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________________ १२८ अभिधानचिन्तामणिः -१अस्याः स्वं मानलीलास्मरादयः। २लीला विलासो विच्छित्तिर्विव्वोकः किलिकिश्चितम् ।। १७१ ।। मोटायितं कुटटुमितं ललितं विहृतन्तथा । विभ्रमश्चेत्यलङ्काराः स्त्रीणां स्वाभाविका दश ।। १७२ ।। प्रागल्भ्यौदार्यमाधुयशोभाधीरत्वकान्तयः । दीप्तिश्चायत्नजाः'मृगाक्षी' पदमें मृगके नेत्ररूप 'उपमान'से स्त्रीका अक्षि ( नेत्र ) रूप अङ्ग विशेषित हुआ है, 'मत्तेभगमना' पदमें 'उपमान' रूप मत्तेभगमन (मतवाले हाथीकी चाल ) से स्त्रीका गमन विशेषित है, 'वामाक्षी'पदमें 'वामत्व' ( सुन्दरता )से 'नेत्र' रूपी स्त्रीका अङ्ग विशेषित है और 'सुस्मिता' पद्में 'सु'के अर्थ शोभनत्व से 'स्मित' रूपी कर्म विशेषित है। इसी प्रकार "वरारोहा, वरवर्णिनी, प्रतीपदर्शिनी,........."नामोंके विषयमें तर्क करना चाहिए । १. इस स्त्रीके धन 'मानः' लीला, स्मरः, ( स्वाभिमान, लीला, काम ) आदि ('आदि शब्दसे 'मनोविलास' आदिका संग्रह है ) हैं। अतएव 'मानिनी लीलावती, स्मरवती, (मान, लीला तथा स्मरवाली ) आदि यौगिक नाम स्त्रियोंके होते हैं । २. स्त्रियोंके स्वभावसिद्ध १० अलङ्कार होते हैं, उनका क्रमशः अर्थसहित वक्ष्यमाण १-१ नाम है-लीला ( वचन, वेष तथा चेष्टादिसे प्रियतमका अनुकरण करना ), विलासः ( स्थान तथा गमनादिकी विशिष्टता), विच्छित्तिः (शोभाजन्य गवसे थोड़ा भूषणादि धारण करना), विव्वोक: ( सौभाग्यके दर्पसे इष्ट वस्तुत्रोंमें अवज्ञा रखना ), किलकिञ्चितम् ( सौभाग्यादिसे मुस्कान आदिका संमिश्रण ), मोटायितम् (प्रियकथा-प्रसङ्गमें तद्भाव की भावनासे उत्पन्न कान खुजलाना आदि चेष्टा ), कुटुमितम् (+ कुटमितम् अधरादि क्षतकालमें हर्ष होनेपर भी हाथ या मस्तकादिके कम्पन द्वारा निषेध करते हुए निषेध का प्रदर्शन ), ललितम् ( सुकुमारता पूर्वक अङ्गन्यास अर्थात् गमन श्रादि ), विहृतम् ( बोलने आदिके अवसरपर भी चप रहना), विभ्रमः ( प्रियतम के आने · पर हर्षादिके कारण विभूषणोंका उलटा-पुलटा (अस्थानमें ) धारण करना )। विमर्श-साहित्यदर्पण'कार विश्वनाथ ने उक्त 'दश अलङ्कारों के अतिरिक्त स्त्रियोंके और भी ८ स्वभावसिद्ध अलङ्कार कहे हैं, यथा-मदः, तपनम्, मौग्ध्यम्, विक्षेपः, कुतूहलम, हसितम्, चकितम्, केलिः ॥ . ३. वक्ष्यमाण ७ अलङ्कार स्त्रियोंके अयत्नज (विना प्रयत्न-विशेषके होनेवाले ) हैं, उनका अर्थ सहित १-१ नाम है, यथा-प्रागल्भ्यम् (दिठाई, निर्भयता ), औदार्यम् (अमर्षादिके अवसरपर भी नम्रता ), माधुर्यम्
SR No.002275
Book TitleAbhidhan Chintamani
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Hargovind Shastri
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1966
Total Pages566
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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