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अभिधानचिन्तामणि:
- १सविषा निर्विषाश्च ते ।
२ नागाः स्युर्ह ग्विषा ३ लूमविषास्तु वृश्चिकादयः ॥ ३७८ ॥ व्याघ्रादयो लोमविषा नखविषा नरादयः । लाला विषास्तु लूताद्याः कालान्तरविषाः पुनः ॥ ३७६ ॥ मूषिकाद्या ४ दूषीविषन्त्ववीर्य मौषधादिभिः ।
कृत्रिमन्तु विषं चारं रश्चोपविषञ्च तत् ॥ ३८० ॥ ६भोगोऽहिकायो ७दंष्ट्राशी दर्वी भोगः फटः स्फटः । फोSE हिकोशे तु निर्व्वनी निर्मोककर चुकाः ॥ ३८१ ॥
१० विहगो विहङ्गमखगौ पतगो विहङ्गः शकुनिः शकुन्तिशकुनौ विवयः शकुन्ताः । - नभसङ्गमो विकिरपत्ररथौ विहायो द्विजपक्षिविष्किरपतत्रिपतत्पतङ्गाः ॥ ३८२॥ पित्सनीडाण्डजोऽगौका
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९. वे सांप सविष ( विषयुक्त ) तथा निर्विष ( विषरहित ) दो प्रकारके होते हैं |
२. 'नाग' दृष्टिविष होते हैं, अर्थात् नाग जिसको देख लेते हैं, उसपर उसके विषका प्रभाव पड़ जाता है ॥
३. (अब प्रसङ्गप्राप्त अन्य जीवोंमें से किसे कहां विष होता है, इसका वर्णन करते हैं-- (बिच्छू आदि के पूंछ ( डंक ) में, व्याघ्र आदिके लोमोंमें, मनुष्यआदिके नखोंमें, मकड़ी आदि के लारमें विष होता है तथा चूहे आदि ( कुत्ता, स्यार आदि ) कालान्तर विषवाले होते हैं अर्थात् उनके विषका प्रभाव तत्काल न होकर कुछ दिनोंके बाद होता है ॥
४. जिसे श्रौषध आदि ( मंत्र यन्त्र आदि ) से दूर किया जा सकता है, उसका १ नाम 'दूषीविषम्' है ।
५. औषध आदिकें संयोगसे बनाये गये विषके ३ नाम हैं—चारम्, गरः, उपविषम् ॥
६. 'साँप के शरीर का १ नाम है - भोगः ॥
७. 'सांपके दाँत ( दाढ़ - इसके काटने से प्राणी नहीं जी सकता है ) 'का १ नाम है - आशीः ॥
८. 'सांपके फणा' के ५ नाम है— दव, भोगः, फट, स्फट:, फणः ( + न । ३ पु स्त्री ) ॥
६. कांचली' (केंचुल )के ४ नाम हैं - अहिकोशः, निर्व्वयनी (+ निर्लयनी ), निर्मोकः, कञ्चुकः ( पु न ) ॥
पञ्चेन्द्रिय जीवोंमें स्थलचर जीववर्णन समाप्त ||
१०. ( ' स्थलचर' पञ्चेन्द्रिय जीवोंका पर्यायादि कहकर अब 'खचर' पञ्चेन्द्रिय (४।४०६ तक) जीवों का पर्यायादि कहते हैं । 'पक्षो, चिड़िया' के २५ नाम है- विहगः,