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अभिधानचिन्तामणिः पौर्णमासश्च दर्शश्च यज्ञौ पक्षान्तयोः पृथक् ।। २सौमिकी दीक्षणीयेष्टि३र्दीक्षा तु व्रतसंग्रहः ॥ ४८७ ॥ ४वृतिः सुगहना कुम्बा ५वेदी भूमिः परिष्कृता।। ६स्थण्डिलं चत्वरं चान्याण्यूपः स्याद् यज्ञकी लकः ॥ ४८८ ॥ चषालो यूपकटके यूपको घृतावनौ। १०यूपाप्रभागे स्यात्तर्मा११रणिनिमन्थदारुणि ॥ ४८६ ॥ १२स्युदक्षिणाऽऽहवनीयगाईपत्यास्त्रयोऽग्नयः । १३इदमग्नित्रयं त्रेता १४प्रणीतः संस्कृतोऽनलः ।। ४६० ॥ १५ऋक सामिधेनी धाय्या च समिदाधीयते यया।
१. 'पूर्णिमा तथा अमावस्याको किये जानेवाले यज्ञों का क्रमशः १-१ नाम है-पौर्णमासः, दर्शः॥
२. 'सोमसम्बन्धी यश या जिसमें सोमपान किया जाय, उस यज्ञ के “२ नाम हैं-सौमिकी, दीक्षणोयोष्टः ॥ __३. दीक्षा ( यशार्थ शास्त्र-विहित नियमके पालन के २ नाम हैदीक्षा, व्रतसग्रहः ।। . .
४. 'यज्ञभूमिके चारों ओर बनाये गये सघन घेरे'का १ नाम हैकुम्बा ॥
५. 'यज्ञार्थ साफ-सुथरी की हुई भूमि'का १ नाम है-वेदी ॥ .
६. 'यज्ञार्थ साफ-सुथरी नहीं की हुई भूमि के २ नाम हैं-स्थण्डिलम् , चत्वरम् ।। ___७. 'यशमें वध्य पशुको बांधे जानेवाले खूटे'के २ नाम है-यूपः (पु ।+ पु न), यशकीलकः ॥
८. 'बढ़ईके द्वारा यूपके ऊपर रचित. वलयाकृति'का १ नाम है“चषालः (पु न )॥
६. 'यूपके ऊपर घीके निषेकके स्थानका १ नाम है-यूपकर्णः ।। १०. 'यूपके अग्रिम भाग'का १ नाम है-तर्म (-मन् , न ।+पु न)।
११. 'यज्ञमें जिस काष्ठको रगड़कर अग्नि उत्पन्न करते हैं, उस काष्ठका १ नाम है-अरणिः (पु स्त्री)॥
१२. 'अग्निके ३ भेद-विशेष हैं-दक्षिणः, आहवनीयः, गार्हपत्यः ॥ १३. 'उक्त तीनों अग्नि'का १ नाम है-ता ॥ १४. 'यज्ञमें मन्त्रसे संस्कृत अग्नि'का १ नाम है-प्रणीतः ।।
१५. 'यज्ञमें जिस ऋचा (ऋग्वेदके मन्त्र )से समिधाको अग्निमें रखा बाय, उस ऋचा'के २ नाम हैं-सामिधेनी, धाय्या ।।