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________________ ( २३ ) गया है । इस पद्यमय कोश में कुल छः काण्ड हैं। प्रथम देवाधिदेव नाम के काण्ड में ८६ पद्य हैं, द्वितीय देवकाण्ड में २५० पद्य, तृतीय मयंकांड में ५९८ पद्य, चतुर्थ भूमिकाण्ड में ४२३ पद्य, पञ्चम नारककाण्ड में ७ पद्य एवं षष्ठ सामान्य काण्ड में १७८ पद्य हैं। इस प्रकार इस कोश में कुल १५४२ पद्य हैं । हेमचन्द्र ने आरम्भ में ही रूढ, यौगिक और मिश्र शब्दों के पर्यायवाची शब्द लिखने की प्रतिज्ञा इस तरह की है व्युत्पत्तिरहिताः शब्दा रूढा आखण्डलादयः । योगोऽन्वयः स तु गुणक्रियासम्बन्धसम्भवः॥ गुणतो नीलकण्ठाद्याः क्रियातः स्रष्ट्रसन्निभाः । स्वस्वामित्वादिसम्बन्धस्तत्राहुर्नाम तद्वताम् ।। (अ० चि० १।२-३) व्युत्पत्ति से रहित-प्रकृति तथा प्रत्यय के विभाग करने से भी अन्वर्थहीन शब्दों को रूढ कहते हैं; जैसे आखण्डल आदि । यद्यपि कुछ आचार्य रूढ शब्दों की भी व्युत्पत्ति मानते हैं, पर उस व्युत्पत्ति का प्रयोजन केवल वर्णानुपूर्वी का विज्ञान कराना ही है, अन्वर्थ प्रतीति नहीं। अतः अभिधानचिन्तामणि में संग्रहीत शब्दों में प्रथम प्रकार के शब्द रूढ़ हैं। हेम के द्वारा संग्रहीत दूसरे प्रकार के शब्द यौगिक हैं। शब्दों के परस्पर अनुगम को अन्वय या योग कहते हैं और यह योग गुण, क्रिया तथा अन्य सम्बन्धों से उत्पन्न होता है। गुण के सम्बन्ध के कारण नीलकण्ठ, शितिकण्ठ, कालकण्ठ आदि शब्द ग्रहण किये गये हैं। क्रिया के सम्बन्ध से उत्पन्न होनेवाले शब्द स्रष्टा, धाता प्रभृति हैं। अन्य सम्बन्धों में प्रधान रूप से स्वस्वामित्व, जन्य-जनक, धार्य-धारक, भोज्य-भोजक, पति-कलत्र, सख्य, वाह्य-वाहक, ज्ञातेय, आश्रय-आश्रयी एवं वध्य-वधक भाव सम्बन्ध ग्रहण किया गया है। स्ववाचक शब्दों में स्वामिवाचक शब्द या प्रत्यय जोड़ देने से स्व-स्वामिवाचक शब्द बन जाते हैं । स्वामिवाचक प्रत्ययों में मतुप, इन्, अण, अक आदि प्रत्यय एवं शब्दों में पाल, भुज, धन और नेतृ शब्द परिगणित हैं। यथा-भू+ मतुप् = भूमान्, धन + इन् = धनी, शिव + अण = शैवः, दण्ड + इ = दाण्डिकः । इसी प्रकार भू+पालः = भूपालः, भू+ पतिः = भूपतिः आदि । हेम ने उक्त प्रकार के सभी सम्बन्धों से निष्पन्न शब्दों को कोश में स्थान दिया है। __ हेम ने मूल श्लोकों में जिन शब्दों का संग्रह किया है, उनके अतिरिक्त 'शेषाश्च'-कहकर कुछ अन्य शब्दों को-जो मूल श्लोकों में नहीं आ सके हैंस्थान दिया है । इसके पश्चात् स्वोपज्ञ वृत्ति में भी छूटे हुए शब्दों को समेटने का
SR No.002275
Book TitleAbhidhan Chintamani
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Hargovind Shastri
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1966
Total Pages566
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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