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कलात्मक निर्माण के प्रेरक
आचार्य हेमचन्द्र की प्रेरणा से पश्चिम तथा पश्चिमोत्तर भारत में अनेक मन्दिरों एवं विहारों का निर्माण हुआ । संसारप्रसिद्ध ऐतिहासिक सोमनाथ के मन्दिर का पुनर्निर्माण आचार्य हेमचन्द्र की प्रेरणा से हुआ था । प्रबन्धचिन्तामणि के रचयिता मेरुतुंग ने इस घटना का उल्लेख किया है । पञ्चकुल के मन्दिर के सम्पन्न हो जाने पर आचार्य हेमचन्द्र और कुमारपाल दोनों ही देवदर्शन करने गये थे | आचार्य हेमचन्द्र के प्रभाव एवं प्रेरणा से गुजरात तथा राजस्थान में बने मन्दिर एवं विहार कला के उत्कृष्ट नमूने हैं ।
शिष्यवर्ग
आचार्य हेमचन्द्र जैसे प्रतिभाशाली व्यक्तित्व सम्पन्न और उत्तमोत्तम गुणों के धारक थे, वैसा ही उनका शिष्य-समूह भी था । रामचन्द्र सूरि, बालचन्द्र सूरि, गुणचन्द्र सूरि, महेन्द्र सूरि, वर्धमान गणी, देवचन्द्र, उदयचन्द्र, एवं यश-अन्द्र उनके प्रख्यात शिष्य थे। इन्होंने हेमचन्द्र की कृतियों पर टीकाएँ तथा वृत्तियाँ लिखी हैं, साथ ही इनके स्वतन्त्र ग्रन्थ भी उपलब्ध हैं । रामचन्द्र सूरि इन सभी शिष्यों में अग्रणी थे । उनमें कवि की प्रखर प्रतिभा एवं साधुस्व
अलौकिक तेज था । कुमारविहारशतक के रचयिता ये ही हैं। इन्हें 'प्रबन्धशत - कर्ता' कहा जाता है। रामचन्द्र और गुणचन्द्र सूरि ने मिलकर 'नाव्यदर्पण' की रचना की है । महेन्द्र सूरि ने अभिधानचिन्तामणि, अनेकार्थनाममाला, देशीनाममाला और निघण्टु पर टीकाएँ लिखी हैं । देवचन्द्र सूरि ने 'चन्द्रलेखा - विजयप्रकरण' और बालचन्द्र गणि ने 'स्नातस्या' नामक काव्य की रचना की है।
साहित्य
हेमचन्द्र की साहित्य साधना बहुत विशाल एवं व्यापक है । जीवन को संस्कृत, संवर्द्धित और संचालित करनेवाले जितने पहलू होते हैं, उन सभी को उन्होंने अपनी लेखनी का विषय बनाया है । व्याकरण, छन्द, अलङ्कार, कोश एवं काव्य विषयक इनकी रचनाएँ बेजोड़ हैं। इनके ग्रन्थ रोचक, मर्मस्पर्शी एवं सजीव हैं । पश्चिम के विद्वान् इनके साहित्य पर इतने मुग्ध हैं कि इन्होंने इन्हें ज्ञान का महासागर कहा है । इनकी प्रत्येक रचना में नया दृष्टिकोण और नयी शैली वर्तमान है। श्री सोमप्रभ सूरि ने इनकी सर्वाङ्गीण प्रतिभा की प्रशंसा करते हुए लिखा है