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( १८ ) . . राज्य की सुदृढ़ व्यवस्था की। यद्यपि यह सिद्धराज के समान विद्वान् और विद्यारसिक नहीं था, तो भी राज्यव्यवस्था के पश्चात् धर्म और विद्या से प्रेम करने लगा था।
हेमचन्द्र के प्रति कुमारपाल राजा होने के पहले से ही श्रद्धावनत था, पर अब राजा होने पर उसका सम्बन्ध उनके साथ घनीभूत होने लगा। डा. बुल्हर ने कुमारपाल और हेमचन्द्र के सम्बन्ध का विवेचन करते हुए लिखा है कि हेमचन्द्र कुमारपाल से तब मिले, जब राज्य की समृद्धि और विस्तार हो गया था। डा० बुल्हर की इस मान्यता की आलोचना काम्यानुशासन की भूमिका में डा० रसिकलाल पारिख ने की है और उन्होंने उक्त कथन को विवादास्पद सिद्ध किया है। जिनमण्डन ने कुमारपालप्रबन्ध में दोनों के मिलने की घटना पर प्रकाश डालते हुए लिखा है कि एक बार कुमारपाल जयसिंह से मिलने गया था। मुनि हेमचन्द्र को उसने सिंहासन पर बैठे देखा । वह अत्यधिक आकृष्ट हुभा और उनके भाषण-कक्ष में जाकर भाषण सुनने लगा। उसने पूछा-'मनुष्य का सबसे बड़ा गुण क्या है ?' हेमचन्द्र ने कहा-'दूसरों की स्त्रियों में माँ-बहन की भावना रखना सबसे बड़ा गुण है।' यदि यह घटना ऐतिहासिक है तो अवश्य ही वि० सं० ११६९ के आसपास घटी होगी; क्योंकि उस समय कुमारपाल को अपने प्राणों का भय नहीं था।
आचार्य हेमचन्द्र ने कुमारपाल के चारित्रिक पक्ष को बहुत परिष्कृत किया था। ऐश्वर्य के विलासमय और उत्तेजक वातावरण में रहते हुए भी उसे राजर्षि एवं परमाहत बना दिया था। मांस, मदिरा आदि सप्त व्यसनों से उसे मुक्ति दिलायी थी। कुमारपाल ने अपने अधीन १८ राज्यों में 'अमारि'-अहिंसा की घोषणा की थी। इसमें सन्देह नहीं कि कुमारपाल की राजकीय सफलता, सामाजिक नवसुधार की योजना, साहित्य एवं कला के संरक्षण-संवर्धन के संकल्प के पीछे आचार्य हेमचन्द्र का व्यक्तित्व, उनकी प्रेरणा एवं उनका वरद हस्त था।
१ See Note 53 in Dr. Bulher's Life of Hemchandra P.P. 83-84
२ कुमारपाल प्रबन्ध पृ० १८-२२
see the Life of Hemchandra, Hemchandra's own account of Kumarpal's conversion pp. 32-40
देखें--कुमारपाल प्रतिबोध पृ० ३ श्लो० ३००-४००