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________________ ( २१ ) प्राकृत द्वयाश्रय काव्य में कुमारपाल के चरित के साथ प्राकृत व्याकरण के सूत्रों के उदाहरण प्रस्तुत किये गये हैं। इस काव्य में कुमारपाल की धर्मनिष्ठा, नीति, परोपकारी आचरण, सांस्कृतिक चेतना, उदारता, नागर जनों के साथ सम्बन्ध, जैनधर्म में दीक्षित होना एवं दिनचर्या आदि सभी विषयों का विस्तारपूर्वक रोचक वर्णन है । इसमें आठ सर्ग और ७४७ गाथाएँ हैं। त्रिपष्टिशलाका-पुरुष-चरित इस ग्रन्थ में २४ तीर्थकर, १२ चक्रवर्ती, ९ बलदेव, ९ वासुदेव और ९ इतिवासुदेव, इस प्रकार त्रेसठ पुरुषों का चरित अंकित है। यह ग्रन्थ बत्तीस हजार श्लोक प्रमाण है। इसका रचनाकाल वि० सं० १२२६-१२२९ के बीच का है। इसमें ईश्वर, परलोक, आत्मा, कर्म, धर्म, सृष्टि आदि विषयों पर विशद विवेचन किया गया है । दार्शनिक मान्यताओं का भी विशद विवेचन विद्यमान है। इतिहास, कथा एवं पौराणिक तथ्यों का यथेष्ट समावेश किया गया है। काव्यानुशासन आचार्य हेम ने मम्मट, आनन्दवर्द्धन, अभिनवगुप्त, रुद्रट, दण्डी, धनञ्जय आदि के काव्यशास्त्रीय ग्रन्थों का अध्ययन कर इस ग्रन्थ की रचना की है। इस ग्रन्थ पर हेमचन्द्र ने अलङ्कार चूड़ामणि नाम से एक लघुवृत्ति और विवेक नाम की एक विस्तृत टीका लिखी है। इसमें मम्मट की अपेक्षा काव्य के प्रयोजन, हेतु, अर्थालङ्कार, गुण, दोष, ध्वनि आदि सिद्धान्तों पर गहन अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। छन्दोनुशासन इसमें संस्कृत, प्राकृत एवं अपभ्रंश साहित्य के छन्दों का विवेचन किया है। मूल ग्रन्थ सूत्रों में है । आचार्य हेम ने इसकी वृत्ति भी लिखी है। इन्होंने छन्दों के उदाहरण अपनी मौलिक रचनाओं से उपस्थित किये हैं। न्याय इनके द्वारा रचित प्रमाण-मीमांसा नामक ग्रन्थ प्रमाण-प्रमेय की साङ्गोपाङ्ग जानकारी प्रदान करने में पूर्ण क्षम है। अनेकान्तवाद, प्रमाण, पारमार्थिक प्रत्यक्ष की तात्त्विकता, इन्द्रियज्ञान का व्यापारक्रम, परोक्ष के प्रकार, अनुमानावयवों की प्रायोगिक व्यवस्था, निग्रहस्थान, जय-पराजय-व्यवस्था, सर्वज्ञस्व का समर्थन आदि मूल मुद्दों पर विचार किया गया है।
SR No.002275
Book TitleAbhidhan Chintamani
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Hargovind Shastri
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1966
Total Pages566
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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