________________
( २४ )
प्रयास किया है । इस प्रकार इस कोश में उस समय तक प्रचलित और साहित्य में व्यवहृत शब्दों को स्थान दिया गया है। यही कारण है कि यह कोश संस्कृत साहित्य में सर्वश्रेष्ठ है ।
विशेषताएँ
अभिधानचिन्तामणि कोश अनेक दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है । जिज्ञासुओं के लिए इसमें पर्यायवाची शब्दों का संकलनमात्र ही नहीं है, अपितु इसमें भाषा-सम्बन्धी बहुत ही महत्त्वपूर्ण सामग्री संकलित है । समाज और संस्कृति के विकास के साथ भाषा के अङ्ग और उपांगों में भी विकास होता है और भावाभिव्यञ्जना के लिए नये-नये शब्दों की आवश्यकता पड़ती है । कोश साहित्य का सबसे बड़ा कार्य यही होता है कि वह नवीन और प्राचीन सभी प्रकार के शब्दसमूह का रक्षण और पोषण प्रस्तुत करता है । हमने इस कोश में अधिक से अधिक शब्दों को स्थान तो दिया ही है; पर साथ हीं नवीन और प्राचीन शब्दों का समन्वय भी उपस्थित किया है । अतः गुप्तकाल में भुक्ति (प्रान्त), विषय जिला ), युक्त (जिले का सर्वोच्च अधिकारी ), विषयपति ( जिलाधीश ), शौल्किक ( चुङ्गी विभाग का अध्यक्ष ), गौल्मिक ( जंगल विभाग का अध्यक्ष ), बलाधिकृत ( सेनाध्यक्ष ), महाबलाधिकृत ( फील्ड मार्शल ) एवं अक्षपटलाधिपति ( रेकार्डकीपर) आदि नये शब्द ग्रहण किये गये हैं । अभिधानचिन्तामणि कोश की निम्नलिखित विशेषताएँ दर्शनीय हैं
(
I
इतिहास की दृष्टि से इस कोश का बड़ा महत्व है । आचार्य हेम ने इस ग्रन्थ की 'स्वोपज्ञवृत्ति' नामक टीका में अपने पूर्ववर्ती जिन ५६ ग्रन्थकारों तथा ३१ ग्रन्थों का उल्लेख किया है, उनके नाम स्वोपज्ञवृत्ति ( भावनगर से प्रकाशित संस्करण ) की पृष्ठ एवं पंक्तियों की संख्याओं के साथ यहाँ लिखा जाता है । उनमें ५६ ग्रन्थकारों के नाम तथा कोष्ठ में क्रमशः पृष्ठों तथा पंक्तियों की संख्याएँ हैं । यथा - अमर ( ५५ - १७ तथा २१; ५६ - २५, ० ) । अमरादि ( २७६ - २१, २९९-१४ ) । अलङ्कारकृत् ( ११२-१३ ) ।
...
४४० - १६ ) । कौटल्य
आगमविद् ( ७०-१४ ) । उत्पल ( ७४ - १४ ) । काव्य ( ५६ - १०, ६१ - ८,"")। कामन्दकि ( ५५० ४ ) । कालिदास ( ४१३ - २, ( ७०–४, २९६–२, '' ) । कौशिक ( १६६ - १३, ( ३५०-९, ४६१–१७ ) । गौड ( ३६- २९, ( ३९४ - ५ ) । चान्द्र ( ५२८ - २५ ) । दतिल
...
१७० - २८ ) । तीरस्वामी
५३-३, ० ) । चाणक्य
१२१ - २२, ५६३-३ )।
(