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अमिधानचिन्तामणिः १ गुणतो नीलकण्ठाद्याः क्रियातः स्रष्टसन्निभाः। २ स्वस्वामित्वादिसम्बन्धस्तत्राहुर्नाम तद्वताम् ॥ ३ ॥ __ स्वात्पालधनभुग्नेतृपतिमत्वर्थकादयः । ३ भूपालो भूधनो भूभुग भूनेता भूपतिस्तथा ॥४॥ .
भूमाँश्चेति ४ कविरूढया ज्ञेयोदाहरणावली। विमर्श :-'गुण से नीला, पीला इत्यादिको; २ 'क्रिया से 'करोति' इत्यादि को और ३ ‘सम्बन्ध से आगे तृतीय श्लोकमें कहे जानेवाले 'स्वस्वामित्वादि'को समझना चाहिए।
१. ( अब गुण-क्रिया तथा सम्बन्धसे उत्पन्न योगसे सिद्ध 'यौगिक' शब्दोंका उदाहरण कहते हैं-)१ 'गुणसे'-नीलकण्ठः, इत्यादि ('आदि' शन्दसे 'शितिकण्ठः, कालकण्ठः,....' का संग्रह है ), २ 'क्रिया से स्रष्टा, इत्यादि ('श्रादि से 'धाता,".....'का संग्रह है)। .. विमर्श :-सङ्ख्या भी 'गुण' ही मानी गयी है, अत: 'त्रिलोचनः चतुर्मुखः, पञ्चबाणः, षण्मुखः, अष्टश्रवाः, दशग्रीवः,"......' शब्दोंको भी यौगिक ही समझना चाहिए ।
२. (अब ३ सम्बन्धसे उत्पन्न यौगिक शब्दोंको कहते हैं :-) स्वत्व तथा स्वामित्व आदिके सम्बन्धमें 'स्व' (श्रात्मीय )से परे रहनेपर पाल, धन, भुक, नेतृ, पति शब्द तथा मत्वर्थक आदि 'स्वामि'के वाचक होते हैं । ('स्वामित्व' श्रादिमें 'श्रादिः शब्दसे पञ्चमादि श्लोकोंमें वक्ष्यमाण जन्यजनक, धार्य-धारक, भोज्य-भोजक, पति-कलत्र, सखि, वाह्य-वाहक, ज्ञातेय, श्राभय-आश्रयी, वध्य-वधक,-भाव सम्बन्धोंको जानना चाहिए। इनके उदाहरण भी यथास्थान वहीं षष्ठ श्लोकसे जानना चाहिए।
३. (अब 'स्व' शब्दसे परे क्रमश: 'पाल' आदिका उदाहरण कहते हैं-) भूपालः, भूधनः, भूभुक् (-भुज ), भूनेता (-नेतृ ), भूपतिः, भूमान् (-मत् ), ये 'स्व' शब्दसे परे 'पाल' आदि शब्द अपने स्वामीके वाचक हैं, अतः 'भूपाल:, भृधन:,......' शब्दोंका "भूका स्वामी" अर्थात् राजा अर्थ होता है।
विमर्श-मत्वर्थक श्रादि में-'आदि' शब्दसे मतुप , इन् , अण , इक इत्यादि प्रत्यय तथा 'प:' इत्यादिका ग्रहण है। क्रमश: उदा०-भूमान (-मत्); धनी, मानी:( २-निन् ); तापसः, साहस्रः; दण्डिकः, व्रीहिकः... ""; भूपः, धनदः,""""""॥
४. 'कविरूढि'से ( कवियोंने जिन शन्दोंका प्रयोग शास्त्रोंमें किया हो ), उन्हीं शब्दोंका प्रयोग करना चाहिए । उनके अप्रयुक्त शब्दोंका नहीं, . अत एव-कपाली शब्द में 'स्व-स्वामिभावसम्बन्ध' रहनेपर भी कविप्रयुक्त