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देवकाण्डः २ ]
'प्रभा' व्याख्योपेतः
१ सूत्रं सूचनकृद् २भाष्यं सूत्रोक्तार्थप्रपञ्चकम् । ३ प्रस्तावस्तु प्रकरण ४ निरुक्तं पदभञ्जनम् ॥ १६८ ॥
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५ श्रवान्तरप्रकरणविश्रामे शीघ्रपाठतः । श्राह्निक६मधिकरणं त्वेकन्यायोपपादनम् ॥ १६६ ॥ ७उक्तानुक्तदुरुक्तार्थचिन्ताकारि तु वार्तिकम् । टीका निरन्तर व्याख्या
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१. 'सूचित करनेवाले' ( संक्षेप रूपसे संकेत करनेवाले ग्रन्थ- विशेष ) का १ नाम है -सूत्रम् ( पु न । यथा - शाकटायनसूत्र, पाणिनिकृत श्रष्टाध्यायी सूत्र;~~~~~~~~~~~) ॥
२. 'सूत्र में कहे गये विषयको विस्तार के साथ प्रतिपादन करनेवाले ग्रन्थविशेष' का ? नाम है— भाष्यम् । ( यथा - पाणिनिकृत अष्टाध्यायी सूत्रपर पातञ्जल महाभाष्य, वेदान्त सूत्रपर शाङ्करभाष्य, रामानुजभाष्य, ................) ॥ ३. 'प्रस्ताव' के २ नामं हैं - प्रस्ताव:, प्रकरणम् ॥
४. ‘निरुक्त' ( प्रत्येक वर्णादिका विश्लेषणकर पदों के विवेचन करने वाले ग्रन्थ-विशेष ) के २ नाम हैं - निरुक्तम्, पदभञ्जनम् ॥
५. 'अवान्तर प्रकरणके विश्राम में शीघ्र पाठसे एक दिनमें निवृत्तके समान ग्रन्थांश विशेष का १ नाम है - आह्निकम् । ( यथा - पातञ्जलमहा. . भाष्य में १ म, २ य आदि श्राह्निक .) ।।
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'एक न्याय ( विषय ) के प्रतिपादन करनेवाले ग्रन्थांश - विशेष' का १ नाम है - अधिकरणम् ॥
७. 'सूत्रों में कथित, कथित और अन्यथाकथित विषयोंके विचार करनेवाले ग्रन्थ- विशेष' का १ नाम है - ' वार्तिकम्' । (यथा- पाणिनीय अष्टाध्यायी सूत्रपर कात्यायनका वार्तिक, एवं श्लोकवार्तिक,
*****) || ८. 'किसी ग्रंथके साधारण या असाधारण प्रत्येक शब्दों की निरन्तर . व्याख्या' का एक १ नाम है - 'टीका' । (यथा - अमरकोषकी भानुजिदीक्षितकृत
एवं लक्षणलक्ष्याणि पुराणानि पुराविदः । मुनयोऽष्टादश प्राहुः क्षुल्लकानि महान्ति च ॥ ब्राह्मं पाद्म वैष्णवञ्च शैषं लेङ्गं सगारुडम् । नारदीयं भागवत माग्नेयं स्कान्दसंज्ञितम् ॥ भविष्यं ब्रह्मवैवर्त मार्कण्डेयं सवामनम् | वाराहं मात्स्यं कौर्मं ब्रह्माण्डाख्यमिति त्रिषट् ॥ इति ।” ( श्रीमद्भागवत १२/७/८ - २४ )