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( २५ ) दुर्ग (५७-२८, १७४-२७,... )। द्रमिल (१५१-७, २०९-२७)। धनपाल (१-५, ७६-२१,')। धन्वन्तरि (१६६-२८, २५९-७)। नन्दी (५२-२३)। नारद (३५७-१८)। नरुक्त (१६४-1८, १८६-६,... )। पदार्थविद् (२०८-२२)। पालकाप्य (४९५-२७)। पौराणिक (३७३-६)। प्राच्य (२८-२६, ५७-२८,")। बुद्धिसागर (२४५-२५)। बौद्ध (१०१-१७)। भट्टतोत ( २४-१७) । भट्टि (५९३-२३)। भरत (११७९, १२४-२३,")। भागुरि (६६-१४, ६८-२७,...)। भाष्यकार (६६-२३, ३४८-१३, ३८९-२६)। भोज (१५७-१७, १८८-२६,")। मनु (६३-११, १९५-१३,... )। माघ ( ९२-१७)। मुनि (१७१-८, २५४-२०,"")। याज्ञवल्क्य (३३६-२, ४८३-२०)। याज्ञिक (१०३-९)। लौकिक (३७८-२३, ४३३-३)। लिङ्गानुशासनकृत् (५३६-२४)। वाग्भट (१६७-१)। वाचस्पति (१-६, २९-४,... )। वासुकि (१-५)। विश्वदत्त (४९-८)। वैजयन्तीकार (१३१-२३, १३३-१९,' )। वैद्य (१६६-२८, २५३-२३,... )। व्याडि (१-५, ३४-२२ और २५,... )। शाब्दिक (४३-७, १०२-७,... )। शाश्वत (६४-७, १०२-७,... )। श्रीहर्ष (१९८-७), श्रुतिज्ञ ( ३३२-२७)। सभ्य (१३४-१, २५८-१२)। स्मार्त (२०९-१०, ३४६-२, ३५४-१०)। हलायुध (१४४-१५ और १६) तथा हृद्य ( ४५३।२७)। .
अब पृष्ठ-पंक्ति-संख्याओं के साथ ३१ ग्रन्थों के नाम दिये जाते हैं-अमरकोश (८-५)। अमरटीका (४५-१३, ५५-१,...)। अमरमाला (४४०-३२)।
अमरशेष (१५३-२०, ४५६-१५)। अर्थशास्त्र ( २९७-२५, ३१६-२७)। आगमः ( २१८-१६)। चान्द्र (१५८-२६)। जैनसमय (८०- ६)। टीका (५७४-२४)। तर्क (५५०-५)। त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (१३-९, ८०-७)। द्वयाश्रयमहाकाव्य (६१०-१८ और २५)। धनुर्वेद (३०९-१७, ३१०-८, ३११-७)। धातुपारायण (१-११, ६०९-५)। नाव्यशास्त्र (१७-६, १२२-१३, २४३-१७)। निघण्टु (४८४-३०)। पुराण (५६-२१, ७०-१५,..")। प्रमाणमीमांसा (५५५-२१)। भारत (३३८-१३, ३९०-२७)। महाभारत (८१-२३)। माला (६८-२७, २१८-२५,")। योगशास्त्र (४४५-७)। लिङ्गानुशासन (८-४, १९३-१३, ६०९-११)। वामनपुराण (४६-२९, ८२-८,...)। विष्णुपुराण (६९-१९, ९३-१)। वेद (३५-२२)। वैजयन्ती (५७-३, १०९-१८,")।