________________
( २२ ) योगशास्त्र
कुमारपाल के अनुरोध से आचार्य हेम ने योगशास्त्र की रचना की है। इसमें बारह प्रकाश और १०१३ श्लोक हैं। गृहस्थ जीवन में आत्मसाधना करने की प्रक्रिया का निरूपण किया गया है। इसमें योग की परिभाषा, व्यायाम, रेचक, कुम्भक और पूरक आदि प्राणायामों तथा आसनों का निरूपण किया है। इसके अध्ययन एवं अभ्यास से आध्यात्मिक प्रगति की प्रेरणा मिलती है। व्यक्ति की अन्तर्मुखी प्रवृत्तियों के उद्घाटन का पूर्ण प्रयास किया गया है। इस ग्रन्थ की शैली पतञ्जलि के योगशास्त्र के अनुसार ही है; पर विषय और वर्णनक्रम दोनों में मौलिकता और भिन्नता है। '' स्तोत्र
द्वात्रिंशिकाओं के रचयिता के रूप में आचार्य हेम प्रसिद्ध हैं। वीतराग और महावीर स्तोत्र भी इनके सुन्दर माने जाते हैं। भक्ति की दृष्टि से इन स्तोत्रों का जितना महत्व है, उससे कहीं अधिक काव्य की दृष्टि से। कोशग्रन्थ
प्राचार्य हेम के चार कोशग्रन्थ उपलब्ध हैं अभिधानचिन्तामणि, अनेकार्थसंग्रह, निघण्टु और देशीनाममाला। . ___ अनेकार्थसंग्रह में सात काण्ड और १९४० श्लोक हैं। इसमें एक ही शब्द के अनेक अर्थ दिये गये हैं।
निघण्टु में छः काण्ड और ३९६ श्लोक हैं। इसमें सभी वनस्पतियों के नाम दिये गये हैं। इसके वृष, गुल्म, लता, शाक, तृण और धान्य ये छः काण्ड हैं। वैद्यक शास्त्र के लिए इस कोश की अत्यधिक उपयोगिता है।
देशीनाममाला में ३९७८ देशी शब्दों का संकलन किया गया है। इस कोश के आधार पर आधुनिक भाषाओं के शब्दों की साङ्गोपाङ्ग आत्मकहानी लिखी जा सकती है। इस कोश में उदाहरण के रूप में आयी हुई गाथाएँ साहित्यिक दृष्टि से अमूल्य हैं। सांस्कृतिक विकास की दृष्टि से भी इस कोश का बहुत बड़ा मूल्य है। इसमें संकलित शब्दों से बारहवीं शती की अनेक सांस्कृतिक परम्पराओं को अवगत किया जा सकता है। अभिधानचिन्तामणि
संस्कृत के पर्यायवाची शब्दों की जानकारी के लिए इस कोश का महत्व अमरकोश की अपेक्षा भी अधिक है। इसमें समानार्थक शब्दों का संग्रह किया