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मयंकाण्ड: ३] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः
१६३ १निरस्तः प्रहितो रखाणे विषाक्ते दिग्धलिप्तकौ ॥ ४४३ ॥ ३वाणमुक्तिर्व्यवच्छेदो ४दीप्ति।गस्य तीव्रता। ५तुरप्रतलार्द्धन्दुतीरीमुख्यास्तु तद्भिदः ॥ ४४४ ॥ ६पक्षो वाजा पत्रणा तन्न्यासःखस्तु कतरी।
तूणो निषङगस्तूणीर उपासङ्गः शराश्रयः ॥ ४४५ ॥ शरधिः कलापोऽप्य१०थ चन्द्रहासः करवालनिस्त्रिशकृपाणखगाः। तरवारिकौलेयकमण्डलामा प्रसिष्टिरिष्टी
शेषश्चात्र--नाराचे लोहनालोऽस्त्रसायकः ।
१. 'धनुष आदिसे छोड़े (चलाये ) हुए बाण आदि हथियार के २ नाम है-निरस्तः, प्रहितः ।।
२. 'विषमें बुझाये हुए बाण'के २ नाम हैं-दिग्धः, लिप्त क: (+लिप्तः)। ३. 'धनुषसे बाण छोड़ने के २ नाम है-बाणमुक्तिः, व्यवच्छेदः ॥ ४. 'बाणकी शीघ्र गति'का १ नाम है-दीतिः ॥ .
५. तुरप्रः, तद्बलम् , अर्धन्दुः, तीरी, आदि ('आदि' शब्दसे-दण्डासनम् , तोमरः, वावल्ल:, भल्लः, गरुडः, अर्धनाराचः, श्रादिका संग्रह है ) विभिन्न प्रकारके बाणोंके भेद हैं । .
विमर्श- जिस बाणका धार (अग्रिम भाग ) छरेके समान हो, उसे 'क्षुरप्र', बो बाण चूहेकी पूंछके समान हो, उसे 'तबल'; जिस बाणका अग्रभाग प्राधे चन्द्रके समान हो, उसे 'अर्धेन्दु' और जिस वाणके पीछेवाले तीन भागमें शर (शरकण्डा, या काठादि ) और आगेवाले एक भाग ( चतुर्थाश )में लोहा लगा हो, उसे 'तीरी' कहते हैं ।
६. 'बाणोंके : पिछले भागोमें लगाये हुए गीध-कङ्क-आदि पक्षियोंके पलके २ नाम है-पतः, वाजः ।।
७. 'उक्त पलोको बाणमें लगाने का १ नाम है-पत्रणा ॥
८. 'पुल (धनुषंकी डोरी रखनेका स्थान ) के २ नाम हैं-पुखः (पुन) कर्तरी ।। . .
६. 'तरफस'के ७ नाम है-तूणः (त्रि ), निषङ्गः, तूणीरः, उपासङ्गः, शराभयः, शरधिः (पु । यौ०-इषुधि:, बाणधि:,..........), कलापः ।।
१०. 'तलवार के ११ नाम है-चन्द्रहासः, करवाल:, निस्त्रिंशः, कृपाणः, खनः, तरवारिः (पु), कौक्षेयकः, मण्डलायः, असिः (पु), ऋष्टिः, रिष्टिः (२ पु स्त्री)। शेषधात्र--असिस्तु सायकः ।।
भीगो विजयः शास्ता व्यवहारः प्रवाकरः। १३ १० चि०