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मयंकाण्डः ३] 'मणिप्रभा व्याख्योपेतः
१अस्योच्चूलावचूलाख्याव_धोमुखकूर्चको ॥ ४१४ ।। २गजो वाजी रथः पत्तिः सेनाङ्ग स्याच्चतुर्विधम् । ३युद्धार्थे चक्रवद्याने शताङ्गः स्यन्दनो रथः ।। ४१५ ।।
१. 'इस झण्डेके ऊपर तथा नीचेवाले अग्रभाग'का क्रमशः १-१ नाम है-उच्चूल:, अवचूलः ।।
२. गजः, वाजी (-जिन् ), रथः, पत्तिः, (क्रमश:-गजदल, हयदल, रथदल और पैदल)-ये चार सेनाके अङ्ग 'सेनाङ्गम्' हैं, अतएव सेनाको 'चतुरङ्गिणी' ( गजदल, हयदल, रथदल और पैदल ) सेना कहते हैं ।
विमर्श-वर्तमान नवीन कालमें तो ( वायुयान आदिवाली सेना) 'नभःसेना', ( जहान, पनडुब्बी, सुरङ्ग विछाने या हटानेवाले जहाज श्रादि की सेना) 'जलसेना' और (टैक, मशीनगन, आदि तथा घुड़सवार एवं पैदल सेना ). 'स्थल सेना' कहलाती है। इन तीन प्रकार की सेनाओं के अतिरिक्त विज्ञानके अाधुनिकतम नवीनाविष्कारके कारण 'अणुवम, परमाणुवम, हाइड्रोजन वम आदि विशेष युद्धसाधनयुर सेनाका आविष्कार हो गया है।
पत्यादिसेना-विशेषाणां गजादिसंख्याबोधक चक्रम्
रथाश्ववर्जिता पत्तिसंख्या
सेनानाम गंजसंख्या रथसंख्या
श्वसंख्या
सर्वयोगः
पत्तिः
Immu
सेना
.
८१
२४३
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सेनामुखम् ।
६. गुल्मः
१३५ २७० वाहिनी
४०५
८१० पृतना ...
७२६
१२१५ २४३० चमूः . ७२६
२१८७ ३६४५ ७२६० अनीकिनी । २१८७ २१८७ ६.६१ १०६३५ २१८७० अक्षौहिणी २१८७० २१८७० ६५६१० । १०६३५० २१८७०० (अन्यत्रोक्ता) |१३२१२४६०१३२१२४६०३६६३७४७० ६६०६२४५० १३२१२४६०० महाक्षौहिणी .
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३. 'युद्धके रथ के ३ नाम हैं -शताङ्गः, स्यन्दनः, रथ: (पु स्त्री)।