ्गजित् ।। द्वादशमूलः शतको दशावतार एकटक । हिरण्यकेशः सोमोऽहिस्त्रिधामा त्रिककुत् त्रिपात् ॥ मानञ्ज रः पराविद्धः पृश्निगर्भोऽपराजितः । हिरण्यनाभः श्रीगर्भो .वृषोत्साहः सहस्रजित् ।। ऊर्ध्वकर्मा यज्ञधरो . धर्मनेमिरसंयुतः। पुरुषो योगनिद्रालु: खण्डास्यः शलिकाजितौ ॥ कालकुएटो वरारोहः श्रीकरो वायुवाहनः । . वर्धमानश्चतुर्दष्ट्रो नृसिंहवपुरव्ययः ॥ कपिलो भद्रकपिलः सुषेणः समितिञ्जयः । कतुधामा वासुभद्रो बहुरूपो महाक्रमः ॥ विधाता धार एकाङ्गो वृषाक्षः सुवृषोऽक्षजः । ___ रन्तिदेवः सिन्धुवृषो जितमन्यवृकोदरः ।। पहुशृङ्गो रत्नबाहुः पुष्पहासो महातपाः। . लोकनाभः सूक्ष्मनाभो धर्मनाभः पराक्रमः ।। पद्महासो महाहंस: पद्मगर्भः सुरोत्तमः। शतवीरो महामायो ब्रह्मनाभः सरीसृपः ।। बृन्दाकोऽधोमुखो धन्वी सुधन्वा विश्वभुक स्थिरः । Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवकाण्ड: २] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः यदुनाथो गदाशाङ्ग चक्रश्रीवत्सशङ्खभृत् । १मधुधेनुकचारगूरपूतनायमलार्जुनाः ।। १३३ ॥ झालनेमिहयग्रीवशकटारिष्टकैटभाः । कंसकेशिमुराः साल्वमैन्द द्विविदराहवः ।। १३४ ॥ हिरण्यकशिपुर्वाणः कालियो नरको बलिः । शिशुपालश्चास्य वध्या रवैनतेयस्तु वाहनम् ।। १३५ ।। इशङ्खोऽस्य पाश्चजन्यो४ऽङ्कः श्रीवत्सो ५ऽसिस्तुनन्दकः । गदा कौमोदकी ७चापं शाङ्ग चक्रं सुदर्शनः ॥ १२६ ॥ . शतानन्दः शरश्चापि यवनारिः प्रमर्दनः ।। यज्ञनेमिर्लोहिताक्ष एकपाद् द्विपदः कपिः । एकशृङ्गो यमकील: आसन्दः शिवकीर्तनः ।। शर्वशः श्रीवराहः सदायोगी सुयामुनः । १. विष्णु भगवान् के वध्यों ( मारने योग्य शत्रों ) का १-१ नाम है ये २३ हैं-मधु:, धेनुकः, चाणूरः, पूतना ( स्त्रो), यमलार्जुनः, कालनेमिः, ह्यग्रीवः, शकटः, अरिष्टः, कैटभः, कंस:, केशी (-शिन् ), मुरः, शाल्मा, मन्दः, द्विविदः, राहुः, हिरण्यकशिपुः, बाणः, कालियः, नरकः, बलिः, शिशुपालः, ( यौ०--मधुमथनः, धेनुकध्वंसी-सिन् , चाणूरसूदनः, पूतनादूषण:, यमलार्जुनभञ्जनः, कालनेमिहरः, हयग्रीवरिपुः, शकटारिः, अरिष्टहा- हन् , कैटभारिः, कंसजित् , केशिहा-हन् , मुरारिः, साल्वारिः, मैन्दमर्दनः, द्विविदारिः, राहुमूर्धहरः, हिरण्यकशिपुदारण:, बाणजित् , कालियदमनः, 'नरकारिः, बलिबन्धनः, शिशुपालनिषूदनः,...""भी 'विष्णु भगवान के नाम होते हैं )। ... २. विष्णु भगवान्'का वाहन 'वैनतेयः', अर्थात् 'गरुड़' है ।। (अतः 'यो-गरुडगामी--मिन् , गरुडवाहनः, गरुडरथः,..........'नाम भी 'विष्णुभगवान् के होते हैं ) । ३ 'विष्णु भगवान् के शङ्ख'का १ नाम है-पाञ्चजन्यः ।। ५. 'विष्णु भगवान्के अङ्क (हृदयस्थ चिह्न )का १ नाम हैश्रीवत्सः ॥ ६. 'विष्णु भगवान्की तलवार'का १ नाम है-नन्दकः ॥ ७. 'विष्णु भगवान् की गदा'का १ नाम है-कौमोदकी । ८. विष्णु भगवान्के धनुष'का १ नाम है-शाङ्गम् ॥ ६. 'विष्णु भगवान्के चक्र'का १ नाम है-सुदर्शनः (पु+पु न )॥ Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणिः . . १मणिः स्यमन्तको हस्ते २भुजमध्ये तु कौस्तुभः । ३वसुदेवो भूकश्यपो दिन्दुरानकदुन्दुभिः ॥ १३७ ।। ४रामो हली मुसलिसात्वतकामपालाः सङ्कर्षणः प्रियमधुबेलरौहिणेयौ। रुक्मिप्रलम्बयमुनाभिदनन्तताल लक्ष्मैककुण्डलसितासितरेवतीशाः ॥ १३८ ।। बलदेवो बलभद्रो नीलवस्त्रोऽच्युताग्रजः । ५मुसलं त्वस्य सौनन्दं हिलं संवर्तकाह्वयम् ॥ १३६ ॥ .. लक्ष्मीः पद्मा रमा या मा ता सा श्रोः कमलेन्दिरा। हरिप्रिया पद्मवासा क्षीरोदतनयाऽपि च ।। १४० ॥ .. ८मदनो जराभीरुरनङ्गमन्मथौ कमनः कलाकेलिरनन्यजोऽङ्गजः। . मधुदीपमारौ मधुसारथिः स्मरो विषमायुधो दपेककामहृच्छयाः ॥ १४१ ।। १. 'विष्णु भगवान्के हाथमें स्थित मणि'का १ नाम है-स्यमन्तकः ।। २. 'विष्णु भगवान्के वक्षःस्थलमें स्थित मणि'का १ नाम है-कौस्तुभः । ३. 'वसुदेव' ( कृष्ण भगवान्के पिता )के नाम हैं-वसुदेवः, भूकश्यपः, दिन्दुः, अानकदुन्दुभिः ॥ ४. 'बलरामजी'के २१ नाम है--रामः, हली, मुसली (२-लिन् ), सात्वतः, कामपालः, संकर्षणः, प्रियमधुः, . बलः, रौहिणेयः, रुक्मिभित्, प्रलम्बभित्, यमुनाभित् (३-भिद् । यौ-रुक्मिदारणः, प्रलम्बघ्नः, कालिन्दीकर्षणः, कालिन्दीभेदन:, ...), अनन्तः, ताललक्ष्मा (-दमन् ), एककुण्डलः, सितासितः, रेवतीशः (+रेवतीरमणः ), बलदेवः, बलभद्रः, नीलवस्त्रः (+नीलाम्बरः), अच्युताग्रजः ॥ शेषश्चात्र-बलभद्रे तु भद्राङ्गः फालो गुप्तचरो बली । प्रलापी भद्रचलनः पौरः शेषाहिनामभृत् ॥ ५. 'बलरामजीके मुसल'का १ नाम है-सौनन्दम् ॥ ६. 'बलरामके हल'का १ नाम है-संवर्तकम् ॥ ७. “लक्ष्मीजी के नाम हैं-लक्ष्मीः , पद्मा, रमा, ई., श्रा (+या, मा, ता, सा, श्रीः, कमला, इन्दिरा, हरिप्रिया, पद्मवासा (+पद्मालया ), क्षीरोदतनया ॥ शेषश्चात्र-लदम्यान्तु भर्भरी विष्णुशक्तिः क्षीराब्धिमानुषी । ८. 'कामदेव'के २० नाम हैं--मदनः, जराभीरुः, अनङ्गः, मन्मथः, कमनः, कलाकेलि:, अनन्यजः, अङ्गजः, मधुदीपः, मारः, मधुसारथिः, स्मरः, Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवकाण्डः २ ] 'मणिप्रभा' व्याख्योपेतः प्रद्युम्नः श्रीनन्दनश्च कन्दर्पः पुष्पकेतनः । १ पुष्पाण्यस्येषुचापाखाण्य२री शंवर शूर्पकौ ॥ १४२ ॥ ३ केतनं मीनमकरौ ४ वारणाः पञ्च ५रतिः प्रिया । ६ मनः शृङ्गारसङ्कल्पात्मानो योनिः सुहृन्मधुः ।। १४३ ।। सुतोऽनिरुद्ध ऋष्याङ्क उषेशो ब्रह्मसूश्च सः । Eगरुडः शाल्मल्यरुणावरजो विष्णुवाहनम् || १४४ ।। सौपर्णेयो वैनतेयः सुपर्णः सर्पारातिर्वज्रिजिद्वज्रतुण्डः । पक्षिस्वामी काश्यपिः स्वर्णकायस्तादर्यः कामायुर्गरुत्मान् सुधाहृत् ।। १४५ ।। ६५ विषमायुधः, दर्पकः, कामः, हृच्छयः ( + मनसिशय: ), प्रद्युम्नः, श्रीनन्दनः, कन्दर्पः, पुष्पकेतनः, ( यौ०—- पुष्पध्वजः,' । +कन्तुः ) ।। शेषश्चात्र -- कामे तु यौवनोद्धे दः शिखिमृत्युर्महोत्सवः । रामान्तकः सर्वधन्वी रागरज्जुः प्रकर्षकः ।। मनोदही मथनश्च । बाण, चाप ( धनुष ) और अस्त्र पुष्य हैं, कुसुमबाणः, पुष्पचाप:, कुसुमधन्वा (वन् ), १. इस कामदेवके ( अतएव यौ० – पुष्पेषुः पुष्पास्त्रः, कुसुमायुधः, " नाम 'कामदेव' के हैं ) ॥ २. 'कामदेव के दो शत्रु हैं, उनका १–१ नाम है - शंवरः, शूर्पकः । .. ( अतएव यौ० - शंकरारिः, शूर्पकारि:, •" नाम भी कामदेव के होते हैं ) ॥ ३. 'कामदेवकी पताका' दो है – उनका १–१ नाम है - मीन:, मकर:, ( श्रतएव यौ० - मीनकेतनः, झषध्वजः, मकरकेतनः, मकर******) || ध्वजः, ४. 'कामदेव के पाँच बाण हैं । ( अतः यौ० - विषमेषुः, पञ्चबाणः,་~~~~~~) ।। " ५. 'कामदेवकी स्त्री'का १ नाम है - रतिः अतएव यौ०—-रतिवरः, रतिपति:, .....) ।। ६. कामदेवके ये योनि ( उत्पत्तिस्थान ) हैं -- मन: (-स्), शृङ्गारः, संकल्प:, आत्मा ( - त्मन् ) ॥ ७. 'कामदेवका मित्र 'मधु' अर्थात् वसन्तऋतु है | ८. 'कामदेव के पुत्र' (अनिरुद्ध ) के ४ नाम हैं – अनिरुद्धः, ऋष्याङ्कः, उषेशः, ब्रह्मसूः ॥ ६. 'गरुड' के १७ नाम हैं -- गरुड: ( + गरुल: ), शाल्मली (-लिन् ), अरुणावरजः, विष्णुवाहनम्, सौपर्णेयः, वैनतेयः, सुपर्णः, सर्पारातिः, ५ श्र० चि० Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ अभिधानचिन्तामणिः १ बुद्धस्तु सुगतो धर्मधातु त्रिकालविज्जिनः । बोधिसत्त्वो महाबोधिरार्यः शास्ता तथागतः ॥ १४६ ॥ पञ्चज्ञानः पडभिज्ञो दाशार्हो दशभूमिगः । चतुस्त्रिंशज्जातकज्ञो दशपारमिताधरः ॥ १४७ ॥ द्वादशाक्षो दशबलत्रिकाय: श्रीघनाऽद्वयौ । समन्तभद्रः सङ्गुप्तो दयाकूर्ची विनायकः ॥ १४८ ॥ मारलोकख जिद्धर्मराजो विज्ञानमातृकः । महामैत्रो मुनीन्द्र २बुद्धाः स्युः सप्त ते त्वमी ॥ १४६ ॥ त्रिपश्य शिखी विश्वभूः क्रकुच्छन्दश्च काञ्चनः । काश्यपश्च सप्तमस्तु शाक्यसिंहोऽर्कबान्धवः ।। १५० ।। तथा राहुलसूः सर्वार्थसिद्धो गोतमान्वयः । मायाशुद्धोदनसुतो देवदत्ताप्रजश्च सः ।। १५१ ।। वज्रजित् वज्रतुण्डः, पक्षिस्वामी ( - मिन् । + पक्षिराज: ), काश्यपि:, स्वणंकायः, तार्यः, कामायु:, गरुत्मान् ( - रमत् ), सुधाहृत् ॥ शेषश्चात्र - गरुडस्तु विषापहः । पक्षिसिंहो महापक्षो महावेगो विशालकः । उन्नतीशः स्वमुखभूः शिलाऽनीहोऽहिभुक् च सः ।। १. 'बुद्धदेव'कं ३२ नाम हैं--बुद्ध:, सुगतः, धर्मधातुः, त्रिकालवित् (- विद ), जिनः, बोधिसत्त्वः, महाबोधि:, आर्य:, शास्ता ( - स्तृ ), तथागत:, पञ्चज्ञान:, षडभिज्ञः, दाशार्हः, दशभूमिगः, चतुस्त्रिशज्जातकज्ञः, दशपारमिताघर:, द्वादशाक्षः, दशबल:, त्रिकायः, श्रीघनः, अद्वयः समन्तभद्रः, संगुप्तः, दयाकूर्चः, विनायकः, मारजित्, लोकजित् खजित्:, धर्मराजः विज्ञानमातृकः, महामैत्रः, मुनीन्द्र: (+मुनिः ) ॥ शेषश्चात्र - बुद्धे तु भगवान् योगी बुधो विज्ञानदेशनः | महासत्त्व लोकनाथ बोधिरहन् सुनिश्चितः || गुणान्धिविगतद्वन्द्वः | २. 'बुद्ध' ७ हैं, उनमें से ६ तकका क्रमशः १ - १ नाम यह है -- विपश्यी ( - श्यिन् ), शिखी ( - खिन् ), विश्वभूः, क्रकुच्छन्दः, काञ्चनः, काश्यपः । ३. 'सातवें 'बुद्ध' के ८ नाम हैं- शाक्यसिंह: ( + शाक्य : ), अर्क - बान्धवः, राहुलसूः, सर्वार्थसिद्ध: ( +सिद्धार्थ:, ) गोतमान्वयः, मायासुतः, शुद्धोदनसुतः ( यौ० - शौद्धोदनि:, ), देवदत्ताप्रजः ॥ १. 'बुद्ध' स्यान्यनामानि - पञ्चज्ञानः, षडभिज्ञः, दशभूमिगः, चतुस्त्रिशब्नातकज्ञः, दशपारमिताधरः, दशबलः, मारजित् । Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवकाण्ड: २ ] 'मणिप्रभा' व्याख्योपेतः १असुरां दितिदनुजाः पातालोकः सुरारयः । पूर्वदेवाः शुक्रशिष्या र विद्यादेव्यस्तु षोडश ॥ १५२ ॥ रोहिणी प्रज्ञप्तिर्वशृङ्खला कुलिशाङ्कुशा । चक्रेश्वरी नरदत्ता काल्यथासौ महापरा ।। १५३ ।। गौरी गान्धारी सर्वा महाज्वाला च मानवी । रोट्याच्छुता मानसी महामानसिकेति ताः ।। १५४ ॥ - श्वाग्ब्राह्मी भारती गौर्गीर्वाणी भाषा सरस्वती । श्रुतदेवी ४ वचनन्तु व्याहारो भाषितं वचः ।। १५५ ।। ५सविशेषणमाख्यानं वाक्यं ६७ 01 १. ' ५ सुरों' के ७ नाम हैं- असुराः, दितिजा, दनुजा:, ( यौ० दैतेयाः, दैत्याः, दानवाः, ....), पातालौकस: ( - कसू ), सुरारयः, पूर्वदेवाः, शुक्रशिष्याः । ( च० व० - बहुत्वापेक्षा से है नित्य नहीं है ) ॥ २. 'विद्यादेवियाँ'. १६ हैं, उनके क्रमशः १ - १ नाम ये हैं - रोहिणी, प्रज्ञप्तिः, वज्रशृङ्खला, कुलिशाङ्कुशा, चक्रेश्वरी, नरदत्ता, काली, महाकाली, गौरी, गान्धारी, सर्वास्त्रमहाज्वाला, मानवी, वैरोट्या, अच्छुता, मानसी, महामानसिका ॥ ३. 'सरस्वती' के ( गो ), गी: ( गिर् ), वाणी, भाषा, सरस्वती, श्रुतदेवी ॥ ४. 'वचन (बोली )' के सरस्वती के उक्त ६ नाम तथा वक्ष्यमाण और ४ नाम है- वचनम्, व्याहारः, भाषितम् ' वचः - चस् ) । शेषश्चान्न - वचने स्यात्तु जल्पितम् । लपितोदितभाषिताभिधानगदितानि च ॥ ५. ( प्रयुज्यमान अथवा अप्रयुज्यमान कर्ता आदि ) विशेषणों के सहित एक आख्यात ( त्याद्यन्त - अर्थात् पाणिनीय व्याकरणमतके तिङन्त पद )को 'वाक्य' कहते हैं, यह 'वाक्य' शब्द नपुंसक लिङ्ग ( वाक्यम् ) है । विमर्श - प्रयुज्यमान आख्यातवाले वाक्यका उदा० - ' - 'धर्मे त्वां रक्षतु ' ( यहां आख्यातपद 'रक्षतु' का प्रयोग किया गया है ); अप्रयुज्यमान श्राख्यातवाले वाक्यका उदा० - ' शीलं ते स्वम्' ( यहांपर आख्यातपद 'अस्ति' का प्रयोग नहीं करनेपर प्रकरण या अर्थके द्वारा 'अस्ति' पदका अध्याहार किया जाता है ); श्रप्रयुज्यमान विशेषणवाले वाक्यका उदा०' प्रविश' ( यहां पर प्रकरण या अर्थके द्वारा 'गृहम्' इस विशेषणपदका अध्याहार किया जाता है ) । ' आख्यातम्' यहां पर एकवचनका प्रयोग होनेसे यद्यपि 'ओदनं पच, तव भविष्यति' इस स्थलमें दो आख्यातपद ( 'पच' और नाम हैं - बाकू (च्), ब्राह्मी, भारती, गौः Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८ श्रभिधानचिन्तामणिः - १स्त्याद्यन्तकें पदम् । २राद्धसिद्ध कृतेभ्योऽन्त श्राप्तोक्तिः समयागमौ ॥ १५६ ॥ ३ श्राचाराङ्गं सूत्रकृतं स्थानाङ्गं समवाययुक् । पचमं भगवत्यङ्कं ज्ञातधर्मकथाऽपि च ।। १५७ ।। उपासकान्तकृदनुत्तरोपपातिकाद् दशाः । प्रश्नव्याकरणञ्चैव विपाकश्रुतमेव च ॥ १५८ ॥ इत्येकादश सोपाङ्गान्यङ्गानि ४ द्वादशं पुनः । दृष्टिवादो द्वादशाङ्गी स्याद् गरिणपिटकाह्वया ॥ १५६ ॥ ६परिकर्मसूत्रपूर्वानुयोग पूर्वगतचूलिकाः स्युर्हष्टिवादभेदाः ७पूर्वाणि चतुर्दशापि पूर्वगते ।। १६० ।। उत्पाद पूर्वमप्रायणीयमथ वीर्यतः प्रवादं स्यात् । अस्तेर्ज्ञानात् सत्यात्तदात्मनः कर्मणश्च परम् ॥ पक्ष । १६१ ॥ 'भविष्यति' ) हैं, तथापि वहाँ एक वाक्य नहीं, किन्तु दो वाक्य हैं ।।. १. 'सि' आदि तथा 'ति' आदि (प्रथमा के एकवचन 'सि' से लेकर सप्तमीके बहुवचन ‘सुप्’ तक और परस्मैपदके प्रथम पुरुषके एकवचन ‘ति’से लेकर आत्मनेपदके उत्तमपुरुष के बहुवचन 'महि' तर्क अर्थात् पाणिनीय व्याकरणके मत से सुबन्त तथा तिङन्त ) शब्दको 'पद' कहते हैं । यह 'पद' शब्द नपुंसकलिङ्ग ( पदम् ) है । २. 'सिद्धान्त' के ६ नाम हैं- राद्वान्तः, सिद्धान्तः, कृतान्तः, आप्तोक्तिः, समय:, आगमः ॥ ३. प्रवचन पुरुषके अङ्गोंके समान औपपातिक आदि उपाङ्गों के साथ ११ अङ्ग हैं, उनका क्रमशः १ - १ नाम है-- श्राचाराङ्गम्, सूत्रकृतम्, स्थानाङ्गम्, समवाययुक् (– युज् ), भगवत्यङ्गम्, ज्ञातधर्मकथा, उपासकदशाः, अन्तकृद्दशाः, अनुत्तरोपपातिकदशाः, प्रश्नव्याकरणम्, विपाकश्रुतम् ॥ ४. १२ अङ्गका १ नाम है -- दृष्टिवाद : ( + दृष्टिपात: ) || ५. पूर्वोक्त ( २ । १५७ - १५६ ) 'श्राचाराङ्ग' इत्यादि १२ अङ्गसमुदायको 'गणिपिटकम्' कहते हैं । ६. पूर्वो ( २ । १५७ ) १२ वें श्रङ्ग 'दृष्टिवाद' के ५ भेद हैं, उनके क्रमशः १--१ नाम हैं -- परिकर्माणि, सूत्राणि, पूर्वानुयोग:, पूर्वगतम्, चूलिकाः ॥ ७. ( सत्र अङ्गों से पहले तीर्थङ्करोंके द्वारा कहे जाने से, १४ 'पूर्व ' हैं, उनके क्रमशः १--१ नाम है - उत्पादपूर्वम्, श्रग्रायणीयम्, वीर्यप्रवादम्, श्रस्तिनास्तिप्रवादम्, ज्ञानप्रवादम्, सत्यप्रवादम् आत्मप्रवादम्, कर्मप्रवादम्, · Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवकाण्ड: २ ] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः प्रत्याख्यानं विद्याप्रवादकल्याणनामधेये च । प्राणावायश्च क्रियाविशालमथ लोकबिन्दुसारमिति ॥ १६२ ।। १स्वाध्यायः श्रुतिराम्नायश्छन्दो वेदत्रयी पुनः । ऋग्यजुःसामवेदाः स्यु३रथर्वा तु तदुद्धतिः॥ १६३ ।। ४वेदान्तः स्यादुपनिषदोङ्कारप्रणवौ समो। . ६शिक्षा कल्पो व्याकरणं छन्दोज्योतिर्निरुक्तयः ।। १६४ ॥ पडङ्गानि धर्मशास्त्रं स्यात् स्मृतिधर्मसंहिता । आन्वीक्षिकी तर्कविद्या हमीमांसा तु विचारणा ॥ १६५ ।। १०सर्गश्च प्रतिसर्गश्च वंशो मन्वन्तराणि च । वंशानुवंशचरितं पुराणं पश्चलक्षणम् ।। १६६ ॥ प्रत्याख्यानम् (+प्रत्याख्यानप्रवादम् ), विद्याप्रवादम्, कल्याणम् (+अवध्यम् ), प्राणावायम्, क्रियाविशालम् , लोकबिन्दुसारम् ॥ १. 'वेद'के 4 नाम हैं-स्वाध्यायः, श्रुतिः (स्त्री), अाम्नायः, छन्दः (-दस , न ), वेदः ॥ ___२. 'ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेदके समुदायका १ नाम है--त्रयौ ॥ ३. 'त्रयी' (ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेदों )से उद्धृत चौथा 'अथवा' (-र्वन् , पु ) अर्थात् 'अथर्ववेद' है ॥ • ४. 'उपनिषद्'के २ नाम है-वेदान्तः, उपनिषद् ।। ५, 'प्रणव'के २ नाम हैं-ओङ्कारः, प्रणवः ॥ ६. वेदोंके ६ अङ्ग हैं, उनके क्रमशः १-१ नाम हैं-शिक्षा, कल्पः, व्याकरणम्, छन्दः (-न्दस् ।+ छन्दीविचितिः ), ज्योतिः (-तिष् ), निरुक्तिः (+निरुक्तम् )॥ ७. 'धर्मशास्त्र'के ३ नाम हैं-धर्मशास्त्रम् , स्मृतिः, धर्मसंहिता ।। ८. 'तर्कशास्त्र'के २ नाम हैं-श्रान्वीक्षिकी, तर्कविद्या ॥ है... 'मीमांसाशास्त्र के २ नाम हैं-मीमांसा, विचारणा ॥ १०. सर्गः (सृष्टि ), प्रतिसर्गः ( संहार ), वंशः (सूर्यादि वंश), मन्वन्तराणि ( स्वायंभुव श्रादि १४ मन्वन्तर ) और वंशानुवंशचरितम् ( सूर्यादिवंशके वंशोंकी परम्पराका चरित)-इन ५ लक्षणोंसे युक्त ग्रन्थको 'पुराण' कहते हैं, यह 'पुराण' शब्द नपुं० ( पुराणम् ) है। .. विमशे-पुराण १८ हैं, उनके नाम श्रादिके लिए 'अमरकोष'के मत्कृत 'मणिप्रभा' नामक राष्ट्रभाषानुवादकी 'अमरकौमुदी' नामकी टिप्पणी देखनी चाहिए। श्रीमद्भागवतमें पुराणके दस लक्षण कहे गये हैं।' १. “पुराणलक्षणं ब्रह्मन् ब्रह्मषिभिर्निरूपितम् । Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७० अभिधानचिन्तामणिः १षडङ्गी वेदाश्चत्वारो मीमांसाऽन्वीक्षिकी तथा । धर्मशास्त्रं पुराणश्च विद्या एताश्चतुर्दश ॥ १६७ ।। १. 'विद्याएँ' १४ हैं-शिक्षा आदि (२।१६४ ) ६ वेदाङ्ग, ऋग्वेद आदि (१ ऋग्वेद, यजुर्वेद, ३ सामवेद और ४ अथर्ववेद ) ४ वेद, मीमांसा, आन्वीक्षिकी, धर्मशास्त्र और पुराण ॥ शृणुष्व बुद्धिमाश्रित्य वेदशास्त्रानुसारतः ।। सर्गोऽप्यथ विसर्गश्च वृत्ती रक्षान्तराणि च । वंशो वंशानुचरितं संस्था हेतुरपाश्रयः ।। दशभिर्लक्षणैर्युक्तं पुराणं तद्विदो विदुः । केचित् पञ्चविधं ब्रह्मन् महदल्पव्यवस्थया । अव्याकृतगुणक्षोभान्महतस्त्रिवृतोऽहमः । भूतमात्रेन्द्रियार्थानां संभवः सर्ग उच्यते ।। पुरुषानुगृहीतानामेतेषां . वासनामयः । विसर्गोऽयं समाहारो बीबाद बीजं चराचरम् ।। वृत्तिर्भूतानि भूतानां चराणामचराणि च । कृतास्वेन नृणां तत्र कामाच्चोदनयाऽपि वा ।। रक्षा च्युतावतारेहा विश्वस्यानुयुगे युगे । तिर्यङ्मय॑र्षिदेवेषु हन्यन्ते . यैस्त्रयीद्विषः । मन्वन्तरं मनुर्देवा मनुपुत्राः सुरेश्वरः । ऋषयोऽशावताराश्च हरेः षडिवधमुच्यते ।। राज्ञां ब्रह्मप्रसूतानां वंशस्त्रकालिकोऽन्वयः। वंशानुचरितं तेषां वृत्तं वंशधराश्च ये ।। नैमित्तिकः प्राकृतिकस्तेषामात्यन्तिको लयः। संस्थेति कविभिः प्रोक्ता चतुर्धाऽस्य स्वभावतः ॥ हेतुर्जीवोऽस्य सर्गादेरविद्याकमकारक। यं चानुशायनं प्राहुरव्याकृतमुतापरे । व्यतिरेकान्वयो यस्य जाग्रत्स्वप्नसुषुप्तिषु । मायामयेषु तद् ब्रह्म जीववृत्तिष्वपाश्रयः ॥ पदार्थेषु यथाद्रव्यं सन्मात्रं रूपनामसु । बीजादिपञ्चतान्तासु ह्यवस्थासु युतायुतम् ।। विरमेत यदा चित्तं हित्वा वृत्तित्रयं स्वयम् । योगेन वा तदात्मानां वेदेहाया निवर्तते ।। Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवकाण्डः २ ] 'प्रभा' व्याख्योपेतः १ सूत्रं सूचनकृद् २भाष्यं सूत्रोक्तार्थप्रपञ्चकम् । ३ प्रस्तावस्तु प्रकरण ४ निरुक्तं पदभञ्जनम् ॥ १६८ ॥ * ५ श्रवान्तरप्रकरणविश्रामे शीघ्रपाठतः । श्राह्निक६मधिकरणं त्वेकन्यायोपपादनम् ॥ १६६ ॥ ७उक्तानुक्तदुरुक्तार्थचिन्ताकारि तु वार्तिकम् । टीका निरन्तर व्याख्या ७१ १. 'सूचित करनेवाले' ( संक्षेप रूपसे संकेत करनेवाले ग्रन्थ- विशेष ) का १ नाम है -सूत्रम् ( पु न । यथा - शाकटायनसूत्र, पाणिनिकृत श्रष्टाध्यायी सूत्र;~~~~~~~~~~~) ॥ २. 'सूत्र में कहे गये विषयको विस्तार के साथ प्रतिपादन करनेवाले ग्रन्थविशेष' का ? नाम है— भाष्यम् । ( यथा - पाणिनिकृत अष्टाध्यायी सूत्रपर पातञ्जल महाभाष्य, वेदान्त सूत्रपर शाङ्करभाष्य, रामानुजभाष्य, ................) ॥ ३. 'प्रस्ताव' के २ नामं हैं - प्रस्ताव:, प्रकरणम् ॥ ४. ‘निरुक्त' ( प्रत्येक वर्णादिका विश्लेषणकर पदों के विवेचन करने वाले ग्रन्थ-विशेष ) के २ नाम हैं - निरुक्तम्, पदभञ्जनम् ॥ ५. 'अवान्तर प्रकरणके विश्राम में शीघ्र पाठसे एक दिनमें निवृत्तके समान ग्रन्थांश विशेष का १ नाम है - आह्निकम् । ( यथा - पातञ्जलमहा. . भाष्य में १ म, २ य आदि श्राह्निक .) ।। .६. 'एक न्याय ( विषय ) के प्रतिपादन करनेवाले ग्रन्थांश - विशेष' का १ नाम है - अधिकरणम् ॥ ७. 'सूत्रों में कथित, कथित और अन्यथाकथित विषयोंके विचार करनेवाले ग्रन्थ- विशेष' का १ नाम है - ' वार्तिकम्' । (यथा- पाणिनीय अष्टाध्यायी सूत्रपर कात्यायनका वार्तिक, एवं श्लोकवार्तिक, *****) || ८. 'किसी ग्रंथके साधारण या असाधारण प्रत्येक शब्दों की निरन्तर . व्याख्या' का एक १ नाम है - 'टीका' । (यथा - अमरकोषकी भानुजिदीक्षितकृत एवं लक्षणलक्ष्याणि पुराणानि पुराविदः । मुनयोऽष्टादश प्राहुः क्षुल्लकानि महान्ति च ॥ ब्राह्मं पाद्म वैष्णवञ्च शैषं लेङ्गं सगारुडम् । नारदीयं भागवत माग्नेयं स्कान्दसंज्ञितम् ॥ भविष्यं ब्रह्मवैवर्त मार्कण्डेयं सवामनम् | वाराहं मात्स्यं कौर्मं ब्रह्माण्डाख्यमिति त्रिषट् ॥ इति ।” ( श्रीमद्भागवत १२/७/८ - २४ ) Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणिः . . -१पञ्जिका पदभञ्जिका ॥ १७० ॥ २निबन्धवृत्ती अन्वर्थे ३संग्रहस्तु समाहृतिः। ४परिशिष्टपद्धत्यादीन् पथाऽनेन समुन्नयेत् ॥ १७१ ।। ५कारिका तु स्वल्पवृत्तौ बहोरर्थस्य सूचनी। ६कलिन्दिका सर्व विद्या निघण्टुर्नामसङग्रहः ॥ १७२ ॥ इतिहासः पुरावृत्तं प्रवलिका प्रहेलिका। 'रामाश्रमी' टीका, क्षीरस्वामिकृत 'अमरकोषोद्घाटन' टीका, रायमुकुटकृत 'पदचन्द्रिका' टीका,...") || १. 'विषम पदोंको स्पष्ट करनेवाली व्याख्या'का १ नाम हैपञ्जिका । ( यथा-पाणिनीयशिक्षाकी पञ्जिका' नामकी व्याख्या). २. 'निबन्ध'के २ नाम हैं-निबन्धः, वृत्तिः । (यथा-निबन्धरंचनादर्श, प्रबन्धपारिजात,... 'ग्रन्थ )। ३. 'संग्रह'के २ नाम हैं-संग्रहः, समाहृतिः। (यथा-सुभाषितरत्नभाण्डागार, सुभाषितरत्नसन्दोह,...""ग्रन्थ) ।। ४. इसी प्रकार 'परिशिष्टम् , पद्धतिः, आदि ('आदि' शब्दसे-अध्यायः, उच्छवासः, परिच्छेदः, निःश्वासः, सर्गः, काण्डम्, अङ्कः, मयूख:, "अादिका संग्रह है ) को जानना चाहिए । ५. 'थोड़ेमें अधिक अर्थको सूचित करनेवाले पद्य'का १ नाम है'कारिका' । ( यथा- कारिकावली, साहित्यदर्पणकी कारिकाएँ,"...")। ६. 'जिसमें आन्वीक्षिकी आदि सब विद्याओंका वर्णन हो, उसका १ नाम है-'कलिन्दिका' ( + कडिन्दिका, कलन्दिका )। ७. 'नामोंके संग्रहवाले ग्रन्थ के २ नाम है-निघण्टुः, (पु ।+पु न ), नामसंग्रहः । ( यथा-मदनपालनिघण्टुः,....)॥ ८. 'इतिहास'के २ नाम हैं-इतिहास:, पुरावृत्तम् । ( यथा-नासिकेतोपाख्यान, महाभारत,...")। ६. 'पहेली, प्रहेलिका'के २ नाम हैं-प्रवह्निका (+प्रवह्ली), प्रहेलिका।. विमर्श-जिस पद्यका अर्थ पूर्वापरविरुद्ध प्रतीत होता हो, परन्तु विशेष अनुसन्धान करनेसे अविरुद्ध अर्थ निकले, उसे 'पहेली' कहते हैं, यथा-(क) "वृक्षाग्रवासी न च पक्षिराजत्रिनेत्रधारी न च शूलपाणि: । त्वग्वस्त्रधारी न - सिद्धयोगी जलं च बिभ्रन्न घटो न मेघः ॥” (ख) “सर्वस्वापहरो न तस्करगर.. रक्षो न रकाशनः, सर्पो नैव बिलेशयोऽखिलनिशाचारी न भूतोऽपि च । Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवकाण्डः २ ] 'मणिप्रभा’व्याख्योपेतः श्जनश्रुतिः किंवदन्ती खार्तैतिह्यं पुरातनी ||१७३ || ३ बार्ता प्रवृत्तिर्वृत्तान्त उदन्तो४ऽयाह्नयोऽभिधा । गोत्रसंज्ञानामधेयाऽऽख्याऽऽह्वाऽभिख्याश्च नाम च ॥ १७४॥ '५सम्बोधनममिन्त्रण६माह्वानं त्वभिमन्त्रणम् | ७सहूतिर्बहुभिः कृता ।। १७५ ।। . “आकारणं हवो हूतिः उदाहार उपोद्घात उपन्यासश्च वाङ्मुखम् । ६ व्यवहारो विवादः स्यात् १० शपथः शपनं शपः ।। १७६ ।। उपश्रुतिः ।। १७७ ।। ११ उत्तरं तु प्रतिवचः १२ प्रश्नः पृच्छाऽनुयोजनम् । कथङ्कथिकता चा१३थ देवप्रश्न अन्तर्धानपटुन सिद्धपुरुषो नाप्याशुगो मारुतस्तीक्ष्णास्यो न च सायकस्तमिह ये जानन्ति ते पण्डिताः ||" इन दोनों पद्योंका अर्थ प्रथमतः विरुद्ध प्रतीत होता है, किन्तु क्रमश: नारिकेलफल और मस्कुण ( खटमल ) अर्थ माने जानेपर सरल हो जाता है || १. 'जनश्रुति' के २ नाम हैं - जनश्रुतिः, किंवदन्ती ॥ २. 'प्राचीन बात' का १ नाम है - ऐतिह्यम् ॥ ७३ ३. 'बात, वृत्तान्त' के ४ नाम हैं - वार्ता, प्रवृत्तिः, वृत्तान्तः, उदन्तः ॥ ४. 'नाम, संज्ञा' के नाम हैं—आह्वयः, अभिधा, गोत्रम्, संज्ञा, नामधेयम्, श्राख्या, आह्ना, श्रभिख्या, नाम ( - मन्, पुन ) ॥ ५. 'सम्बोधन' के २ नाम हैं - संबोधनम् श्रामन्त्रणम् || " ६. ' आह्वान, पुकारना, बुलाना' के ५ नाम हैं—आह्वानम्, अभिमन्त्रणम्, आकारणम्, हवः, हूति: ( स्त्री ) ॥ ७. 'बहुत लोगों के द्वारा बुलाने का १ नाम है - संहूतिः ॥ ८. 'उपोद्घात' के ४ नाम हैं- उदाहारः, उपोद्घातः, उपन्यासः, वाङ्मुखम् ॥ ६. 'विवाद, झगड़ा के २ नाम हैं —— व्यवहारः, विवादः ॥ १०. 'शपथ, सौगन्ध' के ३ नाम हैं-- शपथ:, शपनम्, शपः ॥ ११. 'उत्तर, जवाब' के २ नाम हैं -- उत्तरम्, प्रतिवचः ( - चस् ) ।। १२. 'प्रश्न, सवाल' के ४ नाम हैं-- प्रश्नः, पृच्छा, अनुयोजनम् ( + अनुयोगः, पर्यनुयोगः), कथं कथिता ॥ १३. ‘देवोंसे पूछने’के २ नाम हैं – देवप्रश्नः, उपश्रुतिः । विमर्श —‘पुरुषोत्तम'देवनृपति' ने ' त्रिकाण्डशेष' नामक अपने ग्रन्थमें'चित्तोक्तिः पुष्पशकटी देवप्रश्न उपश्रुतिः' (२/८/२६) इस वचन द्वारा ' श्राकाशबाणी’के ‘चित्तोक्तिः, पुष्पःराकटी, दैवप्रश्नः, उपश्रुतिः' – ये ४ नाम कहे हैं । Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७ अभिधानचिन्तामणिः १चटु चाटु प्रियप्राय रप्रियसत्यं तु सूनृतम् । ३सत्यं सम्यक्समीचीनमृतं तथ्य यथातथम् ।। १७८ ॥ यथास्थितञ्च सद्भुते४ऽलीके तु वितथानृते । पूअथ क्लिष्टं संकुलश्च परस्परपराहतम् ।। १७६ ।। ६सान्त्वं सुमधुरं ग्राम्यमश्लीलं चम्लिष्टमस्फुटम् । हलुप्तवर्णपदं प्रस्त१०मवाच्यं स्यादनक्षरम् ॥ १८० ॥ ११अम्बूकृतं स्थूत्कारे १२निरस्तं त्वरयोदितम् ।. १३आम्रडितं द्विस्त्रिरुक्त१४मबद्धन्तु निरर्थकम् ।। १८१॥.. १५पृष्ठमांसादनं तद्यत् परोक्षे दोपकीतनम् । १. 'अधिकतर प्रिय ( खुशामदी ) बात' के २. नाम हैं-चटु, चाटु ।। २. प्रिय तथा सत्य वचन'का १ नाम है-सूनृतम् ॥ .... ३. 'सत्य वचन'के ८ नाम हैं-सत्यम् , सम्यक (-म्यञ्च ), समी-. चीनम्, ऋतम् , तथ्यम् , यथातथम् , यथास्थितम्, सद्भ तम् ॥ . ४. 'असत्य (झूठे) वचन के ३ नाम है-अलीकम् , वितथम् , अनृतम् (+असत्यम् , मिथ्या, मृषा, २ अव्य०)॥ . ५. 'परस्परमें विरुद्ध वचन'के २ नाम हैं-क्लिष्टम् , संकुलम् । ( यथा"अन्धो मणिमुपाविध्यत् तमनङ्गलिरासदत् । तमग्रीवः प्रत्यमुञ्चत् तमजिहोऽभ्यपूजयत् ॥” इस श्लोकमें अन्धे अादिके मणि छेदना आदि कार्य परस्परविरुद्ध होनेसे उक्त वचन 'क्लिष्ट' है ) ॥ ६. 'अत्यन्त मधुर वचन'का १ नाम है-सान्त्वम् । ७. 'अश्लील (दिहाती ) वचन'के २ नाम हैं-ग्राम्यम् , अश्लीलम् ॥ विमर्श-इस 'ग्राम्य' वचन के ३ भेद हैं-व्रीडाजनक, - जुगुप्साजनक और अमङ्गलजनक । 'श्रालङ्कारिकोंने 'ग्राम्य' तथा 'अश्लील को परस्पर पर्यायवाचक न मानकर भिन्नार्थक माना है। ८. 'अस्पष्ट वचन'का १ नाम है-म्लिष्टम् ।। ६. 'जिसके वर्ण या पद लुप्त हों (जिसका पूरा-पूरा उच्चारण नहीं किया गया हो), उस वचन'का १ नाम है-ग्रस्तम् ।। १०. 'अकथनीय वचन'के २ नाम हैं -अवाच्यम्, अनक्षरम् ।। ११. 'थूकसहित वचन'का १ नाम है--अम्बूकृतम् ।। १२. 'शीघ्र कहे गये वचन'का १ नाम है--निरस्तम् ॥ १३. 'दो-तीन बार कहे गये वचन'का १ नाम है-आम्र डितम् ।। १४. 'निरर्थक ( अर्थशून्य ) वचन'का १ नाम है-अबद्धम् ।। १५. 'परोक्ष में दोष कहने का १ नाम है-पृष्ठमांसादनम् ।। Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५ देवकाण्डः २] मणिप्रभा'व्याख्योपेतः शमिथ्याभियोगोऽभ्याख्यानं रसङ्गतं हृदयङ्गमम् ॥ १८२ ॥ ३परुषं निष्ठुरं रूक्षं विक्रुष्ट४मथ घोषणा । उच्चैर्युष्टं ५वर्णनेडा स्तवः स्तोत्रं स्तुतिर्नुतिः ।। १८३ ।। श्लाघा प्रशंसाऽर्थवादः ६सा तु मिथ्या विकत्थनम् । जनप्रवादः कोलीनं विगानं वचनीयता ।। १८४ ॥ स्यादवर्ण उपक्रोशो वादो निष्पर्यपात्परः। गर्हणा धिक्क्रिया निन्दा कुत्सा क्षेपो जुगुप्सनम् ।। १८५ ।। आक्रोशाभीषङ्गाक्षेपाः शापः १८सा क्षारणा रते। ११विरुद्धशंसनं गालि१२राशीमङ्गलशंसनम् ।। १८६ ।। १३श्लोकः कीर्तिर्यशोऽभिख्या समाज्ञा -- १. 'असत्य आक्षेपपूर्ण वचन ( दोष लगाना )का १ नाम है-अभ्या. ख्यानम् । ( यथा-चोरी अादि नहीं करनेपर भी किसीको चोरी करनेका दोष लगाना,...")॥ २. 'हृदयङ्गम (मनोहर ) वचन'के २ नाम हैं-सङ्गतम्, हृदयङ्गमम् ।। . ३. 'निष्ठुर. (रूखे ) वचन' के ४ नाम है-परुषम्, निष्ठुरम्, सक्षम्, विक्रुष्टम् (+कठोरम् ) ॥ ४. 'घोषणा (ऊँचे स्वरसे सबको सुनाकर कहा गया वचन )के २ नाम है-घोषणा, उच्चघुष्टम् ॥ . ५. 'स्तुति, प्रशंसा के ६ नाम हैं-वर्णना, ईडा, स्तवः, स्तोत्रम्, स्तुतिः, नुतिः, श्लाघा, प्रशंसा, अर्थवादः ।। - ६. 'झूठी प्रशंसाका १ नाम है-विकत्थनम् ।। . . ७. 'जनप्रवाद ( जनताके विरुद्ध वचन ) के ४ नाम हैं-जनप्रवादः,. कौलीनम्, विगानम्, वचनीयता । ८. 'निन्दा'के ११ नाम हैं-अवर्णः, उपक्रोशः, निर्वादः, परिवादः (+परीवाद: ), अपवादः, गर्हणा (+गीं ), धिक्रिया (+धिक्कारः ) निन्दा, कुत्सा, क्षेपः, जुगुप्सनम् (+जुगुप्सा )। ६. 'श्राक्षेप'के ४ नाम हैं-आक्रोशः, अभीषङ्गः, आक्षेपः, शापः ॥ १०. मैथुन-विषयक श्राक्षेप ( दोषारोपण )का १ नाम है-क्षारणा +आक्षारणा)॥ ११. 'गाली देने'का १ नाम है-(+विरुद्धशंसनम् ), गालिः (स्त्री) १२. 'आशीर्वाद'का १ नाम है-पाशीः (-शिष् । + मङ्गलशंसगम् ) ॥ १३. 'कीर्ति'के ५ नाम हैं-श्लोकः, कीर्तिः, यशः (-शस ), अभिख्या, समाज्ञा (+समाख्या)॥ Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणिः -१रुशती पुनः। अशुभा वाक् २शुभा कल्या ३चर्चरी चर्भटी समे ॥ १८ ॥ ४यः सनिन्द उपालम्भस्तत्र स्यात् परिभाषणम् । ५आपृच्छाऽऽलापः सम्भाषो६ऽनुलापः स्यान्मुहुर्वचः ॥ १८८ ॥ ७अनर्थकन्तु प्रलापो विलापः परिदेवनम् । हउल्लापः काकुवा१८गन्योऽन्योक्तिः संलापसङ्कथे ॥ १८ ॥ ११विप्रलापो विरुद्धोक्ति१२रपलापस्तु निह्नवः।। १३सुप्रलापः सुवचनं १४सन्देशवाक्त वाचिकम् ।। १६० ॥... १५आज्ञा शिष्टिनिराङनिभ्यो देशो नियोगशासने। अववादोऽप्य१६थाहूय प्रेषणं प्रतिशासनम् ॥ १६१॥ . १. 'अशुभ वाणी'का १ नाम है-कशती । यह शब्द. ('आभयलिङ्ग है, अतः 'रुशन्' शब्द:, रुशती वाक, रुशत् वचनम् ,..... "विशेष्यके अनुसार तीनो लिङ्गोंमें 'रुशत्' शब्दका प्रयोग होता है )॥ २. 'शुभ वाणी'का १ नाम है-कल्या ॥. ३. 'हर्ष-क्रीडासे युक्त वचन'के २ नाम हैं-चर्चरी, चर्भटी ।। ४. 'निन्दापूर्वक उपालम्भयुक्त वचन' का १ नाम है-परिभाषणम् ।। ५. 'श्रालाप'के ३ नाम हैं-आपृच्छा, आलापः, संभाषः ॥ ६. 'बार-बार कहे हुए वचन'का १ नाम है-अनुलापः ।। ७. 'अनर्थक वचन'का १ नाम है-प्रलापः ॥, ८. विलाप ( शोकयुक्त वचन ) के २ नाम है--विलापः, परिदेवनम् ।। ६. 'काकु ध्वनियुक्त वचन'के २. नाम हैं-उल्लापः, काकुवाक् (-वाच )॥ १०. 'परस्परमें बात-चीत करने के ३ नाम है-अन्योन्योक्तिः, संलापः, •संकथा ॥ ११. 'विरुद्ध वचन' के २ नाम हैं-विप्रलापः, विरुद्धोक्तिः ।। १२. सत्य विषयको छिपाकर बोलने के २ नाम हैं-अपलापः, निवः ।। १३ 'सुन्दर वचन'के २ नाम हैं-सुप्रलापः, सुवचनम् ॥ १४. 'मौखिक संदेश कहने के २ नाम है-संदेशवाक (-वाच), वाचिकम् ।। १५. 'आज्ञा देने के ८ नाम हैं-आशा, शिष्टिः, निर्देशः, आदेशः, निदेशः, नियोगः, शासनम्, अववादः ।। १६. 'बुलाकर भेजने'का १ नाम है--प्रतिशासनम् ॥ . Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 010 देवकाण्डः २] मणिप्रभा'व्याख्योपेतः १संवित् सन्धाऽऽस्थाभ्युपायः संप्रत्याङभ्यः परः श्रवः । अङ्गीकारोऽभ्युपगमः प्रतिज्ञाऽऽगूश्च सङ्गरः ॥ १६२ ।। २गीतनृत्यवाद्ययं नाट्य तौर्यत्रिकच तत् । ३सङ्गीतं प्रेक्षणार्थेऽस्मिञ्शास्त्रोक्त नाट्यधर्मिका ॥ १६३ ॥ ५गीतं गानं गेयं गीतिर्गान्धर्वक्ष्मथ नर्तनम् । नटनं नृत्यं नृत्तश्च लास्यं नाट्यश्च ताण्डवम् ॥ १६४ ॥ १. 'प्रतिज्ञा, प्रण' के १५ नाम है--संवित् (-विद् ), संधा, आस्था, अभ्युपायः, संश्रवः, प्रतिश्रवः, अाश्रयः, अङ्गीकारः अभ्युपगमः, प्रतिज्ञा, आगूः (-गूर स्त्री +आगू :-गुर् स्त्री), संगर: (+ समाधिः )। विमर्श--पक्षोक्ति तथा प्रकृतको अङ्गीकार करना--दोनों ही प्रतिज्ञा' हैं, इसी दृष्टि से यहां संवित्' अादि ५२ शब्दोंको पर्यायवाचक कहा गया है-'अमरकोष'कारने तो "संविदागू: प्रतिज्ञानं नियमाश्रवसंश्रवाः” (१।५।५)से इन ६ नामोको 'प्रतिज्ञा'का पर्यायवाचक और "अङ्गीकाराभ्युपगमप्रतिश्रयसमाधयः” ( ११५/५ )से इन ४ नामोंको स्वीकार'का पर्यायवाचक माना है । इनमें ऊकारान्त 'आगू' शब्दको 'खलपू' शब्द के समान तथा प्रक्षिप्त 'रेफान्त' 'आगुर' शब्दका रूप 'पुर' शब्दके समान होता हैं, दोनों ही शब्द स्त्रीलिङ्ग हैं । ___२. 'गीतम् , नृत्यम् , वाद्यम्' अर्थात् 'गाना, नाचना, और बाजा बजाना'-इन तीनोंके नाट्य ( नट कम ) में एक साथ होनेपर उस 'नाट्य'को 'तौर्यत्रिकम्' कहते हैं । ( वक्ष्यमाण शेष सबको 'नट नम्' कहते हैं )। ३. इन तीनों (गाना, नाचना और बाजा बजाना ) को जनताको दिखलाने के लिये करनेपर उसको 'संगीतम्' कहते हैं । ४. इन तीनों ( गाना, नाचना और बाजा बजाना )के भरतादिशास्त्रानुकूल प्रयोग करनेपर उसे 'नाट्यधर्मी' (+नाट्यधर्मिका ) कहते हैं ।। ५. 'गाना, गीत'के ५ नाम हैं-गीतम् , गानम् , गेयम् , गीतिः, गान्धर्वम् ।। विमर्श:-यद्याप भरतादिने गाने योग्यको गीतम्' गन्धोंके गानेको 'गान्धर्वम्' रागपूर्वक गानेको 'गीतम् प्रावशिक्यादि ध्रुवा रूपको 'गानम्' और पद, स्वर, ताल तथा लयपूर्वक गानेको 'गान्धवम्' कहते हुए उक्त गीत आदिमें परस्पर भेद प्रदर्शित किया है; तथापि उक्त विशिष्ट भेदका आश्रय यहाँ ग्रन्थकारने नहीं किया है ।। ६. 'नाचने'के ७ नाम हैं-~-नर्तनम् , नटनम् , नृत्यम् , नृत्तम् , लास्यम्; नाट्यम् (पु न , ताण्डवम् ।। Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणिः १मण्डलेन तुयन्नृत्तं स्त्रीणां हल्लीसकं हि तत् ।। २पानगोष्ठयामुच्चतालं ३रणे वीरजयन्तिका ॥ १६५ ॥ ४स्थानं नाट्यस्य रङ्गः स्यात् ५पूर्वरङ्ग उपक्रमः। ६अङ्गहारोऽङ्गविक्षेपो ७व्यञ्जकोऽभिनयः समौ ॥ १६६ ॥ स चतुर्विध आहार्यो रचितो भूषणादिना। वचसा वाचिकोऽङ्गेनाङ्गिकः सत्त्वेन सात्त्विकः ॥ १६७ ॥ हस्यान्नाटकं प्रकरणं भाणः प्रहसनं डिमः। व्यायोगसमवकारौ वीथ्यकेहामृगा इति ।। १६८ ॥ विमर्शः—यहाँपर भी भरतादि प्रतिपादित इनके परस्पर भेद-विशेषोंका आश्रय नहीं किया गया है, किन्तु सामान्यतः सबको पर्यायवाचक कहा गया है । १. बहुत सी स्त्रियोंका घूम-घूम मण्डलाकार रूपमें नाचनेका १ नाम हैहल्लीसकम् (न ।+पुन)॥ २. पानगोष्ठो ( मदिरा आदि पीने के स्थान ) में नाचने'का १ नाम है-उच्चतालम् ॥ ३. 'युद्ध भूमिमें नाचने'का १ नाम है-वीरजयन्तिका ॥ ५. 'नाट्यस्थल ( स्टेज )का १ नाम है-रङ्गः ॥ . ५. 'नाटकके श्रारम्भ' का १ नाम है-पूर्वरङ्गः ॥ ६. 'नाटकमें भावप्रदर्शनार्थ अङ्गोंके सञ्चालन करने के २ नाम हैं -- अङ्गहार:, अङ्गविक्षेपः ॥ ७. 'भावप्रदर्शन, अभिनय करने के २ नाम है-व्यञ्जकः, अभिनयः ॥ ८. उस 'अभिनय' के ४ भेद हैं-१ भूषणादिसे किये गये अभिनयको -आहार्यः, २-वचनमात्रसे किये गये अभिनयको 'वाचिकः,' अङ्गों ( हाथ पैर-भ्र आदिके सञ्चालन )से किये गये अभिनयको 'आङ्गिकः' और ४ सत्त्व (मन या गुण )से किये गये अभिनयको 'सात्त्विकः' कहते हैं । ६. 'उस अभिनेय'के १० प्रकार हैं-- नाटकम् , २ प्रकरणम् , ३ भाणः, ४ प्रहसनम् , ५ डिमः, ६ व्यायोगः, ७ समवकारः, ८ वीथी, ६ अङ्कः, और १० ईहामृगः। विमर्श :-नाटक आदि १० अभिनेय प्रकारोंका लक्षण तथा उनके अङ्गोपाङ्ग, भाषा, पात्र आदिका सविस्तर वर्णन 'साहित्यदर्पण में विश्वनाथ . महापात्र ने (६।२७८-५३४ ) में किया है, जिज्ञासुओंको उसे वहीं देखना चाहिए । यहाँपर केवल जिस कारिकामें उक्त नाटकादिका मुख्य लक्षण विश्वनाथने कहा है, उसकी संख्या तथा उदाहरणभूत ग्रन्थके नाममात्रका उल्लेख किया जाता है। १ नाटक (६।२८०), यथा-बालरामायणम् , अभिज्ञान Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवकाण्ड: २] मणिप्रभा'व्याख्यापेतः अभिनेयप्रकाराः स्युर्भाषाः षट् संस्कृतादिकाः। २भारती सात्त्वती कैशिक्यारभट्यौ च वृत्तयः ।। १६६ ॥ ३वाचं वादित्रमातोचं तूर्य तूरं स्मरध्वजः । शाकुन्तलम् ,....", २-करण ( ६।५२८), यथा-मृच्छकटिकम् , मालतीमाधवम् , पुष्पभूषितम् ;,...", ३--भाणः (६।५३०), यथा-लीलामधुकरः,........ ४-प्रहसनम् ( ६५५२ ), यथा --कन्दपंकेलिः,...., ५-डिमः (६ । ५३४), यथा-त्रिपुरदाह,............'६-व्यायोगः (६ । ५३१ ), यथा-भौगन्धिकाहरणम् ,....",७-समवकारः (६।५३२ ) यथा-समुद्रमथनम् ,....", ८-वीथी (६।५३७), यथा-मालविका,...., ६ अङ्गः (६।५३६), यथा-शर्मिष्ठाययातिः,... और १०-ईहामृगः (६१५३५), यथा--कुसुमशे वरावजयः,"....। "नाटकमथ प्रकरणं माणव्यायोगसमवकारडिभाः। ईहामृगाङ्कवीथ्यः प्रहसनमिति रूपकाणि दश । (६।२७८)" इस कारिकामं कंपक' ( अभिनेय )के १० भेदोंको कहकर उसीके आगेवाली कारिकामें १८ उपरूपकोंको भी 'विश्वनाथ महापात्र ने कहा है, यथा -"नाटिका त्रोटक गोष्ठी सट्टकं नाट्यसंशकम् । प्रस्थानोलाप्यकाव्यानि प्रेक्षणं ‘लासर्फ तथा ।। संलापकं श्रोगदितं शिल्पकं च विलासिका । दुर्मल्लिका प्रकरणी हल्लीशो माणिति च । अष्टादश प्राहुरुपरूपकाणि मनीषिणः । विना विशेष सर्वेषां लक्ष्म नाटयवन्मतम् । (६२)उक्त १८ उपरूपकोंके लक्षण श्रादि साहित्यदर्पणमें ही (६।५५७--५७०) देखना चाहिए । १. 'संस्कृतम् श्रादि' ( 'श्रादि' शब्द से-"प्राकृत, मागधी, शौरसेनी, पैशाची और अपभ्रंश का संग्रह है ) ६ भाषाएँ हैं। 'भाषा' शब्द स्त्रीलिङ्ग है ॥ ___. भारती, सात्वतो, कैशिकी, आरभटी'--ये ४ वृत्तियां हैं। 'वृत्तिः' शब्द स्त्रीलिङ्ग है। विमर्शरौद्र तथा बीभत्स रसमें 'भारती' वृत्ति, शृङ्गार रसमें 'कैशिकी' वृत्ति और वीर रसमें 'सास्वती' तथा 'श्रारभटी' वृत्तिका प्रयोग होता है । इनमें से प्रत्येकके ४-४ अङ्ग या भेद होते हैं, इनके मुख्य तथा अनादिका सलक्षण उदाहरण साहित्यदर्पणमें (६।४१४-४३५ तथा २८८-२८६) देखना चाहिए। . .३. 'बाबा'के ६ नाम है-वाद्यम्, वादित्रम् , आतोद्यम् , तुर्यम् (पु न), तूरम्, स्मरध्वजः ।। Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८० अभिधानचिन्तामणिः १ततं वीणाप्रभृतिकं २तालप्रभृतिकं घनम् ॥ २०० ॥ ३ वंशादिकन्तु शुषिर४ मानद्धं मुरजादिकम् । ५वीणा पुनर्घोषवती विपञ्ची कण्ठकूणिका ॥ २०१ ॥ वल्लकी ६साऽथ तन्त्रीभिः सप्तभिः परिवादिनी । ७ शिवस्य वीणाऽनालम्बी सरस्वत्यास्तु कच्छपी ॥ २०२ ॥ नारदस्य तु महती १० गणानान्तु प्रभावती । ११ विश्वावसोस्तु बृहती १३चण्डालानान्तु कटोलवीरणा चाण्डालिका च सा । १२ तुम्बुरोस्तु कलावती ॥ २०३ ॥ १. 'वीणा' आदि ( 'आदि' शब्द से - "सैरन्ध्री, रावणहस्त, " का संग्रह है ) तारसे बजनेवाले बाजाओं' का १ नाम है किन्नर, 'ततम् ' ॥ २. 'ताल आदि ( घरी, घंटा, झांझ आदि ) कांसे के बने हुए बाजाओ' का १ नाम है - 'घनम्' ॥ ३. 'वंशी आदि ( 'आदि' शब्द से - " नालिका, नलक, · संग्रह है ) छिद्र वाले बाजाका १ नाम है - शुषिरम् ॥ ४. 'मुरज आदि ( 'आदि' शब्द से ढोल, नगाड़ा, पखावज, तबला,' ... " का संग्रह है ) चमड़े से मढ़े हुए बाजाश्रों का १ नाम हैआनद्धम् (+ अवनद्धम् ) । ( इस प्रकार ' बाजाश्रों' के ४ भेद हैं- ततम्, घनम्, शुषिरम् और श्रानद्धम् ) ॥ ५. 'वीणा' के ५ नाम हैं- वीणा, घोषवती, विपञ्ची, कण्ठकूणिका, वल्लकी ॥ ६. 'सात तारोंसे बजनेवाली वीणा ( सितार )' का १ नाम हैपरिवादिनी ॥ ७. 'शिवजीकी वीणा' का १ नाम है- श्रनालम्बी ॥ ८. 'सरस्वती देवीकी वीणा' का १ नाम है— कच्छपी ॥ ६. 'नारदजीकी बीणा'का १ नाम है - महती ।। १०. 'गणोंकी वीणा' का १ नाम है -- प्रभावती ॥ ११. 'विश्वावसुकी वीणा' का १ नाम है - बृहती ॥ १२. 'तुम्बुरुकी वीणा' का १ नाम है - कलावती ॥ १३. ‘चण्डालोंकी वीणा' के २ नाम हैं--कटोलवीणा, चाण्डालिका ॥ . शेषश्चात्र -- चण्डालानां तु वल्लकी । काण्डवीणा कुवीणा च डक्कारी किन्नरी तथा । सारिका खुङ्खणी च । का Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवकाण्ड: २] मणिप्रभा'व्याख्योपेतः १कायः कोलम्बकस्तस्या २ उपनाहो निबन्धनम् ॥ २०४ ॥ ३दण्डः पुनः प्रवालः स्यात् ४ककुभस्तु प्रसेवकः । ५मूले वंशशलाका स्यात्कलिका कूणिकाऽपि च ॥ २०५ ॥ '६कालस्य क्रियया मानं तालः ७साम्यं पुनर्लयः। पद्रत विलम्बितं मध्यमोघस्तत्वं घनं क्रमात् ॥ २०६॥ स्मृदङ्गो मुरजः १०सोऽकयालिङ्ग)लक इति त्रिधा। । १. 'ताररहित वीणाके ढाँचे'का १ नाम है-कोलम्बकः ।। २. 'वीणामें जहां तार बांधे जाते हैं, उस स्थान'का १ नाम हैउपनाहः॥ ३. 'वीणाके दण्ड'का १ नाम है-प्रवालः ( पु न ) ॥ ४. 'वीणाके दण्डके नीचेवाले बड़े भाण्ड'के २ नाम हैं- ककुभः, प्रसेवकः॥ ५. 'वीणाके मूलमें स्थित तार बांधे जानेवाली वंशशलाका'के २ नाम हैंकलिका, कूणिका ॥ ६. 'ताल (गानेके समयमें नियामक कारण )'का १ नाम हैताल: ॥ ७. 'लय (वक्ष्यमाण 'द्रत, विलम्बित' श्रादि बाजाओंके ध्वनिकी परस्परमें समानता )का १ नाम है-लयः । (कुछ लोग 'ताल-विशेषको ही 'लय' कहते हैं )॥ . ८. 'द्रत, विलम्बित तथा मध्य लयो'का क्रमशः १-१ नाम है-ओघ:, तत्वम् , घनम् (+अनुगतम् )। - विमर्श-नाट्यशास्त्रमें 'द्रत' आदि लयोंके अनुसार क्रमशः 'ओघः' श्रादि वाद्य-प्रकार हैं, ऐसा कहा गया है । ६. 'मृदङ्ग'के २ नाम हैं-मृदङ्गः, मुरजः ॥ १०. वह 'मृदङ्ग' तीन प्रकारका होता है-१ अङ्की (-किन् ।+अङ्कयः), २ आलिङ्गी (- लिङ्गिन् । + प्रालिङ्गयः ) और ऊर्ध्वकः (+आभोगिकः) । विमर्श-प्रथम 'अङ्की' मृदङ्ग हरीतकी (हरे)के श्राफारके समान अर्थात् बीचमें मोटा तथा दोनों छोरमें पतला होता है, यथा-पखावज, इसे क्रोडके मध्य (गोद)में रखकर बजाया जाता है । द्वितीय 'पालिङ्गी' मृदङ्ग गोपुच्छके श्राकारके समान एक भागमें मोटा तथा दूसरे भागमें क्रमशः पतला होता है, यथा-तबला, इसे वाम भागमें रखकर बजाया जाता है । तृतीय 'ऊध्र्वक' मृदङ्ग यव ( जो) के आकारके समान होता है, इसे दहिने भागमें रखकर बजाया जाता है । ऐसा नाट्यशास्त्रमें कहा गया है । ६ अ० चि० Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणिः १स्याद यशःपटहो ढका २ भेरी दुन्दुभिरानकः ।। २०७ ।। पटहोऽ३थ शारिका स्यात्कोणो वीणादिवादनम् । ४शृङ्गारहाम्गकरुणा रौद्रवीरभयानकाः ॥२०॥ बीभत्साद्भतशान्ताश्च रसा ५भावाः पुनत्रिधा । स्थायिसात्त्विकसञ्चारिप्रभेदैः१. 'ढक्का (नगाड़ा) क २ नाम हैं-यशःपटहः, ढका ॥ २. 'दुन्दुभि'के ४ नाम है-भेरी, दुन्दुभिः (पु, आनकः (पु+पु न ), पटहः । विमर्श-कतिपय कोषकारोंने २-२ पर्यायोंको एकार्थक माना है || . शेषश्चात्र-अथ ददरे कलशीमुखः ।। सूत्रकोणो डमरुकं समौ पणवकिङ्कणौ । शृङ्गवाद्ये शृङ्गमुखं हुडुकस्तालमर्दकः॥ काहला तु कुहाला स्याच्चएडकोलाहला च सा । संवेशप्रतिबोधार्थ द्रगडद्र कटावुभौ ।। देवतार्चनतूर्ये तु धूमलो बलिरित्यपि । क्षुण्णकं मृतयात्रायां माङ्गले प्रियवादिका। रणोद्यमे त्वर्धतूरो वाद्यभेदास्तथाऽपरे । डिण्डिमो झझरो मड्डुस्तिमिला किरिकिच्चिका ॥ लम्बिका टट्टरी बेध्या कलापूरादयोऽपि च ।। ३. 'वीणा, सारङ्गी श्रादि बजानेके लिए धनुषाकार टेढ़ा काष्ठविशेष' के २ नाम हैं-शारिका, कोण: (पु । +पु न )॥ ४. 'शृङ्गार: (पु न ।+पु), हास्यः (+न), करुण: (+करुणा, स्त्री), रौद्रः (+न), वीरः, भयानकः, बीभत्सः, अद्भुतः, शान्तः (+४ न । ८पु)--'काव्य' में ये 'रस' कहे गये है, रस:' अर्थात् उक्त 'रस' शब्द 'पुं, न' है ।। विमर्श-गौड तथा मुनीन्द्रने 'वात्सल्यम् ( वत्सलता )को दशम रस मानकर दस रस है ऐसा कहा है। इन शृङ्गार आदि नप रसोंके लक्षण, श्रालम्बन, व्यभिचारिभाव, अनुभाव, वर्ण, देवता श्रादि साहित्यदर्पणमें (३।२१४-२४४ ) देखें ॥ ५. स्थायी (-यिन् ), संचारी (-रिन् ), सात्त्विकः, -इन भेदोंसे भाव'के ३ भेद हैं, 'भावः' शब्द पुंल्लिङ्ग है ।। १. तदाह गौड: शृङ्गारवीरौ बीभत्सं रौद्रं हास्यं भयानकम् । करुणा चाद्भुतं शान्तं वात्सल्यं च रसा दश ।। इति ।। तथा च विश्वनाथ: वत्सलश्च रस इति तेन स दशमो मतः । स्फुटं चमत्कारितया वत्सलञ्च रसं विदुः ।। (सा० द० ३२४५) Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवकाण्डः २] भणिप्रभा'व्याख्योपेतः -१स्याद्रतिः पुनः ॥ २०६ ॥ रागोऽनुरागोनुरतिरहसस्तु हसनं हसः। घर्घरो हासिका हास्यं ३तत्रादृष्टरदे स्मितम् ।। २१० ॥ वक्रोष्ठिका४ऽथ हसितं किञ्चिदृष्टरदाङ्करे। पकिञ्चिच्छृते विहसितमट्टहासो महीयसि ॥ २११॥ ७अतिहासस्त्वनुस्यूतेऽपहासोऽकारणात् कृते ।। हलोत्प्रासे त्वाच्छुरितकं हसनं स्फुरदोष्ठके ।। २१२ ।। १०शोकः शुक शोचनं खेदः ११क्रोधो मन्युः क्रुधा रूषा। ऋत्कोपः प्रतिघो रोषो स्ट चो१२त्साहः प्रगल्भता ॥२१३ ॥ अभियोगोधमौ. प्रौढिरुद्योगः कियदेतिका । अध्यवसाय ऊ|१३ऽथ वीर्य सोऽतिशयान्वितः ।। २१४ ॥ To १. रति, अनुराग' के ४ नाम हैं-रतिः, रागः, अनुरागः, अनुरतिः ।। २. 'हसने'के ६ नाम हैं-हासः, हसनम्, हसः, घघर:, हासिका, हास्यम् ॥ ३. 'मुस्कान' ( जिस हँसनेमें दाँत नहीं दिखलायी पड़े, उस )के २ नाम हैं-स्मितम्, बकोष्ठिका (स्त्री न)। ४. “जस हँसनेमें दांतका थोड़ा-सा भाग दिखलायी पड़े, उस'का १ नाम है-हसितम् ॥ ५. 'जिस हँसनेमें थोड़ा शब्द सुनाई पड़े, उसका नाम है-विहसितम् ॥ ६. 'जिस हँसनेमें अधिक शब्द सुनाई पड़े, उस'का १ नाम है-अट्टहासः ॥ ७. 'निरन्तर हँसने'का १ नाम है-अतिहासः ।। ८. निष्कारण हँसने'का १ नाम है-अपहासः ॥ ६. 'जिस हँसनेसे दूसरेको अमर्ष हो जाय, उस'का १ नाम हैआच्छुरितकम् ( + अवच्छुरितम् ) ।। विमर्श-स्मितम् ( २ । २१० )से लेकर यहाँ (२ । २१२ ) तक ८ भेद 'हसने के हैं ।। १०. 'शोक'के ४ नाम है-शोक:, शुक (-च, स्त्री), शोचनम्, खेदः ॥ ११. 'क्रोधके ६ नाम है-क्रोधः, मन्युः (पु), क्रुधा, रूषा, क्रुत् (-ध, स्त्री ), कोपः, प्रतिघः, रोषः, रुट (-ए , स्त्री )। १२. 'उत्साह'के ६ नाम हैं-उत्साहः, प्रगल्भता, अभियोगः, उद्यमः (पुन ), प्रौढिः, उद्योगः, कियदेतिका, अध्यवसायः, ऊर्जः (-र्जस् न )॥ १३. 'वीर्य, अत्युन्नत उत्साहका १ नाम है- वीर्यम् ।। Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणिः १भयं भीéतिरातङ्क आशङ्का साध्वसं दरः। भिया च तच्चाहिभयं भूपतीनां स्वपक्षजम् ॥ २१५ ।। ३अदृष्टं वह्नितोयादे४दृष्टं स्वपरचक्रजम् । ५भयङ्करं प्रतिभयं भीमं भीष्मं भयानकम् ।। २१६ ॥ भीषणं भैरवं घोरं दारुणश्च भयावहम् । ६जुगुप्सा तु घृणाऽथ स्याद्विस्मयश्चित्रमद्भतम् ॥ २१७ ॥ चोद्याश्चर्ये शमः शान्तिः शमथोपशमावपि । तृष्णाक्षयः स्थायिनोऽमी रसानां कारण क्रमान् ॥ २१८ ॥ . १०स्तम्भो जाड्यं ११स्वेदो धर्मनिदाघौ १२पुलकः पुनः। रोमाञ्चः कण्टको रोमविकारो रोमहर्षणम् . ॥ २१६ ।। रोमोद्गम उद्घषणमुल्लकसनमित्यपि । १. 'भय'के ८ नाम है-भयम्, भीः, भीतिः (२ स्त्री), श्रातङ्कः, आशङ्का, साध्वसम्, दरः (पु न ), भिया । २. 'राजाओंका अपने पक्षवालोंसे होनेवाले भय'का १ नाम हैअहिभयम् ॥ ३. 'श्राग-पानी अादिसे होनेवाल भय'का १ नाम है-अदृष्टम् ।। ४. 'अपने तथा परराष्ट्रसे होनेवाले भय'का १ नाम हैं-दृष्टम् ।। ५. 'भयङ्कर, डरावना'के १० नाम हैं-भयङ्करम् , प्रतिभयंम् , भीमम् , भीष्मम् , भयानकम् , भीषणम् , भैरवम् , घोरम् , दारुणम् , भयावहम् ।। शेषश्चात्र-भयङ्करे तु डमरमाभीलं भासुरं तथा । ६. 'घृणा'के २ नाम हैं-जुगुप्सा, घृणा ।। ७. 'अाश्चर्य'के ५ नाम है-विस्मयः, चित्रम् , अद्भुतम् , चोद्यम् , आश्चयम् ॥ शेषश्चात्र-आश्चर्ये फुल्लक मोहो वीदयम् । ८. 'शान्ति'के ५ नाम हैं-शमः शान्तिः, शमथः, उपशम:, तृष्णाक्षयः ।। ६. पूर्वोक्त (२।२०८-२०६) शृङ्गार आदि ६ रसोंके ये 'रति' आदि ६ ( रतिः, हास:, शोकः, क्रोधः, उत्साहः, भयम् , जुगुप्सा, विस्मयः, शमः ) क्रमशः 'स्थायी भाव' हैं । १०. 'स्तम्भ, जडता'के २ नाम हैं-स्तम्भः, जाड्यम् ॥ ११. 'स्वेद, पसीना'के ३ नाम हैं-स्वेदः, धर्मः, निदाघः ।। १२. 'रोमाञ्च'के ८ नाम हैं-पुलकः ( पु न), रोमाञ्चः, कण्टकः, (पु न ), रोमविकारः, रोमहर्पणम् , रोमोद्गमः, उधुषणम् , उल्लकसनम् । Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवकाण्डः २.] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः १स्वरभेदस्तु कल्लत्वं स्वरे २कम्पस्तु वेपथुः ।। २२० ।। ३वैवण्यं कालिका४ऽथाश्रु बाष्पो नेत्राम्बु रोदनम् । अस्रमनु प्रलयस्त्वचेष्टते३त्यष्ट सात्त्विकाः ॥ २२१ ॥ ७धृतिः सन्तोषः स्वास्थ्यं स्या८दाध्यानं स्मरणं स्मृतिः। . स्मतिर्मनीषा बुद्धिीर्धिषणाज्ञप्तिचेतनाः ॥२२२ ॥ प्रतिभाप्रतिपत्प्रज्ञाप्रेक्षाचिदुपलब्धयः । संवित्तिः शेमुषी दृष्टिः १०सा मेधा धारणक्षमा ॥ २२३ ॥ ११पण्डा तत्त्वानुगा १२मोक्षे ज्ञानं १३विज्ञानमन्यतः। १४शुश्रूपा श्रवणञ्चैवं ग्रहणं धारणं तथा ॥२२४ ।। १. 'स्वरमें अव्यक्त भाव होने का १ नाम हैं-स्वरभेदः ।। २. 'कम्पन' के २ नाम हैं—कम्पनम् , वेपथुः (पु)॥ ३. 'विवर्णता ( फीकापन.)'के २ नाम हैं-वैवय॑म् , कालिका ।। ४. 'आंसू'के ६ नाम हैं-अश्रु (न ) बाष्पम् (पु न ), नेत्राम्बु, रोदनम् , अस्रम् , अनु (न )॥ शेषश्चात्र-लोतस्तु दृग्जले । ५. 'मूर्छा'के २ नाम हैं-प्रलयः, अचेष्टता (+मोहः, मूर्छा )। . ६. पूर्वोक्त (२।२०८-२०६ ) 'शृङ्गार' आदि ६ रसोंके ये 'स्तम्भ' श्रादि ८ ( स्तम्भः, स्वेदः, रोमाञ्चः, स्वरभेदः, कम्पः, वैवर्ण्यम् , रोदनम् और प्रलयः ) 'सात्त्विक भाव' हैं ।। ७. 'धृति, धैर्य'के ३ नाम हैं-धृतिः (+धैर्यम् ), संतोषः, स्वास्थ्यम् ॥ ८. 'स्मरण'के ३ नाम हैं-श्राध्यानम् , स्मरणम् , स्मृतिः ।। ६. 'बुद्धि'के १६ नाम हैं-मतिः, मनीषा, बुद्धिः, धीः, धिषणा, शप्तिः, चेतना, प्रतिभा, प्रतिपत् (-पद् ), प्रज्ञा, प्रेक्षा, चित् (-द् , स्त्री), उपलब्धिः, संवित्तिः, शेमुषी, दृष्टिः ॥ १०. 'धारण करनेवाली बुद्धि'का १ नाम है-मेधा ।। ११. 'तत्त्वानुगामिनी बुद्धि'का १ नाम है-पण्डा । १२. 'मोक्ष-विषयिणी बुद्धि'का १ नाम है-ज्ञानम् ॥ १३. 'विज्ञान' अर्थात् 'शिल्प-चित्रकलादि-विषयिणी बुद्धि'का १ नाम हैविज्ञानम् ॥ - १४. 'बुद्धि'के ८ गुण हैं, उनके क्रमशः पृथक-पृथक् १-१ नाम हैंशुश्रषा ( सुननेकी इच्छा ), श्रवणम् (सुनना ), ग्रहणम् ( ग्रहण करना, लेना), धारणम् (धारण किये हुएको नहीं भूलना), ऊहः (युक्तिसंगत Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६ श्रभिधानचिन्तामणिः ऊहोsपोहोऽर्थविज्ञानं तत्त्वज्ञानच धीगुणाः १व्रीडा लज्जा मन्दाक्षं ह्रीस्त्रपा २साऽपत्रपाऽन्यतः ।। २२५ ।। ३ जाड्यं मौख्यं ४ विषादोऽवसादः सादो विषण्णता । मदो मुन्मोहसम्भेदो ६व्याधिस्त्वाधी रुजाकरः ।। २२६ ।। ७ निद्रा प्रमोला शयनं संवेशस्वापसंलयाः 1 नन्दीमुखी श्वासहेतिस्तन्द्रा सुप्तन्तु साऽधिका ॥ २२७ ॥ औत्सुक्यं रणरणकोत्कण्ठे श्रायल्लकारती हृल्लेखोत्कलिके चा१०थावहित्थाऽऽकारगोपनम् ॥ २२८ ॥ ११ शङ्काऽनिष्टोत्प्रेक्षणं स्या१२ च्चापलन्त्वनवस्थितिः । १३ श्रालस्यं तन्द्रा कौसीद्यं तर्क ), अपोह: ( दूषित पक्षका खण्डन करना ), अर्थविज्ञानम् ( अर्थको यथावत् जानना ), तत्त्वज्ञानम् ( वास्तविक तत्त्वका ज्ञान ). ।। १. 'लज्जा' के ५ नाम हैं - व्रीडा ( + वीड: ), लज्जा, मन्दाक्षम्, ही : (स्त्री), त्रपा ॥ २. ' दूसरे से लज्जा होने' का १' नाम है - अपत्रपा ॥ ३. 'मूर्खता' के २ नाम हैं - जाड्यम्, मौख्यम् ॥ ४. 'विषाद के ४ नाम हैं- विषादः, अवसादः, सादः, विषण्णता ।। ५. 'मद ( नशा, श्रानन्द तथा संमोहका संयोग ) ' का १ नाम है - मदः ॥ ६. 'रोग उत्पन्न करनेवाली मानसिक पीडा'का १ नाम है - व्याधिः ॥ ७. 'नींद' के नाम हैं-निद्रा, प्रमीला, शयनम्, संवेशः, स्वापः, संलयः, नन्दीमुखी, श्वासहेतिः, तन्द्रा ( + तन्द्री, तन्द्रिः ) | ( किसी-किसीके मतसे 'नन्दीमुखी' तथा 'श्वासहेतिः' ये २ नाम 'सोये हुए ' के हैं ) ।। शेषश्चात्र - निद्रायां तामसी । ८. 'अधिक नींद'का १ नाम है -सुप्तम् ।। शेषश्चात्र - सुप्ते सुष्वापः सुखसुप्तिका ॥ ६. 'उत्सुकता' के ७ नाम हैं— श्रौत्सुक्यम्, रणरणकः उत्कण्ठा ( +उअरति: (स्त्री), हृल्लेख:, उत्कलिका ॥ स्कण्ठः, आयल्लकम् , १० : 'भ्र-विकार मुखरागादिरूप आकारको छिपाने' का १ नाम हैहित्था ( स्त्री न ) | शेषश्चात्र —- आकारगूहने चावकटिकाऽवकुटारिका । गृहजालिका ११. 'शङ्का ( अनिष्टकी संभावना )' का १ नाम है - शङ्का ॥ १२. 'चपलता' के २ नाम हैं - चापलम्, नवस्थितिः ॥ १३. 'श्रालस्य' के ३ नाम हैं— श्रालस्यम्, तन्द्रा, कौसीद्यम् ॥ Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः - १हर्षश्चित्तप्रसन्नता ॥ २२६ ॥ ह्लादः प्रमोदः प्रमदो मुत्प्रीत्यामोदसम्मदाः । आनन्दानन्दथू गर्वस्त्वहङ्कारोऽवलिप्तता ॥ २३० ॥ दर्पोऽभिमानो ममता मानश्चित्तोन्नतिः स्मयः । ३स मिथोऽहमहमिका ४या तु सम्भावनाऽऽत्मनि ॥। २३१ ॥ दर्पात्साऽऽहोपुरुषिका स्या५दहम्पूर्विका पुनः । श्रहं पूर्वमहं पूर्व मि६त्युग्रत्वन्तु चण्डता ।। २३२ ।। प्रबोधस्तु विनिद्रत्वं ग्लानिस्तु बलहीनता । ६ दैन्यं कार्पण्यं १० नमस्तु क्लमः क्लेशः परिश्रमः ॥ २३३ ॥ प्रयासायासव्यायामा ११ उन्मादश्चित्तविप्लवः १२ मोहो मौन्य १३ चिन्ता ध्यानम् - 1 देवकाण्डः २ ] १. 'हर्ष' के ११ नाम हैं - हर्षः, चित्तप्रसन्नता, ह्लादः, प्रमोदः, प्रमदः, भुत् (-दू, स्त्री ), प्रीतिः, ग्रामोद:, संमदः, आनन्दः, आनन्दथुः ( पु ) ।। २. 'श्रहङ्कार' के ६ नाम हैं - गर्वः, अहङ्कारः, अवलिप्तता ( + अवलेपः ), दर्प:, श्रभिमानः, ममता, मान: ( पु न ), चित्तोन्नति, स्मयः ॥ ८७ ३. ( मैं बलवान् हूँ, मैं बलवान् हूँ, इत्यादि रूपमें एकाधिक व्यक्तियोंका ) 'परस्पर में अहङ्कार करने' का १ नाम है - ग्रहमहमिका || ४. 'अहङ्कारके अपने विषयमें संभावना करने का १ नाम हैपुरुषिका ।। ५. 'मैं आगे, मैं श्रागे' इस प्रकार विचार रखने या कहने' का १ नाम है - अहं पूर्विका ( + प्रथमिका, अहमग्रिका ) | ६, 'उग्रता, अधिक तेजी' के २ नाम हैं- उग्रत्वम्, चण्डता ॥ ७. 'प्रबोध, जगने के २ नाम हैं- प्रबोधः, विनिद्रत्वम् ॥ ८. 'ग्लानि (क्षीणशक्ति होने का १ नाम हैं - ग्लानि: ( स्त्री ) ॥ ६. 'दीनता' के २ नाम हैं - दैन्यम्, कार्पण्यम् ॥ १०. 'परिभ्रम' के ७ नाम हैं- श्रमः क्लमः, क्लेशः, परिश्रमः, प्रयासः, श्रायासः, व्यायामः ॥ ११. 'उन्माद ( चित्तका विक्षिप्त होना - पागलपन )' के २ नाम हैंउन्मादः, चित्तविप्लवः ॥ १२. ' मोह ( बेहोशी ) ' के २ नाम हैं - मोह:, मौढ्यम् ॥ १३. 'ध्यान' के २ नाम हैं - चिन्ता, ध्यानम् ॥ Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८ अभिधानचिन्तामणिः -१अमर्षः क्रोधसम्भवः ॥२४॥ गुणो जिगीषोत्साहवारस्त्रासस्त्वाकस्मिकं भयम् । ३अपस्मारः स्यादावेशो ४निर्वेदः स्वावमाननम् ॥ २३५ ।। आवेगस्तु त्वरिस्तूर्णिः संवेगः सम्भ्रमस्त्वरा । ६वितर्कः स्यादुन्नयनं परामर्शो विमर्शनम् ॥ २३६ ॥ अध्याहारस्तर्क ऊहोऽसूयाऽन्यगुणदूषणम् । स्मृतिः संस्था मृत्युकालौ परलोकगमोऽत्ययः ॥ २३७ ॥ .. पञ्चत्वं निधनं नाशो दीर्घनिद्रा निमीलनम्। . दिधन्तोऽस्तं कालधर्मोऽवसानं हसा तु सर्वगा ॥ २३८ ।। मरको मारि१त्रयस्त्रिंशदमी व्यभिचारिणः। . ११म्युः कारणानि कार्याणि सहचारीणि यानि च ॥ २३६ ॥ १. विजयेच्छाके उत्साहसे युक्त क्रोधोत्पन्न गुण ( प्रतिकार करनेकी इच्छा )' का १ नाम है-अमर्षः ॥ २. 'अाकस्मिक भयका १ नाम है-त्रासः॥ ३. 'मृगी (एक प्रकारका रोग-विशेष )का १ नाम है-अपस्मारः ।। ४. 'अपनेको हीन समझना'का १ नाम है-निर्वेदः । ५. 'जल्दीबाजी के ६ नाम हैं-श्रावेगः, त्वरिः, तर्णिः (२ स्त्री), संवेगः, संभ्रमः, त्वरा ॥ ६. 'तक के ७ नाम हैं -वितर्कः, उन्नयनम् , परामर्शः, विमर्शनम्, अध्याहारः, तर्कः (पु । + पु न ), ऊहः (+उहा)॥ ७. 'दूसरेके गुणको भी दोष बतलाना'का १ नाम है-असूया ॥ ८. 'मरने के १५ नाम हैं-मृतिः, संस्था, मृत्युः (पु स्त्री), काल:, परलोकगमः, अत्ययः, पञ्चस्वम्, निधनम् (पु न), नाशः दीर्घनिद्रा, निमालनम् दिष्टान्तः, अस्तम्, कालधर्मः, अवसानम् ।। ६. 'मारी' ( हैजा, प्लेग आदि किसी रोग या उपद्रवके कारण एक साथ बहुत लोगोंके मरने ) के २ नाम हैं-मरकः, मारिः (स्त्री)॥ १०. पूर्वोक्त ( २।२२२-२३८) ये 'धृतिः' आदि ३३ भाव 'व्यभिचारी भाव' हैं । 'व्यभिचारी' (- रिन् ) शब्द पुंल्लिङ्ग है। ११. पूर्वोक्त ( २।२१६-२३८ ) रति' आदि ६ स्थायी भावों के, लोकमें आलम्बन (स्त्री आदि) तथा उद्दीपन (चन्द्र, मलयवायु, उद्यानादि ) जो कारण हैं, वचन आदि अभिनयसे युक्त स्थायिव्यभिचारिरूप उन चित्तवृत्तियोंको काव्य तथा नाट्यमें विभाव' कहते हैं। तथा उन 'रति' आदि ६ स्थायी भावोंके कटाक्ष, बाहु सञ्चालनादिरूप जो कार्य हैं, स्थायि-व्यभिचारिरूप Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवकाण्ड: २] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः रत्यादेः स्थायिनो लोके तानि चेत्काव्यनाट्ययोः । विभावा अनभावाश्च व्यभिचारिण एव च ॥ २४० ॥ व्यक्तः स तैर्विभावाद्यैः स्थायी भावो भवेद्रसः। १पात्राणि नाट्येऽधिकृतास्तत्तद्वेषस्तु भूमिका ॥ २४१ ॥ ३शैलूषो भरतः सवेकेशी भरतपुत्रकः । धर्मीपुत्रो रङ्गजायाऽऽजीवो रङ्गावतारकः ॥ २४२ ॥ नटः कृशाश्वी शैलाली ४चारणस्तु कुशीलवः । ५भ्रभ्र भ्रूभृपरः कुंसो नटः स्त्रीवेषधारकः ॥ २४३ ।। वेश्याऽऽचार्यः पीठमर्दः ७सूत्रधारस्तु सूचकः । चित्तवृत्तिविशेषको सामाजिक ( दर्शक ) स्वयं अनुभव करता हुआ जिनके द्वारा अनुभावित होता है, उन्हें काव्य तथा नाट्यमें 'अनुभाव' कहते हैं । और उन 'रति' आदि ६ स्थायी भावोंके. सहचारी पूर्वोक्त (२।२२२-२३८) 'धृति' श्रादि ३३ 'व्यभिचारी भाव जिन विभावादि भावोंसे अभिव्यक्त ( सामाजिकों ( दर्शकों )के वासनारूपसे स्थित ) होते हैं, वह रति' आदि स्थायी भाव कवियों एवं सहृदयोंसे आस्वादित होनेके कारण शृङ्गारादि 'रस' कहलाता है। विमर्शः-रति श्रादि ६ स्थायी भावोंके 'कारण, कार्य, तथा सहचारी' भाव काव्य तथा नाट्यमें क्रमशः 'विभाव, अनुभाव तथा व्यभिचारी' कहलाते हैं और उन (विभाव, अनुभाव तथा व्यभिचारी) भावोंसे अभिव्यक्त-दर्शकोंके वासनारूपसे स्थित-उस रति आदि स्थायी भावका ही कवि सहृदय जन आस्वादनकर श्रानन्दानुभव करते हैं, अत एव वे ( रत्यादि स्थायी भाव) ही क्रमशः शृङ्गारादि रस कहलाते हैं । - १. 'नाट्यमें अधिकृत व्यक्तियों ( ऐक्टरों, अभिनय करनेवालों )'का १ नाम है-पात्रम् ॥ .. २. 'उन पात्रोंके वेष-भूषा'का १ नाम है-भूमिका ॥ ३. 'नट'के ११ नाम हैं-शैलूषः, भरतः, सर्वकेशी (-शिन् ), भरतपुत्रकः, धर्मीपुत्रः, रंगजीवः, जायाजीवः, रङ्गावतारकः, नटः, कृशाश्वी (-श्विन् ), शैलाली (-लिन् ),॥ ४. 'चारण ( देशान्तरमें भ्रमण करनेवाले नट ) के २ नाम हैचारणः, कुशीलवः ॥ ५. 'स्त्रीका वेष धारण करनेवाले नट' के ४ नाम है-कुंसः, झुकुंसः, भ्रकुंस:, भृकुंसः॥ ६. 'वेश्याओंके शिक्षक'के २ नाम हैं- वेश्याचार्यः, पीठमदः ।। ७. 'सूत्रधार के २ नाम हैं-सूत्रधारः, सूचक: (+स्थापकः )। Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० अभिधानचिन्तामणिः .. १नन्दी तु पाठको नान्द्याः पार्श्वस्थः पारिपाश्विकः ॥ २४४ ॥ ३वासन्तिकः केलिकिलो वैहासिको विदूषकः। प्रहासी प्रीतिदश्चा४य षिङ्गः पल्लवको विटः ॥ २४५ ॥ ५पिता त्वावुक ६आवुत्तभावुकौ भगिनीपतौ। भावो विद्वान् प्युवराजः कुमारो भर्तृदारकः ।। २४६ ॥ ६बाला वासू१०र्षि आर्यो ११देवो भट्टारको नृपः । १२राष्ट्रियो नृपतेः श्यालो १३दुहिता भर्तृदारिका ॥ २४७ ॥ १४देवी कृताभिषेका१५ऽन्या भट्टिनी १६गणिकाऽज्जुका। .' १७नीचाचेटीसखीहूतौ हण्डेहलेहलाः क्रमात् ॥ २४८ ।। शेषश्चात्र-अथ सूत्रधारे स्याद् बीजदर्शकः ।। १. 'नान्दी' (पूर्वरंगके अङ्क-विशेष )का पाट करनेवाले' का ? नाम हैं-नन्दी (-न्दिन् )॥ २. 'पार्श्ववर्ती' के २ नाम हैं-पार्श्वस्थः, पारिपाश्विकः ।। ३. 'विदूषक (नाटकके ओफर-सदस्यों को हँसानेवाल पात्र-विशेष) के ६ नाम हैं-वासन्तिकः, केलिकिल: (+केलीकिन्नः ), वैहासिकः, विदूषकः, प्रहासी (-सिन् ), प्रीतिदः ।। ४. "विट'के ३ नाम हैं—षिङ्गः, पल्लवकः, विट: (पु न )। ५. पिता'का १ नाम है-आवुकः ॥ ६. 'बहनके पति'के २ नाम हैं-श्रावुत्तः, भावुकः ।। ७. 'विद्वान् 'का १ नाम है-भावः ।। ८. 'युवराज'के २ नाम हैं-कुमारः, भर्तृदारकः ।। . ६. 'बालाका १ नाम है-वासूः ॥ १०. 'आर्य'के २ नाम हैं-मार्षः (+मारिषः ), प्रायः ॥ ११. 'राजा'के २ नाम हैं-देवः, भट्टारकः ॥ १२. 'राजाके शाले'का १ नाम है-राष्ट्रियः । ( इसे प्रायः नगरके कोतवालका पद प्राप्त रहता है)। १३. 'राजाकी लड़की'का १ नाम है-भर्तृ दारिका ॥ १४. 'पटरानी ( अभिषिक्त रानी)का १ नाम है-देवी ।। १५. 'राजाकी अन्य रानियों का १ नाम है-भटिनी ।। १६. 'वेश्या'का १ नाम है-अज्जुका ॥ १७. 'नीचा, चेटी ( दासी) और सखी के बुलानेमें क्रमशः 'हण्डे, हज्जे, हला' इन तीनों में-से १-१ का प्रयोग होता है ।। Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवकाण्ड: २] मणिप्रभा'व्याख्योपेतः १अब्रह्मण्यमवध्योक्तौ २ज्यायसी तु स्वसाऽत्तिका । ३भर्ताऽऽयपुत्रो ४माताऽम्बा ५भदन्ताः सौगतादयः ।। २४६॥ ६पूज्य तत्रभवानत्रभवांश्च भगवानपि । ७पादा भट्टारको देवः प्रयोज्यः पूज्यनामतः ॥ २५०॥ इत्याचार्यहेमचन्द्रविरचितायाम् “अभिधानचिन्तामणिनाममालायां" द्वितीयो 'देवकाण्डः' समाप्तः ॥२॥ १. 'अवष्यके कहने में 'अब्रह्मण्यम्' शब्दका प्रयोग होता है ।। २. 'बड़ी बहन'का १ नाम है-अत्तिका ।। ३. 'पति'का १ नाम है-आर्यपुत्रः ॥ ४. 'माता'का १ नाम है-अम्बा ॥ ५. 'बौद्ध आदि भिक्षुको'का १ नाम है--भदन्तः ।। ६. 'पूज्य' व्यक्तिमें- 'तत्रभवान् , अत्रभवान् , भगवान् (३ -वत् ) शब्दोंका प्रयोग होता है ।। ७. 'पूज्य व्यक्ति के नामके आगे 'पादाः, भट्टारकः, देवः' शब्दोंका प्रयोग किया जाता है । ( यथा-गुरुपादाः, गुरुचरणाः, अहर्भट्टारकः, कुमारपालदेवः,........ )॥ विमर्श-पूर्वोक्त ( २।२४५-२५० ) आवुकादि शब्दोंका प्रयोग नाट्याधिकार होनेसे नाटकोंमें ही होता है। परन्तु 'तत्रभवान्' आदि ( २।२५०) शन्दोंका प्रयोग नाटकसे भिन्न स्थलों में भी किया जाता है । . . इस प्रकार साहित्य-व्याकरणाचार्यादिपदविभूषित मिश्रोपाह श्रीहरगोविन्दशास्त्रिविरचित 'मणिप्रभा'व्याख्यामें . द्वितीय 'देवकाण्ड' समाप्त हुश्रा ॥ २ ॥ Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अथ मर्त्यकाण्डः ॥ ३ ॥ " १ मर्त्यः पञ्चजनो भूस्पृक् पुरुषः पूरुषो नरः । मनुष्यो मानुषो ना विट् मनुजो मानवः पुमान् ॥ १ ॥ २बालः पाकः शिशुडिम्भः पोतः शावः स्तनन्धयः । पृथुकार्भोत्तानशयाः क्षीरकण्ठः कुमारकः ॥ २ ॥ ३शिशुत्वं शैशवं बाल्यं ४वयःस्थस्तरुणो युवा । तारुण्यं यौवनं ६वृद्धः प्रवयाः स्थविरो जरन् ॥ ३ ॥ जरी जीर्णो यातयामो जीनो७ऽथ विस्रसा जरा । पवार्द्धकं स्थाविरं ज्यायान् वर्षीयान्दशमीत्यपि ॥ ४ ॥ १० विद्वान सुधीः कविविचक्षणलब्धवर्णा ज्ञः प्राप्तरूपकृतिकृष्टय भिरूपधीराः । मेधाविकोविदविशारदसूरिदोषज्ञाः प्राज्ञपण्डितमनीषिबुधप्रबुद्धाः ॥ ५ ॥ व्यक्तो विपश्चित्सङ्ख्यावान् सन् - १. ‘मनुष्य’के १३ नाम हैं - मर्त्यः, पञ्चजनः, भूस्पृक् ( - स्पृश् ), पुरुषः, पूरुषः, नरः, मनुष्य, मानुषः, ना ( ), विट् (-शू ), मनुज:, मानवः, पुमान् ( = पुंस् ) ॥ -- २. ' बालक, बच्चे के १२ नाम हैं - बाल: ( + बालक: ), पाकः, शिशुः, डिम्भ:, पोतः, शावः, स्तनन्धयः ( यौ० – स्तनपः ), पृथुकः, श्रर्भ: (+अर्भकः), उत्तानशयः, क्षीरकण्ठः ( यौ० - क्षीरपः ), कुमारक: ( + कुमारः ) || ३. 'बचपन' के ३ नाम हैं - शिशुत्वम्, शैशवम्, बाल्यम् ॥ ४. 'युवक, नौजवान' के ३ नाम हैं - वयःस्थः, तरुणः, युवा ( - वन् ) ।। ५. 'जवानी' के २ नाम हैं - तारुण्यम्, यौवनम् ( पु न । + यौवनिका ) | ६. ‘बूढ़े’के ८ नाम हैं— वृद्ध:, प्रवया: ( - यस् ), स्थविर:, जरन् ( - रत् ), जरी ( - रिन् ), जीर्णः, यातयामः, जीनः ॥ ७. 'बुढापा' के २ नाम है -विसा, जरा ॥ ८. ' अधिक बुढापा' के २ नाम हैं - वार्द्धकम्, स्थाविरम् || ६. "बहुत बड़ा या बूढा' के ३ नाम हैं - ज्यायान् वर्षीयान् ( २-य दशमी ( - मिन् ) ॥ २–यस् ), १०. 'विद्वान्' के २५ नाम हैं - विद्वान् (द्वस् ), सुधीः, कविः, विचक्षणः, लब्धवर्णः, ज्ञः, प्राप्तरूपः, कृती ( - तिन् ), कृष्टिः, अभिरूप:, धीरः, मेघावी ( -विन्), कोविदः, विशारदः, सूरिः, दोषशः, प्राज्ञः, पण्डितः, मनीषी, ( - षिन् । यौ० - धीमान्, मतिमान्, बुद्धिमान् बुधः, प्रबुद्ध:, व्यक्त:, विपश्चित् संख्यावान् ( - वत् ), " ३ - मत्, " सन् ( - त् ) ॥ Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मर्त्यकाण्ड: ३] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः –१प्रवीणे तु शिक्षितः । निष्णातो निपुणो दक्षः कर्महस्तमुखाः कृतात् ॥ ६ ॥ कुशलश्चतुरोऽभिज्ञविज्ञवैज्ञानिकाः पटुः । २छेको विदग्धे ३प्रौढस्तु प्रगल्भः प्रतिभान्वितः॥ ७ ।। ४कुशाग्रीयमतिः सूक्ष्मदर्शी ५तत्कालधीः पुनः। प्रत्युत्पन्नमतिक्ष्दूराद्यः पश्येद्दीर्घदर्श्वसौ ।। ८ ।! ७हृदयालुः सहृदयश्चिद्रपोऽप्यय संस्कृते । व्युत्पन्नाहतक्षुण्णा अन्तवाणिस्तु शास्त्रवित् ॥ ६ ॥ १०वागीशो वाक्पतौ ११वाग्ग्मी वाचोयुक्तिपटुः प्रवाक् । समुखो वावदको१२ऽथ वदो वक्ता वदावदः ॥ १० ॥ १. 'प्रवीण ( उत्तम विद्वान् , चतुर ) के १४ नाम हैं-प्रवीणः, शिक्षितः, निष्णातः, निपुणः, दक्षः, कृतकर्मा (- मन् । यौ०- कृतकृत्यः, कृतार्थः, कृती-तिन् ), कृतहस्तः, कृतमुखः, कुशलः, चतुरः, अभिज्ञः, विज्ञः, वैज्ञानिकः, पटुः ॥ शेषश्चात्र-अथ प्रवीणे क्षेत्रज्ञो नदीष्णो निष्ण इत्यपि । २. 'हुशियार के २ नाम हैं-छेकः, विदग्धः ।। शेषश्चात्र-छेकालश्छेकिलो छेके । ३. 'प्रतिभाशाली के ३ नाम. हैं-प्रौढः, प्रगल्भः, प्रतिभान्वितः ।। ४. तीक्ष्णबुद्धि' के २ नाम हैं-कुशाग्रीयमतिः, सूक्षदर्शी (-शिन् ) ॥ ५. 'प्रत्युत्पन्नमति ( तत्काल सोचनेवाला, हाजिरजबाब ) के २ नाम हैं-तत्कालधीः, प्रत्युत्पन्नमतिः ॥ ६.. दूरदर्शी'का १ नाम है-दीर्घदशी (-शिन् ।+दूरदर्शी - शिन् )॥ ७. 'सहृदय ( कोमल हृदयवाला) के ३ नाम हैं-हृदयालुः, सहृदयः, चिद्रपः ॥ ८. 'व्युत्पन्न ( शास्त्रादिके संस्कारसे युक्त ) के ४ नाम हैं-संस्कृतः, व्युत्पन्नः, प्रहतः, क्षुण्ण: । ६. 'शास्त्रज्ञाता ( शास्त्रको जानता हुआ भी उसे नहीं कह सकनेवाले )के' २ नाम हैं-अन्तर्वाणि:, शास्त्रवित् (- द्)॥ १०. 'वागीश' के २ नाम हैं-वागीशः, वाक्पतिः । ११. 'युक्तिसंगत अधिक बोलनेवाले के ५ नाम हैं-वाग्मी ( - ग्मिन् ), वाचोयुक्तिपटुः, प्रवाक ( - च ), समुखः, वावदूकः ।। .. १२. 'वक्ता ( बोलनेवाले )के ३ नाम हैं-वदः, वक्ता (क्त), वदावदः ॥ Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ अभिधानचिन्तामणिः १स्याजल्पाकस्तु वाचालो वाचाटो बहुगर्यवाक् । २यद्वदोऽनुत्तरे ३दुवोक कद्वदे स्या४दयाधरः ॥ ११॥ हीनवादिषन्येडमूकानेडमूको त्ववाश्रुतौ । ६रवणः शब्दनस्तुल्यौ ७कुवादकुचरौ समौ ॥ १२ ॥ लोहलोऽस्फुटवाङ्मूकोऽवाग१०सौम्यस्वरोऽस्वरः। १५वेदिता विदुरो विन्दु१२वन्दारुस्त्वभिवादकः ॥ १३ ॥ १३आशंसुराशंसितरि १४कट्वरस्त्वतिकुत्सितः । १५निराकरिष्णुः क्षिप्नुः स्याद्-. १. 'वाचाल ( सारहीन बहुत बोलनेवाले ) के ४ नाम हैं-जल्पाकः, वाचालः, वाचाटः, बहुगह्य वाक ( - च)। २. 'उत्तर नहीं दे सकनेवाले, या चाहे जो कुछ भी बोलनेवाले के २ नाम है-यद्वदः, अनुत्तरः ॥ ___३. 'दुर्वचन कहनेवाले'के २ नाम हैं-दुर्वाक (-च् ), कद्वदः । ४. 'तुच्छ (कम) बोलनेवाले' के २ नाम हैं-अधरः, हीनवादी (-दिन् )॥ ५. 'गूंगा, बहिरा'के ३ नाम हैं-एडमूकः, अनेडमूकः, अवाश्रुतिः ।। ६. 'कोलाहल करनेवाले के २ नाम है-रवणः, शब्दनः । ७. “बुरा बोलनेवाले, या कुटिल श्राशयवाले' के २ नाम है-कुवादः, कुचरः ।। ८. 'अस्पष्ट बोलनेवाले'के २ नाम हैं-लोहलः, अस्फुटवाक् (-वाच्) ।। . शेषश्चात्र-काहलोऽस्फुटभाषिणि । ६. 'गूंगे'के २ नाम हैं-मूकः, अवाक् (-वाच् ) ॥ शेषश्चात्र-मूके जडकडौ। १०. 'रूखा बोलनेवाले या असुन्दर स्वरवाले के २ नाम हैं-असौम्यस्वरः, अस्वरः ।। ११. 'जानकार' के ३ नाम हैं-वेदिता (-४), विदुरः, विन्दुः ॥ १२. 'अभिवादनशील'के २ नाम हैं-वन्दारुः, अभिवादकः ।। १३. 'आशांसा (अपने मनोरथकी पूर्ति )का इच्छुक'के २ नाम हैं-आशंसुः, आशंसिता (-४)। १४. 'अत्यन्त निन्दित' के २ नाम हैं-कटवरः, (+कद्वदः), अतिकुत्सितः॥ १५. निराकरण करनेवाले (टालनेवाले ) के २ नाम हैं-निराकरिष्णुः, क्षिप्नुः ।। Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मयंकाण्ड: ३] मणिप्रभा'व्याख्योपेतः ५. १-विकासी तु विकस्वरः ॥ १४ ॥ दुर्मुखे मुखराबद्धमुखौ ३शक्ल: प्रियंवदः। ४दानशीलः स वदान्यो वदन्योऽप्यपथ बालिशः ।। १५ ॥ मूढो मन्दो यथाजातो बालो मातृमुखो जडः। मुखोऽमेधोविवर्णाज्ञा वैधेयो मातृशासितः ॥ १६ ॥ देवानाम्पियजाल्मौ व दीर्घसूत्रश्चिरक्रियः । ७मन्दः क्रियायु कुण्ठः स्यात् ८क्रियावान् कर्मसूद्यतः ॥ १७ ॥ कर्मक्षमाऽलङ्कर्मीण: १०कर्मशूरस्तु कर्मठः । ११कर्मशीलः कार्म १२आयःशू लिकस्तीक्ष्णकर्मकृत् ॥ १८ ॥ १३सिंह हननः स्वङ्गः १४स्वतन्त्रो निरवग्रहः । यथाकामा स्वचिश्च स्वच्छन्दः स्वैर्यपावृतः ॥ १६ ॥ १. वकासशी-: ( विति होनेवाले, या उन्नति करनेवाले ) के २ नाम हैं-विक सो ( -सिन् ।, विस्वरः ।। २. 'मुखर (बेलगाम बोलनेवाले, दुर्वचन कहनेवाले ) के ३ नाम हैं-दुर्मुखः, मुखरः, अबद्धमुखः ।। ३. 'प्रिय बोलनेवाले के २ नाम है-शक्ल:, प्रियंवदः ।। ४. 'प्रिय वचन बोलकर दान देनेवाले' के २ नाम हैं-वदान्यः, वदन्यः ।। ५. 'मूढ'के १५ नाम हैं-बालिशः, मूढः, मन्दः, यथाजातः, (+यथाद्गतः ), बाल:, मातृभुवः, • जडः, मूर्खः, अमेधाः (-धस् ), विष्णः, अज्ञः, वैधेयः मातृशासितः, देवानांप्रियः, जाल्मः ।। शेषश्चात्र-मूर्खे त्वनेडो नामवर्जितः ।। ६. 'विलम्बसे काम करनेवाले'के २ नाम हैं-दीर्घसूत्रः, चिरक्रियः ।। ७. काममं कुएटत (काम नहीं कर सकनेवाले)का १ नाम है-मन्दः ।। ८. काममं तत्पर रहनेवाले'का १ नाम है--क्रियावान् (-वत् ) ॥ ६. 'काममें समर्थ'के २ नाम है-कर्मक्षमः, अलङ्कर्मीण: ।। १७. 'कर्मठ ( उद्योगी ) के २ नाम हैं-कर्मशूरः, कर्मटः ॥ ११.. 'कर्मशील ( स्वभावसे सदा काम करनेवाले )' के २ नाम हैंकर्मशोलः, कार्मः । १२. 'सरल उपायसे साध्य कामको तीक्ष्ण उपायसे सिद्ध करनेवाले के २ नाम है-श्रायःशूलिकः, तीक्ष्णकर्मकृत् ॥ १३. 'सिहतुल्य शरीरवाले'के २ नाम हैं-सिंहसंहननः, स्वङ्गः ॥ . १४. 'स्वतन्त्र'के ७ नाम है--स्वतन्त्रः, निरवग्रहः, यथाकामी (-मिन् ), • स्वरुचिः, स्वच्छन्दः, स्वैरी (-रिन् ), अपावृतः॥ Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणिः श्यहच्छा स्वैरिता स्वेच्छा रनाथवान निघ्नगृह्यकी। तन्त्रायत्तवशाधीनच्छन्दवन्तः परात् परे ॥२०॥ ३लक्ष्मीवान् लक्ष्मणः श्लील ४इभ्य आढयो धनीश्वरः। ऋद्धे पविभूतिः सम्पत्तिर्लक्ष्मीः श्रीऋद्धिसम्पदः ।। २१ ॥ ६दरिद्रो दुविधो दुःस्थो दुर्गतो निःस्वकीकटौ । अकिञ्चनोऽधिपस्त्वीशो नेता परिवृढोऽधिभूः ॥ २२ ॥ पतीन्द्रस्वामिनाथार्याः प्रभुर्तेश्वरो विभुः। ईशितेनो नायकश्च पनियोज्यः परिचारकः ।। २३ । । डिगरः किङ्करो भृत्यश्चेटो गोप्यः पराचितः । .. दासः प्रेष्यः परिस्कन्दो भुजिष्यपरिकर्मिणौ. ॥ २४॥ परान्नः परपिण्डादः परजातः परैधितः। . १. 'स्वेच्छाके ३ नान हैं—यदृच्छा, स्वैरिता, स्वेच्छा ॥ .. २. 'पराधीन'के ६ नाम हैं-नाथवान् (-वत् ), निम्नः, गृह्यकः, परतन्त्रः, परायत्तः, परशः, पराधीनः, परच्छन्दः, परवान् ॥ . शेषश्चात्र-परतन्त्रे वशायत्तावधीनोऽपि । ३. 'श्रीमान्'के ३ नाम हैं-लक्ष्मीवान् (-वत् ), लक्ष्मणः, श्लील: (+श्रीमान् -मत्)॥ ४. 'धनी, ऐश्वर्यवान्'के ५ नाम हैं-इभ्यः, आन्यः, धनी (-निन् । +धनिकः ), ईश्वर, ऋद्धः ॥ ___५. 'ऐश्वर्य, सम्पत्तिश्के ६ नाम हैं-विभूतिः, संपत्तिः, लक्ष्मीः, श्री:, ऋद्धिः , संपत् (-द् ।+संपदा)॥ ६. 'दरिद्र, निर्धन'के ७ नाम हैं-दरिद्रः, दुर्विधः, दुःस्थः, दुर्गतः, निःस्वः, कीकटः, अकिञ्चनः (+निर्धनः)॥ शेषश्चात्र--अथ दुगते। क्षुद्रो दीनश्च नीचश्च ।। ___७. 'स्वामी, मालिक'के १७ नाम हैं-अधिपः, ईशः, नेता (-४), परिवृढः, अधिभूः , पतिः, इन्द्रः, स्वामी (-मिन् ), नाथः, अर्यः, प्रभुः, भर्ता (-त, ईश्वरः, विभुः, ईशिता (-४), इनः, नायकः ॥ ८. 'भृत्य, नौकर के १७ नाम हैं-नियोज्यः, परिचारकः (+ प्रतिचरः), डिङ्गरः, किङ्करः, भृत्यः, चेटः, गोप्यः, पराचितः, दासः, प्रेष्यः, परिस्कन्दः, भुजिष्यः, परिकर्मी (-मिन् ), परान्नः, परपिण्डादः, परजातः, परैधितः । विमर्श-इनमें पहलेवाले १३ नाम उतार्थक तथा अन्तवाले 'परान्नः' आदि ४ नाम 'भोजन के लिए पराश्रित रहनेवाले के हैं, ऐसा भी किसी-किसीका मत है। Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७ मर्त्यकाण्ड: ३] मणिप्रभा'व्याख्योपेतः भृतके भृतिभुग्वैतनिकः कर्मकरोऽपि च ॥ २५ ॥ २स नि तिः कमकारो ३भृतिः स्यान्निष्कयः पणः । कर्मण्या वेतनं मूल्यं निवेशो भरणं विधा ॥ २६ ॥ भर्मण्या भर्म भृत्या च ४भोगस्तु गणिकाभृतिः। ५खलपूः स्यादहुकरो ६भारवाहस्तु भारिकः ॥ २७ ॥ अवार्तावहे वैवधिको ८भारे विवधवीवधौ । एकाच: शिक्यं तदालम्बो १८भारयष्टिविहङ्गिका ॥ २८ ।। ११शूरश्चारभटो वीरो विक्रान्तश्चा१२थ कातरः । दरितश्चकितो - भीतो भीरुभीरुकभीलुकाः ॥ २६ ॥ १३विहस्तव्याकुलौ व्यग्रे १. 'वेतनभोगी नौकर' के ४ नाम है-भृतकः, भृतिभुक् (-ज ), वैतनिकः, कर्मकरः ।। ___२. 'अवैतनिक भृत्य'का १ नाम है-कर्मकारः ॥ ३. 'वेतन, मजदूरी'के १२ नाम हैं-भृतिः, निष्क्रयः, पणः, कर्मण्या, वेतनम्, मूल्यम् , निर्वेशः, भरणम्, विधा, भर्मण्या, भर्म (-मन् ), भृत्या ॥ ४. 'वेश्याका वेतन (फीस, भाड़ा )का १ नाम है-भोगः ।। शेषश्चात्र-भाटिस्तु गणिकाभृतौ ॥ . ५. 'झाड़ देनेवाले, या-बहुत अन्नोपार्जन करनेवाले' के २ नाम हैंखलपूः, बहुकरः ॥ ६. 'वोझ ढोनेवाले, कुली'के २ नाम है-भारवाहः, भारिकः ।। ७. 'अन्नादि ढोनेवाले'के २ नाम हैं-वार्तावहः, वैवधिक: (+विवधिकः, वीवधिकः)। ८. 'बोझ, बहँगीके बोझ'के २ नाम हैं-विवधः, वीवधः ॥ ६. (बहँगीके वांसमें लटकनेवाली ( बोझकी आधारभूत ), रस्सी या छींका (सिकहर) के २ नाम हैं-काचः, शिक्यम् ॥ १०. 'बहँगी, या-बहँगी ढोते समय ऊपरी भागमें अाधारार्थ लकड़ी लगाये हुए डंडे'का १ नाम है-विहङ्गिका ॥ ११. 'शूर, वीर के ४ नाम है-शूरः, चारभटः, वीरः, विक्रान्तः ।। १२. 'कायर, डरपोक के ७ नाम हैं-कातरः, दरितः, चकितः, भीतः, भीरुः, भीरुकः, भीलुकः ॥ शेषश्चात्र-त्रस्तुत्रस्तौ तु चकिते । १३. 'भ्याकुल, घबड़ाये हुए के ३ नाम है-विहस्तः, व्याकुल:, व्यग्रः ।। - ७० चि० Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रभिधानचिन्तामणिः - १कान्दिशीको भयद्रुते । २उत्पिञ्जलसमत्पिञ्जपिञ्जला भृशमाकुले ॥ ३० ॥ ३महेच्छे तूटोदारोदात्तोदीर्णमहाशयाः । महामना महात्मा च ४ कृपणस्तु मितम्पचः ॥ ३१ ॥ कीनाशस्तद्धनः क्षुद्रकदर्य दृढमुष्टयः 1 किम्पचानो ५दयालुस्तु कृपालुः करुणापरः || ३२ ॥ सूरतो६ऽथ दया शूकः कारुण्यं करुणा घृणा । कृपाऽनुकम्पाऽनुक्रोशो ७हिंस्र शरारुधातुकौ ॥ ३३ ॥ व्यापादनं विशरणं प्रमयः प्रमापणं निर्मन्थनं प्रमथनं कदनं निबर्हणम् । निस्तर्हणं विशसनं क्षरणनं परासनं प्रोज्जासनं प्रशमनं प्रतिघातनं वधः ||३४| प्रवासनं द्वासनघातनिर्वासनानि संज्ञप्तिनिशुम्भहिंसाः । निर्वापणालम्भनिषूदनानि निर्यातनोन्मन्थसमापनानि ।। ३५ ।। अपासनं वर्जनमार पिला निष्कारणक्राथविशारणानि । हस्युः कर्तने कल्पनवर्धने च छेदश्व १० घातोद्यत आततायी ॥ ३६ ॥ ६८ १. 'भय से भागे हुए' के २ नाम है - कान्दिशीकः, भयद्रुतः ॥ २. ‘अधिक व्याकुल' के ३ नाम हैं - उत्पिञ्जलः, समुत्पिञ्जः पिञ्जलः ॥ ३. 'उदार, उन्नत इच्छावाले' के ८ नाम हैं – महेच्छ:, उद्भटः, उदार:, उदात्तः, उदीर्णः, महाशयः, महामना: ( - नस् ), महात्मा ( - त्मन् ) | ४. 'कृपण' के नाम हैं- कृपणः, मितम्पचः, कीनाशः, तद्धनः, क्षुद्रः, कदर्य:, दृढमुष्टिः, किम्पचानः ।। ५. 'दयालु' के ४ नाम हैं - दयालु, कृपालुः, करुणापरः, सूरत: ॥ 'दया, कृपा' के ८ नाम है - दया, शुकः ( पुं न ), कारुण्यम्, करुणा, घृणा, कृपा, अनुकम्पा, श्रनुक्रोशः ॥ ७. हिल, हिंसक' के ३ नाम हैं - हिस्रः, शरारुः, धातुकः ॥ ८. ‘मारने, वध करने' के ३६ नाम हैं - व्यापादनम्, विशरणम्, प्रमयः, (पु न), प्रमापणम्, निर्ग्रन्थनम्, प्रमथनम्, कदनम्, निवर्हणम्, निस्तर्हणम्, विशसनम्,क्षणनम्, परासनम्, प्रोज्जासनम्, प्रशमनम्, प्रतिघातनम्, वधः, प्रवासनम्, उद्वासनम्, घातः, निर्वासनम्, संज्ञप्तिः, निशुम्भः, हिंसा, निर्वापणम्, आलम्भः, निषूदनम्, निर्यातनम्, उन्मन्थः, समापनम्, श्रपासनम्, वर्जनम्, मारः, पिञ्ज:, निष्कारणम, क्राथः, विशारणम् ॥ ६. 'काटने' के ४ नाम हैं— कर्तनम्, कल्पनम्, वर्धनम्, छेदः ॥ १०. 'आततायी ( हत्या करने के लिए तत्पर ) का १ नाम है - श्राततायी (-यिन् ) ॥ Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मर्त्यकाण्ड : ३ ] 'मणिप्रभा व्याख्योपेतः १स शैर्षच्छेदिकः शीर्षच्छेद्यो योवधमर्हति । २प्रमीत उपसम्पन्नः परेतप्रेतसंस्थिताः ॥ ३७ ॥ नामा लेख्ययशःशेपौ व्यापन्नोपगतौ मृतः । परासुस्तद दानं तदर्थमौर्ध्वदेहिकम् ॥ ३८ ॥ ४मृतस्नानमपस्नानं पूनिवापः पितृतर्पणम् । ६ चितिचित्याचितास्तुल्या ७ऋजुस्तु प्राञ्जलोऽञ्जसः ॥ ३६ ॥ दक्षिणेसरलोदारौ शठस्तु निकृतोऽनृजुः । १० क्रूरे नृशंसनिस्त्रिंशपापा ११धूर्तस्तु वः ॥ ४० ॥ व्यंसकः कुहको दण्डाजिनिको मायिजालिकौ । ६६ विमर्श - स्मृतिकारोंने ६ प्रकार के 'आततायी' कहे हैं, यथा-१ आग लगानेवाला; २ विष खिलानेवाला, ३ हाथमें शस्त्र लिया हुआ, ४ धन चुरानेवाला, ५ खेत ( खेत के धान्य, या - आर ( खेतकी मेंड़ = सीमा ) काटकर खेत चुरानेवाला और ६ स्त्रीको चुरानेवाला । याज्ञवल्क्य स्मृतिकारने तो - " वध करने के लिए तलवार ( या अन्य कोई घातक शस्त्र ) उठाया हुआ, विषदेनेवाला, आग लगानेवाला, शाप देनेके लिए हाथ उठाया हुआ, अथर्वण विधि मारनेवाला, राजाके यहां चुगलखोरी करनेवाला, स्त्रीका त्याग करनेवाला, छिद्रान्वेषण करनेवाला, तथा ऐसे ही अन्यान्य कार्य करने वाले सबको आततायी जानना चाहिए" ऐसा कहा है । ( या. स्मृ ३ | ३१ ) । १. “शर काटने योग्य'के २ नाम हैं - शैर्षच्छेदिकः, शीर्षच्छेद्यः ॥ २. 'मरे हुए’के १२ नाम है - प्रमीत:, उपसम्पन्नः, परेतः प्रेतः, संस्थितः नामशेषः, आलेख्यशेषः, यशः शेषः, व्यापन्नः, उपगतः मृतः, परासुः ॥ ३. 'मरे हुए व्यक्ति के उद्देश्य से उसके मृत्युके दिन किये गये पिण्ड दान, आदि कार्य का १ नाम है - और्ध्वदेहिकम् (+ ऊर्ध्वदेहिकम्, श्रौर्ध्वदैहिकम् ) । ४. 'मरनेके बाद स्नान करने' के २ नाम हैं— मृतस्नानम्, अपस्नानम् ॥ ५. ‘पितरोंके तर्पण करने’के २ नाम हैं –— निवापः, पितृतर्पणम् ।। ६. 'चिता' के ३ नाम हैं- चितिः, चित्या, चिता ॥ ७. 'सूधा' के ३ नाम हैं - ऋजुः प्राञ्जल:, अञ्जसः ॥ ८. 'उदार' के ३ नाम हैं - दक्षिणः, सरल:, उदारः ॥ C. 'टेढा, शन' के ३ नाम हैं- - शठः ( + शण्ठः ), निकृतः, श्रनृजुः ।! १०. 'क्रूर' के ४ नाम हैं-करः, नृशंसः, निस्त्रिंशः, पापः ॥ ११. 'धूर्त, ठग' के ७ नाम हैं- धूर्त:, वञ्चकः, व्यंसकः, कुहकः, दाडा जिनिक:, मायी (यिन् । + मायावी - विनू, मायिकः ), जालिकः ॥ Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० अभिधानचिन्तामणिः . १ माया तु शठता शाठ्यं कुसृतिर्निकृतिश्च सा ॥ ४१ ॥ २कपटं कैतवं दम्भः कूटं छद्मोपधिश्छलम् । व्यपदेशो मिषं लक्षं निभं व्याजो३ऽथ कुक्कुटिः ॥ ४२ ॥ कुहना दम्भचर्या च ४ वञ्चनन्तु प्रतारणम् । व्यलीकमतिसन्धानं ५साधौ सभ्यार्यसज्जनाः ॥ ४३ ॥ ६दोषैकक पुरोभागी कर्णेजपस्तु दुर्जनः । पिशुनः सूचको नीचो द्विजिह्वो मत्सरी खलः ॥ ४४ ॥ व्यसनार्तस्तूपरक्तश्चारस्तु प्रतिरोधकः । दस्युः पाटच्चरः स्तेनस्तस्करः पारिपन्थिकः ।। ४५ ।। परिमोषिपरा स्कन्धैकागारिकमलिम्लुचाः 1 १०यः पश्यतो हरेदर्थं स चौरः पश्यतोहरः ॥ ४६ ॥ १. 'माया' के ५ नाम हैं- माया, शठता, शाठ्यम्, कुसृतिः, निकृतिः ॥ २. 'कपट, छल' के १२ नाम है — कपट : ( पु न ), कैतवम्, दम्भः, गूढम् ( पु न ), छद्म (-झन् ); उपधि: ( + उपधा ), छलम्, व्यपदेशः, मिषम्, लक्षम् ( पु न ), निभम्, व्याजः ॥ ३. ‘दम्भसे व्यवहार करने के ३ नाम हैं- कुक्कुटि:, कुहना, दम्भचर्या ॥ ४. 'ठगने' के ४ नाम हैं- वञ्चनम्, प्रतारणम्, व्यलीकम्, अति सन्धानम् ॥ ५. ‘सज्जन' के ४ नाम हैं - साधुः, सभ्यः, आर्य:, सज्जनः ॥ ६. ‘केवल दूसरेके दोष देखनेवाले' के २ नाम हैं - दोषैकदृक् (-शू ), पुरोभागी ( - गिन् ) ॥ ७. 'चुगलखोर' के नाम हैं - कर्णेजप:, दुर्जनः, पिशुनः सूचकः, नीचः, द्विजिह:, मत्सरी (-रिन् ), खल: ( पुन । + त्रि ) । शेषश्चात्र – अथ क्षुद्रा खलौ खले । ८. 'व्यसनमें आसक्त' के २ नाम हैं- व्यसनार्तः, उपरतः ॥ ६. 'चोर' के ११ नाम हैं - चोर : ( + चौर: ), प्रतिरोधकः, दस्युः, पाटच्चर: ( + पटचोर: ), स्तेन: ( पु न ), तस्करः, पारिपन्थिकः, परिमोषी ( - षिन् ), परास्कन्दी ( + न्दिन् ), ऐकागारिकः, मलिम्लुचः ॥ - शेषश्चात्र - चोरे तु चोरडो रात्रिचरः । १०. ‘देखते रहनेपर ( सामनेसे धोखा देकर ) चोरी करनेवाले' का १ नाम है - पश्यतोहरः || Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मकाण्ड : ३ ] 'मणिप्रभा' व्याख्योपेतः १ चौर्यं तु चौरिका २ स्तेयं लोप्वं त्वपहृतं धनम् । ३ यद्भविष्य दैवपरो४ थालम्यः शीतकोऽलसः ॥ ४७ ॥ मन्दस्तुन्दपरिमृजोऽनुष्णो दक्षस्तु पेशलः । पटूष्णोष्ण कसूत्थान चतुराश्चा६थ तत्परः ॥ ४८ ॥ आसक्तः प्रवरणः प्रह्नः प्रसितश्च परायणः । तोदारः स्थूललक्षदानशौण्डौ बहुप्रदे ॥ ४६ ॥ हदानमुत्सर्जनं त्यागः प्रदेशन विसर्जने । विहाय वितरण स्पर्शनं प्रतिपादनम् ॥ ५० ॥ विश्राणनं निर्वपामपवर्जनमंहतिः १० व्ययज्ञः सुकलो ११याचकस्तु वनीपकः ॥ ५१ ॥ मार्गणोऽर्थी याचनकस्तर्कुको १२थार्थनैषणा । अर्दना प्रणयो याच्या याचनाऽध्येषणा सनिः ॥ ५२ ॥ 1 १०१ १. 'चोर' के ३ नाम हैं - चौर्यम्, चोरिका (स्त्री न ), स्तेयम् ( + स्तैन्यम्) । २. 'चुराये हुए धन का ९ नाम है - लोप्त्रम् ॥ ३. 'भाग्यवादी ( भाग्यपर निर्भर रहनेवाले ) के २ नाम हैं - यद्भविष्यः, दैवपरः ॥ ४. 'आलसी' के ६ नाम हैं- आलस्यः, शीतकः, अत्तसः, मन्दः, मृजः, अनुष्ण: ॥ तुन्दपरि ५.. 'चतुर' के ७ नाम हैं - दक्षः, पेशलः, पटुः, उष्णः उष्णकः, सूत्थान:, चतुरः ॥ ६. ' तत्पर ( लगे हुए, आसक्त ) ' के ६ नाम हैं - उत्परः, आसक्तः, - प्रवणः, प्रह्नः, प्रसितः, परायणः ॥ ७. 'दाता, देनेवाले' के २ नाम हैं - दाता तृ ), उदारः ॥ ८. बहुत दान देनेवाले' के ३ नाम हैं - स्थूललक्ष:, दानशौण्डः, बहुप्रदः ।। ६. 'दान' के १३ नाम हैं- दानम्, उत्सर्जनम्, त्यागः, प्रदेशनम्, ( + प्रादेशनम् ), त्रिसर्जनम्, विहायितम्, वितरणम्, स्पर्शनम्, प्रतिपादनम्, विश्राणनम्, निर्वषणम् ( + निर्वापणम् ), अपवर्जनम्, श्रंहतिः (स्त्री) | १०. 'अर्थव्ययका ज्ञाता ( धनका दान या उपभोग किस प्रकार करना चाहिए, इसे जाननेवाले ) के २ नाम हैं - अर्थव्ययज्ञः, सुकलः ॥ ११. 'याचक' के ६ नाम हैं - याचकः, वनीपक:, मार्गणः, अर्थी ( - र्थिन् ), याचनकः, तर्ककः ॥ १२. ‘याचना ( मांगने )’के ८ नाम हैं—अर्थना, एषणा, अर्दना, प्रणयः, याच्ञा, याचना, अध्येषणा, सनिः ॥ Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२ श्रभिधानचिन्तामणिः मण्डनः । १ उत्पतिष्णुस्तूत्पतिता २ऽलङ्करिष्णुस्तु ३भविष्णुर्भविता भूष्णुः ४ समौ वर्तिष्णुवर्तनौ ॥ ५३ ।। पूक्तृित्व विसृमरः प्रसारी च विसारिणि । ६लज्जाशीलोऽपत्रपिष्णुः सहिष्णुः क्षमिता क्षमी ॥ ५४ ॥ तितिक्षुः सहनः क्षन्ता पतितिक्षा सहनं क्षमा । ईर्ष्यालुः कुनो १० क्षान्तिरीर्ष्या ११ क्रोधी तु रोषणः ॥ ५५ ॥ श्रमर्षणः क्रोधनश्च १२चण्डस्त्वत्यन्तकोपनः । १३ बुभुक्षितः स्यात् क्षुधितो जिघत्सुरशनायितः ॥ ५६ ॥ १४बुभुक्षायामशनाया जिघत्सा रोचको रुचिः । शेषश्चात्र - याच्या . तु भिक्षणा । अभिषस्तिर्मागणा च । १. ' ऊपर जानेवाले' के २ नाम हैं- उत्पतिष्णुः, उत्पतिता ( - तितृ) ॥ २. 'अलङ्कृत करनेवाले' के २ नाम हैं- श्रङ्करिष्णुः, मण्डनः ॥ ३. 'भविष्णु ( होनहार )' के ३ नाम हैं- भविष्णुः, भविता ( - तृ ), भूष्णुः ॥ ४. 'रहनेवाले' के २ नाम है - वर्तिष्णुः, वर्तनः ॥ ५. 'प्रसरणशील ( फैलनेवाले ) के ४ नाम हैं - विसृत्वरः, विसृमरः, प्रसारी, विसारी ( २ - रिन् ) ॥ ६. 'लजानेवाले' के २ नाम हैं—लज्जाशीलः, अपत्रपिष्णुः ॥ ७. 'सहनशील' के ६ नाम हैं- सहिष्णुः ( - मिन), तितिक्षुः, सहन:, धन्ता ( - न्तृ ) | ८. 'क्षमा, सहन करने के ३ नाम हैं- तितिक्षा, सहनम्, क्षमा (+aifa:) 11 क्षमिता (तृ), क्षमी ६. 'ईर्ष्या करनेवाले' के २ नाम है - ईर्ष्यालुः, कुहनः ॥ १०. 'ईर्ष्या' ( स्त्री आदिको दूसरेके देखने या - दूसरेकी उन्नतिको नहीं सहने ) के २ नाम हैं - अक्षान्ति:, ईर्ष्या || ११. 'क्रोधी' के ४ नाम हैं - क्रोधी ( - धिन् ), रोषण:, अमर्षणः, क्रोधनः (+01977: ) 11 १२. 'अत्यधिक क्रोध करनेवाले' के २ नाम हैं—चण्डः, अत्यन्तकोपनः ॥ १३. 'भूखे के ४ नाम हैं— बुभुक्षितः, क्षुधितः, जिघत्सुः, अशनायितः ॥ १४. 'भूख' के ५ नाम हैं - बुभुक्षा, अशनाया, जिघत्सा, रोचकः (पुन), रुचिः (स्त्री) ॥ विमर्श - 'बुभुक्षा' आदि ३ नाम 'भूख' के तथा 'रुचकः, रुचि, ये २ नाम 'रुचि ( रुचने )के हैं, यह भी किसी-किसीका मत है ॥ . Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०३ मर्त्यकाण्ड: ३] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः पिपासुस्तृषितस्तृष्णक २तृष्णा तर्षोऽपलासिका ॥ ५७ ॥ पिपासा तृट् तृपोदन्या धीतिः पाने३ऽथ शोषणम् । रसादानं ४भक्षकस्तु घस्मरोऽमर आशितः ।। ५८ ॥ ५भक्तमन्नं कूरमन्धो भिस्सा दीदिविरोदनः। अशनं जीवनकश्च याजो वाजः प्रसादनम् ॥ ५६॥ .. ६भिस्सटा दग्धिका ७सर्वरसायं मण्डपमत्र तु। दधिजे मस्तु भक्तोत्थे निःस्रावाचाममासराः ॥ ६०॥ १०श्राणा विलेपी तरला यवागूरुष्णिकाऽपि च । ११सूपः स्यात्प्रहितं सूदः १च्यञ्जनन्तु घृतादिकम् ।। ६१ ।। १३तुल्यौ तिलान्ने कृसरत्रिसरा१४वथ पिष्टकः। शेषश्चात्र-बुभुक्षायां तुधातुधौ । १. 'प्यासे हुए'के ३ नाम हैं-पिपासुः (+पिपासितः ), तृषितः (+तर्षितः), तृष्माक (-ज)॥ २. 'प्यास'के ६ नाम हैं-तृष्णा, तर्षः, अपलासिका, पिपासा, तृट (-५ ), तृषा, उदन्या, धीतिः, पानम् ॥ ३. 'सूखने के २ नाम है-शोषणम , रसादानम् ।। ४. 'खानेवाले के ४ नाम है-भक्षकः, घस्मरः, अमरः, आशितः (+अाशिरः)॥ . ५. भात'के १२ नाम है-भक्तम, अन्नम, कूरम् (पु न ), अन्धः (न्धस् ), भिस्सा, दीदिविः (पु । +स्त्री), ओदनः, अशनम् (२ पु न ), जीवनकम , याजः, वाजः, प्रसादनम् ॥ ६. 'जले हुए भात श्रादि'के २ नाम है—भिस्सटा, दग्धिका ॥ - ७. 'मांड'का १ नाम है-मण्डम् (पुन)॥ ८. 'दहीके मांड ( पानी )का १ नाम है-मस्तु (पु न)॥ ६. 'भातके मांडके ३ नाम है-निःसावः, आचामः, मासरः ॥ १०. 'लपसी के ५ नाम हैं-भाणा, विलेपी (+विलेप्या), तरला (स्त्री न ), यवागूः (स्त्री), उष्णिका ॥ ११. 'दाल, कढ़ी आदि'के ३ नाम हैं-सूपः (पु । + पु न ), प्रहितम, सूदः ॥ १२. 'घृत आदि रस विशेष'का १ नाम है-व्यञ्जनम् ॥ . १३. 'तिल-मिश्रित अन्न, खिचड़ी'के २ नाम है-कृसरः, त्रिसरः (२ पु स्त्री। त्रि)| १४. 'पूभा'के ३ नाम है-पिष्टक: (पु न), पूपः, अपूपः ॥ Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ अभिधानचिन्तामणिः पूपोऽपृपः १पूलिका तु पोलिकापोलिपूपिकाः ॥ ६२ ॥ पूपल्यरथेषत्पक्वे स्युरभ्यूषाभ्योषपौलयः । ३निष्ठानन्तु तेमनं स्यात् ४करम्भो दधिसक्तवः ॥ ६३ ॥ ५घृतपूरो घृतवरः पिष्टपूरश्च घार्तिकः । ६चमसी पिष्टवर्ती स्याद् व७टकस्त्ववसेकिमः॥ ६४॥ पभृष्टा यवाः पुनर्धाना धानाचूर्णन्तु सक्तवः । १०पृथुकश्चिपटस्तुल्यौ ११लानाः स्युः पुनरक्षताः ॥ ६५ ॥ शेषश्चात्र-अपूपे परिशोलः । १. 'पूड़ी'के ५ नाम है-पूलिका, पोलिका, पोलि:, (+ पोली ), पूपिका, पूपली ।। __२. 'अधपकी पूड़ी या रोटी आदि'के ३ नाम है-अभ्यूषः, अम्योषः पौलि: ॥ ३. 'श्रा करनेवाले कढ़ी आदि भोज्य पदार्थ के २ नाम हैं-निष्ठानम् . (पु न ), तेमनम् (+क्नोपनम् )॥ ४. 'दहीसे युक्त सत्त'का १ नाम है-करम्भः ॥ शेषश्चात्र-अथ करम्बो दधिसतुषु। , ५. 'घेवर के ४ नाम हैं-घृतपूरः, घृतवरः, पिष्टपूरः, धार्तिकः ॥ ६. 'सेव'के २ नाम हैं-चमसी (+चमस: ), पिष्टवर्तिः ॥ ___७. 'बड़ा, दहीवड़ा' के २ नाम हैं-वटकः (पुन ), श्रवसेकिमः ।। शेषश्चात्र-ईण्डेरिका तु वटिका शष्कुली स्वर्धलोटिका । पर्पटास्तु मर्मराला घृताण्डी तु वृतौषणी ॥ समिताखण्डाज्यकृतो मोदको लड्डुकश्च सः । . एलामरीचादियुतः स पुनः सिंहकेसरः ।। ८. 'भूने हुए जौ (फरहो, बहुरी)का १ नाम है -धानाः (नि. पु० ब० व०)॥ ६. 'सत्त'का १ नाम है-सक्तवः ए. व. भी होता है-सक्तः)॥ १०. 'चिउड़ा'के २ नाम है-पृथुकः, चिपिटः (+चिपिटकः )। ११. 'लावा, खोल'के २ नाम हैं-लाजाः (पु स्त्री, नि० ब० व०) अक्षताः (पु न नि० ब० व०)॥ शेषमात्र-लाजेषु भरुजोद्धषखटिकापरिवारिकाः। १. शेषोतानीमानि नामानि विभिबमोदकस्येति शेयम् ।। Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मर्त्यकाण्ड : ३ ] 'मणिप्रभा' व्याख्योपेतः गोधूमचूर्णे समिता २यवक्षोदे तु चिक्कसः । ३गुड इक्षुरसक्वाथः ४शर्करा तु सितोला || ६६ ॥ सिता च ५ मधुधूलिस्तु खण्ड ६स्तद्विकृती पुनः । मत्स्यण्डी फाणितनापि ७र सालायान्तु मार्जिता ॥ ६७ ॥ शिखरिण्यथ न्यूयूषो रसो दुग्धन्तु सोमजम् । गोरसः क्षीरमूधस्नं स्तन्यं पुंसवनं पयः ॥ ६८ ॥ घृतदध्यादि ११पेयूषोऽभिनवं पयः । १० पयस्य १२ उभे क्षीरस्य विकृती किलाटी कूर्चिकाऽपि च ॥ ६६ ॥ १. 'गेहूँ के आटे का १ नाम है - समिता ॥ २. 'जौ के आटे' का १ नाम है -- चिक्कस: ( पुन ) ॥ ३. 'गुड़' का १ नाम है - गुडः ॥ ४. 'शक्कर, चीनी' के ३ नाम हैं-शर्करा, सितोपला, सिता ॥ ५. 'खाँड़' के २ नाम हैं- मधुधूलि :, खण्ड: ( पुन ) ॥ १०५ ६. 'राब' के २ नाम हैं- मत्स्यण्डी ( + मत्स्याण्डिका, मत्स्यण्डिका ), फाणितम् (पुन) ।। ७. 'सिखरन' के ३ नाम हैं - रसाला, मार्जिता ( + मर्जिता ), शिखरिणी ॥ ८. 'जूस, यूष (मूंग, परवल आदिका रस ) के ३ नाम हैं- : ( पु ), यूषं (पुन), रस: ॥ ६. 'दूध' के ८ नाम हैं - दुग्धम्, सोमजम्, गोरस:, क्षीरम् ( पु न ), ऊधस्यम्, स्तन्यम्, पुंसवनम् पय: ( - यस् ) ॥ " शेषंश्चात्र—दुग्घे योग्यं बालसात्म्यं जीवनीयं रसोत्तमम् । सरं गव्यं मधुज्येष्ठं, धारोष्णं तु पयोऽमृतम् ॥ १०. दूध से बने हुए पदार्थ (घृत, (दही) मक्खन आदि ) का १ नाम - पयस्यम् ॥ ११. 'फेनुस ( थोड़ी दिनको व्यायी हुई गाय आदिके दूध )का १ नाम है -- पेयूष: + (पीयूषम् ) । विमर्श - वैजयन्तीकारका मत है कि एक सप्ताह के भीतर व्यायी हुई 'गाय श्रादिके दूधको 'पेयूषम् ' तथा उसके बादके दूधको 'मोरटम् ; मोर कम्' कहते हैं ॥ (पुत्री), कूर्चिका १२. 'खोवा, मावा' के २ नाम हैं-किलाटी ( + कूचिका ) ॥ Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६ अभिधान चिन्तामणिः १पायसं परमान्नश्च क्षैरेयी २क्षीरजं दधि । गोरसश्च ३तदघनं द्रप्सं पत्रलमित्यपि ॥ ७० ॥ ४घृतं हविष्यमाज्यं च हविराघारसर्पिषी । पह्योगोदोहोद्भवं हैयङ्गवीनं ६शरजं पुनः ॥ ७१ ।। दधिसारं तक्रसारं नवनीतं नवोद्धृतम् । ७दण्डाहते कालशेयघोलारिष्टानि गोरसः ॥ ७२ ।। रसायनगथा म्बूदविच्छ्वेतं समोदकम्। १०तकं पुनः पादजलं ११मथितं वारिवर्जितम् ।। ७३ ॥ १२सापिकं दाधिकं सपिर्दधिभ्यां संस्कृतं क्रमान् । ' १३लवणोदकाभ्यां दकलावणिक १४मुदश्विति ।। ७४ ॥ . औदश्वितमौदश्वित्कं१. 'खीर के ३ नाम हैं—पायसम्, (पु न ), परमान्नम् , रेयी ॥ २. 'दही'के ३ नाम हैं-क्षीरजम् , दधि (न), गोरसः ।। शेषश्चात्र-दनि श्रीघनमङ्गल्ये । ३. 'पतले दही के २ नाम हैं-द्रप्सम् (+द्रप्स्यम् ), पत्रलम् ॥ ४. 'घी के ६ नाम हैं-घृतम् (पुन ), हविष्यम् , अाज्यम् , हविः (-विस् , न ), आघार:, सर्पिः (-पिस )॥ . ५. एक दिन के बासी दूधके मक्खन'का १ नाम है-हैयङगवीनम् ।। ६. 'दहीसे निकाले हुए मक्खन के ५ नाम हैं-शरजम् , दधिसारम् , तक्रसारम् , नवनीतम् , नवोद्धृतम् ॥ ७. मट्ठा (मथनीसे मंथे हुए दही ) के ६ नाम हैं-दण्डाहतम् , कालशेयम् , घोलम् , अरिष्टम् , गोरसः, रसायनम् ।। . ८. 'दहीके आधा पानी मिलाये हुए मट्ट'का १ नाम है-उदश्वित् ।। ६. 'बराबर पानी मिलाये हुए मट्ट'का १ नाम है-श्वेतम् (+श्वेतरसम् )॥ १०. 'दहीके चौथाई पानी मिलाये हुए मट्ठ'का १ नाम है-तक्रम् ॥ ११. 'विना पानीके मथे हुए दहीका १ नाम है-मथितम् ॥ १२. 'घी तथा दहीसे तैयार किये गये पदार्थ का क्रमशः १-१ नाम सापिष्कम् , दाधिकम् ॥ १३. 'नमक तथा पानीसे तैयार किये गये पदार्थ'का १ नाम हैदकलावणिकम् ।। १४. 'उदश्वित् (श्राधे पानी मिलाये हुए मट्ट) में तैयार किए गये पदार्थ के २ नाम है-औदश्वितम् , औदश्वित्कम् ।। Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___ १०७ १०७. मयंकाण्ड: ३] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः -श्लवणे स्यात्त लावणम । २पैठरोख्ये उखासिद्धे ३प्रयस्तन्तु सुसंस्कृतम् ॥ ७५ ॥ ४पक्क राद्धश्च सिद्धश्च ५भृष्टं पक्क विना६ऽम्बुना। अभृष्टामिषं “भटित्रं स्याद्भतिभरूटकञ्च तत् ॥ ७६ ॥ शूल्यं शूलाकृतं मांसं निष्क्वाथो रसकः समौ। . १०प्रणीतमुपसम्पन्नं ११स्निग्धे मसृणचिक्कणे ॥ ७७ ॥ पिच्छिलन्तु विजिविलं विज्जलं विजिलञ्च तत् । १२भावितन्तु वासितं स्यात् १३तुल्ये संम्मृष्टशोधिते ॥ ७८ ॥ १४काश्चिकं काञ्जिकं धान्याम्लारनाले तुषोदकम् । १. 'नमकमें तैयार किये हुए पदार्थ'का ५ नाम है-लावणम् ।। २. 'बटलोही' में पकाये हुए (भात-दाल अादि ) पदार्थ के २ नाम है-पैठरम् , उख्यम् ॥ ३. 'अच्छी तरह सिद्ध किये ( पकाये ) गये भोज्य पदार्थ'के २ नाम है-प्रयस्तम्, सुसंस्कृतम् ।। ५. 'पके हुए पदार्थ'के ३ नाम हैं-पक्कम्, राद्धम्, सिद्धम् ।। ५. 'भुने हुए ( विना पानीके पकाये गये भुजना, होरहा आदि) पदार्थ'का १ नाम है-भृष्टम् ॥ .. ६. 'अङ्गारोंपर भूने गये मांस'के ३ नाम हैं-भटित्रम्, भूतिः, भरूटकम् ॥ ___७. 'लोहेके छड़पर पकाये गये मांस'के २ नाम हैं-शूल्यम्, शूलाकृतम् ॥ ८. 'मांसके झोल ( रस ) के २ नाम है-निष्काथः, रसकः । ( यह पीसे हुए मांसके तुल्य होता है )॥ ६. 'पकाने आदिसे तैयार किये गये पदार्थ'के २ नाम हैं—प्रणीतम्, उपसम्पन्नम् ॥ १०. 'चिकने पदार्थ'के ३ नाम है--स्निग्धः, मसृणम्, चिक्कणम् ॥ ११. 'पिच्छिल (पीने योग्य कुछ गाढ़ा तथा पतला ) पदार्थ'के ४. नाम हैं-पिच्छिलम्, विजिविलम् (+ विजिपिकम् ) विज्जलम्, विजिलम् ।। १२. 'दूसरे पदार्थ से मिश्रित पदार्थ, या-पुष्प-धूपादिसे सुगन्धित किये गये पदार्थ'के २ नाम है-भावितम्, वासितम् ॥ १३. 'चुन, फटककर साफ किये गये पदार्थ'के २ नाम है--संमृष्टम्। शोधितम् ॥ ___१४. कांजी' के १७ नाम हैं-काश्चिकम्, कालिकम्, धान्याम्लम्, Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणिः कुल्माषाभिषुतावन्तिसोमशुक्तानि कुञ्जलम् ॥ ७६ ॥ चुक्रं धातुघ्नमुन्नाहं रक्षोघ्नं कुण्डगोलकम् । महारसं सुवीराम्लं सौवीरं १क्षणं पुनः ॥ ८० ॥ तैलं स्नेहोऽभ्यञ्जनञ्च श्वेषवार उपस्करः । ३ स्यात्तिन्तिडीकन्तु चुक्रं वृक्षाम्लं चाम्लवेतसे ।। ८१ ॥ हरिद्रा काञ्चनी पीता निशाख्या वरवर्णिनी । ५क्षवः क्षुताभिजननो राजिका राजसर्षपः ॥ ८२ ॥ असुरी कृष्णिका चासौ ६कुस्तुम्बुरु तु धान्यकम धन्या धन्याकं धान्याकं ७मरीचं कृष्णमूषरणम् ॥ ८३ ॥ कोलकं वेल्लजं धार्मपत्तनं यवनप्रियम् । शुण्ठी महौषधं विश्वा नागरं विश्वभेषजम् ॥ ८४ ॥ १०८ आरनालम्, तुषोदकम् कुल्माषाभिषुतम् (+ कुल्माषम्, श्रभिषुतम् ), अवन्तिसोमम्, शुक्तम्, कुञ्जलम्, चुक्रम् ( पु न ), धातुघ्नम्, उन्नाहम्, रक्षोघ्नम्, कुण्डगोलकम्, महारसम्, सुवीराम्लम्, सौवीरम् ॥ शेषश्चात्र - कुल्माषाभिषुते पुनः । गृहाम्बु- मधुरा च । . १ 'तैल' के ४ नाम हैं---प्रक्षणम्, तैलम्, स्नेह: ( २ पु न ), अभ्यञ्जनम् ॥ २. 'मसाले (मेथी, जीरा घना, हल्दी आदि ) के २ नाम हैं - वेषवारः, "उपस्करः ॥ ३. 'अमचुर, या इमिली' के ४ नाम हैं- तिन्तिडीकम्, चुक्रम् (पुन), `वृक्षाम्लम्, अम्लवेतसम् ॥ ४. 'हल्दी' के ५ नाम है--हरिद्रा, काञ्चनी, पीता, निशाख्या ( 'रात्रि' के वाचक सभी पर्याय ), वरवर्णिनी ॥ ५. 'ई, सरसो के ६ नाम हैं--क्षवः, क्षुताभिजननः, राजिका, राजसर्षपः, असुरी, कृष्णिका ।। ६. 'धनियां' के ५ नाम हैं – कुस्तुम्बुरु ( पुन ), धान्यकम्, धन्या, धन्याकम्, धान्याकम् || .: शेषश्चात्र -- श्रथ स्यात् कुस्तुम्बुरुरल्लुका | ७. 'काली मिर्च' के ७ नाम हैं-मरिचम्, कृष्णम्, ऊषणम्, कोलकम्, वेल्लजम, धार्मपत्तनम, यवनप्रियम् ॥ . शेषश्चात्र -- मरिचे तु द्वारवृत्तं मरीचं बलितं तथा । 'सोट' के ५ नाम हैं- राठी, महौषधम्, विश्वा ( स्त्री न ), नागरम्, विश्वभेषजम् ॥ Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'मणिप्रभा' व्याख्योपेतः वैदेही पिप्पली कृष्णोपकुल्या मागधी करणा । २ तन्मूलं ग्रन्थिकं सर्वग्रन्थिकं चटकाशिरः ।। ८५ ।। ३ त्रिकटु त्र्यूषणं व्योप४मजाजी जीरकः कणा । ५ सहस्रवेधि वाह्लीकं जतुकं हिङ्गु रामठम् ।। ८६ ।। ६न्यादः स्वदनं खादनमशनं निवसो वल्भनमभ्यवहारः । जग्धिर्ज क्षणभक्षण लेहाः प्रत्यवसानं सिराहारः || ८ | सानाऽवष्वाणविष्वाणा भोजनं जेमनादने | "चर्वणं चूर्णनन्दन्तै- जिह्वा ऽऽस्वादस्तु लेहनम् ||८ ॥ ह्कल्यवर्तः प्रातराशः १० सग्धिस्तु सहभोजनम् । ११ ग्रास गुडेरकः पिण्डो गडोलः कवको गुडः ॥ ८६ ॥ गण्डोलः करण मर्त्यकाण्डः ३ ] १०६ १. ‘पीपली' के ६ नाम वैदेही, पिप्पली, कृष्णा, उपकुल्या, मागधी, करणा ।। शेषश्चात्र -- पिप्पल्या मूषणा शौण्डी चपला तीक्ष्णतण्डुला । उषणा तण्डुलकला कोला च कृष्णतण्डुला ॥ २. 'पीपरामूल' के ३ नाम हैं - ( + पिप्पलीमूलम् ), ग्रन्थिकम्, सर्वग्रन्थि कम्, चटकाशिरः (–रस् ) ॥ ३. 'त्रिकटु ( पीपली, सोंठ तथा काली मिर्च - इन तीनों के समुदाय ) ' के ३ नाम हैं — त्रिकटु ( + त्रिकटुकम् ), ज्यूषणम्, व्योषम् ।। '४. 'जीरा' के ३ नाम हैं - - जाजी, जीरकः ( पुन ), कणा || शेषश्चात्र - जीरे जीरणजरणौ । ५. ‘हींग' के ५ नाम हैं—सहस्रवेधि, वाह्लीकम्, जतुकम्, हिङ्गु ( पुन ), रामटम् !! शेषश्चात्र - हिङ्गौ तु भूतनाशनम् । श्रगूढगन्धमत्युग्रम् ॥ ६. 'भोजन करने, स्वाद लेने के २० नाम हैं—न्यादः स्वदनम्, खादनम्, अशनम्, निघस, वल्भनम् श्रभ्यवहारः, जग्धिः, जक्षणम्, भक्षणम्, लेहः, प्रत्यवसानम्, घसि:, आहारः, प्सानम्, श्रवष्वाणः, विष्वाणः, भोजनम्, जेमनम् (+ जवनम् ), अदनम् ॥ ७. ‘दाँत से चवाने'का १ नाम हैं - चर्वणम् ॥ ८. 'चाटने' के २ नाम हैं- जिह्वास्वादः, लेहनम् । 11 ६. 'कलेवा ( जलपान, नास्ता ) के २ नाम हैं- कल्यवर्तः, प्रातराशः ॥ १०. 'एक साथ बैठकर भोजन करने के २ नाम हैं—सग्धिः ( स्त्री ), सहभोजनम् ॥ ११. 'ग्रास' के ८ नाम है - प्रासः, गुडेरकः, पिण्ड : ( पु स्त्री ), गडोल:, कवकः, गुडः, गण्डोल:, कवल: ( पुन ) || Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणिः - १स्तृप्ते त्वाघ्रातसुहिताऽऽशिताः । ॥ ६१ ॥ २तृप्तिः सौहित्यमा घ्राण ३मथ भुक्तसमुज्झिते ॥ ६०॥ फेला पिण्डोलिफेली च ४स्वोदरपूरके पुनः । कुक्षिम्भरिरात्मम्भरिरुद्रम्भरि५रप्यथ द्यूनः स्यादौदरिको विजिगीषाविवर्जिते । ६ उदरपिशाचः सर्वान्नीनः सर्वान्नभक्षकः ॥ ६२ ॥ ७ शाष्कुलः पिशिताश्युन्मदिष्णुस्तुन्मादसंयुतः । Eगृध्नुस्तु गर्धनस्तृष्णक् लिप्सुलुब्धोऽभिलाषुकः ॥ ६३॥ लोलुपो लोलुभो १० लोभस्तृष्णा लिप्सा वशः स्पृहा काङ्क्षाऽऽशंसागर्धवान्छाऽऽशेच्छेहातृण्मनोरथाः 11 28 11. ११० कामोऽभिलाषोऽ १. 'तृप्त ( खाकर सन्तुष्ट, व्यक्ति ) के ४ नाम हैं-तृप्तः, आघ्रातः ( + आघ्राण: ), सुहितः, आशितः । २, 'तृप्ति' के ३ नाम हैं - तृप्तिः, सौहित्यम्, आघ्राणम् ॥ ३. 'जूठा' के ४ नाम हैं- भुक्तसमुज्झितम, फेला, पिण्डोलिः, फेलिः ( २ स्त्री ) ॥ ४. पेटू ( अपना ही पेट भरनेवाले ) ' के ४ नाम हैं— स्वोदरपूरक:, कुक्षिम्भरिः, आत्मम्भरिः, उदरम्भरिः || • ५. ‘अत्यधिक भूखे’के २ नाम है — श्राद्यनः, श्रौदरिकः ॥ ६. ‘सत्र प्रकारके अन्न खानेवाले' के ३ नाम हैं - उदरपिशाचः, सर्वान्नीनः, सर्वान्नभक्षकः (+ सर्वान्नभोजी - जिन् ) ॥ ७. 'मांसाहारी' के २ नाम हैं - शाष्कुलः ( + शौष्कलः ), पिशिताशी (- शिन् । + मांसभक्षकः, मांसाहारी - रिन् ) ॥ ८. 'पागल' के २ नाम हैं - उन्मदिष्णुः, उन्मादसंयुतः ( + उन्मादी ---दिन् ) ।। ६. ‘लोभी’के ८ नाम हैं— गृध्नुः, गर्धनः, तृष्णक् (-ज् ), लिप्सुः, लुब्ध:, अभिलाषुकः, लोलुपः, लोलुभः ॥ विमर्श - कुछ लोगोंके मत से प्रथम ६ नाम 'लोभी' के तथा अन्तवाले २ नाम ' अत्यधिक लोभी' के हैं । शेषश्चात्र - लिप्सौ लालसलम्पटौ । लोलः । १०. 'लोभ' के १६ नाम है— लोभः, तृष्णा, लिप्सा, वशः, स्पृहः. काङ्क्षा, श्राशंसा, गर्धः, वाञ्छा, आशा, इच्छा, ईहा (+ईहः ), तृट् (−ब्). - मनोरथ: ( + मनोगवी), काम (पुन), अभिलाषः ।। Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १११ मयंकाण्डः ३] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः -१भिध्या तु परस्वेहोरद्धतः पुनः । अविनीतो ३विनीतस्तु निभृतः प्रश्रितोऽपि च ॥६५॥ "४विधेये विनयस्थः स्यापदाश्रवो वचने स्थितः। ६वश्यः प्रणेयो ७धृष्टस्तु वियातो धृष्णुधृष्णजौ ॥६६॥ ८वीक्षापन्नो विलक्षोहऽथाधृष्टे शालोनशारदौ। १-शुभंयुः शुभसंयुक्तः स्या११दहंयुरहंकृतः ॥१७॥ १२कामुकः कमिता कम्रोऽनुकः कामयिताऽभिकः । कामनः कमरोऽभीकः १३पञ्चभद्रस्तु विप्लुतः॥१८॥ व्यसनी १४हर्षमाणस्तु प्रमना हृष्टमानसः । विकुर्वाणो १५ विचेतास्तु दुरन्तर्विपरो मनाः ॥ ६६ ॥ शेषश्चात्र-लिप्सा तु धनाया । रुचिरीप्सा तु कामना । १. 'अनुचित रूपसे दूसरेके धनकी इच्छा करने के २ नाम हैंपरस्वेहा, अभिध्या ॥ . २. 'उद्धत' के २ नाम है-उद्धत:, अविनीतः ।। ३. विनीत'के ३ नाम हैं-विनीतः, निभृतः, प्रश्रितः ।। ४. वनयमें स्थित'के २ नाम हैं-विधेयः, विनयस्थः ।। ५. 'बात माननेवाले'के २ नाम हैं-आश्रवः, वचनेस्थितः ।। ६. 'वशीभूत'के २ नाम हैं-वश्यः, प्रणेयः ।। विमर्श-किसी-किसीके मतसे 'विधेयः' श्रादि ६ नाम एकार्थक हैं ।। ७. 'डीठ'के ४ नाम हैं-धृष्टः, वियातः, धृष्णुः, धृष्णक (-ज । +प्राल्भः).॥ ८. 'विस्मययुक्त के २ नाम हैं-वीक्षापन्नः, विलक्षः ॥ ६. 'धृष्टताहीन'के ३ नाम हैं-अधृष्टः, शालीनः, शारदः ।। १०. 'शुभयुक्त के २ नाम है-शुभंयुः, शुभसंयुक्तः ॥ . . ११. 'अहङ्कारी, घमण्डी'के २ नाम हैं-अहंः , अहङ्कतः (+अहङ्कारी -रिन् )॥ - १२. 'कामी'के ह नाम हैं-कामुकः, कमिता (-४), कम्रः, अनुकः, कामयिता (-तृ ), अभिकः, कामन: (+कमनः), कमरः, अभीकः ।। । १३. ( जूश्रा, परस्त्रीसंगम आदि ) 'व्यसनमें अासक्त' के ३ नाम हैपञ्चभद्रः, विप्लुतः, व्यसनी ( -निन् ) ॥ १४. 'हर्षित, प्रसन्नचित्त' के ४ नाम हैं-हर्षमाणः, प्रमनाः (-नस ), हृष्टमानसः, विकुर्वाणः॥ १५. विमनस्क ( उदास, अन्यमनस्क ) के ४ नाम हैं-विचेताः (-तस), दुर्मनाः, अन्तर्मनाः, विमनाः (३-नस् ).॥ Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२ अभिधानचिन्तामणिः . १ मते शौण्डोत्कटक्षीबा २उत्कस्तूत्सुक उन्मनाः । उत्कण्ठितो३ ऽभिशस्ते तु वाच्यक्षारितदूषिताः ॥ १०० ॥ ४ गुणैः प्रतीते त्वाद्दतलक्षणः कृतलक्षणः । ५निर्लक्षणस्तु पाण्डुरपृष्ठः ६ संकसुकोऽस्थिरे ॥ १०१ ॥ तूष्णींशीलस्तु तूष्णीको विवशोऽनिष्टदुष्टधीः । हबद्धो निगडितो नद्धः कीलितो यन्त्रितः सितः ।। १०२ ।। सन्दानितः संयतश्च १० स्यादुद्दानन्तु बन्धनम् । ११ मनोहतः प्रतिहतः प्रतिबद्धो हतश्च सः ॥ १०३ ॥ १२ प्रतिक्षिप्तोऽधिक्षिप्तो १३ ऽवकृष्टनिष्कासितौ समौ । १४श्रात्तगन्धोऽभिभूतो१५पध्वस्ते न्यक्कृत धिक्कृतौ ॥ १०४ ॥ १. 'मतवाले' के ४ नाम हैं - मत्तः, शौण्डः, उत्कटः, क्षीबः ॥ २. 'उत्कण्ठित' के ४ नाम हैं - उत्कः, उत्सुकः उन्मनाः ( - नस् ), उरकटितः ॥ ३. ‘'निन्दित' के ४ नाम है अभिशस्तः, वाच्यः, चारित: ( + श्रीक्षारित:.), दूषितः। ( किसी-किसीके मत में 'मैथुन के विषयमें निन्दित' के ये नाम हैं ) ॥ ४. 'गुणों से प्रसिद्ध' के २ नाम हैं- आइतलक्षणः, कृतलक्षणः ॥ ५. 'लक्षणहीन' के २ नाम हैं - निर्लक्षणः, पाण्डुरपृष्ठ: ।। ६. 'अस्थिर' के २ नाम हैं - संकसुकः, अस्थिरः || ७. 'चुप रहनेवाले' के २ नाम हैं - तूष्णींशीलः, तूष्णीकः ॥ ८. 'निष्ट तथा दुष्ट बुद्धिवाले' के २ नाम हैं- विवशः, अनिष्टदुष्टधीः ॥ ६. 'बँधे हुए' के ८ नाम हैं - बद्धः, निगडितः, नद्धः, कीलितः, यन्त्रितः, सित:, संदानितः, संयतः । १०. 'बन्धन' के २ नाम हैं- उद्दानम्, बन्धनम् ॥ ११. 'टूटे हुए मनवाले' के ४ नाम हैं - मनोहतः, प्रतिहतः, प्रतिबद्धः, हृतः ॥ १२. 'प्रतिक्षिप्त' के २ नाम हैं - प्रतिक्षिप्तः, अधिक्षिप्तः ॥ १३. 'निष्कासित ( घर आदिसे निकाले गये )' के २ नाम हैं - अवकृष्टः, निष्कासित: ( + निःसारित: ) | १४. 'अभिभूत ( नष्ट अभिमानवाले ) के २ नाम हैं— श्री त्तगन्ध:, श्रभिभूतः ॥ १५. 'धिक्कारे गये' के ३ नाम हैं - अपध्वस्तः, न्यक्कृतः धिक्कृतः । ( किसी-किसी के मत से 'श्रात्तगन्ध:' श्रादि ५ नाम एकार्थक हैं ) । Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११३ मर्त्यकाण्ड: ३] मणिप्रभा'व्याख्योपेतः १निकृतस्तु विप्रकृतो २न्यक्कारस्तु तिरस्क्रिया । परिभावो विप्रकारः परापर्यभितो भवः ।। १०५ ॥ अत्याकारो निकारश्च ३विप्रलब्धस्तु वञ्चितः । ४स्वप्नक शयालुनिंद्रालुपूर्वृणिते प्रचलायितः ॥ १०६ ॥ ६निद्राणः शयितः सुप्तो ७जागरूकस्तु जागरी। जागर्या स्याज्जागरणं जागरा जागरोऽपि च ॥ १०७ ।। हविध्वगम्चति विष्वव्यङ १०देवव्यङ् देवमञ्चति । ११सहाश्चति तु सध्यङ् स्यात् १२ तिर्यङ पुनस्तिरोऽश्चति ॥ १०८ ।। १३संशयालुः संशयिता १४गृहयालुर्ग्रहीतरि । १५पतयालुः पातुकः स्यात् १६समौ रोचिष्णुरोचनौ ॥ १०६ ।। १. 'तिरस्कृत' के २ नाम हैं-निकृतः, विप्रकृतः (+ तिरस्कृतः ) । २. तिरस्कार के ६ नाम हैं-न्यक्कारः, तिरस्क्रिया (+तिरस्कारः ), परिभावः, विप्रकारः, पराभवः, परिभवः, अभिभवः, अत्याफारः, निकारः ।। ३. 'ठगे गये'के २ नाम हैं-विप्रलब्धः, वञ्चितः ।। ४. 'सोनेवाले' के ३ नाम हैं-स्वप्नक (-ज ), शयालुः, निद्रालुः ॥ ५. 'नींदसे घूणित होते हुए'के २ नाम हैं-घूर्णितः, प्रचलायितः ।। ६. 'सोये हुए'के ' नाम हैं-निद्राणः, शयितः, सुप्तः ।। . ७. 'जागते हुए'के २ नाम, हैं-जागरूकः (+जागरिता-तृ, ), जागरी (-रिन् । ॥ ८. 'जागने'के ४ नाम हैं-जागर्यो, जागरणम्, जागरा, जागरः ।। - ६. 'सब तरफ शोभनेवाले'का १ नाम है-विष्वद्रयङ् (द्रव्यञ्च । + विश्वद्रव्यङ्-द्रयञ्च ) ।। १०. 'देवोंकी पूजा करनेवाले'का १ नाम हैं-देवद्रयङ (-द्रयञ्च )॥ ११. 'साथ पूजन करने या रहनेवाले'का १ नाम है-सध्रयङ (ध्रत्यञ्च ) ॥ . १२. ति→ चलनेवाले'का १ नाम है-तिर्यड (-र्यञ्च ) ॥ १३. 'संशय करनेवाले'के २ नाम हैं-संशयालुः, संशयिता (-तृ । सांशयिकः ) ॥ . १४. 'ग्रहण करने ( लेने )वाले' के २ नाम हैं-ग्रहयालुः, ग्रहीता १५. 'गिरनेवाले'के २ नाम हैं-पतयालुः, पातुकः ॥ १६. 'रुचने (शोभने ) वाले'के २ नाम हैं-रोचिष्णु:, रोचनः ।। ८ अ० चि० Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ अभिधानचिन्तामणिः १दक्षिणाईस्तु दक्षिण्यो दक्षिणीयो२ऽथ दण्डितः । दापितः साधितो३ऽय॑स्तु प्रतीक्ष्यः ४पूजितेऽहितः ॥ ११० ॥ नमस्यितो नमसिताऽपचितावञ्चितोऽर्चितः। ५पूजाऽहणा सपर्याऽर्चा ६उपहारबली समौ ॥ १११ ॥ विक्लवो विह्वलः स्थूलः पोवा पीनश्च पीवरः । चक्षुष्यः सुभगो १०द्वेष्योऽक्षिगतो११ऽथांसलो बली ॥ ११२ ॥ निदिग्धो मांसलचोपचितो१२ऽथ दुर्बलः कृशः । क्षामः क्षीणस्तनुश्छातस्तलिनाऽमांसपेलवाः ।। ११३ ॥ १३पिचिण्डिलो बृहत्कुक्षितुन्दिस्तुन्दिकतुन्दिलाः। . उदयु दरिल १. 'दक्षिणाके . योग्य'के ३ नाम हैं-दक्षिणाहः, · दक्षिण्यः, दक्षिणीयः ॥ , . - २. 'दण्डित: ( दण्ड पाये हुए ) के ३ नाम हैं-दण्डितः, दापितः, (+दायित: ), साधितः ।। ३. 'पूज्य'के २ नाम हैं-श्रयः, प्रतीक्ष्यः (+ अर्चनीयः, पूज्य:, पूजनीयः,.........)॥ ४. 'पूजित'के ७ नाम हैं-पूजितः, अर्हितः, नमस्यितः, नमसितः, अपचितः (+ अपचायितः, ), अञ्चितः, अर्चितः ।। । ५. 'पूजा'के ४ नाम हैं-पूजा, अर्हणा, सपर्या, अर्चा | शेषश्चात्र-पूजा त्वचितिः। .... ६. 'उपहार' ( यथा-काकबलि, जीवबलि,......)के २ नाम हैंउपहारः, बलिः, (पु स्त्री)। ७. 'विह्वल'के २ नाम हैं-विक्लवः, विह्वलः ॥ ८. 'मोटे'के ४ नाम हैं-स्थूलः, पीवा (-वन् ), पीनः, पीवरः ॥ ६. 'सुन्दर, सुभग'के २ नाम हैं-चतुष्यः, सुभगः ॥ १०. 'द्वेषयोग्य (अाँखमें गड़े हुए ) के २ नाम है-दूष्यः, अक्षिगतः ॥ ११. 'बलवान् , मांसल के ५ नाम हैं-अंसलः, बली (-लिन् ।+ बलवान् -वत् ), निर्दिग्धः, मांसल:, उपचितः ।। १२. 'दुबल'के ६ नाम है--दुर्बलः, कृशः, क्षामः, क्षीणः, तनुः, छातः, तलिनः, अमांस:, पेलवः । १३. 'बड़े तोदवाले' के ७ नाम हैं-पिचिण्डिलः, बृहत्कुक्षिः, तुन्दी (-दिन ), तुन्दिकः, तुन्दिलः, उदरी (-रिन् ), उदरिलः (+उदरिफः, तुन्दिभः)॥ Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मर्त्यकाण्डः ३] मणिप्रभाव्याख्योपेतः ११५ -विनविखुविना अनासिके ॥ ११४ ॥ २नतनासिकेऽवनाटोऽवटोटोऽवभ्रटोऽपि च । ३वरणास्तु खरणसो ४नःक्षुद्रः क्षुद्रनासिकः ।। ११५ ।। ५खुरणा: स्यात् खुरणसः ६उन्नसस्तूप्रनासिकः । ७पङ्गःोणः खलतिस्तु खल्वाट ऐन्द्रलुप्तिकः ॥ ११६ ॥ शिपिविष्टो बभ्रु-रथ काणः कनन एकदृक् । १०पृश्निरल्पतनौ ११कुब्जे गडुलः १२कुकरे कुणिः ।। ११७ ।। १३निखर्वः खट्टनः खः खर्वशाखश्च वामनः । १४अकणे एडो बधिरो १५दुश्चमो तु द्विनग्नकः ।। ११८ ॥ वण्डश्च शिपिविष्टश्च१. 'नकटे'के ४ नाम हैं-विखः, विखु:, विनः, अनासिकः ।। २. 'नकचिपटे (चिपटी नाकवाले )के ४ नाम है-नतनासिकः, अवनाट:, अक्टोट:, अवभ्रटः ।। शेषश्चात्र-अथ चिपिटो नम्रनासिके । ३. 'नुकीली नाकवाले'के २ नाम हैं-खरणाः (-णस ), खरणसः ।। ४. 'छोट। नाकवाले'के २ नाम हैं-न:तुद्रः, क्षुद्रनासिकः ।। ५. 'खुरके समान ( बड़ी ) नाकवाले'के २ नाम हैं-खुरणाः (-णस), खुरणस: ॥. ६. 'ऊँची नाकवाले'के २ नाम हैं-उन्नसः, उग्रनासिकः ।। ७. 'पगुले'के २ नाम हैं—पङ्गः, श्रोणः ॥ शेषश्वात्र-पङ्गुलस्तु पीठसी। ८. 'खल्वाट ( जिसके मस्तकमध्यके वाल झड़कर गिर गये हों, उसके ५ नाम हैं-खलतिः, खल्वाट: (+खलतः ), ऐन्द्रलुप्तिक: शिपिविष्टः, बभ्रः ।। ६. काना' के ३ नाम हैं-काण:, कननः, एकटक (-दृश् ।+एकाक्षः)। १०. 'नाटा, ठिंगना (छोटी कदवाले)'के २ नाम हैं--पृश्निः , अल्पतनुः ।। शेषश्चात्र–किरातस्त्वल्पवर्मणि । ११. 'कूबड़ा' के २ नाम है-कुन्जः, (+ न्युजः ), गडुलः ॥ १२. 'लूला'के २ नाम हैं- कुकरः, कुणिः । १३. 'बौना' के ५ नाम हैं-निखर्वः, खट्टनः, खर्वः, खर्वशाखः, वामनः ।। शेषश्चात्र-खर्वे ह्रस्वः । १४. 'बहरे'के २ नाम हूँ-अकर्णः, एडः, बधिरः ।। ___१५. 'खराब ( रूखे ) चमड़ेवाले या-नपुंसक' के "४ नाम है-दुश्चर्मा (-मन् ), द्विनग्नकः, वण्ड:, शिपिविष्टः ।। Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणिः . - - १खोडखोरौ तु खञ्जके । २विकलाङ्गस्तु पोगण्ड ३ ऊर्ध्व जुरूर्ध्वजानुकः ।। ११६ !! ऊर्ध्वज्ञश्चा४प्यथ प्रज्ञप्रझौ विरलजान के । ५संज्ञसंज्ञौ युतजानौ ६वलिनो वलिभः समौ ॥ १२० ॥ ७उदग्रदन् दन्तुरः स्यात् प्रलम्बाण्डस्तु मुष्करः । अन्धो गताक्ष १० उत्पश्य उन्मुखो ११धोमुखस्त्ववाङ् ॥ १२१ ॥ १२ मुण्डस्तु मुण्डितः १३ केशी केशवः केशिकोऽपि च । १४वलिर : केकरो - ११६ १. 'खञ्ज (लँगड़े)' के ३ नाम हैं- खोड:, खोरः, खञ्जकः (+ खञ्जः ) ।। २. ‘किसी अङ्ग से हीन या अधिक ( यथा - २,३ या ४ अङ्गुलियोंवाला, या छः अङ्गुलियोंवाला - छांगुर ) ' के २ नाम हैं -- विकलाङ्गः, पोगण्डः ॥ ३. 'जिसका घुटना ऊपर उठा हो, उस' के ३ नाम हैं – ऊर्ध्वज्ञः, ऊर्ध्व - जानुकः, ऊर्ध्वज्ञः ॥ ४. 'वातादि दोष से जिसका घुटना अलग-अलग रहे अर्थात् बैठने में सटता न हो उस’के ३ नाम हैं- प्रजुः, प्रज्ञः, विरलजानुकः || ', ५. मिले ( सटे ) हुए घुटनेवाले' के ३ नाम हैं - संज्ञः, संज्ञः, युतजानुः ॥ ६. ( रोग या बुढ़ापा आदि से ) ' सिकुड़े हुए चमड़ेवाले' के २ नाम हैंवलिनः, वलिभः ॥ ७. 'दन्तुर ( बाहर निकले हुए दाँतवाले ) के २ नाम हैं - उदग्रदन् ( - त् ), दन्तुरः ॥ ८. 'बढ़े हुए अण्डकोषवाले' के २ नाम हैं - प्रलम्बाण्डः, मुष्करः ॥ ६. ' अन्धे' के २ नाम हैं - अन्धः, गताक्षः ॥ शेषश्चात्र — अनेडमूकस्त्वन्धे । १०. 'ऊपर की ओर उठे हुए मुखवाले' के २ नाम हैं - उत्पश्यः, उन्मुखः ॥ ११. 'नीचे की ओर दबे हुए मुखवाले' के २ नाम हैं - अधोमुखः, श्रवाङ ( - वाञ्च् ) ॥ . शेषश्चात्र - न्युब्जस्त्वधोमुखे । १२. ‘मुण्डित ( शिरके बालको मुँड़ाए हुए ) ' के २ नाम हैं- मुण्ड:, मुण्डित: । १३. 'शिरपर बाल बढ़ाये हुए' के ३ नाम हैं - केशी ( - शिन् ), केशव:, केशिकः । t १४. 'सर्गपाताली ( जो एक आँखको ऊपर उठाकर देखा करता हो, उस ) ' के २ नाम हैं - वलिरः, केकरः ॥ Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मर्यकाण्ड: ३] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः ११७ -वृद्धनाभौ तुण्डिलतुण्डिभौ ॥ १२२ ।। २आमयाव्यपटुग्लानो ग्लास्नुर्विकृत आतुरः। व्याधितोऽभ्यमितोऽभ्यान्तो ३दद रोगी तु दणः ।। १२३ ।। ४पामनः कच्छरस्तुल्यौ ५सातिसारोऽतिसारकी। वातकी वातरोगी स्या७च्छलेष्मलः श्लेष्मणः कफी ।। १२४ ॥ ८क्लिन्ननेत्रे चिल्लचुल्लौ पिल्लोऽथाऽर्शोयुगशंसः। १. मूछिते मूर्तमूर्छालौ ११सिध्मलस्तु किलालिनि ।। १२५ ।। १२पित्तं मायुः १३कफः श्लेष्मा बलाशः स्नेहभूः खटः। १४रोगो रुजा रुगातको मान्द्यं व्याधिरपाटवम् ।। १२६ ॥ आम प्रामय आकल्यमुपतापो गदः समाः। १. 'बड़ी नाभिवाले'के ३ नाम हैं--वृद्धनाभिः, तुण्डिल:, तुण्डिभः ॥ २. 'रोगी'के ६ नाम हैं-आमयावी (- विन् ), अपटुः, ग्लानः, ग्लास्नुः, विकृतः, आतुरः, व्याधितः (+रोगित:, रोगी - गिन् ), अभ्यमितः, अभ्यान्तः ॥ ३. 'दादके रोगी'के २ नाम हैं-दऐरोगी ( - गिन् ), दद्रुणः (+दद्रण:)॥ ४. 'पामा रोगीके २ नाम हैं—पामनः (+पामरः ), कच्छुरः ॥ ५. 'अतिसारके रोगी के २ नाम हैं-सातिसारः, अतिसारकी (-किन् । +अतीसारकी - किन् )। ६. वातरोगी'के २ नाम है-वातकी (-किन् ), वातरोगी (-गिन् )॥ ७. 'कफके रोगी के ३ नाम हैं-श्लेष्मल:, श्लेष्मणः, कफी (--फिन् ।। ८. कचरसे भरी हुई आँखवाले'के ४ नाम हैं-क्लिन्ननेत्रः, चिल्ल:, चुल्ला, पिल्लः ॥ ६. बवासीरके रोगी'के २ नाम हैं अर्शोयुक (–ज ), अर्शसः ।। १०. 'मू के रोगी, मूछित'के ३ नाम हैं-मूछितः, मूत्तः, मूर्छालः ॥ १.१..'सिध्म ( सिहुला, सेहुआ, या-पपड़ीके समान चमड़ा हो जाना ) के रोगी के २ नाम हैं—सिध्मल:, किलासी (–सिन् )। १२. 'पित्तके दो नाम हैं-पित्तम् , मायुः (पु)॥ शेषश्चात्र-पित्ते पलाग्निः पललज्वरः स्यादग्निरेचकः । १३. 'कफ'के ५ नाम हैं-कफः, श्लेष्मा (-ध्मन् ), बलाशः, स्नेहभूः, खट:.॥ शेषश्चात्र-कफे शिवानकः खेटः ।। - १४. 'रोग'के १२ नाम हैं -रोगः, रुजा, रुक (-ज ), आतङ्कः, मान्द्यम् , व्याधिः, अपाटवम् , आमः, आमयः, आकल्यम् , उपतापः, गदः ।। Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणिः १क्षयः शोषोराजयक्ष्मा यक्ष्मा२ऽथ सुरक्षुतं क्षवः ॥ १२७॥ ३कासस्तु क्षवथुः ४पामा खसः कच्छूर्विचचिका । ५कराडूः कण्डूयनं खजू: कण्डूया६ऽथ क्षतं व्रणः।। १२८ ॥ अरुरीम क्षणनुश्च रूढव्रणपदं किणः। परलीपदं पादवल्मीकः पादस्फोटो विपादिका ।। १२६ ।। १०स्फोटकः पिटको गण्डः ११पृष्ठप्रन्थिः पुनर्गडुः । १२श्वित्रं स्यात्पाण्डुरं कुष्ठं १३केशघ्नन्त्विन्द्रलुप्तकम् ।। १३०॥ १४सिध्म किलासं त्वक्पुष्पं सिध्मं १. 'क्षय (टी० बी० ) रोग'के ४ नाम हैं-क्षयः, शोषः, राजयक्ष्मा,यदमा ( २-क्ष्मन् , पु)॥ २. 'छींक के तीन नाम हैं-दुत् , क्षुतम् , क्षवः ॥ . .. ३. 'खांसी'के २ नाम है-कासः, क्षवथुः (पु)॥ . . ४. 'पामारोग'के ४ नाम हैं—पामा (-मन् ,+मा, स्त्री.) खस:, कच्छूः (स्त्री), विचिका ॥ . ५. खाज'के ४ नाम है कण्डूः, कण्डूयनम् , खर्जुः (स्त्री), कण्डूया (+कण्डूतिः)॥ ६. 'घाव, फोड़ा'क ५ नाम हैं-क्षतम् , ब्रणः (पु न ), अरुः (-रुस , न ), ईमम् ( न ।+न पु), क्षणनु: ( पु ) ॥ ७. 'घटा'का २ नाम हैं-रूढव्रणपदम्, किणः ।। ८. 'श्लीपद (फीलपांव ) के २ नाम हैं--श्लीपदम् , पादवल्मीकः (पुन)॥ ६. 'बिवाय'के २ नाम हैं-पादस्फोट:, विपादिका ॥ १०. 'फुसी'के ३ नाम हैं-स्फोटकः, (+विस्फोट: ), पिटकः ( त्रि), गण्डः ॥ ११. 'कूबड़ के २ नाम हैं--पृष्ठप्रन्थिः , गहुः (पु)॥ १२. सफेद कोढ़ (चरकरोग )'के ३ नाम हैं-श्वित्रम् , पाण्डुरम् , कुष्ठम् ॥ १३. 'बाल झड़नेके रोग'के २ नाम हैं-केशघ्नम् , इन्द्रलुप्तकम् +इन्द्रलुप्तम् )॥ १४. 'सिंहुला, सेंहुअारोग'के ४ नाम हैं-सिम (-मन् न), किलासम्, वरपुष्पम् , सिध्मम् ।। Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मर्त्यकाण्ड: ३] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः ११६ -१काठस्तु मण्डलम् । २गलगण्डो गण्डमालो ३रोहिणी तु गलाङ्करः ॥ १३१ ॥ ४हिक्का हेक्का च हल्लासः ५प्रतिश्यायस्तु पीनसः । ६शोथस्तु श्वयथुः शोफे ७दुर्नामाऽर्थों गुदाङ्करः ।। १३२ ।। पछी प्रच्छर्दिका छर्दिवमथुर्वमनं वमिः । गुल्मः स्यादुदरग्रन्थि १०रुदावर्तो गुद्ग्रहः ॥ १३३ ।। ११गतिर्नाडीव्रणे १२वृद्धिः कुरण्डश्चाण्डवद्धने ।। १३अश्मरी स्यान्मूत्रकृच्छ्रे १४प्रमेहो बहुमूत्रता ॥ १३४ ।। १५ानाहस्तु विबन्धः स्याद्१६ ग्रहणीरुक्प्रवाहिका । १. 'चकत्ता होनेके रोग'के २ नाम हैं-कोठः, मण्डलम् (त्रि । + मण्डलकम् ) ।। २. 'गलगण्ड रोग'के २ नाम हैं - गलगण्ड:, गण्डमालः ।। ३. 'गलेके रोग-विशेष'के २ नाम हैं-रोहिणी, गलाङ्करः ।। ४. 'हिचकी' के ३ नाम हैं-हिक्का, हेक्का, हल्लास: ।। ५. 'पीनस रोग ( सर्दी जुकाम ) के २ नाम हैं-प्रतिश्यायः, पीनसः ॥ ६. 'शोथ, सूजन'के ३ नाम हैं-शोथ: ( पु+न ), श्वयथुः (पु), शोफः ॥ ७. बवासीर के ३ नाम हैं-दुर्नाम (-मन् ), अर्शः (-शस् । २ न ), गुदा रं(+गुदकीलः ।। ८. 'वमन, उल्टी, कय'के ६ नाम हैं-छदिः ( न स्त्री ), प्रच्छर्दिका, छर्दिः (-दिस , स्त्री ), वमथुः ( पु ), वमनम्, वमिः (स्त्री)॥ ___६. 'गुल्म रोग ( पेटमें गोला-सा उठकर शूल पैदा करनेवाले रोगविशेष ) के २ नाम हैं-गुल्मः ( पु न ), उदरग्रन्थिः ॥ १०. 'उदावर्त ( गुदासे कांच निकलनेका रोग) के २ नाम हैं.--उदावतः, गुदग्रहः ।।.. ११. नाडीके रोग-विशेष' के २ नाम हैं-गतिः, नाडीव्रणः ।। १२. 'फोता ( अण्डकोष ) बढ़ने के ३ नाम हैं-वृद्धिः, कुरण्डः, अण्डवर्द्धनम् ( यौ०-. अण्डवृद्धः, कोषवृद्धिः,.........) ।। १३. 'मूत्रकृच्छ रोग'के २ नाम हैं-अश्मरी, मूत्रकृच्छम् ।। १४. 'प्रमेहरोग'के २ नाम हैं-प्रमेहः (+मेहः ), बहुमूत्रता ।। १५. 'श्रानाह ( मल-मूत्र रुक जानेका ) रोग'के २ नाम हैं-आनाहः, विबन्धः ।। १६. 'संग्रहणी रोग'के २ नाम हैं-ग्रहणीरुक (-ज ।+ ग्रहणी, संग्रहणी), प्रवाहिका। Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधान चिन्तामणिः १व्याधिप्रभेदा विद्रधिभगन्दरज्वरादयः ।। १३५ ॥ २दोपज्ञस्तु भिषग्वैद्य आयुर्वेदी चिकित्सकः । . रोगहार्यगदङ्कारो ३भेषजन्तन्त्रमौपवम् ।। १३६ ।। भैषज्यमगदो जायु चिकित्सा रुक्प्रतिक्रिया। उपचर्योपचारो च ५लङ्घनन्त्बपतर्पणम् ।। १३७ ॥ ६जाङ्गुलिको विपभिषक् ७स्वास्थ्ये वार्तमनामयम् । सह्यारोग्ये ८पर्दूल्लाघवातंकल्यास्तु नीरुजि ॥ १३८॥ . कुसृत्या विभवान्वेपी पार्श्वकः सन्धिजीवकः। . .. १०सत्कृत्यालङ्कृतां कन्यां यो ददाति स कूकुदः॥ १३६ ॥ ११चपलश्चिकुरो - उपचारः ।। १. 'विद्रधिः (स्त्री ।+पु), भगन्दरः, ज्वरः, आदि ('अादि शब्द से -अबुदः,......") क्रमशः भीतरी फोड़ा, भगन्दर (गुदाका रोग), ज्वर श्रादि ( आदिसे 'अबुद' श्रादिका संग्रह है ) - ये व्याधिभेद अर्थात् रोगोंके । भेद हैं । २. 'चिकित्सक ( वैद्य, हकीम, डाक्टर के ७ नाम हैं -दोषज्ञः, भिषक , (-ज़ ), वैद्यः, आयुर्वेदी (-दिन् । +आयुर्वेदिक ), चिकित्सकः, रोगहारो (-रिन् ), अगदङ्कारः ।। ३. 'दवा'के ६ नाम हैं-भेषजम् , तन्त्रम् . औषधम् (पु न ), भैषज्यम्, अगदः, जायु: (पु)॥ ____४. 'चिकित्सा, इलाज'के ४ नाम हैं-चिकित्सा, रुक्प्रतिक्रिया, उपचर्या, ५. 'लङ्घन (रोगके कारण भोजन-त्याग करने )के २ नाम हैं-लछनम्, अपतर्पणम् ॥ .६. 'विषके वैद्य'के २ नाम हैं- जाङ्गुलिकः, विषभिषक् (षज् ।+ विषवैद्यः)॥ ७. 'स्वास्थ्य के ५ नाम है-स्वास्थ्यम्, वार्तम्, अनामयम् , सह्यम् , आरोग्यम् ॥ ८. 'नोरोग, स्वस्थ'के ५ नाम हैं-पटुः, उल्लाघः, वार्तः, कल्यः, नीरुक (-ज् + नीरोगः, स्वस्थः )। ६. 'कपट से धन चाहनेवाले'के २ नाम है-पार्श्वकः, सन्धिजीवकः ।। १०. 'भूषणादिसे अलङ्गकृतकर ब्राह्मविधिसे कन्यादान करनेवाले'का १ है-कूकुदः ॥ शेषधात्र-कुकुदे तु कूपदः पारिमितः ।। ११. 'चपल'के २ नाम हैं-चपलः, चिकुरः (+चञ्चलः ) ॥ . Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२१ मयंकाए ड: ३] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः -नीलीरागस्तु स्थिरसौहृदः। २ततो हरिद्रारागोऽन्यः ३सान्द्रस्निग्धस्तु मेदुरः ॥ १४०॥ ४गेहेनर्दी गेहेशूरः पिण्डीशूरो५ऽस्तिमान् धनी । ६स्वस्थानस्थः परद्वेषी गोष्ठश्वोऽक्षापदि स्थितः ।। १४१ ।। आपन्नोऽथापद्विपत्तिर्विपत् हस्निग्धस्तु वत्सलः। . १०उपाध्यभ्यागारिको तु कुटुम्बव्यापृते नरि ॥ १४२ ॥ ११जैवातृकस्तु दीर्घायु१२स्त्रासदायो तु शङ्करः। १३अभिपन्नः शरणार्थी १४कारणिकः परीक्षकः।। १४३ ॥ १. 'दृढ मित्रता या प्रेम करनेवाले'के २ नाम हैं-नीलीरागः, स्थिर सौहृदः ।। २. 'क्षणिक ( कुछ समयके लिए ) मित्रता या प्रेम करनेवाले'का १ नाम है-हरिद्रारागः ॥ . ३. 'अधिक स्निग्ध (स्नेह रखनेवाले )के २ नाम हैं-सान्द्रस्निग्धः, मेदुरः ॥ ___४. 'घरमें ही शूरता प्रदर्शित करनेवाले ( किन्तु अवसर पड़नेपर मैदान छोड़कर भाग या छिप जानेवाले ) के ३ नाम हैं---गेहेनर्दी (-दिन्), गेहेशूरः, पिण्डीशूरः ॥ ... ५. 'धनवान्'के ३ नाम हैं-अस्तिमान् (-मत् ), धनी (-निन् । धनवान्-वत , धनिक,.........") ६. 'अपने स्थानपर रहकर दसरेसे द्वेष करनेवाले'का १ नाम हैगोष्ठश्वः ॥ ७. 'श्रापत्तिमें पड़े हुए'का १ नाम है-श्रापन्नः ॥ ८. 'आपत्तिके ३ नाम हैं-बापत् (-), विपत्तिः, विपत् (-द् ।+ आपदा, आपत्तिः, विपदा )। ६. 'स्नेही' के २ नाम हैं-स्निग्धः, वत्सलः ॥ १०. 'स्त्री-पुत्रादि परिवारके पालन-पोषणमें लगे हुए'के २ नाम हैंउपाधिः (पु), अभ्यागारिकः ।। ११. 'दीर्घायु'के २ नाम है-जैवातृकः, दीर्घायुः, (-युस् । (+आयुधमान्,-मत्, चिरायु:-युष )॥ ___१२. 'दूसरेको भयभीत करनेवाले'के २ नाम हैं-त्रासदायी (-यिन् ), शङ्करः ।। १३. 'शरणार्थी'के २ नाम हैं-अभिपन्नः, शरणार्थी (-र्थिन् ) ॥ १४. 'परीक्षा लेनेवाल'के २ नाम हैं-कारणिकः, परीक्षकः ॥ Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२ अभिधानचिन्तामणिः १समधुकस्तु वरदो २वातीनाः सङ्घजीविनः । ३सभ्याः सदस्याः पार्षद्याः सभास्ताराः सभासदः॥ १४४ ॥ सामाजिकाः ४सभा संसत्समाजः परिषत्सदः । पर्षत्समज्या गोष्ठयास्था प्रास्थानं समितिघंटा ।। १४५ ।। ५सांवत्सरो ज्यौतिषिको मौहूर्तिको निमित्तवित् । दैवज्ञगणकादेशिज्ञानिकाान्तिका अपि ॥१४६ ।। विप्रश्निकेक्षणिकौ च ६सैद्धान्तिकस्तु तान्त्रिकः।। ७लेखकोऽक्षरपूर्वाः स्युश्चणजीवकचश्चवः ॥ १४७ ।।.. वार्णिको लिपिकर दशाक्षरन्यासे लिपिलिविः । १. 'वरदान देनेवाले'के २ नाम हैं-समधुकः, वरदः ।। २. परिश्रमकर जीविका चलानेवाले अनेकजातीय समुदाय के २ नाम हैं-बातीनाः, सङ्घजीविनः (-विन )। ____३. 'सदस्यों, सभासदों'के ६ नाम हैं-सभ्याः, सदस्याः, पार्षद्याः (+पारिषद्याः), सभास्ताराः, सभासदः (-द), सामाजिकाः । ('वातीन' आदि शब्दोंके बहुत्वकी अपेक्षा से बहुवचन कहा गया है ये एक व्याक्तक प्रयोगमें एकवचन में भी प्रयुक्त होते हैं )॥ , ___४. सभाके १२ नाम हैं --सभा, संसत् (-द् ), समाजः, परिषत् (-द्), सदः, (-दस , स्त्री न ), पर्षत् (-द् स्त्री), समज्या, गोष्ठी, आस्था, आस्थानम् (न स्त्री ), समितिः, घटा ॥ ५. 'ज्यौतिषी, दैवज्ञ'के ११ नाम हैं-सांवत्सरः, ज्योतिषिकः, मौहूर्तिकः (+ मौहूर्तः ), निमित्तवित् (+मित्तः, नैमित्तिकः । -२-विद् ), दैवज्ञः, गणकः, श्रादेशी (-शिन् ), ज्ञानी (-निन् ), कान्तिकः, विप्रश्निकः, ईक्षणिकः ॥ ६.( ज्यौतिष, वैद्यक, आदि ),सिद्धान्तके जाननेवाले' के २ नाम हैंसैद्धान्तिकः, तान्त्रिकः ।। ७. 'लेखक, लिपिक (क्लर्क ) के ६ नाम है-लेखकः, अक्षरचण:, अक्षरजीवकः, अक्षरचञ्चुः, वार्णिकः, लिपिकरः (+लिविकरः ।। शेषश्चात्र-अथ कायस्थः, करणोऽक्षरजीविनि । विमर्श :-'अक्षरचञ्चुः' शब्द के स्थानमें 'अक्षरचुञ्चु' शब्द होना चाहिए, क्योंकि 'पाणिनि'ने 'तेन वित्तश्चुञ्चुप्चणपो' (५।२।२६ इस सूत्रसे प्रथम चकारको भी अकारान्त न कहकर उकारान्त ) ही 'चञ्चुप' प्रत्यय किया है । ८. 'लिखावट, लिपि'के ३ नाम हैं-अक्षरन्यासः, लिपिः, लिविः (२ स्त्री। + लिखिता)॥ Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२३ मयंकाण्ड: ३ ] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः १मपिधानं मपिकूपी मलिनाम्बु मषी मसी ॥ १४८ ॥ ३कुलिकस्तु कुलशेठी ४सभिको द्यूतकारकः । ५कितवो धूतकृद्धोऽक्षधूतश्चाक्षदेविनि ॥ १४६ ।। ६दुरोदरं कैतवञ्च द्यूतमक्षवती पणः । ७पाशकः प्रासकोऽक्षश्च देवनस्तत्पणो ग्लहः ॥ १५० ।। . अष्टापदः शारिफलं १०शारः शारिश्च खेलनी। ११परिणायस्तु शारीणां नयनं स्यात्समन्ततः ।। १५१ ।। १२समाह्वयः प्राणिद्यूतं १३व्यालग्राह्याहितुण्डकः । १४स्यान्मनोजवसस्ताततुल्यः१. 'दावात' के २ नाम है-मधिधानम्, मषिकूपी ।। २. 'स्याही, रोशनाई'के ३ नाम हैं-मलिनाम्बु, मषी, मसी (+मषिः, मषी । २ स्त्री पु)॥ ३. 'व्यापारियों में श्रेष्ठ' के २. नाम हैं-कुलिकः (+ कुलकः ), कुलश्रेष्ठी (-ष्ठिन् । ४. 'जुश्रा खेलानेवाले'के २ नाम हैं-सभिकः, द्यतकारकः ।। ५. 'जुआ खेलनेवाले' के ५ नाम हैं-कितवः, द्यतकृत्, धूर्तः, अक्षधूर्तः, अक्षदेवी (-विन् ) ॥ ६. 'जुआ, चूत'के ५ नाम हैं--दुरोदरम् (५ न ), कैतवम्, द्युतम् (पु न ), अक्षवती, पण: ।। . ७. 'पाशा'के ४ नाम हैं-पाशकः, प्रासकः, अक्षः, देवनः ।। ८. 'दावपर रखे हुए धनादि'का १ नाम है-ग्लहः ।। ६. बिसात ( जिसपर सतरंज या चौसरकी गोटियां रखकर खेला जाता है, उस ( कपड़े आदिके बने हुए फलक ) के २ नाम हैं-अष्टापदः, शारिफलम् (+शारिफलकः । २ पु न )॥ १०. ( सतरंज या चौसर आदिकी )गोटियों-मोहरों'के ३ नाम हैंशारः (पु स्त्री ), शारिः ( स्त्री । + पु), खेलनी ॥ ११. 'गोटियोंके चलने ( एक स्थान से दूसरे स्थानोंमें रखने )का १ नाम है-परिणायः ।। १२. दाव पर धनादि रखकर भेंड़, मुर्गे, तीतर अादि प्राणियोंको परस्पर में लड़ाने'के २ नाम हैं-समाह्वयः, प्राणिद्यतम् ॥ १३. 'सपेरा'के २ नाम हैं--व्यालग्राही (-हिन् ), अाहितुण्डिकः ॥ ५४. 'पिताके तुल्य (चाचा अादि वय, विद्या, पद आदिसे) पूज्य व्यक्ति के २ नाम हैं-मनोजवस: (+मनोजवः' ), ताततुल्यः॥ १. यथाऽह व्याडि:-"जनः पितृसधा य: स ताता) मनोजवः ।।" Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ श्रभिधानचिन्तामणि: - १ शास्ता तु देशकः ।। १५२ ।। २ सुकृती पुण्यवान धन्यो ३ मित्रयुर्मित्रवत्सलः । ४ क्षेमङ्करो रिष्टतातिः शिवतातिः शिवङ्करः ॥ १५३ ॥ पूश्रद्धालुरास्तिकः श्राद्धो नास्तिकस्तद्विपर्यये । वैरङ्गिको विरागार्हो वीतदम्भस्त्वकत्कनः ।। १५४ ॥ प्रणाय्योऽसम्मतो १०ऽन्वेष्टाऽनुपद्य ११थ सहः क्षमः । शक्तः प्रभूष्णु१२भू तात्तस्त्वाविष्टः १३ शिथिलः श्लथः ।। १३५ ।। १४ संवाहकोऽङ्गमर्दः स्यात् १५ नष्टबीजस्तु निष्कलः । १६ आसीन उपविष्टः स्याद् - १. 'शासक' के २ नाम हैं - शास्ता ( स्तृ । शासक: ), देशकः ।। २. ‘पुण्यवान्’के ३ नाम हैं — सुकृती ( -तिन् ), पुण्यवान् (-बत् ), धन्यः ॥ ३. 'मित्रवत्सल' के २ नाम हैं - मित्रयुः, मित्रवत्सलः ॥ ४. 'मङ्गलकर्ता के ४ नाम है- क्षेमङ्करः, रिष्टतातिः, शिवङ्करः ॥ ५. 'श्रद्धालु' के ३ नाम हैं— श्रद्धालुः, श्रास्तिकः श्राद्धः ॥ ६. 'नास्तिक ( परलोकादिको नहीं माननेवालों) का १ नाम है - नास्तिक: ।। ७. 'वैराग्य के योग्य' के २ नाम हैं - बैरङ्गिकः, विरागाः ॥ ८. ' दम्भ रहिन' के २ नाम हैं—वीतदम्भः; अकल्कनः ॥ ६. 'असम्मत ( अनभिमत ) के २ नाम है - प्रणाय्यः, असम्मतः ॥ १०. ' खोज करनेवाले' के २ नाम है-अन्वेष्टा ( - ष्ट ), श्रनुपदी ( - दिन् ) ॥ ११. 'समर्थ, शक्त' के ४ नाम है - सहः, क्षमः, शक्तः, प्रभूष्णुः ( + प्रभविष्णुः ) ॥ शेषश्चात्र - मे समर्थोऽलम्भूष्णुः । १२. 'भूत ( प्रेत, पिशाचादि ) से श्राक्रान्त' के २ नाम हैं-भूतात्तः, प्रविष्टः ॥ १३. 'शिथिल, ढीला' के २ नाम हैं-शिथिलः, श्लथः || १४. 'संवाहक ( पीडा आदिके निवारण के लिए शरीरको दबाने या तेल आदिकी मालिश करनेवाले ) के २ नाम है -संवाहकः, अङ्गमर्दः ॥ १५. 'वीर्यशून्य ( रोग या अवस्था श्रादिके कारण जिसका वीर्य नष्ट हो गया है, उस ) के २ नाम है—नष्टत्रीयः, निष्फलः ॥ बैठे १६. शिवतातिः, ' हुए' के २ नाम हैं- आखीनः, उपविष्टः ॥ Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मयंकाण्ड: ३] मणिप्रभा'व्याख्योपेतः १२५ -१ऊर्ध्व ऊर्ध्वन्दमः स्थितः ॥ १५६ ।। २अध्वनीनोऽध्वगोऽन्वन्यः पान्थाः पथिकदेशिकौ । 'प्रवासी ३तद्गणो हारिः ४पाथेयं शम्बलं समे ॥ १५७ ।। ५जबालोऽतिजवी जिवाकरिको जाङ्घिको ७जवी । जवनस्त्वरित वेगे रये रंहस्तरः स्यदः ॥ १५८ ।। जवो वाजः प्रसरश्च मन्दगामी तु मन्थरः। १०कामंगाम्यनुकामीनो११ऽत्यन्तीनोऽत्यन्तगामिनि ॥ १५६ ॥ १२सहायोऽभिचरोऽनोश जीविगामिचरप्लवाः ।। सेवको१३ऽथ सेवा भक्तिः परिचर्या प्रसादना ।। १६० ।। शुश्रषाऽऽराधनोपास्तिवरिवस्यापरीष्टयः । उपचार:: १. 'खड़े हुए'के ३. नाम हैं-ऊर्ध्वः, ऊर्ध्वन्दमः, स्थितः ।। .. २. 'पथिक, राही'के ७ नाम हैं-अध्वनीनः, अध्वगः, अध्वन्यः, पान्थः, पथिकः, देशिकः, प्रवासी (- सिन् । +यात्री, - त्रिन् )। ३. 'पथिकों के समूहका १ नाम है-हारिः॥ ४. 'रास्तेके भोजन के २ नाम है-पाथेयम् , शम्बलम् (पु न )॥ ५. 'अत्यन्त तेज चलनेवाले पथिक'के २ नाम हैं-जङ्घालः, अतिजवी .(- विन् )॥ ६. 'जिसकी जीविका राजा आदिके द्वारा इधर-उधर भेजनेसे चलती हो, उसके २ नाम हैं-जङ्घाकरिकः, जाविकः (+जङ्घाकरः)। - ७. 'तेज चलनेवाले'के ३ नाम हैं-जवी ( - विन् ), जवनः, त्वरितः (किसीके मतसे 'जङ्घाल:' श्रादि शब्द एकार्थक हैं )॥ ८. 'तेजी, वेग'के ८ नाम है-वेगः, रयः, रंहः (- हस् ), तरः ( - रस । २ न ), स्यदः, जवः, वाजः, प्रसरः॥ . 'मन्द चलने या काम करनेवाले'के २ नाम हैं-मन्दगामी (- मिन् ), मन्थरः ।। १०. 'इच्छानुसार चलने या कोई कार्य करनेवाले के २ नाम हैकामंगामी ( - मिन् ), अनुकामीनः ॥ ११. 'अधिक चलनेवाले'के २ नाम हैं-अत्यन्तीनः, अत्यन्तगामी (:- मिन् )॥ १२. 'सेवक'के ७ नाम हैं-सहायः, अभिचरः, अनुजीवी (विन् ), अनुगामी ( - मिन् ), अनुचरः, अनुप्लवः (+अनुगः ), सेवकः ॥ १३. 'सेवा'के १० नाम है-सेवा, भक्तिः, परिचा, प्रसादना, शुश्रषा, Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ अभिधानचिन्तामणिः -१पदातिस्तु पत्तिः पद्गः पदातिकः ॥ १६१ ।। पादातिकः पादचारी पादाजिपदिकावपि । २सरः पुरोऽप्रतोऽग्रेभ्यः पुरस्तो गमगामिगाः।। १६२ ॥ प्रष्ठो३ऽथावेशिकागन्तू प्राघुणोऽभ्यागतोऽतिथिः । प्राघूर्णके४ऽथावेशिकमातिथ्यचातिथेय्यपि ॥१६३ ॥ ५सूर्योढस्तु स सम्प्राप्तो य: सूर्येऽस्तङ्गतेऽतिथिः । ६पादार्थ पाद्यमर्घार्थमयं वार्यस्थ गौरवम् ॥ १६४ ॥ अभ्युत्थानं हव्यथकस्तु स्यान्मर्मस्पृगरुन्तुदः। .... १०ग्रामेयके तु ग्रामीणग्राम्यौश्राराधना, उपास्तिः (+उपासना ), वरिवस्या, परीष्टि: (+पर्येषणा ), उपचार:॥ विमर्श-'अमरसिंह'ने परीष्टि तथा पर्येषणा-इन दो शब्दोंको 'श्राद्धमें ब्राह्मणोंकी सेवा करने अर्थमें माना है ( अमरकोष २।७।३२ )॥ १. 'पैदल'के ८ नाम हैं-पदातिः, पत्तिः, पद्गः, पदातिकः, पादातिकः, पादचारी ( - रिन् ), पादाजिः, पदिकः॥ . शेषश्चात्र-पादातपदगौ समौ ।' २. 'अग्रगामी ( आगे चलनेवाले ) के ७ नाम हैं-पुरःसरः, अग्रत:सर:, अग्रेसर: (+अग्रेगूः), पुरोगमः, पुरोगामी ( - मिन् ), पुरोगः, प्रष्ठः ।। ___३. 'अतिथि के ६ नाम हैं-आवेशिकः, आगन्तु: (+आगन्तुक: ), प्राघुणः, अभ्यागतः, अतिथि: (+अातिथ्यः ), प्राघूर्णकः ।। विमर्श-किसी-किसीने अतिथि तथा अभ्यागतको एकार्थक न मानकर यह भेद बतलाया है कि जिस महात्माने तिथि-पर्व, उत्सव आदिका त्याग कर दिया है, उसे 'अतिथि' और शेषको 'अभ्यागत' कहते हैं; परन्तु यहाँ उक्त भेदका अाश्रय त्यागकर दोनों शब्दोंको एकार्थक ही कहा गया है । ४. 'आतिथ्य (श्रांतथि-सत्कार ) के ३ नाम हैं-श्रावेशिकम् , आतिथ्यम् , अातिथेयी (स्त्री न ) ॥ ५. सूर्यास्त होने के उपरान्त आये हुए अतिथिका १ नाम है-सूर्योढः ।। ६. 'पैर धोने के लिए दिये जानेवाले जल'का १ नाम है–पाद्यम् ॥ ७. 'अर्घके लिए दिये जानेवाले जल'का १ नाम है-अयम् ॥ ८. 'अतिथि (या-पिता, गुरु अादि श्रेष्ठ जनों )को गौरवप्रदानके लिए उठकर खड़े होने के २ नाम हैं-गौरवम् , अभ्युत्थानम् ।। ६. मर्मस्पर्शी (अत्यधिक कष्ट देनेवाले )के ३ नाम हैं-व्यथकः, मर्मस्पृक् ( - स्पृश् ), अरुन्तुदः ।। १०. 'ग्रामीण, देहाती'के ३ नाम हैं-ग्रामेयकः, ग्रामीणः, ग्राम्यः ।। Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८ अभिधानचिन्तामणिः -१अस्याः स्वं मानलीलास्मरादयः। २लीला विलासो विच्छित्तिर्विव्वोकः किलिकिश्चितम् ।। १७१ ।। मोटायितं कुटटुमितं ललितं विहृतन्तथा । विभ्रमश्चेत्यलङ्काराः स्त्रीणां स्वाभाविका दश ।। १७२ ।। प्रागल्भ्यौदार्यमाधुयशोभाधीरत्वकान्तयः । दीप्तिश्चायत्नजाः'मृगाक्षी' पदमें मृगके नेत्ररूप 'उपमान'से स्त्रीका अक्षि ( नेत्र ) रूप अङ्ग विशेषित हुआ है, 'मत्तेभगमना' पदमें 'उपमान' रूप मत्तेभगमन (मतवाले हाथीकी चाल ) से स्त्रीका गमन विशेषित है, 'वामाक्षी'पदमें 'वामत्व' ( सुन्दरता )से 'नेत्र' रूपी स्त्रीका अङ्ग विशेषित है और 'सुस्मिता' पद्में 'सु'के अर्थ शोभनत्व से 'स्मित' रूपी कर्म विशेषित है। इसी प्रकार "वरारोहा, वरवर्णिनी, प्रतीपदर्शिनी,........."नामोंके विषयमें तर्क करना चाहिए । १. इस स्त्रीके धन 'मानः' लीला, स्मरः, ( स्वाभिमान, लीला, काम ) आदि ('आदि शब्दसे 'मनोविलास' आदिका संग्रह है ) हैं। अतएव 'मानिनी लीलावती, स्मरवती, (मान, लीला तथा स्मरवाली ) आदि यौगिक नाम स्त्रियोंके होते हैं । २. स्त्रियोंके स्वभावसिद्ध १० अलङ्कार होते हैं, उनका क्रमशः अर्थसहित वक्ष्यमाण १-१ नाम है-लीला ( वचन, वेष तथा चेष्टादिसे प्रियतमका अनुकरण करना ), विलासः ( स्थान तथा गमनादिकी विशिष्टता), विच्छित्तिः (शोभाजन्य गवसे थोड़ा भूषणादि धारण करना), विव्वोक: ( सौभाग्यके दर्पसे इष्ट वस्तुत्रोंमें अवज्ञा रखना ), किलकिञ्चितम् ( सौभाग्यादिसे मुस्कान आदिका संमिश्रण ), मोटायितम् (प्रियकथा-प्रसङ्गमें तद्भाव की भावनासे उत्पन्न कान खुजलाना आदि चेष्टा ), कुटुमितम् (+ कुटमितम् अधरादि क्षतकालमें हर्ष होनेपर भी हाथ या मस्तकादिके कम्पन द्वारा निषेध करते हुए निषेध का प्रदर्शन ), ललितम् ( सुकुमारता पूर्वक अङ्गन्यास अर्थात् गमन श्रादि ), विहृतम् ( बोलने आदिके अवसरपर भी चप रहना), विभ्रमः ( प्रियतम के आने · पर हर्षादिके कारण विभूषणोंका उलटा-पुलटा (अस्थानमें ) धारण करना )। विमर्श-साहित्यदर्पण'कार विश्वनाथ ने उक्त 'दश अलङ्कारों के अतिरिक्त स्त्रियोंके और भी ८ स्वभावसिद्ध अलङ्कार कहे हैं, यथा-मदः, तपनम्, मौग्ध्यम्, विक्षेपः, कुतूहलम, हसितम्, चकितम्, केलिः ॥ . ३. वक्ष्यमाण ७ अलङ्कार स्त्रियोंके अयत्नज (विना प्रयत्न-विशेषके होनेवाले ) हैं, उनका अर्थ सहित १-१ नाम है, यथा-प्रागल्भ्यम् (दिठाई, निर्भयता ), औदार्यम् (अमर्षादिके अवसरपर भी नम्रता ), माधुर्यम् Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२७ . मयंकाण्ड: ३] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः -श्लोको जनः प्रजा ॥ १६५ ॥ २स्यादामुव्यायणोऽमुष्यपुत्रः प्रख्यातवप्तकः । ३कुल्यः कुलीनोऽभिजातः कौलेयकमहाकुलौ ।। १६६ ।। जात्यो ४गोत्रन्तु सन्तानोऽन्ववायोऽभिजनः कुलम् । अन्वयो जननं वंशः पुत्री नारी वनिता वधूः ॥ १६७ ।। वशा सीमन्तिनी वामा वर्णिनी महिलाऽबला। योषा योषिविशेषास्तु कान्ता भीरुर्नितम्बिनी ॥ १६८ ॥ प्रमदा सुन्दरी रामा रमणी ललनाऽङ्गना। ७स्वगुणेनोपमानेन मनोज्ञादिपदेन च ।। १६६ ।। विशेषिताङ्गकर्मा स्त्री यथा तरललोचना। अलसेक्षण मृगाक्षी मत्तेभगमनाऽपि च ॥ १७० ॥ वामाक्षो सुस्मिता१. 'प्रजा, जनक ३ नाम है-लोकः, जनः, प्रजा ॥ २. 'विख्यात पितावाले'के ३ नाम है-आमुष्यायणः, अमुध्यपुत्रः, प्रख्यातवस्तृकः ॥ ३. 'कुलीन ( उत्तम वंशमें उत्पन्न ) के ६ नाम हैं-कुल्यः, कुलीनः, . अभिवातः, कौलेयकः, महाकुलः, जात्यः ॥ ___४. 'वंश, कुल के नाम हैं-गोत्रम्, सन्तानः (+सन्ततिः), अन्ववायः, अभिजनः, कुलम्, अन्वयः, जननम् , वंशः ।।. ५. 'नारी, स्त्री के १२ नाम है-स्त्रो, नारी, वनिता, वधूः, वशा, सीमन्तिनी, वामा, वणिनी, महिला (+महेला, अबला, योषा, योषित् (+योषिता) ६.ये स्त्रियोंके विभिन्न ' भेद-विशेष है-कान्ता, भीरुः, नितम्बिनी, प्रमदा, सुन्दरी, रामा, रमणी, ललना, अङ्गना ।। . ७. 'अहो या कार्योंके गुण या उपमानसे तथा 'मनोज्ञ' आदि (आदि' पदसे 'वाम, विशाल,".......'का संग्रह है ) विशेषित अङ्गों (यथा-लोचन, . ईक्षण.) तथा कार्यों ( यथा-मन, स्मित,.....)वाली स्त्री के विभिन्न पर्याय होते है-क्रमशः उदा० यथा-"तरललोचना, अलसेक्षणा, मृगाक्षी, मत्तेभगमना, वामाक्षी, सुस्मिता" (इनमेंसे क्रमशः १-१ नाम 'चञ्चल नेत्रोंवाली, आलसयुक्त नेत्रोंवाली, मृगके समान नेत्रोंवाली, मतवाले हाथीके समान बालवाली, सुन्दर नेत्रोंबाली और सुन्दर मुस्कानवाली स्त्री का है। . विमर्श-उक्त ६ पर्यायोंमेंसे 'तरललोचना' पदमें 'तरलता नेत्रका असाधारण अपना ( नेत्रका) गुण है, 'अलसेक्षणा' पदमें नेत्रका क्षण' अर्थात् 'देखना' रूप कार्यकी अलसता' असाधारण अपना ( नेत्रका) गुण है, Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मर्त्यकाण्डः ३ ] 'मणिप्रभा' व्याख्योपेतः - १भावहावहेलास्त्रयोऽङ्गजाः ।। १७३ ।। रसा कोपना भामिनी स्या ३च्छेका मत्ता च वाणिनी। ४कन्या कनी कुमारी च ५गौरी तु नग्निकाऽरजाः ॥ १७४॥ ६ मध्यमा तु दृष्टरजास्तरुणी युवतिश्चरी । तलुनी दिक्करी ७वर्या पतिंवरा स्वयंवरा ॥ १७५ ॥ सुवासिनी वधूटी स्याच्चिरिण्ट्य १२६ (क्रोधादिके अवसर में भी मधुर चेष्टा होना), शोभा (रूप, यौवन, सौन्दर्यादि से अतों का शोभित होना ), धीरत्वम् ( अचपलता ), कान्तिः ( काम द्वारा उक्त 'शोभा' का बढ़ना ), दीप्ति: ( उक्त 'कान्ति' का ही अत्यधिक बढ़ना ) | १. वक्ष्यमाण ३ अलङ्कार स्त्रियोंके 'अङ्गज' होते हैं, उनका अथ सहित क्रमशः वक्ष्यमाण १-१ नाम है- -भाव: ( कामजन्य विकार से शून्य शरीरमें थोड़ा कामज विकार होना ), हाव: ( कटाक्षादिसे सुरतेच्छा के प्रकाशन से कुछ-कुछ लक्षित होनेवाला भाव ), हेला ( उक्त हावका अधिक प्रकाशन ) ॥ विमर्श - इन २० ( विश्वनाथसम्मत २८ ) श्रलङ्कारोंके विस्तृत लक्षण तथा उदाहरण साहित्यदर्पण ( ३ | १३० - १५७ ) में जिज्ञासुओं को देखना चाहिए || २. 'क्रोधशीला स्त्री'का १ नाम है - भामिनी ( + कोपना ) | ३. 'चतुर एवं मत्त स्त्री' का १ नाम है - वाणिनी ॥ ४. 'कन्या ( क्वारी स्त्री' ) के ३ नाम हैं - कन्या, कनी, कुमारी ॥ ५. ' जिसका रजोधर्म ( मासिक धर्म ) श्रारम्भ नहीं हुआ हो उस स्त्री' के ३ नाम है - गौरी, नग्निका, अरजा: ( -जस् ) ॥ विमर्श - 'अष्टवर्षा भवेद् गौरी दशमे नग्निका भवेत्' अर्थात् ८ वर्षकी कन्या 'गौरी' और १० वर्षकी कन्या 'नग्निका' संज्ञक है, इस धर्मशास्त्रोक्त भेदका अभय यहाँ नहीं किया गया है || ६. 'तरुणी' ( नौजवान ) स्त्री' के ७ नाम है - मध्यमा, दृष्टरजाः ( - जस्), तरुणी, युवतिः, चरी, तलुनी, दिक्करी ॥ ७. 'पतिको स्वयं वरण करनेवाली स्त्री' के ३ नाम हैं - वर्या, स्वयंवरा ॥ ८. 'आरम्भ में होनेवाले युवावस्था के लक्षणोंवाली विवाहिता स्त्री' के ३ नाम है — सुवासिनी ( + स्ववासिनी ), वधूटी (+ वध्वटी), चिरिएटी ( + चिरण्टी, चरिण्टी, चरण्टी ) ॥ ६ अ० चि० पतिंवरा, Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३० अभिधानचिन्तामणिः -१य सधर्मिणी। पत्नी सहचरी पाणिगृहीती गृहिणी गृहाः॥ १७६ ।। दाराः क्षेत्रं वधूर्भार्या जनी जाया परिग्रहः । द्वितीयोढा कलत्रञ्चरपुरन्ध्री तु कुटुम्बिनी ॥ १७७ ।। ३प्रजावती भ्रातृजाया ४सूनोः स्नुषा जनी वधूः । ५भ्रातृवर्गस्य या जाया यावरस्ताः परस्परम् ॥ १७८ ॥ ६वीरपत्नी वीरभार्या ७कुलस्त्री कुलबालिका। प्रेयसी दयिता कान्ता प्राणेशा वल्लमा प्रिया ॥ १७६ ॥ हृदयेशा प्राणसमा प्रेष्ठा प्रणयिनी च सा। ' हप्रेयस्याद्याः पुसि पत्यो भर्ता सेक्ता पतिर्वरः ॥ १० ॥ विवोढा रमणी भोक्ता रुच्यो वरयिता धवः । ... १. 'सविधि विवाहिता स्त्री'के १६ नाम है-सधर्मिणी : (+ सधर्मचारिणी ), पत्नी, सहचरी, पाणिगृहीती (+करात्ती ), गृहिणी (+गहिनी), गृहाः ( नि पु ब० व०), दाराः (नि पु ब० व०+ए० व०, यथा-"धर्मप्रजासम्पन्ने दारे नान्यं कुर्वीत''), क्षेत्रम् , वधूः, भार्या, जनी, जाया, परिग्रहः, द्वितीया, अढा, कलत्रम् ॥ २. 'पुत्र, नौकर आदिवाली स्त्री के २ नाम हैं-पुरन्ध्री, कुटुम्बिनी ।। ३. 'भौजाई, भाभी'के २ नाम है-प्रजावती, भ्रातृजाया ॥ ४. 'पतोहू (पुत्र या-भतीजे आदि की स्त्री के ३ नाम है-स्नुषा, जनी, वधूः (+वधूटी )॥ . ५. परस्परमें भाइयोंकी स्त्रियां 'यातरः' (- तृ), अर्थात् 'याता' कहलाती हैं । ६. 'वीरपत्नी के २ नाम हैं-वीरपत्नी, वीरभार्या ।। ७. 'कुलीन स्त्री के २ नाम हैं-कुलस्त्री, कुलबालिका (+कुलपालिका)। ८. 'प्रिया स्त्री के १० नाम हैं-प्रेयसी, दयिता, कान्ता, प्राणेशा, वल्लभा, प्रिया, हृदयेशा, प्राणसमा, प्रेष्ठा, प्रणयिनी ॥ ६. उक्त 'प्रेयसी' आदि १० शब्द 'पुलिङ्ग' होने पर (यथा-प्रेयान् (- यस ), दयितः, कान्तः, प्राणेशः, वल्लभः, प्रियः, हृदयेशः, प्राणसमः, प्रेष्ठः, प्रणयी (- यिन् ) और 'भर्ता (-र्तृ), सेक्का (क), पतिः, वरः, विवोढा ( - द । यौ०-परिणेता - तु, परिग्राहः, उपयन्ता (- न्तृ"""") रमणः, भोक्ता (-), रुच्यः, वरयिता (त), धवः'-ये १० नाम ( कुल १०+१० = २० नाम ) 'पति' के हैं। Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मर्त्यकाण्ड: ३] मणिप्रभा'व्याख्योपेतः १३१ ५जन्यास्तु तस्य सुहृदो २विवाहः पाणिपीडनम् ॥ १८१ ॥ पाणिग्रहणमुद्वाह उपाद् यामयमावपि । दारकर्म परिणयो ३जामाता दुहितुः पतिः ॥ १८२॥ ४उपपतिस्तु जारः स्याद् भुजङ्गो गणिकापतिः। ६जम्पती दम्पती जायापती भार्यापती समाः ॥ १८३ ॥ . ज्योतकं युतयोर्देयं सुदायो हरणच तत् । कृताभिषेका महिषीहभोगिन्योऽन्या नृपस्त्रियः ॥ १८४ ॥ १०सैरन्ध्री याऽन्यवेश्मस्था स्वतन्त्रा शिल्पजीविनी। ५५अशिक्न्यन्तःपुरप्रेष्या १न्दूतीसञ्चारिके समे ॥ १५ ॥ १. 'पतिके मित्रो'का १ नाम है-जन्याः ॥ . २. 'विवाह'के ८ नाम हैं-विवाहः पाणिग्रहणम्, उद्वाहः, उपयामः, उपयमः, दारकर्म (-मन ), परिणयः ।। शेषश्चात्र-जाम्बूलमालिकोद्वाहे वरयात्रा तु दौन्दुभी। . गोपाली वर्णके शान्तियात्रा वरनिमन्त्रणे । स्यादिन्द्राणी महे हेलिरुल्लुलुर्मङ्गलध्वनिः ।। स्यात्त स्वस्त्ययनं पूर्णकलशे मङ्गलाह्निकम् । शान्तिके मङ्गलस्नानं वारिपल्लववारिणा ।। हस्तलेपे तु करणं हस्तबन्धे तु पीडनम् । - तच्छेदे समवभ्रंशो धूलिभक्ते तु वार्तिकम् ।। ३. 'दामाद, जामाता'का १ नाम है-जामाता (-४)॥ ४.जार ( पतिसे भिन्न स्त्रीका प्रेमी) के २ नाम हैं-उपपतिः, बारः॥ ५. 'वेश्याके पति'का १ नाम है-भुजङ्गः (+गणिकापतिः)॥ ६. 'पति तथा पत्नी ( सम्मिलित दोनोंकी जोड़ी) के ४ नाम हैजम्पती, दम्पती, जायापती, भार्यापती (नि० द्विव० )॥ ७. 'दहेज'के ३ नाम हैं-यौतकम् , सुदायः (+दायः), हरणम् ॥ ८. 'पटरानी'का १ नाम है-महिषी ॥ ६. 'अन्य राजपत्नियो'का १ नाम है-भोगिनी ॥ १०. 'दूसरेके घरमें रहती हुई स्वतन्त्र, सब कलाओंमें निपुण तथा राजपत्नियों आदिका शृङ्गारकर जीविका चलानेवाली स्त्री'का १ नाम हैसैरन्ध्री ॥ ११. 'रनिवासकी दासियों'का १ नाम है-असिक्नी ॥ १२. 'दूती' के २ नाम है-दूती, संचारिका ॥ Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३२ अभिधानचिन्तामणिः . १प्रज्ञा प्राज्ञी प्रजावत्यां २प्राज्ञा तु प्रज्ञयाऽन्विता । ३स्यादाभीरी महाशूद्री जातियोगयोः समे ॥ १८६ ।। ४पुयुज्याचायोचायोनी ५मातुलानी तु मातुली। ६उपाध्यायान्युपाध्यायी ७क्षत्रिय्ययी च शूद्रयपि।। १८७ ॥ ८स्वत आचार्या शूद्रा च क्षत्रिया क्षत्रियाण्यपि । १०उपाध्याय्युपाध्याया स्या११दयोऽाण्यो पुनः समे ॥ १८ ॥ १२दिधिषूस्तु पुनर्भूढेिरूढा१३ऽस्या दिधिषूः पतिः। १४स तु द्विजोऽदिधिषूर्यस्य स्यात्सैव गेहिनी ॥ १८६ ।। १. 'जानकार स्त्री'के २ नाम है-प्रज्ञा, प्राज्ञी ॥ २. 'विशिष्ट बुद्धिमती स्त्री'का १ नाम है-प्राज्ञा ।। ३. 'भाभीर (ग्वाले )की स्त्री या आभीर जातिमें उत्पन्न स्त्री'का १ नाम 'आभीरी' और 'महाशूद्रकी स्त्री या महाशद्र जातिमें उत्पन्न स्त्री'का १ नाम 'महाशूद्री' है ॥ ४. 'आचार्यकी पत्नी के २ नाम हैं-आचार्या, आचार्यानी॥ . ५. 'मामी ( मामाकी स्त्री) के २ नाम हैं-मातुलानी, मातुलो ।। ६. 'उपाध्यायकी स्त्री के २ नाम हैं-उपाध्यायानी, उपाध्यायो । ७. 'क्षत्रिय तथा शूद्रको (अन्यजात्युत्पन्न भी ) स्त्री का क्रमश: १.१ नाम है-क्षत्रियी, अर्थी॥ ८. पतिके आचार्य नहीं होनेपर भी स्वयं प्राचार्याका काम करने वाली स्त्री'का १ नाम 'प्राचार्या' तथा 'पतिके शूद्रजातीय नहीं होनेपर भी स्वयं शूद्र जात्युत्पन्न स्त्री'का १ नाम 'शूद्रा' है ॥ ६. 'पतिके क्षत्रिय होनेपर भी स्वयं क्षस्त्रिय-जात्युत्पन स्त्री'के २ नाम हैं-क्षत्रिया, क्षत्रियाणी ॥ १०. 'पतिके उपाध्याय नहीं होनेपर भी स्वयं उपाध्यायाका कार्य करने. वाली स्त्री'के २ नाम हैं-उपाध्यायी, उपाध्याया। ११. 'पतिके वैश्य नहीं होनेपर भी स्वयं वैश्यजातीय स्त्री'के २ नाम हैंअर्या, अर्याणी ॥ १२. 'दोबार विवाहिता ( विधवा होनेपर विवाहकी हुई स्त्री ) के ३ नाम हैं-दिधिषूः (+दिधीषूः), पुनभूः, द्विरूढा ।। १३. 'दोबार विवाहिता स्त्रीके पति'का १ नाम है-दिधिषूः ।। १४. 'दूसरी बार विवाहिता जिसकी धर्मपत्नी हो, उस द्विज (ब्राह्मण, क्षत्रिय या वैश्य ) पति'का १ नाम है-अदिधिः ॥ Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मर्त्यकाण्ड: ३] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः १३३ १ज्येष्ठेऽनूढे परिवेत्ताऽनुजो दारपरिग्रही। २तस्य ज्येष्ठः परिवित्तिर्जाया तु परिवेदिनी॥ १६० ।। ४वृषस्यन्ती कामुकी स्या५दिच्छायुक्ता तु कामुका । ६कृतसापत्निकाऽध्यूढाऽधिविन्नाऽथ पतिव्रता ।। १६१ ॥ एकपत्नी सुचरित्रा साध्वी सत्यसतीत्वरी। पुश्चली चर्षणी बन्ध्यक्यविनीता तु पांसुला ।। १६२॥ स्वैरिणी कुलटा याति या प्रियं साऽभिसारिका । १०वयस्यालिः सखी सध्रीच्य११शिश्वी तु शिशुविना ।। १६३ ॥ १२पतिवत्नी जीवत्पति१३विश्वस्ता विधवा समे। १. 'जेठे भाई के अविवाहित रहनेपर विवाहित छोटे भाई' मा १ नाम है--परिवेत्ता ( - त्त)॥ २. 'विवाहित छोटे भाईका अविवाहित जेठा भाई'का १ नाम है परिवित्तिः ।। ३. 'परिवेत्ता ( अविवाहित बड़े भाईके विवाहित छोटे भाईकी पत्नी )का १ नाम है-परिवेदिनी ॥ ४. 'वृषतुल्य मैथुनकी इच्छा करनेवाली स्त्री'के २ नाम हैं-वषस्यन्ती, कामुकी ।। ५. 'सामान्यत: मैथुनेच्छा करनेवाली स्त्री'का १ नाम है-कामुका ॥ ६.. 'सपत्नी ( सौत ) वाली स्त्री' के '३ नाम हैं-कृतसापत्निका, अध्यूढा, अधिविना ।। ७. 'पतिव्रता स्त्री के ५ नाम है-पतिव्रता, एकपत्नी, सुचरित्रा, साध्वी, सती।। ८. 'व्यभिचारिणी स्त्री'के ह नाम है-असती, इत्वरी, पुंश्चली, चर्षणी, बन्धकी, अविनीता, पांसुला, स्वैरिणी, कुलटा ॥ शेषश्चात्र-कुलटायां तु दु:शृङ्गी बन्धुदा फलकूणिका । धर्षणी लाञ्छनी खण्डशीला मदननालिका ।। त्रिलोचना मनोहारी। ६. 'अभिसारिका ( संकेतित स्थानपर पतिके पास काम-वशीभूत होकर जानेवाली या पतिको बुलानेवाली स्त्री)का १ नाम है-अभिसारिका ।। १०. 'सखी-सहेली'के ४ नाम हैं-वयस्या, आलि:, सखी, सध्रीची ॥ ११. 'सन्तानहीन स्त्री'का १ नाम है-अशिश्वी ॥ १२. 'सधवा स्त्री के २ नाम हैं -पतिवत्नी, जीवत्पतिः (+सधवा )। १३. 'विधवा स्त्री'के २ नाम हैं-विश्वस्ता, विधवा ॥ Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४ अभिधानचिन्तामणिः निर्वीरा निष्पतिसुता २जीवत्तोका तु जीवसूः ॥ १६४ ॥ ३नश्यत्प्रसूतिका निन्दुः ४सश्मश्रुर्नरमालिनी। ५कात्यायनी त्वद्धवृद्धा कापायवसनाऽधवा ॥ १६५ ॥ ६श्रवणा भिक्षुकी मण्डा पोटा तु स्त्रीनृलक्षणा । साधारणस्त्री गणिका वेश्या पण्यपग्णाङ्गना ॥ १६६ ॥ भुजिष्या लज्जिका रूपाजीवा वारवधूः पुनः।। सावारमुख्या१०ऽथ चुन्दी कुट्टनी शम्भली समाः॥ १६७ ।। ११पोटा वोटा च चेटी च दासी च कुटहारिका। १२नग्ना तु कोटवी १३वृद्धा पलिक्न्य१४थ रजस्वला ॥ २६८॥ पुष्पवत्यधिरात्रेयी स्त्रीमिणी मलिन्यवीः । उदक्या ऋतुमती च१. पति-पुत्रसे हीन स्त्री'के २ नाम हैं -निर्वीर। (+अबीरा), निष्पतिसुता ॥ .. २. जिसकी सन्तान जीवित रहती हो, उस स्त्री'के २ नाम है-जीवत्तोका, बीवसः ॥ ____३. 'जिसकी सन्तान मर जाती हो, उस स्त्री'के २ नाम है--निन्दुः, नश्यत्प्रसूतिका ॥ ___. 'जिस स्त्रीके दाढ़ी या मूंछके बाल. हों, उसके २ नाम हैसश्माः , नरमालिनी॥ ५. गेरुश्रा कपड़ा पहननेवाली अधबूढ़ी विधवा स्त्री'का १ नाम हैकात्यायनी॥ ६. 'भिक्षुकी स्त्री'के ३. नाम है-श्रवणा (+भमणा), भित्तुकी, मुण्डा ॥ शेषश्चात्र-श्रवणायां भिक्षुकी स्यात् । ७. 'पुरुषके लक्षणों से युक्त स्त्री'के २ नाम है-पोटी, स्त्रीनुलक्षणा ॥ ८. वेश्या के ८ नाम है-साधारणस्त्री, गणिका, वेश्या, पण्याङ्गना पणाङ्गना, भुजिष्या, लज्जिका, रूपाजीवा ।। शेषश्चात्र-वेश्यायां तु खगालिका । वारवाणिः कामलेखा क्षुद्रा । ६. 'सेवामें नियुक्त वेश्या'के २ नाम है-वारवधूः, वारमुख्या ।। १०. 'कुटिनी'के ३ नाम है-चुन्दी, कुटनी, शम्भली ॥ ११. 'दासी'के ५ नाम है-पोटा, वोटा, चेटी, दासी, कुटहारिका । शेषश्चात्र-चेट्यां गणेरुका । वडवा कुम्भदासी च । १२. 'नग्न स्त्री'के २ नाम है-नग्ना (+नग्निका ), कोटवी ।। १३. 'बुढ़िया के २ नाम है-वृद्धा, पलिक्नी ॥ . १४. रजस्वला, ऋतुमती स्त्री के ६ नाम है-रजस्वला, पुष्पवती Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मयंकाण्डः ३] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः १३५ -१पुप्पहीना तु निष्कला ।। १६६ ।। २राका तु सरजाः कन्या ३स्त्रीधर्मः पुष्पमार्तवम् । रजठस्तत्कालस्तु ऋतुः ५सुरतं मोहनं रतम् ॥ २०० ॥ संवेशनं संप्रयोगः संभोगश्च रहो रतिः। प्राम्यधर्मो निधुवनं कामकेलिः पशुक्रिया ॥ २०१॥ . व्यवायो मैथुनं६ स्त्रीपुसौ द्वन्द्वं मिथुनश्च तत् । ७अन्तर्वस्नी गुर्विणी स्याद् गर्भवत्युदरिण्यपि ।। २०२ ॥ आपन्नसत्त्वा गुवौं च श्रद्धालुोहदान्विता । हविजाता च प्रजाता च जातापत्या प्रसूतिका ॥ २०३ ।। १०गर्भस्तु गरभो भ्रूणो दोहदलक्षणश्च सः। ११गर्भाशयो जरायूल्बे(+ पुष्पिता ), अधिः, आत्रेयो, स्त्रीधर्मिणी, मलिनी, अवीः, उदक्या, ऋतुमती॥ . . १. जिसका मासिक धर्म नहीं होता हो, उस स्त्री के २ नाम हैनिष्कला, पुष्पहीना ॥ २. 'रजस्वला कारी कन्या'का १ नाम है-राका ॥ ३. 'रज, ऋतुधर्म'के. ४ नाम हैं-स्त्रीधर्मः, पुष्पम् , आर्तवम् , रजः (-जस् , न )॥ ४. स्त्रियों के मासिक धर्म होनेके समय'का १ नाम है-ऋतुः ।। ५. रति, मैथुन'के १४ नाम हैं-सुरतम्, मोहनम् , रतम् , संवेशनम्, संप्रयोगः; संभोगः, रहः, रतिः, ग्राम्यधर्मः, निधुवनम् , कामकेलिः, पशुक्रिया (+पशुधर्मः ), व्यवायः, मैथुनम् ॥ .. ६. 'स्त्री-पुरुषों की जोड़ी' के ३ नाम हैं-स्त्रीपुंसौ (नि द्विव ), द्वन्द्वम् , मिथुनम् ॥ .७. गर्भवती'के ६ नाम है-अन्तर्वत्नी, गुर्विणी, गर्भवती, उदरिणी, आपन्नसत्त्वा, गुर्वी ॥ ८. 'गर्भके ममय किसी विशेष वस्तुके खाने, देखने आदिकी इच्छा करनेवाली स्त्री'के २ नाम हैं-श्रद्धालुः, दोहदान्विता ॥ ____६. 'प्रसूती (प्रसव की हुई ) स्त्री के ४ नाम हैं-विजाता, प्रजाता, बातापत्या, प्रसूतिका ॥ १०. 'गर्भ'के ४ नाम है-गर्भः, गरमः, भ्रण:, दोहदलक्षणम् (न)॥ ११. 'गर्भाशय'के ३ नाम हैं-गर्भाशयः, जरायुः (पु), उल्बम् (पुन) ॥ Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३६ अभिधानचिन्तामणिः -१कललोल्बे पुनः समे ॥ २०४ ॥ २दोहदं दौहदं श्रद्धा लालसा ३सूतिमासि तु । बैजननो ४विजननं प्रसवो पनन्दनः पुनः ॥ २०५ ।। उद्वहोऽङ्गात्मजः सूनुस्तनयो दारकः सुतः। पुत्रो दुहितरि स्त्रीत्वे तोकापत्यप्रसूतयः ॥ २०६॥ तुक प्रजोभयोपर्धात्रीयो भ्रातृव्यो भ्रातुरात्मजे। हस्वस्त्रीयो भागिनेयश्च जामेया कुतपश्च सः ॥२०७॥ १०नप्ता पौत्रः पुत्रपुत्रो ११दौहित्रो दुहितुः सुतः। १. 'वीय तथा रजके संयोग'के २ नाम है-कललम्, उल्बम् (२ पुन)। २. 'दोहद, गर्भकालमें होनेवाली इच्छा के ४ नाम है-दोहदम्, (पुन ), दौह दम् , श्रद्धा, लालसा (पु न )। _ विमर्श-अमरसिंहने सामान्य इच्छाको 'दोहद' तथा प्रबल इच्छाको 'लालसा' कहा है (अ० को०१७।२७-२८ ॥ ३. 'प्रसवका महीना ( दशम मास ) को १ नाम है-वैजननः ।। ४. 'प्रसबके २ नाम है-विजननम्, प्रसवः ।। ५. 'पुत्र के नाम है-नन्दनः, उद्वहः, अङ्गजः (+तनुजः, तनूजा, देहजः,"""""), श्रात्मजः, सूनुः, तनयः, दारकः, सुतः, पुत्रः ॥ . शेषधात्र-पुत्रे तु कुलधारकः । स दायादो द्वितीयश्च । ६. पूर्वोत नन्दन आदि ६ शब्द स्त्रीलिङ्ग होनेपर 'पुत्री के पर्याय होते है (यथा-नन्दना, उदहा, अङ्गजा (+तनुजा, तनूजा, देहबा, ) आत्मजा, सूनुः, तनया, दारिका, सुता, पुत्री)। तथा 'दुहिता' (-त) शन्द भी पुत्री का वाचक है। शेषश्चात्र-पुत्र्यां धीदा समधुका । देहसंचारिणी चापि । ७. 'सन्तान (पुत्र या पुत्री) के ५ नाम है-तोकम् , अपत्यम् , प्रसूतिः, तुक, प्रजा ॥ शेषश्चात्र-अपत्ये संतानसंतती। ८. 'भतीजा ( भाई का लड़का ) के २ नाम है-भ्रात्रीयः, भ्रातृभ्यः, (+भातुंजः)॥ ___६. 'भानजा ( बहनका लड़का ) के ४ नाम हैं-स्वतीयः, भागिनेयः, बामेयः, कुतपः॥ १०. 'पोता ( लड़केका लड़का ) के २ नाम है-नप्ता (प्त), पौत्रः ।। ११. 'धेवता (पुत्रीका लड़का ) का एक नाम है-दौहित्रः ॥ Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३७ मत्येकाण्ड: ३] मणिप्रभा'व्याख्योपेतः १प्रतिनप्ता प्रपौत्रः स्यात्तत्पुत्रस्तु परम्परः ॥ २०८ ।। ३पैतृष्वसेयः स्यात्पैतृष्वस्त्रीयस्तुक पितृध्वसुः । ४मातृष्वस्त्रीयस्तुमातृध्वसुर्मातृध्वसेयवत् ॥ २०६ ।। ५विमातृजो वैमात्रेयो द्वैमातुरो द्विमातृजः । सत्यास्तु तनये सांमातुरवद्भाद्रमातुरः ।। २१० ।। सौभागिनेयकानीनौ सुभगाकन्ययोः सुतौ । पौनर्भवपारौणेयौ पुनर्भूपरस्त्रियोः ॥ २११ ॥ १०दास्या दासेरदासेयो ११नाटेरस्तु नटीसुतः। १२बन्धुलो बान्धकिनेयः कौलटेराऽसतीसुतः ।। २१२ ।। १३स तु कौलटिनेयः स्याद्यो भिक्षुकसतीसुतः। १४द्वावप्येतौ कौलटेयौ १. परपोता (पौत्रका पुत्र ) के २ नाम हैं--प्रतिनप्ता (-४), प्रपौत्रः ॥ २. 'छरपोता ( परपोतेका पुत्र )का १ नाम है-परम्परः ॥ ३. 'पैतृष्वसेय ( फूत्रा+ (पिताकी बहन )का लड़का ) के २ नाम हैंपैतृष्वसेयः, पैतृष्वनीयः ।। ___४. 'मातृष्वसेय ( मौसी का लड़का ) के २ नाम है-मातृष्वतीयः, मातृष्वसेयः ॥ .. ५. 'सौतेले भाई (विमाताका लड़का ) के २ नाम हैं-विमातृजः, वैमात्रेयः ॥ ६. 'दो माताओंका पुत्र के २ नाम हैं-द्वैमातुरः, द्विमातृजः ।। ७. 'पतिव्रताका पुत्र के २ नाम है-सांमातुरः, भाद्रमातुरः, ॥ ८. 'संधवा तथा कारी ( अविवाहिता कन्या )के पुत्रों के क्रमशः १-१ नाम है-सौभागिनेयः, कानीनः ॥ ६. 'दुबारा व्याही गयी तथा परायी स्त्रीके पुत्रों का क्रमशः १.१ नाम है-पौनर्भवः, पारस्त्रैणेयः ॥ . १०. 'दासीका पुत्र'के २ नाम हैं-दासेरः, दासेयः ।। ११. 'नटीका पुत्र'के २ नाम है-नाटेर: नटीसुतः (+नाटेयः)॥ १२. 'व्यभिचारिणीका पुत्र'के ३ नाम है-बन्धुलः, बान्धकिनेयः, कौटेरः (+असतीसुतः)। १३. 'भिक्षा मांगनेवाली सती स्त्रीका पुत्र'का १ नाम है-कौलटिनेयः ॥ १४. 'कुलटा' ( उक्त दोनों स्त्रियों-व्यभिचारिणी तया भिक्षा मांगनेवाली सती स्त्रीका पुत्र )का १ नाम और है-कोलटेयः ॥ Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३८ अभिधानचिन्तामणिः -क्षेत्रजो देवरादिजः ॥ २१३ ॥ २स्वजाते त्वौरसोरस्यौ ३मृते भर्तरि जारजः । गोलको४ऽथामृते कुण्डो भ्राता तु स्यात्सहोदरः ।। २१४ ॥ समानोदर्यसोदर्यसगर्भसहजा अपि । सोदरश्च१. 'नियोग द्वारा देवर आदिसे उत्पन्न पुत्र'का १ नाम है-क्षेत्रजः ॥ विमर्श-मरे हुए, असाध्य रोगवाले या नपुंसक पतिकी स्त्रीमें सन्तानक्षय होनेकी अवस्था हो तब देवर या सपिण्ड के साथ सम्भोग द्वारा उत्पन्न सन्तान "क्षेत्रज" कहलाता है, इस विधिको 'नियोग' कहते हैं । 'नियोग' विधिसे सन्तान उत्पन्न करनेकी आज्ञा मनु भगवान्ने भी दी है । परन्तु कलियुगमें नियोग द्वारा सन्तानोत्पत्ति करनेका कुछ शास्त्रकारोंने निषेध किया है ॥ २. 'औरस (निजी ) पुत्र'के २ नाम है-औरसः, उरस्यः ।।.. ३. पतिके मरनेपर जार ( उपपति )से उत्पन्न पुत्र'का १ नाम हैगोलकः॥ ___४. पतिके जीवित रहते जार ( उपपति )से उत्पन्न पुत्र'का १ नाम हैकुण्डः ॥ ५. 'सहोदर भाई'के ७ नाम है-भ्राता (-तृ ), सहोदरः, समानोदर्यः, सोदर्यः, सगर्भः, सहजः, सोदरः ॥ १. यथाऽऽह मनु:“यस्तल्पजः प्रतीतस्य क्लीबस्य व्याधितस्य वा। स्वधर्मेण नियुक्तायां स पुत्र: 'क्षेत्रजः स्मृतः ॥” इति । __ मनु०६।१६७ २. तद्यथा-"देवराद्वा सपिण्डाद्वा स्त्रिया सम्यनियुक्तया । प्रजेप्सिताऽधिगन्तव्या सन्तानस्य परिक्षये ॥ विधवायां नियुक्तस्तु घृताको वाग्यतो निशि । एकमुत्पादयेत्पुत्रं न द्वितीयं कथञ्चन ॥" मनु० ६।५६-६० ३. तथा चोकम्-"अश्वालम्भं गवालम्भं संन्यासं पलपैतृकम् । देवराद्वा सुतोत्पत्तिः कलौ पच्च विवर्जयेत् ।।". परं संन्यासाथमपवादोऽपि दृश्यते । तद्यथा "यावद् गङ्गा च गोदा च यावच्छशिदिवाकरौ । अग्निहोत्रञ्च संन्यास: कलौ तावत्प्रवर्तते ॥” इति । Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३६ मर्यकाण्डः ३] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः -१स तु ज्येष्ठः स्यात्पित्र्यः पूर्वजोऽग्रजः ॥ २१५ ॥ २जघन्यजे यविष्ठः स्यात्कनिष्ठोऽवरजोऽनुजः । स यवीयान कनीयांश्च ३पितृव्यश्यालमातुलाः ॥ २१६ ॥ पितुः पन्याश्च मातुश्च भ्रातरो ४देवृदेवरौ । देवा चावरजे पत्युपूर्जामिस्तु भगिनी स्वसा ॥ २१७ ॥ ६ननान्दा तु स्वसा पत्युननन्दा नन्दिनीयपि । उपन्यास्तु भगिनी ज्येष्ठा ज्येष्ठश्वनः कुली च सा ॥ २१८ ।। -कनिष्ठा श्यालिका हाली यन्त्रणी केलिकुचिका। केलिद्रवः परीहासः क्रीडा लीला च नर्म च ॥ २१६ ।। देवनं कर्दनं खेला ललनं वर्करोऽपि च । १. 'बड़ा भाई के ४ नाम हैं-ज्येष्ठः, पित्र्यः, पूर्वजः, अग्रजः ।। २. 'छोटा भाई'के ७ नाम हैं-जघन्यजः, यविष्ठः, कनिष्टः, अवरजः, अनुजः, यवीयान् , कनीयान् (२ - यस् )॥ शेषश्चात्र-स्यास्कनिष्ठे तु कन्यसः । ३. 'चाचा ( काका, ताऊ ), शाला और मामा के क्रमशः १-१ नाम है-पितृव्यः, श्यालः, मातुलः ।। ४. 'देवर (पतिका छोटा भाई ) के ३ नाम हैं-देवा ( - वृ), देवरः, देवा (- वन )॥ ५. 'बहन'के ३ नाम हैं-जामिः, भगिनी, स्वसा ( - सू)॥ शेषश्चात्र-ज्येष्ठभगिन्यां तु वीरभवन्ती । ६-ननद (पतिकी बहन ) के ३ नाम हैं-ननान्दा, ननन्दा (२-न्द), नन्दिनी ॥ ____७. 'बड़ी शाली ( पत्नीकी बड़ी बहन ) के २ नाम हैं-ज्येष्ठश्वश्रः, कुली ।। ८. 'छोटी शाली (पत्नीकी छोटी बहन ) के ४ नाम है-श्यालिका (+शालिका ), हाली, यन्त्रणी, केलिकुञ्चिका ।। ६. 'क्रीडा, केलि, खेल, हँसी'के ११ नाम हैं-केलि: (पु स्त्री), द्रवः, परीहास: (+ परिहास: ), क्रोडा, लीला, नर्म (- मन् , न ), देवनम् , कूर्दनम् , खेला, ललनम् , वर्करः ॥ विमर्श-क्रीडा, खेला, कूर्दनम्-ये शब्द खेलना, कूदना इन अर्थ विशेषोंमें रूढ रहनेपर भी विशेषके श्राश्रयकी अपेक्षा नहीं करनेसे यहां क्रीडा सामान्य अर्थमें कहे गये हैं ॥ शेषश्चात्र-स्यात्त नर्मणि | सुखोत्सवे रागरसे विनोदोऽपि किलोऽपि च । Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४० अभिधानचिन्तामणिः श्वप्ता तु जनकस्तातो बीजी जनयिता पिता ॥ २२० ॥ रपितामहस्त्वस्य पिता ३तत्पिता प्रपितामहः । ४मातुर्मातामहाद्येवं ५माताऽम्बा जननी प्रसूः ।। २२१ ॥ सवित्री जनयित्री च ६कृमिला तु बहुप्रसूः । ७धात्री तु स्यादुपमाता वीरमाता तु वीरसूः ॥ २२२ ॥ श्वभूर्माता पतिपत्न्योः १०श्वशुरस्तु तयोः पिता। ११पितरस्तु पितुर्वेश्या १२मातुर्मातामहाः कुले ।। २२३ ।। १३पितरौ मातापितरौ मातरपितरौ पिता च माता च । १४श्वश्रूश्वशुरौ श्वशुरौ १५पुत्रौ पुत्रश्च दुहिता च ।। २२४ ।। १. 'पिता, बाप'के ६ नाम हैं-वता (-तृ ), जनकः, तातः, बीजी (- जिन् ), जनयिता, पिता ( २ )॥ ~ शेषश्चात्र-वप्यो जनित्रो रेतोधास्ताते । २. 'दादा ( पिताके पिता)'का १ नाम है-पितामहः॥ . ३. 'परदादा (पितामहके पिता)का १ नाम है-प्रपितामहः॥ ४. 'नाना'का १ नाम है-'मातामहः' और इसी प्रकार 'परनानाका १ नाम है-'प्रमातामहः' ।।। ५. 'माता'के ६ नाम हैं-माता (-४), अम्बा, जननी, प्रवः, मुवित्री, जनयित्री ।। शेषश्चात्र-आनी तु मातरि । ६. 'बहुत सन्तान उत्पन्न करनेवाली माता'का १ नाम है-कृमिला (+बहुप्रसूः)॥ ७. 'धाई, उपमाता के २ नाम हैं-धात्री, उपमाता ( - तृ)। ८. 'वीरमाता'का १ नाम है-(+वीरमाता, - तु), वीरसूः ।। ६. 'सास ( पति या पत्नीकी माता )का १ नाम है-श्वंभः ॥ १०. 'श्वशुर ( पति या पत्नीका पिता )का १ नाम है-श्वशुरः ।। ११. 'पितरों ( पिताके वंशके पुरुखों )का १ नाम है-पितरः (-त)। १२. 'माताके वंश के पुरुखों का १ नाम है-मातामहाः ॥' विमर्श-उक्त दोनों पदों ( 'पितरः, मातामहाः' ) में बहुवचनका प्रयोग "पुरुखानोंके बहुत होनेकी अपेक्षासे किया गया है)। १३. 'एक साथमें कहे गये माता-पिता के ४ नाम है-पितरौ, मातापितरौ, मातरापेतरौ (३ - तु, नि. द्विव० )॥ १४. 'एक साथमें कहे गये सास-श्वशुर'के २ नाम है-श्वभश्वशुरो, श्वशुरौ (२ नि. द्विव० )॥ १५. 'एक साथ कहे गये पुत्र-पुत्री'का १ नाम है-पुत्रौ (नि. द्विव.)। Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४१ मयंकाण्ड: ३] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः १भ्राता च भगिनी चापि भ्रातरारवथ बान्धवः । स्वो ज्ञातिः स्वजनो बन्धुः सगोत्रश्च ३निजः पुनः ।। २२५ ।। आत्मीयः स्वः स्वकीयश्च ४सपिण्डास्तु सनामयः। ५तृतीया प्रकृतिः पण्डः षण्डः क्लीवो नपुंसकम् ।। २२६ ।। ६इन्द्रियायतनमङ्गविग्रही क्षेत्रगात्रतनुभूघनास्तनूः। . मूर्तिमत्करणकायमूर्तयो वेरसंहननदेहसश्चराः ।। २२७ ।। घनो बन्धः पुरं पिण्डो वपुः पुद्गलवमणी । कलेवरं शरीरोऽस्मिन्नजोवे कुणपं शवः ।। २२८ ॥ मृतकं रुण्डकबन्धौ त्वपशीर्षे क्रियायुजि । हवयांसि तु दशाः प्रायाः १०सामुद्रं देहलक्षणम् ।। २२६ ।। १. एक साथ कहे गये भाई बहन'का १ नाम है-भ्रातरौ (-तृ ,नि० द्विव० )। विमर्श-पूर्वोक्त 'पितरौ' अादि ६ पर्यायोंमें माता-पिता आदि के २-२ होने के कारणसे द्विवचनका प्रयोग किया गया है। २. अपनी जातिवालों के ६ नाम हैं-बान्धवः, स्वः, ज्ञाति: (पु), स्वजन:, बन्धुः, सगोत्रः ॥ ३. निजी, आत्मीय' के ४ नाम हैं-निजः, आत्यीयः, स्वः, स्वकीयः ।। . विमर्श-'उक्त दोनों ( अपनी जातिवालो तथा आत्मीय' ) अर्थों में 'स्व' शब्द सर्वनामसंज्ञक होता है। ४. सपिण्ड' ( सात पीढ़ियों तक पूर्वजों का १ नाम है-सपिण्डः ।। ५. 'नपुंसक'के ५ नाम हैं-तृतीयाप्रकृतिः, पण्ड: (+पण्डुः ), षण्ड: (+शण्टः, शण्ठः ), क्लीबः, नपुंसकम् (२ पु न )॥ ६. 'शरीर के २५ नाम हैं-इन्द्रियायतनम् , अङ्गम् , विग्रहः, क्षेत्रम् , गात्रम् , तनु: (स्त्री), भूघनः, तनू: (स्त्री), मूर्तिमत् , करणम् , कायः, मूर्तिः, वेरम् (पुन), संहननम् , देहः, (पु न), संचरः, घनः, बन्धः, पुरम् , पिण्डः (पुन ), वपुः (-पुस , न), पुद्गलः, वर्म (--मन् , न ), कलेवरम् , शरीर: (पु न ) ॥ ७. 'शव,मुर्दो'के ३ नाम है-कुण पम् , शवः (२ पु न ), मृतकम् ॥ ८. 'शिरके कटनेपर नाचते हुए धड़ ( मस्तकरहित शरीर ) के २ नाम है-रुण्डः, कबन्धः (पुन )। ___६. 'वय, बाल्यादि अवस्थाओं के ३ नाम हैं-वयांसि (-यस् ), दशाः (स्त्री), प्रायाः (यु)॥ १०. 'सामुद्रिक शास्त्र' ( हाथ-पैर आदिमें शङ्ख-चक्रादि चिह्नोंका. Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४२ 'अभिधानचिन्तामणि १एकदेशे प्रतोकोऽङ्गावयवापधना अपि । २उत्तमाङ्गं शिरो मूर्धा मौलिर्मुण्डं कमस्तके ॥ २३० ॥ वराङ्ग करणत्राणं शीर्ष मस्तिकमित्यपि । ३तज्जाः केशास्तीर्थवाकाश्चिकुराः कुन्तलाः कचाः ॥ २३१ ॥ वालाः स्युस्त४त्पराः पाशो रचना भार उच्चयः । हस्तः पक्षः कलापश्च केशभूयस्त्ववाचकाः ॥ २३२ ॥ प्रअलकस्तु कर्करालः खगरश्चूर्णकुन्तलः । ६स तु भाले भ्रमरकः कुरुलो भ्रमरालकः ॥ २३३ ॥ ७धम्मिल्लः संयताः केशाः केशवेषे कबर्यस्थ । वेणिः प्रवेणीशुभाशुभवर्णन करनेवाला शास्त्र-विशेष) के २ नाम है-सामुद्रम् (+सामुद्रिकशास्त्राम् ), देहलक्षणम् ।। १. 'अङ्ग के ४ नाम है-प्रतीकः, अङ्गम् , अवयवः, अपचनः ॥.. शेषश्चात्र-देहैकदेशे गात्रम् । २. 'मस्तक'के ११ नाम हैं-उत्तमाङ्गम् , शिरः (-रस , न ), मूर्धा (-धन् । पु), मौलि: ( पु स्त्री ), मुण्डम् (पुन), कम् ,मस्तकम् (पु न), वराङ्गम् , करणत्राणम् , शीर्षम् , मस्तिकम् ॥ ___३. 'बाल, केश'के ६ नाम हैं-केशाः, तीर्थवाकाः, चिकुराः, (+चिहुराः ), कुन्तलाः, कचाः, वालाः (पु न ), बहुत्वको अपेक्षासे यहां ब० व० प्रयुक्त हुआ है, अतः इन पर्यायोंका एकवचन भी होता है )॥ ४. उक्त 'केश'आदि शन्दके अन्तमें पाशः, रचना' आदि ७ शन्दोंके जोड़नेसे 'केश-समूह'के पर्यायवाचक शब्द बनते हैं, यथा-केशपाशः, केशरचना, केशभारः, केशोच्च्यः , केशहस्तः केशपक्षः, केशकलापः ॥ ५. 'स्वभावतः टेढ़े बालों के ४ नाम हैं- अलकः (पु न ), कर्करालः, खगरः, चूर्णकुन्तलः ॥ ६. 'ललाटपर लटकते हुए वालों ( काकुल, बुलबुली ) के ३ नाम हैभ्रमरकः ( पु न ), कुरुलः, भ्रमरालकः ॥ ७. बंधे हुए बालो'का १ नाम है-धम्मिल्लः ।। शेषश्चात्र-धम्मिल्ले मौलिजूटकौ । ८. 'केशोंकी रचना'का १ नाम है- कबरी ।। शेषश्चात्र-कर्बरी तु कबयां स्यात् । ६. 'चोटी, गूंथे हुए बालके २ नाम हैं-वेणिः (स्त्री), प्रवेणी (+प्रवेणिः)॥ Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मर्त्यकाण्ड: ३] मणिप्रभा'व्याख्योपेतः १४३ -१शीर्पण्यशिरस्यौ विशदे कचे ॥ २३४ ॥ २केशेषु वर्म सीमन्तः पलितं पाण्डुरः कचः । ४चूड़ा केशी केशपाशी शिखा शिखण्डिकः समाः ॥ २३५ ॥ ५सा बालानां काकपक्षः शिखण्डकशिखाण्डको। ६तुण्डमास्यं मुखं वक्त्रं लपनं वदनानने ।। २३६॥ . भाले गोध्यलिकालीकललाटानि श्रुतौ श्रवः। शब्दाधिष्ठानपैञ्जषमहानादध्वनिग्रहाः ॥२३७ ॥ कर्णः श्रोत्रं श्रवणश्च वेष्टनं कर्णशष्कुली। १०पालिस्तु कर्णलतिका ११शोभालश्रवोऽन्तरे ॥ २३८ ॥ १. 'निर्मल (मैल आदिसे रहित ) बाल'के २ नाम हैं-धीर्षण्यः, शिरस्यः । शेषश्चात्र-प्रलोभ्यो विशदे कचे। २. 'मांग'का १ नाम हैं-सीमन्तः ।। ३. 'पके हुए ( श्वेत ) वान'का १ नाम है-पलितम् ( पु न ) ।। ४. 'शिख', टीक, चुटिया के ५ नाम हैं-चूड!, केशी, केशपाशी, शिखा, शिखण्डिकः ॥ . ५. 'काकपक्ष' ( बच्चोंके दौवैके पंखके समान दोनों भागने कटाये हुए बाल )के ३ नाम हैं-काकपक्षः, शिखण्डकः, शिखाएडकः ।। . ६. 'मुख'के ७ नाम है-तुण्डम् , आस्यम् , मुखम् ( पु न ), वक्त्रम्, लपनम् , वदनम् , आननम् ।। शेषश्चात्र-मुखे दन्तालयस्तरं धनं चरं घनोत्तमम् ॥ ७. 'ललाट'के ५ नाम है-भालम् (पु न ), गोधिः ( स्त्री ), अलिकम् , अलीकम् , ललाटम् ।। ८. 'कान'के है नाम हैं--अतिः, श्रवः (-दस न ), शन्दाधिष्ठानम् , पञ्जूषः (पु न ), महानादः, ध्वनिग्रहः (+शब्दग्रहः ), कर्णः, श्रोत्रम् , श्रवणम् (पुन )॥ ६. 'कर्णशष्वुली के २ नाम हैं--वेष्टनम , कर्णशष्कुली ॥ १०. 'कर्णमूल ( कानके पासवाले भाग ) के २ नाम हैं--पालि: (स्त्री), कर्णलतिका ।। शेषश्चात्र-कर्णप्रान्तम्तु धारा स्यात्कर्णमूलं तु शीलकम् ।। ११. 'ललाट तथा कान के बीचवाले स्थानका १ नाम है-शङ्खः (पु न )॥ Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४ 'अभिधानचिन्तामणि' श्चक्षुरक्षीक्षणं नेत्रं नयनं दृष्टिरम्बकम् । लोचनं दर्शनं हक्च २तत्तारा तु कनीनिका ॥ २३६ ॥ ३वामन्तु नयनं सौम्यं ४भानवीयन्तु दक्षिणम् । पूअसौम्येऽक्षपयनक्षि स्यादीक्षणन्तु निशामनम् ।। २४० ॥ निभालनं निशमनं निध्यानमवलोकनम् । दर्शनं द्योतनं निवर्णनश्चाध्यार्द्धवीक्षणम् ॥ २४१ ।। अपाङ्गदर्शनं काक्षः कटाक्षोऽक्षिविकूणितम् । पस्यादुन्मीलनमुन्मेषो एनिमेषस्तु निमीलनम् ॥ २४२ ॥ .. १०अक्षणोबर्बाह्यान्तावपाङ्गौ ११भ्रू रोमपद्धतिः । १२सकोपभ्र विकारे स्याद् भ्रबंधूभृपरा कुटिः ॥ २४३ ॥ .१. 'आंख'के १० नाम हैं-चतुः (-तुस), अक्षि (२ न), ईक्षणम् , नेत्रम् (पु न ), नयनम् , दृष्टिः, अम्बकम् , लोचनम् (+विलोचनम् ); दर्शनम्, दृक् (-श, स्त्री)॥ शेषश्चात्र-अक्षिण रूपग्रहो देवदीपः। २. 'आँखकी पुतली'के २ नाम हैं-तारा (पु स्त्री ।+तारका ), कनीनिका ॥ ३. 'बायीं आंख'का १ नाम है-सौम्यम् । ( इसका चन्द्रमा देवता है)। ४. 'दहिनी आँख'का १ नाम है-भानवीयम् । ( इसका सूर्य देवता है)॥ ५. 'सुन्दरताहीन आँखका १ नाम है-अनक्षि ॥ ६. 'देखने के ६ नाम हैं-ईक्षणम्, निशामनम्, निभालनम्, निशमनम्, निध्यानम्, अवलोकनम्, दर्शनम् , द्योतनम्, निवर्णनम् ।। ७. 'कटाक्ष'के ५ नाम है-अर्धवीक्षणम्, अपाङ्गदर्शनम्, काक्षः, कटाक्षः, अक्षिविकूणितम् ॥ ८. 'अांख खोलने के २ नाम हैं-उन्मीलनम् , उन्मेषः ।। ६. 'आंख (की पलक) बन्द करने के २ नाम हैं-निमेषः, निमीलनम् ।। १०. 'श्रांखके आस-पासके दोनों भागों'का १ नाम है-अपाडौ। (एकत्वको विवक्षामें ए० व० भी प्रयुक्त होता है)। ११. 'भौं'हका १ नाम है-भ्रः (स्त्री)॥ १२. क्रोधसे भौंहके टेढ़े होने के ४ नाम है-भ्रकुटिः, भ्रुकुटि:, भ्रकुटिः,. भृकुटिः ( सब स्त्री)॥ Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मर्यकाण्ड: ३ ] मणिप्रभा'व्याख्योपेतः १कूच कूप भ्रुवोर्मध्ये २पक्ष्म स्यान्नेत्ररोमणि । ३गन्धज्ञा नासिका नासा घ्राणं घोणा विकूणिका ॥ २४४ ॥ नक्रं नर्कुटकं शिचिटन्योष्ठोऽधरो रदच्छदः । दन्ताखश्च ५तत्प्रान्तौ मुक्कणी ६असिकन्त्वधः ॥ २४५ ॥ ७असिकाधस्तु चिबुकं स्याद्गल्लः सक्कणं परः। हगल्लात्परः कपोलश्च १०परो गण्डः कपोलतः॥२४६ ॥ ११ततो हनुः १२श्मश्रु कूर्चमास्यलोम च मासुरी। १३दाढिका दंष्टिका१. 'भौहोंके मध्यभाग'के २ नाम हैं-कूर्चम् ( पु न ), कूर्पम् ।। २. 'पपनी ( नेत्रके बालों ) का १ नाम है-पक्ष्म ( -क्ष्मन् पु न )॥ ३. 'नाक'के ६ नाम हैं-गन्धज्ञा, नासिका, नासा, घ्राणम् , घोणा, विकूणिका, नक्रम् ( न ।+पु ), नर्कुटकम् (+नकुटम् ), शिचिनी ॥ शेषश्चात्र-नासा तु गन्धहृत् । नसा गन्धवहा नस्या नासिक्यं गन्धनालिका। ४. 'ओष्ठ'के ४ नाम हैं-ओष्ठः, अधरः, रदच्छदः, दन्तवस्त्रम् । पु न । किसीके मतसे 'अधर' शब्द नीचेवाले अोष्ठका पर्याय है )। शेषश्चात्र-श्रोष्टे तु दशनोच्छिष्टो रसालेपी च वाग्दलम् । ५. 'ओष्ठप्रान्तों ( ओष्ठके दोनों . भागों-गलजबड़ों)का १ नाम हैसुकणी ( कि ।+ सक्कणी,-क्वि, सृक्किणी,-कन् । द्वित्वापेक्षासे द्विवचनका प्रयोग किया गया है ) ॥ ६. 'ओष्ठके नीचेवाले भाग'का १ नाम है-असिकम् ॥ ७. 'उक्त असिकके नीचेवाले भाग, ठुड्ढी'का १ नाम है-चिबुकम् ॥ ८. 'गलजबड़ोके बादवाले भाग'का १ नाम है -गल्ल: । ६. 'कपोल, गाल ( गल्लके बादवाले भाग )का १ नाम है-कपोलः ॥ १०. 'कपोलके बादवाले भाग'का १ नाम है-गण्डः ॥ विमर्श-विशेष भेद नहीं होनेसे 'गल्लः, कपोलः, गण्ड:'-ये तीनों शब्द एकार्थक ( 'गाल'के वाचक ) ही हैं, ऐसा भी किसी का मत है । ११. 'ठुड्ढी दाढ़ी' या-ऊपरवाले जबड़े'का १ नाम है-हनुः (पु स्त्री)॥ १२. 'दाढ़ीके बाल के ४ नाम हैं-श्मश्रु (न), कूर्चम् (पु न ), आस्यलोम (-मन् ), मासुरी ॥ शेषश्चात्र-श्मश्रुणि व्यञ्जनं कोटः। १३. 'दाढ़ी के २ नाम है-दाढिका, दंष्ट्रिका (+द्राढिका)॥ १० अ० चि० Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४६ अभिधानचिन्तामणिः -१दाढा दंष्ट्रा जम्भो २द्विजा रदाः ॥ २४७ ।। रदना दशना दन्ता दंशखादनमल्लकाः । राजदन्तौ तु मध्यस्थावुपरिश्रेणिको कचित् ॥ २४ ॥ ४रसज्ञा रसना जिह्वा लोला तालु तु काकुदम् ।। ६सुधास्रवा घण्टिका च लम्बिका गलशुण्डिका ॥ २४६ ।। ७कन्धरा धमनिर्णीवा शिरोधिश्च शिरोधरा।। प्सा त्रिरेखा कम्बुप्रीवाऽवटुर्घाटा कृकाटिका ।। २५० ॥ १०कृकस्तु कन्धरामध्यं ११कृकपाश्वौँ तु. वीतनौ । १२ग्रीवाधमन्यौ प्राग नीले १३पश्चान्मन्ये कलम्बिके ।। २५१ ।। १. 'दाद'के ३ नाम हैं -दाढा, दंष्ट्रा, जम्भः ।। २. 'दांत के ८ नाम है-द्विजाः, रदाः, रदनाः, दशनाः, दन्ताः, दंशाः, खादनाः, मल्लकाः । (यहां बहुत्यापेक्षा से बहुंवचन कहा गया है )॥ शेषश्चात्र-दन्ते मुखखुरः खरुः । दालुः। ३. 'अपरमें स्थित बीचवाले दो दांतो'का १ नाम है-राजंदन्तौ ॥ विमर्श-किसी-किसीके मतसे ऊपर-नीचे ( दोनों भागोंमें ) स्थित दो-दो दाँतो'का १ नाम है-राजदन्ताः। दोनोंमें से प्रथम मतमें दो दांत होनेसे द्विवचन तथा दूसरे मतमें चार दांत होनेसे बहुवचन प्रयुक्त हुश्रा है । ४. 'जीभ'के ४ नाम हैं-रसशा, रसना ( स्त्री न ), जिहा, लोला । शेषश्चात्र-जिह्वा तु रसिका, रस्ना च रसमातृका । रसा काकुर्ललना च । ५. 'तालु'के २ नाम है-तालु (न), काकुदम् ॥ . शेषश्रात्र-वक्त्रदलं. तु तालुनि। ६. 'घाटी'के ४ नाम हैं-सुधासवा, घण्टिका, लम्बिका, गलशुण्डिका ॥ ७. 'गर्दन'के ५ नाम हैं-कन्धरा, धमनि: (स्त्री), ग्रीवा, शिरोधिः (स्त्री), शिरोधरा ।। . 'तीन रेखायुक्त गर्दन'का १ नाम है-कम्बुग्रीवा ।। ६. गर्दनके पीछेवाले भाग'के ३ नाम हैं-अवटुः, ( पु स्त्री), घाटा, कृकाटिका ॥ . शेषश्चात्र-अक्टौ तु शिरःपीठम् ॥ १०. 'गर्दनके बीच'का १ नाम है-कृकः ॥ ११. 'उक्त कृकके अगल-बगलवाले मागो'का १ नाम है-वीतनौ ॥ १२. 'गर्दनके श्रागेवाली दोनों नाड़ियों'का १ नाम है-नीले (-ला, स्त्री)॥ १३. 'गर्दन के पीछेवाली दोनों नाड़ियो'का १ नाम है-कलम्बिके (का, Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मर्त्यकाण्डः ३] मणिप्रभा व्याख्योपेतः १४७ गलो निगरणः कण्ठः २काकलकस्तु तन्मणिः । ३अंसो भुजशिरः स्कन्धो ४जत्र सन्धिरुरोऽसगः ॥२५२॥ पभुजो बाहुः प्रवेष्टो दोर्वाहा६ऽथ भुजकोटरः। दोर्मुलं खण्डिक: कक्षा पाश्वं स्यादेवयोरधः ॥ २५३ ।। कफोणिस्तु भुजामध्यं कफणिः कूपरश्च सः। हअधस्तस्याऽऽमणिबन्धात् स्यात्प्रकोष्ठः कलाचिका ॥ २५४ ॥ १०प्रगण्डः कूर्परांसान्तः ११पञ्चशाखः शयः शमः । हस्तः पाणिः करो१२ऽस्यादौ मणिबन्धो मणिश्व सः॥ २५५ ॥ १३करभोऽस्मादाकनिष्ठस्त्री। बीतनौ, नीले, कलम्बिके'-इन तीनोंमें द्विस्वकी अपेक्षासे द्विवचनका प्रयोग किया गया है)। १. 'कण्ठ'के ३ नाम है-गलः, निगरणः, कण्ठः (पु+पुन)॥ २. 'कण्ठमणि'का १ नाम है-काकलकः (+काकल:)॥ ३. 'कन्धे के ३ नाम है-अंस: (पु न ), भुजशिरः (-रसा + भुजशिखरम् ), स्कन्धः॥ ४. 'हँसुली' (कन्धेसे छातीको जोड़नेवाली हड्डो) का १ नाम हैजत्र (न), ॥ ५. 'बाह, भुजा'के ५ नाम है-भुजः , बाहुः, ( २ पु स्त्री), प्रवेष्टः, दोः (-स् , पु न), वाहा ॥ ६. कांख' के ४ . नाम है-भुजकोटरः (पु न ), दोर्मूलम , खण्डिकः, कक्षा (पु स्त्री)॥ ७. 'पँजड़ी-( काखके नीचेवाले भाग ) का १ नाम है-पार्श्वम् (पुन)। ८. 'कोहुनी: (.बांहके बीचवाले भाग ) के ४ नाम है-कफोणिः (स्त्री। +कफाणिः ), भुजामध्यम् , कफणिः ( स्त्री ।+पु), कूपरः (+कुपरः)॥ शेषश्चात्र-कफोणौ रत्नपृष्ठकम् । बाईपबाहुसन्धिश्च । ६. 'कोनीके नीचे कलाई तकके भाग'के २ नाम है-प्रकोष्ठः, कलाचिका ।। १०. 'कोहुनीसें कन्धेतकके भाग'का ४ नाम हैं-प्रगण्डः ॥ ११. 'हायके ६ नामई-पञ्चशाखः, शयः, शमः, हस्तः (पु न ), पाणिः (पु), करः ॥ शेषश्चात्र-हस्ते भुजदलः सलः ॥ १२. मणिबन्ध (कलाई ) के २ नाम है-मणिबन्धः, मणिः (पु स्त्री) ।। १३. 'कलाईसे कनिष्ठा अगुलिके मूलतक बाहरी भाग'का नाम है करमः॥ Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४८ अभिधानचिन्तामणिः -१करशाखागुली समे। अंगुरी २चांगुलोऽङगुष्ठ३स्तर्जनी तु प्रदेशिनी ।। २५६ ॥ ४ज्येष्ठा तु मध्यमा मध्या ५सावित्री स्यादनामिका।। ६कनीनिका तु कनिष्ठा७ऽवहस्तो हस्तपृष्ठतः ।। २५७ ।। कामाशो महाराजः करजो नखरो नखः। करशूको भुजाकण्टः पुनर्भवपुनर्नवौ ॥ २५८ ।। प्रदेशिन्यादिभिः सार्धमङ्गुष्ठे वितते सति। प्रादेशतालगोकर्णवितस्तयो' . . यथाक्रमम् ॥ २५६ ॥ १०प्रसारितांगुलौ पाणौ चपेटः प्रतलस्तलः । प्रहस्तस्तालिका तालः ११सिंहतलस्तु तौ युतौ ।। २३०॥ १. 'अंगुलि'के ३ नाम हैं-करशाखा, अगुली (+अगुलि: ), अगुरी॥ २. 'अंगूठे के २ नाम हैं-अङ्गुल:, अङ्गुष्ठः ।। ३. 'तर्जनी ( अंगूठेके बादवाली अङगुलि ) के २ नाम हैं-तर्जनी, प्रदेशिनी ॥ ४. 'बीचवाली (तर्जनीके बादवाली) अङ्गुलि'के ३ नाम हैं-ज्येष्ठा, मध्यमा, मध्या ॥ ५. अनामिका (मध्यमा तथा कनिष्ठाके बीचवाली अंगुलि ) के २ नाम है-सावित्री, अनामिका ॥ ६. 'कनिष्ठा' (सबसे छोटी अंगुलि ) के २ नाम हैं--कनीनिका, कनिष्ठा ॥ ७. 'हथेलीके पीछेवाले भाग'का १ नाम है-अवहस्तः ।। ___८ 'नख, नाखून के ६ नाम हैं-कामाङकुशः, महाराजः, करजः ( यौ०-पाणिजः, कररुहः,...."), नखरः (त्रि ), नखः ( पु न ), करशूकः, भुजाकण्टः, पुनर्भवः, पुनर्नवः ।। ___. 'तर्जनी श्रादि ( तर्जनी, मध्यमा, अनामिका और कनिष्ठा अंगुलियोंके साथ अंगुष्ठ अगुलिको फैलानेपर होनेवाले नाप ( लम्बाई ) का क्रमशः १-१ नाम होता है-प्रादेशः, ताल:, गोकर्णः, वितस्तिः (पु स्त्री ) अर्थात् 'बित्ता' । १०. 'थप्पड़, चटकन' के ६ नाम हैं-चपेटः (पु स्त्री), प्रतलः, तल:, प्रहस्तः, तालिका, तालः॥ ११. 'फैलाये हुए दोनों हाथोंके सटाने ( दोहथा )का १ नाम हैसिंहतलः (+संहतल:)॥ Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४६ मर्त्यकाण्डः ३] मणिप्रभा'व्याख्योपेतः १संपीडितांगुलिः पाणिर्मुष्टिर्मुस्तुर्मुचुट्यपि । संग्राहश्चार्धमुष्टिस्तु खटकः ३कुब्जितः पुनः ।। २६१ ॥ पाणिः प्रसृतः प्रमृति४स्तौ युतौ पुनरञ्जलिः । ५प्रसृते तु द्रवाधारे गण्डूषश्चुलुकश्चलुः ।। २६२ ॥ ६हस्तः प्रामाणिको मध्ये मध्यमाङ्गुलिकूपरम् । ७बद्धमुष्टिरसौ. रनिरनिनिष्कनिष्ठिकः ॥ २६३ ॥ हव्यामव्यायामन्यग्रोधास्तिर्यग्बाहू प्रसारितौ । १०ऊर्वीकृतभुजापाणि नरमानं तु पौरुषम् ।। २६४ ॥ ११दघ्नद्वयसमात्रास्तु जान्वादेस्तत्तदुन्मिते । १. 'मुटी, मुक्का'के ४ नाम है-मुष्टिः, मुस्तुः, (२ पु स्त्री ), मुचुटी (स्त्री), संग्राहः ॥ २. 'खुली हुई (आधी बंद ) मुट्ठी'का १ नाम है-खटकः ।। ३. 'पसर के २ नाम हैं-प्रसृतः, प्रसूतिः (स्त्री)।। . ४. 'अञ्जलिका १ नाम है-अञ्जलिः (पु)॥ ५. 'चुल्लू'के ३ नाम हैं-गण्डूषः, 'चुलुकः (२ पु स्त्री), चलुः (पु । +चलुकः)॥ ६. 'हाथभर ( केहुनीसे मध्यमा अङ्गलितक फैलाने से होनेवाले २४ अंगुल या २ वित्तेकी लम्बाईवाले प्रमाणविशेष )का १ नाम है-हस्तः ॥ ७. 'निमुठ हाथभर ( केहुनीसे मुट्ठी बांधकर फेलानेसे होनेवाले नाप) का नाम है-रनिः (पु स्त्री)। ८. 'केहुनीसे कनिष्ठा अंगुलिके फैलानेसे होनेवाले नाप'का १ नाम है-अरस्निः (पु स्त्री)॥ ६. 'दोनों हाथ फैलानेपर होनेवाले नापके ३ नाम हैं- व्यामः, व्यायामः, न्यग्रोधः । शेषश्चात्र-अथ व्यामे वियामः स्याद्वाहुचापस्तनूतलः। १०. 'पोरस' (खड़ा होकर हाथ उठानेसे होनेवाले (साढ़े चार हाथका)नाप'का १ नाम है-पौरुषम् ॥ ११.. 'जानु आदि शब्दोंके बादमें 'दघ्नम् , द्वयसम् , मात्रम् (३ त्रि) प्रत्यय लगानेसे बने हुए 'जानुघ्नम् , जानुद्वयसम् , जानुमात्रम्' शब्द 'जानु (घुटने. ठेहुने ) तक पानी आदिके नाम हो जाते हैं। यथा-जानुदध्नं जलम् , जानुद्वयसं जलम् , जानुमात्रं जलम्'का अर्थ 'घुटनाभर पानी' होता है। ( इसीप्रकार 'ऊरु' आदि शन्दोंके बाद 'दन' आदि बोड़नेपर 'ऊरुघ्नम' आदि शब्द बनते हैं ) ॥ Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૦ अभिधानचिन्तामणि श्रीढकः पृष्ठवंशः स्यात् २पृष्ठं तु चरमं तनोः ॥ २६५ ॥ ३पूर्वभाग उपस्थोऽङ्कः क्रोड उत्सङ्ग इत्यपि । ४क्रोडोरो हृदयस्थानं वक्षो वत्सो भुजान्तरम् ।। २६६ ॥ ५स्तनान्तरं हृद् हृदयं स्तिनौ कुचौ पयोधरौ। उरोजौ च ७चूचुकं तु स्तनाद् वृन्तशिखामुखाः ।। २६७ ॥ पतुन्दं तुन्दिर्गर्भकुक्षी पिचण्डो जठरोदरे । हकालखण्ड कालखझं कालेयं कालकंयकृत्।। २६८ ।। १०दक्षिणे तिलकं क्लोम१. 'पीठकी रीढ़'के २ नाम हैं-रीढक: , पृष्ठवंशः॥ २. 'पीठ'का १ नाम है-पृष्ठम् । ( अारोपसे 'पृष्ठ' शब्द पीछेका भी वाचक है)। ३. 'गोद, क्रोड'के ४ नाम हैं-उपस्थः, अङ्कः, कोड:, उत्सनः ।। ४. 'अँकवार ( दोनों भुजाओंका मध्यभाग) के ६ नाम हैं-क्रोडा (स्त्री न). उरः (-रस , न ), हृदयस्थानम् , वक्षः (-स् , न ), वत्स: (पुन ), भुजान्तरम् ॥ . ५. 'हृदय'के ३ नाम हैं-स्तनान्तरम् , हृत् (-द् न ), हृदयम् ।। शेषश्चात्र-हृद्यसह मर्मचरं गुणाधिष्ठानकं त्रसम् । ६. स्तन'के ४ नाम हैं-स्तनौ, कुची, पयोधरौ, उरोजौ ( यौ०उरसिजी, वक्षोजो,"द्वित्वको अपेक्षासे इनका प्रयोग द्विवचनमें हुश्रा शेषश्चात्र-गुणौ तु धरणौ। । ७. स्तनके अग्रभाग (जिसे बच्चे मुखमें लेकर दुग्धपान करते हैं, उस के ४ नाम हैं-चूचुकम् (पुन), स्तनवृन्तम् , स्तनशिखा, स्तनमुखम् ॥ शेषश्चात्र-अग्रे तयोः पिप्पलभेचको। ८. 'पेट, तोंद'के ७ नाम है-तुन्दम् , तुन्दिः (स्त्री), गर्भः, कुतिः (पु I+ पु स्त्री), पिचण्डः, जठरम् (पुन), उदरम् ( न ।+ पु स्त्री) ( वाचस्पतिके मतसे 'पेट'के अाधारका नाम 'कुक्षि है)॥ • ६. यकृत् , कलेजा ( हृदयके भागमें स्थित कृष्ण वर्णवाले मांसविशेष) के ५ नाम है-कालखण्डम् , कालखञ्चम् , कालेयम् , कालकम् . यकृत् (न)॥ १०. 'फेफड़ा (हृदयके दहने भागमें स्थित पेटके जलाधार-विशेष) के २ नाम है-तिलकम् , क्लोम (-मन् , न)॥ Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५१ मयंकाण्ड: ३] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः . -श्वामे तु रक्तफेनजः। पुष्पसः स्यारदथ प्लीहा गुल्मोऽ३न्त्रं तु पुरीतति ।। २६६ ।। ४रोमावली रोमलता ५नाभिः स्यात्तन्दकूपिका। ६नाभेरधो मूत्रपुटं वस्तिर्मूत्राशयोऽपि च ॥ २७० ॥ मध्योऽवलग्न विलग्नं मध्यमोऽथ कटः कटिः। श्रोणिः कलत्रं कटीरं काञ्चीपद ककुद्मती ।। २७१ ॥ नितम्बारोही स्त्रीकट्याः पश्चा१०ज्जघनमप्रतः । ११त्रिकं वंशाध१२स्तत्पावकूपकौतु कुकुन्दरे ।। २७२ ।। १३युतौ स्फिचौ कटिपोथौ-.. शेषश्चात्र-जठरे मलुको रोमलताधारः । १. 'फुफ्फुस' (हृदयके बांये भागमें रतफेनसे उत्पन्न के नाम है-रतफेनवः, पुष्पसः ॥ २. 'प्लीहा, गुल्मनामक रोग'के २ नाम हैं-प्लीहा, गुल्मः (पुन) ३. 'श्रांत के २ नाम है-अन्त्रम् , पुरीतत् (नं।+पु)॥ ४. 'नाभिके नीचेवाली रोमपंक्ति के २ नाम है-रोमावली, रोमलता ।। ५. 'नामि'के २ नाम है-नाभिः (पुत्री), तुन्दकूपिका ।। शेषधात्र-अथ क्लोमनि । स्यात्ता क्लपुष क्लोमम् । ६. 'भूत्राशय के ३ नाम हैं-मूत्रपुटम् ; वस्तिः (पु स्त्री), मूत्राशयः।। ७. 'शरीरके मध्यभाग'के ४ नाम है-मध्यः, अवलग्नम् , मध्यमः (सब पु. न)॥ ८. कटि, कमर के नाम हैं-कटः (पु न ), करिः (स्त्री), भोणिः (पु स्त्री), कलत्रम् , कटीरम् काञ्चीपदम् , ककुद्मती॥ ६. 'नितम्ब (स्त्रीके चूतड़ ) के २ नाम हैं-नितम्बः, आरोहः ॥ १०. 'जघनका १ नाम है-अधनम् ।। ११. 'पीठको रीढ़के नीचे तथा दोनों ऊरके जोड़वाले भाग'का १ नाम है-त्रिकम् ॥ १२. 'उक्त, त्रिक'के पासवाले दोनों भागमें स्थित गर्तविशेष'का १ नाम है-कुकुन्दरे ( न, द्विस्वापेक्षासे द्विवचन कहा गया है अतः एकवचन भी होता है।++कुकुन्दुरः)॥ शेषश्चात्र-कटीकूपो चिलिङ्गौ रतावुके । १३. 'दोनों चूतड़ों के २ नाम है-स्फिचौ ( च , स्त्री), कटिपोयो। (द्वित्वकी अपेक्षासे द्विवचन कहा गया है, अतः एकवचन मी होता है)। Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२ अभिधानचिन्तामणिः -१वराग तु च्युतिर्बुलिः। भगोऽपत्यपथो योनिः स्मरान्मन्दिरकूपिके ॥ २७३ ।। स्त्रीचिह्नरमथ पुश्चिह्न मेहनं शेपशेपसी। शिश्नं मेढ़ः कामलता लिङ्गं च ३द्वयमप्यदः ॥ २७४ ॥ गुह्यप्रजननोपस्था ४गुह्यमध्यं गुलो मणिः। ५सीवनी तदधःसूत्रं स्यादण्डं पेलमण्डकः ॥ २७५ ॥ मुष्कोऽण्डकोशो वृषणोऽपानं पायुमुदं च्युतिः। अधोमर्म शकृद्द्वारं त्रिवलीक-बुली अपि ॥ २७६ ॥ पविटपं तु महाबीज्यमन्तरा मुष्कवक्षणम् । ६ऊरुसन्धिवेक्षणःस्यात् १०सक्थ्यूरुस्तस्य पवे तु ।। २७७ ॥ १. योनि'के ६ नाम हैं-वराङ्गम् , च्युतिः, बुाल: (.२ स्त्री), भगः . (पु न ), अपत्यपथः, योनिः (पुत्रो), स्मरमान्दरम् , स्मरकू पिका, स्त्रीचिह्नम् ॥ २. 'लिङ्ग (पुरुषोंके पेशाब करनेवाला इन्द्रिय')के ८ नाम है--विहम् , मेहनम् , शेपः, शेपः (-पस् , न ), शिश्नम् , मेदः (२ पुं न ), कामलता, लिङ्गम् ॥ . . शेषश्चात्र-शिश्ने तु लंगुलं शंकु लागलं शेफशेफसो । ३. 'योनि तथा लिङ्ग' दोनोंके ३ नाम और भी हैं-गुह्यम् , प्रजननम्, उपस्थः (पु+पुन)॥ ४. 'गुह्य (लिङ्ग)के मध्यभागस्थ मणि' के २ नाम है-गुल:, मणिः (पु स्त्री)। ५. 'गुह्य (लिङ्ग तथा योनि ) के नीचे स्थित सीवन'का १ नाम है-- सीवनी॥ ६. 'अण्डकोष (फोता ) के ६ नाम हैं-अण्डम् (न ।+न पु I+ आण्ड: ), पेलम् (+ पेलकः), अण्डकः, मुष्कः ( पु न ), अण्डकोशः, वृषण: (पुन)॥ ७. 'गुदा (पाखाने का मार्ग के ८ नाम हैं-अपानम् , पायु: (पु), गुदम् ( पु न ), च्युतिः, अधोमम (-मन् ), शक्वारम्, त्रिवलीकम् , बुलि: (स्त्री)॥ ८. 'अण्डकोष तथा ऊरुसन्धिके मध्यवाली रेखा'के २ नाम हैं-विट. पम् , महाबीज्यम् ॥ . ६. 'ऊरुसन्धि'का १ नाम है (+अरुसन्धिः ), वडक्षणः ॥ १०. 'बडा'के २ नाम है-सस्थि (न), ऊरुः (पु स्त्री ) । Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'मणिप्रभा' व्याख्योपेतः १ जानुर्नलकीलोऽष्टवान् २पश्चाद्भागोऽस्य मन्दिरः । ३ कपोली त्वग्रिमो ४जङ्घा प्रसृता नलकीन्यपि ॥ २७८ ॥ प्रतिजङ्घा त्वग्रजङ्घा ६पिण्डिका तु पिचण्डिका । गुल्फस्तु चरणग्रन्थिर्घुटिको घुण्टको घुटः ॥ २७६ ॥ ८चरणः क्रमणः पादः पदोंऽह्निश्चलनः क्रमः । पादमूलं गोहिरं स्यात् १० पाणिस्तु घुटयोरधः ॥ २८० ॥ ११पादानं प्रपदं १२ क्षिप्रं त्वङ्गुष्ठाङ्गुलिमध्यतः । १३ कूर्चं क्षिप्रस्योप १४र्यंह्निस्कन्धः कूर्चशिरः समे ॥ २८१ ॥ - मर्त्यकाण्ड : ३ ] १५ तलहृदयं तु तलं मध्ये पादतलस्य तत् । : १६ तिलकः कालकः पिप्लुर्जडुलस्तिलकालकः || २८२ ।। १५३ १. 'घुटना, ठेहुना' ३ नाम हैं— जानुः ( पु न ), नलकीलः, अष्ठीवान् -वत् पुन ) ॥ " २. ‘घुटनेके पीछेवाले भाग'का १ नाम है - मन्दिरः ।। ३. 'घुटनेके श्रागेवाले भाग का १ नाम है - कपोली ॥ ४. 'जङ्घा' (पिंडली, घुटनेके नीचेवाले भाग ) के ३ नाम है— जङ्घा, प्रसृता, नलकीनी ॥ ५. 'जङ्घाके आगेवाले भाग के २ नाम हैं--प्रतिजङ्घा, अग्रजङ्घा ॥ ६. 'पिंडलीके पीछेवाले मांसल भाग के २ नाम हैं- पिण्डिका, पिचण्डिका ॥ ७. पैर की फिल्ली ( घुट्टी, एड़ीके ऊपरवाली गांठ )' के ४ नाम हैंगुल्फ: ( + चरणग्रन्थिः ), घुटिक:, घुण्टकः, घुट: ( सत्र पु स्त्री ) | ८. पैर के नाम है - चरण:, ( पु न ), क्रमणः पादः ( + पात् –दू ), पद: ( पु न । + पत् दू ), अंह्निः ( पु । अङ्घ्रिः ), चलनः क्रमः ॥ ६. ‘एड़ी'का १ नाम है - ( + पादमूलम् ) गोहिरम् || १०. 'घुट्टियों के नीचेवाले भाग' का १ नाम है - पाणि: ( स्त्री ) | ११. ‘पैरके श्रागेवाले भाग ( पैरका पंजा ) ' का १ नाम है - प्रपदम् ॥ • पैर के श्रङ्गठे तथा अंगुलियोंके बीचवाले भाग' का १ नाम है १२. क्षिप्रम् ॥ १३. ‘उक्त ‘क्षिप्र’के ऊपरवाले भाग'का १ नाम है – कूर्चम् ॥ १४. ‘उक्त ‘कूर्च’के ऊपरवाले भाग' के २ नाम हैं— श्रंह्रिस्कन्धः, कूचंशिरः ( - रस् ) । १५. पैर के तलवे ( सुपली )' के २ नाम है— तलहृदयम्, तलम् ॥ १६. 'श्रृङ्गमें तिलके समान काले चिह्न' के ५ नाम है - तिलकः, कालकः, पिप्लु:, (पु), जडलः, तिलकालकः ॥ Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५४ अभिधानचिन्तामणिः श्रसामुग्मांसमेदोऽस्थिमज्जाशुक्राणि धातवः । सप्तव दश वैकेषां रोमत्वकस्नायुभिः सह ।। २८३ ।। २रस आहारतेजोऽग्निसंभवः षडरसाश्रयः।। आत्रेयोऽकरो धातुर्घनमूलमहापरः ।। २८४ ।। ३रक्तं रुधिरमाग्नेयं विलं तेजोभवे रसात् ।। शोणितं लोहितमसृग् वाशिष्ठं प्राणदाऽऽसुरे ॥ २८५ ॥ क्षतजं मांसकार्यत्र ४मांसं पललजङ्गले । रक्तात्तेजोभवे क्रव्यं काश्यपं तर आमिषे.॥ २८६॥ ... मेदस्कृत पिशितं कीनं पलं "पेश्यस्तु तल्लताः। ६बुक्का हृद् हृदयं वृक्का सुरसं च तदग्रिमम् ।। २८७ ।। शुष्कं वल्लूरमुत्तप्तं . १. 'रस: ( खाए हुए अन्नादिसे बना हुआ सार भाग ), अमुक (-ज् , रक्त), मांस: (मांस ), मेदः (-दस , मेदा), अस्थि ( हड्डी), मजा . (शरीरको हड्डियोंकी नालियोंमें होनेवाला स्निग्ध पदार्थ), शुक्रम् (वीर्य)ये ७ 'धातवः' अर्थात् 'धातु' कहलाते हैं । किसी-किसीके मतसे उक्त ७ तथा 'रोम (-मन् , न। रोएँ ,वाल), स्वक् (-च, स्त्री। चमड़ा), स्नायुः (नाड़ी, नस)–ये ३ कुल १० 'धातवः' अर्थात् 'धातु' कहलाते हैं। २. (अब क्रमसे उक्त रसादि १० के पर्यायोंको कहते हैं-) 'भोजन किये हुए पदार्थके सार भाग'के ६ नाम हैं-रसः, आहारतेजः (-जस् ), अग्निसंभवः, षड्रसासवः, आत्रेयः, असृक्करः; घनधातुः, महाधातुः, मूलधातुः ।। ३. 'रक्त, खून'के १५ नाम है-रतम् , रुधिरम् , आग्नेयम्, विनम्, रसतेजः (-जस् ), रसभवम्, शोणितम् , लोहितम् , असृक् (-ज्, न ), वाशिष्ठम् , प्राणदम्, आसुरम् , क्षतजम् , मांसकारि (-रिन् ), असम् ॥ शेषधात्र-रते तु शोध्यकीलाले । ४. 'मांस'के १३ नाम हैं-मांसम् (पुन), पललम्, जङ्गलम् , (पुन), रचतेजः (-जस ), रक्तभवम् , ऋव्यम् , काश्यपम् , तरसम् , श्रामिषम् (पुन ), मेदस्कृत् , पिशितम् , कीनम् , पलम् (पु न)॥ शेषधात्र-मांसे तूदः समारटम् । लेपनञ्च । ५. 'मांसपेशियों का १ नाम है---पेश्यः (बहुत्वको अपेक्षा से बहुवचनका प्रयोग होनेसे 'पेशी' ए०व० भी होता है )॥ ६. 'हृदय' के ५ नाम है-बुक्का (-कन् , पु|+ -का, स्त्री । + बुकम्, न पु.) हु, हृदयम्, वृका (स्त्री।+पु), सुरसम् ।। ७. 'सखे मांस'के २ नाम है-वल्लूरम् (त्रि), उत्तप्तम् ।। Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मयकाण्डः ३] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः १५५ -पूयध्ये पुनः समे। रमेदोऽस्विकृद्धपा मांसात्तेजो-जे गौतम वसा।। २८८ ।। ३गोदं तु मस्तकस्नेहो मस्तिष्को मस्तुलुङ्गकः। ४अस्थि कुल्यं भारद्वाज मेदस्तेजश्च मज्जकृत् ॥ २८६ ॥ मांसपित्तं श्वदयितं कर्करो देहधारकम् । मेदोज कीकसं सारा५करोटिः शिरसोऽस्थनि॥ २६० ॥ ६कपालकर्परौ तुल्यौ पृष्ठस्यास्थिन कशेरुका। शाखास्थनि स्यान्नलकं पारास्थ्नि वडिक्रपशु के ॥ २६१॥ १०शरीरास्थि करतः स्यात् कङ्कालमस्थिपञ्जरः। ११मज्जा तु कौशिकः शुक्रकरोऽस्थ्नः स्नेहसंभवौ ॥१२॥ १. 'पीब'के २ नाम है-पूयम् (पु न ), दूभ्यम् ॥ २. 'चर्बी'के ७ नाम है-मेदः (-दस् , न ), अस्थिकृत् , वपा, मांसतेजः (-जस् ), मांसबम् , गौतमम् वसा ॥ ___३. 'मस्तिष्क, दिमाग'के ४ नाम है-गोदम् (न ! +पु ), मस्तकस्नेहः, मस्तिष्कः (पुन ), मातुलुनकः (+न)॥ : ४. 'हडी'के १२ नाम है-अस्थि (न), कुल्यम् (पु न ), भारद्वाजम् , मेदस्तेजः (-बस), मज्जकृत् , मांसपित्तम् , श्वदयितम् , कर्करः, देहधारकम् , मेदोजम् , कीकसम् , सारः (+हम् )। - ५. 'मस्तकको हड्डी'का १ नाम है-करोटि: (स्त्री)। ___६. कपाल, खोपड़ी के २ नाम है-कपालम् (पु न ।+शकलम् ), कर्परः ।। ७. पीठकी हड्डी'का १ नाम है-कशेरुका (स्त्री न I+कशारुका, कशारु)॥ . ८ 'नलिका-छोय २ हड्डियों का १ नाम है-नलकम् ॥ ६. पंजड़ी (दोनों पार्श्वभागोंकी हड्डी) के २ नाम है-वद्भिः (स्त्री), पशुका ॥ १०. 'कंकाल (शरीरकी हड्डी के ३ नाम है-करकः, ककालम् (पुन), अस्थिपञ्जरः ॥ ११. 'मन्या के ५ नाम है-मबा (-जन् , पु ।+स्त्री पु I+मबा-बा,. बी), कौशिकः, शुक्रकरः, अस्थिस्नेहा, अस्थिसम्भवः (+अस्थितेजः,-जस्)॥ Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५६ अभिधानचिन्तामणिः श्शुक्रं रेतो बलं बीजं वोर्य मज्जसमुद्भवम् । आनन्दप्रभवं पुंस्त्वमिन्द्रियं किट्टवर्जितम् ।। २६३ ॥ पौरुषं प्रधानधातुरोम रोम तनूरुहम् । ३त्वक्छविश्छादनी कृत्तिश्चर्माऽजिनमस्रग्धरा ।। २६४ ॥ ४वस्नसा तु स्नसा स्नायुएर्नाड्यो धमनयः सिराः । ६कण्डरा तु महास्नायुमलं किट्टं तदक्षिजम् ॥ २५ ॥ दूषीका दूषिका हजै कुलुक १. 'वीर्य, शुक्र के १२ नाम हैं-शुक्रम् , रेतः (-तस नं), बलम् , बीजम् , वीर्यम् , मज्जसमुद्भवम् , अानन्दप्रभवम् , पुंस्त्वम्, इन्द्रियम्, किटवर्जितम् , पौरुषम् , प्रधानधातुः॥ ...... २. रोएं'के ३ नाम है-लोम, रोम (२-न ), तनुरुहम् (पुन)॥ · शेषश्चात्र-रोमणि तु स्वग्मलं वालपुत्रकः। कूपजो : मांसनिर्यासः परित्राणम् ॥ ३. 'चमड़ा ( सादृश्योपचारसे छिलका ) के ७ नाम हैं-स्वक (च ), छविः ( २ स्त्री), छादनी, कृत्तिः, चर्म (-मन् ), अजिनम् , असुग्धरा । विमर्श-'अमरसिंह'ने 'अजिनं चर्म कृत्तिः स्त्री' (१७४६ ) वचनके द्वारा पूर्वोक्त 'कृत्ति, अजिन और चर्मन्' शब्दोको 'मृगयोनि' होनेसे सामान्य चमड़ेसे भिन्न कहा है। अतएव "मृगा अजिनयोनयः" यह वचन तथा "तत्राजिनं मृगयोनिमगाश्च प्रियकादयः । मृगप्रकरणे तेऽथ प्रोक्ता अजिनयोनयः ।।" यह वाचस्पतिके वचन भी सार्थक होते हैं । ४. 'अङ्ग-प्रत्यङ्गोंकी सन्धि ( जोड़) के ३ नाम हैं-वस्नसा, स्नसा (स्त्री), स्नायुः (स्त्री ।+न )॥ शेषश्चात्र-अथ स्नसा । तन्त्रनिखारुस्नावानः सन्धिबन्धनमित्यपि । ५. 'नाड़ियों, नशों'के ३ नाम है-नाड्यः (+नब्यः ), धमनयः (स्त्री), सिराः । ( बहुत्वकी अपेक्षासे ब० व० कहा गया है, अतः ए० व० भी होता है)॥ ६. 'महास्नायु (वैद्योंके मत में-स्नायुसमूह) के २ नाम हैं-कण्डरा, महास्नायुः ॥ ७. 'मेल'के २ नाम हैं-मलम् , किटम् (२ पु न)॥ ८. 'कीचर ( आँखको मैल )के २ नाम हैं-दूषीका, दूषिका ।। ६. 'जीमको मैल'का १ नाम है-कुलुकम् ।। . . Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मर्त्यकाण्ड : ड: ३ ] 'मणिप्रभा' व्याख्योपेतः - १पिप्पिका पुनः । दन्त्यं २कार्णं तु पिब्जूषः ३ शिङ्खाणो घ्राणसंभवम् ॥ २६६ ॥ ४ सृणीका स्यन्दिनी लालाऽऽस्यासत्रः कफकूचिका । ५मूत्रं वस्तिमलं मेह: प्रस्रावो नृजलं स्रवः ।। २६७ ।। ६पुष्पिका तु लिङ्गमलं ७विड् विष्ठाऽवस्करः शकृत् । गूथं पुरीषं शमलोच्चारौ वर्चस्कवर्चसी || २६८ || वेषो नेपथ्यमाकल्पः परिकर्माङ्गसंस्क्रिया । १० उद्वर्तनमुत्सादन ११ मङ्गरागो विलेपनम् ॥ २६६ ॥ १२चर्चिक्यं समालभनं चर्चा स्याद् १३ मण्डनं पुनः । प्रसाधनं प्रतिकर्म १५७ १. 'दाँतकी मैल'का १ नाम है - पिप्पिका ॥ २. 'खोट ( कानकी मैल ) का १ नाम है - पिञ्जूषः ।। ३. 'नेटा, नकटी (नाककी मैल ) का १ नाम है - शिङ्खाणः (+शिचाणकः ) ॥ ४. लार' के ५ नाम हैं - सुणीका ( + सुणिका), स्यन्दिनी, लाला, आस्था-सवः, कफकूचिकां ।। ५. 'मूत्र, पेशाब' के ६ नाम हैं-मूत्रम्, वस्तिमलम्, मेहः, प्रखाव:, नृजलम्, स्रवः ॥ ६. "पुष्पिका ( लिङ्गकी श्वेत वर्ण मैल) का १ नाम है - पुष्पिका ।। ७. ‘विष्ठा, मैला' के १० नाम हैं- विट् (-श्, स्त्री । + स्त्री न । + विट=विष्, स्त्री ), विष्ठा, अवस्कर, शकृत् ( न ), गूथम् (पुन), पुरीषम्, शमलम्, उच्चार:, वर्चस्कम् (पुन), वर्च: (र्चस् I + श्रशुचि ) ।। ८: 'वेष या भूषण' के ३ नाम है -वेषः ( पु न । + वेश: ), नेपथ्यम्, आकल्पः ॥ ६. 'शरीरंका संस्कार करना' ( उवटन, साबुन श्रादिसे स्वच्छ करने) का १ नाम है - परिकर्म ( - र्मन् ) । १०. ' उबटन लगाने' के २ नाम हैं- उद्वर्तनम् उत्सादनम् ( + उच्छादनम् ) ॥ ११. ' कस्तूरी, कुङ्कुम आदि लपेटना' के २ नाम हैं - अङ्गरागः, विलेपनम् ॥ १२. 'चन्दन श्रादिका तिलक करने के ३ नाम हैं- चचिक्यम्, सभालभनम्, चर्चा ॥ १३. 'शृङ्गार करना, सजाना ( स्तन कपोलादिपर पत्रमकरिकादिकी रचना करना )'के ३ नाम हैं - मण्डनम्, प्रसाधनम्, प्रतिकर्म (-र्मन् ) ॥ " Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ '१५८ अभिधानचिन्तामणिः -१मार्टिः स्याद् मार्जना मृजा ।। ३०० ॥ वासयोगस्तु चूर्ण स्यात् ३पिष्टातः पटवासकः । ४गन्धमाल्यादिना यस्तु संस्कारः सोऽधिवासनम् ।। ३०१ ॥ . पनिवेश उपभोगोऽथ स्नानं सवनमाप्लवः। ७कर्परागुरुकक्कोलकस्तूरीचन्दनवैः ॥३०२ ॥ स्याद यक्षकर्दमो मिर्तिर्गात्रानुलेपनी। चन्दनागरुकस्तूरीकुङ्कुमैस्तु चतुःसमम् ।। ३०३ ॥ १०अगुवंगरुराजाहं लोहं कृमिजवंशिके। .. अनार्यजं जोङ्गकच१. 'स्वच्छ ( साफ ) करना'के ३ नाम है-मार्टिः, मार्जना मृजा ॥ . २. 'सुगन्धित (सुवासित ) करनेवाले चूर्ण'के २ नाम है-वासयोगः, चूर्णम् (पुन)॥ ३. 'कपड़ेको सुवासित करनेवाले फूल या चूर्णादि'के २ नाम हैंपिष्टातः, पटवासकः ॥ ४. 'सुगन्धित पदार्थ या माला श्रादिसे. सुवासित करने'का १ नाम । है-अधिवासनम् । ५. 'उपभोग'के २ नाम हैं-निवेशः, उपभोगः ॥ ६. 'स्नान, नहाना'के ३ नाम है-स्नानम् , सवनम्, आप्लवः (+आप्लावः)॥ ७. कर्पूर, अगर, ककोल, कस्तूरी और · चन्दनद्रवको मिभितकर बनाया गया ( सुगन्धपूर्ण ) लेप-विशेष'का १ नाम है-यक्षकदमः । विमर्श-धन्वन्तरिका कथन है कि-कुङ्कम, अगर, कस्तूरी, कपूर और चन्दनको मिलाकर बनाये गये अत्यन्त सुगन्धयुक्त लेपविशेषका नाम 'यदकर्दम' है ।। ८. 'वत्ती' ( नाटकादि में पात्रोंके शरीरसंस्कारार्थ लगाये जानेवाले लेपविशेषकी वत्ती'के २ नाम है-वतिः ( स्त्री), गात्रानुलेपनी ॥ ६. 'समान भाग चन्दन, अगर, कस्तूरी और कुछ मके मिश्रणसे बनाये गये और लेप विशेष'का १ नाम है --चतु:समम् ।। १०. 'अगर के ८ नाम है--अगुरु, अगरु (२ पुन ), राजाईम , लोहम् (पु न ), कृमिजम् (+कृमिजग्धम् ), वंशिका (स्त्री न), अनार्यनम् , जोङ्गकम् । शेषश्चात्र-अगुरौ प्रवरं शृङ्गशीर्षकं मृदुलं लघु । वरद्रुमः परमदः प्रकरं गन्धदारु च ॥ Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मत्यकाण्डः ३] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः -१मङ्गल्या मल्लिगन्धि यत् ॥ ३०४ ॥ २कालागरुः काकतुण्डः ३श्रीखण्डं रोहणद्रमः। गन्धसारो मलयजश्चन्दने ४हरिचन्दने ॥३०॥ तैलपर्णिकगोशीर्षों प्रत्राङ्गं रक्तचन्दनम् । कुचन्दन ताम्रसारं रञ्जनं तिलपर्णिका ॥ ३०६॥ ६जातिकोश जातिफलं कर्पूरो हिमवालुका । घनमारः सिताभ्रश्च चन्द्रोऽथ मृगनाभिजा ॥ ३०७ ॥ मृगनाभिमृगमदः कस्तूरी गन्धधूल्यपि । कश्मीरजन्म घुमृणं वर्ण लोहितचन्दनम् ॥ ३०८ ॥ वाहीकं कुकर्म वह्निशिखं कालेयजागुडे । सङ्कोचपिशुनं रक्त धीरं पीतनदीपने ॥ ३०६ ॥ १. 'मल्लिकाके फूल के समान गन्धवाले अगर'का. १ नाम हैं-मङ्गल्या ।। २. 'काले अगर'के २ नाम है-कालागरुः, काकतुण्डः ॥ ३. 'चन्दन'के ५ नाम हैं-श्रीखण्डम, रोहणद्रुमः, गन्धसारः, मलयजा, चन्दनः, (२ पु न)॥ शेषश्चात्र-चन्दने पुनरेकाङ्ग भद्रभीः फलकीत्यपि ।। ४. 'हरिचन्दन'के ३ नाम हैं-हरिचन्दनम् (पु न ), तैलपणिकः, गोशीर्षः (२ पु ।+१ न)॥ .. - ५. 'रक्तचन्दन'के ६ नाम हैं-पत्राङ्गम्, रक्तचन्दनम्, कुचन्दनम्, ताम्रसारम, रञ्जनम्, तिलपर्णिका ॥ ६. 'जायफल'के २ नाम है-जातिकोशम् (+जातीकोशम्, जातिकोषम् , जातीकोषम् ), जातिफलम् (+ जातीफलम, जातिः, फलम् ) ।। शेषश्चात्र-जातीफले सौमनसं पुटकं मदशौण्डकम् । ... कोशफलम्। ७. 'कपूर के ५ नाम है-कपूरः (पु न ), हिमवालुका, घनसारः, सिताभ्रः, चन्द्रः (पु न । 'चन्द्र के पर्याय-वाचक सभी नाम)। ८. 'कस्तूरी'के ५ नाम है- मृगनाभिजा, मृगनाभिः (स्त्री), मृगमरः, कस्तूरी, गन्धधूली ।। ६. 'कुकुम के १४ नाम हैं-कश्मीरजन्म (-न्मन् ), घुसृणम् , वर्णम् (+ वर्ण्यम्), लोहितचन्दनम् , वाह्लीकम् (+वाह्निकम् ), कुङ्कु मम् (न + पु), वहिशिखम् , कालेयम् , जागुडम् , संकोचपिशुनम् ( सङ्कोचम् , पिशुनम् ), रकम् , धीरम् पोतनम , दीपनम् ।। Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणिः १लवङ्ग देवकुसुमं श्रीसंज्ञरमथ कोलकम् । कक्कोलकं कोषफलं ३कालीयकं तु जापकम् ॥ ३१० ॥ ४यक्षधूपो बहुरूपः सालवेष्टोऽग्निवल्लभः । सर्जमणिः सर्जरसो रालः सर्वरसोऽपि च ।। ३५१ ॥ ५ धूपो वृकात् कृत्रिमाच्च तुरुष्कः सिल्हपिण्डकौ । ६ पायसस्तु वृक्षधूपः श्रीवासः सरलद्रवः ।। ३१२ ॥ ७स्थानात् स्थानान्तरं गच्छन धूपो गन्धपिशाचिका । ८स्थासकस्तु हस्तबिम्ब मलङ्कारस्तु परिष्काराऽऽभरणे च १० चूडामणिः शिरोमणिः । भूषणम् ॥ ३१३ ॥ १६० शेषश्चात्र – कुकुमे तु करटं वासनीयकम् । प्रियङ्गुपीतं काबेरं घोरं पुष्परजो वरम् ॥ कुसुम्भञ्च जवापुष्पं कुसुमान्तञ्च गौरवम् । १. 'लवङ्ग' के ३ नाम हैं - लवङ्गम्, देवकुसुमम्, श्रीसंज्ञम् ( भी अर्थात् लक्ष्मी के पर्यायवाचक सब नाम ) J २. 'कोल' के ३ नाम हैं - कोलकम् ( + कोलम् ), कक्कोलकम् (+ कक्कोलम् ), कोषफलम् ।। ३. ‘जापक ( या —‘जायक' ) नामक गन्धद्रव्यविशेष) के २ नाम हैंकालीयकम् (+ कालीयम् ), जापकम् ( + कालानुसार्यम् ) । ४. 'राल' के ८ नाम हैं - यक्षधूपः, बहुरूप:, सालवेष्टः, अग्निवल्लभः, सर्जमणिः, सर्जरस:, राल: ( पु न ), सर्वरसः ।।, ५. 'लोहबान' के ५ नाम हैं - वृकधूपः, कृत्रिमधूपः, तुरुष्कः ( पुन | + यावनः ), सिल्हः, पिण्डकः || ६. ‘देवदारुके निर्यासंसे बने हुए सुगन्धयुक्त गन्ध-विशेष' के ४ नाम हैं— पायसः, वृक्षधूपः, श्रीवासः, सरलद्रवः ।। शेषश्चात्र – वृक्षधूपे च श्रीवेष्टो दधिक्षीरघृताह्वयः । ७. 'एक जगह से दूसरी जगह जानेवाले धूप- विशेष' का १ नाम है - गन्धपिशाचिका || ८. 'दिवाल आदिपर कुंकुम, चन्दन या चौरठसे दिये गये हाथके पांचों गुलियों के छाप' के २ नाम हैं—स्थासकः, हस्तबिम्बम् ॥ ६. 'आभूषण, गहना, जेवर' के ४ नाम हैं - अलङ्कारः, भूषणम् (पुन), परिष्कारः, श्राभरणम् ॥ १०. ‘चूडामणि’के २ नाम हैं - चूडामणिः, शिरोमणि: ( + चूडारस्नम्, शिरोरत्नम् ) । Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मर्त्यकाण्ड : ३ ] 'मणिप्रभा व्याख्योपेतः १ नायकस्तरलो. हारान्तर्मणिर्मुकुटं पुनः ।। ३१४ ॥ मौलिः किरीटं कोटीरमुष्णीपं ३पुष्पदाम तु । मूनि माल्यं माला ग् ४ गर्भकः केशमध्यगम् ॥। ३१५ ।। ५प्रभ्रष्टकं शिखालम्बि ६पुरोन्यस्तं ललामकम् । ७ तिर्यग् वक्षसि वैकक्षं प्रालम्बमृजुलम्बियन् ॥ ३१६ ॥ सन्दर्भो रचना गुम्फः श्रन्थनं ग्रन्थनं समाः । १० तिलके तमालपत्र चित्र पुण्ड्रविशेषकाः ॥ ३१७ ॥ ११प्रापीडशेखरोत्तंसाऽवतंसाः शिरसः स्रजि । - १६१ १. 'माला के बीच वाले सामान्य से कुछ बड़े दाने के ३ नाम हैं-नायकः, तरल:, हारान्तर्मणिः ।। २. 'मुकुट' के ५ नाम हैं - मुकुटम् ( न । ÷ पुन | + मकुट: ), मौलि: (पुत्री), किरीटम्, कोटीरम्, उष्णीषम् ( ३ पु न ) ॥ ३. 'मस्तकस्थ फूलको माला' के ३ नाम है - माल्यम्, माला, सक ) ॥ ४. ‘बालो’के बीच में स्थापित फूलको माला' का १ नाम है - गर्भकः ।। ५. 'चोटीसे लटकनेवाली फूलोंकी माला'का १ नाम है - प्रभ्रष्टकम् ॥ ६. 'सामने लटकती हुई फूलों की माला'का १ नाम है - ललामकम् ॥ ७. 'छातीपर तिर्छा लटकती हुई फूलकी माला का १ नाम है – वैकक्षम् ॥ ८. 'कण्ठसे छातीपर सीधे लटकती हुई फूलोंकी माला' का ४ नाम है - प्रालम्बम् ॥ ६. ‘माला ( हार आदि ) बनाने ( गूथने ) के ५ नाम है – सन्दर्भः, रचना, गुम्फः, अन्थनम्, ग्रन्थनम् ॥ शेषश्चात्र - रचनायां परिस्पन्दः प्रतियत्नः । १०. ‘तिलक ( ललाट, कपोल आदिपर लगाये गये चन्दनादिकी विविध रचना ) 'के' ५ नाम हैं - तिलकम् (पुं न ), तमालपत्रम् चित्रम् ( + चित्रकम् ), पुण्ड्रम्, विशेषकम् ( पु न ) ॥ , विमर्श - - उक्त पाँच पर्यायोंके विभिन्न प्रकारकी तिलकरचना के अर्थमें प्रयुक्त होनेपर भी यहाँ विशेष भेद नहीं होनेसे इन की गणना पर्यायमें की गयी है । ११. 'शिरपर लपेटी हुई माला' के ४ नाम हैं- श्रापीडः, शेखरः, उत्तंसः, अवतंसः (+वतंसः । सब पुन ) ॥ ११ अ० चि० Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६२. अभिधानचिन्तामणिः १ उत्तरौ कर्णपूरेऽपि २पत्रलेखा तु पत्रतः ॥ ३१८ ॥ भङ्गिवल्लिलताङ्गुऽल्यः ३पत्रपाश्या ललाटिका । ४ बालपाश्या पारितथ्या ५कर्णिका कर्णभूषणम् ॥ ३१६ ॥ ६ ताटङ्कस्तु ताडपत्रं कुण्डलं कर्णवेष्टकः । ७उत्क्षिप्तिका तु कर्णान्दुर्बालिका कर्णपृष्ठगा ॥ ३२० ॥ हयैवेयकं कण्ठभूषा १० लम्बमाना ललन्तिका । ११प्रालम्बिका कृता हेम्नो १२२ : सूत्रिका तु मौक्तिकैः ।। ३२१ ।। १. 'कर्णपूर ( कानपर लटकती हुई माला ) ' के २ नाम है- उत्तंसः, अवतंसः ( २ पु न ) ॥ २. 'स्त्रियोंके कपोल तथा स्तनोंपर कस्तूरी कुकुम - चन्दनादिसे रचित पत्राकार रचना - विशेष' के ५ नाम हैं- पत्रलेखा, पत्रभङ्गिः, पत्रवल्लि, पत्रलता, पत्राङ्गुली ( + पत्रवल्लरी, पत्रमञ्जरी, •) 11 ललाट भूषण के २नाम है - पत्र ३. 'स्वर्णपत्रादि से निर्मित स्त्रियोंका पाश्या, ललाटिका ॥ ४. 'स्त्रियोंके बाल बाँधने के लिये मोतियोंकी लड़ी, या पुष्पमाला या. प्रफुल्ल लतादि' के २ नाम हैं- बालपाश्यां, पारितथ्या ( + पायतिथ्या ) ॥ ५. 'कर्णभूषण' के २ नाम हैं—कर्णिका, कर्णभूषणम् ॥ ६. 'कुण्डल' के ४ नाम हैं- ताटङ्कः, ताडपत्रम्, कुण्डलम् ( पु न ), कर्णवेष्टकः।। विमर्श – “ताटङ्कः, ताडपत्रम्' ये २ नाम 'तरकी या कनफूल और 'कुण्डलम्, कर्णवेष्टक:' – ये २ नाम 'कुण्डल' के हैं" यह भी किसी-किसीका मत है ॥ शेषश्चात्र – अथ कुण्डले । कर्णादर्शः II ७. 'कनकी सिकड़ी ( सोने आदि की बनी हुई जंजीर ) के २ नाम हैं - उत्क्षिप्तिका, कर्णान्दुः (स्त्री | + कर्णान्दू: ) ॥ ८. 'बाली ( कान के पीछे तक भी पहने जानेवाला गोलाकार भूषण विशेष ) का १ नाम है - बालिका ॥ ६. ‘कण्ठके भूषण ( कंठा, हंसुली, टीक आदि ) के २ नाम है -प्रवेयकम्, कण्ठभूषा ॥ १०. 'गर्दन से नीचे लटकनेवाले भूषण ( हलका, चन्द्रहार आदि ) का १ नाम है - ललन्तिका ॥ ११. ‘सोनेके बने हुए कण्ठभूषण' का १ नाम है - प्रालम्बिका ।। १२. 'मोतीके बने हुए कण्ठभूषण'का १ नाम है- उरः सूत्रिका ।। Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६३ मर्त्यकाण्ड: ३] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः १हारो मक्तातः प्रालम्बस्त्रककलापावलीलताः। २देवच्छन्दः शतं ३साष्टं विन्द्रच्छन्दः सहस्रकम् ॥ ३२२ ॥ ४तदधं विजयच्छन्दो पहारस्त्वष्टोत्तरं शतम् । ६अर्धं रश्मिकलापोऽस्य द्वादश त्वर्धमाणवः ॥ ३२३ ॥ पद्विादशार्धगुच्छः स्यात् पञ्च हारफलं लताः। १०अर्धहारश्चतुःषष्टि१र्गुच्छमाणवमन्दराः ॥३२४ ॥ अपि . गोस्तनगोपुच्छावर्धमधं ययोत्तरम् । १२इति हारा यष्टिभेदा१३देकावल्येकयष्टिका ॥ ३३५ ॥ कण्ठिकाऽप्य १. 'हार, मोतीकी माला'के ६ नाम हैं--हारः (पु स्त्री), मुक्काप्रालम्बः, मुक्तास्रक (-सज् ), मुक्ताकलापः, मुक्तावली, मुक्तालता ॥ २. 'सौ लड़ीवाली मोतीकी माला'का १ नाम है-देवच्छन्दः॥ ३. 'एक हजार आठ लड़ोवाली · मोतोकी मालाका १ नाम हैइन्द्रच्छन्दः ॥ ४. 'उसके अाधी ( ५५४ ) लड़ीवाली मोतीकी माला'का १ नाम हैविजयच्छन्दः ।।.. ५. 'एक सौ आठ लड़ीवाली मोतीकी माला'का १ नाम है-हारः ।। ६. 'उसके आधी (५४) लड़ीवाली मोतीकी माला'का १ नाम हैरश्मिकलापः ।. ७, 'बारह लड़ीवाली मोतीकी माला'का १ नाम है-अर्धमाणवः ।। ८. 'चौबास लड़ीवाली मोतीकी माला'का १ नाम है-अर्धगुच्छः ।। ६. 'पांच लड़ीवाली मोतीकी माला'का १ नाम है-हारफलम् ।। १०. चौंसठ लड़ीवाली मोतीकी माला'का १ नाम है-अर्धहारः ।। ११. 'बत्तीस, सोलह, पाठ, चार और दो लड़ियोंवाली मोतीकी मालाओं का क्रमशः .१-१ नाम है-गुच्छः, माणवः, मन्दरः, गोस्तनः, गोपुच्छः । . . . . . विमर्श-अन्य आचार्योंके मतसे ६४, ५६, ४८, ४०, ३२, १६ और ७० लड़ियोंवाली मोतीको मालाओंका क्रमशः १-१ नाम है-हारः, रश्मिकलापः, माणवकः, अर्धहारः, अर्धगुच्छकः, कलापच्छन्दः, मन्दरः, ॥ १२. इस प्रकार लड़ियोंकी संख्याके भेदसे १४ प्रकारके हार ( मोतियोंकी मालाएँ) होते हैं । १३. 'एक लड़ीवाली मोतीकी माला'के ३ नाम हैं-एकावली, एकयष्टिका, कण्ठिका ॥ Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ अभिधानचिन्तामणिः -थ नक्षत्रमाला तत्संख्यमौक्तिकैः । रकेयूरमगदं बाहुभूषा३ऽथ करभूषणम् ॥ ३२६॥ कटको वलयं पारिहार्यावापौ च कङ्कणम् । हस्तसूत्रं प्रतिसर ४ऊर्मिका त्वङ्गलीयकम् ।। ३२७ ।। ५सा साक्षराऽङ्गालमद्रा ६कटिसूत्रं तु मेखला। कलापो रसना सारसनं काञ्ची च सप्तकी ।। ३२८ ।। ७सा शृङ्खलं स्कटिस्था सकिङ्कणी शुद्रघण्टिका।। नूपुरं तु तुलाकोटिः पादतः कटकाङ्गदे ॥ ३२६ मञ्जीरं हंसकं शिञ्जिन्यं १०२,कं वस्त्रमम्बरम् । सिचयो वसनं चीराऽऽच्छादौ सिक चेलवाससी ॥ ३३८ ।। पटः प्रोतो १. 'सत्ताइस मोतियोंकी माला'का १ नाम है-नक्षत्रमाला ।। २. 'विजायठ, बाजूबन्द ( बांहके भूषण ) के ३ नाम हैं-केयूरम , अङ्गदम् (न ।+ पु ), बाहुभूषा ।। ३. 'कङ्कणके ८ नाम हैं-करभूषणम् , कटकः, वलयम्, पारिहायः (+पारिहार्यम् ), श्रावापः, कङ्कणम् , हस्तसूत्रम् , प्रतिसरः (त्रि)। . विमर्श-कुछ कोषकार कङ्कण'के प्रथम ५ नाम तथा 'विवाह या यशादि में बांधे जानेवाले माङ्गलिक सूत्र के अन्तिम ३ नाम हैं, ऐसा कहते हैं । ४. 'अंगूठी' के २ नाम है-ऊर्मिका, अङ्गुलीयकम् (+अङ्गलीयम् ) ।। ५. 'नाम खुदी हुई अंगूठी'का १ नाम है-अङ्गलिमुद्रा ।। . ६. स्त्रियोंकी करधनी'के नाम हैं-कटिसूत्रम् , मेखला, कलापः, रसना (स्त्री न ), सारसनम् , काञ्ची, सप्तकी । । ७. 'पुरुषोंकी करधनी'का १ नाम है-शृङ्खलम (त्रि )। ८. 'घुघुरू'के २ नाम हैं-किङ्कणी (+किङ्किनी), तुद्रघण्टिका । शेषश्चात्र-अथ किङ्कण्यां घर्घरी विद्या विद्यामणिस्तथा । ६. 'नूपुर, पावजेब'के ७ नाम हैं-नूपुरम् , तुलाकोटिः, पादकटकम् (३ पु न , पादाङ्गदम् , मञ्जीरम् , हंसकम् ( २ पु न ), शिचिनी ।। शेषश्चात्र-नुपुरे तु पादशीली मन्दीरं पादनालिका । (अलङ्कारशेषश्वात्र पादाङ्गुलीयके पादपालिका पादकीलिका ।) १०. कपड़े के १२ नाम है-अंशुकम , वस्त्रम , (पु न ), अम्बरम् , सिचयः, वसनम , चीरम् , आच्छादः (+आच्छादनम् ), सिक् (-च , स्त्री), चेलम , वासः ( सस ), पट: (त्रि), प्रोतः ॥ . Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___ १६५ मर्त्यकाण्डः ३] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः १६५ -१ऽश्चलस्यान्तो रवर्तिर्वस्तिश्च तद्दशाः । ३पत्रोणं धौतकौशेय:मुष्णीपो मूर्धवेष्टनम् ।। ३३१ ॥ प्रतत्स्यादुद्गगमनीयं यद्धौतयोर्वस्त्रयोयु गम्। ६त्वक्फलक्रिमिरोमभ्यः संभवात्तच्चतुर्विधम् ।। ३३२ ।। तौमकार्पासकौशेयराङ्कवादिविभेदतः । ७क्षौमे दुकूलं दुगूलं स्यात्-कार्पासं तु बादरम् ।। ३३३ ॥ कौशेयं कृमिकोशोत्थं १०राङ्कवं मृगरोमजम् । ११कम्बलः पुनरूयुराविकौरभ्ररल्लकाः ॥ ३३४॥ शेषश्चात्र-- वस्त्रे निवसनं वम् सत्रं कर्पटमित्यपि । १. 'कपड़ेने आंचर (छोर)का १ नाम है-श्रञ्चलः (पुन)। २. 'कपड़ेकी किनारी (धारी) के ३ नाम हैं-वर्तिः, वस्तिः (२ पु स्त्री, दशाः (नि. स्त्री ब. व.)॥ .. शेषश्चात्र-दशास्तु वस्त्रपेश्यः । ३. 'रेशमी वस्त्र' के २ नाम हैं-पत्रोर्णम् , धौतकौशेयम् । ४. 'पगड़ो, या मुरेठा' (शिरपर बांधे जानेवाले कपड़े ) के २ नाम हैंउष्णीषः (पु न ), मूर्धवेष्टनम् (+शिरोवेष्टनम् ) ॥ ५. 'धुले हुए कपड़े का १ नाम है-उद्गमनीयम् । विमर्श-यहां युग शब्दके विवक्षित नहीं होनेसे धुले हुए एक कपड़ेके अर्थ में भी 'उद्गमनीय' शब्दका प्रयोग मिलता है। यथा-"गृहीतपत्युद्गमनीयवस्था-"( कु० सं० ७।११); अतएव 'भागुरि'ने-"धीरेरुद्गमनीयं तु धौतवस्त्रमुदाहृतम्' तथा 'हलायुध'ने-“धौतमुद्गमनीयञ्च (अ. रत्नमाला रा३६६) कहा है ॥ ६. '(तीसी श्रादिका) छिलका, ( कपास श्रादिका ) फल, (रेशमका) कीड़ा और (. भेंड़.आदिका ) रोआं-इन चार वस्तुओंसे बनानेवाले वस्त्रों का क्रमशः १-१ नाम है-क्षौमम् ,. कार्पासम् , कौशेयम् , राकवम् ।। (अत एव वस्त्रके ४ भेद हैं )। . ___७. 'तीसी अार्दिके डण्ठलके छिलके से बननेवाले कपड़े के ३ नाम हैंक्षौमम् (पु न ), दुक्लम् , दुगूलम् ॥ ८. 'कपास ( सई ) आदिके फलसे बननेवाले कपड़े के २ नाम हैंकार्पासम , बादरम् ।। ६. 'रेशमके कीड़े आदिसे बननेवाले कपड़े'का १ नाम है-कौशेयम् ।। १०. 'रङ्क नामक मृगके रोएंसे बननेवाले कपड़े का १ नाम है-राङ्कवम् ।। ११. कम्बल' के ५ नाम हैं-कम्बलः (पु न ), ऊर्णायुः (-युस् , पु), श्राविकः, औरभ्रः, रल्लकः ।। Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६६ अभिधानचिन्तामणिः श्नवं वासोऽनाहतं स्यात्तन्त्रक निष्प्रवाणि च । २प्रच्छादनं प्रावरणं संव्यानं चोत्तरीयकम् ॥ ३३५॥ .. वैकक्षे प्रावारोत्तरासङ्गो बृहतिकाऽपि च । ४वराशिः स्थूलशाटः स्यात् ५ परिधानं त्वधोऽशुकम् ॥ ३३६ ॥ अन्तरीयं निवसनमुपसंव्यानमित्यपि। ६तद्ग्रन्थिरुच्चयो नीवी -वरस्त्रयोरुकांशुकम् ॥ ३३७ ।। चण्डातकं चलनकपश्चलनी वितरस्त्रियाः। चोलः कन्चुलिका कूर्पासकोऽङ्गिका च कन्चुके ।। ३३८ ।। १०शाटी चोट्य११थ नीशारो हिमवातापहांशुके। .. १२कच्छा कच्छाटिका कक्षा परिधानाऽपराञ्चले ॥ ३३६ ॥ १. (बिना धुले तथा बिना पहने हुए ) 'नये कपड़े'के. ३ नाम हैंअनाहतम , तन्त्रकम , निष्प्रवाणि (सब त्रि)॥ २. 'दुपट्टा, चद्दर'के ४ नाम हैं-प्रच्छादनम्, प्रावरणम् , संव्यानम् , उत्तरीयकम् ॥ ___३. 'छातीपर तिछे रखे हुए चादर'के ४ नाम हैं-वैकक्षम, प्रावारः, उत्तरासङ्गः, बृहतिका ॥ ४. 'मोटी साड़ी'के २ नाम हैं-वराशिः (पु+वरासिः) स्थूलशाट: (+स्थूलशाटकः ) ॥ ५. 'धोती ( कमरसे नीचे पहने जानेवाले कपड़े) के ५ नाम हैंपरिधानम, अधोऽशुकम् (+अधोवस्त्रम ), अन्तरीयम, निवसनम्, उपसंव्यानम्।। ६. 'नीवी ( कमरसे नीचे पहनी गयी साड़ी की गांठ के २ नाम हैंउच्चयः, नीवो ॥ ७. 'साया ( उत्तम स्त्रियोंके साड़ीके नीचे पहने जानेवाले लहंगेके वस्त्र के २ नाम हैं-चएडातकम्, चलनकः ।। . ८. 'सामान्य स्त्रियोंकी साड़ीके नीचे पहने बानेवाले वस्त्र'का १ नाम है-चलनी॥ ६. 'स्त्रियों की चोली-ब्लाउज आदि'के ५ नाम हैं-चोल:, कञ्चुलिका, कूर्पासकः (+कूर्पासः ), अङ्गिका, कञ्चुकः (पु न)॥ • १०. स्त्रियोंकी साड़ी के २ नाम हैं-शाटी (पु न । + शारः, शाटकः ), चोटी (+ चोट: पु स्त्री)॥ ११. रजाई'का १ नाम है-नीशारः॥ १२. 'धोतीकी लांग ( पछुश्रा, ढेका ) के ३ नाम है-कच्छा, कच्छाटिका (कच्छाटी, पु स्त्री), कक्षा । Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मर्त्याः ३.] 'मणिप्रभा' व्याख्योपेतः १ कक्षापटस्तु कौपीनं २समौ नक्तककर्पटौ । ३ निचोलः प्रच्छदपटो निचुलश्चोत्तरच्छदः ।। ३४० ॥ ४ उत्सवेषु सुहृद्भिर्यद् बलादाकृष्य गृह्यते । वस्त्रमाल्यादि तत्पूर्णपात्र पूर्णानकं च तत् ॥ ३४१ ॥ ५तत्तु स्यादाप्रपदीनं व्याप्नोत्याप्रपदं हि यत् । ६चीवरं भिक्षुसङ्घाटी ७जीर्णवस्त्रं पटच्चरम् ॥ ३४२ ॥ शाणी गोणी छिद्रवस्त्रे जलार्द्रा क्लिन्नवाससि । १० पर्यस्तिका परिकरः ११कुथे वर्णः परिस्तोमः २. 'कौपीन, लंगोटी' के २ कौपीनम् ॥ १६७ पर्यङ्कश्चावसक्थिका ॥ ३४३ ॥ प्रत्रेणीनवतास्तराः । नाम हैं - कक्षापट : ( + कक्षापुट: ), - छनने के समान २. 'पानी, आदि छाननेका कपड़ा ( छनना या - कपड़े का टुकड़ा' के २ नाम हैं—नक्तकः, कर्पेट : ( पुन ) ॥ ३. ' गद्दी आदिपर बिछानेका चादर, पलंगपोश' के ४ नाम हैंनिचोल:, प्रच्छदपट, निचुल:, (+निचुलकम्, पुन ), उत्तरच्छदः ॥ • ४. 'पुत्रोत्पत्ति या विवाहादि उत्सव के समय मित्रों आदि ) के द्वारा हठपूर्वक जो कपड़ा या माला ( हार ) जाता है, उस ( कपड़े या माला आदि ) ' के २ नाम पूर्णानकम् ।। (या-प्रिय नौकर श्रादि छीन लिया है - पूर्णपात्रम्, ५. 'पैरकी घुट्टीतक पहुँचनेवाले वस्त्र ( पाजामा, अँगरखा या बुर्का ) 'का १ नाम है - श्राप्रपदीनम् ॥ ६. 'मुनि यां साधु आदिके ( नीचे तक पहने जानेवाले ) वस्त्र' के २ नाम है - चीवरम्, भिक्षुसङ्गाटी ॥ ७. 'पुराने वस्त्र'का १ नाम है — पटच्चरम् || - ८. 'जालीदार कपड़े के २ नाम हैं- शाणी, गोणी ॥ ६. 'भींगे हुए कपड़े' का १ नाम है - जलार्द्रा ॥ १०. 'विशेष ढंग से बैक पीठ और दोनों घुटनोंको बांधनेवाले गमछी श्रादि कपड़े के ४ २ - पर्यस्तिका, परिकरः, पर्यङ्कः (+पल्यङ्कः ), raafक्थिका ।। ११. 'हाथी श्रादिके भून या रथ आदिके पर्दे के ६ नाम हैं— कुथः ( त्रि ), वणः, परिस्तोमः ( + वर्णपरिस्तोमः ), प्रवेणी, नवतम्, श्रान्तरः ( + आस्तरणम् ) ॥ Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६८ 'अभिधानचिन्तामणि' १अपटी काण्डपटः स्यात् प्रतिसीरा जवन्यपि ॥ ३४४॥ तिरस्करिण्यरथोल्लोचो वितानं कदकोऽपि च । चन्द्रोदये ३स्थुलं दृष्ये ४केणिका पटकुट्यपि ॥ ३४५ ॥ गुणलयनिकायां स्यात् ५संस्तरस्रस्तरौ समौ । ६तल्पं शय्या शयनीयं शयनं तलिमं च तत् ॥ ३४६॥ ७मश्चमञ्चकपर्यङ्कपल्यङ्काः खटवया समाः। ८उच्छीर्षकमपाद् धानबहौं हपाल पतद्ग्रहः ॥ ३४७॥ प्रतिग्राहो १०मकुरात्मदर्शाऽऽदर्शास्तु दर्पणे। .... ११स्याद्वेवासनमासन्दी १२विष्टरः पीठमासनम् ॥ ३४८ ॥ १. 'पर्दा'के ५ नाम हैं-अपटी, काण्डपटः, प्रतिसीरा, जवनी (+यमनी, जवनिका), तिरस्करिणी ॥ .. २. 'बँदोवा, चांदनी'के ४ नाम है-उल्नोच:, वितानम् (पु न ), कदकः, चन्द्रोदयः ॥ ३. 'तम्बू, सामियाना'के २ नाम हैं:-स्थुलम्, दूष्यम् ॥ ४. 'टेण्ट ( कपड़ेके घर ) के ३ नाम हैं-केणिका, पटकुटी, गुणलयनिका ॥ - ५. 'पल्लव आदिके विछौने के २ नाम हैं-संस्तरः (+प्रस्तरः ), सत्तरः॥ . ६. 'शय्या'के ५ नाम हैं-तल्यम् ' (पु न ), शय्या, शयनीयम्, शयनम् (पुन), तलिमम् ॥ ७. 'मचान'के ५ नाम हैं-मञ्चः, मञ्चकः ( पुन ), पर्यः, पल्यङ्कः, खटवा ।। ८. 'तकिया, मसनंद'के ३ नाम हैं-उच्छीर्षकम् , उपधानम् , उपबहम् ।। ६. 'पिकदान, उगलदान'के ३ नाम है-पालः (पु। +न), पतद्ग्रहः (+पतग्राहः ), प्रतिग्राहः (+प्रतिग्रहः)॥ • १०. 'दर्पण, आइना' के ४ नाम हैं-मुकुरः (+मकुरः, मङ्कुरः), आत्मदर्शः, आदर्शः, दर्पणः ॥ ११. 'बेतका आसन या-कुर्सी'के २ नाम हैं—वेत्रासनम्, श्रासन्दी॥ - १२. 'पीढ़ा या चौकी आदि बैठनेका साधन-विशेष'के ३ नाम हैंविष्टरः (पु न ), पीठम् (न स्त्री), श्रासनम् (पु न )॥ Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मर्त्यकाण्डः ३ ] 'मणिप्रभा' व्याख्योपेतः १कसिपुर्भोजनाच्छादा खौशीरं शयनासने । दशेन्धनः । ३लाक्षा द्रुमामयो राक्षा रङ्गमाता जतु क्षतघ्ना कृमिजा ४यावालक्तौ श्रञ्जनं कज्जलं दीपः- प्रदीपः स्नेहप्रियो ६ गृहमणिदेशाकर्षो ७व्यजनं तालवृन्तं =वद् धवित्रं मृगचर्मणः || ३५१ ॥ लावर्तं तु वस्त्रस्य १० कङ्कतः केशमार्जनः । प्रसाधनश्चा ११थ बालक्रीडनके गुडो गिरिः ।। ३५२ ।। गिरियको गिरिगुडः १२ समौ कन्दुक गेन्दुको १३ राजा राट् पृथिवीशक्रमध्यलोकेशभूभृतः ।। ३५३ ।। पलङ्कषा ।। ३४६ ॥ तु तद्रसः । कज्जलध्वजः ।। ३५० ।। १६६ १. 'खाना कपड़ा ( एक साथ कथित भोजन तथा वस्त्र ) का १ नाम है - कसिपु: ( + कशिपु : ) । २. 'एक साथ कथित शयन और श्रासन का १ नाम है- औशीरम् ॥ ३. 'लाख, लाह' के नाम हैं- लाक्षा, द्रुमामयः, राक्षा, रङ्गमाता ( - मातृ ), पलङ्कषा, जंतु ( न ), क्षतघ्ना, कृमिजा ॥ ४. 'अलक्तक, महावर' के २ नाम हैं - यावः ( + यावकः ), अलक्तः (+ अलक्तक: ) | ( किसी २ के मतनें 'लाक्षा' से यहांतक सब शब्द एकार्थक हैं ) । ५. 'काजल, अञ्जन' के २ नाम हैं— अञ्जनम्, कज्जलम् ॥ ६. 'दीप, दिया के ७ नाम हैं - दीप: ( पुन । + दीपक ), प्रदीप:, कज्जलध्वजः, स्नेहप्रियः, गृहमणिः, दशाकर्षः, दशेन्धनः ॥ ७. 'पंखा, ताड़का पङ्खा' के २ नाम हैं—व्यजनम् (+ वीजनम् ), तालवृन्तम् ॥ ८. 'मृगचर्म के पते 'का १ नाम है — धवित्रम् । ( इस पंखेका यज्ञमें उपयोग होता है ) ।। ६. 'कपड़े के प' का १ नाम है - आलावर्तम् ॥ प्रसाधनः ॥ १०. 'कङ्घी' के ३ नाम हैं - कङ्कतः (त्रि ) केशमार्जन: ११. 'बच्चों के खिलौने के ५ नाम हैं- बालक्रीडनकम्, गुडः, गिरिः (पु), गिरियक : ( + गिरीयकः, गिरिक: ), गिरिगुडः ॥ " १२. 'गेंद’के २ नाम हैं - कन्दुक : ( पु न ), गेन्दुक: ( + गन्दुकः ) ॥ १३. 'राजा'के ११ नाम है - राजा (-जन् ), राट् (-ज् ), पृथिवीशक्र:, Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७० अभिधानचिन्तामणिः महीक्षित् पार्थिवो मूर्धाभिषिक्तो भू-प्रजा-नृ-पः। श्मध्यमो मण्डलाधीशः २सम्राट् तु शास्ति यो नृपान् ।। ३५४ ॥ यः सर्वमण्डलस्येशो राजसूयं च योऽयजत् । ३चक्रवर्ती सार्वभौम ४स्ते तु द्वादश भारते ॥ ३५५ ॥ ५आर्षभिर्भरतस्तत्र ६सगरस्तु सुमित्रभः । ७मघवा वैजयिपरथाश्वसेननृपनन्दनः ॥ ३५६ ॥ सनत्कुमारोहऽथ शान्तिः कुन्थुररो जिना अपि । १०सुभूमस्तु कार्तवीर्यः ११पद्मः पद्मोत्तरात्मजः ।। ३५७ ।। १२हरिषेणो हरिसुतो १३जयो विजयनन्दनः । १४ब्रह्मसूनुब्रह्मदत्तःमध्यलोकेशः, भूभृत्, महीक्षित्, पार्थिवः, मूर्धाभिषिक्तः (+मूर्धावसिक्तः ), भूपः, प्रजापः, नृपः ( यौ०-भूपाल:, लोकपाल:, नरपाल:,....:) ॥ १. 'मध्यम राजा (किसी एक मण्डलके स्वामी ) के २ नाम हैंमध्यमः, मण्डलाधीशः ॥ २. 'सम्राट ( बादशाह, जो सब राजाओंपर शासन करता हो, सम्पूर्ण मण्डलोंका स्वामी हो और जिसने राजसूय यज्ञ किया हो, उस )का १ नाम है-सम्राट (-म्राज)॥ .३. 'चक्रवर्ती (समस्त पृथ्वीका स्वामी )के २ नाम हैं-चक्रवर्ती (-तिन् ), सार्वभौमः ।। शेषश्चात्र-चक्रवर्तिन्यधीश्वरः ।। . ४. वे ( चक्रवर्ती राजा ) भारतमें १२ हुए हैं । ५. ( अब क्रमसे 'भरत' श्रादि १२ चक्रवर्तियोंके पर्यायोंको कहते हैं-) 'भरत'के २ नाम है-आर्षभिः, भरतः ।। ६. 'सार के २ नाम हैं-सगरः, सुमित्रभूः ॥ ७. 'मघवा'के २ नाम हैं-मघवा (-वन् ), वैजयिः ॥ ८. सनत्कुमार के २ नाम हैं-अश्वसेन-नृपनन्दनः, सनत्कुमारः ।। ६. उक्त 'भरत' श्रादि चार चक्रवर्तियोंके अतिरिक्त 'शान्ति, कुन्थु, और अर' ये तीर्थङ्कर भी 'चक्रवर्ती' हो चुके हैं । १०. 'कार्तवीर्य के २ नाम हैं-सुभूमः, कार्तवीर्यः ।। ११. 'पद्म'के २ नाम हैं-पद्मः, पद्मोत्तरात्मजः ॥ १२. 'हरिषेण'के २ नाम हैं-हरिषेण:, हरिसुतः ।। १३. 'जय'के २ नाम है-जयः, विजयनन्दनः ।।। १४. 'ब्रह्मदत्त'के २ नाम हैं- ब्रह्मसूनुः, ब्रह्मदत्तः ॥ Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मर्यकाण्ड: ३] मणिप्रभा'व्याख्योपेतः १७१ - -१सर्वेऽपीक्ष्वाकुवंशजाः ।। ३५८ ।। २प्राजापत्यस्त्रिपृष्ठोऽथ द्विपृष्ठो ब्रह्मसंभवः।। ४स्वयंभ रुद्रतनयः ५सोमभः पुरुषोत्तमः ॥ ३५६ ।। दशैवः पुरुषसिहोऽथ महाशिरःसमुद्भवः। स्यात्पुरुषपुण्डरीको दत्तोऽग्निसिंहनन्दनः ।। ३६० ।। नारायणो. दाशरथिः १०कृष्णस्तु वसुदेवभूः। १. उक्त 'भरत' श्रादि ३५६-३५८ बारह चक्रवर्ती 'इक्ष्वाकु के वंशमें उत्पन्न हुए थे ( स्पष्टज्ञानार्थ निम्नोक्त चक्र देखें)। भारतस्य द्वादशचक्रवर्तिनां बोधकचक्रम् क्रमाङ्काः चक्रवतिनां नामानि . चक्रवर्तिपितृणां नामानि भरतः ऋषभः सगरः सुमित्रावेजयः मघवा विजयः सनत्कुमारः अश्वसेनः शान्तिः विश्वसेनः कुन्थुः सूरः अरः सुदर्शनः सुभूमः कृतवीर्यः .. पद्मः पद्मोत्तरः १० . . हरिषेण: हरिः ११ . जयः । विजयः १२ . ब्रह्मदत्तः २. 'त्रिपृष्ठ के २ नाम है-प्राजापत्यः, त्रिपृष्ठः॥ ३. 'द्विपृष्ठ'के २ नाम हैं-द्विपृष्टः, ब्रह्मसम्भवः ।। ४. 'स्वयम्भू'के २ नाम है-स्वयम्भूः, रुद्रतनयः ॥ ५. 'पुरुषोत्तम के २ नाम हैं-सोमभूः, पुरुषोत्तमः ।। ६. 'पुरुषसिंह के २ नाम हैं-शैवः, पुरुषसिंहः ॥ ७. 'पुरुषपुण्डरीक'के २ नाम हैं-महाशिरःसमुद्भवः, पुरुषपुण्डरीकः ।। ८. 'दत्त'के २ नाम है-दत्तः, अग्निसिंहनन्दनः।। ६. 'नारायण'के २ नाम है-नारायणः, दाशरथिः ।। १० 'कृष्ण'के २ नाम है-कृष्णः, वसुदेवभूः ॥ 2016 nf Kun. ब्रह्मा Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७२ अभिधानचिन्तामणि: श् वासुदेवा मी कृष्णा नव २शुक्लाचलास्त्वमी ॥ ३६१ ॥ ३ चलो विजयो भद्रः सुप्रभश्च सुदर्शनः । आनन्दो नन्दनः पद्मो रामो ४ विष्णुद्विषस्त्वमी ॥ ३६२ ॥ अश्वग्रीवस्तारकच मेरको मधुरेव च । निशुम्भबलिप्रह्रादल केशमगधेश्वराः ॥ ३६३ ॥ - १. 'त्रिपृष्ठ' ( ३५६ ) से यहांतक ६ अर्धचक्रवतियोंका कृष्ण वर्ण है | २. आगे ( ३६२में ) कहे जानेवालों का शुक्ल वर्ण है ॥ ३. अचलः, विजयः, भद्रः, सुप्रभः, सुदर्शनः, आनन्दः, नन्दनः, पद्मः, राम: ( इन नवोंका शुक्ल वर्ण है ) । ४. आगे ( ३६३में ) कहे जानेवाले ६ पूर्व ( ३५६-३६१ ) कथित विष्णुरूप 'त्रिपुष्ठ' आदि ६ श्रर्द्धचक्रवर्तियों के शत्रु हैं ॥ ५. अश्वग्रोवः, तारकः, मेरकः, मधुः, निशुम्भः, बलिः प्रह्लादः, लङ्केशः ( रावणः ), मगधेश: ( जरासन्ध: ) । ये ६ क्रमसे त्रिपृष्ठ श्रादिके शत्रु हैं | विमर्श - पूर्वोक्त ( ३५६- ३६९ ) 'त्रिपृष्ठ' श्रादि ६ अर्धचक्रवर्तियों के २ -२ पर्यायों में से १-१ पर्यायके द्वारा उनका मुख्य नाम व्यक्त होता है, • तथा १-१ पर्याय से उनके पिताका नाम सूचित होता है। अनुपदोक्त (३६२में) ‘अचल:’से ‘रामः' तक ६ पूर्वोक्त ( ३६२ ) ‘त्रिपृष्ठ' आदि अर्धचक्रबर्तियों' के अग्रज ( बड़े भाई ) हैं, तथा क्रमशः इनके भी वे ही पिता हैं, जो 'त्रिपृष्ठ' आदि ६ अर्धचकवतियों के हैं। स्पष्ट ज्ञानार्थ चक्र देखना चाहिए । ε अर्धचक्रिणां तदग्रजानां तत्पितृणां रिपूणाञ्च नामबोधकचक्रम् . क्रमा० १ श्रर्धचक्रिणः | वर्णः तदग्रजाः वर्णः तत्पितरः श्यामः अचलः | शुल: | प्रजापतिः विजय: ब्रह्मा भद्रः रुद्रः सुप्रभः सोमः सुदर्शनः शिवः आनन्दः नन्दनः पद्मः रामः त्रिपृष्ठ: द्विपृष्ठ: स्वयम्भूः ४ पुरुषोत्तमः ५ पुरुषसिंह: पुरुष पुण्डरीकः दत्तः नारायण: ७ ८ Ε कृष्णः "" " "" "" 99 "" 99 99 ,, 33 "" " " "" " "" तद्रिपव: दशरथः वसुदेवः अश्वग्रीवः तारकः मेरक: मधुः निशुम्भः महाशिरा: बलि: अग्निसिंहः प्रह्लादः लंकेशः (रावणः) मगधेश्वरः जरासन्ध Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मकाण्ड : ३] 'मणिप्रभा' व्याख्योपेतः १ जिनैः सह त्रिषष्टिः स्युः शलाका पुरुपा अमी । २श्रादिराजः पृथुर्वैन्यो - मान्धाता युवनाश्वजः ।। ४६४ ।। ४ धुन्धुमारः कुवलाश्वो पहरिश्चन्द्रस्त्रिशङ्कुजः । ६पुरूरवा बौध ऐल उर्वशीरमणश्च सः ।। ३६५ ।। दौष्यन्तिर्भरतः सर्वन्दमः शकुन्तलात्मजः । हैहयस्तु कार्तवीर्यो दोः सहस्रभृदर्जुनः ।। ३६६ ॥ कौशल्यानन्दनो दाशरथो रामो १. पूर्व ( १ । २६-२८) कथित २४ जिनेन्द्रों (तीर्थङ्करों ) के साथ ये ३६ ( 'भरत' आदि १२ चक्रवर्ती, 'त्रिपृष्ठ' आदि ६ अर्धचक्रवर्ती, 'अचल' आदि ६ बलदेव ( त्रिपृष्ठ श्रादिके अग्रज ) और 'अश्वग्रीव' आदि प्रतिवासुदेव ( त्रिपृष्ठ आदि के शत्रु १२+६+६+ε ३६) मिलकर कुल ६३ ( २४ + ३६ ६३ ) ‘शलाकापुरुष' कहे जाते हैं । = = १७३ २. ( अत्र विविध राजाओंके पर्याय कहते हैं -) 'पृथु' के ३ नाम हैं-. आदिराजः, पृथुः, वैन्यः T: 11 ३. 'मान्धाता' के २ नाम है - मान्धाता ( - तृ ), युवनाश्वजः ॥ ४. 'धुन्धुमार' के २ नाम हैं-धुन्धुमारः, कुवलाश्वः ॥ ५. 'हरिश्चन्द्र' के २ नाम हैं - हरिश्चन्द्रः, त्रिशङ्क ुजः ॥ उर्व ६. 'पुरूरवा' के ४ नाम हैं—पुरूरवाः • ( - वस् ), बौध:, ऐल:, श्रीरमणः ॥ ७. 'भरत ·. ( चक्रवर्ती )' के ४ नाम हैं - दौष्यन्ति: ( + दौष्मन्तिः ),, भरतः, सर्वेदमः (+ सर्वदमन: ), शकुन्तलात्मजः । ८. कार्तवीय ( सहस्रार्जुन ) के ४ नाम हैं - हैहयः, कार्तवीर्यः, दो: सहस्रभृत् (+ सहस्रबाहुः ), अर्जुनः ॥ विमर्श- ये 'मान्धाता' श्रादि ६ चक्रवर्ती राजा थे। जैसा कहा भी है मान्धाता धुन्धुमारश्च हरिश्चन्द्रः पुरूरवाः । भरतः कार्तवीर्यश्च षडेते चक्रवर्तिनः ॥ इति ॥ ( अर्थात् मान्धाता, धुन्धुमार, हरिश्चन्द्र, पुरुरवा, भरत और कार्तवीर्य ये छ चक्रवर्ती कहाते हैं ।" ६. ‘रामचन्द्र ( राजा राम ) के ३ नाम हैं - कौशल्यानन्दनः, दाशरथि:,.. रामः (+ रामभद्रः, रामचन्द्रः ) ॥ Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -१७४ अभिधानचिन्तामणिः -१ऽस्य तु प्रिया। वैदेही मैथिली सीता जानकी धरणीसुता ॥ ३६७ ॥ रामपुत्रौ कुशलवावेकयोक्त्या कुशीलवौ। ३सौमित्रिर्लक्ष्मणो ४बाली बालिरिन्द्रसुतश्च सः ।। ३६८ ॥ ५आदित्यसूनुः सुग्रीवो ६हनुमान वनकङ्कटः । मारुतिः केशरिसुत आञ्जनेयोऽर्जुनध्वजः ॥ ३६६ ॥ ७पौलस्त्यो रावणो रक्षो-लकेशो दशकन्धरः। रावणिः शक्रजिन्मेघनादो मन्दोदरीसुतः ॥ ३७० ॥ .. ६अजातशत्रुः शल्यारिधर्मपुत्रो युधिष्ठिरः। कङ्कोऽजमीढो १०भीमस्तु मरुत्पुत्रो वृकोदरः ।। ३७१॥ किर्मीर-कीचक वक-हिडिम्बानां निषूदनः ।। १. 'रामकी स्त्री (सीता) के ५ नाम हैं-वैदेही, मैथिली, सीता, जानकी, धरणीसुता ॥ २. राम के पुत्रों का १-१ नाम है-कुशः, लवः । तथा दोनों पुत्रोंका एक साथ 'कुशीलवौ' (नि० द्विव०) १ नाम है ।।. ३. 'लक्ष्मण'के २ नाम हैं-सौमित्रिः, लक्ष्मणः ॥ ___४. 'बाली ( सुग्रीवके बड़े भाई ) के ३ नाम हैं-बाली (- लिन् ), बालिः, इन्द्रसुतः (+सुग्रीवाग्रजः )॥ . ५. 'सुग्रीव के २ नाम हैं-श्रादित्यसूनुः, सुग्रीवः ।। ६. 'हनुमान'के ६ नाम है-हनुमान् (- मत् ।+ हनूमान् , - मत् ), वज्रकङ्कटः, मारुतिः, केशरिसुतः, आञ्जनेयः, अर्जुनध्वजः ॥ . ७. 'रावण'के ५ नाम हैं-पौलस्त्यः, रावणः, रक्षईशः, लङ्कशः ( यौ०-राक्षसेशः, लङ्कापतिः,...), दशकन्धरः (+दशास्यः, दशशिरा:रस् , दशकण्ट:,....)॥ ८. पावणपुत्र ( मेघनाद ) के ४ नाम हैं-रावणिः, शक्रबित् , मेघनादः, मन्दोदरीसुतः ।। ६. 'युधिष्ठिर के ६ नाम हैं-अजातशत्रुः, शल्यारिः, धर्मपुत्रः, युधिष्ठिरः, कङ्कः, अजमीढः ।। १०. 'भीमसेन, भीम'के ७ नाम है-भीमः (+भीमसेनः ), 'मरुत्पुत्रः, वृकोदरः, किर्मीरनिषूदनः, कीचकनिषूदनः, बकनिषूदनः, हिडिम्बनिषूदनः (यौ०कीमिरारिः, कीचकारिः, बकारि:,..........)॥ . Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ • मत्यैकाण्डः ३ ] 'मणिप्रभा' व्याख्योपेतः १ अर्जुनः फाल्गुन: पार्थः सव्यसाची धनञ्जयः ।। ३७२ ।। राधावेधी किरीटयैन्द्रिर्जिष्णुः श्वेतहयो नरः । बृहन्नटो गुडाकेशः सुभद्रेशः कपिध्वजः || ३७३ ॥ बीभत्सः कर्णजित् २तस्य गाण्डीवं गाण्डिवं धनुः । ३ पाञ्चाली द्रौपदी कृष्णा सैरन्ध्री नित्ययौवना ।। ३७४ ।। वेदिजा याज्ञसेनी च ४कर्णश्चम्पाधिपोऽङ्गराट् । राधा- सूता -ऽर्कतनयः ५कालपृष्ठं तु तद्धनुः ।। ३७५ ।। ६श्रेणिकस्तु भम्भासारो ७हालः स्यात् सातवाहनः । कुमारपालश्चौलुक्यो राजर्षिः परमार्हतः || ३७६ ॥ मृतस्वमोक्ता धर्मात्मा मारिव्यसनवारकः । राजवीजी राजवंश्यो १. 'अर्जुन' के १७ नाम हैं - अर्जुनः, फाल्गुनः, पार्थः सव्यसाची किरीटी ( - टिनू ), ऐन्द्रिः, सुभद्रेश ( + सुभद्रापति: ), · ) 11 शेषश्चात्र - श्रर्जुने विजयश्चित्रयोधी चित्राङ्कसूदनः । ( - चिनू ), धनञ्जयः, राधावेधी ( - धिन् ), जिष्णुः, श्वेतहयः, नरः, बृहन्नटः, गुडाकेशः, · कपिध्वजः, बीभत्सः, कर्णजित् ( यौ० – कर्णारि:, योगी धन्वी कृष्णपक्षो नन्दिघोषस्तु तद्रथः ॥ ग्रन्थिकस्तु सहदेवो नकुलस्तन्तिपालकः । माद्रेयाविमौ कौन्तेया भीमार्जुनयुधिष्ठिराः । १७५ " येsपि पाण्डवेयाः स्युः पाण्डवाः पाण्डवायनाः ॥ २. ‘अर्जुनके धनुष’के २ नान है -- गाण्डीवम्, गाण्डिवम् (२ पु न) ।। ३. 'द्रौपदी' के ७ नाम है -- पाञ्चाली, द्रौपदी, कृष्णा, सैरन्ध्री, नित्ययौवना, वदिजा, याज्ञसेनी ॥ ४. 'राजा कर्ण' के ६ नाम हैं – कर्णः, चम्पाधिपः श्रङ्गराट् ( - राज् । + अङ्गराजः ), राधातनयः, सूततनयः, श्रर्कतनयः ( यौ० - राधेयः, ) ॥ ५. 'राजा कर्ण के धनुष' का १ नाम है - कालपृष्टम् ॥ ६. 'राजा श्रेणिक' के २ नाम है-श्रेणिजः, भम्भासारः || ७. 'सातवाहन' के २ नाम हैं--हालः, सातवाहनः ( + सालवाहनः ) ॥ ८. 'कुमारपाल' के ८ नाम हैं-- कुमारपालः, चौलुक्यः, राजर्षिः, परमार्हतः, मृतस्वमोक्ता (तृ), धर्मात्मा (श्मन् ), मारिवारकः, व्यसन -वारकः ।। ६. 'राजकुलमें उत्पन्न' के २ नाम हैं-राजत्रीजी ( - जिन्), राजवंश्यः ॥ Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७६ अभिधानचिन्तामणिः -१बीज्यवंश्यौ तु वंशजे ॥ ३७७ ॥ २स्वाम्यमात्यः सुहृत्कोशो राष्ट्रदुर्गबलानि च । राज्याङ्गानि प्रकृतयः३पौराणां श्रेणयोऽपि च ।। २७८ ।। ४तन्त्रं स्वराष्ट्रचिन्ता स्यापदावापस्त्वरिचिन्तनम् । ६परिस्यन्दः परिकरः परिवारः परिग्रहः ॥ ३७६ ॥ परिच्छदः परिबर्हस्तन्त्रोपकरणे अपि । राजशय्या महाशय्या भद्रासनं नृपासनम् ॥ ३८० ॥ हसिंहासनं तु तद्धैम १०छत्रमातपवारणम् । ५१चामरं वालव्यजनं रोमगुच्छः प्रकीर्णकम् ॥ ३८१॥ १. 'वंशमें उत्पन्न'के ३ नाम है-बीज्यः, वैश्यः, वंशजः। (. यथा --- सूर्यवंशमें उत्पन्न 'राम'का नाम-सूर्यबीज्यः, सूर्यवंश्यः, सूर्यवंशजः,...")। २. 'स्वामी, अमात्यः, सुहृद, कोशः, राष्ट्रम्, दुर्गम् , बलम् - ( क्रमशः राजा, मंत्री, मित्र, खजाना, राज्य, किला और सेना ) ये ७ 'राज्याङ्ग' हैं, इनके २ नाम है-राज्याङ्गानि, प्रकृतयः ॥ ३. 'नागरिकों ( नगरवासियों )के समूह के भी. उक्त २ (राज्याङ्गानि, प्रकृतयः) नाम है ॥ ४. 'अपने राज्यकी रक्षा आदिकी चिन्ता'का ? नाम है-तन्त्रम् ।। ५. 'सन्धि आदि षड्गुणोंके द्वारा शत्रुराज्यके विषय में चिन्ता करने का १ नाम है-श्रावापः ।। ६. 'परिबार, परिजन' (भाई-बन्धु आदि या-नौकर-चाकर श्रादि ) के ८ नाम हैं-परिस्यन्दः, परिकरः, परिवारः, परिग्रहः, परिच्छदः, परिबर्हः (+परिबर्हणम् ), तन्त्रम् , उपकरणम् (+परिजनः).॥ ७. 'राजशय्या ( राजाकी शय्या-बहुमूल्य रत्नादिसे अलङ्कृत पलङ्ग आदि ) के २ नाम है-राजशय्या, महाशय्या ॥ ८. 'राजाके आसन (चांदी अादिका बना हुआ राजाके बैठनेका सिंहासन)का १ नाम है-भद्रासनम् (+ नृपासनम् )। ___E. 'सिंहासन ( राजाके बैठने के लिए सुवर्णका बना हुआ आसन )का १ नाम है-सिंहासनम् ।। १०. 'छाता'के २ नाम हैं-छत्रम् (त्रि ), श्रातपवारणम् (+श्रातपत्रम्, उष्णवारणम् ,".........") ॥ ११. 'चामर ( चँवर ) के ४ नाम हैं-चामरम् , वालव्यजनम् , रोम-- गुच्छः, प्रकीर्णकम् ॥ Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मयंकाण्ड: ३] . मणिप्रभा'व्याख्योपेतः १स्थगी ताम्बूलकरको २भृङ्गारः कनकालुका। ३भद्रकुम्भः पूर्णकुम्भः ४पादपीठं पदासनम् ॥ ३८२ ॥ ५अमात्यः सचिवो मन्त्री धीसखः सामवायिकः। ६नियोगी कर्मसचिव आयुक्तो व्यापृतश्च सः॥ ३८३॥ ७द्रष्टा तु व्यवहाराणां प्राड्विपाकोऽक्षदर्शकः। ८महामात्राः प्रधानानि पुरोधास्तु पुरोहितः॥ ३८४॥ सौवस्तिको१०ऽथ द्वारस्थः सत्ता स्याद् द्वारपालकः । दौवारिकः प्रतीहारो वेत्र्युत्सारकदण्डिनः ॥ ३८५ ॥ ११रक्षिवर्गेऽनीकस्थः स्या१२दध्यक्षाधिकृतौ समौ । १३पौरोगवः सूदाध्यक्षः १४सूदस्त्वौदनिको गुणः ।। ३८६॥ . भक्तकारः सूपकारः सूपारालिकवल्लवाः। १. 'पानदान, पनबट्टा के २ नाम है--स्थगी, ताम्बूलकरङ्कः ॥ २. 'झारी'के २ नाम हैं-भृङ्गारः, कनकालुका (+कनकालूः )। ३. 'मङ्गलकलश के २ नाम है-भद्रकुम्भः, पूर्णकुम्भः ।। ४. सिंहासनके पावदान'के २ नाम हैं-पादपीठम् , पदासनम् ॥ ५. 'मन्त्री'के ५ नाम हैं-अमात्यः, सचिवः, मन्त्री (-त्रिन् ), धीसखः (+बुद्धिसहायः), सामवायिकः ।।. ६. 'सहायक मन्त्री के ४ नाम हैं—नियोगी (+ गिन् ), कर्मसचिवः (+कर्मसहायः), आयुक्तः, व्यापृतः ।। ७. 'मुकदमेको देखनेवाला, न्यायाधीश के २ नाम हैं-प्राडिववाकः, अक्षदर्शकः ॥ शेषश्चात्र-स्योन्यायद्रष्टरि स्थेयः ।। ८. 'राज्यके मन्त्री पुरोहित और सेनापति आदि प्रधान व्यक्तियों के २ नाम हैं-महामात्राः (त्रि ), प्रधानानि ।। ६. 'पुरोहित'के ३ नाम है-पुरोधाः (-धस् ), पुरोहितः, सौवस्तिकः ।। १०. 'द्वारपाल के नाम हैं-द्वारस्थः (+द्वाःस्थः, द्वाःस्थितः), क्षत्ता (-४), द्वारपालक: (+द्वारपाल:), दौवारिकः, प्रतीहारः, वेत्री (-त्रिन् ।+ वेत्रधरः ), उत्सारकः, दण्डी ( ण्डिन् )॥ शेषश्चात्र-द्वाःस्थे द्वा:स्थितिदर्शकः ।। ११. 'राजादिके अङ्गरक्षक'का १ नाम है-अनीकस्थः ।। १२. 'अध्यक्ष, अधिकारी के २ नाम हैं-अध्यक्षः, अधिकृतः ।। १३. 'पाचकों ( भोजन तैयार करनेवालों )के अध्यक्ष के २ नाम हैंपौरोगवः, सूदाध्यक्षः ॥ १४. 'पाचक ( भोजन तैयार करनेवाले, रसोइये )के ८ नाम है-सूदः, प्रौदनिकः, गुणः, भक्तकारः, सूपकारः, सूपः, आरालिकः, वल्लवः ।। १२ अ० चि० Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७८ अभिधानचिन्तामणिः १भौरिकः कनकाध्यक्षो रूप्याध्यक्षस्तु नैष्किकः ॥ ३८७ ॥ ३स्थानाध्यक्षः स्थानिकः स्याहन्छुल्काध्यक्षम्तु शौल्किकः। पशुल्क स्तु घट्टादिदेय धर्माध्यक्षम्तु धार्मिकः ॥३८८।। धर्माधिकरणी चाऽथ हट्टाध्यक्षोऽधिकर्मिकः । चतुरङ्गबलाध्यक्षः सेनानीर्दण्डनायकः ॥ ३८६ ॥ हस्थायुकोऽधिकृतो ग्रामे १८गोपो प्र.मेपु भूरिषु।। ११म्यातामन्तःपुराध्यक्षेऽन्तः शिकावधिकौ ॥३६० ॥ १२शुद्धान्तः स्यादन्तःपुरमवरोधोऽवरोधनम् । १. 'सुवर्णाध्यक्ष'के २ नाम हैं-भौारकः (+हैरिक:), कनकाध्यक्षः ॥ २. 'रूपाध्यक्ष (टकसालक अध्यक्ष)क २. नाम है-रूप्याध्यक्षः, नष्किकः (टङ्कपतिः)॥ ३. 'स्थान ( दश, या पांच ग्रामो )क अध्यक्ष के. २ नाम है-स्थाना. ध्यक्षः, स्थानिकः ॥ ४. 'टेक्स (राज्यकर )के अध्यक्ष'के २ नाम हैं-शुल्काध्यक्षः, शौल्किकः ॥ ५. 'नदीके तट या जङ्गल आदिके कर. ( टैक्स )का १ नाम हैशुल्कः (पुन)॥ ६. 'धर्माध्यक्ष'के ३ नाम है-धर्माध्यक्षः, धार्मिकः, धर्माधिकरणी (-णिन् )॥ ७. 'बाजारके अध्यक्ष के २ नाम है-हट्टाध्यक्षः, अधिकर्मिकः ॥ . ८. 'चतुरङ्गिणी सेना ( हयदल, रथदल, पैदल और गबदल )के अध्यक्ष' अर्थात् 'सेनापति'के ३ नाम हैं-- चतुरङ्गबलाध्यक्षः, सेनानी:, दण्डनायकः ।। ६. 'ग्रामके अध्यक्ष'का १ नाम है-स्थायुकः॥ १०. 'बहुत ग्रामों के अध्यक्ष'का १ नाम है-गोपः ॥ - ११. 'अन्तःपुर ( रनिवास )के अध्यक्ष के ३ नाम है-अन्तःपुराध्यक्षः, अन्तर्वशिकः (+आन्तश्मिकः ), आवरोधिकः (+आन्तःपुरिकः ) ।। शेषश्चात्र क्षुद्रोपकरणानां स्यादध्यक्षः पारिकर्मिकः । पुराध्यक्ष कोटपतिः पौरिको दण्डपाशिकः । १२. 'एक पुरुषकी अनेक रानियोंके ( तथा उपचारसे 'रनिवांस' अर्थात् रानियोंके महल ) के ४ नाम है-शुद्धान्तः (पुन), अन्तःपुरम् , अवरोधः, भवरोधनम् ॥ Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मयंकाण्डः ३] मणिप्रभा'व्याख्योपेतः १७ १सौविदल्लाः कञ्चुकिनः स्थापत्याः सौविदाश्च ते ॥ ३६१ ॥ २षण्ढे वर्षवरः शत्रौ प्रतिपक्षः परो रिपुः। शात्रवः प्रत्यवस्थाता प्रत्यनीकोऽभियात्यी ॥ ३६२॥ दस्युः सपत्नोऽसहनो विपक्षो द्वेषी द्विषन् वैयहितो जिघांसुः । दुहत् परेः पन्थकपन्थिनौ द्विट प्रत्यर्थ्यमित्राव भिमात्यरावी ॥३६॥ ४वैरं विरोधो विद्वषो ५वयस्यः सवयाः सुहृन् । स्निग्धः सहचरो मित्रं सखा सख्यं तु सौहृदम् ॥ ३६४॥ सौहाद साप्तपदीनमैत्र्यजर्याणि संगतम् । ७आनन्दनं त्वाप्रच्छनं स्यात् सभाजनमित्यपि ॥ ३६५ ॥ विषयानन्तरो राजा शत्रतमित्रमतः परम् ।। १० उदासीनः परतरः ११पाणिग्राहस्तु पृष्ठतः ॥ ३६६ ।। १. 'कञ्चुफियों के ४ नाम हैं-सौविदल्लाः, कञ्चुकिनः ( किन्), स्थापत्याः, सौविदल्लाः । (ब० व० अविवक्षित होनेसे एकवचनादिकाभी प्रयोग होता है)। २. 'नपुंसक, अन्तःपुरके रक्षक के २ नाम है-षण्टः, वर्षवरः ।। ३. 'शत्र' के २६ नाम है-शत्रः, प्रतिपक्षः, परः, रिपुः, प्रत्यवस्थाता (-४), प्रत्यनीकः, अभियातिः, अरि:, दस्युः, सपत्नः, असहनः, विपक्षः, द्वेषी (-षिन् ), द्विषन् (-पत्), वैरी (-रिन् ), अहितः, जिघांसुः, दुहृद्, परिपन्यकः, परिपन्थी (-न्थिन् ), द्विट (-५ ), प्रत्यर्थी (र्थिन्), अमित्रः (पु ।+ असु-हृद्), अभिमातिः, अरातिः ॥ . ४. 'वर' के ३ नाम है-वैरम्, विरोधः, विद्वेषः ।। ५. 'मित्र' के ७ नाम हैं:-वयस्यः, सवयाः(-यस), सुहृद्, स्निग्धः, सहचरः (+ सहायः), मित्रम्, सखा (-खि)॥ ६. मित्रता, दोस्ती' के ७ नाम है--सख्यम्, सौहृदम्, सौहार्दम्, सासपदीनम्, मैत्री, अर्यम्, संगतम् ।। ७. 'आलिङ्गनादिसे आनन्दित करने' के ३ नाम हैं-श्रानन्दनम्, श्राप्रच्छनम् , सभाजनम् ॥ ८. 'अपने राज्य के पासवाले राज्यके राजा' का १ नाम है-शत्रः॥ ६. । 'पूर्वोत्तसे भिन्न राजा' का १ नाम है-मित्रम् ॥ १०. । 'उक्त दोनों (शत्र तथा मित्र ) राबाओं से भिन्न (तटस्थ) राजा' का १ नाम है-उदासीन: (+तटस्थः)। ११. । 'विजयाभिलाषी राजाकी पीठपर (पीछे ) स्थित राजा' का १ नाम है-पाणिग्राहः॥ Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८० अभिधानचिन्तामणिः १अनुवृत्तिस्त्वनुरोधो रहेरिको गूढपूरुषः। प्रणिधिर्यथाहवर्णोऽवसो मन्त्र विच्चरः ॥ ३६७ ।।। वार्तायन: स्पशवार ३आप्तप्रत्ययितौ समौ। ४सत्रिणि स्षाद् गृहपतिपदूतः संदेशहारकः ॥ ३६॥ ६सन्धिविग्रहयानान्यासनद्वैधाश्रया अपि । षड्गुणाः विमर्श-इन पांचों में बाहर राज-मण्डल पूरा हो गया । वे १२ राजमण्डल ये हैं-१ शत्र, २ मित्र, ३ शत्रका मित्र, ४ मित्रका मित्र, ५ शत्रुके मित्रका मित्र ६ पाणिग्राह ( अपने पीछे से सहायतार्थ श्रानेवाला ), ७ आक्रन्द (शत्रु के पीछे सहायतार्थं आनेवाला ), ७ पाणिग्राहासार ( सहायतार्थ शत्रके पक्ष से बुलाया गया ), ६ आक्रन्दासार ( सहायतार्थ अपने पक्ष से बुलाया गया), १० विजिगीषु (स्वयं विजय चाहने वाला), ११ मध्यम और १२ उदासीन । इनमें से पहले वाले ५ आगे चलते या सामने रहते हैं, अनन्तर चार ( ६ से ६ तक ) विजयाभिलाषी राजा (१०) के पीछे रहते हैं, ११ वां (मध्यम ) दोनों पक्षवालों का वध करने में समर्थ होने के कारण स्वतन्त्र होता है और १२ वा ( उदासीन ) उन सभी के मण्डल से बाहर रहता है और स्वतन्त्र एवं सर्वाधिक बलशाली होता है । ( शिशुपालवध की 'सर्वकषा' व्याख्या २८१ ) ।। १. 'अनुरोध' के २ नाम है-अनुवृत्तिः अनुरोधः ॥ .. २. 'गुप्तचर'के १० नाम है-हेरिकः,, गूढपूरुषः, प्रणिधिः, यथार्हवर्णः, अवसः, मन्त्रवित् (-विद् ), चरः, वार्तायनः, स्पशः, चारः ॥ ३. 'आप्त, विश्वसनीय'के २ नाम है-श्राप्तः, प्रत्ययितः ।। ४. 'गृहपति'के २ नाम है-सत्री (-त्रिन् ), गृहपतिः॥ ५. 'दूत (मौखिक सन्देश पहुँचानेवाला) के २ नाम हैं-दूतः, संदेशहारकः ।। ६ सन्धिः, विग्रहः, यानम्, आसनम, द्वैधम, आश्रयः-ये राजनीतिमें 'षड्गुणः' कहे जाते हैं। . विमर्श-१ सन्धि-(कर देना स्वीकारकर या उपहार आदि देकर शत्रपक्षसे मेल करना ), २.विग्रह-(अपने राष्ट्र से दूसरे राष्ट्रमें जाकर युद्ध, दाह श्रादि करते हुए विरोध करना ), ३ यान-(चढ़ाई करनेके लिए प्रस्थान करना), ४-श्रासन--(शत्रपक्षसे युद्ध नहीं करते हुए अपने दुर्ग या सुरक्षित स्थानमें चुप-चाप बैठ जाना), ५ वैध-(एक राजाके साथ सन्धिकर अन्यत्र Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मर्त्यकाण्डः ३ ] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः - -१शक्तयस्तिस्रः प्रभुत्वात्साहमन्त्रजाः || ३६६ ॥ सामदानभेददण्डा उपायाः ३साम सान्त्वनम् । उपजापः पुनर्भेदो दण्डः स्यात्साहसं दमः ॥ ४०० ॥ ६प्राभृतं ढौकनं लवोत्कोचः कौशलिकामिषे । उपाच्चारः प्रदानं दाहारौ ग्राहयायने अपि ॥ ४०१ ॥ ७मायोपेक्षेन्द्रजालानि क्षुद्रोपाया इमे त्रयः । = मृगयाऽक्षाः स्त्रियः पानं वाक्पारुष्यार्थदूषणे ॥ ४०२ ॥ दण्डपारुष्यमित्येतद्धेयं व्यसनसप्तकम् | १८१ यात्रा करना, अथत्रा— दो बलवान् शत्रुओंमें वचनमात्र से श्रात्मसमर्पण करते हुए दोनों पक्षका ( कभी एक पक्षका कभी दूसरे पक्षका ) गुप्तरूप से आश्रय करना ) और ६ आश्रय - - ( बलवान् शत्रु से युद्ध करने में स्वयं समर्थ नहीं होनेपर किसी दूसरे अधिक बलवान् राजाका आश्रय करना ) । ये 'षड्गुण' कहलाते हैं | १. प्रभुशक्तिः, उत्साहशक्तिः, मन्त्रशक्ति:- ये ३ 'शक्तियां' हैं 1 विमर्श - १ प्रभुशक्ति - ( खजाने तथा दण्ड आदि की उन्नति होना ), २ उत्साहशक्ति- ( उद्योग करते हुए सहन करना ), और ३ मन्त्रशक्ति-( पांच अङ्गोवाला मन्त्र अर्थात् गुप्तमन्त्रणा ) । पांच ये हैं – १ सहाय २ साधन, ३ उपाय, ४ देश-कालका यथोचित विभाजन और ५ विपत्तिसे बचाव || २. साम ( -मन् ), दानम्, दण्ड, भेदः - ये ४ 'उपाय' कहलाते हैं || ३. 'साम ( मधुर भाषणादिसे शान्त करना ) के २ नाम हैं— साम ( - पन् ), सान्त्वनम् ( + सान्त्वम् ) ।। ४. 'भेद ( आपस में विरोध कराना ) के २ नाम हैं-उपजापः, भेदः ॥ ५. 'दमन, दड' के ३ नाम हैं- दण्डः, ( पु न ), साहसम् ( न । + पुन ), इमः ॥ ६. 'घूस, या —— उपहार ( भेंट ) के १२ नाम हैं- प्राभृतम्, ढौकनम्, लचा ( पु स्त्री), उत्कोचः, कौशलिकम्, श्रामिषम् ( पु न ), उपचारः, उपप्रदानम्, उपदा, उपहार:, उपग्राह्यः, उपायनम् ॥ ७. 'माया, उपेक्षा, इन्द्रजालम -- इन तीनों' का 'क्षुद्रोपायः' यह १ नाम है । (ये ३ क्षुद्र उपाय हैं ) ।। ८. । मृगया, अक्षा:, स्त्रियः, पानम्, वाक्पारुष्यम्, अर्थदूषणम् दण्डपा १. तदुक्तम्-- “ सहायाः साधनोपाया विभागो देशकालयोः । विनिपातप्रतीकारः सिद्धिः पञ्चाङ्गमिष्यते ॥ इति ॥ Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८२ अभिधानचिन्तामणिः १ पौरुषं विक्रमः शौर्य शौण्डीर्यं च पराक्रमः ॥ ४०३ ॥ २यत्कोशदण्डजं तेजः स प्रभावः प्रतापवत् । ३भिया धर्मार्थकामैश्च परीक्षा या तु सोपधा ॥ ४०४ ॥ ४ तन्मन्त्राद्यषडक्षीणं यत्तृतीयाद्यगोचरः । ५ रहस्यालोचनं मन्त्रो ६रहश्छन्नमुपह्वरम् ॥ ४०५ ॥ विवक्त विजनैकान्तनिःशलाकानि केवलम् | रहस्यं न्यायस्तु देशरूपं समञ्जसम् ॥ ४०६ ॥ कल्पाभ्रेपौ नयो हन्याय्यं तूचितं युक्तःसाम्प्रते । लभ्यं प्राप्तं भजमानाभिनीतौपयिकानि च ॥ ४०७ ।। रुष्यम् इन सातों का 'व्यसनम्' यह १ नाम है । राजाको ( मानवमात्रको ) इनका त्याग करना चाहिए । विमर्श - १ मृगया - ( शिकार, श्राखेट ), २- -अक्ष- जुआ खेलना, घुड़दौड़, आदिपर लाटरी डालना आदि), ३. स्त्रियः - (स्त्रियों में अधिक श्रासक्ति), ४ पानम् - ( मद्य आदि नशीली वस्तुओं का सेवन ), ५ वाक्पारुष्य - ( कठोर वचन बोलना ), ६ अर्थ-दूषण - ( धनका लेना, धनका नहीं देना, धनका विनाश और धनका परित्याग ) और ७ दण्डपारुष्य - ( कठोर दण्ड देना ) ॥ १. । 'पराक्रम, पुरुषार्थ' के ५ नाम है - पौरुषम्, विक्रमः, शौर्यम्, शौण्डीर्यम्, पराक्रमः ॥ २. 'प्रभाव - ( कोश तथा दण्ड से उत्पन्न राज-तेज ) ' के १ नाम हैंप्रभावः, प्रतापः ॥ ३. 'भय, धर्म, अर्थ तथा काम के द्वारा मंत्री श्रादि की परीक्षा लेने ' का १ नाम है - उपधा ।। ४. 'जिसे तीसरा व्यक्ति नहीं जाने ऐसी मन्त्रया ( सलाह, परामर्श ), क्रीडा आदि का १ नाम है - श्रषडक्षीणम् || ५. 'गुप्त मन्त्र' के ३ नाम है - रहस्यम्, आलोचनम्, मन्त्रः ॥ ६. 'एकान्त गुप्त स्थान' के ८ नाम है--रह: ( - हस्, न ), छनम्, उपह्वरम् (पु न ), विविक्कम्, विश्वनम् (+ निर्जनम्), एकान्तम्, निःशलाकम्, केवलम् ॥ ७. 'गुप्त' के २ नाम है -- गुह्यम्, रहस्यम् ॥ ८. 'न्याय' के ६ नाम है— न्यायः, देशरूपम्, समञ्जसम्, कल्यः, अभ्रेषः, नयः ( + नीतिः ) ॥ ६. 'न्याय्य ( न्याययुक्त ) के ६ नाम है--न्याय्यम्, उचितम् Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८३ मयंकाण्डः ३] . 'मणिप्रभा'व्याख्यापेतः १प्रक्रिया त्वधिकारो२ऽथ मर्यादा धारणा स्थितिः । संस्था३ऽपराधस्तु मन्तुळलीकं विप्रियागसी ।। ४०८ ।। ४वलिः करो भागधेयो पडिपाधो द्विगणो दमः। ६वाहिनी पृतना सेना बलं सैन्यमनीकिनी ॥४०६॥ कटकं ध्वजिनी तन्त्रं दण्डोऽनीकं पताकिनी । वरूथिनी चमूश्चक्रं स्कन्धावारोऽस्य तु स्थितिः ॥ ४१० ॥ शिबिरं रचना तु स्याद् व्यूहो दण्डादिको युधि । युक्तम् , साम्प्रतम् , लभ्यम् , प्राप्तम्, भजमानम् , अभिनीतम् , श्रौपयिकम् (सब वाच्यलिङ्ग है)। १. 'अधिकार के २ नाम हैं-प्रक्रिया, अधिकारः ॥ . २. 'मर्यादा'के ४ नाम है-मर्यादा, धारणा, स्थितिः, संस्था । ३. 'अपराध'के । नाम है-अपराधः, मन्तुः (पु), व्यलीकम् (पुन), विप्रियम , अागः (-गस , न)॥ ४. 'कर, टैक्स'के ३ नाम हैं—बलिः (पु स्त्री), करः, भागधेयः ॥ विमर्श-यद्यपि अर्थशास्त्रमें प्रजासे अन्नादिके उपजका छठा हिस्सा लेना 'भागधेय' स्थावर तथा बङ्गम (नदी, पर्वत, जङ्गल आदि तथा रथ, गाड़ी आदि )से हिरण्मादि (सोना, या रुपया आदि) लेना 'कर' और भृत्यादिके उपजीव्य वस्तुको लेना 'बलि' कहा गया है, तथापि यहांपर उन विशिष्ट भेदोंका आभय छोड़कर सामान्यतया सबको पर्याय रूपमें कहा गया है ॥ ... ५. 'दुगुना दण्ड'का १ नाम है-द्विपाद्यः ॥ ६. 'सेना'के १६ नाम हैं-वाहिनी, पृतना, सेना, बलम् , सैन्यम् , अनीकिनी, कटकम् (पु न ), ध्वजिनी, तन्त्रम् , दण्डः, अनीकम् (२ पुन), पताकिनी, वरूथिनी, चमूः (श्री), चक्रम् (पु न ), स्कन्धावारः ॥ ७. 'शिबिर (सेनाके ठहरनेका स्थान पड़ाव )का १ नाम हैशिबिरम् ॥ ८. 'दण्ड' श्रादि नामक व्यूह (मोर्चाबन्दी ) का १ नाम है-व्यूहः ।। विमर्श-कुछ व्यूहोंके ये नाम हैं-दण्डव्यूह, मण्डलव्यूह, उच्छनव्यूह, अवलब्यूह, दृढव्यूह, चक्रव्यूह, शकटव्यूह, वराहव्यूह, मकरव्यूह, सूचीव्यूह, गरुडव्यूह, । (इनमें से कतिपय व्यूह-रचनाओंके प्रकार एवं इनमेंसे किस व्यूहकी रचना किस अवस्थामें करनी चाहिए, इत्यादि जाननेके लिए 'मनुस्मृति' की (७ । १८७-१९१) मस्कृत 'मणिप्रभा' नामकी राष्ट्रभाषामयी Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८४ अभिधानचिन्तामणिः १प्रत्यासारो व्यूहपाणिः सैन्यपृष्ठे प्रतिग्रहः ॥ ४११ ॥ ३एकेभैकरथास्यश्वाः पत्तिः पञ्चपदातिका।। ४क सेना सेनामुखं गुल्मो वाहिनी पृतना चमूः ॥ ४१२ ॥ अनीकिनी च पत्तेः स्यादिभाद्यैत्रिगुणैः क्रमात् । ५दशानीकिन्योऽक्षौहिणी सेज्जनं तूपरक्षणम् ॥ ४१३ ।। ७वैजयन्ती पुनः केतुः पताका केतनं ध्वजः। टीका देखें ॥ "कौटिल्य अर्थशास्त्रमें भी व्यूहोंके भेदोपभेदका. तथा शत्रुके । किस व्यूहका किस व्यूहसे भेदन करना चाहिए, इसका सविस्तर वर्णन है'। १. 'मोर्चाबन्दीके पार्श्वभाग'के २ नाम हैं--प्रत्यासारः, व्यूहपाणिः ॥ २. सेनाके पीछेवाले भाग'का १ नाम है-प्रतिग्रहः ॥ . . ३. जिसमें १-१ हाथी तथा रथ, ३ घोड़े ( रथके घोड़े के अतिरिक्त), ५ पैदल सैनिक हों, उसे 'पत्तिः ' कहते हैं । ४. पत्ति'के हाथी आदिको त्रिगुणित बढ़ाते जानेसे क्रमशः. सेना, सेनामुखम् , गुल्मः (पुन ), वाहिनी, पृतना, चमू:, अनीकिनी ( ये १-१ नाम सेना-विशेषके होते हैं )। ५. 'दस अनीकिनी-परिमित सेना'की १,अक्षौहिणी सेना होती है ।। विमर्श-'पत्ति से आरम्भकर 'अक्षौहिणी' तक सेना-विशेषके हाथी श्रादिकी संख्याज्ञानार्थ पृष्ठ १८५ के चक्र देखें । विशेषाजज्ञासुओंको 'अमरकोष' की मत्कृत 'अमरचन्द्रिका' नामकी टिप्पणी देखनी चाहिए, जो 'मणिप्रभा' टीका के पृष्ठ २६४ पर लिखी गयी है ॥ . , ६. 'सेनाको बढ़ाने, या रक्षा करने के २ नाम है-सबनम्, उपरक्षाम् ॥ ५. 'झण्डा'के ५ नाम हैं-वैजयन्ती, केतुः (पु), पताका (+ पटाका), केतनम् , ध्वजः (२ पु न)। (किसी-किसीके मतमें 'झण्डे'के दण्ड (बांस आदि )का नाम 'ध्वज' है तथा शेष ४ नाम 'झण्डा' (झण्डेके ‘कपड़े )के हैं )। १. तथा च कौटिल्यार्थशास्त्रे "पक्षावुरस्यं प्रतिग्रह इत्यौशनसो व्यूहविभागः, पक्षौ कक्षावुरस्यं प्रतिग्रह इति बार्हस्पत्यः, प्रपक्षकदोरस्या उभयोर्दण्डभोगमण्डलासंहताः प्रकृतिव्यूहाः। तत्र तिर्यग्वृत्तिर्दण्डः । समस्तानामन्वावृत्तिभॊगः । सरतां सर्वतो वृत्तिमण्डलः । स्थितानां पृथगनीकवृत्तिरसंहतः।” (कौ० अर्थ० १० । ६ । १-७)॥ इतोऽग्रेऽमीषां व्यूहानां भेदाः, कच कस्य व्यूहस्योपयोगितेत्यादिकमध्यायेऽस्मिन् वर्णितमिति तत एव द्रष्टव्यं जिज्ञासुभिः ।। Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८५ मयंकाण्डः ३] 'मणिप्रभा व्याख्योपेतः १अस्योच्चूलावचूलाख्याव_धोमुखकूर्चको ॥ ४१४ ।। २गजो वाजी रथः पत्तिः सेनाङ्ग स्याच्चतुर्विधम् । ३युद्धार्थे चक्रवद्याने शताङ्गः स्यन्दनो रथः ।। ४१५ ।। १. 'इस झण्डेके ऊपर तथा नीचेवाले अग्रभाग'का क्रमशः १-१ नाम है-उच्चूल:, अवचूलः ।। २. गजः, वाजी (-जिन् ), रथः, पत्तिः, (क्रमश:-गजदल, हयदल, रथदल और पैदल)-ये चार सेनाके अङ्ग 'सेनाङ्गम्' हैं, अतएव सेनाको 'चतुरङ्गिणी' ( गजदल, हयदल, रथदल और पैदल ) सेना कहते हैं । विमर्श-वर्तमान नवीन कालमें तो ( वायुयान आदिवाली सेना) 'नभःसेना', ( जहान, पनडुब्बी, सुरङ्ग विछाने या हटानेवाले जहाज श्रादि की सेना) 'जलसेना' और (टैक, मशीनगन, आदि तथा घुड़सवार एवं पैदल सेना ). 'स्थल सेना' कहलाती है। इन तीन प्रकार की सेनाओं के अतिरिक्त विज्ञानके अाधुनिकतम नवीनाविष्कारके कारण 'अणुवम, परमाणुवम, हाइड्रोजन वम आदि विशेष युद्धसाधनयुर सेनाका आविष्कार हो गया है। पत्यादिसेना-विशेषाणां गजादिसंख्याबोधक चक्रम् रथाश्ववर्जिता पत्तिसंख्या सेनानाम गंजसंख्या रथसंख्या श्वसंख्या सर्वयोगः पत्तिः Immu सेना . ८१ २४३ my सेनामुखम् । ६. गुल्मः १३५ २७० वाहिनी ४०५ ८१० पृतना ... ७२६ १२१५ २४३० चमूः . ७२६ २१८७ ३६४५ ७२६० अनीकिनी । २१८७ २१८७ ६.६१ १०६३५ २१८७० अक्षौहिणी २१८७० २१८७० ६५६१० । १०६३५० २१८७०० (अन्यत्रोक्ता) |१३२१२४६०१३२१२४६०३६६३७४७० ६६०६२४५० १३२१२४६०० महाक्षौहिणी . ७२६ ३. 'युद्धके रथ के ३ नाम हैं -शताङ्गः, स्यन्दनः, रथ: (पु स्त्री)। Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८६ अभिधानचिन्तामणिः १स क्रीडार्थः पुष्परयो रदेवार्थस्तु मरुद्रयः । ३योग्यारथो वैनयिको४ऽध्वरथः पारियानिकः ।। ४१६ ॥ ५कर्णीरथः प्रवहणं डयनं रथगर्भकः। ६अनस्तु शकटोऽथ स्याद् मन्त्री कम्बलिवाह्यकम् ॥ ४१७ ॥ ८अथ काम्बलवाखाद्यास्तैस्तैः परिवृते रथे। हस पाण्डुकम्बली यः स्यात्संवीतः पाण्डुकम्बलैः।। ४१८॥ १०स तु द्वैपो वैयाघ्रश्च यो वृतो द्वीपिचर्मणा। ११रथाङ्ग रथपादोऽरि चक्रं १२धारा पुनः प्रधिः ।।४१६ ॥ नेमि १. 'क्रीडा (उत्सवादि यात्रा)के लिए बनाये गये रथ'का १ नाम है-पुष्परथः॥ २. 'देवता (देव-प्रतिमा)को विराजमान करनेवाले रथका १ नाम है-मरुद्रयः॥ ३. 'शस्त्रकी शिक्षा तथा अभ्यासके लिए बनाये गये स्थ'के २ नाम हैंयोग्यारथः, वैनयिकः॥ . ४. सामान्यतः यात्रा करने (कहीं आने-जाने के लिए बनाये गये रथ के २ नाम हैं-अध्वरथः, पारियानिकः ॥ . ५. 'जिसे कहार कन्धेपर दोर्वे, उस रथ'के अथवा-'स्त्रियोंके चढ़ने के लिए पर्दा लगे हुए रथ के ४ नाम हैं-कर्णीरथः, प्रवहणम्, डयनम् , रथगर्भकः॥ ६. 'गाड़ी के २ नाम है-अनः (-नस् , न), शकटः (त्रि)॥ ७. 'छोटी गाड़ी, या-सम्गड़के २ नाम है-गन्त्री, कम्बलिवालकम् ।। ८. 'कम्बल, कपड़ा श्रादिसे ढके या मढ़े हुए रथका क्रमशः १-१ नाम हैं-काम्बलः, वास्त्रः। ('आदि'से दुकूल या दुगूल से ढके या मढ़े हुए रथका दौकूल:' या 'दोगूल:' नाम है)॥ ६. 'पाण्डु वर्णके कम्बल से ढके या-मढ़े हुए रथ'का १ नाम है - पाण्डुकम्बली ॥ १०. 'बाघके चमड़ेसे ढके या मढ़े हुए रथ'के २ नाम हैं-द्वैपः, वैयाघ्रः ।। ११. 'पहिया'के ४ नाम है-रथाङ्गम्, रथपादः, अरि (-रिन् , न ), चक्रम् (पु न)॥ १२. 'नेमि (पहिये या टायरके ऊपरी भाग )के ३ नाम है--धारा, प्रषिः (पु स्त्री ), नेमिः (स्त्री)॥ Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८७. मयंकाण्ड: ३ ] . 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः १८७ -रक्षाग्रकीले त्वण्याणी २नाभिस्तु पिण्डिका । युगन्धरं कूबरं स्याद् ४युगमीशान्तबन्धनम् ॥ ४२० ॥ ५युगकीलकस्तु शम्या ६प्रासङ्गस्तु युगान्तरम । ७अनुकर्षो दार्वधःस्थं धूर्वी यानमुखं च धूः ।। ४२१ ॥ हरथगुप्तिस्तु वरूथो १०रथाङ्गानि त्वपस्कराः । ११शिविका यानयाप्ये१२ऽथ दोला प्रेतादिका भवेत् ॥ ४२२ ॥ १३वैनीतिक परम्परावाहन शिबिकादिकम् । १. 'पहिएके नाभिके बीचवाली कील'के २ नाम है-श्रणिः, आणिः (२ पु स्त्री)। २. 'नाभि' (पहिएके बीचवाले मोटे काष्ठ )-जिसमें अरा ( दण्डे ) लगे रहते हैं-उसके २ नाम हैं-नाभिः, पिण्डिका ॥ ३. 'रथ या गाड़ी भादिका बंबा ( जिसमें घोड़े या बैलके कन्धेपर रखे जानेवाले जुवाको बांधा जाता है, रथ, तांगे, एक्के या गाड़ीके उस बांस ) के २ नाम हैं-युगन्धरम् , बरम् ( २ पु न)। ४. 'स्थ या गाड़ी आदिके जुवा'का १ नाम है-युगम् (पु न )॥ ५. 'उक्त जुकेकी कील के २ नाम हैं-युगकीलकः, शम्या । ६. भये बछवेको हलमें चलना सिखलानेके लिए उसके कन्धेपर रखे बानेवाले काष्ठ के २ नाम है-प्रासङ्गः, युगान्तरम् ॥ - ७. रथ या गाड़ी प्रादिके नीचेवाले काष्ठका १ नाम है-अनुकर्षः । ८. स्थादिके आगेवाले भाग ( जिसमें घोड़े या बैल आदि बांध बाते. है) उसके ३ नाम है-पूर्वी, यानमुखम्, धूः (=धुर्, स्त्री)॥ ६. रथ आदिके रक्षार्थ लोहादिके भावरण के २ नाम है-रथगुप्तिः, वरूपः (पुन.)॥ . १०. 'रयके पहिया आदि अवयवो'का १ नाम है-अपस्करः ।। ११. पालकी, तामबान, नालकी श्रादि (जिसे मनुष्य कन्धे पर दोवें,. उस के २ नामो-शिविका, याप्ययानम् ॥ १२. 'झूला, हिंडोला'के २ नाम है-दोला, प्रेडोलिका। ('प्रेहोलिका' आदिका नाम 'दोला' है, यहां 'पादि' शब्दसे-'शयानकम्' आदिका संग्रह करना चाहिए ) . १३. वारी-बारीसे ढोये जानेवाली पालकी प्रादि'का १ नाम है-वैनीतिकम् । पुन)। Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'अभिधानचिन्तामरिण: वाहनधोरणे || ४२३ || क्षत्ता श्यानं युग्यं पत्रं वाह्यं वह्यं २ नियन्ता प्राजिता यन्ता सूतः सव्येष्टृसारथी । दक्षिणस्थ प्रवेतारौ रथकुटुम्बिकः || ४२४ ।। ३ रथारोहिणि तु रथी ४रथिके रथिरो रथी । अश्त्रारोहे त्वश्ववारः सादी च तुरंगी च सः ।। ४२५ ।। ६हत्यारोहे सादियन्तृमहामात्रनिषादिनः । १८८ धोरणा हस्तिपका गजाजीवेभपालकाः || ४२६ ॥ =योद्धारस्तु भटा योधाः हसेनारक्षास्तु सैनिकाः । १० सेनायां ये समवेतास्ते सैभ्याः सैनिका अपि ॥ ४२७ ॥ ११ये सहस्रेण योद्धारस्ते साहस्राः सहस्रिणः । १. 'वाहन' के ७ नाम हैं - यानम्, युग्यम्, पत्रम् (पुन), वाह्यम्, वह्यम्, वाहनम्, धोरणम् || २. 'सारथि ( रथादि चलानेवाले ) के १० नाम हैं - नियन्ता (तृ प्राजिता (तृ), यन्ता (तृ), सूतः, सव्येष्ठा (ष्ठ । + सव्येष्ठः ), सारथिः, दक्षिणस्थ:, प्रवेता (-तृ ), क्षत्ता ( - तू ), रथकुटुम्बिकः ( + सादी - दिन: ) । ३. ' रथपर चढ़कर युद्ध करनेवाले'का १ नाम है - रथी ( - थिन् ) ॥ ४. 'रथवाले, या रथपर चढ़े हुए' के ३ रथी ( - थिन् ) ।। · नाम है - रथिकः, रथिरः, ५. 'घुड़सवार' के ४ नाम है-अश्वारोहः, अश्ववार:, सादी ( - दिन ), तुरगी (-गिन् ) ।। ६. 'हाथीपर चढ़नेवाले' के ५ नाम हैं - हस्यारोह:, सादी ( - दिन ); यन्ता (तृ), महामात्रः, निषादी ( - दिन् ) | ( किसी-किसीके मतमें 'हस्स्यारोह' आदि सब नाम एकार्थक ( हाथीवानके ) हैं | ७. 'हाथोवान्, पिलवान' के ४ नाम है - श्राधारणाः, हस्तिपकाः, गजाजीवाः, इभपालकाः । ८. 'युद्ध करनेवाले वीरों' के ३ नाम है – योद्धारः ( - बृ ), भटाः, योधाः ॥ ६. 'सेना के पहरेदारों' के २ नाम हैं— सेनारक्षाः, सैनिकाः ॥ १०. 'सेना में नियुक्त सभी लोगों' के २ नाम है - सैन्याः, सैनिकाः || ११. 'एक सहस्र योद्धाओंसे युद्ध करनेवाले वीर' के २ नाम है- साहस्राः, सहस्रिणः (खिन् ) ॥ विमर्श - ' हस्यारोहा: ' ( ४२६ ) से इस 'सहक्षिण:' ( ४२८ ) शब्द तक सब पर्यायोंमें बहुत्वकी अपेक्षा बहुवचनका प्रयोग किया गया है, अतएव एकवकी इच्छामें उक्त पर्यायोंका प्रयोग एकवचन में भी होता है ॥ Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८९ मयंकाण्डः ३] मणिप्रभा'व्याख्योपेतः १छायाकरछत्रधारः . २पताकी वैजयन्तिकः ॥ ४२८ ॥ ३परिधिस्थः परिचर ४ामुक्तः प्रतिमक्तवत् । . अपिनद्धः पिनद्धोऽथ सन्नद्धो व्यूहकङ्कटः॥ ४२६ ॥ दंशितो वर्मितः सज्जः सन्नाहो वर्म कङ्कटः। जगरः कवचं दंशस्तनुत्रं माठ्यरश्छदः ॥ ४३० ॥ निचोलक: स्यात्कूर्पासो वारबाणश्च कञ्चुकः। सारसनं त्वधिकाङ्ग हृदि धार्य सकञ्चुकैः ।। ४३१ ।। हशिरस्त्राणे तु शीर्षण्यं शिरस्क शीर्षकं च तत् । १०नागोदमदरत्राणं . ११जङ्घात्राणं तु मत्कुणम् ॥ ४३२ ॥ १. 'राजा आदिके छत्रको धारण करनेवाले'के २ नाम हैं-छायाकरः, छत्रधारः॥ ___२. ध्वजा, मंडा धारण करनेवाले के २ नाम है-पताकी (- किन् । +पताकाधरः), वैज्यन्तिकः ॥ . . . - ३. 'सेनाके रक्षार्थ चारो ओर रहनेवाली सेना या पहरेदार के २ नाम हैं-परिधिस्थः, परिचरः ॥ ४. 'पहनकर उतारे हुए कवच, या वस्त्रादि'के ४ नाम है-आमुक्तः, प्रतिमुक्तः, अपिनद्धः, पिनद्धः ॥ . . ५. 'कवच पहनकर युद्ध के लिए तैयार'के ५'नाम हैं-सन्नद्धः, व्यूहकङ्कटः, दंशितः, वर्मितः (+कवचित: ), सजः ॥ . ... ६. 'कवच'के ६ नाम हैं-सन्नाहः, वर्म ( - मन् , न), कङ्कटः, जगरः, कवचम् (पु न), दंशः (+दशनम् ), तनुत्रम् (+ तनुत्राणम् ), . माठी (स्त्री), उरश्छदः (+ त्वक्त्रम् ) ॥ ७. 'युद्ध में बाणादिसे रक्षार्थ पहने जानेवाले फौलाद के ४ नाम हैंनिचोलकः, कूर्यासः, वारबाणः, कञ्चुकः (२ पु न )॥ ८. 'उक्त फौलादी झूलको स्थिर रखने के लिए छाती पर कसी हुई पट्टी श्रादि'के २ नाम है-सारसनम् , अधिकाङ्गम् (+अधियाङ्गम् , धियाङ्गम् , अधिपाङ्गः, धिपाङ्गः । पु न)। ६. 'युद्ध में शिरकी रक्षाके लिए पहने जानेवाले फौलादी टोप'के ४ नाम हैं-शिरस्त्राणम्, शीर्षण्यम् , शिरस्कम् , शीर्षकम् (+खोलम् )॥ १०. 'युद्ध में पेटके रक्षार्थ पहने जानेवाले कवच विशेष के २ नाम हैं-. नागोदम् , उदरत्राणम् ॥ ११. 'युद्धमें जजोंके रक्षार्थ पहने जानेवाले कवच विशेष'के २ नाम हैबडात्राणम्, मत्कुणम् ॥ Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० अभिधानचिन्तामणिः श्वाहुत्राणं बाहुलं स्यारज्जालिका त्वङ्गरक्षणी। . जालप्रायाऽऽयसी स्या३दा युधीयः शस्त्रजीविनि ।। ४३३ ।। काण्डपृष्ठायुधिकौ च ४तुल्यौ प्रासिककौन्तिको। ५पारश्वधिकस्तु पारश्वधः परश्वधायुधः ।। ४३४ ॥ ६स्यु स्त्रिशिकशाक्तीकयाष्टीकास्तत्तदायुधाः । तूणी धनुर्भृद्धानुष्कः स्यात् ८काण्डीरस्तु काण्डवान् ॥ ४३५ ॥ कृतहस्तः कृतपुखः सुप्रयुक्तशरो हि यः। १०शीघ्रवेधी लघुहस्तो११ऽपराद्धेषुस्तु लक्ष्यतः ॥ ४३६॥ च्युतेषु१र१रवेधी तु दुरापात्या १. 'युद्धमें बाहुके रक्षार्थ पहने जानेवाले कवच विशेष'के २ नाम हैंबाहुत्राणम् , बाहुलम् ॥ . २. 'युद्ध में अङ्गरक्षार्थ पहने जानेवाले लोहेकी जालीके समान कवचविशेष'के ४ नाम हैं--जालिका, अङ्गरक्षणी, जालप्राया, आयसी ॥ ३. 'शस्त्र धारण द्वारा जीविका चलानेवाले'के ४ नाम हैं-आयुधीयः, शस्त्रजीवी (- विन् ), काण्डपृष्ठः, आयुधिकः ॥ .. ४. 'भाला चलानेवाले के २ नाम है-प्रासिकः, कौन्तिकः ॥ ५. 'फरसा चलानेवाले के ३ नाम है-पारश्वधिकः, पारश्वधः, पर: श्वधायुधः ॥ ६. 'तलवार, शक्ति (बी) तथा यष्टि चलानेवाले'का क्रमसे १-१ नाम है-नेत्रिशिकः, शाक्तीकः, याष्टीकः ॥ . ७. 'धनुष चलानेवाले या धारण करनेवाले के ३ नाम है-तूणी (- णिन् ।+निषङ्गी, - मिन् ), धनुर्भूत् ( यौ०-धनुर्धरः, धन्वी-न्विन् , धनुष्मान्-मन् ), धानुष्कः ॥ ८. 'बाणधारी'के २ नाम हैं-काण्डीरः, काण्डवान् (- वस् ) । ६. 'ठीक तरीके से बाण चलाये हुए योद्धा आदि'के २ नाम हैकृतहस्तः, कृतपुखः ।। १०. 'शीघ्रतासे लक्ष्य वेध करनेवाले'के २ नाम हैं-शीघ्रवेधी (धिन् ), लघुहस्तः ॥ ११. 'लक्ष्य वेधसे भ्रष्ट बाणवाले'का १ नाम है-अपराद्धेषुः ॥ १२. 'दूर तक लक्ष्य वेध करनेवाले के २ नाम हैं-दूरवेधी (धिन् ), दूरापाती (- तिन् )॥ Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'मणिप्रभा' व्याख्योपेतः काण्ड : ३ ] —१युधं पुनः । हेतिः प्रहरणं शस्त्रमस्त्रं ( स्यात् * ) २तच्चतुर्विधम् ॥ ४३७ ॥ मक्तं द्विधा पाणियन्त्रमुक्तं शक्तिशरादिकम् । अमुक्तं शस्त्रिकादि स्याद् यष्टधाद्यं तु द्वयात्मकम् ॥ ४३८ ॥ ३धनुश्चापोऽस्त्रमिष्वासः कोदण्डं धन्व कार्मुकम् । दुणाssसौ ४ लस्तकोऽस्यान्तरपूर्यं त्वर्तिरटन्यपि ॥ ४३६ ॥ ६मौर्वी जीवा गुणो गव्या शिक्षा बाणासनं द्रुणा । शिञ्जिनी ज्या च गोधा तु तलं ज्याघातवारणम् ॥ ४४० ॥ स्थानान्यालीढवैशाख प्रत्यालीढानि मण्डलम् । समपादं च १६१ १. 'श्रायुध, हथियार के ५ नाम हैं - श्रायुधम् ( पु न ), हेतिः, प्रहरणम्, शस्त्रम् ( न स्त्री ), अस्त्रम् ॥ २. ' उस श्रायुध' के ४ भेद हैं- १ - हाथ से छोड़े जानेवाली शक्ति (ब) आदि, २ – यन्त्र ( धनुष श्रादि ) से छोड़े जानेवाले बाण आदि, ३ – बिना फेके चलाये जानेवाले छुरा, कटार, तलवार आदि, ४– - फेंककर या हाथ से पकड़े हुए चलाये जाने वाली यष्टि ( छड़ी ) लाठी आदि । इस प्रकार प्रथम दो प्रकार के आयुधका नाम 'मुक्तम्' ( १ - पाणिमुक्तम्, २ यन्त्रमुक्तम् ), तृतीय प्रकार के आयुधका नाम 'श्रमुक्तम्' और ४ चतुर्थ प्रकारके आयुधका नाम 'मुक्तामुक्तम्' है । इस प्रकार आयुध ४ प्रकारके होते हैं | ३. ‘धनुष्, चाप' के ६ नाम है- धनुः पुनं । + धनुः, स्त्री), चाप: ( पु न ), श्रस्त्रम् कोदण्डम् ( २ पु नं ), धन्व (वन्, न ), (पुन) ॥ ४. ‘धनुष्के मध्यभाग ( जिसे मूठसे पकड़ा जाता है, उस भाग ) 'का १ नाम है- - लस्तकः ॥ ', ५. 'धनुष्के' अग्रभाग ( किनारेवाले भाग)' के २ नाम हैं - श्रर्तिः, अटनी ॥ ६. 'धनुष्की डोरी, तांत' के ६ नाम है – मौर्वी, जीवा, गुणः, गव्या (स्त्री न ), शिञ्जा, बाणासनम्, दुणा, शिञ्जिनी, ज्या ॥ ७. 'धनुष्की डोरीके श्राघातसे रक्षा के लिए कलाईपर बांधे जानेवाले चमड़े आदिके पट्ट' के २ नाम हैं- गोधा, तलम् (+तला स्त्री ) ॥ ८. ‘युद्ध के आसन-विशेषो' का पृथक-पृथक १ - १ नाम है - श्रालीम्, वैशाखम् (+ पु), प्रत्यालीढम् मण्डलम्, समपादम् ( सब न ) ॥ ऋकोष्ठान्तर्गतश्शब्दश्छन्दोभङ्गदोषवारणाय भया योजितः । (-नुष्, पु न । + धनुः–नु, इष्वासः ( + शरासनम् ), कार्मुकम्, द्रुणम्, आस: Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६२ अभिधानचिन्तामणिः -श्वेध्यं तु लक्षं लक्ष्यं शरव्यकम् ।। ४४१ ॥ • पाणे पृषत्कविशिखौ खगगार्धपक्षौ, काण्डाशुगप्रदरसायकपत्रवाहाः। पत्रीष्वजिह्मगशिलीमुखकङ्कपत्ररोपाः कलम्बशरमार्गणचित्रपुङ्खाः ॥ ४४२ ।। ३प्रक्ष्वेडनः सर्वलौहो नाराच एषणश्च सः। विमर्श-'आलीढ' नामके युद्धासनमें बाएँ पैरको श्रागेकी ओर कुछ झुका हुआ एवं दो हाथ विस्तृत करना चाहिए। 'वैशाख स्थानक' नामके युद्वासनमें कूटलक्ष्यका निशाना मारनेके लिए दोनों पैरोंको हाथभर विस्तृत करना चाहिए । दूरस्थ लक्ष्यको मारनेके लिए 'प्रत्यालीढ' नामके युद्धासनमें दहने पैरको पीछे झुका हुआ और बाएँ पैरको तिर्छा करना चाहिए । 'मण्डल'नामके युद्धासनमें दोनों पैरोंको विशेष रूपसे मण्डलाकार बहिर्भूत एवं तीक्ष्ण करना चाहिए । 'समपाद' नामके युद्धासनमें दोनों पैरोंको पूर्णतः स्थिर एवं सटा हुअा रखना चाहिए; ऐसा धनुर्वेदमें कहा गया है । १. 'लक्ष्य, निशाना'के ४ नाम हैं-वेध्यम् , (+स्त्री ); लक्षम् , लक्ष्यम् , शरव्यकम् (+स्त्री।+शरव्यम् । सब न)॥ शेषश्चात्र-वेध्ये निमित्तम् ।। २. 'बाण' के २० नाम हैं-बाणः (पुन), पृषत्कः, विशिखः, खगः, . गाघ्र पक्षः, काण्डः (पु न ), अाशुगः, प्रदरः, सायकः, पत्रवाहः पत्री (-त्रिन् ), इषुः (त्रि ), अजिझगः, शिलीमुख:, कङ्कपत्रः, रोपः, कलम्बः, शरः, मार्गणः, चित्रपुत ।। शषश्चात्र-बाणे तु. लक्षहा मर्मभेदनः । वारश्च वीरशकुश्च कादम्बोऽप्य स्त्रकण्टकः ।। ३. लोहेके बने हुए बाण'के ४ नाम है-प्रक्ष्वेडनः, सर्वलौहः, नाराचः, एषणः ॥ १. यद्धनुर्वेदः "अग्रतो वामपादं तु तीक्ष्णं चैवानुकुञ्चितम् । 'आलीढं' तु प्रकर्तव्यं हस्तद्वयसविस्तरम् ॥ पादौ सविस्तरौ कार्यों समहस्तप्रमाणतः । 'वैशाखस्थानके, वत्स ! कूट लक्ष्यस्य वेधने ॥ 'प्रत्यालीढे' तु कर्तव्यः सव्यस्तीक्ष्णोऽनुकुञ्चितः । . तिर्यग्वामः पुरस्तत्र दूरापाते विशिष्यते ॥ 'समपादे' समौ पादौ निष्कम्पौ च सुसंगतौ । मण्डले' मण्डलाकारौ बाह्यतीक्ष्णौ विशेषतः ॥” इति । Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मयंकाण्ड: ३] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः १६३ १निरस्तः प्रहितो रखाणे विषाक्ते दिग्धलिप्तकौ ॥ ४४३ ॥ ३वाणमुक्तिर्व्यवच्छेदो ४दीप्ति।गस्य तीव्रता। ५तुरप्रतलार्द्धन्दुतीरीमुख्यास्तु तद्भिदः ॥ ४४४ ॥ ६पक्षो वाजा पत्रणा तन्न्यासःखस्तु कतरी। तूणो निषङगस्तूणीर उपासङ्गः शराश्रयः ॥ ४४५ ॥ शरधिः कलापोऽप्य१०थ चन्द्रहासः करवालनिस्त्रिशकृपाणखगाः। तरवारिकौलेयकमण्डलामा प्रसिष्टिरिष्टी शेषश्चात्र--नाराचे लोहनालोऽस्त्रसायकः । १. 'धनुष आदिसे छोड़े (चलाये ) हुए बाण आदि हथियार के २ नाम है-निरस्तः, प्रहितः ।। २. 'विषमें बुझाये हुए बाण'के २ नाम हैं-दिग्धः, लिप्त क: (+लिप्तः)। ३. 'धनुषसे बाण छोड़ने के २ नाम है-बाणमुक्तिः, व्यवच्छेदः ॥ ४. 'बाणकी शीघ्र गति'का १ नाम है-दीतिः ॥ . ५. तुरप्रः, तद्बलम् , अर्धन्दुः, तीरी, आदि ('आदि' शब्दसे-दण्डासनम् , तोमरः, वावल्ल:, भल्लः, गरुडः, अर्धनाराचः, श्रादिका संग्रह है ) विभिन्न प्रकारके बाणोंके भेद हैं । . विमर्श- जिस बाणका धार (अग्रिम भाग ) छरेके समान हो, उसे 'क्षुरप्र', बो बाण चूहेकी पूंछके समान हो, उसे 'तबल'; जिस बाणका अग्रभाग प्राधे चन्द्रके समान हो, उसे 'अर्धेन्दु' और जिस वाणके पीछेवाले तीन भागमें शर (शरकण्डा, या काठादि ) और आगेवाले एक भाग ( चतुर्थाश )में लोहा लगा हो, उसे 'तीरी' कहते हैं । ६. 'बाणोंके : पिछले भागोमें लगाये हुए गीध-कङ्क-आदि पक्षियोंके पलके २ नाम है-पतः, वाजः ।। ७. 'उक्त पलोको बाणमें लगाने का १ नाम है-पत्रणा ॥ ८. 'पुल (धनुषंकी डोरी रखनेका स्थान ) के २ नाम हैं-पुखः (पुन) कर्तरी ।। . . ६. 'तरफस'के ७ नाम है-तूणः (त्रि ), निषङ्गः, तूणीरः, उपासङ्गः, शराभयः, शरधिः (पु । यौ०-इषुधि:, बाणधि:,..........), कलापः ।। १०. 'तलवार के ११ नाम है-चन्द्रहासः, करवाल:, निस्त्रिंशः, कृपाणः, खनः, तरवारिः (पु), कौक्षेयकः, मण्डलायः, असिः (पु), ऋष्टिः, रिष्टिः (२ पु स्त्री)। शेषधात्र--असिस्तु सायकः ।। भीगो विजयः शास्ता व्यवहारः प्रवाकरः। १३ १० चि० Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ अभिधानचिन्तामणिः - १ त्सरुरस्य मुष्टि: ।। ४४६ ॥ २प्रत्याकारः परीवारः कोशः खड्गपिधानकम् । ३ अडुनं फलकं चर्म खेटकाSSवरणस्फुराः || ४४७ ।। ४स्य मुष्टिस्तु संग्राहः ५क्षुरी छुरी कृपाणिका । शस्त्र्यसेर्धेनुपुत्र्यौ च पत्रपालस्तु साऽऽयता ॥ ४४८ ॥ ७दण्डो यष्टिश्च लगुडः पस्यादीली करवालिका । भिन्दिपाले सृगः १० कुन्ते प्रासो धर्मपालोऽक्षरो देवस्तीक्ष्णकर्मा दुरासदः ।। प्रसङ्गो रुद्रतनयो मनुज्येष्ठः शिवङ्करः । करपालो विशसनस्तीक्ष्णधारो विषाग्रजः ॥ धर्मप्रचारो धाराङ्गो धाराधरकरालिको 1. चन्द्रभासश्च शस्त्रः । १. 'तलवार की मूंठ' का . १ नाम है - रस: ( पु । यहां तलवारको उपलक्षण मानकर कटार, छड़ी आदिकी मूंठको भी ' त्सरुः' कहते हैं ) || २. 'तलवार ( कटार आदि ) की म्यान' के ४ नाम हैं - प्रत्याकारः, परीवारः, कोश (त्रि ), खड्गपिधानकम् ( + खड्गपिधानम् ) ॥ ३. ‘ढाल’के ६ नाम हैं— अड्डनम्, फलकम् ( + फरकम् । पुन ), वर्म (-न्), खेटकम् ? पुन ), आवरणम्, स्फुर : (+ स्फुरकः ) ॥ ४. ' ढालकी मूंठ' का १ नाम है - संग्राहः ।। ५. 'छुरी' के ६ नाम है-तुरी ( + क्षुरिका ), ( + कृपाणी ), शस्त्री, असिधेनुः, असिपुत्री ) ॥ छुरी, कृपाणिका शेषश्चात्र - अथ क्षुर्यस्त्री कोशशायिका । पत्रञ्च धेनुका । ६. 'बड़ी छुरी, कटार'का १ नाम है - पत्रपालः ॥ शेषश्चात्र – पत्रपाले तु हुलमातृका । कुट्टन्ती पत्रफला च । ७. 'दण्डा, छड़ी, लाठी ' का क्रमशः १-२ नाम है - दण्ड: (पुन), य: ( पु स्त्री ), लगुडः ॥ ८. 'एक तरफ धारवाली छोटी तलवार, या गुप्ती' के २ नाम हैंईली, करवालिका ( + तरवालिका ) ॥ ६. ' फेंक कर चलाये जानेवाला बड़ा डण्डा लगा हुआ एक प्रकारका बरछा या भाला' के २ नाम हैं - भिन्दिपालः, सृगः ॥ १०. 'भाला ( हाथमें पकड़े हुए ही चलाये जानेवाला फल लगा हुआ अस्त्र - विशेष' के २ नाम हैं—कुन्तः, प्रासः ॥ Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६५ मयंकाण्डः ३] 'मणिप्रभा व्याख्योपेतः -१ऽथ द्रघणो घनः॥ ४४६ ॥ मुद्गरः स्यात् २कुठारस्तु परशुः पशुपवधौ । परश्वधः स्वधितिश्च ३परिषः परिघातनः ॥ ४५० ॥ ४सर्वला तोमरे पशल्यं शौ ६शूले त्रिशीर्षकम् । ७शक्तिपट्टिसदुःस्फोटचक्राद्याः शखजातयः ॥ ४५१॥ पखुरली तु श्रमो योग्याऽभ्यास१. 'मुद्गर' के ३ नाम हैं-द्रघणः, घनः, मुद्गरः (पु स्त्री)॥ २. 'फरसाके ५ नाम हैं-कुठार: (पु स्त्री), परशुः, पशु, पश्वधः, परश्वधः, स्वधितिः, (५ पु)॥ ____३. 'लोहा मढ़ी हुई लाठी'के २ नाम हैं-परिघः (+पलिघः ), परिघातनः ॥ ४. 'तोमर ( भालेके समान एक अस्त्र-विशेष ) के २ नाम है-सर्वला, तोमरः (पु न )॥ ५. 'भाला, काटा, कील'के २ नाम हैं-शल्यम् ( पु न ), शकुः (पु)॥ ६. 'त्रिशूल'के २ नाम हैं-शूलम् (पु न । त्रिशूलम् ), त्रिशीर्षकम् ।। ___७. 'शक्ति ( सांग ), पटिस (पटा), दुःस्फोट और चक्र श्रादिका क्रमश: १-१ :नाम है-शक्तिः, पट्टिस: (+ पटिशः), दुःस्फोटः, चक्रम् (पु न), शक्ति श्रादि ( श्रादि शन्दसे- शतघ्नी, महाशिला, भुषुण्डी), (+भुशुण्डी), चिरिका, वराहकर्णकः, इत्यादिका संग्रह है ) ये शस्त्र-जातियाँ अर्थात् शस्त्रों के भेद हैं। शेषश्चात्र-अथ शक्तिः कासूमहाफला ।। अष्टतालाऽऽयता सा च पट्टिसस्तु खुरोपमः । लोहदण्डस्तीक्ष्णधारों दुःस्फोटाराफलौ समौ ।। चक्रं.. तु . वलयप्रायमरसञ्चितमित्यपि । शतघ्नी तु चतुस्ताला लोहकण्टकसञ्चिता ।। अयःकएटकर्सच्छन्ना शतघ्येव महाशिला । मुषुण्डी स्याहारुमयी: वृत्तायःकोलसञ्चिता ॥ कणयो लोहमात्रोऽथ चिरिका तु हुलाग्रका । वराहकर्णकोऽन्वर्थः फल्पत्राग्रके हुलम् ।। मुनयोऽस्त्रशेखरंच ८. 'शस्त्र-चालनका अभ्यास (चांदमारी) करने के ४ नाम है-खुरली, श्रमः, योग्या, अभ्यासः ॥ Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणि: - १स्तद्भः खलूरिका | २सर्वाभिसारो सर्वौघः सर्वसम्न्नहनं समाः ॥ ४५२ ।। ३ लोहाभिसारो दशम्यां विधिर्नोराजनात्परः । ४ प्रस्थानं गमनं व्रज्याऽभिनिर्याणं प्रयाणकम् ॥ ४५३ ॥ यात्राऽभिषेणनं तु स्यात् सेनयाऽभिगमो रिपौ । ६ स्यात् सुहृद्बलमासारः ७प्रचक्रं चलितं बलम् ॥ ४५४ ॥ ८प्रसारस्तु प्रसरणं तृणकाष्ठादिहेतवे । अभिक्रमो रणे यानमभीतस्य रिपून् प्रति ॥ ४५५ ॥ - १६६ शेषश्चात्र - शस्त्राभ्यास उपासनम् । १. 'शस्त्राभ्यास ( चांदमारी) करनेके मैदान का २ नाम है· खलूरिका ॥ २. ‘सब सेनाओके साथ आक्रमण या युद्धार्थ प्रस्थान करने के ३ नाम है—– सर्वाभिसारः, सर्वौघः, सर्वसन्नहनम् ॥ ३. ‘विजया दशमी के दिन दिग्विजय यात्रा के पहले, शान्त्वक छिड़कने के बाद किये जानेवाले ( शस्त्रों का प्रदर्शन, रूप ) विधि विशेष' का १ नाम है— लोहाभिसारः ' ।। विमर्श - अमरसिहने तो दिग्विजय यात्राके पूर्व शान्त्युदक के छिड़कने का ही नाम 'लोहाभिसार' कहा है. ! यथा - लोहाभिसारोऽस्त्रभृतां राज्ञां नीराजनविधिः ( श्रम० २||६४ ) || गमनम्, व्रज्या, ५. 'सेना के साथ शत्रु पर चढ़ाई करने' का १ नाम है- अभिषेणनम् ॥ ६. 'मित्रबल' का १ नाम है - श्रासारः ।। ४. 'यात्रा, प्रस्थान करने के ६ नाम हैं - प्रस्थानम्, अभिनिर्याणम्, प्रयाणकम् (+ प्रयाणम् ), यात्रा || ७. 'प्रस्थान की हुई सेनाका १ नाम है - प्रचक्रम् ॥ ८. 'सेना से बाहर तृण-जल श्रादिके लिए जाने का १ नाम हैप्रसारः । ( अमर सिंहने " श्रासारः, प्रसारः " दोनोंको एकार्थक माना है ) (THRO RICE & ) 11 ६. 'निर्भय होकर युद्ध में शत्रुके प्रति श्रागे बढ़ने का १ नाम अभिक्रमः ॥ १. तदुक्तम् - " लोहाभिसारस्तु विधिः परो नीराजनान्नृपैः । दशम्यां दंशितैः कार्यः ॥ इति ॥ Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - १६७ मयंकाण्ड: ३] मणिप्रभा'व्याख्योपेतः १अभ्यमियोऽभ्यमित्रीयोऽभ्यमित्रोणोऽभ्यरि व्रजन् । २स्यादुरस्वानुरसिल ३ऊर्जस्व्यूर्जस्वलौ समौ ॥ ४६॥ ४सांयुगीनो रणे साधुजेता जिष्णुश्च जित्वरः। ६जय्यो यः शक्यते जेतुं जेयो जेतव्यमात्रके ॥ ४५७ ॥ प्वैतालिका बोधकरा अर्थिकाः सौखसुप्तिकाः। . घाण्टिकाश्चाक्रिकाः १०सूतो वन्दी मङ्गलपाठकः ।। ४५८ ।। ११मागधो मगधः १२संशप्तका युद्धाऽनिवर्तिनः। १३नग्नः स्तुतिव्रत १. 'शत्रुके सामने युद्धार्थ बढ़नेवाले'के ३ नाम हैं-अभ्यमित्रः, अभ्यमित्रीयः, अभ्यमित्रीण: ॥ : २. 'बलवान् के २ नाम है-उरस्वान् (- स्वत् ) उरपिलः ॥ ३. 'अधिक बलवान्के २ नाम हैं-ऊर्जस्वी (- स्विन् ), ऊर्जस्वला (+ऊर्जस्वान् , - स्वत् ) ॥ . . . ४. 'युद्ध में निपुण'का १ नाम है-सांयुगीनः ॥ ५. 'विजयो के ३ नाम हैं-जेता (- तृ), जिष्णुः, जिस्वरः ॥ शेषश्चात्र-जिष्णौ तु विजयी जैत्रः । ६. 'जिसे जीता जा सके उसका १ नाम है-जय्यः ।। ७. 'जीतने योग्य ( जो भले ही जीता न जा सके, किन्तु जिसका जीतना उचित हो उस'का १ नाम है-जेयः ॥ . ८. वैतालिक (राजाओंकी स्तुति करते हुए प्रातःकाल जगानेवाले वन्दिगण) के ४ नाम हैं-वैतालिकाः, बोधकराः, अर्थिकाः, सौखसुप्तिकाः . (+सौखशायनिकाः, सौखशाय्यकाः)॥ . .. ६. 'देवता आदिके आगे घण्टा बजाकर स्तुति करनेवालों के २ नाम है-चाण्टिकाः, चाक्रिकाः ।। विमर्श-“वैलालिकाः,....'चाक्रिका:" शब्दोंमें बहुत्वकी अपेक्षासे बहुवचनका प्रयोग होनेसे उन शब्दोंका प्रयोग ए० व० में भी होता है। १०. 'मङ्गल पाठ करनेवाले बन्दी के ३ नाम है-सूतः, क्दी (-न्दिन् ), मङ्गलपाठकः ॥ ११. 'प्रशंसाकर याचना करनेवाले के २ नाम है-मागधः, मगधः ।। १२. 'युद्धसे विमुख होकर नहीं लौटनेवालों के २ नाम हैं-संशप्तकाः, युद्धानिवर्तिनः (- तिन् । यहाँ भी ब० व. बहुत्वापेक्ष ही है, अतः ए० व. भी होता है )॥ १३. 'स्तुतिमात्र करनेवाले'के २ नाम हैं-नग्नः, स्तुतिव्रतः ।। Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणिः - १ स्तस्य प्रन्थो भोगावली भवेत् ॥ ४५६ ॥ २प्राणः स्थाम तरः पराक्रमबलद्युम्नानि शौय्यजसी शुष्मं शुष्म च शक्तिरूर्ज्जसहसी ३युद्धं तु सङ्ख्य कलिः । संग्रामाऽऽहवसंप्रहारसमरा जन्यं युदायोधनं संस्फोटः कलहो मृधं प्रहरणं संयद्रणो विग्रहः ।। ४६० ।। द्वन्द्वं समाघातसमाह्वयाभिसंपातसंमर्द समित्प्रघाताः । आस्कन्दनाजिप्रधनान्यनीकमभ्यागमश्च प्रविदारणं च ॥ ४६१ ॥ समुदायः समुदयो राटिः समितिसङ्गरौ । अभ्यामर्दः सम्परायः समीकं साम्परायिकम् ॥ ४६२ ॥ श्राक्रन्दः संयुगं चा४थ नियुद्धं तद् भुजोद्भवम् । ५ पहाडम्बरौ तुल्यौ ६तुमुलं रणसङ्कुलम ॥। ४६३ ॥ . नासीरं त्वग्रयानं स्याददवमर्दस्तु पीडनम् । १६८ १. 'उक्त नग्न के ग्रन्थ'का १ नाम है - भोगावली || २. 'बल, सामर्थ्य' के १३ नाम हैं - प्राणः, स्थाम. ( - मन् ), तर: (−रस् । २ न ), पराक्रमः, बलम् (पुन), द्युम्नम् (+ द्रविणम्'), शौर्य्यम्, श्रोज: ( - जस्, न ), शुष्मंम्, शुष्म ( -ष्मन्, न ), शक्तिः, ऊन्जे: ( पु स्त्री । + ऊर्क – र्ज · ), सह: (-स्, न ) ) ॥ ३. 'लड़ाई, युद्ध'के ४१ नाम है – युद्धम्, सङ्खयम् ( पु न ), कलिः ( पु ), संग्राम:, आहव:, सम्प्रहारः, समर:, जन्यम् ( २ पुन ), युत् (-धू), आयोधनम्, संस्फोटः (+ संस्फेट:, संफेट: ), कलहः, मृधम्, प्रहरणम्, संयंत् ( न । + स्त्री), रण: ( पुन ), विग्रहः, द्वन्द्वम्, समाघातः, समयः, अभिसम्पातः, संमर्दः, समित्, प्रघातः, आस्कन्दनम्, आजि: (स्त्री), प्रधनम्, श्रनीकम्, अभ्यागमः, प्रविदारणम्, समुदायः, समुदयः, राटिः 'स्त्री ), समिति:, सङ्गरः, अभ्यामर्दः, सम्परायः ( पु न ), समीकम्, साम्परायिकम्, श्राक्रन्दः, संयुगम् ( पु न ) ॥ ४. 'कुस्ती, मल्लयुद्ध, दंगलका १ नाम है - नियुद्धम् ॥ ५. 'नगाड़ा नामक बाजा' के २ नाम हैं- पटह:, आडम्बरः ( पु न ) ॥ 'घनघोर युद्ध' के २ नाम हैं—तुमुलम्, रणसङ्कुलम् ॥ ६. ७. 'आगे चलनेवाली सेना, या - - सेनाका आगे चलने' के २ नाम हैंनासीरम् (स्त्री न ), अग्रयानम् ॥ ८. ‘सेनाके द्वारा पीड़ित ( शत्रुपक्षको तङ्ग) करने' के २ नाम हैंभवमर्दः, पीडनम् ॥ Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६६ मयंकाण्डः ३] मणिप्रभा'व्याख्योपेतः १प्रपातस्त्वभ्यवस्कन्दो धाट्यभ्यासादनं च सः ॥ ४६४ ।। २तद्रात्रौ सौप्तिकं ३बीराशंसनं त्वाजिभीष्मभूः। ४नियुद्धभूरक्षवाटो मोहो मूच्छो च कश्मलम् ।। ४६५ ।। ६वृत्ते भाविनि वा युद्धे पानं स्याद्वीरपाणकम् । ७पलायनमपयानं संदावद्रवविद्रवाः ॥४६६ ।। अपक्रमः समुत्प्रेभ्यो द्रावोऽथ विजयो जयः। हपराजयो रणे भङ्गो १०डमरे डिम्बविप्लवौ ॥ ४६७ ॥ ११वैरनिर्यातनं वैरशुद्धिवैरप्रतिक्रिया। १२बलात्कारस्तु प्रसंभ हठो१३ऽथ स्खलितं छलम् ॥ ४६८ ।। १. 'कपट से अाक्रमण करने (छापा मारना)के ४ नाम हैं-प्रपात:, अभ्यवस्कन्दः (+अवस्कन्दः), धाटी, अभ्यासादनम् ।। २. 'रातमें सोने के बाद छलसे आक्रमण करने का १ नाम है-सौप्तिकम् ।। ३. 'युद्ध को भयङ्कर भूमि'के २ नाम है-वीराशंसनम् (+वीरासंशनी), आजिभीष्मभूः ॥ ४. 'अखाड़ा, मल्लोके युद्ध करनेकी भूमि'के २ नाम हैं-नियुद्धभूः, भक्षवाटः॥ ५. ' मूर्छा'के ३ नाम है-मोहः, मूर्छा, कश्मलम् ॥ ६. 'युद्ध के पहले या बादमें योद्धाओंके मद्यपान.करने'का १ नाम हैवीरपाणकम् (+ वीरपाणम् )॥ ७, 'भागने'के ६ नाम हैं-पलायनम् , अपयानम् , संदावः, द्रवः, विद्रवः, अपक्रमः, संद्रावः, उद्ररवः, प्रद्रावः (+नशनम् )॥ ८. 'विजय, जीत'के. २ नाम है-विजयः, जयः॥ ६. 'हार, पराजय'का १ नाम है-पराजयः ।। १०. 'लूटपाट, या-अनुचित युद्ध' के ३ नाम हैं-डमरः, डिम्बः (पु न ), विप्लवः ।। शेषश्चात्र-स्पाच्छगाली तु विप्लवे । ११. 'विरोध का बदला लेने (प्रतिकार करने ) के ३ नाम हैं-वैरनिर्यातनम्, वैरशुद्धिः वैरप्रतिक्रिया ।। . १२. 'बलात्कार करने के ३ नाम हैं-बलात्कारः, प्रसभम् (न ।+-पु न), हठः॥ __१६. 'छल ( युद्धके नियमको भङ्ग करना )के २ नाम हैं---स्खलितम्, छलम् ॥ Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रभिवानचिन्तामणिः १ परापर्यभितो भूतो जितो भग्नः पराजितः । २पलायितस्तु नष्टः स्याद् गृहीतदिक् तिरोहितः ।। ४६६ ॥ ३ जिताहवो जितकाशी ४प्रस्कन्नपतितौ समौ । चारः कारा गुप्तौ ५बन्द्यां प्रहकः प्रोपतो ग्रहः ॥ ४७० || ६चातुर्वर्ण्यं द्विजक्षत्रवैश्यशूद्रा नृणां भिदः । ७ब्रह्मचारी गृही वानप्रस्थो भिक्षुरिति क्रमात् ॥ ४७१ ॥ चत्वार आश्रमापस्तत्र वर्णी स्याद् ब्रह्मचारिणि । ज्येष्ठाश्रमी गृहमेधो गृहस्थः स्नातको गृही ॥। ४७२ ।। १० वैखानसो वानप्रस्थो ११ भिक्षुः सांन्यासिको यतिः । कर्मन्दी रक्तवसनः १२ परिव्राजकतापसौ ॥ ४०३ ॥ पाराशरी पारिकाङ्क्षी मस्करी पारिरक्षकः । - २०० . १. 'पराजित, हारे हुए' के जितः, भग्नः, पराजितः ॥ २. ‘भागे हुए’के ४ नाम है - पलायितः, नटः, गृहीतदिक् (-दिश् ), तिरोहितः ॥ ६ नाम है - पराभूतः परिभूतः, श्रभिभूतः, ३. 'युद्ध में विजय प्राप्त किये हुए' के २ नाम है-जिताहवः, जितकाशी ( - शिन् ) । ४. 'गिरे हुए' के २ नाम हैं - प्रस्कन्नः पतितः ।। ५. 'जेल' के ३ नाम हैं -चार : ( + चारकः ), कारा, गुप्तिः ॥ ६. ‘बलवान् के हाथमें दिये गये राजकुमार आदि, या बलपूर्वक लायी यी स्त्री' के ४ नाम हैं—बन्दी, ग्रहकः, प्रग्रहः, उपग्रहः ॥ ७. द्विज:, क्षत्रः, वैश्यः, शूद्रः ( ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र ये ४ मनुष्यों के जाति (वर्ण) - विशेष हैं, इन चारोंके समुदायका १ नाम है'चातुर्वर्ण्यम्' || ८. ‘ब्रह्मचारी (-रिन् ), गृही ( - हिन् ), वानप्रस्थः, भिक्षुः (ब्रह्मचर्य्यं, गृहस्थ, वानप्रस्थ तथा संन्यास ) – ये ४ क्रमशः उन ब्राह्मणादिके आश्रम है'आश्रम:' ( पुन ) है || ६. ‘'ब्रह्मचारी' के २ नाम हैं - वर्णी ( - र्णिन् ), ब्रह्मचारी (-रिन् ) ॥ १०. 'गृहस्थ' के ५ नाम हैं - ज्येष्ठाभ्रमो (-मिन् ), गृहमेधं । (-धिन् ), गृहस्थः, स्नातकः, गृही ( - हिन् ) । ११. 'वानप्रस्थ' के २ नाम हैं – वैखानसः, वानप्रस्थः ॥ • १२. 'संन्यासी' के ११ नाम हैं - भिक्षुः, सांन्यासिकः ( + संन्यासी, - सिन्, ) यतिः, कर्मन्दी ( - न्दिन् ), र वसनः परिव्राजकः (+परिव्राट्, -जू ), Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मयंकाण्डः ३] मणिप्रभा व्याख्योपेतः २०१ श्स्थाण्डिलः स्थण्डिलशायी यः शेते स्थण्डिले व्रतात् ।। ४७४ ।। २तपःक्लेशसहो दान्तः ३शान्तः श्रान्तो जितेन्द्रियः। -:४अवदानं कर्म शुद्धं ब्राह्मणस्तु त्रयीमुखः ॥ ४७५ ।। भूदेवो वाडवो विप्रों द्वयमाभ्यां जातिजन्मजाः । वर्णज्येष्ठः सूत्रकण्ठः षटकर्मा मुखसंभवः ॥ ४७६ ॥ वेदगर्भः शमीगर्भः सावित्रो मैत्र एतसः। '६वटुः पुनर्माणवको ७भिक्षा स्याद् प्रासमात्रकम् ॥ ४७७ ॥ उपनायस्तूपनयो वटूकरणमानयः । हअग्नीन्धनं त्वग्निकार्यमाग्नीध्रा चाग्निकारिका ।। ४७८ ।। १०पालाशो दण्ड आपाढो व्रते ११राम्भस्तु वैणवः । तापसः (+तपस्वी,-स्विन् ), पाराशरी (-रिन् ), पारिकाक्षी (-विक्षन् ), -मस्करी (-रिन् ), पारिरक्षिकः ।। १. 'व्रत-पालनार्थ बिछौनेसे हीन भूमिपर .सोनेवाले के २ नाम हैंस्थाखिलः, स्थण्डिलशायी (-यिन् )। २. 'तपस्याके कष्टको सहन करनेवाले'के २ नाम हैं-तपक्लेशसहः, दान्तः ।। - ३. 'जितेन्द्रिय' के ३ नाम हैं-शान्तः, श्रान्तः, जितेन्द्रियः ॥ ४. , शुद्ध ( उच्च कर्म'का १. नाम है-अवदानम् ॥ . ५. 'ब्राझण' के २० नाम हैं-ब्राह्मणः, त्रयीमुखः, भूदेवः (+भूसुरः ), वाडवः, विप्रः, द्विजातिः, द्विजन्मा (-न्मन् ), द्विजः, अग्रजातिः, अग्रजन्मा (-न्मन् ), अग्रजः, वर्णज्येष्ठः, सूत्रकण्ठः, षटकर्मा (-मन् ), मुखसम्भवः, वेदगर्भः शमीगर्भः, सावित्रः, मैत्रः, एतसः ॥ ____६. 'मौजी मेखला धारण किये हुए ब्रह्मचारी'के २ नाम हैं—वटुः, माणवकः॥ ७. भिक्षम (एक प्रासके. प्रमाणमें ब्रह्मचारीको गृहस्थसे मिलनेवाला अन )का १. नाम है-भिक्षा ॥ ८. 'यशोपवीत संस्कार के ४ नाम है-उपनायः, उपनयः वटूकरणम् , आनयः (+व्रतबन्धनम् , मौजीबन्धनम् ) ॥ ६. 'अग्निहोत्र'के ४ नाम हैं - अग्नीन्धनम् , अग्निकार्यम् , आग्नीघ्रा (+ श्राग्नीधी ), अग्निकारिका ॥ १०. 'ब्रह्मचारीके पलाशके दण्ड के २ नाम है-पालाशः, श्राषाढः ॥ ११. 'ब्रह्मचारीके बांसके दण्ड'के २ नाम हैं-सम्भः, वैणवः ।। Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०२ अभिधानचिन्तामणिः १बैल्वः सारस्वतो रौच्यः स्पैलवस्त्वौपरोधिकः॥ ४७६ ।। ३आश्वत्थस्तु जितनेमिटरोदुम्बर उलूखलः। ५जटा सटा ६वृषी पीठं ७कुण्डिका तु कमण्डलुः ॥ ४८० ॥ श्रोत्रियश्छान्दसो यष्टा त्वादेष्टा स्याद् मखे व्रती। याजको यजमानश्च १०सोमयाजी तु दीक्षितः ॥ ४८१ ॥ ११इज्याशीलो यायजूको १२यज्वा स्यादासुतीबलः। १. 'ब्रह्मचारीके बेलके दण्ड'के ३ नाम हैं-बेल्वः, सारस्वतः, रौच्यः॥ २. ब्रह्मचारीके पीलु (वृक्ष-विशेष )के । दण्ड'के २ नाम हैं.-पैलवः, औपरोधिकः॥ ३. 'ब्रह्मचारीके पीपलके दण्ड'के २ नाम हैं-आश्वत्थः, जितनेमिः ।। ४. 'ब्रह्मचारीके गूलरके दण्ड'के २ नाम हैं-औदुम्बरः, उलूखलः ।। विमर्श-इस ग्रन्थकी 'स्वोपजवृत्ति में स्पष्ट उल्लेख नहीं होनेपर भी "ब्राह्मणजातीय ब्रह्मचारी का दण्ड पलाश या बांसका, क्षत्रियजातीय ब्रह्मचारीका दण्ड बेल या पीलुका और वैश्यजातीय ब्राह्मणका दण्ड पीपल या गूलरका होता है" ऐसा स्वरसतः प्रतीत होता है; क्योंकि वहींपर ( स्वोपज्ञ वृत्ति में ही) लिखा है कि"मनुस्तु–'ब्राह्मणो बैल्वपालाशौ क्षत्रियो वाटखादिरौ। .. पैलवौदुम्बरौ वैश्यो दण्डानहन्ति धर्मतः ॥' इत्याह" अर्थात् 'मनुने तो-ब्राह्मण ब्रह्मचारी बेल या पलाशका, क्षत्रिय ब्रह्मचारी बड़ या खैर ( कथा ) का और वैश्य .ब्रह्मचारी पीलु या गूलरका दण्ड धर्मानुसार ग्रहण करें ऐसा कहा है ।। ५. 'जटा'के २ नाम हैं-जटा, सटा ॥ ६. 'तपस्वियोंके आसन'के २ नाम हैं---वृषी, पीठम् ।। ७. 'तपस्वियोंके कमण्डलु'के २ नाम हैं-कुण्डिका, कमण्डलुः (पु न)॥ ८. 'वेदपाठी के २ नाम है-श्रोत्रियः, छान्दसः ।। ६. 'यजमान, यज्ञकर्ता'के ४ नाम हैं-यष्टा, आदेष्टा ( २-ष्ट ), याजकः, यजमानः॥ १०. 'यज्ञमें दीक्षित'के २ नाम हैं-सोमयाजी (-जिन् ), दीक्षितः ।। ...१२. 'सदा यज्ञ करनेवाले'के २ नाम है-इज्याशील:, यायजूकः ॥ १२. 'विधिपूर्वक यज्ञ किये हुए'के २ नाम हैं-यज्वा (-ज्वन् ) श्रासुतोबलः ।। Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०३ मयंकाण्ड: ३] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः १सोमपः सोमपीथी स्यात् २स्थपतिर्गी:पतीष्टिकृत् ॥ ४८२ ॥ ३सर्ववेदास्तु सर्वस्वदक्षिणं यज्ञमिष्टवान् । ४यजुर्षिध्वर्यु ग्विद् होतोद्गाता तु सामवित् ॥ ४८३ ।। ७यझो यागः सवः सत्रं स्तोमो मन्युर्मखः क्रतुः। संस्तरः सप्ततन्तुश्च विवानं बहिरध्वरः ॥ ४८४।। अध्ययनं ब्रह्मयज्ञः स्याहे वयज्ञ आहुतिः। होमो होत्रं षषटकारः १०पितृयज्ञस्तु तर्पणम् ॥ ४८५ ॥ तच्छ्राद्धं पिण्डदानं च ११नृयज्ञोऽतिथिपूजनम्। १२भूतयज्ञो बलिः १३पञ्च महायज्ञा भवन्त्यमी ॥४८६॥ १. 'सोमपान करनेवाले के २ नाम हैं-सोमपः, सोमपीथी (-थिन् ) ॥ २. 'बृहस्पतियज्ञ करनेवाले'के २ नाम हैं-स्थपतिः, गीष्पतीष्टिकृत् ॥ ३. 'सम्पूर्ण धन दान करके यज्ञ करनेवाले'का १ नाम है-सर्ववेदाः (-दस्)॥ ४. 'अध्वर्यु'के २ नाम है-यजुर्वित् (-विद् ), अध्वर्युः ॥ ५. 'होता'के २ नाम है-ऋग्वित् (-ग्विद् ), होता (-तृ)। ६. 'उद्गाता'के २ नाम हैं-सामवित् (-विद् ), उद्गाता (-1 )॥ ५. 'यज्ञ'के १३ नाम हैं-यज्ञः, यागः, सवः, सत्रम् , स्तोमः, मना. (पु), पखः, ऋतुः (पु), संस्तरः, सप्ततन्तुः (पु), वितानम् ( पु न ), बहिः (-हिंस , न ), अध्वरः॥ ८. 'ब्रह्मयज्ञ (वेदादिके स्वाध्याय ) के २ नाम हैं-अध्ययनम् , ब्रह्मयज्ञः॥ ६. 'देवयंश ( अग्निमें मन्त्रपूर्वक हवन करने ) के ५ नाम हैं-देवयज्ञः, आहुतिः, होमः, होत्रम् , वषटकारः॥ १०. 'पितृयज्ञ (तर्पण, भाद्ध-पिण्डदान आदि करने ) के ४ नाम हैंपितृयज्ञः, तर्पणम् , भाद्धम् (पु न ), पिण्डदानम् ।। ११. 'नृयश (अतिथि, अभ्यागतके भोजनादिसे सत्कार करने ) के २ नाम. है-नृयज्ञः, अतिथिपूजनम् ।। १२. 'भूतयज्ञ (कौवे, कुत्ते आदिके लिए बलि देने )के २ नाम हैंभूतयज्ञः, बलिः (पु स्त्री)। १३. 'इन ब्रह्मयज्ञ, देवयश, पितृयज्ञ, नृयज्ञ और भूतयज्ञ)को 'पञ्चमहायज्ञ कहते हैं । 'महायशाः ॥ Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०४ अभिधानचिन्तामणिः पौर्णमासश्च दर्शश्च यज्ञौ पक्षान्तयोः पृथक् ।। २सौमिकी दीक्षणीयेष्टि३र्दीक्षा तु व्रतसंग्रहः ॥ ४८७ ॥ ४वृतिः सुगहना कुम्बा ५वेदी भूमिः परिष्कृता।। ६स्थण्डिलं चत्वरं चान्याण्यूपः स्याद् यज्ञकी लकः ॥ ४८८ ॥ चषालो यूपकटके यूपको घृतावनौ। १०यूपाप्रभागे स्यात्तर्मा११रणिनिमन्थदारुणि ॥ ४८६ ॥ १२स्युदक्षिणाऽऽहवनीयगाईपत्यास्त्रयोऽग्नयः । १३इदमग्नित्रयं त्रेता १४प्रणीतः संस्कृतोऽनलः ।। ४६० ॥ १५ऋक सामिधेनी धाय्या च समिदाधीयते यया। १. 'पूर्णिमा तथा अमावस्याको किये जानेवाले यज्ञों का क्रमशः १-१ नाम है-पौर्णमासः, दर्शः॥ २. 'सोमसम्बन्धी यश या जिसमें सोमपान किया जाय, उस यज्ञ के “२ नाम हैं-सौमिकी, दीक्षणोयोष्टः ॥ __३. दीक्षा ( यशार्थ शास्त्र-विहित नियमके पालन के २ नाम हैदीक्षा, व्रतसग्रहः ।। . . ४. 'यज्ञभूमिके चारों ओर बनाये गये सघन घेरे'का १ नाम हैकुम्बा ॥ ५. 'यज्ञार्थ साफ-सुथरी की हुई भूमि'का १ नाम है-वेदी ॥ . ६. 'यज्ञार्थ साफ-सुथरी नहीं की हुई भूमि के २ नाम हैं-स्थण्डिलम् , चत्वरम् ।। ___७. 'यशमें वध्य पशुको बांधे जानेवाले खूटे'के २ नाम है-यूपः (पु ।+ पु न), यशकीलकः ॥ ८. 'बढ़ईके द्वारा यूपके ऊपर रचित. वलयाकृति'का १ नाम है“चषालः (पु न )॥ ६. 'यूपके ऊपर घीके निषेकके स्थानका १ नाम है-यूपकर्णः ।। १०. 'यूपके अग्रिम भाग'का १ नाम है-तर्म (-मन् , न ।+पु न)। ११. 'यज्ञमें जिस काष्ठको रगड़कर अग्नि उत्पन्न करते हैं, उस काष्ठका १ नाम है-अरणिः (पु स्त्री)॥ १२. 'अग्निके ३ भेद-विशेष हैं-दक्षिणः, आहवनीयः, गार्हपत्यः ॥ १३. 'उक्त तीनों अग्नि'का १ नाम है-ता ॥ १४. 'यज्ञमें मन्त्रसे संस्कृत अग्नि'का १ नाम है-प्रणीतः ।। १५. 'यज्ञमें जिस ऋचा (ऋग्वेदके मन्त्र )से समिधाको अग्निमें रखा बाय, उस ऋचा'के २ नाम हैं-सामिधेनी, धाय्या ।। Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मयंकाण्डः३] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः समिदिन्धनमेधेष्यतर्पणैधांसि भस्म तु ॥ ४६१ ॥ स्याद् भूतिर्भसित रक्षा क्षारः ३पात्रं नुवादिकम् । ४नुवः लुगपधरा सोपभृक्षज्जुहूः पुनरुत्तरा ॥४२॥ ७ध्रुवा तु सर्वसंज्ञार्थ यस्यामाज्यं निधीयते।। १. 'समिधा (हवनकी लकड़ी) के ६ नाम हैं-समित् (-मिध ), इन्धनम् , एषः, इध्मम् (न ।+पु न ), तर्पणम्, एधः (धस , न)॥ . २. 'राख, भस्म'के ५ नाम है-भस्म (स्मन् , न ), भूतिः, भसितम्,. रक्षा, क्षारः।। ३. 'यस सम्बन्धी सुवा आदि पात्रो'का १ नाम है-पात्रम् ॥ ___४. 'सुवा ( यशमें हवनका घृत जिससे छोड़ा जाता है, उस पात्रविशेष ) के २ नाम हैं-सुवः, सक् (-च , स्त्री)॥ . विमर्श- “यद्यपि बाहुमात्र्यः सनः पाणिमात्रपुष्करास्वाविला हूँ, समुखप्रसेका मूलदण्डा भवन्ति" तथा "अरस्निमात्रः सवोऽङ्गष्ठपर्ववृत्तपुष्करः" (का० औ० स० १ । ३ । ३८-३६) इन 'कात्यायन श्रौतसूत्रोंके अनुसार 'सवः और सक'-ये दोनों यज्ञपात्र परस्पर भिन्न होनेसे पर्यायवाचक नहीं है, तथापि इन दोनों ही पात्रोंसे हवनकार्य (अग्निमें घृताहुति-दान ) किये जानेके कारण यहां दोनोंको सामान्यतः पर्याय मान लिया गया है। उनमें "खादिरः संवः" (का० औ० सू० १३४० )के अनुसार 'सव' कत्थे ( खदिर ) की लकड़ीकी और "वैककतानि पात्राणि" (का० श्रो० सू० ११३।३२ )के अनुसार 'सच' कटाय नामक काष्ठकी बनायी जाती है । इन सूत्रद्वयोक्त प्रमाणोंसे भी 'सव और सच' पात्रोंका भिन्न होना स्पष्टतः प्रमाणित होता है । ५. अधरा सुवा'का १ नाम है-उपभृत् ।। ६. 'उत्तरा सुवा'का १ नाम है-जुहूः ॥ विमर्श-शतपथब्राह्मणके "यजमानऽएव जुहमनु । योऽस्याऽअरातीयति स......... (१।४।४।१८) मन्त्रले अनुमार 'उपभृत्' संज्ञक स्रक शत्रपक्षीय है और उसे नीचेवाले भागमें रखते हैं, अत एव उसे 'अधरा' (नीचतुच्छ ) कहा जाता है । तथा उक्त ग्रन्थ के ही "अथोत्तरां जुहूमध्यूहति यजमानमेवैतद् द्विषति...........(१।४।४।१६)" मन्त्रके अनुसार 'जुहू' संज्ञक सुक यजमानपक्षीय है और उसे 'उपभृत्' संज्ञक सकसे ऊपर रखते हैं, अतएव उसको 'उत्तरा(उच्च-श्रेष्ठ ) कहा जाता है। ७. 'जिसमें सब संशाके लिए घृत रखा जाता है, उस यशपात्र विशेष'का. १ नाम है-ध्रुवा ॥ Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६ अभिधानचिन्तामणिः . श्योऽभिमन्त्र्य निहन्येत स स्यात्पशुरुपाकृतः ॥ ४६३ ॥ -२परम्पराकं शसनं प्रोक्षणं च मखे वधः । ३हिंसा) कर्माभिचारः स्याद् ४यज्ञाहं तु यज्ञियम् ॥ ४६४ ॥ पहविः सान्नाय्य६मामिक्षा शृतोष्णक्षीरगं दधि । क्षीरशरः पयस्या च ७तन्मस्तुनि तु वाजिनम् ॥ ४६५ ॥ पहव्यं सुरेभ्यो दातव्यं पितृभ्यः कव्यमोदनम् । १०ाज्ये तु दधिसंयुक्त पृषदाज्यं पृषातकः ॥ ४६६ ॥ ११दना तु मधु संपृक्तं मधुपक महोदयः। .... १२हवित्री तु होमकुण्डं १३हव्यपाकः पुनश्चरुः ॥ ४६७ ।। १. 'अभिमन्त्रितकर यज्ञमें वध्य किये जानेवाले पशु'का १ नाम हैडपाकृतः ॥ . २. 'यज्ञीय पशु-वध के ३ नाम हैं-परम्पराकम् , शसनम् (+ शमनम् ), प्रोक्षणम् ॥ ३. 'शत्र श्रादिकी हिंसाके लिए किये जानेवाले कर्म ( मारण, मोहन, उच्चाटन, आदि)का १ नाम है-अभिचारः ।। ४. 'यज्ञके लिए किये जानेवाले हिंसा कर्म'का १ नाम है-यज्ञियम् ।। ५. 'हविष्य के २ नाम हैं-हविः (-विष , न.), सान्नाय्यम् । ६. 'उबाले हुए गर्म दूधमें छोड़े गये दही'के ३ नाम है-श्रामिक्षा, क्षीरशरः, पयस्या ॥ ७. पूर्वोक्त आमिक्षाके मांड (मलाई )का १ नाम है-वाजिनम् ।। ८. 'देवताओंके उद्देश्यसे दिये जानेवाले पाक ( हविष्य, खीर )का १ नाम है-हव्यम् ॥ ६. 'पितरोंके उद्देश्य से दिये जानेवाले पाक'का १ नाम है-कव्यम् ।। विमर्श-'श्रतिज्ञों का मत है कि देवों या पितरों किसीके उद्देश्यसे दिये जानेवाले पाक के 'हव्यम् , कव्यम्' ये दोनों ही नाम हैं ॥ ... १०. 'दधि-बिन्दुसे युक्त घी'के २ नाम हैं-पृषदाज्यम् (+दध्याज्यम् ), पृषातकः ॥ ११. 'मधुपर्क ( शहद मिले हुए दही ) के २ नाम है-मधुपर्कम् , महोदयः ।। १२. 'हवनके कुण्ड'के २ नाम हैं-हवित्री, होमकुण्डम् ॥ १३. 'हव्य ( देवोद्देश्यक खीर आदि ) को पकाने, या-उक्त हव्यको पकानेके बर्तन'के २ नाम हैं-हव्यपाकः, चरुः (पु)॥ .. Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०७ मर्त्यकाण्ड: ३] . 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः १अमृतं यज्ञशेषे स्याद् २विघसो भुक्तशेषके । ३यज्ञान्तोऽवभृथः ४पूत वाप्यायदीष्टं मखक्रिया ।। ४९८॥ ६इष्टापूतं तदुभयं बहिर्मुष्टिस्तु विष्टरः । अग्निहोत्र्यग्निचिच्चाहिताग्नावथाग्निरक्षणम् ॥ ४६॥ अग्न्याधानमग्निहोत्रं १०दर्वी तु घृतलेखनी। ११होमाग्निस्तु महाज्वालो महावीरः प्रवर्गवत् ।। ५००॥ १२होमधूमस्तु निगणो १३होमभस्म तु वैष्टुतम् । १४उपस्पर्शस्त्वाचमनं १५घारसेको तु सेचने ॥ ५०१॥ १. 'यज्ञके बाद बचे हुए हविष्यान्न के २ नाम हैं-अमृतम् , यज्ञशेषः । २. 'भोजन के बाद बचे हुए अन्न'के २ नाम हैं:-विधसः, भुक्तशेषक: (+भुक्तशेषः )॥ ३. 'यज्ञके समाप्त होनेपर किये जाने वाले स्नान विशेष के २ नाम हैंयज्ञान्तः, अवभृथः ॥ ___ ४. 'बावली, पोखरा, तडाग, खुदवाने या बगीचा आदि लगाने'का १ नाम है-पूर्तम् ॥ ५. 'यज्ञ करने का १ नाम है-इष्टम् ॥ ६. 'उक्त दोनों ( पूर्त तथा इष्ट ) कर्मोंका १ नाम है-इष्टापूर्तम् ।। ७. 'कुशात्रोंकी मुट्ठी'का १ नाम है-विष्टरः (पु न )॥ । ८. 'अग्निहोत्री'के ३ नाम हैं. अग्निहोत्री (त्रिन् ), अग्निचित् , आहिताग्निः ।। ___E. 'अग्निहोत्र'के ३ नाम है-अग्निरक्षणम्, अग्न्याधानम् , अग्निहोत्रम् ।। .. १०. 'दीं' ( यज्ञीय घृतको आलोडित करने तथा अपद्रव्य को बहिष्कृत करने के लिए कलछुलके आकार के पात्र ) के २ नाम हैं-द:, घृतलेखनी ।। ११. 'हबनकी अग्नि'के ४ नाम हैं - होमाग्निः, महाज्वालः, महावीरः, प्रवर्गः ॥ . . १२. 'हवनके धूएँ'के २ नाम हैं-होमधूमः, निगणः ॥ १३. 'होमकी भस्म'के २ नाम हैं-होमभस्म ( - स्मन् ), वैष्टुतम् ॥ १४. 'आचमन करने के २ नाम हैं.-उपस्पर्शः, श्राचमनम् ॥ १५. 'घृतसे अग्निके सेचन करने के ३ नाम हैं-घारः सेकः, सेचनम् ।। १. तदुक्तं कात्यायनश्रौतसूत्रे-"एस्य जुहाभिधारणं ध्रुवाया हविष उपाभृतश्च ।", "चतुरवनं सवषटकारासु !” तथा-"अनिधावदायावदाय ध्रुवाम Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०८ अभिधानचिन्तामणिः .. ब्रह्मासनं ध्यानयोगासनेऽ२थ ब्रह्मवर्चसम। वृत्ताध्ययनर्द्धिः ३पाठे स्याद् ब्रह्माजलिरञ्जलिः ।। ५०२॥ ४पाठे तु मुखनिष्क्रान्ता विप्रषो ब्रह्मबिन्दवः। ५साकल्यवचनं पारायणं ६कल्पे विधिक्रमौ ।। ५०३॥ ७मूलेऽङ्गुष्ठस्य स्याद् ब्राह्मं तीर्थं कायं कनिष्ठयोः। हपित्र्य तर्जन्यङ्गष्ठान्त१०दैवतं त्वङ्गलीमुखे ।। ५०४॥ ११ब्रह्मत्वं तु ब्रह्मभूयं ब्रह्मसायुज्यमित्याप । १. 'ब्रह्मासन ( ध्यान तथा योगके आसन-विशेष )का १ नाम हैब्रह्मासनम् ।। २. 'सदाचार तथा वेदादि-स्वाध्यायकी समृद्धि'के २ नाम है-ब्रह्मवर्चसम् , वृत्ताध्ययनद्धिः ॥ ... ३. 'वेदाध्ययनके समयमें बांधे गये अञ्जलिका १ नाम है-ब्रह्माञ्जलिः । ४. 'वेदाध्ययनके समय मुखसे निकले हुए थूकके बिन्दुओं'का १ नाम । है-ब्रह्मबिन्दवः (ब० व० बहुत्वली अपेक्षासे है ) ॥ ५. 'पारायण ( लगातार अथोंच्चारण किये बिना अध्ययन करने ) के २ नाम हैं-साकल्यवचनम् , पारायणम् ॥ . ६. 'विधि, क्रम'के ३ नाम है-कल्पः, विधिः, क्रमः ॥ ७. 'हाथके अंगूठेके मध्यमें । 'ब्राह्मम्' तीर्थम् अर्थात् 'ब्राह्मतीर्थ होता है ।। ८. 'कनिष्ठा अङ्गलियों के मध्यमें 'कायं तीर्थम् (+'प्राजापत्यं तीर्थम् अर्थात् 'प्रजापति तीर्थ' ) अर्थात् , 'काय तीर्थ होता है ।। ६. तर्जनी तथा अंगूठेके मध्यमें 'पित्र्यम्' तीर्थम् अर्थात् 'पित्र्यतीर्थ' होता १०. 'अङ्गुलियोंके अग्रभागमे 'दैवतम्' तीर्थम् अर्थात् 'दैवततीर्थ' होता है । विमर्श । उक्त तीर्थ में से 'ब्राह्म' तीर्थसे ब्रह्माके उद्देश्यसे, 'काय' तीर्थ से प्रजापतिके उद्देश्यसे, पित्र्य' तीर्थ से पितरों के उद्देश्य से और 'दैवत' तीर्थ से देवताओं के उद्देश्य से तर्पणका जल आदि दिया जाता है । शेषश्चात्र--करमध्ये सौम्यं तीर्थम् ।। ११. 'ब्रह्मसायुज्य ( परब्रह्ममें लीन हो जाने ) के३ नाम है ।--ब्रह्मत्वम्, ब्रह्मभूयम् ,ब्रह्मायुज्यम् ।। भिधारयति । श्राप्यायतां ध्रुवा हविषा घृतेन यज्ञं यशं प्रति देवयड्म्यः । सूर्यायाऽ अधोऽआदित्याऽउपस्थाऽउरुधारा पृथ्वी यज्ञेऽस्मिन्निति ।" (का० भौ० सू० ३।३।६, ११-१२)॥ Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मर्यकाण्ड: ३ 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः २०६ १देवभूयादिकं तद्वरदथोपाकरणं अतः ।। ५०५ ।। संस्कारपूर्वग्रहणं स्यात् ३स्वाध्यायः पुनर्जपः । ४औपवस्त्रं तूपवासः प्रकृच्छं सान्तपनादिकम् ।। ५०६॥ ६प्रायः संन्यास्यनशने नियमः पुण्यकं व्रतम् । ८चरित्रं चरिताचारौ चारित्रचरणे अपि ॥ ५०७ ॥ वृत्तं शीलं च सर्वेनोध्वंसि जप्येऽघमर्षणम् । १०समास्तु पादग्रहणाभिवादनोपसंग्रहाः ।। ५०८ ।। १५उपवीतं यज्ञसूत्रं प्रोद्धृते दक्षिणे करे । १२प्राचीनावीतमन्यस्मिन् १. । उसी प्रकार 'देवसायुज्य ( देवमें मिल जाने, या-देवरूप हो जाने ), के देवभूयम्, आदि ('श्रादि'.शब्द से देवत्वम्, देवसायुज्यम्', मूर्खभूयम्, मूर्खस्वम्,... ") नाम होते हैं । २. 'संस्कारपूर्वक वेदके ग्रहण' करनेका १ नाम है-उपाकरणम् ॥ ३. 'वेदादिके पाठ'के २ नाम हैं-स्वाध्यायः, जपः ॥ ४. उपवास के २ नाम है-औपवस्त्रम् (+औपवस्तम् , उपवस्त्रम् ), उपवास: (पुन)॥ .. ५. सान्तपन' श्रादि ('श्रादि से चान्द्रायण, आदिका संग्रह है) व्रतो'का १ नाम है-कृच्छम् (पु न )॥ ६. 'स्वर्गादि उत्तम लोककी प्राप्तिके लिए भोजनस्यागपूर्वक मरनेके अध्यवसाय'का १ नाम है-प्रायः॥ ७. 'नियम, व्रत के ३ नाम है-नियमः, पुण्यकम्, व्रतम् (पु न)॥ शेषश्चात्र-अथ स्यानियमे तपः । ८. 'आचरणः चरित्र के ७ नाम हैं-चरित्रम् , चरितम् , आचारः, चारित्रम् , चरणम्, वृत्तम्, शीलम् (पुन)॥ ६.'अघमर्षण ( सब पापके नाशक जप-विशेष )का १ नाम है-अघमर्षणम् ॥ १०. 'गुरु आदिके चरण स्पर्शकर प्रणाम करने के ३ नाम हैं-पादग्रहणम् , अभिवादनम्, उपसंग्रहः ।। . ११. 'बाये कन्धेसे दहिने पार्श्वमें तिचे लटकते हुए जनेउ के २ नाम है-उपवीतम् (पुन ), यशसूत्रम् ।। १२. 'दहने कन्धेसे बाये पार्श्वमें तिछे लटकते हुए बनेऊ'का १ नाम है-प्राचीनावीतम् ।। १४ अ० चि०३ Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१० अभिधानचिन्तामणिः - १ निवीतं कण्ठलम्बितम् ॥ ५८६ ॥ - २प्राचेतसस्तु वाल्मीकिर्वल्मीककुशिनौ कविः । मैत्रावरुणत्राल्मीकौ ३ वेदव्यासस्तु माठरः || ५१० ।। द्वैपायनः पाराशर्यः कानीनो बादरायणः । व्यासोs ४स्याम्बा सत्यवती वासवी गन्धकालिका ॥ ५११ ॥ योजनगन्धा दाशेयी शालङ्कायनजा च सा । पूजामदग्न्यस्तु रामः स्याद् भार्गवो रेणुकासुतः ।। ५१२ ।। ६ नारदस्तु देवब्रह्मा पिशुनः कलिकारकः । ७वशिष्ठोऽरुन्धतीजानि दरक्षमाला त्वरुन्धती ।। ५१३ ।। त्रिशङ्कयाजी गाधेयो विश्वामित्रश्च कौशिकः । १० कुशारणिस्तु दुर्वासाः ११शतानन्दस्तु गौतमः ॥ ५१४ ॥ १. 'मालाके समान सीधे छाती पर लटकते हुए जनेऊ' का १ नाम है — निवीतम् ॥ २. 'वाल्मीकि मुनि' के ७ नाम हैं - प्राचेतसः, वाल्मीकिः, वल्मीकः, कुशी ( - शिन् ), कविः ( + श्रादिकविः मैत्रावरुणः (+ मैत्रावरुणि: ), वाल्मीकः || ३. ‘वेदव्यास, व्यासजी के ७ नाम हैं - वेदव्यासः, माठरः, द्वैपायनः, पाराशर्यः, कानीनः, बादरायणः, व्यासः ॥ ४. 'उक्त व्यासजीकी माता' के ६ नाम हैं- सत्यवती, वासवी, गन्धकालिका ( + गन्धकाली ), योजनगन्धा, दाशेयी, शालङ्कायनजा ॥ शेषश्चात्र —— सत्यवत्यां गन्धवती मत्स्योदरी । ५. 'परशुरामजी' के ४ नाम हैं- जामदग्न्यः, रामः ( + परशुरामः ), भार्गवः, रेणुकासुतः (+रैणुकेयः ) । ६. 'नारदजी' के ४ नाम हैं-नारदः, देवब्रह्मा ( कलिकारकः (+ देवर्षिः ) ॥ ७. 'वशिष्ठजी' के २ नाम हैं - वशिष्ठ: ( + वसिष्ठः ); अरुन्धतीजानिः ॥ ८. 'अरुन्धती ( वशिष्ठजीकी धर्मपत्नी ) ' के श्ररुन्धती ॥ २ नाम है - अक्षमाला, हान् ), पिशुनः, ६. 'विश्वामित्रजी' के ४ नाम हैं - त्रिशङ्कुयाजी ( - जिन् ), गाधेय: ( + गाधिनन्दन: ), विश्वामित्रः, कौशिकः ।। १०. ‘दुर्वासाजी’के २ नाम हैं- कुशारणि:, दुर्वासा : ( - सस् ) । ११. 'गौतम मुनि' के २ नाम है - शतानन्दः, गौतमः ॥ Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २११ मयंकाण्डः ३] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः श्याज्ञवल्क्यो ब्रह्मरात्रिर्योगेशो२ऽप्यथ पाणिनौ । सालातुरीयदाक्षेयौ ३गोनर्दीये पतञ्जलिः ॥५१५ ॥ ४कात्यायनो वररुचिर्मेधाजिच्च पुनर्वसुः । ५अथ व्याडिविन्ध्यवासी नन्दिनीतनयश्च सः॥ ५१६ ॥ ६स्फोटायने तु कशीवान ७पालकाप्ये करेणुभूः । ८वात्स्यायने मल्लनागः कौटल्यश्चणकात्मजः ॥ ५१७ ॥ द्रामिलः पक्षिलस्वामी विष्णुगुप्तोऽङ्गुलश्च सः। क्षतव्रतोऽवकीर्णी स्याद् १०व्रात्यः संस्कारवर्जितः ॥ ५१८॥ ११शिश्विदानः कृष्णकर्मा १. 'याज्ञवल्क्य मुनि'के ३ नाम हैं-याज्ञवल्क्यः, ब्रह्मरात्रिः, योगेशः (+योगीशः)॥ २. 'पाणिनि मुनि' के ३ नाम है-पाणिनिः, सालातुरीयः, दाक्षेयः (+दाक्षीपुत्रः )॥ ३. 'पतञ्जलि मुनि'के २ नाम है-गोनर्दीयः, पतञ्जलिः॥ ४. 'कात्यायन'के ४ नाम हैं-कात्यायनः, वररुचिः, मेधाजित् , पुनवसुः ॥ ... ५. 'व्याडि'के ३ नाम है-व्याडिः, विन्ध्यवासी (- सिन् ), नन्दिनीतनयः॥ ६. 'स्फोटययन'के २ नाम है-स्फोटायनः (+स्फोटनः), कदीवान् (- वत् )। ७. 'पालकाप्य'के.२ नाम है-पालकाप्यः, करेणुभूः (+कारेणवः )। ८. 'वात्स्यायन (चाणक्य ) के ८ नाम है-वात्स्यायनः, मल्लटागः, कोटल्यः (+कौटिल्यः), चणकात्मजः (+चाणक्यः ), द्रामिलः, पक्षिलस्वामी (- मिन् ), विष्णुगुप्तः, अङ्गलः ॥ ६. 'नियम कालके मध्यमें ही जिसका ब्रह्मचर्य व्रतभङ्ग हो गया हो, उसके २ नाम है-क्षतव्रतः, अवकीर्णी (-णिन् )। १०. 'जिसका यज्ञोपवीत संस्कार नियत समय पर नहीं हुअा हो, उस द्विज'का १ नाम है-प्रात्यः । विमर्श-गर्भ से सोलहवें वर्ष की अवस्थातक ब्राह्मण, बाइस वर्ष की अवस्थातक क्षत्रिय, चौबीस वर्ष की अवस्थातक वैश्यका यशोपवीत संस्कार नहीं होने पर वे 'व्रात्य कहलाते हैं । ११. 'निन्दित कर्म (दुराचार ) करनेवाले'के २ नाम है-शिश्विदानः, कृष्णकर्मा (-मन् )॥ Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१२. अभिधानचिन्तामणि: - १ ब्रह्मबन्धुर्द्विजोऽधमः । रनष्टाग्निर्वीरहा ३ जातिमात्रजीव • द्विजब्रुवः ॥ ५१६ ॥ ४धर्मध्वजी लिङ्गवृत्तिपूर्वेदहीनो निराकृतिः । ६वार्त्ताशी भोजनार्थं यो गोत्रादि वदति स्वकम् ॥ ५२० ॥ उच्छिष्टभोजनो देवनैवेद्यबलिभोजनः । ८श्रजपस्त्वसदध्येता शाखारण्डोऽन्यशाखकः ॥ ५२१ ॥ ४० शस्त्राजीवः काण्डस्पृष्टो ११गुरुहा नरकीलकः । १२मलो देवादिपूजायामश्राद्धो १. 'नीच द्विज' का १ नाम है - ब्रह्मबन्धुः ॥ २. 'जिसके अग्निहोत्रकी अग्नि प्रमादादि से बुझ गयी हो, उस अग्नि होत्री' के २ नाम हैं- नष्टाग्निः, वीरहा (-हन् ) ॥ न. है ३. 'अपनी जाति बतलाकर जीविका चलानेवाले द्विज' का १ नाम. द्विजब्रु वः ।। ४. 'धर्मध्वजी ( जटादि बढ़ाकर या - गेरुआ वस्त्र आदि पहनकर धर्मात्मा बननेका पाखण्ड रच कर जीविका करनेवाले )' के २ नाम हैं- धर्म - ध्वजी ( - जिन्), लिङ्गवृत्तिः ॥ ५. 'वेदका अध्ययन नहीं करनेवाले' के २ नाम हैं - वेदहीनः, निराकृतिः ॥ ६. 'भोजन-प्राप्तयर्थं अपनी जाति या गोत्र आदि कहनेवाले' का १ नाम है- वार्त्ताशी (-शिन् ) ॥ ७. 'देवताके नैवेद्य तथा बलिको भोजन करनेवाले' का १ नाम हैउच्छिष्टभोजनः ॥ ८. 'ठीक-ठीक स्वाध्याय नहीं करनेवाले' के २ नाम हैं- अजप:, असदध्येता ( - ध्येतृ ) ॥ : ६. ‘अपनी शाखाका त्याग कर दूसरेकी शाखाको ग्रहण करनेवाले' के २ नाम हैं - शाखारण्डः, अन्यशाखकः ॥ १०. 'शस्त्र से जीविका चलानेवाले' के २ नाम है-शस्त्राजीव:, काण्ड स्पृष्टः ॥ ११. ‘गुरुकी हत्या करनेवाले' के २ नाम हैं - गुरुहा ( - हन् ), नरकीलकः ॥ " १.२.. 'देवता श्रादिकी पूजा में श्रद्धा नहीं रखनेवाले' का १ नाम हैमलः ॥ Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मयंकाण्ड: ३] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः २१३ .-१ऽथ मलिम्लुचः ॥ ५२२ ।। पञ्चयज्ञपरिभ्रष्टो २निषिद्ध करुचिः खः । ३सुप्ते यस्मिन्नुदेत्यर्कोऽस्तमेति च क्रमेण तौ ।। ५२३ ॥ अभ्युदिताऽभिनिर्मुक्तौ ४वीरोज्झो न जुहोति यः । ५अग्निहोत्रच्छनाद् याच्यापरो वीरोपजीवकः ॥ ५२४ ॥ ६वीरविप्लावको जुह्वद् धनैः शूद्रसमाहृतैः। स्याद्वादवाद्याऽऽहतः स्या७च्छून्यवादी तुसौगतः ।। ५२५ ।। नैयायिकस्वाक्षपादो योगः (साङ्ख्यस्तु कापिलः। १०वैशेषिकः स्यादौलूक्यो ११बार्हस्पत्यस्तु नास्तिकः ।। ५२६ ॥ चार्वा को लौकायतिक१२श्चैते पडपि तार्किकाः । १. 'पञ्चयज्ञ (३ । ४८६ ) नहीं करनेवाले'का १ नाम है--मलिम्लुचः (+पञ्चयज्ञपरिभ्रष्टः)॥ ___२ जिसकी रुचि एक स्थानपर या किसी एक में निषिद्ध हो, उसका १ नाम है-खरुः, (+ निषिद्धकरुचिः)॥ ३. 'जो सूर्योदय तथा सूर्यास्त के समयतक सोता रहे, उसका क्रमसे १-१ नाम है-अम्युदितः, अभिनिर्मुक्तः॥ ४. 'हवन (अग्निहोत्र ) नहीं करनेवाले'का १ नाम है-वीरोज्झः ॥ ... ५. 'अग्निहोत्रके नाम पर याचनाकर जीविका चलाने वाले'का १ नाम है-वीरोपजीवकः.।। . ६. 'शूद्रसे प्राप्त धनके द्वारा अग्निहोत्र करनेवाले'का १ नाम हैवीरविप्लावकः ॥ . . - ७. 'जैन, स्याद्वादवादी'के २ नाम है-स्याद्वादवादी (-दिन् । + अनेकान्तवादी,-दिन् ), आईतः (+जैनः )। 'बौद्ध'के २ नाम हैं-शून्यवादो (-दिन् ), सौगतः (+बौद्धः)॥ ८. 'नयायिक'के ३ नाम है-नैयायिकः, श्राक्षपादः, योगः ॥ - ६. 'सालय ( सात्य शास्त्र के पढ़ने या जाननेवाले ) के २ नाम हैं सातयः, कापिलः ।। .. १०. 'वैशेषिक' के २ नाम है-वैशेषिकः, औलूक्यः ॥ ११. 'चार्वाक के ४ नाम है-बाईस्पत्यः, नास्तिकः, चार्वाकः, लौकायतिकः (+लौकायितिकः )॥ १२. इन ६ ('स्याद्वादवादी, "बार्हस्पत्य' ) को तार्किक' कहते हैं('तार्किक:' पुं है)। Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१४ अभिधानचिन्तामणिः १क्षत्रं तु क्षत्रियो राजा राजन्यो बाहुसंभवः ॥ ५२७ ॥ . २अर्या भूमिस्पृशो वैश्या ऊरब्या ऊरुजा विशः। ३वाणिज्यं पाशुपाल्यश्च कर्षणं चेति वृत्तयः॥ ५२८ ।। ४ाजीवो जीवनं वार्ता जीविका वृत्तिवेतने। ५उन्छो धान्यकणादानं ६कणिशायर्जनं शिलम् ॥ ५२६ ॥ ७ऋतं तद् द्वयम्मनृतं कृषि तं तु याचितम् । १०अयाचितं स्मादमृत ११सेवावृत्तिः श्वजीविका ॥ ५३० ॥ १२सत्यानृतं तु वाणिज्य वणिज्या १३वाणिजो वणिक् ।.. क्रयविक्रयिकः पण्याजीवाऽऽपणिकनगमाः ॥ ५३१ ॥ वैदेहः सार्थवाहश्च १. 'क्षत्रिय' के ५ नाम हैं-क्षत्रम् (पु न ), क्षत्रियः, राजा (-जन् ), राजन्यः, बाहुसम्भवः (+बाहुजः)॥ २. 'वैश्य'के ६ नाम है-अर्याः, भूमिस्पृशः (-स्पृश् ), वैश्याः, ऊरव्याः, अरुणाः, विशः (-श् । ब० व० बहुस्वापेक्ष है, अतएव ए० ब० में भी इनका प्रयोग होता है)॥ . . . . ३. इन वैश्योंकी वृत्ति वाणिज्यम् , . पाशुपाल्यम्, कर्षणम् (अर्थात् क्रमश:-व्यापार, पशुपालन और खेती ) है । ४. 'जीविका के ६ नाम है-आजीवः, जीवनम् , वार्ता, जीविका, वृत्तिः, वेतनम् ॥ . ५. 'खेत काटकर किसानके अन्न-ले जानेके उपरान्त उस खेतमें-से १-१ दाना चुंगने'का १ नाम है-उञ्छः ॥ ६. 'खेत काटकर किसानके अन्न ले जानेके उपरान्त उस खेतमें-से १-१ बाल चुंगने'का १ नाम है-शिलम् ॥ ७. 'उक्त दोनों ( उछः, शिलम् )का १ नाम है-श्रुतम् ॥ ८. 'खेतीसे जीविका चलाने का १ नाम है-अनृतम् ॥ ६. 'याचनाकर बीविका चलाने'का १ नाम है-मृतम् ।। १०. 'विना याचना किये मिले हुए द्रव्यादिसे बीविका चलानेवाले'के २.नाम है-अयाचितम् , अमृतम् ।। ११. 'सेवाके द्वारा जीविका चलानेवाले'के २ नाम है-सेवावृत्तिः, खजीविका ॥ १२. 'व्यापार के ३ नाम है-सत्यानृतम्, वाणिज्यम्, वणिज्या (बी न)॥ १३. धनियाँ, व्यापारी'के ८ नाम हैं-वाणिजः, वणिक् (- णिज् ), Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१५ मयंकाण्ड: ३] मणिप्रभा'व्याख्योपेतः -१क्रायकः क्रयिकः क्रयी। २क्रेयदे तु विपूर्वास्ते ३मूल्ये वस्नाघवक्रयाः॥ ५३२ ॥ ४मूलद्रव्यं परिपणो नीवी ५लाभोऽधिकं फलम्। परिदानं विनिमयो नैमेयः परिवर्तनम् ॥ ५३३ ॥ व्यतिहारः परावर्तो वैमेयो निमयोऽपि च । निक्षेपोपनिधी न्यासे प्रतिदानं तदर्पणम ॥ ५३४ ।। क्रेतव्यमात्रके ऋयं क्रयविक्रयिकः, पण्याजीवः, श्रापणिकः (+प्रापणिकः), नैगमः, वैदेहः, सार्थवाहः । १. 'खरीददार के ३ नाम है-क्रायकः, ऋयिकः, क्रयी (- यिन् )। २. 'बेचनेवाले के ४ नाम है-क्रयदः, विक्रायकः, विक्रयिकः, विक्रयी (-यिन् )॥ ३. 'मूल्य, कोमत'के ४ नाम है-मूल्यम् , वस्नः (पु न ), अर्घः, वक्रयः ।। शेषमात्र-अथ वक्रये। भाटकः । ४. 'व्यापारादिमें लगाये गये मूल धन'के ३.नाम हैं-मूलद्रव्यम् , परिपणः, नीवी ॥ ५. 'लाभ, नफा'के २ नाम है-लाभः, फलम् ॥ ६. 'परिवर्तन ( अदल-बदलं ) करने के ८ नाम है-परिदानम् , विनिमयः, नेमेयः, परिवर्तनम् , व्यतिहारः, परावतः, वैमेयः, निमयः ॥ ७. "धरोहर, निक्षेप (पुनः वापस लेनेके लिए कोई वस्तु या द्रव्यादि किसीको देने के ३ नाम है-निक्षेपः, उपनिधिः, न्यासः ॥ ८. 'उल धरोहरको लौटाने'का १ नाम है-प्रतिदानम् ॥ विमर्श-किसी पात्रमें रखकर वस्तु या द्रव्यादिका बिना नाम कहे पुनः वापस लेनेके लिए किसीको देनेका नाम 'उपनिधिः' उक्त वस्तु आदिका नाम प्रकाशित कर ( कहकर ) देने या रखनेका नाम 'न्यासः' और मरम्मतके लिए कारीगरको बर्तन आदि देनेका नाम 'निक्षेपः' है॥ ६. 'खरीदने योग्य वस्तुका १ नाम है-केयम् ।। १. तदुक्तम् "वासनस्थमनाख्याय हस्तेऽन्यस्य यदर्पितम् । द्रव्यं तदुपनिधिया॑सः प्रकाश्य स्थापितं तु यत् ॥ निक्षेपः शिल्पिहस्ते तु भाण्डं संस्कर्तुमर्पितम् ।" इति ॥ Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१६ अभिधानचिन्तामणिः -१क्रय्यं न्यस्तं क्रयाय यत् । २पणितव्यं तु विक्रेयं पण्यं ३सत्यापनं पुनः ।। ५३५ ॥ सत्यकारः सत्याकृतिठस्तुल्यौ विपणविक्रयौ। ५गण्यं गणेयं सङ्खये यं ६सङ्ख्या त्वेकादिका भवेत् ॥ ५३६॥ १. 'सौदा ( खरीददार लोग खरीदें, इस विचारसे दूकान या बाजारमें रखी हुई वस्तु)का १ नाम है-क्रय्यम् ॥ . . २. 'बेचने योग्य वस्तु'के ३ नाम है-पणितव्यम् , विक्रयेम्, पण्यम् ।। ३. 'सौदेको बेचने के लिए वचनबद्ध होने के ३ नाम है-सत्यापनम् , सत्यङ्कारः, सत्याकृतिः ।। ४. 'बिक्री करने (बेचने )के २ नाम हैं-विपणः, विक्रयः ।। ५. 'गिनती करने योग्य, गणनीय'के ३ नाम हैं, गण्यम्, गणेयम् , सङ्ख्य यम् ॥ ____६. 'एक:' श्रादि ( 'श्रादि' शब्दसे-द्वौ, त्रयः, चत्वारः,.पञ्च,...") को 'सङ्ख्या ' कहते हैं। विमशे-'एकः, द्वौ, यः, चत्वारः' (एक, दो, तीन, चार)-ये ४ शब्द त्रिलिङ्ग हैं, “पञ्च, षट , सप्त,. अष्ट, (+अष्टौ-ष्टन् ),..." अष्टादश" (क्रमश:--पांच, छह, सात, अाठ,"....'अट्ठारह ) सब शन्द अलिङ्ग (या-तीनों लिङ्गमें समान रूपवाले) हैं, एकोनविंशतिः, विंशतिः, एकविंशतिः,"अष्टनवतिः, नवनवतिः ( क्रमश:-उन्नीस, बीस, इक्कीस,"अट्ठानबे, निन्यानबे)-ये सब शब्द स्त्रीलिङ्ग हैं । परन्तु षष्टिः, एकषष्टिः,......" अर्थात् क्रमश:-"साठ, एकसठ,.....:, श्रादि ( षष्टिः, जिनके अन्त में हों वे शब्द तथा 'षष्टिः' शब्द भी) त्रिलिङ्ग हैं)। इनमें “एकः, द्वौ,""" अष्टादश" अर्थात् क्रमश:-एक से अट्ठारह तक संख्यावाले सब शब्द सङ्ख्य यमें और विंशतिः,..."शब्द सञ्जय य तथा सङ्ख्यान-इन दोनों अर्थमें प्रयुक्त होते हैं। (क्रमशः उदा.--सञ्जय यमें 'एफ' आदि शब्द यथा--एकः, पुरुषः, द्वौ ग्रामौ, त्रयः सुराः,.....। सञ्जय यमें 'विंशति' आदि शब्द यथा--विंशतिः घटाः, एकविंशतिः पुरुषाः, त्रिंशत् भवनानि,"; सङ्ख्यानमें 'विंशति' आदि शब्द यथा-विंशतिर्घटानाम्, एकविंशतिः पुरुषाणाम्,...."। उक्त विंशति' आदि शब्द सङ्ख्य य तथा सङ्ग्यानमें प्रयुक्त होनेपर केवल एकवचन ही रहते हैं (जैसा ऊपर उदा० में है), किन्तु 'सङ्ख्या में प्रयुक्त होनेपर द्विवचन तथा बहुवचनमें भी हो जाते हैं, यथा-द्वे विंशती, तिस्रो विशतयः, गवां विंशतिः, गवां विंशती, गवां विशतयः,.....॥ Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१ मयंकाण्डः ३ ] . 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः श्यपोत्तरं दशगुणं भवेदेको दशायुतः । शतं सहस्रमयुतं लक्षप्रयुतकोटयः ॥ ५३७ ॥ अर्बुदमब्जं खवं च निखवं च महाम्बुजम् । शङ्कर्वाधिरन्त्यं मध्य पराद्धं चेति नामतः ।। ५३८॥ २असङ्ख्य द्वीपवार्ष्यादि ३पुद्गलाऽऽत्माद्यनन्तकम्। ४सांयात्रिका पोतवणिग ५यानपात्रं वहित्रकम् ॥ ५३६॥ वोहित्थं वहनं पोतः पोतवाहो नियामकः। निर्यामः कर्णधारस्तु नाविको नौस्तु मङ्गिनी ॥ ५४०॥ तरीतरण्यौ बेडा १. एक से आरम्भकर वक्ष्यमाण ( आगे कहे जानेवाले ) सङ्ख्यावाचक 'शब्द क्रमशः दशगुने होते जाते हैं। वे शब्द ये हैं-एकः, दश (-शन् ), शतम्, सहस्रम्, अयुतम् ( ३ पु.न), लक्षम् (स्त्री न ।+नियुतम् ), प्रयुतम् (पु न ), कोटिः (स्त्री), अबु दम् (पु न), अजम्, खर्वम्, निखर्वम्, महाम्बुजम् (+महापद्मम् ), शङ्क: (पु स्त्री), समुद्रः (+ सागरः," पु), अन्त्यम्, मध्यम्, परार्द्धम् । ( इनके क्रमश:-"इकाई, दहाई, सैकड़ा, हजार, दश हजार; लाख, दश लाख करोड़, दश करोड़,"."" अर्थ हैं )। विमर्श-इस सङ्ख्या के विषयमें विशेष जिज्ञासुओंको हेमाद्रि दानखण्ड पृ० १२८ तथा अमरकोषकी मणिप्रभा नामक टीका पर अमरकौमुदी नामकी टिप्पणी (अमरकोष २ । ६ । ८३-८४ ) देखनी चाहिए । २. द्वीप ( जम्बूद्वीप, आदि) तथा समुद्र आदि ('आदि' शब्द से-चन्द्र, सूर्य आदि ) 'असङ्ख्य ( सङ्ख्यातीत ) हैं। ३. 'पुद्गल आत्मा श्रादि ('आदि' शब्दसे 'आकाशप्रदेश,...") 'अनन्त' है ॥ ४. 'जहाजी व्यापारी'के . २ नाम हैं-सांयात्रिकः, पोतवणिक (-णिज)॥ ५. 'जहाब'के ५ नाम हैं-यानपात्रम्, वहित्रम्, वोहित्यम्, वहनम् (+प्रवहणम् ), पोतः ।। . ६. 'बहावको चलानेवाले के ३ नाम हैं-पोतवाहः, नियामकः, निर्यामः ॥ . ७. 'कर्णधार के २ नाम है-कर्णधारः, नाविकः ।। ८. 'नाव'के ५ नाम है-नौः (स्त्री ।+नौका), मङ्गिनी, तरी, तरणी (+तरिः, तरणिः ), वेडा ॥ Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१८ अभिधानचिन्तामणिः -१ऽथ द्रोणी काष्ठाम्बुवाहिनी । २नौकादण्डः क्षेपणी स्याइगुणवृक्षस्तु कूपकः ॥ ५४१ ॥ ४पोलिन्दास्त्वन्तरादण्डाः ५स्याद् मङ्गो मङ्गिनीशिरः। ६अभ्रिस्तु काष्ठकुद्दालः ७सेकपात्रं तु सेचनम् ॥ ५४२ ।। केनिपातः कोटिपात्रमरित्रेऽथोडुपः प्लवः । कोलो भेलस्तरण्डश्च १०स्यात्तरपण्यमातरः ।। ५४३ ॥ . ११वृद्धयाजोवो द्वैगुणिको वाधुषिकः कुसीदिकः ।.. वाधुषिश्च १२कुसीदार्थप्रयोगौ वृद्धिजीवने ॥ ५४४ ॥ ... १३वृद्धिः कलान्तर१४मृणं तूद्धारः पयु दश्चनम् । १५याच्चयाप्तं याचितकं १६परिवृत्त्यापमित्यकम् ॥ ५४५ ॥ - - १. 'काष्ठकी छोटी नाव, या-काष्ठ अथवा पत्थरकी बनी हुई हौज टब'का १ नाम है-द्रोणी (+द्रोणिः, द्रुणिः) । २. 'डांडा ( जिससे नाव खेते हैं, उस दण्डा'के २ नाम हैं-नौकादण्डः क्षेपणी ॥ ३. 'मस्तूल के २ नाम है-गुणवृक्षः, कूपकः ।। ४. 'नावके बीचवाले डण्डों'का १ नाम है-पोलिन्दाः॥ ५. 'नावके ऊपरवाले भाग'का १ नाम है-मनः (पु I+पुन)। ६. 'काष्टकी कुदाल (नाव या जहाजमें छिद्र होनेपर जिससे खोद-खोद कर पटुश्रा ) सन या चिथड़ा भरते हैं, उस)का १ नाम है-अभिः (स्त्री)। __७. 'नावके भीतर जमा हुए पानी को बाहर फेंकनेवाले ( चमड़े के मसक या थेले ) पात्र'का १ नाम है-सेकपात्रम्, सेचनम् ।। ८. 'लगर के ३ नाम है-केनिपातः, कोटिपात्रम्, अरित्रम् ॥ ६. 'छोटी नाब, डोंगी'के ५ नाम है-उडुपः ( पुन ), प्लवः, कोलः, भेलः, तरएडः (पु न )॥ १०. 'नाव या जहाजके भाड़े के २ नाम है-तरपण्यम् , श्रातरः ।। ११. 'सूदखोर ( सूद अर्थात् व्याजपर रुपयेको कर्ज देनेवाले ) के ५ नाम हैं-वृद्धयाजीवः, द्वैगुणिकः, वाधुषिकः, कुसीदकः, वाधुषिः ॥ .. १२: 'सूद, व्याज'के २ नाम है-कुसीदम् (+कुशीदम् ), अर्थप्रयोगः ।। १३. 'मूलधनकी वृद्धि'के २ नाम है-वृद्धिः, कलान्तरम् ॥ . १४. 'ऋण, कर्ज'के ३ नाम है-श्रणम्, उद्धारः, पर्युदञ्चनम् ॥ १५. 'याचना करनेपर मिले हुए धनादिका १ नाम है-~याचितकम् ।। १६. 'किसी वस्तु आदिके बदले में मिली हुई वस्तु'का १ नाम हैभापमित्यकम् ॥ Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मकाण्ड : ३ ] 'मणिप्रभा' व्याख्योपेतः १ श्रधमर्णी ग्राहकः स्यादुत्तमर्णस्तु दायक: । ३ प्रतिभूर्लग्नकः ४साक्षी स्थेय. ५श्राधिस्तु बन्धकः || ५४६ ॥ पौतवं मान ७द्रवर्यं कुडवादिभिः । ६ तुलाद्यैः पायं हस्तादिभिस्तत्र स्याद्गुञ्जाः पच माषकः ।। ५४७ ॥ १० ते तु षोडश कर्षोऽक्षः ११पलं कर्षचतुष्टयम् । १२ विस्तः सुवर्णो हेम्नोऽक्षे १३ कुरुविस्तस्तु वत्पले ॥ ५४= ॥ १४ तुला पलशत २१६ १. ‘कर्जदार, ऋण लेनेवाले' के २ नाम हैं - श्रधमर्णः, ग्राहकः ।। २. 'कर्जदेनेवाले, महाजन के ३ नाम है –उत्तमर्णः, दायकः ।। ३. उक्त दोनों के बीच में जमानत करनेवाले' के २ नाम हैं - प्रतिभूः, लग्नकः ॥ ४. 'गवाह, साक्षी' के २ नाम हैं - साक्षी (-क्षिन् ), स्थेयः ।। शेषश्चात्र- - श्रथ साक्षिणि स्यान्मध्यस्थः प्राश्निकोऽपि सः । कूटसाक्षी मृषासाक्ष्ये सूची स्याद् दुष्टसाक्षिणि ॥ ५. 'बन्धक' (ऋण चुकानेतक प्रामाणिकता के लिए महाजनके यहाँ रखी हुई कोई वस्तु आदि ) के २ नाम हैं-आधिः, बन्धकः ॥ ६. ( अब मान-विशेषका वर्णन करते हैं — ) 'तराजू, काँटा आदि से तौलने का १ नाम है - पौतवम् (+ यौतवम् ) । ७. 'कुडव · ( पसर, अञ्जलि ) आदिसे नापकर प्रमाण करने' का १ नाम हैं - द्रुवयम् ॥ ८. 'हाथ, फुट, गज, बांस आदि से प्रमाण करने' का १ नाम है-पाय्यम् ॥ ६. ' उन तीनोंमें (पौतव) द्रुवय और पाय्य' संशक मानोंमें क्रमप्राप्त प्रथम. 'पौतव' मानका वर्णन करते हैं -) 'पौतव' मानमें पांच गुञ्जा ( रत्ती ) का १ 'माषकः' ( मासा= १ आना भर होता है । : १०. 'सोलह माषक' ( मासे ) का १ 'कर्ष:, अक्ष:' ( १ रुपया भर ) होता है । ये २ नाम हैं । ११. 'चार कर्ष' (' रुपयेभर ) का १ 'पलम्' ( एक छटाक पल) होता है || १२. 'सोने के अक्ष ( एक भर सोने अर्थात् एक असर्फी ) के २ नाम हैंविस्तः, अक्षः ॥ १३. 'एक पल ( चार भर ) सोने' का १ नाम है - कुरुविस्तः ॥ १४. 'सौ पल' ( चार सौ रुपये भर अर्थात् पांचसेर ) का एक 'तुला " होती है ॥ Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणिः -श्तासां विंशत्या भार आचितः । शाकटः शाकटीनश्च शलाटरस्ते दशाचितः ।। ५४६ ॥ ३चतुर्भिः कुडवैः प्रस्थः ४प्रस्थैश्चतुर्भिराढकः। ५चतुर्भिराढकोणः ६खारी षोडशभिश्च तैः ॥ ५५० ॥ १. 'बीस तुला ( पसेरी) अर्थात् ढाई मनके ५ नाम हैं-भारः, आचितः, शाकट:, शाकटीनः, शलाटः॥ २. 'दश भार' ( पचीस मन )का १ 'आचितः' (+न ) होता है । विमर्श--यहां पर भारः,............ "शलाट:' ५ शब्दोंको एकार्थक नहीं मानकर 'शाकटः, शाकटीनः, शलाटः इन तीन शब्दोंका सम्बन्ध 'ते दशाचित:'के साथ करके अर्थ करना चाहिये-“बीस तुला. (२००० पल-ढाई मन )के २ नाम हैं-भारः, आचितः' । तथा 'दश भार' ( २५ मन )के ४ नाम हैं-'शाकटः, शाकटीनः शलाटः, प्राचितः ।" ऐसा अर्थ नहीं करने से 'स्वोपज्ञवृत्ति' में लिखित "शकटेन वोदुशक्यः शाकटः" (गाड़ीसे दो सकने योग्य ) यह विग्रह सङ्गत नहीं होता, क्योंकि 'आचितः' के विग्रहमें उसके पूर्वलिखित 'पुंसा हि द्वे पलसहस्र वोदु,शक्यते' (मनुष्य २००० पल अर्थात् ढाई मन ढो सकता है ) वचन गाड़ी तथा मनुष्य दोनों का बोझ ढाई मन मानना लोकविरुद्ध प्रतीत होता है । इसके विपरीत मत्प्रतिपादित अर्थके अनुसार मनुष्यको ढाई मन और गाड़ीको पच्चीस मन बोझ ढोना लोक व्यवहारनुकूल होता है, अतएव-२०. तुला ( २००० पल = ढाई मन )के भारः, आचितः' दो नाम और १० अाचित ( २५ मन )के "शाकटः, शाक टीनः, शलाटः, आचितः' चार नाम हैं" ऐसा अर्थ करना चाहिए। ऐसा अर्थ करने पर ही “भारः स्यादिशतिस्तुलाः । आचितो दश भाराः स्युः शाकटो भार आचितः । (अमरकोष २ । ६६ । ८७ )" अर्थात् “२० तुला (ढाई मन )का 'भार' और १० भार ( २५ मन )का १ 'श्राचित' होता है और यह आचित गाड़ीका बोझ होता है। इस अमरकोषोक्तिसे भी विरोध नहीं होता है। मानके विषय में विशेष जिज्ञासुओंको अमरकोष की मत्कृत 'मणिप्रभा' व्याख्या की 'अमरकौमुदी टिप्पणी देखनी चाहिए । ३. (अब क्रमप्राप्त द्वितीय 'द्रवय' नामक मानको कहते हैं-)'चार कुडब' (आठ पसर) का १ नाम है--प्रस्थः ( पुन )॥ ४. 'चार प्रस्थ'का १ नाम है-आढकः ( त्रि)॥ ५. 'चार आढक'का १ नाम है--द्रोणः (पु न)॥ ६. 'सोलह द्रोण'का १ नाम है-खारी ॥ . Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मयंकाण्डः ३] मणिप्रभा'व्याख्योपेतः २२१ १चतुर्विशत्यङ्गलानां हस्ती २दण्डश्चतुष्करः । ३तत्सहस्रौ तु गव्यूतं क्रोशष्ठस्तौ द्वौ तु गोरुतम् ॥ ५५१ ।। गव्या गव्यूतगव्यूती ५चतुष्क्रोशं तु योजनम् । ७पाशुपाल्यं जीववृत्तिोमान् गोमी गवीश्वरे ॥ ५५२ ।। १. (अब क्रमप्राप्त तृतीय पाय्य' संज्ञकमानको कहते हैं-) 'चौबीसं अंगुल'का १ नाम है-हस्तः ।। २. 'चार हस्त'का १ नाम है-दण्डः ॥ ३. 'दो सहस्र दण्ड' (१ कोस)'के २ नाम हैं---गव्यूतम् , क्रोशः॥ ४. 'दो गव्पूत ( कोस ) के ४ नाम हैं-गोरुतम् , गव्या, गव्यूतम् , गव्यूतिः (पु स्त्री)॥ . ५. 'चार कोस'का १ नाम है-योजनम् ॥ विमर्श-त्रिविधमानोंके स्पष्टार्थ अधोलिखित चक्र देखिये त्रिविधमान-बोधक चक्र १ पौतवमान २ द्रुवयमान ३ पाय्यमान १ गुञ्जा. १ रत्ती | १ कुडवः २ प्रसृती. | १ अङ्गलम् ३ यवाः ५, १ माषक: ४ कुडवाः १ प्रस्थः । २४ अङ्गुलानि १ हस्तः (मासा)! ४ प्रस्थाः १ श्रादकः | ४ हस्ताः १ दण्डः . १६ माषकाः १ कषः १६ आढकाः १. खारी २००० दण्डाः १ क्रोशः ४ कर्षाः . १ पलम् २ क्रोशौ १ गव्यूतिः १६ माषकाः १ विस्तः २ गव्यूती १ योजनम् (स्वर्णस्य ) . . (४ क्रोशाः) ४ विस्ताः १ कुरुविस्तः १०० पलानि १ तुला २० तुलाः १ भारः २० भाराः १ आचितः । ... ६. 'पशुपालन'के २ नाम हैं--पाशुपाल्यम, जीववृत्तिः ।। '७. गोस्वामी के ३ नाम हैं-गोमान् (-मत् ), गोमी (-मिन् ), गवीश्वरः (+गवेश्वरः)। Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२२ अभिधानचिन्तामणिः गोपाले गोधुगाभीरगोपगोसङ्घयवल्लवाः। २गोविन्दोऽधिकृतो गोषु ३जावालस्त्वजजीविकः ॥ ५५३॥ ४कुटुम्बी कर्षक: क्षेत्री हली कृषिककाषेको। कृषीवलोऽपि ५जित्या तुहलिः ६सीरस्तु लागलम् ॥ ५५४ ॥ गोदारणं हलमीषासीते तद्दण्डपद्धती। निरीषे कुटकं हफाले कृषकः कुशिकः फलम् ॥ ५५५ ॥ १०दात्रं लवित्रं ११तन्मुष्टौ वण्टो १२मत्यं समीकृतौ । १३गोदारणं तु कुहालः १४खनित्रं त्ववदारणम् ॥ ५५६ ।। १५प्रतोदस्तु प्रवयणं प्राजनं तोत्रतोदने। . ... १. ग्वाला, गोप'के ६ नाम हैं-गोपाल:, गोधुक (-दुह ), आभीरः, गोपः, गोसञ्जयः, वल्लवः ॥.. . २. 'गौओं के अधिकारी'का १ नाम है-गोविन्दः॥. . . ३. 'बकरी, खसीसे जीविका चलाने या उसे पालनेवाले के २ नाम हैजावालः, अजजीविकः ॥ ४. 'किसान'के ७ नाम है-कुटुम्बी (-म्बिन् ), कर्षकः, क्षेत्री (-त्रिन् । + क्षेत्राजीवः ), हली (-लिन् ), कृषिक: (+कृषक: , कार्षक:, कृषीवलः ।। ५. 'बड़े हल'के २ नाम है-जिल्या, हलिः ( २ पु स्त्री)॥ ६. 'हल'के ४ नाम हैं-सीरः (पुन ), लाङ्गलम्, गोदारणम्, हलम् (पु न )॥ ७. 'हरिस ( हलका लम्बा दण्ड ) तथा 'हल, चलानेपर पड़ी हुई लकीर' के क्रमशः १-१ नाम हैं-ईषा, सीता ।। ८. 'हलके नीचे वाला वह काष्ठ-जिसमें फार गाड़ा जाता है' के २ नाम है-निरीषम् , कुटकम् ॥ ६. 'हलके फार'के ४ नाम हैं-फाल:, कृषक:, कुशिकः, फलम् ॥ १०. 'हँसिया' के २ नाम हैं--दात्रम् , लवित्रम् ।। . ११. 'हँसियेके बेंट' का १ नाम है--वण्टः॥ १२. 'जोती हुई भूमिको हेगासे बराबर करने का १ नाम है--मत्यम् ॥ १३. 'कुदाल के २ नाम है-गोदारणम् , कुद्दालः (पु । +न)॥ १५. 'रामा' खन्ती या खन्ता' (खोदनेका एक औजार ) के २ नाम हैं-खनित्रम् , अवदारणम् ॥ १५. 'चाबुक'के ५ नाम है-प्रतोदः, प्रवयणम् , प्राजनम् , तोत्रम् , तोदनम् ॥ Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मकाण्ड: ३] मणिप्रभा'व्याख्योपेत: श्योत्रं तु योक्त्रमाबन्धः २कोटिशो लोष्ठभेदनः ।। ५५७ ॥ ३मेधिर्मेथिः खलेवाली . खले गोबन्धदारु यत् । ४शूद्रोऽन्त्यवर्णो वृषलः पद्यः पज्जो जघन्यजः ॥ ५५८॥ पते तु मूर्धावसिक्तादा रथकृन्मिश्रजातयः । ६क्षत्रियायां द्विजान्मूर्धासिक्को ७विट नियां पुनः ॥ ५५६ ।। अम्बष्ठोऽथ पारशवनिषादौ शूद्रयोषिति । क्षत्राद् माहिष्यो वैश्याया१०मुप्रस्तु वृषल खियाम् ॥ ५६०॥ ११वैश्यात्तु करणः १२शूद्रात्त्वायोगवो विशः खियाम्। १३क्षत्रियायां पुनः क्षत्ता १४चण्डालो ब्राह्मणस्त्रियाम् ।। ५६१॥ १५वैश्यात्तु मागधः क्षत्र्यां १६वैदेहको द्विजस्त्रियाम् । १. 'जोती, या नाधा'के ३ नाम हैं-योत्रम्, योक्त्रम्, श्राबन्धः॥ २. हेंगा, पटेला'के २ नाम हैं-कोटिशः (+कोटीशः), लोष्ठभेदनः ॥ ३ 'मह' (दवनीमें चलते हुए बैलोंको .बांधने के खम्भे'के ३ नाम है-मेधिः, मेथि: ( २ पु स्त्री), खलेवाली ।। ___४. 'शूद्र'के ६ नाम हैं-शूद्रः, अन्त्यवर्णः, · वृषलः, पद्यः, पज्ज:, जघन्यजः ॥ ५. 'मूर्धावसिक्त' (५५६ श्लो० )से आरम्भकर स्थकारकः' (५८१ श्लो० ) तक वर्णित जाति वर्णसङ्कर शूद्र जाति' है। ६. 'ब्राह्मणसे क्षत्रिय स्त्रीमें उत्पन्न सन्तान'का १ नाम है-मूर्धावसिक्तः ॥ ७. 'ब्राह्मण से क्षत्रिय स्त्रीमें उत्पन्न सन्तान'का १ नाम है-अम्बष्ठः ।। ८. 'ब्राह्मणसे शुद्रा स्त्रीमें उत्पन्न सन्तान'के २ नाम है-पारशवः, निषादः ॥ ... ६. 'क्षत्रियसे वैश्या स्त्रीमें उत्पन्न सन्तानका १ नाम है-माहिष्यः ।। १०. 'क्षत्रियसे शूद्रा स्त्रीमें उत्पन्न सन्तान'का १ नाम है-उग्रः ॥ ११. 'वैश्य से शूद्रामें उत्पन्न सन्तान'का १ नाम है-करणः ।। १२. 'शूद्रसे वैश्या स्त्रीमें उत्पन्न सन्तान'का १ नाम है-अायोगवः ॥ १३. 'शूद्रसे क्षत्रिया स्त्रीमें उत्पन्न सन्तान'का १ नाम है-क्षत्ता १४. 'शुद्रसे ब्राह्मणी स्त्रीमें उत्पन्न सन्तान'का १ नाम है-चण्डालः ॥ १५. 'वैश्यसे क्षत्रिया स्त्रीमें उत्पन्न सन्तान'का १ नाम है-मागधः ॥ १६. 'वैश्यसे ब्रामणी स्त्रीमें उत्पन्न सन्तान'का १ नाम है-वैदेहकः ॥ Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२४ अभिधानचिन्तामणिः सूतस्तु क्षत्रियाज्जात २इति द्वादशं तद्भिदः ।। ५६२ ॥ ३माहिष्येण तु जातः स्यात् करण्यां रथकारकः । ४कारुस्तु कारी प्रकृतिः शिल्पी श्रेणिस्तु तद्गणः ॥ ५६३ ॥ ६शिल्पं कला विज्ञानं च १. 'क्षत्रियसे ब्राह्मणी स्त्रीमें उत्पन्न सन्तान'का १ नाम है-सूतः ।। २. ये १२ (५५६-५६२ श्लो० ) 'शूद्र' जातिके भेद हैं ॥ . ३. माहिष्य (क्षत्रियसे वैश्या स्त्रीमें उत्पन्न पुत्र )से करणी (वैश्यसे शूद्रा स्त्रीमें उत्पन्न कन्या )में उत्पन्न सन्तान ( बढई, कमार ), का १ नाम है-रथकारकः॥ वर्णसङ्करों के मातृ-पितृ जातिबोधक चक्र- . क्रमाङ्क ___पितृजाति १ ब्राह्मणः به " । मातृजाति क्षत्रिया ... वैश्या शूद्रा वैश्या शूद्रा । वर्णसङ्कर संतान-जाति . । मूर्धावसिक्तः अम्बष्ठः पाराशवः, निषादच माहिष्यः उग्रः سه » ४ । क्षत्रियः عر م ६ ७ वैश्यः शूद्रः ه ال वैश्या क्षत्रिया . ब्राह्मणी क्षत्रिया ब्राह्मणी आयोगवः क्षत्ता चण्डालः मागधः م ६ , १० । वैश्यः م वैदेहक: مه क्षत्रियः १३ माहिष्यः सूतः तक्षा (रथकारक:) करणी ४. कारीगर' के ४ नाम हैं-कारः, कारी (-रिन् ), प्रकृतिः, शिल्पी, (-ल्पिन् ) ॥ ५. 'उन ( कारीगरों )के समुदायका १ नाम है-श्रेणिः ( पु स्त्री )॥ ६. 'शिल्प, कारीगरी' के ३ नाम है-शिल्पम, कला, विज्ञानम् ॥ : Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२५ मयंकाण्ड: ३] 'मणिप्रभा व्याख्योपेतः –१मालाकारस्तु मालिकः । पुष्पाजीवः २पुष्पलावी. पुष्पाणामवचायिनी ॥ ५६४ ॥ ३कल्यपालः . सुगजीवी शौण्डिको मण्डहारकः।। वारिवासः पानवणिग ध्वजो ध्वज्याऽऽसुतीबलः ॥ ५६५ ॥ ४मा मदिष्ठा मदिरा परिस्रुता कश्य परिसन्मधु कापिशायनम् । गन्धोत्तमा कल्यमिरा परिप्लुता कादम्बरी स्वादुरसा हलिप्रिया ॥५६६।। शुण्डा हाला हारहूरं प्रसन्ना वारुणी सुरा । माध्वीकं मदना देवसृष्टा कापिशमब्धिजा ।। ५६७ ।। ५मध्वासवे माधवको ६मैरेये शीधुरासवः । ७जगलो मेदको मद्यपङ्कः दकिण्वं तु नग्नहूः ॥ ५६८।। नग्नहुर्मद्यबोजं च मद्यसन्धानमासुतिः । आसवोऽभिषवो १०मद्यमण्डकारोत्तमौ समौ ।। ५६६ ।। १. 'माली'के ३ नाम हैं-मालाकारः, मालिकः, पुष्पाजीवः ॥ २. 'फूलोंको चुनने या तोड़नेवाली'का १ नाम है-पुष्पलावी ॥ ३. 'कलवार, मद्यके व्यापारी के ६ नाम हैं-कल्यपाल, सुराजीवी (-विन् ), शौण्डिकः, मण्डहारकः, वारिवास:, पानवणिक् (-ज), ध्वजः, ध्वजी (-जिन् ), श्रासुतीवलः ॥ .. __४. 'मदिरा, शराब'के २६ नाम हैं-मद्यम, मदिष्ठा, मदिरा, परिसता, कश्यम् , परिसत् (स्त्री), मधु (पु न ), कापिशायनम् , गन्धोत्तमा, कल्यम् (न स्त्री), इरा, परिप्लुता, कादम्बरी (स्त्री न ), स्वादुरसा, हलिप्रिया, शुण्डा (पु स्त्री), हाला, हारहूरम् , प्रसन्ना, वारुणी, सुरा, माध्वीकम् , मदना, देवसृष्टा, कापिशम् , अधिजा ॥ ५. 'सहद मिलाकर तैयार किये गये मद्य'के २ नाम है-मध्वासवः, माधवकः ॥ ६. 'गुडसे बने.मद्य'के ३ नाम हैं-मैरेयः, शीधुः (२ पु न ), आसवः ।। ७. मद्यको तैयार करने के लिए पीसे गये पदार्थ-विशेष, या-मद्यकी सीठी, या-मद्यके काढ़े के ३ नाम हैं-जगलः, मेदकः, मद्यपङ्कः ।। ८. 'चावल आदिको उबालकर तैयार किये गये मद्य-बीज'के ४ नाम हैंकिएबम् , नग्नहूः, नग्नहुः (२ पु), मद्यबीजम् ॥ ६. मद्यको तैयार करनेके लिए उसको सामग्री महुए आदिको सड़ाने के ४ नाम है-मद्यं सन्धानम् , आसुतिः, आसवः, अभिषवः ।। १०. 'मद्यके मांड ( मद्यके स्वच्छ भाग )के २ नाम हैं-मद्यमण्ड:, कारोत्तमः॥ १५ अ० चि० Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२६ अभिधानचिन्तामणिः श्गल्वर्कस्तु चषकः स्यात्सरकश्चानुतर्षणम । २शुण्डा पानमदस्थानं ३मधुवारा मधुक्रमाः ।। ५७० ।। ४सपीतिः सहपानं स्यापदापानं पानगोष्ठिका । ६उपदंशस्त्ववदंशश्चक्षणं मद्यपाशनम् ।। ५७१ ॥ नाडिन्धमः स्वर्णकारः कलादो मुष्टिकश्च सः। स्तैजसावर्तनी मूषा भस्वा चर्मप्रसेविका ॥५७२।। १०आस्फोटनी वेधनिका ११शाणस्तु निकषः कषः । . १२संदंशः स्यात्कङ्कमुखो १३भ्रमः कुन्दं च यन्त्रकम् ।। ५७३ ॥ १४वैकटिको मणिकार: ___ १. 'मद्यपान करने के प्याले, सकोरे'के ४ नाम हैं-गल्वर्कः, चषकः, सरकः ( २ पु न ), अनुतर्षणम् (+ अनुतर्षः )॥ विमर्श-'अमरकोष'कारने प्रथम दो पर्यायोको उक्त अर्थ तथा अन्तवाले दो शब्दोंका मद्य परोसना ( बांटना ) अर्थ माना है । २. 'कलवरिया, भट्ठी ( मद्य पीने के स्थान )का' १ नाम है--शुण्डा ॥ ३. 'मद्य-पानके क्रम-वारी'के २ नाम हैं-मधुवाराः, मधुक्रमाः ॥ ४. एक साथ मद्य-पान करने के २ नाम हैं-सपीतिः, सहपानम् ।। ५. 'मद्य-पान-गोष्ठी-जमाव'के २ नाम हैं-श्रापानम् , पानगोष्ठिका (+पानगोष्ठी)। ६. 'मद्यपानमें रुचि-वर्धनाथ बीच-बीच में नमकीन चना आदि खाने के ४ नाम है-उपदंशः, अवदंशः, चक्षणम् , मद्यपाशनम् ।। ___७. 'सुनार के ४. नान हैं-नाडिन्धमः, स्वर्णकारः, कलादः, मुष्टिकः (+पश्यतोहरः)॥ ८. 'घरिया (सोना-चांदी गलानेके लिए मिट्टीके बनाये हुए पात्रविशेष ) के २ नाम हैं तैनसावर्त्तनी, मूषा ।। . ६. 'धौंकनी, भाथी'के २ नाम है-भस्त्रा, चर्मप्रसेविका ।। १०. 'बर्मी ( मोती श्रादिमें छेद करनेके अस्त्र-विशेष ) के २ नाम हैंआस्फोटनी, वेधनिका ॥ . ११. 'सान'के ३ नाम हैं-शाणः, निकषः, कषः ॥ ... • १२. 'संडसी'के २ नाम है-सन्देशः, कङ्कमुखः ॥ १३. 'यन्त्र, मसीन'के ३ नाम हैं--भ्रमः, कुन्दम् (पुन ), यन्त्रकम् (+यन्त्रम् ) १४. 'जवाहरातको सानपर चढ़ाकर सुडौल बनानेवाले'के २ नाम हैंवैकटिकः, मणिकारः ॥ Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२७ २२७ मर्त्यकाण्डः ३] 'मणिप्रभाव्याख्योपेतः --शौल्बिकस्ताम्रकुट्टकः। २शाजिकः स्यात् काम्ब विक३स्तुन्नवायस्तु सौचिकः ।। ५७४ ॥ ४कृपाणी कतरी कल्पन्यपि ५सूची तु सेवनी। ६सूचिसूत्रं पिप्पलकं ७तधैः कर्तनसाधनम् ।। ५७५ ।। पपिञ्जन विहननं च तुलास्फोटनकार्मुकम् । हसेवनं सीवनं स्यूति१०स्तुल्यौ स्यूतप्रसेवको ।। ५७६ ॥ ११तन्त्रवायः कुविन्दः स्यात् १२वसरः सूत्रवेष्टनम् । १३वाणिव्यू ति१४वानदण्डो वेमा १५सूत्राणि तन्तवः।। ५७७ ॥ १. 'तमेड़ा' (तांबेके वर्तन आदि बनाने वाले ) के २ नाम हैं शौल्बिकः, ताम्रकुटकः ।। ____२. 'समुद्रनिर्गत शङ्खको ठीक करनेवाले' या 'शंखकी चूड़ी आदि बनाने वाले'के २ नाम है-शाजिकः काम्बविकः ॥ . . ३. 'दर्जी'के २ नाम है-तुन्नवायः, सौचिकः ॥ . ४. कैंची'के ३ नाम हैं--कृपाणी, कर्तरी, कल्पनी ।। ५. 'सूई के २ नाम है-सूची (+सूचिः ), सेवनी ॥ ६. 'सूईके धागे'के र नाम है-सूचिसत्रम, पिप्पलकम् । ७. 'तकुवा (सूत कातनेके साधन-विशेष ) के २ नाम है-तकुः (पु), कत्तनसाधनम् ॥ ८. 'धुनकी (रूई धुननेवाली धनुही )के ३ नाम है-पिञ्जनम्, विहननम्, तुलास्फोटनकामुकम् ।। ६. 'सिलाई करने के ३ नाम है--सेवनम्, सीवनम्, स्यूतिः॥ १०. 'सिले हुए वस्त्रादि'के २ नाम है-स्यूतः, प्रसेवकः ॥ ११. 'जुलाहे, बुनकर के २ नाम है--तन्त्रवायः (+तन्तुवायः), कुविन्दः ॥ १२. 'दग्की, या-सूत लपेटे जानेवाले वंशादिखण्ड के २ नाम हैत्रसरः, सूत्रवेष्टनम् ॥ . ___ १३. 'बुनना (कपड़ेकी बुनाई करने )के २ नाम है-वाणिः (स्त्री), न्यूतिः ॥ ___१४. ( 'करघा, या-वेमा (कपड़ा बुननेके दंण्डे ) के २ नाम हैवानदण्डः , वेमा (-मन् , पु न)। १५. 'सूत (धागा, डोरा)के २ नाम हैं-सूत्राणि, (पु न ), तन्तवः (पु । दोनों पर्यायोंमें बहुत्वापेक्षया बहुवचन प्रयुक्त होनेसे एकत्वादिकी विवक्षामें एकवचनादि भी होते हैं) Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२८ अभिधानचिन्तामणिः १ निर्णेजकस्तु रजकः २पादुकाकृत्तु चर्मकृत् । ३ उपानत् पादुका पादूः पन्नद्धा पादरक्षणम् ।। ५७८ || प्राणहिता४ऽनुपदीना त्वाबद्धाऽनुपदं हि या । ५नद्धी वद्धी वरत्रा स्या६दारा चर्मप्रभेदिका ॥ ५७६ ॥ ७कुलालः स्यात् कुम्भकारो दण्डभृच्चक्रजीवकः । शाणाजीवः शस्त्रमार्जी भ्रमासक्तोऽसिधावकः ॥ ५८० ॥ धूसरश्चाक्रिकस्तैली स्यात् १० पिण्याकखलौ समौ । ११रथकृत् स्थपतिस्त्वष्टा काष्ठतट् तक्षवर्द्धकी ॥ ५८१ ॥ १२ ग्रामायत्तो ग्रामतक्ष: १. 'धोबी' के २ नाम हैं - निर्णेजक : ( + धावक : ), रजकः ॥ २. 'चमार' के २ नाम हैं - पादुकाकृत्, चर्मकृत् ॥ ३. 'बूते' के ६ नाम हैं-उपानत् ( - नह; स्त्री), पांदुका, पाहू: (स्त्री), पन्नद्धा, पादरक्षणम्, ( + प्रादत्राणम् ), प्राणहिता ॥ शेषश्चात्र -- पादुकायां पादरथी पादजङ्गः पदत्वरा । पादवीथी च पेशी च पानपीठी पदायता || ४. 'मोजा (पैतात्रा ) या -- पूरा जूता ( बूट ) ' का १ नाम पदीना ॥ ५. 'चमड़े की रस्सी' के ३ नाम हैं-नदूधी, ६. 'चमड़ा सीने या काटनेके औजार' के २ प्रभेदिका ॥। ७. ' कुम्हार' के ४ नाम हैं - कुलाल:, कुम्भकारः, जीवकः ॥ ८. 'सान चढ़ानेवाले' के ४ नाम है - शाणाजीवः, शस्त्रमार्जः, भ्रमासक्तः, असिधावकः || ६. 'तेली' के ३ नाम हैं— धूसर, चाक्रिकः, तैली (-लिन् । + तिलन्तुदः ) । १०. 'खल्ली ( तेल निकालने के बाद बची हुई सीठी ) ' के २ नाम हैंपिण्याकः, खलः ( २ पुन ) ॥ ११. बढ़ई के ६ नाम हैं - रथकृत्, ( + रथकार: ), स्थपतिः स्वष्टा (-"टृ ), काष्टतट् (-तच् ), तक्षा (-क्षन् ), वर्द्धकिः ।। १२. 'गांव बढ़ई ( जो किसानों के अधीन रहकर हल आदिका कार्य करता है, उस साधारण बढ़ई' का १ नाम है— ग्रामतः ॥ -अनु. दूधी ( २ स्त्री ), वरत्रा ॥ नाम हैं- आरा, चर्म दण्डभृत्, चक्र Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मर्यकाण्ड: ३] मणिप्रभा'व्याख्योपेतः २२६ .. -१कौटतक्षोऽनधीनकः । २वृक्षभृत्तक्षणी वासी ३क्रकचं करपत्रकम् ॥ ५८२ ॥ ४स उद्धनो यत्रकाले काष्ठं निक्षिप्य तक्ष्यते । ५वृक्षादनो वृक्षभेदी ६टङ्कः पाषाणदारण: ।। ५८३ ।। ७व्योकारः कर्मारो लोहकारः ८कूटं त्वयोधनः । ६व्रश्चनः पत्रपरशु१०रीपीका प्लिकेपिका ।। ५८४॥ ११भक्ष्यकारः कान्दविकः १२कन्दुस्वेदनिके समे। १३रङ्गाजीवस्तौलिकिकश्चित्रकृच्चा१४थ तूलिका ।। ५८५ ॥ कूचिका १. 'स्वतन्त्र, रहकर काम करनेवाले बढ़ईका १ नाम है-कौटतक्षः (+ कूटतक्षः)॥ २. 'बसूला'के ३ नाम हैं -वृक्षभित् ( - द्), तक्षणी, वासी ।। ३. 'आरा, साह, श्रारी'के २ नाम हैं-क्रकचम् (पु न ), करपत्रकम् (+करपत्रम् )। ४. 'ठेहा (जिस काष्ठ पर रखकर दूसरे काष्ठ आदि. को छीलते हैं, उस नीचेवाले काष्ठ )का १ नाम है-उद्घनः। ( उपचारसे 'निहाय' जिस ठोस लोहे पर रखकर दूसरे लोहेको पीटते हैं, उस नीचेवाले लोहे )को भी 'उद्घनः' कहते हैं)॥ . . . ५. 'कुल्हाड़ो; या-बड़ा कुल्हाड़ा ( या-वसूला )'के २ नाम हैंवृक्षादनः, वृक्षभेदी ( - दिन् )॥ ६. 'छेनी, छेना (पत्थर तोड़नेवाले औजार )के २ नाम हैं-टङ्कः (पु न ), पाषाणदारणः ।।। ७. 'लोहार के ३. नाम है-व्योकारः, कर्मारः, लोहकारः ॥ ८. 'लोहेके घन'के २ नाम हैं-कूटम् (पु न), अयोधनः ॥ ६. 'सोना-चांदी काटनेको छेनी, या-छोटी आरो'के २ नाम हैंवश्चनः, पत्रपरशुः ॥ . १०. 'लकड़ी या लोहेकी शलाका-सोक'के ३ नाम हैं-ईषीका, तूलिका, ईषिका ॥ ११. 'हलवाई के २ नाम हैं-भक्ष्यकारः, कान्दविकः ॥ १२. 'भट्ठा, भाड़'के २ नाम है-कन्दुः (पु स्त्री), स्वेदनिका ॥ १३. 'चित्रकार, रंगसाब'के ३ नाम हैं-रङ्गाजीवः, तौलिकिकः, चित्रकृत् +चित्रकरः, चित्रकारः)॥ १४. 'कूची, रंग भरनेके ब्रस'के २ नाम है-तूलिका, कूचिका ॥ Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३० अभिधानचिन्तामणिः -१चित्रमालेख्यं २पलगण्डस्तु लेप्यकृत् । ३पुस्तं लेप्यादि कर्म स्याद् ४नापितश्चण्डिलः चुरी ॥ ५८६ ॥ तुरमर्दी दिवाकीर्तिर्मुण्डकोऽन्तावसाय्यपि । ५मुण्डनं भद्राकरणं वपनं परिवापणम् ॥५८७ ।। दौरं ६नाराची त्वेषिण्यां ७देवाजीवस्तु देवलः। ८मार्दङ्किको मौरजिको वीणावादस्तु वैणिकः ।। ५८८ ।। १०वेणुध्मः स्याद् वैणविकः ११पाणिघः पाणिवादकः । १२स्यात् प्रातिहारिको मायाकारो १३माया तु शाम्बरी ।। ५८६ ।। १४इन्द्रजालं तु कुहुक जालं कुमृतिरित्यपि।। १. 'चित्र, फोटो के २ नाम हैं-चित्रम् , अालेख्यम् ॥ २. 'चूने आदिसे पुताई करनेवाले'के २ नाम है-पलगण्डः, लेप्यकृत (+लेपकः)। ३. 'चूने श्रादिसे पुताई करने का १ नाम है-पुस्तम् (पु न )। ४. 'नाई, हज्जाम के ७ नाम है-नापितः, चण्डिल:, चुरी( - रिन् ), चुरमर्दी ( - दिन् ), दिवाकीर्तिः, मुण्डकः, अन्तावसायी ( - यिन् ) ।। शेषश्चात्र-नापिते ग्रामणीभण्डिवाहक्षौरिकमाण्डिकाः ॥ ५. 'मुण्डन कराने, हजामत बनाने के ५ नाम हैं-मुण्डनम् , 'भद्राकरणम् , वपनम् , परिवापणम्, क्षौरम् ॥ ६. 'सोना-चांदी तौलने का कांटा?के २ नाम हैं-नाराची, एषिणी (+एषणिका, एषणी)॥ ७. 'देव-पूजन कर जीविका चलानेवाले के. २ नाम है-देवाचीवः, देवलः ॥ ८. 'मृदङ्ग बजानेवाले'के २ नाम है-मार्दङ्गिकः, मौरषिकः ।। ६. 'वीणा बजानेवाले'के २ नाम है-वीणावादः, वैणिकः ।। १०. 'वंशी या मुरली बजानेवाले के २ नाम हैं-वेणुध्मः, वैणविकः ।। ११. 'ताली बजानेवाले'के २ नाम है-पाणिषः, पाणिवादकः॥ १२. 'माया करनेवाले (जादूगर के २ नाम हैं-प्रातिहारिक:, मायाकारः॥ १३: 'माया'के २ नाम है-माया, शाम्बरी ॥ १४. 'इन्द्रजाल के ४ नाम हैं-इन्द्रजालम्, कुहुकम् (+कुहकम् ), बालम्, कुसतिः॥ Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मर्त्यकाण्डः ३ ] 'मणिप्रभा' व्याख्येोपेतः १ कौतूहलं तु कुतुकं कौतुकं च कुतूहलम् ॥ ५६० ॥ २व्याधो मृगवधाजीवी लुब्धको मृगयुश्च सः । ३पर्धिमृगयाssखेटो मृगव्याच्छोदने अपि ॥ ५६१ ॥ ४ जालिकस्तु वागुरिको श्वागुरा मृगजालिका । ६शुम्बं वटारको रज्जुः शुल्बं तन्त्री वटी गुणः ॥ ५६२ ॥ ७धीवरो दाशकैवत्त डिश मत्स्यवेधनम् । आनायस्तु मत्स्यजालं १० कुवेणी मत्स्यबन्धनी ॥ ५९३ ॥ ११ जीवान्तकः शाकुनिको १२वैतंसिकस्तु सौनिकः । मांसिकः कौटिकश्चा१३थ सूना स्थानं वधस्य यत् ॥ ५६४ ॥ `१४स्याद् बन्धनोपकरणं वीतंसो मृगपक्षिणाम् । २३१ १. 'कौतुक, कुतूहल' के ४ नाम हैं— कौतूहलम्, कुतुकम्, कौतुकम् कुतूहलम् ( + विनोद: ) ।। २. 'व्याघ' के ४ नाम हैं व्याधः, मृगवधाजीवी ( - विनू ), लुब्धकः ( + लुब्धः ), मृगयुः ॥ ३. ‘शिकार, श्राखेट' के ५ नाम है - पापर्धिः, मृगया, श्राखेट:, मृगब्यम्, भाच्छोदनम् ( २ पु न ) ॥ ४. 'बाल लगानेवाले' के २ नाम है - बालिकः, वागुरिकः ॥ ५. 'मृग-पक्षी श्रादि फसानेवाले जाल के २ नाम हैं- वागुरा, मृगबालिका ॥ ६.. 'रस्सी' के ७ नाम हैं—शुम्बम् ( न स्त्री ), वटारकः, रज्जुः ( स्त्री ), शुल्वम्, तन्त्री, वटी ( स्त्री ), सुणः ।। ७. 'मल्लाह' के ३ नाम हैं- धीवरः, दाश:, कैवर्तः ॥ ८. 'बंशी ( जिसमें आटा या किसी छोटे कीड़े को लपेट कर मछली फँसाते हैं, उस लोहेकी टेढी कील ) के २ नाम हैं - वडिशम्, मत्स्यवेधनम् ॥ ६. 'मछली फँसाने के बाल'का १ नाम है —आनायः ॥ १०. 'मछलीको पकड़कर रखनेवाली टोकरी' के २ नाम हैं— कुवेणी, मत्स्यबन्धनी ॥ ११. 'चिड़ियामार' के २ नाम है- जीवान्तकः, शाकुनिक्रः ॥ १२. 'वधिक ( चीक ) के ४ नाम है—वैतंसिकः, सौनिकः, मांसिकः, कौटिक (+ खट्टिकः ) । १३. 'कसाई खाना'का १ नाम है -सूना ॥ १४. 'मृग, पशु, पक्षी आदिको फँसाने के साधनों' का १ नाम है— वीतंसः ( पुन ) ।। Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३२ अभिधानचिन्तामणि: १पाशस्तु बन्धनप्रन्थिरवपातावटौ समौ ।। ५६५ ।। ३उन्माथः कूटयन्त्रं स्याद् ४विवर्णस्तु पृथग्जनः । इतरः प्राकृतो नीचः पामरो बर्बरश्च सः ।। ५६६ ।। ५चण्डालेऽन्तावसाय्यन्तेवासिश्वपचबुक्कसाः । निषादप्लवमातङ्गदिवाकीर्तिजनङ्गमाः ॥५६॥ ६पुलिन्दा नाहला निष्टयाः शबरा वरुटा भटाः । माला भिल्लाः किराताश्च सर्वऽपि म्लेच्छजातयः ।। ५६८ ।। इत्याचार्यहेमचन्द्रविरचितायाम "अभिधानचिन्ता-... ___ मणिनाममालायां” तृतीयो “मर्त्यकाण्डः' । समाप्तः॥ ३॥ . . . १. 'फास ( मृगादिको बांधनेका ग्रन्थि-विशेष ) का १ नाम है-पाशः । २. 'मृगादिको फँसानेके लिए बनाये गये गढे'के २ नाम है-अवपातः, अवटः॥ ३. 'मृगोंको फँसानेके कूट यन्त्र २ नाम हैं-उन्मायः, • कूटयन्त्रम् (+पाशयन्त्रम् )॥ ४. 'नीच, पामर के ७ नाम हैं-विवर्णः, पृथग्जनः, इतरः, प्राकृतः, नीचः, पामरः, बर्बरः॥ ५. 'चण्डाल'के १० नाम हैं -चण्डाल: (+चाण्डाल: ), अन्ता. वसायी (- यिन् ), अन्तेवासी (- सिन् ), श्वपचः (+श्वपाक: ), बुक्कस: (+पुक्कस:, पुष्कस: ), निषादः, प्लवः, मातङ्गः, दिवाकीर्तिः, जननमः ।। विमर्श-यहां पर 'श्वपच' अर्थात् 'डोम' और बुक्कस' अर्थात् 'मृतप' इस भेद-विशेषका आभय नहीं किया गया है। ६. 'म्लेच्छ जातियों के ये भेद हैं-पुलिन्दाः, नाहलाः, निष्टयाः, शबराः, बरुटाः, भटाः, मालाः, भिल्लाः, किराताः । ( बहुत्वापेक्षया बहुवचन प्रयुक्त होनेसे उक्त शब्दोंका एकवचनमें भी प्रयोग होता है )॥ इस प्रकार 'मणिप्रभा' व्याख्या तृतीय मर्त्यकाण्ड समाप्त हुआ ।। ३ ॥ Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . अथ तिर्यकाण्डः ॥४॥ भूभूमिः पृथिवी पृथ्वी बसुधोवीं वसुन्धरा । धात्री धरित्री धरणी विश्वा विश्वम्भराघरा ॥१॥ क्षितिः क्षोणी क्षमाऽनन्ता ज्या कुर्वसुमती मही। गोर्गोत्रा भूतधात्री मा गन्धमाताऽचलाऽवनिः ॥ २॥ सर्वसहा रत्नगर्भी जगतो मेदिनी रसा। काश्यपी पर्वताधारा स्थिरेला रत्नबीजसूः ॥ ३ ॥ विपुला सागराच्चाने स्युर्नेमीमेखलाम्बराः। . २द्यावापृथिव्यौ तु द्यावाभूमी द्यावाझमे अपि ।। ४ ।। दिवस्पृथिव्यौ रोदस्यौ रोदसी रोदसी च ते। . ३उर्वरा सर्वसस्या भू४रिरिणं पुनरूषरम् ।। ५॥ १. प्रथम यहां से आरम्भकर ४।१३४ तक 'पृथ्वीकायिक' जीवों का वर्णन करते हैं 'पृथ्वी के ४३ नाम हैं-भूः, भूमिः, पृथिवी, पृथ्वी, वसुधा, उर्वी, वसुन्धरा, पात्रो, धरित्री, धरणी, विश्वा, विश्वम्भरा, धस, क्षितिः, क्षोणी, क्षमा, अनन्ता, ज्या, कुः, वसुमती, मही, गौः (गो), गोत्रा, भूतधात्री, दमा, गन्धमाता (-४), अचला, अवनिः, सर्वसहा, रत्नगर्भा (+रत्नवती), जगती, मेदिनी, रसा, काश्यपी, पर्वताधारा, स्थिरा, इला, रत्नसः, बीजसः, विपुला, सागरनेमी, सागरमेखला, सागराम्बरा, (यौ०-समुद्ररशना, समुद्रकाञ्चिः , समुद्रवसना,...")।. • शेषश्चात्र. अथ पृथ्वी महाकान्ता शान्ता मेर्वद्रिकर्णिका । • गोत्रकीला घनश्रेणी मध्यलोका जगदहा ।। ... देहिनो केलिनी मौलिमहास्थाल्यम्बरस्थली । २. 'सम्मिलित आकाश तथा पृथ्वी के ७ नाम है-द्यावापृथिव्यौ, द्यावाभूमी, द्यावाक्षमे, दिवस्पृथिव्यो (+दिवःपृथिव्यौ), रोदस्यो, रोदसी (-दस, न, द्विव०), रोदसी (-सि । शेष ५ स्त्री, द्वि०)॥ ३. 'उपचाऊ भूमि'का १ नाम है-उर्वरा । ४. 'ऊसर भमि के २ नाम है-इरिणम् , ऊषरम् । Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३४ अभिधानचिन्तामणिः १स्थलं स्थली २मरुर्धन्वा ३क्षेत्राचाहतं खिलम् । ४मृन्मृत्तिका ५सा क्षारोषो ६मृत्सा मृत्स्ना च सा शुभा ॥६॥ ७रुमा लवणखनिः स्यात् सामुद्रं लवणं हि यत्। . तदक्षीवं वशिरश्च सैन्धवं तु नदीभवम् ॥७॥ माणिमन्थं शीतशिवं १०रौमकं तु रुमाभवम् । वसुकं वसूकं तच्च ११विडापाक्ये तु कृत्रिमे ॥८॥ १२सौवर्चलेऽक्षं रुचकं दुर्गन्धं शूलनाशनम् । १३कृष्णे तु तत्र तिलकं १४यवक्षारो यवाग्रजः ॥६॥ यवनालजः पाक्यश्च १५पाचनकस्तु टङ्कणः। मालतीतीरजो लोहरलेपणो रसशोधनः ॥ १०॥ १. 'अकृत्रिम ( विना लिपी-पुती हुई-प्राकृतिक ) भूमि'के २ नाम हैंस्थलम् , स्थली। २. 'मरुभूमि (मारवाड़ आदिको निर्जल भमि )के २ नाम है-मरुः, धन्वा (न्वन् । २ पु)॥ ३. 'हल आदिसे बिना जोते या कोड़े ( खोदे ) गये खेत आदि'के २ नाम है-अप्रहतम् , खिलम् ॥ ४. 'मिट्टी के २ नाम हैं-मृत् (-द् ), मृत्तिका ।। . . ५. 'खारी 'मिट्टी'के २ नाम हैं-क्षारा, ऊषः ॥ ६. 'अच्छी मिटटी के २ नाम है--मृत्सा, मृत्स्ना ।। ७. 'नमककी खान'का १ नाम है-रुमा ॥ ८. 'समुद्री नमक'के. ४ नाम. है-सामुद्रम्, लवणम्, अक्षीवम्, वशिरः (पु I+न)। (किसीके मतसे अन्तवाले २ शब्द उतार्थक हैं )॥ ६. (' सिन्धु देशमें पैदा होनेवाले) सेंधा नमक के ४ नाम हैं-सैन्धवम् (पु न ), नदीनवम्, माणिमन्थम्, शीतशिवम् ।। १०. 'सांभर ( खानमें पैदा होनेवाले ) नमक' के ४ नाम है-रोमकम्, रुमाभवम्, वसुकम्, वसूकम् ।। ११. 'खरिया या खारा नमक' के २ नाम हैं-विडम्, अपाक्यम् ।। १२. 'सोचर नमक' के ५ नाम हैं-सौवर्चलम् (पु न ), अक्षम्, रुचकम्, दुर्गन्धम्, शूलनाशनम् ॥ १३. 'काला नमक'का १ नाम है--तिलकम् ।। १४. 'जवाखार के ४ नाम हैं-यवक्षारः, यवाग्रजः, यवनालजः, पाक्यः ।। १५. 'सुहागा'के ५ नाम हैं-पाचनकः, टङ्कणः (+ङ्कनः), मालतीतीरजः, लोहश्लेषणः, रसशोधनः ॥ Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिर्यक काण्ड: ४ ] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः • २३५ १समास्तु . स्वर्जिकाक्षारकापोतसुखवर्चकाः । २स्वर्जिस्तु स्वर्जिका जुग्नी योगवाही सुवञ्चिका ॥ ११ ॥ ३भरतान्यैरावतानि विदेहाश्च कुरून् विना । वर्षाणि कर्मभूभ्यः स्युः ४शेषाणि फलभूमयः ॥ १२ ॥ श्वर्ष वर्षधराधर्षं. ६विषयस्तुपवर्तनम् । देशो जनपदो नीद्राष्ट्र निर्गश्च मण्डलम् ॥ १३ ॥ ७आर्यावर्तो जन्मभूमिर्जिनचक्रयर्द्धचक्रिणाम। पुण्यभराचारवेदी मध्यं विन्ध्यहिमागयोः ।। १४ ।। १. 'सज्जीखार' के ३ नाम हैं-स्वर्जिकाक्षार:, कापोतः, सुखवर्चकः ॥ २. 'सोरा या सब्जी'के ५ नाम हैं-स्वर्जिः, स्वर्जिका, सुग्घ्नी, योगवाही, सुवर्चिका ।। ३. ५ 'भरत' (एक जम्बूद्वीपमें, दो घातको खण्डमें और दो पुष्करवरद्वीपार्धमें-१+२+२=५), ५ 'ऐरावत' और · ५ विदेह (पूर्वविदेह तथा अपरविदेह; देवकुरु तथा उत्तरकुरु-इन दोनोंको छोड़कर ) ये वर्ष 'कर्मभूमि' हैं॥ ४. बाकी (जम्बूद्वीपमें चार वर्ष हैमवत, हरिवष, रम्यक और हैरण्यवत, घातकीखण्ड तथा पुष्करवरद्वीपार्ध में उन्हीं नामोंवाले आठ आठ वर्ष और देवकुरु उत्तरकुरुरूप दश विदेहांश-इस प्रकार ४+++१=३०) तीस वर्ष 'भोगभूमि' हैं॥ ५. हिमवान् , महाहिमवान् , निषध, नील, रुक्मी और शिखरी-ये ६.वर्ष जम्बूद्वीपमें; उक्त नामवाले १२-१२ वर्ष धातकीखण्ड तथा पुष्करवरार्धद्वीपमें-इस प्रकार.६+१२+१२=३० वर्षधरादिसे चिह्नित का १ नाम 'वर्षम्' (पु.न) है । (लौकिक जन नव वर्ष हैं, ऐसा कहते हैं ) ॥ ६. 'देश के ८ नाम है--विषयः, उपवर्तनम् (+उपावर्तनम् ), देशः, जनपदः, नीवत् (स्त्री ।+पु), राष्ट्रम् (पु न ), निर्गः, मण्डलम् ।। ७. 'आर्यावर्त (विन्ध्याचल तथा हिमाचलकी मध्यभूमि) के ३ नाम है-आर्यावर्तः, पुण्यभूः, आचारवेदी ।। १ यथा-भारतं प्रथम वर्ष ततः किम्पुरुषं स्मृतम् । हरिवर्ष तथैवान्यद् मेरोदक्षिणतो द्विजः ।। रम्यक चोत्तरं वर्ष तस्यैवानु हिरण्मयम् । उत्तराः कुरवश्चैव यथा वे भारतं तथा ।। भद्राश्वं पूर्वतो मेरोः केतुमालं तु पश्चिमे । नवसाहसमेकैकमेतेषां द्विजसत्तम ।। इलावृत्तञ्च तन्मध्ये तन्मध्ये मेहरुस्थितः।" (स्वो० ४ । १३). Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३६ अभिधानचिन्तामणिः श्गङ्गायमुनयोर्मध्यमन्तर्वेदिः समस्थली। २ब्रह्मावतः सरस्वत्या दृषद्वत्याश्च मध्यतः ।। १५ । ३ब्रह्मवेदिः कुरुक्षेत्रे पश्चरामहदान्तरम् । ४धर्मक्षेत्रं कुरुक्षेत्रं द्वादशयोजनावधि ॥ १६ ॥ ५हिमव द्विन्ध्ययोर्मध्यं यत्प्राग्विनशनादपि । प्रत्यगेव प्रयागाच्च मध्यदेशः स मध्यमः॥ १७ ॥ ६देशः प्राग्दक्षिणःप्राच्यो नदी यावच्छरावतीम् । ७पश्चिमोत्तरस्तूदीच्यः प्रत्यन्तो म्लेच्छमण्डलः ॥ १८ ॥ पाण्डूदक्कृष्णतो भमः पाण्डूदक्कृष्णमृत्तिके । .' विमर्श-यह आर्यावर्त विन्ध्य तथा हिमालय पर्वतोंके मध्यभाग को कहते हैं, यही अवसर्पिणी कालके बृषभदेवादि २४ तीर्थङ्करों (१ । २६-२८) भरत आदि १२ चक्रवर्तियों । ३ ३५५-३५८), अश्वग्रीवादि तथा त्रिपृष्ठादि अर्धचक्रवर्तियों ( ३ । ३५६-३६१ ) और साहचर्य से अचलादि ६ बलदेवोंकी (३ । ३६१) जन्मभूमि है )॥ १. 'अन्तर्वेदि ( गङ्गा तथा यमुना नदीके मध्यभूमि-भाग ) के २ नाम हैं-अन्तर्वेदिः, समस्थली ।। ___२, 'ब्रह्मावर्त ( सरस्वती तथा दृषद्वती नदियोंके मध्यभूमि-भाग )का १ नाम है-ब्रह्मावर्तः। ३. 'ब्रह्मवेदि (कुरुक्षेत्र में पांच परशुरामतडागोंके मध्यभागका १ नाम है-ब्रह्मवेदिः ॥ ४. 'कुरुक्षेत्र'के २ नाम हैं, यह १२ योजनमें विस्तृत है-धर्मक्षेत्रम्, कुरुक्षेत्रम् ॥ ५ मध्यदेश ( हिमालय तथा विध्यपर्वतके मध्यभाग और विनशन ( सरस्वती नदीके जलके अन्तर्धान होनेका स्थान तथा प्रयागके पश्चिमके भाग ) के २ नाम हैं-मध्यदेशः, मध्यमः ॥ ६. 'प्राच्यदेश (पूर्वोत्तर होकर बहनेवाली शरावती नदीके पूर्व-दक्षिण दिशामें स्थित देश )का १ नाम है--प्रायः॥ ७. 'उदीच्य (पूर्वोक्त शरावती नदीके पश्चिमोत्तर दिशा में स्थित देश का १ नाम है-उदीच्यः ॥ ८. 'म्लेच्छ देश'का १ नाम है--प्रत्यन्तः ।। ... ६. 'पाण्ड, उदीची तथा कृष्ण भूमिवाले देशों के क्रमशः २-२ नाम है-पाण्डभूमः, पाण्डुमृत्तिकः, उदग्भूमः, उदस्मृत्तिकः, कृष्णभूमः कृष्णमुत्तिकः॥ Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिर्यकाण्ड: ४] मणिप्रभा'व्याख्योपेतः १जङ्गलो निर्जलो२ऽनूयोऽम्बुमान् ३कच्छस्तु द्विधः ॥ १६ ॥ ४कुमुद्वान् कुमुदावासो ५वेतस्वान् भूरिवेतसः। ६नडप्रायो नडकीयो नवांश्च नडवलश्च सः॥२०॥ शाद्वलः शादहरिते . ८देशो नद्यम्बुजीवनः। स्यान्नदीमातृको हदेवमातृको वृष्टिजीवनः ॥ २१ ॥ १०प्राग्ज्योतिषाः कामरूपा ११मालवाः स्युरवन्तयः। १२त्रपुरास्तु डाइलाः स्युश्चैद्यास्ते चेदयश्च ते ॥२२॥ १३वङ्गास्तु हरिकेलीया १४अङ्गाश्चम्पोपलक्षिताः। १५साल्वास्तु कारकुक्षीया १६मरवस्तु दशेरकाः॥ २३ ॥ १७जालन्धरात्रिगर्ताः स्यु१. निर्जल देश के २ नाम हैं-बङ्गाल:, निर्जलः ।। २. 'सजल देश के २ नाम है-अनूपः, अम्बुमान् (-मत्)। ३. 'कच्छ (प्रायः जलयुक्त) देशका १ नाम है-कच्छः ॥ ४. 'कुमुदबहुल ( अधिक कुमुद-रात्रिमें विकसित होनेवाले कमलविशेष-वाले ) देश' के २ नाम है-कुमुद्वान् (-द्वत् ), कुमुदावास: । . ५. 'बहुत बेत पैदा होनेवाले देशका १ नाम है-वेतस्वान् (-स्वत् )॥ ६. 'बहुत नरसल पैदा होनेवाले देश के ४ नाम है-नडप्रायः, नड. कीयः, मड़वान् (-हवस् ), नडवलः ॥ . ७. 'बहुत दूर्वा वाले देशका १ नाम है--शादलः ॥ ८. 'नदी (नहर, आहर, पोखर. नलकूप आदि )के पानीसे खेतोंकी सिंचाईसे जीविका करनेव'ले देश'का १ नाम है-नदीमातृकः ॥ ६. 'वर्षी मात्रके पानीसे खेतोंकी सिचाई कर जीविका चलानेवाले देद्य' का १ नाम है-देवमातृकः ।। १०. 'कामरूप (कामाक्षा) देश'के २ नाम है-प्राग्ज्योतिषाः, कामरूपाः ।। . . . . २१. 'मालव देश'के २ नाम हैं-मालवाः, अवन्तयः ।। १२. 'चैद्यदेश के ४ नाम है-त्रपुरा:. डाहलाः, चैद्याः, चेदयः ।। १३. 'बङ्गाल देश'के २ नाम है-वङ्गाः, हरिकेलीयाः ।। १४. 'अङ्ग देश'के २ नाम है-अङ्गाः, चम्पोपलक्षिताः ।। १५. 'साल्व देश के २ नाम हैं-साल्वाः, कारकुक्षीयाः ॥ १६. 'मरु देश'के २ नाम है-मरवः (-रु । पु), दशेरकाः ॥ १७. 'त्रिगत देश'के २ नाम हैं-जालन्धगः, निगाः ॥ Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३८ अभिधानचिन्तामणिः -१स्तायिकास्तर्जिकाभिधाः। २कश्मीरास्तु माधुमताः सारस्वता विकर्णिकाः ।। २४ ॥ .. ३वाहीकाष्टक्कनामानो ४वाहीका वाह्निकाह्वयाः। ५तुरुष्कास्तु साखयः स्युः ६कारूषास्तु बृहद्गृहाः ॥ २५ ॥ ७लम्पाकास्तु मुरण्डाः स्युः सौवीरास्तु कुमालकाः। प्रत्यग्रथास्त्वहिच्छत्राः १८कीकटा मगधाह्वयाः॥२६ ॥ ११अोण्डाः केरलपर्यायाः १२कुन्तला उपहालकाः। १३ग्रामस्तु वसथः सं-नि-प्रति-पर्यु-पतः परः ॥ २७ ॥ १४पाटकस्तु तदद्धे स्या१५दाघाटस्तु घटोऽवधिः। अन्तोऽवसानं सीमा च मर्यादाऽपि च सीमनि ॥२८॥ १. 'तायिक नामक देश-विशेष'के २ नाम है-तायिकाः, तजिंकाः ।। • २. 'कश्मीर देश'के ४ नाम हैं-कश्मीराः, माधुमता:, सारस्वताः, विकर्णिकाः ॥ ३. 'वाहीक देश'के २ नाम हैं-वाहीकाः, टकाः ॥ ४. 'बाह्नीक देश के २ नाम हैं-वाहलीकाः, वाहलिकाः ॥ ५. 'तुरुष्क ( तुर्क या तुर्की ) देश के २ नाम है-तुरुष्काः, साखयः ।। ६. 'कारूष देश'के २ नाम हैं-कारूषाः, बृहद्गृहाः ॥ ७. 'लम्पाक देश के २ नाम हैं-लम्पाकाः, मुरण्डाः ।। ८. 'सौवीर देश के २ नाम है-सौवीरा:. कुमालकाः ।। ६. 'अहिच्छत्र देश के २ नाम है-प्रत्यग्रथाः, अहिच्छत्राः ।। १०. 'मगध देश के २ नाम हैं -कीकटा:, मगधाः ॥ ११. 'केरल देश'के २ नाम हैं-ओण्ड्रा:, केरलाः ॥ १२. 'कुन्तल देश'के २ नाम है-कुन्तलाः, उपहालकाः ।। विमर्श-माग्ज्योतिष (श्लो० २१ )से यहां (कुन्तल देश ) तक कहे गये देशों में-से 'प्राग्ज्योतिष, मालव, चेदि. वङ्ग, अङ्ग और मगध देश पूर्व दिशामें, मरु और शाल्व देश पश्चिममें, जालन्धर, तायिक, कश्मीर, वाहीक, वाहलिक, तुरुष्क, कारूष, लम्पाक, सौवीर और प्रत्यग्रथ देश उत्तरमें तथा ओण्ड्र. और कुन्तल देश दक्षिणमें हैं ॥ १३. 'प्राम ( गांव ) के ६ नाम हैं-ग्रामः, संवसथः, निवसथः, प्रति-वसथः, उपवसथः॥ १४. 'श्राधे गांव'का १ नाम है-पाटकः ॥ १५. 'सीमा के ८ नाम है-आघाटः, घटः, अवधिः, अन्त:, अवसानम्, सीमा, मर्यादा, सीमा (- मन् , स्त्री)। Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिर्यक्काण्डः ४ ] 'मणिप्रभा' व्याख्योपेतः २मालं. ग्रामान्तराटवी । स्यात् ४कर्मान्तस्तु कर्मभूः ॥ २६ ॥ गौष्ठीनं भूतपूर्वकम् । यत्राऽऽशिताः पुरा ॥ ३० ॥ पाल्यालि संवराः । १ ग्रामसीमा तूपशल्य ३ पर्यन्तभूः परिसरः ५ गोस्थानं गोष्ठ६मेतत्तु ७ तदाशितंगवीनं स्याद् गात्रो क्षेत्रे तु वप्रः केदारः हसेतौ १० क्षेत्रं तु शाकस्य शाकशाकटं शाकशाकिनम् ॥ ३१ ॥ ११ हेयं शालेयं षष्टिक्यं कौद्रवीण मौद्गीने । व्रीह्यादीनां क्षेत्रे १२णव्यं तु स्यादाणवीनमरणोः ॥ ३२ ॥ १३भङ्गय भाङ्गीनमौमीनमुम्यं यव्यं यवक्यवत् । तिल्यं तैलीनं माषीणं माध्यं भङ्गादिसंभवम् ॥ ३३ ॥ १४ सीत्यं इल्यं - www २३६ १. 'ग्रामकी सीमाका १ नाम है-उपशल्यम् || २. 'ग्रामके बीच के जङ्गलश्का १ नाम है -मालम् ॥ ३. 'ग्रामके पासकी भूमि'का १ नाम है -परिसरः ॥ ४. 'कर्मभूमि' के २ नाम हैं - कर्मान्तः, कर्मभूः ॥ ५. 'गोष्ठ ( गौश्रोंके ठहरनेका स्थान )' के २ नाम हैं - गोस्थानम्, गोष्ठम् ॥ ६. 'भूतपूर्व गोष्ट'का १ नाम है – गौष्ठीनम् ।। ७. 'पहले जहाँ गौवें बैठायी गयी हों, उस स्थान का १ नाम हैआशितङ्गवीनम् ॥ ८. 'खेत' के ३ नाम हैं - क्षेत्रम्, वप्रः, केदार: ( २ पु न ) | ६. 'पुल' के ४ नाम हैं - सेतु: (पु), पालिः, आलिः ( २ स्त्री ), संवरः ॥ १०. 'शाक के खेत के २ नाम हैं- शाकशाकटम्, शाकशाकिनम् ॥ ११. 'व्रीहि. धान, शालि धान, वाले खेत' का क्रमशः १-१ नाम है वीणम्, मौद्गीनम् ॥ - साठी धान, कोदो और मूँग पैदा होने हैयम्, शालेयम्, षष्टिक्यम्, कौद्र १२. 'चीना पैदा होनेवाले खेत के २ नाम हैं - अणभ्यम्, आणवीनम् ॥ १३. 'भाँग, तीसी (अलसी ), यव (जौ), तिल और उड़द पैदा होनेवाले खेत के क्रमशः २-२ नाम हैं- भङ्गयम्, भाङ्गीनम् ; औमीनम्, उम्यम्, यव्यम्, यवक्यम्, तिल्यम्, तैलीनम्, माषीणम्, माष्यम् ॥ १४. द्दल, से जोते हुए खेत' के २ नाम है-सीत्यम् 2. इल्यम् ।। Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४० अभिधानचिन्तामणिः -त्रिहल्यं तु त्रिसीत्य त्रिगुणाकृतम् । तृतीयाकृतं रविहल्यायेवं शम्बाकृतश्च तत् ।। ३४ ॥ ३बीजाकृतं तूतकृष्टं द्रौणिकाऽऽढकिकादयः।। स्युोणाढकवापादौ ५खलधानं पुनः खलम् ।। ३५ ।। ६चूर्णे क्षोदोऽऽथ रजसि स्युडूं लीपांसुरेणवः । प्लोष्टे लोष्टुर्दलिर्लेष्टुरवल्मीकः कृमिपर्वतः ॥ ३६ ।। वम्रीकूटं वामलूरो नाकुः शक्रशिरश्च सः। १०नगरी पू: पुरी द्रङ्गः पत्तनं पुटभेदनम् ।। ३७ ।। निवेशनमधिष्ठानं स्थानीयं निगमोऽपि च। ... ' १. 'तिखारे (हलसे तीन बार जोते ). हुए खेत'के ४ नाम हैत्रिहल्यम्, त्रिसीत्यम् , त्रिगुणाकृतम् , तृतीयाकृतम् ॥ २. 'दोखारे ( हलसे दो बार जोते हुए खेत'के ·५ नाम है-द्विहल्यम्, द्विसीत्यम् , द्विगुणाकृतम् , द्वितीयाकृतम् , शम्बाकृतम् ।। ३. 'बीज बोनेके बाद जोते गए खेत'के २ नाम हैं-बीजाकृतम् , उसकृष्टम् ॥ ४. 'एक द्रोण, एक आढफ बीज बोने योग्य खेत'का क्रमशः १-१ नाम है-'द्रौणिकः, आढकिकः। विमर्श-श्रादि' शब्दसे 'एक खारी बीज. बोने योग्य खेत'का १ नाम है-खारीकः। इसी प्रकार से १-१ द्रोण, आढक या खारी आदि परिमित अन्न रखने पकाने या अँटने योग्य वर्तन का भी क्रमशः 'द्रौणिकः, श्राढकिका, खारीक:' आदि १-१ नाम जानना चाहिए । ५. 'खलिहान'के २ नाम हैं-खलधानम्, खलम् ॥ ६. 'चूर्ण'के २ नाम है-चूर्णः (पु न ), क्षोदः ।। ७. 'धूल'के ४ नाम हैं- रजः (-जस् , न ), धूली (स्त्री,+धूलिः ), पांसुः (पु), रेणुः (स्त्री)॥ ८. ढेला' के ४ नाम हैं-लोष्टः ( पु न ), लोष्टुः (पु) , दलिः (स्त्री), लेष्टुः (पु) ॥ ६. 'वामी, दिअकांड' के ६ नाम हैं-वल्मीकः (न), कृमिपर्वतः, वनीकूटम्, वामलूर:, नाकुः (पु), शक्रशिरः (- स, न)॥ १०. 'नगरी (शहर ) के १० नाम हैं-नगरी (स्त्री; नगरम, न)। पूः (पुर् ), पुरी ( त्रि ), द्रङ्गः, पत्तनम् (+पट्टनम् ), पुटभेदनम् , निवेशनम् , अधिष्ठानम् , स्थानीयम् , निगमः।। विमर्श--वाचस्पति ने इस ग्रामके निम्नलिखित विशेष भेद स्वीकार किये हैं-१०८ गावों में सबसे लम्बे गांवको 'स्थानीयम्'; उसके आधे लम्बेको Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५१ तिर्थक्काण्ड: ४] मणिप्रभा'व्याख्योपेतः २४१ श्शाखापुरं तूपपुरं रखेटः पुरार्द्धविस्तरः ॥ ३८ ॥ ३स्कन्धावारो राजधानी ४कोटदुर्गे पुनः समे। ५गया .पूर्गयराजर्षेः कन्यकुब्ज महोदयम् ॥ ३६॥ कन्याकुब्जं गाधिपुरं क्रौशं कुशस्थलश्च तत् । ७काशिर्वराणसी वाराणसी शिवपुरी च सा ॥ ४०॥ प्साकेत कोसलाऽयोध्या हविदेहा मिथिला समे । १०त्रिपुरी चेदिनगरी ११कौशाम्बी वत्सपत्तनम् ।। ४१ ॥ 'द्रोणमुखम् , कर्वटम्', उसके श्राधेको 'कवुटिकम्' उसके आधेको 'कार्वटम्' उसके आधेको 'पत्तनम् , पुटभेदनम्'; पत्तनके श्राधेको 'निगमः', निगमके आधेको 'निवेशनम्', कहते हैं । 'कर्वट से छोटे गाँवको 'द्रङ्ग', 'पत्तन'से उत्तम गांवको 'उद्रङ्गः, निवेशः, द्रङ्गः' कहते हैं ।' १. 'उपनगर'का १ नाम है-शाखापुरम् ॥ . २. 'पुर'के आधे विस्तारवाले गांव'का १ नाम है-खेटः ।। ३. 'राजधानी'के २ नाम हैं-स्कन्धावारः, राजधानी (स्त्री न)। ४. 'फिला'के २ नाम हैं-कोट्टः (पु न ), दुर्गम् ॥ ५. 'गया (गया नामक शहर )का १ नाम है-गया ॥ ६. 'कन्नौज'के ६ नाम हैं-कन्यकुब्जम् , महोदयम्, कन्याकुन्जम् (३ स्त्री न), गाधिपुरम् , कोशम् , कुशस्थलम् ॥ । ७. 'काशी नगरी'के ४ नाम हैं-काशिः (स्त्री ।+ काशी), वराणसी, वाराणसी, शिवपुरी॥ ८. 'अयोध्या पुरी'के .३ नाम हैं-साकेतम् , कोसला, अयोध्या ॥ ६. 'मिथिला पुरी'के २ नाम हैं-विदेहा, मिथिला ॥ १०. चेदिपुरी'के २ नाम हैं-त्रिपुरी, चेदिपुरी ॥ ११. 'कौशाम्बी नगरी'के २ नाम हैं-कौशाम्बी, वत्सपत्तनम् ।। १. तदुक्तम् स्यारस्थानीयं त्वतिलम्बो गामो ग्रामशताष्टके । तदर्धे तु द्रोणमुखं तच्च कर्वटमस्त्रियाम् ॥ कर्वटार्धे कवुटिकं स्यात्तदर्धे तु कार्वटम् । तदर्धे पत्तनं तच्च पत्तनं पुटभेदनम् ॥ निगमस्तु पत्तनार्धे तदर्धे तु निवेशनम् । कर्वटादधमो द्रङ्गः पत्तनादुत्तमश्च सः॥ उद्रनब निवेशश्च स एव द्रङ्ग इत्यपि । १६ अ०चि० . Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ y . २४२ अभिधानचिन्तामणिः ५उज्जयनी स्याद्विशालाऽवन्ती पुष्पकरण्डिनी । २पाटलिपुत्रं कुसुमपुरं ३चम्पा तु मालिनी ॥ ४२ ॥ लोमपादकर्णयोः पू४देवीकोट उमावनम् । । कोटिवर्ष बाणपुरं स्याच्छोणितपुरं च तत् ॥ ४३ ॥ ५मथुरा तु मधूपघ्नं मधुरा६ऽथ गजाह्वयम् । . स्याद् हास्तिनपुरं हस्तिनीपुरं हस्तिनापुरम् ॥ ४४ ॥ ७तामलिप्तं दामलिप्तं तामलिप्ती तमालिनी। . स्तम्बपूर्विष्णुगृहं च स्याद् विदर्भा तु कुण्डिनम् ॥ ४५ ॥ हद्वारवती द्वारका स्याद्१०निषधा तु नलस्य पूः। .. ११प्राकारो वरण: साले १२चयोवप्रोऽस्य पीठभूः ।। ४६॥ १३प्राकाराग्रं कपिशीर्ष १. 'उजयिनी'के ४ नाम हैं-उज्जयनी, विशाला, अवन्ती, पुष्पकरण्डिनी ॥ २. 'पाटलिपुत्र ( पटना ) के २ नाम हैं-पाटलिपुत्रम् , कुसुमपुरम् ।। . ३ 'चम्पापुरी'के ४ नाम है--चम्पा, मालिनी, लोमपादपूः, कर्णपूः (२-पुर+लोमपादपुरी; कर्णपुरी ) 11 . ४. 'शोणितपुरी ( बाणासुरकी नगरी ) के ५ नाम हैं-देवीकोटः, उमावनम् , कोटिवर्षम् , बाणपुरम् , शोणितपुरम् ॥ ५. 'मथुरा पुरी'के ३ नाम हैं-मथुरा, मधूपध्नम् , मधुरा ॥ ६. 'हस्तिनापुर'के ४ नाम हैं-गजाह्वयम् (गज ( हाथी )के पर्यायभूत सब नाम-यथा 'गजपुरम्, गजनगरम् ,.......'), हास्तिनपुरम्, इस्तिनीपुरम्, हस्तिनापुरम् ॥ ७. 'तामलिप्त ( बङ्गालमें स्थित ) नगरी'के ६ नाम हैं-तामलिप्तम् , दामलिप्तम्, तामलिप्ती, तमालिनी, स्तम्बपू: (-पुर् ); विष्णुगृहम् ।। ८. विदर्भपुरी'के २ नाम हैं-बिदर्भा, कुण्डिनम् (+ कुण्डिनपुरम्, कुण्डिनापुरम् )॥ ६. 'द्वारकापुरी'के २ नाम हैं-द्वारवती, द्वारका || १० 'राजानलकी नगरी (निषधा पुरी )का १ नाम है--निषधा ॥ ११. किले या नगर आदिकी ऊँची चहारदिवारी'के ३ नाम हैं-प्राकारः, वरणः, साल: ।। १२. 'उक्त चहारदिवारीके नीचेवाली आधारभूमि'के २ नाम हैं--चयः, वप्रः ( पु न )॥ १३. 'चहारदिवारीके सबसे ऊपर के भाग'के २ नाम हैं--प्राकाराग्रम् , कपिशीर्षम् ।। Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिर्यककाण्डः ४] 'माणप्रभा'व्याख्योपेतः २४३ . -१क्षौमाऽट्टाऽट्टालकाः समाः। २पूरे गोपुरं रथ्याप्रतोलीविशिखाः समाः॥४७॥ ४परिकूटं हस्तिनखो नगरद्वारकूटके। प्रमुख निःसरणे ६वाटे प्राचीनाऽऽवेष्टको वृतिः ॥ ४८॥ ७पदव्येकपदी पद्या पद्धतिम वर्तनी। अयनं सरणिर्मागोऽध्या पन्था निगमः मृतिः॥४६॥ सत्पथे स्वतितः पन्था ६ अपन्था अपथं समे। १०व्यध्वो दुरध्वः कदवा विपर्थ कापथं च सः॥५०॥ .. ११प्रान्तरं दूरशून्योऽध्या १२कान्तारो वर्त्म दुर्गमम् ।। १३सुरुङगा तु सन्धिला स्याद् गूढमार्गो भुवोऽन्तरे ।। ५१॥ १. 'उक्त चहारदिवारीके ऊपरमें युद्ध करनेके लिए बने हुए स्थानविशेष'के ३ नाम हैं--क्षौमः, अट्टः (पु न), अट्टालकः ॥ . २. 'नगरके द्वार (फाटक-प्रवेशमार्ग ) के २ नाम हैं--पूरम् , गोपुरम् ॥ ३. 'गली'के ३ नाम हैं--रथ्या; प्रतोली, विशिखा ॥ ४. 'नगर या किलेके द्वारपर सुखपूर्वक आने-जानेके लिए बनाये हुये ढालू रास्ता'के ३ नाम है-परिकूटम् (न पु), हस्तिनखः, नगरद्वारकूटकः॥ ५. 'निकलने ( या प्रवेशकरने )के मार्ग'के २ नाम हैं.-मुखम्, निःसरणम् ॥ . ६. 'घेरा'के ४ नाम है-वाटः ( त्रि), प्राचीनम् , आवेष्टकः, वृतिः ॥ ७: 'मार्ग, रास्ता'के १३ नाम हैं--पदवी, एकपदी, पद्या, पद्धतिः, वर्म (-र्मन् न ), वर्तनी, अयनम् , सरणिः (स्त्री), मार्गः, श्रध्वा (-ध्वन् ). पन्थाः (-थिन् । २ यु), निगमः, सुतिः ॥ ८. 'अच्छे . मार्ग के ३ नाम हैं-सत्पथः, सुपन्थाः , अतिपन्थाः (२-थिन् ॥ ६. 'अमार्ग, मार्गका अभाव'के २ नाम हैं-अपन्थाः (-थिन् ), अपथम् ॥ १०. 'कुमार्ग, खराब रास्ते'के ५ नाम हैं-व्यध्वः, दुरध्वः, कदध्वा (-ध्वन् ), विपथम्, काप्रथम् (२ न +२ पु)॥ ११. 'दूरतक सूने ( जनसञ्चारादिरहित) मार्ग'का १ नाम हैप्रान्तरम् ।। १२. ( जङ्गल आदिके ) 'दुर्गम मार्ग'का १ नाम है-कान्तारः (पुन)॥ १३. 'सुरङ्ग (भूमिके भीतर बने हुए गुप्त मार्ग) के २ नाम है-सुरुङ्गा, सन्धिला ॥ Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४४ अभिधानचिन्तामणिः १चतुष्पथे तु संस्थानं चतुष्कं २त्रिपथे त्रिकम् । ३द्विपथन्तु चारपथो ४गजाद्यध्वा त्वसङ्कलः ।। ५२ ।। घण्टापथः संसरणं श्रीपथो राजवर्त्म च। उपनिष्क्रमणञ्चोपनिष्करश्च महापथः ।। ५३ ॥ ५विपणिस्तु वणिग्मार्गः स्थानं तु पदमास्पदम् । ७श्लेषत्रिमााः शृङगार्ट बहुमार्गी तु चत्वरम् ॥ ५४ ।। श्मशानं करवीरं स्यापितृप्रेताद्वनं गृहम् । १०गेहभूर्वास्तु ११गेहन्तु गृहं वेश्म . निकेतनम् ॥ ५५ ॥ मन्दिरं सदनं सद्म निकाययो भवनं कुटः। .' आलयो निलयः शाला सभोदवसितं कुलम् ।। ५६ ।। धिष्ण्यमावसथः स्थानं पस्त्यं संस्त्याय आशयः ।। ओको निवास आवासो वसतिः शरणं क्षयः ।। ५७ ।। धामागारं निशान्तश्च१. 'चौराहा, चौक'के ३ नाम हैं-चतुष्पथः, संस्थानम् , चतुष्कम् ॥ २. 'तिमुहानी ( तीन मार्गोंके सम्मिलन स्थान ) के २ नाम हैंत्रिपथम् , त्रिकम् ॥ ३. 'दोमुहानी ( दो मार्गोंके सम्मिलन स्थान ) के २ नाम हैंद्विपथम् , चारपथः ॥ ४. 'राजमार्ग, चौड़े मार्ग, सड़क के ८ नाम हैं-असङ्कलः, घण्टापथः, संसरणम्, भीपथः, राजवत्म (-मन् ), उपनिष्क्रमणम् , उपनिष्करम् , महापथः ॥ विमर्श-'दशधन्वन्तरो राजमार्गो घण्टापथः स्मृतः' ऐसा कहते हुए 'चाणक्य'ने ४० हाथ चौड़े मार्गको 'घण्टापथ' कहा है । 'अमरसिंह'ने ग्रामके मार्गको 'उपसरण' कहा है (अमर २।१।१८)॥ ५. 'बाजार वा कटरेके माग'के २ नाम हैं-विपणि: (स्त्री), वणिग्मार्गः, (+पण्यवीथी ) ॥ ६. 'स्थान, पद'के ३ नाम हैं-स्थानम् , पदम् , श्रास्पदम् ॥ ७. 'तीन मार्गोंके मिलनेके स्थान'का १ नाम है-शृङ्गाटम् ।। ८. 'बहुत मार्गोंके मिलनेके स्थान के २ नाम है-बहुमार्गी, चत्वरम् ।। ६. 'श्मशान के ६ नाम हैं-श्मशानम्, करवीरम् , पितृवनम् , प्रेतवनम्, पितृगृहम् , प्रेतगृहम् ॥ .... १०. 'घरके निमित्त स्थान'के २ नाम हैं-गेहभूः, वास्तु (न पु)॥ ११. 'गृह, घर के ३१ नाम है-गेहम् , गृहम् (२ न पु), वेश्म Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिर्थक्काण्डः ४] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः २४५ ... कुट्टिमन्त्वस्य बद्धभूः । २चतुःशालं सञ्जवनं ३सौधन्तु नृपमन्दिरम् ।। ५८ ॥ ४उपकारिकोपकार्या ५सिंहद्वारं प्रवेशनम् । प्रासादो देवभूपानां य॑न्तु धनिनां गृहम् ।। ५६ ॥ ८मठावसथ्यावसथाः स्युरछात्रव्रतिवेश्मनि । हपर्णशालोटज१०श्चैत्यविहारौ जिनसद्मनि ॥ ६०॥ ११गर्भागारेऽपवरको वासौकः शयनास्पदम् । १२भाण्डागारन्तु कोशः स्या(-श्मन, न), निकेतनम् , मन्दिरम् (न स्त्री), सदनम्, सद्म (-झन् , न), निकाय्यः, भवनम् ( न पु), कुटः (पु स्त्री ), श्रालयः, निलयः, शाला, सभा, उदवसितम् , कुलम् , धिष्ण्यम् , आवसथः, स्थानम् , पस्त्यम् , संस्त्यायः, आश्रयः, ओकः (-कस न), निवासः, आवासः, वसतिः (स्त्री), शरणम् , क्षयः, धाम (-मन् न ), आगारंम् , निशान्तम् ॥ . १. 'पत्थर श्रादिसे बने हुए मकानके फर्शका १ नाम है-कुटिमम् (न पु)॥ . २–'चारो ओर से बने हुए घरवाले मकान'के २ नाम हैं-चतुःशालम् , संजवनम् ॥ ३. 'राजभवन'का १ नाम है-सौधम् ॥. ४. 'सामियांना, टेण्ट आदि-कपड़ेके मकान के २ नाम हैं-उपकारिका, उपकार्या (+उपकर्या )। ५. प्रवेशद्वार के २ नाम है-सिंहद्वारम् , प्रवेशनम् ॥ . ६. 'देवताओं तथा राजाओंके घर'का १ नाम है-प्रासादः ॥ .. ७. 'धनवानोंके घर'का १ नाम है-हय॑म् ॥ ८. 'मठ (छात्रों या संन्यासी आदि व्रतियोंके घर) के ३ नाम हैंमठः (त्रि), श्रावसथ्यः, आवसथः ॥ ६. 'पर्णशाला, झोपड़ी (पत्तियों या घास-फूस श्रादिसे छाये हुए मुनि आदिकी कुटिया ) के २ नाम है-पर्णशाला, उटबः (पुन)॥ १०. 'जिन मन्दिर के २ नाम हैं-चैत्यम् , विहारः ॥ ११. 'तहखाना ( भूमिके अन्दर बने हुए घर ) के ४ नाम हैं-गर्भागारम्, अपवरकः, वासोकः (-कस् ), शयनास्पदम् ॥ १२. 'भाण्डार, खजानाघर के २ नाम हैं-भाण्डागारम्, कोशः (+कोषः । पुन)॥ Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४६ अभिधानचिन्तामणिः १च्चन्द्रशाला शिरोगृहम ॥ ६१ ॥ २कुप्यशाला तु सन्धानी ३कायमानं तृणौकसि। ४होत्रीयन्तु हविगैहं ५प्राग्वंशः प्राग्हविहान् ।। ६२ ॥ ६आथर्वणं शान्तिगृहण्मास्थानगृहमिन्द्रकम । तैलिशाला यन्त्रगृहहमरिष्टं सूतिकागृहम् ।। ६३ ।। १०सूदशाला रसवती पाकस्थानं महानसम् । ११हस्तिशाला तु चतुरं १२वाजिशाला तु मन्दुरा ॥ ६४॥ १३सन्दानिनी तु गोशाला १४चित्रशाला तु जालिनी। . १५कुम्भशाला पाकपुटी १६तन्तुशाला तु गतिका ।। ६५ ।। १. 'शिरोगृह ( घरके ऊपर बने हुए दुमंजिले श्रादि मकान के २ नाम हैं-चन्द्रशाला, शिरोगृहम् ॥ २. 'सोने-चांदीसे भिन्न ( तांबा आदि ) धातु . रखे जानेवाले घर'के २ नाम है-कुप्यशाला, सन्धानी ॥ ३. 'तृण, काष्ठ आदि रखे जानेवाले घर'के २ नाम हैं--कायमानम् , तृणौकः (-कस )॥ . ४. 'हवनगृह अग्निहोत्र भवन के २ नाम हैं-होत्रीयम् , हविर्गे हम् ।। ५. 'हवनगृहके पूर्व भागमें स्थित घर'का १ नाम है-प्राग्वंशः ।। ६. 'शान्तिगृह'के २ नाम हैं-आथर्वणम् , शान्तिगृहम् (+शान्तिगृहकम् )॥ ७. 'अास्थानगृह, सभाभवन' २ नाम हैं-आस्थानगृहम् , इन्द्रकम् ॥ ८. 'तेल पेरनेवाले कोल्हू घर के २ नाम हैं-तैलिशाला, यन्त्रगृहम् ।। ६. 'सूतीगृह'के २ नाम हैं-अरिष्टम् , सूतिकागृहम् ।। १०. पाकशाला, रसोईघर के ४ नाम हैं-सूदशाला, रसवती, पाकस्थानम्, (+पाकशाला ), महानसम् ॥ ११. 'हाथीखाना, हाथीके रहनेका घर'के २ नाम हैं-हस्तिशाला, चतुरम् ॥ १२. 'घुड़सार, घोड़ोंके रहनेका घर'के २ नाम हैं-वाजिशाला, मन्दुरा (स्त्री न)॥ १३. 'गोशाला'के २ नाम हैं-सन्दानिनी, गोशाला ॥ • १४. 'चित्रशाला'के २ नाम है-चित्रशाला, जालिनी ।। १५. 'घड़ा, या बर्तन बनाने या पकाये जानेवाले घर'के २ नाम हैंकुम्भशाला, पाकपुटी॥ १६. 'कपड़ा बुने बानेवाले घर के २ नाम हैं-तन्तुशाला, गर्तिका ॥ Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४७ तियककाण्डः ४ ] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः श्नापितशाला बपनी शिल्पा खरकुटी च सा। २आवेशनं शिल्पिशाला ३सत्रशाला प्रतिश्रयः ॥६६॥ ४आश्रमस्तु• मुनिस्थान५मुपध्नस्त्वन्तिकाश्रयः । ६प्रपा पानीयशाला स्याद्गजा तु मदिरागृहम् ॥ ६७ ॥ पक्कणः शबरावासो. घोपस्त्वाभीरपल्लिका । १०पण्यशाला निपद्याऽट्टो हट्टो विपणिरापणः॥ ६८ ॥ ११वेश्याश्रयः पुरं वेशो १२मण्डपस्तु जनाश्रयः । १३कुड्यं भित्ति१४स्तदेडूकमन्तनिहितकीकसम् ।। ६६ ।। १५वेदी वितदि १. 'क्षौरगृह ( हजामत बनाये जानवाले घर ) क ४ नाम हे-नापितशाला, वपनी, शिल्पा, खरकुटी ।।। २. 'कारीगरके घर'के २ नाम हैं -आवेशनम् , शिल्पिशाला ।। ३. 'सदावर्त गृह ( जहां पर नित्य अन्नादि दिया जाता हो, उस घर ) के २ नाम हैं-सत्रशाला, प्रतिश्रयः ॥ . ४. 'मुनियों के रहने के स्थान'का १ नाम है-आश्रमः (पुन )॥ ५. 'समीपस्थ आश्रय गृह'के २ नाम हैं-उपनः, अन्तिकाश्रयः ॥ ६. 'प्याऊ, पोसरा, पानी पिलानेका स्थान या घर के २ नाम हैंप्रपा, पानीयशाला ।। ___ ७. 'भट्ठी ( मदिराके घर ) के २ नाम हैं-गजा, मदिरागृहम् ॥ ८. 'शबरों ( जंगल-निवासी कोल, भील, किरात श्रादि )के वासस्थान के २ नाम हैं-पक्कंण: (पु न ), शबरावासः ( यौ०-शबरालयः, शबरगृहम् ,.....:")। ६. 'गोपोके घर के २ नाम हैं--घोषः, श्राभीरपल्लिका (+आभीरपल्लिः )॥ १०. 'दूकान'के ६ नाम हैं-पण्यशाला, निषद्या, अटः (पु न ), हट्टः, विपणिः (स्त्री), श्रापणः । ११ 'बेश्या गृह'के ३ नाम हैं-वेश्याश्रयः, पुरम् , वेशः॥ १२. 'मण्डपके २ नाम हैं-मण्डपः (पु न ), जनाभयः ।। १३. 'दिवाल, भीत'के २ नाम है-कुड्यम् (न ।+पु), भित्तिः ॥ १४. 'भीतरमें हड्डी देकर बनायी गयी दिवाल'का १ नाम है-एडूकम् ।। विमर्श-'श्रमरकोष' की 'धरा' नामक व्याख्याकार और के. पी. जायसवाल ने एहूक का अर्थ 'बौद्ध स्तूप' किया है । (अमरकोषस्य २।२।४ 'धरा' व्याख्यायाः टिप्पणी)॥ १५. वेदीके २ नाम है-वेदी, वितर्दिः॥ Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४८ अभिधानचिन्तामणिः -रजिरं प्रागणं चत्वराजाने । खलज प्रतीहारो द्वाारे३ऽथ परिघोऽर्गला ॥ ७० ॥ ४साल्पा त्वर्गलिका सूचिः कुश्चिकायान्तु कूचिका । साधारण्यङ्कटश्चासौ ६ द्वारयन्त्रन्तु तालकम् ॥७१ ॥ ७अस्योद्घाटनयन्त्रन्तु ताल्यपि प्रतिताल्यपि । पतिर्यग्द्वारोवंदारूत्तरङ्ग स्यादरं पुनः ॥७२॥ कपाटोऽररिः कुवाट: १०पक्षद्वारन्तु पक्षकः। ११प्रच्छन्नमन्तारं स्याद् १२बहिारन्तु तोरणम् ।। ७३ ॥ १३तोरणोर्चे तु मङ्गल्यं दाम वन्दनमालिका । १४स्तम्भादेः स्यादधोदारौ शिला १५नासोर्ध्वदारुणि ॥ ७४ ॥ १. 'श्रांगन'के ४ नाम हैं-अजिरम् , प्राङ्गणम् (+ अङ्गणम् ), चत्वरम्, अङ्गनम् ॥ - २. 'द्वार'के ४ नाम हैं-वलजम् , प्रतीहारः, द्वाः (द्वार स्त्री), द्वारम् ।। ३. किल्ली, पागल'के २ नाम हैं—परिघः, अर्गला (त्रि ) ।। . ४. 'छोटी किल्ली, आगल' के २ नाम है-अर्गलिका, सूचिः ।। ५. 'कूची के ४ नाम है-कुञ्चिका, कूचिका, साधारणी, अङ्कटः॥ ६. 'ताला'के २ नाम हैं-द्वारयन्त्रम् , तालकम् ॥ . . ७. 'ताली, चाभी'के २ नाम है-ताली, प्रतितालो ।। ८. 'द्वारके ऊपर तिर्की लगी हुई लकड़ी'का १ नाम है-उत्तरङ्गम् ।। ६. 'किवाड़ के ४ नाम हैं-अररंम् , ' कपाट:, (त्रि+कवाट: ), अररिः ( पुन), कुवाटः ।। १०. 'खिड़की, या बड़े फाटकके बन्द रहने पर भी. भीतर जाने आनेके 'लिए बनाये गये छोटे द्वार के २ नाम हैं-पक्षद्वारम् , पक्षकः (+खटकिका)। ११. 'भीतरी द्वार'का १ नाम है--अन्तरिम् ॥ १२. 'बाहरी द्वार, तोरणद्वार के २ नाम है-बहिरिम्, तोरणम् (न पु)॥ १३. 'बन्दनवार (द्वारके ऊपर मङ्गलाथ लगायी गयी फूल या आम्रादि पल्लवकी माला)का १ नाम है-वन्दनमालिका ॥ १४. 'खम्भेके नीचेवाली लकड़ी या पत्थर'का १ नाम है-शिला ॥ '. १५. 'खम्भेके ऊपरवाली लकड़ी या पत्थर'का १ नाम है-नासा ॥ विमर्श-गौड'का मत है कि खम्भेके ऊपर दूसरी लकड़ी रखने के लिए जो एक छोटी लकड़ी रखी जाती है, उसे 'शिला' कहते हैं । 'मालाकार का Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिर्यककाण्ड: ४] मणिप्रभा'व्याख्योपेतः २४६ गोपानसी तु · बलभीच्छादने वक्रदारुणि । २गृहावग्रहणी देहल्युम्बरोदुम्बरोम्बुराः ।। ७५ ।। ३प्रघाणः प्रघणोऽलिन्दो बहिरप्रकोष्ठके । ४कपोतपाली विटङ्कः पटलच्छदिषी समे ॥ ७६ ॥ ६नीव्र वलीक तत्प्रान्त ७इन्द्रकोशस्तमङ्गकः। ८वलभी छदिराधारो नागदन्तास्तु दन्तकाः ।। ७७ ।। १०मत्तालम्बोऽपाश्रयः स्यात्प्रग्रीवो मत्तवारणे । ११वातायनो गवाक्षश्च जालके१२ऽथान्नकोष्टकः ।। ७८ ॥ कुसूलोमत है कि द्वारशाखाके ऊपर तथा नीचे दी हुई लकड़ी ( कुर्सी ) को 'शिलानासा' कहते हैं॥ ___ १. 'धरन (छप्परको छानेके लिए लगायी गयी लकड़ी )'का १ नाम है-गोपानसी ॥ २. 'देहली, पटडेहर के. ५ नाम हैं-गृहावग्रहणी, देहली, उम्बरः, उदुम्बरः, उम्बुरः ।। . ३. द्वारके नीचेवाले चौकठके नीचे लगाये गये चौड़े पत्थर श्रादि के ३ नाम हैं-प्रघाण:, प्रघणः, अलिन्दः ।. ४. 'कबूतरोका दरबाके २ नाम हैं-कपोतपाली, विटङ्कः (पु न)। ५. 'छप्पर'के २ नाम हैं-पटलम् (त्रि), छदिः (- दिस् , स्त्री) ६. 'ओरी'के २ नाम हैं-नीव्रम् , वलीकम् (न पु)॥ ७. 'सभादिमें भाषणादिके लिए ऊँचे बनाये गये मंच'के २ नाम हैइन्द्रकोशः (+इन्द्रकोषः ), तमङ्गकः (+मञ्चकः)॥ ८. 'छप्परके नीचेवाले बांस श्रादि-कोरो, ठाट या छज्जा'का १ नाम है-वलभी (+वलभिः)॥ . . . ____६. 'खूटी' के २ नाम है-नागदन्तः, दन्तकः॥ १०. 'मकानके चारो ओर बने हुए लकड़ी आदिका घेरा या झरोखा, खिड़की के ४ नाम हैं-मत्तालम्बः, अपाभयः, प्रग्रीवः (पुन ), मत्तवारणः॥ ११. 'जंगलां, खिड़की के ३ नाम हैं-वातायनः (पु न ), गवाक्षः, बालकम् ॥ .. १२. 'कोठिला, भांड'के २ नाम है-अन्नकोटका, कुसूल: (+कुशूलः)॥ Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५० पापा अभिधानचिन्तामणिः. -१ऽनिस्तु कोणोऽणिः कोटिः पाल्यस्र इत्यपि । २आरोहणन्तु सोपानं ३निःश्रेणिस्त्वधिरोहणी ।। ७६ ॥ ४स्थूणा स्तम्भः ५सालभजी पाश्चालिका च पुत्रिका। काष्ठादिघटिता ६लेप्यमयी त्वञ्जलिकारिका ।। ८०॥ . ७नन्द्यावर्त्तप्रभृतयो विच्छन्दा आढयवेश्मनाम् । समुद्गः सम्पुटः पेटा स्यान्मञ्जूषा१०ऽथ शोधनी ।। ८१ !! . सम्माजजी बहुकरी वर्धनी च समूहनी । ११सङ्करावकरौ तुल्या१२वुदूखलमुलूखलम् ।। २२॥ ... १३प्रस्फोटनन्तु पवन१४मवघातस्तु कण्डनम् ।। १. 'घरके कोने आदि के ६ नाम हैं-अभिः (स्त्री), कोणः, अणिः (पु स्त्री ), कोटि; ( स्त्री), पाली, अस्रः ।। २. 'सीढ़ी के २ नाम हैं-आरोहणम् , सोपानम् ॥ ३. 'काठ आदिकी सीढ़ी'के २ नाम हैं-निःश्रेणि: (स्त्री), अधिरोहणी ।। ४. 'खम्भे'के २ नाम हैं-स्थूणा, स्तम्भः ॥.. ५. 'काठ, पत्थर या हाथीदांत आदिकी मूर्ति स्टेचू'के ३ नाम हैंसालभञ्जी, पाञ्चालिका, पुत्रिका ॥ ६. 'रंग श्रादिसे बनायी गयी मूर्तिका १ नाम है-अञ्जलिकारिका ॥ ७. विशिष्ट ढंगसे बने हुए धनवानोंके गृहों के 'नन्द्यावतः' आदि ('आदि' शब्दसे 'स्वस्तिकः, सर्वतोभद्रः' आदि ) नाम हैं । विमर्श-चारो ओरसे द्वार तथा तोरणवाले घरको 'स्वस्तिकः', अनेक मझिलवाले घरको 'सर्वतोभद्रः', गोलाकार घरको 'नन्द्यावर्तः', और सुन्दरतम घरको 'विच्छन्दः' कहते हैं ।। ८. 'डन्बे के २ नाम हैं-समुद्गः, सम्पुटः ।। ६. 'झापी'के २ नाम हैं-पेटा (+पेटकः ), मञ्जूषा ।। १०. 'झाड़'के ५ नाम है-शोधनी (+पवनी), संमार्जनी, बहुकरी (पु स्त्री), वर्धनी, समूहनी ।। ११. 'कूड़े-करकट के २ नाम हैं-सङ्करः, अवकरः ।। १२. 'ओखली'के २ नाम हैं-उन खलम् , उलूखलम् ।। १३. 'फटकने के २ नाम हैं-प्रस्फोटनम् , पवनम् ॥ १४. 'कूटने के २ नाम हैं-अवघातः, कण्डनम् ॥ Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिर्यककाण्डः ४ ] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः २५१ १कटः किलिब्जो मुसलोऽयोऽयं ३कण्डोलकः पिटम् ॥ ३ ॥ ४चालनी तितः ५शूपं प्रस्फोटनमथान्तिका । चुल्ल्यश्मन्तकमुद्धानं स्यादधिश्रयणी च सा ॥४॥ ७स्थाल्युखा पिठरं कुण्डं चरुः कुम्भी ८ घटः पुनः। कुटः कुम्भः करीरश्च कलशः कलसो निपः ।। ८५ ॥ हहसन्यगाराच्छक टीधानीपाच्यो. हसन्तिका । १०भ्राष्ट्रोऽम्बरीप ११ऋचीषमृजीषं पिष्टपाकभृत् ॥८६॥ १२कम्बिर्दविः खजाकाऽ१३थ स्यात्तर्दू रुहस्तकः । १४वार्धान्यान्तु गलन्त्यालूः कर्करी करको१५ऽथ सः॥ ७ ॥ नालिकेरजः करङ्क१. 'चटाई, खसकी रट्टी'के २ नाम हैं--कटः ( त्रिः), किलिजः ।। २. 'मूसल'के २ नाम हैं-मुसल: (+मुषलः ), अयोग्रम् (न पु। +अयोनिः)। ___३. 'बाँस आदिकी दौरी, डाली, ओड़ी, टोकरी. खचिया आदि के २ नाम है-कण्डोलकः, पिटम् (न पु+पिटकः)॥ ४. 'चलनी'के २ नाम हैं-चालनी (स्त्री न), तितउः (पुन)॥ ५. 'सूप'के २ नाम है-शूर्पम्, प्रस्फोटनम् (२ न पु)॥ ६. 'चुल्ही'के ५ नाम हैं-अन्तिका (+अन्ती), चुल्ली, अश्मन्तकम्, उद्धानम्, अघिभयणी ॥ . ७. 'बटलोई, चरुई, बहुगुना आदि'के ६ नाम है-स्थाली, उखा, पिठरम्, कुण्डम् (२ त्रि), चरुः (पु), कुम्भी ।। ८. 'घड़े के ७ नाम हैं-घटः (पु स्त्री), कुटः (पु न ), कुम्भः (पु स्त्री.), करीरः (पु न), कलशः, कलसः (२ त्रि ), निपः ( पु न)। ६. 'बोरसी, अंगीठी'के ५ नाम हैं-हसनी, अङ्गारशकटी. अङ्गारधानी, अनारपात्री, हसन्तिका ॥ . १०. 'भाड़, भेडसार के २ नाम हैं-भ्राष्ट्रः, अम्बरीषः ( २ पु न )॥ ११. 'तावा'के २ नाम हैं-चीषम्, ऋजीषम् ॥ १२. 'कलछुल'के ३ नाम हैं-कम्बिः, दर्विः, खजाका (३ स्त्री)॥ १३. 'लकड़ीकी कलछुलका १ नाम है-तर्दूः (स्त्री)॥ १४. 'कमण्डलु'के ५ नाम हैं-वार्धानी, गलन्ती, आलूः (स्त्री),. कर्करी, करकः (पु न)॥ १५. 'नारियल के कमण्डलु'का १ नाम है-फरङ्कः ।। Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨૫૨ अभिधानचिन्तामणि: -१स्तुल्यौ कटाहकर्परौ। २मणिकोऽलिब्जरो ३गर्गरीकलश्यौ तु मन्थनी ।।८।। ४वैशाखः खजको मन्था मन्थानो मन्थदण्डकः । मन्थः क्षुब्धोपऽस्य विष्कम्भो मञ्जीरः कुटरोऽपि च ।। ८ ।। ६शालाजीरो वर्धमानः शरावः ७कोशिका पुनः। मल्लिका चषक: कंसः पारी स्यात्पानभाजनम् ॥१०॥ कुतूश्चर्मस्नेहपानं ६ कुतुपस्तु तदल्पकम् ।। १०दृतिः खल्ल११श्चमेमयी त्वालूः करकपात्रिका ।।६१ ॥ ... १२सर्वमावपनं भाण्डं १३पात्राऽमत्रे तु भाजनम् । १. 'कड़ाह'के २ नाम हैं-कटाहः ( त्रि ), कपरः ॥ २. 'हथहर, गडुई के २. नाम है-मणिकः, अलिजरः (२ पुन)॥ ३. 'दही मथनेके बर्तन'के ३ नाम हैं-गगंगे, कलशी, मन्थनी ।। . ४. 'मथनी'के ७ नाम हैं-वैशाखः, खजकः, मन्याः (-थिन् ), मन्थानः, मन्थदण्डकः, मन्थः, क्षुब्धः ।।.. ५. जिसमें बांधकर मथनी घुमायी जाती है, उस खम्भे' के ३ नाम हैविष्कम्भः (+दण्डकरोटकम ), मञ्जीरः, कटरः (+कुटकः)। ६. 'सकोरे, ढकनी आदि के ३ नाम है-शालाजीरः, वर्धमानः, शरावः (२ पु न)॥ ७. 'प्याली या प्याले'के ६ नाम हैं--कोशिका, मल्लिका, चषकः, कंस: (२ पु न ), पारी, पानभाजनम् ॥ ८. 'कुप्पा ( तेल या घी रखनेके लिए चमड़ेके बने हुए बड़े पात्र)' का १ नाम है-कुतः ॥ ६. 'कुप्पी (पूर्वोक्त छोटे बर्तन) का १ नाम है-कुतुपः (पु न )॥ १०. 'खरल ( दवा आदि कूटनेके लिए लोहे या पत्थर के बने खरल ) के २ नाम है- दृतिः (पु), खल्लः ॥ ११. चमड़ेके के कमण्डलु'का १ नाम है-करकपात्रिका ॥ १२.:भाण्ड ( जिसमें कोई वस्तु रखी जाय उस )के २ नाम है--आक‘पनम्, भाण्डम् ।। १३. 'बर्तन ( छोटी थाली )के ३ नाम हैं-पात्रम् (त्रि), अमत्रम् , भाजनम् ॥ विमर्श-'अमरकोष'कारने श्रावपन आदि पांचो पर्यायोंको एकार्थक माना है (२६।३३)। Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिर्यकाण्ड: ४] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः ર૫૩ श्तद्विशालं पुनः स्थालं २स्यात्पिधानमुदश्चनम् ॥ २॥ शैलोऽद्रिः शिखरी शिलोच्चयगिरी गोत्रोऽचलः सानुमान् । ग्रावा पर्वतभूध्रभूधरधराहार्या नगो४ऽथोदयः। पूर्वाद्रिपश्वरमादिरस्त ६उदगद्रिस्त्व दिराड् मेनकाप्राणेशो हिमवान् हिमालयहिमप्रस्थौ भवानीगुरुः ॥६३॥ . हिरण्यनाभो मैनाकः सुनाभश्च तदात्मजः । रजताद्रिस्तु कैलासोऽष्टापदः स्फटिकाचलः ॥ ६४ ॥ एकौश्चः कञ्चो१०ऽथ मलय आषाढो दक्षिणाचलः। ११स्यान्माल्यवान् प्रस्रवणो १२विन्ध्यस्तु जलवालकः ॥६५ ॥ १३शत्रुञ्जयो विमलाद्रि १४रिन्द्रकीलस्तु मन्दरः। १. 'थाल, परात'का १ नाम है-स्थालम् (न स्त्री)। २. 'ढकन'के २ नाम है-पिधानम् , उदञ्चनम् ॥ ३. 'पर्वत, पहाड़'के १५ नाम हैं-शलः, अद्रिः, शिखरी (-रिन् ), शिलोच्चयः, गिरिः, गोत्रः, अचलः, सानुमान् (-मत्), ग्रावा (-वन् ), पर्वतः, भूधः ( यौ०-कुध्रः, महीध्रः,......'), भूधरः (यौ०-महीधरः, भूभृत् , पृथ्वीधरः, पृथ्वीभृत् ,..........."), धरः, अहार्यः, नगः ।। शेषश्चात्र-गिरौ प्रपाती कुट्टार उर्वङ्गः कन्दराकरः। ४. 'उदयाचल'के २ नाम हैं-उदयः (+उदयाचलः ), पूर्वाद्रिः । ५. 'अस्ताचल के २ नाम हैं-चरमाद्रिः, अस्तः (+अस्ताचलः)॥ ६. 'हिमालय पर्वत के ७ नाम हैं-उदगद्रिः, अद्रिराट (-राज ), मेनकाप्राणेशः, हिमवान् (-वत् ), हिमालयः , हिमप्रस्थः, भवानीगुरुः ॥ ७. 'मैनाफपर्वत'के ३ नाम हैं-हिरण्यनाभः, मैनांकः, सुनामः ॥ ८. कैलास पर्वत'के ४ नाम हैं-रजताद्रिः, कैलासः, अष्टापदः, स्फटि- . काचलः॥ शेषश्चात्र-कैलासे धनदावासो हराद्रिर्हिमवद्धसः ॥ ६. क्रौञ्चपर्वत'के २ नाम हैं- क्रौञ्चः, क्रुञ्चः ।। १०. 'मलय पर्वत'के ३ नाम हैं-मलयः (पु न ), आषाढः, दक्षिणाचलः ॥ शेषश्चात्र-मलयश्चन्दनगिरिः । ११. 'माल्यवान् पर्वत के २ नाम हैं-माल्यवान् (-वत्), प्रस्रवणः ॥ १२. 'विन्ध्य पर्वत के २ नाम है-विन्ध्यः, जलवालकः॥ १३. 'विमल पर्वत के २ नाम हैं-शत्रुञ्जयः, विमलाद्रिः ।। १४. 'मन्दर पर्वत के २ नाम है-इन्द्रकीलः, मन्दरः ॥ Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५४ __ अभिधानचिन्तामणिः १सुवेलः स्यात्रिमुकुटस्त्रिकूटस्त्रिककुच्च सः॥६६॥ २उज्जयन्तो रैवतक: ३सुदारुः पारियात्रकः। ४लोकालोकश्चक्रवालोऽथ मेरुः कर्णिकाचलः॥१७॥ रत्नसानुः सुमेरुः स्वःस्वर्गिकाश्चनतो गिरिः। ६शृङ्गन्तु शिखरं कूटं ७प्रपातस्त्वतटो भृगुः॥१८॥ मेखला मध्यभागोऽद्रेनितम्बः कटकश्च सः। दरी स्यात्कन्दरोऽ१०खातबिले तु गह्वरं गुहा ॥६६॥ १५द्रोणी तु शैल योः सन्धिः १२पादाः प्रत्यन्तपर्वताः। ... १३दन्तकास्तु बहिस्तिर्यकप्रदेशा निर्गता गिरेः ॥ १०० ।। १. 'सुवेल पर्वत'के ४ नाम हैं-सुवेलः, त्रिमुकुटः, त्रिकूटः, त्रिककुत् २. रैवतक पर्वत' के २ नाम हैं-उज्जयन्तः, रैवतकः ॥ ३. 'पारियात्र पर्वत'के २ नाम हैं-सुदारुः, पारियात्रकः ॥ . ४. 'लोकालोक पर्वत'के २ नाम है-लोकालोकः, चक्रवालः ॥ ५. 'सुमेरु पर्वत'के ७ नाम है-मेरुः, कर्णिकाचलः, रत्नसानुः, सुमेरुः, स्वगिरिः, स्वर्गिगिरिः, काञ्चनगिरिः । ( ४।६३ से यहांतक सब पर्वतके पर्याय वाचक शब्द पुंल्लिङ्ग हैं )॥ ६. 'शिखर, पहाड़की चोटी के ३ नाम हैं-शृङ्गम् , शिखरम् , कूटम् (३ न पु)॥ ७. 'प्रपात'के ३ नाम हैं-प्रपातः, अतटः, भृगुः । विमर्श-"जिस तटसे गिरा जाय, उस तटका नाम 'भृगु' है" यह किसीकिसीका मत है ॥ ८. 'पर्वतकी चढ़ाईके मध्यभाग'के ३ नाम हैं-मेखला, नितम्बः, कटकः ( पु न )॥ ६. 'कन्दरा; दर्रा'के २ नाम हैं-दरी, कन्दरः ( त्रि)॥ १०. 'गुहा, पर्वतकी गुफा के २ नाम हैं-गह्वरम् ( पु न ), गुहा ।। विमर्श-किसी-किसी के मतसे 'दरी, कन्दरः, गह्वरम् , गुहा'ये ४ नाम "गुफा के ही हैं ।। ११. 'दो पर्वतोंके मिलनेके स्थान' का नाम है-द्रोणी॥ १२. 'पर्वतके पासवाले छोटे-छोटे पहाड़ों'का १ नाम है-पादाः ।। १३. 'पर्वतके निकले हुए बाहरी तिर्छ स्थानों'का १ नाम है-दन्तकाः ॥ Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५५ तिर्यकाण्ड: ४ ] मणिप्रभा'व्याख्योपेतः १अधित्यकोर्ध्वभूमिः स्यारदधोभूमिरुपत्यका । ३स्नुः प्रस्थं सानु४रश्मा तु पाषाणः प्रस्तरो दृषत् ॥ १०१ ॥ ग्रावा शिलोपलो ५गण्डशैलाः स्थूलोपलाश्च्युताः। ६स्यादाकरः खनिः खानिर्गमा ७धातुस्तु गैरिकम् ॥ १०२ ॥ शुक्लधातौ पाकशुक्ला कठिनी खटिनी खटी। लोहं कालायसं शस्त्रं पिण्ड पारशवं घनम् ॥ १०३ ॥ गिरिसारं शिलासारं तीक्ष्णकृष्णामिषे अयः। १०सिंहानधूर्तमण्डुरसरणान्यस्य किटके ॥ १०४॥ ११सर्वश्च तैजसं लोहं १२विकारस्त्वयसः कुशी। १. 'पहाड़की ऊपरवाली भूमि'का १ नाम है-अधित्यका ॥ २. 'पहाड़की नीचेवाली भूमि'का १ नाम है-उपत्यका ॥ ३. पर्वतकी ऊपरवाली समतल भूमि के ३ नाम हैं.-स्नुः (पु), प्रस्थमः, सानु: ( २ पु न)॥ ४. 'पत्थर के ७ नाम हैं-अश्मा (-श्मन् ), पाषाणः, प्रस्तरः, दृषत् (स्त्री), ग्रावा (-वन् , पु), शिला, उपल: (पुन)॥ ५. 'पर्वतसे गिरे हुए बड़े-बड़े चट्टानो'का १ नाम है-गण्डशैलाः ॥ ६. 'खान'के ४ नाम हैं-आकरः, खनिः, खानिः (२ स्त्री), गञ्जा (स्त्री पुः) । ७. 'गैरू'के २ नाम हैं-धातुः (पु.), गैरिकम् ।। ८. 'खड़िया, चाक के ४ नाम हैं-शुक्लधातुः, पाकशुक्ला, कठिनी, खटिनी, खटी. (+कखटी.)। ६. 'लोहे के ११ नाम हैं-लोहम् (पु न ), कालायसम्, शस्त्रम्, पिण्डम् , पारशवम् (पु न), घनम्, गिरिसारम् , शिलासारम् (२ न ।+२ पु), तीक्ष्णम् , कृष्णामिषम् , अयः (-यस , न )। शेषश्चात्र स्याल्लोहे धीनधीवरे । . १०. 'मण्डूर लोहकिट्ट' के ४ नाम हैं-सहानम्, धूर्तम् , मण्डरम्, सरणम् ॥ ११. 'सर्वविध (आटोप्रकारके ) तेजोविकार'का १ नाम है-लोहम् ( न पु )। विमर्श-लोह आठ हैं-सोना, चांदी, तांबा, पीतल, काँसा, रांगा, सीसा, लोहा । इन्हींको 'अष्टधातु' कहते हैं । १२. 'लोहेकी बनी हुई वस्तु'का १ नाम है-कुशी ।। Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५६ अभिधानचिन्तामणिः १ताम्र म्लेच्छमुख शुल्वं रक्तं द्वयष्टमुदुम्बरम् ।। १०५ ।। म्लेच्छशावरभेदाख्यं मर्कटास्यं कनीयसम्। ब्रह्मवर्द्धनं वरिष्ठं २सीसन्तु सीसपत्रकम् ॥ १०६॥ नागं गण्डूपदभवं वर्ष सिन्दुरकारणम। वधं स्वर्णारियोगेष्टे यवनेष्टं सुवर्णकम् ॥ १०७ ॥ ३वतंत्रपु स्वर्णजनागजीवने मृद्वगरङ्ग गुरुपत्रपिच्चटे। स्याच्चक्रसंज्ञं तमरञ्च नागज कस्तीरमालीनकसिंहले अपि ॥ १०८ ।। ४स्याद्रप्यं कलधौतताररजतश्वेतानि दुर्वर्णकं ... खजूरश्च हिमांशुहंसकुमुदाभियं १. 'तांबे के १२ नाम हैं-ताम्रम् , म्लेच्छमुखम् , शुल्वम् , रक्तम् , त्यष्टम् , उदुम्बरम् (+ौदुम्बरम् ), म्लेच्छम् , · थावरम् , मर्कटास्यम् , कनीयसम् , ब्रह्मवर्धनम् , वरिष्ठम् ॥ . शेषश्चात्र-ताने पवित्रं कास्यं च ॥ २. 'सीसा के ११ नाम हैं-सीसम् (न ।+पु), सीसपत्रकम् , नागम , गण्डूपदभवम् , वप्रम , सिन्दूरकारणम् , वर्धम् , स्वर्णारिः, योगेष्टम् , यवनेष्टम् , सुवर्णकम् ।। शेषश्चात्र-सीसके तु महाबलम् । चीनः पट्ट समोलूकं कृष्णं च त्रपुबन्धकम् ॥ ३. 'रांगा'के १४ नाम हैं-वङ्गम् , त्रपु (न), स्वर्णजम् , नागजीवनम् , मृदङ्गम , रङ्गम् , गुरुपत्रम् , पिच्चटम् , चक्रम् ( 'चक्र' के पर्यायवाचक सभी शब्द ), तमरम् , नागजम् , कस्तीरम् , अालीनकम् , सिंहलम् ॥ शेषश्चात्र-त्रपुणि श्वेतरूप्यं स्यात् शण्ठं सलवणं रजः । पारसं मधुकं ज्येष्ठं घनं च मुखभूषणम् ।। ४. 'चांदी के १० नाम हैं-रूप्यम् , कलधौतम् , तारम् , रजतम् (न पु), श्वेतम् (+सितम्,".........."), दुर्वर्णकम् , खजुरम् हिमांशु:, हंस:, कुमुदः (हिमांशु आदि अर्थात् चन्द्र आदिके वाचक सभी शब्द, अत एव+चन्द्रः, सोम.......""; मराला, मानसौकाः, कैरवः,...")। शेषश्चात्र-राजते त्रापुषं वङ्गः जीवनं वसु भीरुकम् । शुभ्र सौम्यं च शोध्यं च रूप्यं भीरु जवीयसम् ।। Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिर्यककाण्ड: ४] मणिप्रभा'व्याख्योपेतः २५७ -सुवर्ण पुनः। स्वर्णं हेम हिरण्यहाटकवसून्यष्टापदं काञ्चनं कल्याणं • कनकं महारजतरैगाङ्गेयरुक्माण्यपि ॥ १०६ ॥ कलधौतलोहोत्तमवह्निबीजान्यपि गारुडं गैरिकजातरूपे । तपनीयचामीकरचन्द्रभर्माऽर्जुननिष्ककार्तस्वरकर्बुराणि ॥ ११० ॥.. जाम्बूनदं शातकुम्भं रजतं भरि भूत्तमम् । २हिरण्यकोशाकुप्यानि हेम्नि रूप्ये कृताकृते ॥ १११ ।। ३कुप्यन्तु तवयादन्यद्हरूप्यं तु द्वयमाहतम् । ५अलङ्कारसुवर्णन्तु शृङ्गीकनकमायुधम् ॥ ११२ ।। रजतश्च सुवणेञ्च संश्लिष्टे घनगोलकः। .७पित्तलारेऽ- . १. 'सोने, सुवर्ण'के ३३ नाम है-सुवर्णम् , स्वर्णम् (२ न पु), हेम (-मन् , न ।+हेमः, पु), हिरण्यम (न पु), .हाटकम् (न ।+पु), वसु (न), श्रष्टापदम् (न पु), काञ्चनम् , कल्याणम् , कनकम् , महारजतम् , राः (=रे, पु स्त्री ), गाङ्गेयम् , रुक्मम् , कलधौतम , लोहोत्तमम्, वह्निबीजम् , गारुडम् , गैरिकम् , जातरूपम् तपनीयम् , चामीकरम् , चन्द्रम् (न पु ), भर्म (-मन् , न ), अर्जुनम् , निष्कः (पु न ), कार्तस्वरम् , कबुरम , जाम्बूनदम्, शातकुम्भम् (+शातकौम्भम् ) रजतम् , भूरि ( न ।+पु ), भूत्तमम् ॥ शेषश्चात्र-सुवर्णे लोभनं शुक्र तारजीवनमौजसम् । . दीक्षायणं रक्तवर्ण श्रीमत्कुम्भं शिलोद्भवम् ॥ . · श्रेणवं तु कर्णिकारच्छायं वेणुतटीभवम् । २. 'सिका आदि बनाये हुए या बिना बनाये हुए सोना तथा चांदी के ३ नाम हैं-हिरण्यम , कोशम , अकुप्यम् ॥ ३. 'सिका बनाये या बिना बनाये हुए सोना-चाँदीको छोड़कर दूसरे तांबा श्रादि धातुका १ नाम है-कुप्यम । ___४. 'सिका आदि रूपमें परिणत सोना-चांदी, तांबा आदि सब धातुओं' का १ नाम है-रूप्यम् ॥ . ५. 'आभूषणार्थ सुवर्ण'के ३ नाम है-अलङ्कारसुवर्णम् , शृङ्गीकनकम् , आयुधम् ॥ . ६. 'मिश्रित सोना-चांदी'का १ नाम है-घनगोलकः ( पु न)॥ ७. 'पीतल के २ नाम हैं-पित्तला (स्त्री न ।+पु न ), आर:: (पुन)॥ १७ अ० चि० Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५८ अभिधानचिन्तामणिः -१थारकूटः कपिलोहं सुवर्णकम् ॥ ११३ ॥ रिरी रीरी च रीतिश्च पीतलोहं सुलोहकम् । ब्राझी त राज्ञी कपिला ब्रह्मरीतिर्महेश्वरी ॥ ११४ ॥ ३कांस्ये विद्यप्रियं घोषः प्रकाशं वङ्गशुल्वजम् । घण्टाशब्दमसुराहरवणं लोइज मलम् ॥ ११५ ।। ४सौराष्टके पश्चलोहं ५वर्तलोई तु वर्तकम् । ६पारदः पारतः सूतो हरवीजं रसश्चलः ॥ ११६ ॥ ७अभ्रकं स्वच्छपत्रं खमेघाख्यं गिरिजामले । . . स्रोतोऽअनन्तु कापोतं सौवीरं कृष्णयामुने ।। ११७ ॥ . ' ६अथ तुत्थं शिखिग्रीवं तुस्थाअनमयूरके । १०मषातुत्थं कांस्यनीलं हेमतारं वितुन्नकम् ।। ११८ ॥... ११स्यात्तु कर्परिकातुत्थममृतासङ्गमञ्जनम् ।। १. 'पित्तलके भेट-विशेष'के ७ नाम हैं.-श्रार कूटः ( पु न ), कपिलोहम्; सुवणकम् , रिरी रीरी, रीतिः, पीतलोहम् , सुलोहकम (+सुलोहम् ). २. पीतवर्ण लोई के भेद-विशेष'के ५' नाम है-ब्राह्मी, राशी, कपिला, ब्रह्मरीतिः, महेश्वरी ( किसी-किसीके मतसे 'पित्तला' आदि १२ नाम एकार्थक हैं )॥ ३. 'कांसा'के १० नाम हैं-कांस्यम , विद्युत्प्रियम् , घोषः, प्रकाशम् , वनशुल्वजम् , घण्टाशम्दम् , कंसम् , रवणम् , लोहजम , मलम् ॥ ४. 'तांबा-पीतल-रांगा-सीसा-लोहा रूप पंचलोह'के २ नाम है-सौराष्ट्रकम् , पञ्चलोहम् ॥ ५. 'लोह-विशेष या इस्पात के २ नाम हैं-~-वर्तलोहम्, वर्तकम् ।। ६. 'पारा'के ६ नाम हैं-पारदः, पारतः (पु न ), सृतः, हरबीजम् , रसः, चलः (+ चपलः)॥ ७. 'अभ्रक, अबरख'के ७ नाम हैं-अभ्रकम् , स्वच्छपत्रम् , खमेघाख्यम्(श्राकाश तथा मेघके पर्यायवाचक शब्द, अत:-+खम , गगनम् ,""""""", मेघम् , अम्बुदम् ,""""""), गिरिजामलम् ॥ ६. 'काला सुर्मा'के ५ नाम है-स्रोतोञ्जनम् , कापोतम , सौवीरम् , कृष्णम् , यामुनम् ॥ ६. 'तूतिया'के ४ नाम है-तुत्थम्, शिखिग्रीवम्, तुस्थाञ्जनम्, मयूरकम् । १०. 'नीलाथोथा'के ४ नाम है-मूषातुत्थम्, कांस्यनीलम्, हेमतारम् , वितुन्नकम् ॥ ११. 'अजन'के ३ नाम है-परिकातुत्थम् , अमृतासङ्गम् , अञ्जनम् ।। Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिर्यककाण्डः ४] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः ૨૫. १रसगर्भ तार्यशैलं तुत्थे दावीरसोद्भवे ॥ ११६ ॥ २पुष्पाञ्जनं रीतिपुष्पं पौष्पकं पुष्पकेतु च । ३माक्षिकं तु कदम्बः स्याच्चक्रनामाऽजनामकः ॥ १२० ॥ ४ताप्यो नदीजः कामारिस्तारारिर्विटमाक्षिकः।। ५सौराष्ट्री पार्वती काक्षी कालिका पर्पटी सती ॥ १२१ ॥ आढको तुवरी कसोद्भवा काच्छी मृदाह्वया । ६कामीसं धातुकासीसं खेचरं धातुशेखरम् ॥ १२२ ॥ द्वितीयं पुष्पकासीसं कंसकं नयनौषधम् । गन्धाश्मा शुल्वपामाकुष्ठारिर्गन्धिकगन्धकौ।। १२३ ।। सौगन्धिकः शुकपुच्छो हरितालन्तु पिञ्जरम् । . बिडालक विनगन्धिं खजूरं वंशपत्रकम् ।। १२४ ॥ आलपीतनतालानि गोदन्तं नटमण्डनम् । वङ्गारिर्लोमहृच्चा- - . १. 'दारुहल्दीके रससे बने हुए तूतिया'के २ नाम है-रसगर्भम् , तायशैलम् ।। २. 'तपाये हुए पीतलकी मैलसे बने हुए सुर्मे'के ४ नाम है-पुष्पाञ्चनम (+कुसुमाजनम ), तार्यशैलम , पौष्पकम् , पुष्पकेतु ॥ विमर्श'अञ्जन-सम्बन्धी भेदोपभेद तथा मतान्तरोंको अमरकोष ( २। ६ । १०२ )के मत्कृत 'मणिप्रभा टीका तथा 'अमरकौमुदी' टिप्पणीमें देखें । ३. 'माक्षिक' (सहद या सोनामक्खी)के ४ नाम है-माक्षिकम , कदम्बः, चक्रनामा (-मन् । चक्रके पर्यायवाचक सब शब्द), अजनामकः ( अब अर्थात् विष्णुके पर्यायवाचक सब शब्द , अतः-वैष्णवः,...") । ___४. 'विटमाक्षिक'के ५ नाम हैं-ताप्यः, नदीजः, कामारिः, तारारिः, विटमाक्षिकः॥ ५. 'पर्पटो'के ११ नाम . . हैं-सौराष्ट्री, पार्वती, काक्षी, कालिका, पर्पटी, सती, आढकी, तुवरी, कंसोद्भवा, काच्छी, मृदाहया । मिट्टीके पर्याय: वाचक शब्द, अतएव-मृत्तिका, मृत्स्ना , मृत्सा,....)॥ ____६. 'कसीस' के ४ नाम है—कासीसम् , धातुकासीसम् , खेचरम् , 'धातुशेखरम् ।। ७. 'फूलकसीस'के ३ नाम हैं-पुष्पकासीसम् , कंसकम् , नयनौषधम् ॥ ८. 'गन्धक'के ८ नाम हैं-गन्धाश्मा (-श्मन् ), शुल्वारिः, पामारिः, कुष्ठारिः, गन्धिकः, गन्धकः, सौगन्धिकः, शुकपुच्छः ॥ ६. 'हरताल'के १३ नाम है-हरितालम, पिञ्जरम् बिडालकम्, विस Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६० अभिधानचिन्तामणिः -१थ मनीगुप्ता मनःशिला ॥ १२५ ॥ करवीरा नागमाता रोचनी रसनेत्रिका । नेपाली कुनटी गोला मनोहा नार्गाजाह्वका ।। १२६ ॥ सिन्दुरं नागजं नागरक्तं शृङ्गारभूषणम् । चीनपिष्टं ३हंसपादकुरुविन्दे तु हिङ्गलः ।। १२७ ॥ ४शिलाजतु स्याद् गिरिजमर्थ्यं गैरेयमश्मजम् । ५क्षारः काचः ६कुलाली तु स्याच्चक्षुष्या कुलत्थिका ॥ १२८ ॥ बोलो गन्धरसः प्राणः पिण्डो गोपरसः शशः। ... रत्नं वसु मणिहस्तत्र वैडूर्य वालवायजम् ।। १२६ ॥ गन्धि, खजू रम, वंशपत्रकम , आलम , पीतनम, तालम , गोदन्तम् (+गोपित्तम् ), नटमण्डनम्, वङ्गारिः, लोमहृत् ॥ १. 'मैनसिल'के ११ नाम हैं--मनोगुप्ता, मनःशिला (+शिला), करवीरा, नागमाता (-मातृ ), रोचनी, रसनेनिका, नेपाली (+नेपाली), कुनटी, गोला, मनोहा, नागजिहिका || . . . २. 'सिन्दूर'के ५ नाम है-सिन्दूरम् , नागजम् , नागरक्तम्, शृङ्गारभूषणम् (+शृङ्गारम् ), चीनपिष्टम् ॥ . ३. 'हिंगुल'के ३ नाम हैं-सपादः, कुरुविन्दम्, हिङ्गलः (पु ।+न पु I + हिङ्गलुः)॥ ___४. 'सिलाजीत'के ५ नाम है-शिलामतु (न), गिरिजम् , अर्घ्यम, गैरेयम्, अश्मजम् ॥ ५. 'काच'के २ नाम है-क्षारः, काचः॥ . ६. 'काला सुमा'के ३ नाम हैं-कुलाली, चक्षुष्या, कुलस्थिका ।। ७. 'गन्धरस'के ६ नाम है--बोलः, गन्धरस:, प्राणः, पिण्डः, गोपरस: (+रस:), शशः॥ ८. 'रत्न, मणि, जवाहरात'के ३ नाम हैं-रत्नम् , वसु (न), मणि: (पु स्त्री।+माणिक्यम् )॥ विमर्श-रत्न की आठ जातियाँ हैं, यथा-हीरा, मोती, सोना, चांदी, चन्दन, शङ्ख, चर्म ( मृगचर्म, व्याघ्रचर्म आदि ) और वस्त्र'। : ६. उनमें 'वैडूर्य, विल्लौर मणि'के २ नाम हैं-वैडूर्यम् , वालवायजम् ॥ १. तद्यथा वाचस्पति:-"हीरकं मौक्तिकं स्वर्ण रजतं चन्दनानि च । शङ्खश्च च वस्त्रञ्चेत्यष्टौ रत्नस्य जातयः ।।" इति ।। Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६१ तिर्यकाण्ड: ४] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः श्मरकतन्त्वश्मगर्भ गारुत्मतं 'हरिन्मणिः । २पद्मरागो लोहितकलक्ष्मीपुष्पारुणोपलाः ॥ १३० ॥ ३नीलमणिस्त्विन्द्रनीलः ४सूचीमुखन्तु हीरकः । वरारकं रत्नमुख्यं , वनपर्यायनाम च ॥ १३१ ।। ५विराटजो राजपट्टो राजावर्तोऽथ विद्रमः। रक्ताको रक्तकन्दश्च प्रवालं हेमकन्दलः ॥ १३२॥ ७सूर्यकान्तः सूर्यमणिः सूर्याश्मा दहनोपलः। ८चन्द्रकान्तश्चन्द्रमणिश्चान्द्रन्द्रोपलश्च सः॥ १३३ ॥ हक्षीरतैलस्फाटिकाभ्यामन्यौ खस्फटिकाविमौ । १. 'मरकतमणि, पन्ना'के ४ नाम हैं-मरकतम् , अश्मगर्भम् , गारुत्मतम् , हरिन्मणिः ।। २. पद्मराग मणि'के ४ नाम है-पनरागः (पु न ), लोहितकः, लक्ष्मीपुष्पम् , अरुणोपल: (+शोणरत्नम् )॥ ३. 'इन्द्रनीलमणि, नीलम'के २ नाम है-नीलमणिः, इन्द्रनील: (पु न)॥ ४. 'हीरा'के ५ नाम है-सूचीमुखम्, हीरकः (न I+पु ।+हीरः ), वरारकम् ,. रस्नमुख्यम् , वज्रपर्यायनांमक ( वज्रके पर्यायवाचक सब नाम, अत:-+वज्रम् , दम्भोलिः,....)" ५. 'लाजावत'के ३ नाम हैं-विराटज: (+वैराटः ), राजपट्टः, राजावर्तः ॥ ___६. मूंगा'के ५ नाम हैं-विद्रुमः, रक्ताङ्का, रक्तकन्दः, प्रवालम् (पु न ), हेमकन्दलः ॥ .. ७. 'सूर्यकान्तमणि'के ४ नाम है-सूर्यकान्तः, सूर्यमणिः, सूर्याश्मा (- श्मन ), दहनोपलः ॥ ८. 'चन्द्रकान्तमणि' के ४ नाम है-चन्द्रकान्तः, चन्द्रमणिः, चान्द्रः, चन्द्रोपल: ॥ ६. दूधके समान श्वेत तथा तैलके समान रंगवाले स्फटिकों से भिन्न रनवाले इन दोनों ( सूर्यकान्तमणि तथा चन्द्रकान्तमणि )का 'खस्फटिको' अर्थात् 'आकाशस्फटिको' भी नाम है। (दोनोंके अर्थमें प्रयुक्त होनेसे द्विवचन कहा गया है, वह द्विवचन नित्य नहीं है)। विमर्श-'वाचस्पति ने कहा है कि स्फटिकके ३ भेद है-आकाशस्फटिक, . Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६२ अभिधानचिन्तामणिः शुक्तिजं मौक्तिकं मुक्ता मुक्ताफलं रसोद्भवम् ॥ १३४ ॥ २नीरं वारि जलं दक कमुदकं पानीयमम्भः कुशं तोयं जीवनजीवनीयसलिलास्यम्बु वाः संवरम् । .. क्षीरं पुष्करमेघपुष्पकमलान्यापः पयःपाथसी कीलालं भुवनं वनं घनरसो यादोनिवासोऽमृतम् ॥ १३५ ।। कुलीनसं कबन्धश्च प्राणदं सस्तोमुखम्। क्षीरस्फटिक और तैलस्फटिक । उनमें श्राकाशस्फटिक श्रेष्ठ है और उसके भी दो भेद हैं-सूर्यकान्त और चन्द्रकान्त' ।' १. 'मोतीके ५ नाम हैं-शुक्तिजम्, मौक्तिकम् , मुक्ता, मुक्ताफलम् , रसोद्भवम् ।। विमर्श-यहाँ 'शुक्तिजम्' शब्दमें शुक्ति (सीप ) उपलक्षणं है, क्योंकि हाथीके मस्तक तथा दांत, कुत्ते और सूअर के दांत, मेघ, सप, बाँस तथा मछली; इनसे भी मोती उत्पन्न होता है । इसके अतिरिक्त किसी-किसीका यह भी सिद्धान्त है कि-हाथी, मेघ, सूअर, शङ्ख, मछली, शुक्ति (सीप) और बांससे मोती उत्पन्न होता है, इनमेंसे शुक्तिमें अधिक उत्पन्न होता है ॥ ॥ पृथ्वीकायिक समाप्त ॥ २. (अब यहाँसे आरम्भकर ४।१६२ तक 'जलकायिक' जीवोंका वर्णन करते हैं-) 'पानी'के ३४ नाम हैं-नीरम्, वा /- ), जलम् , दकम, कम्, उदकम् , पानीयम् , अम्भः (- म्भस , न ), कुशम् , तोयम् , जीवनम् , जीवनीयम्, सलिलम्, अर्णः (- स ), अम्बु (२ न ), वाः (= वार , स्त्री), संवरम् , क्षीरम्, पुष्करम् , मेघपुष्पम्, कमलम्, आपः (= अप , नि० स्त्री, ब० ब०), पयः (-यस ), पाथ: (-थस । २ न), कीलालम्, भुवनम्, वनम् , घनरस: (पु +न), यादोनिवासः, अमृतम्, कुलीनसम्, कबन्धम् (+कम् , अन्धम् ), प्रापदम् , सर्वतोमुखम् ॥ १. तद्यथाऽऽह बृहस्पति: [स्फटिकास्तु त्रयस्तेषामाकाशस्फटिको वरः । द्वौ क्षीरतैलस्फटिकावाकाशस्फटिकस्य तु ॥ द्वौ भेदो सूर्यकान्तश्च चन्द्रकान्तश्र तत्र च ।इति।।" २. तदुक्तम्-"हस्तिमस्तकदन्तौ तु दंष्ट्रा शुनवराहयोः। . मेघो भुजङ्गमो वेणुमत्स्यो मौक्तिकयोनयः ॥ इति ॥" अन्यच्च-"करीन्द्रबीमूतवराहशङ्खमत्स्याहिशुक्ल्युद्भववेणुजानि । मुक्ताफलानि प्रथितानि लोके तेषां तु शुक्त्युद्भवमेव भूरि ॥ इति ।।" Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तियाकाण्ड: ४ ] . मणिप्रभा'व्याख्योपेतः ६३ १अस्थाघास्थागमस्ताघमगाधश्चातलस्पृशि ॥ १३६ ॥ २निम्नं गभीरं गम्भीर३मुत्तानं तद्विलक्षणम्। ४अच्छं प्रसन्ने५ऽनच्छे स्यादाविलं कलुषश्च तत् ॥ १३७ ॥ ६अवश्यायस्तु तुहिनं प्रालेयं मिहिका हिमम् । स्यान्नीहारस्तुष रश्च हिमानी तु महद्धिमम् ॥ १३८ ।। प्पारावारः सागरोऽवारपारोऽकूपारोदध्यर्णवा वीचिमाली । यादःलोतोवानंदीशः सरस्वान् सिन्धूदन्वन्तौ मितदुः समुद्रः॥१३६ः आकरो मकराद्रत्नाज़्जलान्निधिधिराशयः। शेषश्चात्र-जले दिव्यमिरासेव्यं कृपीटं घृतमङ्क रम् । विषं पिप्पलपातालनलिनानि च कम्बलम् ।। पावनं षड्रसं चापि पल्लूरं तु सितं पयः।. किट्टिमं तदतिक्षारं सालूकं पकंगन्धिकम् ॥ अन्धं तु कलुषं तोयमतिस्वच्छं तु काचिमम् । १. 'अथाह, अगाध'के ५ नाम हैं-अस्थाघम्, अस्थागम्, अस्ताघम्, भगाधम् , अतलस्मृक् (- स्पृश् , सब त्रि) ॥ २. 'गहरा, गम्भीर के ३ नाम हैं-निम्नम् , गभीरम् , गम्भीरम् ।। विमर्श-किसी-किसी आचार्यका मत है कि 'अस्थाघ' आदि ८ नाम एकार्थक अर्थात् 'अगाध' के ही हैं॥ . . . ३. 'छिछला, थाहयुक्त'का १ नाम है-उत्तानम् ॥ ४. 'स्वच्छ, साफ'के २ नाम हैं-अच्छम् , प्रसन्नम् ॥ ५. 'मैले, कलुषित'के ३ नाम हैं-अनच्छम्, आविलम् , कलुषम् ॥ ६..'पाला, तुषार के ७ नाम हैं-अवश्यायः, तुहिनम्, प्रालेयम् , मिहिका (+धूममहिषी, धूमिका, धूमरी), हिमम् , नीहारः, तुषारः (३ पु न)॥ . ७. 'अधिक पाला, हिम-समूह'का १ नाम है-हिमानी ।। ८. समुद्र'के २१ नाम है-पारावारः, सागरः, अवारपारः, अकूपार: (+अकूवारः), उदधिः, अण्वः, वीचिमाली (-लिन् ), यादईशः, सोतईशः, वारीशः, नदीशः (+ यौ०-यादःपतिः, स्रोत:पतिः, वाःपतिः, नदीपतिः,"".""), सरस्वान् (-स्वत् ), सिन्धुः (पु स्त्री), उदन्वान् (-न्वत् ), मितद्रुः (पु), समुद्रः, मकराकरः (+ मकरालयः), रत्नाकरः (+रत्नराशिः), जलनिधिः, जलधिः जलराशिः (यौ०-वारिनिधिः, वारिधिः, वारिराशिः......)॥ शेषमात्र-समुद्रे तु महाकच्छो दारदो धरणीप्लवः । महीप्रावार उर्वङ्गस्तिमिकोशो महाशयः ।। Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६४ अभिधानचिन्तामणिः द्वीपान्तरा असङ्ख्यास्ते सप्तैवेति तु लौकिकाः ॥ १४०॥ २लवणक्षीरध्याज्यसुरेचस्वादुवारयः । इतरङ्गे भगवीच्यूयुत्कलिका ४महति त्विह ॥ १४१॥ लहय्युल्लोलकल्लोला पावतः पयसां भ्रमः। तालूरो वोलकश्चासौ ६वेला स्याद् वृद्धिरम्भसः ।। १४२ ॥ ७डिण्डीरोऽब्धिकफः फेनो बुद्बदस्थासको समौ । मर्यादा कूलभूः १०कूलं प्रपातः कच्छरोधसी ।। १४३ ।। तटं तीरं प्रतीरश्च ११पुलिनं तजलोज्झितम् । सैकतञ्चा१२न्तरीपन्तु द्वीपमन्तजले तटम् ॥ १४४ ॥ १३तत्परं पार१४मवारं त्व क् १५पात्रं तदन्तरम् । .. १. बीच-बीचमें द्वीपवाले असङ्ख्य समुद्र है, किन्तु. लौकि मतसे सात ही समुद्र हैं । ____२. सात समुद्रों के क्रमशः २-२ नाम है-लवणवारि:, लवणोदः, दीरवारिः, क्षीरोदः, दधिवारिः, दध्युदः, आज्यवारिः, आज्योदः; सुरावारिः, सुरोदः; इतुवारिः, इतूदः, स्वादुवारिः स्वादूदः ।। ३. 'तरङ्ग'के ५ नाम है-तरङ्गः, भङ्गः, वीचिः (स्त्री), अमिः (पु स्त्री), उत्कलिका ।। ४. 'बड़े तरङ्ग लहर के ३ नाम है-लहरी, उल्लोलः, कल्लोलः॥ ५. 'पानीके भौंर के ३ नाम हैं-श्रावतः, तालूरः, बोलकः ॥ ६. 'पानी बढ़ने'का १ नाम है-वेला ॥ ७. 'फेन'के ३ नाम हैं-डिण्डीरः, अब्धिकफ: (+सागरमलम् ), फेनः ॥ ८. 'बुद्बुद, बुलबुला'के २ नाम हैं-बुबुदः, स्थासकः ।। ६. 'समुद्रतीरकी भूमिका १ नाम है-मर्यादा ।। १०. 'तट, किनारा तीर'के ७ नाम हैं-कूलम् , प्रपात:, कच्छ:, रोधः (-धस , न ), तटम् (त्रि ), तीरम् , प्रतीरम् ।। ११. 'जिसे पानीने छोड़ दिया है, उस किनारे ( तट )के २ नाम हैपुलिनम् ( न पु), सैकतम् ।। १२. 'टापूक २ नाम है-अन्तरीपम् , द्वीपम् (पु न )॥ . १३. 'दूसरी श्रोरवाले किनारे'का १ नाम है-पारम् (पु न)। १४. 'इस पोरवाले किनारे'का १ नाम है-अवारम् (पु न)॥ १५. 'दोनों तटोंके बीचवाले भाग'का १ नाम है-पात्रम् (त्रि)॥ Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६५ तिर्थक्काण्ड: ४] मणिप्रभा'व्याख्योपेतः १नदी हिरण्यवर्णा स्याद्रोधोवक्रा तरजिणी ॥ १४५ ॥ सिन्धुः शैवलिनी वहा च ह्रदिनी स्रोतस्विनी निम्नगा स्रोतो निर्झरिणी सरिच्च तटिनी कूलङ्कषा वाहिनी । कपिवती समुद्रदयिताधुन्यौ स्रवन्तीसरस्वत्यौ पर्वतजाऽऽपगा जलधिगा कुल्या च जम्ब लिनी ॥ १४६॥. २गङ्गा त्रिपथगा भागीरथी त्रिदशदीर्घिका । त्रिस्रोता जाह्नवी मन्दाकिनी भीष्मकुमारसूः ॥ १४७ ।। सरिद्वरा विष्णुपदी सिद्धस्वःस्वगिखापगा। ऋषिकुल्या हेमवती स्वयंपी. हरशेखरा ॥ १४ ॥ ३यमुना यमभगिनी कालिन्दी सूर्यजा यमी। ४रेवेन्दुजा पूर्वगङ्गा नर्मदा मेकलाद्रिजा ॥ १४६ ॥ ५गोदा गोदावरी ६तापी तपनी तपनात्मजा। शुतुद्रिस्तु शतद्रुः स्यात् ८कावेरी त्वर्द्धजाह्नवी ॥ १५० ॥ हकरतोया सदानीरा-. १. 'नदी के २७ नाम है-नदी, हिरण्यवर्णा, रोधोवका, तरङ्गिणी, सिन्धुः (पु स्त्री), शैवलिनी,. वहा, ह्रदिनी. (+हादिनी), स्रोतस्विनी, निम्नगा, स्रोतः (-तस , न ), निरिणी, सरित् (स्त्री), तटिनी, कूलङ्कया, वाहिनी, कषू: (स्त्री), द्वीपवती, समुद्रदयिता, धुनी, सवन्ती, सरस्वती, पर्वतजा, आपगा, जलधिगा, कुल्या, जम्बालिनी ॥ २. गन्ना नदी'के. १६ नाम हैं-गङ्गा, त्रिपथगा (+त्रिमार्गगा), भागीरथी, त्रिदशदीर्घिका, त्रिस्रोताः (स्त्री), जाहवी (+जहु कन्या ), मन्दाकिनी, भीष्मस्ः, कुमारसूः ( २ स्त्री),सरिद्वरा, विष्णुपदी, सिद्धापगा, स्वरापगा, स्व-पगा, खोपगा, ऋषिकुल्या, हैमवती, स्वर्वापी, हरशेखरा ।। ३. 'यमुना नदी के ५ नाम हैं--यमुना, यमभगिनी, कालिन्दी (+कलिन्दतनया ), सूर्यजा, यमी । ४. 'नर्मदा नदी के ५ नाम हैं-रेवा, इन्दुजा, पूर्वगङ्गा, नर्मदा, मेकलादिना (+मेकलकन्या, मेकलकन्यका )। ५. 'गोदावरी नदी के २ नाम है-गोदा, गोदावरी ।। ६. तापी नदी के ३ नाम है-तापी, तपनी, तपनात्मजा । ७. 'शतद्र, सतलज नदी' के २ नाम है-शुद्र :, शतद्रः (२ स्त्री)॥ ८. 'कावेरी नदी' के २ नाम हैं--कावेरी, अर्धजाह्नवी ॥ ६. 'करतोया नदी के २ नाम हैं-करतोया, सदानीरा ।। Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६६ अभिधानचिन्तामणिः -१चन्द्रभागा तु चन्द्रका। २वासिष्ठी गोमती तुल्ये ३ब्रह्मपुत्री सरस्वती ।। १५१ ॥ ४विपाड़ विपाशाऽऽर्जुनी तु बाहुदा सैताहिनी। वैतरणी नरकस्वा स्रोतोऽम्भःसरणं स्वतः ॥ १५२ ॥ प्रवाहः पुनरोधः स्याद्वेणी धारा रयश्च सः। घट्टस्तीर्थोऽवतारे१०ऽम्बुवृद्धौ पूरः प्लवोऽपि च ।। १५३ ॥ . १५पुटभेदास्तु वक्राणि १२भ्रमास्तु जलनिर्गमाः। १३परीवाहा जलोच्छवासाः विमर्श-पार्वती-विवाहके समय हाथसे गिरे हुए कन्यादान-जलसे यह नदी निकली है, ऐसा पुराणों में लिखा है । यह बङ्गालकी नदी है। १. चन्द्रभागा नदी के २ नाम हैं-चन्द्रभागा (+चान्द्रभागा ), चन्द्रका॥ २. 'गोमती नदी के २ नाम हैं-वासिष्ठी (+गौतमी), गोमती॥ . ३. 'सरस्वती नदी'के २ नाम है-ब्रह्मपुत्री, सरस्वती ॥ ४. 'विपाशा नदी के २ नाम है-विपाट (-पाश , स्त्री), विपाशा ।। ५. 'बाहुदा नदी के ३ नाम है-आर्जुनी, बाहुदा, सैतवाहिनी ॥ . ६. 'वैतरणी नदी' के २ नाम हैं-वैतरणी, . नरफस्था। (यह नरक में स्थित है)। शेषश्चात्र-मरूदला तु मुरला सुरंबेला सुनन्दिनी। चर्मण्वती रतिनदी संभेदः सिन्धुसङ्गमः ॥ ७. 'सोता (स्वतः पानीके बहने )का १ नाम है-स्रोतः (-तस् , न)॥ ८. 'प्रवाह, धारा के ५ नाम है-प्रवाहः ओघः, वेणी, धारा, रयः ।।। ६. 'घाट ( नदीमें उतरनेके मार्ग) के ३ नाम हैं-घट्टः, तीर्थः (पु न), अवतारः॥ १.. 'पूर, पानी बढ़ना'के २ नाम हैं-पूरः, प्लवः ॥ ११. 'पानीकी भंवरी, जलावर्त'के २ नाम है-पुटभेदाः, वक्राणि (+चंक्राणि)। विमर्श-कोई कोई प्राचार्य टेढ़ी नदीका, कोई भूमि के भीतरसे पानी की धारा निकलनेका पर्याय इन दोनों शब्दोंको मानते हैं। . १२. 'पानी निकलने के मार्ग'का १ नाम है-भ्रमाः॥ १३. 'पृथ्वीके नीचेसे ऊपरकी ओर तीव्र धारा निकलने के २ नाम हैपरीवाहाः, बलोच्छवासाः ॥ Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिर्यक्काण्ड : ४ ] २प्रणाली जलमार्गे३ऽथ पानं कुल्या च सारणिः । ४सिकता बालुका ५ ५ बिन्दौ ६ जम्बाले चिकिलो प्रङ्कः कर्दमच शादो ७हिरण्यबाहुस्तु शोणो नदे भिद्य उद्धयः सरस्वांश्च द्रहोऽगाधजलो हृदः । १० कूपः स्यादुदपानोऽन्धुः प्रहि ११र्नेमी तु तन्त्रिका ।। १५७ ॥ १२ नान्दीमुखो नान्दीपटो वीनाहो मुखबन्धने । निपानं स्यादुपकूपे -- १३ श्राहावस्तु 'मणिप्रभा' व्याख्योपेतः खारणि: ( स्त्री ) ।। ― - १ कूपकास्तु विदारकाः ॥ १५४ ॥ पृषत्पृषतविप्रुषः ॥ १५५ ॥ निषद्वरः । पुनर्वहः ॥ १५६ ॥ १. 'पानी इकट्ठा होनेके लिए सूखी हुई-सी नदी में खोदे गये गढ़ों' के २ नाम हैं— कूपकाः, विदारकाः ॥ - २. 'नाली'का १ नाम है - प्रणाली (त्रि ) | ३. ' नहर, मानवकृत छोटी नदी के ३ नाम २६७ ८. 'नद' के ५ नाम हैं- नदः हैं - पानम्, कुल्या, शेषश्चात्र - नीका च सारणौ । ४. 'बालू, रेत के २ नाम हैं - सिकताः (स्त्री, नि ब० वालुकाः ।। ५. बूँद के ४ नाम हैं - बिन्दु : (पु, पृषत् (न), पृषतः, विप्रुट (-प्रुष्) ।। ६. 'कीचड़, पङ्क' के ६ नाम हैं- - जम्बाल: ( पु न ), चिकिलः, पः (पुन), कर्दम, निषद्वरः, शाद: ( + विस्कल्लः ) ॥ ७. 'सोन; शोणभद्र' के २ नाम हैं - हिरण्यबाहुः, शोणः ॥ व० ), वहः, भिद्यः, उदुद्भ्यः, सरस्वान् ( - श्वन् ) ॥ ६. 'अथाह बलवाले. नद' के ३ नाम है— द्रहः, श्रगाधजलः, हृदः ॥ १०. 'कूप, कुआं, इनारा' के ४ नाम हैं- कूपः ( पु न ), उदपान:: ( पु न ), अन्धुः, प्रहि: ( २ ) ॥ ११. 'कूँ श्राके ऊपर रस्सी बांधने के लिए काष्ठ श्रादिकी बनी हुई चरखी, या ऊपर रखी हुई लकड़ी श्रादि' के २ नाम है— नेमी ( + नेमिः स्त्री), तन्त्रिका ॥ १२. ' कुंए के जगत' के ३ नाम है - नान्दीमुखः, नान्दीपटः, वीनाहः( पु नं ) । . १३. 'चरन' ( पशुओं के पानी पीनेके लिए कुंएके पास ईंट आदि पत्थर आदि से बनाये गये होल ) के २ नाम है - श्राहाव:, निपानम् ( न पु ) ॥ Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .२६८ श्राभधानांचन्तामणिः १ऽथ दीर्घिका ।। १५८ ॥ वापी स्यात् २क्षुद्रकूपे तु चुरी चुण्ढी च चूतकः । ३उद्घाटकं घटोयन्त्रं ४पादावर्तोऽरघट्टकः ॥ १५६॥ . पूअखातन्तु देवखातं पुष्करिण्यान्तु खातकम् । ७पद्माकरस्तडागः स्यात्कासारः सरसी सरः॥ १६० ॥ प्वेशन्तः पल्वलोऽल्पं परिखा खेपखातिके। १०स्यादालवालमावालमावापः स्थानकञ्च सः॥ १६१ ॥ ११आधारस्त्वम्भसां बन्धो १२निरस्तु भरः सरिः। .. उत्सः स्त्रवः प्रस्रवणं १३जलाधारा जलाशयाः ।। १६२ ॥ १. 'वावली के २ नाम हैं-दीधिका, वापी ।। २. 'छोटे कुंए, भडकूई'के ३ नाम हैं-चुरी, चुण्डी, चूतकः ॥ ३. 'धुरई घडारी'के २ नाम है-उद्धाटम् (+उद्धांतनम् ), घट- यन्त्रम् ॥ ४. रेहट'के २ नाम है-पादावर्तः, अरघट्टकः (+अरघट्टः)। ५. 'प्राकृतिक तडाग या कुण्ड आदि'के. २ नाम है-अखातम्, देवखातम् ॥ ६. 'पोखरे छोटे तडाग'के २ नाम हैं-पुष्करिणी, खातकम् (+खातम् )॥ ७. 'तडाग'के ५ नाम है पद्माकरः तडागः (+ तटाकः ), कासारः (२ पुन ), सरसी, सरः (-रस न)। विमर्श-'छोटे तडाग'को 'कासार' तथा. विशाल तडाग'को 'सरसी' कहते है, ऐसा वाचस्पतिका मत है ।। ८ 'जलके छोटे गढ़े के २ नाम है-वेशन्तः, पल्वल: (+तल्ल:)॥ ६. 'खाई'के ३ नाम हैं-परिखा, खेयम्, खातिका ॥ १०. थाला' (पानी ठहरने के लिए पौधे या छोने वृक्षके चारों ओर बनाये गये गोलाकार गढेके ४ नाम हैं-बालबालम् (पु न ), आवालम् (न ।+पु + जलपिण्डिलः ), आवापः, स्थानकम् ॥ .. ११. 'बांध'का १ नाम है-आधारः ॥ , १२. 'झरना'के ६ नाम हैं-निझरः, झरः, सरिः (स्त्री), उत्सः (पु । +न ), सवः, प्रसवणम् ॥ १३. 'जलाशयमात्र' के २ नाम है-जलाधारः, जलाशयः ।। || जलकायि समाप्त ।। Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिर्थक्काण्डः ४] मणिप्रभा'व्याख्योपेतः श्वहिव॒हद्भानुहिरण्यरेतसौ धनञ्जयो हव्यहबिहुताशनः । कृपीटयोनिर्दमना विरोचनाशुशक्षणी छागरथस्तनूनपात ॥ १६३ ॥ कृशानुवैश्वानरवीतिहोत्रा वृषाकपिः पावकचित्रभानू । अप्पित्तधूमध्वजकृष्णवर्माऽचिमच्छमीगर्भतमोघ्नशुकाः ॥ १६४ ॥ शोचिष्केशः शुचिहुतवहोपर्बुधाः सप्तमन्त्रज्वालाजिह्वा ज्वलनशिखिनों जागृविर्जातवेदाः। बर्हिःशुष्माऽनिलसखवसू रोहिताश्वाऽऽनयाशी बहिर्कोतिर्दहनबहुलौ हव्यवाहोऽनलोऽग्निः ॥ १६५ ।। विभावसुः सप्तोदर्चिः २स्वाहाऽग्नायी प्रियाऽस्य च । ३और्वः संवतकोऽब्ध्यग्निर्वाडवो वडवामुखः ॥ १६६ ।। ४दवो दावो वनवहिपर्मेघवहिरिरम्मदः। १. 'अब यहांसे प्रारम्भकर ४।१७१ तक 'तेजःकायिक' जीवोंका वर्णन करते हैं-'अग्नि, प्राग'के ५१ नाम है-वह्निः, बृहद्भानुः, हिरण्यरेताः (-तस), धनञ्जयः, हव्याशनः, हविरशन:, हुताशनः, कृपीटयोनिः, दमुनाः (-नस् । + दमूनाः, नस ), विरोचनः, आशुशुक्षणिः, छागरथः, तननपात् , कृशानुः, वैश्वानरः, वीतिहोत्रः, वृषाकपिः, पावकः, चित्रभानुः, अप्पित्तम् , धूमध्वजः, कृष्णवर्मा (-रमन् ), अर्चिष्मान् (-ध्मत् ), शमीगर्भः, तमोध्न:, शुक्रः, शोचिकेशः, शुचिः, हुतवहः, उषबुधः, सप्तजिहः, मन्त्रजिहः, ज्वालाजिहः, ज्वलनः, शिखी (-खिन् ), जागृविः, जातवेदः (-दस ), बहि:शुष्मा (-मन् ।+बहिः, -हिंस, शुष्मा,-मन् ), अनिलसखा (-खि), वसुः,. रोहिताश्वः, आश्रयाशः, बहियोति: (-तिस ), दहनः, बहुल:, हव्यवाहः, अनलः, अग्निः, विभावसुः, सप्ताचिः, उदर्चिः (२-चिंस , 'अप्यित्तम्' न, शेष सब पु)॥ .. शेषधात्र-अग्नौ वमिर्दीप्रः समन्तभुक । पपरीकः पविर्घास: पृथुर्घसुरिराशिरः॥ जुहुराणः पृदाकुश्व कुषाकुहवनो हविः । घृतार्चिर्नाचिकेतश्च पृष्टो वञ्चतिरञ्चतिः ॥ भुजिर्भरथपीयौ च स्वनिः पवनवाहनः । २. 'अग्निकी पत्नी के २ नाम है-स्वाहा (स्त्री।+अव्य), अग्नायी ॥ ३. 'वडवानल'के ५ नाम हैं-और्वः, संवर्तकः, अब्ध्यग्निः, वाडवः, वडवामुखः॥ ४. 'दावाग्नि'के ३ नाम हैं-दवः, दावः, वनवतिः॥ - ५. 'बादलकी आग'के २ नाम हैं-मेघवह्निः, इरम्मदः ।। Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणिः १छागणस्तु करीषाग्निः कुकूलस्तु तुषानलः ॥ १६७ ॥ ३सन्तापः संज्वरो ४बाष्प ऊष्मा ५जिह्वाः स्युरर्चिषः। ६हेतिः कीला शिखा ज्वालार्चिछरुल्का महत्यसौ ॥ १६८ ॥ स्फुलिङगोऽग्निकणोहऽलातज्वालोल्का१०ऽलातमुल्मकम् । ११धूमः स्याद्वायुवाहाऽग्निवाहो . दहनकेतनम् ॥ १६६ ।। अम्भःसूः करमालश्च स्तरीर्जीमूतवाह्यपि। १२तडिदैरावती विद्युच्चला शम्पाऽचिरप्रभा ॥ १७० ।। आकालिकी शतदा चञ्चला चपलाऽशनिः ।। सौदामनी क्षणिका च हादिनी जलवालिका ॥ १७१ ॥ १. 'सूखे गोबर (गोइंठा, उपला, कण्डा )की श्रागके. २ नाम हैं-छागणः, करीषाग्निः ॥ २. 'भूसेकी आग ( भभूल, भौर ) के २ नाम है --- कुकूलः (पु न ), . तुषानल: (तुषाग्निः )॥ ३. 'संतापके २ नाम हैं-सन्तापः, संज्वरः ।। ४. 'बाष्प, भापके २ नाम हैं-बाष्पः (पु न ), ऊष्मा (-मन् , पु)॥ ५. 'श्रागकी ज्वाला' उसकी जिह्वा ( जीभ ) है । विमर्श–'अग्निकी सात जिह्वाएं ( जी. ) हैं-हिरण्या, कनका, रक्ताकृष्णा, वसुप्रभा, कन्या, रक्ता और बहुरूपा ॥' ६. 'ज्वाला'के ५ नाम हैं-हेतिः, कीला (स्त्री पु), शिखा, ज्वाला (पु स्त्री), अर्चिः (-र्चिस , स्त्री न )॥ ७. 'उल्का (आगकी बहुत बड़ी ज्वाला )का १ नाम है-उल्का ॥ ८. 'चिनगारी'का १ नाम है-स्फुलिङ्ग (त्रि)॥ ६. 'बनेठी ( लुआठी आदि )के धुमानेसे बनी हुई मण्डलाकार ज्वाला अथवा 'कभी २ श्राकाशसे गिरनेवाले उत्पातसूचक तेजःपुञ्ज'का १ नाम हैउल्का ।। १०. 'बनेठी या लुआठी'के २ नाम है-अलातम्, उल्मुकम् ।। ११. 'धूम, धूश्रा'के पाठ नाम हैं-धूमः, वायुवाहः, अग्निवाहः, दहनकेतनम्, अम्भःसूः, करमालः, स्तरीः (स्त्री ) जीमूतवाही (- हिन)। १२. 'बिजली' के १५ नाम है-तडित् (स्त्री), ऐरावती, विद्यत् (स्त्री), १ तदुक्तम्-"भवति हिरण्या कन्यका रताकृष्णा वसुप्रभा कन्या । रका बहुरूपेति सप्तार्चिषां जिहाः ॥" इति । Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिर्यक्काण्डः ४ ] 'मणिप्रभा' व्याख्योपेतः २७१ १वायुः समीरसमिरौ पवनाशुगौ नभःश्वासो नभस्बदनिलश्वसनाः समीरणः । वातोऽहिकान्तपवमानमरुत्प्रकम्पनाः कम्पाकनित्यगतिगन्धवहप्रभञ्जनाः। १७२ । मातरिश्वा जंगलगणः पृषदश्वो महाबलः । मारुतः स्पर्शना दैत्यदेवो २झञ्झा स वृष्टियुक् ॥ १७३ ॥ ३प्राणा नासाप्रहृन्नाभिपादाङ्गुष्ठान्तगोचरः । ४ अपानः पत्रनो मन्थापृष्ठपृष्ठान्तपाणिगः ।। १७४ ॥ ५समानः सन्धिहृन्नाभि६षूदानो हृच्छिरोऽन्तरे । ७ सर्वत्ववृत्तिको व्यान - चला, शम्पा ( + सम्पा ) अचिरप्रभा, श्राकालिकी, शतह्रदा, चञ्चला, चपला, अशनि: ( पु स्त्री ), सौदामनी ( + सौदामिनी ), क्षणिका, ह्रादिनी, जलवालिका ॥ || अग्निकायिक समास ॥ १. ('अत्र यहाँ से ४ । १७५ तक 'वायुकायिक' जीवों' का वर्णन करते हैं -) 'हवा' के २६ नाम हैं - वायुः, समीर, समिर:, पवनः, आशुगः, नभःश्वासः, नभस्वान्, (-स्वत् ), अनिलः श्वसनः समीरणः, वातः, अहिकान्तः पवमानः, मरुत्, प्रकम्पनः, कम्पाकः, नित्यगति: ( + सदागतिः ), गन्धवहः ( + गन्धवाहः ), प्रभञ्जनः, मातरिश्वा ( - श्वन्), जगत्प्राणः, पृषदश्त्रः, महाबलः, मारुतः, स्पर्शन, दैत्यदेव: ( सत्र पु ) || • शेषश्चात्र - वायौ सुरालयः प्राणः संभृतो जलभूषणः । शुचिर्वहो. लोलघण्टः पश्चिमोत्तरदिक्पतिः ॥ अङ्कतिः क्षिपणुर्मक ध्वजप्रहरणश्चलः । शीतल जलकान्तारो मेघारिः सुमरोऽपि च ॥ २. 'वर्षायुक्त हवा' का १ नाम है – झा | ३. 'प्राणवायु ( नाक के अग्रभाग, हृदय, नाभि और पैरके झूठे में स्थित वायु) का १ नाम है - प्राणः ॥ ४. 'अपानवायु (ग्रीवा के पीछेके दोनों भाग, पीठ, गुदा, पैरके पीछेवाले भागमें स्थित वायु ) का १ नाम है- अपानः ॥ ५. 'समानवायु ( सब ( सन्धियों ) जोड़ों, हृदय तथा नाभिमें स्थित - वायु ) का १ नाम है- -समानः ॥ ६. ‘उदानवायु (हृदय तथा शिरके मध्य भाग (कण्ठ, तालु एवं भूमध्य ) में स्थित वायु ) का १ नाम है - उदानः ॥ ७. 'व्यानवायु ( सम्पूर्ण चमड़े में स्थित वायु ) का १ नाम है - व्यानः | Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणिः १ - इत्यङ्गे पच वायवः ।। १७५ ।। Reservatiवाक्षं च गहनं झषः । कान्तारं विपिन कक्षः स्यान् षण्डं काननं वनम् ॥ १५६ ॥ दवो दाव : ३प्रस्तारस्तु तृणाटव्यां झषोऽपि च । पोपाभ्यां वनं वेलमारामः कृत्रिमे वने ॥ १७० ॥ निष्कुटस्तु गृहारामो बाह्यारामस्तु पौरकः । ७आक्रीडः पुनरुद्यानं =राज्ञां त्वन्तःपुरोचितम् ॥ १७८ ॥ तदेव प्रमदवन ममात्यादेस्तु निष्कुटे | वाटी पुष्पाक्षाच्चासौ १० क्षुद्रारामः प्रसीदिका ।। १७- ।। ११ वृक्षोऽगः शिखरी च शाखि फलदा बर्हिरि मो जीर्णोद्रुविंटपी कुठः क्षितिरुहः कारस्करोत्रिरः । नन्द्यावर्त्तकरालिको तरुत्रसू पर्णी पुलाक्यंह्निपः सालाऽनोकइगच्छपादपनगा रूक्षागमौ पुष्पदः ॥ १८० ॥ २७२ . १. 'शरीर में स्थित अर्थात् सञ्चार करनेवाले ये पाँच वायु · (प्राण, अपान, समान, उदान तथा ध्यान ) हैं || || वायुकायिक समाप्त ॥ २. ( अब यहाँ से ४ | २६७ तक वनस्पतिकायिक जीवोंका वर्णन करते है - 'जङ्गल' के १४ नाम है - अरण्यम् ( पु न ), अटवी, सत्रम्, वार्क्षम्, गहनम् झषः, कान्तारम् (पुन), विपिनम्, कक्षः, षण्डम् ( पु न ), काननम्, वनम् दवः, दावः ॥ • ३. ‘अधिक घासवाले जङ्गल' के ३ नाम हैं - प्रस्तारः, तुणाटवी, झषः । ४. 'कृत्रिम वन' के ४ नाम है — पत्रनम्, उपवनम्, वेलम्, आरामः ॥ ५. 'गृहके पासवाले बगीचे' के २ नाम हैं - निष्कुटः, गृहारामः ॥ ६. 'गाँव या नगर के बाहरवाले बगीचे के २ नाम हैं - बाह्यारामः, पौरकः ॥ ७. ' क्रीडा ( विलास ) के लिए बनाये गये बगीचे' के २ नाम हैंश्राक्रीड:, उद्यानम् ( २ पु न ) ॥ '८. 'राजाओंके अन्तःपुर ( रानियों ) के योग्य घिरे हुए बगीचे का १ नाम है - प्रमदवनम् ॥ ६. 'फुलवाड़ी' अर्थात् 'मंत्री आदि / धनिक - सेठों या बेश्यादिकों ) के घर के निकटस्थ बगीचे)' के २ नाम है - पुष्पवाटी, वृक्षवाटी ॥ १०. 'छोटे बगीचे' के २ नाम हैं- क्षुद्वारामः, प्रसीदिका ॥ ११. 'पेड़, वृक्ष' के ३० नाम हैं - वृक्षः, अगः, शिखरी ( - रिनू ), Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिर्यक्काण्डः ४] मणिप्रभा'व्याख्योपेतः २७३ १कुञ्जनिकुञ्जकुडङ्गाः .स्थाने वृक्षवृतान्तरे । २पुष्पैस्तु फलवान् वृक्षो वानस्पत्यो ३विना तु तैः॥ १८१॥ फलवान् क्नस्पतिः स्यात् ४फलावन्ध्यः फलेपहिः। ५फलवन्ध्यस्त्ववकेशी -६फलवान् फलिनः फली ॥ १८२॥ ७ओषधिः स्यादौषधिश्च फलपाकावसानिका । पचपो हस्वशिफाशाखः प्रततिततिलता ॥ १८३ ।। वल्ल्य१०स्त्यान्तु प्रतानिन्यां गुल्मिन्युलपवीरुधः। शाखी ( - खिन् ), फलदः, अद्रिः, हरिद्रुः, द्रुमः, जीर्णः, द्रुः, विटपी (-पिन्), कुठः, क्षितिरुहः, ( यौ०-कुन:, महीरुहः, भूरुहः"""), कारस्करः, विष्टरः, नन्द्यावर्तः, करालिकः, तरः, वसुः, पर्णी ( - णिन्), पुलाकी (- किन् ), अंहिपः (+अंधिपः, चरणपः), सालः, अनोकहः, गच्छः, पादपः, नगः, रूक्षः, अगमः, पुष्पदः ( सब पु)॥ शेषश्चात्र-वृक्षे त्रारोहकः स्कन्धी सीमिको हरितच्छदः । उरुन्तुर्वद्विभूश्च । १. 'कुञ्ज ( सघन वृक्षों या. झाड़ियोंसे घिरे हुए स्थान के ३ नाम है--कुञ्जः, निकुञ्जः (२ पु न), कुडङ्गः॥ .. २. 'फूलनेके बाद फलनेवाले वृक्षों ( यथा-श्राम, जामुन,.......)का १ नाम है-वानस्पत्यः ।। ३. 'बिना फूलके फलनेवाले वृक्षों ( यथा-गूलर, कठूमर,....."")का १ नाम है-वनस्पतिः ॥ ४. 'फलनेवाले वृक्षों के २ नाम हैं-फलावन्ध्यः; फलेग्रहिः ।। ५. 'कभी नहीं फलनेवाले वृक्षों के २ नाम हैं-फलवन्ध्यः, अबकेशी (शिन् ) ॥ ६. 'फले हुए वृक्ष के ३ नाम हैं-फलवान् (- वत् ), फलिनः, फली (लिम् )| . . ____७. एक बार फलकर नष्ट होनेवाले पौधों ( यथा-गेहूँ, चना, धान, कदीमा कद ,....)के २ नाम हैं-ओषधिः, औषधिः ( २ स्त्री)॥ ८. 'झाड़ी (छोटी डाल आदिवाले पौधों' यथा-गुलाब, गेंदा, जपा, करीर, झरबेरी... "")का १ नाम है-तुपः ॥ ६. लता, बेल ( यथा-गुडुच, सेम, कदीमा,"...")के ४ नाम हैप्रततिः, व्रततिः (२ स्त्री, लता, वल्ली ॥ १०. 'बहुत डालोवाली लता'के ४ नाम हैं-प्रतानिनी, गुल्मिनी, उलपः, वीरूत् (-उध, स्त्री)॥ १८ अचि० Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७४ अभिधानचिन्तामणिः १स्यात् प्ररोहोऽङ्करोऽङ्करो रोहश्चर स तु पर्वणः ॥ १८४॥ समुत्थितः स्याद् बलिशं ३शिखाशाखालताः समाः। . ४साला शाला स्कन्धशाखा प्रस्कन्धःप्रकाण्डमस्तकम् ॥ १८५ ॥ क्ष्मूलाच्छाखावधिगेण्डिः प्रकाण्डोऽथ जटा शिफा। ८प्रकाण्डरहित स्तम्बो विटपो गुल्म इत्यपि ॥ १८६ ॥ ६शिरोनामाग्रं शिखरं १० मूलं बुध्नोंऽह्रिनाम च । ११सारो मज्ज्ञि १२त्वचि च्छल्ली चोचं वल्कञ्च वल्कलम् ॥ १८७ ॥ १३स्थाणौ तु ध्रुवकः शङ्खः- . .. ... १. 'अङ्क र'के ४ नाम हैं-प्ररोहः, अङ्कुरः, अङ्करः (२ पु |+२ न) रोहः ॥ २. 'गांठ ( गिरह )से निकले हुए अङ्कुर'का १ नाम है- बलिशम् ।। ३. 'डाल, शाखा के ३ नाम है-शिखा, शाखा, लतर ॥ ४. 'स्कन्धसे निकली हुई शाखाके ३ नाम हैं-साला, शाला, स्कन्ध. शाखा॥ ५ 'स्कन्ध (पेड़के तनेके ऊपर बहां दो शाखा विभक्त हो उस)का १ नाम है-स्कन्धः ॥ ६. 'पेड़का तना'का १ नाम है-प्रकाण्डः (पु न)। विमर्श-अमरकोषकारने ( २ । ४ । १०) पूर्वोक्त दोनों पर्यायोंको एकार्थक माना है। ७. 'पेड़ श्रादिकी सोर, जड़के २ नाम हैं-जटा, शिफा ॥ ८. 'प्रकाण्ड रहित वृक्षादि'के ३ नाम है-स्तम्बः, विटपः, गुल्म: (पुन )। ६. 'पेड़ आदिके ऊपरी भाग फुनगी के ३ नाम है-शिरोनाम (अर्थात् शिरके वाचक सब पर्याय, अतः शिरः (-रस्), मस्तकम्, मूर्धा (-धन ) शीर्षम्,), अग्रम, शिखरम् ॥ १० 'जड़ के ३ नाम है-मूलम्, बुध्नः अंहिनाम (-मन । पैरके वाचक सब शन्द, अत एव-+अंतिः, पादः, चरणः,....)॥ ११. 'सारिल लकड़ी (पेड़का आसरारहित भाग ) के २ नाम हैं-सारः, मज्जा (-ज्जन पु)॥ १२. 'बाल, बाकल, छिलका के ५ नाम हैं-स्वक् (च, स्त्री), छल्ली, चोचम्, वल्कम्, वल्कलम् (२ पु न )। १३. 'खूथ, ठूठ काष्ठ' के ३ नाम हैं-स्थाणुः (पु न ), ध्रुवकः, शङ्ख:, (पु)॥ Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिर्यककाण्ड : ड: ४ ] 'मणिप्रभा' व्याख्योपेतः - १काष्ठे दलिकदारुणी । २ निष्कुहः कोटरो ३ मजा मञ्जरिर्वल्लरिश्च सा ॥ १८८ ॥ ४पत्रं पलाशं छदनं बर्ह पर्णं छदं दलम् । ५नवे तस्मिन् किसलयं किसलं पल्लवो६ऽत्र तु ॥ १६६ ॥ नवे प्रवालो७स्य कोशी शुङ्गा = माढिदलस्नसा । विस्तारविटपौ तुल्यौ १० प्रसूनं कुसुमं सुमम् ॥ १६० ॥ ११ पुष्पं सूनं सुमनसः प्रसवश्च मणीवकम् । १२जालकक्षारकौ तुल्यौ कलिकायान्तु कोरःक ॥। १६१ ॥ १३कुड्मले मुकुलं १४गुच्छे गुच्छस्तवकगुत्सकाः । गुलुब्छो २७५ १. 'काष्ठ, लकड़ी' के ३ नाम हैं- काष्ठम्, दलिकम्, दारु ( न पु ) ॥ २. पेड़का 'खोढरा' के २ नाम हैं - निष्कुहः, कोटर : ( पुन ) | ३. 'मञ्जरी, मोञ्जर' के नाम हैं - मञ्जा, मञ्जरी:, (स्त्री । + मञ्जरी, ) बल्लरिः ( स्त्री ) ।। ४. 'पत्ता, पल्लव' के ७ नाम हैं - पत्रम् (पुन ); पलाशम्, छदनम्, बम् पुन), छदम्, पर्णम्, दलम् ( २ पु न ) ॥ " ५. 'नये पल्लव' के ३ नाम हैं - किसलयम्, किसलम्, पल्लवः (पुन) ॥ ६. 'नये किसलय' ( बिलकुल नये पल्लव – जो सर्वप्रथम रक्तवर्णका निकलता है ) 'का. १ नाम है- - प्रवाल: ( पु न ) ॥ ७. ‘प्रवालके कोशी ( निकलने के पूर्व बन्द नवपल्लव ) के २ नाम हैंकोशी, शुङ्गा (पु स्त्री ) i ८. 'पत्तेके रेशे' के २ नाम हैं - मादिः (स्त्री), दलस्नसा ॥ ६. ‘शाखाके फैलाव' के २ नाम है-विस्तारः, विटप: ( पुन ) १०. 'फूल, पुष्प' के नाम हैं- प्रसूनम्, कुसुमम् ( न पु ), सुमम्, पुष्पम्, सून, सुमनसः (स्त्री, नि ब० व०), प्रसवः, मणीवकम् ॥ ११. 'फूलकी कलियों के गुच्छे' के २ नाम हैं- जालकम्, क्षारक: (पुन) । १२. 'कली, अविकसित पुष्प' के २ नाम हैं- कलिका, कोरक: ( पुन ) ॥ १३. 'अर्द्धविकसित फूल' के २ नाम हैं- कुड्मलम्, मुकुलम् ( २ पु न ) ॥ विमर्श – 'हृद्य’लोग 'कोरक' तथा 'कुड्मल' में अभेद मानते हैं । १४. 'गुच्छे' ५ नाम हैं—गुञ्छः, गुच्छः, स्तवकः ( पु न ), गुल्सक: ( + गुत्स: ), गुलुञ्छः ( पु । +न ) ॥ १. “हृद्यास्तु – श्रवान्तरभेदं न मन्यन्ते । यदाहु:- मुकुलाख्या तु कलिका कुड्मलं जालकं तथा । क्षारकं कोरकं च' इति ।” Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७६ अभिधानचिन्तामणिः -१ऽथ रजः पौष्पं परागो२ऽथ रसो मधु ।। १६२॥ मकरन्दो मरन्दश्च ३वृन्तं प्रसवबन्धनम् । ४प्रबुद्धोज्जम्भफुल्लानि व्याकोशं विकचं स्मितम् ॥ १६३ ॥ उन्मिषितं विकसितं दलितं स्फुटितं स्फुटम् । प्रफुल्लोत्फुल्लसंफुल्लोच्छ्वसितानि विजम्भितम् ॥ १६४॥ स्मेरं विनिद्रमुन्निद्रविमुद्रहसितानि च । ५संकुचितन्तु निद्राणं मीलितं मुद्रितश्च तत् ॥ १६५ ॥ ६फलन्तु सस्यं तच्छुकं वानम्माम शलाटु च । ... प्रन्थिः पर्व परु१०/जकोशी शिम्बा शमी शिमिः ॥ १६६ ।। शिम्बिश्च ११पिप्पलोऽश्वत्थः श्रीवृक्षः कुञ्जराशनः। कृष्णावासो बोधितरुः १२प्लक्षस्तु पर्कटी जटी ।। १६७ ॥ १३न्यग्रोधस्तु बहुपात् स्याद्वटो वैश्रवणालयः। . करन्द, १. 'फूलके रज, पराग'का १ नाम है:-परागः ॥ २. 'फूलके रस, मकरन्द'के. ३ नाम हैं-मधु (न), मरन्दः ।। ३. 'डण्ठल, फूल और फलकी भेंटी'का १ नाम है--वृन्तम् ।। ४. 'फूलके फूलने, विकसित होने के २१ नाम हैं-प्रबुद्धम्, उज्जम्भम्, फुल्लम्, व्याकोशम्, विकचम्, स्मितम्, उन्मिषितम्, विकसितम्, दलितम्, स्फुटितम्, स्फुटम, प्रफुल्लम्, उत्फुल्लम् , संफुल्लम, उच्छ्वसितम्, विजम्भितम्, स्मेरम्, विनिद्रम्, उन्निद्रम् , विमुद्रम्, हसितम् ॥ ५. 'फूल के बन्द होने के ४ नाम हैं-संकुचितम्, निद्राणम् , मिलितम्, मुद्रितम् ॥ ६. 'फल'के २ नाम हैं-फलम् (पु.न), सस्यम् ॥ ७. 'सूखे फल'का १ नाम है-वानम् । ८. 'कच्चे फल'का १ नाम है-शलाटु (त्रि), ६. 'गाट, गिरह, पोरके ३ नाम हैं-प्रन्थिः (पु), पर्व (-वन् ), परुः (-रुस । २ न)। १०. 'फली, छीमी ( यथा-सेम, मटर आदिकी फली ) के ५ नाम हैंबीजकोशी, शिम्बा, शमी, शिमिः, शिम्बिः (२ स्त्री)॥ ११. 'पीपल के ६ नाम हैं-पिप्पलः (पुस्त्री), अश्वत्थः, श्रीवृक्षः, कुञ्जराशनः, कृष्णावास:, बोधितरुः (+चलदलः)॥ १२. 'पाकर' के ३ नाम हैं - प्लक्षः, पर्कटी, जटी (-टिन् ) ॥ ___ १३. 'बडके : नाम हैं-न्यग्रोधः, बहुपात् (-पाद् ), वटः (त्रि ), वैश्ववणालयः ।। Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७७ तिर्थक्काण्डः ४] मणिप्रभा'व्याख्योपेतः . १उदुम्बरो जन्तुफलो. मशकी हेमदुग्धकः ॥ १६८ ॥ २काकोदुम्बरिका फल्गुमलयुर्जघनेफला। ३ाम्रश्चूतः सहकारः ४सप्तपणेस्त्वयुक्छदः॥ १६६ ॥ पशिग्रुः शोभाञ्जनोऽतीवतीक्ष्णगन्धकमोचकाः। श्वेतेऽत्र श्वेतमरिचः ७पुन्नागः सुरपर्णिका ॥ २००॥ . . ८वकुलः केसरोहशोकः कङ्केल्लिः ११ककुभोऽर्जुनः। ११मालूरः श्रीफलो बिल्वः १२किङ्किरातः कुरण्टकः ॥ २०१॥ १३त्रिपत्रकः पलाशः स्यान किंशुको ब्रह्मपादपः। १४तृणराजस्तलस्तालो १५रम्भा मोचा कदल्यपि ।। २०२ ।। १६करवीरो हयमारः १७कुटजो गिरिमल्लिका। १. 'गूलर के ४ नाम हैं-उदुम्बरः,. जन्तुफलः, मशकी (-किन् ), हेमदुग्धकः॥ २. 'कठूमर' के ४ नाम है-काकोदुम्बरिका, फल्गुः, मलयुः (+मलपुः) अपनेफला ( सब स्त्री)। ३. 'श्राम के ३ नाम है-आम्रः, चूतः, सहकारः (+माकन्दः)॥ ४. 'सप्तपर्ण, सतौना'के २ नाम हैं-सप्तपर्णः, (+यौ०--सप्तच्छदः "'), अयुक्छदः, (+विषमच्छदः)॥ . : ५. 'सहिजना' के ५ नाम है-शिनः (पुन), शोभाञ्जनः, अक्षीवः, तीक्ष्णगन्धकः, (+तीक्ष्णगन्धः ), मोचकः ॥ ६. 'श्वेत संहिजना'का १ नाम है-श्वेतमरिचः ॥ . ७. 'पुन्नाग, सदाबहार के २ नाम है-पुन्नागः, सुरपर्णिका ।। ८.'मौलश्री'के २ नाम हैं-बकुलः, केसरः॥ ६. 'अशोक'के २ नाम है--अशोकः, कङ्कल्लिः (स्त्री)। १०. अर्जुन वृक्ष'के २. नाम हैं--कुकुभः, अर्जुनः ॥ ११. 'बेल, श्रीफन'के ३ नाम है-मालूरः, श्रीफलः, बिल्वः ॥ १२. 'कटसरैया' के २ नाम हैं-किङ्किरातः, कुरएटकः (+कुरुण्टकः, कुरण्डकः)॥ १३. 'पलाश के ४ नाम है-त्रिपत्रकः, पलाशः, किंशुकः, ब्रह्मपादपः ॥ १४. 'ताड़के ३ नाम है-तृणराजः, तल:, तालः ॥ १५. 'केला' के ३ नाम हैं-रम्भा, मोचा, कदली ।। १६. 'कनेर'के २ नाम है-करवीरः, हयमारः ॥ १७. 'कुटज, कोरेयाके २ नाम हैं--कुटजः, गिरिमल्लिका ।। Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७८ अभिधानचिन्तामणिः १विदुलो वेतसः शीतो वानीरो वञ्जलो रथः ॥ २०३ ॥ २कर्कन्धुः कुवली कोलिबंदर्य३थ हलिप्रियः । नीपः कदम्बः ४सालस्तु स|५ऽरिष्टस्तु फेनिलः ॥ २०४ ॥ ६निम्बोऽरिष्टः पिचुमन्दः ७समौ पिचुलझाबुको । ८कर्पासस्तु बादरः स्यात् पिचव्यहस्तूलकं पिचुः ॥ २०५ ॥ १०आरग्वधः कृतमाले ११वृषो वासाऽऽटरूषके। १२करअस्तु नक्तमालः १३स्नुहिर्वत्रो महातरुः ॥ २०६॥ १४महाकालस्तु किम्पाके १५मन्दारः पारिभद्रके। .... १६मधूकस्तु मधूष्ठीलो गुडपुष्पो मधुद्रुमः ॥ २०७ ।। १७पीलुः सिनो गुडफलो १८गुग्गुलुस्तु पलङ्कषः। . . १. 'बेत'के ६ नाम हैं-विदुलः, वेतसः (पु स्त्री), शीतः, वानीरः, कजुलः, रथः ॥ २. 'बेर'के ४ नाम हैं-कर्कन्धुः (+कर्कन्धूः), कुवली (त्रि ), कोलि (स्त्री), बदरी ॥ ३. 'कदम्बके ३ नाम है-हलिप्रियः, नीपः, कदम्बः (+धाराकदम्बः, राजकदम्बः, 'धूलिकदम्बः' उक्त कदम्बसे भिन्न होता है)। ४. 'साल'के २ नाम हैं-सालः (पु न ), सर्जः ॥ ५. रीठा'के २ नाम है--अरिष्टः, फेनिलः ।। ६. 'नीम'के ३ नाम हैं-निम्बः, अरिष्टः, पिचुमन्दः (+ पिचुमर्दः)॥ ७. 'झाऊ'के २ नाम हैं-पिचुल:, झाबुकः॥ ८. 'कपास, वृक्ष'के ३ नाम हैं-कर्पास: (पुन), बादरः, पिचव्यः ।। ६. 'रूई के २ नाम हैं-तूलकम् (+ तूलम् । पु न), पिचुः (पु)॥ १०. 'अमलतास'के २ नाम हैं-आरग्वधः, कृतमालः ॥ ११. 'अडूसा, बाकस'के ३ नाम है-वृषः (पु । +स्त्री), वासा (+वाशा), आटरूषकः (+ अटरूषः)॥ १२. 'करज' के २ नाम हैं-करजः, नक्तमालः ॥ १३. 'सेहुँड़, थूहर, स्नुही'के ३ नाम हैं-स्नुहिः (स्त्री, +स्नुहा ), वजः, महातरुः ॥ १४. 'किंपाक वृक्ष'के २ नाम है-महाकाल:, किम्पाकः॥ १५. 'मन्दार के २ नाम हैं-मन्दारः, पारिभद्रकः (+पारिभद्रः)॥ १६. 'महुआ'के ४ नाम है-मधूकः, मधुष्ठीलः, गुडपुष्पः, मधुद्रमः ।। १७. 'पीलू नामक वृक्ष के ३ नाम है-पीलुः (पु), सिनः, गुडफलः ।। १८. 'गूगुल के २ नाम है-गुग्गुलुः (पु), पलकषः।। Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिर्यकाण्डः ४] मणिप्रभा'व्याख्योपेतः २७श्राजादनः पियालः स्यात्र तिनिशस्तु रथद्रुमः ॥ २०८ ॥ ३नागरङ्गस्तु नारङ्ग ४इङ्गदी तापसद्रुमः। ५काश्मरी भद्रपर्णी श्रीपर्य६म्लिका तु तिन्तिडी ॥ २०६ ॥ ७शेलुः श्लेष्मातकः पोतसालस्तु प्रियकोऽसनः। पाटलिः पाटला १०भूजों बहुत्वको मृदुच्छदः ॥ २१०॥ . ११द्रुमोत्पलः कर्णिकारे १२निचुले हिज्जलेजलौ । १३धात्री शिवा चामलकी १४कलिरक्षो बिभीतकः ॥ २११ ।। १५हरीतक्यभया पथ्या १६त्रिफला तत्फलत्रयम् । १७तापिन्छस्तु तमालः स्या१८च्चम्पको हेमपुष्पकः ॥ २१२ ॥ . १. पियाल (जिसके फलके बीजको 'चिरौंजी' कहते हैं, उस ) के २ नाम है-राजादनः (पुन), पियालः (+प्रियाल:)॥ २. 'शीशमकी जातिका वृक्ष-विशेष, बञ्जुल'के २ नाम हैं-तिनिशः, रथमः॥ ३. 'नारङ्गीके २ नाम है-नागरङ्गः, नारङ्गः (+नार्यङ्गः)॥ ४. 'इनदी, इंगुआ'के २ नाम है-इनदी (त्रि ), तापसदमः ।। ५. 'गंभार'के ३ नाम है-काश्मरी (+काश्मयः ), भद्रपर्णी (+भद्र. पर्णिका), भीपर्णी॥ ६. 'इमिली'के २ नाम हैं-अम्लिका, तिन्तिडी । ७. 'लसोड़ा'के २ नाम हैं-शेलुः (पु । +सेलुः ), श्लेष्मातकः ॥ ८. 'विजयसार के ३ नाम हैं-पीतसालः (+पीतसारकः, पीतसारः, पीतसालकः ), प्रियकः, असनः ॥ ६. पाढर के २ नाम है-पाटलिः (पु स्त्री। +पाटली ), पाटला ॥ १०. 'भोजपत्रके पेड़ के ३ नाम हैं-भूर्जा, बहुस्वकः, मूदुच्छदः॥ ११. 'कठचम्पा, कर्णिकार के २ नाम हैं-द्रमोपल:, कर्णिकारः ।। १२. 'जलत-विशेष'के ३ नाम हैं-निचुलः, हिज्जलः, इज्जलः ॥ १३. 'आंवला'के ३ नाम हैं-धात्री, शिवा, आमलकी ( त्रि)॥ १४. 'बहेड़ा के ३ नाम है-कलिः (पु), अक्षः, विभीतकः (त्रि + विभेदक: )। १५. 'हरे के ३ नाम है-हरीतकी (स्त्री), अभया, पथ्या ॥ १६. 'संयुक्त आंवला, बहेड़ा तथा हरे'को 'त्रिफला' कहते हैं । १७. 'तमाल वृक्ष'के २ नाम हैं-तापिञ्छः (+तापिच्छः), तमाल: (पुन)॥ १८. 'चम्पा'के २ नाम है-चम्पक:, हेमपुष्पकः ।। Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८० अभिधानचिन्तामणिः १निर्गुण्डी सिन्दुवारे२ऽतिमुक्तके माधवी लता। वासन्ती ३चौड़पुष्पं जपा ४जातिस्तु मालती ।। २१३॥ ५मल्लिका स्याद्विचकिलः सप्तला नवमालिका । । मागधी यूथिका सा तु पीता स्याद्धेमपुष्पिका ।। २१४ ॥ हप्रियङ्गः फलिनी श्यामा १८बन्धूको बन्धुजीवकः।। ११करुणे मल्लिकापुष्पो १२जम्बीरे जम्भजम्भलौ ॥ २१५ ॥ १३मातुलुङ्गो बीजपूरः १४करीरककरौ समौ । १५पश्चाङ्गुलः स्यादेरण्डे १६धातक्यां धातुपुष्पिका ॥ २१६ ॥ १७कपिकच्छूरात्मगुप्ता १८धत्तरः कनकावयः । १६कपित्थस्तु दधिफलो २०नालिकेरस्तु लागली ।। २१७ ॥ १. 'सिंधुवार के २ नाम हैं-निर्गुण्डी (+निर्गुण्टी ), सिन्दुवारः । २. 'माधवी लता'के ४ नाम हैं-अतिमुक्तकः (+अतिमुक्तः ), माधवी, लता, वासन्ती ॥ ३. 'श्रोढ़उल, जपा'के २ नाम है--औड्रपुष्पम् , जपा (+जवा.) ॥ ४. 'मालती चमेली'के २ नाम है-जातिः, मालती ॥ ५. 'मल्लिका, छोटी बेला'के २ नाम है-मल्लिका, विचकिलः ॥ ६. 'नवमल्लिका, वासन्ती, नेवारी'के २ नाम है-सप्तला, नवमालिका ॥ ७. 'जूही'के २ नाम है-मागधी, यूथिका ॥ ८. पीली जूही'का १ नाम है-हेमपुष्पिका (+ हेमपुष्पी)॥ ६. 'प्रियङ्ग'के ३ नाम हैं-प्रियङ्गः (स्त्री), फलिनी, श्यामा ॥ १०. 'दुपहरिया नामक फूल'के २ नाम है-बन्धूकः, बन्धुजीवकः ॥ ११. 'मल्लिका पुष्प'के २ नाम है-करुणः, मल्लिकापुष्पः ।। १२. 'जंबीरी नीबू के ३ नाम है-जम्बीरः, जम्भः (पुन), जम्भलः ॥ १३. 'बिजौरा नीबू के २ नाम है-मातुलुङ्गः (+मातुलिङ्गः ), बीज १४. 'करील के २ नाम हैं-करीरः (पु न ), क्रकरः ।। १५. 'एरण्ड, रेड'के २ नाम हैं-पञ्चाङ्गुलः, एरण्डः ॥ .१६. 'धव'के २ नाम हैं-धातकी, धातुपुष्पिका (+ धातृपुष्पिका )। १७. 'कवाछ के २ नाम हैं-कपिकच्छ्रः (स्त्री), आत्मगुप्ता ॥ १८. 'धतूरा'के २ नाम हैं -- धत्तरः (+धात्तरः), कनकाहयः, (सुवर्णके वाचक सब नाम अत:-कनकः, सुवर्णः,"....)॥ १६. 'कत, कपित्थ के २ नाम है-कपित्यः, दधिफलः ।। २०. 'नारियल के २ नाम है-नालिकेरः (-नारिकेलः । पु न), लागली॥ Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिर्यकाण्ड: ४] . मणिप्रभा'व्याख्योपेतः २८१ १ाम्रातको वर्षपाकी २केतकः क्रकचच्छदः। ३कोविदारो युगपत्रः ४सल्लकी तु गजप्रिया ।। २१८ ।। ५वंशो वेणुर्यवफलस्त्वचिसारस्तृणध्वजः। मस्करः शतपर्वा च ६ स्वनन् वातात्स कीचकः ॥ २१६ ॥ तुकाक्षीरी वंशक्षीरी त्वक्षीरी वंशरोचना। ८पूगे क्रमुकगूवाको तस्योद्वेग पुनः फलम् ॥ २२० ॥ १०ताम्बूलवल्ली ताम्वूली नागपर्यायवल्यपि । ११तुम्व्यलाबूः १२कृष्णला तु गुञ्जा १३द्राक्षा तु गोस्तनी ।। २२१ ॥ मृद्वीका हारहूरा च १४गोक्षुरस्तु त्रिकण्टकः । श्वदंष्ट्रा स्थलशृङ्गाटो १५गिरिकार्यपराजिता ।। २२२ ।। १६व्याघ्री निदिग्धिका कण्टकारिका स्या१. 'आमड़ाके २ नाम हैं-अाम्रातकः, वर्षपाकी (-किन् )॥ २. 'केतकी'के २ नाम है-केतकः (पु स्त्री), क्रकचच्छदः ॥ ३. 'कचनार के २ नाम है-कोविदारः, युगपत्रः ।। ४. 'सलई के २ नाम हैं-सल्लकी (पु स्त्री), गजप्रिया ।। ५. 'बांस के ७ नाम हैं-वंशः, वेणुः (पु), यवफलः, स्वचिसारः (+स्वक्सारः), तृणध्वजः, मस्करः, शतपर्वा (-र्वन् )॥ ६. छिद्र में वायुके प्रवेश करनेपर बजनेवाले बांस'का १ नाम हैकीचकः ॥ ७. 'वंशलोचन'के ४ नाम हैं-तुकादीरी, वंशक्षीरी, स्वक्षीरी (स्त्री न), वंशरोचना ॥ ८. सुपारी कंसैलीके वृक्ष'के ३ नाम है-पूगः, क्रमुकः, गूवाकः । ६. 'सुपारीके फल'का नाम है-उद्वेग्म् ॥ १०. 'पान'के ३ नाम हैं-ताम्बूलवल्ली, ताम्बूली, नागपर्यायवल्ली ( अर्थात् सर्पके पर्यायवाचक नामके बाद बल्ली शब्द या वल्लीके पर्यायवाचक शब्द जोड़नेसे बना हुश्रा पर्याय, अतः-नागवल्ली, सर्पवल्ली,फणिलता"")॥ ११. "कह , लौकी के २ नाम है-तुम्बी, अलाबू: (२ स्त्री न)॥ १२. 'गुजा. करेजनी'के २ नाम हैं-कृष्णला, गुञ्जा ॥ १३. 'दाख, मुनका के ४ नाम हैं-द्राक्षा, गोस्तनी, मृद्वीका, हारहरा ।। १४. गोखरू'के ४ नाम हैं-गोचरः, त्रिकण्टकः, श्वदंष्ट्रा, स्थलशृङ्गाटः॥ १५. 'अपराजिताके २ नाम है-गिरिकर्णी,अपराजिता ॥ १६. रेंगनी, भटकटैया के ३ नाम है-व्याघी, निदिग्धिका, कण्टकारिका (-कण्टकारी)॥ Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८२ अभिधानचिन्तामणिः . -१दथामृता। वत्सादनी गुडूची च २विशाला विन्द्रवारुणी ॥ २२३॥ ३उशीरं वीरणीमूले ४हीबेरे बालकं जलम् । ५प्रपुन्नाटस्त्वेडगजो दुद्रुघ्नश्चक्रमर्दकः ॥ २२४ ॥ ६लटवायां महारजनं कुसुम्भं कमलोत्तरम् । ७लोधे तु गालवो रोध्रतिल्वशावरमार्जनाः ॥ २२५ ।। मृणालिनी पुटकिनी नलिनी पङ्कजिन्यपि । हकमलं नलिनं पद्ममरविन्दं कुशेशयम् ।। २२६ ।। परं शतसहस्त्राभ्यां पत्र राजीवपुष्करे। . विसप्रसूतं नालीकं तामरसं महोत्पलम् ।। २२७ ॥ तज्जलात्सरसः पङ्कात्परै रुड़हजन्मजैः।। १०पुण्डरीकं सिताम्भोज १. 'गुडुच'के ३ नाम है-अमृता, वरसादनी, गुडूची । २. 'इनारुन'के २ नाम है-विशाला, इन्द्रवारुणी ।। ३. 'खश'के २ नाम है-उशीरम् (न पु), वीरणीमूलम् ॥ ४. 'नेत्रवाला'के ३ नाम है-होबेरम्, बालकम् , जलम् (+बाला तथा जल'के पर्यायवाचक शब्द-अत: 'बालम् , कचम्........."जलम् ,, नीरम्.)॥ ५. चकवढ़'के ४ नाम हैं-प्रपुन्नाटः (+प्रपुन्नाड: ), एडगमः,. दध्नः , चक्रमर्दकः (+चक्रमर्दः)॥ ६. 'कुसुम्भके फूल के ४ नाम है-लटवा, महारजनम्, कुसुम्भम् (पु. न), कमलोत्तरम् ॥ . ७. 'लोध'के ६ नाम है-लोध्रः, गालवः, रोधः, तिल्वः, शावरः, मार्जनः ।। ८. 'कमलिनी'के ४ नाम हैं-मृणालिनी, पुटकिनी, नलिनी, पङ्कजिनी (+कमलिनी)॥ ६. 'कमल' के २५ नाम हैं-कमलम् , नलिनम् , पद्मम् (३ पु न), अरविन्दम् , कुशेशयम्, शतपत्रम् , सहसपत्रम् , राजीवम् , पुष्करम् , विसप्रस्तम् । (+विसप्रमूनम् ), नालीकम् (पुन), तामरसम् , महोत्पलम् , जलस्ट सरोरुट , पङ्कट ( ३-रुह ), जलरुहम् , सरोरुहम् , पङ्करुहम्, जलजन्म, सरोजन्म, पङ्कजन्म ( ३-जन्मन् ), जलजम् , सरोजम, पङ्कजम् (यौ०-नीरजम् , वारिजम, सरसीरुहम,.....)॥ १०. 'श्वेतकमल'के २ नाम है-पुण्डरीकम्, सिताम्भोजम् ॥ Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिर्यककाण्ड: ४ ] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः २८३ श्मथ रक्तसरोरुहे ।। २२८ ॥ रक्तोत्पलं कोकनदं २कैरविण्यां कुमुद्वती। ३उत्पलं स्यात्कुवलयं कुवेलं कुवलं कुवम् ।। २२६ ॥ ४श्वेते तु तत्र कुमुद कैरवं गर्दभाह्वयम् । पनीले तु स्यादिन्दीवरं ६हल्लक रक्तसन्ध्यके ॥ २३० ॥ . सौगन्धिके तु कहारं ८बीजकोशो वराटकः। कर्णिका पद्मनालन्तु मृणालं तन्तुलं विसम् ।। २३१ ॥ १०किजल्कं केसरं ११संवर्तिका तु स्यान्न दलम् । १२करहाटः शिफा च स्यात्कन्दे सलिलजन्मनाम् ॥ २३२ ॥ १३उत्पलानान्तु शालूकं १. 'रक्तकमल' के ३ नाम हैं--रक्तसरोरुहम्, रत्तोत्पलम् , कोकनदम् ॥ २. 'कुमुदिनी ( रात्रिमें खिलनेवाली कमलिनी) के २ नाम हैं-कैर-- विणी, कुमुदती (+कुमुदिनी)। . ३. 'उत्पल के ५ नाम हैं-उत्पलम् (पु न ), कुवलयम्; . कुवेलम्।" कुवलम् (पुन), कुवम् ॥ ___४. 'श्वेत उत्पल'के ३. नाम है-कुमुदम् (+कुमुत्,-द्), कैरवम्, गर्दभाइयम् ( अर्थात् 'गधे'के वाचक सबं नाम, अतः-गर्दभम, खरम्)॥ ५. 'नीले उत्पल'का १ नाम है-इन्दीवरम् ॥ ६. 'सुख (अधिक लाल) उत्पल'के २ नाम है-हल्लकम् , रक्तसन्ध्यकम् (+ रक्तोत्पलम् ) ॥ ७. 'सुगन्धि कमल' (यह शरद् ऋतुमें फूलता है और श्वेत होता है ) के २ नाम है-सौगन्धिकम, कह्लारम् ॥ ८. 'कमलगट्टाके कोष (छत्ते ) के ३ नाम है--बीजकोशः, वराटकः, कर्णिका ॥ ६. कमलनाल (कमलकी डण्ठल ) के ४ नाम है-पद्मनालम् ,, मृणालम् ( त्रि ), तन्तुलम, विसम् ।। १०. कमल-केसर'के २ नाम है-किअल्कम्, केसरम् ( २ पु न)। ११. 'कमलकी नयी पंखुड़ी'का १ नाम है-संवर्तिका ॥ १२. 'पानीमें उत्पन्न होनेवाले कमल आदिके कन्द ( मूल ) के २ नाम हैं-करहाटः, शिफा (+कन्दः (पु न)॥ १३. 'उत्पलके कन्द'का १ नाम है-शालूकम् ॥ Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .२८४ अभिधानचिन्तामणिः -१नील्यां शैवाल-शेवले । शेवालं शैवलं शेपालं जलाच्छूक-नीलिके ॥ २३३ ॥ २धान्यन्तु सस्य सीत्यश्च व्रीहिः स्तम्बकरिश्च तत् । ३श्राशुः स्यात्पाटलो व्रीहि४गर्भपाकी तु षष्टिकः ॥ २३४ ॥ पशालयः कलमाद्याः स्युः ६कलमस्तु कलामकः । ७लोहितो रक्तशालिः स्याद् ८महाशालिः सुगन्धिकः ।। २३५ ॥ यवो हयप्रियस्तीक्ष्णशूक१०स्तोक्मस्त्वसौ हरिन् । . ११मङ्गल्यको मसूरः स्यात् १ कलायस्तु सतीनकः ।। २३६ ॥ हरेणुः खण्डिकश्चा१३थ चणको हरिमन्थकः। १. 'सेवाल के ८ नाम हैं--नीली, शैवालम, शेवलम्, शेवालम्, शेवलम् , शेपालम् (६ पु न ), जलशूकम् , जलनीलिका ॥ . . २. 'धान्य, अन्नमात्र के ५ नाम है-धान्यम् , सस्यम, सीत्यम्, व्रीहिः, स्तम्बकरिः (२ पु)। विमर्श-धान्य'के १७ भेदं शास्त्रकारोंने कहे हैं, यथा-लाल धान, जौ, मसूर, गेहूँ, हरा मूंग, उड़द, तिल, चना, चीना, टांगुन, कोदो, राजमूंग, शालि, रहर, मटर, कुलथी और सन ।' ३. 'लाल रंगवाले साठी धान'के २ नाम हैं-आशुः (पु), ब्रीहिः । ४. 'साठी या 'सेही धान'के २ नाम हैं-गर्भपाकी, षष्टिकः ।। ५. 'कलम ( उत्तम जातिके धानों ) का १ नाम है-शालिः (पु)॥ ६. 'अच्छे धान, या कलमदान धान'के २ नाम है-कलमः, कलामकः ॥ ७. 'उत्तमजातीय लाल धान'के २ नाम हैं--लोहितः, रक्तशालिः॥ ८. 'सुगन्धित ( कृष्णभोग, ठाकुरभोग, कनकीर, बासमती आदि) धान'के २ नाम हैं-महाशालिः, सुगन्धिकः ॥ ६. 'जो'के ३ नाम हैं-यवः, हयप्रियः, तीक्ष्णशकः ॥ १०. 'हरे जौ का १ नाम है-तोक्मः ॥ ११. 'मसूर'के २ नाम हैं-मङ्गल्यकः, मसूरकः (पु स्त्री)॥ .१२. 'मटर के ४ नाम है-कलायः, सतीनक: (+सातीनः ), हरेणुः (पु), खण्डिकः ॥ १३. 'चना, बूट'के २ नाम है-चणकः, हरिमन्थकः ॥ तदुक्तम् 'न हिर्यवो मसूरो गोधूमो मुग्दमाषतिलचणकाः । अणवः प्रियङ्गुकोद्रवमयुच्छकाः शालिराटक्यः । किञ्च कलायकलग्यौ शणश्च सप्तदश धान्यानि ॥” इति । Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिर्यककाण्ड: ४] मणिप्रभा'व्याख्योपेतः २८५ श्माषस्तु मदनो नन्दी वृष्यो बीजवरो बली ॥ २३७ ॥ मुद्गस्तु प्रथनो लोभ्यो बलाटो हरितो हरिः । ३पीतेऽस्मिन् वसु-खण्डीर-प्रवेल-जय-शारदाः ॥ २३८॥ ४कृष्णे प्रवर-वासन्त-हरिमन्थज-शिम्बिकाः। ५वनमुद्गे . तुवरक-निगूढक-कुलीनकाः ।। २३६ ।। खण्डी च दराजमुद्गे तु मकुष्ठकमयुष्ठको। गोधूमे सुमनो वल्ले निष्पावः शितशिम्बिकः ।।२४०॥ कुलत्थस्तु कालवृन्त१०स्ताम्रवृन्ता कुलस्थिका। ११आढकी तुवरी वर्णा स्यात् १२कुल्मासस्तु यावकः ॥ २४१ ॥ १३नीवारस्तु वनव्रीहिः १४श्यामाक-श्यामको समौ। १५कङ्गस्तु का नी कङ्गु : प्रियङ्गुः पीततण्डुला ॥ २४२ ॥ १. 'उड़द'के ६ नाम है-माषः (पु न), मदनः, नन्दी (-न्दिन् ), वृष्यः, बीजवरः, बली (-लिन् )॥ २. 'हरे रंगकी मूग'के ६ नाम है-मुद्गः, प्रथनः, लोभ्यः, बलाटः, हरितः, हरिः (पु.)॥ ३. पीली मूग'के ५ नाम हैं-वसुः, खण्डीरः, प्रवेल:, जयः, शारदः।। ४. 'काली मूंग'के ४ नाम है-प्रवरः, वासन्तः, हरिमन्यजः, शिम्बिकः ॥ ५. धममूंग'के ५ नाम हैं-वनमुद्गः, तुवरकः, निगूढकः, कुलीनकः, खण्डी (-ण्डिन्.)॥ ६. 'राजमूंग (उत्तमजातीय मूंग )के ३ नाम है-राजमुद्गः , मकुष्ठकः, मयुष्ठकः ॥ . ७. 'गेहूँ के २ नाम है-गोधूमः, सुमनः ॥ ८. राजमाष (काली उरद ) या एक प्रकारका गेहूँके ३ नाम हैंवल्लः, निष्पावः, शितशिम्बिकः ॥ ६. 'कुल्थी के २ नाम है-कुलत्या, कालवृन्तः ।। १०. 'छोटी कुल्थी'के २ नाम हैं-ताम्रवृन्ता, कुलस्थिका ॥ ११. 'रहर के ३ नाम हैं-आढकी, तुवरी, वर्णा ॥ १२. 'अधसूखे उड़द आदि या विना टूडवाले जौ'के २ नाम हैं-- कुल्मासः (+कुल्माषः), यावकः ॥ १३. 'नीवार, तेनी'के २ नाम हैं-नीवारः, वनव्रीहिः ॥ १४: 'सांवा के २ नाम हैं-श्यामाकः, श्यामकः ॥ १५. ( पीले चावलवाली ) 'टाँगुन'के ५ नाम हैं-फङ्गः, कङ्गुनी, कङ्गः, प्रियङ्ग :, पीततण्डुला ( सब स्त्री ) ॥ Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८६ अभिधानचिन्तामणिः १सा कृष्णा मधुका रक्ता शोधिका मुसटी सिता। पीता माधव्यरथोदालः कोद्रवः कोरदूषकः ॥ २४३ ॥ ३चीनकस्तु काककङ्ग ४ऽर्यवनालस्तु योनलः । जूर्णाह्वयो देवधान्यं जोन्नाला बीजपुष्पिका ॥ २४४ ॥ पूशणं भङ्गा मातुलानो स्यादुमा तु सुमाऽत्तसी। ७गवेधुका गवेधुः स्या उज्जतिलोऽरण्यजस्तिलः ॥ २४५ ॥ हषण्ढतिले तिलपिञ्जस्तिलपेजो१०ऽथ सर्षपः। कदम्बकस्तन्तुभो११ऽथ सिद्धार्थः श्वेतसर्षपः॥ २४६ ।।.. १२माषादयः शमीधान्यं १३शूकधान्यं यवादयः। १४स्यात्सस्यशूकं किंशारु: १. 'काली, लाल, सफेद और पीली टाँगुन' के क्रमशः १-१ नाम हैंमधुका, शाधिका, मुसटी, माधवी ॥ २. 'कोदोके ३ नाम हैं-उद्दालः, कोद्रवः, कोरदूषकः ।। ३. 'चीना ( इसका 'माहा' बनता है ) के २ नाम हैं-चीनकः, काककङ्ग :॥ ४. 'ज्वार, जोन्हरी, मसूरिया के ६ नाम हैं-यवनालः, योनलः, जूर्णाहयः, देवधान्यम् , जोनाला, बीजपुष्पिका ॥ ५. 'सन'के ३ नाम हैं-शणम्:, भङ्गा, मातुलानी ॥ ६. 'तीसी, अलसी के ३ नाम है-उमा, हुमा, अतसी ॥ ७. 'मुनियोंका अन्न-विशेष'के २ नाम हैं-गवेधुका (+ गवीधुका), गवेधुः (स्त्री+गवेडुः)॥ ८. 'वनतिल'का १ नाम है-जर्तिलः ॥ ६. 'फलहीन (नहीं फलनेवाले ) तिल'के ३ नाम है-पण्दतिल:, तिलपिलः, तिलपेजः ॥ १०. 'सरसो'के ३ नाम हैं-सर्षपः, कदम्बकः, तन्तुभः ।। ११. 'श्वेत ( या पीले) सरसो'के २ नाम हैं-सिद्धार्थः, श्वेतसर्षपः ॥ ९२. 'उड़द आदि ( ४।२३७) अन्न'का १ नाम है-शमीधान्यम् । अर्थात् ये अन्न फली (छीमी )में उत्पन्न होते हैं ।, १३. 'जौ' श्रादि (४।२३६ ) अन्न'का १ नाम है-शूकधान्यम् । अर्थात् जौ, गेहूँ श्रादि अनमें 'टू'ड' होते हैं । १४. 'जौ आदिके टूड'के २ नाम हैं .-सस्यशूकम् (पु न ), किंशारुः (पु)॥ Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिर्यक्काण्डः ४ ] 'मणिप्रभा' व्याख्योपेतः - १ कणिशं सस्यशीर्षकम् ॥ २४७ ॥ २स्तम्बस्तु गुच्छो धान्यादे३र्नाल काण्डो४ फलस्तु सः । पलः पालो प्रधान्यत्वक्तुषो ६बुसे कडङ्गरः ।। २४८ ॥ धान्यमावसितं रिद्धं तत्पूतं निर्बुसीकृतम् । हमूलपत्रकरीरामफलकाण्डाविरूढकाः ॥ २४६ ॥ त्वक्पुष्पं कवकं शाकं दशधा शिग्रकन तत् । १० तण्डुलीयस्तण्डुलेरो मेघनादोऽल्पमारिषः ॥ २५० ॥ २८७ १. ' धान, गेहूँ, जौ आदिको बाल' के २ नाम हैं - कणिशम् ( पु न । + कनिशम् ), सस्यशीर्षकम् ( + सस्यमञ्जरी ) ॥ २. 'घान आदि स्तम्ब' के २ नाम हैं— स्तम्बः, गुच्छः ॥ ३. 'धान आदिके डण्ठल ( डांठ) के २ नाम हैं - नालम् (त्रि ), कराड (एनए ४. 'पुआल ( धानके अन्नरहित डण्ठल ) के २ नाम है - पलः, पलालः ( २ पु न ) ॥ ५. 'धान के छिलका ( भूसी) के २ नाम हैं - धान्यस्वक् (चू, - स्त्री ), तुषः ॥ ६. 'धान आदिके भूसे ( जिसे पशु खाते हैं, उस पवटा, भूसा ) के २ नाम हैं - बुस : ( पु न ), कडङ्गरः ॥ ७. 'पके या सुरक्षार्थं ढके हुए धान्य' के ३ नाम हैं-धान्यम्, भावसितम्, रिद्धम् || ८. 'ओसाए हुए (भूसा से अलग किये हुए ) धान्य' का १ नाम है पूतम् ॥ ६. 'जड़ (मूली बिस श्रादिके ), पत्ता ( नीम आदिके ), कोपल · (बाँस श्रादिके), अग्र ( करील वृक्षादिके), फल ( कद्द ू, कोहड़ा आदिके ), डाल ( एरण्ड, बाँस आदिके ), विरूढक ( खेत से उखाड़े गये फल या जड़ आदिके स्वेदसे पुनः पैदा हुए अङ्कुर । या— - अविरूढक - ताड़ के बीजकी गिरी ), छिलका ( केला आदिके ), फूल ( अगस्त्य, करीर वृक्ष आदिके ), और कवक ( वर्षा ऋतु में उत्पन्न होनेवाले छत्राकार भूकन्द-विशेष कुकुरमुत्ता ), थे १० प्रकारके 'शाक' होते हैं, इन (शाकों) के २ नाम हैं- शाकम्, शिशुकम् (+शिग्रु । २ पु न ) ॥ १०. ( अब ‘शाक-विशेष' के पर्याय कहते हैं -) 'चौराई शाक' के ४ नाम है - तण्डुलीयः, तण्डुलेरः, मेघनादः, अल्पमारिषः ॥ Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८८ अभिधानचिन्तामणिः बिम्बी रक्तफला पीलुपी स्यात्तुण्डिकेरिका । २जीवन्ती जीवनी जीवा जीवनीया मधुस्रवा ॥ २५१॥ ३वास्तुकन्तु क्षारपत्रं ४पालक्या मधुसूदनी । परसोनो लशुनोऽरिष्टो म्लेच्छकन्दो महौषधम् ॥ २५२॥ महाकन्दो रसोनोऽन्यो गृञ्जनो दीर्घपत्रकः । ७भृगराजो भृङ्गरजो मार्कवः केशरञ्जनः ।। २५३ ॥ प्काकमाची वायसी स्यात् हकारवेल्लः कटिल्लकः। १०कूष्माण्डकस्तु कर्कारुः ११कोशातकी पटोलिका ।। २५४ ॥ १२चिमिटी कर्कटी पालुङ्कये रुखपुसी च सा । . १३अर्शोघ्नः सुरणः कन्दः १४शृङ्गबेरकमा कम् ।। २५५ ॥ १५कर्कोटकः किलासघ्नस्तिक्तपत्रः सुगन्धकः । . १. 'कुन्दरू'के ४ नाम है-बिम्बी (+बिम्बिका , रक्तफला, पीलुपर्णी, तुण्डिकेरिका (+तुण्डिकेरी)॥ २. 'जीवन्ती'के ५ नाम है-जीवन्ती, जीवनी, जीवा, जीवनीया, मधुसवा ॥ ३. 'बथुआ'के २ नाम हैं-वास्तूकम् , क्षारपत्रम् ।। ४. 'पालकी साग'के २ नाम है-पालक्या, मधुसूदनी ॥ ५. 'लहसुन के ६ नाम है-रसोनः, लशुनः ( २ पु न), अरिष्टः, म्लेच्छकन्दः, महौषधम्, महाकन्दः॥ ६. 'लाल लहसुन, प्याजके जाति-विशेष'के २ नाम है-गृञ्जनः, दीर्घ____७. 'भेगरिया, भांगरा'के ४ नाम है-भृङ्गराजः, भारमः, मार्कवः, केशरञ्जनः ॥ ८'मकोय के २ नाम है-काकमाची, वायसी ॥ ६. 'करेला'के २ नाम है-कारवेल्लः, कटिल्लकः ॥ १०. 'कूष्माण्ड ( कोहड़ा, भतुश्रा, भूत्रा) के २ नाम है-कूष्माण्डकः (+कूष्माण्डः), कर्कारः ॥ ११. 'परवल, या तरोई'के २ नाम हैं-कोशातकी, पटोलिका ॥ २२. 'ककड़ी'के ५ नाम हैं-चिभिटी, कर्कटी, वालुकी, एर्वारुः (पु स्त्री), त्रपुसी ॥ १३. 'सूरन'के ३ नाम है-अर्शोघ्नः, सूरणः, कन्दः (पु न )॥ १४. 'अदरख, श्रादी'के २ नाम हैं-शृङ्गबेरकम् , आर्द्रकम् ॥ १५. 'खेखसा, ककोड़ा'के ४ नाम हैं-कर्कोटकः, किलासघ्नः, तिक्तपत्रः सुगन्धकः॥ पत्रकः ॥ Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८९ २८ तिर्यककाण्डः ४] मणिप्रभा'व्याख्योपेतः १मूलकन्तु हरिपणं सेकिमं हस्तिदन्तकम् ॥ २५६ ॥ २तृणं नडादि नीवारादि च ३शष्पन्तु तन्नवम् । ४सौगन्धिकं देवजग्धं पोरं कनणरौहिषे ॥ २५७ ॥ ५दर्भः कुशः कुथो बर्हिः पवित्रक्ष्मथ तेजनः। गुन्द्रो मुखः शरो दूर्वा त्वनन्ता शतपर्विका ॥ २५८ ॥ हरिताली रुहा पोटगलस्तु धमनो नडः। कुरुविन्दो मेघनामा मुस्ता १०गुन्द्रा तु सोत्तमा ।। २५६ ॥ ११वल्वजा उलपो१२ऽथेचुः स्याद्रसालोऽसिपत्रकः । १३भेदाः कान्तारपुण्ड्राद्यास्तस्य १. 'मूली'के ४ नाम हैं-मूलकम् (पु न ), हरिपर्णम् , सेकिमम् , हस्तिदन्तकम् ।। २. 'नरसल तथा नीवार श्रादि' 'तृण' कहे जाते हैं, यह 'तृण' शब्द नपुंसकलिङ्ग 'तृणम्' है ।। ३. 'उक्त नरसल श्रादि तथा नीवार आदि नये अर्थात् छोटे हों तो उन्हें 'शष्प' कहते हैं, यह 'शष्प' शब्द 'शष्पम्' नपुंसक है ॥ ४. 'रोहिष, रूसा घास (जड़ सुगन्धि होती है ) के ५ नाम हैं-सौगन्धिकम् , देवजग्धम्, पौरम्, कत्तृणम्, रौंहिषम् (.पु न )। ५. 'कुशा'के. ५ नाम हैं-दर्भः, कुंशः (पु न ), कुथः, बर्हिः (-हिष्, पुन), पवित्रम् ।. . ६. 'मूंज'के ४ नाम हैं-तेजन:, गुन्द्रः, मुखः, शरः । ७. 'दूब'के ५ नाम हैं-दूर्वा, अनन्ता, शतपर्विका, हरिताली, रहा। ८. 'नरसल के ३ नाम है-पोटगलः, धमनः, नडः, (पुन)॥ ६. 'मोथा'के ३ नाम है--कुरुविन्दः, मेघनामा (-मन् । अर्थात् -मेघ'के पर्यायवाचक सभी. शन्द, अत:-जलधरः, जलदः, नीरधरः, नीरदः ..."), मुस्ता (त्रि ।+मुस्तकः )। १०. 'नागरमोथा ( उत्तमजातीय मोथा)का १ नाम है-गुन्द्रा ॥ ११. 'उलप (एक प्रकारके तृण-विशेष) के २ नाम है--वल्वजाः (पु ब० व०), उलपः ॥ १२. 'गन्ना, ऊख'के ३ नाम हैं--इतुः (पु), रसालः, असिपत्रकः ॥ १३. उस गन्नेके 'कान्तारः, पुण्ड्रः' इत्यादि भेद होते हैं । विमर्श-वाचस्पतिने गन्ने के ११ भेद कहे हैं, यथा--पुण्ड्र, भीरुक, १६ अ० चि० Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणिः -मूलन्तु मोरटम् ।। २६० ॥ .. २काशस्त्विषीका घासस्तु यवसं ४तृणमर्जुनम् । ५विषः क्ष्वेडो रसस्तीक्ष्णं गरलो शून्येश्वर, कोषकार, शतघोर, तापस, नेपाल, दीर्घपत्र, काष्ठेतुः, नीलघोर और खनटी ॥' १. 'गन्नेकी जड़'का १ नाम है--मोरटम् ।। २. 'काश नामक घास'के २ नाम हैं-काशः ( पु न ), इषीका ।। ३. 'घास (गौ आदि पशुओंका खाद्य-घास, भूसा आदि) के २ नाम हैंवासः, यवसम् (न ।+पु)॥ ४. 'तृण'के २ नाम हैं-तृणम् (पु न ), अर्जुनम् ॥ .. ५. विष, जहर' के ५ नाम है-विषः (पु न ), वेडः, रसः (पु न ), तीक्ष्णम्, गरलः (पु न )। विमर्श-विषके मुख्य दो भेद होते हैं १ स्थावर तथा २ जङ्गम । प्रथम 'भ्यावर' विषके १० भेद तथा उन १० भेदोंके ५५ उपभेद होते हैं और द्वितीय 'जङ्गम' विषके १६ भेद होते हैं। कौन-सा विष किस-किस स्थान या जीवादिमें होता है, इसे जिज्ञासुओंको 'अमरकोष (१।८।१०-११) के मत्कृत 'मणिप्रभा' नामक राष्ट्रभाषानुवाद तथा 'अमरकौमुदी नामिका' संस्कृत टिप्पणीमें देखना चाहिए ॥ . १ तद्यथा-"पुण्ड्रेक्षौ पुण्ड्रकः सेव्यः पौण्ड्रकोऽतिरसो मधुः । श्वेतकाण्डो भीरुकस्तु हरितो मधुरो 'महान् ।। शून्येश्वरस्तु कान्तारः कोषकारस्तु वंशकः । शतघोरस्त्वीषक्षार: पीतच्छायोऽथ तापसः ।। सितनीलोऽथ नेपालो वंशप्रायो महाबलः । अन्वर्थस्तु दीर्घपत्रो दीर्घपी कषायवान् ॥ काष्ठेतुस्तु ह्रस्वकाण्डो घनग्रन्धिर्वनोद्भवः । नीलघोरस्तु सुरसो नीलपीतलराजिमान् ॥ अनूपसंभवः प्रायः खनटी विक्षुबालिका । करङ्कशालिः शावेतुः सूचिपत्रो गुडेक्षवः ॥” इति । Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'मणिप्रभा' व्याख्योपेतः तिर्यककाण्ड : ४ ] - १ऽथ हलाहलः ।। २६१ ।। वत्सनाभः कालकूटो ब्रह्मपुत्रः प्रदीपनः । सौराष्ट्रिकः 'शौल्किकेयः काकोलो दारदोऽपि च ।। २६२ ।। अहिच्छत्रो मेएशृङ्गः कुष्ठवालूकनन्दनाः । कैराटको हैमवतो मर्कट: करवीरकः || २६३ ॥ सर्पपो मूलको गौरार्द्रकः सक्तककर्दमौ । श्रङ्कोल्लसारः कालिङ्गः शृङ्गिको मधुसिक्थकः || २६४ ।। इन्द्रो लालिको विस्फुलिङ्गः पिङ्गलगौतमाः । मुस्तको दालवश्चेति स्थावरा विषजातयः ।। २६५ ॥ राधा अबीजा ३मूलजास्तूत्पलादयः । पर्वयोनय इवाद्याः ५स्कन्धजाः सल्लकीमुखाः || २६६ ।। ६ शाल्यादयो बीजरुहाः ७सम्मूर्च्छजास्तृणादयः । स्युर्वनस्पतिकायस्य षडेता मूलजातय: ।। २६७ ।। २६१ १. हलाहल:, (+ हालाहल:, हालहलः । सत्र पुन), वत्सनाभः, कालकूटः, ब्रह्मपुत्रः, प्रदीपनः, सौराष्ट्रकः, शौल्किकेयः, काकोल : (पुन), दारदः, अहिच्छत्रः मेषशृङ्गः, कुष्ठः, वालूकः, नन्दनः, कैराटक:, हैमवतः, मर्कटः, करवीरकः, (+ करवीरः ), सर्षपः, मूलकः, गौरार्द्रकः, सच्छुकः, कर्दमः, अङ्कोल्लसार:, कालिङ्गः, शृङ्गिकः, मधुसिक्थकः ( + मधुसिक्थ: ), इन्द्र:, लाङ्गुलिकः, विस्फुलिङ्गः, पिङ्गलः, गौतमः, मुस्तकः, दालव: ( सब पुलिङ्ग और नपुंसकलिङ्ग है, ऐसा वाचस्पतिका मत है ); - ये सब 'स्थावर' विष के भेद हैं । २. 'कटसरैया आदि . ( 'आदि' शब्द से - पारिभद्र आदि ) 'अग्रबीजा: ' हैं अर्थात् इनकी उत्पत्ति अग्रभागसे होती है ॥ · ३. 'उत्पल आदि' ('आदि' शब्दसे सूरण, आर्द्रक आदि ) 'मूलजा : ' हैं अर्थात् इनकी उत्पत्ति मूल (जड़) से होती है ॥ ४. 'गन्ना' आदि ('आदि' शब्द से तृण बांस आदि ) 'पर्वयोनयः ( - निः) है अर्थात् इनकी उत्पत्ति 'गांठ, गिरह, पर्व ( पोर ) से होती है । ५. 'सई' आदि ( 'आदि' शब्द से 'बड़ आदि ) 'स्कन्धजाः ' हैं अर्थात् 'इनकी उत्पत्ति 'स्कन्ध' से होती है ॥ ६. 'शालि, धान आदि ( 'आदि' शब्द से 'साठी चना, मूंग, गेहूँ' श्रादि ) 'बीरुहाः' हैं अर्थात् इनकी उत्पत्ति बीजसे होती है | ७. 'तृण' आदि ( 'आदि' शब्द से भूच्छत्र ( कुकुरमुत्ता ) आदि ) 'संमूर्च्छाः हैं अर्थात् इनकी उत्पत्ति संमूर्च्छन से होती है | ८. 'वनस्पतिकायिक जीवों के ये ६ ( श्रग्रभाग, मूल, पर्व ( पोर, गिरह ), -स्कन्ध, बीज और सम्मूच्र्च्छन ) 'मूलजाति' अर्थात् उत्पत्ति स्थान हैं । Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणि: २६२ २तुद्रकीटो बहिर्भवः । १ नीलङ्गः कृमिरन्तर्जः ३ पुलकास्तूभयेऽपि स्युः ४ कीकसाः कृमयोऽणवः ।। २६८ ।। ६गण्डूपदः किन्न्चुलकः कुसूः । शिल्य - रूपा जलौकसः ॥ २६६ ॥ ५ काष्टकीटो घुणो भूलता जगण्डूपदी तु जलालोका जलूका च जलौका जलसर्पिणी । मुक्तास्फोटोsब्धिमण्डूकी शुक्तिः १० कम्बुस्तु वारिजः || २७० || त्रिरेखः षोडशावर्त्तः शङ्खो ११ऽथ क्षुद्रकम्बवः । शङ्खनकाः क्षुल्लकाच - वनस्पतिकाय समास । एकेन्द्रिय जीवन समाप्त || १. ( ४ । १ से प्रारम्भ किया गया पृथ्वी आदि एकेन्द्रिय नीवोका वर्णनकर अब ( ४ | २७२ तक ) द्वीन्द्रिय ( दो इन्द्रियोवाले जीवोंका वर्णन करते हैं—) 'शरीर के भीतर उत्पन्न होनेवाले छोटे-छोटे कीड़ोंका १ नाम हैनीलङ्गः ( पु ) ॥ २. 'शरीर' के बाहर उत्पन्न होनेवाले छोटे २ कीड़ों' का १ नाम हैक्षुद्रकीट : ( पु स्त्री) ३. 'शरीर के भीतर तथा बाहर उत्पन्न होनेवाले दोनों प्रकारके छोटे-छोटे कीड़ों' का नाम है - पुलका : ।। ४. 'छोटे कीड़ों' का नाम है - कीकसाः ॥ ५. 'घुन' के २ नाम हैं- काष्ठकीटः, घुण: ।। ६. 'केंचुश्रा नामक कीड़े' के ४ नाम हैं - गण्डूपदः, किञ्चुलकः ( + किञ्चुलुक: ), कुसूः, भूलता ॥ ७. 'केंचुए की स्त्री या केचुआ जातीय छोटे कीड़े' के २ नाम हैं - गण्डूपदी, शिली ॥ ८. 'जोंक’के ६ नाम हैं— श्रस्रपा ( + विचका ), जलौकस: ( - कस्, नि स्त्री, त्र० व० ), जलालोका, जलूका, जलौकाः, जलसर्पिणी || ६. 'सीप' के ३ नाम हैं— मुक्तास्फोट:, अब्धिमण्डूकी, शुक्ति: (स्त्री) | १०. 'शङ्ख' के ५ नाम हैं - कम्बु: ( पु न ), वारिज: ( + जलज:, अब्ज : ), त्रिरेखः, पोडशावर्त्तः, शङ्खः ( पु न ) ॥ ११. 'छोटे-छोटे शङ्खों ( नदी आदिमें उत्पन्न होनेवाले छोटे-छोटे कीटो ) नाम हैं - क्षुद्रकम्बवः (म्बु: ), शङ्खनकाः, क्षुल्लकाः || Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'तिर्यक्काण्ड: ४] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः २६३ शम्बूकास्त्वम्बुमात्रजाः ॥२७१ ॥ २कपर्दस्तु हिरण्यः स्याल्पणास्थिकवराट को ।। ३दुर्नामा तु दीर्घकोशा ४पिपीलझस्तु पोलका ।। २७२ ।। ५पिपीलिका तु हीनाङ्गी ब्राह्मणी स्थूलशोषिका। घृतेली पिङ्गकपिशाऽथोपजिह्वापदेहिका ।। २७३ ।। वम्र युपदीका हरिक्षा तु लिक्षा १०यूका तु षट्पदी। ११गोपालिका महामोरु१२गोमयोत्था तु गर्दभी ।। २७४ ॥ १३मत्कुणास्तु कोल कुण उद्दशः किटिभोत्कुणौ । १. 'घोघा । दोहना). या पानीमें ही उत्पन्न होनेवाली सब प्रकारकी सीप'के २ नाम हैं-शम्बूकाः (+शम्बुकाः ), अम्बुमात्रजाः ॥ २. 'कौड़ी'के ४ नाम हैं-कर्पदः, हिरण्यः (पु न ), पणास्थिकः, वराटकः ।। . . शेषश्चात्र-'स्यात्त श्वेतः कपर्दके ।" ३. 'घोंघा या जोंकके समान एक जलचर जीव-विशेष'के २ नाम हैंदुर्नामा ( - मन् ।+दुःसंशा ), दीर्घकोशा ॥ . . ॥ द्वीन्द्रिय जीव वर्णन समाप्त ॥ ४. ( अब यहांसे ४।२७५ तफ त्रीन्द्रिय अर्थात् तीन इन्द्रियवाले जीवोंका वर्णन करते हैं-) 'चीटा, मकोड़ा'के २ नाम है-पिपीलकः, पीलकः॥ ५. 'चीटी'के २ नाम हैं-पिपीलिका, हीनाङ्गी ॥ ६. एक प्रकारको बिहनी (भिड़ )-विशेष के २ नाम हैं-बामणी, . स्थूलशीषिका ॥ ७. 'तेलचटा'के २ नाम हैं-घृतेली, पिङ्गकपिशा॥ ८. 'दीमक'के ४ नाम है-उपजिहा, उपदेहिका, वम्री, उपदीका ॥ ६. 'लीख के २ नाम है-रिक्षा, लिक्षा । १०. 'जूके २ नाम है-यूका, षटपदी॥ ११. 'ग्वालिन नामक कीड़े ( यह बरसातमें एक स्थान पर ही अधिक उत्पन्न होते हैं, इसे 'अहिरिन या गिजनी' भी कहते हैं ) के २ नाम हैगोपालिका, महाभीरुः ॥ १२. 'गोबरौरा (गोबरमें उत्पन्न होनेवाले कीड़े ) के २ नाम है-गोमयोत्था, गर्दभी॥ १३. 'खटमल, उड़िस'के ५ नाम है-मस्कुणः, कोलकुणः, उदशः, किटिभः (+किदिभः ), उत्कुणः ॥ Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६४ अभिधानचिन्तामणिः १इन्द्रगोपस्त्वग्निरजो वैराटस्तित्तिभोऽग्निकः ॥ २७५ ।। २ऊर्णनाभस्तन्त्रवायो जालिको जालकारकः । कृमिर्मर्कटको लूता लालास्रावोऽष्टपाच्च सः।।२७६ ॥ ३कर्णजलौका तु कर्णकीटा शतपदी च सा। ४वृश्चिको दुण आल्यालिरलं तत्पुच्छकण्टकः ।। २७७ ।। ६भ्रमरो मधुकृद् भृङ्गश्चश्चरीकः शिलीमुखः। इन्दिन्दिरोऽलो रोलम्बो द्विरेफाऽस्य षडंह्रयः ।। २७८ ।। ८भोज्यन्तु पुष्पमधुनी खद्योतो ज्योतिरिङ्गणः।... १. 'मखमली कौड़े ( लाल मखमलके समान सुन्दर और मुलायम पीठवाला छोटा-सा यह कीडा बरसातमें होता है, इसे 'बीरबर्टी' भी कहते है-) के ५ नाम हैं-इन्द्रगोपः, अग्निरजः, वैराटः, तित्तिभः, अग्निकः ।। ॥त्रीन्द्रिय जीववर्णन समाप्त ।। । __ २. ( यहाँसे ४।२८१३ तक) चतुरिन्द्रिय-- चार इन्द्रियवाले जोबोंके पर्याय कहते हैं--.) 'मकड़ा, मकड़ी ( जो जाल-सा बनाकर उसी में रहती है ) के ६ नाम हैं-ऊर्णनाभः, तन्त्रवायः, जालिकः, जालकारकः, कृमिः (+ क्रिमिः), मर्कट कः, लूता, लालासावः, अष्टपात् (-पाद् )॥ ३. 'कनगोजर, कनखजुरा'के ३ नाम हैं-फर्णजलौका, कर्णकीटा, शतपदी॥ ४. 'विच्छ 'के ४ नाम हैं-वृश्चिकः ( पु स्त्री ), द्रुण: (+द्रुतः ), प्राली, पालिः॥ ५. 'बिच्छूके डङ्क'का १ नाम है-अलम् ॥ ६. 'भौंरे'के ६ नाम हैं-भ्रमरः, मधुकृत् (+मधुकर: ), भृङ्गः, चञ्चरीकः, शिलीमुखः, इन्दिन्दिरः, अलिः (+अली - लिन ), रोलम्बः, द्विरेफः (+भसलः । सब स्त्री पु)॥ ७. इस (भौंरे )के छः पैर होते हैं-अतः--षटपदः, षडहिः , पटचरणः,...) इसके पर्याय होते हैं )। ८; इस ( भौरे )का भोज्य पदार्थ पुष्प तथा मधु अर्थात् पुष्पपराग है(अत:-'पुष्पलिट्,-लिह, पुष्पन्धयः, मधुलिट-लिह , मधुपः, मधुव्रतः,"") इसके पर्याय होते हैं)॥ ६. 'जुगुनू, खद्योत'के २ नाम हैं-खद्योतः, ज्योतिरिङ्गण; ।। शेषश्चात्र-"खद्योते तु कीटमणिोतिर्माली तमोमणिः। पराबुदो निमेषद्यद् ध्वान्तचित्रः ।" . Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिर्थक्काण्डः ४] मणिप्रभा'व्याख्यापेतः २६५ १पतङ्गः शलभः २क्षुद्रा सरघा मधुमक्षिका ॥ २७६ ॥ ३माक्षिकादि तु मधु स्याद् ४मधूच्छिष्टातु सिक्थकम् । श्वर्वणा मक्षिका नीला पुत्तिका तु पतङ्गिका ॥ २८० ॥ ७वनमक्षिका तु दंशो , संदंशी तज्जातिरल्पिका। हतैलाटी वरटा गन्धोली स्या १ 'शलभ, पतिंगा' के २ नाम हैं-पतन:, शलभः ।। २. 'मधुमक्खी' के ३ नाम हैं-तुद्रा, सरघा, मधुमक्षिका ॥ ३. 'मधु, सहद (मधुमख्खी श्रादि ('आदि से पुत्तिका, भौंरा,"" का संग्रह है ) के द्वारा निर्मित मधुर द्रव्य-विशेष 'का १ नाम है-मधु (न ।+पु)॥ विमर्श-'वाचस्पति'ने मधुके-पौत्तिक, भ्रामर, क्षौद्र, दाल, औद्दालक, माक्षिक, अयं और छात्रक, ये ८ भेद बतलाकर इनमें से प्रत्येक का पृथकगुण कहा है। ४. 'मोम'के २ नाम है मधूच्छिष्टम्, सिक्थकम् ॥ ५. 'नीले रंगकी मक्खी'का १ नाम है-वर्वणा ॥ ६. 'एक प्रकारको छोटी मधुमक्खी'के २ नाम हैं-पुत्तिका, पतङ्गिका ॥ . ७. 'डास, दंश के २ नाम है-वनमक्षिका; दंशः ।। ८. मच्छड़'का १ नाम है-दंशी! ६. 'बरें, बिर्हनी, हड्डा, भर के ३ नाम है-तैलाटी, वरटा, (पु स्त्री), गन्धोली ॥ १ तद्यथा. . “पौत्तिकभ्रामरक्षौद्रदालौदालकमाक्षिकम् । अयं छात्रमित्यष्टौ जातयोऽस्य पृथग्गुणाः ।। तत्र . पौत्तिकमुत्तप्तताभं विषकीटजम् । भ्रामरं तु भ्रमरजं पाण्डुरं गुरु शीतलम् ।। क्षौद्र तु कपिलं दाहि तुदानीतं मलावहम् । दालं तु दलजं सेव्वं दुर्लभं रूक्षवालकम् ॥ उद्दालकं तु शालाकं विषजिन्मधुराम्लकम् । माक्षिकं तु मधु ज्येष्ठं विरूदं तैलवर्णकम् ॥ श्रयं तु पूज्यमापाण्डु मनाक तिकं सवालकम् । छात्र स्वेकान्तमधुरं सर्वाय राजसेवितम् ॥" Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६६ अभिधानचिन्तामणिः -१च्चीरी तु चीरुका ॥ २८१॥ . झिल्लीका झिल्लिका वर्षकरी भृङ्गारिका च सा । २पशुस्तिर्यङ् चरि३हिनेऽस्मिन् व्यालः श्वापदोऽपि च ॥२८॥ ४हस्ती मतङ्गजगजद्विपकर्यनेकपा मातङ्गवारणमहामृगसामयोनयः। स्तमेरमद्विरदसिन्धुरनागदन्तिनो दन्ताबलः करटिकुञ्जरकुम्भिपीलवः ॥२३॥ इभः करेणुर्ग|५ऽस्य स्त्री धेनुका वशाऽपि च । ६भद्रो मन्दो मृगो मिश्रश्चतस्रो गजजातयः ॥ २८४ ॥ कालेऽप्यजातदन्तश्च स्वल्पाङ्गश्चापि मत्कुशौं । ... ५. 'झिंगुर,के ६ नाम हैं-चीरी, चीरुका, झिल्लीका, झिल्लिका, वर्षकरी, भृङ्गारिका ॥ चतुरिन्द्रियजीववर्णन समाप्त !! - २. ( अब यहांसे ( । ४२३) तक स्थलचर, खचर (अाकाश गामी) और जलचर भेदसे तीन प्रकारके पञ्चेन्द्रिय, जीवोंकां क्रमशः वर्णन करते हैं उनमें प्रथम स्थलचर जीवोंका (४ । ३८१ तक ) वर्णन है ) 'पशु के ३ नाम हैं-पशुः, तिर्यङ् (यञ्च् ), चरिः (सब पु ) । ३. 'बाघ-सिंह आदि हिंसक पशुओं के २ नाम हैं-व्यालः, श्वापदः ॥ ४. 'हाथी'के २३ नाम हैं-हस्ती (-स्तिन् ), मतङ्गजः, गजः, द्विपः, करी (-रिन् ), अनेकपः, मातङ्गः, वारणः, महामृगः, सामयोनिः, स्तम्बेरमः, द्विरदः, सिन्धुरः, नागः, दन्ती (-न्तिन् ), दन्तावलः, करटी (-टिन् ), कुञ्जरः (पु न ), कुम्भी (-म्भिन् ), पीलुः, इसः, करेणुः (पु स्त्री + स्त्रीध्वजः ), गजः ॥ शेषश्चात्र-“अथ कुञ्जरे । पेचकी पुष्करी पद्मी पेचिकः सूचिकाधरः । विलोमजिह्वे ऽन्तःस्वेदो महाकायो महामदः ॥ सूर्पकों जलाफाक्षो जटी च षष्टिहायनः । असुरो दीर्घपवनः शुण्डाल: कपिरित्यपि ॥" •५. 'हथिनी के २ नाम है-धेनुका, वशा | शेषश्चात्र-"वशायां वासिता कर्णधारिणी गणिकाऽपि च ।" ६. 'हाथीके चार जाति विशेष हैं-भद्रः, मन्दः, मृगः, मिोंः ।। ७. 'दांत निकलनेकी अवस्था आजाने पर भी जिस हाथी का दांत नहीं निकलते, उसका तथा छोटे शरीरवाले (चकुनी ) हाथी'का १ नाम हैमाकुणः॥ Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिष काण्डः ४ ] 'मणिप्रभा' व्याख्योपेतः १ वर्षो गजो बालः स्यात्पोतो दशवर्धकः ॥ २८५ ॥ विक्को विंशतिवर्षः स्यात्कलभस्त्रिशदब्दकः । यूथनाथो यूथपतिर्मत्त प्रभिन्नगर्जितौ ॥ २८६ ॥ ४ मदोत्कटो मदकलः - ५ समावुद्वान्तनिर्मदौ । ६सज्जितः कल्पित७स्तिर्यग्घाती परिणतो गजः ।। २८७ ।। व्यालो दुष्टगजो गम्भीरवेद्यवमताङ्कशः । १० राजवाह्य तूपवाह्यः ११ सन्नाह्यः समरोचितः ॥ २८८ ॥ १२उदग्रदन्नीषादन्तो १३ बहूनां घटना घटा । १४मदो दानं प्रवृत्तिश्च १५ मथुः करशीकरः ॥ २८६ ॥ १. पाँच, दस, बीस् और तीस वर्षकी अवस्थावाले १ - १ नाम है - बालः, पोतः, विकः, कलमः ॥ २६७ हाथियों' का क्रमशः २. 'यूथ के स्वामी' के २ नाम हैं — यूथनाथ:, यूथंपतिः ॥ ३. ' जिसका मद बह रहा हो, उस हाथी के ३ नाम हैं - मत्तः, प्रभिन्नः, -गजितः ॥ ४. 'मतवाले हाथी' के २ नाम हैं-मदोत्कटः, मदकलः ॥ ५. 'जिस हाथीका मद चूकर समाप्त हो गया हो, उसके २ नाम हैंउद्वान्तः, निर्मदः ॥ ६. 'युद्ध के लिए तैयार किये गये हाथी' के २ नाम हैं —सज्जितः, कल्पितः ॥ ७. 'दाँतसे तिच्र्च्छा प्रहार किये हुए हाथी' का १ नाम है - परिणत: ।। ८. 'दुष्ट हाथी' के २ नाम हैं - व्यालः, दुष्टगजः ॥ ६. 'अङ्कश प्रहार से भी नहीं मानने ( वशमें आने वाले हाथी' के २ नाम हैं- गम्भीरवेदी ( - दिन्), अवमताङ्क ुशः ॥ १०. 'जिंस हाथीपर राजा सवारी करें, उसके २ नाम हैं - राजवाह्यः, उपवाहयः (+औपवाहयः ) || ११. 'युद्ध के योग्य हाथी' के २ नाम हैं - सन्नाहयः, समरोचितः ।। १२. 'हरिस ( हलके लम्बे डण्डे ) के समान बड़े-बड़े दाँतवाले हाथी के २ नाम हैं – उदग्रदन् ( - दतृ ), ईषादन्तः ॥ १३. " बहुत हाथियों के झुण्ड'का १ नाम है- घटा ॥ १४. 'हाथीके मद' के ३ नाम हैं--मदः, दानम्, प्रवृत्तिः ॥ १५. 'हाथी के सूंड से निकलनेवाले जलकण' के २ नाम हैं - वमथुः ( पु ), करशीकरः ॥ Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६८ श्रभिधानचिन्तामतिः १ हस्तिनासा करः शुण्डा हस्ती २ऽग्रन्त्वस्य पुष्करम् । ३ अङ्गुलिः कर्णिका ६ कर्णमूलचूलिका अपाङ्गदेशी निर्याणं ६गण्डस्तु करटः कटः ।। २६१ ।। १० अवग्रहो ललाटं स्या ११दारक्षः कुम्भयोरधः । १२ कुम्भौ तु शिरसः पिण्डौ १३ कुम्भयोरन्तरं विदुः ।। २६२ ।। १४वातकुम्भस्तु तस्याधो १५ बाहित्यन्तु ततोऽप्यधः । १६वाहित्याधः प्रतिमानं १७पुच्छमूलन्तु पेचकः ।। २६३ ।। १८दन्तभागः पुरोभागः १६ पक्षभागस्तु पार्श्वकः । ४ दन्तौ विषाणों स्कन्ध आसनम् ||२०|| स्या७दीपिका त्वक्षिकूटकम् । १. 'हाथी के सूंड़' के ४ नाम हैं- हस्तिनासा, करः, शुण्डा, हस्त: || २. 'सूड' के अगले भाग' का १ नाम है - पुष्करम् ॥ ३. 'हाथी के अङ्ग लि'का १ नाम है – कणिका || ४. 'हाथी के दोनों दाँतों का १ नाम है - विषाणौ । ५. 'हाथी के कन्धे' का १ नाम है - आसनम् ॥ ६. ‘हाथीके कर्णमूल ( कनपट्टी ) का १ नाम है - चूलिका | ७. ‘हाथीके नेत्रके गोलाकार भाग'का १ नाम है - ईषिका ( + ईषीका, इषिका, इषीका ) | ८. 'हाथी के नेत्रप्रान्त'का १ नाम है - निर्याणम् || ६. 'हाथी के गण्डस्थल, कपोल के २ नाम हैं- करटः कटः ॥ १०. 'हाथीके ललाट'का १ नाम है -- अवग्रहः ॥ ११. 'हाथी के दोनों कुम्भों ( मस्तकस्थ मांस - पिण्डों ) के नीचेवाले भाग' का १ नाम है - आरक्षः ॥ १२. 'हाथी के मस्तक के ऊपर में स्थित दो मांसपिण्डों का १ नाम है कुम्भौ ॥ १३. 'पूर्वोक्त दोनों कुम्भों के मध्यभाग'का १ नाम है - विदु: ( पु ) ॥ १४. 'उक्त विदु ( कुम्भद्वय के मध्यभाग ) के नीचेवाले भाग' का १ नाम - वातकुम्भः ॥ १५. 'पूर्वोक्त 'वातकुम्भ' के नीचेवाले भाग'का १ नाम है -वाहित्यम् ॥ १६. 'पूर्वोक्त 'वाहित्थ' के नीचेवाले भाग'का १ नाम है - प्रतिमानम् ॥ १७. 'दाथोकी पूंछके मूल भाग' का १ नाम है - पेचकः ॥ १८. 'हाथी के श्रागेवाले भाग'का १ नाम है - दन्तभागः ॥ १६. 'हाथीके बगलवाले भाग' का १ नाम है - पार्श्वकः ॥ Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिर्यकाण्ड: ४ ] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः २६४ १पूर्वस्तु जङ्घादिदेशो गात्रं स्यात् २पश्चिमोऽपरा ॥ २६४ ॥ ३बिन्दुजालं पुनः पद्म ४शृङ्खलो निगडोऽन्दुकः । हिजीरश्च पादपाशो . पूवारिस्तु गजबन्धभूः ॥ २९५ ॥ ६त्रिपदी गात्रयोर्बन्ध एकस्मिन्नपरेऽपि च । ७तोत्रं वेणुकदमालानं बन्धस्तम्भोंहऽङ्कशः मृणिः ॥ २६६ ॥ १०अपष्ठं त्वङ्कशस्याग्रं ११यातमङ्क शवारणम् । १२निषादिनां पादकर्म यतं १३वीतन्तु तद्यम् ॥ २७ ॥ १४कक्ष्या दूष्या वरत्रा स्यात् १५कण्ठबन्धः कलापकः। १. 'हाथीके पूर्व (श्रागेवाले ) भाग' (पैर, जंघा आदि ) का १ नाम है-गात्रम् ॥ २. 'हाथीके पीछेवाले भाग'का १ नाम है-अपरा (स्त्री न ।+ भवरा)॥ .. ३. 'युवावस्थाप्राप्त हाथीके मुखपर लाल रंगके पद्माकार बिन्दु-समूह'का १ नाम है-पद्मम् ।। ४. 'साँकल-हाथी बांधनेवाली लोहेकी बेड़ी'के ५ नाम हैं-शृङ्खला (त्रि ), निगड: (+ निगल: ), अन्दुकः (+ अन्दूः, स्त्री), हिजीरः. (३ पु न), पादपाशः ॥ . . ___५. 'हाथी बांधनेकी भूमि'का १ नाम है.. वारिः (स्त्री वारी)। ६. 'हाथीने प्रागेवाले दोनों पैर तथा पीछेवाले एक पैरको बांधने का १ नाम है-त्रिपदी॥ ७. 'हाथीको हांकनेके लिए बनी हुई बांसकी छोटी छड़ी'के २ नाम है-तोत्रम्, वेणुकम् ॥ ८. 'हाथी बांधनेके खूटे'का १ नाम है-श्रालानम् ॥ ६. 'अङ्कश'के २ नाम है-अङ्क शः (पु न ), सृणिः (पु स्त्री)॥ १०. 'अंकुशके अग्रभाग'का १ नाम है-अपष्ठम् ॥ ११. 'अङ्कुश मारकर हाथोके दुर्व्यवहारको रोकने'का १ नाम है—यातम् (+घातम् )। १२. 'हाथीवानके दोनों पैरके अगूंठेसे हाथीको हाँकने'का १ नाम हैयतम् ॥ . १३. 'पूर्वोक्त दोनों कार्य ('यात' तथा 'यत' )का १ नाम है-वीतम् ।। २४. 'हाथी कसनेके रस्से के ३ नाम हैं-कक्ष्या, दूष्या, वरत्रा ॥ १५. 'कण्ठबन्धन'के २ नाम हैं-कण्ठबन्धः, कलापकः । Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०० अभिधानचिन्तामणिः श्घोटकस्तुरगस्ताय॑स्तुरङ्गोऽश्वस्तुरङ्गमः ।। २६८ ॥ गन्धर्वोऽर्वा सप्तिवीती वाहो वाजी हयो हरिः । २वडवाऽश्वा प्रसूर्वामी ३किशोरोऽल्पवया हयः ॥ ६ ॥ ४जवाधिकस्तु जवनो प्ररथ्यो वोढा रथस्य यः। ६आजानेयः कुलीनः स्यात् तत्तद्देशास्तु सैन्धवाः ॥ ३०० ॥ वानायुजाः पारसीकाः काम्बोजा वाह्निकादयः । पविनीतस्तु साधुवाही दुविनीतस्तु शूकलः ॥ ३०१॥ १०कश्यः कशा? ११हृद्वक्त्रावर्ती श्रीवृक्षकी हयः । .... १. 'घोड़े के १४ नाम हैं-घोटकः, तुरगः, तायः, तुरङ्गः अश्व तुरङ्गमः, गन्धर्वः, अर्वा (-वन् ), सप्तिः, वीतिः, वाहः, वाजी ( - जिन् ), हयः, हरिः (सब पु)॥ . शेषश्चात्र-"अश्वे तु क्रमण: कुण्डी प्रोथी हेषी प्रकीर्णकः । पालकः परुल: फिएवी कुटरः सिंहविक्रमः ॥ माषाशी केसरी हंसो. मुद्गभुग्गूटभोजनः। .. वासुदेवः शालिहोत्रो लक्ष्मीपुत्रो मरुद्रथः ॥ । चामर्येकशफोऽपि स्यात् ।” , . २. 'घोड़ी'के ४ नाम हैं-वडवा, अश्वा, प्रसूः, (स्त्री), वामी ॥ शेषश्चात्र-“अश्वायां पुनरर्वती ॥" ३. 'बछेड़ा ( छोटी अवस्थावाला . घोड़ेके बच्चे )का १ नाम है'किशोरः॥ . . , ४. 'तेज चलनेवाले के २ नाम हैं-जवाधिकः, जवनः ॥ ५. रथ खींचनेवाले घोड़े'का १ नाम है-रथ्यः ॥ ६. 'अच्छे नस्लके (काबुली आदि ) घोड़े के २ नाम है-श्राजानेयः, कुलीनः ॥ ७. 'सिन्धु, वनायुज, पारसीक, कम्बोज और वाहिलक देशमें उत्पन्न होने वाले घोड़ों का क्रमशः १-१ नाम है-सैन्धवाः, वानायुजाः, पारसीकाः, काम्बोजाः, वाहिलकाः, ...........। ('आदि' शन्दसे 'तुषार' श्रादिका संग्रह है)। ८. 'सुशिक्षित घोड़े'का १ नाम है-साधुवाही (- हिन् )॥ ६. 'दुष्ट अशिक्षित घोड़े'का १ नाम हैं-शूकल: ।। १०. 'कोड़ा मारने योग्य'का १ नाम है-कश्यः ॥ ११. 'छाती तथा मुखपर बालोंकी भौंरी ( गोलाकार घुमाव ) वाले घोड़े 'का १ नाम है-श्रीवृत्तकी ( - किन् )॥ - --- -- ... Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिर्यककाण्ड: ४] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः ३०१ १पञ्चभद्रस्तु हृत्पृष्ठमुखपाश्र्वेषु पुष्पितः ॥ ३०२ ।। २पुच्छोरःखुरकेशास्यैः सितः स्यादष्टमङ्गलः । ३सिते तु कर्ककोकाही ४खोङ्गाहः श्वेतपिङ्गले ॥ ३०३ ।। ५पीयूषवणे सेराहः पीते तु हरियो हये। ७कृष्णवर्णे तु खुङ्गाहः ८क्रियाहो लोहितो हयः ॥ ३०४ ।। हानीलस्तु नीलको१०ऽथ त्रियूहः कपिलो हयः।। ११वोल्लाहस्त्वयमेव स्यात्पाण्डुकेसरवालधिः ॥ ३०५ ।। १२उराहस्तु मनाक्पाण्डुः कृष्णजको भवेद्यदि। १३सुरूहको गर्दभाभो १४वोरुखानस्तु पाटलः ॥ ३०६ ।। १५कुलाहस्तु मनाकपीतः कृष्णः स्याद्यदि जानुनि । १९उकनाहः प्रीतरक्तच्छायः स एव तु कचित् ।। ३०७ ॥ कृष्णरक्तच्छविः प्रोक्तः- . १. 'हृदय (छाती ), पीठ, ‘मुख तथा दोनों पार्श्व भागों में श्वेत चिह्न वाले घोड़े'का १ नाम है-पञ्चभद्रः ।।. २. 'पूछ, छाती, चारो खुर, केश तथा मुखमें श्वेत वणवाले घोड़े'का १ नाम है-अष्टमङ्गलः । । ३. 'श्वेत घोडेके २ नाम हैं-कर्कः, कोकाहः ।। ४. 'श्वेत 'पिङ्गल वर्णवाले घोड़े'का १ नाम है-खोङगाहः ॥ ५. 'अमृत या दूधके समान रंगकाले घोड़े'का १ नाम है-सेराहः॥ ६. पीले घोड़े'का १ नाम है-हरियः ॥ ७. 'काले घोड़े'का १ नाम है-खुङ्गाहः ॥ ८. 'लाल घोड़े'का १ नाम है-क्रियाहः ।। ६. 'अत्यन्त नीले घोड़े'का १ नाम है-नीलकः ।। १०. 'कपिल वर्णवाले घोड़े'का १ नाम है-त्रियूहः ॥ ११. 'यदि 'त्रियूह' (कपिल वर्णवाले घोड़े ) को केसर (आयल ) और पूँछ पाण्डुवर्णके हो तो उस घोड़े'का १ नाम है-वोल्लाहः ॥ १२. 'थोड़ा पाण्डुवर्ण तथा काली जङ्घोबाले घोड़े'का १ नाम हैउराहः॥ १३. 'गधेके रंगवाले घोड़े'का १ नाम है-सुरूहकः ॥ १४. 'पाटल वर्णवाले घोड़ेका १ नाम है-वोरुखानः ।। १५. 'कुछ पीले वर्णवाले तथा काली घुटनेवाले घोड़े'का १ नाम हैकुलाहः॥ १६. 'पीले तथा लाल वर्णवाले अथवा काले तथा लाल बर्णवाले घोड़े'का १ नाम है-उकनाहः ।। Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणिः . शोणः कोकनदच्छविः। रहरिकः पीतहरितच्छायः स एव हालकः ॥ ३०८ ॥ पगुलः सितकाचाभो ३हलाहश्चित्रितो यः। ४ययुरश्वोऽश्वमेधीयः ५प्रोथमश्वस्य नासिका ॥ ३०६ ॥ ६मध्यं कश्यं ७निगालस्तु गलोद्दशः खुराः शफाः। अथ पुच्छं वालहस्तो लागृलं लूम वालधिः ॥ ३१०॥ १०अपावृत्तपरावृत्तलुठितानि तु वेल्लिते । ११धोरितं वल्गितं प्लुतोत्तेजितोत्तेरितानि च ॥३११ ।। ... गतयः पञ्च धाराख्यास्तुरङ्गाणां क्रमादिमाः। १२तत्र धौरितकं धौर्य धोरणं धोरितञ्च तत् ॥ ३१२॥ . . बभ्रकशिखिक्रोडगतिवद् १. 'कोकनद ( सुर्ख कमल )के समान रंगवाले घोड़े'का १ नाम हैशोणः॥ २. पीले तथा हरे ( सब्ज ) वर्णवाले घोड़े के २ नाम हैं-हरिकः, हालकः ।। ३. 'श्वेत कांचके समान वर्णवाले घोड़े'का १ नाम है-पगुलः ।। ४. चित्रित ( चितकबरे ) घोड़े'का १ नाम है-हलाहः ॥ शेषश्चात्र-“मल्लिकाक्षः सितैर्नेः स्याद्वाजीन्द्रायुधोऽसितैः। , ककुदी ककुदावर्ती निर्मुष्कमित्वन्द्रवृद्धिकः ।।" ५. 'अश्वमेध यज्ञके घोड़े के २ नाम हैं-ययुः (पु), अश्वमेधीयः ।। ६. 'घोड़ेकी नाक'का १ नाम है-प्रोथम् (पु न )॥ ७. 'घोड़ेके मध्य भाग ( जहां कोड़ा मारा जाता है, उस शरीर भाग )' का १ नाम है-कश्यम् ।। ८. 'घोड़ेके गले ('देवमणि' नामक भंवरीके स्थान )का १ नाम हैनिगालः॥ ६. 'खुर'के २ नाम हैं-खुरा:, शफा: (पु न)। १०. पूंछ के ५ नाम हैं-पुच्छम् (पु न ),वालहस्तः, लांगूलम् (पु न) लूम (-मन् , न ), वालधिः (पु ) ॥ ११. 'लोटने के ४ नाम हैं- अपावृत्तम्, परावृत्तम्, लुठितम् , वेल्लितम् ।। १२. घोड़ोंकी चालका १ नाम है-'धारा' । उसके ५ भेद हैं-धोरि तम्, वल्गितम्, प्लुतम्, उत्तेजितम्, उत्तेरितम् ॥ १३. 'नेवला, कङ्कपक्षी, मोर और सूअरके समान घोड़ेको चाल' अर्थात् Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०३ तिर्यक्काण्डः ४ मणिप्रभा'व्याख्योपेतः श्वलितं पुनः। अग्रकायसमुल्लासात्कुञ्चितास्यं नतत्रिकम् ।। ३१३ ।। २प्लुतन्तु. लचनं पक्षिमृगगत्यनुहारकम् ।। ३दत्ते जितं रेचितं स्यान्मध्यवेगेन या गतिः ।। ३१४॥ . ४उत्ते रितमुपकण्ठमास्कन्दितमित्यपि । उत्प्लुत्योत्प्लुत्य गमनं कोपादिवाखिलैः पदैः ।। ३१५ ॥ आश्वीनोऽध्या स योऽश्वेन दिनेनैकेन गम्यते । ६कवी खलीनं कविका कवियं मुखयन्त्रणम् ।। ३१६ ॥ पश्चाङ्गी वक्त्रप? तु तलिका तलसारकम् । दामाञ्चनं पादपाशः प्रक्षरं प्रखरः समौ ।। ३१७ ॥ १०चर्मदण्डे कशा ११रश्मौ वल्गाऽवक्षेपणी कुशा। 'दुलकी चाल'के ४ नाम हैं-धौरितकम्, धौर्यम्, धोरणम्, धोरितम् (+ धारणम् )॥ १. 'शरीरके अगले (पूर्वार्द्ध ) भागको बढ़ाकर शिरको संकुचितकर त्रिकको झुकाये हुए घोड़ेकी गति अर्थात् 'सरपट' चाल'का १ नाम हैचल्गितम् ॥ २. 'पक्षी तथा हरिनके समान घोड़ेकी चाल. अर्थात् 'चौकड़ी (छलांग) मारने के २ नाम हैं-प्लुतम्, लवनम् ॥ .. ३. 'घोड़ेकी मध्यम चाल'के २ नाम हैं- उत्तेजितम्, रेचितम् ।। ४ 'ऋद्ध-से घोड़े के चारो पैरोंसे उछल-उछलकर चलने के ३ नाम हैंउत्तेरितम्, उपकगठम्, श्रास्कन्दितकम् (+आस्कन्दितम् )॥ .. ५. 'घोड़ेके एकदिनमें चलने योग्य मार्ग'का १ नाम है-आश्वीनः ॥ ६. 'लगाम के ६ नाम हैं-कवी, खलीनम् (पु न ), कविका, कवियम् (पु न ), मुखयन्त्रणम् , पञ्चाङ्गी ॥ . ७. 'घोड़े के मुखपर लगाये जानेवाले चमड़े के पट्टे के २ नाम हैंतलिका, तलसारकम् ।। । ८. 'घोड़ेके पैर बांधनेकी रस्सी, छान या पछाड़ी के २ नाम हैंदामाञ्चनम्, पादपाशः ॥ ह. 'घोड़ेको सज्जित करने के २ नाम हैं-प्रक्षरम्, प्रखरः (पु+न)॥ १०. 'चमड़ेकी चाबुक या कोड़े'के २ नाम हैं-चर्मदण्डः, कशा ।। ११. 'घोड़ेकी रास, लगामकी रस्सी'के ४ नाम हैं-रश्मिः (स्त्री), वल्गा (+वल्गः, वागा ), अवक्षेपणी, कुशा ।। Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०४ अभिधानचिन्तामणिः १पर्याणन्तु पल्ययनं २वीतं फल्गु हयद्विपम् ॥ ३१८ ।। ३वेसरोऽश्वतरो वेगसरश्वा४थ क्रमेलकः। कुलनाशः शिशुनामा शलो भोलिमरुप्रियः॥ ३१६ ।। मयो महाङ्गो वासन्तो द्विककुद्द गैलङ्घनः।। भूतघ्न उष्ट्रो दाशेरो रवणः कण्टकाशनः ॥ ३२० ।। दीर्घग्रीवः केलिकीर्णः ५करभस्तु त्रिहायणः । ६स तु शृङ्खलकः काष्ठमयैः स्यात्पादबन्धनैः ।। ३२१ ॥ ७गर्दभस्तु चिरमेही वालेयो रासभः खरः। चक्रीवाज शङ्ककोऽथ ऋषभो वृषभो वृषः ॥ ३२२ ॥ वाडवेयः सौरभेयो भद्रः शक्करशाकरौ। . उक्षाऽनड़वान ककुद्मान् गौर्बलीवर्दश्व शाङ्करः ।। २३ ।। ... उक्षा तु जातो जातोक्षः १०स्कन्धिकः स्कन्धवाहकः। . ११महोक्षः स्यादुक्षतरो १२वृद्धोक्षस्तु जरद्गवः ॥ ३२४ ।। १. 'घोड़ेकी जीन, खोगीर के २ नाम हैं-पर्याणम् , पल्ययनम् ॥ . २. 'निःसार घोड़े तथा हाथी'का १ नाम है-वीतम् ।। ३. 'खच्चर'के ३ नाम हैं-वेसरः, अश्वारः, वेगसरः । ४. 'ऊँट के १८ नाम हैं-क्रमेलकः, कुलनाशः, शिशुनामा (-मन् । 'शिशु' (बालक )के पर्यायवाचक नाम अतः-बाल:, अर्भकः......), शल:, भोलि:, मरुप्रियः, मयः, महाङ्गः, वासन्तः, द्विककुत् ( कुद् ), दुर्गलङ्घनः, भूतघ्नः, उष्ट्र:, दाशेरः, रवणः, कण्टकाशन:, दीघग्रीवः, केलिकीर्णः । ५. 'तीन वर्षकी उम्रवाले ऊँट'का १ नाम है-करभः ॥ ६. 'लकड़ीके बने पादबन्ध यन्त्रसे बांधे जानेवाले ऊँट'का १ नाम ७. 'गधे के ७ नाम हैं-गर्दभः, चिरमेही (-हिन् ), वालेयः, रासभः, खरः, चक्रीवान् (-वत् ), शङ्क कर्णः ॥ ८. 'बैल'के १४ नाम हैं- ऋषभः, वृषभः, वृषः, वाडवेयः, सौरभेयः, भद्रः, शक्करः, शाक्करः, उक्षा (-क्षन् ), अनडवान् (-डुह् ), ककुद्मान् (-अत्), गौः (पु स्त्री ), बलीवर्दः, शाङ्करः ।। ६. 'बछवे ( छोटे बाछा )की अवस्था पारकर युवावस्थामें प्रवेश करते हुए बैल'का १ नाम है-जातोक्षः ॥ १०. ( कन्धेसे हल, गाड़ी श्रादिका) भार ढोनेवाले बैल'के २ नाम हैं-स्कन्धिकः, स्कन्धवाहकः ।। ११. 'बड़े बैल के २ नाम हैं-महोक्षः, उक्षतरः ।। १२. 'बूढ़े बैल के २ नाम हैं-वृद्धोक्षः, जरद्गवः ॥ Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०५ तियकाण्ड: ४] मणिप्रभा'व्याख्योपेतः श्षण्ढतोचित आर्षभ्यः २कूटो भग्नविषाणकः। ३इटचरो गोपतिः पण्डो गोवृषो मदकोहलः ॥ ३५ ॥ ४वत्सः शकृत्करिस्तो ५दम्यवत्सतरौ समौ । ६नस्योतो नस्तितः ७षष्ठ्वाट् तु स्याधुगपार्श्वगः ॥ ३२६ ॥ युगादीनान्तु वोढारो युग्यप्रासगयशाकटाः। स तु सर्वधुरीणः स्यात्सर्वा वहति यो धुरम् ॥ ३२७ ।। १०एकधुरीणैकधुरावुभावेकधुरावहे । ११धुरीणधुर्यधौरेयधौरेयकधुरन्धराः ॥३२८॥ धूर्वहे१२ऽथ गलिदुष्टवृषः शक्तोऽप्यधूर्वहः । १. 'बधिया करनेके योग्य बाछा'का १ नाम है-आर्षभ्यः ॥ २. 'टूटी हुई सींगवाले बैल आदि'के २ नाम है-कूटः, भग्नविबाणकः॥ ३. सांड के ५ नाम है-इंटचरः (+इत्वरः), गोपतिः, षण्डः (+ सण्डः ), गोवृषः, मदकोहलः ॥ ४. ( बकरीकी मिंगनी-जैसा ) 'गोबर करनेवाले अर्थात् बहुत छोटी उम्रवाले बाछाबाछी'के ३ नाम हैं-वत्सः, शकृत्करिः, तर्णः ॥ ५. (गाड़ी, हल आदिमें) जोतनेके योग्य बल के २ नाम हैं-दम्यः, वत्सतरः ॥ . . ६. 'नाथे हुए बैल श्रादि'के २ नाम हैं-नस्योतः, नस्तितः ॥ ७. 'दहने-बायें ( दोनों तरफ) चलनेवाले बैल'के या शिक्षित करनेके लिए पहली बार जोते गये बैल के २ नाम है-षष्ठवाट (-वाह् ।+प्रष्ठवाट, पष्ठवाट ; २-वाह ), युगपार्श्वगः ।। . ८. 'युग ( युवा, जुवाठः), प्रासन (शिक्षित करनेके लिए बाछाके कन्धेपर रक्खे जानेवाले काष्ठ ) तथा गाडीको ढोनेवाले बेल'का क्रमसे १-१ नाम है-युग्यः, प्रासङ्गयः, शाकटः ।। ६. 'सब तरफके भार ढोनेवाले बैल'का १ नाम है-सर्वधुरीणः । १०. 'एक तरफ के बोझ ढोनेवाले बैल के २ नाम हैं-एकधुरीणः, एकधुरः॥ ११. 'बोझ 'जुवा' ढोनेवाले बैल के ६ नाम हैं-धुरीणः, धुर्यः, धौरेयः, धौरेयकः, धुरन्धरः, धूर्वहः ॥ १२. 'गर ( समर्थ होकर भी जोतनेके समयमें जुवा गिराकर बैठ जानेवाले ) दुष्ट बैल'का १ नाम है-गलिः ॥ २० अ० चि० Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०६ अभिधानचिन्तामणिः १स्थौरी पृष्ठ्यः पृष्ठवाह्यो २द्विदन् पोडन् द्विषड्दौ ॥ ३२६ ॥ ३वहः स्कन्धोंठशकूटन्तु ककुदं पूनचिकं शिरः। ६विषाणं कूणिका शृङ्ग ७सास्ना तुगलकम्बलः ।। ३३० ॥ गौः सौरभेयी माहेयी माहा सुरभिरजुनी। उस्त्राऽन्या रोहिणी शृङ्गिण्यनड्वाएनडुह्यषा ॥ ३३१॥ . तम्पा निलिम्पिका तम्बा सा तु वणैरनेकधा ।। १०प्रष्ठौही गर्भिणी ११वन्ध्या वशा १२वेहद्वषोपगा॥ ३३२॥ १३अवतोका स्त्रवद्गर्भा मा . .. . १. 'पीठसे बोझ ढोनेवाले ( बोरा आदि लादे जानेवाले ) बैल'के ३ नाम हैं-स्थौरी (-रिन् ।+ स्थूरी, -रिन् ), पृष्ठ्यः, पृष्ठवायः॥ । २. 'दो और छः दाँतवाले बैल श्रादि (बालक घोड़ा आदि भी)का क्रमशः १-१ नाम है-द्विदन् (-दत् ), षोडन् (-डत्)॥ . . ३. 'बैलके कन्धे'के २ नाम है-वहः, स्कन्धः ॥ ४. 'ककुद, मउर (बेलकी पीठपरका डील कन्धेपर उठा हुआ मांस-पिण्ड विशेष ) के २ नाम है-अंशकूटम्, ककुदम् ( पुन ।+ककुद् )॥ ५. 'बैलके शिर'का १ नाम है-नैचिकम् (+नांचकी)॥ ६. बल ( श्रादि )के सींग'के ३ नाम हैं-विषाणम् (त्रि), कूणिका, शृङ्गम् (पु न ७. 'लोर (बैल या गायकी गर्दनके नीचे कम्बल जैसा लटकता हुआ मांस-विशेष )के २ नाम हैं-सास्ना, गलकम्बलः ॥ ८. 'गाय'के १६ नाम हैं-गौः (-गो, पु स्त्री), सौरभेयी, माहेयी, माहा, सुरभिः, अर्जुनी, उस्रा, अघ्न्या, रोहिणी, शृगिणी, अनडवाही, अनडुही, उषा, तम्पा, निलिम्पिका, तम्बा ॥ ६ रंगभेदसे वह गाय अनेक प्रकारकी होती है (यथा-'शवला, धवला, कृष्णा, कपिला, पाटला,"....' अर्थात् चितकबरी, धौरी, काली, कैल, और गोली ( लाल ),......) १०. गर्भिणी या-प्रथमवार गर्भिणी'के २ नाम हैं-प्रष्ठौही, गर्मिणी ।। .११. 'बांझ ( वच्चा नहीं देनेवाली ) गाय आदि'के २ नाम हैं-वन्ध्या, वशा॥ - १२. 'साड़के साथ संभोगको हुई या-गर्भ-सावकी हुई गाय'के २ नाम है-वेहत् , वृषोपगा॥ १३. गर्भपातकी हुई, या-मरे हुए बच्चे वाली गाय' का १ नाम हैअवतोका ॥ Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०७ तिर्यककाण्ड: ४] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः -वृपाक्रान्ता तु सन्धिनी। २प्रौढवत्सा बष्कयिणी ३धेनुस्तु नक्सूतिका ॥ ३३३ ।। ४परेष्टुर्बहुसूतिः स्याद् प्रगृष्टिः सकृत्प्रसूतिका । प्रजने काल्योपसर्या च सुखदोह्या तु सुव्रता ॥ ३३४ ॥ पदुःखदोह्या तु करटा बहुदुग्धा तु वञ्जला। १-द्रोणदुग्धा द्रोणदुघा ११पीनोध्नी पीवरस्तनी ॥ ३३५ ॥ १२पीतदुग्धा तु धेनुष्या संस्थिता दुग्धबन्धके । १३नैचिकी तूत्तमा गोषु १४पलिक्नी बालगर्भिणी ।। ३३६ ॥ १५समांसमीना तु सा या प्रतिवर्ष विजायते । १६स्यादचण्डी तु सुकरा १. 'सांढ़से आक्रान्त ( संभोग की हुई ), या-दुहनेके समयपर भी दूध नहीं देनेवाली गाय'का १नाम है-सन्धिनी ॥ २. 'बकेना गाय'का एक नाम है-'वष्कयणी ।।। ३. 'थोड़े दिनोंकी व्यायी हुई गाय का नाम है-धेनुः ।। ४. 'अनेक बार व्यायी हुई गाय'का १ नाम है-परेष्टुः ।। ५. 'एक बार न्यायी हुई गायका १ नाम है-गृष्टिः ।। ६. 'रंभाई ( उठो) हुई अर्थात् गर्भग्रहणार्थ बैल के साथ संभोगकी इच्छा करनेवाली गाय'के २ नाम है-काल्या, उपसर्या.॥ ७. 'सरलतासे. दूध देनेवाली सूधी गायका १ नाम है-सुव्रता ।। ८. 'कररही (बड़ी कठिनाईसे दूही जानेवाली ) गाय'का १ नाम हैकरटा॥ ६. 'दूधारूं (बहुत दूध देनेवाली ) गाय'का १ नाम है-वजुला ॥ १०. 'एक द्रोण (श्राधा मन ) दूध देनेवाली गाय के २ नाम हैं-द्रोणदुग्धा, द्रोणदुघा ॥ ११. 'मोटे मोटे स्तनोंवाली गाय के २ नाम हैं-पीनोध्नी, पीवरस्तनी ।। १२. ( ऋण चुकाने तक उत्तमर्णके यहां दूध दुहने के लिए ) 'बन्धक -रखी हुई गाय'के २ नाम है-पीतदुग्धा, धेनुष्या । १३. 'गायों में उत्तम गाय'का १ नाम है-नैचिकी। १४. 'बचपन में ही गर्भ-धारणकी हुई गायका १ नाम है-पालक्नी (+मलिनी)॥ १५. 'धनपुरही (प्रत्येक वर्षमें व्यानेवाली ) गाय'का १ नाम हैसमांसमीना॥ १६. 'सूधी गायका १ नाम है--सुकरा ।। Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०८ अभिधानचिन्तामणिः -श्वत्सकामा तु वत्सला ॥ ३३७ ।। २चतुस्नेहायणी द्वये काद्धायन्येकादिवर्षिका । ३अपीनमूधो ४गोविट तु गोमयं भूमिलेपनम् ॥ ३३८ ।। ५शुष्के तु तत्र गोपन्धिः करीषच्छगणे अपि । गवा सर्व गव्यं व्रजे गोकुलं गोधनं धनम् ॥ ३३६ ।। . ८प्रजने स्यादुपसरः कीलः पुष्पलकः शिवः। १०बन्धनं दाम सन्दानं ११पशुरज्जुस्तु दामनी ॥ ३४०॥ १२अजः स्याच्छगलरछागश्छगो वस्तः स्तभः पशुः । . १३अजा तु च्छागिका मजा सर्वभक्षा गलस्तनी ॥ ३४१ ॥ १४युवाऽजो वर्करो १. ( स्नेहसे ) 'बछवेको चाहनेवाली गाय'के २ नाम है---वत्सकामा, वत्सला॥ २. 'चार, तीन, दो और एक वर्षकी अवस्थावाली गायके क्रमशः २-२ नाम है-चतुर्हायणी, चतुर्वर्षा; त्रिहायणी, त्रिवर्षा; द्विहायनी, द्विवर्षों; एकहायनी, एकवर्षा ॥ . __३. 'गायके यन'के २ नाम हैं--आपीनम् (पु न ), ऊध: (-धस् , न)॥ ४. 'गोबर के ३ नाम है-गोविट (-२), गोमयम्, भूमिलेपनम् (+पवित्रम् )॥ ५. 'सूखे गोबर के ३ नाम हैं-गोग्रन्थिः , करीषम् (पु न ), छगणम् ॥ ६. 'गो-सम्बन्धी सब पदार्थ ( यथा-दूध, दही, घी, गोबर, मूत्र......) का १ नाम है-गव्यम् ॥ ७. 'गोसमूह'के ४ नाम हैं -व्रजः (पु न ), गोकुलम्, गोधनम्, धनम् ।। ८. 'पशुओंके गर्भाधान समय के २ नाम हैं-प्रजनः, उपसरः ।। ६. 'खू टाके ३ नाम हैं-कीलः (पु स्त्री), पुष्पलकः, शिवः ।। १०. ( पशु.) बांधनेके ३ नाम हैं-बन्धनम्, दाम (-मन्, न स्त्री) संदानम् ॥ .११. 'पगहा (पशु बांधने वाली रस्सी)' का १ नाम है-दामनी ॥ १२. 'खसी बकरे'के ७ नाम हैं-अजः, छागलः, छागः, छगः, वस्तः, स्तभः, पशुः ॥ __१३. ' बकरी'के ५ नाम है-अजा, छागिका (+छागी ), मञ्जा, सर्वभक्षा, गलस्तनी ॥ १४. 'बोका ( युवा बकरा ) का १ नाम हैं-वर्करः ।। Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०६ "तिर्यकाण्ड: ४] मणिप्रभा व्याख्योपेतः १ऽवौ तु मेषोर्णायुहुडोरणाः। उरम्रो मेण्ढको वृष्णिरेडको रोमशो हुडुः ॥ ३४२ ॥ सम्फालः शृङ्गिणो भेडो रमेषी तु कुररी रुजा। जालकिन्यविला वेण्य३थेडिकः शिशुवाहकः ॥ ३४३ ॥ पृष्ठशृङ्गो वनाजः स्यादविदुग्धे त्ववेः परम् । सोढं दूसं मरीसश्च ५कुक्कुरो वक्रवालधिः ।। ३४४॥ अस्थिभुग्भषणः सारमेयः कौलेयकः शुनः। शुनिः श्वानो गृहमृगः कुकुरो रात्रिजागरः ।। ३४५ ।। रसनालिड रतपराः कीलशायिव्रणान्दुकाः। शालाको मृगदंशः श्वा६ऽलर्कस्तु स रोगितः ।। ३४६ ॥ विश्वकदुस्तु कुशलो मृगव्ये सरमा शुनी। हविट्चरः शूकरे ग्राम्ये- . १. 'भेड़ों'के १४ नाम है-अवि:. मेषः (पु न ), ऊर्णायुः, हुडः, उरणः उरभ्रः, मेण्ढकः, वृष्णिः, एडकः, रोमशः, हुडुः, सम्फालः, शृङ्गिणः, भेडः॥ २. भेंड' के ६ नाम हैं- मेषी, कुररी, रुजा, बालफिनी, अविला; वेणी। ३. 'जङ्गली बकरा के ४. नाम हैं ---इडिक्कः, शिशुवाहकः, पृष्ठशृङ्गः, वनाजः ॥ . . ४. 'भेड़के दूध के ३ नाम है--अविसोढम्; अविदूसम्, अविमरीसम् ॥ ५. 'कुत्ते के २० नाम हैं-कुक्कुरः, वक्रवालधिः, अस्थिभुक् (-भुज ), भषणः (+भषक:), सारमेयः, कौलेयकः, शुनः, शुनिः, श्वानः, गृहमृगः, कुकुरः, रात्रिजागरः, रसनालिट (-लिह), रतकीलः, रतशायी (-यिन् ), रतत्रणः, रतान्दुकः, शालावृका, मृगदंशः, श्वा (श्वन् )॥ शेषश्चात्र-शुनि क्रोधी. रसापायी शिवारिः सूचको रुरुः।। वनंतपः स्वजातिद्विट कृतशो भल्लहश्च स ॥ दोघनादः पुरोगामी स्यादिन्द्रमहकामुकः । - मण्डलः कपिलो ग्राममृगश्चेन्द्रमहोऽपि च ॥" ६. रोगी कुत्ते'का १ नाम है-अलकः । ७. 'शिकारी कुत्ते'का १ नाम है-विश्वकद्रः ।। ८. 'कुतिया के २ नाम हैं-सरमा, शुनी ॥ ६. 'प्रामीण सूअर'का १ नाम है-विट्चरः (+प्राम्यशकरः )। Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१० अभिधानचिन्तामणिः -१महिषो यमवाहनः ।। ३४३॥ रजस्वलो वाहरिपुर्लुलायः सैरिभो महः। धीरस्कन्धः कृष्णशृङ्गो जरन्तो दंशभीरुकः ॥ ३४८ ॥ रक्ताक्षः कासरो हंसकालीतनयलालिको। २अरण्यजेऽस्मिन् गवलः ३सिंहः कण्ठीरवो हरिः ।। ३५६ ।। हर्यक्षः केसरीभारिः पञ्चास्यो नखरायुधः। . महानादः पञ्चशिखः पारिन्द्रः पत्यरी मृगात् ।। १५०॥ श्वेतपिङ्गोऽप्य४थ व्याघ्रो द्वीपी शार्दूलचित्रौ। . चित्रकायः पुण्डरीक५स्तरक्षुस्तु मृगादनः ॥ ३५१।। शरभः क्रुजरारातिरुत्पादकोऽष्टपादपि । गवयः स्याद्वनगवो गोसदृक्षोऽश्ववारणः ।। ३५२ ।। . १. भैंसे'के १५ नाम हैं-महिषः, यमवाहनः (+ यमरयः ), रजस्वल:, वाहरिपुः, लुलायः, सैरिभः, महः, धीरस्कन्धः, कृष्णशृङ्गः, बरन्तः, देशभीरुकः, रक्ताक्षः, कासरः, हंसकालीतनया, लालिकः ।। शेषश्चात्र-महिषे कलुषः पिङ्गः कटाहो गद्गदस्वरः । __ हेरम्बः स्कन्धशृङ्गश्च ।। २. 'जंगली भैंसे'का १ नाम है-गवलः ।। ३. 'सिंह'के १४ नाम हैं-सिंहः, कण्ठीरवः, हरिः, हर्यक्षः, केसरी (-रिन् ), इभारिः, पञ्चास्यः, नखरायुधः, महानादः, पञ्चशिखः, पारिन्द्रः (+पारीन्द्रः), मृगपतिः, मृगारिः ( यौ०-मृगराजः, मृगरिपुः....."), श्वेतपिङ्गः ।। शेषश्चात्र-"सिंहे तु स्यात्पलङ्कषः, । शैलाटो वनराजश्च नभःक्रान्तो गणेश्वरः ॥ शृङ्गोष्णीषो रक्तजिह्वो व्यादीर्णास्यः सुगन्धिकः ।। ४. 'बाघ'के ६ नाम हैं-व्याघ्रः, द्वीपी (-पिन् ), शार्दूलः, चित्रकः, चित्रकायः, पुण्डरीकः ॥ ५. 'तेंदुआ बाघ, या चिता'के २ नाम है-तरतुः, मृगादनः ।। ६. 'सिंहसे भी बलवान् पशुविशेष' या 'लड़ीसरा'के ४ नाम है-शरभः, कुञ्जरारातिः, उत्पादकः, अष्टपात् (-द् ।+अष्टपादः )। ___७. 'लीलगाय, घोड़रोब'के ४ नाम हैं--गवयः, वनगवः, गोसहवः, प्रश्ववारणः ॥ Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिर्यकाण्ड: ४] 'मणिप्रभा व्याख्यापेतः ३११ रखड्गी वाध्रीणसः खड्गो गण्डकोरऽथ किरः किरिः। भूदारः सूकरः कोलो वराहः क्रोडपोत्रिणौ ॥ ३५३ ॥ घोणी घृष्टिः स्तब्धरोमा दंष्ट्री किट्यास्यलागलौ । आखनिकः शिरोमर्मा नासो बहुप्रजः ॥ ३५४॥ ३भाल्लूके भालूकांच्छभल्लभल्लूकमल्लुकाः। ४सगालो जम्बुकः फेरुः फेरण्डः फेरवः शिवा ॥ ३५५ ।। घोरवासी भूरिमायो गोमायुमं गधूर्तकः । हूरवो भरुजः क्रोष्टा ५शिवाभेदेऽल्पके किखिः ॥ ३५६ ॥ ६पृथौ गुण्डिवलोपाको कोकस्त्वीहामृगो वृकः। अरण्यश्वा मर्कटस्तु कपिः कोशः प्लबममः ॥ ३५७ ॥ प्लवङ्गः प्लवंगः शाखामृगो. हरिबलीमुखः। धनौका वानरोऽस्थासौ गोलागूलोऽसिताननः ।। ३५८ ।। १. 'गेंडा'के ४ नाम है-खड्गी (-खडिगन् ), वाघीणसः, खड्गः, गण्डकः॥ २. 'सूअर के १८ नाम हैं --किरः, किरिः, भूदारः, सूफरः, कोलः, वराहः कोरः, पोत्री (-त्रिन् ), घोणी (-णिन् ), घृष्टिः, स्तब्धरोमा (-मन् ), दंष्ट्री (-ष्ट्रिन् ), किटि:, आस्यलाङ्गलः, आखनिकः, शिरोमर्मा (-मन् ), स्थूलनासः, बहुप्रमः ।। शेषश्चात्र-"सूकरे कुमुख: कामरूपी च सलिलप्रियः । तलेक्षणो वक्रदंष्ट्रः पङ्कक्रीडनकोऽपि च ॥ ३. 'भालू के ६ नाम हैं-भाल्लुकः, भालूकः, ऋक्षः, . अच्छभल्लः, भल्लूकः, भल्लुकः ॥ ४. 'सियार, गीदड़के १३ नाम है-सुगाल: (+शृगालः ), जम्बुकः, फेरुः, फेरण्डः, फेरवः, शिवा (स्त्री), घोरवासी (-सिन् ), भूरिमायः, गोमायुः, मृगधूतकः, हरवः, भरुजः, क्रोष्टा (-टु)॥ ५.'छोटे स्यार या स्यारिन'का १ नाम है-किखिः (स्त्री)॥ ६. 'बड़े स्यार-विशेष'के २ नाम है-गुण्डिवः, लोपाकः ॥ ७. भंडिया,हुँडार के ४ नाम हैं-कोकः, ईहामृगः, वृकः, अरण्यश्वा (-स्वन् )॥ ८. 'बन्दर के ११ नाम है-मर्कटः, कपिः, कीशः, प्लवङ्गमः, प्लवङ्गः, प्लवगः, शाखामृगः, हरिः, बलीमुख:, बनौकाः (-कस ), वानरः ।। ६. 'काले मुखवाले बन्दर, लूंगूर'का १ नाम है-गोलाङ्ग्लः ॥ Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१२ अभिधानचिन्तामणिः १मृगः कुरङ्गः सारङ्गो वातायुहरिणावपि । २मृगभेदा रुरुन्यकरङ्कगोकर्णशंवराः ॥ ३५६ ॥ चमूरुचीनचमराः समूरैणयेरौहिषाः। कदली कन्दली कृष्णशारः पृषतरोहितौ ॥ ३६० ॥ ३दक्षिणेर्मा तु स मृगो यो व्याधैर्दक्षिणे क्षतः। ४वातप्रमोर्वातमृगः शशस्तु मृदुलोमकः ।। ३६१ ॥ शूलिको लोमको६ऽथ शल्ये शललशल्यको । श्वाविच्च ७तच्छलाकायां शललं शलमित्यपि । ३६२ गोधा निहाका गौधेरगौधारौ दुष्टतत्सुते । १०गौधेयोऽन्यत्र १. 'मृग, हरिण'के ५ नाम हैं-मृगः कुरङ्गः, सारङ्गः,. वातायुः, हरिणः ।। शेषश्चात्र-"मृगे त्वजिनयोनिः स्यात् ।" २. 'विभिन्न मृग ( हरिण )-विशेषका १-.-१ नाम है-हरुः, न्य, रङ्क:, गोकर्णः, शंवरः, चमूरु, चीनः, चमरः, समूरः, एणः, अश्यः, रौहिषः, कदली (स्त्री),कन्दली (स्त्री ।+२-लिन् ), कृष्णशारः, पृषतः, रोहितः॥ __ 'कदली स्त्रियामयम्, यदाह-कदली तु बिले शेते मृदुभक्षेव कबुरः। नीला रोमभिर्युक्ता सा विंशत्यङ्ग लायता ॥" ३. 'व्याधासे दहने भागमें आहत मृग' का १ नाम है-दक्षिणेर्मा (-मन् )॥ . ४. 'वायु'के सामने दौड़नेवाले (तेज) मृग-विशेष' के २ नाम हैंवातप्रमी:, वातमृगः ॥ ५. 'खरगोश'के ४ नाम हैं-शशः (+शशकः), मृदुलोमका, शूलिकः, लोमकर्णः ॥ ६. 'साही' (श्राकारमें लगभग बिल्लीके बराबर तथा सम्पूर्ण शरीरमें तेज कांटों से भरा हुआ जानवर ) के ४ नाम हैं-शल्यः, शलल:, शल्यक: (पुन ), श्वावित् (-विध )॥ ७. 'पूर्वोक्त' साही' जानवरके कांटे'के र नाम है--शललम् (त्रि), शलम् ॥ ८. 'गोह के २ नाम है-गोधा, निहाका ( २ नि स्त्री)॥ ६. गोहके दुष्ट बच्चे के २ नाम हैं-गौधेर:, गौधारः ॥ १०. 'गेह' के अदुष्ट ( सधे ) बच्चे'का १ नाम है-गौधेयः ।। Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिर्यक काण्ड: ४ ] . मणिप्रभा'व्याख्योपेतः ३१३ -मुसली गाधिकागोलिके गृहात् ।। ३६३ ।। माणिक्या भित्तिका पल्ली कुडयमत्स्यो गृहोलिका । २स्यादअनाधिका हालिन्यजनिका हलाहलः ॥ ३६४ ॥ ३स्थूलाञ्जनाधिकायान्तु ब्राह्मणी रक्तपुच्छिका । ४कृकलासस्तु सरटः प्रतिसूर्यः शयानकः ॥ ३६५ ॥ पमूषिको मूषको वज्रदशनः खनकोन्दुरौ । उन्दुरुष भाखुश्च सूच्यास्यो वृषलोचने ॥ ३६६ ॥ ६छुच्छन्दरी गन्धमूष्यां गिरिका वालमूषिका।। विडाल ओतुर्मार्जारो होकुश्च वृषदंशकः ।। ३६७ ॥ ६जाहको गात्रसङ्कोची मण्डली १०नकुलः पुनः। पिङगलः सपेहा बभ्र: १. छिपकिली, विछुतिया के ८. नाम हैं-मुसली, गृहगोधिका, एहगोलिका, माणिक्या, भित्तिका, पल्ली, कुख्यमत्स्यः, गृहोलिका ॥ २. 'बड़ी जातिकी छिपकिली के ४ नाम हैं-अञ्जनाधिका, हालिनी, अञ्जनिका, हलाहलः ॥ ३. 'ओटनी, लहटन' (एक कीड़ा, जो आकारमें छिपकिलीके समान, परन्तु उससे.छोटा होता है उसकी पूछ बहुत लाल होती है और शरीर सांपके समान चिकना तथा चमकीला होता है और वह छिपकिलीके समान दिवालों पर नहीं चलती, किन्तु प्रायः समतल भूमिपर ही चलती है ) के २ नाम हैब्राह्मणी, रक्तपुच्छिंका ॥ ४. 'गिर्गिट के ४ नाम हैं-कृकलासः, सरटः, प्रतिसूर्यः, शयानकः (+प्रतिसूर्यशयानक:)॥ ५. 'चूहे' मूस'के १०. नाम हैं-मूषिकः ( पु न), मूषकः, क्नदशनः, खनकः, उन्दुरः, उन्दुरुः (+उन्दरः),वृषः, आखु:, (पु स्त्री), सूच्यास्यः, वृषलोचनः ।। . ६. 'छुछुन्दरके २ नाम हैं-छुच्छुन्दरी, गन्धमूषी ॥ ७. 'चूहिया'के २ नाम है-गिरिका, बालमूषिका ॥ ८. 'बिलाव'के ५ नाम हैं-विडालः, मोतुः, मार्जारः, हीकुः, वृषदंशकः॥ विमर्श-कुछ लोगोंने 'हीकुः'को 'वन बिलाव'का पर्याय माना है । ६. 'एक प्रकारके बड़े बिलाव'के ३ नाम हैं-जाहकः, गात्रसंकोची (-चिन् ), मण्डली (-लिन् । १०. 'नेक्ले'के ४ नाम हैं-नकुलः, पिङ्गलः, सर्पहा (-हन् ), बभ्रुः॥ Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणिः – १ सर्पोऽहिः पत्रनाशनः ॥ ३६८ ॥ भोगी भुजङ्गभुजगावुरगो द्विजिह्वव्यालौ भुजङ्गम सरीसृपदीर्घजिह्वाः । काकोदरो विषधरः फणभृत्पृदाकु कर्णकुण्डलिबिलेशयदन्दशूकाः ॥ ३६६॥ दर्जीकरः कचुकिचक्रिगूढपात्पन्नगा जिह्मगलेलिहानौ । कुम्भीनसाशीविषदीर्घपृष्ठाः २ स्याद्राजसर्पस्तु भुजङ्गभोजी ॥ ३७० ॥ ३ चक्रमण्डल्यजगरः पारीन्द्रो वाहसः शयः । ४ अलगर्दो जलव्यालः ५समौ राजिलदुण्डुभौ ॥ ३७१ ॥ ६भवेत्तिलित्सो गोनासो गोनसो घोणसोऽपि च । कुक्कुटादि: कुक्कुटाभो वर्णेन च रवेण च ।। ३७२ ।। नागाः पुनः काद्रवेयाहस्तेषां भोगावती पुरी । १० शेषो नागाधिपोऽनन्तो द्विसहस्राक्ष झालुकः ॥ ३७३ ॥ ३१४ १. ‘सांप’के ३० नाम हैं—सर्पः, अहि: (पुत्री), पवनाशनः, भोगी (-गिन् ), भुजङ्गः, भुजगः, उरगः, द्विजिह:, व्यालः, भुजङ्गमः, सरीसृप:, दीर्घजिहः, काकोदरः, विषधरः - फणभृत्, पृदाकुः, दृक्कर्ण: (+गोकर्णः, चक्षुःश्रवाः-वस् ), कुण्डली (-लिन् ), बिलेशयः, दन्दशूकः, दर्वीकरः, कञ्चुकी ( — किन् ); चक्री (-क्रिन् ), गूढपात् (-दू ), पन्नगः, जिझगः, लेलिहान:; कुम्भीनसः, श्राशीविषः, दीर्घपृष्ठः ॥ २. 'राजस (दुमुहां सांप के २ नाम है— राजसर्पः, भुजङ्गभोजी (- जिन् ) । ३. 'अजगर' के ५ नाम हैं - चक्रमण्डली' ( -लिन् ), अजगर, पारीन्द्र:, वाहसः, शयुः ॥ ४. 'जलमें रहनेवाले सांप के २ नाम है - श्रलगर्दः ( + अलीगर्द: ), जलव्यालः ॥ ५. 'डोंड़ साँप के २ नाम हैं- राजिल:, दुण्डुभः (+दुन्दुभः) ॥ ६. 'पनज जातिका सांप' के ४ नाम हैं - तिलिप्स, गोनास, गोनसः, घोणसः ॥ ७. 'मुर्गे के समान रंग तथा बोली वाले सांप का १ नाम है - कुक टाहिः। ८. 'नाग' ( सामान्य सर्पोंसे भिन्न देव-योनि - विशेषवाले सर्पों के २ नाम हैं - नागाः, काद्रवेयाः ॥ ६. 'उन पूर्वोक्त देवयोनि विशेष वाले सर्पों की नगरी'का १ नाम हैभोगावती ॥ १०. ' शेषनाग के ५ नाम है- शेषः, नागाधिपः, अनन्तः, द्विसहस्राक्षः, - आलुक: (+ एककुण्डलः ) || Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिर्यकाण्ड: ४] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः ३१५ १स च श्यामोऽथवा शुक्लः सितपङ्कजलाञ्छनः। २वासुकिस्तु सर्पराजः श्वेतो नीलसरोजवान् ॥ ३७४ ॥ ३तक्षकस्तु लोहिताङ्गः स्वस्तिकाङ्कितमस्तकः । ४महापद्मस्त्वतिशुक्लो ‘दशबिन्दुक्रमस्तकः ॥ ३७५ ॥ ५शङ्खस्तु पीतो बिभ्राणो रेखामिन्दुसितां गले । ६कुलिकोऽर्द्धचन्द्रमौलि लाधूमसमप्रभः ॥ ३७६ ।। ७अथ कम्बलाश्वतरधृतराष्ट्रबलाहकाः। इत्यादयोऽपरे नागास्तुनत्कुलसमुद्भवाः ।। ३७७ ॥ पनिर्मुक्तो मुक्तनिर्मोकः १. 'उक्त' शेषनागका वर्णश्याम याश्वेत होता है तथा उसके प्रस्तकपर श्वेत कमलका चिह्न होता है। २. जिस सर्प राजका वर्ण श्वेत होता है तथा उसके मस्तकपर श्वेत कमलका चिह्न होता सै, उसका १ नाम है-'वासुकिः ।। ३. जिस सर्पका वर्ण लाल होता है तथा उसके मस्तकपर स्वस्तिकका चिह होता है, उस सर्पका १ नाम हैं-'तक्षकः ॥ . ... ४. जिस सर्पका वर्ण अत्यन्न श्वेत होता है तथा उसके मस्तकपर दश बिन्दुरूप चिह होता है, उस सर्पको १ नाम है-'महापद्मः ।। . ५. जिस सर्ष का वरणं पीला होता है तथा उसके गले (कण्ठ ) में चन्द्रमाके समान श्वेत वर्णकी रेखा होती है, उसका १ नाम है-शिङ्खः॥ ६. जिस सर्पका वर्ण ज्वाला तथा धूएँ के समान होता है तथा मस्तक पर अर्द्धचक्ररूप चिंह रहता है, उसका १ नाम है-'कुलिकः ।। ७. 'कम्बलः, अश्वतरः, धृतराष्ट्रः, बलाहकः' इन चार नाम वाले तथा उनके कुलमें उत्पन्न अन्य 'नाग विशेष' (महानील:,.....) हैं ।। आदिग्रहणाद् महानीलादय, यदा"महानीलः फरहश्व पुप्पदन्तश्च दुर्मुखः । कपिलों वर्मिनः शङ्करोमा चर वीरकः ॥ १॥ एलापत्रः शुक्तिकणे-हस्तिभद्र-धनुञ्जयाः । दधिमुखः समानासोतंसकों दधिपूरणः ॥२॥ हरिद्रको दधिकों मणिः शृङ्गारपिण्डकः । कालियः शङ्खकूटश्च चित्रकः शङ्खचूडकः ॥ ३॥ इत्यादयोऽपरे नागास्तत्तत्कुलप्रसु तयः ॥' इति ।। ८. 'कांचली (केंचुल ) को छोड़े हुए सांप'के २ नाम हैं-निर्मुक्तः,. मुनिर्मोकः ॥ Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणि: - १सविषा निर्विषाश्च ते । २ नागाः स्युर्ह ग्विषा ३ लूमविषास्तु वृश्चिकादयः ॥ ३७८ ॥ व्याघ्रादयो लोमविषा नखविषा नरादयः । लाला विषास्तु लूताद्याः कालान्तरविषाः पुनः ॥ ३७६ ॥ मूषिकाद्या ४ दूषीविषन्त्ववीर्य मौषधादिभिः । कृत्रिमन्तु विषं चारं रश्चोपविषञ्च तत् ॥ ३८० ॥ ६भोगोऽहिकायो ७दंष्ट्राशी दर्वी भोगः फटः स्फटः । फोSE हिकोशे तु निर्व्वनी निर्मोककर चुकाः ॥ ३८१ ॥ १० विहगो विहङ्गमखगौ पतगो विहङ्गः शकुनिः शकुन्तिशकुनौ विवयः शकुन्ताः । - नभसङ्गमो विकिरपत्ररथौ विहायो द्विजपक्षिविष्किरपतत्रिपतत्पतङ्गाः ॥ ३८२॥ पित्सनीडाण्डजोऽगौका -३१६ ९. वे सांप सविष ( विषयुक्त ) तथा निर्विष ( विषरहित ) दो प्रकारके होते हैं | २. 'नाग' दृष्टिविष होते हैं, अर्थात् नाग जिसको देख लेते हैं, उसपर उसके विषका प्रभाव पड़ जाता है ॥ ३. (अब प्रसङ्गप्राप्त अन्य जीवोंमें से किसे कहां विष होता है, इसका वर्णन करते हैं-- (बिच्छू आदि के पूंछ ( डंक ) में, व्याघ्र आदिके लोमोंमें, मनुष्यआदिके नखोंमें, मकड़ी आदि के लारमें विष होता है तथा चूहे आदि ( कुत्ता, स्यार आदि ) कालान्तर विषवाले होते हैं अर्थात् उनके विषका प्रभाव तत्काल न होकर कुछ दिनोंके बाद होता है ॥ ४. जिसे श्रौषध आदि ( मंत्र यन्त्र आदि ) से दूर किया जा सकता है, उसका १ नाम 'दूषीविषम्' है । ५. औषध आदिकें संयोगसे बनाये गये विषके ३ नाम हैं—चारम्, गरः, उपविषम् ॥ ६. 'साँप के शरीर का १ नाम है - भोगः ॥ ७. 'सांपके दाँत ( दाढ़ - इसके काटने से प्राणी नहीं जी सकता है ) 'का १ नाम है - आशीः ॥ ८. 'सांपके फणा' के ५ नाम है— दव, भोगः, फट, स्फट:, फणः ( + न । ३ पु स्त्री ) ॥ ६. कांचली' (केंचुल )के ४ नाम हैं - अहिकोशः, निर्व्वयनी (+ निर्लयनी ), निर्मोकः, कञ्चुकः ( पु न ) ॥ पञ्चेन्द्रिय जीवोंमें स्थलचर जीववर्णन समाप्त || १०. ( ' स्थलचर' पञ्चेन्द्रिय जीवोंका पर्यायादि कहकर अब 'खचर' पञ्चेन्द्रिय (४।४०६ तक) जीवों का पर्यायादि कहते हैं । 'पक्षो, चिड़िया' के २५ नाम है- विहगः, Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिर्यकाण्ड: ४] 'मणिप्रभा व्याख्योपेतः ३१७ -१श्वन्चुश्चञ्चूः सृपाटिका । नोटिश्च २पत्रं पतत्रं पिच्छं वाजस्तनूरुहम् ॥ ३८३ ॥ पक्षो गरुच्छश्चापि ३पक्षमूलन्तु पक्षतिः । ४प्रडीनोडीनसंडीनडयनानि नभोगतौ ॥ ३८४॥ ५पेशीकोशोऽण्डे ६कुलायो नीडे ७केकी तु सर्पभुक् । मयूरबहिणौ नीलकण्ठो मेघसुहृच्छिखी ।। ३८५ ॥ शुक्लापागोप्स्य वाक् केकाविहङ्गमः, खगः, पतगः, विहङ्गः, शकुनिः, शकुन्तिः, शकुनः, विः, वयः, (-यस ), शकुन्तः, नभसङ्गमः, विकिरः, पत्ररथः, विहायः (-यस ), द्विजः, पक्षी (-क्षिन ), विम्किरः, पतत्त्री (-त्रिन् ।+पतत्रिः ), पतन् (-तत् ), पतङ्गः, पित्सन् (-सत् ), नीडजः, अण्डजः, अंगोकाः (-कस्)॥ शेषश्चात्र-भवेत् पक्षिणि चञ्चुमान ।। . कण्ठाग्निः, कीकसमुखो लोमकी रसनारदः । वारङ्ग-नाडीचरणौ ॥” । १. 'चोंच, ठोर के ४ नाम हैं-चञ्चुः, चञ्चूः, सुपाटिका (+सुपाटी), कोटिः ( सब स्त्री)॥ . २. 'पंख'के ८ नाम है-पत्त्रम् , पतत्त्रम, पिच्छम् (+पिञ्छम् ), वाजः, तनूरुहम् ( पुःन ), पक्षः, गरुत्, छदः (२ पु न)। ३. 'पंखकी जड़का १ नाम है-पक्षतिः॥ ४. 'पक्षियोंके उड़नेके गति-विशेष'का क्रमशः १-१ नाम हैप्रडीनम, उड्डीनम्, संडीनम्, डयनम् (+नभोगतिः )॥ ५. 'अण्डे के २ नाम हैं-पेशीकोशः - (+पेशी, कोषः ), अण्डम् (पु न)॥ . ६. 'खोता, घोसला'के २ नाम हैं-कुलायः, नीडः ।। ७. 'मोर' के ८ नाम · हैं-केकी (-किन ), सर्पभुक (-भुज ), मयूरः, . बहिणः (+बहीं,-हिन् ), नीलकण्ठः, मेघसुहृत् (-द् ), शिखी (-खिन् । यौ०शिखावल: ), शुक्लापाङ्गः ॥ शेषश्चात्र-मयूरे चित्रपिङ्गलः । नृत्यप्रियः स्थिरमदः खिलखिल्लो गरव्रतः । मार्जारकण्ठो मरुको मेघनादानुलासकः ।। मयुको बहुलग्रीवो नगावासश्च चन्द्रकी ।" ८. 'मोरकी बोली'का १ नाम है-केका ॥ Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१८ अभिधानचिन्तामणिः -पिच्छं बह शिखण्डकः । प्रचलाकः कलापश्च २मेचकश्चन्द्रकः समौ ॥ ६८६ ॥ ३वनप्रियः परभृतस्ताम्राक्षः कोकिला पिकः । कलकण्ठः काकपुष्टः ४काकोऽरिष्टः सकृत्प्रजः।। ३८७ ॥ आत्मघोषश्चिरजीवी घूकारिः करटो द्विकः। एकदृग्वलिभुग्ध्वाक्षो मौकुलियसोऽन्यभृत् ।। ३८८ ॥ ५वृद्धद्रोणदग्धकृष्णपर्वतेभ्यस्त्वसौ परः। वनाश्रयश्च काकोलो ६मद्गुस्तु जलवायसः ।। ३८६ ॥ . ७के निशाटः काकाधिकौशिकोलूकपेचकाः। . दिवान्धोऽथ निशावेदी कुक्कुटश्चरणायुधः ॥ ३६० ॥ कृकवाकुस्ताम्रचूडो विवृताक्षः शिखण्डिकः। १. 'मोरके पङ्ख'के ५ नाम हैं-पिच्छम्, बहम् (पु न), शिखण्डकः प्रचलाकः, कलापः ।। २. 'मोरके पलके ऊपरी भागमें होनेवाले चन्द्राकार रंगीन चिह्नविशेष के २ नाम है-मेचकः, चन्द्रकः ॥ ३. 'कोयल'के ७ नाम हैं-वनप्रियः, परभृतः (+श्रन्यभृतः, परपुष्टः ), ताम्रान:, कोकिल: (+कोकिला, स्त्री ), पिकः, कलकण्टः, काकपुष्टः ॥ शेषश्चात्र-"कोकिले तु मदोल्लापी काकजातो रतोद्वहः । मधुघोषो मधुकण्ठः सुधाकण्ठः कुहूमुखः॥ घोषयित्नु: पोषांयत्नुः कामतालः कुनालिकः” । ४. 'कौवे' के १४ नाम हैं-काकः, अरिष्टः, सकृत्प्रजः, प्रारमघोषः, चिरजीवी (- विन् ), घूकारिः, करटः द्विकः, एंकटक (श ), बलिभुक् (-ज । +बलिपुष्टः ), ध्वाक्षः, मौकुलिः, वायसः, अन्यभृत् ।। ५. 'विभिन्न जातीय कौवो'का १-१ नाम है-वृद्धकाकः, द्रोणकाकः (+दोणः ), दग्धकाकः, कृष्णकाकः, पर्वतकाकः, वनाश्रयः, काकोलः ।। ६. 'जलकौवे'के २ नाम हैं-मद्गुः, जलवायसः ॥ ७. 'उल्लू के ७ नाम हैं-घूकः, निशाटः, काकारिः, कौशिकः, उलूकः, पेचकः, दिवान्धः ।। ८. 'मुर्गे'के ७ नाम हैं-निशावेदी ( - दिन् ), कुक्कुट: (पु न ), चरणायुधः, कृकवाकुः, ताम्रचूडः, विवृताक्षः, शिखण्डिकः॥ शेषश्चात्र-"कुक्कुटे तु दीर्घनादश्चर्मचूडो नुखायुधः । मयूरचटकः शौण्डो रणेच्छुश्च कलाधिकः ॥ आरणी विष्किरो बोधिनन्दीक: पुष्टिवर्धनः । चित्रवाजो महायोगी स्वस्तिको मणिकण्ठकः ।। उषाकीलो विशोकश्च ब्राजस्तु प्रामकुक्कुटः । Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१६ तिर्यकाण्ड: ४] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः १६साश्चक्राङ्गवक्राङ्गमानसौकासितच्छदाः॥ ३६१ ।। राजहंसास्त्वमी चन्चुचरणैरतिलोहितः।। ३मल्लिकाक्षास्तु मलिनैर्धातराष्ट्राः सितेतरैः।। ३६२॥ ५कादम्बास्तु कलहंसाः प्रक्षः स्युरतिधूसरैः। ६वारला वरला हंसी वारटा वरटा च सा ।। ३६३ ॥ ७दार्वाघाटः शतपत्रः खञ्जरीटस्तु खञ्जनः। सारसस्तु लक्ष्मणः स्यात्पुष्कराख्यः कुरङ्करः ॥ ३६४॥ १०सारसी लक्ष्मणा११ऽथ कङ्क्रौञ्चे १. 'हंसो के ५ नाम हैं-हंसाः, चक्राङ्गाः, वक्राङ्गाः, मानसौकसः (- कस् ), सितच्छदाः ॥ शेषश्चात्र-"हंसेषु तु मरालाः स्युः ।" २. 'अधिक लाल रंगके चोच और पैरवाले हंसों'का १ नाम हैराजहंसः ॥ .. ३. 'मलिन (धूमिल ) चोंच तथा चरणोवाले हंसोका १ नाम है-मल्लिकाक्षाः॥ __४. काले रंगके चोंच तथा चरणोंवाले हंसो'का १ नाम है-धार्तराष्ट्राः ॥ . ५. 'अत्यन्त धूसर रंगके पंखोवाले हंसों के २ नाम हैं-कादम्बाः, कलहंसाः ॥ विमर्श-राजहंस' (३६२ ) से यहां तक सब पर्यायोंमें बहुत्व अवि- ' क्षित होनेसे एकवचनमें भी इन शब्दोंका प्रयोग होता है )॥ .. ६. 'हंसी' के नाम हैं-वारला, वरला, हंसी, वारटा, वरटा ।। ७. 'कठफोरवा पक्षी'के २ नाम हैं-दाघाटः, शतपत्रः ।। ८. 'खान ( खड़लिच ) पक्षी' के २ नाम हैं-खञ्जरीट:, खञ्जनः॥ ___E. 'सारस पक्षी'के ४ नाम हैं-सारसः, लक्ष्मणः, पुष्कराख्यः ('कमल' के वाचक सब पर्याय अतः-कमलः, जलजः,""""""") कुरङ्करः ।। शेषश्चात्र-“सारसे दीर्घजानुकः । - गोनदों मैथुनी कामी श्येनाक्षो रक्तमस्तकः ॥ १०. सारसी' (मादा सारस पक्षी ) के २ नाम है-सारसी, लक्ष्मणा (+लक्ष्मणी)॥ ११. क्रौञ्च पक्षी' के २ नाम है-क्रुङ (-ञ्च्), क्रौञ्चः (पु । क्रुञ्चा, स्त्री)॥ Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२० अभिधानचिन्तामणिः -श्चाषे किकीदिविः । २चातकः स्तोकको बप्पीहः सारङ्गो नभोऽम्बुपः ॥ ३६५ ।। ३चक्रवाको रथाङ्गाह्वः कोको द्वन्द्वचरोऽपि च । ४टिट्टिभस्तु कटुक्काण उत्पादशयनश्च सः ।। ३६६ ॥ ५चटको गृहबलिभुक् कलविङ्कः कुलिङ्ककः । क्ष्योषित्तु तस्य चटका ७स्त्र्यपत्ये चटका तयोः ।। ३६७ ॥ पुमपत्ये चाटकैरोदात्यूहे कालकण्टकः।। जलरङ्कजेलरञ्जो १०बके कहो बकोटवत् ।। ३६८॥ ११बलाहकः स्यादलाको १२वलाका विसकण्ठिका।.. १. 'चास पक्षी'के २ नाम हैं-चाषः, किकीदिविः (+किकिदीबिः, किकी, दिविः)॥ . २. 'चातक पक्षी'के ५ नाम हैं-चातकः, स्तोककः, बप्पीहः, सारङ्गः, नभोऽम्बुपः ॥ ३. 'चकवा पक्षी'के ३ नाम हैं-चक्रवाकः, रथाङ्गाहः ('पहिया के वाचक सब नाम, अत:-रथाङ्गः, चक्रः,), कोकः, द्वन्द्वचरः ॥ ४. 'टिटिहिरी पक्षी'के ३ नाम हैं-टिटिभः (+टीटिभः ), कटुकवाणः, उत्पादशयनः ॥ ५. गौरेया पक्षी'के ४ नाम हैं-चटकः, गृहबलिभुक् (- ज ), कलविङ्कः, कुलिङ्ककः (+कुलिङ्गः )॥ ६, 'मादा गौरैया पक्षी (गौरैया पक्षी की स्त्री )'का १ नाम है चटका॥ ____७. 'उन दोनोंकी मादा सन्तान (स्त्रीबातीय बच्चे .)'का १ नाम हैचटका॥ ८. 'उन दोनोंकी नर सन्तान ( पुरुष जातीय बच्चे )'का १ नाम हैचाटकरः॥ ६. 'जलकौवा'के ४ नाम हैं-दात्यूहः (+ दात्योहः ), कालकण्टक: (+कालकण्ठकः ), जलरङकुः, जलरक्षः ।। १०. 'बगुले'के ३ नाम हैं-बकः, कहः, बकोटः॥ ११. 'बगलाजातीय पक्षि-विशेष,या 'बाक' पक्षी'के २ नाम है--बलाहकः, बलाकः ( पु +नि स्त्री)। __ १२. 'बगली, बगलेकी स्त्री'के २ नाम हैं-बलाका, विसकण्ठिका (+विसकण्टिका, बकेरुका )। Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिर्यकाण्ड: ४] मणिप्रभाव्याख्योपेतः ३२१ १भृङ्गः कलिङ्गो धूम्याटः २कङ्कस्तु कमनच्छदः ॥ ३६६ ।। लोहपृष्ठो दीर्घपादः कर्कटः स्कन्धमल्लकः । चिल्लः शकुनिरातापी ४श्येनः पत्त्री शशादनः ॥ ४००॥ पदाक्षाय्यो दूरहग्गृध्रोऽथोत्क्रोशो मत्स्यनाशनः। पुररः ७कीरस्तु शुको रक्ततुण्डः फलादनः॥४०१॥ पशारिका तु पीतपादा गोराटी गोकिराटिका । स्याच्चर्मचटकायान्तु जतुकाऽजिनपत्रिका ।। ४०२॥ १०वल्गुलिका मुख विष्ठा परोष्णी तैलपायिका । ११ककरेटुः करेटुः स्यात्करटुः कर्कराटुकः॥ ४०३ ॥ १२ाटिरातिः शरारिः स्यात् १३कृकणककरौ समौ । १. 'भुजङ्गा पक्षी' के ३ नाम है-भृङ्गः, कलिङ्गः, धूम्याटः ।। २. 'कङ्क पक्षी'के ६ नाम हैं-कङ्कः, कमनच्छदः, लोहपृष्ठः, दीर्घपादः, कटः, स्कन्धमल्लकः ।। ३. 'चील पक्षी'के ३ नाम हैं-चिल्लः, शकुनिः, आतापी (-पिन् । + पातायी-यिन)॥ ४. 'बाज पक्षी'के ३ नाम हैं-श्येनः, पत्री (-त्रिन् ), शशादनः ॥ ५. गीध के ३ नाम हैं-दाक्षाय्यः, दूरदृक् (-दृश् ), गृध्रः ॥ शेषश्चात्र-गृध्रे तु पुरुषव्याघ्रः कामायु: कुणितेक्षणः । सुदर्शनः शकुन्याजौ।" ६. कुरर पक्षी' के ३ नाम हैं-उत्कोशः, मत्स्यनाशनः, कुररः॥ ७. 'सुग्गे, तोते'के '४ नाम हैं-कीर:, शुकः, रक्ततुण्डः, फलादनः . (+मेधावी-विन् ) ॥ . शेषश्चात्र-“शुके तु प्रियदर्शनः ।। श्रीमान् मेधातिथिर्वाग्मी ।" ८. मैना पक्षी'के ४ नाम है -शारिका, पीतपादा, गोराटी, गोकिरा टिका (+ गोकिराटी)॥ . ६. 'चमगादड़ के ३ नाम हैं-चर्मचटका, जतुका, अजिनपत्रिका ॥ १०. 'चपड़ा नामक कीट-विशेष'के ४ नाम हैं-बल्गुलिका, मुखविष्ठा, 'परोष्णी, तैलपायिका (+निशाटनी)। ११. 'एक प्रकार के सारसजातीय पक्षी'के. ४ नाम हैं-कर्करेटुः, करेटुः, करटुः, कर्कराटुकः, (+कर्करराटुः )॥ १२ 'श्राडी पक्षी' के ३ नाम हैं-आटि:, आतिः, शरारि: ( सब स्त्री) ॥ १३. 'तीतरकी जातिके पक्षी,या अशुभ बोलनेवाले पक्षि-विशेष'के २ नाम, है-वृकणः, क्रकरः॥ २१ अ० चि० Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२२ अभिधानचिन्ताभरणः १भासे शकुन्तः २कोयष्टौ शिखरी जलकुक्कुभः ॥ ४०४ ॥ ३पारापतः कलरवः कपोतो रक्तलोचनः । ४ ज्योत्स्नाप्रिये चलचच कोरविषसूचकाः ॥ ४०५ ॥ पूजीवंजीवस्तु गुन्द्रालो विपदर्शन मृत्युकः । ६ व्याघ्राटस्तु भरद्वाजः ७प्लवस्तु गात्रसंप्लवः ।। ४०६ ।। प्रतित्तिरिस्तु खरकोणो हहारीतस्तु मृदङ्करः । १० कारण्डवस्तु मरुतः ११ सुगृहञ्चचुसूचिकः ॥ ४०७ ॥ १२कुम्भकारकुक्कुटस्तु कुक्कुभः कुहकस्वनः । १३ पक्षिणा येन गृह्यन्ते पक्षिणोऽन्ये स दीपकः ॥ ४०८ ॥ १. 'भास पक्षी' के २ नाम हैं-भासः, शकुन्तः ॥ २. 'एक जलचारी पक्षि- विशेष' के ३ नाम हैं—कोयष्टिः शिखरी (- ग्नि ), जलकुक्क भः ॥ ३. 'कबूतर' के ४ नाम है - पारापतः ( + पारावतः ), कलरवः, कपोतः, रक्तलोचनः ॥ ४. ' चकोर पक्षी' के ४ नाम हैं- ज्योत्स्नाप्रियः, चलचञ्चुः, चकोरः, विषसूचकः !! विमर्श - विषमिश्रित अन्नादि देखने से चकोरकी आखोका रंग बदल जाता है, अत एव इसका नाम 'विषसूचक' पड़ा है ॥ ५. 'जीवंजीव ' नामक पक्षि- विशेष, या चकोर विशेषश्के ३ नाम हैंजीवजीवः, गुन्द्रालः, विषदर्शनमृत्युकः ॥ ६. 'भरद्वाज (भरदुल ) पक्षी' के २ नाम हैं - व्याघ्राटः, भरद्वाजः ॥ ७. 'बलमुर्गा या कारण्डव पक्षी ( कागके समान चोंच तथा लम्बे पैर या काले रंग के पक्षी' के २ नाम है-प्लवः, गात्रसंप्लवः ॥ • ८. 'तीतर' के २ नाम हैं - तित्तिरिः, खरकोणः ॥ ६. ' हारिल, हारीत पक्षी' के २ नाम हैं - हारीतः, मृदङ्करः ॥ १०. 'बत्तख या एक प्रकार के हंसजातीय पक्षी' के २ नाम हैं - कारण्डवः, मरुलः ॥ ११. 'वया पक्षी' के २ नाम हैं-सुगृहः, चञ्चुसूचिकः ॥ १२. 'वनमुर्गा पक्षी' के ३ नाम - कुम्भकारकुक्कुट, कुक्कुमः, कुहकस्वनः ॥ १३. ‘जिस पक्षीके द्वारा दूसरी पक्षी पकड़े जाते हैं, उस (बाज श्रादि ) पकड़नेवाले पक्षी' का १ नाम है - दीपक: ।। १. तदुक्तम् — “ चकोरस्य विरज्येते नयने विषदर्शनात् ॥” Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२३ तिर्यककाण्ड: ४] मणिप्रभा'व्याख्योपेतः श्छेका गृह्याश्च ते गेहासक्ता ये मृगपक्षिणः। २मत्स्यो मीनः पृथुरोमा झषो वैसारिणोऽण्डजः॥ ४० ॥ सहचारी स्थिरजित आत्माशी स्वकुलक्षयः। विसारः शकली शल्की शेवरोऽनिमिषस्तिमिः॥४१०॥ ३सहस्रदंष्ट्र वादालः ४ पाठीने चित्रवल्लिकः। ५शकुले स्यात् कलको६ऽथ गडकः शकुलार्भकः ॥ ४११ ॥ ७उलूपी शिशुके प्रोष्ठी शफरः श्वेतकोलके । हनलमीनश्चितिचिमो १०मत्स्यराजस्तु रोहितः ।। ४१२ ।। ११मद्गुरस्तु राजशृङ्गः १२शृङ्गी तु मद्गुरप्रिया । १. 'पालतू पशु-पक्षियों के २ नाम हैं-छेकाः, गृह्याः॥ पञ्चेन्द्रिय जीववर्णनमें खचर जीव वर्णन समाप्त । २. (श्राकाशगामी पञ्चेन्द्रिय बीवोंका पर्याय कहकर अब जलचर पञ्चेन्द्रिय जीवों का पर्याय कहते हैं-)10 'मछली'के १६ नाम है-मस्यः (+मत्स: ), मीनः, पृथुरोमा (-मन् ), अषः, वैसारिणः, अण्डजः, सङ्घचारी (-रिन् ), स्थिरजिह्वः, प्रात्माशी (-शिन, स्वकुलक्षयः, विसारः, शकली (-लिन ), शल्की (-ल्फिन ), संवरः, अनिमिषः, तिमिः ॥ शेषश्चात्र-“मत्स्ये तु जलपिप्पकः । मूको जलाशयः शेवः ॥ ३. 'पहिना मछली, बोदाफ के २ नाम हैं- सहस्रदंष्ट्रः, बादालः ।। शेषश्चात्र-"सहस्रदंष्ट्रस्त्वेतनः । जलबालो वदालः ।। ४. 'पाठीन मछली'के २ नाम है-पाठीनः, चित्रवल्लिकः, ॥ शेषश्चात्र-अथ पांठीने मूदुपाठकः ।" ५. 'सहरी मछली के २ नाम है.-शकुलः, कलकः ॥ ६. 'गडुई मछली के २ नाम हैं-गडकः, शकुलार्भकः ।। ७. 'सूस'के २ नाम हैं-उलूपी (उलूपी (-पिन् ।+उलुपी, उलपी, २-पिन् ), शिशुक्र: (+शिशुमारकः )।। ८. सौरी मछली'के ३ नाम है-प्रोष्ठी (-ष्ठिन् ), शफरः, (पु स्त्री ), श्वेतकोलकः ।। ६. 'अधिकतर नरसलमें रहनेवाली मछली'के २ नाम हैं-जलमीनः (+नडमीनः ), चिलिचिमः, (+चिलिचीमः)॥ १०. 'रोहू मछली के २ नाम हैं-मत्स्यराजः, रोहितः॥ ११. 'मांगुर, मोंगदरा मछली के २ नाम हैं-मद्गुरः, राजशृङ्गः॥ १२. 'सिन्धी मछली ( मादा जातिकी मांगुर मछली ) के २ नाम हैंशृङ्गी, मद्गुरप्रिया ॥ Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२४ अभिधानचिन्तामणिः १ क्षुद्राण्डमत्स्यजातन्तु पोताधानं जलाणुकम् ॥ ४१३ ॥ २महामत्स्यास्तु चीरिल्लितिमिङ्गिलगिलादयः । ३ यादांसि नकाद्या हिंसका जलजन्तवः ॥ ४१४ ॥ ४नक्रः कुम्भीर श्रलास्यः कुम्भी महामुखोऽपि च । तालुजिह्नः शङ्खमुखो गोमुखो जलसूकरः ।। ४१५ ।। ५शिशुमारस्त्वम्बुकर्म उष्णवीर्यो महावसः । ६न्द्रस्तु जलमार्जारः पानीयनकुलो वसी ७प्राहे तन्तुस्तन्तुनागोऽवहारो नागतन्तुणौ । - श्रन्येऽपि यादोभेदाः स्युर्बहवो मकरादयः || ४१७ ॥ कुलीरः कर्कटः पिङ्गचक्षुः पार्श्वोदरप्रियः । द्विधागतिः षोडशांह्निः कुर चिल्लो बहिश्चरः ॥ ४१८ ॥ ४१६ ॥ १. ' जीरा (अण्डे से निकली हुई बहुत-सी छोटी-छोटी मछलियोंका समुदाय - जिन्हें 'मत्स्यबीज' भी कहते हैं, उस ) के २ नाम है- पोताधानम्, जलाशुकम् ॥ २. 'बहुत बड़ी-बड़ी मछलियों' का पृथक १ - १ नाम है - वे - ' ची रिक्षिः, तिमिङ्गिलगिल:' इत्यादि ( नन्द्यावर्तः, ) हैं ॥ १ नाम है - यादांसि ३. 'मगर आदि हिंसक जलचर जीवों का (-दस् न ) ।। ४. (वे 'याद' अर्थात् हिंसक जलचर जीव ये हैं -) 'नक्र, मगर, घड़ियाल' के ६ नाम हैं-नक्र:, कुम्भीरः, श्रालास्यः, कुम्भी ( - म्भिन् ), महामुखः, तालुजिह्वः, शङ्खमुख: (+शङ्कमुख: .), गोमुखः, जलसूकरः ।। ५. 'सूस' के ४ नाम हैं- शिशुमारः, अम्बुकूर्मः, उष्णवीर्य, महावसः ॥ ६. 'जलांबलाव' के ४ नाम हैं - उद्र:, जलमार्जारः पानीयनकुलः, वसी (-fea) 11 ७. 'ग्राह या मगर' के ६ नाम है - ग्राहः, तन्तुः, तन्तुनागः, अवहारः, नागः, तन्तुण:, ( + वरुणपाश: ) ।। ८. अन्य भी हिंसक जलचर जीवोके मकर:, " ' ('आदि' से 'शङ्कु फणी, णिन्,་~~~~~~~~~~') भेद हैं । ६. 'कंकड़े के ८ नाम है - कुलीर: (पुन), कर्कट : ( + कर्क : ), पिङ्गचक्षुः, (-क्षुष् ), पाश्र्वदिरप्रियः, द्विधागतिः, षोडशांहि:, कुरचिल्लः, बहिश्चरः ॥ Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२५ तिर्यक काण्डः ४] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः . १कच्छपः कमठः कूमः क्रोडपादश्चतुर्गतिः । पञ्चाङ्गगुप्तदौलेयौ जीवथः २कच्छपी दुली ।। ४१६ ॥ ३मण्डूके हरिशालूरप्लवभेकप्लवङ्गमाः। वर्षाभूः प्लवगः शालुरजिह्वव्यङ्गदर्दुराः ॥ ४२० ॥ ४स्थले नरादयो ये तु ते जले जलपूर्वकाः। प्रअण्डजाः पक्षिसर्पाद्याः ६पोतजाः कुञ्जरादयः ॥ ४२१॥ ७रसजा मद्यकीटाद्या नृगवाद्या जरायुजाः। यूकाद्याः स्वेदजा १०मत्स्यादयःसम्मूच्र्छनोद्भवाः॥४२२॥ ११खञ्जनास्तूद्भिदो १. 'कछुए के ८ नाम है-कच्छपः, कमठः, कूर्मः, क्रोडपाद:, चतुर्गतिः, पञ्चाङ्गगुप्तः, दौलेयः, जीवथः, (+उहारः)॥ २. 'मादा (स्त्री-जातीय कछुआ, कछुई )के २ नाम हैं-कच्छपी, दुली ॥ ३. 'मेंढक, बैंग के १२ नाम है-मण्डूकः, हरिः, शालूरः, प्लवः, भेकः, प्लवनमः, वर्षाभूः (पु), प्लवगः, शालुः, अजिङ्गः, व्याः, दर्दुरः ।। ४. स्थलचारी बितने नर श्रादि (स्थलनरः, स्थलहस्ती (स्तिन ),... जीव है, वे पूर्व में (स्थल' शब्दके स्थानमें ) जल' शब्द जोड़नेसे 'जलनरः, बलहस्ती (-स्तिन् ), जलतुरङ्गः,...'उन्हीं जलचर बीवोंके पर्याय हो जाते ५. 'पक्षी, सांप, श्रादि ('आदि से 'मछली, इत्यादि) जीव 'अण्डवाः' अर्थात् अण्डेसे उत्पन्न होनेवाले हैं । ६ 'हाथी आदि ('आदि से साही, इत्यादि जीव 'पोतजाः' अर्थात् जरायुरहित गर्म से उत्पन्न होनेवाले हैं। ७. मद्यके कीड़े श्रादि ('आदि से घी, इत्तुरस, इत्यादि ) जीव 'सजा' अर्थात् 'रस'से उत्पन्न होनेवाले हैं।.. ८. 'मनुष्य, गौ, श्रादि ('आदि से भैंसा, सूअर, अज इत्यादि ) जीव 'जरायुजाः' अर्थात् गर्भसे उत्पन्न होनेवाले हैं । ___६. 'जू, श्रादि ('पादि' से खटमल, मच्छड़, इत्यादि) जीव 'स्वेदजाः' अर्थात् पसीनेसे उत्पन्न होनेवाले हैं। १०. मछली आदि ('श्रादि से सांप इत्यादि ) जीव 'संमूर्छनोद्भवाः' अर्थात् 'संमूर्छन' ( सघन होने, अधिक बढ़ने से ) उत्पन्न होने वाले हैं। ११. 'खञ्जन' इत्यादि ('आदि से टिड्डो, फतिंगे, इत्यादि) जीव 'उद्भिदः' (-भिद् ) अर्थात् पृथ्वी के भीतरसे उत्पन्न होने वाले हैं । Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२६ अभिधानचिन्तामणिः १ऽयोपपादुका देवनारकाः। २७सयोनय इत्यष्टा३वुद्भिदुद्भिज्जमुद्भिदम् ॥ ४२३ ।। इत्याचार्यहेमचन्द्रविरचितायाम् “अभिधानचिन्तामणि-- नाममालायां" चतुर्थस्तिर्यकाण्डः समाप्तः ॥ ४॥ १. देव तथा नारक अर्थात् देवता तथा नरकवासी जीव. 'उपपादुकाः' भर्थात् स्वयमेव उत्पन्न होनेवाले हैं। २. ये ८ (अण्ड, पोत, रस, जरायु, स्वेद, सम्मूर्छन, उद्भिद् और उपपादुक) 'सयोनयः' अर्थात् जीवोंके उत्पत्तिस्थान हैं ॥ . . . ३. 'उद्भिद्' ( पृथ्वीको फोड़कर पैदा होनेवले . वृक्ष, लता, धान्य श्रादि ) के गम हैं-उद्भिद्, उद्भिवम् , उद्भिदम् ॥ । इस प्रकार त्य-व्याकरणाचार्यादिपविभूषितमिभोपाह भीहरगो . विन्दशा.चित 'मणिप्रभा' व्याख्या में चतुर्थ 'तिर्यक्कार समाप्त हुआ ॥ ४ ॥ Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अथ नारककाण्डः ॥५॥ १स्युनारकास्तु परेतप्रेतयात्यातिवाहिकाः। २आजूर्विष्टिातना तु कारणा तीव्रवेदना ॥१॥ ४नरकस्तु नारकः स्याभिरयो दुर्गतिश्च सः।। ५घनोदधिधनवाततनुवातनमास्थिताः ॥२॥ ६रत्नशर्करावालुकापधुमतमःप्रभाः ।। महातमःप्रभा चेत्यधाऽधो नरकभूमयः ॥ ३ ॥ क्रमात्पृथुतरा: सप्ताथ त्रिंशत्पञ्चविंशतिः। पञ्चदश दश त्रीणि लक्षाण्यूनञ्च पञ्चभिः॥४॥ लक्षं पञ्च च नरकावासाः सीमन्तकादयः। एतासु स्युः क्रमेणा १. 'नारकीयों (नरकवासियों ) के ५ नाम है-नारकाः (यौ० - नारकिकाः, नैरयिकाः, नारकीयाः,.....), परेताः, प्रेताः, यात्याः, अतिवाहिकाः ॥ . २. 'नरकमें बलपूर्वक फेंकने या ढकेलने के .२ नाम है-आजः, विष्टिः (२ स्त्री)॥ . ३. 'नरकके घोर कष्ट'के ३ नाम है-यातना, कारणा, तीव्रवेदना ॥ ४. 'नरक के ४ नाम है .-नरकः, नारकः, निरयः, दुर्गतिः (ची पु)॥ ५. 'प्रकाशमें स्थित नरकोंके. तीनों वायु'के १-१ नाम है-धनोदधिः, धनवातः, तनुवातः ॥.. . ६. रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, वालुकाप्रभा, पङ्कप्रभा, धूमप्रमा, तमःप्रभा, महातमःप्रभा' ये ७ नरकभूमि क्रमशः एक दूसरीसे बड़ी तथा नीचे-नीचे स्थित हैं। . . शेषभात्र-“अथ रत्नप्रभा धर्मा वंशा तु शर्कराप्रमा। स्याद्वालुकाप्रभा शला भवेत्पप्रभाऽखना । धूमप्रभा पुना रिष्टा माधव्या तु तमःप्रभा । महातमःप्रभा माधव्येवं नरकभूमयः ॥" ७. पूर्वोक्त ( ५।३-४) रत्नप्रभा,"....' सात नरकभूमियोंमें तीस लाख, पच्चीस लाख, पन्द्रह लाख, दश लाख, तीन लाख, पांच कम एक लाख (निन्यानबे हजार नौ सौ पंचानबे और केवल पांच । सब योग चौरासी लाख), Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२८ अभिधानचिन्तामणिः श्थ पातालं वडवामुखम् ।। ५ ।। बलिवेश्माधोभुवनं नागलोको रसातलम् । रन्ध्र बिलं निर्व्यथनं कुहरं शुषिरं शुषिः ॥ ६॥ छिद्रं रोपं विवरं च निम्न रोकं वपान्तरम्। ३गर्तश्वभ्रावटागाधदरास्तु विवरे भुवः ॥ ७॥ इत्याचार्यहेमचन्द्रविरचितायाम् “अभिधानचिन्तामणिनाममालायां प..मो नारककाण्डः समाप्तः ।। ५॥ .. ... सीमन्तक आदि ('आदि' से 'रौद्र, हाहारव, घातन,......) नरकावास (रत्नप्रभा पृथिवोके प्रथम प्रतरका मध्यवर्ती नरककेन्द्र) होते हैं। १. पाताल'के ६ नाम है-पातालम्, वडवामुखम्, बलिवेश्म (-श्मन् ), अधाभुवनम् नागलोकः, रसातलम् (+रसा, तलम् )। . २. 'बिल, छिद्र'के १३ नाम है-रन्ध्रम् , बिलम् , नियंथनम् , कुहरम् , शुषिरम् , शुषिः (स्त्री । + पु.। सुषिरम् ), छिद्रम् , रोपम् , विवरम् , निम्नम्, रोकम, वपा, अन्तरम् ॥ ३. 'गढे'के ५ नाम है-गतः, श्वभ्रम् , अवटः, अगाध:, दरः (त्रि)॥ इस प्रकार साहित्यव्याकरणाचर्यादिदिपदविभूषितमिश्रोपाहीहरगोविन्द शास्त्रिविरचित 'मणिप्रभा' व्याख्यामें पञ्चम .. 'नारककाण्ड' समाप्त हुआ ॥ ५ ॥ Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अथ सामान्यकाण्डः ॥६॥ १स्याल्लोको विष्टपं विश्व भुवनं जगती जगत् । २जीवाजीवाधारक्षेत्र लोकोऽलोकस्ततोऽन्यथा ॥ १ ॥ ३क्षेत्रज्ञ आत्मा पुरुषश्चेतनः ४स पुनर्भवी। जीवः स्यादसुमान सत्त्वं देहभृज्जन्युजन्तवः ।। २ ।। ५उत्पत्तिर्जन्मजनुषी . जननं जनिरुद्भवः। ६जीवेऽसुजीवितप्राणा जीवातुर्जीवनौषधम् ॥ ३ ॥ श्वासस्तु श्वसितं हसोऽन्तर्मुख उच्छ्वास आहरः । आनो १. ( मुक्त देवाधिदेव तथा चार गतियोवाले देव, मयं, तिर्यञ्च और नारक असाधारण अङ्गोंके साथ पांच काण्डोंमें कह चुके हैं, अब तत्साधारणको कहनेवाला यह षष्ठः काण्ड कह रहे हैं-) 'लोक' के ६ नाम हैं-लोकः, विष्टपम् (पुन ), विश्वम् , भुवनम् (पु न), जगती, नगत् (न)। २. 'बीवो' (एकेन्द्रिय श्रादि प्राणियों) तथा 'श्रजीवों' ( उन जीवोंसे भिन्न धर्मास्तिकाय आदि प्राणियों के आधारभूत क्षेत्र का 'लोक' १ नाम है और उस लोकसे भिन्न श्राकाशादि रूप का 'अलोकः' १ नाम है ।। ३. 'आत्मा'के ४ नाम हैं-क्षेत्रशः, आस्मा (- त्मन् पु), पुरुषः, चेतनः (+जीव:)॥ ४. 'जीवात्मा के ७ नाम है-भवी (- विन् ), जीवः, असुमान् (- मत् । प्राणी, - णिन् ), सत्वम् (पुं न ), देहभृत् (+देहभान , - ज; शरीरी, - रिन;""..."), जन्युः , जन्तुः (पुन । शेष पु)॥ ५. 'जन्म, उत्पत्ति के ६ नाम हैं-उत्पत्तिः, जन्म (- मन ।+जन्मम् ), जनुः ( - नुम् । २ न), जननम् , जनिः (स्त्री), उद्भवः ।। ६. 'प्राण'के ४ नाम है-जीवः (त्रि), असवः (- सु, पु ब. व.), जीवितम् (+जीवातु:), प्राणाः (पु ब० ० ) ॥ ७. 'जीवन-रक्षाके उपाय के २ नाम है-जीवातुः (पु न ), जीवनौषधम् ।। ८. 'श्वास, सांस' के २ नाम है-श्वासः, श्वसितम् ।। ६. 'अन्तर्मुख (मध्य वृत्तिवाले ) उस श्वास' के ३ नाम हैं-उच्छवासः, आहरः, आनः il Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३० अभिधानचिन्तामणिः -१बहिर्मुखस्तु स्याग्निःश्वासः पान एतनः ॥ ४॥ . . आयुर्जीवितकालो३ऽन्तःकरणं मानसं मनः । हृच्चेतो हृदयं चित्तं स्वान्तं गूढपथोच्चले ॥१॥ ४मनसः कर्म सङ्कल्पः स्यापूदयो शर्म निवृतिः। सातं सौख्यं सुखं दुःखन्त्वसुखं वेदना व्यथा ॥ ६ ॥ पीडा बाधाऽर्तिराभीलं कृच्छं कष्टं प्रसूतिजम्। आमनस्य प्रगाढश्च स्यादाधिर्मानसी व्यथा ॥ ७ ॥ सपत्राकृतिनिष्पत्राकृती त्वत्यन्तपीडने । .... शुज्जाठराग्निजा पीडा १०व्यापादो द्रोहचिन्तनम् ॥८॥ ११उपज्ञा ज्ञानमाद्यं स्या १२च्चचो सङ्ख्या विचारणा। . १३वासना भावना संस्कारोऽनुभूताद्यविस्मृतिः ॥ ६ ॥ १. 'बहिर्मुख ( बाहर निकलनेवाले) उस श्वास'के ३ नाम हैं-नि:श्वासः, पानः, एतनः ॥ २. 'आयु ( उम्र ) के . २ नाम हैं-आयुः (- युस् , न ।+आयु - यु, पु), जीवितकालः ।। ३. 'अन्तःकरण, हृदय'के १० नाम है-अन्तःकरणम्, मानसम् , मनः (- नस् ), हृत् ( - द्), चेतः (तस् ), हृदयम् , चित्तम् , स्वान्तम् , गूढपथम् , उच्चलम् (+ अनिन्द्रियम् )। ४. 'मानसिक कर्म'का १ नाम है--सङ्कल्पः (+विकल्पः)।। . ५. 'सुख'के ५ नाम हैं-शर्म (- मन , पु ।+शर्मम् ), निवतिः, सातम् , सौख्यम् , सुखम् ॥ ६. 'दुःख'के १३ नाम हैं-दुःखम् , असुखम् , वेदना, व्यथा, पीडा, बाधा (+बाध: ), अतिः, भाभीलम्, कृच्छम् , कष्टम् , प्रसूतिजम् , आमनस्यम् , प्रगाढम् ॥ ७. 'मानसिक पीडा'का १ नाम है-प्राधिः (पु)॥ ८. 'अत्यधिक पीडा' के २ नाम है--सपत्राकृतिः, निष्पत्राकृतिः ।। • ६. 'भूख'का १ नाम है-दुत् ( - धू ।+तुधा)॥ १०. 'किसी के साथ द्रोह करनेके विचार'का,१ नाम है-व्यापादः ।। ११. 'पहले होनेवाले ज्ञान'का १ नाम है-उपशा । ( यथा-पाणिनिकी, उपजा ( अष्टाध्यायी 'सूत्रपाठ...)॥ १२. 'चर्चा' के ३ नाम हैं-चर्चा (+चर्चः ), सङ्ख्या, विचारणा ॥ १३. 'संस्कार ( पहले अनुभूत, दृष्ट या श्रुत विषयके स्मरण होने ) के ३ नाम हैं-वासना, भावना, संस्कारः ॥ Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सामान्यकाण्ड: ६ ]. मणिप्रभा'व्याख्योपेतः । ३३१ १निर्णयो निश्चयोऽन्तः २सम्प्रधारणा समर्थनम् । ३अविद्याऽहमत्यज्ञाने भ्रान्तिमिथ्यामतिभ्रंमः ॥ १० ॥ ५सन्देहद्वापराऽऽरेका, विचिकित्सा च संशयः। ६परभागो गुणोत्कर्षो ७दोषे त्वादीनवासवौ ॥ ११ ॥ . स्वादूपं लक्षणं भावश्चात्मप्रकृतिरीतयः। सहजो रूपतत्त्वञ्च धर्मः सर्गो निसर्गवत् ।। १२ ॥ शीलं सतत्त्वं संसिद्धिष्टरवस्था तु दशा स्थितिः । १०स्नेहः प्रीतिः प्रेमहाः ११दाक्षिण्यन्त्वनुकूलता ॥ १३ ॥ १२विप्रतिसारोऽनुशयः पश्चात्तापोऽनुतापश्च । १३अवधानसमाधानप्रणिधानानि तु समाधौ स्युः॥ १४ ॥ ५४धर्मः पुण्यं वृषः श्रेयः सुकृते-. १. निर्णय के ३ नाम हैं-निर्णयः, निश्चयः, अन्तः ॥ २. 'समर्थन के २ नाम है-सम्प्रधारणा, समर्थनम् ।। ३. 'अविद्या ( भनित्य एवं अशुचि श्रादिको नित्य एवं शुचि समझने) के ३ नाम है-अविद्या, अहंमतिः, अज्ञानम् ॥ ४. 'भ्रम'के ३ नाम है-भ्रान्ति:, मिथ्यामतिः, भ्रमः ॥ ५. 'संदेह, संशय'के ५ नाम है-सन्देह, द्वापर, (पु न ),आरेकः,, विचिकित्सा, संशयः॥. . ६. 'गुणोत्कर्ष'के २ नाम हैं-परभागः, गुणोत्कर्षः॥ ७. 'दोष के ३ नाम है-दोषः, आदीनवः, आसवः ॥ ८. 'स्वरूप, स्वभाव'के १४ नाम हैं-स्वरूपम्, स्वलक्षणम् , स्वभावः, आत्मा (-मन), प्रकृतिः, रीतिः, सहजः, रूपतत्त्वम्, धर्मः, (पुन), सर्गः, निसर्गः, शीलम् (पु न), ससत्त्वम्, संसिद्धिः ।। ६. 'दशा (हालत के नाम है-अवस्था, दशा, स्थितिः ॥ १०. 'स्नेह, प्रीति के ४ नाम हैं-स्नेहः (पुन), प्रीतिः, प्रेम (-मन् , पुन), हाम्॥ ११. 'श्रनुकूल भाव'के २ नाम हैं-दाक्षिण्यम् , अनुकूलता ।। १२. 'पछतावा, पश्चात्ताप के ४ नाम है-विप्रतिसारः, (+ विप्रतीसारः) अनुशयः, पचात्तापः, अनुतापः ।। १३. 'अवधान, सावधान'के ४ नाम है-अवधानम्, समाधानम्, प्रणिधानम्, समाधिः ॥ १४. 'धर्म, पुण्य'के ५ नाम हैं-धर्मः, पुण्यम्, वृषः, श्रेयः (-यस ), सकृतम् ॥ Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणिः ___-१नियतौ विधिः। दैवं भाग्यं भागधेयं दिष्टरचायस्तु तच्छुभम् ॥ १५ ॥ ३अलक्ष्मीनिऋतिः कालकर्णिका स्या४दथाशुभम् ।। दुष्कृतं दुरितं पापमेनः पाप्मा च पातकम् ।। १६ ।। किल्विषं कलुषं किण्वं कल्मषं वृजिनं तमः। अंहः कल्कमचं पङ्क ५उपाधिर्धर्मचिन्तनम् ।। १७ ।। . ६त्रिवर्गो धर्मकामार्थाश्चतुर्वर्गः समोक्षकाः । ८वलतुर्याश्चतुर्भद्रं प्रमादोऽनवधानता ॥ १८ ।। ... १०छन्दोऽभिप्राय प्राकृतं मतभावाशया अपि । ११हृषीकमक्षं करणं सोतः विषयीन्द्रियम् ॥ १६ ॥ . . १२बुद्धीन्द्रियं स्पर्शनादि १. 'भाग्य'के ६ नाम हैं-नियतिः, विधिः, दैवम् (पुन ), भाग्यम्, भागधेयम्, दिष्टम् ॥ २. 'शुभकारक भाग्य'का १ नाम है-अयः ॥ ३. 'अलक्ष्मी, दुर्भाग्य,या नारकीय अशोभा'के ३ नाम है-अलक्ष्मीः, निऋतिः, कातकर्णिका ॥ ४. 'अशुभ, पाप'के १७ नाम हैं -अशुभम्, दुष्कृतम्, दुरितम्, पापम् ; एनः (-नस् ), पाप्मा (-मन् , पु), पातकम् (पु न), किल्बिषम्, कलुषम्, किएवम् , कल्मषम् , वृजिनम् , तमः (-मस), अंहः (-हस् । २ न), कल्कम् (पु न ), अघम्, पङ्कः (पु न )॥ . ५. 'धर्मचिन्तन'के २ नाम हैं-उपाधिः (पु) धर्मचिन्तनम् ।। ६. 'धर्म, काम तथा अर्थके समूहका १ नाम है--त्रिवर्गः ॥ ७. 'धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्षके समूह'का १ नाम है-चतुर्वर्गः ।। ८. धर्म, काम, अर्थ तथा बलके समूहका १ नाम है.-चतुर्भद्रम् ॥ ६. 'प्रमाद'के २ नाम है-प्रमादः, अनवधानता ।। १०( 'अभिप्राय, श्राशय'के ६ नाम हैं-छन्दः, अभिप्रायः, आक्तम् , मतम्, भावः (पु न ), श्राशयः ।। ११. 'इन्द्रिय के ७ नाम है-हृषीकम्, अक्षम्, करणम्, स्रोतः (-तस न),खम् , विषयि (-यिन् ), इन्द्रियम् १२. 'स्पर्शन ( चमड़ा श्रादि, 'आदि' पदसे 'जीभ' नाक, नेत्र और कान'का संग्रह है, अतः इन चमड़ा श्रादि ) पांच इन्द्रियोंका १ नाम हैबुद्धीन्द्रियम् (+ज्ञानन्द्रियम्, धीन्द्रियम् )। Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सामान्यकाण्ड: ६] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः पाण्यादि तु क्रियेन्द्रियम् । २स्पर्शादयस्त्विन्द्रियार्या विषया गोचरा अपि ॥ २० ॥ ३शीते तुषारः शिशिरः सुशीमः शीतलो जडः। हिमो४ऽथोष्णे तिग्मस्तीवस्तीक्ष्णश्चण्डः खरः पटुः ॥ २१ ॥ ५कोष्णः कवोष्णः कदुष्णो मन्दोष्णश्चेषदुष्णवत् । ६निष्ठुरः कक्खटः करः परुषः कर्कशः खरः ॥ २२ ॥ दृढः कठोरः कठिनो जरठः ७कोमलः पुनः। मृदुनो मृदुसोमालसुकुमारा अकर्कशः ॥ २३ ॥ १. 'हाय श्रादि ('आदि' शब्दसे वाक्, चरण, पायु (गुदा ) और उपस्थ (शिश्न, लिज ) का संग्रह है, अतः हाथ पैर आदि ) पांच इन्द्रियोंका १ नाम है-क्रियेन्द्रियम् (+कर्मेन्द्रियम् )॥ २. 'स्पर्श आदि ('श्रादि' शब्दसे 'स्वाद लेना, सूधना, देखना और सुनना' इन चारों का संग्रह है ) उन बुद्धीन्द्रियोंके विषय हैं, और उनके ३ नाम हैं-इन्द्रियार्थाः, विषयाः, गोचराः॥ विमर्श-'अमरकोष' कारने 'मन'को भी इन्द्रिय मानकर ६ 'शानेन्द्रिय है, ऐसा कहा है (१।५।८)। बुद्धीन्द्रियों ( ज्ञानेन्द्रियों) में-चमड़ेका हना, जीभका स्वाद लेना, नाकका सूंघना, नेत्रका देखना और कानका सुनना :-ये उन-उन इन्द्रियोंके अपने-अपने विषय हैं, तथा क्रियेन्द्रियों ( कर्मेन्द्रियों )में-हाथका प्रण करना, वाक्का बोलना, चरणका चलना, पायु (गुदा)का मलत्याग करना, और उपस्थ ( पुरुषके शिश्न और स्त्रियों के योनि)का मूत्रत्याग करना-ये उन-उन इन्द्रियोंके अपने-अपने 'विषय' हैं । 'अमरकोष' कारके. मतसे 'मन'को भी बुद्धीन्द्रिय माननेपर उस 'मन'का. 'जानना ( जान करना)' विषय है। ३. 'ठण्डे, शीतल' के ७ नाम हैं-शीतः, तुषारः, शिशिरः, सुशीमः. (+ सुषीमः ); शीतलः, जडः, हिमः ॥ . ४. 'गर्म, उष्ण के ७ नाम हैं-उष्णः, तिग्मः, तीव्रः, तीदणः, चण्डः,. खरः, पटुः ॥ ५. थोड़े गर्म के ५ नाम हैं--कोष्णः, कवोष्णः, कदुष्णः, मन्दोष्णः, ईषदुष्णः (+ओष्ण:)॥ ___६. 'निष्ठुर, कर'के १० नाम है-निष्ठुरः, कक्खटः, (खक्खटः ),. करः, परुषः, कर्कशः, खरः, दृढः, कठोरः, कठिनः, जरठः (+जरढः)। ७. 'कोमल के ६ नाम हैं-कोमल:, मृदुलः, मृदुः, सोमालः, सुकुमारः, अकर्कशः॥ Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणिः १मधुरस्तु रसज्येष्ठो गुल्यः स्वादुर्मधूलकः । २अम्लस्तु पाचनो दन्तशठो३ऽथ लवणः सरः ॥ २४ ॥ सर्वरसो४ऽथ कटुः स्यादोषणो मुखशोधनः । प्रवक्त्रभेदी तु तिक्तोऽय कषायस्तुवरो रसाः ॥ २५ ॥ गन्धो जनमनोहारी सुरभिर्घाणतर्पणः । समाकर्षी निर्हारी च स आमोदो विदुरगः ।। २६ ॥ विमर्दोत्थः परिमलो१०ऽथामोदी मुखवासनः। . इष्टगन्धः सुगन्धिश्च ११दुर्गन्धः. पृतिगन्धिकः ।। २७ ।। १२श्रामगन्धि तु वितं स्याद् १३वर्णाः श्वेतादिका अमी। १. 'मीठा, मधुर'के ५ नाम हैं-मधुरः, रसज्येष्ठः, गुल्यः, स्वादुः, मधूलकः॥ २. 'खटटे'के ३ नाम हैं-अम्ल: (+ तः), पाचनः, दन्तशठः ।। ३. 'नमकीन, नमक'के ३ नाम हैं -लवणः, सरः, सर्वरसः ॥ ४. 'कडुवे, कटु'के ३ नाम है-कटुः, ओषणः, मुखशोधनः ॥ ५. 'तीता'के २ नाम है:--वक्त्रभेदी (-दिन ), तिक्तः ॥ ६. 'कषाय, कसेले'के २ नाम हैं-कषायः, तुवरः। (ये ( ४ । २४२५) अर्थात् 'मीठा, खटटा, नमकीन, कटु, तीता और कषाय'-६ 'रस' हैं, इनका 'रसा:' यह १ नाम है। विमर्श-जल, गुड़, शक्कर आदि 'मीठा'; आम, नीमू , इमिली श्रादि खटटा' सोडा, नमक आदि 'नमकीन'; मिर्चा आदि 'कटु' (कड़ वा ); नीम, बकायन, गुडुच आदि 'तीता' और हरे, आँवला आदि कषाय रसवाले होते हैं। ... ७. गन्ध'के ६ नाम हैं-गन्धः, जनमनोहारी (-रिन् ), सुरभिः, प्राणतर्पणः, समाकर्षी (-र्षिन् ), निर्हारी (-रिन् ) ॥ ८. 'दूरतक फैलनेवाले गन्ध'का १ नाम है-श्रामोदः ।। ६. 'विमर्दन ( रगड़ने )से उत्पन्न गन्ध'का १ नाम है-परिमलः ॥ १०. 'सुगन्धि, खुशबू'के ४ नाम हैं-आमोदी (-दिन् ), मुखवासनः, इष्टगंन्धः, सुगन्धिः ॥ ११. 'दुर्गन्ध, बदबू के २ नाम हैं-दुर्गन्धा, पूतिगन्धिकः (+पूति.गन्धिः )॥ १२. 'अपरिपक्क मलके समान गन्ध'के २ नाम है-आमगन्धि (-न्धिन् ), वित्रम् ॥ १३. 'श्वेत' इत्यादिका 'वर्णाः यह १ नाम है। ' Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सामान्यकाण्ड: ६ ] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः ३३५ १श्वेतः श्येतः सितः शुक्लो हरिणो विशदः शुचिः ॥ २८ ॥ अवदातगौरशुभ्रवलक्षधवलाजुनाः। पाण्डुरः पाण्डरः पाण्डुरीषत्पाण्डुस्तु धूसरः ॥ २६ ॥ ३कापोतस्तु कपोतामः ४प्रीतस्तु सितरजनः। हारिद्रः पीतलो गौरः ५पीतनीलः पुनहेरित् ॥ ३०॥ पालाशो हरितस्तालकाभो रक्तस्तु रोहितः । माञ्जिष्ठो लोहितः शोणः ७श्वेतरक्तस्तु पाटलः ॥३१॥ वरुणो बालसन्ध्यामः पीतरक्तस्तु पिब्जरः।। कपिलः पिङ्गलः श्यावः पिशङ्गः कपिशो हरिः ॥ ३२॥ बभ्रः कद्रः कडारश्च पिङ्गे ९०कृष्णस्तु मेचकः। स्याद्रामः श्यामलः श्यामः कालो नीलोऽसितः शितिः ॥ ३३ ॥ ११रक्तश्यामे पुनधूम्रधूभला- . १. 'सफेद रंग के १६ नाम हैं-श्वतः, श्येतः, सित:, शुक्ला, हरिणः, विशदः, शुचिः, अवदातः, गौरः, शुभ्रः, बलक्षः, धवलः, अर्जुनः, पाण्डुरः, पाण्डरः, पाण्डः ॥ २. 'थोड़े श्वेत, धूसर रंग'का १ नाम है-धूसरः ।। ३. 'कबूतरके समान रंग के · नाम हैं-कापोतः, कपोताभः ॥ ४. 'पीले रंग'के ५ नाम हैं--पीतः, सितरखनः, हारिद्रः, पीतलः, -गौरः॥ .. . ५. 'हरे रंग'के ५. नाम हैं-पीतनीलः, हरित्, पालाशः, हरितः, तालकाभः ॥ .... ६. 'लाल रंग के ५ नाम है-रक्तः, रोहितः, मालिष्ठः, लोहितः, -शोणः ॥ ७. 'श्वेत-मिश्रित लाल, गुलाबी रंग'के २ नाम हैं-श्वेतरतः, पाटलः ॥ ... ८. 'बालसन्ध्याके समान रंग'के २ नाम है-अरुणः, बालसन्ध्याभः ।। ६. पीलेसे मिश्रित लाल, पिङ्गल'के १२ नाम हैं—पीतरक्तः, पिञ्जरः, कपिलः, पिङ्गलः, श्यावः, पिशङ्गः, कपिशः, हरिः, बभ्रः, कद्रुः, कंडारः, पिङ्गः॥ १०. 'कृष्ण, श्यामरंग के नाम हैं-कृष्णः, मेचकः (पु न ), रामः, श्यामल:, श्यामः, काल:, नीलः (पु न), असितः, शितिः ॥ ११. 'लाल-मिभित श्याम, धूएँके समान धूमिल रंग'के ३ नाम हैंरक्तश्यामः, धूम्रः, धूमलः ॥ Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३६ अभिधानचिन्तामणिः -श्वथ कबुरः। किम्मीर एतः शबलश्चित्रकल्माषचित्रलाः ॥ ३४ ॥ २शब्दो निनादो निर्घोषः स्वानो ध्वानः स्वरो ध्वनिः। ... निर्झदो निनदो हादो निःस्वानो निःस्वनः स्वनः॥ ३५ ॥ रवो नादः स्वनिर्घोषः संव्याङभ्यो राव आरवः । कणनं निकण: काणो निकवाणश्च करणो रणः ॥ ३६ ॥ ३षड्जषेभगान्धारा मध्यमः पञ्चमस्तथा। धैवतौ निषधः सप्त तन्त्रीकण्ठोद्भवाः स्वराः ॥ ३७॥ . ... १. 'कबुर, चितकबरे रंग के ७ नाम है-कबुर:, किम्मीरः, एतः, शबल:, चित्रः, कल्माषः, चित्रलः ॥ . २. 'शब्द, ध्वनि, श्रावाज'के २७ नाम हैं-शब्दः, निनादः; निर्घोषः, स्वानः, ध्वानः, स्वरः, ध्वनिः, निींदः, निनदः, हादः, निःस्वानः, निःस्वनः, स्वनः, रवः (+रावः), नादः, स्वनिः, घोषः, संरावः, विरावः, श्रारावः, आरवः, क्वणनम् , निक्कणः, क्वाणः, निक्काण:, कण: रणः ॥ ३. 'षडजः, ऋषभः, गान्धारः, मध्यमः, पञ्चमः, धैवतः, निषधःये सात तन्त्री तथा कण्ठसे उत्पन्न होनेवाले स्वर हैं, अतः इन्हें 'स्वराः' कहते हैं। विमर्श-वीणाके दो भेद हैं-एक काष्ठमयी वीणा तथा दूसरी शारीरी वीणा; उनमें काष्ठमयी वीणामें तन्त्री (तार ) से तथा शारीरी वीणामें कण्ठसे उक्त स्वरोंकी उत्पत्ति होती है उनमें से 'षडज' को मोर, 'ऋषभ'को गौ, 'गान्धार'को अज तथा भेंड, 'मध्यम'को क्रौञ्च पक्षी, 'पञ्चमको वसन्त अतुमें कोयल, 'धेवत'को घोड़ा और निषाद'को हाथी बोलता है। इस सम्बन्धमें विशेष जिज्ञासु व्यक्तिको 'अमरकोष'का मत्कृत 'मणि प्रभा' नामक राष्ट्रभाषानुवादकी 'श्रमरकौमुदी' नामकी टिप्पणी देखनी चाहिए । १. तदुक्तं हेमचन्द्राचार्येणाम्यैव ग्रन्थस्य स्वोपज्ञवृत्तौ-"घडभ्यो जायते षड्जः । यद्वयाडि:'कण्ठादुत्तिष्ठते व्यक्तं षड्ज: षड्भ्यस्तु जायते। कण्ठोरस्तालुनासाभ्यो, जिह्वाया दशनादपि ।।' ऋषभो गोमतसंवादित्वात् । तदाह व्याडि:'वायु: ममुत्थितो नाभेः कण्ठशी समाहतः। नर्दवाषभन्यस्मात्तेनेष ऋषभः स्मृतः ।।' गां वाचं धारयति गान्धारः, गन्धवहपियत्ति वा । यदाह Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सामान्यकाण्डः ६] मणिप्रभा'व्याख्योपेतः ३३७ श्ते मन्द्रमध्यताराः स्युरुरःकण्ठशिरोभवाः। २रुदितं क्रन्दितं ऋष्टं ३तदपुष्टन्तु गहरम् ॥ ३८॥ ४शब्दो गुणानुरागोत्थः प्रणादः सीत्कृतं नृणाम् । ५पर्दनं गुदजे शब्दे कई नं कुक्षिसम्भवे ।। ३६ ।। ७क्ष्वेडा तु सिंहनादोऽथ क्रन्दनं सुभटध्वनिः । कोलाहलः कलकल १०स्तुमुलो व्याकुलो रवः ॥४०॥ १. वे 'षडज' इत्यादि पूर्वोक्त सातो स्वर 'उर, कण्ठ तथा शिर से क्रमशः 'मन्द्र अर्थात् गम्भीर, मध्य तथा तार अर्थात् उच्च रूपमें उत्पन्न होते हैं, अतः उनमें प्रत्येकके 'मन्द्रः, मध्यः और तार: ये तीन-तीन भेद होते हैं ।। २. 'रोने के ३ नाम है-रुदितम् , क्रन्दितम् , कष्टम् ॥ ३. 'अस्पष्ट ( गद्गद कण्ठसे ) रोने'का १ नाम है-गह्वरम् ।। ४. 'गुणानुरागजन्य मनुष्योंके शन्द ( रत्यादिमें दन्तक्षतादि करनेपर 'सी-सी' इत्यादि ध्वनि करने ) २ नाम है-प्रणादः, सीत्कृतम् ॥ ५. 'पादने'का १ नाम है-पर्दनम् (+अपशब्दः)। ६. 'काखके शब्द'का १ नाम है-कर्दनम् ।। ७. 'युद्धादिमें शूरवीरोंके सिंह तुल्य गरजने के २ नाम हैं-दवेडा, सिंहनादः ।। ८. 'युद्ध में प्रतिद्वन्द्वीको ललकारने'का १ नाम है-क्रन्दनम् ।। ६. 'कोलाहल' के २ नाम हैं-कोलाहलः (पु न ), कलकलः ।। १०. 'बहुतोंके द्वारा किये गये अस्पष्ट और अधिक कोलाहल'का १ नाम है-तुमुलः ।। 'वायुः समुत्थितो नाभेः कण्ठशीर्षसमाहतः। नानागन्धवहः पुण्यैर्गान्धारस्तेन हेतुना ॥' मध्ये भवो मध्यमः । यदाह'तद्वदेवोत्थितो वायुरुर:कण्ठसमाहतः। नाभिप्राप्तों महानादो मध्यमस्तेन हेतुना ।।' पञ्चमस्थानभवत्वात् पञ्चमः । यदाह'वायुः समुत्थितो. नाभेरुरोहत्कण्ठमूर्धसु । विचरन् पञ्चमस्थानप्राप्त्या पञ्चम उच्यते ॥' धिया वत: धीवतः, तस्यायं धैवतः; दधाति संधत्ते स्वरानिति वा । यदाह'अभिसंधीयते यस्मात् स्वरास्तेनैव धैवतः ।' निषीदन्ति स्वरा अत्र निषधो निषादाख्यः । यदाह 'निषीदन्ति स्वरा अस्मिन्निषादस्तेन हेतुना ।' इति ॥" (अभि० चि० ६।३७ स्वो० ७० ) ॥ २२ अ० चि० Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३८ अभिधानचिन्तामणिः मर्मरो वापत्रादेरभूषणानान्तु शिञ्जितम् । ३हेषा द्वेषा तुरगाणां ४गजानां गर्जवृहिते ॥४१॥ ५विस्फारो धनुषां पहम्भारम्भे गोर्जलदस्य तु । स्तनितं गर्जितं गर्जिः स्वनितं रसितादि च ॥ ४२ ॥ ८कूजित स्याद्विहङ्गानां हतिरश्चां रुतवासिते । १०वृकस्य रेषणं रेषा ११बुक्कनं भषणं शुनः ॥ ४३ ।। १२पीडितानान्तु कणितं १३मणितं रतकूजितम् । १४प्रकाणः प्रकणस्तन्त्रया १५महलस्य तु गुन्दलः ॥ ४४ ॥ १६क्षीजनन्तु कीचकानां १७भेया नादस्तु ददरः। ... १. 'मर्मर ( वस्त्र या अधसूखे पत्ते आदिके ; शब्द'का १. नाम हैमर्मरः॥ २. भूषणोंके शब्द ( झनकार )का १ नाम है-शिक्षितम् ।। ३. 'घोड़ोंके शन्द (हिनहिनाने के २ नाम हैं--हेषा, हेषा॥ . ४. 'हाथियोंके शब्द ( चिम्घाड़ने )के २ नाम हैं-गर्ज: (+गर्जा ), बृहितम् ।। ५. 'धनुषके शब्द'का १ नाम है-विस्फारः। ६. 'गौवे शब्द ( रभाने के २ नाम हैं- हम्मा, रम्भा ।। ७. 'मेघके शब्द ( बादल गरजने )के ५ नाम हैं-स्तनितम् , गर्जितम् , गजिः (पु), स्वनितम् , रसितम् ,..." ( 'आदि' शब्दसे 'ध्वनितमः ...........) ८. 'पक्षियोंके शन्द ( कूजने )का १ नाम है-कूजितम् ॥ ६. 'पशु-पक्षियोंके शब्द'के २ नाम है-रुतम् , वाशितम् ।। १०. 'भेड़ियेके शब्द'के २ नाम है-रेषणम् , रेषा ॥ ११. 'कुत्तेके शब्द (भुंकने ) के २ नाम है-बुकनम् , भषणम् ॥ १२. 'व्याधि या मार आदिके द्वारा पीडित बीवके शब्द'का १ नाम हैकणितम् ।। १३. 'रतिकालमें किये गये शब्द'का १ नाम है-मणितम् ॥ - १४. 'वीणादिके तारके शब्द'के २ नाम हैं-प्रक्वाणः, प्रकणः॥ १५. 'मर्दल (मृदङ्गाकार एक प्राचीन बाजा)के शम्द'का १ नाम हैगुन्दलः ॥ १६. 'कीचक ( फटनेके कारण छिद्र में प्रवेश करनेवाले वायुसे ध्वनि करनेवाले बांस )के शन्द'का १ नाम है-क्षीवनम् ॥ १७. 'भेरीके शब्द'का १ नाम है-द्रुरः ॥ . Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३६ •सामान्यकाण्डः ६] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः श्वारोऽत्युच्चैर्ध्व निरर्मन्द्रो गम्भीरो ३मधुरः कलः ॥ ४५ ॥ ४काकली तु कलः सूक्ष्म ५एकतालो लयानुगः। ६काकुर्वनिविकारः स्यात् ७अविनत्त प्रतिध्वनिः॥४६॥ यसबाते प्रकरौघवारनिकरव्यूहाः समूहश्चयः सन्दोहः समुदायराशिविसरवावाः कलापो व्रजः। कूट मण्डलचक्रवालपटलस्तोमा गणः पेटक वृन्द चक्रकदम्बके समुदयः पुञ्जोत्करौ संहतिः॥४७॥ समवायो निकुरुम्बं जालं. निवहसञ्चयो। जातं हतिरश्चां तद्यथं १०सङ्घसार्थों तु देहिनाम् ॥४८॥ ११कुलं तेषां सजातीनां १. 'अत्यधिक उच्च स्वर'का १ नाम है-तारः ॥ . २. 'गम्भीर ध्वनि'का १ नाम है-मन्द्रः (+मद्रः)॥ ३. 'मधुर ध्वनि'का १ नाम है.-कलः ॥ ४. 'अत्यन्त मन्द ध्वनि'का १ नाम है-काकली (+काकलिः)॥ ५. 'लय'का १ नाम है-एकतालः॥ ६. 'विकृत ध्वनि'का १ नाम हैं- काकुः (पु स्त्री)॥ विमर्श-यथा-विकृत कण्ठध्वनिसे. कहे गये "तुमने मेरा बड़ा उपकार किया !” इस. वाक्यका अर्थ मुख्याथके सर्वथा विपरीत "तुमने मेरा बड़ा अनुपकार किया" यह ध्वनित होता है, इसी कण्ठकी विकृत ध्वनि का नाम ७. 'प्रतिध्वनि के २ नाम हैं-प्रतिश्रुत्, प्रतिध्वनिः (+प्रतिशन्दः) । ८. 'समुदाय, समूह'के ३५ नाम हैं-सङ्घातः, प्रकरः, श्रोघः, वारः (पुन ), निकरः (+पाकरः), व्यूहः, समूहः, चयः, सन्दोहः, समुदायः, राशिः (पु), विसरः, व्रातः, कलापः, व्रजः, कूटम् (२ पु न), मण्डलम् (त्रि), चक्रवालः, पेटलम् ( न स्त्री), स्तोमः, गणः, पेटकम् (त्रि ), वृन्दम्, चक्रम् (पुन ), कदम्बकम्, समुदयः, पुञ्जः, उत्करः, संहतिः, समवायः, निकुरुम्यम्, जालम् ( स्त्री न), निवहः, सञ्चयः, जातम् ।। ६. 'पशु-पक्षियोंके समूह ( झुण्ड )का १ नाम है-यूथम् (पुन )॥ १०. 'देहधारी ( मनुष्यादि )के समूह'के २ नाम हैं-सङ्घः, सार्थः, ( यथा-श्रमणादि चार प्रकारका 'सङ्घ' (समुदाय ), यथा-पान्थसार्थः ( पथिकसमूह),".......)॥ ११. 'एकजातिवालोंके समुदायका १ नाम है-कुलम् । ( यथाविप्रकुलम्, मृगकुलम्,.........." ) ॥ Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४० अभिधानचिन्तामणिः -र्शनकायस्तु सधर्मिणाम् । २वर्गस्तु सदृशां स्कन्धो नरकुञ्जरवाजिनाम् ।। ४६ ॥ ४प्रामो विषयशब्दास्त्रभूतेन्द्रियगुणाद् व्रजे। ५समजस्तु पशूनां स्यात् ६समाजस्त्वन्यदेहिनाम ।। ५० ॥ शुकादीनां गणे शौकमायूरतैत्तिरादयः । भिक्षादेर्भेक्षसाहस्रगाभिणयौवतादयः ॥५१॥ गोत्रार्थप्रत्ययान्तानां स्युरौपगवकादयः । १. 'समान धर्म या शीलवालोंके समुदायका १ नाम है -निकायः ( यथा-वैयाकरणनिकाय:, देवनिकायः,......... ) ॥ २. 'समान जातिवाले जीवों तथा निर्जीवों के समूह'का ? नाम हैवर्गः । ( यथा-ब्राह्मणवर्गः, अरिषडवर्गः, त्रिवर्गः, कवर्गः, चवर्ग:........ ) । ___३. 'मनुष्यों, हाथियों' और घोड़ोंके समूहका १ नाम हैं-स्कन्धः ॥ ४. 'विषय, शब्द, अस्त्र, भूत, इन्द्रिय और गुण शब्दोंके बाद में प्रयुक्त 'ग्राम' शब्द उन 'विषय' श्रादिके समूह का वाचक होता है । ( यथाविषयग्रामः, शब्द ग्रामः, अस्त्रग्रामः, भूतग्रामः, इन्द्रियग्रामः और गुणग्रामः) अर्थात् विषयोंका समूह, शब्दोंका समूह.........")। ५. 'पशु के समूह'का १ नाम है-ममनः । (यथा--समज:... || ६. 'दूसरे प्राणियों के समूह'का १ नाम है-समाजः। (यथाब्राह्मणसमाज:, श्रोत्रियसमाजः, आर्यसमाज:,"..." )॥ ___७. 'सुग्गे, मोर और तीतर आदि ('श्रादि' शब्दसे 'कबूतर इत्यादिके समूह'का क्रमशः १-१ नाम है-शौकम्, मायूरम् , तैत्तिरम्, श्रादि ( 'यादि' शब्दसे—'कापोतम्,..... ) ॥ . ८. 'भिक्षानो, सहस्रों, गर्भिणियों तथा युवतियोंके समूह'का क्रमशः १-१ नाम है-मैतम्, साहस्रम्, गार्भिणम्, यौवतम् ।। ६. 'गोत्र अर्थमें किये गये प्रत्यय जिन शब्दोंके अन्तमें हे', उन ('श्रौपगव' इत्यादि ) शब्दोंके समूह'का 'औपगवकम्' इत्यादि १-१ नाम है। विमर्श-उपगोर्गोत्रापत्यम्, ( 'उपगुका गोत्रापत्य ) इस विग्रह में गोत्र अर्थमें 'उपगु' शन्दसे 'अण' प्रत्यय करनेपर 'श्रौपगवः' शब्द सिद्ध होता है, उन 'औपगवो' के समहका 'श्रौपगवकम्' यह १ नाम है। ऐसा जानना चाहिए । इसी प्रकार 'आदि' शब्दसे 'गर्ग' शब्दसे गोत्रार्थक 'या' प्रत्यय करनेपर गार्ग्य' शब्द सिद्ध होता है, उन 'गाग्र्यों के समूहका 'गार्गकम्' यह १ नाम होगा । इसी क्रम से अन्यत्र भी जानना चाहिए । Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४१ सामान्यकाण्ड: ६ ] . 'मणिप्रभा व्याख्योपेतः . १उक्षादेरौक्षकं मानुष्यकं बा कमौष्ट्रकम् ।। ५२ ॥ स्याद्राजपुत्रकं राजन्यकं राजकमाजकम।। वात्सकौरभ्रके २कावचिकं कवचिनामपि ॥ ५३ ।। हास्तिकन्तु हस्तिनां स्या३दापूपिकाधचेतसाम् । ४धेनूनां धेनुकं धेन्वन्तानां गौधेनुकादयः ।। ५४ ॥ ५कैदारकं कैदारिक केदार्यमपि तद्गणे । ६ब्राह्मणादेाह्मण्य माणव्यं वाडव्यमित्यपि ॥ ५ ॥ जगणिकानान्तु गाणिक्य केशानां कैश्यकैशिके। अश्वानामाश्वमश्वीयं पशूनां पार्श्वमप्य १. 'उक्षन् , मनुष्यों, वृद्धों, उष्ट्रों ( ऊंटों ), राजपुत्रों, राजन्यों (क्षत्रियजातीय राजकुमारों ), राजाओं, अजों ( बकरों ), वत्सों, उरभ्रों (भेड़ों)के समूह'का क्रमसे १-१-नाम है-औक्षकम, मानुष्यकम्, वाईकम, औष्ट्रकम्, राजपुत्रकम, राजन्यकम, राजकम, आजकम् , वात्सकम, औरप्रकम् ॥ २. 'कवचधारियों तथा हाथियोंके समूह'का क्रमसे १-१ नाम हैकावचिकम, हास्तिकम् ॥ ३. 'अपूपों (पूत्रों) आदि अचित्त (चेतनाहीन ) वस्तुओंके समह'का 'आपूपिकम्' इत्यादि १-१ नाम है । ( 'आदि शन्दसे शकुलियों (पूड़ियों) के समहका 'शाकुलिकम', पर्वतोंके समूहका 'पार्वतिकम्' इत्यादि ५-१ नाम क्रमसे समझना चाहिए )॥ ४. 'धेनुओं ( संकृत्प्रसूत गौओं) तथा 'धेनु' शब्दान्त 'गोधेनु' इत्यादिके समहोका क्रमश: 'धैनुकम्, गौधेनुकम्' इत्यादि १-१ नाम हैं। ५. 'केदारों ( खेतों, क्यारियों )के समह'के ३ नाम है-कैदारकम्, कैदारिकम्, कैदायम् ॥ . ६. 'ब्राह्मणों, माणवों (बालकों ) तथा वडवाओं (घोड़ियों )के समह का क्रमशः १-१. नाम है. ब्राह्मण्यम, माणव्यम, वाडव्यम् ।। ७. गणिकाओं ( वेश्याओं )के समूह'का १ नाम है-गाणिक्यम् ॥ ८. 'केशों तथा अश्वोंके समूह'के क्रमशः २-२ नाम है-कश्यम्, कैशिकम; आश्रम, अश्वीयम् ॥ ६. 'पशुओं' (फरसों )के समूह'का १ नाम है--पार्श्वम् । विमर्श-समह अर्थ में प्रयुक्त पूर्वोक्त (६ । ५१) शौकम् इत्यादिसे यहांतक सब शन्द नपुंसक लिङ्ग हैं । Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४२ अभिधानचिन्तामणिः -१थ ॥५६॥ वातूलवात्ये वातानां गव्यागोत्रे पुनर्गवाम् । ३पाश्याखल्यादि पाशादेः ४खलादेः खलिनी निभाः ॥७॥ पूजनता बन्धुता प्रामता गजता सहायता जनादीनां दरथानान्तु स्याद्रथ्या रथकट्यया ॥ ५८॥ ७राजितेखा ततिर्वीथीमालाऽऽल्यावलिपङ्क्तयः । धोरणी भेण्युम्भौ तु द्वौ युगलं द्वितयं द्वयम ।। ५६॥ . युग द्वैतं यमं द्वन्द्वं युग्मं यमलयामले । . .. १०पशुभ्यो गोयुगं युग्मे परं १. 'वायु ( हवा ) के समूह' अर्थात् 'श्रांधी'के २ नाम. है--वातूलः (पु), वात्या ( स्त्री)॥ २. गौओंके समूह'के २ नाम हैं--गव्या, गोत्रा ।। ३. पाश, खल प्रादि ('आदि' शब्दसे-तृण, धूम, ....... )के. समूहका क्रमशः १-१ नाम है-पाश्या, खल्या, आदि ('आदि' शब्दसे-'तृण्या, धम्या, ")। ४. 'खल आदि ('आदि' शब्दसे-कुटुम्ब,......) के समह'का १ नाम है-खलिनी, आदि ( 'आदि'से-कुटुम्बिनी,.....)। ५. 'जन, बन्धु, ग्राम, गज ( हाथी ) तथा सहायके समहो' का क्रमशः १-१ नाम है-जनता, बन्धुता, ग्रामता, गजता, सहायता ॥ ६. 'रयोंके समूह'के २ नाम हैं-रम्या, रथकट्या ॥ ७. श्रेणि, कतार के १० नाम है-राजिः (स्त्री), लेखा, ततिः,. वीथी, माला, आलिः, आवलिः ( २ स्त्री ), पक्तिः, धोरणी, श्रेणी ( स्त्री। +श्रेणिः, पु स्त्री)॥ ८. 'दोनों (जिससे एक साथ दोका बोध हो-जैसे 'दोनो जाते हैं का १ नाम है-उभौ (नि. द्विव०)॥ ६. 'दो, जोड़ा'के १० नाम हैं-युगलम्, द्वितयम्, द्वयम् ( ३ स्त्री न), युगम्, द्वैतम्, यमम्, द्वन्द्वम्, युग्मम्, यमलम्, यामलम् (+जकुटम् ) ॥ ____१०. एकजातीय किसी पशुके जोड़ों ( दो पशुओं ) को कहनेके लिए उस शब्दसे परे 'गोयुगम' शब्द लगाया जाता है। (यथा-'अश्वगोयुगम्, यहां 'दो घोड़े इस अर्थ में 'अश्वगोयुगम्' शब्दका प्रयोग हुआ है। इसी प्रकार (हस्तिगोयुगम,...") अर्थात् दो हाथी इत्यादि समझना चाहिए । Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४३ सामान्यकाण्डः ६] . मणिप्रभा'व्याख्योपेतः - -१षत्वे तु षड्गवम् ॥ ६०॥ २परःशवाद्यास्ते येषां परा सङ्ख्या शतादिकात् । ३प्राज्यं प्रभूतं प्रचुरं बहुलं बहु पुष्कलम् ।। ६१ ॥ भूयिष्ठ पुरुहं भूयो भूर्यदभ्रं पुरु स्फिरम् । ४स्तोकं तुल्लं तुच्छमल्पं दभ्राणुतलिनानि च ।। ६२॥ तनु क्षुद्रं कृशं पसूक्ष्म पुनः श्लदणञ्च पेलवम् । ६टौ मात्रा लवो लेशः कणो ७हस्वं पुनलघु ॥ ६३ ॥ ८अत्यल्पेऽल्पिष्ठप्रल्पीयः कनीयोऽणीय इत्यपि । दीर्घायते समे- . १. एक जातिकाले ६ पशुओंके समहको कहने के लिए उस पशुवाचक शब्दके बाद 'पनवम' प्रत्यय जोड़ दिया जाता है। (यथा-६ हाथी, ६ घोड़े आदिको कहनेके लिए हाथी तथा घोड़ेके पर्यायवाचक 'गज तथा अश्व' आदि शब्दके बादमें "पङ्गवम्” बोड़ देनेपर 'गनषङ्गवम्, अश्वषनवम्' आदि शब्दका प्रयोग होता है। इसी प्रकार अन्यत्र भी समझना चाहिए )॥ २. 'शत' ( सौ से अधिक संख्या कहने के लिए 'शत' शब्दके पहले 'परः' शब्द जोड़कर 'परःशताः' (त्रि.) शब्दका प्रयोग होता है। (परःशता गमाः अर्थात् सौसे अधिक हाथी) इसी प्रकार 'सहस, लक्ष..", शन्दोंके साथ. 'परः' शब्द जोड़नेसे परःसहस्साः, परोलक्षाः ( क्रमश:-हबारसे तथा लाख से अधिक) इत्यादि. शन्द प्रयुक्त होते हैं । ३. 'प्रचुर, काफी'के १३ नाम हैं-प्राज्यम् , प्रभूतम्, प्रचुरम् , बहुलम्, बहु, पुष्कलम् , भूयिष्ठम् , पुरुहम् , भूयः (- यस्), भूरि, अदभ्रम् , पुरु, स्फिरम् ॥ ४. 'थोड़े के १० नाम हैं-स्तोकम् , तुल्लम् , तुच्छम् , अल्पम् , पभ्रम् , अणु, तलिनम्, तनु, तुद्रम् , कृशम् । ५. 'सूक्ष्म या चिकने के ३ नाम हैं-सूक्ष्मम् , श्लक्ष्णम् , पेलवम् ॥ ६. 'लेश, अत्यन्त कम'के ५ नाम है-त्रुटिः (स्त्री), मात्रा, लवः, लेयः, कणः ( पु स्त्री ) ॥ ____७. 'छोटे'के २ नाम हैं-हस्वम् , लघु ॥ ८. 'बहुत थोड़े के ५ नाम है-अत्यल्पम् , अल्पिष्ठम् , अल्पीयः, कनीयः (+कनिष्ठम् ), अणीयः (३ - यस्)॥ ६. 'लम्बे'के २ नाम हैं-दीर्घम् , आयतम् ।। Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणिः -तुङ्गमुच्चमुन्नतमुद्धरम् ।। ६४ ।। .. प्रांशूच्छ्रितमुदप्रश्च २न्यजनीचं हस्वमन्थरे । खर्व कुब्जं वामनञ्च ३विशालन्तु विशङ्कटम् ॥ ६५ ॥ . पृथूरु पृथुलं व्यूढं विकटं विपुलं बृहत् । स्फारं वरिष्ठ विस्तीर्ण ततं बहु महद् गुरु ॥ ६६ ॥ ४दैर्घ्यमायाम आनाह ५आरोहस्तु समुच्छ्रयः। उत्सेध उदयोच्छ्रायौ ६परिणाहो विशालता ॥६७ ॥ ७प्रपञ्चाभोगविस्तारव्यासाः शब्दे स विस्तरः। ६समासस्तु समाहारः संक्षेपः संग्रहाऽपि च ॥ ६८ ॥ १०सर्व समस्तमन्यूनं समग्रं सकलं समम । . . विश्वाशेषाखण्डकृत्स्नन्यक्षाणि निखिलः खः । ६६ ।। . .१. 'ऊँचे'के ७ नाम हैं-तुङ्गम् , उच्चम् , उन्नतम् , उद्धरम् , प्रांशु, उच्छ्रितम् , उदग्रम् , ।। २. 'नीचे' के ७ नाम है-न्यक ( - इच् ), नीचम् , हस्वम् , मन्थरम् , खर्वम् , कुन्जम् , वामनम् ॥ ___३. 'विशाल बड़ेके १६ नाम हैं-विशालम् , विशङ्कटम् , पृथु, उरु, पृथुलम् , व्यूढम् , विकटम् , विपुलम् , बृहत् , स्फारम् , वरिष्ठम् , विस्ती. णम् , ततम् , बहु, महत् , गुरु ॥ ४. 'लम्बाई'के ३ नाम है-दैयम , आयामः, आनाहः ।। ५. 'ऊंचाई'के ५ नाम है-आरोहः, समुच्छ्यः , उत्सेधः, उदयः, उच्छायः॥ ६. 'विशालता'के २ नाम हैं--परिणाहः, विशालता ।। ७. 'विस्तार, फैलाव'के ४ नाम है-प्रपञ्चः, श्राभोगः, विस्तारः, व्यास: । ८. 'शब्दके फैलाव'का १ नाम है-विस्तरः ॥ ६. संक्षेप के ४ नाम हैं-समास:, समाहारः, संक्षेपः, संग्रहः ॥ १०. 'सब, समस्त'के १३ नाम हैं-सर्वम् , समस्तम , अन्यूनम् (+अन्नम् ), समग्रम , सकलम् , समम् , विश्वम् , अशेषम् (+निःशेषम् ), अखएडम , कृत्स्नम् , न्यक्षः, निखिलम् , अखिलम् ॥ विमर्श-इनमें से 'सम' शब्द केवल 'सम्पूर्ण' अर्थमें ही 'सर्वनाम' संशक है, अत: सब छात्र आते हैं। इस अथम "आगच्छन्ति 'समे' छात्रा" ऐसा प्रयोग होता है । 'सब' अर्थसे भिन्न (बराबर, तुल्य ) अर्थमें सर्वनाम Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४५ सामान्यकाण्ड: ६ ] 'मणिप्रभाठ्याख्योपेतः खण्डेऽर्धशकले मित्त नेमशल्कदलानि च । २अंशो भागश्च वण्टः स्यात् ३पादस्तु स तुरीयकः ॥ ७० ॥ ४मलिनं कचरं म्लानं कश्मलञ्च मलीमसम् । "पवित्रं पावनं पूर्त पुण्यं मेध्यक्ष्मथोज्ज्वलम् ।। ७१ ॥ विमलं विशदं . वीध्रमवदातमनाविलम् । विशुद्धं शुचि चोक्षन्तु निःशोध्यमनवस्करम् ॥७२॥ पनिर्णिक्तं शोधितं मृष्टं धौतं क्षालितमित्यपि । संज्ञक नहीं होनेसे 'ये समान हिस्सेक आधिकारी हैं। इस अर्थमे "एते 'समानाम' अंशानामधिकारिणः” प्रयोग होता है, ऐसे ही अन्यत्र भी जानना चाहिए। 'सर्व' और 'विश्व' शब्द भी 'संज्ञा' भिन्न अर्थमे 'सर्वनाम' संज्ञक हैं। १. 'खण्ड, टुकड़े'के ७ नाम · है-खण्डम् (पु न ।+खण्डलम् ), अर्घः, शकलम् (पु न ), भित्तम् , नेमः, शल्कम् , दलम् ॥ . विमर्श-इनमें से 'अर्ध शब्द पुंल्लिङ्ग है, अत: 'प्रामाधः, अर्धः पटी, अर्थो नगरम्' इत्यादि प्रयोग होते हैं; किन्तु कुछ आचार्योंका सिद्धान्त है कि यह 'अध' शब्द वाच्यलिङ्ग अर्थात् विशेष्यानुसार लिङ्गवाला है, इसी कारण टीकाकार ने-"खण्डमात्रवृत्तितायामभिधेयलिनः" ( 'खएड' अर्थमें प्रयुक्त होने पर अभिधेयलिङ्ग अर्थात् वायलिङ्ग 'अर्ध शब्द है ) ऐसा कहा है तथा 'समान भाग' अर्थमें प्रयुक्त 'अर्ध शब्द नपुंसकलिङ्ग है । 'नेम' शब्द भी 'श्राधा' अर्थमें सर्वनामसंज्ञक है, अतएव उक्त अर्थमें उसका प्रयोग 'सर्व' शन्दके समान तथा दूसरे अर्थ में 'राम' शब्दके समान होता है ॥ २. 'अंश, बाँट, हिस्से के ३ नाम है-अंशः, भागः, दण्टः ।। ३. 'चतुर्थाश, चौथाई हिस्से'का १ नाम है-पादः ॥ ४. 'मलिन के . ५ नाम हैं-मलिनम् , कच्चरम् , म्लानम् , कश्मलम् (+ कल्मषम), मलीमसम् ।। ५. 'पवित्र' के ४ नाम है-पवित्रम् (पु न ।+त्रि ), पावनम् , पूतम् , 'पुण्यम् , मेध्यम् ।। ६. 'उज्ज्वल, (निर्मल, मलहीन )के ८ नाम हैं-उज्ज्वलम , विमलम , विशदम् , वीघ्रम् , अवदातम् , अनाविलम् , विशुद्धम् , शुचि ।। ७. स्वतः स्वच्छ, निर्मल' के ३ नाम हैं-चोक्षम , निःशोध्यम् , अनवस्करम् ।। ८. 'शुद्ध ( साफ) किये हुए 'के ५ नाम हैं-निर्णितम् , शोधितम् , -मृष्टम् , धौतम् , क्षालितम् ॥ Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४६ अभिधानचिन्तामणिः १सम्मुखीनमभिमुखं २पराचीनं पराङ्मुखम् ॥ ७३ ॥ . . ३मुख्य प्रकृष्टं प्रमुखं प्रवह वयं वरेण्यं प्रवरं पुरोगम। अनुत्तरं प्राग्रहरं प्रवेकं प्रधानमप्रेसरमुत्तमाप्रे ॥ ७४ ॥ प्रामण्यमण्यग्रिमजात्याग्र्यानुत्तमान्यनवरायवरे । प्रष्ठपरायपराणि ४श्रेयसि तु श्रेष्ठसत्तमे पुष्कलवत् ॥ ७५ ।। प्रस्युरुत्तरपदे व्याघ्रपुङ्गवषेभकुञ्जराः। सिंहशादू लनागाद्यास्तल्लजश्च मल्लिका ।। ७६।। मचिकाप्रकाण्डोध्दाः प्रशस्याथेप्रकाशकाः ।... गुणोपसर्जनोपाग्राण्यप्रधानेऽधर्म पुनः ।। ७७ ॥ निकृष्टमणकं गोमवद्यं काण्डकुत्सिते । अपकृष्ट प्रतिकृष्ट याप्यं रेफोऽवमं ब्रुवम् ॥ ७ ॥ . खेटं पापमपशदं कुपूर्य चेलमर्व च। .. १. 'सामने ( सम्मुख )'वाले के २ नाम हैं-सम्मुखीनम् , अभिमुखम ॥ २. 'पीछेवाले' के २ नाम है-पराचीनम् , पराङमुखम् ।। . __३. 'मुख्य, प्रधान'के २६ नाम है..-मुख्यम् , प्रकृष्टम् , प्रमुखम् , प्रवर्हम् , वर्यम् , वरेण्यम , प्रवरम् , पुरोगम् , अनुत्तरम् , प्राग्रहरम् , प्रवेकम , प्रधानम् ( न ।+त्रि ), अग्रेसरम ; उत्तमम् , अग्रम , ग्रामणी:, अग्रणीः, अग्रिमम् , जात्यम् , अग्रयम् , अनुत्तमम् , अनवराय॑म् , वरम् (पु न ।+त्रि ), प्रष्ठम् , पराध्यम् , परम ( शेष सब त्रि )॥ ४. 'अत्यधिक उत्तम या प्रशस्त'के ४ नाम है--श्रेयः ( - स् ), भष्ठम् , सत्तमम् , पुष्कलम् ( सब त्रि)॥ ५. 'जिस शब्दके उत्तरपद ( समस्त होकर जिस शन्दके बाद )में इन वक्ष्यमाण 'व्याघ्र' आदि शब्दोंका प्रयोग होता है, उस शब्दकी श्रेष्ठताको ये शब्द व्यक्त करते हैं-जैसे—'नरव्याघ्रः, नरपुङ्गवः ....."आदि कहनेसे उसका 'नरों में श्रेष्ठ' ऐसा अर्थ होता है और इनका लिङ्गपरिवर्तन नहीं होता है अर्थात् उत्तरपदवालाही लिङ्ग सर्वदा रहता है। उत्तरपदमें प्रयुक्त होकर पूर्वपदकी प्रशस्यताको कहनेवाले ये १२ शब्द हैं—व्याघ्रः, पुङ्गवः, ऋषभः, कुखरः, सिंहः, शार्दूलः, नागः श्रादि ('आदि' शब्दसे 'वृन्दारकः' इत्यादिका संग्रह है ) तलजः, मतल्लिका, मचचिका, प्रकाण्डम्, उद्घः ।।. ६. अप्रधान के ४ नाम हैं-गुणः, उपसर्जवम् (न, यथा-उपसजनं. भायो,..), उपाग्रम्, अप्रधानम् ।। ७. 'निकृष्ट, होन, निन्दनीय'के १६ नाम हैं- अधमम्, निकृष्टम्, अणकम्, गह्यम् , अवद्यम् , काण्डम् (पुन); कुत्सितम् , अपकृष्टम्, प्रतिकृष्टम्, Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सामान्यकाण्ड: ६] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः ३४७ श्वदासेचनकं यस्य दर्शनाद् हग्न तृप्यति ॥ ७६ ॥ २चारु हारि रुचिरं मनोहरं वल्गु कान्तमभिरामबन्धुरे। वामरुच्यसुषमाणि शोभनं मञ्जमञ्जलमनोरमाणि च ॥८॥ साधुरम्यमनोज्ञानि पेर्शलं हृद्यसुन्दरे। काम्यं कम्र कमनीयं सौम्यञ्च मधुरं प्रियम् ॥ ८१॥ ३व्युष्टिः फल४मसारन्तु फल्गु पशून्यन्तु रिक्तकम् । शुन्यं तुच्छं वशिकश्च ६निबिडन्तु निरन्तरम् ।। ८२ ॥ निबिरीसं घनं सान्द्रं नीरन्ध्र बहलं दृढम् । गाढमविरलञ्चाथ विरलं तनु पेलवम् ॥ ८३ ॥ नवं नयीनं सद्यस्कं प्रत्यग्रं नूत्ननूतने । नव्यञ्चाभिनवे हजीर्णे पुरातनं चिरन्तनम् ।। ८४ ॥ पुराणं प्रतनं प्रत्नं जर याप्यम् (+याव्यम् ) रेफ: (+रेपः), अवमम् , बवम् , खेटम्, पापम् , अपशदम्, कुपूयम् , चेलम् , अर्व (-वन् । ) 'रेफ' शब्दको छोड़कर शेष सब वायलिग हैं)॥ .. .. १. 'जिसके देखनेसे नेत्र तृप्तं न हों अर्थात् बराबर देखते ही रहनेकी इच्छा बनी रहे, उसका १ नाम है-आसेचनकम् ॥ २. 'सुन्दर, मनोहर के २८ नाम है-चारु, हारि (-रिन् ), रुचिरम्, मनोहरम् वल्गु, कान्तम् , अभिरामम् , बन्धुरम् , वामम् , रुच्यम्, सुषमम् , शोभनम् , मञ्जु, मञ्जुलम, मनोरमम , साधु, रम्यम (+रमणीयम), मनोशम, पेशलम् , हृद्यम् , सुन्दरम् , काभ्यम् , कमम् , कमनीयम् , सौम्यम् , मधुरम् , प्रियम् (+लडहः । सब वाच्यलिङ्ग हैं)॥ ३. 'फल, परिणाम के २ नाम है-युष्टिः, फलम् (+परिणामः) ४. 'सारहीन'के २ नाम है-असारम् (+निःसारम् ), फल्गु ॥ ५. 'शून्य, खाली, तुच्छंके ५ नाम है--शून्यम् , रिक्तकम (+ रिक्तम), शुन्यम्, तुच्छम् , वशिकम् ॥ ६. सघन' के १० नाम है-निबिडम् , निरन्तरम , निबिरीसम , घनम , सान्द्रम् , नीरन्ध्रम् , बहलम् , दृढम् , गाढम् , अविरलम् ।। ७. 'विरल'के ३ नाम है-विरलम , तनु, पेलवम् ।। ८. 'नये, नवीन'के ८ नाम है-नवम् , नवीनम् , सद्यस्कम् प्रत्ययम् , नूनम , नूतनम् , नव्यम् , अभिनवम् ॥ ६. 'पुराने के ७ नाम है--जीर्णम् , पुरातनम् , चिरन्तनम् , पुराणम्, प्रतनम् , प्रत्नम् , बरत् ॥ Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४८ अभिधानचिन्तामणिः न्मूर्त्तन्तु मूर्तिमत् । २उच्चावचं नैकभेद३मतिरिक्ताधिके समे ।। ८५ ॥ ४पाश्र्वं समीपं सविधं ससीमाभ्याशं सवेशान्तिकसन्निकर्षाः । सदेशमभ्यप्रसनीडसन्निधानान्युपान्तं निकटोपकण्ठे ॥८६॥ सन्निकृष्टसमर्यादाभ्यर्णान्यासन्नसनिधी। ५अव्यवहितेऽनन्तरं संसक्तमपटान्तरम् ।। ८७ ॥ . नेदिष्टमन्तिकतमं विप्रकृष्ट परे पुनः। .. दरेऽतिदूरे दविष्ठं दवीयोहऽथ सनातनम् ॥ ८८॥ शाश्वतानश्वरे नित्यं ध्रव १०स्थेयस्त्वतिस्थिरम् । स्थास्नु स्थेष्ठ ११तत्कूटस्थं कालव्याप्येकरूपतः ।। ८ ।। १२स्थावरन्तु जङ्गमान्य१. 'मूर्तिमान्'के २ नाम हैं-मर्त्तम , मतिमत् ॥ .. . २. 'ऊँच-नीच ( ऊबड़-खाबड़, विषमतल )के २ नाम है -उच्चावचम्, नैकभेदम् ॥ ३. 'अतिरिक्त' (अधिक, अलावे )के २ नाम हैं-अतिरिक्तम् , अधिकम् ॥ ४. 'पास, निकट'के २० नाम है-पार्श्वम् , समीपम्, सविधम् , ससीमम्, अभ्याशम , संवेशः, अन्तिकम् , सन्निकर्षः, सदेशम् , अभ्यग्रम् , सनीडम , सन्निधानम , उपान्तम , निकटम (पु न), उपकण्ठम , सन्निकृष्टम् , समर्यादम , अभ्यर्णम , आसन्नम् , सन्निधिः (पु)॥ ५. 'अव्यवहित' (बीचमें अन्तरहीन ) के ४ नाम है-अव्यवहितम् , अनन्तरम् , संसक्तम्, अपटान्तरम् ॥ ६. 'अत्यन्त समीप'के २ नाम है-नेदिष्ठम् , अन्तिकतमम् ।। ७. 'दूर के ३ नाम हैं-विपकृष्टम् , परम् , दूरम् ॥ ८. 'अत्यन्त दूर’के २ नाम हैं-अतिदूरम् , दविष्ठम् , दवीयः (-यस)॥ ६. 'सनातन, नित्य'के ५ नाम हैं-सनातनम् , शाश्वतम् , अनश्वरम्., नित्यम् , ध्रुवम् ॥ १०. 'अत्यन्त स्थिर'के ४ नाम हैं-स्थेयः (-यस् ), अतिस्थिरम् , स्थास्नु, स्थेष्ठम् ॥ ११. 'सर्वदा एकरूप में ( निर्विकार होकर ) स्थित रहनेवाले उस अत्यन्त स्थिर पदार्थ ( 'आकाश' आदि )' का १ नाम है--कूटस्थम् ॥ १२. 'स्थावर' । जङ्गमस भिन्न, यथा-पृथ्वी, पर्वत श्रादि अचल पदार्थ)का १ नाम है-स्थावरम् ।। Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४६ सामान्यकाण्ड: ६] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः १ज्जङ्गमन्तु त्रसं चरम । चराचरं जगदिङ्गं चरिष्णु चारथ चञ्चलम् ॥ १० ॥ तरलं कम्पनं कम्प्रं परिप्लवचलाचले । चटुलं चपलं लोलं चलं पारिप्लवास्थिरे ॥११॥ ३ऋजावजिह्मप्रगुणा४ववाग्रेऽवनतानते । ५कुश्चितं नतमाविद्धं कुटिलं वक्रवेल्लिते ॥ २॥ वृजिनं भङ्गरं भुग्नमरालं जिह्ममूर्मिमत् । ६अनुगेऽनुपदाऽन्वक्षान्वन्च्ये काक्येक एककः ।। ६३ ।। ८एकात्तानायनसगोग्राण्यकांग्रश्च तद्गतम् । अनन्यवृत्त्येकायनगतश्चास्थाद्यमादिमम् ॥१४॥ पौरस्त्यं प्रथमं पूर्वमादिरग्र१०मथान्तिमम् ।। जघन्यमन्त्यं चरममन्तः पाश्चात्त्यपश्चिमे ।। ६५ ॥ १. 'जङ्गम ( चलने-फिरनेवाले, यथा-देव, मनुष्य, पशु, पक्षी आदि ) के ७ नाम हैं-जङ्गमम् , त्रसम् , चरम् , चराचरम् , जगत् , इङ्गम् , चरिष्णु ।। २. 'चञ्चल'के १२ नाम हैं-चञ्चलम् , तरलम् , कम्पनम् , कम्प्रम् , परिप्लवम्, चलाचलम् , चटुलम् , चपलम् , लोलम् , चलम् , पारिप्लवम् , अस्थिरम् ॥ ३. 'सीधा, टेढा नहीं के ३ नाम हैं- ऋजुः, अजिह्म:, प्रगुण: ।। ४. 'अधोमुख'के ३ नाम है-अवाग्रम , अवनतम् , अानतम् ।। ५. 'टेढ़े'के १२ नाम हैं-कुञ्चितम् , नतम् , अाविद्धम् , कुटिलम् , वक्रम , वेल्लितम् , वृजिनम् , भङ्गरम् , भुग्नम् , अरालम् , जिझम् , अमिमत् ।। ६. 'अनुगामी पीछे चलनेवाले' के ४ नाम हैं-अनुगम , अनुपदम , अन्वक्षम , अन्त्रक (-न्वञ्च ।+ अनुचरः, अनुगामी, -मिन् )। ७. 'अकेले, अद्वितीय के ३ नाम है-एकाकी (-किन् ), एकः, एककः (+अवगणः, अद्वितीयः असहायः, एकल:)॥ ८. 'एकाग्र के ८ नाम हैं-एकतानम् , एकायनम , एकसर्गम् , एकाग्रम् , ऐकाग्रम् , तद्गतम् , अनन्यवृत्ति (-त्तिन् ), एकायनगतम् ।। ६. 'पहले, आदिम'के ७ नाम हैं-आद्यम् , अादिमम , पौरस्त्यम , प्रथमम् , पूर्वम् , आदिः, अग्रम् ।। १०. 'अन्तिम, आखिरी, अन्तवाले' के ७ नाम हैं-अन्तिमम् , जघन्यम , अन्त्यम् , चरमम् , अन्तः (पु), पाश्चात्त्यम् , पश्चिमम् ।। Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५० अभिधानचिन्तामणिः श्मध्यमं माध्यमं मध्यमीयं माध्यन्दिनञ्च तत् । २अभ्यन्तरमन्तरालं विचाले ३मध्यमन्तरे ॥६६॥ ४तुल्यः समानः सदृक्षः सरूपः सहशः समः । साधारणसधर्माणौ सवर्णः सन्निभः सह ॥१७॥ ५स्युरुत्तरपदे प्रख्यः प्रकारः प्रतिमो निमः । भूतरूपोपमाः काशः संनिप्रप्रतितः परः॥१८॥ ६औपम्यमनुकारोऽनुहारः साम्य तुलोपमा। . कक्षोपमान मर्चा तु प्रतेर्मा यातना निधिः ।। ६६ ॥ ... छाया छन्दः कायो रूपं विम्बं मानकृती अपि। ' ८सूर्मी स्थूणाऽयःप्रतिमा हरिणी स्याद्धिण्मयी ।। १०० ॥ १. 'मध्यम, बीचवाले'के ४ नाम हैं-मध्यमम , माध्यमम् , मध्यमीयम् , माध्यन्दिनम् ॥ २. 'अन्तराल' ( भीतरी भाग, बीचके हिस्से ) के ३ नाम हैं-अभ्यन्तरम् , अन्तरालम् , विचालम् ॥ ३. 'बीच' के २ नाम हैं-मध्यम् , अन्तरम् ॥ ४. 'तुल्य, समान' के ११ नाम हैं-तुल्यः, समानः, सदृक्षः, सरूपः, सदृशः, समः, साधारणः, सधर्मा (-मन् ), सवर्णः, सन्निभः, सहक (-श)॥ ५. 'किसी शब्दके उत्तर (बाद) में रहनेपर समस्त (समास किये हुए ) ये ११ शब्द उसके समान अर्थको व्यक्त करते हैं ( यथा-चन्द्रप्रख्यं, चन्द्रनिर्भ, चन्द्रप्रतिमं वा मुखम्.... (अर्थात् चन्द्रमाके समान मुख,..") तथा ये शब्द विशष्याधीन लिङ्गवाले होनेसे तीनों लिङ्गोंमें प्रयुक्त होते हैं (यथा-पलवप्रख्यः पाणिः,....."), असमस्त (चन्द्रेण प्रख्यः,") होनेपर इनका कोई प्रयोग नहीं होता है; वे ११ शब्द ये हैं-प्रख्यः, प्रकारः, प्रतिमः, निभः, भूतः, रूपम् , उपमा, संकाशः, नीकाश:, प्रकाशः, प्रतीकाशः॥ ६. 'उपमा, समानता' के ८ नाम हैं-औपम्यम् , अनुकारः, अनुहारः, साम्यम् , तुला, उपमा, कक्षा, उपमानम् (+ उपमितिः)॥ ७. 'प्रतिमा, मर्ति'के ११ नाम हैं-अर्चा, प्रतिमा, प्रतियातना, प्रतिनिधिः, प्रतिच्छाया, प्रतिच्छन्दः, प्रतिकायः,, प्रतिरूपम् , प्रतिबिम्बम् , प्रतिमानम् , प्रतिकृतिः ॥ ८. 'लोहेकी प्रतिमा के ३ नाम है-पूर्मी, स्थूणा, अयःप्रतिमा । ६. 'सुवर्ण (सोने )की प्रतिमा के २ नाम है-हरिणी, हिरण्मयी (+सौवर्णी, कनकमयी,...")॥ Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___३५१ सामान्यकाण्ड: ६ ] 'मणिप्रभा व्याख्योपेतः १प्रतिकूलन्तु विलोममपसव्यमपष्ठुरम् । वाम प्रसव्यं प्रतीपं प्रतिलोममपष्ठु च ॥ १०१ ।। वामं शरीरेऽहं सव्य३मपसव्यन्तु दक्षिणम् । ४अबाधोच्छ्डालोहामान्ययन्त्रितमनर्गलम् ।। १०२ ॥ निरहशे ५ फुटे स्पष्टं प्रकाश प्रकटोल्बणे। व्यक्त ६वर्तुलन्तु वृत्तं निस्तलं परिमण्डलम् ॥ १०३ ॥ ७वन्धुरन्तून्नतानतं स्थपुट विषमोन्नतम् । हअन्यदन्यतरदिन्न त्वमेकमितरच्च तत् ।। १०४ ॥ १०करम्बः कबरो मिश्रः सम्पृक्तः खचितः समाः। ११विविधस्तु बहुविधो नानारूप: पृथग्विधः॥ १०५ ॥ १. 'विपरीत, उलटा, प्रतिकूल के ६ नाम है-प्रतिकूलम् , विलोमम , अपसव्यम , अपष्ठुरम, वामम , प्रसव्यम , प्रतीपम , प्रतिलोमम , अपष्ठु॥ २. 'शरीरके बाएँ अङ्ग'के २ नाम है-वामम , सव्यम् ॥ ३. 'शरीरके दहने अङ्ग'के २ नाम है ---अपसव्यम् , दक्षिणम् ॥ ४. 'निरङ्कश, अधिक स्वतन्त्र के ६ नाम है-अबाधम् , उच्छवलम् , उद्दामम् , अनियन्त्रितम् , अनर्गलम् (+ निरगलम् ), निरङ्क शम् ॥ ५. 'स्पष्ट के ६ नाम हैं-स्फुटम्, स्पष्टम् , प्रकाशम्, प्रकटम्, उल्बणम्, व्यक्तम् ।। . . ६. गोलाकार, वृत्त'के ४ नाम हैं-वर्तुलम् , वृत्तम् (पु न ।+त्रि ), निस्तलम्, पारमण्डलम् ।। ७. 'अपेक्षाकृत अर्थात् साधारण ऊँचे-नीचे'के २ नाम हैं-बन्धुरम् , उन्नतानतम् ॥ ८. 'विषम ( अत्यधिक ) ऊँचे-नीचे उबड़-खाबड़ के २ नाम हैं-स्थपुटम् , विषमोन्नतम् ।।. ६. 'दूसरा, भिन्न'के ५ नाम है ~अन्यत्, अन्यतरत्, भिन्नम, एकम, इतरत् ।। इनमें से तृतीय ‘भिन्न' शब्दको छोड़कर शेष सब पर्याय सर्वनामसंशक हैं)॥ १०. 'मिले, सटे' या जड़े'के ५ नाम हैं-करम्बः, कबरः, मिश्रः, संपृक्तः, खचितः ॥ ११. 'विविध, अनेक प्रकार के ४ नाम हैं-विविधः, बहुविधः, (+बहुरूपः ), नानारूपः, (+नानाविधः ), पृथग्विधः (+ पृथग्रपः, नैकरूपः,") Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५२ अभिधानचिन्तामणिः १त्वरितं सत्वरं तूर्णं शीघ्र क्षिप्रं द्रुतं लघु । चपलाविलम्बिते च २झम्पा सम्पातपाटवम् ॥ १.६॥ . ३अनारतं त्वविरतं संसक्तं सततानिशे । नित्यानवरताजस्त्रासक्ताश्रान्नानि सन्ततम् ॥ १०७ ॥ ४साधारणन्तु सामान्यं ५दृढसन्धिस्तु संहतम् । ६कलिलं गहने संकीर्णे तु संकुलमाकुलम् ॥ १०८ ।। कीर्णमाकोन्च ८पूर्णं त्वाचितं छन्नपूरिते। भरितं निचितं व्याप्तं प्रत्याख्याते निराकृतम् ॥ १० ॥ प्रत्यादिष्टं प्रतिक्षिप्तमपविद्धं निरस्तवत्। . १०परिक्षिप्ते वलयितं निवृतं परिवेष्टितम् ।। ११०।। परिष्कृतं परीतश्च ११त्यक्तं तूत्सृष्टमुज्झितम्। . . . धूतं हीनं विधूतच १. 'शीघ्र, जल्द'के ६ नाम हैं-त्वरितम्, सस्वरम्, तूर्णम्, शीघ्रम् , क्षिप्रम, द्रुतम, लघु, चपलम्, अविलम्बितम् ।। २. 'झपटने के २ नाम हैं--झम्पा. ( स्त्री ।+पु), संपातपाटवम् ।। ३. 'निरन्तर, लगातार, अव्यवहित के ११ नाम हैं-अनारतम , अविरतम् , संसक्तम् , सततम्, अनिशम् (+अव्य०), नित्यम् , अनवरतम् , अजस्रम्, असक्तम् , अश्रान्तम् , सन्ततम् ।। ४. 'साधारण'के २ नाम हैं-साधारणम् , सामान्यम् ॥ ५. 'अच्छी तरह जुटे या मिले हुएं के २ नाम हैं-दृढसन्धिः , संहतम् ।। ६. 'गहन'के २ नाम हैं-कलिलम, गहनम् ॥ ७. 'सङ्कीर्ण' ( ठसाठस भरे हुए, व्याप्त )के ५ नाम है-संकीर्णम् , संकुलम, श्राकुलम्, कीर्णम्, पाकीर्णम् ॥ ८. 'पूर्ण, भरे हुए व्याप्त'के ७ नाम हैं--पूर्णम्, आचितम्, छन्नम् (+छादितम् ), पूरितम्, भरितम्, निचितम्, व्याप्तम् ॥ ६. 'प्रत्याख्यात (दूर हटाये गये, जिसका निराकरण किया गयाहो उस) के ६ नाम हैं--प्रत्याख्यातम निराकृतम, प्रत्यादिष्टम् , प्रतिक्षिप्तम , अपविद्धम्, निरस्तम् ॥ ___ १०. 'घिरे हुए'के ६ नाम हैं--परिक्षिप्तम्, वलयितम् , निवृतम्, परिवेष्टितम , परिष्कृतम् , परीतम ॥ ११. 'छोड़े, गये, हटाये गये' के ६ नाम हैं--त्यक्तम्, उत्सृष्टम्, उज्झि- तम् , धूतम् , हीनम्,,विधूतम् ।। Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सामान्यकाण्डः ६] 'माणप्रभा'व्याख्योपेतः ३५३ -विन्नं वित्त विचारिते ॥ १११ ॥ २अवकीर्णे त्ववध्वस्तं ३संवीते रुद्धमावृतम् । संवृतं पिहितं. छन्नं स्थगितवापवारितम् ॥ ११२॥ अन्तहितं तिरोहित मन्तद्धिस्त्वपवारणम् । छदनव्यवधान्त पिधानस्थगनानि च ॥ ११३ ।। व्यवधानतिरोधानं ५दर्शितन्तु प्रकाशितम् । आविष्कृतं प्रकटितमुच्चण्डन्त्ववलम्बितम् ॥ ११४ ।। ७अनादृतमवाज्ज्ञातं 'मानितं गणितं मतम् । परीढाऽवज्ञावहेलान्यसूक्षणश्वाप्यनादरे ॥११५ ॥ ६उन्मूलितमावहितं स्यादुष्पाटितमुद्धृतम् ।। १०प्रेङ्खोलितन्तरलितं लुलितं प्रेजितं धुतम् ।। ११६ ।। चलितं कम्पितं धूतं वेल्लितान्दोलिते अपि । . १. विचारित । जिसका विचार किया गया हो, उस) के ३ नाम हैंविन्नम् , वित्तम् , विचारितम् ।। २. 'फैलाये हुए, चूर्ण किये हुए के २ नाम है--अवकीर्णम् , श्रवध्व स्तम् ॥ ३. 'ढके हुए, छिपाये गये, रोके गये'के .१० नाम हैं:-संवीतम्, रुद्धम् , श्रावृतम् , संवृतम्, पिहितम् , छन्नम् (+छादितम् ), 'स्थगितम, अपवारितम्, अन्तहितम्, तिरोहितम् ।। ४. रोकने, छिपाने, भनाफस्ने ६ नाम हैं-अन्तर्दिः (पु.), अपवारणम्, छदनम्, व्यवधा, अन्ती , पिधानम्, स्थगनम्, व्यवधानम्, तिरोधानम् ॥ ५. 'प्रकाशित, आविष्कृत'के ४ नाम है-दर्शितम् , प्रकाशितम् , आविष्कृतम् , (+प्रादुष्कृतम्), प्रकटितम् ।। ६. 'लटकाये गयेक २ नाम हैं-उच्चएडम , अवलम्बितम ॥ ७. 'अनाहत, अपमानित'के ५ नाम है-अनादृतम् , अवज्ञातम् , अवमानितम् , अवगणितम् , अवमतम् ।। ८. 'अनादर'के ५ नाम है-रीदा,अवज्ञा (+अवमानना, अवगणना), अवहेलम् (त्रि ), असूक्षणम् (+असूक्षणम् ), अनादरः ॥ ६. 'उखाड़े गये'के ४ नाम है-उन्मूलितम् , आवहितम् , उत्पाटितम् , उद्तम् ॥ १०. 'हिले या कांपे हुए'के १० नाम हैं - प्रेङ्खोलितम् , तरलितम् , Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५४ अभिधानचिन्तामणिः १दोला प्रेजोलनं प्रेङ्खा २फाण्टं कृतमयत्नतः ॥ ११७ ॥ ३अधःक्षिप्त न्यश्चितं स्या४दूर्ध्वक्षिप्तमुदश्चितम् । ५नुन्ननुत्तास्तनिष्ठयूतान्याविद्धं क्षिप्तमीरितम् ।। ११८ ॥ ६समे दिग्धलिप्ते रुणभुग्ने रूषितगुण्डिते । गूढगुप्ते च १०मुषितमूषिते ११गुणिताहते ॥ ११६ ।। १२स्यानिशातं शितं शातं निशितन्तेजितं क्ष्णुतम् । १३वृते तु वृत्तवावृत्ती लुलितम् , प्रेजितम् , धुतम् , चलितम् , कम्पितम् , धूतम् ; वेल्लितम् , आन्दोलितम् ।। १. 'दोला, झूलना' के ३ नाम हैं-दोला, खोलनम , प्रेसा ।। २. 'बिना प्रयत्न किये गये का १ नाम है - फाण्टम्।। विमर्श-जो बिना पकाये बिना पीसे ही केवल जलके संसर्गमात्रसे विभक्तरसवाला काढ़ा आदि आग पर थोड़ा-सा गर्म करनेपर तैयार हो जाय उसे 'फाण्ट' कहते हैं, जैसे-"फाण्टाभिरद्भिराचामेत्', (कुछ गर्म (विशेष प्रायास के बिना ही थोड़ा तपाये हुए ) पानीसे आचमन करे ) यहां थोड़ा गर्म करनेसे आयास ( परिश्रम ) का अभाव-सा प्रतीत होता है, ऐसा कुछ प्राचार्योंका मत है। कुछ प्राचार्योंका यह भी मत है कि 'श्रायासरहित पुरुष या दूसरे किसीको भी 'फाण्ट' कहते हैं, यथा-"फाण्टाश्चित्रास्त्रपाणयः॥" ३. 'नीचे फेंके गये'के २ नाम है-अधःक्षिप्तम , न्यञ्चितम ॥ . ४. 'ऊपर फेंके गये'के २ नाम हैं-ऊर्ध्वक्षिप्तम् , उदञ्चितम् (+उदस्तम )॥ ५. 'फेंके गये'के ७ नाम हैं-नुन्नम , नुत्तम , अस्तम , निष्ठय तम , श्राविद्धम , क्षिप्तम , ईरितम् (+चोदितम् ) ॥. ६. 'लीपे गये, पोते गये'के २ नाम हैं-दिग्धम् , लिप्तम् ॥ ७. 'टूटे हुए के २ नाम हैं-रुग्णम् , भुग्नम् ॥ ८. 'रूषित (भस्म या सूखी मिट्टी श्रादि रगड़ने या पोतने )के २ नाम हैं-रूषितम् , गुण्डितम् ।। ६. 'गृढ, छिपे हुए'के २ नाम हं-गृढम्, गुप्तम् ।। १०. 'चुराये गये'के २ नाम हैं-मुषितम्, मूषितम् ॥ ११. 'गुणित ( अंक, रस्सी आदि ) के २ नाम हैं-गुणितम्, आहतम् ॥ १२. ( शानपर चढ़ाकर या पत्थर आदि पर रगड़कर ) तेज किये गये के ६ नाम हैं-निशातम् , शितम्, शातम् , निशितम्, तेजितम् , दणुतम् ।। १३. 'चुने गये, निर्वाचित'के ३ नाम है-वृतः, वृत्तः, वावृत्तः ।। Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५५ सामान्यकाण्ड: ६] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः . -हीतहीणौ तु लज्जिते ।। १२० ।। रसंगूढः स्यात्संकलिते ३संयोजित उपाहिते। ४पके परिणतं पाके क्षीराज्यहविषां शृतम् ॥ १२१॥ . ६निष्पक्कं कथिते ७प्लुष्टप्रष्टदग्धोषिताः समाः। ८तनूकृते त्वष्टतष्टौ हविद्ध छिद्रितवेधितौ ॥ १२२ ॥ १०सिद्ध निवृत्तनिष्पन्नौ ११विलीने द्रुतविद्रुतौ । १२उतं प्रोते १३स्यूतमृतमुतश्च तन्तुसन्तते ॥ १२३ ।। :४पाटितं दारितं भिन्न १५विदरः स्फुटनं भिदा । १६अङ्गीकृतं प्रतिज्ञातमूरीकृतोरुरीकृते ॥ १२४ ।। संश्रुतमभ्युपगतमुररीकृतमाश्रुतम् । संगीण प्रतिश्रुतश्च- - १. 'लजाये ( शर्माये ) हुए'के ३ नाम हैं-ह्रोतः, ह्रीणः, लज्जितः ।। २. 'संकलित'के २ नाम हैं -संगृदः, संकलितः ।। ३. 'संयुक्त किये ( जोड़े हुए के २ नाम हैं-संयोजितः, उपाहितः ॥ ४. पके हुए के २.नाम है-पकम्, परिणतम् ।। ५. 'दूध, घी तथा हविष्यका पकाने (उवालने का नाम है-शृतम् ।। ६. 'अच्छी तरह पके हुए (अधिक उबालकर क्वाथ किये हुए ) के २ नाम है-निष्पकम्, कथितम् ।। ७. 'जले हुए के ४ नाम हैं--प्लुष्टः, प्रष्टः, दग्धः, उषितः ।। ८. (छीलकर ) पलला किये गये काष्ठ श्रादि'के ३ नाम हैं-तनूकृत; स्वष्टा, तष्टः, ॥ ६. 'छेदे गये काष्ठ, लोहे आदि'के ३ नाम हैं-विद्धः, छिद्रितः, धितः॥ १०. 'सिद्ध'के ३ नाम हैं-सिद्धम्, निवृत्तम्, निष्पन्नः ।। ११. पिघले हुए घृत आदि'के ३ नाम हैं-विलीनः, द्रतः, विद्रतः।। १२. 'बुने हुये कपड़े स्वेटर आदि'के २ नाम हैं-उप्तम् , प्रोतम् ॥ १३. 'सिले हुए कोट, कमीज, कुर्ते आदि के ४ नाम हैं-स्यूतम्, ऊतम् , उतम् , तन्तुसन्ततम् ॥ १४. 'फाड़े या चोरे हुए काष्ठ आदि के ३ नाम हैं-पाटितम , दारितम , भिन्नम ॥ १५ 'फटने या फूटने के २ नाम हैं-विदरः, स्फुटनम् , भिदा (+मित् , १६. 'स्वीकृत' के १० नाम हैं -अङ्गीकृतम् (+कक्षोकृतम् , स्वीकृतम् ), Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५६ अभिधानचिन्तामणि: -छिन्ने लूनं छितं दितम् ।। १२५ ।। छेदितं खण्डितं वृणं कृत्तं २प्राप्ते तु भावितम् । लब्धमासादितं भूतं ३पतिते गलितं च्युतम् ॥ १२६ ।। स्रस्तं भ्रष्टं स्कन्नपन्ने ४संशितन्तु सुनिश्चितम् । ५मृगितं मागितान्विष्टान्वेषितानि गवेषिते ॥ १२७ ।। ६तिमिते स्तिमितक्लिन्नसादाोन्नाः समुत्तवत् । प्रस्थापितं प्रतिशिष्ट प्रहितप्रेषिते अपि ॥ १२८ ।। ख्याते प्रतीतप्रज्ञातवित्तप्रथितविश्रताः। . .... हतप्ते सन्तापितो दूनो धूपायितश्च धूपितः ।। १२६ ॥ १०शीने स्त्थान११मुपनतस्तूपसन्न उपस्थितः । .. प्रतिज्ञातम् , ऊरीकृतम् , उरुरीकृतम् , संश्रुतम् , अभ्युपगतम् , उररीकृतम् , श्राश्रुतम , संगीर्णम् , प्रतिश्रुतम् ॥ १. 'कटे हुए' के ८ नाम हैं- छिन्नम् , लूनम् , छितम् , (+छातम् ), दितम् , छेदितम् , खण्डितम् , वृक्णम् ., कृत्तम् ।। २. 'प्राप्त, पाये हुए'के ५ नाम हैं, प्राप्तम् , माक्तिम् , लब्धम् , श्रासादितम् (+ विनम् ), भूतम् ॥ ३. गिरे हुए'के ७ नाम हैं-पात्तम् , गलितम् , च्युतम् , सस्तम् , भ्रष्टम् , स्कन्नम् , पन्नम् ।। ४. 'सुनिश्चित के २ नाम हैं-संशितम् , सुनिश्चितम् ॥ ५. 'टूढ़े ( खोजे.) गये'के ५ नाम है-मृगितम् , मागितम् , अन्विष्टम् , अन्वेषितम् , गवेषितम् ।। ६. ( पानी आदिसे ) भीगे हुए कपड़े आदि के ७ नाम हैं-तिमितः, स्तिमितः, क्लिन्नः, साद्र:, आद्र':, उन्नः, समुत्तः॥ ७. 'भेजे हुए'के ४ नाम हैं-प्रस्थापितम्, प्रतिशिष्टम् , प्रहितम्, प्रेषितम् ।। ८. विख्यात, प्रसिद्ध के ६ नाम है— ख्यातः, प्रतीत:, प्रज्ञातः, वित्तः, प्रथितः, विश्रुतः (+ प्रसिद्धः )। ____६. तप्त ( तपे हुए ) के ५ नाम है-तप्तः, सन्तापितः, दूनः, धूपायितः, धूपितः॥ १०. 'जमकर कठोर बना हुआ घी आदि'के २ नाम है-शीनम् , स्त्यानम् ॥ ११. 'उपस्थित, पासमें आये हुए'के ३ नाम हैं-उपनतः, उपसन्नः, उपस्थितः ।। Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सामान्यकाण्ड: ६] मणिप्रभा'व्याख्योपेतः १निर्वातस्तु गते वाते निर्वाणः पावकादिषु ॥ १३० ॥ ३प्रवृद्धमेधित प्रौढं विस्मृतान्तर्गते समे। ५उद्वान्तमुद्गते ६गूनं हन्ने ७मोढन्तु मूत्रिते ॥ १३१ ।। विदितं बुधितं बुद्धं ज्ञातं मितगते अवान् । मनितं प्रतिपन्नश्च स्यन्ने रोणं स्नुतं खतम् ।। १३२ ॥ ०गुप्तगोपायितत्रातावितत्राणानि रक्षिते । ११कर्म क्रिया विधा १२हेतुशून्या वास्या विलक्षणम् ।। १३३ ॥ ५३काम मूलकमो१४य संचननं वशक्रिया । १५प्रतिबन्धे प्रांतष्टम्भः १३स्यादास्थाऽऽस्यासना स्थितेः ।। १३४ ।। १. 'वायुक नष्ट ( बन्द ) होने का १ नाम है-निर्यातः ।। २. 'आग या दीपक आदिके बुझ जाने या मुनि आदि के मुक्ति पाने'का १ नाम है-निर्वाणः ॥ .. ३. 'बढ़े हुए'के ३ नाम है-प्रवृद्धम्, एधितम् , प्रौढम् ।। ४. 'विस्मृत ( भूले हुए ) के ३ नाम हैं-विस्मृतम्, (+प्रस्मृतम् ), अन्तर्गतम् ॥ ५. 'उगले या उल्टी ( कय ) किये हुए'के २ नाम हैं-उद्वान्तम् , उद्गतम् ॥. ६. 'पाखाना किये हुए'के २ नाम हैं-गूनम् , हनम् ॥ ७. 'पेशाब किये हुए'के २ नाम है-मोढम् , मूत्रितम् ।। ८. 'जाने हुए'के ८ नाम है--विदितम्, बुधितम्, बुद्धम्, ज्ञातम् , अवसितम्, अवगतम् , मनितम्, प्रतिपन्नम् ॥ ६. 'टपके, चूये या बहे हुए' के ४ नाम हैं -स्यन्नम्, रीणम्, स्नुतम्, सुतम् ॥ .. १०. 'गुप्त, रक्षित'के ६ नाम हैं-गुतम्, गोपायितम् , बातम्, अवितम्, त्राणम्, रक्षितम् ॥ ११. 'कर्म'के ३ नाम हैं-कर्म (-मन् , पु न), क्रिया, विधा (+कृतिः)॥ १२. 'कारणहीन स्थिति' ( विलक्षण ) का १ नाम है-विलक्षणम् ।। १३. 'मूल कर्म'के २ नाम है-कार्मणम्, मूलकर्म (-र्मन् )॥ १४. 'वश में करने के २ नाम है-संवननम्, वशक्रिया (+ वशीकरणम्): १५. 'प्रतिबन्ध ( रुकावट ) के २ नाम हैं-प्रतिबन्धः, प्रतिष्टम्भः ॥ १६. 'स्थिति, ठहरने के ४ नाम है-आस्या, अास्था, आसना, स्थितिः ॥ Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५८ अभिधानचिन्तामणि १परस्परं स्यादन्योन्यमितरेतरमित्यपि । २आवेशाटोपौ संरम्भे ३निवेशो रचना स्थितौ ।। १३५ ।। ४निर्बन्धोऽभिनिवेशः स्यात् ५प्रवेशोऽन्तर्विगाहनम् । गतौ वीजा विहारे-परिसर्पपरिक्रमाः ।। १३६ ॥ ७व्रज्याऽटाट्या पर्यटनं ८चर्या त्वीर्यापथस्थितिः। व्यत्यासस्तु विपर्यासो वैपरीत्यं विपर्ययः ॥ १३७ ।। व्यत्यये१०ऽथ स्फातिवद्धौ १५प्रीणनेऽवनतर्पणे। . १२परित्राणन्तु पर्याप्तिहस्तधारणमित्यपि ॥ १३८.।। १३प्रणतिः प्रणिपातोऽनुनये१४ऽथ शयने क्रमान् । विशाय उपशायश्च १. 'परस्पर ( आपसमें ) के ३ नाम हैं-परस्परम्, अन्योन्यम्, इत. रेतरम् ॥ २. 'संरम्भ, तेजी, तीब्रता' के ३. नाम है-श्रावेशः, अाटोपः, संरम्भः ॥ ३. 'रचना, बनावट'के.३ नाम है-निवेशः, रचना, स्थितिः ।। ४. 'निर्बन्ध, अाग्रहके २ नाम हैं-निर्बन्धः, अभिनिवेशः (+ श्राग्रहः)॥ ५. प्रवेश करने ( नदी या घर आदि में घुसने ) के २ नाम हैंप्रवेशः, अन्तर्विगाहनम् ॥ ६. 'गमन, जाने के ६ नाम हैं-गतिः, वीजा, विहारः, ईर्ष्या, परिसर्पः परिक्रमः ।। ७. 'घूमने, टहलने'के ३ नाम हैं-व्रज्या , अटाट्या (+श्रदाटा, अट्या), पर्यटनम् ॥ ८. 'ईर्यापथ में रहने ( मुनियोंके ध्यान-मौन श्रादि नियत तोका पालन करने )के २ नाम है-चर्या, ईर्ष्यापथस्थितिः ॥ ६. 'विपरीतता, उलटफेर'के ५ नाम है-व्यत्यासः, विपर्यास:, वैपरीत्यम्, विपर्ययः, व्यत्ययः ।। १०. 'बढ़ने, वृद्धि होने के २ नाम हैं-स्फातिः, वृद्धिः (+वद्धनम् ) ११. 'तृप्त करने के ३ नाम हैं-प्रीणनम्, अवनम्, तर्पणम् ॥ १२. सहारा देने, रक्षा करने के ३ नाम है-परित्राणम्, पर्याप्तिः, इस्तधारणम्॥ १३. 'प्रणाम करने के ३ नाम हैं-प्रणतिः, प्रणिपातः, अनुनयः (+प्रणामः, प्रणमनम् , नमस्कारः, नमस्कृतिः, नमस्करणम् ) ॥ १४. क्रमशः (बारी-बारी से ) पहरेदारी आदि के लिए सोने, शयन करने के २ नाम है-विशायः, उपशायः ॥ Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सामान्यकाण्ड: ६] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः .३.६ -१पर्यायोऽनुक्रमः क्रमः ॥ १३६ ।। परिपाट्यानुपुर्व्यावृरदतिपातस्त्वतिक्रमः । उपात्ययः प्रर्ययश्च ३समौ सम्बाधसङ्कटौ॥ १४० ।। ४कामं प्रकामं पर्याप्त निकामेष्टे यथेप्सिते। ५अत्यर्थे गाढमुद्गाढं बाद तीव्र भृशं दृढम् ।। १४१ ॥ अतिमात्रातिमर्यादनितान्तोत्कर्षनिर्भराः । भरैकान्तातिवेलातिशया ६जम्मा तु जम्भणम् ।। १४२ ॥ ७आलिङ्गनं परिष्वङ्गः संश्लेष उपगृहनम् । अङ्कपाली परीरम्भः क्रोडीकृतिप्रथोत्सवे ॥ १४३ ॥ महः क्षणोद्धवोद्धर्षा :मेलके सङ्गसङ्गमौ । १०अनुग्रहोऽभ्युपपत्तिः ११समौ निरोधनिग्रहो ॥ १४४॥ १. 'क्रम'के ६ नाम हैं-पर्यायः, अनुक्रमः, क्रमः, परिपाटी, आनुपूर्वी (+आनुपूर्व्यम् ), आवृत् ॥ . २. 'अतिक्रम (क्रमको भङ्ग करने के ४ नाम हैं-अतिपातः, अतिक्रमः, उपात्ययः, पर्ययः ॥ ... ३. 'सङ्कीर्ण'के २ नाम हैं-सम्बाधः, सङ्कटः॥ ४. 'यथेष्ट, इच्छानुसार, भरपूर के ६ नाम हैं-कामम्, प्रकामम्, पर्याप्तम्, निकामम् , इष्टम् , यथेप्सितम्॥ विमर्श-कामम्, प्रकाम् और निकामम्-ये तीन शब्द अकारान्त होने पर अव्यय नहीं है और मकारान्त होनेपर अव्यय है। __५. 'अतिशय, अधिक के १६ नाम है-अत्यर्थम्, गाढम्, उद्गाढम्, बादम्, तीव्रम, भृशम, दृढम, अतिमात्रम, अतिमर्यादम, नितान्तम, उत्कर्षः, निर्भरः, भरः, एकान्तम, अतिवेल:, अतिशयः ॥ ६. 'बँभाई के २ नाम है-जम्मा (त्रि), जम्भणम् ॥ ७. 'प्रालिंगन करने के ७ नाम हैं-आलिङ्गनम्, परिष्वङ्गः, संश्लेषः, उपगृहनम् , अङ्कपाली, परीरम्भः, क्रोडीकृतिः ।। ८. 'उत्सव'के ५ नाम हैं-उत्सवः, महः, क्षणः, उद्धवः, उद्धर्षः। ६. 'मिलने के ३ नाम है-मेलकः, सङ्गः, सङ्गमः (पु न)। १०. 'अनुग्रह' के २ नाम है-अनुग्रहः, अभ्पुपपत्तिः ।। ११. निरोध, रोकने के २ नाम हैं-निरोधः, निग्रहः ॥ १. यथाऽऽ शाश्वत:-'कामे निकामे कामाख्या अव्ययास्त मकारान्ताः ।' इति ।। Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६० अभिधानचिन्तामणिः १ विघ्नेऽन्तरायप्रत्यूहव्यवायाः २समये क्षणः वेलावाराववसरः प्रस्तावः प्रक्रमोऽन्तरम् ॥ १४५ ॥ ३श्रभ्यादानमुपोद्घात आरम्भः प्रोपतः क्रमः । ४ प्रत्युत्क्रमः प्रयोगः स्यादारोहणन्त्यभिक्रमः ॥ १४६ ॥ ६ श्राक्रमेऽधिक्रमक्रान्ती ७ व्युत्क्रम स्तुत्क्रमोऽक्रमः । दविप्रलम्भो विप्रयोगो वियोगो विरहः समाः ॥ १४७ ॥ आभा राढा विभूषा श्रीरभिख्याकान्तिविभ्रमाः । लक्ष्मीछाया च शोभायां १० सुपमा साऽतिशायिनी ॥ १४८ ॥ ११ संस्तवः स्यात्परिचय १२ आक इजतम् । १३ निमित्ते कारणं हतुर्वीर्ज थाननिकनम् ॥ १४६ ॥ निदान १. 'विघ्न' के ४ नाम हैं - विघ्नः, श्रन्तरायः, प्रत्यूहः, व्यवायः ॥ २. 'समय, अवसर' के ८ नाम हैं-समयः क्षयः, वेला, वार: (पुनं), अवसरः, प्रस्ताव:, प्रक्रमः, अन्तरम् ॥ ३. 'श्रारम्भ' के ५ नाम हैं - अभ्यादाननू, उपाद्धातः ( + उद्घातः ), आरम्भ:, प्रक्रमः, उपक्रमः ॥ ४. 'प्रयोग' के २ नाम है - प्रत्युत्क्रमः, प्रयागः ॥ ५. 'सामनेसे चढ़ने' के २ नाम हैं- आरोहणम्, आमक्रमः ॥ -- श्राक्रमः ६. 'क्रान्ति' के ३ नाम हैंक्रान्तिः ॥ ७. 'क्रमसे रहित' के ३ नाम है—स्कन, इस्कम, अक्रमः ॥ ८. 'बियोग, विरह' के नाम है म्भः विरहः ॥ + अक्रमणम् ), अधिक्रमः, विप्रयोगः, वियोग:, ६. 'शोभा' के १० नाम हैं-आमा, राढा, नुषा, भोः (स्त्री); अभिख्या, कान्तिः, विभ्रमः, लक्ष्मी: ( स्त्र), छाया, शोभा ॥ १०. 'अत्यधिक शोभा'का १ नाम है- सुषमा "I ११. 'परिचय, जान-पहचान' के २ नाम है संस्तवः, परिचयः १२. 'चेष्टा, इशारा' के ३ नाम हैं-आकार:, इङ्गः, इङ्गितम् ॥ १३. ४६. ‘कारण, हेतु’के ७ नाम है--निमित्तम्, कारणम्, हेतु: (पु), बा जम्, योनिः (पुत्री), निबन्धनम्, निदानम्, (ये धर्मवृत्ति होनेपर भी अपने लिङ्गको नहीं छोड़ते, अर्थात् अपने-अपने नियत लिङ्गमें ही प्रयुक्त होते है यथा-सुखस्य धर्मो निमित्तम्, निमित्त शब्द नपुंसक में प्रयुक्त हुआ है ) || एक विशेषण होनेपर भी Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सामान्यकाण्डः ६] 'मणिप्रभा'व्याख्यापतः ३६१ -१मथ कार्य स्यादर्थः कृत्यं प्रयोजनम् । २निष्ठानिर्वहणे तुल्ये ३प्रवहो गमनं बहिः ॥ १५०॥ ४जाति: सामान्य व्यक्तिस्तु विशेषः पृथगात्मिका । ६तिर्यक्साचिः ७संहपेस्तु स्पर्धा द्रोहस्त्वपक्रिया ॥ १५१ ॥ हबन्ध्ये मोघाऽफलमुधा १०अन्तर्गडु निरर्थकम् । ११संस्थानं सन्निवेशः स्या१२दर्थस्यापगमे व्ययः ।। १५२ ।। १३सम्मूर्च्छनत्व भव्याप्ति१४]षो भ्रंशो यथोचितात् । १५अभावो नाशे १६संक्रामसंक्रमौ दुर्गसंचरे ।। १५३ ॥ १७नी वाकस्तु प्रयामः स्यादवेक्षा प्रतिजागरः ।। १. 'प्रयोजन, कार्य के ४ नाम हैं-कार्यम्, अर्थः, कृत्यम, प्रयोजनम् ॥ २. 'निर्वाह करने के २ नाम है--निष्ठा, निर्वहणम् ॥ ३. 'बाहर जाने, बहने का १ नाम है-प्रवहः ।। ४. 'जाति'के २ नाम है--जातिः (जातम ), सामान्यम ।। ५. 'व्यक्ति, विशेष'के ३ नाम हैं--व्यक्तिः, विशेषः, पृथगामिका । ६. तिचे के २ नाम है-तिर्थक (- यञ्च ), साचिः (स्त्री ।+साची, अव्य०)॥ ७. स्पर्धा, होड़ के २ नाम हैं-संहर्षः (+ सङ्घर्षः), स्पर्द्धा ॥ ८. 'द्रोह, अपकार के २ नाम हैं-द्रोः , अपक्रिया (+अपकारः)॥ ६. 'फलहीन, निष्फल के ४ नाम हैं - बन्ध्यम् , मोघम् , अफलम् , मुंधा (स्त्री तथा श्रव्य०)॥ १०. निरर्थक'के २ नाम हैं-अन्तर्गडु, निरर्थकम् ।। ११. 'संस्थिति, ठहराव के २ नाम हैं-संस्थानम् , सनिवेशः ।। १२. 'व्यय, खर्चका १ नाम है-व्ययः॥ १३. सर्वत्र व्याप्त होने-फैल जाने के २ नाम हैं-सम्मूर्छनम् , अभिव्याप्तिः।।. .. .. १४. 'यथोचित से भ्रष्ट होने का १ नाम है-भ्रषः ॥ १५. 'अभाव नाश के २ नाम हैं-अभावः, नाशः ॥ १६. 'दुर्ग (किला )में जाने या दुर्गके मार्ग के ३ नाम हैं-संक्रामः, संक्रमः ( २ पु न ), दुर्गसंचरः ॥ १७. नियंत्रित वचन, ( परिमित ठीक-ठीक बोलने )के २ नाम हैनीवाकः, प्रयामः ॥ १८. 'अवेक्षण ( देख भाल, निगरानी ) के २ नाम हैं-अवेक्षा, (+अवेक्षणम् , निरीक्षणम् .), प्रतिजागरः ।। Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६२ अभिधानचिन्तामणिः १समौ विश्रम्भविश्वासौ २परिणामस्तु विक्रिया ।। १५४ ।। ३चक्रावर्तो भ्रमो भ्रान्तिर्धमिधु णिश्च घूर्णने । ४विप्रलम्भो विसंवादो प्रविलम्भस्त्वतिसर्जनम् ।। १५५.।। ६उपलम्भस्त्वनुभवः ७प्रतिलम्भस्तु लम्भनम् । पनियोगे विधिसंप्रेषौ हविनियोगोऽर्पणं फले ॥ १५६ ॥ १०लवोऽभिलावो लवनं ११निष्पावः पवनं पवः। १२निष्ठेवष्ठीवनष्ठय तष्ठेवनानि तु थूत्कृते ।। १५७ ॥ १३निवृत्तिः स्यादुपरमो व्यवोपाङभ्यः परा रतिः। ... १४विधूननं विधुवनं १५रिडणं स्खलनं समे ।। १५८ ॥ १६रक्षणस्त्राणे १७ग्रहो प्राहे १. 'विश्वास' के २ नाम हैं-विधम्भः, विश्वासः ।। - २. 'विकार ( यथा-दूधका विकार दही....)के २. नाम है-परिवामः (+परिणतिः ), बिक्रिया (+विकारः, विकृतिः ) ॥ .. ___३. 'भ्रमण, चक्कर लगाने के ६ नाम है-चक्रावर्तः, भ्रमः, · भ्रान्तिः , भ्रमिः, पूर्णिः ( ३ स्त्री), घूर्णनम् ॥ . . . ४. 'विसंवाद' ( परस्पर या पूर्वापर विरोधी वचन के २ नाम हैविप्रलम्भः, विसंवादः ( यथा-अन्धः पश्यति, मूको वदति ........)॥ ५. 'समर्पण करने, देने के २ नाम हैं-विलम्भः, अतिसर्जनम् ॥ ६. 'प्राप्ति के २ नाम हैं-उपलम्भः, अनुभवः ।। ७. 'दोषारोपण, या पाने के २ नाम हैं-प्रतिलम्भः, लम्भनम् ॥ ८. 'नियुक्त करने, लगाने के ३ नाम हैं-नियोगः, विधिः, संप्रेषः ।। ६. 'फलके विषयमें समर्पण करने का १ नाम है-विनियोगः ॥ १०. 'काटने के ३ नाम हैं-लवः, अभिलावः, लवनम् ।। ११. 'धान श्रादिसे भूसीको अलगकर साफ करने के ३ नाम है-निष्पावः, पवनम् , पवः ॥ १२. 'थूकने'के ५ नाम हैं-निष्ठेवः (पु न ), ष्ठीवनम् , ष्ठय तम् , प्ठेवनम् , थूत्कृतम् ॥ १३. 'निवृत्ति, समाप्ति'के ६ नाम हैं-निवृत्तिः, उपरमः, विरतिः, अवरतिः उपरतिः, भारतिः ॥ १४. 'हिलाने, कॅपाने के २ नाम है-विधूननम् , विधुवनम् ॥ १५. स्खलित होने, फिसलने'के २ नाम हैं-रिक्षणम् , स्खलनम् ।। १६. रक्षा करने, बचाने के २ नाम हैं-रणः, त्राणम् ।। १७. 'पकड़ने के २ नाम है-ग्रहः, ग्राहः ॥ Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सामान्यकाण्डः ६ मणिप्रभा'व्याख्योपेतः ३६३ -१व्यधनो वेधे रक्षये क्षिया । ३स्फरण स्फुरणे ४ज्यानिर्जीवथ वरो वृतौ ॥ १५६ ॥ ६समुच्चयः समाहारोऽपहारापचयौ समौ । ८प्रत्याहार उपादान-बुद्धिशक्तिस्तु निष्क्रमः ॥ १६० ॥ १०इत्यादयः क्रियाशब्दा लक्ष्या धातुषु लक्षणम् । ११अथाव्ययानि वक्ष्यन्ते १२स्वः स्वर्गे १३भूः रसातले ।। १६१ ॥ १४भुवो विहायसा व्योम्नि १५द्यावाभूम्योस्तु रोदसी। १६उपरिष्टादुपयू चे १७स्यादधस्तादधोऽप्यवाक् ।। १६२॥ १८वर्जने त्वन्तरेणर्ते हिरुग नाना पृथग विना। १. 'बेधने, छेदने'के २ नाम हैं-व्यधः, वेधः । २. कम होने घटने'के २ नाम हैं-क्षयः, क्षिया । ३. 'फड़कने के २ नाम है-स्फरणम् , स्फुरणम् ॥ ४. 'पुराना होने के २ नाम है-ज्यानिः, जीणिः॥ ५. 'स्वीकार करने, वरण करने के २ नाम हैं-वरः, वृतिः ।। ६. 'एकत्र ( इकट्ठा ) करने, ( समेटने, बटोरने )के २ नाम हैसमुच्चयः, समाहारः॥ . . ७. 'कम करने, हटाने के २ नाम है-अपहारः अपचयः ॥ 5. 'लाने के २ नाभ हैं-प्रत्याहारः, उपादानम् ।। ६. 'अष्टविध बुद्धिशक्ति'का १ नाम है-निष्कमः ॥ १०. इत्यादि प्रकारसे सिद्ध क्रियावाचक शब्दोंको धातु-प्रकृति-प्रत्ययके विभागादिके द्वारा जानना चाहिए । ११. अब साधारण शब्दोंका अर्थ कहने के बाद 'अव्यय' (तीनो लिङ्गों, सातों विभक्तियों तथा तीनों वचनोंमें समान रूपवाले) शब्दोंको कहते हैं । 'अव्ययः' यह शब्द पुल्लिङ्ग और नपुंसक लिङ्ग है ॥ १२. 'स्व' (स्वर ) का अर्थ 'स्वर्ग' है । १३. 'भू' (+भूस) का अर्थ 'रसातल, पाताल' है । १४. 'भुवः ( वस् ), विहायसा' इन २ शब्दोंका अर्थ 'श्राकाशमें' है । १५. 'रोदसी'का अर्थ 'आकाश तथा भूमिका मध्य भाग' है ॥ १६. 'उपरिष्टात् , उपरि' इन २ शन्दोंका अर्थ 'अपरमें है ।। . १७. 'अधस्तात्' अधः (- धस ) इन २ शब्दोंका अर्थ 'नीचे' है ।। १८. 'अन्तरेण, श्रुते, हिरुक , नाना, पृथक , विना' इन ६ शन्दोंका अर्थ 'अभावमें, विना' है ।। Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणिः १साकं सत्रा समं सार्द्धममा सह २कृतन्त्वलम् ॥ १६३ ॥ भवत्वस्तु च किं तुल्याः ३प्रेत्यामुत्र भवान्तरे । तूणी तूष्णीकां जोषञ्च मौने पदिष्टया तु सम्मदे ।। १६४ ।। ६परितः सर्वतो विष्वक समन्ताच्च समन्ततः । ज्पुरः पुरस्तात्पुरतोऽप्रतः प्रायस्तु भूमनि ॥ १६५ ।। ६साम्प्रतमधुनेदानी सम्प्रत्येतद्य१०थाजसा । द्राक स्त्रागरं झटित्याशु मङदवह्वाय च सत्वरम् ।। १६६ ॥ ११सदा सनाऽनिशं शश्वद्१२भूयोऽभीक्ष्णं पुनःपुनः। .. असकृन्मुहुः १३सायन्तु दिनान्ते १४दिवसे दिवा ॥ १६७ ॥ . १. 'साकम् , सत्रा, समम् , सार्द्धम् , अमा, सह' इन ६ शन्दोका अर्थ 'साथमें' है ॥ २. 'कृतम् , अलम् , मवतु, अस्तु, किम् , इन ५ शब्दोंका अर्थ निषेध करना, है ।। ३. 'प्रेत्य, अमुत्र' इन २ शब्दोंका अर्थ 'परलोकमें है। ४. 'तूष्णीम् , तूष्णीकाम्, जोषम्' इन तीन शब्दों का अर्थ 'मौन (चुप-चाप ) रहना' है ॥ ५. 'दिष्ट्या ' (+समुपजोषम् ) का अर्थ 'अधिक हर्ष' है ॥ ६. परितः, सर्वतः ( २-तस् ), विष्वक् (-१ञ्च् ), समन्तात्, समन्ततः (-तस् ), इन ५ शब्दों का अर्थ 'सब तरफ' है ।। ७. 'पुरः (-रस ), पुरस्तात् , पुरतः, अग्रतः (२-तस् ) इन ४ शब्दोंका अर्थ 'सामने, अागेकी ओर' है । . ____८. 'प्रायः -यस् ), का अर्थ 'अधिकतर, ज्यादातर' है ॥ ६. 'साम्प्रतम्, अधुना, इदानीम् , सम्प्रति, एतहि' इन ५ शन्दोंका अर्थ 'इस समय' है॥ १०. 'अञ्जसा, द्राक , साक् , अरम् , झटिति, श्राशु, मक्षु, अहाय, सत्वरम्' इन ६ शब्दोंका अर्थ 'शीघ्र, झटपट' है ।। ११. 'सदा (+ सर्वदा ), सना (+ सनत् , सनात् ), अनिशम्, शश्वत्' इन ४ शन्दोंका अर्थ 'सब समय' है ॥ १२. 'भूयः (-यस् ), अभीक्ष्णम्, पुनःपुन: (-नर ), असकृत् , मुहुः -(-हुस )' इन ५ शब्दोका अर्थ 'बार-बार, फिर' है ।। १३. 'सायम्'का अर्थ 'सन्ध्या समय, सायंकाल' है ।। १४. दिवा'का अर्थ 'दिन' है ।। Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६५ सामान्यकाण्डः ६] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः श्सहसैकपदे सद्योऽकस्मात्सपदि तत्क्षणे । २चिराय चिररात्राय चिरस्य च चिराच्चिरम् ।। १६८ ।। चिरेण दीर्घकालार्थे ३कदाचिज्जातु कर्हि चित । ४दोषानक्तमुषा रात्रौ ५प्रगे प्रातरहर्मुखे ॥ १६६ ।। ६तिर्यगर्थे तिरः साचि निष्फले तु वृथा मुधा । समृषा मिथ्याऽनृतेऽभ्यर्णे समया निकषा हिरुक् ।। १७० ।। १०श सुखे ११बलवत्सुष्ठु किमुतातीव निर्भरे। १२प्राक् पुरा प्रथमे १३संवद्वर्षे ५४परस्परे मिथः ।। १७१ ॥ १५उषा निशान्तेऽ१६ल्पे किञ्चिन्मनागीषच्च किञ्चन । १. सहसा, एकपदे, सद्यः (-द्यस ), अकस्मात् , सपदि' इन ५ शब्दो' का अर्थ 'तत्काल, इसी क्षणमें, अभी' है ।। २. 'चिराय, चिररात्राय, चिरस्य, चिरात् , चिरम् , चिरेण', इन ६ शब्दोंका अर्थ 'देरसे, विलम्बसे' है। ३. 'कदाचित् , जातु, कहिचित्' इन ३ शब्दोंका अर्थ 'कभी किसी समयमें' है ।। ४. 'दोषा, नत्तम् , उषा' इन ३ शन्दोका अर्थ 'रात' है ॥ ५. 'प्रगे, प्रातः (-तर )' इन २ शब्दोंका अर्थ 'प्रातः-काल, सबेरे' है । ६. 'तिरः (-रस), साचि' इन २ शब्दोंका अर्थ 'ति ' है ।। . ७. 'वृथा, मुधा' इन २ शब्दोंका अर्थ 'व्यर्थ, निष्फल है ॥ ८. 'मुषा, मिथ्या' इन २ शब्दोंका अर्थ 'झूठ, असत्य है । ६. 'समया, निकषा, हिरुक' इन ३ शब्दोका अर्थ 'समीप' है । १०. 'शम् का अर्थ 'सुख' है ।। ११. 'बलवत् , सुष्टु, किमुत, अतीव (+सु, आंत )' इन ४ शब्दोंका अर्थ 'अत्यन्त, पूर्णतया' है ॥ १२. 'प्राक (-ञ्च ), पुरा' इन २ शब्दोंका अर्थ 'पहले, या पूर्व दिशाको ओर' है ॥ १३. संवत् (-वद् )'का अर्थ 'वर्ष, साल' है । १४. 'मिथ: (-थस )' का अर्थ 'आपसमें' है ।। १५. 'उषा'का अर्थ 'रात बीतने के बाद तथा सूर्योदयसे कुछ पहलेका समय' हैं । १६. 'किञ्चित् , मनाक, ईषत् , किञ्चन' इन ४ शब्दोंका अर्थ थोड़ा, कुछ' है ॥ Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६६ अभिधानचिन्तामणिः १आहो उताहो किमुत वितर्के किं किमूत च ॥ १७२ ॥ २इतिह स्यात्सम्प्रदाये ३हेतौ यत् तद् यतस्ततः। ४सम्बोधनेऽङ्ग भोः प्याट पाट् हे है हंहो अरेऽयि रे ॥ २७३ ॥ ५ौषड् वौषट् वषट् स्वाहा स्वधा देवहविहु तौ । रहस्युपांशु १. 'आहो, उताहो, किमुत, किम्, किमु, उत' इन ६ शब्दोंका अर्थ 'विफल्म ( या पक्षान्तर, अथवा ) है ॥ . . ... २. 'इतिह'का अर्थ 'सम्प्रदाय' है । (यथा-इतिह स्माहुराचार्याः,"")॥ ३. 'यत्, तत् , यतः, ततः ( २-तस् ) (+येन, तेन )' इन ४ शब्दोंका अर्थ 'कारण, क्योंकि, इस कारण से, उस कारणसे' है ।। .. ४. 'अङ्ग, भोः (-स् ), प्याट , पाट , हे, है, हहो, अरे, अयि, रे (+अररे,..."") ये १० शब्द सम्बोधनमें प्रयुक्त होते हैं । शेषश्चात्र-आनुकूल्यार्थकं प्राध्वमसाकल्ये तु चिच्चन ।। तु हि च स्म ह वै पादपूरणे, पूजने स्वती ॥ वद् वा तथा तथैवैवं साम्येऽहो हो. च विस्मये । स्युरेवं . तु . पुनर्ववेत्यवधारणवाचकाः ।। ऊं पृच्छायामतीते प्राक निश्चयेऽद्ध ाऽअसा द्वयम् । अतो हेतौ महः प्रत्यारम्भेऽथ स्वयमात्मनि ।। प्रशंसने तु सुष्ठु स्यात्परश्वः श्वः परेऽहनि । अद्यात्रायथ - पूर्वेऽह्नीत्यादौ पूर्वेद्यरादयः ।। समानेऽहनि सद्यः स्यात् परे स्वह्नि परेद्यवि । उभयास्तूमयेद्यः समे युगपदेकदा ।। स्यात्तदानीं तदा तर्हि यदा यद्यन्यदेकदा । परुत् परार्थेषमोऽब्दे पूर्वे पूर्वतरेऽत्र च ॥ प्रकारेऽन्यथेतरथा कथमित्थं यथा तथा । द्विधा द्वधा त्रिधा त्रेधा चतुर्धा द्वैधमादि च ॥ _ द्विस्त्रिश्चतुष्पञ्चकृत्व इत्याद्यावर्तने कृते । दिग्देशकाले पूर्वादौ प्रागुदक् प्रत्यगादयः ॥ ५. 'औषट , वौषट् , वषट , स्वाहा, स्वधा' इनमें प्रथम ४ शब्द 'देवों के उद्देश्यसे हविष्य देने में तथा ५ वा अन्तिम ( स्वधा ) शब्द पितरोंके उद्देश्यसे 'कव्य' (भाद्धपिण्डादि ) देने में प्रयुक्त होते हैं । ६. 'उपांशु'का अर्थ एकांत है ।। Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सामान्यकाण्ड: ६] मणिप्रभा'व्याख्योपेतः ३६७ -श्मध्येऽन्तरन्तरेणान्तरेऽन्तरा ॥ १७४ ॥ २प्रादुराविः प्रकाशे स्याद३भावे व न नो नहि । ४हठे प्रसह्यपमा मास्म वारणेऽस्तमदर्शने ॥ १७५ ।। ७अकामानुमतौ काम स्यादोमां परमं मते । एकच्चिदिष्टपरिप्रश्नेऽ१०वश्य नूनच निश्चये ॥ १७६ ।। १५बहिर्बहिर्भवे १२ह्यःस्यादतीतेऽह्नि श्व १६एष्यति । १४नीचैरल्पे १५महत्युच्चैः १३सत्त्वेऽस्ति १७दुष्ठु निन्दने ॥१७७।। १८ननुच स्याद्विरोधोक्तौ १६पक्षान्तरे तु चेद् यदि । १. 'अन्तः (-न्तर ), अन्तरेण, अन्तरे, अन्तरा' इन ४ शब्दोंका अर्थ 'मध्य, बीच' है ॥ . . . २. 'प्रादुः (-दुस , आविः -विस् ) इन २ शब्दोंका अर्थ 'प्रकट' है।। ३. 'अ, न, नो, नहि' इन ४.शब्दोंका अर्थ 'अभाव' है ॥ ४. 'प्रसय' का अर्थ 'हठसे, बलात्कार से' है ॥ . ५. 'मा, मा स्म' इन २ शब्दोंका अर्थ 'निषेध, मना करना है ।। ६. 'अस्तम्'का अर्थ दिखाई नहीं पड़ना, दर्शनाभाव' हैं । ७. 'कामम' का अर्थ 'अनिच्छा होनेपर बादमें स्वीकार करना है ।। ८. 'ओम, आम, परमम्' इन ३ शब्दोंका अर्थ 'स्वीकार है ।। ६. 'कच्चित्' का अर्थ 'इष्टप्रश्न' है। (यथा-तव कुशलं कञ्चित् ? अर्थात् तुम्हारा कुशल तो है )। १०. 'अवश्यम्, नूनम्' इन २ शब्दोंका अर्थ 'निश्चय, अवश्य' है ॥ ११. 'बहिः (-हिस )का अर्थ 'बाहर' है ।। १२. 'यः (बस् )का अर्थ 'बीता हुआ कल वाला दिन' है ॥ १३. 'श्वः (श्वस ) का अर्थ 'पानेवाला फलका दिन' है ।। १४. 'नीचैः (-चैस ) का अर्थ 'थोड़ा, नीचे' है ।। १५. 'उच्चैः, (-च्चैस ) का अर्थ 'बड़ा; ऊपर' है ॥ १६. 'अस्ति'का अर्थ 'वर्तमान रहना' है ।। १७. 'दुष्ठु'का अर्थ 'निन्दा करना' है ॥ १८. 'ननुच'का अर्थ 'विरोधकथन' है । १६. 'चेत्, यदि' इन २ शब्दों का अर्थ 'पक्षान्तर ( यदि, अगर)' है ॥ Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६८ अभिधानचिन्तामणिः शनैर्मन्देरऽवरे स्वर्वाग्रोषोक्तावु ४नतौ नमः ।। १८८ ।। इत्याचार्यहेमचन्द्रविरचितायाम् 'अभिधानचिन्तामणि' नाममालायां षष्ठः सामान्यकाण्डः समाप्तः॥६॥ ॥ सम्पूर्णोऽयं प्रन्थः॥ -x १. शनैः (-नेस); का अर्थ 'धीरे मन्द' है ॥ २. 'श्रर्वाक (-र्वाञ्च ) का अर्थ 'कम, पहले' है ॥ ३. 'उम्'का प्रयोग 'क्रोधपूर्वक कहने में होता है । . ४. 'नमः (-मस् ) का अर्थ 'नमस्कार, प्रणाम' है ।।. इस प्रकार साहित्य-व्याकरणाचार्यादिपदविभूषित मिश्रोपाह भीहरगोविन्दशास्त्रिविरचित मणिप्रभा'व्याख्या, में . षष्ठ 'सामान्यकाण्ड' समास हुश्रा । समाप्तोऽयं ग्रन्यः । Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट (१) 'मणिप्रभा'व्याख्यायामवशिष्टाः 'स्वोपज्ञवृत्वन्तर्गताः शेषोक्तयः १ शिष्ये छात्रः । (पृ० २२ । पंक्तिः ४ ) २ भौमे व्योमोल्मुकैकाङ्गौ । (पृ० ३३ । पं० ८) ३ अगस्त्ये विन्ध्यफूटः स्यादक्षिणाशारतिर्मुनिः । सत्याग्निर्वारुणिः क्वाथिस्तपनः कलशीसुतः ॥ (पृ० ३४ । पं० १७) ४ पक्षः कृष्णः सितो द्वेधा कृष्णो निशाह्वयोऽपरः । __ शुक्लो दिवाह्वयः पूर्वः । (पृ० ४२ । पं० ६६) ५ वर्षे तु ऋतुवृत्तियुगांशकः । कालग्रन्थिर्मासमलः संवत् सर्वर्तुशारदौ । वत्स इड्वत्सरः इडावत्सरः परवाणिवत् ॥ (पृ० ४६ । पं० ३ ) ६ हुतौ हक्कारकाकारौ । (पृ०७३ । पं० १२) ७ पूज्ये भरटको भट्टः । प्रयोज्यः पूज्यनामतः । (आबुकादयो नाट्यप्रस्तावान्नाटयोक्तौ द्रष्टव्याः)। (पृ० ९११पं० १०) ८ भक्तमण्डे तु प्रस्रावप्रस्रवाच्छोटनास्रवाः । (पृ० १०३ । पं० १५) ९ तक्रे कट्वरसारणे । अर्शीघ्नं परमरसः । (पृ० १०६ । पं० १५) १० पालिः सश्मश्रुयोषिति । (पृ. १३४ । ६० ७) ११ नप्ता तु दुहितुः पुत्रे । (पृ० १३६ । पं० २४) १२ देहे सिनं प्रजनुकश्चतुःशाखं षडङ्गक्रम् । ___ व्याधिस्थानञ्च । (पृ० १४१ । पं० १७) १३ कचे पुनः । वृजिनो वेल्लितानोऽश्रः । (पृ० १४२ । पं० १०) १४ अथ नाभी पुतारिका । सिरामूलम् । (पृ० १५१ पं० ८) १५ मेखला तुलालिनी कटिमालिका । (पृ० १६४ । पं० ११) १६ अथ हिमवातापहांशुके । द्विखण्डको वरकश्च । (पृ० १६६ । पं० २०) १७ राज्ञश्छत्रे नृपलक्ष्म । (पृ० १७६ । पं० २१) १८ चमरः स्यात्तु चामरे । (पृ० १७६ । पं० २३ ) १९ अथो भुजगभोगिनि । अहीरणी द्विमुखश्च । (पृ० ३१४ । पं० ८) ~ *c 80 २२ तमपृष्ठे ४ र्थपंक्त्यनन्तरं 'शिष्ये छात्रः' इति योजनीयः । एवमेवाग्रेऽपि बोध्यम् । २४ अ० चि० Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट ( २ ) अधस्तनांशाः संशोध्याः ――― १ " शेषश्चात्र - ... लताधारः । " ( पृ० १५१ पंक्ति १ ) अयमंशः १५० पृ० २० तम पंक्त्यनन्तरं पाठयः । २ “ शेषश्चात्र –... क्लोमम् । ” ( पृ० १५१ पंक्तिः ८ ) अयमंशः १५१ पृ० १ मक्त्यनन्तरं पाठ्यः । ३ “शेषश्चात्र – आनुकूल्यार्थकं प्रत्यगादयः ॥" ( पृ० ३६६ पंक्तिः ७– २३ ) अयमंशः ३६८ पृ० ४ पंक्त्यनन्तरं पाठयः । ( ३७० ) Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणिः मूलस्थशब्दसूची : अंशु : १६६ अंस : " अ] [ अग्रज शब्द काण्ड | शब्द . काण्ड श्लोक | शब्द काण्ड श्लोक अक्ष अगाध १३६ | अक्षत ३ अंश अक्षदर्शक , ३८४ अगाधजल ४ १५७ अंशकूट ४ अक्षदेविन् , १४९ अगार अंशु अक्षधूर्त . " अगुरु अक्षमाला , अगौकस ४ ३८३ अंशुक ३३० अक्षर - १. ७५ अग्नायी " अंशुहस्त २ . . १० अक्षरचन्चु ३ . १४७ अग्नि ८३ अक्षरचण ". १६५ अंसल ११२ अक्षरजीवक " अग्निक . " २७५ अंहति " अक्षरविन्यास अग्निकारिका ३ ४७८ अंहस १७ अक्षवती , अग्निकार्य " अंति २८० अक्षवाट . ४६५ | अग्निचित् " ४९९ अंहिनामन् ४. . १८७ । अक्षान्ति " ५५ अग्निदेवा २ २३. अंहिप . " १८० । अक्षि " . २३९ अग्निभू " १२३ अंहिस्कन्ध ३ २८१ अक्षिगत " ११२ अग्निभूति १ ३१ . अकम्पित ..... ३२ अतिविकूणित, २४२ अग्निरक्षण ३ ४९९ अकर्कश ६ : २३ अतीव .४ अग्निरज ४ २७५ अकर्ण ३ । ११८ अग्निवल्लभ ३ ३११ अकल्कन " १५४ अक्षौहिणी अग्निवाह ४ १६९ अकस्मात् ६ . .१६८ अखण्ड अग्निसम्भव ३ २८४ अकिञ्चन ३ .२२ | अखात अग्निसिंहनंदन" ३६० अकिञ्चनता १ .८५ अखिल अग्निहोत्र " ५०० अकुप्य ४ १११ | अखेदित्व १ अग्निहोत्रिन् " ४९९ अकूपार अग - १८० अग्नीन्धन " ४७८ अक्रम •अगद १३७ अग्न्याधान " ५०० ५५० अगदङ्कार " अग्र १८७ १८० २४९ अत्त ५४८ अगरु ३०४ ७४ अक्ष अगस्ति २ ३६ | " ९५ " २११ अगस्त्य " " | अग्रज ( ३७१) १३९ WWCOMCM अक्ष अक्ष ४०२ अगम अक्ष २१५ Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अग्रज] अभिधानचिन्तामणिः णः [अञ्जस २६६ श. का. अग्रज ३ अग्रजङ्घा " अग्रजन्मन् ॥ अग्रजाति " अग्रणी अग्रतःसर ३ अग्रतस अग्रवीज अग्रयान अग्रेसर अग्रायणीय २ अग्रिम अग्रेदिधिपू अग्रेसर अध्य अघ अघमर्षण अन्या ७५ २९४ अङ्क श्लो. श. का. श्लो. श. का. श्लो. ४७६ अङ्गना ३ १६९ अज ४ ३४१ २७९ अङ्गमर्द " १५६ ! अजकाव २ ११५ ४७६ अङ्गरक्षणी . " ४३३ अजगर ४ ३७१ " : अङ्गराग " २९९ अजजीविक ३ ५५३ - ७५ : अङ्गराज " ३७५ अजदेवता २ . २८ ६२ : अङ्गविक्षेप २ १९६ अजनामक ४ १२० १६५ अङ्गहार . " अजन्य ..२ ४० अङ्गारक " अजप .. - ३ अङ्गारधानी ४ अजमीढ " ३७१ १६२ अङ्गारपात्री " अजर्य । " ३९५ १६१ अङ्गारशकटी , अजस्र . . ६ १०७ . ७५ अङ्गिका ३ ३३८ | अजा ...४ १८९ अङ्गीकार २ १९२ / अजाजी ३ अङ्गीकृत : ६ १२४ अजातशत्रु , अङ्गुरी ३ २५६ | अजित .. अल "... " " , ५१८ अजितबला , ४४ अङ्गुलिमुद्रा " अजिन ३ अङ्गुली अजिनपत्रिका ४०२ अङ्गुलीयक " अङ्गुष्ठ ." . २५६ | अजिहम ६ . ९२ अचल अजिहमग ३ ४४२ अजिह्न ४ अचलभ्रातृ १ अज्जुका २ २४८ १८४ अचला अज्ञ३ २९६ अचिरप्रभा. " अज्ञान ४५ अचिरा १ . १० १८४ अचेष्टता २ अञ्चल २६४ अच्छ४ १३७ সনি २२७ अच्छभल्ल " अञ्जन ८४ २३० : अच्छुप्ता १५४ २३ । अच्युत " १२८ ११९ .. अच्युतज " | अञ्जनाधिका, ३६४ १४९ अच्युताग्रज " ८५ | अनिका , , __१३९ अञ्चलि ३ २६२ २२६ अज , १२५ अञ्जलिकारिका ४ ८० " १२८ | अक्षस ३ ३९ (३७२) अजिर , अङ्कपाली अङ्किन् ३६२ ४२० 30 m cut c..:: CM WC::mm م अङ्कुश अङ्कुशा م अङ्कर س ३३१ अङ्कोलसार ی سه س ३५० ه अङ्गज , अङ्गद अङ्गन २ ३ , २०६ " Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Com . , WC0Mwc ur.murarm.. .. . .C अञ्जसा] मूलस्थशब्दसूची [ अध्यूढा श. का. श्लों. श. का. श्लो. श. का. सो. अञ्जसा ६ १६६ अतिमात्र ६ ३०२ अद्वय २ १४८. अटनी ३ ४३९ क ४ २१३ . अधःक्षिप्त ११८ अटवी ४ . १७६ । अतिरिक्त ६ ८५ अधम , अटाव्या ६ १३७ । अतिवाहिक ५ 5. अधमर्ण ३ अट्ट ४ ४७ अतिवृष्टि १ ६० अधर ..६८ अतिवेल ६ । १४२ अट्टहास . २ २११ अतिशय १ अधस अट्टहासिन् " ६ १४२ अधस्तात् अट्टालक ४७ अतिसन्धान ३ ४३ अधि अडन ४४७ अतिसर्जन ६ अधिक १५५ अणक ___ ७८ अनिमारकिन्३ अधिकरण २ १२४ अणव्य ३२ : अतिस्थिर ६ . अधिकर्मिक ३ ३८१ ८९ अणि ४२० अधिकाङ्ग अतिस्निग्ध- . .अधिकार , मधुरत्व १ ६८ अणिमन् २१६ अतिहास .२ २१२ अधिकृत , ३८६ अणीयस ६. ६४ अतीव ६ १७१ अधिक्रम ६ १४७ अणु अत्तिका २ २४९ अधिक्षिप्त ३ १०५ अण्ड . ३ अन्यन्तकोपन३ ५६ अधित्यका ४ १०१ अस्यन्तगामिन् ,, १५९ । अधिप. ३ अण्डक अत्यन्तीन , अण्डकोश अत्यय अधिरोहणी ४ २ .२३७ अण्डज .. ४. अत्यर्थ६ १४१ : अधिवासन ३ १०१ अत्यल्प , ६४ ४२१. अधिविना , अधिश्रयणी ४ अत्याकार अण्डवर्द्धन ३ अधिष्ठान अत्रभवत् , अतट अत्रिहग्ज , १९ : अधीश्वर . १ अतलस्पृश , , अतसी अथवन् अधुना २४५ ., १६३ अष्ट अतिकुत्सित ३. १४ अदन अोशुक , अतिक्रम ६. १४०. अदभ्र . अधोक्षज २ १२८ अतिजव अदृष्ट ३. १५८ अधोभुवन ५ अतिथि , अद्भुत अधोमर्मन् ३ अतिथिपूजन, अधोमुख , १२१ अदमर अतिदूर ६ अध्यक्ष , अतिपथिन् ४ सध्ययन ४८५ अतिपात ६ १४० १८० अध्यवसाय २१४ अतिभी .. २. ९५ अद्विजा २ ११८ । अध्याहार , अतिमर्याद ६ .१४२ अद्रिराज ४ ९३ । अध्यूढा ३ १५१ - ( ३७३) अधिभू wew::: ws wiwm.Q: N: w a wm : : : ww mw: m:= w: * v , " १३४. " द्रि : Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्येषणा] २१६ १६० ० ० श. का. अध्यषणा ३ अध्वग अध्वन् अध्वनीन ३ अध्वन्य अध्वर अध्वरथ अध्वर्यु अनक्षर अनक्षि अनगार अनङ्ग अनङ्गासुहृद्, अनच्छ अनडुह अनदुही , अनड्वाही , अनतिविल. म्बिता अनन्त ७४ १४१ ११४ ३२३ ३३१ अभिधानचिन्तामणिः [अनृत श्लो. श. का. श्लो. श. का. श्लो. | अनश्वर ६ ८९ अनुग्रह ६. १४४ १५७ अनस् ३ ४१७ । अनुचर ३ १६० अनादर ६ ११५ अनुज | अनाहत ., , अनुजीविन् , | अनामय ३ १३८ अनुतर्षण , ५७० ४८४ अनामिका , २५७ अनुताप ६ ४१६ | अनारत ६ १०७ अनुत्तम . , ४८३ | अनार्यज ३ ३०४. अनुत्तर(कल्पा १८० अनालम्बी २ २०२ तीत) . . २ अनाविल ६ ७२ अनुत्तर ३ ___ ७६ अनासिक ३ ११४ , अनाहत , . ३३५ अनुत्तरोप अनिन्दिता १ ६८ पादिकदशा २ १५८ १३७ अनिमिष २ २ अनुनय, ६ १३९ " . ४ ४१० अनुपद , ९३ अनिरुद्ध २ १४४ अनुपदिन् ३ १५५ अनिल १ ५२ अनुपदीना , ५७९ , ४ १७२ : अनुप्लव , १६० अनिलकुमार २ . ४ अनुभव ६ १५६ अनिलसख ४ १.६५ अनुभाव २ २४० अनिशम् ६ १०७ अनुमति , " '" १६७ । अनुयोजन , १३८ १७७ अनिष्टदुष्टधी ३ १०२ | अनुरति , २१० अनीक ४१० | अनुराग , २९ ४६१ | अनुराधा , अनीकस्थ , ३.६ अनुरोध ३ ३९७ अनीकिनी , ४०९ | अनुलाप २ १८८ अनुवस्सर , अनुक . ९८ अनुवृत्ति ३ ३९७ १४१ अनुकम्पा , अनुशय ६ ९४ अनुकर्ष , अनुष्ण अनुकामीन , अनुहार अनुकार ६ अनूचान १८ अनुकूलता , अनूप १०७ अनुक्रम , १३९ ७५ अनुक्रोश ३ ३३ अनृजु अनुग ६ ३ अनृत २२९ | अनुगामिन् ३ १६० ५३० (३४) ६४ ७७ ३७३ २७ अनन्तजित् १ अनन्तवीर्य , अनन्तर ६ अनन्ता ४१३ २५८ १४ سم १०२ م م अनन्यज २ अनन्यवृत्ति ६ अनर्गल अनल अनवधानता अनवरत , अनवराय , अनवस्कर , भनवस्थिति २ ه अनूरु Love ه م ४० ७२ له १७९ س Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनेकजातिवैचित्र्य ] श. अनेकजातिवैचित्र्य 9 ७० अनेकप ४ २८३ अनेडमूक ३ १२ अहस् २ अनोकह ४ अन्त "" "" का. अन्तक 2 "" 39 ६ अन्तःकरण अन्तःपुर अन्तःपुराध्यक्ष,, "" 39 ३ २ अन्तकृद्दशा" अन्तर् ६ अन्तर ५ ६ 93 अन्तरा अन्तराय अन्तराल 39. अन्तरिक्ष २ अन्तरीप अन्तरीय ३ अन्तरे ६ अन्तरेण " " ”, 39 39 "9 अन्तर्गत अन्तर्ग अन्तर्द्धा अन्तर्द्धि अन्तर्मनस् ३ अन्तर्वशिक 39 39 ४ १४४ ३३७ • १७४ "" 99 "" अन्तर्वती अन्तर्वाणि अन्तर्विगाहन ६ 99 अन्तर्वेद ४ अन्तर्हि ६ ४० १८० २८ १० ९५ ५ 93 ३९१ ३९० ९८ १५८ १७४ १६३ १७४ मूलस्थशब्दसूची . १३१. १५२ ११३ श.. अंतावसायिन् ३ 99 अम्लिक अन्तिकतम अन्तिका अन्तिकाश्रय 39 अन्त्य 99 अन्त्यवर्ण का. लो. श. 99 अन्तिम ६ अन्तेवासिन् १ अन्त्र अन्दुक अन्ध 99 ६ अन्वक्ष अन्व अन्वय 99 ४ 99 ९९ ३९० अन्ववाय ३०२ | अन्विष्ट ९ | अन्वेषित १३६ | अन्वेष्टृ १५ अप् ११३ ! अपकृष्ट ३ ७ अन्धकार २ ९६ अन्धकासुहृद् २ अन्धतमस १४५ १७४ अन्धस् १४५ अन्धु ९६ अन ७७ अन्नकोष्टक ३. 29 ३ .9 ४ 99 ३ ४ ४ 20 us ६ अन्य 99 99 अन्यतर अन्यभृत् ४ ३८८ अन्यशाखक ३ ५२१ ६९ अन्यूम ६ अन्योन्य अन्योन्योक्ति २ 39 "" ३ 99 ६ ५८७ ५९७ ८६ ८८ ८४ ६७ ९५ ७९ ५९७ 39 ३ ४ ६ ( ३७५ ) अपक्रम अपक्रिया अपघन ३ अपचय ६ अपचित ३ अपटान्तर ६ अपटी ३ अपटु २ अपतर्पण ३ अपत्य अपत्यपथ 99 ५५८ अपत्रपा २ २६९ अप्रत्रपिष्णु ३ २९५ अपथ ४ १२१ अपथिन् ६० ११४ ६० ५९ ५३८ ९५ १३५ ६८९ ६ ९३ १५७ ५९ ७८ १०४ 99 १६७ 99 १२७ 99 अपराध अपर्णा [ अपष्ठु श्लो. ३ ४६७ ६ १५१ २३० १६० ง ८७ ३४४ १२३ १३७ " अपदिश २ अपध्वस्त ३ अपयान 33 अपररात्र २ अपरा "" अपराजिता अपराद्धेषु अपवन अपवरक अपवर्ग अपवर्जन का. १५५ १३५ अपष्ठ ७८ "" अपष्ठु 39 ४ अपलाप 99 अपलासिका ३ ४ 39 ३ "" .२ 99. ร ३ अपवाद २ अपवारण ६ अपवारित अपविद्ध अपशद "3 ,” ,, ४ moc ६ २०६ २७३ २२५ ५४ ५० 99 ८१ १०४ ४६६ ५९ ८१ २९४ २२२ ४३६ ४०८ ११७ १९० ५७ १७७ ६१ ७५ ५१ १८५ ११३ ११२ ११० ७९ २९७ १०१ Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अपष्टुर] अभिधालचिन्तामणिः [अभ्यागत : : . . :. अभिक्रम ५५३ . w श. का. श्लो. श. का. श्लो. श. का. श्लो. अपष्टुर ६१०१ अब्जबान्धव २ १०। जभिभव ३ १०५ अपसव्य " अब्जहस्त, अभिभूत ., १०४ १०२ अब्जिनीपति ,, ४६९ अपस्कर १७५ ४२२ अब्द | अभिमन्त्रण २ अपस्नान __३९ अब्धिकफ ४ अभिमाति ३ २३५ अब्धिज अपस्मार २ ९६ | अभिमान २ . २३१ अपहार ६ १६० अब्धिजा ३ ५६७ अभिमुख ६ ७३ अपहास २ २१२ ! अब्धिमण्डूकी २७० अभियाति. ३ ३९२ अपाङ्ग २४३ अब्धिशयन २ अभियोग १२८ २ २१४ अपाङ्गदर्शन , २४२ अब्ध्यग्नि ४ १६६ . अभिराम ६ अपाची २. | अब्रह्मण्य २ . २४९ अभिरूप ३ अपाचीन अभयद १ २५ अभिलावं . ६ अपाञ्च अभया ४ २१२ अभिलाष ३ अपाटव १२६ अभाव . ६ १२३ अभिलाषुक , अपान २७६ अभाषण .१ ७७ अभिवादक , अपावृत्त अभिक ३ ९८ अभिवादन, ५०८ ४५५ अभिव्याप्ति ६ अपाश्रय अभिशस्त ३ . १०० अपासन अभिख्या २ १७४ अभिषव , ५६९ अपिनद्ध अभिषेणन , ४५४ अपुनर्भव १ " . ६ १४८ अभिसम्पात , ४६१ अपूप अभिचर .३ १६० अभिसारिका , अपोह अभिचार , ४९४ अभीक , अप्पित्त अभिजन , १६७ अभीषणम् ६ अप्रकीर्ण अभिजात , १६६ . अभीशु प्रसृतत्व अभिज्ञ , ७ अभीषण २ अप्रधान अभिज्ञान २ २० अभ्यग्र ६ अप्रहत अभिधा , . १७४ अभ्यञ्जन ३ अप्सरम्पति २ अभिध्या ३ ९५ अभ्यन्तर ६ अभिनन्दन , २६ अभ्यमित ३ १२३ अफल १५२ अभिनय २ १९६ अभ्यमित्रीण ,, ४५६ अबद्ध १८१ अभिनव ६ ८४ अभ्यमित्रीय , अबद्धमुख ३ १५ अभिनिर्मुक्त ३ ५२४ अभ्यामध्य " अवला अभिनिर्याण ,, ४५३ अभ्यण ६ अबाध १०२ | अभिनिवेश ६ १३६ अभ्यवस्कन्द ३ ४६४ अब्ज ४७ | अभिनीत ३ ४०७ अम्यवहार , ८७ १९ · अभिपन्न अभ्याख्यान २ ३ ५३८ | अभिप्राय ६ १९ अभ्यागत ३ १६३ (३७६) CWW०: WCC: : १ V ६ वान N mom अप्सरस wwww : C ८७ १८२ Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभ्यागम] 500 १०२ m १७३ : ४५२ श. का. श्लो. अभ्यागम ३ ४६१ अभ्यागारिक ,, , १४२ अभ्यादान ६ १४६ अभ्यान्त ३ १२३ अभ्यामर्द ४६२ अभ्याश ८६ अभ्यास अभ्यासादन " ४६४ अभ्युत्थान अभ्युदित , ५२४ अभ्युपगत ६ १२५ अभ्युपगम २ १९२ अभ्युपपत्ति ६ १४४ अभ्युपाय २ अभ्यूष ३. ६३ अभ्योष , " अभ्र ७४ m " or २८ 9 ४२ و د १९२ -m ة : . سي : ه मूलस्थशब्दसूची [अरिष्ट श. का. श्लो. | श. का. श्लो. अमावस्या २ ६४ अयन ४ ४९ अमावासी , अयन्त्रित अमावास्या , अयस् ४ १०४ अमित्र अयाचित ५३० अमुक्त ४३८ अयि अमुत्र १६४ अयुक्छद ४ ५९९ अमुष्यपुत्र १६६ अयुत ५३७ अमृत अयोग्र अयोधन ૫૮૪ ४९८ अयोध्या ५३० अर अमृतधति ३५७ अमृतसू अमृता ' १५९ अरघट्टक अरजस् १७४ अमृतासङ्ग अरणि ४८९ अमेधस अरण्य अम्बक अरण्यश्वन् ३५७ अम्बर ७७ अरति २२८ अम्बरीष अरनि २६३ अम्बष्ठ अरम् अम्बा अरर अम्बिका अररि अरविन्द २२६ अराति ३९३ अम्बुकूर्म अराल अम्बुमत् । | अरि ३९२ अम्बुमात्रज ५४३ अम्बूकृत २ १८१ अरिन् ४१९ अम्भःसू অহিঙ अम्भस १३४ अम्ल ६ २४ । " अम्लवेतस ३ अम्लिका ४ २०४ अय २०५ अयःप्रतिमा , २५२ अयन २ ७२ (३७७) س W .rrm 0 " ه س " . نه س ३ ३ ७२ م م अभ्रक - ४ अभ्रपथ अभ्रमा अभ्रसुप्रिय , अभ्रि अभ्रेष " . . ४० अमन ४ ९२ अमम . १ ५५ अमर अमरावती अमत्य अमर्मवेधिता १ . अमर्ष - २ २३४ अमर्षण ३ ५६ अमा " ه : .6m um.. अरित्र : www.:..: . : m ७२ " १६३ अमांस. ३ अमात्य ., ११३ . ३७८ . ३८३ १०० . अमावसी .६४ ३८७ . Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अरिष्टनेमि ] श. का. अरिष्टनेमि १ अरुण १२ १३० अरुणसारथि २ अरुणावरज , अरुणोपल ४ अरुन्तुद् ३ अरुधन्ती , अरुधन्तीजानि,, अरुस् अरे अर्क ६ ३७१ अकज , अर्कतनय ३ अर्कबान्धव २ अर्करेतोज अर्कसूनु २ अर्कसोदर , अर्गला अर्गलिका अर्घ अय अर्चा अभिधानचिन्तामणिः [ अवकीणिन् श्लो. श. का. श्लो. | श. का. ३० अर्जुनी ४ ३३१ अशंस ३ १३२ अर्णव १३९ अशंस , १२५ अर्णवमन्दिर २ १०२ अशोघ्न ४ २५५ अर्णस् १३५ अर्शोयुज ३ १२५ अति ४३९ | अहंणा , १११ १४४ ७ अहंत् १ . २४ १०६ अहित - ३ ११० १५०. अल .. ४ २७७ अर्थदूषण ३ ४०२ | अलक .' ३ २३३ अर्थना , ५२ अलका २ १०५ १२९ अर्थप्रयोग , ५४४ | अलक्क । ३. ३५० १७३ अथवाद २ . १८४ | अलक्ष्मी . .६ १६ अर्थविज्ञान , २२५ अलगद ४ अर्थव्ययज्ञ ३ ५१ | | अलङ्करिष्णु ३ ५३ ९६ अर्थिक , ४५८ अलङ्कींग , १८ ३७५ अर्थिन् , ५२ अलकार ३१३ १५. अय ४ . १२८ अलङ्कारसुवर्ण४। ११२ अर्दना ३ , ५२ अलम् - १६३ ६ ७० अलर्क ४ ३४६ अर्धगुच्छ ३ ३२४ अलस ३ ४७ अर्धजाह्नवी ४ १५० अलसेक्षण , १७० अर्धमाणव ३ ३२३ अलात ५३२ अर्धरात्र २ , ५९ अलाबू अर्धवीक्षण .३ २४१ अलि ર૭૮ अर्धहार , | अलिक ९९ अर्धेन्दु " अलिअर ४ १११ ५३८ अलिन्द अभ अलीक अर्य १६४ अलोक अर्यमदेवा अल्प अर्थमन् , अस्पतनु ११७ अर्या १८८ अल्पमारिष २५० ११० अर्याणी अल्पिष्ठ २०१ अर्थी १८७ अल्पीयस् , , २६१ २९९ । अवकर ४ ८२ २९ ७९ अवकीर्ण. ६ ११२ ३६९ अवोच्न १७८ | अवकीर्णिन् ३ ५१८ -२२१ १६४ ३२४ : 00:: " ४४४ अर्चित अर्बुद अर्चि २ । १६८ अर्चिष्मत् अर्घ्य अर्जुन ११० ३६६ mocwmn ३७२ ___ ६४ अर्वन् अर्जुनध्वज ३ Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ : : r. . m - mum m ५९ ४१४ ८३ msm. २५० 0. अवी ६० अवकृष्ट मूलस्थशब्दसूची [ अश्मरी श. का. श्लो.| श. | श. का. श्लो. | श. का. श्लो. अवकृष्ट ३ १०४ अवम ६ ७८ अवार १४५ अवकेशिन् ४ १८२ अवमत अवारपार अवक्षेपणी ३१८ अवमताकुश ४ २८८ अवि ३४२ अवगणित अवमर्द ३ ४६४ अवित १३३ अवगत अवमानित ६ ११५ अविदुग्ध ४ ३४४ अवग्रह ८० अवयव अविदूस ." अवरज अविद्या ६ अवग्राह २ अविनीत ३ अवरति १५८ अवघात १९२ अवरोध अविनीता , ३ अवचूल अविमरीस ४ ३४४ अवरोधन अवज्ञा , ११५ अविरत १०७ अवर्ण . २१ अवज्ञात ८५ अविरति १ अवलग्न ३ २७१ अवट अवलम्बित ६. ११४ अविरल ६ अवलिप्तता २ अवटीट अविलम्बित , २३० ३१ ४ अवलोकन ३ ३४३ अविला २४१ अवटु ३४४ अविसोठ , अवतंस अववाद २ अवतमस अवश्यम् २ ६ १७६ अवतार अवश्याय ४ अवृष्टि १३८ अवष्वाण अवेक्षा अवतोय ६ ३ अवसक्थिका , अवदंश..:३ अव्यवहित , ३४३ अवसर .६ १४५ अव्याहतत्व १ अवदात अवसर्प३. अव्युच्छित्ति ,, अवदान अवसर्पिणी २ ४१ अशन अवदारण अवसाद , अशनाया , अवध अवसान अशनायित , अवधान - अवसित ६ अशनि अवधि २८ अवसेकिम अवध्वस्त है. ११२ अशिश्वी १९३ अवस्कर , अवन १३८ अवस्था अवनत अवहस्त २५७ अवनाट २०१ अवहार ४१७ अवनि ४ अवहित्था ४५ २२८ अशोका अवन्तिसोम ३ १३० अवहेल ६ अश्मगर्भ ११५ अवन्ती ..४ अवाञ्च १३ अश्मज १२८ अवपात ३ . अवाकश्रुति ३ अश्मन् अवभृथ , ४९८ अवाग्र ६ ९२ भश्मन्तक " ८४ अवभ्रट , ११५ | अवाच्य २ १८० अश्मरी ३ १३४ (३.९) १५४ ७१ .५९ ८७ : له ه १४ ९४ س ي م अशुभ अशेष अशोक : س ه م ४२ م س : ५९५ ه Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अश्रान्त ] का. ६ ४ श. अश्रान्त अधि अश्रु अश्लील अश्लेषा अश्लेषाभू अश्व .0 अभिधानचिन्तामणिः [अहम्मति श्लो. श. का. श्लो. श. का. श्लो. १०७ असङ्कुल ४ ५२ | अस्तिमत् ३. १४१ असती अस्तिनास्ति२२३ असदध्येतृ , ५२१ प्रवाद २ १८० असन | अस्तु ६ असम्मत अस्तेय १ असहन अस्त्र ४३७ असार ४३९ असि अस्त्रग्राम. ६ ५० २ असिक अस्थागं .. ४ ३६३ | असिक्की अस्थाघ असित अस्थि २८३ m ८१ . m १३६ . अश्वकिनी अश्वग्रीव अश्वतर . ३१९ ३७७ ૮૧ . w १९७ ३०९ २२ ४२५ ३५२ २६० ३४५ . १२४ २९२ अश्वत्थ अश्वमेधीय अश्वयुज २ अश्ववार अश्ववारण अश्वसेन अश्वसेननृपनन्दन अश्वा अश्वारोह ३ अश्विन २ अश्विनी अश्विनीपुत्र , अश्वीय अषडतीण अष्टपाद असुमत् oc २९९ ४२५ : | अस्थिकृत् ।, २८८ असिधावक ३ __५८० / अस्थिधन्वन् २ असिधेनु .. ४४८ अस्थिपञ्जर ३ २९२ असिपत्रक .४ अस्थिभुज ४ असिपुत्री ३ ४४८ अस्थिर ३ १०१ असु अस्थिविग्रह २ असुख अस्थिसम्भव ३ अस्थिस्नेह , असुर असुरकुमार. , . अस्फुटवाच । असुरी अस्त्र २ . २२१ असूया २' २३७ असूक्षण . ६ :१५ ७९ असृकर . ३ २८४ .अत्रप असृप २ १०२ अस्त्र २२१ असृग्धरा अस्वप्न " २८ अस्वर ३ १३ अस्वलाघान्यऔसम्यस्वर , १३ | निन्दिता १. ६८ अस्त २३८ अहंयु. ३ ९७ अहार २ २३० ११८ अहंकृत ३ ९७ अस्तम् १७५ अहन् . २ अस्ताग ___५२ अहमहमिका, २३१ अस्ताघ ४ १३६ अहम्पूर्विका , २३३ अस्ति ६ १७७ | अहम्मति ६ (३८०) २६९ ४०५ २७६ ३५२ ३०३ : असृज : २८५ । अष्टमङ्गल अष्टमूर्ति अष्टश्रवण अष्टापद : : १०९ २७८ अष्ठीवत् असकृत् असक्त १६७ १०७ : Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लो. mm १२१ आजू ३६८ 20.morm r...0M.m १५६ m ३६९ ૧૭૨ ror. ४६३ १११ ३५ .. अहर्बान्धव] मूलस्थशब्दसूची [आत्मन् श. का. श्लो. | श.. का. श्लो.! श. का. अहर्बान्धव २ १० | आखण्डल २ ८५ आजानेय ३०० अहमणि , आखनिक ४ आजि ३ ४६१ अहर्मुख , आखु ३६६ आजिभीष्मभू३ ४६५ अहस्कर , आखुग २ आजीव ५२९ अहार्य ४ आखेट ५९१ अहिंसा आख्या २ १७४ आज्ञा अहि आगन्तु १६३ आज्य अहिकोश , ३८१ आगम २ आज्यवारि १४१ अहिच्छत्र " आगस ३ ४०८ आञ्जनेय २६३ आगू २ १९२ आटरूषक अहिकान्त ४ •आग्निमारुत, . २३ आटि ४०४ अहित ३ ३९३ आटोप १३५ अहिभय २ २१५ आग्नीध्रा ३ - ४७८ आडम्बर ३ अहिभृत् , ११३ आग्नेय आढक ५५० अहिर्बुधन " " ३ २८५ आढकिक अहिर्बुध्नआग्रहायणिकर आढकी १२२ देवता , आग्रहायणी , ६४ २४१ अहोरात्र , आघाट ४ २८ आढ्य ३ अहाय आधार' ३ आणवीन आङ्गिक - २ आणि आ . आङ्गिरस आतङ्क २ २१५ आ २ . आचमन ५०१ १२६ आकर आचाम : आततायिन् ३ आकल्प आचार , ५०७ आतप आकल्य .. १२७ आचारवेदी ४ आतपवारण ३ आकार . ६. १४९ आचाराङ्ग २ १५७ आतर ५४३ आकारण २ १७५ आचार्य १ आतापिन् ४ आकालिकी ४ .. १७१ आचार्या ३ १८७ आति ४०४ आकाश २ . १८८ आतिथेयी ३ आकीण ६. आचार्यानी , आतिथ्य आकुल आचित ५४९ आतुर आकृत आतोद्य २०० आक्रन्द ३ १०९ आत्तगन्ध १०४ आक्रम .६ आच्छाद ३ ३३० आत्मगुप्ता ४ २१७ आक्रीड ४ १७८ आच्छुरितक २ २१२ आस्मघोष , ३८८ आक्रोश .. २. १८६ आच्छोदन ३ ५९१ आत्मज २०६ आक्षपाद ३ ५२६ आजक ६ ५३ | आरमदर्श ३४८ आक्षेप २ १८६ आजगव २ ११५ आस्मन् २ १४३ (३८) ३२ ४२० : لم : Mum Mmm ३८१ : ३ ३ : . و م س १४७ . Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आत्मन् ] श. आत्मन् का. आत्मप्रवाद २ आस्मभू १३१ ३९५ आभोग " आरमम्भरि ३ आत्माशिन् ४ आत्मीय ३ आत्रेय आत्रेयी आथर्वण ४ आदर्श ३ आदि ६ आदितेय २ आदित्य , आदित्यसूनु ३ आदिम आदिराज ३ आदीनव ६ आदेश आदेशिन् ३ आदेष्ट आध अभिधानचिन्तामणिः [आयुधिक श्लो. | श. का. श्लो. | श. का. श्लो. २ आनन ३ २३६ आभीर ३ ५५३ मानन्द २ २३० आभीर पलिका १२७ आनन्दथु २ आभीरी २३० आनन्दन ३ | आभील ६ आनन्दप्रभव, ४१० आनय ४७८ आम् ." २२६ आनाय , ५९३ आम ..३ १२७ २८४ आनाह , १३५ १३५ आमगन्धि ६ १९९ आमनस्य , | आनिली. २ . २६ आमन्त्रण ' २ १७५ ३४८ आनुपूर्वी ६ १४० आमय ३ १२७ ९५ आन्दोलित , ११७ आमयाविन्, १२३ २ आन्वीक्षिकी २ १६५ आमलकी ४ । २१.१ ९ ,, १६७ आमिक्षा ३. ४९५ २५ आपगा आप ४ १४६ आमिष २८६ आपण ४०१ आपणिक ३ ५३१ आमुक्त , ४२९ आपद् " १४२ आमुष्यायण, १६६ ११ आपन्न , ,, • आमोद आपन्नसत्वा, १४६ आपमित्यक ,. आमोदिन् , ...२७ ४८१ आपान आम्नाय आपी २ १६३ ९२ आपीड आम्र आपीन आम्रातक , २१८ -आडित २ ५४६ आपूपिक आयःशुलिक आपृच्छा ४२६ | आयत आप्त ६ २२२ आयति २ ७६ आप्नोक्ति आयसक २२८ आप्रच्छन्न आयसी आप्रपदीन , आयाम २०७ आप्लव ३०२ आयास १३७ आबन्ध " ५५७ आयुक्त ३८३ आभरण आयुध " ४३७ ७ आभा ६ १४८ ११२ २०११ आभिजात्य १ ६८ | आयुधिक ३ ४३४ (३८२) १९१ ८० ३ आघून १९९ आधार आधि wrrum Murrm .r आधोरण ३ आध्यान आध्राण आध्रात. आन आनक आनकदुन्दुभि, आनत आनतज २ आनद्ध , m::::WWW.. ३४२ ३१४ Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११७ २४९ १४ ०.m. 2 आल. ९२ १७ ...rrm २२२ 20 & am a : .. : w an aman & : na : : * : : * .. १५८ २७ ३० १९९ १८८ ४१५ " आयुधीय ] मूलस्थशब्दसूची [आशीविष श. का. श्लो. | श. का. श्लो. श. का. श्लो. आयुधीय ३ ४३३ आर्यपुत्र २ २४९ आवसथ्य ४ आयुर्वेदिन् ... १३६ आर्या आवसित आयुस् ६ आर्यावर्त । आवाप ३२७ आयोगव ३ आर्षभि ३५६ ३७९ आयोधन ४६० आर्षभ्य ४ ३२५ आर . २ आहत ३ आवाल " आवास आरकूट आविक ३३४ आलम्भ आरक्ष आलय आविद्ध आरग्वध आलवाल १६१ आरणज आविल १३७ आलस्य आरति आविष्कृत ११४ आरनाल ३ ७९ आलान आविष्ट १५५ आरभटी आलाप आविस् १७५ आरम्भ ६.. १४६ आलावत ३५२ : आवुक २ ३ २४६ आरव आलास्य । आवुत्त आरा ५७९ आलि आवृत् १४० आराधना , १६१ आवृत .११२ आराम ४ आवेग २३६ आरालिक ३ ३८७ आवेश १३५ आराव .६ . ३६ आलिङ्गन , आवेशन आरेक , . ११. आलिङ्गिन् २. २०७ आवेशिक ३ १६३ आरोग्य ३ . १३८. आलिन् २७७ आरोपित आवेष्टक ४ | आलीढ ४४१ विशेषता आशंसा ३ आलीनक आरोह . ३. २७२ आशंसित आलुक , , आशंसु आलू , आरोहण আহা आलेख्य ३ ६. .१४६ आलेख्यशेष ,, आशय आर्जुनी आलोक २ आशर २ १०१ आर्तव . ३ २०० आशा ८० आवपन ४ आर्ति आवरण आद्र आवरोधिक आशित ३ आर्द्रक २५५ आवर्त ४ १४२ आर्द्रा २४ आवर्हित ६ आशितङ्गवीन ६४६ आवलि आशिस् २ १८६ २४७ आवसथ आशी ४ आशीविष , : १७७ २७७ :0mmm.mmmm ::... mom mur... १०८ ३७ m.mer ..w २५५ ६ १९ ४४७ ३९० .mm.000. आर्य ४३ " (३८३) Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आशु ] श. आशु 93 आशुग "" आशुशुक्षणि आश्चर्य आश्रप आश्रम 99 आश्रय "3 आश्रयाश आश्रव ,, आश्रुत आश्व आश्वत्थ आश्वयुज् आश्विन आश्वीन आषाढ "" 19 "" का. ४ ६ ३ ४ श्लो. श. २३४ १६६ | आसुतीबल ४४२ "" १७२ १६३ २१८ २७ 99 ३ ४७२ ४ ६७ ३ ३९९ ४ 19 २ 99 आसीन "" २ ३ ६ २ ६८ ३ ४७९ ४ ९५ आषाढाभू २ ३१ आस ३ ४३९ आसक्त आसन "" ३ २ 39 "" ४ ३१६ 99 १ ५७ १६५ १९२ ९६ १२५ ५६ ४८० ६९ ३ ४ अभिधानचिन्तामणिः 23 आि आस्तर आस्तिक आस्था आसुर 99 आसेचनक ६ आस्कन्दन ३ आस्कन्दितक ४ ३ 99 19 का. ३ 99 "" आस्थान ३ आस्थानगृह ४ आस्रव आहत 99 २ ३. ६ आस्पद .39 आस्फोटनी ३ आस्य 19 आस्यलाङ्गल ४ आस्यलोमन् ३ आस्या ६ आस्यासव ३ ६ आहर ४९ | आहव ८२ आहवनीय *39 आहतलक्षण ३ ६ ३ ३९९ आहार 99 39 २९० आहारतेजस् आसना ६ १३४ आहार्य २ ४ आसन्दी ३ ३४८ आहाव ८७ आहिक ५६८ आहिताग्नि ३ आसन्न ६ २ आसव ३ ५६९ आहितुण्डिक ३ 23 99 " भासादित ६ १२६ आहुति आसार २ ७९ | आहो ३ ४५४ |आहोपुरुषिकार १५६ आह्निक 29 " श्लो. श. ५६९ आह्वय आह्वा आह्वान "" ( २८४ ) ४८२ ५६५ २८५ ७९ ४६५ ३१५ ३४४. १५४ १९२ १४५ ८७ २८४ १९७ १५८ ३५ ४९९ १५२ ४८५ ६ १७२ २३२ १६९ १३४ १४५ ६३ ५४ इ ४६० ४९० इक्षु इक्षुवारि इङ्ग ५७३ इट्वर २३६ इडिक ३५४ इतर - २४७ 99 इतरेतर १३४ २९७ इतिह ११ इतिहास १९९ | इस्वरी ६०१ इदानीम् ४ इध्म • इन " इङ्गित इङ्गुदी इच्छा इच्छावसु • इज्जल .. ४ इज्याशील ३ इन्दुकान्ता इन्दुजा इन्दुभृत् इन्द्र 39 का. २. 99 86 99 "" 20 ४ 39 ६ "" "" ४ ३ २ ३ ६ "" ३ 39 इन्दिरा २ इन्दिन्दिर ४ इन्दीवर इन्दु 99 99 ३ ६ ३ २ " २ 39 ४ २ ==m 20 19 " ३ ४ [ इन्द्र श्लो. १७४ 99 १७५ २६० १४ ९० १४९ -99 २.९ ९४ १०३ २११ ४८२ ३२५ ३४३ ५९६ १०४ १३५ १७३ 33 १९२ १६६ ४९१ ११ २३ १४० २७८ २३० १९ ५७ १४९ ११३ ८३ ८५ २३ २६५ Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उज्छ २४० ३२४ ३२३ W له سه ی णिक :: ८५ ४०२ १०९ ५६० ६० २३२ m mrar ८८ ३६८. ४०७ ११४ . १९५ ३३७ इन्द्रक] मूलस्थशब्दसूची श. का. श्लो. . श, का. की. श. इन्द्रक ४६३ . ई इन्द्रकील , . ९६ ई उकनाह इन्द्रकोश . ७७ ईक्षण ईक्षण ३ २३९ उक्षार , इन्द्रगोप " २७५ ভদ্য इन्द्रच्छन्द ३ ३ १४७. उखा इन्द्रजाल उस्य " " ५९० उग्र इन्द्रनील ४ १३१ इन्द्रभूति १ .३१ इन्द्रलुप्तक ३ १३० २ ११८। उग्रव १२९ उनधन्वन् , इन्द्रवारुणी ४ २२३ ईर्या १३६ उग्रनासिक ३ इन्द्रसुत ३ ईर्यापथस्थिति, इन्द्राग्निदेवता २ १३७ उचित २६ ईर्ष्या ३ उच्च इन्द्राणी ईर्ष्यालु उण्ड १२८ , इन्द्रानुज इन्द्रिय ३ २९३ ४४९ उच्चताल ईश १०९ उच्चन्द्र इन्द्रियग्राम , उच्चय इन्द्रियायतन ३ - २२७ . ईशसख उञ्चल इन्द्रियार्थ ६.२० इशान उच्चार इन्धन ३ ४९१ ईशानज . २ उचावच इभ ४ २८४ ईशित उच्चूल इभपालक ३ . ४२६ ईशित्व उच्चैःश्रवस् २ इभारि ४. ३५० | ईश्वर उच्चघुष्ट , इभ्य३ .. उच्चस इरम्मद ४. १६७ उच्छङ्खल. ., इग . ३ ५६६ ईश्वरा उच्छिष्टभोजन ३ इरिण उच्छोषक , १७२ उच्छ्राय ६ इस्वला ईषदुष्ण २२ उच्छ्रित , इषीका ४ . २६१ ५५५ उच्छूसित ४ ईषादन्त २८९ उच्चास ६ ५८४ उज्जयनी ४ २९१ उजयन्त इष्टगन्ध " " २० ईपीका ३ ५८४ उजम्भ इष्टापूर्त ३ ४९९ ९४ उज्ज्वल इष्य ईहामृग २ १९८ उज्झित इश्वास ३ ४३९ | ४ ३५७ उञ्छ . . ( ३८५) २५ अ० चि० **: emasm: Vin: owowowe vs m: ** - www*:: २९८ ..३ ४१४ ९० १८३ १७७ १०२ : س وله ५२१ : इषत : سم १९४ , ४९८ ईषिका ه س " १४१ : ५९३ : : سه : १ ५२९ Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उटज ] श. उटज उडु उडुप उडुपथ उड्डीन उड्डीश उत "" "9 उस्कर उत्कर्ष उत्कलिका "" उत्कुण उत्कोच का. ४ २ ३ २ उत्तरा उत्तरायण 29 39 ४ ३८४ २ १०९ ६ 99 २ ४ 39 ३ उत्क्रम ६ उत्क्रोश ४ उत्क्षिप्तिका ३ उत्तंस "," 99 उत्तत उत्तम उत्तमर्ण उत्तमाङ्ग उत्तर उत्तरङ्ग ४ उत्तरच्छद ३ उत्तरफल्गुनी २ उत्तरभाद्रपद,," 99 39 ६ ३ 99 २ श्लो. ६० उतथ्यानुज २ उताहो ६ उरक ३.. उस्कट 99 २ उत्कण्ठा उत्कण्ठित ३ १०० ६ ४७ उत्पात उत्पादक १४२ उत्पादपूर्व २ २२८ उत्पादशयन ४ १४१ उपिञ्जल ३ ४ 39 99 २१ ५४३ | उत्तरीयक ७७ उत्तान 99 १७२ अभिधानचिन्तामणिः का. श्लो. श. ४ उत्तानपादज २ उत्तानशय ३ १२३ उत्तेजित ४ उत्तराषाढा २ उत्तरासङ्ग ३ "9 ३३ उत्पतितृ १७२ |उत्पत्ति १०० उत्पल 99 उत्पश्य २२८ उत्पाटित 99 उत्तेरित 99 २८८ ७४ ५४६ २३० १७७ २७५ | उत्फुल ४०१ उत्स १४७ उत्सङ्ग ७२ ३४० ४०१ उत्सर्जन ३२० | उत्सर्पिणी ३१८ उत्सव उत्सादन उत्सारक उत्साह उत्साह (शक्ति) "" उदक्या " ८१ ७२ | उदग 99 99 ३ ६ .99 ३ ३ उत्सुक ३ उत्सूर २ उत्सृष्ट ६ २६ |उत्सेध २९ उदक 99 २ ६ ३ ४ २२९ ३ १२१ ६ ११६ २ ४० ४ ३५२ "9 ४ ३ ४ ( ३८६ ) २७ ३३६ | उदग्र ३३५ १३७ > ३११ ३१४ ३६ | उद ३११ ३१५ ५३ ३ २ | उदचन उदि उदधि १६१ -३९६ श. उदग्भूम ३० १९४ १६२ २६६ ५० ४१ १४३ २९९ ३८५ 39. २१३ २ उदग्रदत् ३९९ १०० ५४ १११ "" 99 ४ उदधिकुमार २ का. ४ ६ .३ ४ २ उदन्त 99 उदन्या ३ उदन्वत् ४ उदपान उदय " उदर उदरग्रन्थि उदरत्राण उदरपिशाच उदरभर उदरिणी उदरिन् उदरिल उदर्क अंदर्चिस् ४ 99 ६ 99 ६७ उदावर्त १३५ | उदासीन १९९ उदाहार M ९३ "" १ ४ ६. ३ 39 ,, "" 99 "" "" उदवसित 19 उदश्वित् ३ उदात्त उदान उदार "" २ ४ 99 ४ ३ 19 29 " 99 २ "" [ उदीची १९ ६५ १२१ २८९ ८२ ९२ ११८ १३९ ४ १७४ ५८ १३९ १५७ ५४ ५३ ६७ २६८ १३३ ४३२ ९२ ९१ २०२ ११४ "" ७६ १६६ ५६ ७३ ३१ १७५ ३१ ४० ५० १३३ ३९६ १७६ ८१ Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१६ ७३ उपग्रह . m उदीर्ण : २ : : s » . : * : * * . . . . . . . . : " * : * . ! FREEEEEEEEEEE. 0.10:00MWAM::: उदीचीन ] मूलस्थशब्दसूची [उपप्रदान श. का. . श्लो. | श. का. श्लो. श. का. श्लो. उदीचीन २ उपगृहन ६ १४३ उदीच्य उद्वत्सर ४७० उद्तन २९९ उपग्राम __ " ४०१ उदुम्बर उद्वह २०६ उपन्न १०५ उद्धान्त २८७ उपचर्या १३७ १३१ उपचार उदूखल उद्धासन | " १६१ उद्गत उदाह ४०१ उद्गमनीय ३ उद्वेग उपचारपरी तता उदाढ उन्दुर १४१ उपचित उद्गात ११३ उन्दुरु ४८३ उन्न उपजाप ४०० उन्नत उपजिहा ४ २७३ उद्धाटक १५९ उनतानत १०४ उपज्ञा ६ उइंश उन्नयन २३६ उपताप १२७ उद्दान १०३ उन्मस उपत्यका ४ १०१ उद्दाम १०२ उन्नाह उपदंश २४३ उचिद्र १९५ उपदा . " उद्माव उन्मदिष्णु ३ उपदीका ४ २७४ उद्धृत उन्मनस ." उपदेहिका , २७३ उन्मन्थ . , '३५ उपद्रव उन्माथ उपधा ४०४ उद्धान उन्माद २३४ उपधान ३४७ •५४५ उन्मादसंयुत ३ उपधि उधुर ६. ६४ उन्मिषित ४ उपधति उधुषण ,२ २२० उन्मीलन ३ उपनत उद्धत ६ ११६ उन्मुख उपनय उद्धय ४ . १५७ उन्मूलित उपनाय उमट ३ . ३१ उपनाह २४२ २०४ उपनिधि ३ उपकण्ठ ५३४ उद्भिज ४ ४२३ उपनिषद् २ १६४ उपकरण उपनिष्कर ४ ५३ उपकारिका ४ उपनिष्क्रमण" उपकार्या उपनीतरागत्व उद्यम उपकुल्या ३ उपन्यास १७६ उचान उपक्रम उपपति ३ १८३ उद्योग २ २१४ उपक्रोश २ १८५ उपपादुक ४ ४२३ उद्घोत , १५ | उपगत ३ २८ | उपप्रदान ३ ४०१ (३८७) २७५ ११६ १०० उद्धर्ष ५५५ : : ४२ १३ २४२ m १३० w उद्भिद् FREE: htt# : M".ma 1442 له १७८ : Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपप्लव] अभिधानचिन्तामणिः [उलूखल ३४७ श. का. उपप्लव २ उपबह उपभृत् उपभोग , उपभोग-(ग अन्तराय) उपमा श्लो. ४० १२१ ४०२ १२८ १७६ . ३५ १७८ Mmm. २४५ ११३ ४३ १२२ ७५ ४१३ ३३ ३२१ ३६९ १६३ श्लो. श. का. श्लो श. का. ३९ उपसन्न ६ १३० उपाहित २ उपसम्पत्र ३ ६ ४९२ : ७७ उपेक्षा ३ ३०२ उपसर ४ ३४० उपेन्द्र २ उपसर्ग २ ३९ उपोद्धात २ उपसर्जन ६ ७७ : उपकृष्ट ४ उपसर्या ३३४ उभ६ उपसूर्यक २ . १५ उम् .. " उपस्कर ३ ८१ मा . २ " उपस्थ ३ __" . " २७५ उमापति । ". उपस्थित ६ १३० ! उमावन . . उपस्पर्श ३ ५०१ उमासुत : २ उपहार . १११ उम्बर - ४ १५८ " ४०१ उम्बुर . . " » । उपहालक ४ २७ उम्य " ३९ उपबर ३ . ४०५ उम्मूत्रिका ३ १६२ उपांशु ६ , १७४ उरग उपाकरण ३ ५०५ उरण १०२ उपाकृत " ४९३ उरभ्र २२३ | उपाय उररीकृत १५६ उपात्यय उरश्छद उपादान उरस् उपाधि . ३ उरमिल " १३ उपास्यय " उरस्वत् ५०६ उपाध्याय १ ७८ उराह २८८ उपाध्याया ३ उरु ३८० १८८ उरुरीकृत " १५६ उपाध्यायानी उरोज उपाध्यायी " उवरा उपानह उर्वशी उपान्त उर्वशीरमण उपाय उर्वी १३९ उपायन " ४०१ १७७ उपासकदशा २ १५८ ३३७ उपासङ्ग ३ ४४५ उलूक ५०८ उपास्ति , १६१ / उलूखल ३ (३८८) उपमात उपमान उपयम उपयाम उपरक्त उपरक्षण उपरति उपरम उपराग २ उपरि ६ उपरिष्टात् उपल उपलब्धि उपलभ्भ उपलिङ्ग उपवन उपवर्तन " उपवसथ उपवास उपवाह्य उपविष उपविष्ट उववीत उपवंणव उपशम उपशल्य उपशाय ६ उपश्रुति २ उपरव्यान ३ उपसंग्रह " m::00 ur mur m ur १२५ SC उरस्य २६६ ४५६ २१४ ४५६ ३०६ १२४ २६७ ५०९ २१८ ३६५ उलप . १८४ २६० Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उलूखल] का. . श्लो. श्लो. श. उलूखल उलूपी उल्का ..। m १६८ . १ 20MBur m : उस्ब १२४ २१४ १३८ उल्बण उपमुक उसकसन उल्लाघ उहाप उहोच उल्लोल उशनस् उशीर उषर्बुध :WWWNMMC www १८९ • ऋतु २०० १४२ मूलस्थशब्दसूची [एकदन्त श. का. श्लो. श. का. ऊत । ऋक्ष ३५५ ऊधस् ३३८ ऋग्विद् ३ ४८३ उधस्य ऋच (वेद)२ १६३ ऊरव्य ऋचीष ऊरीकृत ऋजीष २७७ ३९ ५२८ ९२ ऊर्ज ६९ ऋण ५४५ ऊर्जस ४६० ५३० ऊर्जस्वल . " ४५६ ऊर्जस्विन् " ऊर्णनाभ ४ । ऋतुमती १९९ ऊर्जायु ३ ३३४ ऋते १६३ ऋद्ध ऋद्धि ऊर्ध्वक २ २०७ ऋभु ऊर्ध्वक्षिप्त ६ ११८ ऋभुतिन् ऊर्ध्वजानुक ३ ११९ ऋश्य ३६० ऊर्वज्ञ. . ३ १२० ऋषभ २९ ऊर्ध्वजु . , . ऊवन्दम : " १५६ ऊर्ध्वलिङ्ग २ ११० ऊलोक " ऋषि ऊर्मि ऋषिकुल्या ४ १४८ ऊर्मिका ऋष्टि ऊर्मिमत् ऋष्यात १४४ ه MM..000m २७६ ه ه ३४२ २१ ५६५ ऊवं : १५६ : उषस ه ه उषा ه ८. ०८: م : . १७२ उषित उषेश २ उष्ण " ه ه س १५ ३ . ४८ 0WCWC:.:: ww.: ३२७ م Q ४१६ re उष्णक उष्णवीर्य ४. उष्णांशु २ उष्णागम . " उष्णिका ३ उष्णीष . ऊषण - ऊपर ऊष्मक ऊष्मन् ::m १०४ ३१५ ऊह ९३ ३ ३ : 0 २३७ २ १३८ . उन . २ उना. ४ ३३१ ऋक्ण ऋक्थ ऊढा ३ - १७७ | ऋक्ष १६८ ૨૫ एकक एककुण्डल एकगुरु १०६ एकतान एकताल २२ एकदन्त २ ६ " २ १२१ २ (३८९) Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एकश] अभिधानचिन्तामणिः [ककूद ११० ११७ ४४६ ३२८ ६९ १७३ __ ९४ ९४ . mmu ४.६ शब्द काण्ड श्लोक | शब्द काण्ड श्लोक | शब्द काण्ड श्लो. एकहश २ एनस १६ औड्रपुष्प ४. २१३ | एरण्ड २१६ | औत्सुक्य २ २२८ ३८८ एरि २५५ औदनिक ३ ३८६ एकधुर एषण औदरिक , ९२ एकधुरीण " एषणा औदश्वित , एषणी एकपली ३ औदग्विरक , एकपदी औदास्य . १ एकपदे ऐकागारिक ३ औदार्य . . , ऐकान ६ ९४ एकपाद एकपिङ्ग " ऐतिम २ १७३ औदुम्बर , ४८० एकप्रत्ययस ऐन्द्रलुप्तिक ३ ११६ औपगवक . ६. ५२ न्तति ऐन्द्रि , ___ . ३७३ औपम्य . " ९९ एकयष्टिका ३ ३२५ ऐन्द्री २ औपयिक. : ३ ४०७ एकसर्ग ६ ९४ ऐरावण २ औपरोधिक , ४७९ एकहायनी ४ ३३८ ऐरावत .. ओपवस्त्र. " ५०६ एकाकिन् ६ ९३ औमीन . ४. ३३ एकाग्र | औरभ्र ३ ३३४ एकान्त औरभ्रक ६ ५३ ६ १४२ ऐरावती. १७० औरस ३ २१४ एकान्तदुःषमार और्वदेहिक " ३८ एकान्तसुषमा" ४ १६६ एकायन ६ औवंशेय. २ ३७ एकायनगत " , ओ औलूक्य ३ एकावली ३ ३२५ शोकस ५२६ ४ औशीर , ३४९ ११८ ओघ औषध १३६ ३४२ औषधि १८३ एडगज औषधीपति एडमूक ओङ्कार एडूक ओजस ओण्ड एणभृत् ओतु २ . १२५ एत ओदन २३० ओम् एतर्हि १६६ ओषण एतस ओषधि ४९१ ओष्ठ २४५ कंसक " १२३ एधस कंसोद्धवा १२२ एधित ३३० (३९०) और्व م ه २२४ م १८ س س ه : ३६७ س १७६ ه : ४७७ مه १८३ / .. . : * : س " , औ १३१ ___ ५२ | ककुद Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ककुभ ३३८ : CWCOMWCmm 0:00 ३३९ ९९ २९५ ३४० : क ३ २५७ ३२७ ककुमत् ] मूलस्थशब्दसूची [ कनिष्ठा श. का. श्लो. | श. का. श्लो. । श. का. श्लो. ककुमत् ४ . ३२३ । कच्छर ३ १२४ कण्टकारिका ४ २२३ ककुमती ३. - २७१ कच्छू १२८ कण्टकाशन " ३२० ८० कमल ३५० कण्ठ २५२ ककुभ २०५ कअलध्वज कण्ठकूणिका २ २०१ ..२०१ कण्ठबन्ध ४ '२९८ कक्कोलक कण्ठभूषा ३ ३२१ कक्खट २२ ४ ३८१ कण्ठिका ३२६ कक्ष काकिन् ३ ३९१ कण्ठीरव ४ ३४९ कक्षा २५३ कण्ठेकाल १०९ कञ्चलिका ३३८ कण्डन कट २७१ कण्डरा कचापट कण्डू १२८ कक्षीवत् ५१७ २९१ कण्डूयन " कच्या २९८ कटक ३२७ कण्डूया " कण्डोलक ४ कत्तण " कट ४३० | कटाक्ष २४२ कथंकथिकता २ करण कटाह ८८ कदक ३ ३४५ ककृत ३५२ कटि - ३ २७१ कदध्वन कङ्कपत्र कटिपोथः ." २७३ कदन ककमुख .." कटिझक ४ ५७३ •२५४ कदम्ब १२० कङ्काल " . २९२ कटिसूत्र ३ ३२८ २०४ कक्केल्लि कटीर ४ . २०१ २७१ कदम्बक २४६ कटु २५ कानी कटुक्काण ४ ३९५ कटोलवीणा २ २०४ कदली .२०२ कचश्मश्रुन कट्वर ३ . १४ ३६० खाप्रवद्धि | कठिन ६ २३ कदाचित् |.कठिनी - ४ १०३ कदुष्ण २२ कधित् कठोर ६ कच्छ २४८ कद कडार ३३ १०९ कच्छप २ १०७ | कण , | कनकाभ्यच ३ ४ ४१९ | कणा ३ कनकालुका " ३८२ कच्छपी २ २०२ | " कनकाइय कनक ३ ११७ कच्छा ३ ३३९ | कणिश ४ २४७ कनिष्ठ " २१६ कच्छाटिका " , | कपटक कनिष्ठा (३९१ ) : : कदर्य ३२ : १६९ : २३ : कद्रु non: 00. कनन WC::00 AM १०७ १. ४१९ | कणित २१९ । : Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कनी ] श. कनी कनीनिका "" कनीयस् "" का. श्ला. ३ १७४ २३९ २५७ - कफकूचिका २१६ कफणि. ६४ फिन् १०६ कफोणि २५५ कबन्ध ९९ 99 "" 39 कपिल कपिला ६ कपिलोह कपिश कपिशीर्ष कपोत ४ कन्दु कन्दुक "" कन्धरा " 99 कन्यकुब्ज ४ कन्या ३ कन्या कुब्ज कपट ३ कपद २. "" ४ कपर्दिन् २ कपाट ४ कपाल कनीयस कन्द कन्दर कन्दर्प २ १४२ ४५ कन्दर्पा १ कन्दली ४ ३६० ३ ५८५ ३५३ २५० ३९ १७४ कमनच्छद ५ ६ ३ 93 ३ कपालभृत् २ कपालिनी ४ कपि कपिकच्छू कपित्थ कपिध्वज ३ ६ 99 ४ "" 99 ४ 39 ६ ४ 99 अभिधानचिन्तामणिः 33 ३७३ ३२ ११४ श. कपोली कफ ११३ 99 कबर कबरी कम् कमठ ४० कमनीय ४२ कमर ११४ कमल १७२ 39 ११० कमला ७३ | कमलोत्तर २९ कमित ११३ कम्प १२० कम्पन B७ कम्पाक २१७ | कम्पित कम्प्र कम्बल 99 99 श्लो. ३ २७८ १२६ २९७ २५४ १२४ | करकपात्रिका २५४ | करक २२९ १३६ करज करअ करट " का. कन 99 ७६ "9 कपोतपाली " कपोताभ ६ कपोल ३ २४६ ३० कर 99 99 39 19 ४१९ कमण्डलु ३ ४८० कमन २ १२५ 39 ३ ४ ६ ३ ४ 199 66 ४ 29 ३ ४ कम्बलिवाह्यक ३ ४ २ ४ ३ कम्बि ३२ कम्बु "" ४७ कम्बुग्रीवा ३ ४०५ 22 २ ६ ४ ६ 39 ६ २ ३ ( ३९२ ) १०५ २३४ १३५ > १४१ ३९९ -८१ ९८ १३५ २२६ १४० २२५ श. कर 99 करक 39 99 करटा करटिन् · करटु करण 99 99 "" 99 [ करालिक श्लो. ४०९ २९० ८० 99 का. ३ ४ २ ४ ८७ ९१ ३ २९२ ४ ८८ २५८ २०६ 63 करशूक करहाट २५५ | कलिक १४ ४ "" करणत्राण ३ तरतोया ४ करपत्रक ३ करभ ३ 39 ६ ९८ ४ २२० करभूषण ३ ९१ करमाल ४ १७२ करम्ब ६ ११७ करम्भ ९१ करवाल "" ३३४ करवालिका " ३७७ करवीर ४ ४१७ ८७ २५० २५० करशाखा. ९८ ८१ 99 ३ " करवीरक करवीरा 99 99 २९१ ३८८ ३.३५ २८३ ४०३ ८२ २२७ ५६१ 99 १९ २३१ १५१ ५८२ २५६ ३२१ ३२६ १७० १०५ ६३ ४४६ ४४९ २५६ ३ करशीकर ४ २८९ ३ २५८ ४ २३२ १८० ५५ २०३ २६३ १२६ Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिन् ] श. करिन् करीर 99 करीप करीषाभि करुण "" करुणा करुणापर करे करेणु करेणुभू करोटि कक कर्कट "" कर्कटी कर्कन्धु कर्कर कके टुक कर्कसल कर्करी कर्करे टु कर्कश का. ४ 99 39 ११ 99 99 २ ४ ३ 39 ४ 39 ३. 99 ४ 99 99 39 39 ३ ४ ३ ४ "" ३. "" ४ + 39 लो. २८३ ८५ २१६ २४९ ३६९ १६७ २०८ २१५ ५५७ २९० ३०३ ४०० .४१८ शं. का. कर्णशष्कुली ३ कर्णिका मूलस्थशब्दसूची 39 कर्णिका चल कगिंकार कर्णीरथ कर्णेजप ३३ | कर्तन ३२ | कर्तनसाधन ४०३ | कर्तरी २८४ "9 कन 99 कर्पट कर्पर ". करु कर्कोटक कणं 99 कर्णकीटा कर्णजलौका कर्णजित् कर्मन्दिन् "" 39 ३ ३७४ कर्मप्रवाद कर्णधार ५४० | कर्मभू "" कर्णपुर कर्णभूषण ३ ४ ४३ कर्मभूमि ३१९ कर्मवाटी कर्ण मोटी २ १२० कर्मशील कर्णलतिका ३ २३८ कर्मशूर कर्णवेष्टक ३२० | कर्मसचिव कर्पास ४०३ कर्पूर २३३ कर ८७ ४०३ 99 २२ कर्मकर २५४ | कर्मकार २५६ | कर्मक्षम २३८ | कर्मठ ३७२ | कर्मण्या २७७ कर्मन् 99 99 ४ 99 "" "9 0 ६ 19 39 99 99 २५५ २०४ | कर्षरिकातुरथ” २९० 39 "" m 99 39 ६ ३ 99 19 99 97 ६ ३ "" ४ " २ ३ 99 39 (३९३ ) श्लो. श. का. ३२० | कर्मसाचिन् २ ३१९ | कर्मान्त ४ २३१ कर्मार ३ २९० कर्ष ९७ कर्षक कर्षण २११ ४१७ ४४ ३६ ५७५ ४४५ ५७५ ३९ १५६ २६४ ३४० २९१ ८८ ११९ २०५ ३०७ १०२ कर्पू कहिं चित् कल कलक कलकण्ठ कलकल कलङ्क कलन 91 कल "" कलभ कलम कलम्ब कलम्बिका कलरव कलल 990 ३४ | कलविङ्क २५ कलश २६ कलशी १८ 93 ३८३ कलस कल्ह 99 २६ कलहंस १३३. कला ४७३ १६१ २९ १२ ६१ १८ 99 कलाद कलान्तर कलाप 39 "" 39 "3 ४ ६ 39 ४ 99 ६ २ ३ 99 ४ 39 39 99 ३ 39 ४ ३ ४ 99 29 99 ४ २ 99 कलाकेलि २ कलाचिका ३ 99 ३ "" "" 99 "" कलाप लो १२ २९ ५८४ ५४८ ५५४ ५२८ १४६ १६९ ४५ १११ ३८७ ४० २० १७७ २७१ १०९ ११० २८६ २३५ ३४२ २५१ ४०५ २०४ ३९७ ८५ ८८ ८५ ४६० ३९३ २० ५० ५६३ १४१ २५४ ५७२ ५४५ ३२८ ४४६ Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कलाप] श. कलाप का. ४ " . 0 : कलापक कलाभृत् कलामक कलाय कलावती कलि . ३ कलिका : 20C २०५ ३६९ ३९९ : कलिकारक ३ कलिङ्ग कलिन्दिका २ कलिल कलुष ४ रिका " | काकोल . " १०८ २४२ CM :: अभिधानचिन्तामणिः [काण्डवत् श्लो. | श. का. श्लो. । श. . का. श्लो. ३८६ कल्या २ १८७ | काककंगू ४ २४४ कल्याण ८६ | काकतुण्ड . ३ ३०५ २९८ १६२ काकपक्ष , २३६ १०९ काकपुष्ट ४ ३८७ ૧૭ર काकमाची , २५४ २३६ कवक काकलक ३ २५२ २०३ ___२५० काकली . ६. ४६ ४६० कवच ३. ४३० काकारि . ४ ३९० २११ कवल ९० कवि ३३ काकुद . ३ २४९ १९१ , , . १२५ | काकुवाच २ १८९ ५१३ काकोदर. ४ काकोदुम्ब १७२ कविका १९९ कविय २६२ १३७ कवी. ३८९ १७ कवोष्ण काक्ष कन्य १२१ कशा ३. काला कशेरुका २९१ काच कश्मल ४६५ काच्छी - १२२ कश्मीर काञ्चन ४०७ कश्मीरजन्मन्३ ३०८ | " कश्य | काश्चनगिरि ३०२ काश्शनी काशिक | कष ५७३ काञ्ची ३२८ कषाय काशीपद २७१ काधिक |कसिपु ३४९ काण १७ | कस्तीर ४ १०८ काण्ड ४४२ ३४ | कस्तूरी ३ ३०८ , ४ २४८ ५३ | कहार ४ २३९ | , १३८ कह्न , ३९८ , ६ ७८ ५६६ | कांस्य , ११५ काण्डपट ३ ३४४ ५६५ कांस्यनील काण्डपृष्ठ काक ३८७ काण्डवत् (३९४) कलेवर कल्क काक्षी ६ Vid १२८ E . २४ १५० १०९ S ३६ ५७५ " ३१० कल्पन कल्पनी कल्पभव कल्पातीत , कल्पान्त कल्पित कल्मष कल्माष कल्य ७५ कष्ट ७ २८७ २४९ कल्यपाल कल्यवत Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काण्डपृष्ट ] श. काण्डरपृष्ठ काण्डीर कातर कानन कानीन कात्यायन 99 कात्यायनी २ ३ 99 "" कादम्ब ४ कादम्बरी ३ कादम्बिनी २ वै ४ कान्त कान्ता 99 कान्तार 99 39 कान्ति "" का. ३ कापथ कापिल कापिश कापिशायन कापोत 99 99 काम 99 99 ३ ६: कान्दविक ३ कान्दिशीक 99 99 "" 99 99 कामकेलि कामङ्गामिन् कामन कामपाल "9 ३ 99 ६ २ ३ ४ 99 ४ 39 99 ४ 9 २ ३ ६ 99 " २ श.. का. श्लो. ५२२ कामम् ६ १७६ ४३५ | कामयितृ ३ २९ कामरूप ४ ५१६ कामलता ३ ११७ | कामाङ्कुश 99 १९५ | कामायुस् २ ३९३ |कामारि ५६६ कामुक ७९ कामुका ३७३ || कामुकी १७६ २११ ५११ ८० १७९ १६८ ५१ १७६ २६० मूलस्थशब्दसूची ५६६ ११ ११७ १४१ २०१ 99. १५९ ९८ १३८ काम्पल काम्बविक काम्बोज ३० ७३ १४१ ९५ काम्य काय 39 कायमान कारकाद्यवि पर्यास १७३ कारकुक्षीय १४८ कारण ५८५ कारणा ३० कारणिक ५० कारण्डव ५२६ | कारवेल ५६७ कारस्कर (तीर्थ) कारा कारिका कारिन् कारु कारुण्य 4 कारूष कारोसम कार्तवीर्य 99 ४ ३ 99 99 "" 99 ४ ६. ३ 99 9 ५ ३ ४ 99 १९ ३ २ ३ "9 ท 99 99 श. कार्तिकक कार्पण्य २२ कार्पास ४ कार्तस्वर कार्तान्तिक ३ कार्तिक. ( ३९५ ) २ २७४ 99 २५८ कर्म १४५ | कार्मण १२१ कार्मुक कार्य ५८ काक काल १९१ 99 ४१८ ५७४ ३०१ ८१ २२७ ५०४ ६२. ६९ २३ १४९ 9 १४३ ४०७ २५४ १८० ४७० १७२ ५६३ 99 ३३ | कालिका 99 ४ २५ "" ३ ५६९ कालिङ्ग ३५७ ३६६ |कालिनी 99 " "" कालक 99 कालखञ्ज • कालखण्ड [ कालिन्दीसो का. २ 37 ३ 99 99 ६ ३ ६ ३ २ 99 कालकण्टक ४ कालकर्णिका ६ कालकूट ४ ३ " ६ ३ "" ११० | कालिन्दी १४६ | कालिन्दीसो ६९ दर कालचक्र २ कालधर्म ३ कालनेमि २ ३ "" कालपृष्ठ कालवृन्त ४ कालशेय ३ कालागरु कालान्तरविष४ कालायस काला सुहृद् २ 99 " १ २ ४ ४ २ ४ २ श्लो. ६९ २३३ ३३३ 39 १८ १३४ ४३९ १५० ५५४ ४० ९८ २३७ ३३ २६८ २८२ ३९८ १६ २६२ २६८ "" ४२ २३८ १३४ ३७५ २४१ ७२ ३०५ ३७९ १०३ ११४ ४४ २२१ १२१ - २६४ २४ १४९ ९९ Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काली] [कुच ( ल श. काली का. २ कालीय कालीयक कालेय ३१० २७५ . किट्ट कितव काल्य काल्या कावचिक कावेरी काव्य काश काशि काश्मरी काश्यप अभिधानचिन्तामणिः श्लो. श. का. श्लो. श. का. श्लो. ११७ किश्चलक ४ २६९ किलिकिश्चित ३ १७१ १५३ किअल्क २३२ किलिम ४ ८३ १३५ किटि ३५४ किल्बिष ६ १७ किटिभ किशोर ४ २९९ २६८ २९५ किसल " १८९ किट्टवर्जित , २९३ / किसलय , किण . १२९ कीकट - ३ किण्व १७ कीकस , ३ ३ १४९ २६८ ३३ किन्नर कीचक . " २१९ कीचकनिषू.. . ४० दन ३ ३७२ २०९ / किम् कीन • १५० १७२ कीनाश २ २८६ । किम किमुत .. १७१ __" . १७२ कीर ४४०१ किम्पचान ३ . ३२ कीर्ण किम्पाक ४ २०७ कीर्ति १८७ किम्पुरुष २ ५ २६९ कील ३४० " " १०८ कीला १६८ किम्पुरुषेश्वर ,, कीलाल कियदेतिका " कीलित १०२ कीश ३५७ " " Www. १६४ २८७ . ९८ २ ३ १०१ काश्यपि काश्यपी काष्ठ काष्ठकोट काष्ठतत काष्ठा ५८१ १२८ किर ३४९ किरण कुकर ११७ कास कासर कासार कासीस किंवदन्ती किंशाह ५९८ २७२ १६७ ३९० ३७२ festa किकीदिवि , किरिव " किङ्कणी ३ किकर . किङ्किरात ४ किञ्चन ६ किश्चित् " १२२ किरात ३ १७३ किरि ४ २४७ किरीट ३ २०२ किरीटिन , ३९५ | किरि ६ ३५६ किर्मीरनिषू३२९ | दन ३ २४ | किलाटी " २०१ किलास " १७२ | किलासन ४ " | किलासिन् ३ (३९९) ३५३ कुकूल ३१५ कुक्कुट ३७३ कुक्कुटाहि " ३४ कुक्कुटि ३ कुक्कुभ ३७२ कुक्कुर . ६९ कुक्षि. ३ १३१ । कुक्षिम्भरि , २५६ कुङ्कुम १२५. कुच ४०८ ३४४ २६८ ९१ ३०९ २६७ Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८ . .१८ कुञ्जर ३५२ ८५ : कनटी १२६ कुनाभि २३१ ..m.wmom Mm:. 0mr0.:-.. mo : २८३ : २ . कुचन्दन] मूलस्थशब्दसूची [कुलटा श. का. श्लो. श. का. श्लो. श. का. श्लो. कुचन्दन कुलप कुमुद ४ २३० कुचर " १२ , कुमुदबान्धव २ कुज कुमुदावास ४ २० कुञ्चिका ४ कुतुप कुमुदिनीपति २ कुञ्चिन कुमुदत ४ . ६० कुन कुतूहळ कुमुदती , २२९ " २८३ २८३ करमा कुमोदक २ १३० कुत्सित कुम्बा ४८८ कुमराराति ४ कथ कुम्भ कुञ्जराशन . १९७ २५८ कुञ्जल कुद्दाल ५५६ २९२ कुट कुम्भकार ३ कुम्भकारकुन्त । ४४९ कुक्कुट ४०८ कुटज ४ २०३ कुन्तल | कुम्भशाला " ર૭ कुम्भिन् कुटहारिका ३१ ४१५ कन्थ कुटिल ६ ३५७ / कुम्भी . कुटुम्बिन् ३ ४१५ कुटुम्बिनी " कपूण . . ७९ कुम्भीनस . ३७० कुट्टनी ..३ कृप्य ४१५ कुट्टमित ". " . १७२ कुप्यशाला । ६२ | कुरकर , ३९४ कुहिम ४. ४३ | कुरा कुरचित्र कुठार ३ ४५० कुरण्टक २०१ कुरण्ड । १३४ कुडमल " १९२ । कुरर कुड्य कुररी ३४३ कुड्यमत्स्य, . ३६१ कुरुक्षेत्र १२३ कुण ३ २४६ कुरुल २३३ कुणि . " कुमारक 'कुरुविन्द १२७ कुण्ड . " कुमारपाल ३७६ २५९ कुमारसू ४ १४७ कुरुविस्त ५४८ कुण्डगोलक ३ कुकुर ३४५ कुण्डल." १६७ कुण्डलिन् ४ ३६९ कुमालक कुण्डिका ३ ४८० कुमुद कुण्डिन ४ . ४५। " ४ १०९ कुलटा (३९७) : : : •११२ / कुम्भीर WE: .. : : १८१ । : कुमार : m : 00 कुमारी Mm2 m २६ 0 mm १९३ Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुलस्थ] श. का. कुलत्थ ४ कुलस्थिका " س २४१ WU : कुलनाश कुलबालिका ३ कुलश्रेष्ठिन् " कुलस्त्री कुलाय कुलाल ८६ / कृजित مه سر به ४२ ९८ कुलाली अभिधानचिन्तामणिः [कृकण श्लो. | श. का. श्लो. श. का. २४१ | कुवेणी ३ ५९३ कुहक ३ __ ५९० १२८ | कुवेल ४ २२९ कुहू कुश ३६८ १३९ ३१९ ४ १३५ कूधिका ५८६ १७९ १४९ कुशल १७९ ३८५ कुशस्थल . ४ ४० " . ५८४ ५८० कुशा ३१८ , १२८ कुशाग्रीयमति३ ३०७ कुशारणि " १५९ कुशिक कूटयन्त्र..३ ५९६ कुशिन् कूटस्थ १०५ कूणिका. २ ___९५ कुशीलव १५३ ३६८ कूप १५७ २१८ कुशेशय ___४.. २३६ ५४१ कुष्ठ १५४ ३०० ४ २६३ ४२० २३९ कुष्ठारि " १२३ ५९ १३६ कुसीद ३ ५४४ २४४ ४१८. कुसीदिक " " , २४७ कुसुम , कुलाह कुलिक : ३७६ : कुशी कुंलिङ्गक " कुलिश कुलिशाङ्कुशा " ३३० WW कुली कुलीन سه : س २९६ । م कुलीनक कुलीनस कुलीर कुलुक कुल्माषाभिषुत कुल्मास कुल्य कूर्चशिरस् ه : ७९ कुसुमपुर कूर्थिका २४१ कुसुम्भ : कूर्दन : २२० २४४ २५४ : २८९ १४६ कुसूल कुसूति कूर्प कूपर कूर्यास कूर्पासक कुल्या س १५५ : २२९ कुस्तुम्बुरु २२९ ३३८ ४८ : " . م ४१९ س १४३ ३६५ ه कूलषा कुवल कुवलय । कुवलाश्व कुवली कुवाट कुवाद कुविन्द ४ " ३ " कूस्मारक कुह कुहक दुहकस्वन २०४ कुहन ३ ७३ | कुहना , १२ ५७७ | कुहु (३९८) ५५ ३ , ४ १४६ १२४ २५४ २५१ ४०४ م ६५ । कृकण ه Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [कैतव श्लो. ४१४ ३६ 20 ३१ ५४३ : 0 ४३६ nas ५५५ 0 २१९ १२४ २४५ ३२१ २१९ ४०६ : mant कृष्ण ५० : : :. २३१ २३२ ९८ conomch कृतान्त २३२ कृकलास] मूलस्थशब्दसूची श. का. लो. श. का. श्लो. श. का. कृकलास ४ ३६५ | कृमिजा ३ ___३५० कृकवाकु " ३९१ कृमिपर्वत ४ केदार कृकाटिका ३. २५० कृमिला ३ २२२ केनिपात ३ कृच्छ्र ५०६ कृश | केयूर ६३ केरल कृतकर्मन् ३ | कृशानु १६४ कृतपुर . " ঘিলু। २४३ केलिकिल २ कृतम् ६ १६३ कृतमाल ४ २०६ | कृषिक केलिकीर्ण ४ कृतमुख ३ कृषीबल केलिकुश्चिका ३ कृतलक्षण , १०१ | कृष्टि केवल कृतवर्मन् १ केवलज्ञानिन् । कृतसापत्रिका३ १९१ केवलिन् १ कृतहस्त " केश केशकलाप । 'कृतान्त कृष्णकर्मन् केशन कृष्णकाक केशपक्ष जनक कृष्णभूम केशपाश ५२ कृष्णला केशपाशी कृतिन् . ३ ५ कृष्णवर्मन् , कृत्त : ६ १२६ कृष्णशृङ्ग केशमार्जन कृत्ति. ३ २९४ कृष्णशार केशरचना कृत्तिका २ . २३ - कृष्णस्वस २ ११८ केशरञ्जन कृत्तिकासुत ": १२२ कृष्णा ३. केशरिसुत . ३ कृत्तिवासस " .११२ | " " . ३७४ केशव कृष्णामिष ४ १०४ कृत्रिमधूप ३ ३१२ | कृष्णावास " | केशहस्त कृरख ६. ६९ | कृष्णिका . | केशिक कृपण ... ३ . ३१ क्रसर | केशिन् कृपा " . केकर कृपाण - ३ ४४६ केका ३७६ | केशी कृपाणिका , ४४८ | केशोषय ३४५ केसर कृपालु " केतक कृपीटयोनि ४ १६३ केतन ३ कृमि . " . २७६ | केतु २ कैटभ कृमिज ३ ३०४ " " ३६ | कैतव ( ३९९ ) कृतार्थ केशभार २३५ २३२ '३५२ २३२ २५३ .. ३६९ . कृत्य m १९७ mrm :::: Ru १२३ १२८ १२२ રૂર १२२ २३४ १२२ २३५ २३२ २०१ २३२ ३५० m ३८५ कृपाणी केणिका ३२ २१८ ३१७ | केसरिन् १३ ::rm १३४ ४२ Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणिः क्रायक :00 : कैतव] श. का. कैतव ३ केदारक ६ कैदारिक केदार्य " कैरव ४ कैरविणी . कैराटक " कैलास " कैलासौकस् २ कैवर्त कैवल्य कैशिक कैशिकी ८७ २९२ . . 00:00: 00 कोश " . २२९ 2 ९ कोक २८ : 0 : : ३०३ — २२ : कोकनद कोकाह कोकिल कोटर कोटवी कोटि श. का. श्री. श... का. श्ला. कोल ४ ३५३ कौश, ४ कोलक कौलिक ३ ३१० कौशल्या. . कोलकुण ४ नन्दन , कोलम्बक २ कौशाम्बी ४ ४१ २२९ कोलाहल ६ कौशिक २ २६३ कोलि कोविद . ३ ५१४ १०४ कोविदार ४ ३९० कौशेय ३ ५९३ ३३३ ३३४ कौषीतकी ३७ . १११ कौसीय " कोशफल ३ ३१० • कौस्तुभ " १३७ कोशला ४ ४१ ककच - ३ ५८२ कोशातकी " २५१ क्रकचच्छंद ४ कोशिका " ऋकर २१६ कोशी १९०. ४०४ कोष्ण क्रकुच्छन्द १५० कौशेयक क्रतु ४८४ १८८ कौटतक्ष , १९८ क्रतुभुज कौटल्य . " क्रन्दन कौटिक ." क्रन्दित कौणप २ २ २८० कौतुक . ३ ५०३ कौतूहल " २८० कोद्रवीण ४ ३९ कौन्तिक ३ २२० १३१ | कौपीन " . ४३० क्रमेलक " ३१९ २०८ | कौमुदी २ कयविक्रयिक ३ ५३१ ७९ कौमुदीपति " क्रयिक ५३२ ४३९ कौमोदकी " ऋयिन ११३ कौलटिनेय ३ २१३ क्रय्य २३ कौलटेय " ." क्रव्य २८६ ४०४ | कौलटेर " २१२ क्रव्याद् १९१ कोलीन २ १८४ क्राथ ३६ कौलेयक ३ १६६ क्रान्ति ६१४७ ३४५/कायक ३ ५३२ (४००) ४१६ : Mr. rur: ५३९ : ५४३ कोटिपात्र कोटिवर्ष कोटिश कोटीर कोह १३९ Arm.0. क्रमुक कोठ MWWc00:00 कोण कोदण्ड कोपं कोमल कोयष्टि कोरक कोरदषक कोल ४ . .. Mmw १०२ .:: २४३ Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रिया ] श. क्रिया का. श्लो. । श. ६ १३३ क्वणन क्रियावत् ३ १७ कथित १६२ काण क्रियाविशाल २ क्रियाह ४ ३०४ क्रियेन्द्रिय ६ २० क्रीडा ३ २१९ ४ ३९५ ९५ २१३ क्रुञ्च क्रुञ्च क्रुध क्रधा कर 99 क्रयद क्रोड 19 99 क्रोध क्रोधन क्रोधिन् क्रोश कोदु क्रौञ्च 19 99 कचारि लम किन्न क्लिष्ट क्लीब लेश क्लोमन् ४. २ कङ्गु कण 99 ६ ३ ६ ३ 99 २ ३ ४ २६६ ३५३ ४१९ क्रोडपाद क्रोडा ३ २६६ कोडीकृति ६ १४३ २ २१३ ३ ५६ ५५ ५१ ४ ३५६ ง ४७ ४ ९५ ३९५ १२३ २३३ १२८ १७९ 33 २२६ | क्षरिन् २३३ २६९ २४२ 12 93 95 २ 36 ६ ܐ ३ २ Nm 20 ३ ४ ६ 99 २६ अ० चि० ३८ ४० २२ ५३५ ५३२ ३५ मूलस्थशब्दसूची ३६ क्षण :: 99 99 क्षणटा तणन सपन नणिका जनना मनज नवन तत्त " 99 क्षत्रियं क्षत्रिया क्षत्रिय क्षन्तु क्षपा क्षम क्षमा क्षमितृ क्षमिन् क्षय 39 99 तव. 22 क्षवथु क्षाम का. ६ 99 "" 99 २ ५१ ६ १४४ १४५ २ ३ "" ४ ३ 49 "" 99 "" 44 99 99 99 99 २ ३ ४ ३ 99 २ ३ ४ ६. २ ३ 99 99 袋 99 ( ४०१ ) ३६ १२२ ३६ ५५ ३४ १२९ १७१ १२८ ३५० २८६ ५१८ ३८५ ४२४ ५६१ ४७१ ५२७ १८८ १८७ ५५ 99 १५५ ५५ २ ५४ 99 ७५. श. चार 39 तारक क्षारणा क्षारपत्र चारित चालित क्षिति क्षितिरुह क्षिप्त क्षिप्नु क्षिप्र " क्षिया तीजन क्षीण क्षीणाष्टकर्मन् तीब क्षीर 99 क्षुण्ण तुत् तुत क्षुद्र ताभिजनन = 93 का. ३ ४. १२७ ५७ १५९ ७१ ८२ १२७ चुद्रा १२८ खुद्वाराम ११३ द्रोपाय [ चुद्रोपाय श्लो. ४९२ १२८ १९१ तुद्रकम्बु तुद्रकीट 99 २ ४ ३ ६ ४ 99 तीरकण्ठ क्षीरज ३ तीरवारि ४ क्षीरशर ३ क्षीरोदतनया २ ३ ६ ३ 39 ६ 99 ३ ३ Wx ४ ३ " 99 99 99 ६ ४ 99 क्षुद्रघण्टिका ३ क्षुद्रनासिक 99 ४ 99 ३ १८६ २५२ १०० ७३ २ १८० ११८ १४ २८१ १०६ १५९ ४५ ११३ २४ १०० ६८ १३५ २ ७० १४१ ४९५ १४० ९ १२७ "" ८२ ३२ ६३ २७१ २६८ ३२९ ११५ २७९ १७९ ४०२ Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणिः [खुरणस श. तुध चुधित का. ६ ४ .cms तुब्ध ..m ४४८ खर्च . . तुमा चुरम तुरमर्दिन् क्षुरिन् " तुरी क्षुल्ल ६ तुल्लक ४ क्षेत्र ३ " " " ४ क्षेत्रज ३ क्षेत्रज्ञ६ क्षेत्रिन् ३ : PM: murn rm or m.0m क्षेपणी क्षेम क्षेमङ्कर क्षैरेयी १ ३ " श्लो. श. का. श्लोश. का. श्लो. ८ खग ४ ३८२ | खरकोण ४४०७ खरणस् ३ ३१५ खचित खरणस खजक खरांशु खजाका खरु ४४४ | खजित् ५८७ खञ्जक खान , . १२४ खरीट ३. १५८ ६२ खट ३ १२६ २७१ खटक १७७ खटिनी ४ १०३ ३ .. ११८ २२७ खटी " " खल . " .. ४४ ३१ खट्टन ३ ११८ " २१३ : खटवा , ३४७ २ खटवाङ्ग २ ११४ खलति ३. १७६ ५५४ । खटवाडभृत, ११३ खलधान ४ ३५ खड्ग ३ ४४६, खलपू ३ २७ ४ ३५३ खलिनी ६ ५७ ८६ खड्गपिधानक ३ ४४७ खलीन ४ ३१६ १५३ खगिन् १ ४७ खलुरिका ३ ४५२ ७० " ४ .३५३ खलेवाली " . ५५० २ खण्ड . ३ .६७ / खल्या ७० खल्ल ४ ३३३ खण्डपशु २ . ११२ खल्वाट खण्डिक ३ . २५३ १२८ , ४ २३७ खस्फटिक खण्डित ६ १२६ खातक खण्डिन खातिका १६१ खण्डीर खादन ३ ८७ खद्योत ___" २४८ खनक ४ १०२ खनि खापगा." " १४८ खनित्र ३ ५५६ खारी ३ ५५० ७७ खर ४ ३२२ खिल . १९ " ६ २१ खुङ्गाह ___ , , ३०४ , ३० ४४२) खरकुटी ४ ६६ । खुरणस् ,३ ११६ (४०२) क्षोणी क्षोद सौम com mmmco खस . १३४ दगुत दमा वेड क्ष्वेडा , २६१ जना , ३६६ खानि m r0r.rur m ४ ख २ ६ खग ९ , " २२ | खुर . ३ " Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ R खुरली ४४७ ur mr m. mor " rm wrr mr mr m: 20m १३०. २८१ ३५३ moc १३७ २८८ १०७ m खुरणस] मूलस्थशब्दसूची [गध का.. श्लो. श. का. श्लो. श. का. खुरणस ३ ११६ गण ११६ गण २ ११५ गन्धर्व ४५२ " ६ ४७ " खचर १२२ गणक ३८ गणग्राम ६ ४ २९९ गणरात्र ___५७ गन्धवह ". १७२ ३ ४४७ गगि १ __७८ गन्धसार ३ ३०५ खेद २ २१३ गणिका ३ १९६ गन्धाम्बुवर्ष १ ६३ खेय __. १६१ गणिपिटक २ १५९ गन्धाश्मन् ४ १२३ खेलनी | गणेय ५३६ गन्धिक " " खेला २२०. गणेश १२१ गन्धोत्तमा ३ खोङ्गाह ४ ३०३ गण्ड गन्धोली ४ खोड ३ ११९ " २४६ गभस्ति २ खोर " गण्डक ख्यात ६ गण्डमाल १२९ १३७ ३ १३१ गभीर गण्डशेल ४ गमन ४५३ गण्डूपद , २६९ गम्भीर गगन गण्डूपदभव गम्भीरवेदिन, गगन ध्वज " गण्डूपदी , गया गगनाध्वग" गण्डूष ३ गर ३८० गण्डोल. गरभ २०४ गङ्गाभृत् गण्य गरल २६१ गङ्गासुत गताक्ष ४३ गच्छ गति १४४ गरुडाग्रज " गद ३८४ गदाग्रज १३० गरुत्मत् १४५ गजता ६ गदाभृत् गर्गरी गजप्रिया ४ गन्त्री गर्ज २८४ गजाजीव ४१ गजासुहृद् २ गन्धक ४ १२३ गर्जि ४२ गजास्य गन्धकलिका ३ ५११ गर्जित् गजाह्वय गन्धज्ञा " गा ६७, गन्धधूली , गन्धपिशा गर्तिका गडक चिका गर्दभ गड १३० गन्धमातृ गर्दभाह्वय " गडुल " ११७ | गन्धमूषी " ३६७ गर्दभी गडोल " ८९ गन्धरस ४ १२९ | गर्ध (४०३) :३५ .. गरुड : ०० १२७ गरुत् CMCw... .wr mr.m rom १३३ : : C " : C १५ Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गर्धन ] श. गर्धन गर्भ 39 "" गर्भक २ "9 ३ गर्व गर्हणा गर्भपाकिन् ४ गर्भवती ३ गर्भागार ४ गलाङ्कुर गलि गलित ५८ ३१५ | गाङ्गेय २३४ २०२ ६१ गर्भाशय ३ २०४ गर्भिणी ४ ३३२ २ २३० गल्ल १८५ ६ ७८ गल ३ २५२ गलकम्बल ४ ३३० १३१ २४९ गलगण्ड ३ गलशुंडिका गलन्ती ४ गलस्तनी वर्क का. 20 2 गवेधुका गवेषित गव्य गव्या 99 गव्यूत 93 गव्यूति 99 "" गवय गवल गवाक्ष गवीश्वर ३ वे "" ३ ४ ६ ३ 99 31 99 ८७ गान ३४१ | गान्धर्व १३१ "" ३२९ | गान्धार १२६ | गान्धारी २४६ ," ५७० गारुड ४ ३५२ गारुत्मत् ३४९ | गार्धपक्ष ७८ गार्भिण 99 ६ • ४ 20 श्लो. | श. ९३ | गहन २०४ 32 २६८ गह्वर 99 अभिधानचिन्तामणि: " ५५२ = ཨོྃཡྻུཾ,་ཀྰ་ཟླཝ ४ २४५ गालव गालि "" गाढ गाणिक्य गाण्डिव गाण्डीव 99 गाधिपुर गाधेय १२७ गिर ३३९ गिरि ४४० 35 ५५२ ६ ५७ गिरिका गात्र 99 मात्र संकोचिन" 99 गिरिकर्णी का. ४ ६ ४ ६ ४ ६ गात्रसंप्लव " गात्रानुलेपनी ३ .8 ३ ५५१ गिरिगुड ५५२ 19 93 ३ 99 19 ४ २ 99 29 ६ १ २ ४ 39 ६ ३ 99 २ "" 99 ४ ," 99 ३ ४ गिरिज गिरिजामल ( ४०४ ) 39 श्लो. श. १७६ का. गिरिमल्लिका ४ गिरियक ३ १०८ ९९ गिरिश २ गिरिसार ३८ ४ गिरीश १०९ २ गीति ८३ १४१ 6 ५६ ३७४ 99 गोः पतीष्टिकृत् ३ गीत : २ गीति गीर्वाण २२७ | गुग्गुल २९४ | गुच्छ ३६८ "" ४०६ ३०३ ४० 99 गुञ्छ गुञ्जा ५१४ १९४ गुड ९७ १९४ " 99 " ३७ गुडपुप्प ४६ | गुडफल १५४, गुडाकेश ११० गुडूची १३० गुडेरक ४४२ गुण ५१ ४९० २२५ १८६ 99 - 99 " 99 99 ३५३ गुण्ड १२८ गुण्डिव ११७ | गुरसक ४ ३ ४ 99 99. ३ ४ ३ 99 99 ३ ३५२ ४ २०७ 99 २०८ ३ ३७३ ४ २२३ ८९ ३८६ ३९९ ४४० "" 99 99 99 ६ १५५ 99 गुणग्राम ३५२ | गुणलयनिका ३ ९३ |गुणवृत्त २२१ | गुणित ३६७ गुणोत्कर्ष [ गुस्सक लो. २०३ ३५३ ११० १०४ ११० ३३ ४८२ १९४ 97 " ३ • २०८ . ३२४ १९२ २४८ १९२ ५४७ २२१ ६६ ८९ ५९२ ७७ ५० ३४६ ५४१ ६ ११९ """ ११ 99 ११९ .४ ३५७ 99 १९२ Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [गोपति मूलस्थशब्दसूची श्लो. | श. का. श्लो.. का. श्लो. श. गुद ३ गुदग्रह ' " गुदाकुर गुन्दल गुन्द्र २७६ गूथ १३३ गून ३२३ ३३१ गूवाक | गृञ्जन गृध्र गृध्नु गोकर्ण गुन्द्रा २५९ ३५९ ४०२ ३३९ गुन्द्राल गृष्टि गोकिराटिका, गोक्षुर २२२ ३ ३३९ गुप्ति गुम्फ गुरु गोग्रन्थि " गोचर गोणी गोतम गोत्तमान्वय गोत्र , ३९८ ३९७ ३५१ ३४५ ४७२ १०९ ४७२ १७८ २० ३४३ ३१ १७४ و سي १६७ » : ४७२ / गोत्रा م गुरुकम गुरुदवत गुरुपत्र गुरुहन् गुर्विणी " गुर्वी . " गुल " गुलुञ्छ . ४ गुल्फ . ३ गुल्म ... " गृहगोधिका " गृहगोलिका , गृहपति . ३ गृहबलिभुज् ४ ६६ । गृहमणि ३ गृहमृग' ४ गृहमेधिन् ३ ५०८ गृहयालु , ५२२ गृहस्थ , २०२ गृहाराम ४ गृहावग्रहणी " २७५ गृहिणी ३ १९२ गृहिन् - " .२७९ गृहीतदिश २६९ गृहोलिका गृह्य १८६ गृह्यक . १८४ गेन्दुक २४ गेय १२३ س २०३ ७५ गोद २८९ गोदन्त १२५ ه गोदारण س . : ५५६ . ه ३६४ ४१२ ४०९ م गोदावरी गोदुह् गोधन गोधा १५० ५५३ ३३९ ه س ४४० ४ गुल्मिनी ." गुल्य ६ गुह . २ गुहा ३६३ ه س . ९९ गेह गेहभू ه ३ गेहेनदिन् गेहेशूर गोधि गोधूम १४१ गोनर्दीय गोनस १०२ गोनास ११० गोप ११० १२८ २३७ २४० ५१५ ३७२ " ३९० " ه २ १०८ गरिक " ३ सत , गुह्यक. गूढ गूढपथ गूढपाद् गूढपुरुष औरेय " " و ५५३ ४ ३ ३७० ३९७ गोपति २ ه ३२५ (४०५) Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गोपरस] अभिधानचिन्तामणिः . . [घन श्लो. श. का. १२९ गोसदृक्ष ४ ७५ गोस्तन ३ १३३ गोस्तनी ४ गोस्थान " गोहिर ३ गौतम श्लो. श. ३५२ ग्रामीण ३२५ ग्रामेयक २२१ ग्राम्य श. का. गोपरस ४ गोपानसी , गोपायित ६ गोपाल ३ गोपालिका ४ गोपुच्छ ३ नोपुर ४ का. . श्लो. ३ १६५ " . " २ १८० ५५३ २०१ २८० ग्राम्यधर्म २८८ ग्रावन् ४ ९३ . : ५१४ १०२ गोपेन्द्र ८९ ه गोप्य ५१७ س गौधार ५. गौधेय " " ३६३ " गोमत् ४ ६ . १५९ : : १५ ५४६ ه गौधेनुक م ३३ ६ : : २७ गोमती गोमय गोमयोत्था , गोमायु , गोमिन् ३ गोमुख ग्रास ग्राह , ग्राहक ग्रीवा ग्रीष्म २ - १ ३ ३२१ " (कल्पा- ... तीत) . .. ग्लह ग्लान , १२३ प्रैवेयक : م ४२६४ २ - ه ११७ २१ س १५४ - و سم गोमेध गोयुग गोरस AM M०८ : نه ه m न س ग्रन्थन ग्रन्थि ग्रन्थिक ३ २. १२३ १९ : : गोराटी 0 ه س ४०२ m गोरुत प्रस्त له م ४८ गोलक : ه : गोला | ग्रह १२६ : : س ३५८ गोलाङ्गल " गोवर्धनधर २ गोविन्द २ १५९ : م س ه १७० २ ५१ घटिका घटीयन्त्र घटोद्भव ه ३६ م १५३ م गोविश ४ गोवृष .. गोशाला गोशीर्ष गोष्ठ ४ गोष्ठश्व ३ गोष्ठी , गोसंख्य " mmm mm.. १३२ १२९ ग्रहक ५५३ ग्रहण ग्रहणीरुज ३२ ग्रहपति ग्रहपुष , ३०६ ग्रहीत ३ ग्राम १४१ ग्रामणी १४५ ग्रामतक्ष ३ ५५३ ग्रामता ६ (४०६) १०९ घण्टापथ घण्टाशब्द ,. घण्टिका २ ". " , , - ७८ ५८२ ५८ २०० २०६ Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श. का. mamm orm : ३९५ m १५५ : २८४ चक्रिन् . :: wwwscam: 0 २९८ घनगोलक घनधातु घनरस घनवात घनवाहन घनसार घनाघन धनात्यय घनाश्रय घनोदधि घनोपल घर्घर ३०७ : मूलस्थशब्दसूची [चतुःशाला श्लो. | श. का. श्लो. । श. का. श्लो. २२८ | घृणा ३ ३३ । चक्रवाक ४ ३९६ ४४९ घृणि चक्रवाल घृत ४७ घृतपूर | चक्राङ्ग घृतलेखनी चक्रावर्त घृतवर ३७० घृतेली ४ २७३ चक्रीवत् " ३२२ | घृष्टि , ३५४ चक्रेश्वरी घोटक , घोणस ! चक्षण ५७१ घोणा . ३ २४४ | घोणिन् .. ४ ३५४ चक्षुल्य | घोर वक्षुष्या १२८ | घोरवासिन् ४ . ३५६ चञ्चरीक " २७८ | घोल - ३ ७२ चञ्चल ४ ६८ चञ्चला ४ ११५ चञ्च ३८३ चञ्चुसूचिक " ४०७ गोषणा २ १८३ चञ्चू घोषवती - २०१ चटक ३९७ घ्राण . ३ २४४ चटका घ्राणतर्पण ६ २६ चटकाशिरस ३ चक्षुस् २३९ ११२ ५ :: r : ३८३ घस्मर घस्त्र घाटा घाण्टिक घात घातुक , घार ... " घातिक . , घास ४ घुट ... ३ ३ धुटिक .." घुण . ४ चटु m ५०१ ." ३ चकित चकोर m ४०५ ४१० चटुल चणक चणकात्मज चण्ड २३७ ५१७ चक . २७९ १०० : ४१२ ४५७ : ४२६९ mrm worrm घुण्टक २३२ wr ४७ घुसूण धूक १८० धूकारि १०८ चण्डता चण्डा चण्डातक चण्डाल १३३ ३७१ चण्डिल २२४ ३५५ चतुःशाला ४ ३०८ चक्रजीवक ३ ३९० चक्रनामन् ४ ३८८ चक्रबान्धव २ चक्रभृत् २ चक्रमण्डलिन् ४ १०६ चक्रमर्दक , २१७ चक्रवर्तिन् ३ (४०७) ३३८ ५६१ ५९७ ५८६ घूर्णन घूर्णि चण्डी धूर्णित घृणा : ५८ Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुःसम] श. चतुःसम चतुर का. ३ , अभिधानचिन्तामणिः . [चान्द्र श्लो. | श. का. श्लो. श. का. . श्लो. ३०३ | चन्द्रगोलिका २ २० चर्चा चन्द्रोदय ३ चद्रोपल ४ चर्चिका २० चपल चर्चिक्य ३ ३०० चर्भटी चर्मकृत् ३ . ५७८ चपला चर्मचटका ४ ३०२ चपेट चर्मदण्ड " .. ३१८ चर्मन् ३ २९४ mom r in w nm 0 m mt: चमर चतुरङ्गाबलाध्यक्ष चतुर्गति ४ चतुर्दन्त २ चतुर्दशी , चतुर्भद्र ६ चतुर्भुज २ चतुर्मुख " चतुर्मुखाङ्गता चतुर्वर्ग ६ चतुर्हायणी ४ चतुष्क " चतुष्पथ " चतुस्त्रिंशजातकज्ञ चत्वर Om :: चमू चर्या : चवण चर्षणी ४८ ८० .umr ३९७ • ९० ७० चन्दन ३०५ चन्द्र ३० चमसी चर्मप्रभेदिका ३ ५७९ ___४१० चर्मप्रसेविका " . ५१२ ४१२ चर्ममुण्डा २ १२० १८ चमूर ४ ३६० ३३८ चम्पक ३ , ८८ चम्पा " ४२ चम्पाधिप ३ चम्पोपलक्षित चय " चलचन्चु , ६ ४७ चलन चर चलनक ३३८ चलनी चरण ३ २८० चला १७० __". ५०७ चलाचल चरणायुध ४ ३९० चलित ३०७ चरम ६ ९५ २६२ ११० चरमतीर्थकृत् १ ३० चषक ३८६ चरमाद्रि ४ ९३. ९० चराचर ६ ९० चषाल १३३ चरि चाक्रिक चरित १५१ १५१ चरित्र . .. चाटकर ४ ३९८ १३३ चरिष्णु चाटु १७८ १८ १८ चरी ३ १७५ चाणूर " १३३ ६१ चाण्डालिका २ २०४ ४४६ चातक ४ ३९५ २१ चर्चरी २ १८७ | चातुर्वर्ण्य ३ ४७१ २० चर्चस ... १०७ | चान्द्र ४ १३३ (४०८) : चलु : : ४५८ २७ : चन्द्रक चन्द्रका चन्द्रकान्त " चन्द्रप्रभ १ चन्द्रभागा .४ चन्द्रमणि ॥ चन्द्रमस २ चन्द्रशाला ४ चन्द्रहास ३ चन्द्रातप २ चन्द्रिका २ w:00:0cm Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ م m :: ३९८ ه ८१ १५९ ४७० चुण्ढी चुन्दी चान्द्रमस] मूलस्थशब्दसूची [चैत्रिक श. का. श्लो. श. का. श्लो. श. का. श्लो. चान्द्रमस २ २३ चित्रकृत् ३ ५८५ चीर ३ ३३० चाप .३ ४३९ चित्रकृत्त्व १ ७० चीरिल्लि ४ ४१४ चापल २२९, चित्रगुप्त १ ५५ चीरी ४ २८१ चामर ३८१ चीरुका चामीकर ४. ११० चित्रपुल ३ चोवर चामुण्डा १२० चित्रभानु २ २ १० चुक्र चार चित्रल ६ चित्रवल्लिक ४ ४११ चारण चुरी १५९ चित्रशाला , चारपथ चुलुक २६२ चित्रशिखंडिजर चारभट २९ १२५ चारित्र ५०७ चित्रशिखंडिन्। चुल्ली ८४ चारु ८० चिना , चूचुक २६७ चार्वाक . ३ ५२७ चिप ३ २३५ चालनी चिन्ता २ २३४ चूडामणि " ३१४ चाष " ३९५ चिपिट ३ ६५ १९९ चिकित्सक | चिबुक " २४६ चूतक " १५९ चिकित्सा " १३७ | चिंरक्रिय " १७ चूर्ण ३ ३०१ चिकिल ४ १५६ | चिरजीविन् ४ - ३८८ चिकुर ३ १४० चिरन्तन ६ ८४ चूर्णकुन्तल ३ २३३ चिरम् . ," १६८ चूलिका १६० चिक्कण " . ७७ चिरमेहिन् ४ ३२२ ४ २९१ चिक्कस .." . ६६ | चिररात्राय ६ चेट २४ चित् .. २ २२३ | चिरस्य चेटी चिता. . ३ . ३९ | चिरात् " चेत् चिति " " चिराय " चित्त ..६ . ५ चिरिन्टि ३ १७६ चेतना चित्त प्रसन्नता२ २२९ चिरिल्लि . ४ ४१४ चेतस वित्तविप्लव , २३४ चिरेण ६ १६९ चेदि चित्तोन्नति , २३१ चिभिटी २५५ चेदिनगरी चित्या चिलिचिम. " ४१२ चेल चित्र २१७ चिल्ल. ३ occm www com mmmmmm चूडा ८४ चूत mmm . १९८ चेतन ur mr mur WC: ne or ३६० चैत्र चित्रक चित्रकाय ४ " चिह्न २ चीन ४ ३५१ चीनक " . चीनपिष्ट " (४०९) ३६० २४४ चैत्ररथ १२७ | चैत्रिक . . Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैध] अभिधानचिन्तामणिः . श्लो. श. - का. जगर [जनयित का.. श्लो. ३. ४३० ". ५६८ ३ ८७ ". २७२ om चोच चोटी ___३३९ छाग चोद्य ०० जगल जग्धि जघन जघनेफला जघन्य जघन्यज २१८ ३ ::::N :: - चोर चोल चौरिका चौर्य चौलुक्य च्युत च्युति ". जङ्गम ३ २८६ " " ६ ३ १२६ २७३ छागण छागरथ छागिका छात छादनी छान्दस छाया छायकर छायाभृत् छायासुत, " छित . ६ छिद्र ५ छिद्रित २७६ च्युतेषु :: ४३७ जङ्का ३. २७८ क... १५८ जङ्घात्राण ४३२. जङ्गाल " १५८ ४८० १८६ जटाजूट ११४ जटी ४. १९७ c WC::::00 जटा ३४१ छग छगण a w moi w sw : 30 m m:0m.ur छगल छिन्न जठर छुछुन्दरी : छत्रत्रय छत्रधार ४२ छुरी छेक . , . ८ ३८ जहुल ". : जतु छदन छेदित १२६ जतुक 998 जतुका ७६ २५२ जक्षण छदिस् छद्मन् छन्द छन्दस जन १६५ ::: WC ४५.mmmmcc0. २२० ५९७ जगत् १६३ १६४ जगती ४०५ जगकर्तृ २ जगञ्चतुस् " जगत्प्रभु जगत्प्राण ४ | जगत्साक्षिन् २ ४६८, जगन्नाथ " (४१०) mrror: १०९ जनक जनगम जनता जनन ." जननी ३ जनपद ४ जनप्रवाद २ १२ जनमनोहारिन्६ १३२ जनयितृ ३ Comm छर्दि छर्दिस् २२१ १३. १८४ २६ २२० छल Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जनयित्री] . श. का. जनयित्री ३ जनश्रुति • २ जनार्दन " जनाश्रय ४ जनि [जातु श्लो. ४१५ ४१३ ३४३ २७० १६२ २७० १५४ २६९ २७० जनी : द जनुस जन्तु जन्तुफल जन्मन् जन्य : १५९ :: Commum Cmmmc: १०२ : १५८ ३०० जन्यु जप . ३४४ ३०० १५८ १८३ १०७ १४६ मूलस्थशब्दसूची श्लो. | श. . का. श्लो. | श. का. २२२ जरत् ६ ८५/ जलसूकर ४ १७३ जरन्त ३४८ | जलाणुक - १२८ जरद्वव ३२४ / जलार्दा ३ ६९ जरा ३ जलालोका ४ जराभीरु १४१/ जलाशय जरायु २०४ जलूका जरायुज ४२२ जलोच्यास " जग्नि जलौकस " जर्तिल २४५ जलौका जल १३५ जल्पाक २२४ जव जलकान्तार २ जवन ४६० जलकुक्कुभ ४ ४०४ जलज. ... २२८ जवनी जलजन्मन् " " जवाधिक जलद २ ७८ जविन् ३ जलधर जलाधार जागर जलधि " १४० जागरण २१५ जलधिगा " . १४६ जागरा जलनिधि , १४० | जागरिन् जलनीलिका " २३३ जागरूक जलपति २ १०२ जागर्या " २४७ जलमार्जार ४ ४१६ जागुड जलमुच २ ७८ जागृवि ४ जलरङ्क जाङ्गुलिक ३ जलरञ्ज जाहिक जलराशि जाड्य जलरुह जलरुह जात जलवायस जातरूप जलवालक जातवेदस् " जलवालिका " जातपत्या ३ जलवाह २ ७८ जाति ४ ११९ जलव्याल जलशय जातिकोश ३ | जलशूक ४ २३३ : जातिफल " ३ | जलसर्पिणी " २७० जातु , ६ (४११) : जपा जम्पती जम्बाल जम्वालिनी " जम्बीर " जम्बुक " जम्बूस्वामिन् १ जम्भ .२ " ...३ " : : ३३ : : ३०९ जय.. " : : १३८ १५८ २१९ २२६ ४८ जयदत्त . २ जयन्त " जयन्ती , जयवाहिनी ॥ जया १६५ २०३ १ ४ २७१ २१३ १५१ ३०७ जय्य जरठ ૪૫૭ १२८ mum जरत् Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जातोच] श. जातोक्ष जात्य का. ४ ३ mum: ४७५ ५५४ ४५७ जानकी जानु जापक जामदग्न्य जामातृ जामि जामेय जाम्बूनद ४ जाया ३ जायाजीव २ जायापती :... .४ २५१ mr.m:: जायु अभिधानचिन्तामणिः . [ज्ञातधर्मकथा श्लो. श. का. श्लो. श. का. श्लो. ३२४ । जितनेमि ३ ४८० जीवन ४ । १३५ १६७ जितशत्रु १ ३६ जीवनक ३ . ५९ | जितारि , , जीवनी ४ २५१ ३६७ | जिताहव ३ ४७० जीवनीय , . १३५ २७८ जितेन्द्रिय " जीवनीया , २५१ | जित्या जीवनौषध ६ ३ | जित्वर जीवन्ती ४ २५१ १८२ | जिन जीववृत्ति -३.. ५५२ २१७ जीवसू , १९४ २०७ १४६ जीवा , ४४० १११ जिनेश्वर १७७ | जीवातु ६. ३ २४२ जिष्णु २ जीवान्तक .३ - ५९४ जीविका , ५२९ . ३ . ३७३ जीवित " ४५७ जीवितकाल ,, . ५ जिहानंक २ ७५ जुगुप्सन २ १८५ ६ ९३. जुगुप्सा १ ७२ जिह्मग . ४ ३७० " .२ २१७ जिह्वा ३ २४९ जुहू ३ ४९२ २७६ जिह्वास्वाद " . ८८ जूर्णाह्वय ४ २४४ ३४३ जीन . " . ४ जम्भण जीमूत जम्मा जीमूतवाहिन् ४ जेतृ जीरक ४५७ १८० जेवातृक जवातक २ १९ " ३ १४३ ३०४ जोन्नाला २४४ जीव जोषम् १६४ ज्ञ२ ३१ जार जाल जिह्म जालक जालकारक " जालकिनी , जालन्धर जालप्राया जालिक ::::m. १४२ ४५७ ८८ ८६ जेमन जेय जीर्ण जालिका जालिनी mmm. ४ ६५ जीर्णवस्त्र m: wwwr ३४२ जोङ्गक १७ जीणि " 6 १४७ , जाल्म जावाल जाहक . जाह्नवी जिघत्सा जिघत्स जिघांसु ३ जित , जितकाशिन् , ज्ञप्ति mr m.. जीवंजीव जीवत्तोका ३९३ जीवत्पति , ४६९ जीवथ ४ ४७० | जीवन ३ (४१२) ४०६ ર १९४ ज्ञात ६ , ज्ञातनन्दन १ ४१९ ज्ञाति ३ ५२९ ज्ञातधर्मकथा २ રરર १३२ ३० २२५ १५७ Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ m oc २०६ २२५ x ८७ r morm umr m २५० ज्येष्ठश्वश्रू १४६ १७८ १७३ डिङ्गर २७९ ३ ३२ ४४४ २०६ ज्ञान] मूलस्थशब्दसूची श. का. श्लो. श. का. श्लो. | श. का. ज्ञान तत्काल २ ज्ञानप्रवाद १६१ तत्कालधी ज्या तत्त्व टङ्कण तत्वज्ञान " ज्यानि टिभि तत्वनिष्ठता ज्यायस् टीका तत्पर ज्येष्ठ तत्रभवत् २१५ तति डमर २१८ तथागत डयन ज्येष्ठा २ तथ्य " ३ . २५७ तद् डाहल ज्येष्टाश्रमिन् , ४७२ तदात्व ज्योतिरिङ्गण ४ तद्गत डिण्डीर ज्योतिस २ तद्धन | डिम. " " २१ तद्दल डिम्ब . ३ " " १६४ तनय ज्योतिष्क .. ज्योत्स्ना , ढका ज्योत्स्ताप्रिय ४ ४०५ ज्योतिषिक ३ १४६ तनुत्र ज्योत्स्नी २ ५७ ७३ तनुवात ज्वर ३ तक्रसार ७२ तनू ३ ज्वलन ४ तक्षक ३७५, तनूकृत ज्वाला.. " तक्षणी ५८२ तनूनपात् ४ ज्वालाजिओँ ." तक्षन् तट ४ १४४ तटिनी १४६ तन्तु झञ्झा . . ४ . १७३ तडाग १६० झटिति . ६ ६६ १७० तन्तुण झम्पा , १०६ तडित्कुमार २ तन्तुनाग झर ४ तडित्वत् तन्तुभ तन्तुल १७७ तण्डुलीय तन्तुशाला , तण्डुलेर , तन्तुसन्तत ६ झाबुक " २०५ तत २ तन्त्र झिलिका " झिल्लीका " " | ततस , १७३ , (४१३) २२७ ५८१ तनूरुह १६३ २९४ ३८३ ५७७ ४१७ . तडित् झष. तण्डु २४६ २३१ ४०९ १३६ २ ३७९ ३८० Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तन्त्र] अभिधानचिन्तामणिः का. ३ श्लो. श. ४१० तम्बा का. ४ श. तन्त्र तन्त्रक तन्त्रवाय [ताम्राक्ष का. श्लो. ४ ३१७ ३ २८२ ३३५ श्लो. श. ३३२ | तलसारक तलहृदय तलिका तलिन तरतु و ११३ شر م तन्त्रिका तन्त्री तन्द्रा २७६ १५७ ५९२ રર૭ तरङ्ग तरङ्गिणी तरणि तरणी तरण्ड तरपण्य तरल ३ : وه د س سه : پس له ३४६ = तलिम तलुनी तल्प तल्लज तविष ४७५ तविषी . ९० तप तपाक्लेशसह ३ तपन तपनात्मजा ४ तपनी तपनीय तपस -१५० तरललोचना ३ तरला तरलित तरवारि .६ २ , .६ .३ २ .३ १२२ ४५ १४० ३२०. २. FEEL FEE FEEEEEE : FEEEEEEEEEEEEEEEEEE तष्ट तस्कर ता. ताडङ्क ताडपत्र ताण्डव तात ताततुल्य तान्त्रिक तापन तापस | तापसद्रुम तापिन्छ १९४ २२० तपस्तक्ष तपस्य तपस्या तपात्यय , १५२ तरुण १४७ ९ तप्त तरुणी तर्क तर्कविद्या त' ४७३ २०९ तमःप्रभा : तमङ्गक तमर तमस् : १५० तकुक तर्जनी तर्जिक तापी ताप्य तामरस : ना ४८५ ३८२ : ४ w तमस्विनी तमा तमाल तमालपत्र तमालिनी तमिस्र तमिस्रा तमी तमोध्न तम्पा तामलिप्त तामलिप्ती , ताम्बूलकरङ्क ३ ताम्बूलवल्ली ४ ताम्बूली ४८९ ताम्र ५७१ ताम्रचूड २६० ताम्रवृन्ता ., २८२ ताम्रकुट्टक ३ ४४० ताम्रसार , २०२ ताम्रात ४ १०५ २ २ ५९ ५७ तल २४१ " : ५७४ ३०६ ३८७ 00 ४ (४१४) Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ताकि ] श. तायिक तार "2 " तारक 39 तारका तारकारि तारा तारारि तारुभ्य तार्किक तार्य ताल 29 "" " का. ४ • "" ६ "" २ ४ "" - तार्क्ष्यध्वज २ तार्यशैल २ 23 "" ४ ३ 99 २ ३ "" ४ 99 तालकं तालकाभ ताललक्ष्मन् • २ तालवृन्त ३ तालिका ताली "" 2 "" ६ 39 ४ ३ तालु तालुजिह्व ४ 59 २ n तितिक्षा ३ तितिक्षु "" श्लो. श. २४ तित्तिभ १०९ | तित्तिरि ३८ | तिथि ४५ तिथिप्रणी ६ तिनिश ३६३ | तिन्तिडी गिल ३ | तिमित ५२७ । तिमिर t मूलस्थशब्दसूची "" २१ तिन्तिडीक ३ १२३ | तिमि २१ तिमिङ्गिल १२४ तालुर ताविष ताविषी तिक्त ६ २५ तिक्तपत्र ४ तिग्म ६ तितउ ४ 99 २६० तिर्यञ्च् १.२५ २०२ 39 ७१ तिलक ३१ १४ ६ तिरस् २९८ तिरस्करिणी ३ १२८ |तिरस्क्रिया "" ११९ तिरोधानं ६ २०६ |तिरोहित ३ २५९ ६ "" • १३८ ३५१ २६० .७२ २४९ तिलपिञ्ज ४१५ तिलपेज १४२ तिलिस ९० "" "" "" 99 १ | तिल्य तिल्व तिप्य २५६ तीक्ष्ण २१ ८४ ५५ का. श्लो. श. ४ २७५ तीर "" २ २ ४ 36 ४ 20 99 39 ६ २ ३ ४ ma ६ 39 2 20 m तिलकालक ३ तिलपर्णिका 22 ४ 2 30 ४ 66 99 " "" २ ४ 99 ६ तीक्ष्णगन्धक ४ तीणशूक 29 ( ४१५ ) ४०७ तीरी ६१ तीर्थ १८ तीर्थकर २०८ तीर्थङ्कर २०९ | तीर्थवाक् ८१ तीव्र ४१० ४१३ तुक् १२८ |तुकाक्षीरी ५९ तुङ्ग १७० तुच्छ ३४५ २८२ ३०६ २४६ . तुन्दि तुन्दिक तुन्दिन् तुन्दिल तुन्नवाय 39 तुमुल ३७२ "" ३३ | तुम्बी २२५ | तुम्बुरु [ तुराषाहू श्लो.. १४४ ४४४ १५३ २४ का. ४ "" "" तीव्र वेदना ५ ३ ४ २५ तुरंग १०४ | तुरगिन् २६१ तुरङ्ग ३ ४ १ وز ३ ६ ,, ;" १०५ ३ तुण्ड ११४ तुण्डिकेरिका ४ ४६९ तुण्डिभ ३ ११३ तुण्डिल १०८ तुत्थ २८२ | तुत्थाअन १५१ तुन्द २६९ तुन्दकूपिका २८२ तुन्दपरिमृज ३१७ ९ ६ ," 2 00 ४ " ३ "" "" "" "" ,, "" 39 959 ४ १ ४ ३ ४ २१ तुरङ्गम २०० तुरङ्गवदन २ २३६ राषाह 20 " 2 "" "" २३१ २१ १४१ १ २०७ २२० ૬૪ ६२ ८२ २३६ २५१ १२२ " ११८ "" २६८ २७० ४८ २६८ ११४ 539 "" ५७४ ४६३ ४० २२१ ४२ २९८ ४२५ २९८ 29 १०८ ८६ Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तुरुष्क] श. तुरुष्क , तुला का. ३ ४ २ . ur १ २५५ m १६३ १२ ३ तुलाकोटि तुलास्फोटनकार्मुक तुल्य तुवर तुवरक अभिधानचिन्तामणिः [ त्रिमुकुट श्लो. श. का. श्लो. श. का. श्लो. तृतीयाकृत ४ ३४ त्याग तृतीयाप्रकृति ३ २२६ त्रपा त्रपु १०८ पुसी ५८ त्रयी २ १६३ त्रयीतनु त्रयीमुख ३ ४७५ तृषित स . ..६ ९० तृष्णज सयोनि' ४ ४२३ त्रसर | त्राण ६ २४१ १५९ तृष्णाक्षय २१८ त्रात १३३ २५८ प्रास २३५ १५ त्रांसदायिन् ३ १२० त्रिक m तुवरी १२२ तृष्णा : २४८ १६७ तेजन तुषानल तुषार : तजस तेजित तुषोदक तेमन तुहिन १३ ४४५ , . ५७२ तूण a w *************************************** : तूणिन् तूणीर त्रिककुद् , | त्रिकटु ३ | त्रिकण्टक ४ त्रिकाय २ त्रिकालविद् १ ९६ ८६ २२२ १४८ २४ ४४५ : तैजसावर्तनी तैत्तिर ६ तैल ३ तैलपर्णिक , तैलपायिका ४ तैलाटी तैलिन् तैलिशाला तैलीन -) २० १० ४०३ पूर्ण २३ त्रिकूट ४ ९६ त २० : तूर्णि तूर्य तूलक तूलिका त्रिगत २०५ श्रेष ५८४ ५८५ १० : तोक २०६ तूष्णींशील तूष्णीक तूष्णीकाम् त्रिगुणाकृत त्रिदश त्रिदशदीर्घिका त्रिदिव त्रिदृश २ त्रिपत्रक तोक्म गोत्र mmmmmmm.. : २३६ ५५७ २९६ ११० तूष्णीम् २०२ ५२ त्रिपथ तृण तोमर १५१ १४७ २६१ तोदन २५५ तोय तोरण २०२ तौर्यत्रिक २ सौलिकिक ३ | स्यक २९६ ४१ २१ तृणध्वज तृणराज तृणाटवी तृणौकस त्रिपथगा त्रिपदी त्रिपुरी १९३ | त्रिपृष्ठ ५८५ त्रिफला त्रिमुकुट ३ ४ ४ : Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त्रिमुख ] ET. त्रिमुख त्रियामा त्रियूह त्रिरेख "" त्रिवर्ग ६ ३ त्रिवलीक त्रिविक्रम २ त्रिविष्टप त्रिशङ्कुज त्रिशङ्कुयाजिन्,” त्रिशला त्रिशिरस् त्रिशीर्षक त्रिसन्ध्य त्रिसर त्रिसीत्य त्रिस्रोतस् त्रिहल्य त्रिहायणी त्रुटि त्रेता वोटि ध्यम्बका चूषण स्व " "" A स्वधिसार स्वरा स्वरि त्वरित का. श्री. श. १ ४३ त्वष्ट २ ५६ ४ ३०५ 19 स्वष्ट Ain 99 ३ 5 २ ३. २ ३ ४ "" 22 १४७ ३४ ३३८ "" ६ ६३ ३ ४९० ४ २२ ૐ .990 ८६ १०४ ३ १३१ २२० स्वक्पुष्प स्वीरिन् ४ त्वच .३ "" ३ o el on ev ६ ४ 33 200 39 ३ ६ 99 सूलस्थशब्दसूची ३६५ ५१४ ४१ - १०३ २५.१ ५४ ६२ ३४ P. २७१त्वाष्ट्री १८ त्विष् ! २७३ | विपि ६३० । त्सरु 9 99 धूत्कृत दंश "; "" दंशी दंद्रा थ देशभtor दंशित. दंष्ट्रिका दंष्ट्रिन् दक दक्ष h ?? दक्षजा 66 २१९ | दक्षिणाचल २ २३६ | दक्षिणायन दाप दक्षिण २८३ " २९४ दक्षिणत्व १८७ | दक्षिणस्थ २५० | दक्षिणा दक्षिणा 99 १५८ दक्षिणाशा पति का. २ १०६ १२२ | दक्षिणी "" ३ २ 22 : mm "" "3 दकलावणिक ३ ३ ६ ३ 99 ४ 99 ३ ४ ३ 99 ४ 99 99 २ 99 ३ 99 ६ រ ३ २ २ ३ २ ३ ( ४१७ ) श्लो. श. का. १० दक्षिणेर्मन् ४ ९६ | दक्षि ३ दग्ध ५८१ २६ | दग्धकाक १४ | दग्धका दध्न दण्ड 39 ४४६. १५७ २४८ ४३० 22 "" ४९० १०२ ६६. 66 95 २८१ ३४८ | दण्डभृत् ४३० दण्डाहत २८१ दण्डित २४७ | दण्डिन् दत दनुज दन्त दन्तक "" ६ ४ ३ 99 दण्डधर २ दण्डनायक ३ दण्डपारुष्य " दन्तभाग दन्तवस्त्र दन्तशठ दन्तावल "" ४२४ ८१ ९५ ७२ ११० दन्तिन् 99 99 "" "" 99 ३५४ 22 १३५ | दद्भुन ७४ ददुर ६ दधि १८ | दधिफल ११७ दधिवारि "" १८ दधिसार ३ ४० "" 39 29 (तीर्थकृत् ) १ ४ ६ ३ ४ "" "" ܀ ३ ४ "" "" ३ ६ ४ acu [ द ९८ दन्दशूक ४ ११० दन ६ श्लो. ३६१ ११० १२२ ३८९ ६० २६५ ४०० 39 ४१० ४४९ ५५१ ९८ ३८९ ४०३ ५८० ७२ ११० ३८५ ३६० ५१ ३२४ ४५ ७० २६७ ६४५ ७२ ઉપર २४८ ভ७ " दन्तुर ३ १२१ ३६९ ६२ १०० २९४ ૨૦૧ २४ २८३ Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दम ] श. दम दमुनस् दम्पती दम्भ दम्भचर्या दम्भोलि दभ्य दया दयाकूर्च दयालु दयिता ལཱ दरी दर्दुर दर्द्वरोगिन् दर्प दर्पक दर्पण दुर्भ दर्वि दव "9 दर्वीकर दर्श 39 दर्शन "" "" का. ३ दलस्नसा दलि ४ ३ "" 20 २ 20 mmmm ४ "" २ ५ ३ ३ ३३ २ १४८ ३ ३२ १७९ २१५ ७ "" ४ 2 m 99 2 २ 39 mr x ३ ४ "" ३ ४ "" २ ३ m ४०० १६३ १८३ ४२ ४३ ९४ ३२६ "" २९ २२ ९९ ४२० १२३ अभिधानचिन्तामणिः श. दलिक दलित दल्मि दव "" दविष्ट दवयस् दशकन्धर धर दशपूर्विन् ३६ | दशन् दशन दशपारमिता "" दर्शयामिनी २ दर्शित ६ दल ४ १८९ दाढा ६ ७० दाढिका ४ १९० दाण्डाजि निक "" "" ५०० दस्र ३८-१ | दत्रदेवता ३७० दहन ६४ दहनकेतन ४८७ दहनोपल २३९ दाक्षायणी २४१ का. ४ "" २ ४ ५७ दाक्षिण्य ११४ | दाय "" ६ दशबल दशभूमिग " दश मिन् ३ दशवाजि २ दशा ३. 39 "" ६ " १३१ दशाकर्ष ३ १४१ दशेन्धन ३४८ | दशेरक २५८ दस्यु ८७ "" ३ "" 39 २ 9 २ "" ४ ३ "" २ 99 ४ "" 20 दाक्षाय्य ४ ६ २ ३ 39 .. 39 ( ४१ ) ला. श. १८८ दातृ १९४ | दात्यूह ८६ दात्र १६७ दाधिक १७७ ८८ 39 E दान १४७ ४ 23 23 ७० ५३७ २४८ दानवारि १४७ दान्त. ३४ दापित १४८ | दामन् दामनी दामलिप्त १८ दामाञ्चन २२९ दामोदर - २३१ १३ ३५१ 39 "" दायक दार 39 दारक २३ दारकर्म ४५ दारद ३९३ दारित ९६ | दारु 23 (-ग अन्तराय ) १ २ दानशौण्ड ३ २२ दारुण १६५ | दार्वाघाट १६९ दालव १३३ दांव २९ "" ४०१ १३ ५१५ "" २४७ | दाशार्ह . दाश दाशरथि "" दाशेयी ४१ | दार [ दाशेर लो. ४९ ३९८ ५५६ ७४ ७२ ३ ४०० २८९ का. ३ ४ ३ 99 cwmv 20 १ ४ "" "" ४ "" "" "" १ २ ३ " "" " ४ ६ ४ २ ४ " "" 20 ३ ३ 99 २ 20 ७२ ३ ४९ ४७५ .१.१० ३४० " ४५ ३१७ ५१ १३० ५४६ គូ ដ៏៖៖៖គ ដ៏៖៖គឺ៩៩៩៩ដុះ៖៖ १७७ २०६ १८२ २६२ १२४ १८८ २१७ ३९४ २६५ १६७ १७७ ५९३ ३६१ ३६७ १२८ १४७ ३ ५१२ ४ ३२० Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दा] ET. दास दा दासेय दार दिक दिग्गज दिग्ध 99 दिन दिनकर दिनावसान "" दिक्कुमार २ दिन्दु दिव् का. श्लो. श. ३ २४ दीक्षा १९८ दीक्षित २१२, दीदिवि दीधिति " " ३ ६ 39 दिग्वासस् २ दित ६ दितिज दिधिषू ३ "" "" दिवान्ध दिवामध्य "" दिश दिश्य दि WWW २ 20 "" " 39 29. दिव दिवस "" दिवसकर """ दिवस्पृथिवी ४ "" "" " दिवा दिवाकर दिवाकीर्ति ३ २ aws w " "" "" २ ५२ दीर्घदर्शिन् ३ ६ २ मूलस्थशब्दसूची "" १७५ ४ ८४ दीपन ४४३ दीप्ति ११९ 25 दिष्ट दिष्टया दीक्षणीयेष्टि ३ दीप दीपक "" २१२ "" १२५ दीर्घ १५२ | दीर्घका १८९ | दीर्घग्रीव दीर्घजिह्न "" ११ ११ दीर्घनिद्रा दीर्घपत्रक ५४ १३७ दीर्घपाद १ दीर्घपृष्ठ ७७ दीर्घसूत्र ५२ दीर्घायु दीर्घका दुःख का. ३ "" 22 २ ३ ४ ३ २ ३ 33 ६ १३ दुर्गा १७३ दुर्जन ४४४ दुर्दिन ६४ ४ २७२ "" २ ४ ५ ६ १६७ दुःषमा दुःस्थ ११ दुःस्फोट ५८७ दुकूल ५९७ - " दुगूल ३९० ४ २ दुग्ध 39 ५३ ४ ८० ८२ दुण्डुभ दुन्दुभि २ दुन्दुभिनाद १ दुरध्व १५ दुरित ४० ४ २३८ दुरितारि १६४ दुरोदर ४८७ दुर्ग " 99 ३ " ४ ६ दुःषमसुषमा २ 99 ३ "" "" "" श्लो. श. ४८७ दुर्ग दुर्ग ५९ दुर्ग १४ दुर्गन्ध 39 ३५० 99 ४०८ दुर्गन ३०९ दुर्गसंचर ( ४१९ ) "" ३२१ दुर्बल ३६९ | दुर्मनस् ८ दुर्मुख २३८ | दुर्वर्णक २५३ |दुर्वाच् ४०० दुर्वा ३७० दुर्विध १७ दुर्हृद् दुर्नामन् १४३ | दुली १५८ | दुश्च ६ दुश्च्यवन ४४ | दुष्कृत ४५ दुष्टगज २२ | दुष्ठु ४५१ दुहितृ ३३३ |दूत "" a दूती ६८ दून ६ 9 ४४ दूषिका ३ १५० दूषित ३७८ | दूषीका का. ४ ३ ५ ४ ६* ४ ६ २ ३ २ ३ ४ ३ " 220 ४ ३ "9 "" ३ ४ ३ २ ६ ४ ६ ३ 99 "" ६ ३७१ दूर "" ४ २०७ | दूरदृश ६२ | दूरवेधिन् ३. ५० दूरापातिन् १६ दूर्वा "" 20 m ४ ३ 39 [ दूषीका लो. ३९ २२ २ ९ २७ ३२० १५३ ११७ ४.४ ७९ १३२ २७२ ११३ ९९ १५ १०९ ११ "" ५१४ २२ ३९३ ४१९ ११८ ८५ १६ २८८ १७७ २०६ ३९८ १८५ १२९ ८८ ४०१ ४३७ 99 २५८ २९६ १०० २९६ Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दूषीविष] " श्लो. श. दृषीविष का. ४ श्लो. ३८० १४६ दूष्य W , (अहो * * दूप्या अभिधानचिन्तामणिः श. का. श्लो. ! श. का. देवन ३ १५० देवज्ञ दैवत देवनन्दिन् २ देवपति रात्र) , देवप्रश्न ,, (तीर्थ)३ देवब्रह्मन् ३ देवपर . दोःसहस्रभृत् , देवमातृक दोर्मल .., देवयज्ञ दोला देवर देवल देववर्द्धक २ दृक्कों दृग्विष * ७३ ५०४ ४७ ३६६ २५३ ४२२ 1 देवभूय 6 x ३ ११७ दृढमुष्टि दृढरथ दृढसन्धि ३७ રકરે + १०८ इति देवश्रुत = हश ३ दृषद् १० ở २९६ v ३ २३९ देवसृष्टा ३ ५६७ | देवाजीव , ५८८ । देवाधिदेव १ २५ १७५ देवानांप्रिय ३. १७ २२३ देवायुध २ , ' ९३ २३९ देवार्य १५९ देवी दृष्टरजस दृष्टि ४४ २०५ v २०४ दृष्टिवाद २०३ देव दोहदलक्षण दोहदान्विता , दौर्हद " दौलेय .. ४ दौवारिक ३ २०५ v देवीकोट ४१९ = * » « » « *• : •**• » cm ३८५ ३६६ यन्ति २०८ १३२ १३ १५२ ४०६ १५७ दौहित्र , द्यावाक्षामा ४ द्यावापृथिवी , द्यावाभूमि २२७ :: २९० देवकीसूदु २ देवकुसुम ३ देवखात ४ देवगायन २ देवच्छन्द देवजग्ध ४ देवता २ देवताप्रणि धान १ देवदत्ताग्रज २ देवव्यञ्च ३ देवधान्य ४ देवन् ३ २५० देश . ४ १६७ देशक. ३ देशरूप , ३१० देशिक , १६० ९७ देहधारक , । देहभृत् २५७ देहलक्षण ३ २ देहली ४ दैत्यगुरु २ ८२ | दैत्यदेव ४ १५१ दैत्यारि २ १०८ दैन्य २४४ दैर्ध्य २१७ दैव (४२०) = २२९ ७५ ३४ १४ घुम्न १०६ " ४६० १५० द्यूतकारक : Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यो ] ཝཱ ཡྭཱཝཱ, ཝཱ, ཝཱཡ སྣྲུཝཿ སྠཽ ཝཿ སྠཽ ཀཱ ཝཱཀྶ བྷཱ ཐ ཨ द्यो द्योतन द्रव द्रविण दुव्य वह द्राक् द्राक्षा दु दुघण मा का. २ दुवय दुहिण द्रोण m 20 m 99 द्रोह द्रौणिक द्रौपदी इन्द ३ 99 ४ ३ "" 39 0 २ "" शामिल ३ ४ २ ३ 20 ४ w 30 m ६ ४ 2 20 ४ mvw 99 ४ 9 दुमामय ३ दुमोत्पल ४ ३ ३ ६ ," ३ ४ ६ 20 m ४ "" "" प्लो. श. ७७ २४१ मूलस्थशब्द सूची "" ३७ हय ৬০ द्वयस २१९ द्वादशाक्ष ४६६ १०६ १५७ १०६ द्विगुणाकृत १२३ द्विज १८० ६१ . ३४९ २११ ५४७ द्विजपति २ १२५ | विजयव ३ ५५० द्विजाति द्रोणका ४ ३८९ द्विजिह्व द्रोणदुग्धा ४ ३३५ द्रोणदुघा द्रोणी द्वन्द्व द्वन्द्वचर 35 द्वापर द्वादशात्मन् ” द्वादशाचिस् १६६ द्वार २२१ द्वार ५१८ १८० द्वारका द्वारपालक १२५ द्वारयन्त्र ४४९ द्वारवती. ४३९ द्वारस्थ २७७ | दिक ४४० द्विककद 99 39 99 का. ६ ४ ६ ३ २ d 99 "" "" द्वितय ५४१ द्वितीया 99 ६. ४ " 39 ३ ४ 99 99 : 98 ३ ३८५ ४ ३८८ 99 ३ २४७ ४७१ ४७६ 99 ४ ३८२ द्विजन्मन् ३ ४७६ २ १८ ३ 99 "" ४ ६ ३ १०० द्वितीयाकृत ४ १५१ द्विदत् ३५ | द्विधात ३७४ | द्विनक ३०२ द्विप ४६१ | द्विपथ 99 श्लो.. ६० द्विपाय ३९६ | द्विपृष्ट ५९ | द्विमातृ 99 ३ ४ २६५ द्विरद १२३ द्विरूढा १४८ 99 ( ४२१ ) द्विरेफ विद १० ३२ | द्विष् द्विषत् 99 ७० ४६ ३८५ ७१ ३२० २७ ५१९ ४७६ ४४ ३६९ ११८ २८३ ५२ has has has thas has has thas it द्वेषिन् द्वेष्य द्विसहस्राक्ष ४ द्विसीत्य द्विल्य ,, द्विहायनी ४ द्वीप द्वैणिक द्वेप "" द्वापकुमार २ दोपवती ४ द्वीपिन् द्वैपायन मार 99 द्वयष्ट ५९ धत्तर १७७ धन २७ 99 ३२९ | धनञ्जय ४१८ "" ध का. ३ धनद धनिन् " 23 " ४ ३ ४ २ ३ 33 [ धनिन् si. ४०९ ३५९ २१० "" १ ३ "" ४ ६ ३ "3 ३ २ ३ ४ ४ २ ४ ३ ४ २ ३ "" २८३ १८९ २७८ १३४ ३९३ " ३७३ २७ ક ३३८ १४४ ટ્ १४६ ३५१ ७३ ३९३ ११२ ५४४ ६० ३९९ ४१९ ५११ २२१ २१० १०५ २१७ १०६ ३३९ ३७२ १६३ १०३ २१ १४१ Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धनिष्ठा] अभिधानचिन्तामणिः (धूम्याट का. २ ३ , श्लो. ४५ ३९२ ८४ श. धनिष्ठा धनुर्भृत् धनुस् धनेश्वर धन्य धन्या धन्याक धन्वन् . . Ccmww.. . श्लो. श. का. श्लो. श. का. २८ धर्माध्यक्ष ३ ३८८ धारिणी १. ४३५ धर्मार्थप्रति धार्तराष्ट्र ४ ४३९ बद्धता १ ६९ धार्मपत्तन ३ १०४ धर्मीपुत्र २ ४२ धार्मिक , १५३ धव ३ १८१ धिक्कृत , धवल ६ २९ धिकक्रिया २ धवित्र ३ ३५१ धिषण धाटी | धिषणा . ., धातकी २१६ धिष्ण्य धातु २८३ . , . धातुकाशीश " १२२ धातुघ्न ३ धातुपुष्पिका ४ २१६ धीर - ३ धातुशेखर " १२२ . . " धातृ . २ १२६ धीरत्व धात्री ३. . २२२ धीरस्कन्ध ४ . " . धमन धमनि m wn & : . धम्मिल धीति m धर - ५ ३०९ M. १७३ 0 ३४८ धीवर धरणप्रिया १ धरणी धरणीधर धरणीसुता ३ धरा धरित्री धर्म १ ५९३ ३८३ ११६ १४६ morror ३६५ سم ४२१ ३२८ ه س ي م धर्मक्षेत्र ४ धर्मचक्र १ चर्मचिन्तन ६ धर्मधातु २ धर्मध्वजिन् ३ धर्मपुत्र . धर्मराज २ धर्मशास्त्रं धीसख . " धाना धुत धानुष्क धुनी धान्य धुन्धुमार धुर् धान्यक ६६ धान्यत्वच. धुरन्धर धुरीण ६१ धान्याक १७ | धान्याम्ल १४६ धामन् " ५२० " धूपायित धाय्या ९८ धारण २ २२४ / धूपित " धारणा धूम .. ४ १६५ ___४०८ धूमध्वज " | धारा ४१९ धूमप्रभा १६५ १५३ धूमयोनि . २ ३७७ ३१२ धूमल धाराधर २ ७८ धूमोर्णा . २ ३८९ धारिका " ५१ धूम्याट ४ (४२) ه س ३७१ १११ ११७ १२९ " १६९ १६४ 39 م س १६७ २ و ७८ و धर्मसंहिता धर्मात्मन् धर्माधिकरणिन् ३ و ९९ ३९९ ॥ Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलस्थशब्दसूची नन्द्यावर्त का. श. श्लो. श. श्लो. का. ३ नट का. २ " १०९ .. २४३ १९४ १२५ ४० ४१४ m or m...m श्लो. । श. ४९३ नटन नटमण्डन नटीसुत नड - नडकीय नडप्राय नड्वत् १४९ १०४ ३२९ ३ २१२ , २५९ ध्वजिन् ध्वजिनी ध्वनि ध्वनिग्रह ४२१ ३ धूली धूसर ५८१ ध्वात r । नवल नत एतराष्ट्र धति WWCMWC ३७७ ध्वान ध्वान्त ध्वान्ताराति , २२२ ११५ १५६ १४५ १२१ धृष्णज धृष्ण ११५ नाद्र नकुल नक्तंक .ummem २ ३३३ . १३३ २८४ ३३६ ५४ धेनुक धेनुका धेनुष्या धैनुक धैवत नतनासिक ३ नद नदा नदीज नदीभव नदीमातृक " ३६८ नदीश ३४० नद्ध १६९ नधी २०६ २९३ ननन्द , . २४५ ननान्ह ननुच नन्दक नन्दन नक्तम् .:: W १३९ १०२ ५७९ २१८ नक्तमाल .६ नक्र ३ ३ २६ धोरण o १७८ १३६ धोरणी धोरित . ३११ नक्षत्रमाला m : २०५ m : : : : नख नखर नखरायुध नखविष नग धौत ६ धौतकौशेय ३.. धौरितक.४ . धौरेय धौरेयक , नन्दा : ३१२ ३२८ ३६२ २६३ ४० १२४ २४४ २३७ ९३ नन्दिन् : : धौर्य ध्यान ८ २१८ . m ध्रुव m नगरद्वारकूटक" नगरी २३४ नग्न नग्नहु नग्नहू नग्ना . " १८८ नग्निका . " (४२३) ३६ १२६ नन्दिनी ३ ४५९ नन्दिनीतनय" | नन्दिमुखी २ | नन्दीश " १९८ नन्दीसरस् " १७४ | नन्द्यावर्त १ २२७ १२४ . ८९ ४ ૪૮ Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०९ ४ ww २१४ ७८ wr नमि नन्द्यावर्त ] अभिधानचिन्तामणिः [नारक श. का. ल. श. का. श्लो. श. का. श्लो. गन्द्यावर्त ४ ८१ | नर्मन् ३ २१९ नागर ३. " १८० नलक . " २९१ नागरन ४ १२७ नपुंसक ३ २२६ नलकिनी , २७८ नागरग " नप्त २०८ नलकील "नागलोक ५६ नभःस्वास ४ १७२ | नलकूबर २ १०५ । नागवल्ली ४ २२१ नभस ६८ नलमीन नागाधिप . ३७३ __७७ | नलिन " २२६ नागोद ३ १३२ नमसंगम ३८२ नलिनी नाटक - ..२ १९८ नभस्य २ ६८ नव ६ ८४ नाटेर ३ नभस्वत् नवत ३ ३४४ नाट्य १९४ नभोगति ३८४ नवनीत नाट्यधर्मिका ". १९३ नभोमणि २९ नवलालिका ४ नाट्यप्रिय ." नभोऽम्बुप ४ ३९५ नवार्चिस २ ३१ नाडिका " ५१ नम्राज नवीन ८४ नाडी - ३ २९५ नमस नवोद्धत ३ ७२ नाडीन्धम" ५७२ नमसित् ३ १११ नव्य. नाडीविग्रह २. १२४. नमस्थित " " नश्यत्प्रसूतिकाई - १९५ नाडीव्रण ३ १३४ २८ नष्ट नाथ नमुचि नष्टबीज नाथवत् .१५६ नय नष्टाग्नि नाद नस्तित नाना नयनौषध नस्योत नानारूप नर नहि नान्दीपट ४ ...१५८ नान्दीमुख " नरक नाकिन् नापित नापितशाला ४ नरकभूमि नरकस्था ४ २८३ २७० नरकावास ५ ४२० नरकीलक ३ नाभिभू २ १२७ नरदत्ता १ नामधेय नागकुमार नामन् नरमालिनी ३ नागज १०८ नामशेष ३ ३८ नरवाहन नामसंग्रह २ नरायण १२८ | नागजिविका " १२६ नायक ३ नागजीवन " नर्तन १९४ नागदन्त " ७७ नारक ५ नर्मदा ४ १४९ | नागमातृ " १२६ ! .. ( ४२४ ) नयन ३२६ S:-: www.mm W ५०५ ६६ नाकु नाग नाभि ur " ३७३ ४१७ ९७४ १२७ ૧૦ર जकंटक १०८ ३१० mr0 Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नारङ्ग ] श. नारङ्ग नारद नाराच नाराचिन् नारायण नारी नाल नालिकेर नालीक नाविक नाश 99 नासत्य नासा " ST. ४ २०९ .३ ५१३ ४४३ ५८८ १२८ ३६१ १६७ २४८ २१७ २२७ का. २ ३ m 99 ४ 99 ३ २ ૬ २ ३ ४० ४ mr m २ ३ 99 93 36 नासिक 1 ३ २४४ निगड नासिक्य ९६ निगडित नासीर ४६४ निगण नास्तिक 39 99 निःसरण .४ निःस्राव ३ निःस्व निःस्वन ६ निःस्वान "" ५४० २३८ १५३ ९६ २४४ 99 श. का. निकाय ६ निकाय्य ४ निकार ३ निकुञ्ज ४ निकुरुम्ब निकृत 99 99 99 मूलस्थशब्द सूची ७४ निखिल निकृति निकृष्ट ६ निकेतन ४ निक्कण ६ निक्काण निक्षेप निखर्व १५४ निगम ५२६ ५९८ | निगरण ४०६ निगाल .. ४८ निघ्न ६०. निश्चिंत २२ निचुल ३५ "" निचोल ८६ | निचोलक ६ ३ ४७ निज ५७३ नितम्ब 99 99 95 99 99 " ६ ४ ३ ३ m: ४ 99. 99 निकट निकर 99 ४ निकष ३ निकपा ६ १७० निकषात्मज २ १०१ नितम्बिनी ३ निकाम ६ १४१ नितान्त ६ नाहल ' निःशलाक निःशोध्य निःश्रेणि ४ ७९ निग्रह -७२ निगूढक ६ निःश्रेयस् १ ७४ निघण्टु २ १७२ निपुण निःश्वास ६ ४ निघस निबन्ध ३ ८७ निबन्धन ३ २० १०९ निबर्हण ३४० निबिड २११ 99 श्लो. श. ४९ नित्य 99 ५६ १०६ १८१ ४८ 99 ४० ६ ( ४२५ ) १०५ ४१ ७८ ५५ ३६ 99 ३ ४ ३ ३४० 39 निदाघ "" ३ ४ ३१० | निन्दु २३९ | निप १४४ निपान "" नित्यगति ४ नित्ययौवना ३ निदान निदेश निद्रा 22 निद्राण निद्रालु ५३४ निधन ११८ ५३८ ६९ निधीश्वर २९५ १०२ | निधुवन निध्यान निधान निधि ५०१ ३८ | निजद ४९ | नाद २५२ निन्दा निबिरीस निभ ४३१ 33 २२५ | निभालन २७२ | निभृत ९९ | निमय १६८ निमि १४२ | निमित्त का. ६ २ २ ६ २ १ २ ३ ४ ३ २ 99 "" 31 ३ ६ "" " २ ३ ४ 99 ३ २ ६ ३ ६ 95 ३ [ निमित्त ६ ३ 99 99 9 ६ . ला. ८९ १०७ १७२ ३७४ ७५ २१९ १५० १९१ ७३ २२७ १०७ १०५ १०६ २३८ १०६ १०४ २०१ २४१ ३५ " १८५ १९५ ८५ १५८ ६ १७१ १४९ ३४ ८२ ८३ ४२ ९८ २४१ ९५ ५३४ ५२ १४९ Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निमित्तविद् ] श. का. निमित्तविद् ३ निमीलन २ 39 निमेष निम्न 99 निरङ्कुश निरन्तर "3 निम्नगा निम्ब नियति ६ नियन्तृ ३ नियम 9 " ३ नियमस्थिति १ नियामक नियुद्ध नियुद्धभू नियोग निरय निरर्थक 93 श्लो. श. १४६ | निर्ग २३८ निर्गुण्डी ३ २४२ निर्ग्रन्थ "" " ४ ५ ४ १५ | निर्झरिणी ४२४ निर्णय ८२ - ५०७ ८१ ३ ५४० ४६३ 39 ४६५ २ १९१ ६ १५६ ३८३ नियोगिन् ३ नियोज्य २३ ६ १०३ ८२ २ निरीष निरुक्त निरुक्ति निरोध निर्ऋऋति • 99 "" निरवग्रह ३ निरस्त 99 39 निराकरिष्णु ३ निराकृत निराकृतान्यो ५ ६ १५२ १९ २ १८१ ४४३ त्तरत्व १ निराकृति ३ 25 39 अभिधानचिन्तामणिः २ 29 निर्ग्रन्थन १३७ निर्घोष ७ | निर्जर १४६ | निर्जल २०५ निर्झर 99 ३ ६ ११० निर्वपण १४ निर्वर्णन ६ १०९ निर्देश निर्बन्ध निर्भर निर्मद निर्मम निर्वहण निर्वाण १६८ निर्वात १६४ निर्वाद ६ १४४ | निर्वापण १६ निर्वासन का. ४ निर्णिक्त निर्णेजक निर्दिग्ध 99 निर्दिग्धिका ४ २ ६ ६७ 99 99 २१३ ७६ ३४ ३५ २ १९ १६२ 99 १४६ ६ 9 ३ ६ २ ४ 99 "" निर्मुक्त निर्मोक निर्याण 99 निर्यातन निर्याम निर्लक्षण 99 निर्व्वयनी ४ ३ ३ 99 ४ १ ४ 99. 9 ४ ३ .99 99 ६ २ ३ • 99 श्लो. | श. ६ १५० 9 ७४ ६ १३० ५२० निर्वाणिन् १ ५० ५५५ निर्वाणी 99 ४५ १३ निर्वीरा निर्वृति "" ( ४२६ ) १० . ७३ निर्वृत्त निर्वेद निवेश " ७५ निवेशन २९१ | निशमन ३५ निशा ५४० | निशांकर १०१ निशाख्या ३८१ ५१ २४१ [ निशीथिनी श्लो. १९४ निर्व्यथन निर्धारिन् निर्ह्राद -99 ५७८ निलय ४ निलिम्पका निवसथ ११३ निवसन २२३ 99 १९१ निवह १३६ |निवाप १४२ निवास २८७ निवीत ५५. निवृत ३७८ निवृत्ति ३८१ निवेश १३० निशित १८५ ३५ निशीथ 99 का. निशीथिनी ३ १. ६ २ ३ " "" 99 ४ ६ . ३ ४ ३ ६ "1 ४ ३ २ ३ निशागण २ निशाट. ४ निशात ६ निशान्त ४ निशापति २ निशामन ३ निशारत्न २ निशावेदिन् 99 ६ २ 93 ७४ ६ १२३ २३५ - २६ ३०२ ६ २६ ३५ ५६ ३३२ २७ ३३७ ३८ ४८ ३९ ५७ ५०९ ११० १५८ १३५ ३८ २४१ ५५ १९ ८२ ५७ ३९० १२० ५८ १८ २४० १९ ३९० १२० ५९ ५५ Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निशुम्भ ] श. निशुम्भ ," निशुम्भमथनी २ 99 निश्वय ६ निषङ्ग ३ निषद्या ४ निषद्वर निषध निषधा निषाद 39 निषादिन् निषूदन निष्क का. श्लो. ३ ३५ ३६३ ११९ १० ४४५ ६८ १५६ ३७ ४६ निष्टय निष्ठा निष्ठान निष्ठुर 99 निष्ठेव निष्ठत निष्णात निप्पक्क " ६ निष्पन्न निष्पाव ४ 99 ३ 99 निष्कल निष्कला निष्कषाय १ 99 ५६० ५९७ ४२६ ३५ ४ ११० | नीचैस् . १५६ नीड १९९ नीडज 99 ३ निष्कारण निष्कासित ३ ४ निष्कुट निकुह निष्क्रम निष्क्रय ३ froster 99 ३ 99 99 ६ १६० २६ 99 ६ २ ६ 99 ६ ३ निष्पतिसुता ३ निष्पत्राकृति ६ 99 मूलस्थशब्दसूची श. निष्पुलाक. १ निष्प्रवाणि ३ निसर्ग ४ निस्तर्हण ३ निस्तल निस्त्रिंश 93 निहाका निह्नव नकाश नीच ." ६ .. ५५ नीध ३६ | नीप १०४ नीर १७८ नीरन्ध्र. १८८ नील . ७७ नीलक ५९८ | नीलकण्ठ नीला ६ १२२ | नीली नीलवासस् का. श्लो. श. १९४ नीलीराग ८ नीलोत्पल ६ ४ नीवार ६ १५७ नीवी ; ३ "" ४ २ ६ ३ 99 ६ 59 ४ 99 .. 99 १५० ६३ | नीलङ्ग १८३ नीलमणि २२. नीललोहित २ १५७ नीलवस्त्र 99 ११८ "" नृत्य नृधर्मन् नृप नृयज्ञ नृशंस नेतृ १०७ नेत्र ३३ ३०५ १०९ ३८५ २६८ १३१ ११२ १३९ ३५ ३ २५५ नेमी ४ २३३ १४० ४८ ६ २ ६ ३ २ ४ 99 99 99 ३ १ १२३ नीवाक ६ २४० ४ ३ ( ४२७ ) ५५ नीवी ३३५ नीवृत् १२ नीव्र ३४ नीशार १०३ नीहार ४० नुति ४४६ नुत्त ३६३ | नुन्न १९० ९८ ४४ नूनम् ५९६ नूपुर ६५ नृ १७७ ३८५ ३८३ ७७ २०४ १३५ ८३ नूतन नूत्न १३८ नृचक्षस् नृजल नृत्त नेत्राम्बु नेदिष्ठ. नेपथ्य नेपाली नेम नेमि 99 नैकभेद नैगम नैचिक नैचिकी १५४ २४२ नय ३३७ | नैयायिक [ नैयायिक श्लो. ५३३ १३ का. ३ ४ 99 ३ ४. २ ६ 99 "" 99 93 ३ 99 २ ३ २ 95 "" ३ ور 39 93 99 २ ६ ३ 9 ६ १ 99 ३ ४ ६ ३ ४ 99 ३ ,, ७७ ३३९ १३८ १८३ ११८ "" ८४ 33 १७६ ३२९ १ २०१ २९७ १९४ 99 १०३ ३५४ ४८६ ४० २२ २३९ २२१ ८८ २९९ १२६ ७० २८ ३० ४२० १.५७ ८५ ५३१ ३३० ३३६ ५३३ ५२६ Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नैर्ऋत] श. नैत का. २ ocm : नैष्किक नैस्त्रिंशिक : ४३५ १७५ ५ : १९६ ५४१ नौकादण्ड न्यक्कार न्यकत न्यक्ष : anav & « am : : : won : on : ! : .coms न्यग्रोध : MWCC न्यञ्च न्यञ्चित न्याद न्याय न्याय्य न्यास : : : अभिधानचिन्तामणिः [पत्तन श्लो. श. का. श्लो. श. का. श्लो. ८३ पङ्क ६ ७ पटु १०२ पङ्कज ४ २२८ । " ३८७ पङ्कजन्मन् ___.. पटोलिका ४ २५४ पङ्कजिनी २२६ पट्टिश ३ . ४५१ पङ्कप्रभा __ ५ ३ पण ५४० ४ २२८ " १५० पङ्करुह __, पणाङ्गना । १०५ पति ६ . ५९ पणास्थिक • ४ २७२ १०४ पङ्गु ३ ११६ | पणितव्य ३ ५३५ ६९ । पङ्गल पण्ड " २२६ ३५९ पज्ज ३ ३ ५५८ | पण्डा ५५८ . २२४ - १९८ पञ्चजन , १ पण्डित ३. ५ २६४ पञ्चज्ञान २ १४७ पण्यं , . ५३५ ६५ पञ्चत्व , २३८ पथ्यशाला ४ ६८ पञ्चदशी , . ६२ पण्याङ्गना '३. १९६ पञ्चभद्र . ३ ९८ । पग्याजीव " . ५३१ ४३०२ पतग पञ्चम पतङ्ग पञ्चमुख २ ११० पञ्चलोह पञ्चशाख २५५ पतङ्गिका , पञ्चशिख ३५० पतञ्जलि ५१५ पञ्चाङ्गगुप्त ४१९ पतत् पञ्चाङ्गी | पतत्र पञ्चाङ्गुल २१६ पतत्रिन् पञ्चार्चिस् २ ३१ पतद्वह ३४७ पञ्चास्य ३५० पतयालु १०९ पञ्जिका १७० पताका ४१४ ३३१ पताकिन् " ४२८ पटकुटी पताकिनी ६२ पटच्चर पति ३८२ पटल ७६ ५८ पतिवरा , पटवासक ३ ३०१ पतित ५१८ पटह ३०८ १२६ १४५ " ३ ४६३ पतिवनी ३ १९४ २४४ पट ३ ७ पतिव्रता " १९१ १५६) " . " ४८) पत्तन . ४ ३७ (४२८) as ocomoc प पक्क cwwcmm ::: पक्कण : * . : * . . se n n ३८२ पक्षक पक्षति ३८४ पट c ४१० ३४५ ३४२ १८० ४८ १७५ o पक्षद्वार पक्षान्त पक्षिन् . ४ पक्षिणी २ पक्षिलस्वामिन् ३ पक्षिस्वामिन् २ पक्ष्मन् ३ पङ्क ४ mr mm. Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलस्थशब्दसूची [परावृत्त श्लो. | श. श्लो. २० ४१२ ४१५ १७६ श्लो. : श. का. १६ परतन्त्र ४ १७१ परपिण्डाद ३ परभाग परभृत परमम् परमान्न परमाहत् परमेष्ठिन् २९५ १ ur.m १७६ १८९ ३६२ २४९ ३८३ २४ -rm १२५ १२९ २०८ ४९४ ४४८ 0000000000ww १२७ २० : : ७० परम्पर ३ परम्पराक . परलोकगम २ परवत् परवश परशु परश्वध परश्वधायुध " परस्पर परस्वेहा ३ पराक्रम " १४० ४५० : ३१९ । पद्मा १४० ४३४ WW :rm . ३५९ १२९ ३५७ ५५८ ४०३ ४६० १९२ पत्रणा ४४५ पद्मनाभ पत्रपरशु " ५८४ पत्रपाल " पद्मनाल पत्रपाश्या " '३१९ पद्मप्रभ . पत्रभङ्गी पद्मभ् । २ पत्ररथ ___३८२ पद्मराग पत्रल पद्मवांसा २ पत्रलता पत्रलेखा " ३१८ " २ पत्रवल्ली ३१९ पद्माकर ४ पत्रवाह ४४२ मद्मावती বাঙ্গ। ३०६ | पद्मशय पत्राङ्गुलि " | पद्मोत्तरात्मज ३ पत्रिन् . " ४४२ पहा : " . ४ . ४०० पद्या पत्रोर्ण ३ ३३१ | पन्न पथिक' . " १५७ पन्नग पथिन् . ४ पन्नद्धा पथ्या , २१२ • पयस् पद ..२ १५६ " ".. ३ २८० पयस्य पयस्या पदभञ्जन २ पयोधर पदभञ्जिका , पर शत पदवी पदाजि ३ १६२ पदाति " १६ , पदातिक परच्छन्द पदासन ३८२ | परजात " पदिक १६२ परञ्जन २ (४२९) पराग पराङ्मुख ६ 1:0w पराचित m २४ ur ७३ m m. पराचीन पराजय पराजित पराधीन ४६७ ४६९ : : २० परान्न : : m..rm १०५ ४६९ २३६ ४९ | पर :rm. पराभव पराभूत परामर्श परायण परायत्त परार्द्ध २० पराद्धर्य २५ परावर्त १०२ परावृत्त u . m ur m ५३४ ३११ . Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परासन] अभिधानचिन्तामणिः [पर्वत श. का. परासन ३ परासु परास्कन्दिन् " परिकर श्लो. श. का. श्लो. १४० परिस्तोम ३ ३४४ ९१ परिस्यन्द " ३७९ परिजुत् ॥ ५६६ ३८० परिसूता " " १०५ परीक्षक " १४३ परीत ६ १११ परीरम्भ " . १४३ परीवार, ३. ४४७ परीवाह . ४ . ' १५४ परीष्टि परीहास " . २१९ परुष २ . १८३ परिकर्मन् २ ३ परिकर्मिन् , परिकूट ४ परिक्रम परिक्षिप्त , परिखा परिग्रह . ३ " परिघ ___४८ ११० १६१ . ६ . २२ ५३३ ४. . ३ . १९६ ३७ परेष्टु परैधित १४९ ४२९ परिघातन परिचय परिचर परिचर्या परिचारक परिच्छद परिणत परोष्णी श्लो. श. का. ३४ परिपाटी ६ ___३८ | परिप्लव " ___४६ | परिप्लुता ३ ३४३ परिबर्ह " ३७९ परिभव " १६० | परिभाव " २९९ परिभाषण २ २४ परिभूत ३ परिमण्डल ६ परिमल " परिमोषिन् ३ परिवत्सर २ १७७ परिवर्त २ ३७९ परिवर्तन ३ ४५० परिवर्ह , ७० । परिवसथ । ४५० परिवाद . २ परिवादिनी " परिवापण ३ परिवार " परिवित्ति " परिवृढ , परिवेतृ , परिवेदिनी १८२ परिवेष २ १५४ परिवेष्टित ६ ६७ परिव्रज्या १ परिव्राजक ३ १३८ परिशिष्ट २ ५३३ परिश्रम १८९ परिषद् ३ परिष्कार ३३६ " १६ परिष्कृत ६ ४२९ परिष्वङ्ग " ५३३ परिसर ४ ३९३ . परिसर्प ६ " | परिस्कन्द ३ (४३०) ३ ६ ३ " , " ४ २५ ४०३ १९७ १६० : पर्कटी पर्जन्य २३ २ ३८० : ८६ २८७ १२१ ६० पर्णशाला पणिन् . १६ पर्दन । ११० १५१ पर्पटी in cm १२१ ३४३ ३४७ परिणय परिणाम परिणाय परिणाह ६ परितस " परित्राण " परिदान ३ परिदेवन २ परिधान ३ परिधि २ परिधिस्थ ३ परिपण " परिपन्थक " परिपन्थिन् " पर्यटन पर्यय | पर्यस्तिका १३७ १४० ३४३ ३१४ पर्याण पर्याप्त पर्याप्ति २९ पर्याय २९ १३६ पर्युदञ्चन २४ / पर्वत . ४ ३१८ ६ १४१ , . १३८ , १३९ ३ ५४५ ४ १३ Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर्वतकाक] मूलस्थशब्दसूची [पादपाश का. ६ श्लो. का. ४ , श. पर्वतकाक पर्वतजा पर्वतधारा पर्वन् ४११ : श्लो. । श. ३८९ पवन पवनाशन पवमान पवि पवित्र 2: : १७२ २५५ १७६ १८२ ५८९ C " W पर्वमूल पर्वयोनि पर्वसन्धि १८१ श्लो. श. का. १५६ पाठीन ४ ३६८ | पाणि | पाणिगृहीती , पाणिग्रहण , पाणिघ " ७१ पाणिनि , २८२ पाणिपीडन " ३४१ पाणिमुक्त , २०१ पाणिवादक " ११३ पाण्डर ६ . १४ पाण्डवायन २ ९५ पाण्डु पाण्डुकम्बलिन्३ पाण्डुभूम ४ पाण्डुर ३ ४३८ पशु : WW पशुका पशुपाणि पवध २९ १३३ पशु ४ " पशुक्रिया ३ पशुपति २ पश्चात्ताप ६ वश्चिम . , पश्चिमा. २ पश्यतोहर ३ पस्त्य पांस पांसुला ४५० १४५ २८७ पर्षद् पल : :: ४१८ १९ १३० " ५४८ ४ ३ ४ ३ १०७ . २४८ ५८६ २०४ ३४९ २८६ १०१ पाण्डुरपृष्ठ पातक पाताल पाक : m. mn: पलगण्ड पलङ्कष पलङ्कषा पलल पलाद पलायन पलायित पलाल " م ه ३ ४६६ पाकपुटी ४. पाकशुक्ला ." पाकस्थान " पाक्य(अपाक्य)" पातालौकस पातुक पात्र १५२ १०९ س ४६९ : ८ २४१ ४ ه س ४९२ पलाश ::. " २४८ १८९ २०२ २४ مه ९२ : १४५ पलिक्की पाचन ६ पाचनक ४ पाञ्चजन्य २ पाञ्चालिका ४ पाञ्चाली ३ ه १३५ पाथस पाथेय س १५७ ३ ३३६ २३५ له १४ ५ पाट و २५० २८० पलित.. पल्यङ्क पल्ययन पल्लव पल्लवक पल्ली पल्वल :: Macmm come م ५ १८९ ه २४५ م ३६४ ३१८ पाटक पाटच्चर पाटल पाटला १६१ पाटलि १५७ पाटलिपुत्र , ८३ पाटित ६ १७२ पाठक १ (४३१) ५ १०० ७० २२९ ५०८ १६२ १८० ___" पव पवन २१०। पादकटक ३ पादग्रहग ६ ४२ | पादचारिन् ३ १२४ पादप ४ ७८ पादपाश ४ ६ ४ . २९५ Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४ २८० : पादू winsan ३१ १५५ पादपाश] अभिधानचिन्तामणिः [पिचिण्डिल श. दा. श्लो. ! श. का. श्लो. श. का. श्लो. पादपाश ४ ३१७ पारत४ ११६ : पार्श्वक ४. २९४ पादपीठ पारद " , पाश्वस्थ २ २४४ पादरक्षण : ५७८ पारम्पर्य १ ८० पाश्वोदरप्रिय ४ ४१८ पादवल्मीक " पारशव पार्षद १५ पादस्फोट " १०३ | पार्षद्य पादाङ्गद पारश्वध ४३४ पाणि पादातिक " पारश्वधिक पाणिग्राह , ३९६ पादावर्त पारसीक ४ पाल , ३४७ पादुका पारस्त्रैणेय ३ २११ पालकाप्य , पादुकाकृत् पारायण ५०३ पालक्या ४ २५२ पारावत ४०५। पालाश . ३. ४७९ पाद्य १६४ पारावार पान पाराशरिन् ३ ४७४ पालि .. ४०२ पाराशर्य , ५११ पारिकाडिन् , ४७४ पाली . पारिजात २ ९३ पावक पानगोष्ठिका ३ __ ५७१ पारितथ्या ३ . ३१९ | पावन पानभाजन ४ पारिन्द ४ ,३५० पाश पानवणिज ३ पारिपन्थिक ३ ४५ | पाशक पानीय पारिपार्श्विक २ २४४ | पाशिन् १०२ पानीयनकुल, पारिप्लव ६ ९१ / पाशुपाल्य ५२८ पानीयशाला पारिभद्रक ४ २०७ पान्थ पारियात्रक , , ९७ पाश्चात्य ९५ पाप पारियानिक ३ ४१३ पाश्या पारिरक्षक ४७४ पाषाण १०१ , पारिहार्य , ___३२७ पाषागदारक ३ पापद्धि पारी पाप्मन् पारीन्द्र पामन् पिङ्गकपिशा पामन पार्थिव पिङ्गचक्षुस् " पामर पार्वती पामारि , १२१ | पिङ्गल २६५ पायस पार्श्व ३१२ पायु ३ २५३ | पिङ्गेक्षण . २ ११३ पाय्य ५४७ ६ ५६ | पिचण्ड ३ २६८ पार १४५ ८६. पिचण्डिका , २७९ पारगत १ २४ पार्श्वक ३ १३९ पिचिण्डिल , (४३२) : An : ..m ५५२ : ५८३ ar Rm urm. | पिक पिङ्गः 0. com पार्थ ४१८ पिड-जट 0 ३६८ m ३२ . 0.0 २७६ . . : Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिचव्य ] श. पिचव्य पिचु पिचुमल्द पिचुल पिच्चट पिच्छ " पिच्छिल पिच पिञ्जन पिञ्जर 99 पिचल पिचप पिंट पिटक पिटर पिण्ड 99 22 29 पिण्डक पिण्डदान पिण्डिका 22 पिण्डीशूर विण्डोली शिष्याक पितामह "7 दिन का. ४ 21 "" " 23 35 39 23 ३ 02 "" 29 20 3 ३ 220 ર ३ ४ ३. ८७ " ४ " m ३ 29 520 २८ अ० चि० श्लो. श. २०५ | पितृव्य | पितृ पित 1 पित्तला 39 99 55 मूलस्थशब्दसूची १०८ : पित्र्य ३८३ ३८६ ७८ पित्सत् ३६ | विधान ५७६ | १२४ पिनद्ध ३.२ पिनाक " ३० | पिनाकभत २९६ पिपासा ८३ पास १३० पिपीलक ८५ पिपीलिका पिप्पल २२० 99 २२३ | पिष्टक २२४ पिष्टपूर " ,, पितृगृह ४ ५२ पिटवर्ति पितृतर्पण ३ ३९ पिष्टात पितृपति २ ९८ पिहित पितृयज्ञ ३ ४८५ पोठ पितृवन ४ ५५ का. ३ 93 , (after),, " "3 २ ३ ४ ܕ ३ 22. ४ : .. ६ ३ .२ : m 220 ८९ २२८ | पिप्पलक १०३ पिप्पली १२९ पिप्पिका ३९२ | पिप्ल - ४८६ विशाल २७९ पिल्ल ४२० | पिशङ्ग १४३ पिशाच ९१ पिशाचकिन् ५८१ पिशित १२५ पिशिताशिन् २२१ पिशुन 0:3 " . ३ "" 39 • 20 ३ $ २ 3% ३ 19 ;" 3 22 33 29 श्लो. श. २१६ पीठमर्द ५४ 29 ६ ३ पीडन पीडा ९२ ११३ ४२९ पीतरक्त पीतल ११५ ११३ पीतलोह २८ पीतसाल पीता ५७ १२६ १६३ | पीत 29 २५ | पोततण्डुला ४ २१५ | पीतदुग्धा पोतन ५०४ ३८३ २६२ पीताब्धि २७३ पीताम्बर १९६ ५६० ८५. २९६ पीयूष २८२ | पीलक २०८ पीलु २८७ १२५ 22 ३२ | पीलुपर्णी ५. पीवन्. पुस् ६२ | पुसवन ६४ पुस्त्व पुङ्ख 99 ३०१ पुङ्गव ११२ पुच्छ ३४८ | पुञ्ज 39 ४८० | पुटकिनी ( ४३३ ) पीन पीनस पीनोधनी १०३ पीवर ,, पीतनील ६ पीतपादा ४ ६ ५१३ [ पुटकिनी श्लो. २४४ ४६४ ७ ९३ पुंश्चली ि का. २ ३ ६ " ३ ४ " 2 ४ Am ३ २ " ३ ३ ४ २ ४ 99 29 39 ३ पीवरस्तनी ४ ३ C3 " "" "" " "2 ६ ४ ६ ४ ३० २४२ ३३६ ३०९ १२५ ३० ४०२ ३२ ३० ११४ २१० ८२ ३६ १३० ११२ १३२ ३३५ ३ २७२ २०८ २८३ २५१ ११२ "" ३३५ १९२ २७४ ง ६८ २९३ ४४५ ७६ ३१० ४७ २२६ Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुष्कर २७ : 1: 41 पुराणग पुष्करिणी १६० 20 CM पुरातन : ५ wr.0mmar पुरीष 3 पुटभेद] अभिधानचिन्तामणिः श. का. श्लो. श. का. पुटभेद ४ १५४ पुरा ६ १७१ पुटभेदन , पुराण पुण्डरीक २ ८४ २२८ ३५० पुष्कराख्य पुण्डरीकाक्ष पुराणपुरुष , पुण्डू पुष्कल ".. , पुरावृत्त ७५ पुण्य पुष्प . ३ .. २०० पुरासुहृद " ४ ९९१ पुरी पुण्यक . , . २५० पुरीतत् पुण्यजन पुष्पक २ . १०४ पुष्पकरण्डिनी४.४२ पुण्यभू । पुष्पकाल २. ० पुण्यवत् .२ पुपकेतन , . १४२. पुत २७३ पुरुपपुण्डरीक ३ ३६० पुष्पकेतु ४ १२० पुत्तिका २८० पुरुषांसह . , , . पुष्पद , ३ २०६ पुरुषास्थि :,पु-पदन्त । पुत्र ३ २२४ मालिन् २ १११ पुत्रिका ४ ८० पुरुषोत्तम १ २५ पुष्पदन्त २ पुद्गल २८८ " १२८ पुष्परथ ३ पुनःपुनर , ३ ३५९ । एप्पलक ४ पुनर्नव २५८ पुरुह ६२ पुष्पलावी ३ पुनर्भव ___, पुरुहूत पुष्पबत् २ पुनर्भू १८९ पुरूरवस् ३. ३६५ पुष्पवती ३ पुनर्वसु २४ पुरोग सुपवाटी. ४ ६७४ पुस्पल ३ २६९ ५१६ पुरोगम १६२ पुष्पहीना , १९९ - २०० पुरोगामिन् ___, पुष्पाजीय , ५६४ ४ ३७ पुरोधस , ८४ पुष्पाञ्जन ४ १२० २२८ पुरोमापिन्द्र , ४४ । पुप्पकासीस , ५ ६९ पुरोहित ३८४ धुलिका ३ २९८ पुरःसर २१९ पुष्य २६८ पुरन्दर ८५ पुलाकिन् ६४४ पूजा ३ ११ ६ १६५ पुलिन्द ३ ५९८ । पूजितं ११० दरम्लात , , पुलोमन . २ ८ पूत .४ WWWWC: १९९ १७९ RATES : - RANKET १३० . . पुन्नाग RCE : 15 د १६५ س १८० । पूग * • MA' : نه Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूपली २८८ पूय Mmmmc.:: पृथु ० " मूलस्थशब्दसूची [पौरक श. का. श्लो. श. का. श्लो. श.. का. लो. पूत ६ ७१ पृतना ३ ४१२ पूतना , २ १३३ पृतनाषाह पूतिगन्धिक ६ पृथक पृथगात्मता १ पृथगात्मिका ६ पूपिका , पृथग्जन ३ पृथग्विध ६ १०५ १५३ पृथिवी ४ पूरित प्रथिवीशक ३ पूरुष पेशीकोश पूर्णकुम्भ ३ ३८२ पष २३७ पृथुक ३२ पूर्णपात्र ३४१ पूर्णानक , पैतृष्वसेय " पृथुरोमन् ४ " २०९ पूर्णिमा २ ६३ पैतृप्वस्त्रीय " , पूर्णिमारात्रि , ५७ पृथ्वी ७३ १ ३९ पत्र(अहोरात्र)२ ४९८ ४१ पलव ३४७९ ४७ पृदाकु " ३६९ पोगण्ड " १९ पूर्व २ १६० पृश्नि २१३ पोटगल ४२२९ प्रश्नि ३ . ११७ पोटा पूर्वगङ्गा ४ १४९ पृश्निचङ्ग २ १३१ १९८ पूर्वगत . २ . १६० पृषत् . ४ १५५ पोहिल पूर्वज ३ पृषक ४४२ पोत पूर्वदिक्पति २ पृषत ३६० पूर्वफल्गुनी , २५ पृषदश्व " १७३ पतिज पूर्वभाद्रपद , पृषदाज्य ४९६ पोतवणिज ३ पृषातक पोतवाह , पूर्वा .. .२ पृष्ठ २६५ पोताधान ४ ४३ पूर्वाद्रि ४ पृष्ठग्रन्थि | पोत्रिन् पूर्वानुयोग २ पृष्ठमांसादन १८२ पूर्वाषाढा , पृष्ठवंश २६५ पोलिका पूलिका पृष्ठवाह्य ३२९ पोलिन्द पूषन् पृष्ठशृङ्ग ३४४ पौतव ३२९ पौत्र पृक्थ १०६ पेचक , २९३ पौनर्भव , पृच्छा , ३९० पौर पृतना ६ ४७ पौरक McMwc १०। " पूर्वदेव . . , पूर्वरंग ." १३० पोलि . . पृष्ठय पेटक Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पौरस्त्य] . स. परस्त्य पौरुप का. ६ ३ mour m " पौरोगव Wwcmm पौर्णमास ४८७ पौर्णमासी २ पौलस्त्य ३ " पोलि पौलोमी पौष पौण पोप्पक १२० प्याट ६ ४ . .७८ प्रकट प्रकटित प्रकम्पन प्रकर प्रकरण अभिधानचिन्तामणिः . [प्रतिच्छाया श्लो. श. का. श्लो. | श. का. श्लो. ९५ प्रक्रिया ३ ४०८ प्रज्ञा २ २२३ २६४ प्रवण ६ ४४ , ३ १८६ २९४ प्रक्वाण , , प्रज्ञात ४०३ प्रक्षर ४ ३१७ प्रज्ञ ३ १२० ३८६ प्रक्ष्वेडन ३ ४४३ प्रडीन ४ ३८४ प्रखर प्रणति ६३ प्रख्य ६ ९८ प्रणय ३ ५२ १०३ | प्रख्यातवप्तृक३१६६ । प्रणयिनी ., . १८० प्रगण्ड २५५ प्रणव १६४ ६३। प्रगल्भ ७ प्रणाद६ ३९ प्रगल्भता २१३ | प्रणाय्य ३. १५५ प्रगाढ ७ प्रणाली . " प्रगुण ९२ प्रणिधान . ६ १४ प्रगे " १६९ प्रणिधि ३ ३९७ १७३ २ १३ प्रणिपात .६ १३९ ३. ४७० प्रणीत ३ .७७ प्रग्रीव. " .४९० प्रघण प्रणेय , ९६ प्रघाण प्रतति ४ १८३ प्रघात प्रतन ५९८ प्रचक्र , ४५४ प्रतल ३ २६० प्रचलाक ४ प्रतानिनी ४. १८४ प्रचलायित ३ . ११६ प्रताप ३ ४०४ प्रचुर ६ ६१ प्रतारण । ९८ प्रचेतस २ १०२ प्रतिकर्मन् प्रच्छदपट ३ . ३४० प्रतिकाय प्रच्छदिका " १३३ प्रतिकाश प्रच्छादन , ३३५ प्रतिकूल , १०३ प्रजन ४ ३४० प्रतिकृति " ११४ प्रजनन " १६५ प्रतिक्षिप्त ३ " २०७ " ६ ५६३ प्रजाता , २०६ प्रतिग्रह ३ ४११ १२ प्रजाप ३ ३५४ प्रतिमाह " ३४८ ७४ प्रजापति २ १२६ प्रतिघ २ २६३ २५४ प्रजावती ३ १७८ प्रतियातन ३ ३४ १४५ प्रज्ञ . " १२० प्रतिच्छन्द ६ ९९ १४६ प्रज्ञप्ति २ १५३ प्रतिच्छाया " " (४३६) प्रकाण्ड प्रकाम प्रकार प्रकाश , प्रकाशित प्रकीक प्रकृति ३८१ प्रजा m प्रकृष्ट प्रकोष्ट प्रक्रम ३ Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२५ NEPAL AccuWwton cm: 0 .९० ५४२ प्रतिजङ्घा ] मूलस्थशब्दसूची [प्रबोध श. का. श्लो. श. का. श्लो.. श. का. श्लो. प्रतिजङ्घा ३ २७९ । प्रतिश्रय ४ ६६ प्रत्याहार १ ८३ प्रतिजागर .६ १५४ प्रतिश्रव २ १५२ . " ६६० प्रतिज्ञा २ १९२ प्रतिश्रुत् ६ ४६ प्रत्युत्क्रम , १४६ प्रतिज्ञात ६ १२४ प्रतिश्रुत " प्रत्युत्पन्नमति ३ प्रतिताली ४ ७२ । प्रतिष्टम्भ " प्रत्युपस् २ . ५३ प्रतिदान ३ प्रत्यूप प्रतिष्ठ ५३४ ३६ प्रतिध्वनि ६ ४६ प्रतिसर ३ प्रत्यूह प्रथन २३८ प्रतिनप्तृ ३ . २०८ प्रतिसर्ग २ प्रथम २५ प्रतिनादविप्रतिसीरा ३ प्रथित धायिता १ ६५ प्रतिसूर्य ४ प्रदर प्रतिनिधि प्रतिहत ३ प्रतिपन्न प्रतीक प्रदिश , प्रदीप प्रतिपद् २ ६१ प्रतीक्ष्य " प्रदीपन २६२ " २२३ प्रतीची प्रदेशन ५० प्रतिपन्न ६ १३२ प्रतीचीन प्रदेशिनी प्रतिपादन ३ ५० प्रतीत ६ १२९ प्रतिबद्ध " १०३ प्रतीप प्रदोप " १०१ प्रतिवन्ध १३४ प्रतीर ४ प्रद्युम्न १४४ प्रतिबिम्ब , ९९ प्रतीहार ३ ३८५ प्रद्योतन प्रतिभय २ २१६ प्रतीहार ४ प्रद्राव प्रतिभा , २२३ प्रतोद ३. प्रधन ४६१ प्रतिभान्वित ३७ प्रतोली ४ प्रधान ३८४ प्रतिभू " ५४६ प्रत्न प्रतिम . ६ ५८ प्रत्यग्र प्रधानधातु २९४ प्रतिमा .., ९९ प्रत्यग्रथ ४१९ प्रतिमान . ४ प्रत्यञ्च २९३ प्रपञ्च प्रत्यनीक ३९२ प्रपद प्रतिमुक्त ३ प्रत्यन्त प्रपा प्रतियातना ६ .९९ प्रत्ययित प्रपात प्रतिरूप ." १०० प्रत्यर्थिन् । " ९८ प्रतिरोधक ३ प्रत्यवसान " १४४ प्रतिलम्भ ६ प्रत्यवस्थातृ " ३९२ प्रपितामह प्रतिलोम , १०१ प्रत्याकार " प्रपुन्नाट २२४ प्रतिवचस २ १७७ प्रत्याख्यात ६ १०९ प्रपौत्र प्रतिवसथ ४ २७ प्रत्याख्यान २ प्रफुल्ल ५९४ प्रतिशासन २ १९१ प्रत्यादिष्ट ६ ११० प्रबुद्ध प्रतिशिष्ट ६ १२८ प्रत्यालीढ ३ ४४१ " प्रतिश्याय ३ १३२ | प्रत्यासार " ४११ | प्रबोध २३३ (४३७) :: ७४ प्रधि Succwwcom .commam: .९९ २८१ ४२० ३९८ ४६४ ३९३ ४५ IHAR १५६ २०८ "ccccc ५ ३ Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रभञ्जन] प्रस्तर श. का. ४ प्रभञ्जन प्रभवप्रभु प्रभा अभिधानचिन्तामणिः श्लो. श. का. श्लो. श. का. १७२ प्रयोजन ६ १५० प्रशमन ३ ३२ प्ररोह ४ १८४ प्रशस्यता १ प्रलम्बभिद् २ १३८ २ प्रलम्बाण्ड १२१ प्रश्नव्याकरण, -११ गलय प्रश्रित , ३ - १४ १०४ श्लो. ३४ ६८ १७७ १५८ ९५ प्रश्न प्रभाकर प्रभात प्रभाव प्रभावनी W cm २०३ ::m rr mmm प्रलाप प्रवण प्रवयण प्रवयस प्रवर प्रान्न २८६ | प्रवर्ग m car An: : २०५० ५५५ २ ३. २७३ प्रसह्य :: : : : प्रष्ठौही . ४ ३३२ प्रसन्न " १३७ प्रसन्ना . ३ प्रसभ प्रसर . १५९ प्रसल २ . ७० प्रसव १९१. प्रसव्य २७३ १७५ १० प्रसादन प्रसादना ३ . १६० प्रसाधन ३०० ५२ ३५ प्रसार ४५५ १५७ ग्रेसारिन् ५४ १५३ प्रसित ४९ प्रसीदिका. ४ १७९ २२१ " ४ २९९ प्रसूति ३ २०६ प्रसूतिका " २०३ प्रसूतिज ६ . प्रसून ४. १९० ३४४ प्रसृत २६२ ४२४ प्रसृता २७८ २३८ प्रसूति २६२ प्रसेवक ५९ " ५७६ २५३ प्रस्कन्न , ४७० १८४ प्रस्तर ४ १०१ (शनि.) " ___३९९ प्रवर्ह प्रभूत ६१ | प्रवह प्रभूष्णु प्रवहण प्रभ्रष्टक " ३१६ प्रवलिका प्रमथ प्रवाच प्रमथन ३४ प्रवाल प्रमथपति ११३ प्रवाल प्रमद २३० प्रमदवन प्रवासन प्रमदा प्रवासिन् प्रमनस प्रवाह प्रमय प्रवाहिका प्रमाद प्रविदारण प्रवीण प्रमापण प्रमीत प्रवृत्ति प्रमीला प्रवृद्ध प्रमुख प्रवेक प्रवेणी प्रमोद प्रयस्त प्रयाणक प्रवेल प्रयाम प्रवेश प्रयास २ २३४ प्रवेशन प्रयुत ५३७ प्रवेष्ट प्रयोग ६ १४६ प्रशंसा 0 " प्रसू १७४ mmm.wm mrarmr m.rrm or Mcn: :mcm.mccc प्रमह ३ प्रवेत CM : २०५ ४ ३ २ (३८) Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तार ] श. प्रस्तार प्रस्ताव 99 ६ प्रस्तावौचित्य १ प्र स्थ ३ ४ प्रस्थान ३ प्रस्थापित ६ स्फोटन ४ +7 प्रस्रवण प्रस्त्राव प्रहत प्रहर प्रहरण 91 का. ४ २ प्रहि प्रहित " प्राग्रहर प्राग्वंश प्राघुण ** 39 ३ 3 २ प्रहर्षुल २ प्रहसन २ प्रहेलिका प्रह्लाद प्रह्व प्रांशु प्राकाम्य प्राकार प्राकाराग्र प्राकृत प्रागल्भ्य प्राग्ज्योतिष ४ ६ ३ 99 ४६० ३१ १९८ प्रहस्त ३ २६० प्रहासिन् २ २४५ ४ १५७ ३ 39 "9 ६ २ ४ 32 मूलस्थशब्दसूची लो. श. का. १७७ प्राघुर्णक ३ १६८ प्राङ्गण ४ १४५ २ ६ २ *1 ६७ 20 m ५५० १०१ ४ ३ प्राञ्च 99 ४५३ ४ १२८ प्राचीनवर्हि २ ८३ | प्राचीनावीत ३ ८४ | प्राचेतस ९५ प्राच्य १६२ प्राजन २९७ प्राजापत्य ९ प्राजितृ ५९ प्राज्ञ ६१ । प्राची प्राचीन ४३७ प्राज्ञा प्राज्ञी प्राज्य 99 प्राञ्जल प्राविपाक ४७ प्राणावाय ३ ५९६ | प्राणिद्यत १७३ प्राणेशा २२ प्रातर् प्राण 95. " प्राणतज प्राणद " 99 ४ 20 ३ w ४४३ ६ १२८ २ १७३ ३ ३६३ ४९ प्राणयम ६५ प्राणसमा ११६ | प्राणहिता ४६ प्राणायाम १ २ ३ 39 " 99 $ "9 ७ ३ 29 ४ 91 ६ २ ३ ४ १ ३ 33 ६ ७४ प्रातराश ३ क " ६२ | प्रातिहारिक १६३ | प्राथमकल्पिक १ ( ४३९ ) श्लो. श. १६३ प्रादुस् ७० प्रादेश प्रान्तर ८२ १७१ ८१ ८२ ४८ ८५ ५०९ ५१० १८ | ५५७ ३५९ ४२२ ५ १८६ 99 ६१ ३९ ३८४ ४६० १२९ १७४ प्राप्त " प्राप्तरूप प्राप्ति प्राभृत प्राय 99 प्रालम्ब प्रालम्बिका प्रालेय प्रावरण प्राचार प्रावृष् प्रास प्रासक प्रासङ्ग प्रासङ्गथ प्रासाद प्रासिक प्रिय ३ ७ प्रियंवद २८५ | प्रियक १३६ प्रियङ्गु ८३ "" १८० प्रियमधु ५७९ प्रिया ८३ प्रोगन १६२ प्रीति १५२ १७९ प्रीतिद १६९ 99 ८९ प्रज्ञा ५८९ प्रेङ्खा ७९ 93 का. ६ ३ ४ ३ ६ ३ २ ३ 99 99 ६ ३ 39 ४ ३ 59 २ ३ ३ 99 ४ 99 ३ ६ ३ ४ 99 33 २ ३ ६ २ ६ २ ६ २ ३ ६ i प्रेङ्खा श्लो. १७५ २६९ ५१ ४०७ १२६ ५ ११६ ४०१ २२९ ५०७ १६५ ३१६ ३२९ १३८ ३३५ ३३६ ७१ ४४९ १५० ४२१ ३२७ ५९ ४३४ ८१ १५ २१० २१५ २४२ १३८ १७९ १३८ २३० १३ २४५ १२२ २२३. ४२२ ११७ Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (बह का. प्रेखित श. प्रेसित प्रेङोलन प्रेलोलित का. ६ , " अभिधानचिन्तामणिः . . श्लो. श. का. श्लो. | श. ११६ प्लीहा ३ २६९ केरण्ड ११७ प्लत ४ ३११ फरव ११६ | " " ३१४ एकरु । ३७ प्लुष्ट ६ १२२ : फेला प्सान : प्रेत प्रेतगृह प्रेतपति प्रेतपन प्रेत्य २ ९८ | फट फण फणभृत् १३ फणिन् फल बक वकनिषूदन ३. ३.२ वकोट ४ - ३९८ वकुल " २०१ . प्रेमन् । ५३३ वङ्ग m : , ३. २०४ ११८ प्रेयसी प्रेषित गेष्टा . प्रेष्य प्रोक्षण प्रोजासन प्रोत ३ , . : २४ ४९४ बदरी बधिर बद्ध बन्दी बन्ध " फलक , ." १७० २२८ ३ १४७ ४४७ १८०. ३३१ १६२ १२३ बन्धक ५४६ ३०९ १९२ प्रोथ प्रोष्टपदा प्रोष्ठी प्रौढ बन्धकी बन्धन २९ ૧૦૨ ४१२ ३४० फलभूमि ४ फलवत् ॥ फलवन्ध्य " फलादन फलावन्ध्य फलिन् । फलिन फलिनी फलेग्रहि फल्गु ४०१ १८२ वन्धनग्रन्धि ३ १३१ ५९५ २२५ बन्धु २१४ प्रौढि प्रौपद प्लक्ष वन्धुजीवक ४ बन्धुता ६ बन्धुर . " २१५ ५८ ६८ १९७ ८० प्लव १०४ ::::::w mom orm २१५ १५३ फाणित फाण्ट फाल फाल्गुन बन्धुल बन्धूक बन्ध्या बप्पीह ३९५ प्लवग ४ ३६८ ३५८ फाल्गुनिक २ फाल्गुनीभव" ___१९३ ३५७ फेन १४३ ४२० फेनिल , २०४ | (४४०) प्लवङ्गम बर्ह " ४ " १८९ ३८६ Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५ बाल्य २९३ २५३ ३६१ m : सम्भव बहल बहिःशुष्मन् ] मूलस्थशब्दसूची [बीजवर श. का. श्लो. । श. का. श्लो. | श. का. श्लो. बर्हिःशुष्मन् ४ बष्कयिणी ३ ३३३ बालक्रीडनक ३ ३५२ बहिण , " ___३८५ बहिर " ७३ बालमूषिका ४ ३६७ बर्हिज्योतिस्, १६५ वहिश्वर , ४१८ बालसन्ध्याभ६ ३२ बहिर्मुख २ बहिस ६ बालिका ३ . ३२० बर्हिस् ३ ४८४ बहु " वालिनी २ २२ बालिश बहुकर बाष्प २२१ बहुकरी १६८ बहुगीवाच बाहु बहत्वक ४ बाहुत्राण " बहपाद . ३ बाहुदन्तेय २ ८६ वहप्रेज ४ बाहुदा ४ ५५२ बहुप्रद बलदेव २ ४ वहमार्गी ३२६ . बाहुभूषा ४ ३ बलभद्र वाहुल बहुमूत्रता बलवत् ६ १७१ ३ ४३३ बहरूप ३११ ५२७ बला बलाक बाह्याराम ४ १७८ बलाका बिडाल ३ ३६७ बलाङ्गक २ ७० बिडालक ४ १२४ बहला बलाटं ४ बिडौजस २ ८५ बहुवर्णपुष्पबलात्कार . ३ . १५५ वृष्टि बिभीतक बलाश" . १२६ " २११ बहुविध ६ बलाहक : २ . ७८ बिम्ब बाढ " . . ४ ३७७ बिम्बि गण . " ३९९ विलेशय २ १३५ बाणपुर बिल्व २०१ ३ १११ बाणमुक्ति बिस बाणासन बिसकण्ठिका ३९९ ४०९ बादर बीज २९३ ६ १४९ बाधा बीजकोश ४ २३१ बान्धकिनेय बलिभुज बीजकोशी , १९६ बान्धव बीजपुष्पिका " २४४ बार्हस्पत्य बीजपुर बलीमुख ॥ ३५८ " १६ बीजरुह , २६७ बलीवर्द , ३२३ | ४ २८५ । बीजवर " २३७ (४४१) ccc . बिन्दु P : २५१ M m २३१ : : वलिन् ml बलिवेश्मन् ५ बलिश ४ १८५ २१६ बाल Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ब्रीजसू] अभिधानचिन्तामणिः . . श. का. बीजसू ४ श्लो. । श. का. ३ बोधिसत्व २ ३५ बोल श्लो. | श. १४६ | ब्राह्मण्य ब्राह्मी बीजाकृत . बीजिन् बौद्ध ३७७ बीज्य बीभत्स अध्न २०९ ब्रह्मच ३७४ " २८७ बुकन बुक्कस बुद्ध " बुद्धि बुद्धीन्द्रिय ६ बुद्बुद बुध .m.rm.ur mrrrurrm um.. ' ५८५ २६२ २७३ बुधित बुध्न ५१९ m no १३५ २५० बुभुक्षा बुभुक्षित बुलि २७३ १५७ २१७ ११४ ४६९ ६ ब्रह्मज ब्रह्मत्व भक्त ब्रह्मदत्त भक्तकार ब्रह्मन् भक्ति भक्षक भक्षण ब्रह्मपादप ४ भक्ष्यकार " ब्रह्मपुत्र भग ब्रह्मपुत्री ब्रह्मबन्धु भगन्दर ब्रह्मबिन्दु ५०३ भगवत् ५६ ब्रह्मभूय ५०५ ब्रह्मयज्ञ भगवत्यङ्ग २७६ ब्रह्मरात्रि . ५१५ भगिनी २४८ ब्रह्मरीति ४ भग्न ब्रह्मवर्चस् ३ भग्नविषाणक ४ ब्रह्मवर्धन ४ १०६ भङ्गः . " ३३६ ब्रह्मवेदि , भङ्गा २०३ | ब्रह्मसम्भव ३ ३५९ ३३ ब्रह्मसायुज्य ५०५ भनय ११४ ब्रह्मसू २ १४४ भजमान २५ | ब्रह्मसूनु ३ ३५८ भट १६३ ब्रह्माअलि " ५०२ ३७३ ब्रह्मावर्त ४ १५ भटिन " ३२ ब्रह्मासन ३ ५०२ भट्टारक २ ५४१ ब्राह्म(अहोरात्र)२ ७४ ४७९ | " (तीर्थ)३ ५०४ भट्टिनी , ४५८ ब्राह्मण " ४७५ भदन्त ॥ १९७ ब्राह्मणी ४ २७३ भद्र २५, " " ३६५ । " (४४२) - ५०२ ३२५ बंहित वृहत् बृहतिका . ६६ ३ बृहती ४०७ m बृहतीपति बृहत्कुक्षि बृहद्गृह बृहद्भानु बृहन्नट बृहस्पति बेडा ४२७ ५९८ ७६ : m " ३ ४ , ३ २ " " , ४ १ २४७ .२५० बल्व २४८ २४९ बोधकर बोधितरु बोधिद ८६ Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भद्र w १९९ २८९ x ४ श. का. ४ " . " भद्रकुम्भ भद्रकृत् भद्रपर्णी भद्रवाहु भद्राकरण ३ भद्रासन " भपति भम्भासार ३ भय भयङ्कर भयद्रुत भयानक मूलस्थशब्दसूची [भिक्षुसंघाटी श्लो. । श. का. श्लो. । श. का. श्लो. २८४ भल्लूक ४ ५४९ ३५५ भार ३२३ भव २ ११२ भारती २१५५ ३८२ भवतु भारद्वाज भवन | भवनाधीश २ भारयष्टि | भवानी " भारवाह भारिक ५८७ भवानीगुरु ४ ३८० भवान्तकृत् २ भविक भार्या १७७ भवित भर्यापति १८३ भविन् भाल २३७ भविष्णु भालश भषण भालूक ३५५ २०८ भाल्लूक २१६ भसित ३ भाव भस्त्रा भस्मन् भार्गव ३७६ ___.२१५ Norm umr ११० २१७ m :: भयावह भर भरण भरणी भाव भा भाग भरणी भरत भागधेय भावना भावित wwwr mor भावुक २४६ r भाषा १५५ १९९ : " . ४ भरतपुत्रक २ भरद्वाज ४ भात . ६ भरुज ..४ भरूटक ३ १५५ १६८ १४. : ४०४ भाषित भाष्य भास भास भास्कर भास्वत् भिक्षा भर्ग भागिनेय भागीरथी १२ भाग्य २४२ भागीन ४ भाजन भाण ३५३ भाण्ड भाण्डागार भाद्र २३ भाद्रपद भाद्रमातुर ३ भानवीय " २४७ भानु २७ , भामण्डल भामिनी ३ ३५५ भार " om Mm:: ११ भत १२ ४७७ २४६ भिक्षु भर्तृदारक २ भर्तृदारिका , भर्मण्या ३ भर्मन् " m. irror ४७१ ४७३ १९६ ३४२ १७४ भिक्षुकी २८ भिक्षुसंघाटी , भल्लुक " Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भित्त] अभिधानचिन्तामणिः . [ भेद २५४ ४४९ C : भिल्ल WWC WW. 05 भीत भीति श. का. श्लो. : श. का. श्लो. । श. का. श्लो. भित्त ६ ७० भुजङ्गभोजिन् ४ ३७० भूमिलेपन ४ ३३८ । भित्ति ४ ६९ भुजङ्गम " ३६९ भूमिस्पृश ३ ५२८ . . भित्तिका " ३६४ भुजशिरस् ३ २५२ भूयस भिदा १२४ भुजाकण्ट " भिदु २ ९४ भुजान्तर " २६६ भूयिष्ठ भिदुर " " भुजामध्य भिद्य ४ १५७ भुजिप्य भिन्दिवाल भुजिया १९७ भूरिमाय । भिन्न ६ १०४ | भुवन भूज " १२४ . भूलता भिया २ २१५ भुवस् १६२ भूषण ३ ५९८ भुवि भूस् भिषज .." १३६ भू. भूस्पृश . ३ १ . भिस्सटा " ६० भूकश्यप २ १३७ भूष्णु ५३ . भिस्सा , ५९ भूघंन ३ २२७ भृकुंस २ २४३ भी २२१५ भूच्छाया २. ६० भृकुटि १ ४३ । । भूत ४४ ९८ भृकुटि २४३ २ २१५ १२६ भृगु ____९८ १०९ भूतग्राम - २७८ २१६ भूतघ्न ४ ३२० " भूतधात्री भीर भूतनायिका २ भृङ्गाराज भूतपति १३ भृङ्गार भीरुक भूतयज्ञ ३ ४८६ भृङ्गारिका ४ भीलुक भूतात्त. " १५५ भृङ्गिन् । भीषण २ २१७ भूति ७६ " भृङ्गिरिटि भीम " २१६ ४९२ भूगिरीटि , भीष्मसू ४ १४७ भूतेष्टा २ ६५ भृतक भुक्तशेषक ३ ४९८ भूत्तम १११ भृति भुक्तसमुज्झित, ९० ३५३ भृतिभुज भुग्न ६. ४७६ मृत्य भूधर ९३ भृत्या भुज " भृश - भुजकोटर " भूप ३ ३५४ भृष्ट ___०७६ भुजग ४ ३६९ भूभृत् " ३५३ भेक ४२० भुजङ्ग ३ १८३ भूमि ४१ भेड ४ ३६९ भूमिका २ २४१ भेद ३ ४०० (४४४) भीम भूदार भूदेव भूध Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ का. भेद भेरी भेल मूलस्थशब्दसूची [मण्डल श्लो. श. का. श्लो. श. का. श्लो. भ्रातृ २२५ मङ्गला १ ३९ २०७ | भ्रातृव्य मङ्गल्यक भ्रात्रीय मङ्गल्या भ्रान्ति मङ्गिनी ५४० १५५ मचर्चिका .६ | भ्राष्ट्र | मजकृत् ३ २८९ भ्रुकुंस २४३ | मजन् २९२ ३०४ भेषज * ع ه ع . م ه و هس भैरव १२० भैरवी भैषज्य भ्रकुटि १८७ २९३ भोक्त १८९ २८३ | कुंस भ्रकुटि ३४७ भोग (-ग अन्तराय) भोग मजसमुद्भव मजा मञ्च मञ्चक मारि मञ्जा भ्रण . २०४ cus ३ ४ ३८१ ३४१ . मञ्जीर ० १४३ " मन्जु मन्जुल मञ्जूषा मठ ६० भोगावती ४ ३७३ भोगावली ३ भोगिन् । ४ ३६९ भोगिनी ३ १८४ भोजन " . ८८ भोलि ४ ३१९ भोंस ६ १७३ भौती - २ भौरिक . ३ . ३८७ भ्रंकुस । भ्रकुटि .. ३ भ्रम . " P9. मणि मकर मकरन्द , मकराकर , मकुष्टके मतिका मख - मखासुहृद् मस्खेततिन् ३ मगध २८० ४८४ २५५ २७५ १२९ ११४ ८८ २४३ ५७४ ...::m Mmm rm rur morn ४५९ २६ ३६३ मणिक मणिकार मणित मणिबन्ध मणीवक मण्ड मण्डन मगधेश्वर ३ १९१ मघवन् ४२७ ३०० भ्रमर भ्रमरक भ्रमरालक भ्रमासक्त २ ४ सघा मघाभव मङ्क्षु २५ मण्डप मण्डल . भ्रमि ५४२ " १३३ ४४१ ८६ भ्रष्ट भ्रातुर्जाया ३ भ्रातृ , १२७ मङ्गल १७८ २ २१४ मङ्गलपाठक ३ (४४५) , ३० ४५८ Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मण्डलान] . . . श. का. मण्डलाय ३ मण्डलाधीश , मण्डलिन् ४ मण्डहारक ३ मण्डित १ मण्डूक मण्डूर मत मतङ्गज ४ मतल्लिका :00 अभिधानचिन्तामणिः . [मनोरथ श्लो. श. का. श्लो. | श. का. श्लो. ४४६ मदिरा ३ ५६६ मधुस्रवा ३५४ मदिरागृह ४. ६७ मधूक ३६८ मदिष्ठा ३ मधूच्छिष्ट ५६५ | मदोत्कट ४ २८७ मधूपघ्न ३२ | मद्गु , ३८९ मधूलक मद्गुर मध्य मद्गुरप्रिया ,, १९ मद्य ५६६ २८३ मद्यपङ्क ५६८ मद्यपाशन ५७१ मद्यबीज मध्यदेश ४ - १७ मद्यमण्ड मध्यन्दिन २ . . ५३ मद्यसन्धान , मध्यम, ३, २७१ मद्र | मधु cetm १०४ : मति मत्कुण मत्त w " w m:: : 00:00 मध्यम मध्यमा w १७० ५६६ १९२ २८० ४४ ४०९ ५९३ ७८ मत्तवारण मत्तालम्ब , मत्तेभगमना ३ मत्य मत्सरिन् , मत्स्य मत्स्यजाल ३ मत्स्यण्डी , मत्स्यनाशन ४ मत्स्यबन्धनी३ मत्स्यराज ४ मत्स्यवेधन ३ मथित मथिन मथुरा मध्यमीय ६ मध्यलोकेश ४ मध्या मध्याह मध्वासव ३ ५६८ मनःशिला ४ । १२५ मनस २ १४३ ५७० ६७ १४५ ४०१ मधुका . मधुकृत् मधुक्रम मधुदीप मधुर्बुम ४ मधुधूलि ३ मधुपर्क मधुमक्षिका ४ मधुर : Cum : मनस्ताल २ १९ मनाक् . ६ १७२ मनित मनीषा मनीषिन् ३ : : सद Wocs : मदकल मदकोहल मदन मधुरा मधुवार मधुष्ठील मधुसारथि २ १४१ मधुसिक्थक ४ २३७ मधुसुहृद् २ ५६७ मधुसूदनी ४ २०७ मनुष्य , १४१ मनोगुप्ता ४ २६४ सनोजवस ३ १४३ मनोज्ञ ६ २५२ मनोरथ · ३ " १२५ १५२ ८१ ९४ २ " ४ ३ मदना Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ &000 " मन्तु ४०८ मय mr : Mr. : We::mcom मलिन १६५ ३९७ मन्त्रिन् " ४६ ५२२ ११८ :: १३० २४८ ५१७ . मन्द ३५ । मरीचिका मनोरम ] मूलस्थशब्दसूची [महती श. का. ___ श्लो. श. का. श्लो. | श. का. श्लो. मनोरम ८. मन्यु मल ५२२ मनोहत मन्वन्तर ११५ मनोहर मलय मनोह्वा ममता मलयज ३०५ मलयु १९९ मन्त्र ३९९ मयु ४०५ मयुष्ठक ર૪૦ मलिनाम्बु ३ १४८ मन्त्र | मयूख २ मलिनी १९९ मन्त्रविद् मलिम्लुच , मयूरक मन्थ मलीमस मरक २३९ मन्थदण्डक मल्ल मन्थनी मरकत मल्लक मन्थर मरन्द मलनाग मरिच ३ . ८३ मल्लि मरीचिः २. १३ मन्थान मल्लिका ४ ९० मद्धिका २१४ मरु ३९२ २१५ मरुत् मशकिन् १९८ मषिकूपी १४८ मरुत्पथ मन्दगामिन् मषिधान मरुत्पुत्र मन्दर मषी मरुत्वत् मसी मन्दाकिनी , मरुदेवा मसूर मन्दाक्ष - २ मरुद्रथ ससृण मन्दार , मरुपिय मस्कर मरुल मस्करिन् ४७४ मकट ३५७ मस्तकस्नेह मन्दुरा " २३१ मन्दोदरीसुत३ 2. मर्त्य मस्तिष्क मन्दोष्ण ममर मर्मस्पृश १६५ मस्तुलुंगक , मर्यादा मह ३४८ मन्मथ १४४ मन्या , १४३ महत् २९५ महती २ २०३ (४४७) :: wwcom मल्लिकाक्ष मल्लिकापुष्प ३ , Mr.0M.rmrom:::::Mrm ::m ३१९ २५९ ४०७ ६८ मन्दिर ..३ मस्तक २३० २८९ : २७६ मर्कटास्य मस्तिक २८९ w मस्तु मन्द्र & २८९ in m मन्यु in २१३ मल Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणिः [ मातरपित महस्] श. महस महाकन्द महाकाल महाकाली का. २ १५३ wwcmoc MAcc ___ २५८ , WW महाकुल ३ महागन्ध महागिरि १ महाङ्ग महाचण्ड २ महाज्वाल ३ महातमःप्रभा ५ महातरु ४ महातेजस् २ महात्मन् ३ महादेव २ महादेवी महाधातु महानट महानन्द महानस महानाद ४ महानिशा २ महापथ ४ महापद्म ११८ ه س २८४ ४५९ ه श्लो. | श. का. श्लो. | श. का. श्लो. १४ | महामृग ४ २८३ महोत्पल ४ २२७ २५३ | महामेत्र २ १४९ महोदय १ ७५ २०७। महाम्बुज ३ ५३८ , ३ ४९७ | महायक्ष १ .४१ , ४ ३९ (पञ्च) महा महोरग ... यज्ञ ३ ४८६ महौषध १२० | महायशस १ ४ . २५२ ३४ | महारजंत ४ . १०९ मा . २ . १४० ३२० | महारजन , २२५ , ६ .. १७५ १०० महारस ३ ८० मांस ३ २८३ ५०० महाराज , , . २८६ .३ महार्थता १ ६६ मांसकारिन , ... २०६ महावस ४ ४१६ । मांसज . . ... २८८ १२३ महावीर १ ३० मांसतेजस् ,, , ३१ ३ . ५०० मांसपित्त ,. २९० ११२ महाबतिन् २ १११ मांसल , . ११३ महाशय ३ ३१ मांसिक ३ ५९४ महाशय्या , ३८० सानिक १२० ११२ महाशालि ४ २३५ मागध ७४ महाशिरः ५६२ समुद्भव ३ ३६० मागधी महाशूद्री , १८६ माघ - ६७ ३५० महासेन . १ .३६ माशिष्ठ ५९ , २ १२२ माठर ५३ महास्नायु ३ । २९५ ३ ५१० महिमन् २. ११६ ३७५ महिला ३ १६८ माढि१७३ महिष १९० १ २७७ ४ ३४७ मागव ३२४ १४६ महिषध्वज २ माणवक ।" ४७७ २७४ महिएमथनी ,, माणव्य ४१४ महिषी ३ माणिक्या ४ । मही४ माणिमन्थ ३८४ महीक्षित ३ ३५४ मातङ्ग ४२६ महेच्छ , महेश्वर ११२ ३ . ५९७ १५४ महेश्वरी ४ ११४ " ४ २८३ ४५५ महोक्ष , ३२४ मातरपितृ ३ २२४ (४४८) م : : ه سم c: wwm माठी " ४३० महावल महाबोज्य ३ महाबोधि २ महाभीरु ४ महामत्स्य , महामनस ३ महामात्र :08 Www : WC: महामानसिका महामुख २ ४ Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __२१३ ५९ ४२ मातृ .१४९ ५४७ 33 मातरिश्वन् ] मूलस्थशब्दसूची [मिथ्यात्व श. का. श्लो. श. का. श्लो. श. का. श्लो. मातरिश्वन् ४ १७३ मान्ध ३ १२६ माल ४ २९ मातलि २ ९० मान्धात ३६४ । मालती मानापितृ ३ २२४ माया ४१ मालतीतीरज, १० मातामह ४०२ मालव माला ३१५ मातुल मायाकार मातुलानी मालाकार मायासत मालिक मायिन् मातुली मालिनी मातुलुङ्ग मायु मालूर २०१ मायर माल्य ३१५ मार मातृमातृ २ माल्यवत् मातृमुख ३ मारजि माष मातृशासित " मारी. १. ६० माषक मातृप्वसेय " २०९ " . , २ २३९ माषीण ४ मातृवत्रीय . मारीवारक ३ ३७७ माग्य मात्रा मारुत १७३ मास माधव मारुति ३ ३६९ : मासर ३ १२९. मार्कव ४ २५३ मासुरी . २४७ माधवक __५६८ । मार्ग २ . २३ मास्म ६ १७५ माधवी ४ १९ माहा ४ ३३५ " : " मार्गण . ३ ५२ माहिण्य ३ ५६. माधुमत " ४४२ माहेन्द्रज २ ७ माधुर्य ३ १७३ ६६. माहेयी ४ ३३१ माध्यन्दिन ६ ९६ मार्गशीर्षी , मितद् . १३९ माध्यम मार्गित १२७ मितम्पच ३ माध्वीक मार्ज १३० मित्र १० मान मार्जन ४ २२५ ३९४ मार्जना ३ ३०० मार्जार ४ ३६७ मित्रयु मानवी मार्जारकर्णिकार १२० मित्रवत्सल " १५४ मार्जिता ३६७ मिथासाकामानस मार्तण्ड २ सन्ता मानसी मार्ताण्ड .. " मिथस ६ १७१ मानसौकस ४ मार्दङ्गिक ३ ५८८ मिथिला १४१ मानिन् २ मार्ष २४७ मिधुन ३ २०२ ३ ३०० मिथ्या ६ १७० मानुष्यक ६ ५२ माल " ५९८ मिथ्यात्व ५ ७३ (४४९) २६ अ० चि० ITIET-41111111. HAI111111111 mm00r..w00 m' #FREE FREEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE ३१ मानव :m Mmm or wrr m मानुष माधि Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मिथ्यामति ] ज्ञ. का. मिथ्यामति ६ मिलित ४ मिश्र "3 ६ मिश्रजाति ३ 99 "" मिष मिहिका मिहिर मीढ मीन 99 मीमांसा मुकुट सुकुन्द " ५५९ मुण्ड "" ४२ १३८ मुण्डक ११ मुण्डन १३१ | मुण्डा १४३ | मुण्डित ४०९ मुद् १६५ मुदिर 99 १६७ मुद्ग मीलित ४ १९५ मुद्दर ३ ३१४ मुद्रित २ ४ २ ६ २ ४ २ मुख 39 "" 99 मुकुर मुकुल मुक्तनिर्मोक मुक्ता मुक्ताकलाप ३ मुक्ताप्रालम्ब " मुक्ताफल मुक्तामुक्त ३ ३ ४ " 99 मुक्तालता " 31 मुक्तावली मुक्तास्फोट ४ अभिधानचिन्तामणिः श्लो. श. मुखयन्त्रण मुग्वर ३ मुखवासन ६ मुखविष्ठा ४ मुखशोधन ६ मुखसम्भव ३ १० मुख्य 99 मुचुटी मुञ्ज १९५ २८४ ४ १०५ | मुञ्जकेशिन् २ ३ 59 95 १०७ सुधा १२९ 9: ३४८ ९९२ ३७८ १३४ ३२२ नि मुनिसुव्रत ४ १३४ | सुर 39 "" सुनीन्द्र मुमृतु मुक्तास्रज् ३ ३२२ मुक्ति 9 ७५ ३ २३६ ४ ४८ मुसटी ४३८ मुरज ३२२ | मुरुण्ड मुषित "" २७० | मुक मुष्कर मुष्टि सुष्टिक ३१६ | मुसल १५ सुसलिन् २७ | मुसली ४०३ | सुस्तक २५ | मुस्ता ४७६ | मुस्तु का. ६ ३ . 22 99 २ 99 99 ४ ३ ४ 33 9 "" 39 99 २ १ २ 99 ४ ६ ३ 99 32 ઢ "" 99 २ ४ 99 99 ३ ( ४५० ) श्लो. श. ७४ | मुहुस् मुहूर्त २६१ २५८ | मूक १३१ मूढ १२२ मूत्र २३० ५८७ 99 १९६ मूत्रित १२२ मूर्ख २३० मूर्च्छा ७८ मूर्च्छाल २३८ | मूर्च्छित ४५० १९५ १५२ मूर्ति १७०! मूर्तिमत् ७६.” मूत्रकृच्छ्र 39 मूत्रपुट मूत्राशय 99 मूर्त ," ७५, ५१ मूर्धाभिषिक्त १४९ मूर्धावसिक्त १३४ २०७ २६ ११९ २७६ १२१ २६१ ५७२ २४३ मूल 99 95 का. ६ २ ३ मूलक 93 ८३ 99 33 ६. " mr : ६ २८ मूर्धन् ३ २९ मूर्धवेष्टन '99 ३ " 99 19 ६. " ३ 99 99 99 २ ४ 99 99 39 PS मूलकमन् ६ मूलज ४ मूलद्रव्य ३ मूलधातु मूल्य 39 19 [ मूषित श्लो. १६६ ५१ १३ १६ २९७ १३४. २७० १३१ १६ ४६५ १२५ " " ८५ २२७ 39 ८५ २३० ३३१ ३५४ ५५९ २७. १८७ २४९ २५६ २६४ १३४ २६६ ५३३ २८४ २६ ५३२ १३८ मूषक ४ ३६३ | भूषा ३६६ ३. ५७२ २६५ मूषातुत्थ ४ २५९ मूषिक ३ ३६६ २६१ मूषित ६ ११८ ११९ Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृग ] ' མྦཝ मृग 99 99 मृगमद मृगया 39 मृगयु मृगवधाजी विन् मृगजालिका ३ मृगतृष्णा २ ४ मृगदंश मृगधूर्तक मृगनाभि ३ मृगनाभिजा 39 मृगपति मृगादन 'मृगारि मृगत सृजा मृड मृडानी मृत 99 का. १ २ मृणाल मृणालिनी मृतक मृतस्नान मृतस्वभोक्त मृति मृत्तिका मृत्यु मृगव्या मृगशिरस् २ मृगशीर्ष ,, मृगाक्षी : ३ ४ ४ 99 ४ ३ 99 vxv: 99 99 99 "> พ 99 99 59 " २ ४ २ श्लो, श. ४८ | मृत्यु २३ | मृत्युञ्जय २८४ मृत्सा ३५९ मृत्स्ना ५९२ |मृद् १५ मृदङ्कुर ३४६ मृदङ्ग मृगेन्द्रासन १ ६१ पत्व ३ ३०० मेघनाद २ १११ ११७ ४- २३१. "9 २२६ ३ ३८ 99 मूलस्थशब्दसूची ४०२ मृद्वङ्ग ५९१ मृद्वीका 99 99 99 मृध मृषा मृष्ट २३ मेखला 33 99 मेघ १७० ३५१ ३५० १२७ मेघगम्भीरघो "" मेघकाल "" ३५६ मृदाह्वया ३०८ | मृदु ३०७ मृदुच्छद ३५० मृदुल ६ २३ ३०८ मृदुलोमक ४ ३६१ १०८ 99 २२२ ३ ४६० ६ १७० ७३ १४९ "2 मेघना का. २ मेघपुष्प मेघवह्न " ५३० मेघवाहन २२९ मेघसुहृद् ३९ मेधाख्य ३७७ मेघागम २३७ मेचक ६ ९८ कलाद्विजा ४ ३ ४ 9. 99 "" ४ 20 99 ४ "1 99 २ 99 ४ ४ ४ २ २ २ १ २ ३ ४ ४ " २ 95 ६ श्लो. श. २३७ मेण्ढक ६ ३ ( ४५१ ) ११० 99 ६ मेथि मेदक 99 मेतार्य ४०७ २०७ १२२ २३ २१० मेदुर ३२८ . ९९ ३६ ७८ ७१ मेदस् "9 मेदस्कृत मेदस्तेजस् २७४ मेदिनी मेदोज मेधा मेधाजित् मेधाविन् मेधि मेध्य मेनजा मेरक मेरु मेलक मेष 39 मेषशृङ्ग ६५ मेषी का. ४ 99 ३८५ मैथिली ११७ | मैथुन ७१ मैनाक १०२ | मेह ३७० मेहन २५० मैत्र २५९ | मैत्रावरुण 93 १३५ मैत्रावरुणि २ १६७ मैत्री ८५ 39 ६ मेनकाप्राणेश ४ २ १ ३ "" 2 ४ २ ३ " ३ ४ ६ २ ४ 39 "" ३ 99 33 "" 22 31 99 2 20 m " ३ ४ ३८६ | मैनाकस्वसृ २ ३३ | मैन्द मैरेय ३ "" 2m " [ मैरेय श्लो. ३४२ ३२ ५५८ ५६८ २८३ २८८ २८७ २८९ ३ १४० २९० २२३ ५१६ ५ ५५८ ७ ९३ १६८. ३६३ ९७ १४४ ३० ३४२ २६३ ३४३ २९७ २७४ Essa ५१० ३७ २७ ३९५ ३६७ २०२ ९४ ११८ 158 ५६८ Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मोक्ष] यशोधर मोघ १०४ श. का. मोक्ष मोक्षोपाय , ६ मोचक ४ मोचा मोटायित ३ मोरट ४ २ ३ ४ मोह मोहन मौकुलि ४ १२८ ४९८ " : ५०९ मौक्तिक मौढ्य . मौद्रीन मौन मौरजिक २ ४ ४९८ ३ मोख्य मौर्यपुत्र अभिधानचिन्तामणिः श्लो. श. का. श्लो. श. का. श्लो. ७५ यक्षेश १ ४२ यन्त्रगृह ४ ६३ ७७ " यन्त्रणी २१९ १५२ यक्षेश्वर २ यन्त्रमुक्त २०० यक्ष्मन् ३ १२७ यन्त्रित , २०२ यजमान ४८१ यम १७२ यजुर्विद , २६० यजुस (वेद)२ २३४ यज्ञ ३ ४६५ यज्ञकाल २ २०० यज्ञकीलक ३ यमदेवता २ २२ ३८८ यज्ञपुरुष यसभगिनी ४ . १४९ २ १३४ यज्ञशेष यमराज यमल .. ६ २३४ यज्ञसूत्र ६० यमलांजन २ १३३ ३२ यज्ञान्त , यमवाहन ४ ७७ यज्ञिय १४९ यमी ५८८ यज्वन् . यमुना , २२६ यत यमुताजनक २ ३२ यतस यति १ ७५ यमुनाभिन , २३० " ३ ४७३ ययु यतिन् १ ७६ यव यत्रकामावसा. यवक्य , ३३ यित्व २ ११६ यवक्षार यथाकामिन् ३ . १९ यवनप्रिय ३ ८४ यथाजात , १६ यवनाल ४ २४४ यथातथ २ १७८ यवनांलज , यथार्हवर्ण ३ ३९७ यवनेष्ट यथास्थित २ १७९ यवफल , यथेप्सित १४१ यवस यद् १७३ यवागू ३ । ६१ यदि यवाग्रज ४९ यदुनाथ १३३ यविष्ठ ३ यदृच्छा यवीयस् , यद्भविष्य ४७ यव्य ११ यशापटह ४२१ यशःशेष ३११ , ४२६ यशस २ १८७ ४१ यन्त्रक , ५७३ यशोधर. १ ५२ (४५२) : - w m मौवी मौलि ३०९ , : : मौहर्तिक म्रक्षण ग्लान ग्लिट म्लेच्छ म्लच्छकन्द म्लेच्छजाति म्लेच्छलुम्ब ४ २६१ om ko www rm :: : १७८ यकृत यक्ष . ३ २ Fac २८७ यद्वद यन्तु यनकर्दम यक्षधूप यक्षनायक १ , Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यशोधर] मूलस्थशब्दसूची ( হাতি क यष्टि यष्ट्र १४० २४१ ४३५ : : ___६० योत्र WWW १४९ २५ ه م " योग س : श. का. श्लो. श. का. श्लो. श. का. श्लो. यशोधर १ यामुन ४ ११७ | योगेश ३ यशोभद्र यायजूक ३ ४८२ योगेष्ट १०७ याव , ३५० योग्या ४ ४५२ यावक योग्यारथ , या योजन , याग युक्त ४०७ योजनगन्धा, ५१२ याचक युग ४२० योजनगामिनी याचनक ५२ , याचना २ युगकीलक ३ ४२१ योदछ १२७ याचितक ३ ५४५ युगन्धर , ४२० योध याच्ा ३ . ५२ युगपत्र ४ २१८ योजल २३४ याज , ५९ युगपाश्वेग , ३२६ योनि २७३ याजक , ४८१ युगल ६ . ५९ . याज्ञवल्क्य युगान्त २. ७५ | योनिदेवता याज्ञसेनी युगान्तर ३ ४२१ । योषा १६८ यात युग्म योषित् यातना ५ युग्य ३ ४२३ यातयाम यौतक युद्ध,निवर्तिन् , यौवत यातुधान यौवन यातूं ३ १७८ युधिष्ठिर , यात्य ५ युवति १५८ यात्रा . ३ . ४५४ युवन् यादःपति २ १०२ युवनाश्च ३०९ यादईश. ४ १३९ १०५ यादस ४ ४१४ यूका यादोनिवास , यूथ यान ... ३ ३९९ रक्तचन्दन ३ ४२ यानपात्र यूथपति , रक्ततुण्ड ४ ४०१ यूथिका रक्ततेजस् ३ २८६ यानमुख रक्तपुच्छिका ४ ३६५ याप्य रक्तफला , २५१ याप्ययान रक्तफेनज ३ २६९ याम. यामक २४ योक्त्र रक्तभव , २८६ यामल योग रक्तलोचन ४ ४०५ . यामिनी ८५ | रक्तवसन ३ । ४७३ यामिनीमुख, ५८ | योगवाही ४ ११ रक्तशालि ४ २३५ यातु ه W : س س २८५ Ans : यूथनाथ ४२८ ३ ४२१ यूपकर्ण Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रक्तश्याम] श. का. रक्तश्याम ६ रक्तसन्ध्यक ४ रक्तसरोरुह , रक्ताक्ष रक्ताङ्क रक्तोत्पल रनईश रक्षस १३२ २ ___१४३ रमा २०१ ४९२ ८० रक्षित रत्तोन रक्षण रङ अभिधानचिन्तामणिः .. [रसनेत्रिका श्लो. श. का. श्लो. | श. का. सो. ३४ / रतकील ४ ३४६ | रदन ३ २४८ रतव्रण | रदच्छद २२८ रतशायिन् , , रन्ध्र ३४९ | रतान्दुक रमण ३ .१८१ रति रमणी , १६९ २२९ २०९ रम्भा ४ २०२ २०१ , ६ ... ४२ रत्न १२९ रन्य , १ १३३ रत्नकर १०३ | रय..३ १५८ रत्नगर्भा १५९ रत्नप्रभा " | रनक ३ . ३३४ ३५९ रत्नमुख्य ४ १३१ १३१ रव . .६ . ३६ रत्नसानु ४. ९८ १०८ रत्नसू , ३ ३४९ रत्नाकर , १४० २४२ ररिन - ३ ५८५ २४२ ३१७ मकलाप ३ . १३५ रथकट्या रथकारक १०९ रथकुटुम्बिक, ४२४ रथकृत् , ५८१ , २८३ रथगर्भक " ४१७ रथगुप्ति ४२२ रथद्रुम रथपाद EE HERE مه.. ع م س ه " रङ्गमातृ राजीव و به " रथ ...Mr murmur10mm Mmmm 0.4rom ... रङ्गावतारक २ रचना : په سم रस ५७८ रजक रजत ه : س २१ रजताद्रि : س रजनी रजनीद्वन्द्व रजस २०८ " २६१ ४५९ रथाङ्ग रसक रजस्वल रजस्वला १९८ रसगर्भ रसज ११९ ४२२ ३४८ रथाङ्गाह रथिक ५९२ ३०६ | " ४६० रथिर रथिन् २४९ रंजन , " रण , स्थ्य रणरणक रणसंकुल , " रसज्येष्ठ ६ २१ रसतेजस ३ २८५ रसना ४७ " २४९ रसनालिह ४ ३६ २४७, रसनेत्रिका, २२८ रथ्या ४६३ | २०० रद ३ रत ३ (e Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रसभव ] मूलस्थशब्दसूची [रुचक का. __ श्लो. का. - श्लो. श. का. ३ २८५ राजबीजिन् ३ ४ ६४ राजमुद्ग ४ , “१० राजयक्ष्मन् ३ श्लो. श. ३७७ २४० गमठ रामा n or m. १२७ " ४७९ ३७६ ३७७ wr श. रसभव रसवती रसशोधन रसा रसातल .रसादान रसायन रसाल रसाला रसित रसोद्भव रसोन ३७० राल रावण रावणि राशि पाय राष्ट्र ३७८ . avas an on: 20: & « naw as wrs : aavat राजवंश्य , गजवमन् ४ राजवाह्य राजशय्या राउत गजसर्प 'गजमर्षप ३ राजहंस राजादन राजाह राजावर्त १७४ ..marr ३७० २४७ ३२२ गसभ रश्मि रहस् ४० रहसि १५१ राजि ४० रहस्य राका रक्तक रिक्थ राजिका गजिल राजीव 00 AMw.mCCC: ८२ १०५ २७४ १५८ " रासस राज्ञी रान्याङ्ग रिद्ध रिपु २४९ ३९२ ३४९ ४६२ राग . . . . २१ ". रिरी रिष्टताति रिष्टि रात्रि 3 राव ३३३ ३३४ r rr me m..:00:m ११४ १५३ ४४६ २६५ ११५ रात्रिचर रीढक रात्रिजा रात्रिञ्चर रीढा रीण रीति राजक . राजदन्त राजधानी राजन् १३२ ११. १२ रीतिपुष्प रा राद्धान्त राध राधा राधावे राधातनय १२० an am: : as m. a wom.: ५. शरी 03:03.0mm १०८ ३५३ ५२७ ११४ १३७ ३७५ राम 3 00: ३ राजन्य 'राजन्यक राजपट्ट४ राजपुत्रक १०९ १३८ रुक्प्रतिक्रिया ३ १३८ रुक्म ४ ३६२ रुक्मिभिद् २ ३६७ रुग्ण ५१२ रुच ३३ रुचक १३२ ५३ | " १४६) Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणिः . [लक्ष्मीपुष्प श. श्लो. श. का. श्लो. श. ७८ रोलम्ब २९ रोप ६७ रोषण रोह का. ४ २ ३ ४ श्ली. २७८ २१३ ५५ १८४ रेवती रेवतीभव रेवतीश रेवन्त रेवा : रुचिर रुच्य : 00 WMW रोहगद्रुम ज रोहिणी २ . २३ रेषण ". . . , " . ३ . १५३ .३१ " रुपड ... cum रवतक ४ ३३१ रोहिगीपति २ . १८ रोहिणीसुत ,, .. ३१ रोहित . , . : ९३ ४३ रैवतक ३८ रोक ११२ रोग रुदित :: . ३ रोहिताश्व .: रुद्रतनय रुद्राणी रुधि रुमा रुमाभव ३ २ ४७९ ७० , ४ २ १०८ : . १३६ ५७ रोच्य १०९ १०९ रौद्र १२६ १३ रौद्री रोमक रौहिणेय .५ रौहिष २४ ३५९ रोगहरिन् रोचक रोचन रोचनी रोचिस रोचिष्णु रोदन रोदस रोदसि रोदसी . १८३ रोधस् :: Namo nce रुशती १३८ २ ४ , ४ २५७ :: ३६० रुषा रुहा रूक्ष १६२ १४३ ३ १८० रोधोवक्रा १२९ रोध्र 0 ४५१ :: २२५ ४४२ रा 0 00:00 MWC : रूडव्रणप्रद रूप रूपतत्त्व रूपाजीवा १९७ रोमगुच्छ ३ रूप्य १०९ रोमन् ११२ रूप्याध्यक्ष ३. ३८७ रूषित रोमविकार १७३ रोमश ४ रेचितं ४ ३१४ रोमहर्षण २ , ३६ रोमाञ्च , रेणुकासुत ३ ५१२ रोमावली ३ रेतस , २९३ रोमोद्गम , " ::: रोमलता & 0 लक्ष्मण ३८१ २८३ २९४ लक्ष्मणा २१९ ३४२ | लक्ष्मन् २१९ , २७० २२० । लक्ष्मीपुष्प ४ | लक्ष्मी PE cms १३० Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लक्ष्मीवत् ] श. का. लक्ष्मीवत् ३ लक्ष्य "," लगुड लग्न लग्नक घमन् लघु = लघुहस्त लङ्केश 99 लङ्घन "" लज्जा ਨਜ਼ लक्षिका लट्वा लता 139 20 ललाट ललाटिका २ ललामक ललित ३ २ ६ w w ६ ३ ३ " " ४ ५४ लज्जाशील ३. लज्जित ६ १२० ३. ४०१ १९७ 39 २ २२५ "" 2.08.20 m " ४ २२५ 99 ३ ४ ३. श्लो. श.. २१ लव ४४१ ४४९ ३० ५४६ ११६ ६३ १०६ MYw 39 29 मूलस्थशब्दसूची "" १८३ १८५ "" २१३ " लपन २३६ लब्ध १२६ लब्धवण ५ लभ्य ४०७ 39 लाला -लम्पाक ४ २६ लालाविष लम्बक ३ लम्बोदर २ लम्भन ६ लय २ २०६ लास्य ललन ३ २२० लिक्षा ललना "" १६९ लिङ्ग ललन्तिका ३ ३२० लिङ्गवृत्ति २३७ | लिपि ३१९ लिपिकर ३१६ लिप्त "" ३ १७२ लिप्तक 99 लवङ्ग ४३६ लवन ३६३ |लवित्र ३७० लवण लशुन १३७ लस्तक ३१४ | लहरी लाता 56 लाङ्गल लाङ्गली लाङ्गलिक लाङगुल लाजा लान्छन लान्तकज लाभ का. २ ३ ६ २४९ लालाखाव १२९ लालिक १५६ लावण 2 20u लावारि ४ ६ ३ .४ ३ ४ 29 w . ३ ४ ६ 20 ३ 99 99 ३ 99 ३ ( -ग अ नराय) १ लालसा ३ 99 ४ 99 ३ २ 20 m २५२ ४३९ लूता १४२ लून ३४९ ५५४ ४ २१७ २६५ ३१० ६५ २० ४ ३ 29 99 22 श्लो. | श. I w m ५० ३६८ ६३ ( ४५७ ) १५७ ३१० ७ 2 ७ ३७९ २७६ 39 २४ १४१ १५७ ५५६ लुलाय लुलित ५३३ लिप्सा लिप्सु लिवि लीला 39 99 लुठित लुब्ध लुब्धक 99 लुमन् लुमविष लेख लेखक लेखा 99 लेष्टु लेह ७२ २०५ लेहन २९७ लोक ११९ ४४३ लेप्यकृत् लेलिहान लेश 39 १४८ लोध का. ३ ३ 19 "" 99 "" ४ ३ 99 ४ ६ ४ ६ ४ 99 २ ३ ६ ३ ४ २ ६ ४ ३ 22 99 ३४९ लोकजित् २ ७५ | लोकबिन्दु १९४ सार २७४ 99 99 लोकालोक ४ लोकेश २ 39 ५२० लोचन 99 ६ mv 20 ३ ४ "" लोपाक लोपामुद्रा २ लोन ३ [ लो लो. ९४ ९३ १४८ १७१ 99 २१९ ३११ ९३ ५९१ ३४८ ११६ २७६ १२५ ३१० ३७८ २ १४७ ५९ ५८६ ३७० ५० ६६ ३६ ८७ ८८ १६५ १ = १४९ १६२ ९७ १२७ २३९ २२५ ३५७ ३७ ४७ Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लोभ ] अभिधानचिन्तामणिः. [वदावद श्लो. ] श. का. ९४ वंशपत्रक ४ २३८ वंशरोचना ४ ३६२ | वंशानुवंशच२९४ | रित २ वंशिका ३ ३ ३७९ | वंश्य , २०. १९८ ३ श. का. लोभ ३ लोभ्य ४ लोमकर्ण , लोमन् ३ लोमपादपुर ४ लोमविष , लोमहतू ४ लोल ६ लोला लोलुप , लोलुभ लोष्ट लोष्टभेदन लोष्टु लोह श्लो. | श. का. • श्लो. १२४ वञ्चन २२० वञ्चित , १०६ वजुल १६६ जुला ३०४ वट ३७७ वटक। वटवासिन् २. १०८ वटारक ..३ ५९२ वटी वटु वट्रकरण ., ४७८ वडवा वडवामुखं , २५ वक्तृ वक्त्र २४९ वक्त्रभेदिन् ६ " ९४ वक्र २ " . ४७७ . वक्रय वक्रवालधि. वक्राङ्ग वक्रोष्ठिका २ F९१ ९५ २११ पर वक्षस् वडवासुत २. वडिश वणिग्मार्ग ४ वणिज् वणिज्या २७७ वङ्क्षण M08 WC: 00:00:: : 00 : 20 & au.. वङ्ग २३ वण्ट ५६ ०८ ७० १५ वण्ड वत्स १०५ वचन ११९ २६६ ३२६ ३३७ ३२६ २८५ १८४ . २६२ लोहकार वति लोहज लोहपृष्ठ लोहल लोहश्लेषण ४ वङ्गःशुल्वज वङ्गारि लोहाभिसार ३ ४५३ लोहित , वचनीयता ३१ वचनेस्थित ३ लोहितक ४ १३० वचस लोहितचन्दन३ ३०८ लोहिताङ्ग २ ३० लोहोत्तम ४ ११० लौकायतिक ३ ५२७ वज्रकङ्कट वज्रतुण्ड वंश २ १६६ वज्रदशन ४ ३ १६७ वज्रशृङ्खला २ २१९ वनिजित् , वंशक्षीरिन् ४ २२० वज्रिन् , वंशज ३ ३७७ | वञ्चक ३ (४५८ १४२ वत्सकामा वत्सतर वत्सनाभ वत्सपत्तन वत्सर वत्सरादि २०६ । वत्सल . ३६९ वत्सला १४५ ३६६ वद १५३ वदन १४५ वदन्य . ८५ वदान्य ४० वदावद वत्सादनी " , . १० Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वध ] श. वध वधू श. ३४ वमन १.६७ वमि १७७ वम्री १७८ वयःस्थ १७६ वयस ५७९ १३५ १७६ ३५२ ३८७ 39 वनमालिन् २ १३१ वनमुद्ग ४ २३९ १६७ वनवह्नि वनव्रीहि २४२ वनस्पति बनाज ," वधूटी वधी वन "" " वनगव वनप्रिय वनाश्रय वनिता वनीपक वन्ध्या वपन वपनी वपा " 99 वपुस् वप्तृ वप्र का. श्लो. ३ 99 वप्रा वत्रीकूट वमथु " "" 99 29 ४ 99 " "" 39 29 " 99 ३ वन्दनमालिका,, वन्दारु वन्दिन् वन्ध्य. 20 m ४ ३ 39 ४ ३ 99 ६ "" ४ ३ ५ ३ 99 99 9 १८२ ३४४ ३८९ ४ ३३२ ३ ५८७ ४ ६६ २८८ ७ १६७ ५१ ३५८ १०७ ४० ४ ३७ ३ १३३ ४ २८९ "" वयस्य वयस्या वर 39 99 29 वरद वरप्रदा वर ७४ वररुचि १३ वरला ४५८ वरवर्णिनी १५२ वराङ्ग 99 वराटक मूलस्थशब्दसूची वरक्रतु वरटा वरण वरत्रा 99 वाराणसी वरारक वराशि २२८ २२० ३१ ४६ | वरिष्ठ वराह वरिवस्या 99 वरुट वरुण " 99 का. ३ १३३ वरूथ "9 99 "" 29 ४ ३ २२९ 22 ४ ३८२ ३९४ १९३ १८० ७५ १५९ ८७ २८१ ३९३ ४६ ६ : 0 २ ४ 99 ३ २ ३ 99 ४ ३ "" 99 ३ ५७९ ४ २९८ 99 ४ 姊 $35 99 श्लो. श. 99 93 ( ४५९ ) २७४ ३ १४४ वरूथिनी वरेण्य ३७ "" ३ ४ ३ १६१ ४ वर्कर 99 वर्ग वर्चस् 99 वस्क वर्जन वर्ण वर्तक वर्तन १८१ ५१६ वर्तनी ३९३ वर्तलोह ८२ वर्ति "" वर्णज्येष्ठ वर्णना वर्णा वर्णिन् वर्णिनी "" १०६ वर्ध ६६ वर्मन ५९८ वर्मित ३ 9 ४३ वर्य २ का. ३ ८३ वर्या १०२ वर्षणा 39 ६ ३ • ४ ६ WWW 99 200 20 + គឺ៖គឺ ៈ ៖ គឺ ៖ ៖ ៖ ៖ ៖ គឺ គឺ ខ ៖ ៖ Ş គឺ គំ៖៖៖ "" ३ 99 ६ २ ४ ३ ४ ३ ४ २३१ 99 २७३ वर्तिष्णु २३१ वर्तुल २७२ वर्मन् ४० वर्धकि १३१ वर्धन ३३६ वर्धनी ४ ३५३ वर्धमान 99 2 m ३ am ६ 20 m ४ ३ 29 020 9 ४ 2 99 "" ६ [ वर्वणा श्लो. ४२२ ४१० ७४ २२० ३४२ ४९ १५ २९८ ३ ४ 99 ३६ ३०८ ३४४ २८ ४७६ १८३ २४१ ४७२ १६८ ११६ ५३ ११६ .३०३ ३३१ ५३ १०३ ४९ ५८१ ३६ ८२ ३० ९० १०७ ४३० "" ७४. १७५ २८० Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणिः . [वाजिन् श. . श्लो. । श. का. वल्वज ४ वश वशक्रिया ६ वशा श्लो. ५३२ .२९५ १०५ س श्लो. श. का. २६० वस्त्र ३ वस्त्रता है वस्वोकसारा रा २ वह : १५ س . ه वर्षकरी वर्षग वर्षपाकिन् वर्षवर MAmr ५४० م वर्षा _cono ه ه ४ ३ , वशिक वशिता वशिर वशिष्ट वश्य वषट वसति سم د م له ४ ७० : " वर्षाभू वर्षीयस वर्मन् वलक्ष वलज . वलभी वलय वलयित वलिन वलिभ वलिर वलीक वल्क वल्कल वल्गा वल्गित ३ ६ ३ ३२७ ११० १२० वसन वसन्त वसा . वसिन् वसु ३ .२ ३ ४ वहन वहल वहा ४. . १४६ वहित्रक ३' ५३९ वह्नि ४ १६३ वह्निकुमार २ - ४ १७४ वह्निबीज ४ . ११० वह्निरेतस २ . १११ वह्निशिख ३. ३०९ ३३० वह्नयुत्पात २ ४० ७० वह्य ३ ४२३ २८८ वाक्पति ३१० ४१६. वाक्पारुष्य ३ ४०२ १४ वाक्य २ १५६ वागीश १२९ वागुरा वागुरिक वाग्मिन् वाङ्मुख २ वाच . वाचंयम वाचस्पति वाचाट ३ वाचाल वाचिक २ : : : : : : वसुक :.:: : वल्गु वल्गुलिका , वल्भन वल्मीक वसुदेव वसुदेवता , वसुदेवभू ३ ५१० वसुधा ४ वसुन्धरा , २४० वसुपज्य १ २०२ वसुमती ४ २ वल्ल वल्लकी वल्लभा वल्लरी वल्लव १७९ वस्त वाचोयुत्ि वाच्य वाज " ३ वल्ली वल्लूर ४ ३ १८८ वस्ति ३८७ | वस्तिमल १८४ वस्तूक ४ २८८ | वस्त्र . ३ (४६०) ३३० वाजिन् । ३ ३८३ ४१५ Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वाजिन् ] [वासन्त मूलस्थशब्दसूची श्लो. श. का. श्लो. श. २९९ | वानायुज ४ ३०१ वार्ड वानीर २०३ वार्णिक का. श्लो. ४९५ श. का. वाजिन् ४ वाजिन वाजिशाला ४ वाञ्छा वाट वाडव om . १४८ १३८ वापी १५९ वार्त वाम " ४८ + १७४ " ५२९ ३९८ " नामदेव ३२३ वामन ८४ २८ | वार्तायन वार्तावह ११८ वार्ताशिन् ६५ वार्तिक ३७ वार्द्धक वाडवेय वाडव्य वाणि वाणिज वाणिज्य " rm..." m m ५२० १७० ५३१ ५२८ वामलूर वामा ८७ १६८/ वार्धानी १७१ / वार्धि ५३८ १५५ १७२ १२४ वायसी २५४ वाल २३१ २९३ २२४ ३१० ३१९ १२९ ३८१ ३१० Mmm : ३६८ ५५५ वाणिनी १७४ वामाक्षी , वाणी वामी ४ . २९९ वाषि वात वायस ३८८ वाधुषिक , वातकिन् ३ वातकुम्भ ४ २. वायु ८३ वालक ४ वातप्रमी ३६१ ४ १७२। वालधि वातमृग वायुभूति १ ३५ वालपाश्या ३ वातरोगिन् ३ १२४ वायुवाह ४ १६९ वालवायज ४ वातापिद्विषु २ . ३६ वार् . , १३५ वालव्यजन ३ वातायन . ४ वार ४७ वालहस्त वातायु , " " 1४५ वालि वातूल . ६ वारटा ४ ३९३ / वालिन् , वात्या , वारण २८३ वालुका ४ वात्सक , वारबाण ४३१ वालुकाप्रभा ५ वात्स्यायन , वारमुख्या १९७ वालुङ्की ४ वादाल'..४ वालूक २ वारला वालेय वाद्य वाराणसी वाल्मीक ३ वाध्रीणस ४ ३ वारि , १३५ वाल्मीकि वान् १९६ वावदूक वानदण्ड वारिज वावृत्त वानप्रस्थ ४७१ वारिवास ३ ५६५ वाशित ४७३ वारीश ४ १३९ वाशिष्ठ ३ वानर ३५८ वारुणी २ २८ वासतेयी २ वानस्पत्य , १८१ , ३ ५६७, वासन्त ४ (४६१) ३ २५५ वारबधू २६३ वादित्र :. ३२२ ५१० :: १२० ४३ २८५ ५६ २३९ Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वासन्त] अभिधानचिन्तामणिः [विडोजस् श्लो. श. का. ३८२ | विचर्चिका ३ | विचारणा २ श्लो. १२८ १६५ ० : विचारित , १११ विचाल ११ विचिकित्सा , ११ ११९ विचेतस ३ . ९९ १९४ विच्छित्ति , . . १७१ १४ विजन ., .४०६ ५४ विजनन विजय , ३८ " . ४२ ३३० ० ___७८ वास ५८२ ० ५५१ . RU श. का. श्लो. श. का. वासन्त ४ ३२० वि ४ वासन्तिक २ २४५ विकच वासन्ती ४ २१३ विकट वासना ६ विकत्थन २ वासयोग ३ ३०१ विकर्णिक ४ वासर __५२ विकर्तन २ वासव विकलाङ्ग ३ वासवी विकसित ४ वासस् विकस्वर ३ वासा २०६ विकाल २ वासित विकासिन् ३ विकिर ४ वासिष्ठी विकुर्वाण वासुकी विकूगिका , वासुदेव विकृत वाषुपूज्य वासू विक्रम वासौकस विक्रय वास विक्रयिक वास्तुक वास्तोष्पति विक्रान्त , वास्त्र ४१८ विक्रायक , विक्रिया २९९ वाह ६ वाहन કરરૂ विक्रष्ट . २ वाहरिपु विक्रय वाहस | विक्लव . " वाहा २५३ वाहित्य | विख्त वाहिनी विगान विक . विक्रयिन् : ४१ , - ३ . ३६२ ." . ४६७ विजयच्छन्द, ३२३. विजयनन्दन विजया १९ विजाता ३ . २०३ विजिल ५३२ विजिविल १५४ विजम्भित ४ १९४ विजल ३ ७८ विज्ञ विज्ञान - २ - २२४ ३ ५६४ विज्ञानमातृक२ १४९ | विट २ २ २४५ विटक ४ ७६ विटप २७७. w w ३४८ ३७१ विखु :: ४९९ विन : 00:/moc w १४६ विग्रह :: " २०० वाहीक वाह वाहिक ३. ४२३ विघस वाह्रीक विघ्न | विघ्नेश ३०९ / विचकिल २५ | विचक्षण com २ ४ ३ ४९८ विटपिन् टमाक्षिक, १२१ विट्चर , २१४ विड . , . ५ विडोजस्. २ : ४ ८ ८५ Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वितथ] मूलस्थशब्दसूची [विमनस वितरण वितर्क : : : ४ ११८ ५०५ : : १४७ १०६ : श. का. श्लो. । का. श्लो. श. का. श्लो. वितथ २ १७९ २ १२६ विपाकश्रुत २ १५८ ५०३ विपादिका ३ १२९ | विपाश १५२ विदि १५६ विपाशा वितस्ति १९ विपिन १७६ वितान १३० | विपुल ४८४ विधुन्तुद | विपुला वितुन्नक विधुवन १५८ विप्र ४७६ वित्त विधूत १११ विप्रकार १०५ १११ विधूनन " ११८ विप्रकृत , १२९ विधेय विप्रकृष्ट ६ विदग्ध विनतासूनु - २ विप्रतिसार " १४ विदर १२४ विनयस्थ . ३ ९६ विप्रयोग विदर्भा ४५ विना १६३ विप्रलब्ध विदारक , १५४ | विनायक २ १२१ । विप्रलम्भ ६ १४७ विदित ६ १३२ , , १४८ विदिता १. ४५ विनिन्द्र १९५ विप्रलाप २ १९० विदिश ३ ८१ विनिद्रब २ २३३ विप्रश्निक ३ १४७ विदु४ २९२ विनिमय ३ ५३३ विप्रिय ४०८ विदुर ३१३ विनियोग ६ १५६ विप्रष४ १५५ विदुल : ४ २०३ विनीत. .. ९५ प्लव विदूषक .२ २४५ विनेय . १ ७९ विप्लुत विदेह .४ १२ विन्दु . ३ १३ विदेहा . , .४१ विन्ध्य ४ ९५ विबुध ९५ २३ विद्ध ..६ १२२ विन्ध्यवासिन्३ ५१६ विभव विद्याप्रवाद २ १६२ वित्र १११ विभा विद्युत् ४ विपक्ष ३९३ विभाकर विद्युत्प्रिय ., विपञ्ची २०१ विभात विधि :..३ ___५३६ विभाव विद्रव विपणि विभावरी विद्रुत ६८ विभावसु विपत्ति ३ १४२ , विपथ ४ ५० विभु विद्वस विद्वेष ३९४ विपद् ३ १४२ विभूति विधवा विपर्यय ६ १३७ विभूषा ६ १४८ विपर्यास विधा . , . विभ्रम , १७२ विपश्चित् ३ ६ , १४८ विधात २ १२६ विपश्यिन् २ १५० विमनस् ३ ९९ (४६३) ४६७ : विबन्ध : ध्या : : : ११५ : विपण २४० : ४ द : १m WC: wwwm : विद्रुम १६६ २३ mmmm Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विमर्शन] अभिधानचिन्तामणिः [विषुवत् . mrm :: " . " ४ ६९ ३४७ __ ९६ २१० - wwwwc0:०० : I TTIHITTT 11" १८१ :r ." २९४ श. का. श्लो. श. का. श्लो. श. का. श्लो. विमर्शन २ २३६ विलोभ ६ १०१ विश्राणन ३ ५१ - विमल २७ विवध ३ २८ विश्रुत ६ १२९ विवर विश्व विवर्ण विमलाद्रि ५९६ विश्वकद् विमातृज विवश १०२ विश्वकर्मन् २ ९६ विमान विवस्वत् ___१० | विश्वकृत् , ". विमुद्र १९५ विवाद १७६ विश्वभू. , , . १५० वियत् विवाह विश्वभेषज. ३ .. ८४ वियात विविक्त ४०६ विश्वम्भर २ १२९ वियोग ६ १४७ विविध ६ १०५ विश्वम्भरा . ४ . . विरति १५८ विवृताक्ष ४ ३९१ विश्वरूप २ . १२९ विरल ६ ८३ | विवेक १ ७९ विश्वरेतस्. , . १२६ विरलजानुक ३ १२० विवोढ़ ३ १८१ विश्वसेन .. १.. ३७. विरह ६ १४७ विश्वोक , १७१ विश्वस्ता ३ . १९४ विरागाह ३ १५४ विश 1.विश्वा ३ ८४ विराटज १३२ | विश्वा ४१ विराव ६ ३६ ; , ५२८ विश्वामित्र ३ ५१४ विरिञ्च २ १२५ विशङ्कट विश्वास ६ १५४ विरिञ्चन , १२७ विशद ३. ७२ विष ४ - २६१ विरिञ्चि , १२५ ૨૮ विण्णता २ २२६ विरुद्धोक्ति ३ १९० विशरण ३ ३४ विषदर्शनविरूढक विशसन , मृत्युक ४ ४०६ विरूपाक्ष विशाख २ १२३ विषधर , ३६९ विरोक विशाखा , २६ विषभिषज ३ १३८ विरोचन विशाय ६ १३९ विषमायुध २ १४१ १६३ विशारण विषमोन्नत ६ १०४ विरोध ६० विशारद | विषय ४ १३ विशाल " ६. २० विलक्ष विशालता ६७ विषयग्राम , ५० विलक्षण ६ १३३ विशाला विषयिन् " १९ विलग्न ३ २७१ २२३ विपसूचक ४ ४०५ विलम्भ ६ · १५५ विशिख ४४२ | विषाण , विलाप २ १८९ विशिखा ४७ , . विलास ३ १७१ विशुद्ध | विषाद २ विलीन ६ १२३ विशेष विषान्तक , विलेपन ३ २९९ विशेषक ३ ३१७ | विषुव . , .६० विलेपी , ६१ विशम्भ ६ १५४ विषुवत् , . , (४६४) २ r : . १५१ Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विष्कम्भ ] श. विष्कम्भ विष्किर विष्टप विष्टर " 99 99 ४ विष्टरश्रवस् २ विष्टि विष्ठा विष्णु ~ "" का. ४ 99 ६ ३ ३ १ "" २ ५. १ faeafoori, विसप्रसूत विसर ६ विसर्जन ३ "" विसार ४ विसारिन्ं - ३ विसृत्वर विसृमर विस्त विस्तर विस्तार 99 "" "" ६ ४ श्लो. श. ६ ८९ | विस्मय ३८२ | विस्मृत १ वित्र ३४८ ४९९ १८० १३२ 99 २ ६ ३ ६ 39 विस्रगन्धि ४ विस्रसा ३ विहग ४ विहङ्ग २९८ विहङ्गम "" ३. ७७ ४ 93 विष्णुगुप्त ३ ५१८ विहस्त विष्णुगृह ४ ४५ विहायस २ विष्णुपद २ विष्णुपदी ४ १४८ विहायसा विष्णुवाहन २ १४४ विहायित विष्वक्सेन १२८ बिहार विश्वव् ६ १६५ विश्वद्र्य ३ 99 विष्वाण विसंवाद "" ६ १५२ | वीक्षापन्न विस ४ २३१ वीजा ३९९ वीच २२७ मूलस्थशब्दसूची ३७ विहङ्गिका ४० २ विहनन - १२८ विहसित १०८ ८८ वि 25 " 22 विहृत ४७ ५० वीणावाद वीत ४१० ५४ १९० " वीतंस वीतदम्भ वीतन ५४८ ६८ वीतराग वीि का. श्लो. श. ६८ वीतिहोत्र ६६ वीथी " विस्तीर्ण विस्फार विस्फुलिङ्ग ४ २६५ | वीध ४२ 29 "" ३० अ० चि० "" 39 ३ 99 २ ३ ४ ३ „ 99 ६ "" ३ 29 "" 9 ४ ,, २ ६ २१७ वीनाह १३१ वीर २८५ २८ १२४ ४ ३८२ वीरपत्नी "" ( ४६५ ) "" " ,, ३ "" ,,(-ग अन्तराय) १ वीर्यप्रवाद २ ११२ | वीवध १७२ ३ ९७ ब्रुक १३६ वृकधूप ४ १४१ वृकोदर वीचिमालिन् १३९ "" वोणा वृक्का २ २०१ वृक्ण ३ ५८८ वृक्ष ४ २९७ ३१८ ५९५ १५४ २५१ 29 ६० १३६ ३० वीराशंसन ७७ | वीरुध् ३८२ १६२ ५० 99 वीरपाणक वीरभार्या २८ || वीरवि प्लावक,, ५७६ | वीरसू २११ वीरहन् वीर्य का. ४ 9 १ १९५ वीरजयन्तिकार वीरणीमूल ४ २२४ ३ १७९ ४६६ १७९ ५२५ २२२ ५१९ ४६५ १८४ ५२४ २ ३ २५ |वृक्षाम्ल २९९ वृजिन m १६४ १९८ |वृत ५९ वृति ७२ "" 99 " "" ४ वीरोज्झ ३ वीरोपजीवक 2 m ३ 39 " " २ mr 2 ४ वृक्षधूप वृक्षभिद् वृक्षभेदिन् " वृक्षवाटी ४ w " वृक्षादन ३ " ६ ४ ३ "" "" ६ 29 "" : 20 w [ वृति ४ ६ १५८ २८ ३० २०८ २९ 99 २१४ २९३ ७२ १६१ २८ ३५७ ३१२ ३७१ २८७ १२६ १८० ३१२ ५८२ ५८३ १७९ ५८३ ८१ १७ ९३ १२० ४८ १५९ Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वृत्त] [वैतंसिक श. वृत्त " का. ३ ६ अभिधानचिन्तामणिः श्लो. | श. का. श्लो. | श. ५०८ वृषाङ्क २ १०९ १०३ ४८० | वेपथु वृषोपगा ४ ३३२ वेमन ५०२ वृष्टि वृष्णि का. ३ २ श्लो. ४४१ २२० वृषी m Mm १२० वृत्ताध्ययनर्द्धि३ वृत्तान्त , २२७ १७४ ४७७ वृत्ति १७१ १०० वृप्य " १४२ वृहती ३. .rmour .८४ mur Amrom Mmm rm :: वेगसर वृत्र १७० / वेणि वेणी २३४ १५३ ३४३ वृथा वृद्ध वृद्धकाक वृद्धश्रवस् वृद्धा वृद्धि वेणुक २९६ "..-१६१ , ५५ १ वेणुध्म ३४ वेतन १८ वेतस ___ , . ११७ वेश वेशन्त . वेश्मन् वेश्या . ३. १९६ वेश्याचार्य २ २४ वेश्याश्रय ४ ६९ वेष २९९ चेषवार वेष्टन २३८ ३१९ ३३२ ३१६ ३३६ वैकटिक वेतस्वत् वेत्रासन ५४४ cm , ३ ३ ३४८ बेनिन वृद्धोक्ष वृद्धयाजीव ३ वृन्त वृन्द वृन्दारक वृश्चिक वृष वद 0. 00 वेदगर्भ ५७४ * = w *. * * = * * www com + sx ww " : वैकुण्ठ १२९ m | वेदना वेदव्यास | वेदहीन वेदान्त वेदिजा वेदित २९ वेदी ४७३ २०५ ९२ वृषण वृपदंशक वृषन् वृषभ ४२८ com_coccow oc W: वैखानस ३ वैजनन , वैजयन्त . २ वैजयन्तिक ३ वैजयन्ती , ४८८ वैजयि , वैज्ञानिक ३ वैडूर्य वैणव ३ . वैणविक , १३१ वैणिक १२२ | वैतंसिक , , ४१४ ३५६ ७ ३ १५९ ३६६ वृषल वृषलोचन ४ वृपस्यन्ती ३ वृषाकपि २ ४ वेधनिका १९१ वेधस् १२९ १६४ | वेधित ५८९ ५८८ ६ Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वैतनिक] श. वैतनिक वैतरणी वैतालिक वैदेह का. ३ ४ ३ ३ वैदेहक Mmm Mm वैदेही ३६७ २०६ १६४ वै ३० m वंध्यत् वोल्लाह , वैनतेय : वौषट् वनयिक ३ व्यसक वैनीतक ४२३ ४२ ३६४ MR वैपरीत्य वैमात्रेय वैमानिक वैमेय ६ ३ २ ३ मूलस्थशब्दसूची व्याहार श्लो. श. का. श्लो. का. श्लो. २५ वैश्रवणालय ४ १९८ व्यवहार २ १७६ १५२ वैश्वानर व्यवाय २०२ ४५८ वैश्वी २ २७ १४५ ५३२ वैष्टुत ३ ५०१ व्यसन ३ ४०३ ५६२ वैसारिण ४०९ व्यसननिवारक" ३७७ ८५ वैहासिक २४५ व्यसनातं " ४५ वोटा १९८ व्यसनिन् ३ ९९ वोरुखान व्याकरण २ वोलक १४२ व्याकुल १०० १३५ व्याक्रोश ४ १९३ • १३५ वोहित्थ व्याघ्र ३५१ १४५ व्याघ्राट ४०६ व्याघ्री २२३ व्यक्त व्याज १३७ व्याडि २१० व्यक्ति १५१ व्याध ५९१ ६ व्यग्र व्याधाम ५३४ | व्यङ्ग ४२० व्याधि २२६ १२६ व्यजन. .३५१ व्यञ्जक व्याधित ३९४ व्यञ्जन १७५ व्यतिहार व्यापन्न .४६८ व्यत्यय व्यापाद , व्यत्यास व्यापादन ३ व्यथक व्यापृत ३८३ २७५. व्यथा व्याप्त १०९ .३९३ व्यध व्याम २६४ १५४ व्यध्व व्यायाम २३४ व्यन्तर २६४ व्यपदेश व्यायोग व्यभिचारिन् २ व्याल २८२ ४४१ व्यय २८८ ८९ व्यलीक ३ ३६९ व्याल हिन् ३ १५२ ४७१ व्यवच्छेद व्यास ५२८ व्यवधा १०३.। व्यवधान " ११४ | व्याहार २ १२५ (४६७) wrm ormur.mmxm ३० ९५ . m वैयाघ्र. " वर . १ १२३ व्यान ९५४ ५३४ mur वैरङ्गिक , वैरनिर्यातन , वैरप्रतिक्रिया , वैरशुद्धि . , वैराट ४ वैरिन् .. ३ वैरोट्या - २ ." वैवधिक . वैवर्य वैशाख س ::wwww : २२१ م १९८ Rm wr:0m mrarm :::: ६७ : س ه س वैशेषिक वैश्य ५२६ : : १३ वैश्रवण : له Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्युत्क्रम ] श. • व्युत्क्रम व्युत्पन्न व्युष्ट व्युष्टि व्यूढ 99 व्यूढकङ्कट ३ व्यूति 99 व्यूह 99 99 ६ व्यूहपाणि ३ व्योकार 39 व्योमकेश २ 99 व्रज्या व्योमन् व्योष ३ व्रज ४ 95 व्रात्य व्रीडा व्रीहि य शंवर 99 व्रण व्रत व्रतति व्रतसंग्रह ३ व्रतादान १ वश्वन ३ व्रात ६ व्रातीन 99 का. ६ श ३ २ ६ शकट 99 "" शकल 5 ४ mr w m ६ ३ ४५३ ६ १३७ ३ १२८ 220 २ 99 २ ४ "" श्लो. श. १४७ शकलिन् ९ शकुन २ ३ ६ ५३ 99 ८२ शकुनि ६६ 99 ४७ ३ १४४ ५१८ अभिधानचिन्तामणिः ४२९ ५७७ ४११ ४७ शकुन्ति ४११ शकुल ५८४ शकुलार्भक शकुन्त ५०७ १८३ ४८७ ८१ ५८४ ११२ शकृत् ७७ ८६ | शकृद्द्द्वार २२५ २३४ ३२ 99 ३ ४ शकुन्तलात्मज ३ ४ ३३९ | शक्त ४७ शक्ति 33 22 शक्ल शकर शङ्कर शङ्का शङ्कु = "" ३ २९८ शकृत्करि ४ ३२६ ३ २७६ "" शङ्कुकर्ण शङ्कुर शङ्ख "" का. ४ १४२ ३५९ ४१० १३४ ४१७ शङ्खनक ७० १ ४ 92 "" शक्तिभृत् २ 99 99 99 29 99 29 शतपदी १५५ शतपर्वन् 99 ३९९ ४५१ शतपर्विका " ४६० शतभिषज् २ १२३ शराहदा ४ शक्र ८६ शताङ्ग ३ शक्रजित् ३ ३७० शक्रशिरस् ४ ३ 99. 95 99 ४ Wa २ " ३ "" ४ 99 हो. ३ 9 २ ३ ४ ४१० २ शङ्खभृत् ( ४६८ ) ६२ शची ३८२ | शचीपति 99 शठ 99 ४०० शठता ३८२ ऋण ४०४ शत ३६६ | शतकीर्ति ३८२ शतकोटि ४११ [ शब्द का. श्लो. शङ्खमुख ४ ४१५ २ ८९ ८७ ४० ४१ २४५ • ५३७ ५४ ९४ ८७ १५०. श. ३७ १५ ३२३ १०९ २२९ शतक्रतु शतद्रु शतधृति शतपत्र 3. शतानन्द 99 शतावर्त शत्रु "3 शत्रुञ्जय शनि ४५१ ५३८ शनैश्वर १८८ शनैस् ३२२ शप १४३ ४८ शपथ शपन १०७ शफ २३८ | शफर २७१ शबर ३७६ | शबरावास २७१ 99 शबल १३३ | शब्द " ३ 99 ४ ३ १ २ "1 ४ २ ४ 39 99 २ ३. २ ३ 99 ४ २ 99 ६ २ 39 99 ४ - १२७ २२७ ३९४ २७७ 99 २१९. ઢ २८ १७१ ४१५ १२५ ५१४ १३० ३९२ ३९६ ९६ ३४ 99 १७८ १७६ " ३१० ४१२ ३ २५९८ 99 ६८ ६ ३४ 99 ३५ 99 Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दग्राम ] श. का. शब्दग्राम ६ शब्दन ३ शब्दाधिष्ठान शम् शम 99 99 शमथ शमन शमल शमी शमीगर्भ 99 शमीधान्य शम्पा शम्ब शम्बर शम्बरारि 99 • शम्या शय शयन 99 शयालु शयित शयु " ६ १ २ ३ २ शय्यम्भव शय्या "" ३ ४ ३ ४ २ शम्बल ३ शम्बाकृत ४ शम्बूक शम्भली ३ शम्भव 9 शम्भु 99 99 99 २ ४ 99 39 २ 99 99 शयनास्पद ४ शयनीय ३ शयानक ४ ३ २ 93 ४ 9 ३ श. शर ५० १२ २३७ शरज ३ १७१ शरण ४ ७६ शरणार्थिन् ३ २१८ | शरद् २ २५५ २१८ शरध ९९ शरभ १७० मूलस्थशब्दसूची 99 २९८ शरभू १९६ ४७७ शरारि १६४ २४७ शरव्यक शरारु 'शराव ३४ | शवं २७१ शर्वरी १९७ २६ शर्वाणी. शल 99 २४ १०९ १२७ ४२१ २५५ . २२७ शलाट ३४६ | शलाटु ६१ शराश्रय ४४५ ९४ शरीर २२८ १३५ शर्करा ६६ १४२. शर्कराप्रभा ५ ३ १५७ शर्मन् ६ ६ २ शलभ शलल " का. ३ ४ शल्क ३४६ |शल्किन् ३६५ शल्य १०६ 39 99 १०७ शल्यक ३७१ शल्यारि ३३ शव ३४६ | शश ३ ४ २ ३ ४ ३ ४ ३ 99 39 99 99 ४ 99 99 शलाकापुरुष ३ 99 99 99 ४ ६ ४ ३ ४ 99 ३ 99 लो. ४४२ ४ ( ४६९ ) २५८ ७१ ५७ १४३ ७२ ७३ | शश्वत् ४४६ | शप्प ३५२ शसन १२३ शस्त ४४१ ४०४ ३३ ९० १०९ ५५ ११८ ३१९ ३६२ २७९ ३६२ 99 श. का. शश ४ शशविन्दु २ शशभृत् 99 शशादन ४ शशिन् .9 शशिप्रिया २ ६ ४ ३ १ ३ ४ शस्त्र 99 शस्त्रजाति शत्रजीविन् शस्त्रमार्ज शस्त्राजीव शस्त्री शाक शाकट "" [ शाणाजीव श्लो. ३६१ १३१ १९ ४०० ४७ २९ १६७ २५७ ४९४ ८६ ४३७ १०३ शाखारण्ड ७० ४१० | शाखिन् ४५१ शाङ्कर ३६२ | शाङ्खिक शादी 99 ३ 99 ३७१ शाठ्य २२८ शाण १२९ | शाणाजीव "" 99 "? ४ २५० ३ ५४९ ४ ३२७ ५४९ ३१ शाकटीन ३ शाकशाकट ४ शाकशाकिन शाकुनिक ३. ५९४ 99 ४ ३२३ ४३५ १५० १८५ शाकर शाक्तीक ३ शाक्यसिंह २ ३६४ शाखा ४ ५४९ | शाखापुर १९६ शाखामृग x x x 99 99 ३ ४ " ३ " 99 ४५१ ४३३ ५८० ५२२ ४४८ 99 99 99 ३८ ३.५८ ५२१ १८० ३२३ ५७४ ३३९ ४१ ५७३ ५८० Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शाणी] अभिधानचिन्तामणिः [शिलोचय श. शाणी शात का. ३ ३ ४४० : ३९२ शातकुम्भ शात्रव शाद शादल शान्त १ २०९ ४७५ : शान्ता शान्ति : Ww::moc Wwwcm शान्तिगृह शाप शाम्बरी शार शारद १ २३५ ९७ : शारि शारिका श्लो. श. का. श्लो.। श. ___ का. श्लो. ३४३ शाल्मलिन् २ १४४ शिक्षित शाव शिञ्जिनी ३ ३३० २० शावर | शित ६ १२० शाश्वत | शितशिम्बिक ४ २४० शाकुल शिति ६ ३३ शासन २ १९१ शिथिल ३ - १५५ शास्त " . १४६ शिपिविष्ट २... ११२ ३ १५२ . . ३.. ११७ | शास्त्रविद् " ११९ शिक्य २८ | शिफा | शिक्षा १६४ » . २३२ | शिक्षित ६ शिबिका | शिखण्डक " २३६ | शिबिर ४ । ३८६ | शिमि . ४. १९६ शिखण्डिक " ३९१ | शिम्बा .. . | शिखण्डिका ३ शिम्बि " शिखर ४ ___९८ | शिम्बिक - २३९ २३८ १८७ | शिरस् ३ २३० १५१ शिखरिन् , ९३ | शिरस्क " २०८ | " " ०८० शिरस्त्राण " ४०२ ___" .४०४ शिरस्य " १५१ | शिखरिणी ३ ६८, शिरोगृह ४ .६१ १३६ | शिखा. " २३५ | शिरोधरा ३ २५० १३३ ४ १६८ शिरोधि . " " १८५ शिरोनामन् ४ १८७ शिखाण्डक ३ २३६ शिरोमणि ३ ३१४ शिखिग्रीव शिरोमर्मन् ४ ३५४ शिखिन् २ ३६ शिल .३ ५२९ | " " १५० शिला४ ७४ ४ १६५ " " १०२ ३४६ | " ॥ २११ २३५ | शिखिवाहन १२२ शिलाजतु " १२८ ९७ / शिग्रु ४ । २०० शिलासार " १०४ ४२० शिग्रक " २५० | शिली . • २६९ २३३ | शिवाण ३ २९६ २९६ | शिलीमुख ३ ४४२ ४२० | शिविनी " २४५ | ___". ४ २७८ ३२ | शिक्षा .. ४४० | शिलोच्चय . " ९३ (४७०) २१४ शारिफल mr १ ॥ शाणभृत् शार्दूल ३५१ " A शालकायनजा३ शाला : : " : शालाजीर शालावृक शालि शालीन शालु शालक ३ ४ " " - शालेय Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 0:00 ५६८ १३० ९८ शिल्प] मूलस्थशब्दसूची [शून्य श. का. श्लो. | श. का. श्लो. श. का. श्लो. शिल्प ३ ५६४ शीतल ६ २१ | शुण्डा ३ ५७० शिल्पा . ४ शीतशिव २९० शिल्पिन् ३ शीधु शुतुद्रि " १५० शिल्पिशाला ४ शीन ६ शुद्धमति १ ५३ शिव १ शीर्णाति २ | शुद्धान्त .३ ३९१ शीर्ष शुद्धोदनसुत २ १५१ १११ शीर्षक शुन ३४५ शीर्षच्छेद्य ३७ शुनासीर २ ८६ शिवकर १ शीर्षण्य शुनि ३४५ ४३२ शिवगति , ५२ ३४७ शील ५०८ शिवकर ३ . १५३ शुन्य शिवताति . " शुक ४ १०१ शिवपुरी ४ ४० शुकपुच्छ शिवा १ ४० शुभसयुक्त ه ३४० Tulle bli... २३४ । ه शुनी ه ८२ م م शुभ س शुभंयु " १ . 30 20000000000000000 ११८ م शुक्ति س ११ शुक्तिज ३५५ م ". शिशिर शुक्र शुम्भमथिनी शुल्क ३ शुल्काध्यक्ष " शुल्व शिशु ५९२ ११९ ३८८ " ५९२ १०५ १२३ २२४ १६१ शिशुकं ६४ शुल्वारि शिशुनामन् ४ . शश्रषा " १५२ शुषिर २०१ शिशुत्व . ३ ३ ४. ३१९ | शुक्रकर शिशुपाल . २ . १३५ शिशुमार. ४ ४१६ शुक्रशिष्य शिशुवाहक , ३४३ शिश्न ३ २५४ शुक्लधातु शिश्विदान . . ५१९ शिष्टत्व . १ . ६६ शिष्टि . २ शिष्य १ ७९ Trm :: ४६० शुक्लापान " __३८६ | शुष्म ३३ ४ २४७ शीकर १०६ / ". " ४ ३०१ २१३ शूक शूकधान्य शूकर शूकल शूद्र २८ | " ७२ शूद्रा ८४ शूद्री ५६७ | शून्य ४७१ ५५८ शीघ्र शीघ्रवेधिन् ३ शीत शात ४ : शीतक ३ शीतल १ २०३ | " ६ १८८ " १७ ४७ शुण्ठी २७ | शुण्डा ३ " ६ ८२ (४७१) Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ! Yy mmy १४२ शैशव शेष ३२० २९५ २. ५६ Flutilesh he is sshitalfill:: ५४ शून्यवादिन् ] अभिधानचिन्तामणिः . [श्राणा श. का. श्लो. श. का. श्लो. श.. श्लो. का. शून्यवादिन् ३ ५२५ शैषच्छेदिक ३ ३७ शौर्य शूर " ४६० शूरदेव १ शैलालिन् २ शौकिक " ३८ शूर्प ८४ शैलष शौल्किकेय ४ २६२ शूर्पक २ शैव शौल्यिक ३ ५७४ शूल ३ ४५१ शैवल ४ २३३ श्मशान ४ ५५ शूलनाशन शैवलिनी श्मशानवेश्मन् ११० शैवाल श्मश्रु ३ .२४७ शूलाकृत श्याम . ६. ३३ शूलिक श्यामक ४ २४२ शूल्य ३ ७७ शोक ___७२ श्यामल २ २१३ श्यामा १. . ४० शोचन शृङ्खलक ३२९ शोचिस " १३ , शृङ्ग __ ९८ शोचिष्केश ४ - १६५ " ४. २१५ शोण ." १५६ श्यामाक .. " २४२ शृङ्गवेरक - २५५ | " . " ३०८ श्यामाग ऋङ्गाट श्याल १४३ श्यालिका " २०८ | शोणितपुर श्याव शृङ्गारभूषण ४ १२७ शोथ श्येत शृङ्गिक " २६४ शोधनी ४ श्येन शृङ्गिण ३४३ | शोधिका ४०० शृङ्गिणी ३३३ शोधित श्रद्धा २०५ शृङ्गी श्रद्धालु ११४ शृङ्गीकनक " ११२ शोफ २०३ शोभन ६ श्रन्थन ३१७ शेखर श्रम २७४ ४५२ शोभाजन श्रमण शेपाल श्रवण शेमुषी २२३ शोषण , शेलु २१० | शौक २३८ शेवधि १०६ | शौच श्रवणा " १९६ शेवल २३३ शौण्ड ३ १०० श्रवस " . २३७ शेवाल शौण्डिक " ५६५ श्रविष्ठा २ २८ शेष " ३७३ | शौण्डीर्य , ४०३ श्रविष्ठाभू " ३१ १ ७९ शौरि २ १३० श्राणा , ३ ३१ (४७२) शोणित २८५ a w mm sa mw mw mw ४१३ ७३ ३१८ शोभा १७३ शेप शेपस् 23 शोष . २७ " शेक्ष Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्राद्ध ] मूलस्थशब्दसूची * श. श्राद्ध का. ३ श्लो. श्लो. श. १५४ श्रेयस का. १ ३ श्लो. श. का. | श्वास श्वासरोधन १ ७५ श्वासहेति २ श्वित्र ३ ८३ ५५ , श्रेयांस १३० श्राद्धकाल श्राद्धदेव श्रान्त श्रावण श्रावणिक २९ श्वेत . ७३ २ ६८ श्रेष्ठ श्रोण श्रोणि ४१२ श्रोत्र ३५१ ६३ २०० पण . १५५ श्रीद १८ २४६ ३७३ ८६ १२४ श्वेतकोलक ४ २३८ श्वेतगज श्वेतद्युति श्वेतपिङ्ग ४ श्वेतमरिच " श्वेतरक्त ६ श्वेतवाजिन् २ श्वेतसर्षप ४ श्वेतहय ३ श्वोवसीयस १ १२६ षट्कर्मन् ३ २१० षट्पदी ४ १८७ षडभिज्ञ ८६ षङ्गव षड्ज षबिन्दु २९० षड्रसासव षण्ड ५९७ , | षण्ढ १२४ ४७६ २७४ १४७ २०१ १३६ २२२ भोमिय श्रौषट श्रीकण्ठ श्रीखण्ड श्रीधन श्लाघा श्लीपद श्रीधर श्लील श्लेष्मण श्रीनन्दन " श्लेष्मन् श्रीपति , श्लेष्मल " श्रीपथ श्लेष्मातक ४. श्रीपर्णी . २०९ श्लोक २ श्रीफल . " श्वःश्रेयस १ श्रीवत्स . २. १३२ श्वजीविका ३ श्वदंष्ट्रा श्रावसभृत् ॥ १३३ श्वदयित श्रीवास ३ ३१२ श्रीवृक्ष ४ १९७ श्वपच श्रीवृक्षकिन् " ३०२ श्वभ्र श्रीसंज्ञ. ३ . ३१० श्वयथु श्रुतकेवलिन् १ ३४ श्वशुर १५५ সুস্থ श्रति , श्वश्रश्वशुर श्वस श्रेणि ५६३ श्वसन ४ श्रेणिक ३७६ श्वासित श्रेणी ६ ५९ श्वान ४ श्रेयस् १ २९ श्वापद " .७४ । श्वाविध , (४७३) .: १२९ २८४ श्वन् :Snacocm ३४६ १७६ 00:00:00 ३२५ ११० २२६ ३९२ २४६ " . षण्ढतिल ४ १६३ षण्मुख २३७ १२३ mocm : ४ । २३४ ३२ :: १७२ षष्टिक षष्टिक्य ३४५ षष्ठवाह २८२ षाण्मातुर ३६२ | षिङ्ग " ३२६ " १२२ २४५ Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षोडत् ] [ सङ्गीत सखि सखी ३९४ श. का. षोडत् ४ षोडषार्चिस २ षोडशावर्त ४ षोढशांहि " ष्टीवन ष्ठेवन ष्ठ्य त " ४१८ सगर्भ १९२० M ६ . संयत् . संयत . संयमनी संयुग २ ४५ १२१ | संसिद्धि . संयोजित संरम्भ संराव संलय संलाप संवत् संवत्सर संवनन संवर अभिधानचिन्तामणिः श्लो. | श. का. श्लो. श. ३२९ संशप्तक २ ४५९ ३४ संशय ६ ११ २७१ | संशयालु ३ १०९ सख्य | संशयित . . सगर ___" ३५६ संशित ६ १२७ " २१५ संश्रव सगोत्र - " २२५ संश्रुत सन्धि संश्लेष सङ्कट. . ६ . १४० संसक्त सङ्कथा - २ . '१८९ ४०३ सङ्कर ४ ८२ १०० | संसद् सङ्कर्षण २ १३८ . ४६३. संसरण सङ्कलित ६ १२१ सङ्कल्प २ . १४३ संस्कार संस्कारवत्व सङ्कसुक ३ . १०१ २२७ । संस्कृत २. सङ्काश १८९ सङ्कीर्ण , १०८ संस्तर " ३४६ १२५ " ५८४ | सङ्कुचित ४ १९५ संस्तव १४९ | सङ्कुल २ १७९ संस्स्याय ६ १०८ संस्था सोचपिशुन ३ ३०९ संक्रन्दन २ ८५ संक्रम संस्थित संस्फोट संख्य - ३ ४६० २३ संहत २७ संहति संहनन ३ २२७ संख्यावत् ३६ २२३ " ५३६ संहार १४४ संहूति १८२ सकल , ' ३ ३९५ सकृत्प्रज सङ्गम सक्तु सङ्गर २ १९२ २०१ | सक्तुक ४ २६४ , . ३ . ४६२ ३३५ सक्थि ३ २७७, सङ्गीत । २. १९३ (४७४) १७१ . ५७ س م संक्राम संक्षेप . संवर्तक " , : سم " संख्या م संवर्तिका संवसथ संवाहक संवित्ति संविद् संवीत संवृत Cww w_anon: 00:0M |संहर्ष __१५१ संख्यय सङ्ग م م संवेग الع १४४ م २२७ संवेश संवेशन संध्यान ___ ३ Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सङ्कीर्ण] का. ६ श. सङ्कीर्ण सगुप्त संगूढ संग्रह له सनि १२१ م س م ६८ س सग्राम संग्राह . م : : .१४४ : संघ संघचारिन् ४ संघजीविन् ३ संघात सचिव सज सजन م س : : : " : सजित ४ س संज्ञ १२०. मूलस्थशब्दसूची [ सन्निवेश श्लो. श. का. श्लो.। श. का. १२५ | सत्त्व सनातन १४८ सत्त्वप्रधानता ७१ सत्पथ सनीड १७१ सत्य २ सन्तत सत्यकार ३ सन्तमस सत्यप्रवाद २ सन्तान २६१ सत्यवती ३ ५११ १६७ ४४८ सत्याकृति , ५३६ सन्ताप १६८ ४८ सत्यानृत ५३१ सन्तापित ६ १२९ ४१० सत्यापन ५३५ सन्तोष १८२ सत्र ४८४ २२२ · ४७ १७६ सन्दंश ३ ५७३ ३८३ सत्रशाला सन्दर्भ ४३० सत्रा १६३ सन्दान ४ ३४० संत्रिन् ३ . ३९८ सन्दानित ३ १०३ ४१३ सरवर . ६. १०६ सन्दानिनी ४ ६५ २८७ सरवरम् , १६६ सन्देशवाच २ ११० सदन सन्देशहारक ३ ३९८ ३५ सदस १४५ सन्देह १७४ | सदस्य सन्दोह " ४७ १२० सदा सन्दाव ३ ४६६ ४८ | सदानीरा ४ १५१ सन्द्राव ___" ४६७ २२७ ६ सन्धा १९२ १८५ सहश सन्धानी ४ . १२ २०९ सहश सन्धि ३ ३९९ ५८ सदेश , सन्धिजीवक, १३९ | सद्भूत २ सन्धिनी ३३३ समन् सन्धिला सद्यस ६ सन्ध्या २ ५४ सद्यस्क समद्ध ४२९ सधर्मन् सजाह सधर्मिणी ३ समाह्य सध्रीची सनिकर्ष ६ १९२ सनिकृष्ट " १२१ सनत्कुमार , ३५७ | सन्निधान , ८६ २३६ सनत्कुमारज २ ७९ सना ६ १६७ सन्निभ ७५ सनातन २ १३० | सनिवेश १५२ (४७५) م : : संज्ञप्ति " संज्ञा २ संजु. ३ संचय .६ संचर . ३ संचारिका, संचारिन् २ संजवन ४ संज्वर सटा . ३ संडीन. ४ سه : : सत् 00:00:00 : : सतत सतत्व सती ४३० २८८ : सध्य : सन्निधि सतीनक सतीयं सत्तम " १ ६ Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सपन] मिति श. का. सपत्न ३ सपत्राकृति ६ सपदि सपर्या सपिण्ड सपीति सप्तकी सप्तजिह्व ४ सप्ततन्तु ३ सप्तपर्ण सप्तर्षि २ सप्तला ४ सप्तसप्ति २ सप्ताचिस " w सबलि २ सब्रह्मचारिन् १ सभा अभिधानचिन्तामणिः [सम्प्रेष श्लो. | श. का. श्लो. श. का. श्रे. ३९३ | समय ६ १४५ ३ १४५ समया १६८ समर ३ समिध ४९१ समरोचित ४ १११ समिर १७२ २२६ समर्थन ६ समीक ३ ४६२ ५७१ | समधुक ३ समीचीन २ १७८ ३२८ समर्याद ६ समीप १६५ समवकार २ समीर ४ १७२ , ४८४ | समवर्तिन् समोरण " १९९ समवाय ६ समुख ३ ३८ समवाययुज २ समुच्चय ६. १६० २१४ समसुप्ति " समुच्छ्रय " ६७ १० समस्त समुत्त " १२८ ३४ समस्थली ४ समुत्पिक्ष ३ ३० समा समुदय ४६२ ५४ | समांसमीना ४ ८० | समाकर्षिन् समुदाय ३ - ४६२ १४५ समाघात ५६ समाज समुद्र ३९५ समुद्र " १३९ समाज्ञा समुद्रदपिता " समाधान समुद्रविजय १. समूर ४ समूह ६ ४७ समूहनी ४ ८२ सम्पत्ति ३ सम्पद् समानोदर्य सम्पराय समापन सम्पातपादव ६ १०६ समालभन सम्पुट समास सम्पृक्त १६५ समाहार सम्प्रति १ ५३ १४८ १६५ | समाहृति २ १७१ | सम्प्रदाय १ ८० ४४१ समाह्वय ३ १५२ सम्प्रधारणा ६. सम्प्रयोग ३ २०१ ४० समित् . " सम्प्रहार , ४६० १५६ । समिता " ६६ । सम्प्रेष . ६ १५६ (४७६) rnorm :: ::wwwc: सभाजन सभासद् सभास्तार सभिक समाधि सभ्य सम ६ ६९ समान ::00 mom cm :: : :.. JILL-11:49 : समग्र समज समज्या समञ्जस समन्ततस ६ समन्तभद्र २ समन्तात् ६ समपाद ३ समम् समय २ " ४०६ Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्फाल ] का. श्लो. श. का. सम्फाल ४ सम्फुल्ल " सम्बाध ६ सम्बोधन २ सम्भाष " सम्भूतविजय १ सम्भोग ३ सम्भ्रम सम्मद सम्म : २ . २३६ cm ४६१ सर्ज सम्मार्जनी ३११ '७१ : ur or १५३ सव सवर्ण १० सम्मुखीन सम्मूञ्जेज सम्मूर्छन सम्मूर्छनोनव सम्मृष्ट सम्यञ्च २ सम्राज सर सरक . . ३ सरघा ४ सरट " सरण . .. सरणि . . " सरमा . " सरल ३ सरलद्रव.." सरस ४ mamurm मूलस्थशब्दसूचो [ सहज श्लो... श. का. श्लो. श. का. ३४३ | सरीसृप ४ ३६९ / सर्वानुभूति १ ५१ १९४ | सरूप ६ ९७ ५४ १४० | सरोज ४ २२८ सर्वान्नभक्षक ३ ९२ १७५ | सरोजन्मन् " " सर्वान्नीन " १८८ सरोरुह सर्वाभिसार ". ४५२ ३३ सरोरुह सर्वार्थसिद्धि २ १५१ २०१ सरोरुहासन २ १२६ सर्वास्त्र सर्ग " १६६ महाज्वाला" १५४ २३० " ६ १२ सोंघ ४५२ २०४ सर्षप २४६ .८२ सर्जमणि २६४ सर्जरस . सलिल सर्प . ४ सल्लकी २१८ सर्पभुज " ३८५ ४८४ सर्पहन " ३६८ सवन ३०२ ४२२ सोराति २ १४५ सवयस् ३९४ ७८ | सर्पिस ३ सर्व ६ ६९ सवितृ ३५४ सर्वसहा ४ सवितृदेवत " २४ सर्वकेशिन् २ . २४२ सवित्री सर्वग्रन्थिक ३ ८५ सविध ६ ८६ सर्वज्ञ. १ २५ सवेश " २ ११२ सव्य .१०४ सर्वतस् ६ १६५ सव्यसाचिन् ३ सर्वतोमुख ४ सव्येष्ठ ४२४ सर्वदर्शिन् १ सश्मश्रु १९५ ४० सर्वदुःखक्षय , ससीम .३१३ सर्वधुरीण ४ ३२७ सस्य .१६० सर्वन्दम ३ ३६६ २३४ | सर्वभक्षा ४ ३४१ | सस्यशीर्षक २४७ १३९ सर्वमङ्गला २ ११८ सस्यशूक सर्वमूषक " ४० सह | सर्वरस ३ ३११ | १४६ २५ सर्वला ४५१ सहकार १९९ सर्वलौह , ४४३ | सहचर ३९४ सर्ववेदस् ॥ ४८३ | | सहचरी " १७६ १४८ । सर्वसन्नहन " ४५२ | सहज २१५ (४७७) ५७० : १०२ १३६ ३४५ सरस्वत् " १५० ६६ सरस्वती १५५ १६३ १६२ सरि सरित् सरिद्वरा ॥ Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सहज ] श. १७० ३८३ १३८ ४६० mc WWWW ::: साद २२६ ४२५ २१० mom م ه १ : अभिधानचिन्तामणिः [ सार्वभौम श्लो. | श. का. श्लो. | श. का. श्लो. सहज १२ साचि ६ १५१ | सामयोनि ४ २८३ सहन | सामवायिक ३ सात | सामविद् , सहपान सातवाहन सामाजिक , १४५ सहभोजन सातिसार १२४ सामान्य ६ १०८ सहस सात्वत १५१ सामिधेनी ३ सात्वती ४९१ सहसा १६८ साविक सामुद्र ., . २२९ सहस्य सहस्त्र ५३७ साम्परायिक ३ ४६२ सहस्रदंष्ट्र ४ ४११ साम्प्रतम् ४०७ सहस्रनेत्र २ ८६ सहस्रपत्र ४ २२७ ४२६ साम्मातुर सहस्रवेधिन ३ ८६ साधारण साम्य सहस्रांशु २९ " .१०८ सायक ४४२ सहस्त्रारज , साधारणस्त्री ३ २ ७ १९६ सायम् .५४ सहस्रिन् '१६७ ३ ४२८ साधारणी ४ . ७१ साधित सहाय सार ३ सहायता ६ ५८ साधु १ ७६ सहिष्णु ५४ , ३ ४३ सहृदय सारङ्ग ३९५ सहोदर २१४ साधुवाहिन् ४ सह्य १३८ १५५ साध्वस . १४० साध्वी. सारथि सांयात्रिक ३ ५३९ सानु ४ १०१ सारमेय ४ ३४५ सांयुगीन , ४५७ सानुमत् सारस .. " ३९४ सांवत्सर " सान्तपन सारसन ३२८ साकम् सान्त्व. २ , ४३१ साकल्यवचन ३ सान्वन सारसी ५०३ ३ .४ ३९५ साकेत सान्दृष्टिक २ सारस्वत ३ ४७९ साक्षिन ___५४६ सान्द्र सार्थ सखि सान्द्रास्निग्ध ३ सार्थवाह ३ ५३२ ५० साई सान्नाय्य सागर ६ १२८ सान्न्यासिक ,, साईम् ॥ १६३ सागरनेमि साप्तपदीन , सार्पिक ३ • ७४ सागरमेखला, साम , सार्की २ २५ सागराम्बरा , , सामन् ३ ४०० सार्व. .. " साङ्ख्य ३ ५२६ | " , , | सार्वभौम २ ८४ (४७८) १०५ २९० س ه ३५९ : : man : : सारणि : : سم ४२४ m सा १४६ १६३ m .mr mrrm o mw mw a . c : Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०३ | ६६ सालभक्षी , १४८ cmm com moc.com ४२८ सिध्मन् सिध्मल सार्वभौम ] मूलस्थशब्दसूची [सुनिश्चित श. का. श्लो. श. का. श्लो. | श. का. श्लो. सार्वभौ ३५५ | सिताम्भोज ४ २२८ सीवन ३ ५७६ साल . सितासित २ १३८ सीवनी २७५ सितोदर , सीस १०६ सितोपला ३ सीसपत्रक , | सिद्ध सुकरा ." ३३७ सालवेष्ट १२३ सुकल ३ ५१ साला ४ १८५ सिद्धान्त २ १५६ सुकुमार ६ २३ सालातुरीय ३ सिद्धापगा ४ सुकृत १५ साल्व १३४ सिद्धायिका १ ४६ | सुकृतिन् ३ १५३ ४ . २३ सिद्धार्थ , ३८ | सुख ६ सावित्र ३ ४७७ ४ .२४६ सुखंसुण २ ११४ सावित्री * રપ૭ सिद्धार्था १ ३९ सुखवर्चक ४ ११ साना ४ ३३० सिद्धि १ . ७४ सुगत १४६ साहस ४० सिध्म ३ १३१ सुगन्धक ४ २५६ साहस्त्र सुगन्धि ६ २७ " १२५ सुगन्धिक ४ २३५ | सिध्य २ सुगृह " ४०७ सिन सुग्रीव ६ ७६. सिनीवाली २ ३६९ सिंहतल ३ - २६० सिन्दुवार ४. २१३ सुचरित्रा , १९२ सिंहद्वार ४ ५९ सिन्दूर " १२७ | सुत २०६ सिंहनाद. ६ ४० सिन्दूरकारण " सुतारका १ सिंहयाना २ ११७ १३९ सुतेजस् सिंहल : ४ . १०८ सुत्रामन् सिंहसंहनन ३ १९ सिन्धुर २८३ | सुदर्शन सिंहसेन - १ ३७ सिरा २९५ | " १३६ सिंहान ४ १०४ ३६२ सिंहासन. ३ ३८१ सीता १८४ सिकता . ४ .१५५ | सुदारु सिक्थक " २८० सीत्कृत सुधर्मन् सिच ३ ३३० सीत्य ३४ सिचय सित सीमन् " २८ सुधाभुज सीमन्त ३ २३५ सुधास्रवा २४९ सितच्छद ४ सीमन्तक ५ ५ सुधाहृत् २ १४५ सितरञ्जन ६ सीमन्तिनी ३ सुधी सिता ३ ६७ सीमा ४ २८ सुनाभ ४ ९४ सिताभ्र . ३०७ सीर ३ ५५४ | सुनिश्चित ६ १२७ (४७९) ३४९ २०८ " १०७ ४ ११७ सिन्धु " V Morrm : सिल्ह ३१२/ " ३६७ सुदाय ५५५ | सुधर्मा सुधा wUU : : : :m rm Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणिः [सूरण * सुन्दर] श. का. सुन्दर ६ सुन्दरी ३ सुपथिन् ४ सुपर्ण २ सुपर्णकुमार " सुपर्वन् सुपार्श्व श्लो. श. का. ८१ सुराजीविन ३ १६९ सुरारि ५० १४५ सुरावारि ४ सुरुङ्गा सुरूहक सुलोहक सुवचन श्लो. श. का. श्लो. ५६५ सूक्ष्मदर्शिन् ३ ८ सूचक २ २४४ " ३ - ४४ सूचनकृत् २ १६८ सूचि ४१ सूचिसूत्र ३ ५७५ सूची सूचीमुख ४. १३१ ११ सूच्यास्य ३६६ * * * * सुवर्चिका * सुवर्ण A सुप्रतीक & ४५८ ५६२ = सुप्रभ सुप्रलाप सुभग . ३ सुभद्रेश " सुभूम " 4 ११२ ३७३ १०९ सुवर्णक , १०७. ११३ सुवर्णबिन्दु १३१ सूततनय सुवासिनी ३ . १७६ १७६ सूतिकागृह ४ सुविधि १ . २७ , सूत्थान ३ सूत्र सुवीराम्ल ३ ८० सुवेल ४ ९६ ३७५ ६३ art : - सुम सुमति * * * * * 36w w ५७७. सूत्रकण्ठ सुमन सुमनस सुव्रत ४७६ १५७ २४४ " सूत्रकृत सूत्रधार सूत्रवेष्टन सुव्रता ३ १ ३ ४ २१ सुमित्र सुमित्रभू सुमेरु सुयशस सुर सुरज्येष्ठ सुशीम सुषम ३८६ " ८० ४ ६४ १४८ १९१ ५९४ सुरत ३ २०६ सुरपथ सुरपर्णिका ४ सुरभि ८१ सुषमदुःषमा २ - ४४ १४ सूदशाला सुषमा सूदाध्यक्ष सून २०० सुष्टु " १७१, सूना सुसंस्कृत सुसीमा ३९ सूनृत सुस्मिता ३ सुहस्तिन __३४ सूप २६ सुहित ३ ___८७ सुहृद् , ३७८ | सूपकार ३९४ सूर ५६७ सूकर ४ ३५३ , .. ६ ६३ । सूरण . (४८०) ३ ६१ ६ २ ९० " , सुरर्षभ सुरस सुरा ३७८ ३९४ , . सर , सुराचार्य ४ २५५ Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वायू अस्तु १३३ २४० १४९ सैन्धव ३२३ ११६ २४५ सैरन्ध्री . : सूरत ] मूलस्थशब्दसूची [स्खलित श. का. श्लो. श. का. श्लो, । श. का. श्लो. सूरत ३ ३३ सेवावृत्ति ३ ५३० सौप्तिक ३ ४६५ सुरसूत २ १६ सैहिकेय २ ३५ | सौभागिनेय ,, २११ सूरि ३ ५ सैकत ४ १४४ सौमिकी ४८७ सूर्मी ६ १०० सैतवाहिनी , १५२ सौमित्रि , ३६८ सैद्धान्तिक ३ सौम्य .२ सूर्यकान्त ४ सैनिक सूर्यजा , १४९ सूर्यमणि .. सौरभेय सूर्याश्मन् सौरभेयी सूर्येन्दुसङ्गम् २ . ६४ सौराष्ट्रक सूर्योढ ३. सौराष्ट्रिक २६२ सृक्कन सौराष्ट्री १२१ सृग ४४९ सौरभ ४४९ सौरि ४. ३४८ सृगाल सौवर्चल सौवस्तिक ३८५ सणीका सौविद ३९१ सृति सोम सपाटिका , सौवीर सोमज ग्येक सोमप सेकपात्र ११७ सोमपीथिन्, सेकिम २५६ सेक्तु । सोमयाजिन् सोमसिन्धु २ ". .. ". स्कन्द सेतु · . सोमाल ६ स्कन्ध सेना सौखसुप्तिक ३ सौख्य ३३० सौगत ४९ सेनाङ्गा . सौगन्धिक ४ स्कन्धज ४ २६६. सेनानी स्कन्धमल्लक ६ . ४०० स्कन्धवाहक ४ ३२४ सेनामुख सौचिक स्कन्धशाखा, १८५ सेनारत ४२ सौदामनी स्कन्धावार ३ ४१० सृणि ३५५ सोदर २९६ सोदर्य सोपान : . .. ७९ मौविदल्ल . 'S ० m .0 ३९५ सोमभू M १८० सेचन. ". ५०१ सहिद ५४ ३९४ १२२ २५२ . murm " AAAAY: : * : * १२२ ३८ .. m ४१३ सेराह ३० सौध : 00 सेवक १६० सौधर्मज २ सेवन ५७६ सौनन्द , सेवनी ५७५ सौनिक ३ सेवा , १६० | सौपर्णय २ (४८१) ३१ अ०चि० स्कन्धिक स्कन्न ५९४ | स्खलन १४५ | स्खलित ६ , ४ ३२४ १२७ १५८ ४६८ Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तन] अभिधानचिन्तामणिः श्लो. श. का. श्लो. | श. | स्त्रीनुलक्षणा ३ १९६ स्थिति स्त्रीपुंस २०२ [स्पर्शन का. लो. ३ ४०४ २ २६७ स्थगन " १३४ ७८ २६७ श. का. स्तन ३ स्तनन्धय , स्तनमुख , स्तनयित्नु २ स्तनवृन्त ३ स्तनशिखा , स्तनान्तर , स्तनित ६ स्तनितकुमार २ स्तन्य स्तब्धरोमन् ४ स्तभ 60M स्थगित स्थगी स्थण्डिल स्थण्डिलशायिन् स्थपति ११२ ३८२ स्थिरजिह्न ४ ४१० स्थिरसौहृद ३ १४० स्थिरा स्थुल ३. ३४५ स्थूणा ४० ४७४ ४८२ " ३५४ स्थपुट ३४१ : १८६ : २४८ स्थल 'स्थलशृङ्गाट, स्थली स्थविर स्थूल ३ . १२ स्थूलनास ४. . ३५४ स्थूलभद्र १ . ३४ स्थूललक्ष ३ ४९ स्थूलशाट " ३३६ स्थूलशीर्षिका ४२७३ : २३४ : ४५ : स्तम्बकरि स्तम्बपुर स्तम्बेरम स्तम्भ . २ : स्थाणु ' स्थेय ६ moc स्थण्डिल स्थान : " स्थेष्ठ ५४ | स्थौरिन् ससा सातक ॐ mc १५७ स्नान ४५९ w स्तरि स्तव स्तवक स्तिमित स्तुति स्तुतिव्रत स्तेन स्तेय स्तोक स्तोकक स्तोत्र स्तोम १५ स्थानक स्थानाङ्ग स्थानिक ३ स्थानाध्यक्ष स्थानीय स्थापत्य स्थामन् स्थायिन् स्थायुक स्थाल स्थाली स्थावर . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . : www १८३ ww ४८४ ___ १७८ : स्त्यान १३० : : स्नेह । स्त्री १६७ / स्थाविर १ ४०६ :: स्त्रीचिह्न स्त्रीधर्म , स्त्रीधर्मिणी, ४०२ स्थासक , २७४ , ४ २०० स्थास्नु ६ . ३. (४८२) ३१३ स्नेहप्रिय १४३ स्नेहभू स्नहभू , ८९ स्पर्धा ६ १५६ | स्पर्शन . ३ : १२६ १५१ ५० Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्पर्शन ] श. स्पर्शन स्पश स्पष्ट स्पृहा स्फट स्फटिकाच स्फरण स्फाति स्फार स्फिज् स्फिर स्फुट स्मय स्मर . "2 स्मृति "" मेर का. ६.६ २७३ ६२ १९४ १०३ 99 स्फुटन १२४ "" स्फुटित ४ १९४ स्फुर ३ ४४७ स्फुरण ६ १५९ स्फुलिङ्ग ४ १६९ स्फूर्जथु स्फोटक स्फोटायन - स्यद स्यन्दन ४ १७३ ३ ६ ३ ४ "" स्यन्दिनी स्यन्न 19 ६ 99 29 m ॐ ६ ६ " 99 स्मरकूपिका स्मरणं २ 99 U २ 2m २०० 39 स्मरंध्वज स्मरमन्दिर ३ २७३ स्मृत २ २१० ४ श्लो. श. २ 99 ४ ३ १ ३ "" ६ ३९८ १०३ - ९४ ३८१ | स्यूत स्यमन्तक स्याद्वादवा दिन् ९४ 99 १५९ स्यूति १३८ खज् स्रव मूलस्थशब्दसूची ४१५ २९७ १३२ 99 स्रवन्ती ३ द्वादि १ ३ स्रष्ट २ ९५ ३ १३० ५१७ २३१ ६ १४१ 99 १७१ स्रोतस्विनी ४ २७३ | स्रोतोञ्जन २२२ स्व स्रस्त स्रस्तर स्राक् स्रुच् स्रुत स्रव .99 स्त्रोतईश स्त्रोतस् 39 "" स्वकीय का. २ १९३ १६५ स्वप्न २२२ स्वच्छन्द १९५ स्वच्छपत्र • ६ ३ 29 99 ४ " २ ६ ३ .६ ४ ३ ६ ३ ४ "" "" 39 २ ३ "" 99 स्वकुलक्षय ४ ३ 23 ४ ३ १५८ स्वजन ५३ | स्वतन्त्र स्वदन स्वधा २ स्वधाभुज (४८३ ) 39 99 ६ श्लो. श. १३७ | स्वधिति स्वन ५२५ स्वनि २५ ५७६ १२३ ५७६ स्वनित २२५ २२६ स्वपरराज्य भय ३१५ २९७ | स्वभू १६२ १४६ १२७ 99 ४१० स्वप्न स्वभाव "" ३४६ १६६ |स्वर् स्वर ११ ४९२ १३२ ४९२ १३९ १४६ १५२ १९ १४६ ११७ १०६ स्वयंवरा स्वयम्प्रभ स्वयम्भू 19 "2 "" स्वरभेद स्वरापगा स्वरु स्वरुचि स्वरूप स्वर्ग स्वर्जि १९ वर्जि . [ स्वर्भाणु श्लो. ३ ४५० ६ ३५ ३६ ४२ "" ११७ २२५ १९ ८७ स्वर्णज का. १७४ | स्वर्णारि २ स्वर्भा 99 39 १ ३ ६ २ ३ १ "" २ ३ ६ स्वर्गपति "" स्वर्गसद् स्वर्गिरि ४ स्वर्ग गिरि 99 "" २ ४ २ ३ ६ २ स्वर्गवधू स्वर्ग्यापगा ४ ?? 39 २ "" स्वर्जिकाक्षार,” वर्ण "" स्वर्णकाय २ स्वर्णकार ३ ४ " دو २ ६० १०६ १२ १३० १७५ ५४ २४ १२५ ३५९ १६१ ३५ ३७ २२०. १४८ ९४ १९ १२ १ ८७ ง ९८ "" ९७ १४८ 99 29 39 १०९ १४५ ५७२ १०८ १०७ ३५ Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ her cm हंसग " १२६ . w हरित् nam ... mco पी 4. hc हट्ट : c w " स्वर्वधू] अभिधानचिन्तामणिः श. का. श्लो. श. का. श्लो. श. का. श्लो. स्वर्वधू २ स्वर्वापी ४ स्वर्वेश्या २ ४ १०९ ! हरिक स्ववेद्य ___ ३९ हरिकेलीय " स्वलक्षण ६ हंसक ३ ३३९ हरिचन्दन २ स्वसू २१७ हंसकालीत. स्वस्तिक नय ३४९ । हरिण स्वस्त्रीय ३ २०७ हरिणी स्वाति २ २६ हंसपाद स्वादु ६ २४ स्वादुरसा ३ ५६६ हरित . ४ . २३८ स्वादुवारि ४ . १४१ स्वाध्याय १ ८२ हरिताल . ४. १२४ हट्टाध्यक्ष हरिताली " २५९. हरिदश्व २. १२ स्वान हरिदेव ". २८ स्वान्त हरिद्रा ३ ८२ स्वाप हरिद्राराग , १४० हनुमत् स्वापतेय स्वामिन् हम्भा हरिन्मणि " १२२ हरिपर्ण " २५६ . हयग्रीव हरिप्रिया २ १४० हयप्रिय हरिमन्थक ४ २३७ स्वास्थ्य २२२ हयमार , २०३ । हरिमन्थज " हयवाहन २ १७ हरिय ३०४ हरिश्चन्द्र ३ स्वाहा हरिपेण " हरबीज हरिसुत " स्वाहाभुज २ हरशेखरा , १४८ हर हरीतकी स्वच्छा ३ हरेणु स्वंद २ २१९ हर्म्य स्वंदज . ४ ४२२ स्वेदनिका ३ १२८ हर्यश्व स्वरिणी , २२९ स्वरिता . " २९९ हमाण ३ " ३४९ हल उरपाक, ३५८ । हला (४८४) :: १३१. हरिद्ध : २ . २३ ३७८ . ३६५ हरण २० ९८ हर्यक्ष २३८ हर्ष ___९९ Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ का. १३२ ८६ क हिजल mr हिनीर m 0 १३८ comc0 : .१९५ : हार રૂર૪ ६२ १६ : हारहूरा ४ M हलाह] मूलस्थशब्दसूची [ हुताशन श. का. श्लो. श. का. श्लो. श. हलाह ४ ३०९ हस्तिदन्तक ४ २५६ । हलाहल . " २६१ हस्तिनख ३६४, हस्तिनापुर " ४४ हिङ्गुल १२७ ___ ५५४ हस्तिनासा . २११ हलिन् २ १३८ हस्तिनीपुर " २९५ ५५४ | हस्तिपक ३ हिडम्बनिषूहलिप्रिय २०४ | हस्तिमल्ल २ । दन ३७२ हलिप्रिया ३. ५६६ | हस्तिशाला ४ हिम ३४ हस्त्यारोह ३ हलक २३० हाटक ४ १०९ हिमपति २ हल्लीसक हायन हिमप्रस्थ ४ १७५ ३२२ हिमवत् हवित्री ३ ___ " ३२३ हिमधालुका ३ ३०७ हविगैह ४ हारफल हिमांशु ४ हविरशन हारहूर " ५६७ हिमानी " १३८ हविष्य २२२ हिमालय हविस्. ." ". हारान्तर्मणि ३ ३१४ हिरण्मयी १०० ४९५ हारि हिरण्य हव्य ४९६ हारिद्र हव्यपाक ४९७ हारिन् हव्यवाह ४ २७२ हव्याशन " . ११ हार्द . हिरण्यकशिपु २ १३५ हस .२ ३७६ हिरण्यगर्भ - १२७ हसन , . , हालक ३०८ हिरण्यनाभ ४ " . . " २१२ हिरण्यबाहु " हसनी . ४. ८६ हिरण्यवर्णा " १४५ हसन्तिका " " हाली हिरण्यरेतस् २ हसित . . २ . २११ हाव " . ४ १९५ हास १ हिरुक् ६ १७० ३ २५५ हासिका हास्तिक हीनवादिन् १२ हास्तिनपुर ४ हीनाङ्गी ४ २७३ २९० हास्य हीरक " १३१ हस्तधारण ६ १३८ हस्तबिम्ब ३ ३१३ हाहा हस्तसूत्र " ३२७ हिंसा हस्तिन् ४ २८३ हिंस्र " ३३ हुनाशन , (४८५) १५७ WCMOM.WW:::Acmoc १०६ १०९ M . हारीत १२ ................... ९४ १५६ ५६७ हाला हालिनी ३६४ १६३ ३ ..: M हीन :: ३४२ . ३५ हुनबह " १६३ Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हूति ] अभिधानचिन्तामणिः ... [हाद श. का. का. का. ३ श्लो. श. १३२ होतृ ४८३ हुति ४८५ श्लो. श. १७५ हेक्का ३५६ हेति १४१ " २६७ हेतु हेमकन्दल ६२ हृच्छय हृद् २ ३ होत्रीय होम ४९७ हामकृण्ड हेमतार हृदय ३ , होमधूम होमाग्नि यस् ५०१ , ५०० ६ . .१७७ २६७ हेमदुग्धक २८७ हेमन् हेमन्त १८२ हेमपुष्पक हेमपुष्पिका हदिनी १४६ له हस्व م " हृदयङ्गम २ हृदयङ्गमता हृदयस्थान ३ हृदयालु हृदयेशा , हाद हादिनी ९ हेरिक १८० हेला * क हृल्लास हृल्लेख m..wMM १३२ हेषा हृषीक ४. २२४ हृषीकेश हृष्टमानस १९. हैमवत ४ २६३ २ १२८ हैमवती , १४८ हीबेर ३. ९९ हैयङ्गवीन ३ ७१ हेषा ६ १७३ । हैहय - , ३६६ हाद इत्यभिधानचिन्तामणि-मूलस्थशब्दसूची समाप्ता। है १ २३० (४८६) Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणिः 'शेष'स्थशब्दसूची श० पृ० प | श० पृ० प० | श० पृ० अ अनेडमूक ११६ १५ अर्वती ३०० अक्षज ६२ अन्तःस्वेद २९६ १६ | अर्शीघ्न पिरि०१ अक्षतस्वन ५६ . अन्तिक २१ १० अर्हत् ६६ अक्षर १९४१ अन्ध २६३ ५ अलम्भूष्णु १२४ अक्षरजीविन्१२२ १९ | अन्यथा ३६६ . २० । अल्लुका १०८ अगूढगन्ध १०९ १२ अन्यदा , . १८ अवकटिका ८६ अग्निरेचक ११७ १९ अन्वर्थ . १९५ २५ अवकुटारिका, अङ्कति २७१ १३ अपचिति ११४ १० अवटिन् ४८ अडर २६३ अपराजित ५६ १६ अव्यय ६२ १८ अजित ६२ १६ , ६२ १३ | अशिर ५४ अजिनयोनि३१२ ३. अपरेतरा ४९ ४ | अश्र परि०१ अञ्चति २६९ १६ | अपाचीतरा , . ६ अष्टतालायता १९५ अञ्जना ३२७ १४ | अभिधान ६७ १३ अष्टादशभुजा ५९ अअसा ३६६ १२ अभिषस्ति १०२ १ असंयुत ६२ १५ अतल ५७४ अमृत १०५१५ असन्महस् ५० २३ अतस ३६६ . १३ अमोघा ५६ | असह १५० अम्बरस्थली २३३ असुर २९६ अत्युग्र. १०९ अम्बुघन ४८ अस्त्रकण्टक १९२ अद्धा ३६६ १२ अम्बुतस्कर २८ अस्त्रशेखर १९५ अथ .. " अरसंचित १९५ अस्त्रसायक १९३ अधीन . ९६ अराफल १९५ १८ अस्त्री १९४ अधीश्वर १७० अर्जुन १७५ ८ अहि ६२ १२ अधोमुख ६२ २७ अर्धकाल ५७ ४ अहिपर्यत ५६ १९ अनन्ता ५८ २५ अर्धकूट , १ अहिभुज ६६ ५ अनेकलोचन ५६ १८ अर्धतूर ८२ ९ अहीरणिन् परि०१ १९ अनेड ९५ १० ! अर्धलोटिका १०४ १३ | अहो ३६६ १० • मूलग्रन्थपहिं परित्यज्य 'मणिप्रभा'व्याख्यात एवेयं पलिगणना विधेया। + प्रथमे परिशिष्टे नवमक्रमाङ्के 'अर्शीघ्न'शब्दो द्रष्टव्य इत्याशयः । अग्रेऽपि एवंविधस्थले इत्यमेव बोध्यं सुधीभिः । (४८७) अति २६ . ४ Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आ १०४ wr or ३६६ आकार ] अभिधानचिन्तामणिः . [ कणय श० पृ० पं० | श० पृ० पं० श० पृ० पं० उच्छर ४४८ आकार परि०१६ उत्तराशाधि एकदा ३६६ आकारगृहन ८६ २१ पति ५४ आकाशचमस३० उत्तरेतरा ४९ एकश आखोर ४५ १५ उदक ३६६ २३ । एकपर्णा ५८ २२ आच्छोटन परि०१८ उदारथि ६२ । एकपाटला , २१ आज ३२१८ उदित ६७ | एकपाद् ६३ २ आभास्वर २४ १८ उद्ध १५४ एकभू ३०. ६ आभील ८४ ९ उद्दाम | एकशफ - ३००८ आयत्त ९६ ४ | उद्धर | एकशृङ्ग ६३ ३ आरणिन् ३१८ २२ उद्धष | एकाङ्ग परि०१ - २ आराफल १९५ १८ उन्नतीश ६६ आरोहक २७३६ उन्मत्तवेष ५६ २२ . १५९ . .५ आशिर २६९ १४ उपप्लव ३४८ एकादशौत्तम ५६ २४ आश्मन २९१ उपराग उपराग , एकानसी ५९. २ आसन्द ६३ ३ उपासन १९६ एतन ३२३० आस्रव परि०१ ५ उभयद्युस् । ३६६ १७ उभयेद्युस् , , इडावत्सर परि०१ ५ उरु २७३ ७ एवम् ३६६ इड्वत्सर " , उरुक्रम ६२ इतरथा ३६६ २० उरुगाय इति " ११ उर्वङ्ग ७ ऐषमस् ३६६ इत्थम् " २० इन्द्रभगिनी ५८ , उलन्द औजस २५७ इन्द्रमह ३०९ १४ १३१ . ६ औपवाद्य २९७ १६ इन्द्रमहकामुक उशस् ४१ औषधीगर्भ ३० ३. इन्द्रवृद्धिक ३०३ उषणा १०९ इन्द्रायुध ३०२ उषाकील ३१८ ककुदावत ३०३ इरा २६३ ककुदिन् , इरावर ४८ ऊम् ३६६ कङ्कटीक ५६ १७ कटपू ऊर्ध्वकच ३४ ईण्डेरिका १०४ ५७ कटाटङ्क ईप्सा ऊर्ध्वकर्मन् ६२ " १११ १ कटाह ३१० ईश्वरी ५९ २ | अषणा १०९ कटिमालिका परि०१ १५ ऊष्मायण ४५ १४ कटवर उग्रचारिणी ५९ ३ उचिलिङ्ग १५१ २० ऋतुवृत्ति परि०१ ५ कणय १९५ २३ (४८८) २५३ ५७ ० .. 6. १५ . ऋ Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कण्ठामि ] कन्यस कपि श० कण्ठाग्नि ३१७ ६ कथम् ३६६ २० कन्दराकर २५३ १३९ "" 99 कपिल २८ ६३ २९६ ६२ ३०९ १४ कपिलाञ्जन ५७ ३ २६२ २ १६० १ १९ 99 कम्बल करट करण "" पृ० पं० · कर्बुरा १२२ १३१ करपाल १९४ करम्ब १०४ ६० ६ करवीरक करालिक १९४ ४ करालिका ५९ ७ कर्णधारिणी २९६ कर्णसू २८ कर्णिकारच्छाय २५७ ११ ४ कर्पट १६५. 9 कर्बर ५४ कलुष कांस्य ५८ कलकूणिका १३२ कलशीमुख ८२ कलशीसुत परि० १ कलाधिक- ३१८ कलापूर ८२ ३१० श० पृ० कामताल ३१८ कामना १११ ७ कामरूप २४ ४| कामरूपिन् ३११ ३ कामलेखा १३४ २ कामसख ४४ ३२१ ३१९ २३ १२२ ३४ ४ ५७ २ कुवीणा ६२ १७ कुषाकु २५६ काकजात ३१८ १८ कामायु १९ कामिन् काम्य कायस्थ काल शेषस्थशब्दसूची ९ ३ ९ 99 कालकुष्ठ कालकूट ५३ कालंग्रन्थि परि० १ कालङ्गमा ५९ कालञ्जरी कालदमनी १४६ काकु १० काचिम २६३ ५ काण्डवीणा ८० कादम्ब १९२ कान्तारवासिनी५८ 99 कालभृत् २८ २० कालरात्रि ५८ कालायनी ५९ १९५ ९४ ८२ कास् काहल "" किरात ११५ ४ किराती ५९ ४ किरिकिच्चिका ८२ ७ ए० ८ १ १५ ७ १६ १७ कुटर १८ कुट्टन्ती ६ ८ २० १६ १९ २० ५ १० श० कुट्टार कुण्डा ५९ कुण्डिन् ३०० कुनालिक ३१८ • ५९ कुन्द्रा कुमुख ३११ कुम्भदासी १३४ कुलदेवता ५९ कुला कुलेश्वरी ७ काहला २७ किण "" १६ ५ किहिम २६३ ४ कृपीट किणालात ५० २३ ३ किण्विन् ३०० ५ .२१ किन्नरी ८० २४ ११ २४ कीलाल १५४ १३ ३०० १९४ ( ४८९ ) कुलधारक १३६ ५९ कुहाला ७ कुहावती ९ [ कोटिश्री पं० पृ० २५३ 29 ८० २६९ कुसुमान्त १६० कुसुम्भ ,, ८२ ५८ कुडूमुख ३१८ ५६ २ कूटकृत् १६ कूटसाक्षिन् २१९ १ | कूणितेक्षण ३२१ १६ कूपज १५६ १० कूपद १२० ७ कृतज्ञ ३०९ ६ | कृत्तिकाभव ३० २६३ परि० १ २५६ कृष्णतण्डुला १०९ १७५ कृष्णपक्ष १ कृष्णपिङ्गला ५८ १६ ५६ २३३ कृष्ण 99 १० कृष्णा किल १३९ २३ केलिनी ५८ कीकसमुख ३१७ ६ केशी कीटमणि २९४ २३ केसरिन् ३०० ५९ १४५ ५८ ५ कोट १७ | कोटिश्री ७ ३ ४ ९ १० ७ २० ९ १० ५ ८ २४ १५ ३ "" ७ २५ २० ५७ ८ ५ २३ १२ २ 9 ४ ८ ४ ६ १९ १५ १२ २८ ६ ९ २४ २८ Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ ग १५ गौर ५६० कोट्टपति] अभिधानचिन्तामणिः [घृताण्डी श० पृ० पं० श० पृ० पं० श० पृ० पं० कोट्टपति १७८ २१ | खण्डास्य ६२ १६ गुणाधिष्ठानक १५० ९ कोणवादिन् ५६ , खतमाल ४८ १३ गुणाब्धि ६६ १४ कोला १०९ ३ खतिलक २८ गुप्तचर ६४१ कोशफल १५९ १३ खदिर ५० २१ | गुह्यगुरु ५६ १७ कोशशायिका१९४ १५ खपराग ४२ १२ गूढभोजन ३०० ६ कौन्तेय १७५ खरकोमल गृहजालिका ८६ २१ कौमुद ४४ १९ खरु ५६ १७ | गृहाम्बु १०८४ कौशिकी ५६ १५ | १४६ गोकुलोझवा ५९.. ऋतुधामन् ६२ २० खसापुत्र गोत्रकीला २३३ . ११ क्रमण ३०० खसिन्धु | गोनद ३१९ २० क्रुरात्मन् ३४ खिलखिल्ल ३१७ २२ | गोपाल ५६ - १९ क्रोधिन् ३०९ ११ खुङ्खणी ८० २५ गोपाली १३१. . ५ क्लपुष १५१ | खुरोपम खरोम १०५ १९५ १७ | गोला - ५९ १२ क्लेदु ३० ५ खेट ११७ २२ होम १५१८ गौतमी ५० क्वाथि परि०१३ गडयित्नु क्षणिन ४८ १२ १३ गौरव गणनायिका ५८ २३ क्षान्ता २३३ १० गौरावस्कगणिका २९६ क्षिपणु २७१ २० १३ “न्दिन् ५० क्षीराब्धि. गणेरुका १३४ " ग्रन्थिक १७५ मानुषी गणेश्वर ३१० ११ ग्रहनेमि ४४ क्षीराह्वय गदयित्नु ४८ . १२ गदान्दक. ५२ ग्रहाश्रय ३४ १९ क्षुण्णक गदित ६७ १३ ग्रामकुकट ग्रामणी २३० गदिनी ५८ . २४ १०० गद्गदस्वर ३१० - ४ मुद्रा १३४ गन्धदारु १५८ २४ सुधा गंधनालिका१४५ ५| धन गन्धवती २१० गन्धवहा १४५ गन्धहत् घनाअनी गरबत ३१७ घनोत्तम १४१ चौरिक गव्य १०५ २३० घर्घरी गात्र १४० गान्धर्वी ५८ २७ / घसुरि खगालिका १३४ १६ गार्गी घासि खटिका १०४ २३ गीरथ ३३ १७ / घृत . २६३ १ खण्डशीला १३२ १८ | गोष्पति , १६ / घृताण्डी १०४ १४ (४९०) ग्राममृग १०३ घनश्रेणी मङ्करी मा ५९ ५ १६४ 1 घर्मा २७ ५ . घृ A Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घृतार्थस् ] श० पृ० घृतार्चिस् २६९ घृताह्वय - १६० घृतौषणी १०४ १६० घोर घोरा घोषयित्नु ३१८ च च चक्र पं० | श० पृ० १६ | चित्रयोधिन् १७६ ” चित्रवाज ३१८ चित्राङ्गसूदन १७६ १४ २ ४१ ११ ९ 'चतुस्ताला १९५ चन ३६६ चन्दनगिरि २५३ चन्दिर ३० चन्द्र किं चन्द्रभास १९४ ३१७ ३६६ १९५ चक्रभेदिनी ४१ १० ५ ८२ चमत् ३१७ चण्डकोलाहला चण्डमुण्डा ५९ चतुःशाख परि० १ चतुदंद्र १४१ १८ चतुर्धा ३६६ २१ चतुर्व्यूह ६२ १० चतुष्कृत्वस् ३६६ २२. २० ሪ १९ शेषस्थशब्दसूची चिपिट ११५ चिरायु २४ चिरिका चीन ९ चोर १९ चौर छ छात्र छायापथ ७ छेकाल १७ छेकिल १२ 1 जगत्त्रष्ट जगद्दीप जगद्रोणि जगद्वहा जटाधर जटिन् जड ६ जनित्र . जन्तु जय २४ ५ २ जयत चपला १०९ चमर परि० १ १८ जयन्ती वर १४१ १२ जया जरण चर्मचूड- ३१८ २० चर्मण्वती २६६ चर्मिन् ६० चल २७१ चामरिन् ३०० चारणा ५८ चारुधारा ५१ ५ चिक्लिद ३० चित् ३६६ ८ चित्रपिङ्गल ३१७ १९५ २५६ १०० 99 परि० १ ४८ ९३ 99 ५७ २८ ५७ २३३ २.१ • २९६ ९४ १४० २७३ ५० ५७ ५९ ५८ १०९ १२ जर्ण ३० १० जलकान्तार २७१ १३ | जलपिप्पक ३२३ ፡ जलभूषण २७१ २६ जललोहित ५४ जलवाल ३२३ जलाकाङ्क्ष_२९६ जलाशय ७ २१ | जल्पित ३२३ ६७ ( ४९१ ) श० पृ० ५ जवापुष्प १६० २३ | जवीयस् २५६ ५ जाङ्गुली ५८ ४ जानी १४० १५ जाम्बूल २३ ፡ १८ जारी जितमन्यु जीर जीरण १ जीवन ६ जीवनीय ७ 93 99 मालिका १३१ ५९ ६२ १०९ जुहुराण जूटक जैत्र ५ जोटिन् ६ जोटिङ्ग ४ ज्येष्ठ 99 ८ १७ १५ | ज्योतीरथ ३ भ २५६ ११ ज्येष्ठामूलीय ४४ २ ज्योतिर्मा झर्झर .७ २१ २ ५ १५ डक्कारी ९ डमर २ डमरुक १४ | डिण्डिम ८ लिन् २९४ ३४ ट टहरी [ तनूतल पं० ३ " ड 99 १० १७ तदा ८ तदानीम् १२ | तनूतल २५६ १०५ २६९ १४० १९७ ५७ 9? ८२ ८२ ८० ८४ ८२ त तण्डुलफला १०९ तथा ३६६ 99 99 99 99 २० १९ १० ४ ८ २२ ९ "9 १९ १४ १५ १९ ८ 9 35 १४ १० २३ १४ १० १९ २४ ९ ६ १० ३ १० २० १८ "" १४९ १६ Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | वेधा ३६६ . तन्तिपालक] अभिधानचिन्तामणिः [धनदावास श० पृ० पं० | श० पृ० पं० श० पृ० पं० तन्तिपालक १७५ त्रिधातुक तन्त्री १५६ | त्रिधामन् ६२ २६७ तपन परि०१ ३ त्रिपाद् " दीर्घजानुक ३१९ १९ तपस ३० ३ त्रिलोचना १३२ . १८ | दीर्घनाद ३०९ १३ तपस् त्रिशिरस ५४ ३१८ २० ३६६ | दीर्घपवन २९६ १८ तमि त्वग्मल १५६ दुःशृङ्गी १३२ . १६ तमोघ्न दुःस्फोट १९५ - १८ तमोमणि २९४ २३ | दक्षिणाशा दुन्दुभि . ५४. . . १५ तर्हि रति परि०१ ३ दुरासद १९४१ तलेक्षण ३११ दध्याह्वय १६० १६ हग्जल ८५ । ६ ताड्य १५१ दन्तालय १४१ १२ दृशान २८ . . ४ तामसी ४१ ५ दृशद्वती . ५८. २० ५६ १५ | दर्दरा ५९ ९. देव . १९४१ " ८६ १४ दशनोच्छिष्ट १४५ .., देवदीप . १४४ . ४ तारजीवन २५७ ९. दशबाहु ५६ | देवदुन्दुभि ५०, २२ तालमर्दक ८२ ६ | देहसंचारिणी१३६ १५ दशावतार . ६२ तिमिकोश २६३ २६ दशाव्यय ५७ देहिनी २३३ १२. तिमिला ८२ १० दस्त्र ५२ | दौन्दुभी १३१ तीक्ष्णकर्मन् १९४१ दाक्षायण २५७ १० धु २४ तीक्ष्णतण्डुला१०९ ३ दाण्डपाशिक१७८ २१/ द्रकट ८२ तीक्ष्णधार १९४ ३ दायाद १३६ द्रगड १९५१८ दारद २६३ २५ द्वाःस्थितितीक्ष्णपाद ६२ दालु . १४६ ४ दर्शक १७७ ३६६ दिगम्बर ४२ १२ | द्वादशमूल ६२ ६० - ७ द्वारवृत्त । १०८ २० तुषित २४ __ दिदिवि २४ | द्विखण्डक परि०१ १६ १४१ १२ दिनकेसर ४२ द्वितीय १३६ १० तोयडिम्भ ४८ दिनमल ४३ २१ द्विधा ३६६ २१ त्रपुबन्धक २५६ दिनाण्ड ४२ ११ द्विपद ६३ व्रस १५० ९ दिनात्यय , द्विमुख परि०१ १९ त्रस्त दिव २४ द्विशरीर ५९ २३ दिवापुष्ट २८ द्विष्कृत्वस् ३६६ २२ त्रापुष २५६ १९ दिवाह्वय परि०१ द्वेधा' , २१ ब्रायस्त्रिंशपति५० २१ दिव्य २६३ द्वैधम् , , त्रिःकृत्वस् ३६६ २२ दिशांप्रियतम५७४ ध त्रिककुद् ६२ १२ दीदिवि २४ ५ धनकेलि ५४ . २४ त्रिधा ३६६ २१ , ३३१७ | धनदावास २५३ १५ (४९२) Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धनाया ] श० धनाया धन्विन् " धरण १५० १३ धरणीप्लव २६३ २५ धर्मनाभ ६२ २४ धर्मनेम १५ 99 धर्मपाल १९४ "" धर्मप्रचार धर्मवाहन ५६ २२ धर्षणी १३२ धार पृ० पं० १ १११ २७ नन्दीक ६ ६२ १७५ धूमल धूत्र धेनुंका धारा धाराङ्ग धाराधर "" धारा संपात ४८ धीदा १३६ धीन २५५ धीवर नकुलं नकुला नक्ता "" ८२ ५७ १९४ ध्वजप्रहरण २७१ ध्वान्तचित्र २९४ - न ६२. २१ १४१ १९४ १७५ ५९ ४१ नक्षत्रवर्मन् ४८ नखायुध ३१८ नखारु १५६ वास ३१७ ९३ नदीव्ण नन्दपुत्री ५८ नन्दयन्ती ५९ 29 नन्दा नन्दिघोष १७५ नन्दिनी ५९ 99 ४ "" १७ १५ ६६ १ नराधार ५६ ४ नलिन २६३ १७ नवशक्ति "" ८ 9 शेषस्थशब्दसूची श० नन्दिवर्धन ५६ नप्तृ नभ " नभःक्रान्त ३१० नभोध्वज ४८ नरविष्वण ५४ "" 99 नवव्यूह ६२ "" नसा पृ० पं० श० नासत्य नासिक्य निधनाक्ष ३१८ परि० १ ४८ ५ २० निशीथ्या १६ निश् २४ निषद्वरी ५ निष्ण नस्या 99 नाचिकेत २६९ नाडीचरण ३१७ नामवर्जित ९५ नारायणी २२ नीका ६ नीच १४५ ५४ • १५ निमित्त १९२ १३ निमेषद्युत् २९४ निरञ्जना २४ ५६ ६२ १४५ ५९ ५२ "" पृ० १४ नृपलक्ष्मन् परि० १ ५६ २२ | नृवेष्टन ११ नृसिंहवपुष् ६२ ५ नेमि ३० ११ ५० "" ७ "" ९३ २६७ पत्रफला पदग पदत्वरा २४ पदायता ४९ ६ पद्म निलिम्प २४ १५ पद्मगर्भ ७ निवसन १६५ ५ निशात्यय ४० . १३ निशावर्मन् ४२ 8 २४ | न्युब्ज २ प १० पक्षिसिंह ६६ २० १० | पङ्कक्रीडनक ३११ ५ पङ्गु १० २ नेरिन् नैश्चिन्त्य १९ ५ २२ १२ ३४ पङ्गुल ११५ "" १६ पञ्चकृत्वस् ३६६ पट्ट ७ २५६ पट्टिस १९५ पणव ८२ पत्र १९४ न्यायद्रष्ट १७७ [ पराविद्ध पं० १ पद्महास "" " ५ २१ १८ पद्मिन् १२ पपी निशाह्वय परि० १ ८४ परमद ४१ ११ परमब्रह्म चारिणी ५८ परमरस परि० १ परवाणि ६ परश्वस् ९६ १३ पराक्रम् नीलपङ्क ४२ ११ परारि नीलवस्त्रा ५९ ३ परार्बुद नृत्यप्रिय ३१७ २२ | परावि ( ४९३ ) "" १२६ २२८ 53 ११६ १९ ४५ ६२ "2 २९६ २८ १५८ १७ २३ १८ 39 ३६६ ६ ३६६ २९४ ६२ २१ *g。 १० ५ ८ ३ ११ २२ ८ १७ ६ १५ १७ ७ "" ८ १४ २५ 23 १५ १७ ९ ५ १४ ६२ २४ १९ २४ १३ ३ २४ Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परास ] श० परास परिज्वन् ३० परिणाह ५६ परित्राण १५६ पृ० २५६ परिपूर्णसहस्रचन्द्रवती ५१ परिवारक १०४ परिबिद्ध ५४ परिस्पन्द १६१ परुत् ३६६ १९ ३०० ५ ३६६ १६ १४ परुल परेद्यवि पर्पट पललज्वर १७७ पलानि "" पल्लूर २६३ पवनवाहन २६९ पवि २६० पवित्र २५६ पाण्डवायन "" पाण्डवेय " पाताल २६३ पादकीलिका १६४ पावन २६३ पिकबान्धव ४५ ३१० १०४ ५८ परीक २६९ १५० पर्वरि ३० २६३ पलङ्कष ३१० १० पीठसर्पिन् ११५ पलप्रिय ५४ ७ १९ 2" पीतु ३ १७ १४ पादजङ्गु २२८ पादनालिका १६४ पादपालिका पादपीठी २२८ " पादरथी पादवीथी प० श० पृ० प० १४ | पादशीली १६४ १७ ६ पादाङ्गुली १८ यक ६ "" पश्चिमोत्तर. दिक्पति २७१ १२ पांशुजालिक ६२ पांसुचन्दन ५६ १९ ९ पाण्डव १७५ ९ "" ८ २३ |पारिशोल 2509 अभिधानचिन्तामणिः २४ पालक १५ पालि ४ "" पादात १२६ पारिकर्मिक १७७ "" पारिमित १२० १०४ "" २ १८ पिङ्ग पितृगणा पिप्पल 99 बे ३०० परि० १ पीडन * १३१ पीतकाबेर १६० २८ पीथ "" पुटक पुण्यश्लोक ६२ पुतारिका परि०१ पुत्री पुनः पुरला ५९ पुराणान्त ५३ पुराध्यक्ष १८ पुरुष "" ५९ ३६६ ६१ ६२ पुरुषव्याघ्र ३२१ १७ पुरोगामिन् ३०९ ७ १८ पुष्कर २८ ८ पुष्करिन् २९६ ७ पुष्टिवर्धन ३१८ पुष्परजस् १६० ( ४९४ ) ५ १० ३ ९ ४ १८ पूजित ७ ४१ ४९ २० पूर्वेतरा २३ पूर्वेद्युस् ३६६ , १ पृथु २६९ २६ १७ २ ११ ९ ३ ५ "" श० v ४१ पोषयित्नु ३१८ पौत्री ५९ पौर ६४ पौरिक ३० १७८ १५८ २८ २६९ १७ ६५ १५९ १२ प्रकीर्णक ३०० प्रकीर्णकेशी ५९ ७ १४ प्रकूष्माण्डी ५८ ११ २१ पृ० पुष्पसाधारण ४५ पुष्पहास ६२ २२ पृदाकु पृश्निगर्भ ६ प्रकर 33 ५९. ६२ 99 पृश्निवङ्ग ५९ पेशी पैशाची [ प्रमर्दन पृष्ठ २६९ पेचकिन् २९६ पेचिल २४. प्रकर्षक " २२८ प्रचक्षस् ३३ प्रजनुक परि० १ "" १० प्रजाकर १९३ १६ प्रतियत्न १६१ प्रतीचीश ५४ ८ १३ प्रत्यक् ३६६ ४ प्रत्यूषाण्ड २८ १५ प्रपातिन् २५३ ५९ ६३ प्रभा २ | प्रमर्दन प२ १० २३ १६ २२ ४ १५ १४ १५ २३ १३ २३ १६ १५. 39 ८ १३ 99 ३ २४ प्रखल. १०० १३ प्रख्यस् ३३ १७ प्रगल्भा ५८ २० ९. ४ १२ ११ २१ २४ ४ १७ १२ २६ १५ 99 २३ ५ ७ Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३ २१५ २८ " भीरु २५६ २७१ ६६ १२ प्रमोदित ] शेषस्थशब्दसूची [ मधुरा श० पृ० पं० | श. पं० श० पृ०० प्रमोदित ५४ बहुरूप २८ ४ | भव्य प्रलापिन् ६४ भाटक प्रलोभ्य १४१ भाटि प्रवर १५८ बहुलग्रीव ३१७ भाण्डिक प्रवरवाहन ५२ १९ बहुशृङ्ग ६२ | भानुकेसर प्रवाहिक ५४ बाभ्रवी भानेमि प्रसङ्ग १९५ बालचर्य ६० ७ भासुर ८४ प्रस्रव परि०१ बालसात्म्य १०५ १४ | भिक्षणा १०२ प्रस्ताव बाहुचाप १४९ १६ भिक्षुणी प्राक ३६६ .१२ बाहूपबाहुसंधि१४७ १७ भीम १७५ बीजदर्शक ९० १ भीमा प्राण बीजोदक ४८ २४ प्राध्वम् ३६६ बुध - ३० . ३ भीरुक 'प्राश्निक २१९ भुजदल प्रियङ्गु. १६० भुजि २६९ प्रियदर्शन ३२१ भूतनाशन १०९ प्रियवादिका, ८२ ८ ब्रह्मचारिणी ५८ २७ भूरि प्रोथिन् ३०० | ब्रह्मण्य ३४ ४ भृगु ३३ 'ब्रह्मनाभ ६२ २६ भ्रामरी फलकिन् १५९ ब्रह्मन् २८. ४ फलोदय २४ भ . मङ्गलस्नान १३१ फल्गुनाल ४४ | भगनेत्रान्तक ५६ मङ्गलाह्निक , 'फाल ६४ . ११ भगवत् ६६ मङ्गल्य १०६ फाल्गुनानुज ४४ . ६ भट्ट परि०१ मड्डु ८२ फुल्लक : . ८४ १३ भणित ६७ मणिकण्ठक ३१८ भण्डिवाह २३० मण्डल ३०९ बदरीवासा ५८ भद्रकपिल ६२ मत्स्योदरी २१० बन्धुदा . १३२ १६ भद्रकाली ५८ मथन ६५ बबरी . १४० भद्रचलन ६४ मदननालिका १३२ १७ बर्हिध्वजा ५६ भद्ररेणु ५१ २० मदशौण्डक १५९ १२ बलदेवस्वसृ ५९ ११ भद्रश्री १५९ मदाम्बर ५१ २० बलि ८२ भद्राङ्ग ६४ ११ | मदोल्लापिन् ३१८७ बलित १०८ भरटक परि०१ ७ | मधुक २५६ बलिन् ६४ भरथ २६९ २६९ १७ | मधुकण्ठ ३१८८ १७ बलिन्दम ६२ भरुज १०४ २३ मधुघोष , भर्भरी ६४ १८| मधुज्येष्ठ १०५ । बहुभुजा ५८ ३०९ १२ | मधुरा १०८ (४९५) १२ " बहपत्री ५९ Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यलोका] अभिधानचिन्तामणिः [ यमकील म श० पृ० प० श० पृ० प० श० पृ० प. मध्यलोका २३३ ११ महामति ३३ १६ | मुद्रभुज् ३०० ६ मध्यस्थ २१९ ६ ६ महामद २९६ , मुनय १९५ २५ मनुज्येष्ठ १९४ महामाय ६२ मुनि परि०१३ मनोदाहिन् ६५ ५ महामाया ५८ मुरन्दला २६६ . ११ मनोहारी १३२ १८ | महाम्बक ५६ २० मन्दरमणि ५६ २० | महायोगिन् ३१८ २३ | मुषुण्ढी १९५ मन्दरावासा ५८ २८ महारौद्री ५९ मूक ३२३८ मन्दीर १६४ १७ महाविद्या ५४ मृदुपाठक .. मयुक ३१७ महावेग ६६ मृदुल १५८ मयूरचटक ३१८ महाशय २६३ मेघकफ ४८ मराल ३१९ महाशिला १९५ मेघनादानु- . मरीच १०८ महासत्य ५३ लासक ३१७. २४ मरुद्रथ ३०० महासत्त्व ५४ २२ | मेघारि. २१७ . १३ मरूक ३१७ " ६६ १३ मेघास्थिमि२७१ ञ्जिका १ महासारथि २९ : मय॑महित २४ ४८ मेचक १५० । १७ महास्थालो. २३३ १२ मर्मचर १५० मेधातिथि ३२१ मर्मभेदन १९२ १७ महाहंस ६२ २५ महीप्रावार २६३ मेरुपृष्ठ २४ मर्मराल २६ १०४ १४ मेर्वद्रिकमहेन्द्राणी ५१८ मलयवासिनी५८ महोत्सव ६५ ३ मलुक १५१ मैथुनिन् मांस निर्यास१५६ . ५ मल्लिकाक्ष ३१२ मोदक १०४ महस ३६६ माद्रेय. १७५ . ८ मोह महाकच्छ २६३ २५ । माधवी ३२७ १६ मोहनिक महाकान्त ५६ २३ माधव्या , मौलि महाकान्ता २३३ १०। मानञ्जर ६२ १३ " २३३ १६ मानस्तोका ५८ महाकाय २९६ महाकाली ५८ २३ मारी ५९ य महाक्रम २० मार्गणा १०२ १ यजत . ३० महाग्रह ३४ ३ मार्जारकण्ठ ३१७ यज्ञधर ६२ महाचण्डी ५९ १७ माषाशिन् ३०० यज्ञनेमि महाजया ५८ मासमल परि०१ महातपस • ६२ २३ मास् ३० महानाद ५६ २४ माहाराजिक २४ २० यथा । महानिशा ५९ १० मिहिर ५० २४ महापक्ष ४ मिहिराण ५६ १६ यदा १८ महाफला १९५ मुखखुर १४६ यम महावल २५६८ मुखभूषण २५६ १४ यमकील ६३ ३ ૨૮ र्णिका । यज्ञराज यज्ञवह हापन ६६ Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यमस्वस] शेषस्थशब्दसूची [ वनराज श० पृ० पं० | श० पृ० पं० यमस्वस् ५९ ४ रसापायिन ३०९ ११ यमुनाग्रज ५३ २० | रसालेपिन् १४५ यर्हि ३६६ १८ | रसिका १४६ यवनारि ६३ १ रसोत्तम १०५ यागसन्तान ५१ १० रस्ना १४६ यादवी ५८ १६ राक्षसी यामनेमि ५० २३ रागरज्जु याम्या ४१. १२ रागरस १३९ युगपत् ३६६ १७ राज युगांशक परि० १ .५ राजराज युधिष्टिर १७५ . ८ रात्रिचर १०० युवन ३० रात्रिनाशन २८ योगनिद्रालु ६२ १६ रात्रिबल ५४ योगिनी ५८ रात्रिराग़ ४२ . ११ योगिन . ५७ रिटा . ३२७ रुचि १११ १७५ २४ २० योग्य १०५ . रुदतनय यौवनोद्भेद ६५ १९४ श० पृ. पं० ललना १४६ लांगूल १५२ . . ६ लाञ्छनी १३२ लालस ११० लालिनी परि०१ लिप्सा १११ लेपन १५४ लोकनाथ ६६ लोकनाभ ६२ लोकप्रकाशन २८ लोकबन्धु लोत ८५ लोभन २५७ लोमकिन् ३१५ लोल ११० लोलघण्ट २७१ लोहकण्टक संचिता १९५ लोहदण्ड , लोहनाल १९१ लोहमात्र १९५ लोहितात ६३ लाकबन्धु , * • * * * * रूपग्रह १४४ - रक्तग्रीव ५४ रूप २५६ रक्तजिह्व ३१० . १२ रेतोधस . १४४ रक्तदन्ती , ५८ . २१ रेरिहाण रक्तमस्तक ३१९ २० रेवती रक्तवर्ण · २५७ १० रोमलताधार१५१ रजस्, . २५६ १३ ___५९ रजोबल ४२ १० रणेच्छु ३१८ . २१ रतावुक : १५१ २० लक्षहन् . १९२ रतोद्वह ३१८ ७ लक्ष्मीपुत्र ३०० रत्नगर्भ ५४ .२३ लघु १५४ रत्नबाहु ६२ ., लङ्गुल १५२ रत्निपृष्ठक १४७ १६ | लड्डुक १०४ रन्तिदेव ६२ . २२ | लतापर्ण ६२ रन्तिनदी २६६ १२ लपित रसनारद ३१५ लम्पट रसमातृका १४६ ५९ रसा " , लम्बिका ८२ (४९७ ) ३२ अ०चि० | वंश ६३ वंशा ३२७ वक्त्रदल १४६ वक्रदंष्ट्र ३११ वङ्ग २५६ वज्रदक्षिण ५० २३ वश्चति २६९ वटिका १०४ १५ वडवा १३४ वत ३६६ वत्स परि०१ | वदाल ३२३ ५ | वरन्तप ३०९ ११ | वनराज ३१० * * ११० | लम्बा Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वन्दी वयुन is अभिधानचिन्तामणिः [व्याधिस्थान श० पं० श० पृ. पं० श० , पृ० ५० वन्दीक २२ वायुभ २४ १६ दिलङ्का ५९ . . ६ वप्य वायुवाहन १७ विलोमजिह्न २९६ १६ वमि २६९ १३ | वार १९२ विशसन १९४ . ३ वारङ्ग ३१५ विशालक ६६४ वर १६०२ वारवाणि १३४ विशालाक्ष ५६ २१ वरक परि० १ १६ वारिवाहन ४८ १२ विशालाक्षी ५९१ वरदा ___५८ १९ वारुणि परि० १ ३ विशोक ३१८, २४ वरद्रुम १५८ २४ वारुणी ५८ २४ विश्वभुज् ६२ २७ वरयात्रा १३१ ४. वार्तिक १३१ १० विश्वेदेव २४. १७ वरवृद्ध १९ वार्मसि ४८ १२ विष २६३ २ वरा ५८ वालपुत्रक १५६ ५ विषाग्रज १९४. . ३ वराण वासनीयक १६० विषागान्त ५९ २४ वरारोह ६२ वासरकन्यका ४१ विषापह ६६ ३ वराहकर्णक १९५ वासवास २४ विष्किर ३१८ २२ वर्धमान ६२ वासिता २९६ २० विष्णुशक्ति ६४ १८ वर्षकोश ४३ २० वासुदेव ३०० . ७ वीक्ष्य ८४.१३ वर्षांशक , " वासुभद्र ६२ . २० वीरभवन्ती १३९ - १० वर्षाबीज ४८ यासुरा ४१ १३ वीरशङ्ख १९२ १७ वलयप्राय १९५ विकचा ५९ ५ वृकोदर ६२ वल्लकी विकराला , ७ | वृजिन परि० १ १३ विगतद्वन्द्व ६६ १४ कृत्र ४२ विजय १७५ . ५ वृदाङ्क ६२ २५६ | " . १९३ . २६ वृषणश्व वसुप्रभा ३ विजया ५८ २५ वृषाक्ष वसुसारा , विजयिन् १९७८ वस्त्रपेशी १६५ ५ विज्ञानदेशन ६६ १२ वेणुतटीभव २५७ वस्न वेदोदय २८५ १२ विद्या १६४ १४ । वेध्या ८२ ११ वह्रिनेत्र ५६ विद्यामाण " " वेल्लिताग्र परि०१ वहिभू २७३ ७ विधातृ ६२ ११ वा | विनोद १३९ २३ वैकुण्ठ २४ २१ विन्ध्यकूट परि०१ ३ वाग्दल ४५ विध्यनि वैजयन्त ६० ७ वाग्मिन् ३३ | लया ५८ १८ वैणव २५७ ११ " " " विपुलस्कन्ध २९१ व्यञ्चन १४५ , वाच | वियति ४२ १२ व्यवहार १९३ २६ वाजिन् २८१. वियाम १४९ १६ | व्यादीर्णास्य ३१० १२ वायु २४ २० विरजस ५९ ८ | व्याधिस्थान परि० १ १२ (४९८) t वश वसु २४ . :: wha वृषोत्साह, वह २७१ ३६६ " * .. ४ ५ ६ ... . Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प० *NOVO शङ्क ५७ " " ****?"*"52:7;********* २३ श्वस् व्योमधूम ] शेषस्थशब्दसूची [ सन्धिबन्धन श० पृ० ० ० ० ० ० ० व्योमधूम ४८ ११ शिनानक ११७ २२ श्येनाक्ष ३१९ व्योमोल्मुक परि० १ १३ शिरपीठ १४६ श्रवण वाज . ३१८ २४ शिलानीह ६६ श्रविष्ठारमग ३० | शिलोद्भव २५७ श्रीकर शकुनि ३२१ ८ शिवकीर्तन ६३ श्रीगर्भ १९३ शक्राणी ७ शिवङ्कर १९५ श्रीधन १०६ ८ शिवदूती ५९ श्रीमत् ३२१ ३ शिवारि ३०९ श्रीमत्कुम्भ २५७ १५२ ६ शीतल २७१ श्रीवराह ६३ शण्ठ २५६ शीतीभाव २१ श्रीवेष्ट १६० शतक शीर्षक १५८ श्रुतकर्मन् ३४ शतघ्नी १९५ । २० | सीलक . १४१ २१ श्रुतश्रवोऽनुज ,, शतमुखी ५९ शुक्र . २५७ ३६६ शतवीर ६२ २६ शुक्र परि०१४ श्वेत २९३ शताक्षी ४१ १२ शुचि २७१ १२ श्वेतरूप्य २५६ शतानन्द ६३ । शुण्डालं २९६ १८ श्वेतवाहन ३० शतावरी ५१ शद्रु . ६३ शुभ्र शपीवि ५० षडङ्गक परि०१ गलधरा षडङ्गजित् ६२ शबर शृगाली १९९. षडूस २६३ शमान्तक श्रृंग 946 पष्टिहायन २९६ शयत षष्ठी ५८ शराभ्यास १९६१ शृंगवाद्य शरु . ६३ . , शृंगोष्णीष ३१० शलिक ६२ - १६ संवत् परि०१ ५ शेफ १५२ शष्कुली १०४ १३ संवृत ५४ शेफस १५ , शस्त्र - १९५ . . ५ सत्यवती २१० १० शेव ३२३ शाकम्भरी ५९ २ शेषाहिनाम सत्यसगर ५४ २३ शान्ति, .. २१. १० सत्याग्नि परि०१ ६४ शान्तियात्रा १३१ । । ५ शंलधन्वन् ५६ सत्र १६५ शारद परि० १ ५ सदागति २८३ शार्वरी ४१ . १३ १४ सदादान ५१ २० शालिहोत्र ३०० ७ शलाट ११ सदायोगिन् ६३४ शालूक २६३ १५४ १३ सद्यस् ३६६ १६ शास्तृ. १९३ २५६ २० सनत् ६१ शिखरवाशोभ २४ सन्तन्ति १३६ सिनी ५९ १२ शौण्ड ३१८ २१ सन्तान " " शिखिमृत्यु ६५ ३ शौण्डी १०९ २ सन्धिबन्धन १५६ १६ (४९९) शुभाशु ३० २५६ | श्रृंगसुख ******************** शैला ३२७ ********713* १४ ध्य है **. * Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सन्ध्यानाटिन् ] श० पृ० . सन्ध्यानाटिन् ५७ सन्ध्याबल ५४ समन्तभुज् २६९ समर्थ १२४ समर्धुका १३६ समवभ्रंश १३१ समारट १५४ समितिञ्जय ६२ समितीपद ५४ समिर ५७ समोलूक २५६ सम्भृत २७१ सम्भेद २६६ सर . १०५ ६२ सरीसृप सर्वधन्विन् ६५ सर्वर्तु परि० १ सल प० श० ३ सिन्धुवृष १० १३ १६ १५ " २४ १० १७ १९ १० १ ८ ११ १४७ २२ अभिधानचिन्तामणिः 2m 9 पृ० ६२ सिन्धुसङ्गम २६६ १२ सुधन्वन् १५ सिन्धूत्थ ३० सिरामूल परि० १ सीमिक २७३ सु ३६६ सुकृत २३ सुखसुप्तिका ८६ सुखोत्सव १३९ सुगन्धिक ३१० सुदर्शन ५१ ३२१ " सुधाकण्ठ ३१८ २६ | सुनन्दा ५९ ४ सुनन्दिनी २६६ ५ सुनिश्चित ६६ सुप्रसन्न ५४ ५६ ७ सलवण २५६ सलिलप्रिय ३११ सहदेव सुभग १७५ "" सुभद्र सहस्रजित् १६२ १४ सुयामुन सहस्रदंष्ट्र ३२३ १० सुरवेला सहस्राङ्क २८ २ सुरालय २७१ सांवत्सररथ १३ सुप्रसाद साध्य सायक १९३ सारण परि० १ सारिका ८० ५ सुष्वाप सावित्री ५८ सिंहकेसर १०४ १६ सुष्ठु सिंहविक्रम ३०० सित परि० १ २६३ सिताङ्ग ५६ सिद्धसेन ६० "" सिन परि० १ सिनीवाली ५८ प० श० २२ सूर्पकर्ण १२ सृत्र ४ समर १४ सेव्य सैरिक ९. सैर १६ | सोम ६२ २७ ४ ३ सूचक ३०९ २२ सूचिकाधर २९६ ७ सूचिन् २१९ १२ | सूत्रकोण ८२ २१ | सूनृत २३ ( ५०० ) २५ ८ 99 २३ | सौम्य १२ (तीर्थ) २०८ सौम्य 5 २५६ स्कन्दमातृ ५८ स्कन्धशृङ्ग ३१० ८ स्कन्धिन् २७३ • ५ ११ १३. स्थिर 91 29 ६२ ६३ ४ स्नेहु स्म स्यन्द २६६ ११ ९ स्नावन् ܩ २ सुरावृत २८ १५ सुरोत्तम ६२ २५ | सुवाल २४ ६२ ९ सुवृष ६५ सुशर्मन् २४ ६० २७ सुषेण ३६६ ८६ सूक्ष्मनाभ ६२ ६२ सौमनस् १५९ [ हरितच्छद . पृ० २९६ ३० २७१ २६३ २४ ४४ 39 स्तब्धसम्भार ५४ देहा २५ स्वनि १६ |स्वमुखभू २१ | स्वयम् o * १९ ५६ 99 ५ स्वजातिद्विषु३०९ ३४ ६२ २६९ ६६ प० ३६६ स्वस्तिक ३१८ स्वस्त्ययन १३१ ह १७ २ १४ ३६६. १६ ह २४ हंस ३०० ११ हक्कास्क परि०१ १५ हनुष ५४ ७ हयङ्कष ५१ ६ हराद्रि २५३ १६ | हरितच्छद २७३ १४ २४ १६ |स्थिरमद ३१७ २२ १८ स्थेय 9 ४ १९ १२ 36 o = w sw or my 20 22 २० " २६ ५ ६ ९ १७७. ११ १५६ ३० ३६६ ३० २३ ४ २७ १६ ६ ९ ४ १२ १७ ५ १३ २३ ७ ९ ६ 99 ८ १५ 99 Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हरिमत् ] . शेषस्थशब्दसूची [ हस्व श० हरिमत् हवन पृ० ५० .२६९ हविस् प० श० पृ० २३ हिमागम ४५ १५ | हिरण्यकेश ६२ हिरण्यनाम " ३६६ ९ हीरी प० | श० पृ० ३ | हुलमातृका १९४ १२ हृत्कर ५७ ३१० १० हेलि १३१ ६ हेषिन् ३०० हैमवती । ५९ . ११ २४ हस्व ११५ - २० हस्तिमा ५९ हासा ३६६ हिमवद्धस २५३ हिमा ५८ . हीर २४ | हल १९५ इति शेषस्थशब्दसूची समाप्ता। MER (५०१) Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिधानचिन्तामणिः विमर्शटिप्पण्यादिस्थ शब्दसूची " श० पृ० पं०७ श० पृ० पं० | श० पृ० . अजिता १५ .६ | अनून . ३४४ . . १६ अंपशुपति ८ ९ अटरूष २७८ १५ अनेकान्त- . .... अशुमत् अटाटा ३५८ ११ वादिन् १२ ३ २७ १२ अट्या " १२ ___" २१३ .१३ अंशुमालिन् ८ अण्डवृद्धि ११९ १९ अन्तरीक्ष ४७. अति ३६५ १४ । अन्ती अ . २५१ . ८ अंहि २७४ अतिमुक्त २८० २ अन्दू २९९ .. " अकर्ण ६० २१ अतीसारकिन ११७ ९ अन्ध २६२ . १८ अकूवार २६३ २० अत्रि ३४ २२ अन्धकारि ५६ १३. अकृश ९ १५ अत्रिनेत्रोत्पन्न अन्धतमस ४२ १५ अक्षरचुन्चु १२२ २० (ज्योतिः) ८ " अन्धातमस " अगस्त्यपूता अत्रिनेत्रप्रसूत२९ १७ अन्यभृत ३१८ (दिक) ८ " अदितिज २४ १२ अपकार ३६१ अग्निजन्मन् ६० ५ अद्रिका ५३ ६ अपचायित ११४ अग्निसख ५ २० अद्रिद्विष ५१ अपराजित २६ अग्रेगू १२६ अद्रिशासन . अपशब्द ३३७ अद्वितीय ३४९ .१४ अपांनाथ ५४ अङ्कुशी ८ अधिपाङ्ग १८९ १८ अप्पित्त २६९ अङ्कय ८१ १९ अधियाङ्ग " १७ | अप्रतिचक्रा. १५ अङ्गजा १२ | अधोवस्त्र १६६ १० | अप्सरा · ५३ अङ्गण २४८ १ अध्याय ७२ ९ अब्ज २९२ अङ्गराज १७५ १४ | अनिन्द्रिय ३३० ७ अभिषुत १०८ अगिरस ३४ अनुग १२५ २१ अभीषु २८ ९ अङ्गुलि १४८ १. अनुगत ८१ १५ अभ्रपिशाच ३४ अङ्गुलीय १६४. ८ अनुगामिन् ३४९ १२ अमरराज १० ३ अघ्रि १५३ १३ | अनुचर " ". अमृतप ४ १६ अधिप २७३ ४ अनुतर्ष २२६ २ अमृतपायिन् , , अच्युतदेवी १५ ७' अनुयोग ७३ २० अमृतभुज " १५ अजगाव ५७ १० अनुराधा ३१ १५ " • अत्रापि पङ्क्षिगणना 'शेष'स्थशब्दसूचीवत् 'मणिप्रभा' व्याख्यात एव कर्तव्या, न मूलश्लोकपडिमारभ्येति बोध्यम् । (५०२) अङ्क Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अमृतभोजन ] श० पृ० . अमृतभोजन ४ अमृतलिह अमृतव्रत अमृतान्धस अमृताश अमृताशन ४ " "HA 09 Mmm س م. م م १८ س ه ه س अम्बुद २५८ अम्ब्ल . अयुक्छद अयुकशक्ति " अयुगक्ष अयुगिषु , अयुग्बाग.. अयुङ्नेत्र " अयोनि २५१. अरघट्ट २६८ अररे ३६६ अरिष्टहन् . ६३ अर्घ्य । २९५ अर्चनीय ११४ अर्धगुच्छक १६३ अर्धनाराच १९३ अर्धहार ५६३. अर्बुद - १२० अर्भक ९२ ___" ३०४ अर्वन् । २९ अलक्तक १६९ अलिन् २९४ अलीगर्द ३१४ अवगण ३४९ अवगणना ३५३ अवच्छुरित ८३ अवतमस ४२ अवनद्ध अवन्ध्य विमर्शटिप्पण्यादिस्थशब्दसूची [इन्द्रकोष पं० श० पृ० पं० श० पृ० पं० २१ | अवमानना ३५३ १६ आच्छादन १६४ २० १६ | अवरा २९९ आण्ड १५२ अवलेप ८७ आतपत्र १७६ अवस्कन्द १९९ आतायिन् ३२१ ५ अवाची आतिथ्य १२६ - ११ अवीरा १३४ आत्मज अवेक्षण ३६१ आत्मजन्मन् " अशुचि १५७ आत्मजा १३६ आत्मभू अश्वगोयुग ३४२ अश्वषङ्गव ३४३ आत्मयोनि " अष्टश्रवस २ अष्टापद ३.९० असतीसुत १३७ स्मरुह असत्य - ७४ ६ आत्मसूति " असहाय ३४९ १४ | आदिकवि २४ असित ९ १३ आदित्य ३ २४ अंसुराचार्य ३३ । २० आध्राण ११० | असुहत १७९ ९ आनुपूर्व्य ३५९ | अस्ना . ३५३ १७ आन्तःपुरिक १७८ | अस्ताचल २५३ . ९ आन्तश्मिक " | अस्थिनेजस १५५ २० आपत्ति १२१ | अहङ्कारिन् ११५ १५ आपदा " अहमग्निमा ८७ ११ आप्लाव १५८ अहम्प्रथमिका " " आभीरपल्लि २४७ अहिभज ८ १२ आभोगिक ८० अहिरिपु . ११ आयु ३३० अहिलोचन ६० आयुर्वेदिक १२० - आ. आयुष्मत् १२१ आकर ३३९ आलान ६० आकाश आलिङ्गय ८१ स्फटिक २६१ आशिर १०३ आक्रमण । ३६० आश्विनेय ५२ आक्षारणा ७५ १९ आस्कन्दित ३०३ १३ आक्षारित ११२ | आस्तरण १६७ आखण्डल १ आग्नीधी २०१ इत्वर ३०५ १ आग्रह ३५८ ६ इन्द्रकोष २४९ (५०३) ::४.४ ४ ४ ४ ४.० ४ ४ ४ ४ . २० ه ه م ع - - . : * * . ५ . - ० - Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इन्द्रलुप्त ] श० इन्द्रलुप्त इन्द्रावरज इन्वका इषिका इषीका इषुधि ps ईश्व ईषीका ह 4 पृ० ११८ ६ ३० २४ २९८ ८ 99 १९३ ५८ २९९ ११० पं० श० पृ० २१ | उल्कामालिन् ६० १५ उष्णवारण १७६ उहार ३२५ उपासना १२६ उरसिज १५० उर्वशी ५३ उभृत् ९ " १४९ १५२ १९८ १४ ऊर्जस्वत् १९७ ७ | ऊर्ध्वदेहिक ९९ २१ ऊहा ८८ २१ उच्छादन १५७ उच्छ्वास ७२ १० उत्कण्ठ ८६ ६० ៩ ៩ १७ अभिधानचिन्तामणिः १७ २५ ऊ ऊरुदध्न ऊरुसन्धि ऊर्ज ऋ ऋजुरोहित ५२ ऋतुस्थल ५३ ए एककुण्डल ३१४ ३४९ ८ एकल २२ एकाक्ष ११५ १३ | एलापत्र - ३१५ ४ एषणिका २३० एषणी ऐ ४ ऐडविल १२ | ऐलोज • क ५४ ६० उसुङ्ग उदयाचल २५३ उदरिक ११४ उदस्त ३५४ उद्धात ३६० उद्घातन २६८ उद्दालक २९५ १७ ३ उदङ्ग २४१ उद्वहा १३६ ओ उन्दर ३१३ १३ उन्मज्जन ६० १७ ओदुम्बर २५६ १११ ३१९ उन्मादिन् ११० १३ औ उपकर्या २४५ १२ औत्तानपाद ३४ उपधा १०० ३ औत्तानपादि कमलजन्मन् ६१ उपमिति ३५० १६ औपगव ३ १७ कमलासन 39 उपयन्तृ १५० १९ औपवस्त उपवस्त्र २०९ ६ औपवाह्य २९७ उपश्रुति , ७३ ४ और्ध्वदेहिक ९९ उपावर्तन २३५ १६ औ २०९ ६ कमलिनी २८२ २९ १ पं० श० १९ कक्कोल २१ | कक्षापुट २ कक्षीकृत कखटी कङ्कणप्रिय 99 ९ २१ कच ५ कच्छाटी कठोर ८ कण्डानक ६० कण्डूति ११८ कदूर • ९४ कनक २८० कनका २७० २२ कनकालू • १७७ कनिश १४ २८७ कनिष्ठ ३४३ ६५ 99 39 २५५ १२ ६० २८२ १६६ 99 .७५ १४ कडिन्दिका ७२ ९ १८ कन्तु ११ कन्द कन्या 93 39 कपालिन् १७ 39 १९ कपिल कपिला २ कफाणि १३ 99 पृ० १६० कमन कमल 99 कररुह करवीर ११ क २६२ १८ कराती ५ कंसजित् ६३ ११ | कर्क २८ | ककुत् ७ ३०६ ( ५०४ ) 99 १६७ ३५५ २२ २८३ ३३ २७० [ कर्क ३ 0 ६० ३१५ ३०६ १४७ ७ १ 2 8 १७ ५ २३ १५ २५ ८ २२ २१ २२ २ " २१ २ २० ३ २२ १ २० १७ १७ १५ १८ 39 0 x 60 ९ ७ १६ करन्धम ६० २० १४ करपत्र २२९ १४८ २९१ १३० ३३ ३२४ १४ 5 20 201 ५ १४ ४ २ ३ २० Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तक १२३ कर्कन्धू ] . विमर्शटिप्पण्यादिस्थशब्दसूची । केलि श० . पृ० . पं० | श. पृ२ पं० श० पृ० पं० कर्कन्धू २७८ ३ | कालकण्ठक ३२० १८ कुमुदतीश २९ १३ कर्कराटु, ३२१ १९ | कालनेमिहर ६३ १० कुम्भ ३३ कर्णपुरी २४२ ,५ कालानुसायं १६० ९ | कुम्भज ३४ कर्णान्दू १६२ १८ कालिका ४८ १४ कुरण्डक २७७ कर्णारि १७४४ | कालिन्दीकर्षण ६४ ८ कुरह कर्बुटिक २४१ १ कालिंदीभेदन " " कुरुण्टक " कर्मसहाय १७७ ८ कालिन्दीसू २७१ कुर्पर १४७ कर्मेन्द्रिय ३३३ कालिंदीसोदर ६ २२ कुलक कर्वट २४१ १ कालिय ३१५ २१ कुलपालिका १३० कलन्दिका ७२ . १५ कालियदमन ७ २३ | कुलिङ्ग ३२० कलाधर २९ १७ " " : २५ कुल्माष १०८१ कलानक .६० २५ " ६३१२ " २८५ - १८ कलानिधि २९ १६ | कालियभिद ७ . २३ | कुशाण्डिन् ६० १७ कलापच्छन्द १६३ २० कालियशासन " " | कुशीद २१८ कलिंदतनया२६५ १० कालियारि . , कुशूल २४९। कल्मष ३४५१८ | कालीय १६० ९ कुष्माण्डी १५ । कल्माष.. . | काश्मयं २७९ ७ कुसुमधन्वन् ६५ पक्षिन् २९६ किकिदीवि ३२० १ कुसुमबाण " कवचित १८९ १० किकी , कुसुमाञ्जन २५९ कवाट २४८ ११ | किङ्किणी १६४ १३ कुसुमायुध ६५ कशारु १५५ १३ किञ्चुलुक २९२ कुहक २३० कशारुक " १२ किदिभ. २९३ २४ | कूचिका १०५ कशिपु . १६९ २ किन्नरेश ५४ कूटतक्ष २२९ काकल . १४७ ४ | किर्मीरारि १७३ कूणकुच्छ ६० काकलि. ३३९ " किशोरक २९ कूर्पास १६६ काकलिका ५३ ५ कीचकारि १७३ कूष्माण्ड २८८ कांड ७२ १० कुकुंदुर १५१ | कृतकृत्य ९३ कान्त .. १३० १७ कुज २७३ कृतान्त कामध्वंसिन् ५६ . १२ कुटक २५२ कृतार्थ ९३ काममित्र ५ २५ | कुटुम्बिनी ३४१ कृतालक ६० कामला ५३८ कुंडिनापुर २४२ कृति ३५७ कामसुहृद् ५ २५ | | कुतापक २९६ कृतिन् ९३ कारेणव २११ १२ | कुतूहल १२८ २५ कृपाणी १९४ १४ कार्तवीर्य १७३ २० कुध्र રપર कृमिजग्ध १५८ २० कार्तिकेय ६० २ कुमार कृशेतर ९ १५ काट २४११ | कुमुदसुहृद २९ १० कृषक है २२२ ७. काल १४ कुमुद् २८३ ६ | कृष्णा ३०५ कालकण्ठ २ .६ कुमुदिनी " ३ केलि १२८ (५०५) Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ केली किल ] O पृ० ९० ६ केशिहन् ६३ ११ कैटभरि 99 कैरव कैरवबन्धु २९ कोकिला ३१८ कोटीश २२३ कोपन १०२ कोपना १२९ कोल १६० कोश ३१७ कोष २४५ कोष वृद्धि. १९९ कोष्ठकोटि ६० कोण ३३३ कौटिल्य २११ श० केली कि म क्नोपन - ख क्रतु ३४ क्रव्याद ५४ क्रिमि २९४ क्रञ्चा ३१९ क्रौवदारण ६० तान्ति शान्तिमत् २१ १०२ ९२ क्षीरप क्षीरस्फटिक २६२ क्षुधा ३३० तुरिका १९४ क्षेत्राजीव १२२ क्षेमक ६० क्षेमा ५३ चौद्र २९५ ख खक्खट खउच २५६ १८ १० " २१ १३ ५७ १३ १०४ ३३३ ११६ अभिधानचिन्तामणिः श० खटकिका खट्टिक २३१ खङ्गपिधान १९४ खण्डल ३४५ खर "? ६० ६ २८३ २ खरद्वारिक २९ १८ | खररश्मि २६ १२ खराण्डक ६० ६ खलत १५ खात २४ खारीक १९ | खोल २४ २५८ १४ पृ० २४८ ग गगन गङ्गाधर गजनगर ११५ २६८ २४० १८९ २५८ ४ २४२ ७ गजपुर २२ गजरिपु ४ गजवदन ८ गजषङ्गव २३ गजानन ४ १३ १६ 99 ६ गजासुरद्वेषिन् " १ 9. ५६ ५९ ३४३ गगदेवता २४ १६ गणिकापति १३१ १३ गदाग्रज ६ पं० १४ २० ७ गदाधर ६२ २२ |गन्दुक १६९ ६ गन्धकाली २१० गन्धवाह २७१ १७ ९ ५ १९ गरुल गर्जा ७ ६ गर्दभ २४ २० गवीधुका १३ गवेड 91 ५९ २० गजान्तक ५६ १३ गजान्तकृत 99 गजारि ९ गवेश्वर १० गाङ्गेय २० १४ २० ४ १४ गार्ग्यायण गिरिक ७ १० गिरीयक 'गुदकील गुलुञ्छु 99 " १० २२ १३ १५ गरुडाङ्क श० गरुडरथ ६३ १६ ४ गरुडवाहन ६ 99 ६३ २० ९ ፡ पृ० fibrom x [ ग्रहणी गोस गौतमी ६१ ६५ ३३८ २८३. २८६ २२१ ६० धनन्दन २१० गार्गक ३४० ३ १६९ गौरीप्रणयिन् गौरीभर्तृ गौरीरमण गौरीवर 91 गभ स्तिपाणि २७ ५ गौरीवल्लभ गरुड १९३ ८ गौरीश २२ गरुडगामिन् ६३ १६ ग्रहकल्लोल 9 गरुडध्वज ६१ " | ग्रहणी (५०६ ) ५ ७ ७५.. १५ १० 99 99 ११९ २७५ ५४ ६० ४० २६६ गौरीपति ५ 99 39 गृधजम्बूक गेहिनी १३० गोकर्ण ३१४ गोकिराटी ३२१ १४ गोपाल ६० २० गोपित्त २६० 9 99 99 9. 59 ६ १६ १६ २३ 99 ३४ ११९ ११ २४ १ १९ २६ . १८ १९ " १० २१ २० २५ २ ३ 8 १७ ५ ≈ & mσ = 5 m & w x १२ ९ १३ ९ " " १३ १५ ९ ६ २४ Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० ३३० घ ताचा " महेश] . विमर्शटिप्पण्यादिस्थशब्दसूची [जीव श० पृ० प० । श० पृ० प० । श० पृ० ० ग्रहेश २७ ९ चरणग्रन्थि १५३ ११ | छात्रक २९५ ग्रामणीमालु ६० २० चरणप २७३४ छादित ग्राम्यशूकर ३०९ चरण्टी १२९ ३५३ ग्राहक ६० २३ चरिण्टी __, छायाङ्क २९ १६ ग्रीष्म ४४ " चर्च चर्मग्रीव ६० जकुट ३४२ घण्टाकर्ण चलदल २७६ जवाकर १२५ घात चल्लक १४९ जन्म ३२९ घृताची चाणाक्य २११ जम्भद्विव ५१ घृष्णि चाणूरसूदन ६३ जयन्त चाण्डाल २३२ जरढ ३३३ जल चान्द्रभागा २६६ . ३ २८५ चकित १२८ जलज २९२ चक्र चन्द्रमसायनि ३३ १० २६६ " ३२० चामुण्डा ५७ १३ जलद चक्रपाणि ६२ चारक २००८ २८९ चित्तोक्ति ७३ चक्रमर्द. २८२ जलधर चित्रक १६१ चक्रवर्तिन् १७३ २८९ चक्रवाकबन्धु २७ जलधि ९ २० चित्रकर २२९ . चक्षुःश्रवस ३१४ जलपिण्डिल २६८ १८ चञ्चल १२० चित्रकार २४ जलेशय चण्ड ६० १६ चित्रकृत् जलोन्माद ६० २६ चतुर्मुख चित्रलेखा ५३ २ . ९ जवन १०९ . १६ चतुस्लिं.. . चिरण्टी १२९ जवनिका १६८ शज्जातकज्ञ ६६ २१ चिरायुस् १२१ जवा २८० चन्द्रं चिरिका १९५ । २५६ - १८ चिलिचीम ३२३ जहुकन्या २६५ चन्द्रमनस २९ २२ जागरित ११३ चन्द्रमौलि ३ - २७ चिहुर जात ३६१ चूडारत्न १६० जाति १५९ चन्द्रशिरस् ॥ चोट ११ जातिकोष , चन्द्रशेखर " ५ चोदित ३५४ जातीकोश , चन्द्रात्मज चौर १०० जातीकोष जातीफल " चन्द्राभरण ४ छन्दोविचिति६९ जातृकार २९ चन्द्रिमा ३० " छाग ६० १७ जानुदन १४९ चपल. २५८ छागमेष , १८ जानुद्वयस " चमस १०४ ११ | छागी ३०८ २१ जानुमात्र " चरण २७४ १९| छात ३५६ ३। जीव (५०७) . . . . . . . ४ १० १४२ ::::.:.:. ४ Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवातु ] श० जीवातु जुगुप्सा जम्भक टङ्कन टङ्कपति टीटिभ ६० २१ जेन २१३ १३ ज्ञानेन्द्रिय ३३२ २१ ज्योत्स्नेश २९ १३ ज्वालाजिह्व ६० २२ ज्वालावक्त्र 39 २६ झ झषध्वज ट त पं० पृ० श० ३२९ १६ तापस ७५ ६५ तम तरणी २३४ १७८ ३२० तटस्थ तटाक तनया तनुज तनुजा तनुत्राण १८९ तनूज १३६ तनूजा त तर्षित तल तला तल १७९ २६८ १३६ 95 99 99 ६० तपन १२८ तपस्विन् २०१ तपोधन २१ २० | तुला १० १३ तूल ሪ तृण्या ३४१ १२ तैलस्फटिक २६१ 99 तोमर १९७ ८ तोयद १२ तोयधर तन्तुवाय २२७ १५ तोयधि तन्द्रि ८६ १२ तन्द्री तप 99 99 २१७ तरवालिका १९४ २१७ अभिधानचिन्तामणिः १०३ ३२८ १९१ २६८ पृ० २ तापिच्छ २७९ तामस तारका १४४ तारकान्तक ६० तिमिरारि २७ तिरस्कार १२३ तिरस्कृत २३ | तुण्डिकेरी ३ तुन्दिभ ७ तुन्दिल तुम्बुरु तुषार ३४ ६ त्रिलोचन २३ त्र्यक्ष २१ वन २३ |स्वक्सार ३ त्विषामीश ४ ६० २५ ५ ४ 99 तिलन्तुद २२८ १२ तिलोत्तमा ५३ तीक्ष्णगन्ध २७७ २८८ २ ११४ २३ द २० दक्षाध्वर १४ ध्वंसक 99 त्रिकटुक १०९ त्रिघनस् २९ त्रिदिवाधीश ३४ पं० २५ २२ 99 २२ ५३ १३ ३३ ३ ३०० १९ २७८ १२. ५ २ 99 " ५६ ( ५०८ ) श० दण्ड पृ० २९ दण्डकरोटक २५२ २ दधिकर्ण ३१५ 19 दधिपूरण १६ दधिमुख ६ ९ दण्डासन १९३ दण्डिक २ दण्डपुरुष २९ दगुण ११७ [ दिनबन्धु दध्याज्य २०६. दनुजद्विष् ९४ दमून स् २६९ 99 १९ २५ त्रिनेत्र ९ १ १२ | दाक्षीपुत्र त्रिपुरान्तक ५६ १५ त्रिमार्गगा २६५ ६ दात्योह २ ८ दानव ९ ७ दाय १८९ १३ दारिका २८१ ६ दाल २७ दम्भोलि २६१ दयित १३० १७३ २ १८९ ८ दशबल २२ | दशभूमिग 19 दशकण्ठ दशग्रीव दशन दशपार मिताधर ६६ १० दिधीषू दिनकृत् दिनप्रणी १३ | दिनबन्धु २३. दशरथ १० २० | दशशिरस् १७३ ७ दशाश्व २९ २४ दशास्य १७३ ९ दाक्षायणी ५८ २ दात्तायणीश १९ २११ ३२० ६७ 99 99 १३१ १३६ २९५ १३२ २७ - 99 99 ७ 29 २४ ७ ६ २० १९ 99 १७ १३ ४ ९ १७ • १३ ९ १२ २२ 39 २१ १६ १२ १० १२ 99 १३ ४ १७ २ १६ १३ १७ २१ ८ " Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिनमणि ] दुन्दुभ दुर्मुख दूरदर्शिन् दृष्टिपात श० पृ० दिनमणि २६ 99 दिनरल दिनान्त ४० दिनेश २७ दिवः पृथिवी २३३ दिवा ४० १३ दिवाश्रय ७ १ दिवि ३२० २ दिवौकस् ७ 9 दिव्या ५३ ६ दीपक १६९ १० दुःसंज्ञा २९३ ७ ३१४ १३ ३१५ १६ ९३ १२ ६८ १ दुणि देवकीनन्दन ६२ देवगणिका ५३ २ द्रुत देवगुरु ३३ ३१८ १२ द्रोण देवत्व २०९ २ द्रोणमुख २४१ देवभोज्य २५ ७ द्रोणी देवान्न देवाहार देहज देहजा ."" . १३६ "" देहभाज् ३२९ दैतेय ६७ दैत्य दैवप्रश्न दैव्य दौल दौगूल "" विमर्शटिप्पण्यादिस्थशब्दसूची ७३ ३ १८६ प० श० २७ दौष्मन्ति २६ द्यमणि "9 २२ १० १४ १३ वासिन् 'देवयान ३३ 'देवराज १० देवर्षि २१० १० | द्वाः स्थित २ द्वाःस्थ देववर्त्मन् ४८ २ देवसायुज्य २०९ देवान्धस् २५ घुशय सद् घुसदन घुसद्मन् 99 २ 99 द्योत 29 दङ्ग = 99 द्वारपाल 99 द्विजेश ६ द्विविदारि ७ ध 33 धनञ्जय ९ १२ ११ पृ० प० श० १७३ २६ ७ धनद धनवत् धनिक 99 धनिन् 99 २४ धनु १८ धनुर्धर १६ | धनुष्मत् 99 99 99 99 द्रप्स्य द्रविण १४५ द्वाढिका २१८ २९४ 99 99 २४ २८ .२४१ "" १०६ १९८ - १७७ 99 99 २९ ६२ २१८ ११ १२ द्रौणिक २४० १५ ३१६ २ १२१ ९६ १२१ 99 99 ३३ धनुस् ( ५०९ ) १३ | धनू २६ धन्विन् १९० १ धमधम ६० " धरणीसुत ३३ धर्मोपदेशक २१ धवला ३०५ धातृ "9 99 99 ६ धात्तूर 99 9. mx १७ धारण ३०३ धाराकदम्ब २७८ धावक २२८ धिक्कार धिपाङ्ग धियाङ्ग २५ धीन्द्रिय ३ ३ ४ ·99 35 १६ w 20 2 २ धीमत् ११ धीराज १४ धीरुण्ड १ धुन्धुमार १७३ २ | धूममहिषी २६३ " १४ २ धातृपुष्पिका २८० 99 22 धूमरी धूमिका १२ घृष्णि ८ ११ [ नदीपति धूम्या धूलि १८ धैर्य २६ १० पृ० १९१ 99 ३४१ २४० धूलिकदम्ब २७८ न नक्तम् ४१ नक्षत्रवर्त्मन् ४८ नक्षत्रेश २९ २ २४ नखारि ६० १९१ १० ननिका १३४ १९० १३ नडमीन ३२३ १५६ २६३ ७५ १८९ 99 ३३२ ९२ ६० "9 १४ | नदीपति २८ धेनुकध्वंसिन् ६३ ८५ 39 प० ११ १३ २२ ७ २० १७ ७ १८ २० २ ५ १ १५ १८ १७ २१ १९ १६ २३ १९ १५ "" 99 ६ १५ ६ ११ ९ ११ ९ २ १३ २४ २१ २० १७ २१ Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ WWWW ६ । नीर नन्दना] अभिधानचिन्तामणिः [परिणाम श० पृ० पं० श० पृ० पं० श० पृ० पं० नन्दना १३६ १२ | निरीक्षण ३६१ २४ नैसर्प नन्द्यावर्त ३२४ ५ | निरुक्त ६९ १२ नौका २१७ नभाके न २७ ११ | निर्गुण्टी २८०१ न्युज ११५ . नभःपान्थ " निर्जन १८२ १८ नमस्करण ३५८ २२ | निर्धन ९६ १२ | पक्षिन् ४१ . नमस्कार " | निलंयनी ३१६ २० | पञ्चज्ञान ६६ नमस्कृति " " निर्वापण १०१ पञ्चबाग ६५ नमुचिद्विव ५१ २ निवेश २४१ पञ्चयज्ञ. १३.. नर २३ २९ परिभ्रष्ट | निवेशन , ३ नरकारि ६३ १३ निशाटनी ३२१ १७ पञ्चेषु नरपाल १७० २ निशामणि २९ १८ पटचोर १०० १६ नरवाहन ८ निशेश , पटाका १८४ १४ १७ नवशक्ति | निषङ्गिन् १९० १३ पट्टन २४० . २२ नशन १९९ १२ निषि पट्टिश १९५ . १२ नाकेश ५० १९ द्वैकरुचि २१३ ४ पण्डु १४१ ११ नाग ३१५ २२ नीति १८२ २२ पण्यवीथि २४४ १३ नाटेय १३७ १६ | पतत्रि ३१७ ३ नाट्यधर्मी ७७ १८ नीरज " १६ पतद्ग्राह १६८ २० नाडी ४० पताकाधर १८९ नानाविध ३५१ २२ पत्तन २४१ नाभिजन्मन् ६१ | पत्रमारी १६२ नारकिक ३२७ २८९ १५ पत्ररथ ६ नारकीय " " नीरधि ९ २० पत्रवल्लरी १६२ नार्यङ्ग २७९ नीरोग १२० १९' पद् १५३ निःशेष ३४४ नीलकण्ठ पद्मपाणि २७ निःश्वास ७२ नीलाम्बर ६४. ६४. १० पद्मबन्धु " ६ निःसम्पात ४२ नृपासन १७६ १७ | पद्मालया ६४ १६ निःसार ३४७ नेमि २६७ २० पद्मासन ६१ ७ निःसारित ११२ नेमिन् १२ पद्मिनीश २७ १० निकषात्मज ५४ १७ पयोधर . ९ २३ निगम २४१ परःसहस्र ३४३ निगल २९९ नकषेय परपुष्ट ३१८ निचुलक १६७ ६ नैकसेय ३ परशुराम २१० १२ निधानेश | नैचिकिन् ३०६ ८ परिग्राह १३० १९ निमि १२ १० नेपाली २६० | परिच्छेद २ . १० निमीश्वर १६८ नैमित्त १२२ १२ परिजन १७६ १३ नियुत २१७ ३ नैमित्तिक " " परिणति ३६२ ३ निरर्गल ३५१ / नैरयिक ३२७ २ परिणाम ३४७ ११ (५१०) नीरद २८९ ९ नीरधर १ Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिणेतृ ] श० पृ० परिणेतृ १३० परिबर्हण १७६ परिवेश • २८ परिव्राज् २०० परिहार्य १६४ परीवाद ७५ परोलक्ष ३४३ पर्णिनी पर्शुधर पलिघ पल्यङ्क पवनी ५३ ८ पर्यनुयोग ७३ २० पर्येषणा १२६ ५९ १९५ १६७ २५० ३०८ १३५ पश्चिमरात्र ४२ पश्यतोहर २२६ ३०५ पवित्र पशुधर्म पष्ठवाहू पाद्विष् ५१ पाकशाला २४६ पाकशासन ५१ पाटला ३०५ पाटली २७९ पाणिग्राह १३० पाणिज १४८ ६० पाण्डु पाण्डुक पाद् पाद पं० | श० १९. पारिभद्र १३ पारिषद पामा ११८ पायतिथ्या १६२ पारावत ३२२ २१ पारीन्द्र २२ - पार्वत ५ पार्वती - १५ नन्दन पार्श्वनाथ ९ पाशपाणि विमर्शटिप्पण्यादिस्थशब्द सूची 9 १९ | पिङ्गल "9 · 8 १९ १७ ९ ११ ६ १३ 39 पिचुमर्द पिञ्छ पिटक ५४ पाशयन्त्र २३२ पिङ्गगज २९ पृ० पं० श० २७८ २० पुरजयिन् १४ पुरजित् ५७ ३१० ३४१ ६० १२ १३ | ताशिन् १९ पिशुन १४ पीतंसार २६ |पीतसारक १४ पीतसालक १२. पीयूष १९ पुक्कस ४ - . ५५ १५३ २७४ पादत्राण २२८ पादमूल १५३ १४ पानगोष्ठी २२६ ९ पाम र ११७ ७ ५ पुत्री ९ पुर ४ |पुरघातिन् 43 ३ पिनाकधर पिनाकपाणि " . पिनाकभर्तृ 99 ५५ २७८ ३१७ २५१ 99 पिनाकमालिन् पिनाकशालिन् ३ ४ २ १०३ १५ पिपासित ३ | पिप्पलीमूल १०९ १७ पिशि ६० १५९ २७९ 99 39 १०५ २३२ 99 ८ पुरदमन ९ पुरच्छिद् ( ५११ ) १ ११ १३ 9 9 9 20 ५ पुरभिद् पुरमथन पुरशासन ७ ५ १४ पुरसूदन ९ | पुरहन् १० पुरहारिन् पुरान्तक २७ ५ २९ | पुरान्तकारिन् २६ पुरारि "" 20 ४ पुरद्रुह् पुरद्वेषिन् २३ २० पुरध्वंसिन् पुरनिहन्तृ १० ११ १२ कास्थला ५३ पुटभेदन २४१ २ पुण्डरीका ५३ ७ १३६ १३ ७ १७ १३ पुष्कस पुष्पचाप पृ० १९ पुष्पास्त्र १० पुष्पिता ८ पूजनीय पूज्य ७ 22 39 99 99 33 99 99 99 ६ पुल पुलस्त्य २८ पुलह 99 २ पुलोमद्विषु ५१ " "" "" 23 19 $5 पुरूरवसू १७३ 99 19 eu m 6 ६० ३४ २३२ ६५ पुष्पदन्त ३१५ पुष्पध्वज ६५ पुष्पन्धय २९४ पुष्प लिह् पुष्पशकटी ७३ ६५ १३५ ६५ ११४ [ पूर्वेद्युस् पं० 99 93 पूतनादूषण ६३ पूतिगन्धि ३३४ पूर्वदिगीश ५० ४० १७ १३ १५ १४ १३ १४ १६ १३ १५ १४ १७ 99 1 2 3 x 8 = १६ 99 १७ १५ १४ १९ २२ 20 " २ 00: १० ७ १६ २० "" २४ ७ 9 ७ ६ w go ५ ९ २० १८ १६ Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूषदन्तहर] अभिधानचिन्तामणिः [भूच्छाय १२ श० पृ० पूषदन्तहर ५६ पृथग्रुप ३५१ पृथ्वीधर २५३ पृथ्वीभृत् ॥ प्रष्णि ।२८ पेटक २५० पेयूष २५ पेलक १५२ पेशी ३१७ पोली १०४ पौत्तिक २९५ पौलोमीश ५० प्रगल्भ १११ प्रगे ४० प्रणमन प्रणयिन् १३० प्रणाम ३५८ प्रतिग्रह १६८ प्रतिचर ९६ प्रतिशब्द ३३९ प्रतिसूर्यशयानक ३१३ १३० पं० श० पृ० पं० श० पृ० प्रवेणी १४० २३ बहुरूप ३५१ . २२ २२ प्रव्रज्या | बहुरूपा २७० प्रशस्त |बाण ६२ प्रष्ठवाह ३०५ बाणजित् ६३ प्रसिद्ध ३५६ बाणधि १९३ १६ प्रस्तर १६८ बाध ३३० प्रस्मृत ३५७ बार्हस्पत्य ३ प्राचीश ५० बाल ३०४ | प्राजापत्य बालक ९२ २ । (तीर्थ) २०८ बाहुलेय ६० | प्राणसम १३० | बिम्बिका २८८ . १ प्राणिन् ३२९ ११ बुक्क १५४ २० ११ प्राणेश बुक्का. . . . . . . १६ प्रातर् ४० १६ बुद्धिमत् । ९२ . १९ प्रादुष्कृत ३५३ : १२ बुद्धिसहाय १७७६ १८ प्रादेशन , १०१ १५ बोधद १२ . ४ २२ प्रापणिक २१५ . . १ | बौद्ध २१३ . प्राहे ४० | ब्रह्माग- ५७ १७ प्रिय १३० भ भद्र ११ प्रियाल २७९ भद्रपर्णिका प्रेयस् १३० ११ प्रेष्ठ , भन्द्र भरत भल्ल फणिलता २८१ १५ भषक ३०९ फरक १९४ भसल फल १५९ ११ भार्गव २३ फल्गुनीभव ३३ भाषित ६७ १५ भिद् ३५५ ३ बकारि १७३ २० भीमसेन १७३ | बकेरुका ३२० | भीषक ६० १९ बर्हिन् ३१७ | भुक्तशेष २०७ २२ बर्हिस् २६९ ९ भुजशिखर १४७ ७ बलद्विष ५१ ३ भुण्डि ६० बलवत् ११४ १७ | भुवः ४८४ ७ बलिपुष्ट ३१८ १२ | भुशुण्डी १९५ १८ | बलिबन्धन ६३ १४ | भुषुण्डी " २० | बहुप्रसू १४० १२ | भूच्छाय ४२ (५२) प्रती पदर्शिनी १२८ प्रत्या ख्यानभवाद६९ प्रपुन्नाड २८२ प्रभव १३ प्रभविष्णु १२४ प्रभावती ५३ प्रमथाधिप ५९ प्रमर्दन . ६० प्रमातामह १४० प्रयाण १९६ प्रलम्बघ्न ६४ प्रवहण २१७ प्रवही ७२ Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूवन ] श० भूधन = 99 भूधर 93 भूनेतृ भूप भूपति भूपाल 39 99 भूभुज् भूभृत् 99 99 भूमत् भूरुह भूसुर भौम म पृ० पं० २ 99 मकुट मकुर मङ्कुर १० मज्जन मज्जा मञ्चक मञ्जरी मणि मण्डप 99 ८ २ १९ २६ १९ 99 99 " 35 १७० 99 ९ १० २५३ ३३ भ्रातृज १३६ भ्रातृजाया: १३० भ्रामर २९५ २ २७३ २०१ मकरानन ६० मकरालय २६३ १६१ १६८ १५५ २४९ श० १९ मण्डलक २१ मतीमत् १ मत्स २७५ ३१५ ง "" ३३ अ० चि० २१ विमर्शटिप्पण्यादिस्थशब्दसूची पृ० ११९ ९२ ३२३ मत्स्यण्डिका १०५ मत्स्याण्डी 93 मद मद्र २ मधुमथन १९ | मधुलिह २८ मधुव्रत मधुकर मधुप ५ १ १८ २२ १२३ २४ ५३ ६ मन्दर १६३ · २० मयूख ७२ १० मयूररथ ५९ २६ २५६ १८ मकर ४ ३३ मकरकेतन ६५. १२ ३४ २२ मराल मरीचि मरीचिसूचिका ५३ मरुदेवी २३ मर्जिता मकरध्वज 22 "3 १४ "" 9 मधुसख ५ मधुसिक्थं २९१ २४ मनसिशय ६५ २ मनुष्यधर्मन ५४ ९ मनोगवी ११० मनोजव ७ २० मनोरमा ७ १७ ३ मलिनी १७ मषि मषी 99 १२८ ३३९ २९४ १०५ मलपू २७७ ३०७ १२३ ६३ २९४ ३ २० १२ | महा "" 39 महाकुण्ड 99 मङ्गलशंसन ७५ २० मस्तक २७४ ६० १७ १६ महाकपाल ६० १८ १९ महाकपोल १४ 99 99 19 पं० श० पृ० २ महाचण्ड ६० १९ महाचित्ता ५३ 99 ५ महाजम्भ ६० ६ महाजानु 99 महानोल ३१५ 99 (५१३ ) २४ | महापद्म २ 99 १४ | महाबिल २० ९ २० 99 .. महाकाल ६५ १४ ६० १५ ५ १३ ሪ ३ २० ३ 93 99 ४८ महाशिला १९५ महाशीर्ष ६० महिर २७ महीधर ६१ २५३ [ मिथुन पं० १७ ५ १९ २४ १६ १४ ५ ४ १३ २१ ९ २१ ५ 99 महीध महीभृत् ९ महीरुह २७३ महेला १२७ मांसभक्षक ११० मांसाहारिन् "9 ५५ २१७ मारजित् मारिष माकन्द माक्षिक माठर माणव ५५ माणवक १६३ माणिक्य २६० मातुलिङ्ग २८० मानसौकस् २५६ मानिन् २ मानिनी १२८ मार्ग "" माहेय २३ | माहेश्वरी १८ | मिथुन २७७ २९५ २९ 99 "3 १७ १४ १८ २५ ९ मान्धातृ १७३ १९ मायाविन् ९९ २४ मायिक ६६ ९० ४३ ३३ ५७ ३३ २८ २ ९ १२. 99 ५ १७ ५ १४ २० 99 २२ १४ २२ ७ १२ ३ Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृ० 2 . w २३५ वसुरुचि १३ Wm w w . १० - १३ लिप्त विमर्शटिप्पण्यादिस्थशब्दसूची [विषमाक्ष श. पृ० पं० श० पृ० ___पं० ० लिप्त १९३४ वसा ५३ ५ विजिपिल लिम्प , ६० वसिष्ठ ३४ २३ | वित्तेश ५४ लिविकर १२२ २१० | विद्युत्पर्णा ५३ लीलावती १२८ वसुप्रभा २७० विनोद २३१ लुब्ध विन्न ३५६ वाःपति लूनबाहु ६० २६३ विपदा १२१ लेपक २३० वाक्पति ३३ विप्रतिसार ३३१ वागा ३०३ लोकपाल , १७० . विप्रा १४ वागीश ३३ लोमपादपुरी२४२ १४ विभेदक २७९ लोमवेताल ६० २५ वाजिन - २९ विमानयान २५ लौकायतिक२१३.२० वात्सल्य ८२ १८ विमानिक " वात्सायन ३ विरुद्धशंसन ७५ २० वानमन्तर ३०३ २१ वक्षोज .. १५० विलापन ६० वामन ३१५ . १७ विलेप्या १०३ वायुवर्मन ४८ विलोचन १५४ वडवाग्नि ९ २४ वायुसख ५ २० विवधिक ९७ वाराही ५७ विश्ना १४ वडवानल ९ - २४ | वारिज २८२ २० विश्वकर ३ वडवावह्नि | वारिधि २६३ २४ विश्वकर्तृ ___ वतंस १६१ २३ / वारिनिधि " . " विश्वकारक " वधूटी .. १३० - ९ वारिराशि .. " वध्वटी विश्वकृत् - १२९ २५ वारी. २९९ १० " वरवर्णिनी १२७ . ७ विश्वजनक | वार्धि ९ वरारोहा- १२८ . . विश्वव्यच.१३ " १० विश्वविधातृ ३ वरासि १६६ " वाल २८२ विश्वसू वराहकर्णक १९५४ वावल्ल विश्वसृज् वरुणपाश ३२४ १५ " वाशा २७८ वर्णपरिस्तोम १६७ २२ वासरकृत् २७ ८ विश्वस्त्रष्ट्र ३ वर्ण्य .१५९ १९. वासवावरज ६१ विश्वाची ५३ वर्तुल वाह्निक १५९ विश्वावसु " वर्द्धन ३५८ १७ विकर्णक ६० विष १५७ वर्षा २३ विकल्प ३३० विषमच्छद ९ वलभि २४९ विकार ३६२ २७७ वल्ग ३०३ | विकृति , . विषमनेत्र ९ वल्लभ १३० विक्षेप . १२८ २५ विषलपलाश " वशिष्ठ । ३४ २३ | विघ्नराज ५९ १९ विषमबाण वशीकरण ३५७ २० विचका २९२ १७ विषमशक्ति " वसन्त ४४ २३ | विजय २६ ६ विषमाक्ष " (५१५) : 90 v u १९३ or ४४ : 0009 . . ." Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मिथ्या ] श० मिथ्या मिहर मीन मीनकेतन मुनि मुरारि मूर्च्छा मूर्धन् पृ० ७४ २७ ३३ ६५ ६६ ६३ ८५ २७४ मूर्धावसिक्त १७० मूषिकरथ ५९ मूषिकवाहन 99 मोरट मोह मौग्ध्य मृगराज ३१० मृगरिपु "" मृगलान्छन २९ मृगाङ्क मृत्तिका मृत्सा मृत्स्रा मृषा मेकलक न्यका मेकलकन्या मुषल २५१ २ मुस्तक २८९ १६ मूर्खभूय २०९ २ मूर्खसायुज्य 97 99 मोहूर्त 99 २५९ 93 "" ७४ पं० 39 ६ ८ ८५ १२८ बन्धन २०१ १२२ " यजुष् ४ यज्ञासन १२ यथोद्भुत ११ ९ ८ १६ ७ अन १६ | यमसू १ २१ ·99 १४ 99 अभिधानचिन्तामणिः यादोनाथ यामवती ४१ यावक १६९ यावन याव्य योगिन् योगीश २६५ १३ योषिता Raftar 91 श० ६ य 99 यन्त्र यमजित् यमनी यमरथ यमराज यमलार्जुनभ यमस्वसृ 99 पृ० • ६३ २७ ६ २९ २४ ९५ २२६ रस ५६ रसा १६८ २ रात सेश ३१० १ ५३ १७ 19 ૬૪ १६० ३४७ २१ २११ १२७ ९२ पं० | श० " या १२५ ३ यात्रिन् यादःपति २६३ .२१ ५४ १,२ "" रमणीय रम्भा ५३ रविसारथि २८ रश्मिकलाप १६३ २६० ३२८ १७३ राज कदम्ब २७८ राजराज પ राजश्रोथ रात्री राधेय रामचन्द्र रामभद्र रामा २२ रामानुज राव ३३६ ५ १२ ७ १३ ६ राहुमूर्धहर ६३ रिक्त ३४७ रुक्मिदार ६४ रेपस् ३४७ , ७ १३ १ रेवतीरमण ६४ ९. १५ रेणुके २१० २९ २ रैवत १९ रोगित ११७ ९ 99 19 रोगिन् रोहिणीश २९ १४ २२ रौहिणेय ३३ 11 २३ ल २२ ११ ८ २२ ३२० ( ५१४ ) १२ १० २ १४ २५ १५ [ लिखिता पृ० पं० ३४७ ८ ५ २२ १९ १५ ४ १० २९ ४१ १७५ १७३ मेघ २५८ १४ र २ रक्तकृष्णा २७० ११ रक्ता मेघवर्त्मन् ४८ मेधाविन् ३२१ मेह ११९ ११ रक्तोत्पल २८३ मैत्रावरुणि २१० ४ रजनीकर मैन्दमर्दन ६३ ११ रजनीमुख ४१ मोरक १०५ २१ रतिपति २९ १८ लक्षणा ५३ २५ लक्ष्मणी ३१८ २२ ६५ १७ ९४ लक्ष्मीनाथ ६१ १६ | लक्ष्मीपति 99 99 रतिवर ७ रत्नराशि २६३ २३ लङ्कापति १७३ २३३ ६ लडह ३४७ २५ रत्नवती रथकार २२८ २० लम्वकर्ण ६० ६ लिखिता १२२ १८ १२ रथाङ्ग " ५३ "3 ६ १२ २१ ६ ६ १४ २४ ७ १२ ३ 11 99 १२ १० २१ २५ 39 Page #561 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषमाश्व] अभिधानचिन्तामणिः . [शिवकान्ता मान - - ३३० वृष श० पृ. पं० श० पृ० पं० | श० पृ० पं० विषमाश्व २७६ | वेदिवती ५३ ४ | शमभृत् २१ १६ विषमेषु ९ ३ | वेश १५७ १३ | शम्बुक २९३ . २ शयानक १८७ विषवैद्य १२० वैनतेय २८ २३ शरजन्मन् ६० . ५ विसकण्टिका३२० वैमानिक ३ शरद् ४४ २३ विसप्रसून २८२ १७ वैराट- २६१ १० शरव्य १९२ ११ विस्कल्ल २६७ १२ वैरोट्या १५ शराशन १९१ विस्फोट १८ १५ वैष्णव २५९ शरीरिन् ३२९ विहायसा . ४८ वैष्णवी ५७ १३ शम विहुण्डन ६० व्योममृग २९ २३ | शवला ३०५ १६ वीजन १६९ व्योमयान २५ २ शशक ३१२ १३ वीरपाण १९९ व्योमरत्न २६ शशधर २९. १६ वीरभद्र ६० व्रतबन्धन २०१ शशाङ्क वीरमातृ १४० बीड ८६ . ३ | शशिभूषण ३ २७ वीराशंसनी १९९ व्रीहिक २ २४ वीवधिक . ९७ १२ श' शशिशेखर ३ । २८ वृत्रद्विष ५१ शंवरारि ६५ १० शाक्य ६६ १८ वृत्रशासन " शकटारि ६३ , शाट १६६ १९ शकल १५५ " शाटक " " शक्तिपाणि शातकौम्भ २५७ ७ वृषकेतन ४ शङ्कुमुख ३२४ १० शान्तीगृहक२४६ वृषगामिन् ६ शङ्कुरोमन् ३१५. १७ शारद्वती ५३ ७ वृषणास्त्र शङ्ख ५५ १४ शारिफलक १२३ १५ वृषध्वज शङ्खकर्ण ६० १९ शाह्मिन् ६२ ४ शङ्खकूट शालिका १३९ वृषपति १६ शङ्खपाणि शाष्कुलिक ३४१ ९ वृषयान शचीश शासक १२४१ वृषलक्ष्मन ४ शण्ठ शिखावल ३१७ २० वृषलान्छन | शिग्रु. २८७ २३ वृषवाहन शण्ड ३०५ शिवाणक १५७ ३ वृषांक शण्ड शितिकण्ठ २६ शतघ्नी १९५ १३ | शिरस् २७४ १६ वृषाणक शतधार ५२ ११. शिरोरत्न १६० २४ वृषासन शतार | शिरोवेष्टन १६५ १८ वृष्णि शबरगृह २४७ शिला २६० ३ वृश्टिक ३३ शबरालय , , शिलानासा २४९ घेताल शब्दग्रह १४१ १६ शिवकान्ता ४ २९ वेत्रधर १७७ १७ शमन २०६३ " (५१६) cmoc w nsnenews. १४१ १२ ० C Page #562 -------------------------------------------------------------------------- ________________ m शिवङ्कर विमर्शटिप्पण्यादिस्थशब्दसूची [सहाय श० . पृ० . पं० श० पृ० पं० श० पृ० शिवकर ६० २४ | श्रेणि ३४२ १४ सप्तर्षिपूता शिवप्रणयिनी ४ ९ श्रेयांस १२ ९ (दिक) ८ शिवप्रियतमा" ,२९ श्वपाक २३२ " सप्ताश्व २७ शिवप्रिया ४ ३० श्वेतपत्ररथ ६१ | समाख्या ७५ . शिवरमणी... " श्वेतपाद ६० १९ समाधि - ७७ शिववधू , २९ श्वेतरस १०६ १४ समानासोतं. शिववतभा , श्वेताश्व २९ ११ सक ३१५ समुद्र २१७ शिवी ५८ समुद्रकाञ्चि २३३ शिशिर ४४ षट्चरण २९४ १४ समुद्रनवशिशुपालनि.. षट्पद नीत २५ षूदन ६३ १४ षडंहि । २९ शीतांशु २९ २० षडभिज्ञ ६६ . २१ समुद्ररशना २३३ शीतेतररश्मि २६ २४ | षण्मुख २ ९ समुद्रवसना " शीर्ष २७४ १७ समुपजोष ३६४ शुष्मन् २६९ ९ संस्फेट १९८८ शूर २७ ३ संहतल १४८ सम्पा २७१ शूर्पकारि ६५ १० | संहात ६० सम्फेट १९८ शूलभृत् ३ २७ | सङ्कोच १५९ पम्भव १२ शूलशालिन् ४४ | सङ्ग्रहणी ११९ सरसीरुह २८२ शूलायुध , ११ सङ्घर्ष ३६१ | सरोज शूलास्त्र. ३ २६ / सदागति २७१ | सरोरुह " शूलिन् .. " २८ सधर्म सर्ग ७२ चारिणी १३० | सर्पवल्ली २८१ शृगाल . ३११ ११ सधवा १३२ २३ सर्वतोभद्र २५० शृङ्गार. २६० सनत् ३६४ १८ सर्वदमन १७३ शृङ्गारपि. सनात् सर्वदा . ३६४ ण्डक .. ३१५. २० सन्तति २२७ सर्वरत्नक ५५ शोणरत्न - २६१ . . ४ सन्तापन ६०१८ | सर्वार्थसिद्ध २६ शौद्धोदनि ६६ २० संन्यासिन् २०० सर्वार्थसिद्धि , शौरि ३४. १ सप्तच्छद ९ ९ सर्वान्नमो. शौष्कल ११० ११ २७७ ६ जिन् ११० श्रमण १३४ १० सप्तदश सव्यष्ठ १८८ श्रवण २१ १२ धान्य २८४ २४ सस्यमअरी २८७ २ श्रीकण्ठसख ५ २० । सप्तधातु सहरुण्य २९ " . २७ | सप्तपर्ण ९ ९ सहस्रबाहु १७३ १६ श्रीमत् ९६६ सप्तपलाश " ४ सहस्ररश्मि २६ । श्रीवत्साह ६२५ सप्तर्षिज ३३ ३ सहाय (५७) २९ Page #563 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सांशयिक] अभिधानचिन्तामणिः . पं० श० . पृ० पं० श० सुरसा स्थापक स्थूरिन् सुरस्त्रीश ५० १९ स्थूल [ हालाहल पृ० पं० ८९ २४ ३०६ . २ सुरखी ६ सुरेन्द्र १८ सुरेश श० पृ० सांशयिक ११३ सागर २७ सागरमल २६४ साची ३६॥ सातीन २८४ सादिन् १८८ सान्त्व १८१ सामुद्रिक शास्त्र १४२ सायः ४० सायम् " सालवाहन १७५ साल्वारि ६३ साहस्त्र dewas ... ... 6 सिंह सिंहवाहना ५८ सित २५६ सिता स्थूलशाटक १६६ स्नुहा २७८ १७ सुलोचना स्फुरक १९४ ११ सुवपुस् स्फोटंन २११ . १० सुवर्ण स्मरवती १२८९ स्रष्ट २६ सुवाता स्रोतःपति २६३ . २१ सुव्रता सुषिर स्वधाशन २४ . ११ सुषीम स्वर्गस्त्री ५२ - २२ सूक्तिकर्ण ३१५ . १८ स्वर्गिन् २४ ९ सूचि २२७ स्ववासिनी १२९ २५ सूत्रामन्: स्वस्तिक २५० .११ स्वस्थ १२० १९ ७ सूनु १३६ स्वर्भानु ३४ ५ सूनृता ५३ स्वाहाशन २४ ११ सूर्यबीज्य १७६ स्वीकृत ३५५ २२ सूर्यवंशज , , सूर्यवंश्य , . | हंस २९ सृक्किन् १४५. ११ | हंसपादी ५३ सृक्ति , | हंसवाहन ६१ सृणिका १५७ ५ हड्डु १५५ ३१७ ८ हनुमत् १७३ सेलु २७९ १० हय २९ २३ सोम २५६ १८ हयग्रीवरिपु ६३ १० सौखशाय हरिश्चन्द्र १७३ १९ निक १९७ १४ हसित १२८ २५ सौखशाय्यक" हस्तिकर्ण ६० २२ सौदामनी २७१ २ हस्तिगोयुग३४२ , | सौर ३४१ हस्तिभद्र ३१५ १८ सौवर्णी ३५० २१ स्तनप ९२ ५ हारिद्रक ३१५ १०१ हालहल २९१ १ ४ स्थानीय २४० २५ | हालाहल " " (५१८) सितांशु २९ सितेतर ९ सिद्धार्थ ६६ सिद्धी ५७ सिस्त्र सु ३६५ सुगन्धा सुग्रीवाग्रज १७३ सुता १३६ सुतारा १५ सुधांशु सुधासू " सुनासीर ५० सुपार्श्वक १६ सुबाहु ५३ सुभद्रापति १७४ सुमहाकपि ६० सुरपति १० सुरराज connen सपाटी . د ه س हार ه س ه به Page #564 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ हाहा] विमर्शटिप्पण्यादिस्थशब्दसूची [हादिनी श० पृ. पं० श. पृ० पं० श० पृ० पं० हाहा . ५३ १३ | | हिरण्या २७० २२ | हेमन्त हाहाहूहू " " २६१ ७ हेमपुष्पी २८० हिङ्गुलु २६०९ १३ हेमा ५३ हिमवदुहित ६ । १४ हिरण्मयी ३५० ६० २६ हेरुक २२ ६० हिरण्यकशिप- हृदयेश १३० १७ हैरिक दारण ६३ . १२ । हेम २५७ २ हादिनी २६५ हीर हृदय इति विमर्श-टिप्पण्यादिस्थशब्दसूची समाप्ता । Page #565 --------------------------------------------------------------------------  Page #566 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वैदिक-इण्डेक्स मूल लेखक-मैक्डोनेल तथा कीथ अनुवादक-डॉ० रामकुमार राय इसमें सन्दर्भ सहित संख्याये तथा फुटनोट में उनकी व्याख्या का क्रम वही किया गया है जैसा की मूल ग्रन्थ में है। इस व्याख्या के कागजी निःसन्देह अत्यन्त कठिन और कहीं-कहीं असम्भव-सा कार्य था, मिनबाद की उपयोगिता और विषय-व्याख्या की प्रामाणिकता अत्यन्त बढ़ 1-2 भाग 15 राजतरङ्गिणीकोशः सम्पादक-डॉ० रामकुमार राय.. कल्हण कृत राजतरङ्गिणी का यह कोश हिन्दी में सर्वप्रथम प्रस्तुत किया जा रहा है। इसमें राजतरङ्गिणी में आये सभी नामों और विषयों की मसन्दर्भ व्याख्या प्रस्तुत की गई है। साथ ही लेखक ने एक विस्तृत भमिका में कल्हण के व्यक्तित्व और कृतित्व का विवेचन करते हये विभिन्न विषयों, जैसे राजनीति, समाजशास्त्र, धर्म और नीति आदि से सम्बद्ध उनके विचारों को प्रस्तुत किया है। राजतरङ्गिणी में आये विभिन्न राजाओं की वंशावलियों तथा कलिक्रमागत तालिकाओं का भी भूमिका में समावेश किया गया है। 40-00 आदर्श हिन्दी-संस्कृत-कोश सम्पादक-प्रो० रामस्वरूप शास्त्री इस कोश में लगभग चालीस सहस्र हिन्दी-हिन्दुस्तानी शब्दों तथा मुहावरों के संस्कृत पर्याय दिये गये हैं। प्रत्येक शब्द का लिंग-निर्देश भी किया गया है। हिन्दी क्रियापदों के संस्कृत धातुओं के गण, पद, सेट, अनिट, वेट, णिजन्त आदि के रूप भी दिये गये हैं। सुसंस्कृत तथा परिवधित द्वितीय संस्करण। 100-00 संस्कृतसाहित्यकोशः डॉ० राजवंशसहाय 'हीरा' हिन्दी में संस्कृत वाङ्मय की सभी प्रमुख शाखाओं, ग्रन्थों, ग्रन्थकारों, विधाओं, प्रवृत्तियों एवं चिन्तनधाराओं तथा तत्सम्बन्धी अद्यतन अनुसन्धानों एवं गवेषणाओं का एक साथ प्रामाणिक विवरण प्राप्त करने के लिए यह अभिनव कोष एकमात्र साधन है। तीन विशाल खण्डों में पूर्ण हआ यह कोश-ग्रन्थ अध्यापक, छात्र तथा शोधकार्यार्थी सभी के लिए अनुपम सहायक है। 125-00 - अन्य प्राप्तिस्थान चौखम्बा सुरभारती प्रकाशन के० 37/117, गोपाल मन्दिर लेन, पो० बा० 1129, वाराणसी-२२१००१