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तिर्यकाण्ड: ४] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः
३१५ १स च श्यामोऽथवा शुक्लः सितपङ्कजलाञ्छनः। २वासुकिस्तु सर्पराजः श्वेतो नीलसरोजवान् ॥ ३७४ ॥ ३तक्षकस्तु लोहिताङ्गः स्वस्तिकाङ्कितमस्तकः । ४महापद्मस्त्वतिशुक्लो ‘दशबिन्दुक्रमस्तकः ॥ ३७५ ॥ ५शङ्खस्तु पीतो बिभ्राणो रेखामिन्दुसितां गले । ६कुलिकोऽर्द्धचन्द्रमौलि लाधूमसमप्रभः ॥ ३७६ ।। ७अथ कम्बलाश्वतरधृतराष्ट्रबलाहकाः। इत्यादयोऽपरे नागास्तुनत्कुलसमुद्भवाः ।। ३७७ ॥ पनिर्मुक्तो मुक्तनिर्मोकः
१. 'उक्त' शेषनागका वर्णश्याम याश्वेत होता है तथा उसके प्रस्तकपर श्वेत कमलका चिह्न होता है।
२. जिस सर्प राजका वर्ण श्वेत होता है तथा उसके मस्तकपर श्वेत कमलका चिह्न होता सै, उसका १ नाम है-'वासुकिः ।।
३. जिस सर्पका वर्ण लाल होता है तथा उसके मस्तकपर स्वस्तिकका चिह होता है, उस सर्पका १ नाम हैं-'तक्षकः ॥ . ... ४. जिस सर्पका वर्ण अत्यन्न श्वेत होता है तथा उसके मस्तकपर दश बिन्दुरूप चिह होता है, उस सर्पको १ नाम है-'महापद्मः ।। . ५. जिस सर्ष का वरणं पीला होता है तथा उसके गले (कण्ठ ) में चन्द्रमाके समान श्वेत वर्णकी रेखा होती है, उसका १ नाम है-शिङ्खः॥
६. जिस सर्पका वर्ण ज्वाला तथा धूएँ के समान होता है तथा मस्तक पर अर्द्धचक्ररूप चिंह रहता है, उसका १ नाम है-'कुलिकः ।।
७. 'कम्बलः, अश्वतरः, धृतराष्ट्रः, बलाहकः' इन चार नाम वाले तथा उनके कुलमें उत्पन्न अन्य 'नाग विशेष' (महानील:,.....) हैं ।।
आदिग्रहणाद् महानीलादय, यदा"महानीलः फरहश्व पुप्पदन्तश्च दुर्मुखः । कपिलों वर्मिनः शङ्करोमा चर वीरकः ॥ १॥ एलापत्रः शुक्तिकणे-हस्तिभद्र-धनुञ्जयाः । दधिमुखः समानासोतंसकों दधिपूरणः ॥२॥ हरिद्रको दधिकों मणिः शृङ्गारपिण्डकः । कालियः शङ्खकूटश्च चित्रकः शङ्खचूडकः ॥ ३॥
इत्यादयोऽपरे नागास्तत्तत्कुलप्रसु तयः ॥' इति ।। ८. 'कांचली (केंचुल ) को छोड़े हुए सांप'के २ नाम हैं-निर्मुक्तः,. मुनिर्मोकः ॥