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अभिधानचिन्तामणिः १प्रत्यासारो व्यूहपाणिः सैन्यपृष्ठे प्रतिग्रहः ॥ ४११ ॥ ३एकेभैकरथास्यश्वाः पत्तिः पञ्चपदातिका।। ४क सेना सेनामुखं गुल्मो वाहिनी पृतना चमूः ॥ ४१२ ॥ अनीकिनी च पत्तेः स्यादिभाद्यैत्रिगुणैः क्रमात् । ५दशानीकिन्योऽक्षौहिणी सेज्जनं तूपरक्षणम् ॥ ४१३ ।। ७वैजयन्ती पुनः केतुः पताका केतनं ध्वजः।
टीका देखें ॥ "कौटिल्य अर्थशास्त्रमें भी व्यूहोंके भेदोपभेदका. तथा शत्रुके । किस व्यूहका किस व्यूहसे भेदन करना चाहिए, इसका सविस्तर वर्णन है'।
१. 'मोर्चाबन्दीके पार्श्वभाग'के २ नाम हैं--प्रत्यासारः, व्यूहपाणिः ॥ २. सेनाके पीछेवाले भाग'का १ नाम है-प्रतिग्रहः ॥ . .
३. जिसमें १-१ हाथी तथा रथ, ३ घोड़े ( रथके घोड़े के अतिरिक्त), ५ पैदल सैनिक हों, उसे 'पत्तिः ' कहते हैं ।
४. पत्ति'के हाथी आदिको त्रिगुणित बढ़ाते जानेसे क्रमशः. सेना, सेनामुखम् , गुल्मः (पुन ), वाहिनी, पृतना, चमू:, अनीकिनी ( ये १-१ नाम सेना-विशेषके होते हैं )।
५. 'दस अनीकिनी-परिमित सेना'की १,अक्षौहिणी सेना होती है ।।
विमर्श-'पत्ति से आरम्भकर 'अक्षौहिणी' तक सेना-विशेषके हाथी श्रादिकी संख्याज्ञानार्थ पृष्ठ १८५ के चक्र देखें । विशेषाजज्ञासुओंको 'अमरकोष' की मत्कृत 'अमरचन्द्रिका' नामकी टिप्पणी देखनी चाहिए, जो 'मणिप्रभा' टीका के पृष्ठ २६४ पर लिखी गयी है ॥ . ,
६. 'सेनाको बढ़ाने, या रक्षा करने के २ नाम है-सबनम्, उपरक्षाम् ॥
५. 'झण्डा'के ५ नाम हैं-वैजयन्ती, केतुः (पु), पताका (+ पटाका), केतनम् , ध्वजः (२ पु न)। (किसी-किसीके मतमें 'झण्डे'के दण्ड (बांस आदि )का नाम 'ध्वज' है तथा शेष ४ नाम 'झण्डा' (झण्डेके ‘कपड़े )के हैं )।
१. तथा च कौटिल्यार्थशास्त्रे
"पक्षावुरस्यं प्रतिग्रह इत्यौशनसो व्यूहविभागः, पक्षौ कक्षावुरस्यं प्रतिग्रह इति बार्हस्पत्यः, प्रपक्षकदोरस्या उभयोर्दण्डभोगमण्डलासंहताः प्रकृतिव्यूहाः। तत्र तिर्यग्वृत्तिर्दण्डः । समस्तानामन्वावृत्तिभॊगः । सरतां सर्वतो वृत्तिमण्डलः । स्थितानां पृथगनीकवृत्तिरसंहतः।” (कौ० अर्थ० १० । ६ । १-७)॥ इतोऽग्रेऽमीषां व्यूहानां भेदाः, कच कस्य व्यूहस्योपयोगितेत्यादिकमध्यायेऽस्मिन् वर्णितमिति तत एव द्रष्टव्यं जिज्ञासुभिः ।।