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________________ || श्रीः ।। अभिधानचिन्तामणिः 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः . अथ देवाधिदेवकाण्डः ॥१॥ १ प्रणिपत्यार्हतः सिद्धसाङ्गशब्दानुशासनः । रूढयौगिकमिश्राणां नाम्नां मालां तनोम्यहम् ।।१।। २ व्युत्पत्तिरहिताः शब्दा रूढा आखण्डलादयः। ३ योगोऽन्वयः स तु गुण क्रियासम्बन्धसम्भवः ॥२॥ . शेषक्षीरसमुद्रकौस्तुभमणीन् विष्णुर्मरालं विधिः कैलासाद्रिशशाङ्कजनतनयानन्द्यादिकान् शङ्करः ।। यच्छुक्लत्वगुणस्य गौरववशीभूता इवाशिश्रियु स्ता विश्वव्यवहारकारणमयीं श्रीशारदां संश्रये ॥ १ ॥ आचार्य हेमचन्द्रकृताभिधानचिन्तामणेरमलाम् । विबुधो हरगोविन्दस्तनुते 'मणिप्रभा' व्याख्याम् ।। २ ।।। . १. अङ्गों (लिङ्ग-धातुपारायणादि ) सहित व्याकरण शास्त्रका ज्ञाता मैं (हेमचन्द्राचार्य ) 'अर्हत्' देवोंको प्रणामकर रूढ, यौगिक तथा मिश्र अर्थात् योगरूढ शब्दोंकी माला-"अभिधानचिन्तामणि"नामक ग्रन्थ बनाता हूँ ।। ____२. ( पहले क्रमप्राप्त रूढ शब्दोंकी व्याख्या करते हैं-) व्युत्पत्तिसे रहित अर्थात् प्रकृति तथा प्रत्ययके विभाग करनेसे भी अन्वर्थहीन, शब्दोंको 'रूढ' . कहते हैं; यथा-आखण्डल:, श्रादिसे-मण्डपः,...""का संग्रह है। . विमर्श :-"नाम च धातुजम्” इस शाकटायनोक्त वचनके अनुसार यद्यपि 'रूढ' शब्दोंकी भी व्युत्पत्ति होती है, तथापि उस व्युत्पत्तिका प्रयोजन केवल वर्णानुपूर्वीका विज्ञान ही है, अन्वर्थ-प्रतीतिमें कारण नहीं है, अत एव 'रुद्ध' शब्द व्युत्पत्तिहीन ही हैं। ३. ( अब यहाँसे १।१८ तक यौगिक' शब्दोंकी व्याख्या करते हैं-) शन्दोंके परस्पर अर्थानुगमको अन्वय या 'योग कहते हैं, वह योग 'गुण, क्रिया तथा सम्बन्ध' से उत्पन्न होता है।
SR No.002275
Book TitleAbhidhan Chintamani
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Hargovind Shastri
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1966
Total Pages566
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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