________________
( २० ) क्लृप्तं व्याकरणं नवं विरचितं छन्दो नवं द्वथाश्रयालंकारौ प्रथितौ नवौ, प्रकटितं श्रीयोगशास्त्रं नवम् । तर्कः संजनितो नवो, जिनवरादीनां चरित्रं नवं बद्धं येन न केन केन विधिना मोहः कृतः दूरतः॥
इससे स्पष्ट है कि हेम ने व्याकरण, छन्द, याश्रय काव्य, अलङ्कार, योगशास्त्र, स्तवन काव्य, चरित कान्य प्रभृति विषय के ग्रन्थों की रचना की है। व्याकरण
व्याकरण के क्षेत्र में सिद्धहेमशब्दानुशासन, सिद्धहेमलिङ्गानुशासन एवं धातुपारायण ग्रन्थ उपलब्ध हैं। इनके व्याकरण ग्रन्थ की प्रशंसा करते हुए प्रबन्धचिन्तामणि में लिखा है
भ्रातः संवृणु पाणिनिप्रलपितं कातन्त्रकन्था वृथा, . मा कार्षीः कटु शाकटायनवचः क्षुद्रेण चान्द्रेण किम् .. किं कण्ठाभरणादिभिर्वठरयत्यात्मानमन्यैरपि,
श्रूयन्ते यदि तावदर्थमधुरा श्रीसिद्धहेमोक्तयः ।। हैम व्याकरण
(१) मूलपाठ, (२) धातुपाठ, (३) गणपाठ, (४) उणादिप्रत्यय एवं (५) लिङ्गानुशासन इन पाँचों अंगों से परिपूर्ण है। सिद्धहेमशब्दानुशासन राजा सिद्धराज जयसिंह की प्रेरणा से लिखा गया है। इस ग्रन्थ में आठ अध्याय और ३५६६ सूत्र हैं। आठवाँ अध्याय प्राकृत व्याकरण है, इसमें १११९ सूत्र हैं। ___ आचार्य हेम ने इस व्याकरण ग्रन्थ पर छः हजार श्लोक प्रमाण लघुवृत्ति और अठारह हजार श्लोक प्रमाण बृहद्वृत्ति लिखी है। बृहद्वृत्ति सात अध्यायों पर ही प्राप्त होती है, आठवें अध्याय पर नहीं है। द्वथाश्रय काव्य
द्वयाश्रय नाम से ही स्पष्ट है कि उसमें दो तथ्यों को सन्निबद्ध किया गया है। इसमें चालुक्यवंश के चरित के साथ व्याकरण के सूत्रों के उदाहरण प्रस्तुत किये गये हैं। इसमें सन्देह नहीं कि हेमचन्द्र ने एक सर्वगुण-सम्पन्न महाकाव्य में सूत्रों का सन्दर्भ लेकर अपनी विशिष्ट प्रतिभा का परिचय दिया है। इस महाकाव्य में २० सर्ग और २८८८ श्लोक हैं। सृष्टिवर्णन, ऋतुवर्णन, रसवर्णन आदि सभी महाकाव्य के गुण वर्तमान हैं।